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कैलास
जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड १.१.२) KAILASA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI
Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol-1.1.2) |
शहमाणा बुदाणादाणामा बदरिकामवमा
वादमघाराalau २णानामाण्डि
समाधानति
'आचार्य श्री कैलाससागरसारि ज्ञानमदिर
कोबा तीर्थना
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यातरमनाचारमा Moप्रादा
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची
(१.१.२)
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर
देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची
: आशीर्वाद व प्रेरणा : आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
जैन
महावीर
CIT
अमृत तु विद्या
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प्रकाशक
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५३०० वि.सं. २०६१ ० ई. २००४
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची रत्न २
Acarya Shri Kailasasāgarasūri Smrti Granthasūci - Ratna 2
: सूचीकर्ता : मुनि निर्वाणसागर
: संपादक : पं. मनोज र जैन
डॉ. बालाजी गणोरकर
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.२
Kailāsa śrutasāgara Granthasūci : 1.1.2
: संपादन सहयोगी : संजय र. झा शैलेष प्र. महेता नवीन वि. जैन
प्रमोद र शाह आशिष आर. शाह
: कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग : केतन दी. शाह
-
: Compiler :
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: Editors : Pt. Manoj R. Jain Dr. Balaji Ganorkar
: Editorial Associates : Sanjay R. Jha Shailesh P. Maheta Navin V. Jain Pramod R. Shah Ashish R. Shah
: Computer Programming :
Ketan D. Shah
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आचार्य श्री कैलाससागरसरि स्मृति ग्रंथसची - रत्न २
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिरे
देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृतसूची
विभाग - १ : हस्तप्रत सूची - वर्ग - १ : जैन साहित्य
खंड - २
: आशीर्वाद व प्रेरणा : आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
Descriptive Catalogue of Manuscripts
Preserved in Dēvarddhigaņi Kşamāśramaņa Hastaprata Bhāņdāgāra,
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under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth
Section -I: Manuscripts' Catalogue * Class - I: Jain Literature
Volume - 2
: Blessings & Inspirations : Acharya Shri Padmasagarsurishwarji
to Published by Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, India
2004
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Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 2
Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci
Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.2
Preserved in Dēvarddhigani Ksamāśramana Hastaprata Bhāndāgāra,
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© Copy rights : reserved by Publisher o Golden Jubilee Deeksha Day of H.H.Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Maharaj
Kartik Sudi 3, Vir Samvat 2531, Vikram Samvat 2061, 29 November 2004 O Edition : First ० प्रकाशन सौजन्यः
श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर
Available at: Shruta Sarita Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth
O Published by :
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382009. INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, 30927001 Fax: 23276249 Web site: www.kobatirth.org, E_mail: gyanmandir @kobatirth.org
O Price: Rs. 750/=
Printed by :
Shreemad Griaphics & Stationers, Ahmedabad. Tel. No. 30913535 O ISBN 81-89177-00-1 (Set)
81-89177-01-X (Vol.2)
परम पूज्य आचार्य श्री पद्मसागरसूरि म.सा. की दीक्षा स्वर्ण जयंति के उपलक्ष्य में
(2844-2008)
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योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी
आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी
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गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी
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आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी
आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी
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प्रकाशन सौजन्य
জী জালা থ্রলাইজ্জৎ | | আঞ্জা রঞ্জি
मेवानगर
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अर्हम् नमः
* मंगल कामना * जिनकी वाणी में सरस्वती का निवास है, ऐसे श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंथित किया है उस जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखने वाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित टीकाकार-भाष्यकार-चूर्णिकार आदि आचार्य भगवंतों का भी मैं पुण्य स्मरण करता
अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण कर के अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग में भी कमजोरी आ गई. इन सब कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे सर्वप्रथम विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर
जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों-प्रान्तों में भ्रमण-विहार करके ग्रन्थों को संग्रहित करने का कार्य प्रारंभ हुआ. धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया.
ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के कार्य में व उसके मार्गदर्शन में हमारे दो विद्वान मुनि श्री निर्वाणसागरजी और विशेषरूप से मुनि श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता. हमारे अन्य मुनिराजों ने भी यथायोग्य सहयोग दिया है. मैं उन सभी के कार्यों की भी हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ.
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित-समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए आधुनिक साधनों से संपन्न यह ज्ञानमंदिर है.
पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ उठाया जा रहा है, जो प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने-आप में विशिष्ट प्रकार की कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची - जैन हस्तलिखित साहित्य के खंड २ व ३ प्रकाशित होने जा रहे हैं, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक सोपान है. संस्था के ट्रस्टीगण, संस्था में कार्यरत विद्वान् पंडितवर्ग सहित सभी कार्यकर्तागण इस कार्य में अपने योगदान के लिये अभिनंदन के पात्र हैं. ___ मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वान इस ग्रंथसूची का पूरा लाभ उठाएंगे. ग्रन्थ के संरक्षण, सूचीकरण व प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाले दाताओं को भी धन्यवाद देता हूँ. संस्था अपने विकास पथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है.
पभसागरसरि. हि1-11
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प्रकाशकीय
जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के द्वितीय व तृतीय खंडों को परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के दीक्षा स्वर्णजयंती महोत्सव के प्रसंग पर चतुर्विध संघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है.
विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं की रक्षा करते हुए ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, वह भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है.
हमारे लिए यह अत्यंत सौभाग्य एवं गौरव का विषय है कि पूज्य गुरुदेवश्री की प्रेरणा से भारतभर के अनेक श्रीसंघों, संस्थाओं एवं महानुभावों ने इस संस्था पर अटूट विश्वास रखकर अपने पास सैकड़ों वर्षों से संगृहित अपनी प्राण-प्रिय विरासत को सुरक्षित करने व उसके श्रेष्ठतम उपयोग हेतु हमें सौंपा है. हमारा यह पूरा व भरसक प्रयास रहा है कि अनेक कठिन अवरोधों के बावजूद समाज द्वारा हम पर किए गए विश्वास को सार्थक व मूर्तिमंत करें.
ग्रन्थराशि के एक-एक ग्रंथ, एक-एक पन्ने तथा इनके टुकड़े भी हमारी अमूल्य धरोहर हैं. उसका जतन करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. इस के लिए पर्याप्त प्रयास किए जा रहे हैं एवं आगे भी जारी रहेंगे.
इस प्रकाशन कार्य में कम्प्यूटर आधारित तथा संस्था में ही विकसित किये गये विशेष प्रोग्राम के अंदर प्रविष्ट हस्तप्रतों की विस्तृत सूचनाओं के आधार पर चुनी हुई सूचनाओं को ही यहाँ पर प्रकाशित किया जा रहा है. समग्र सूची और भी अधिक विस्तार से ज्ञानतीर्थ के कम्प्यूटरों पर उपलब्ध है, जिनका आप कभी भी उपयोग कर सकते हैं.
हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रखरखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के सभी शिष्यों-प्रशिष्यों का विशेष योगदान रहा है. इन साधु-भगवंतों के परिश्रम एवं सूझबूझ के बिना यह कार्य अतिदुष्कर था, ऐसा कहने में संकोच नहीं होता. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों की प्रथम कच्ची सूची एवं बाद में पक्की सूची हेतु एक लाख से ज्यादा फॉर्म भरने का अहर्निश (अक्सर दिन में १८ से ज्यादा घंटे) वर्षों तक भगीरथ परिश्रम किया है. इतना ही नहीं प्रतों को प्रथम व्यवस्थित कर उन पर आवरण लगवाना, उनके पन्ने गिनना आदि कार्यों से लगाकर हर तरह के कार्य किए हैं. मुनिश्री का यह योगदान हस्तप्रत संरक्षण एवं सूचीकरण के क्षेत्र में एक मिसालरूप है. सूचीकरण हेतु कम्प्यूटर आधारित सूचना पद्धति विकसित करने में व अन्य जरूरी मार्गदर्शन हेतु मुनिराज श्री अजयसागरजी ने अपनी साधु जीवन की मर्यादा में रहते हुए अनमोल समय दिया है. पू. पंन्यासप्रवर श्री देवेन्द्रसागरजी का अपना योगदान है. विशेष तौर पर पू. मुनिराज श्री नयपद्मसागरजी का पूज्य आचार्यश्री के साथ रह कर हस्तप्रतों की संप्राप्ति आदि पूर्व प्रक्रियाओं में सहयोगी बनने रूप एवं ज्ञानमंदिर के उद्घाटन के समय अशक्य लगने वाले कार्यों को अदम्य खंत से शक्य कर दिखाने रूप अनेक तरह से उल्लेखनीय योगदान रहा है.. पू. पंन्यासप्रवर श्री अमृतसागरजी, पंन्यासप्रवर श्री अरूणोदयसागरजी, पंन्यासप्रवर श्री विनयसागरजी, गणिवर्य श्री अरविंदसागरजी, मुनिराज श्री महेन्द्रसागरजी तथा मुनिराज श्री प्रशान्तसागरजी ने भी अपना अवसरोचित योगदान दिया है. साथ ही पूज्य श्री के शिष्य-प्रशिष्य स्व. उपाध्याय श्री धरणेन्द्रसागरजी, आचार्यप्रवर श्री वर्धमानसागरसूरिजी गणिवर्य श्री विवेकसागरजी मुनिराज श्री विमलसागरजी, पद्मरत्नसागरजी, अमरपद्मसागरजी, रविपद्मसागरजी आदि सभी पूज्यवरों का अपनी-अपनी तरह से सहयोग रहा है. गणिवर्य श्री ज्ञानसागरजी के शिष्य मुनिप्रवर श्री हेमचन्द्रसागरजी का भी अपना सहयोग रहा है. श्रीसंघ एवं श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र द्वारा पूज्यवरों का यह उपकार कभी नहीं भुलाया जा सकेगा. एतदर्थ किसी भी प्रकार से कृतज्ञता प्रदर्शित करने के अतिरिक्त गुरुदक्षिणा देना हमारे लिए संभव नहीं है. आप सभी पूज्यों की अमीदृष्टि हमेशा इसी प्रकार इस तीर्थ हेतु बनी रहे यही करबद्ध प्रार्थना
है.
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प्रखर श्रुतोपासक, संघ हितचिंतक व विशिष्ट कोटि के त्यागी सुश्रावक स्व. श्री जौहरीमलजी पारख (सेवा मंदिर, रावटी, जोधपुर) के द्वारा तैयार किये गये सूचीकरण के पैमाने को ही जरुरी फेरफार के साथ यहाँ पर अपनाया गया है. हम उनके लिए श्रद्धा सुमन सहित आभार व्यक्त करते हैं. इस सूचीकरण अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सुझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु यहाँ के पंडितजनों तथा प्रोग्रामरों ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. जिसके लिए संस्था सभी की अनुमोदना करते हुए हार्दिक धन्यवाद देती है.
कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूचीगत जैन हस्तलिखित साहित्य के इस द्वितीय व तृतीय खंड को प्रस्तुत रूप देने में संस्था के सभी विभागों व खासकर ज्ञानमंदिर कार्यकारिणी समिति के सदस्य श्री मोहितभाई सोमचंद शाह, प्रशासनिक अधिकारी श्री जयेन्द्रभाई पी. संघाणी, जनसंपर्क अधिकारी श्री रसिकभाई शाह आदि सभी कार्यकर्ताओं का प्रशंसनीय सहयोग प्राप्त हुआ है, जिसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं. सभी के मिले जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. ___ संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियों हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर धन्यवाद दिया जाता है. __ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य के इस द्वितीय खंड के प्रकाशन में वित्तीय सहयोग प्रदान करने वाले श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ व उनके पदाधिकारियों के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है.
किसी भी प्रकार के सरकारी या इसी तरह के अन्य अनुदान को न लेकर मात्र समाज की ही ओर से मिलनेवाले आर्थिक आदि सहयोग के द्वारा ही कार्य करने की सुविचारित नीति के तहत कार्य करने के कारण यहाँ सम्पन्न हो रहे कार्यों की अपनी मर्यादाएँ हैं तो अपना एक गौरव एवं तोष भी! श्रीसंघ के इस कार्य में देव-गुरु-धर्म की कृपा से हम कितने सफल हुए हैं, इसके लिए विशिष्ट गुरु भगवंतों एवं विश्वभर के विद्वानों ने यहाँ आकर यहाँ की व्यवस्था व उपलब्ध सामग्रियों को देखकर जो उद्गार व्यक्त किये हैं, उनका अवलोकन करना होगा. इससे भी ज्यादा तो आप यहाँ पधारिये और स्वयं यहाँ के कार्यों को देखिये. संस्था की विकास यात्रा में आप किस प्रकार से सहयोगी बन सकते हैं, इन संभावनाओं को तलाशिए. वह आपके उत्कर्ष के लिए अनुपम अवसर होगा.
