Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 2
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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३४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मागु., पद्य, वि. १८२१, आदिः अजर अमर निकलङ्क जे; अंतिः थाय० आप समवड
थापीये. ८४७४. पिस्तालीस आगम पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. मुंबैइंबिंदर, ले.- मु. खन्तिविजय,
(२५.५४११.५, १२४३८-४२). ८ प्रकारी पूजा-पिस्तालीसआगमगर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८१, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः
सङ्घने तिलक कराओ रे. ८४७६. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, बीज व एकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल.
पत्तननगर, पठ.- श्राविका वाल्ही, (२६४११.५, ११४३७-३९). पे.-१.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. १आ-१४अ
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः अम्ह सया पसत्था. पे..२. पे. नाम. द्वितिया स्तुति, पृ. १४अ-१४अ
बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, आदिः दिन सकल मनोहर; अंतिः पूर मनोरथ माय., पे.वि. गा.४. पे.-३. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १४अ-१४आ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, आदिः एकादशी अति रुअडी; अंति: सङ्घ तणा निशदिश.,
पे.वि. गा.४. ८४७७. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.- कुंअरजी लहीया, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ
अपूर्ण हैं., (२६.५४१२, ७४३३-३७). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, (संपूर्ण), आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति.
पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः एकतो ते० तीर्थङ्कर; अंतिः८४७८. प्रकरणचतुष्क सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. त्रिपाठ, पू.वि.
सर्वग्रं.१०८३., (२५.५४११.५, २-५४४०). पे.१.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, पृ. १आ-१०आ
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा.
नवतत्त्व प्रकरण- टीका, सं., गद्य, आदिः जयति श्रीमहावीरः; अंतिः शीद्धं प्राप्नुवन्ति., पे.वि. मूल-गा.४२. पे.२. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टीका, पृ. १०आ-१७अ
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-अक्षरार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदिः भुवणपईवमिति० अहं; अंतिः अर्थदीपिका समाप्ता.,
पे.वि. मूल-गा.५१. पे.-३.पे. नाम. दण्डक प्रकरण सह टीका, पृ. १७आ-२१आ
दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ.
दण्डक प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: नमिऊ० नत्वामनोवाक्का; अंतिः भवतीतिसूक्तं स्थापित., पे.वि. मूल-गा.३८. ८४७९.” पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८३०, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. राजपुर, ले.- मु. बालचन्द, पठ.- मु. वागजी (गुरु मु.
बालचन्द), प्र.वि. श्लो.१८४, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२४४११.५, १७-१८४४४-४७).
पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंतिः सर्वंसत्यं भवत्तीति. ८४८०.” परमाणु व पुदगलविचार सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक
लकीरें, (२५.५४११.५, १८४४९). पे.१. पे. नाम. परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण सह टीका, पृ. १आ-३आ
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