Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 2
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 455
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४३५ (४) भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, गणि शुभशील, सं., २ अधिकार, वि. | ३३१० १५०९, गद्य, मूपू., (युगादौ व्य) ९१९२(+#5), ७४३२, ९२३४०. | (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अर्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम सकल) ४८७७ ३४७७ (५) भरहेसर सज्झाय-टीका का टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (युगने । (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अक्षरार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहन) आदे) ४८७७) ४३२८) (२) लघुप्रतिक्रमणविधि प्राभातिक, मागु., गद्य, मूपू.. (पहिली (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (पहिलं इरिय) ६१-९(+) सकल) ७३४१-२(+). २९७१(+5), ५२१७(5) (२) लघुप्रतिक्रमणविधि-सन्ध्याकालीन, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम । (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., इरिय) ६१-८(+) (षडावश्यकसू) ७२९०० (२) वन्दित्तुसूत्र, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू.. (वन्दित्तु) १६५७), (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (अरिहन्तनइ) १७९२-११), २६२६-६२(+), ७६०१-२(+), ८४६९(+), १७९४- २५०६(+), ७४७२(+), ४८+5), ४५५२+5), ५५३३(45), ६८१४(45), ३१(#). ५८३३(+#), २९९७-३(+5), ४९+5), ७१०७-१(45). २३६७- ५२९२, ७२४३-१, २९५९(१), ११५६(७), ६९२७-२(१), ७३५९(5) १, ५८२७-३९, ६०११-६, ६३९५, ५५२७, ६१४४-२, २०७६), | (३) पञ्चाचार अतिचार गाथा, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (नाणम्मि ६०१९-५७), ६९२७-१९७), ७००१(६) दं) ५०६२-२ (३) वन्दित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., ५ | (३) श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, गुज., पद्य, मूपू., अधिकार, ग्रं.६६४४, वि. १४९६, गद्य, मूपू., (जयति सततोद) (सातलाख पृथ) ४२-२ ४९(45), ५५२७ (४) श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, (३) वन्दित्तुसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (वन्दितु क०) मूपू., (७ पृथ्वीका) ४२-२ ८४६९(+), १६५७+). ५८३३(+#), ७६०१-२(+), ७१०७-१(45), (३) श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., ६९२७-१९७), ७००१(5) (नाणंमि दंस) ५६, ४७७९०, १२३४५६, ८८७६), ५७, ५९, (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , प्रा.,मागु., प+ग, मूपू., (नमो अरिहं०) १२३६, १५९१, ३३६२, ४८१५, ४९८२, ५०६२-१, ५७१८-१, २५०६(+), ३२१४-१(+), ४३२८(+), ७४७२(+), ७३४१-२+#), ६२५०, ६३६७, ८०६४, ९२०५, १००१, १६४४, ६६३४, ८०३७, ४८(45), ४५५२+5), ५५३३(45), २९७१(45), ६८१४+5), ३३१०, २७६५५), ५२०२-२(१), ७१६८-१९४६), ६०१९-४६), ८१६६-१(६), ३४७७, ५२९२, ७२४३-१, ५४४२-४, २९५९(45), ७३२७#5), ७४१४६), १२२४(६), १७२९७), १७३०६), २७५८६६), ६६०६६३०९(5), ११५६(६), ४४८५(६), ५२१७६६), ५८९५(६), ६९२७-२(5), ११), ७२९५७), ८२०६६) ७३५९९७), ६१५९६) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (नमस्कार) मूपू.. (णमो अरिहन) १७३४), ६७८०), १५४३-१(+), ५४९०५८९५(६) १,७४५५, ७५४४-१(5) (३) श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-बालावबोध, गणि ग्रं.२७२०, गद्य, मूपू., (वृन्दारुव) ३७६३(+), ४०९४(45), मेरुसुन्दर, मागु., वि. १५२५, गद्य, मूपू., (शिवाय श्री) ८७६३६+६), ४६७९७, ७४३१९३) (४) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारूटीका का बालावबोध, मागु., (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., गद्य, मूपू., (हवे पञ्चपर) ९३१४(5) (माहरउ नमस) १७३४(+) (४) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका का टबार्थ, मु. देवकुशल, (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मागु., वि. १७६१, गद्य, मूपू., (बालानां सु) ७४३१(5) ___ मागु., गद्य, मूपू., (गुरुनइ अभा) ६७८०(4) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (इह तावत्) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, प्रा., प+ग, मूपू., (नमो ६३०९(5) अरिहन) ५१), ६२), ३३६७-१(+), ३७५७५), ९०२५(+), (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (इह तावत्) २६५०५). ७१०१+5). १५९०, २७४६-१, ८४७६-१, ८८४९-१, ३२१४-१(+) ८९०७, ९१८२(5), ९१८९६), १५६१(६), ७१२५(5) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अर्थ, मागु., गद्य, मूपू., (अरि कहता) । (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध', मागु., गद्य, ५२७८) For Private And Personal Use Only

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