यहाँ संस्था में उपलब्ध संसाधनों, सूझ, विशेषज्ञता एवं सज्जता के आधार पर किए जा सकें ऐसे कार्यों की सूची बृहदाकार है. अब इन संभावनाओं को साकार करना यह श्रीसंघ व समाज पर निर्भर है कि उनकी ओर से यहाँ तन-मन-धन से कितना सहकार मिल पाता है. आज तक सभी का यह सहकार संस्था को निरंतर मिलता रहा है व और भी बेहतरीन तरीके से आगे भी मिलना जारी रहेगा, ऐसा हमारा विश्वास है. इसी श्रद्धा के आधार पर यह ज्ञान-यज्ञ हम जारी रखे हुए हैं.
हमें विश्वास है कि श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र द्वारा प्रकाशित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस द्वितीय रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा. ___ अंत में श्री जिनशासन देव से यही प्रार्थना करते हैं कि श्रीसंघ व समाज द्वारा हमारी ओर रखी गई आशा और अपेक्षाओं को सही तौर पर पूर्ण करने में हम सदा सक्षम व प्रवृत्त रहें.
ट्रस्टीगण सुधीरभाई यू. मेहता, कल्पेश जे. शाह, हेमंतभाई सी. ब्रोकर, श्रीपालभाई आर. शाह, गिरीशभाई वी. शाह, सोहनलाल एल. चौधरी, भीखुभाई चोकसी, किरीटभाई कोबावाला, सेवंतीलाल एम. मोरखिया, अरविंदभाई टी. शाह, प्रवीणभाई एन. शाह, चांदमल पी. गोलिया, घीसूलालजी डी. राठोड, खुबीलालजी एल. राठोड,
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट
कोबातीर्थ, गांधीनगर
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परम पूज्य राष्ट्रसंत प्रवचन प्रभावक युग प्रवर्तक आचार्य भगवंत श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज की दीक्षा पर्याय के स्वर्णिम ५० वर्ष पूज्यपाद आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. का जन्म भाद्रपद सुदी ११ वि.सं. १९९१ के दिन विद्वानों चिन्तकों, समाजसुधारकों व श्रमण निग्रंथों की विहार भूमि पश्चिम बंगाल स्थित अजीमगंज शहर में हुआ. आपश्री ने बचपन से ही शीलवती माता के कुशल मार्गदर्शन में सुसंस्कारों को ग्रहण करते हुए धार्मिकता की ओर उन्मुख होकर अपने मार्ग का अन्वेषण प्रारम्भ कर दिया था. प्रारम्भिक शिक्षा अजीमगंज में तथा शिवपुरी (म.प्र.) में धार्मिक तथा व्यावहारिक शिक्षा ग्रहण की. स्वामी विवेकानंद से काफी प्रभावित और प्रेरित हुए पूज्यश्री ने किशोरावस्था में ही संपूर्ण भारत का भ्रमण किया. विद्वानों की सत्संगति शास्त्रों का अध्ययन आपश्री की विशिष्ट अभिरूचि रही है. वि. सं. २०११ को साणंद नगर में कार्तिक वदी ३ को प.पू. गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. के वरद हस्त से दीक्षा ग्रहण कर उन्हीं के शिष्य प्रवर प.पू. शिल्पशास्त्रमर्मज्ञ आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य बने.
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आपश्री के पुण्य प्रभाव, प्रतिभा एवं शासन प्रभावना के उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए अहमदाबाद में मार्गशीर्ष सुदि ५, वि.सं. २०३० में गणिपद, जामनगर में फाल्गुन सुदि ७, वि.सं. २०३२ को पंन्यास पद तथा महेसाणा के श्री सीमंधरस्वामी जिनप्रासाद के विशाल प्राङ्गण में तत्कालीन गच्छाधिपति दादा गुरु आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. तथा वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्री सुबोधसागरसूरीश्वरजी म. सा. व शिल्पशास्त्रमर्मज्ञ आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में मार्गशीर्ष वदि ३, वि.सं. २०३३ को आचार्य पद से विभूषित किया गया. विविध संघों एवं लब्धप्रतिष्ठ महानुभावों ने आपश्री को राष्ट्रसंत, प्रवचन प्रभाकर, सम्मेतशिखरतीर्थोद्धारक, उपदेशपटु, प्रखरवक्ता, श्रुतसमुद्धारक आदि पदवियों से अलंकृत कर सन्मानित किया है.
श्रुतसंवर्धक प्रवृत्तियों में निरंतर कार्यरत प.पू. आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. ने समग्र भारतवर्ष सहित पड़ोसी देश नेपाल की जैन एवं जैनेतर जनता के मन में अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है जिसे वह कभी भुला नहीं सकती. आपश्री ने अपने कदम जहाँ भी रखे वहाँ की जनता ने आपको अपने सद्गुरु का दर्जा दिया आपश्री की सत्प्रेरणा से अनेकानेक जैन शासन के प्राण प्रश्नों का सुखद समाधान हुआ है. संघों में एकता कायम करना, जैन धर्म के विविध विशेषज्ञों को संगठित करना (जैसेजैन संस्थान, जैन व्यापार उद्योग सेवा संस्थान, जैन डॉक्टर्स फेडरेशन, जैन सी.ए. फेडरेशन, जैन एडवोकेट फेडरेशन, जैन श्वे. मू. पू. युवक महासंघ आदि), जिन प्रासादों का निर्माण एवं समुद्धार, जन समुदाय को धार्मिक नीतियुक्त जीवन जीने के लिए अभिप्रेरित करना आदि आपश्री के विशिष्ट सत्कार्य हैं. सभी को साथ में लेकर चलने की भावना के कारण पूज्यश्री समग्र जैन समाज सहित अन्य धर्मावलम्बियों के बीच भी लोकप्रिय बने हैं तथा सभी का सन्मान प्राप्त करने का गौरव हासिल किया है.
यूं तो आपश्री की निश्रा में जिनशासन की प्रभावना के अनेकानेक उत्कृष्ट कार्य संपादित हुए हैं, जिसका वर्णन करने पर एक विशालकाय ग्रन्थ का सर्जन हो सकता है आपकी निश्रा में करीब ६५ से अधिक जिनालयों की अंजनशलाका प्रतिष्ठा हुई है तथा अनेक समाजोपयोगी कार्य निष्पन्न हुए हैं फिर भी श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ तथा यहाँ पर संस्थापित ज्ञानतीर्थ स्वरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर परम पूज्य आचार्यश्री की कलिकाल में आध्यात्मिक सांस्कृतिक विरासत की अनोखी धरोहर के रूप में अद्भुत देन है, जो पूज्यश्री की अनुपम जिनशासन की सेवा, श्रुतभक्ति एवं श्रुतसेवा की मिसाल के रूप में युगों युगों तक आने वाली पीढ़ियाँ संजो कर रखेंगी.
परम पूज्य आचार्यदेव श्री के संयम जीवन के ५० वर्षों के कुछ उल्लेखनीय प्रसंग निम्नवत हैं
* गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री बाबुभाई जसभाई पटेल को कह कर आपने शेत्रुंजी नदी के बाँध में होती जीव-हिंसा पर रोक लगवाई थी.
* बम्बई महानगर पालिका के स्कूलों में विद्यार्थियों को फुड-टॉनिक के रूप में अण्डे दिये जाने के प्रस्ताव को आचार्यश्री ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शंकरराव चव्हाण को कहकर खारिज करवाने में अहम भूमिका निभाई थी.
* १९९३ में राजस्थान सरकार सभी ट्रस्टों में सरकारी प्रतिनिधि नियुक्त करने के लिए अध्यादेश लाने वाली है, यह बात जब गुरुदेव को ज्ञात हुई तो उन्होंने तत्कालीन गवर्नर श्री चेन्ना रेड्डी के समक्ष प्रभावपूर्ण ढंग से अपना पक्ष रख कर अध्यादेश वापस करवाया, जिससे धर्म क्षेत्र सरकारी हस्तक्षेप से बच सका.
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* आचार्यश्री की बहुजन हिताय प्रवृत्तियों से प्रभावित होकर आपके संयम-पर्याय की रजतजयन्ती के अवसर पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति मान्यवर श्री नीलम संजीव रेड्डी ने मुंबई राजभवन के दरबार हॉल में आपका राजकीय अभिनन्दन किया था. इस अवसर पर उन्होंने आपश्री को राष्ट्रसन्त की पदवी से अलंकृत किया.
* आपकी सत्प्रेरणा से प्रभु श्री महावीर की निर्वाणभूमि पावापुरी गाँव के सभी वर्ग के लोगों द्वारा मांस-मदिरा का पूर्णतः त्याग व जलमन्दिर में मछली पकड़ने की हमेशा-हमेशा के लिए पाबंदी एवं सरोवर की पवित्रता बनाए रखने का शुभ संकल्प लिया गया.
* मुंबई गोडीजी, वालकेश्वर, दिल्ली, अजीमगंज, जियागंज, आदि अनेक संघों में देवद्रव्य की पूर्णतः शुद्धि एवं शास्त्रीय परम्परा का पुनःस्थापन किया गया.
*आचार्यश्री की दक्षिण भारत की यात्रा ने तो पूज्यश्री को राष्ट्रसंत का बिरूद और भी सार्थक कर दिया. दक्षिण की इस ऐतिहासिक यात्रा के दौरान आपने लोक-कल्याण, धर्म-जागरण और स्थानीय जनता की आध्यात्मिक चेतना के विकास व पोषण के लिये अभूतपूर्व कार्य किए. आपके मधुर व्यवहार से अनेक जैन संघों में अनुशासनप्रियता पुष्ट हुई. आपके सौजन्यशील व शालीन उपदेशों से वर्षों से चले आ रहे अनेक विवाद सरलता से हल हो गए. संघ एक जुट हुए. बरसों बाद दक्षिण भारत के जैन संघों में धर्मजिज्ञासु जनता को सफल-कुशल नेतृत्व का अनुभव हुआ. दक्षिण भारत में ज्ञान की विलुप्त धारा एक बार फिर तेज गति से बहने लगी.
* उत्तर भारत विहार के दौरान आपश्री ने राजस्थान, दिल्ली, उत्तरांचल, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल के अनेक गांवों एवं नगरों में धर्म-प्रभावना की. आचार्यश्री की निश्रा में सन् १९९५ में हरिद्वार तीर्थ में सभी सम्प्रदायों के संत-संन्यासियों के सहयोग से श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ के प्रथम जैन मन्दिर की भव्य अंजनशलाका प्रतिष्ठा हुई. हरिद्वार के सन्त समुदाय ने आपका शानदार अभिनन्दन किया.
* कंपिलपुर तीर्थभूमि के जीर्णोद्धार सम्बंधी मार्गदर्शन किया. * वाराणसी में श्री पार्श्वप्रभुजन्म कल्याणकभूमि में विहार कर बनारस हिंदू यूनिवर्सीटी में प्रवचन दिया. * बीस तीर्थंकरों की मोक्षकल्याणक भूमि समेतशिखर तीर्थ के विकास और रक्षा के लिए सफल मार्गदर्शन किया. * सम्मेतशिखर, शौरीपुर आदि तीर्थभूमियों के जिनालयों का जीर्णोद्धार एवं प्रतिष्ठाएँ करवाईं.
* कलकत्ता महानगरी में अनेकविध शासन प्रभावना पूर्वक ऐतिहासिक चातुर्मास, पार्श्व फाउन्डेशन के तहत साधर्मिक भक्ति हेतु लाखों का फंड एकत्र करवाया,
* आपश्री की निश्रा में सन १९९६ में पुनः श्री सम्मेतशिखर महातीर्थ में श्री भोमियाजी धर्मशाला में जिन बिंबों की भव्य अंजनशलाका प्रतिष्ठा, श्वेताम्बर कोठी में प्रतिष्ठा महोत्सव, कुंडलपुर स्थित जिनमंदिरजी का जीर्णोद्धार एवं प्रतिष्ठा की. राजगृही में पांचों पहाड़ों की तीर्थ यात्रा के दौरान बौद्धधर्म के संतों व नगरजनों की ओर से पूज्य गुरुवर का अपूर्व नागरिक अभिनन्दन हुआ. गुरुदेवश्री के पाटलिपुत्र (पटना) पहुँचने पर बिहार पत्रकार परिषद ने अभिनन्दन समारोह किया.
