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किया है कहने की बजाय विनम्र भाषा का प्रयोग करें- 'यह हमारा विनम्र प्रयास है' ऐसा कहना और सुनना दोनों ही अच्छा लगेगा। नरक का द्वार- अहंकार
स्वामी विवेकानंद एक बार अपने भक्तों के बीच बैठे हुए थे। वे लोग परस्पर बातचीत कर रहे थे। उनमें से एक युवक खड़ा हुआ और पूछने लगा'आप में से क्या कोई यह बता सकता है कि नरक कौन ले जाता है?' एक ने कहा, 'जुआ ले जाता है।' प्रश्नकर्ता ने कहा, 'मैं नहीं मानता।' दूसरे ने कहा, 'शायद, पराई स्त्री पर गलत नजर डालना नरक ले जाता है। उसने कहा, 'मैं नहीं मानता।' तीसरे ने कहा 'व्यसनों में जीना।' उसने फिर मानने से इन्कार कर दिया। चौथे ने कहा, 'मिलावट करना, खोटे धंधे करना'। इस तरह लोगों ने कई तरह की बातें बताई कि शायद ऐसा-ऐसा करने वाला आदमी नरक में जाता है लेकिन वह युवक हर बार यही कहता कि, 'मैं नहीं मानता।'
विवेकानंद तो चर्चा में मशगूल थे। जब उनका ध्यान इस ओर गया तो उन्होंने पूछा, 'क्या बात है? आखिर आपका प्रश्न क्या है?' लोगों ने प्रश्न और उसके विभिन्न उत्तर उन्हें बताए और यह भी कहा कि वह युवक इन उत्तरों को स्वीकार नहीं कर रहा है। विवेकानंद ने कहा, 'तुम अगर जानना चाहो तो मैं बता सकता हूँ कि नरक में कौन ले जाता है। यह हमारा जो मैं' है, यही नरक में ले जाता है। मैं' का भाव अर्थात् अहंकार की वृत्ति ही हमें नरक की और धकेलती है।'
सावधान हो जाएँ कि कहीं हमारे भीतर अहंकार के बीज तो नहीं पनप रहे हैं। सावधान हो जाएँ कि कहीं हमारे भीतर अहंकार का शूल तो नहीं उग रहा है। सावधान हो जाएँ कि कहीं हमारे भीतर अकड़ या घमंड की ग्रंथि तो नहीं पल रही है। आपके भीतर पनपने वाली अहंकार की वृत्ति ही आपके स्वभाव को विकृत कर देगी। हटाएँ अहंकार की दीवार
अहंकार दो मनुष्यों के बीच मैत्री को दूर करने वाली सबसे बड़ी दीवार है। यह वह चट्टान है जो हमारे जीवन की राह को कठिन बनानी है ' और अगर यह चट्टान खंड़ित हो जाए तो जीवन में प्रेम का झरना फूट पड़ता
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