Book Title: Kaise Sulzaye Man ki Ulzan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 41
________________ उपासना में कोई-न-कोई चाह छिपी रहती है। जो मिला है, व्यक्ति उसका उपभोग नहीं कर पाता और जो नहीं मिला है उसके पीछे दौड़ता रहता है। आज अगर मंदिरों में भण्डार भर रहे हैं तो यह मत समझिएगा कि लोग भगवान को चढ़ा रहे हैं। वास्तव में वे लोग अपनी भविष्यनिधि की व्यवस्था कर रहे हैं। मनुष्य को धर्म के नाम पर यह समझाया गया है कि तुम्हें अगले जन्म में एक का सौ मिलेगा और सौ का लाख। हवा निकालें, हवाई कल्पनाओं की ___मनुष्य के मन में पलने वाली तृष्णा उसकी चिंता का मूल कारण है। तृष्णा हमारे संतोष को समाप्त करती है और असंतोष मानसिक तनाव का कारण बनता है। मुझे एक महानुभाव बताया करते थे कि उन्हें कई बार एक जैसा सपना आता है कि वे एक सोने के महल के सामने खड़े हैं। महल की खूबसूरत सीढ़ियों से चढ़कर वे महल की छत पर पहुँचते हैं। महल पर उनका राज्य है और वे महल की दीवारों पर टहल रहे हैं। लेकिन थोड़ी देर के बाद ही वे सपने में देखते हैं कि जिस दीवार पर वे खड़े हैं उसकी सारी ईंटें हिल रही हैं। उनका संतुलन बिगड़ने लगता है। वे दीवार से नीचे उतरने के लिए जैसेतैसे सीढ़ियों के पास पहुँचते हैं लेकिन सीढ़ियों के पास पहुँचते ही सीढ़ियाँ भी भर-भराकर नीचे गिर जाती हैं। वे भयभीत हो जाते हैं और सोने का महल उन्हें जानलेवा लगता है और घबराकर वे जोर से चीखते हैं और उनकी आँख खुल जाती है। आँख खुलने पर भी इतनी तेज घबराहट रहती है कि सारी रात वे बैचेन रहते हैं और नींद नहीं ले पाते। मैंने कहा कि जिस महल की एक ईंट भी हमने नहीं लगाई उसके ऊपर भला हम चढ़ें ही क्यों? जीवन में अगर महल पर चढ़ना है तो पहले परिश्रम करो, एक-एक ईंट का संयोजन कर मजबूती से महल बनाओ फिर अगर महल पर चढ़ोगे, तो न तो ईंटे हिलेंगी और न ही सीढ़ियाँ गिरेंगी। बाकी तो जीवन में सब लोग हवाई किले बनाते हैं किन्तु कल्पना के हवाई किलों की उम्र आखिर कितनी होती है? तृष्णा का मकड़जाल व्यक्ति खुद बुनता है और उसमें उलझ कर छटपटाता हुआ अनेक रोगों से घिर जाता है। बिना परिश्रम 32 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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