* सैकड़ों वर्षों के बाद नेपाल में पूज्यश्री ने अपने शिष्य समुदाय सहित प्रथम बार विचरण किया. विहार करके किसी जैनाचार्य का यहाँ प्रथम आगमन था. वीरगंज (नेपाल) में श्री महावीर जन्म कल्याणक पर्व जैन धर्म के चारों संप्रदायों ने अन्य धर्मियों के साथ मनाया. राजधानी काठमाण्डु में श्री महावीरस्वामी जिनमंदिर की भव्य प्रतिष्ठा आपश्री की निश्रा में संपन्न हुई. नेपाल नरेश श्री महाराजा वीरेंद्रवीर विक्रमशाह देव एवं महाराणी ऐश्वर्यादेवी का पूज्यश्री के दर्शन के लिये आना वहाँ के इतिहास के लिए अनुपम घटना कही जा सकती है. जनकपुरी-नेपाल में मल्लिनाथ एवं नमिनाथ भगवान के चार-चार कल्याणकों की भूमि पर मंदिर न होने के कारण कल्याणक भूमि में जिनमंदिर युक्त तीर्थ का रूप देने हेतु विशाल आयोजन की प्रेरणा की. अपनी जन्मभूमि अजीमगंज (प. बंगाल) में आपश्री की निश्रा में चार जिनमंदिरों की पुनः प्रतिष्ठा संपन्न हुई.
* सन् २००३ में आपश्री की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में बोरीज तीर्थ का पुनरुद्धार हुआ और प्राचीन देरासर के स्थान पर १०८ फीट ऊँचे उत्तुंग शिखर वाले मंदिर में १६ टन वजन वाली पंचधातु में निर्मित भगवान श्री महावीर प्रभु की प्रतिमा की अंजनशलाका व प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई. यह तीर्थ विश्व मैत्री धाम के रूप में विकसित हुआ है.
ऐसे परम उपकारी, मृदुभाषी, सदैव परमानंद में तल्लीन, शांति प्रसारक, प्रखर प्रवचनकार, जैन समाज के अग्रणी संतप्रवर आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब की दीक्षा की स्वर्णजयंती मनाते हुए मुंबई नगर पावन हो रहा है. यह हम सभी का परम सौभाग्य है.
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प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य के प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की दीक्षा की स्वर्णजयंती के अविस्मरणीय प्रसंग पर द्वितीय व तृतीय खंड का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रथम खंड के प्रकाशन के पूर्व से ही अगले खंडों के प्रकाशन हेतु हमारी तैयारियाँ जारी थीं. प्रथम खंड के अनुभव ने इन खंडों के कार्य को हमारे लिए सुगम बना दिया था.
प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद अनेक विद्वानों का आग्रह होने की वजह से मूल रूपरेखा में उपयोगिता की दृष्टि से थोड़ा परिवर्तन लाते हुए संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की कृति अनुसार प्रतानुक्रम परिशिष्ट-१ में तथा देशी भाषाओं वाली मूल कृतियों को कृति अनुसार प्रतानुक्रम परिशिष्ट-२ प्रत्येक खंड के अंत में शामिल कर दिया गया है. द्वितीय खंड में प्रथम व द्वितीय दोनों खंडो के सम्मिलित परिशिष्ट हैं. आगे के प्रत्येक खंड में भी स्वयं के ये परिशिष्ट देने तय किया गया है. इन परिशिष्टों हेतु यद्यपि कृति-एकीकरण का शक्य प्रयत्न किया गया है, तथापि यह शक्य है कि एक ही कृति भिन्न-भिन्न नामों से एकाधिक जगहों पर भिन्न-भिन्न प्रतों के साथ मिल सकती है. इस कार्य में सांगोपांगता तो भविष्य में सुसंपादित होकर प्रकाशित होने वालेकृति पर से प्रत माहिती वाले खंडों के प्रकाशन के समय ही आ सकेगी.
वर्तमान कार्य के परिमाण स्वरूप प्राकृत, संस्कृत व मारुगुर्जर आदि देशी भाषाओं में मूल व व्याख्या साहित्य की छोटी-बड़ी कृतियाँ प्रचुर संख्या में अप्रकाशित ज्ञात हो रही है. इनमें से अनेक कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं. अनेक महत्व के विद्वानों की कृतियाँ भी अद्यावधि अज्ञात व अप्रकाशित हैं, ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है. यद्यपि यह निर्धारण संपूर्ण नहीं है फिर भी लाभार्थियों के लिए यह निःसंदेह उपयोगी सिद्ध होगा. उल्लेखनीय है कि विजयधर्मलक्ष्मी ज्ञानभंडार, आगरा से प्राप्त ज्यादातर प्रतों का समावेश कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य के खंड २ तथा ३ में हो जाता है.
इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सब का विस्तृत ब्यौरा, टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ पृष्ठ ८ एवं प्रयुक्त संकेतों का स्पष्टीकरण पृष्ठ ११ पर मुद्रित है. ___ संस्था के जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण का एक बहुत बड़ा महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सब से बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रन्थालयों में अपनायी गई मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरी सामग्री इन भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. ग्रन्थालय सूचना पद्धति में कृति की विभावना स्वतः में अनूठी एवं बहूपयोगी सिद्ध हुई है. कृति को हस्तलिखित प्रतों तथा प्रकाशनों के साथ संयोजित किया गया है, जिससे किसी भी कृति से सम्बन्धित सभी हस्तप्रतों व सभी मुद्रित प्रकाशनों एवं सामयिकों की सूचनाएँ एक साथ मिल जाती हैं. इसी तरह व्यक्ति - विद्वान का भी कृति सर्जक, हस्तप्रत प्रतिलेखक आदि व प्रकाशन, सामयिक के संपादक, संकलनकार, संशोधक, संयोजक, प्रेरक एवं प्राचीन मूर्ति आदि के प्रतिष्ठापक, भरवानेवाले इत्यादि आयामों में एकीकृत परिचय रखा गया है. इस प्रकार प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्ध कर एकीकृत किया गया है. इस परियोजना के तहत अनेक ज्ञानभंडारों की हस्तप्रत व पुस्तकों की एकीकृत सूची को तैयार करने की भी योजना है. इसी के तहत जेसलमेर, पाटण, खंभात, भांडारकर-पूना आदि भंडारों की ताडपत्रीय व अन्य महत्त्वपूर्ण कागज की हस्तप्रतों की एकीकृत सूची भी बडे श्रम से कम्प्यूटर पर बनाई गई है व उसके साथ पूज्य श्रुतोद्धारक मुनिप्रवर श्री जंबूविजयजी के प्रयासों से करवाई गई झेरोक्स, डीवीडी व माइक्रोफिल्म की सूचनाएँ भी प्रविष्ट कर दी गई हैं.
सूचीकरण के कार्य हेतु ग्रन्थालय विज्ञान की किसी प्रस्थापित प्रणाली के अनुसार नहीं वरन् अनुभवों के आधार पर भारतीय साहित्य की लाक्षणिकताओं के अनुरूप बहुजनोपयोगी तर्कसंगत सूचीकरण प्रणाली यहाँ विकसित की गई है एवं तदनुरूप विशेष कम्प्यूटर प्रोग्राम तैयार किया गया है, जिसके अन्तर्गत उपरोक्त सभी प्रकार की सूक्ष्मतम जानकारी मात्र यहीं पर पहली बार कम्प्यूटर में प्रविष्ट की जा रही है.
श्रुतभक्ति का यह श्रमसाध्य कार्य करने के बाद सबसे ज्यादा प्रसन्नता व सार्थकता की अनुभूति तब होती है, जब गुणवान
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सक्षम गुरू भगवंतों आदि को उनके बरसों से अपेक्षित ग्रंथ यहाँ से सहज ही मिल जाते हैं और उनके अंतस्थल के हर्षोद्गार भरे आशीर्वचन मिलते हैं. वह घड़ी संस्था व संस्था के अधिष्ठाताओं एवं कार्यकर्ताओं के लिए सबसे धन्य होती है.
समग्र कार्य दौरान पूज्य आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी व श्रुताराधक पूज्य मुनिराज श्री अजयसागरजी की ओर से प्राप्त प्रेरणा व प्रोत्साहन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है. हम पूज्यश्री एवं उनके शिष्य मंडल के चरणों में श्रद्धावनत हैं. ___ मुद्रित ग्रंथों के आधार पर कृति संपादन हेतु श्री रामप्रकाश जगदीश झा, तथा प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने हेतु श्री संजय सोमाभाई गुर्जर तथा ग्रंथालय विभाग के अन्य सभी सहकार्यकरों को त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु हार्दिक धन्यवाद. जीर्ण, चिपकी व फफूंदग्रस्त आदि हस्तप्रतों के पुनरुद्धार एवं रख-रखाव के कार्यों में सहयोगी बननेवाले सम्राट संप्रति संग्रहालय के श्री आसीत वस्तुपालभाई शाह को भी हम धन्यवाद ज्ञापन करते हैं.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य खंड १.१.१ के प्रकाशन के बाद आए अभिप्रायों तथा त्रुटियों की ओर ध्यान आकर्षित करने हेतु सभी संबंधित महानुभावों, विद्वानों का तथा विशेष रूप से प.पू. आचार्य श्री मुनिचंद्रसूरीश्वरजी म. तथा प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर के निदेशक श्री विनयसागरजी के प्रति हम कृतज्ञता सहित आभार प्रदर्शित करते हैं.
सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानी पूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के रहते क्वचित भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरूद्ध किसी भी तरह की प्ररूपणा के लिए हम त्रिविध मिच्छा मि दुक्कडम् देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रही भूलों हेतु हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, जिससे अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें.
-संपादक मंडल. कैलास श्रुतसागर सूची प्रकाशन की रूपरेखा इस परियोजना के तहत सूचीपत्र में मुख्य तीन विभाग किए गए हैं.१ हस्तप्रत माहिती. २ कृति माहिती. ३ विद्वान- व्यक्ति माहिती. यद्यपि कम्प्यूटर में सभी तरह की सूचनाएँ विस्तृतरूप से भरी गई हैं एवं आगे भी उनमें परिष्कार, विस्तार जारी रखने का आयोजन है, तथापि प्रत्येक विभाग में मात्र तत्-तत् विभाग की सूचनाएँ शक्य विस्तार से देकर अन्य विभागों की संबद्ध सूचनाओं को आवश्यक हद तक संक्षेप में ही दिया जाएगा. इन संक्षिप्त सूचनाओं की विस्तृत माहिती के लिए संबद्ध विभाग के सूचीपत्र की अपेक्षा रहेगी. उपयोगिता एवं अनुकूलता के अनुसार उपरोक्त तीनों विभागों के सूचीपत्रों के क्रमशः प्रकाशन का आयोजन है.
यहाँ पर सूची प्रकाशन रूपरेखा की मूल अवधारणा में हुए परिवर्तनों, परिवर्धनों के साथ संक्षिप्त ढांचा ही दिया गया है, विशेष विस्तार हेतु कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य खंड १.१.१ में पृष्ठ २२ से २४ देखें. १. हस्तप्रत विभाग
इस विभाग में महत्तम उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए कृति की प्रधानता के अनुसार निम्न वर्ग किए गए हैं. ये सूचियाँ यथोपलब्ध प्रत क्रमांक के अनुक्रम से होगी. १.१ जैन कृति वाली प्रतें, १.२ धर्मेतर साहित्यिक आदि कृति वाली प्रते, १.३ वैदिक कृति वाली प्रतें, १.४ शेष धर्मों की
कृति वाली प्रतें. इनमें प्रथम, हस्तप्रत केंद्रित इस सूची में सूचनाएँ दो स्तरों पर दी गई हैं. (१) प्रत माहिती स्तर : इस स्तर पर प्रत सम्बन्धी उपलब्ध सूचनाएँ उपयोगिता एवं सूची पुस्तक के कद की मर्यादा को ध्यान
में रखते हुए विविध अनुच्छेदों में शक्य महत्तम विस्तार से दी गई हैं. (२) कृति माहिती स्तर : इस द्वितीय स्तर पर प्रत में रही कृतियों का निर्णय करने हेतु आवश्यक लघुतम सूचनाएँ ही दी गई
हैं. पुस्तक के कद को मर्यादित रखने के लिए भी यह आवश्यक था. कृति की शक्यतम विस्तृत माहिती तो द्वितीय कृति विभाग वाली सूची में दिए जाने का आयोजन है. प्रत्येक खंड में तत्-तत् खंड की कृति परिवारों के अकारादि क्रम से प्रत क्रमांक का परिशिष्ट भी होगा.
