Book Title: Kaise Sulzaye Man ki Ulzan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 112
________________ दूसरी ओर नाखुशी और नाउम्मीदी खुदी हुई है। व्यक्ति जब सिक्का निकालकर उसे देखता है तो उसे खुशी नजर आती है और वह खुश होता है और कभी वह जब सिक्के का दूसरा भाग देखता है तो उसे नाखुशी और नाउम्मीदी नजर आती हैं। वह दुःखी हो जाता है। अपनी जेब में ऐसा सदाबहार सिक्का रखो जिसके दोनों ओर खुशी ही खुदी हो। जब चित को देखो तो भी खुशी और पट को देखो तब भी खुशी। यह सिक्का सभी को जरूर रखना चाहिए। जब भी इसे देखो, तुम्हें शांति और खुशी ही मिलती रहे। प्रसन्नता और सुख का सम्बन्ध व्यक्ति के अन्तर्मन से है। आदमी खुशियों के लिये आयोजन करता है, अपने बच्चे का बर्थ-डे मनाता है। अपने यहाँ भोज का आयोजन करता है, सौ-दो सौ लोग आते हैं, पंडाल बँधता है, विविध प्रकार के पकवान बनते हैं। दो घंटे की खुशियाँ नजर आती हैं, लोग खाना खाकर चले जाते हैं और फिर वही सन्नाटा पसर आता है। खुशियों के समारोह अन्ततः सन्नाटा देकर ही जाते हैं। शांति चाहिए तो अशांति से बचिए अगर आप वाकई में प्रसन्नता और शांति पाना चाहते हैं तो मन को बदलें, मन की दिशा और परिणामों को बदलें। जीवन में जो मिले उसे प्रेम से स्वीकार करें। एक व्यक्ति मिठाई की दुकान पर गया और पूछा- 'तुम्हारे यहाँ सबसे अच्छी मिठाई कौनसी है? हलवाई ने अपने यहाँ की हर मिठाई को एक दूसरे से अच्छा बताया। उस व्यक्ति ने कहा – 'मैं तो यह जानना चाहता हूँ कि कौनसी मिठाई सबसे अच्छी है?' महाशय, मेरी दुकान की हर मिठाई सबसे अच्छी है' - हलवाई ने कहा। जिंदगी भी एक दुकान की तरह है जिसकी हर चीज अच्छी है। जो भी जैसा मिल रहा है उसमें कैसा गिला, कैसी शिकायत ! तुम दुःखी हो, क्योंकि तुम जो चाहते हो, पसंद करते हो वह तुम्हें नहीं मिल पा रहा है। प्रसन्न रहने की कला तो इसमें है कि जो तुम्हें मिल रहा है उसी को पसंद करना शुरू कर दो। ईश्वर हमें वह सब नहीं देता, जो हम चाहते हैं। जो ईश्वर ने दिया है, हम उसे पंसद करना शुरू कर दें। हम सदा खुश रहेंगे। सुख और दुःख दोनों का सम्मान करो। अगर आप अपने मन को इस दिशा में मोड़ने या बदलने में सफल हो जाते हैं तो प्रसन्नता अपने आप 103 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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