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उठापटक पर ऐसा होता है। हर किसी के जीवन में होता है। फिर ऊपर उठने में कैसा गुमान और नीचे गिरने में किस बात का ग़म । ग़म और गुमान व्यक्ति स्वयं उत्पन्न करता है। उठापटक तो जीवन की व्यवस्था है। जो कल तक गुमान कर रहा था, वह आज ग़म में डूबा है और जिस पर कल तक ग़म का साया था वह आज इतरा रहा है। सुख और दुःख तो हमारी सुविधाओं से आते हैं। ये तो उसी को प्रभावित करते हैं जो इनके निमित्तों से जुड़ा रहता है। जो सदाबहार शांत रहकर अपने मन की प्रसन्नता और आनन्द में जीता है वह सुख आने पर गुमान नहीं करता और दुःख आने पर ग़म नहीं करता। सुख और दुःख व्यक्ति को सुविधाओं और दुविधाओं के आधार पर बाहर से मिलते हैं लेकिन शांति, प्रसन्नता और आनन्द व्यक्ति के भीतर से फूटते हैं। बाहर हैं पल की खुशियां
___ जो बाहर से मिलते हैं उनमें परिवर्तन होता रहता है लेकिन जो भीतर से आता है वह स्थायी होता है। आप देखें कि बाहर के निमित्त व्यक्ति की भावदशा को कैसे प्रभावित करते हैं? एक व्यक्ति ने पांच रुपये का लॉटरी का टिकिट खरीदा। संयोग की बात, अगले दिन अखबार में देखा कि लॉटरी का पुरस्कार घोषित हो गया है और प्रथम पुरस्कार के टिकट का नंबर उसी के टिकट का है। वह बहुत खुश हो गया। उसके मन में प्रसन्नता समा नहीं रही थी। रविवार का दिन था। उसने अपने पड़ोसियों को, मित्रों को, रिश्तेदारों को सूचना दी कि शाम के समय सांध्य भोज का आयोजन कर रहा हूँ क्योंकि मेरे नाम पाँच लाख की लॉटरी खल गई है।
शाम के समय उसने भोजन का प्रबंध किया, सभी आमंत्रितों को भोजन कराया और खुद बहुत ही खुश हो रहा था कि उसकी लॉटरी लग गई है। सभी उसके भाग्य की तारीफ कर रहे थे। वह भी जीवन में इतना खुश पहले कभी नहीं हआ था। सभी लोग भोजन करके चले गए। वह व्यक्ति घर में आकर पलंग पर लेट गया। उसे नींद भी न आई। वह ऊंचे-ऊंचे सपने देखने लगा। पांच लाख मिलेंगे तो सामान्य ही सही, एक कार जरूर खरीदूंगा, पचास हजार लगाकर घर भी सुधरवा लूँगा, अपना बुढ़ापा ठीक ढंग से गुजार सकूँ इसके लिए एक-डेढ़ लाख की एफ.डी. भी करवा दूंगा। पाँच-पाँच
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