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१.५ हस्तप्रत विभाग के परिशिष्ट : इस वर्ग में हस्तप्रत विभागीय विविध परिशिष्टों का समावेश किया जाएगा. १.५.१ प्रत,
पेटांक व कृति लेखनगत विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिकाओं का संग्रह., १.५.२ प्रतिलेखन वर्ष से प्रत क्रमांक, १.५.३
प्रतिलेखन स्थल से प्रत क्रमांक, १.५.४ विद्वान/व्यक्ति (प्रतिलेखक आदि) नाम से प्रत क्रमांक. २. कृति विभाग
इस विभाग के तहत कृति को केन्द्र में रखकर उससे संबद्ध अनेकविध सूचनाएँ निम्नोक्त प्रकार से आएगी. २.१ कृति पर से प्रत माहिती : यद्यपि खंड १.१.२ के प्रकाशन से प्रत्येक खंड के अंत में उस-उस खंड की कृतियों का यह
परिशिष्ट संक्षिप्त रूप से दिया जा रहा है, तथापि सभी खंडों की कृतियों को अपनी महत्तम विस्तृत सूचनाओं के साथ संकलित रूप से देखने की सुविधा के लिए प्रतानुसार कृति माहिती के सभी खंड छप जाने के बाद निम्नोक्त प्रकार से अलग से भी प्रकाशित करने का आयोजन है. २.१.१.१ जैन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश भाषाओं की - स्थिर कृतियाँ, २.१.१.२ जैन मारूगुर्जर, गुजराती, राजस्थानी इत्यादि देशी भाषाओं की - स्थिर कृतियाँ, २.१.१.३ जैन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश - फुटकर कृतियाँ, २.१.१.४ जैन मारूगुर्जर आदि देशी भाषा - फुटकर कृतियाँ,२.१.२.१ से ४ धर्मेतर शेष - उपरोक्त चारों प्रकार की कृतियाँ, २.१.३.१
से ४ वैदिक - उपरोक्त चारों प्रकार की कृतियाँ, २.१.४.१ से ४ अन्य धर्म - उपरोक्त चारों प्रकार की कृतियाँ. २.२ आदिवाक्य से कृति माहिती, २.३ अंतिमवाक्य से कृति माहिती, २.४ विद्वान नाम से कृति माहिती, २.५ रचना वर्ष से
कृति माहिती, २.६ रचना स्थल से कृति माहिती, २.७ भाषा पर से कृति माहिती, २.८ विषय विभाग पर से कृति
माहिती. ३. विद्वान/व्यक्ति व गच्छ माहिती विभाग
इस विभाग में कृति व हस्तप्रतों से संबंधित विद्वान/व्यक्तियों एवं गच्छों की विविध प्रकार से सूचनाएँ देने का आयोजन है. ३.१ विद्वान/व्यक्ति माहिती : यह वर्ग विद्वान/व्यक्तियों से संबद्ध विस्तृत माहिती का होगा व विद्वान नाम/ उपनाम के अकारादि
क्रम से यह सूची होगी. यह सूची अनेक उपवर्गों में विभक्त होगी. ३.१.१ जैन साधुओं की सूची, ३.१.२ जैन साध्वियों की सूची, ३.१.३ जैन श्रावकों की सूची, ३.१.४ जैन श्राविकाओं
की सूची, ३.१.५ शेष विद्वान/व्यक्तियों की सूची. ३.२ विद्वान शिष्य/संतति माहिती, ३.३ विद्वान शिष्य परम्परा वंशवृक्ष, ३.४ विद्वान-गच्छ माहिती वर्ग : गच्छ को केन्द्र में रखते हुए निम्नोक्त वर्गों की सूचियाँ बनेंगी.
३.४.१ गच्छ माहिती, ३.४.२ गच्छ शाखा-प्रशाखा वंशवृक्ष, ३.४.३ गच्छानुसार विद्वान माहिती. सूची प्रकाशन की यह एक संभावित संक्षिप्त रूपरेखा है. अनुभवों, उपयोगिता एवं व्यावहारिक मर्यादाओं के आधार पर इसमें यथासमय योग्य परिवर्तन भी किया जाएगा.
प्रस्तुत हस्तप्रत सूचीगत सूचनाओं का स्पष्टीकरण जैन हस्तप्रतों का समावेश करनेवाली हस्तप्रत आधारित इस सूची में सूचनाएँ दो स्तरों पर दी गई हैं. (१) प्रत माहिती स्तर (२) प्रतगत कृति माहिती स्तर. ये सूचनाएँ विस्तार से कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य खंड १.१.१ के पृष्ठ ३३ से ३८ पर मुद्रित हैं. यहाँ पर मात्र संक्षिप्त रूप से व प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद परिवर्तित सूचनाओं का ही परिचय दिया गया है. प्रत माहिती स्तर
इस स्तर पर प्रत सम्बन्धी उपलब्ध सूचनाएँ विविध अनुच्छेदों में निम्नोक्त क्रम से शक्य महत्तम विस्तार से दी गई हैं. यद्यपि कम्प्यूटर पर ये सूचनाएँ और भी विस्तार से उपलब्ध हैं. १. प्रत क्रमांक : प्रत्येक प्रत का यह स्वतंत्र क्रमांक है. इस विभाग में मात्र जैन कृतियोंवाली प्रतों का ही समावेश होने
से व बीच-बीच में जैनेतर आदि अन्य वर्गों की प्रतें भी अनुक्रम में होने से वे क्रमांक यहाँ नहीं मिलेंगे. यह क्रमांक
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अनुच्छेद-Paragraph की बायीं ओर निकला हुआ गाढ़े अक्षरों - Bold type में छपा है. २. प्रत महत्तादि सूचक चिह्न : प्रत संशोधित होने, टिप्पणक आदि से युक्त होने, कर्ता के स्वहस्ताक्षर से लिखित होने,
अशुद्ध होने इत्यादि हेतु विद्वानों को प्रत की इस महत्ता का स्तर बताने के लिए क्रमांक के बाद में कोष्टक के अंदर इस तरह (+), (), (4) चिह्न दिए गये हैं. २.१. प्रत संशोधित होने, टिप्पणक आदि से युक्त होने व कर्ता के स्वहस्ताक्षर से लिखित होने पर प्रत की महत्ता को
बताने के लिए प्रत क्रमांक के बाद (+) का चिह्न लगाया गया है. यह चिह्न न होने का मतलब यह नहीं होता
कि प्रत शुद्ध नहीं है. २.२ प्रत दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ वाली होने पर प्रत क्रमांक के बाद () का चिह्न लगाया गया है. इनका उल्लेख
'प्र.वि.' में प्राप्त होगा. २.३ कट, फट जाने आदि के कारण हुई प्रत व पाठ की निम्नोक्त अवदशाओं की जानकारी कराने के लिए प्रत क्रमांक
के अंत में (*) का चिह्न लगाया गया है. सूची में इनका उल्लेख 'दशा वि.' के तहत प्राप्त होगा. ३. प्रतनाम : यह नाम प्रत में रही कृति/कृतियों के प्रत में उपलब्ध नाम के आधार से बनता है. यथा- बारसासूत्र,
आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति व टीका, कल्पसूत्र सह टबार्थ व पट्टावली, गजसुकुमाल रास व स्तवन संग्रह, स्तवन संग्रह, जीवविचार, कर्मग्रंथ आदि प्रकरण सह टीका... इत्यादि. प्रत में दिए गए नामों से सम्बन्धित विस्तृत ब्यौरा प्रथम खंड
के पृष्ठ ३३-३४ पर देखें. ४. पूर्णता - हस्तप्रत की पूर्णता, उपयोगिता व स्पष्टता को ध्यान में रखते हुए इसे निम्नप्रकार से वर्गीकृत की गई है. १. संपूर्ण : पूरी तरह से संपूर्ण प्रत, २. पूर्ण : मात्र एक देश से अत्यल्प अपूर्ण प्रतों को अपूर्ण न कह कर 'पूर्ण'
संज्ञा दी गई है, ३. प्रतिपूर्ण : प्रतिलेखक द्वारा कोई खास अध्याय अंश मात्र ही लिखा हो और उतना संपूर्ण हो, ४. अपूर्ण : प्रत के आदि/अंत का एक बड़ा अंश अनुपलब्ध हो. ५. त्रुटक : बीच-बीच के अनेक पत्र अनुपलब्ध हो. ६. प्रतिअपूर्ण : प्रतिलेखक ने कोई खास अध्याय मात्र ही लिखा हो और उसमें भी पत्र अनुपलब्ध हो. • जहाँ प्रत व प्रतगत कृतियाँ दोनों की पूर्णता एक जैसी होगी, वहाँ मात्र प्रत स्तर पर ही पूर्णता का उल्लेख मिलेगा. परंतु प्रतगत किसी भी कृति की पूर्णता यदि प्रत से भिन्न होगी, वहाँ प्रत्येक कृति के साथ भी खुद
की पूर्णता का उल्लेख मिलेगा.
• कृति स्तर पर यह मात्र - संपूर्ण, पूर्ण व अपूर्ण इन तीन प्रकारों में से कोई एक ही मिलेगा. ५. प्रतिलेखन संवत् : प्रत में विक्रम, शक आदि संवत् उपलब्ध हो तो वही वास्तविक रूप से दिया गया है, अन्यथा लेखन शैली,
अक्षरों की लाक्षणिकता आदि के आधार पर विक्रम संवत के अनुमानित शतक का उल्लेख किया गया है. ६. प्रत दशा प्रकार : श्रेष्ठ, मध्यम, जीर्ण. दशा सम्बन्धी विशेष माहिती 'प्र. दशा' के अंतर्गत दी गई है. ७. पृष्ठ माहिती (पृ.) : प्रत के प्रथम व अंतिम उपलब्ध पृष्ठांक, घटते-बढते पृष्ठ व उनका योग एवं कुल उपलब्ध पृष्ठ
इतनी माहिती यहाँ आएगी. यथा - १ से ५०-४ (५, ७, १५, २७) = ४६; ५ से ६०-३ (३*, १७, १८) = ५३; ५ से ६०
३ (३*, १७, २८) + २ (४, ३५) = ५५. यहाँ अंक पर * का चिह्न अवास्तविक घटते पत्र का सूचक है. ८. लिपि माहिती : प्रत जिस लिपि में लिखी गई है, उसका उल्लेख यहाँ किया गया है. ९. प्रत प्रकार : सामान्यतः कागज की बिना बंधे - छुट्टे पत्रों वाली प्रतों से भिन्न, किसी भी पदार्थ पर लिखी गई गुटका
आदि प्रकार की प्रत होगी तो उसका उल्लेख यहाँ आएगा. अन्यथा 'प्रत सर्व सामान्य कागज के बिन बंधे पत्रों की
है' यह समझ लिया जाना चाहिए. १०. प्रतिलेखन स्थल माहिति (ले.स्थल) : जिस स्थल पर प्रत-लेखन कार्य हुआ हो, उसका उल्लेख यहाँ दिया गया है. ११. प्रतिलेखक नाम (ले.) : प्रत की प्रतिलिपि लिखने-लिखवाने वाले विद्वान या लहिया आदि नाम गुरू, गच्छ माहिती के
साथ यहाँ दिए गए हैं.
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१२. प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत (प्र.ले.पु.) : प्रत में प्रतिलेखन पुष्पिका (प्रतिलेखक सम्बन्धी विस्तृत परंपरा का
उल्लेख) की उपलब्धि की मात्रा के अग्रलिखित संकेत यहाँ दिए गए हैं. जैसे- मध्यम, विस्तृत. १३. प्रतविशेष (प्र.वि.): प्रत सम्बन्धी शेष उल्लेखनीय अन्य मुद्दों एवं प्रतगत कृति सम्बन्धी परन्तु सम्भवतः इसी प्रत में उपलब्ध;
ऐसी उल्लेखनीय बातों का समावेश यहाँ किया गया है. प्रत क्रमांक के साथ (-)-) द्वारा सूचित प्रत विशेषताओं का उल्लेख
भी यहाँ होगा. १४. पूर्णता विशेष (पू.वि.) : प्रत संपूर्ण नहीं होने पर कृति का कौन सा अंश उपलब्ध/अनुपलब्ध है, यह स्पष्टता इसमें होगी. १५. दशा विशेष (दशा.वि.) : प्रत क्रमांक के साथ (म द्वारा सूचित प्रत की जीर्ण दशा व उसकी मात्रा आदि सम्बन्धी स्पष्टता
यहाँ पर दी गई है. इसके आधार पर प्रत की उपयोगिता तय हो सकती है. १६. प्रतिलेखन श्लोक (प्र.ले.श्लो.) : प्रत के अंत में प्रतिलेखक द्वारा दिए जाने वाले हृदयोद्गार - श्लोकादि का संकेत अपने
श्लोक क्रमांक के साथ यहाँ दिए गए हैं. यह श्लोक क्रमांक ज्ञानमंदिर में संग्रहित ऐसे श्लोकों की सूची में से दिया गया __ है. यह सूची भविष्य में योग्य खंड में प्रकाशित की जाएगी. १७. लंबाई, चौड़ाई : प्रत की लंबाई-चौड़ाई आधे से.मी. के अंतर की शुद्धि के साथ यहाँ दी गई है. १८. पंक्ति-अक्षर : पृष्ठगत पंक्ति व पंक्तिगत अक्षरों को भी अंदाजन गिन कर लघुतम व महत्तम रूप से दिया गया है. कृति माहिती स्तर
इस द्वितीय स्तर पर प्रत में रही कृतियों का निर्णय करने हेतु आवश्यक लघुतम सूचना ही दी गई है. कृति की शक्यतम विस्तृत माहिती 'द्वितीय-कृति विभाग' वाली सूची में दिए जाने का आयोजन है. १. पेटांक (पे.), २. पेटा कृति नाम (पे.नाम), ३. पेटा कृति पृष्ठ (पृ.), ४.(पे.वि.) पेटा कृति विशेष व पेटा कृति का प्रत
में उपलब्ध परिमाण, ५. कृति नाम, ६. कर्ता का स्वरूप, नाम, ७. कृति भाषा, ८. कृति गद्य, पद्य प्रकार, ९. कृति रचना वर्ष, १०.(आदिः) प्रत में उपलब्ध कृति का आदिवाक्य. ११.(अंति:) प्रत में उपलब्ध कृति का अंतिमवाक्य, १२. कृति की प्रतगत पूर्णता. . उपर्युक्त मुद्दों में १ से १२ तक के सभी मुद्दे प्रत में पेटांक होने और इन पेटांकों के स्वतंत्र नाम होने पर दिए गए हैं. • प्रत में पेटांक रहित कृतिवाली प्रतों हेतु ५ से १२ तक के मुद्दे आएँगे. • बिना स्वतंत्र पेटांक नाम वाले संयोगों में उपरोक्त सूची से निम्नलिखित मुद्दे समाविष्ट किए गए हैं - १. पेटा कृति अंक, (३. प्रत में पेटा कृति के पृष्ठ - पृ., ५. कृतिनाम, ६. कर्ता, ७. भाषा, ८. कृति प्रकार, ९. कृति रचना वर्ष, १०.
