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कारण आँखों की मासपेशियाँ कस जाती हैं और आँखों में दर्द होना शुरू हो जाता है। कुछ दिन पूर्व संबोधि-धाम में आयोजित एक स्वास्थ्य संगोष्ठी में किसी डॉक्टर ने जिक्र किया था कि भय और चिंता के कारण कई बार मनुष्य की आँखें खराब हो जाती हैं। उसे दिखना कम हो जाता है और बोलने की शक्ति भी प्रभावित हो जाती है। उन्होंने एक मरीज का हाल सुनाया कि वह आर्थिक दृष्टि से काफी डाँवाडोल हो चुका था। कई तरह के संकटों में फँस जाने के कारण उसे चिंता ने घेर लिया था। परिणामस्वरूप कुछ ही दिनों में उसकी आँखें तेजी से झपकने लगी और उसकी बोलने की शक्ति भी कमजोर होने लगी।
चिंताग्रस्त व्यक्ति कई प्रकार की मानसिक उलझनों में फँसा रहता है। अपनी बीमारी का परिचय वह स्वयं ही औरों को देता है। कभी कहता है कि 'मुझे किसी काम में रूचि नहीं रही और मेरा मूड हर समय खराब रहता है। जैसा मैं पहले था, वैसा अब न रहा। पता नहीं, मेरे मन को क्या हो गया है? वह हर बात में यही जिक्र करता है कि अब मैं जीने योग्य नहीं रहा और कभी भी मर सकता हूँ। ऐसा व्यक्ति बुज़दिल और चिड़चिड़े स्वभाव का तो होता ही है, साथ में वह अपने-आपको बहुत दुःखी अनुभव करता है। वह खुद तो परेशान रहता ही है, अपनी उपस्थिति से औरों को भी परेशान करता रहता है। अगर कोई आपको शिकायत करे कि मेरी याददाश्त कमजोर हो रही है तो समझलो कि जरूर वह किसी चिंता का शिकार हो चुका है। आखिर कैसे बचें चिंता से
__ अगर उपाय किये जाएँ तो इसका उत्तर बड़ा सरल है अन्यथा यह बड़ा पेचीदा प्रश्न है। चिंतामुक्ति के लिए कुछ उपायों पर अमल किया जा सकता है जो हमें धीरे-धीरे इस भंवर से बाहर ला सकते हैं। जिएँ वर्तमान में
यह समझें कि चिंता-मुक्ति के लिए यह बेहतरीन टॉनिक है। अतीत की स्मृतियाँ और भविष्य की कल्पनाएँ जहाँ हमारी चिंता और हमारे तनाव को बढ़ावा देती हैं वहीं वर्तमान का चिंतन हमें चिंता से छुटकारा दिला सकता है।
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