________________
उसने कामवश कम, अहंकारवश ही किया था। क्योंकि जब उसकी बहन ने बताया कि उसके नाक-कान काट दिये गए हैं तब रावण का अहंकार जगा कि मेरी बहन की यह हालत ! अब राम की पत्नी की भी यही हालत कर दूंगा और उसने सीता का अपहरण किया अपने अहंकार के पोषण के लिये। अपने अंतिम क्षणों में भी अगर रावण अपना अहंकार छोड़ देता तो शायद न तो उसका वध होता और न ही आज तक रावण का दहन किया जाता। पत्थरों को तय हैं ठोकरें
___ अहंकार व्यक्ति के विनाश का कारण है। कंस को भी शायद उसके अंतिम पलों में यह महसूस हो गया था कि कृष्ण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है। वह तो विष्णु का अवतार है और मेरा वध उसके हाथों निश्चित है। वर्ष भर तक निरन्तर रात में सोते, दिन में जागते, भोजन करते, राजसभा में बैठे हुए हर समय उसे अपनी मौत ही नजर आ रही थी। भले ही राजसभा में बैठकर उसने कृष्ण का अंत करने की योजनाएँ बनाईं पर मौत की काली परछाई तो कंस के सिर पर नाच रही थी। कंस का अहंकार ही उसके अंत का कारण बना। रावण हो या कंस, किसी का भी अहंकार टिका नहीं है। क्या होता है अहंकार का परिणाम, अगर देखना है तो, इस युग में सद्दाम हुसैन सबसे जीवंत उदाहरण है। याद रखें, दुनिया ने उसी को पूजा है जिसके भीतर नम्रता और सदाशयता रही है। जो अहंकार के पत्थर बन गए, उन्होंने ठोकरें ही खाई हैं।
जिनके भीतर अहंकार की ग्रंथि होती है उनके चारों ओर 'मैं' का जाल बुना रहता है। उन्हें लगता है कि वे ही दुनियाभर के कार्यों को अंजाम दे रहे हैं। मैं सोचा करता हूँ कि ऐसे लोगों को उनका पूर्वजन्म तो आसानी से बताया जा सकता है जो हर समय 'मैं-मैं' करते रहते हैं। पिछले जन्म में वे जरूर बकरे रहे होंगे तभी तो मैं-मैं करने की आदत अपने साथ लेकर आये हैं। आप भी 'मैं' की वृत्ति को कम करें और 'हम' की वृत्ति को जीवित करें। मैंने ऐसा किया है और अब भी 'मैं' ऐसा ही कर रहा हूँ। 'मैं' कहने के बजाय अगर ऐसा कहें और करें कि 'हमने ऐसा किया है अथवा 'हम' ऐसा कर रहे हैं तो आप यह मानकर चलिए कि जहाँ पर 'हम' होता है, वहाँ सार्वभौमिकता होती है और जहाँ 'मैं' होता है वहाँ अहंकार की वृत्ति होती है। यह सब मैंने
72
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org