आदिवाक्य, ११. अंतिमवाक्य. १२. कृति की प्रतगत पूर्णता.) कृति नाम के अंत में star *' हो तो वह कृति विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति रूप में जाननी चाहिए. ऐसा बहुधा टबार्थ व श्लोक संग्रह हेतु हुआ है.
आदि, अंतिमवाक्य में अक्सर (१) व (२) कर के दो दो आदि/ अंतिम वाक्य दिए मिलेंगे. यह विभिन्न प्रतों में सामान्य या विशेष फर्क के साथ मिलनेवाले अनेक आदि/अंतिमवाक्यों की वजह से उत्पन्न होने वाले भ्रम को यथा संभव दूर करने के लिए किया गया है. टबार्थ बालावबोध व स्तवन आदि देशी भाषाओं की कृतियों में ऐसा प्रचूरता से प्राप्त होता है. प्राकृत, संस्कृत भाषा की पाक्षिकसूत्र, उपदेशमाला जैसी कृतियों में भी प्रथम गाथा में फर्क पाया जाता है.आदिः कोलम में यदि प्रत में कृति जहाँ से प्रारंभ होती है वह पृष्ठ न हो तो यहाँ पर आदि वाक्य की जगह '.' दिया गया है. एवं पृष्ठ होने पर भी यदि पत्र के फट जाने आदि के कारण आदिवाक्य यदि अपठनीय है तो वहाँ पर '' का चिह्न दिया गया है. यही बात अंतिमवाक्य के लिए भी लागू होती
कृति में कर्ता का नाम अनेक रूपों में मिलता है यथा उपा. यशोविजयजी हेतु यश, जश नाम भी प्रयुक्त मिलते है. ऐसे में तय होने पर कर्ता का मुख्य नाम ही यहाँ पर लिया गया है. कृति व विद्वान के अपरनाम यद्यपि कम्प्यूटर पर उपलब्ध हैं, फिर भी इस सूची में उनकी उपयोगिता अत्यल्प होने से व कद की मर्यादा होने से यहाँ नहीं दिए गए हैं.
१०
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प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत कृति /प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, से इत्यादि तेरा. जैन श्वेतांबर तेरापंथी विभक्ति सूचक
दि. जैन दिगंबर प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - दुर्वाच्य, देना. देवनागरी (लिपि) अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक
पठ. पठनार्थ (प्रतिलेखन पुष्पिका) प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की प+ग पद्य व गद्य (कृति प्रकार) महत्ता सूचक - कर्ता द्वारा लिखित प्रत, कर्ता के शिष्य पं. पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) द्वारा लिखित, प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के
वर्ष के पूर्व में हो तो संवत् से उतने वर्ष पूर्व का सूचक. समवर्ती काल में लिखित, संशोधित पाठ, शुद्धप्रायः
यथा- विपू. ७वी. = विक्रम पूर्व सातवीं सदी. पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु पू.वि. पूर्णता विशेष विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत यथा- अन्वय दर्शक
पृष्ठ (प्रत माहिती स्तर पर व पेटा कृति स्तर पर) अंक युक्त, पदच्छेद चिह्न, संधिसूचक चिह्न, वचन पे. पेटांक, पेटाकृति अनुक्रम प्रत माहिती स्तर में प्रतगत विभक्ति चिह्न, क्रियापद सूचक चिह्न
कुल पेटा कृति, कृति माहिती स्तर में पेटा कृति क्रमांक कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पे.नाम पेटाकृति नाम पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व पे.वि. पेटांक विशेष, पेटाकृति विशेष तीनों की लघुवृत्ति.
प्र.वि. प्रत विशेष प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की प्र.ले.श्लो. प्रत के अंत में मिलने वाले प्रतिलेखन श्लोक अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से उपयोगिता में कमी
(जलात् रक्षेत्... इत्यादि) सूचक. इस हेतु दशा विशेष में निम्न संकेत हो सकते प्र.ले.पु. प्रतिलेखन पुष्पिका
प्रा. प्राकृत (भाषा) मूल पाठ का अंश नष्ट हो गया (खंडित). टीकादि का बौ. बौद्ध अंश नष्ट है. मूल व टीका का अंश नष्ट है. टिप्पणक मा.गु. मारुगुर्जर (भाषा) का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं. अक्षर मिट मु. मुनि (विद्वान स्वरूप) गये हैं. अक्षर पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर मूपू. जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक की स्याही फैल गई है. जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं. राज. राजस्थानी (भाषा) जीर्णतावश नष्ट हो गये हैं.
लिखवा. लिखवाने वाला (प्रतिलेखन पुष्पिका) परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में प्रत की अपूर्णता ले. प्रतिलेखक, लहिया, Scribe (प्रतिलेखन पुष्पिका) सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु.
ले.स्थल लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) (-) आदिवाक्य अनुपलब्ध.
वी. वर्ष संख्या के पूर्व होने पर वीर संवत्, वर्ष संख्या अप. अपभ्रंश (भाषा)
पश्चात् होने पर 'वीं सदी' यथा वी ८वीं सदी अंतिः अंतिमवाक्य (कृति माहिती)
विक्रम संवत् आ. आचार्य (विद्वान स्वरूप)
वैदिक आदिः आदिवाक्य (कृति माहिती)
शक संवत् उपा. उपाध्याय (विद्वान स्वरूप)
श्रावक (विद्वान स्वरूप) गच्छा. गच्छाधिपति ( विद्वान स्वरूप)
सर्वग्रं.
मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्व ग्रंथाग्र (परिमाण गणि (विद्वान स्वरूप)
प्रत व पेटांक विशेष में) गा. गाथा (परिमाण)
सं. संस्कृत (भाषा) गुज. गुजराती (भाषा)
सा. साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) ग्रं. ग्रंथाग्र (परिमाण)
स्था. जैन श्वेतांबर स्थानकवासी जैदेना. जैन देवनागरी (लिपि)
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हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली
अहमदाबाद
मुंबई
१. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), पालडी २. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव ३. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्धर्न केलिफोर्निया ४. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग ५. श्री शंभुकुमार कासलीवाल ६. शेठ मोतीशा जैन रिलिजीयस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट ७. श्री सांताक्रुज तपागच्छ जैन संघ ८. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसीएसन इन नॉर्थ अमेरीका, "जैना" ह. डॉ. प्रेम गडा ९. एम. जे. फाउन्डेशन १०. कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी
अमेरिका अहमदाबाद मुंबई मुंबई
मुंबई
अमेरिका मुंबई
मुंबई
हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली
मुंबई महुडी सूरत
मुंबई
१. श्री विले पार्ले श्वे. मु. पू. जैन संघ एण्ड चेरीटीज २. श्री महुडी (मधुपुरी) जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ ३. श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, नानपुरा ४. श्री कांदीवली श्वे. मू. पू. जैन संघ ५. श्री प्रेमवर्द्धक पद्मावती माताजी ट्रस्ट ६. श्री शेठ धरमचंद दयाचंद जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ ७. डॉ. मयूरिका किशोर दोशी ८. श्री लाठीया चेरिटेबल ट्रस्ट ९. श्री अहमदाबाद खरतर गच्छ ट्रस्ट, नवरंगपुरा १०. श्री सीमंधरस्वामी श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, अंकुर ११. श्री महावीर जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, पालडी १२. श्री ऋषभदेव श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, नारणपुरा १३. श्री आम्बावाडी श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ
अहमदाबाद सादडी न्यूजर्सी
मुंबई
अहमदाबाद अहमदाबाद अहमदाबाद अहमदाबाद
अहमदाबाद
आप सभी धर्मप्रेमी श्रीसंघों तथा महानुभावों की उदार दानशीलता के कारण ही हस्तलिखित ग्रंथों के संरक्षण व संवर्धन की
आचार्य श्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर, कोबातीर्थ की प्रस्तुत परियोजना सफलता पूर्वक प्रगति के सोपान पर अग्रेसर है.
अन्यथा यह कार्य इतना सरल नहीं था.
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अनुक्रमणिका
मंगलकामना ......
प्रकाशकीय. श्री पद्मसागरसूरि म.सा. की दीक्षा पर्याय के स्वर्णिम ५० वर्ष ..
प्राक्कथन.
कैलास श्रुतसागर सूची प्रकाशन की रूपरेखा .................... प्रस्तुत हस्तप्रत सूचीगत सूचनाओं का स्पष्टीकरण ...............
प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत ............
हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य..........
........12
अनुक्रमणिका ..........
..............13
हस्तप्रत सूची ..............
.......................
१-४२३ परिशिष्टः कृति परिवार की मूल कृति के अकारादि क्रम से.....................
.......४२४-४२५ १. कृति नाम से प्रत-पेटा कृति क्रमांक सूची (संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंशादि) .......
.....४२६-५०१ २. कृति नाम से प्रत-पेटा कृति क्रमांक सूची (मा.गु., प्राचीन हिन्दी, राजस्थानी आदि)
............................................५०२-५८९
प्रस्तुत सूची पत्र में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. 0 प्रत क्रमांक - ५५८६ से ९३१४. ० इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किया होने से वास्तविक रूप से २५४९ प्रतों का
समावेश इस खंड में हुआ है. ० समाविष्ट प्रतों में कुल ३०२९ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. 0 इन परिवारों की कुल ३७९२ कृतियों का समावेश हुआ है. ० उपरोक्त कृतियाँ प्रतों में कुल ६६६६ बार आई हैं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
|| श्री महावीराय नमः || || श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-कल्याण-पद्मसागरसूरि सदगुरुभ्यो नमः ।।
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३
५५८६. सुबाहुकुमार सन्धि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.९१, (२६४११, १३-१५४३७-३९).
सुबाहुकुमार सन्धि, उपा. पुण्यसागर, मागु., पद्य, वि. १६०४, आदिः पणमि पास जिणेसर केरा; अंतिः थायउ नितु
भणतां. ५५८७. कल्पसूत्र सह व्याख्यान+कथा, त्रुटक, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. ११६-९९(१,३ से ५३,५५ से ६८,७१ से ८३,८५ से
१०४)=१७, जैदेना., प्र.वि. टबार्थ लिखा नहीं है., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२५.५४११, २-७X४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः५५८९.” सङ्ग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. मोहीनगर, ले.- मु. धना (गुरु पं.
दोलतविजय, तपगच्छ),प्र.वि. मूल-गा.३३८., पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र.ले.श्लो. (५००) जले रक्षं स्तैले रक्षं; (५०६)
यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२४.५४१२, ८४३६). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं.
बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि: नमिउं क० नमस्कार; अंतिः शासन तिहां लगइ वर्तउ. ५५९१. दानकल्पद्रुम, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २९+१(१७)=३०, जैदेना., प्र.वि. ९ पल्लव; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १२९२, संशोधित,
(२७४११.५, १५४४९-५३).
दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः स श्रेयस्त्रिजगद्; अंतिः श्रीदानकल्पद्रुमः. ५५९२." अनेकार्थध्वनिमञ्जरी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ३ अधिकार, श्लो.२१९, पदच्छेद सूचक लकीरें,
टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, १५४४८).
अनेकार्थध्वनिमञ्जरी, सं., पद्य, आदिः शुद्धवर्णमनेकार्थं; अंतिः परमः पठतां धावतामपि. ५५९३.” कर्मग्रन्थ १ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
(२५४११.५, ५४३४-४०). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं.
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिन वान्दी; अंतिः अर्थ लाउ जाणिवउ. ५६०१.” कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४६-१(१)=१४५, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान.,
संशोधित, पू.वि. अचेलकल्प से विवेचन है., (२६४११.५, ६-१५४२९-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि.
कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः ए गुरुयुक्त जाणवू. ५६०२.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८६, श्रेष्ठ, पृ. १४२, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, ले.- श्रा. फतेचन्द
सूरसिङ्घ सङ्घवी,प्र.वि. मूल-ग्रं. १२१६, ९-व्याख्यान.प्र.पु.-सर्वग्रं. ५२२५. प्रतिलेखन पुष्पिका में सं.-१७५२ व
स्थल-पत्तनपुर लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११.५, ४-१३४५३-६२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः तेणइ कालि जे; अंतिः देखाड्या इम कहुं.
कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मागु., गद्य, वि. १७०७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः#. ५६०३. वडीशान्ति, शान्तिजिन स्तवन, दादाजी स्तवन व सरस्वती छन्द, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ४, जैदेना.,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६.५४११.५, १२४२६). पे.-१.बृहत्शान्ति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., पद्य, (पृ. १अ-४अ, संपूर्ण), आदिः भो भो भव्या श्रृणुत; अंतिः जैनं जयति
शासनम्. पे.२. शान्तिजिन स्तवन-माण्डवगढमण्डन, आ. जिनमहेन्द्रसूरि, मागु., पद्य, वि. १९२०, (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण), आदिः
ॐ ह्रीं श्रीमाण्डव; अंतिः प्रगट्यो जय जयकार., पे.वि. गा.५. पे.-३. जिनदत्तसूरि पद, मु. राजहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण), आदि: अरे लाला श्रीजिनदत्त; अंतिः सुद्ध चरण
त्रिकाल रे., पे.वि. गा.९. पे.४. सरस्वतीदेवी छन्द, राज., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण), आदिः सरसती सरसती तू जग; अंति:-, पे.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण. ५६०४. सन्थारा पयन्ना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. गा.१२२, (२५४११.५, ७x१७-२६).
संस्तारक प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंतिः सङ्कमणं सया दिन्तु. ५६०६. नवतत्त्व बोल, संपूर्ण, वि. १९३१, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. धोराजी, ले.- ऋ. उत्तमचन्द, (२६.५४११.५, १३
__ १४४४०-५१).
नवतत्त्व प्रकरण-बोल, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः हवे विवेकि सम्यग; अंतिः होइ तेमाथी मोक्ष जाइ. ५६०७. कूर्मापूत्र कथानक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. गा.१९६, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११.५,
१३४४२-४८).
कुम्मापुत्त चरिअं, मु. माणिक्यविमल, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण वद्धमाणं; अंतिः वाइद्यन्तं चिरं जयउ. ५६०८. उपदेशरत्नकोश व बत्रीस बिरदावली, संपूर्ण, वि. १६५१, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.- मु. शिवगुण, (२७४११.५,
१२४३८-४०). पे.-१. उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-५आ), आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंतिः
विउलं उवएसमालमिणं., पे.वि. गा.२६. पे.२.जिनगुण बिरदावलीबत्रीसी, मागु., पद्य, (पृ. ५-५आ), आदि: जय संसार सागर सकल; अंतिः नमस्ते नमस्ते.,
पे.वि. गा.३२ पद. ५६०९. अनुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६१, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. जेतपुर (काठीगाम, प्र.वि.
मूल-अध्याय-३३., (२७४११.५, ५४२८-३०). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः अणुत्तरोववाईदसाणं.
अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालने विषे ते; अंतिः धर्मकथानी परे जाणवा. ५६१०. एकवीसप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(६)-६, जैदेना., प्र.वि. गा.७१, (२६४११.५, ११४२४-३०).
२१ प्रकारी पूजा, मु. उद्योतसागर, मागु., पद्य, वि. १८२३, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः शिवसुख लहे अछेह. ५६१३." चिहुंगति वेलि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.१३५, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११.५,
११४४१-४४).
४ गति वेलि, मागु., पद्य, वि. १६वी, आदिः देवदया पर नमीय; अंतिः हुं वाञ्छु गुणठाण. ५६१४. हरिबल रास, अपूर्ण, वि. १६१०, मध्यम, पृ. ३९-२(१ से २)=३७, जैदेना., पू.वि. गाथा १ से ३८ तक नहीं हैं.,
(२६४११.५, १२-१३४२८-३५).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
हरिबल रास, मु. कुशलसंयम, मागु., पद्य, वि. १५५५, आदि:-; अंतिः ए भणता सम्पत विस्तरइ. ५६१९. शान्तिजिन विवाहलु, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ५००, ढाल-६४, (२६.५४११.५, १०४३४-३७).
शान्तिजिन विवाहलो, मु. आनन्दप्रमोद, मागु., पद्य, वि. १५९१, आदिः सरसति सामिणी वाणि; अंतिः लहइ ऋद्धि वृद्धि. ५६२०. योगशास्त्र सह अवचूरि- प्रकाश १ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १६७५, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.- मु. तेजपाल, प्र.वि. त्रिपाठ,
(२७४११.५, ६-७४५४-६१). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति:
योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १-४ की अवचूरि, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः नमस्कारोस्तु; अंति:५६२१. सुदर्शनसेठ रास, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. गा.२४८, (२६४११, ९४३७-४४).
सुदर्शनसेठ रास, मु. मुनिसुन्दरसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, वि. १५०१, आदिः पहिलउं प्रणमिसु; अंतिः सङ्घ प्रसन्न. ५६२२." जीवविचार सह टबार्थ, मौनएकादशी के पञ्चकल्याणक व मुनिपति स्वाध्याय, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२
१(१)=११, पे. ३, जैदेना., ले.- पं. सुन्दरसागर, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही
फैल गयी है-अधिक, (२६.५४११.५, ३-५४२८). पे.१.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, पृ. -२अ-११आ, पूर्ण
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः समुद्रथकी उधरिओ.,पे.वि. मूल-गा.५१. प्रथम पत्र नहीं है.
द्वितीय गाथा अपूर्ण तक नहीं है. पे.२. विजयप्रभसूरि सज्झाय, पं. धर्मकुशल, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण), आदिः सरसति मुझ मात हो;
अंतिः#., पे.वि. गा.११. पत्र खराब होने से अस्पष्ट. नाम, कर्ता, अंतिमवाक्यादि संशोधनीय. पे.३. मौनएकादशीपर्व पांचकल्याणक, मागु., गद्य, (पृ. १२आ-१२आ, अपूर्ण), आदिः वाणारसी नगरि तेह; अंतिः
पे.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. ५६२३. लीलावती की भाषा, संपूर्ण, वि. १८९४, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले.स्थल. मेडता, ले.- मालो सेवग, प्र.वि. अध्याय-१६,
गा.७०७, (२४.५४११.५, १३४२५-३१).
लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १७३६, आदिः सोभित सिन्दूर पुर; अंतिः वरतो जनसुख काज. ५६२४." अभिधानचिन्तामणी नाममाला, पूर्ण, वि. १७पू, श्रेष्ठ, पृ. ६३-४(३९ से ४२)=५९, जैदेना., प्र.वि. ६ कांड. संवत- १६१७
में करमसी द्वारा संशोधित., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, अन्वय दर्शक
अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, ११४३५-४०). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ
नमः. ५६२५. सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-१(१)=१४, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. गणधरदेव
स्तुति गा.१५ तक है., (२६४११, ५४३३-३६).
सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:५६२६. पञ्चमीफल माहात्म्य, संपूर्ण, वि. १४७२, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., ले.स्थल. सुजिंत्रितपुर, ले.- पं. भरद्वाज, प्र.वि.
गा.५००; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २०००, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२७४११.५, १९४५०-५७). भविष्यदत्त कथा-ज्ञानपञ्चमीफलमहात्म्ये, आ. महेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पञ्चिन्दियनिरविक्खं; अंतिः (१)सहस्साई
गन्थग्गम् (२)सव्वोवि महेसरो होओ. ५६२७. पर्याप्ति यन्त्र- पन्नवणासूत्रपदे, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-८(१ से ८)=५, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित
_है।, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५.५४११.५४).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पर्याप्ति यन्त्र, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:५६२८. नन्दबत्रीसी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.१५४, (२६४११, १२-१३५४३-५०).
नन्दबत्रीसी चौपाई, मु. सिंहकुशल, मागु., पद्य, वि. १५६०, आदिः आगम वेद पुराण जाण; अंतिः नितु वर सम्पदा. ५६२९. भक्तामर स्तोत्र सह प्राकृतवार्ता वृत्ति, संपूर्ण, वि. १५४१, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. नयणपुरनगर, ले.- मु. हंस
(गुरु गणि हेम, संवेगी), प्र.वि. मूल-श्लो.४४+४., (२६.५४११, १५४४४-५४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी.
भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः लक्ष्मी स्वयंवर वरइ. ५६३०. पर्यन्ताराधना सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १६०७, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(७)=९, जैदेना., ले.स्थल. जीवावाद, प्र.वि. मूल
गा.७०.प्र.पु.-सर्वग्रं. २४५. प्रतिलेखन पुष्पिका घीस जाने के कारण नहीं पढ़ी जाती है., (२६४११, १०-११४३५-४१). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं.
पर्यन्ताराधना-बालावबोध* , मागु., गद्य, आदिः श्रीवीतरागदेवने; अंतिः शाश्वतुं सोख्य लहइ. ५६३१. उपदेशरत्नकोश सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.२५., (२६४११, ११४३७-४१).
उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उवएसरयणकोसं नासिअ; अंतिः विउलं उवएसमालमिणं.
उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर चउवीसमुं; अंतिः पामइ सुखीउ थाइ. ५६३२. संवेगरस चन्द्राणा, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(२)=७, जैदेना., प्र.वि. गा.४९, (२६.५४११, ९४३७-४०).
संवेगरस चन्द्राणा, मागु., पद्य, आदिः सकल सुरिन्द नमइ सदा; अंतिः लीछानइ आपु भगवन्त. ५६३३. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, ले.- मु. हस्तिविजय, (२६.५४११, ११४२८-३२).
पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. ५६३४." योगशास्त्र व जैनश्लोक, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-२(१ से २)=९, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद
सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, पू.वि. प्रकाश २ गा-३२ तक नहीं हैं., (२६.५४११, १५४४७
५३). पे.-१. योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. -३अ-११आ, प्रतिअपूर्ण), आदि:- अंतिः-, पे.वि.
प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
पे.२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदिः #; अंति:#., पे.वि. परिमाण-श्लो.१. ५६३५. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. ८९९, अध्याय-९२.,
(२५.५४११, ४-७४५०-५८). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अयमढे पण्णत्ते.
अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीजिनेन्द्; अंतिः धर्मकथानी परे जाणवू. ५६३६. कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. , (२६x११.५, १३४३५-३८).
कालिकाचार्य कथा-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर चरम; अंति:५६३७. कथाकलाप, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. , (२५.५४११, १९-२२४४६-५७).
कथाकलाप, सं., गद्य, आदिः श्रीमण्डोवरपार्श्व; अंति:५६३८.” कर्मग्रन्थ ६, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. गा.९२, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२७४११.५,
५४२९-३८).
सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. ५६३९. एकविंशतिस्थानक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. गा.६६, (२७४११.५, ९४३५-३७).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंति: असेस साहारणा भणिया. ५६४०." सङ्ग्रहणी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., प्र.वि. गा.२९८, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन
विभक्ति संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६.५४११, ८-९४३२-३६).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ५६४१. चार प्रत्येकबुद्ध रास, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४-१०(१ से १०)=३४, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-४, ढाल-४४, ग्रं. १२१९;
प्र.पु.-मूल-गा.८७०, पू.वि. प्रथम खण्ड नहीं है., (२६.५४११, ११-१२४३७-४२)...
४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६५, आदि:-; अंतिः आणंद लीलविलास. ५६४४." विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, १५
१६x४१-५४). जिनदाढादि विचारसङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंति:५६४५. नागिलसुमति रास, संपूर्ण, वि. १६४३, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. पत्तन, ले.- मु. वर्द्धमान, प्र.वि. गा.१०७,
(२६४११, ११४४०-४५).
