Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 2
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 442
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पठ.- ऋ. कर्मसी (गुरु ऋ. भुधर); ऋ. मुलजी (गुरु ऋ. भुधर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ढाल - ३१, प्र. पु. -मूल-ढाल३१, सर्वगा ५९७ (२६४११.५, १७९५२-५४) कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः धरम करण मन उलसै छै. ९२९८. समैसारनाटक का अनुवाद, संपूर्ण, वि. १७३३, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., ले. स्थल. इदलपुर, ले. ऋ. मनोहरदास (गुरु ऋ. दामाजी), प्र. वि. गा. ७२१, ( २६ ११.५, १६x४८-५२). समयसार नाटक- पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर अंतिः नाममइ परमारथ विरतन्त. " www.kobatirth.org: - ९२९९. शान्तिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. १५१, जैदेना., ले. स्थल. अजीमगंज, ले. पं. राजसौभाष्य (गुरु मु. मुनेन्द्रसोभाग्य, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ६ प्रस्ताव: प्र. पु. -मूल-ग्रं. ६५००, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, ( २६.५X१२, १६x४१-४४). शान्तिनाथ चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि सं., गद्य वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः अंतिः स करोतु शान्तिः ९३००." कल्पसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १९७-१ (१) १९६, जैदेना. प्र. वि. पीठिका बार्थयुक्त लिखी है. पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. (२५.५४११.५, ५-७४३८-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंतिः कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः ते काल चउथो आरो; अंति: (+) ९३०१. उपदेशमाला सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण वि. १७७५, श्रेष्ठ, पृ. १३३+१(४८) १३४, पे. २. जैवेना. ले. स्थल. ओडपाड, ले. - पं. भाणविजय (गुरु पं. न्यायविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६×११.५, १५x४४-४९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. १. पे. नाम. उपदेशमाला सह टबार्थ + कथा, पृ. १आ - १३३अ उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. , उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु., गद्य, वि. १७१३, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं अंतिः एहवी वाणी कीधी छे.. पे.वि. मूल-गा. ५४४. पे. २. जैन श्लोक सं. पद्य (पृ. १३३अ १३३अ), आदि: #, अंतिः # " " " , ९३०२. जीवविचार सह वृत्ति, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३ - १ ( १ ) = १२, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ५१. पू. वि. गा. ४ तक नही है., (२६४१२, १३४३३-३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-: अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-सुबोधिनीटीका, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८५०, आदि: अंतिः वृत्तिकाम् ९३०३. जीवविचार सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८२५ श्रेष्ठ, पृ. ९. जैदेना ले. स्थल नागोर, ले. पं. नायक विजय पठ श्राविका वखतुबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ५१ (२५४१२५ १२४३४-३९). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण अतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मागु., गद्य, आदिः स्वर्ग मृत्यु पाताल; अंतिः जे समुद्र तेह थकी. ९३०४. गुणावली चौपाई, संपूर्ण वि. १८२३ श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. ले. स्थल, मोरबी ले ॠ मयाचन्द, पठ- मु. वर्द्धमान, " . , For Private And Personal Use Only - प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - २९, ( २६.५x१२, १८५२-५४). गुणावलि चौपाई, गणि गजकुशल, मागु., पद्य, वि. १७१४, आदिः सकल मनोरथ पूरवे; अंतिः नितनित सुख आणन्दा. ९३०५.” सङ्ग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. २२७ तक है., ( २६१२, १०x२७-३२). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहन्ताई अंति ९३०६. नर्मदासुन्दरी कथा संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४९ जैवेना. ले. स्थल भाणवड, ले. ॠ माण्डण (गुरु ॠ वन्तजी),

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