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माता-पिता की हत्या का बदला जरूर लेगा।
प्रतिशोध की आग से भरे हुए दीर्घायु ने काशीनरेश के यहाँ घुड़साल में नौकरी पा ली। वहाँ नौकरी करते हुए वह अपनी निपुणता से राजा का चहेता बन गया है। राजा ने उसे घुड़साल की नौकरी से हटाकर अपने निजी सहायक के रूप में नियुक्त कर लिया। मन में प्रतिशोध की भावना होने के बावजूद वह उसी के यहाँ काम कर रहा था। दिन, महीने, साल बीत गए। एक दिन राजा ब्रह्मदत्त दीर्घायु को साथ लेकर शिकार खेलने गया है। वह नहीं जानता था कि यह शत्रु का पुत्र है लेकिन दीर्घायु तो अपने पिता के हत्यारे को जानता था। दोनों घनघोर जंगल में पहुँच गये। राजा थक चुका था, अतः एक पेड़ की छाँव में दीर्घायु की गोद में सिर रखकर विश्राम करने लगा। थोड़ी देर में उसे नींद आ गई। बदले से बढ़कर क्षमा - दीर्घायु बार-बार राजा के चेहरे को देखता और सोचता- 'आज मौका है। यही वह व्यक्ति है जिसने मेरे पिता से युद्ध करके उन्हें पराजित किया था। यही है वह जिसने मेरे माता-पिता की हत्या करवाई। आज मुझे मौका मिला है, मैं अपने माता-पिता की हत्या का बदला लूँगा' - ऐसा सोचते हुए उसने अपनी तलवार म्यान से बाहर निकाली। वह ब्रह्मदत्त पर वार करने ही वाला था कि उसे पिता के वचन याद आए- 'बेटा, प्रतिशोध की भावना से भी महान् क्षमा होती है। महान् वे नहीं हैं जो प्रतिशोध की भावना को बलवती बनाए रखते हैं। महान् वे हैं जो अपने हृदय में क्षमा का सागर समेटे रखते हैं। दीर्घायु ने पिता के वचनों पर विचार किया।
__उधर सोया हुआ ब्रह्मदत्त स्वप्न देखता है कि उसका अंगरक्षक उसकी हत्या करने के लिये कटार हाथ में ले चुका है। वह घबराकर जाग जाता है और दीर्घायु के हाथ में तलवार देखता है। वह पूछता है- 'तुम कौन हो?' दीर्घायु कहता है- 'तुम्हारे दुश्मन दीर्घती का पुत्र हूँ। मेरे मन में विकल्प आया था कि मैं अपने पिता के हत्यारे की हत्या करके बदला ले लूँ, लेकिन मुझे अपने पिता का कहा गया वह वचन याद आ गया कि प्रतिशोध से बढ़कर तो क्षमा होती है। यही विचारकर मैंने तुम पर तलवार नहीं चलाई।
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