नागिलसुमति रास, मागु., पद्य, आदिः वीर जिणेसर पाय नमी; अंतिः तेह लहि सुख अपारूए. ५६४६. योगशास्त्र-१ से ४ प्रकाश, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., अन्य- आ. सोमसुन्दरसूरि, प्र.वि. आचार्य
सोमसुंदरसूरि के उपदेश से यह प्रति लिखवाई गयी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२५.५४११, १५४३७-४१).
योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति:५६४७. धन्य चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.- मु. कनकचारित्र, प्र.वि. गा.३३०, (२६.५४११, १२४३९-५३).
धन्ना रास, वा. मतिशेखर, मागु., पद्य, वि. १५१४, आदिः पहिलउं पणमी पयकमल; अंतिः कीयो कवित अतिचङ्गो. ५६४८. निर्यावलिकादिपञ्चोपाङ्गसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, पे. ५, जैदेना., (२५४११, ११४३९-४३). पे.-१. पे. नाम. कल्पिकासूत्र की टीका, पृ. १आ-१४अ
कल्पिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः पार्श्वनाथं नमस्कृत्; अंतिः शेषं सर्वं सुगमम्. पे..२. पे. नाम. कल्पावतंसिका की टीका, पृ. १४अ-१५अ
कल्पावतंसिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रेणिकनप्तृणां; अंतिः द्वितीयवर्गश्च. पे..३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र की टीका, पृ. १५अ-२४अ पुष्पिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः अथ तृतीयवर्गोपि दशा; अंतिः देवस्य व्यक्तव्यता., पे.वि. १०
अध्ययन. पे.-४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र की टीका, पृ. २४अ-२४अ
पुष्पचूलिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः चतुर्थवर्गोपि; अंतिः चतुर्थवर्गसमाप्तिः. पे.५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र की टीका, पृ. २४अ-२४आ
वृष्णिदशासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः पञ्चमवर्गे वन्हिदसा; अंतिः दुखानामन्तं करिष्यति. ५६४९. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७१, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. योधपुर, ले.- ऋ. बालाराम, प्र.वि. मूल
गा.१०५., (२५४११.५, ६-७४४७-५२). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चतुर्गति रूप संसारने; अंति: मांहि अवतरिवो नही. ५६५०.” ज्योतिषसारोद्धार सङ्ग्रह व चतुर्थव्रतपच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १६७१, श्रेष्ठ, पृ. २२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अजैदुर्ग,
ले.- मु. कर्मसागर (गुरु मु. हीरसागर, मलधारगच्छ), दशा वि. विवर्ण-पानी से-अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२४.५४११, १२४२३-३०). पे.-१. ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-२२आ), आदिः तं नमामि जिनाधीशं; अंतिः
सङ्कलितवानेनम्., पे.वि. श्लो.३३७, ग्रं.५००. पे.२. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा., गद्य, (पृ. २२आ-२२आ), आदिः अहन्नं भन्ते तुम्हाण; अंतिः वत्तियागारेणं
वोसिरइ. ५६५३. जयसेनकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७५६, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. खंभातबंदर, ले.- बलवन्त, प्र.वि. गा.२६५.
सं.१६०४ प्रत की प्रतिलिपी है.,प्र.ले.श्लो. (५७३) जाद के पुस्तके द्रष्टवा, (२५.५४११, ११४२९-३४). जयसेन चौपाई-रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमुद्र, मागु., पद्य, आदिः पणमिसु गोयम गणहरराय; अंतिः सदा सम्पत्ति ते
लऊ. ५६५४." क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(१)=१६, जैदेना., ले.- मु. रूपसी (गुरु मु. जीवा, लुङ्कागच्छ), प्र.वि.
पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. गा-१ से ७ नहीं हैं., (२६४११, ९-१२४३०-३७).
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, (पूर्ण), आदि:-; अंतिः कुसलरङ्गमई पसिद्धिं. ५६५५.” लघुसङ्घपट्टक, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र.वि. गा-१ से ४
नहीं हैं., (२७४११, ९४२८-३५). सङ्घपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंतिः इत्थं कदामहे. ५६५६. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.३२., त्रिपाठ, पदच्छेद
सूचक लकीरें, (२६.५४११, ४४३६-३७). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जिणदंसणं विणा जं; अंतिः जहा भमह न इह भिसं.
लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः जिण वइ प्रसारित; अंतिः मुपलभ्य ज्ञात्वा. ५६५७. शुकराज रास, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-१(२०)=३१, जैदेना., प्र.वि. गा.५५३; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ७९०, (२५.५४११,
११४३७-४५).
शुकराज रास, मु. राजपाल, मागु., पद्य, वि. १६४१, आदिः आदीस पमुह सवे; अंतिः घरि मङ्गल च्यारि. ५६५९. साधुवन्दना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. थिरप्रद, प्र.वि. ढाळ-७, (२७४११.५, ११४२९-३०).
साधु वन्दना, मु. कल्याण, मागु., पद्य, वि. १६९६, आदिः पय प्रणमी सीद्धार्थ; अंतिः कहइ सेवक कल्याण. ५६६०. जिनप्रतिमास्थापना प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं. १६००, अध्याय-१३ अधिकार, पदच्छेद
सूचक लकीरें, (२५.५४११, १३४३८-४८). जिनप्रतिमास्थापना प्रबन्ध, मु. ब्रह्म, मागु., पद्य, वि. १६७७, आदिः श्रीजिणवर वन्दउं; अंतिः जा जिनधर्म विस्तरइ. ५६६१.” यशोधरनृप रास, संपूर्ण, वि. १६९२, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. धारवाड, ले.- मु. पनजी, प्र.वि. ग्रं. ७५०,
अध्याय-१-४, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, संशोधित, (२६४११, १२-१४४३४-३७).
यशोधर रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६७१, आदिः सुविशदमनो यस्य; अंतिः लहु निवृत्ति पुरी. ५६६२. नवकार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५४१०.५, १०-११४३३-३७).
नमस्कार महामन्त्र, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः पढमं हवई मङ्गलम्.
नमस्कार महामन्त्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः पञ्चपरमेष्टि प्रतिइं; अंतिः पहिलुं मंगलिक जाणवू. ५६६३.” समयसार नाटक, महादण्डक स्तोत्र आदि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. ८, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें, (२६.५४११.५, ११४४४-४९). पे..१. समयसार प्रकरण, आ. देवानन्दसूरि, प्रा., गद्य, वि. १४६९, (पृ. १अ-९आ), आदिः सव्वन्नु मोक्खमक्खन्; अंतिः
सययं सिवं दिन्तु., पे.वि. अध्याय-१०.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे.२. महादण्डक स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. ९आ-१०आ), आदि: भीमे भवम्मि भमिओ; अंतिः अणुत्तर पयन्देसु., पे.वि.
गा.२०. पे.३. पे. नाम. सिद्धान्तोक्तविचार गाथा, पृ. १०-११आ
जैन सामान्यकृति-पेटाङ्क बाकी, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. अंतर्गत ठाणांगवृत्ति से उद्धृत
किंचित् पाठ भी है. पे.-४. पे. नाम. देहस्थिति स्तवन, पृ. ११आ-१२आ देहस्थिति स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदिः देविन्दमहिअ सामिअ; अंति: हामि दुहावि अतणुठिई.,पे.वि.
गा.२०. पे.५. साधु उपदेश गाथा सङ्ग्रह, प्रा., पद्य, (पृ. १२आ-१४आ), आदिः आलय विहार भासा; अंतिः संसारपहा तहा
तिन्नि., पे.वि. गा.५१. पे.६. साधु आचार गाथा सङ्ग्रह, प्रा., पद्य, (पृ. १४आ-१६आ), आदिः जिणआणाए कुणन्ताणं; अंतिः संसारवुढिकरम्.,
पे.वि. गा.३९. पे.-७. भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. १६आ-१८अ), आदिः वुच्छं ___अप्पाबहुअं; अंतिः ते अणन्ते जिणाभिहिए., पे.वि. गा.३६.
पे.-८. चतुर्थी संवत्सरी विचार, मागु., गद्य, (पृ. १८अ-१८आ), आदिः श्रीपर्युषणा पर्व; अंतिः हुइ तिम प्रमाण. ५६६४." चम्पक श्रेष्ठि रास, संपूर्ण, वि. १६४६, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, ले.- मु. सूरचन्द (गुरु पं.
विनयकीर्ति), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.५७५, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४११, १६-१७४५४-५९). चम्पकवेष्ठि रास, आ. सोमविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १६२२, आदिः (१) श्रीवीरं शारदां (२) कमलनयना विमल
कमल; अंतिः सङ्घनी करु कल्याण. ५६६५. जिनदत्तराजा रास, संपूर्ण, वि. १६०७, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., ले.- मु. गुणमेरुसूरि-शिष्य (गुरु आ. गुणमेरुसूरि,
पूर्णिमागच्छ), प्र.वि. गा.१०८०, खण्ड-४. यह प्रति कर्ता ने स्वयं लिखी लगती है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे
लिखित, संशोधित, (२६.५४११, १३-१६x४१-४५). जिनदत्तराजा रास, मु. रत्नसुन्दरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६०७, आदिः सयल जिणेसर प्रणम; अंतिः तेहना मनह मनोरथ
फलइ. ५६६६. नेमिजिन धवल, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना.,प्र.वि. गा.१६१, ग्रं. ६००, ढाळ-४५, (२६.५४११, १५४३९
४६).
नेमिजिन विवाहलो, मु. विनयरत्न, मागु., पद्य, वि. १६३०, आदिः सारद वर दायक देवी; अंतिः देवा आपयो आनन्दस्युं. ५६६७. ज्योतिषसार सह टिप्पणी, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.२९४., पंचपाठ, (२७४१०.५, १०
११४३१-३६). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः विवर्जितशशिवत्.
ज्योतिषसार-यन्त्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः त्रिषष्टोदशमश्चैव; अंतिः#. ५६६८. वसुदेव रास व स्थुलभद्र गीत, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. २, जैदेना., अन्य- ऋ. विद्यासाधु, (२६.५४११,
१३४४५-४८). पे.-१. वसुदेव रास, मु. हर्षकुल, मागु., पद्य, वि. १५५७, (पृ. १अ-१५अ), आदिः सकल मनोरथ सिद्धि; अंतिः पूजि मनह ____ जगीस., पे.वि. गा.३५३. पे.२. स्थूलिभद्र गीत, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१५आ), आदिः एक दिन सारथपति भणइ; अंतिः जिम भवसायर पार रे.,
पे.वि. गा.१७.
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८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५६६९.” पिण्डविशुद्धि प्रकरण व पिण्ड विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. २, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें (२६४११.५, ५४२८-३१).
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पे.-१. पे. नाम. पिण्डविशुद्धि प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १अ - १४आ
पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि प्रा. पद्य आदि देविन्दविन्दवन्दिय अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य. पिण्डविशुद्धि प्रकरण- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि इन्द्रना वृन्द समूह अंति: अने सोधउ निर्दोष करउ., पं.वि. मूल-गा. १०३.
पे. २. पे. नाम. सिद्धान्तोक्तविचार गाथासप्तक सह टबार्थ,
पृ. १४-१५आ
पिण्ड विचार, आ. जिनवल्लभसूरि प्रा., पद्य, आदि जमिउ पीलिज्जन्ते; अंतिः समभावो होइ कायव्यो. पिण्ड विचार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जीणइ पीलिइ अंतिः समभाव समता करवी हुइ., पे.वि. मूल-गा. ७. ५६७०. ऋषिदत्ता चौपाई, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैवेना. प्र. वि. गा. ३०१ (२६५११, १२-१५४४१-४८). ऋषिदत्तासती चौपा- शीलवतविषये, मु. देवकलश, मागु, पथ, वि. १५६९, आदि: श्रीसरसति सुपसाउलइ अंतिः विधन सवि दुरि
५६७१. योगशास्त्र - प्रकाश ४, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. (२६.५X११.५, १२४३५-३७). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि-: अंति
५६७२. सुबाहुऋषि सन्धि संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैवेना. प्र. वि. गा. ९९ (२५४१०.५, ११४३७-३९).
सुबाहुकुमार सन्धि, उपा. पुण्यसागर, मागु., पद्य वि. १६०४ आदि पणमि पास जिणेसर केरा; अंतिः थायउ नितु भणतां.
५६७३. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना, प्र. वि. गा. ११९ (२६४११, ११०४२-४४).
महावीरजिन स्तवन, आ. धर्मसागरसूरि मागु पद्य वि. १६१४, आदि सरसति सामणि मनि धरीए अंतिः गच्छ पीपल मण्डणो.
