Book Title: Kaise Sulzaye Man ki Ulzan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 95
________________ अपनी गलतियाँ सदा नजरअंदाज हो जाती हैं। जिसे नजरअंदाज किया जाना चाहिए उसे व्यक्ति गहराई से देखता है और जिसे गहराई से देखना चाहिए उसकी उपेक्षा कर दी जाती है। बनें वीतद्वेष मनुष्य के जीवन में मैं दो प्रकार के रिश्ते देखता हूँ- दोस्ती का और दुश्मनी का। दोस्ती के रिश्ते को तो हम सभी जानते हैं कि हम अपने मित्रों, परिचितों, आत्मीयजनों को याद किया करते हैं लेकिन वास्तविकता तो यह है कि जितना संबंध दोस्तों से होता है उससे कहीं अधिक संबंध दुश्मनों से होता है। वह दोस्त को भले ही दिन में दो बार याद करे लेकिन अपने दुश्मन को सौ बार याद कर लेता है। इस तरह व्यक्ति के जीवन में दो भाव - दोस्ती और दुश्मनी के पलते हैं। एक राग, दूसरा द्वेष । यह संभव नहीं है कि व्यक्ति स्वयं को राग के दायरे से अलग कर ले, मन में व्याप्त जो मोह-माया की भावना, रागात्मक संबंध है, उनको छिटका दे। हर व्यक्ति वीतराग हो सके, यह संभव नहीं है। अपने परिवार, माता-पिता, पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री के प्रति जो रागात्मकता है उसे मन से विलग नहीं किया जा सकता। आज जो बात मैं आपसे कहना चाहता हूँ वह जीवन से राग को मिटाने या हटाने की नहीं है आप शायद राग को न छोड़ पायें, लेकिन वैर, द्वेष, दुश्मनी से तो बच ही सकते हैं। कोई अपने जीवन में वीतराग बन सके या न बन सके, लेकिन हर व्यक्ति को वीतद्वेष अवश्य बन जाना चाहिए। आप अपने मोह को भले ही कम न कर सकें पर दूसरों के प्रति अपने विरोध को तो कम कर ही सकते हैं। आपका जिनके साथ राग और प्रेम है, उनसे आप दूर नहीं हट सकते तो जिनके साथ आपकी दुश्मनी है उनसे तो बचने की कोशिश कर ही सकते हैं। व्यक्ति अपने पुराने आघातों को याद करता है - 'ओह ! तो उसने मेरे साथ ऐसा किया था, उसने भरी सभा में मेरा पानी उतारा था, उसने मीटिंग में मेरी बात काटी थी, लोगों के बीच मेरे साथ दुर्व्यवहार किया था' - ऐसी बातों के प्रति उसके मन में उथल-पुथल चलती रहती है, और एक स्थिति वह आती है जब वह मानसिक रूप से तनाव ग्रस्त हो जाता है। वह निर्णय नहीं कर पाता कि जिसने मेरा अहित किया है उसके साथ मैं कैसा व्यवहार करूँ। 86 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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