Book Title: Kaise Sulzaye Man ki Ulzan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 113
________________ आएगी। प्रसन्नता उधार या किराए से नहीं मिलती। लोग हमारे पास आते हैं और कहते हैं - 'कोई ऐसा मंत्र बताइए कि जिससे मन को प्रसन्नता और शांति मिले।' मैं कहता हूँ- दुनिया में कोई भी ऐसा मंत्र नहीं है जिसको जपने से शांति पाई जा सके। शांति पाने का एक ही मार्ग है कि आप अशांति के निमित्तों से बचने की कोशिश करें। आपने अपने चारों ओर अशांति के इतने निमित्त खडे कर लिए हैं कि उनके बीच शांति दफन हो गई है। चेहरे की मुस्कान भी कृत्रिम हो गई है जिसके कारण बाहर से तो व्यक्ति सुखी नजर आता है लेकिन अन्तर्मन में वह दुःखी ही है। प्रसन्नता तो वह चंदन है जिसे तुम भी प्रतिदिन अपने शीष पर धारण करो और यदि कोई व्यक्ति तुम्हारे द्वारे आए तो उसका भी उसी चंदन से तिलक करो। प्रसन्नता तो परफ्यूम की तरह है जिसे रोज सुबह ही अपने ऊपर छिड़क लिया जाना चाहिए। प्रसन्नता तो सुन्दर साड़ी की तरह है जिसे पहनकर मन खुश हो जाए। . प्रकृति ने सभी को चेहरे दिए हैं किसी को काले तो किसी को गोरे। सभी को लगभग एक जैसे ही चेहरे दिये हैं - वही नाक, होंठ, कान, आँख, जिह्वा - लगभग एक से ही दिये हैं। लेकिन उन पर भाव हम ही दिया करते हैं। जैसी व्यक्ति की मनोदशा, भावदशा और सोच होती है वह उस व्यक्ति के चेहरे पर उभर जाती है। जीवन की सर्वोपरि शक्ति है व्यक्ति के अन्तर्मन में पलने वाली शांति और प्रसन्नता। जीवन की सबसे बड़ी, सम्पत्ति प्रसन्नता ही है। सर्दी की सुहानी धूप-सी खुशी हम सोचें कि प्रसन्नता हमें क्या देती है? कभी आप एक घंटे तक उदास रहकर देखें कि आपका चित्त कितना मलिन होता जा रहा है? आपके मस्तिष्क की कोशिकाएँ सुप्त होती जा रही हैं। बड़े से बड़ा ज्ञानी भी तब कुछ करने में असमर्थ हो जाता है जब उसके मन में नाउम्मीदी प्रवेश कर जाती है। समर्थ और शक्तिशाली भी शक्तिहीन और श्रीहीन हो जाता है। निराशा से घिरने पर याद करें कि वे दो भोजन, एक जो आपने उदासी के क्षणों में किया था और दूसरा जो आपने प्रसन्नता के पलों में किया था, उनके स्वाद में कितना 104 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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