५६७४. भासवीसी, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. पु.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. स्तवन १४ गा-२ तक है.. (२६४११,
·
११४३१-३६).
भासवीसी, मागु, पद्य, आदि: सरसति मझ मति: अंति:
५६७५.” आदिनाथ देशना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ८८, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११ ७४४२-४६).
आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा. पद्य, आदिः संसारे नत्थि सुहं अंति: सिवं जन्ति.
"
आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसारमांहि नथी सुख; अंतिः शिव मोक्ष पहुंचइ.
५६७६.” दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., प्र. वि. अध्याय - अध्ययन १०, पदच्छेद सूचक लकीरें,
(२७११, ११४३८ - ४१).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: (१) गइं त्ति बेमि (२) आलणा सङ्घे.
५६७९. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, आलोयणा, कल्याणमन्दिर स्तोत्र, सामाइक अतिचार व सज्झाय सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५-२ (१ से २) - १३ पे ९ जैवेना. (२४४१०.५, १३४३७).
"
..
पे. १. पगामसज्झायसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य (प्र. ३अ-४आ, अपूर्ण), आदि:-: अंति: वन्दामि जिणे चउवीसं., पे. वि. प्रारंभ
,
के पत्र नहीं हैं.
पे. २. आलोयणा विचार, प्रा., मागु., गद्य, (पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण ), आदि: इच्छाकारेण सन्देसह; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. पे. ३. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि सं, पद्य, (पृ. ६आ-९अ संपूर्ण), आदि:
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४. पे.-४. साधुअतिचार सङ्ग्रह', संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. ९अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. पे.५. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण), आदिः देव दाणव तीर्थङ्कर; अंतिः _ नमो कर्म महाराजा रे., पे.वि. गा.१८. पे:६. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण), आदिः विषीया लीण वरस तणो; अंतिः फिटकार ___ मारा नेह., पे.वि. गा.१३. पे.-७. आध्यात्मिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१३आ, संपूर्ण), आदिः निन्दरडी वेरण; ___ अंतिः मुनि कनकनिधान कि., पे.वि. गा.८. पे..८. नेमिजिन बारमासो, मु. खुस्यालचन्द, मागु., पद्य, वि. १७९८, (पृ. १३आ-१५अ, संपूर्ण), आदिः समरुं सरसति ___मातने; अंतिः नित नमु शुभ भावसुं., पे.वि. गा.२८. पे.९. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. खेम, मागु., पद्य, वि. १७४६, (पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण), आदिः सुरपति प्रशंसा
करे; अंतिः गातां सुख पावै अपारो., पे.वि. गा.१९. ५६८१. भुवनदीपक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., (२५४११, १३४४२-४६).
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: वाच्योष्णमस्थेपि च. भुवनदीपक-बालावबोध, गणि लक्ष्मीविनय, मागु., गद्य, वि. १७६७, आदिः सारस्वत्याः सम्बन्धि; अंतिः कीधो लखमीविनय
गणि. ५६८२. ज्योतिषसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. अधिकार-२ गा. ३६४ + ३१५
व अधिकार-३ गा.२ तक है., (२६.५४११, १४-१५४४४-५०).
ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः तं नमामि जिनाधीशं; अंति:५६८३. नवस्मरण सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक
लकीरें, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. भक्तामर स्तोत्र गा.१५ तक है., (२६४११, ५४३५-३७). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंति:
नवस्मरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः नमो नमस्कारोस्तु; अंति:५६८५.” छन्दोनुशासन सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७१५, मध्यम, पृ. ४८-१३(१ से १३)=३५, जैदेना., ले.स्थल. नूतनपुर,
ले.- मु. भक्तिसागर (गुरु पं. धर्मनिधान गणि, विधिपक्षगच्छ), गच्छा.- गच्छाधिपति कल्याणसागरसूरि(विधिपक्षगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-अध्याय-८; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २०५. प्र.पु.-उभयग्रं. २९९९., संशोधित, पू.वि. द्वितीय अध्याय
अपूर्ण से है., दशा वि. विवर्ण-पानी से-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११.५, १७४५५-६५). छन्दोनुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः द्विघ्नानेकाध्वयोगः..
छन्दोनुशासन-स्वोपज्ञ छन्दचूडामणि वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः त्वस्माभिरुक्तः. ५६८६. धूर्ताख्यान, संपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,प्र.वि. ५ आख्यान, (२६.५४११, १८४६४-७०).
धूर्ताख्यान, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः जिणागमे एरिसा भत्ती. ५६८७. शरीरद्वार व समितिगुप्ति विचार, संपूर्ण, वि. १९६४, मध्यम, प्र. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. समदरडी, ले.- ऋ.
ताराचन्द(चन्द्रगच्छ), (२५४११.५, १६x४३-५१). पे.१. शरीरद्वार १५ बोल, राज., गद्य, (पृ. १आ-३अ), आदिः नामद्वार अर्थद्वार; अंतिः कारमणरो अन्तरो नथी.
पे..२. समितिगुप्ति विचार, राज., गद्य, (पृ. ३अ-६अ), आदिः प्रथम ईर्यासुमतरा; अंतिः पणे प्रवर्त्तावे. ५६८८. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६४८, श्रेष्ठ, पृ. ११९, जैदेना., प्र.वि. १९अध्ययन; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ५४६४, प्र.ले.श्लो.
(१०१) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा; (१६२) उदकानलचोरेभ्यो; (५१८) तैलाद्रक्षे ज्जलाद्रक्षेत्, (२४.५४१०.५, १३-१५४३७
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१०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५०).
ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंति: पुरिससिहेणं. ५६८९.” महीपाल चरित्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. १११-१(१)=११०, जैदेना., ले.स्थल. जैसलमेरुदुर्ग, ले.- पं.
रत्नसागर (गुरु मु. देवकुशल, बृहत्खरतरवेगडगच्छ), गच्छा.- आ. जिनचन्द्रसूरि(खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि.
मूल-गा.१८३६., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. गाथा १ से १२ तक नहीं हैं., (२६४११, ६-८४३६-४४). महिपालराजा कथा, गणि वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः निययगुरूणं पसाएण.
महिपालराजा कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: गुरु कै प्रसाद करी. ५६९०. ज्योतिषसार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., (२६४१०.५, १५४३९-४८).
ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः शनौचरात्रीभवेत्. ५६९१. योगचिन्तामणि सह बालावबोध व औषध, पूर्ण, वि. १७६५, श्रेष्ठ, पृ. ३१-१(२)=३०, पे. २, जैदेना., (२६.५४११, १८
१९४५६-६६). पे.१.पे. नाम. योगचिन्तामणि सह बालावबोध, पृ. १अ-३१अ, पूर्ण
योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः यत्र वित्रासमायान्ति; अंतिः योगचिन्तामणिश्चिरम्. योगचिन्तामणि-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः प्रथम स्त्री योग्य; अंतिः सः सप्तमः सम्पूर्णः., पे.वि. मूल-अध्याय
७. .प्र.पु.-सर्वग्रं.३००५. बीच का एक पत्र नहीं है. पे.२. औषध सङ्ग्रह **, सं., पद्य, (पृ. ३१आ-३१आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. ५६९२. मुनिपति चरित्र, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, जैदेना., ले.स्थल. अलवर, ले.- गणि जेठा, (२७४११, १६
१९४४४-४७).
मुनिपति चरित्र सारोद्धार, संक्षेप, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः इयं हरिभद्दसूरीहि. ५६९३. उपासगदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०, (२६४११, १५४५३-५६).
उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं चंपा नामं नयरी; अंतिः अयमढे पण्णत्तित्ति. ५६९४. समकित के ६७ भेद, अभविसाधु की १५ लब्धि व पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१)=१४, पे. ४,
जैदेना., ले.स्थल. जोधपुर, (२६४१०.५, ११४४०-४७). पे.-१. व्याख्यानश्लोक सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. -२अ-५अ, पूर्ण), आदि:-; अंतिः विणसवानउं स्वभाव छइ., पे.वि.
प्रथम पत्र नहीं है. पे..२. सम्यक्त्व के ६७ भेद, मागु., गद्य, (पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण), आदिः तीन सुद्ध मन सुद्ध; अंतिः घणा सूत्रोनी साख
पे.३. अभव्यसाधु १५ लब्धि, मागु., गद्य, (पृ. ६-७अ, संपूर्ण), आदिः अभवि साधु १५ लबधि; अंतिः काले मुगति नही
पामै. पे.-४. पट्टावली लोकागच्छीय, राज., गद्य, (पृ. ७अ-१५आ, संपूर्ण), आदिः श्रीमहावीरस्वामीने; अंतिः अनेक साध
प्रमुख थया. ५६९५.” ताजिकसार की कारिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३-१३(२,८,१०,१३ से १५,१७,२२,२५ से
२६,३३,३७,४१)=३०, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. पुष्पिका का पत्र नहीं है.,
(२५.५४१०.५, ११-१३४२७-३५).
ताजिकसार-कारिका टीका, गणि सुमतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७७, आदिः श्रीसूर्यचन्द्रा; अंतिः रचिता तनुताच्चिरं. ५६९८. कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य(कल्पान्तर्वाच्य), संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ३०००., संशोधित,
पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-कुछ पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, (२५४११, १३४३४-४६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, आदिः पुत्राः पञ्चमतिश्रुत; अंतिः पताकां गृह्णाति. ५६९९." चैत्यवन्दन व स्तोत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ९, जैदेना., प्र.वि. अशुद्ध पाठ, पू.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं., (२४.५४११.५, १३-१४४२४-३१).. पे.-१. अष्टापदतीर्थ चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः श्रीशत्रुञ्जय; अंतिः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्., पे.वि. ___ श्लो.५. पे..२.२४ जिन स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, (पृ. १आ-आ, संपूर्ण), आदिः आदौ नेमिजिनं नौमि; अंतिः
मोक्षलक्ष्मीनिवासम्., पे.वि. श्लो.८. पे.-३. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जीव-शिष्य , सं., पद्य, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण), आदिः प्रशस्तदेहभुवनाधि; अंतिः गृहे सततं
विभुतिदः., पे.वि. श्लो.८. पे.-४. पे. नाम. आद्यन्ताजिन स्तुत्यष्टक, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण
आदिजिन अष्टक, मागु., पद्य, आदिः विमलकमलनेत्रौ त्वं; अंतिः जीवनं जीवतारम्.,पे.वि. गा.८. पे.५. पे. नाम. शान्तिदेव चैत्यवन्दन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण __ शान्तिजिन चैत्यवन्दन, उपा. कुशलसागर, सं., पद्य, आदिः सकलदेवनरेश्वरवन्दितं; अंतिः स्तोत्रमिदं पठन्ति.,
पे.वि. श्लो.१३. पे.६. साधारणजिन अष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., पद्य, (पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण), आदि: जयति जङ्गमकल्प; अंतिः
शिवं श्रीजिनम्., पे.वि. श्लो.८. पे.-७. आदिजिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण), आदिः जयादिनाथ प्रतितर्थ; अंतिः बलं जयानीतम्., पे.वि.
श्लो.८. पे..८. पे. नाम. एकादशी नमस्कार, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण एकादशीतिथि चैत्यवन्दन, मु. खिमाविजय, मागु., पद्य, आदिः शासननायक वीरजी; अंतिः सफल करो अवतार.,
पे.वि. गा.९. पे.९. अष्टमीतिथि नमस्कार, पण्डित खीमाविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ-, अपूर्ण), आदिः चैतर वदि आठम दिने;
अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.७ तक है. ५७००." दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १६६८, श्रेष्ठ, पृ. ८१, जैदेना., ले.स्थल. सत्यपुर, ले.- मु.
अमृतसुन्दर (गुरु मु. रत्नसुन्दर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०चूलिका२., पदच्छेद सूचक लकीरेंकुछ पत्र, संशोधित,प्र.ले.श्लो. (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (५३६) जलाद् रक्षेत् तैलात् रक्षेत्, (२६४११, १४
१७४३२-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, उपा. राजहंस, मागु., गद्य, आदिः नत्वा श्रीवर्द्ध; अंतिः सूत्र प्रवर्तिउ.
दशवैकालिकसूत्र-कथा, मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः #. ५७०१. विमलमन्त्री रास, संपूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., ले.स्थल. विद्यापुर, ले.- मु. आणन्दविजय (गुरु मु.
धनविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.२७९+१०८, खण्ड-९+चूलिका. प्र.लेखन सं."श्रुती रामा हया रूपं", (२७४११,
१४-१७४४०-४९). विमलमन्त्री प्रबन्ध, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५६८, आदिः आदिजिनवर आदिजिनवर; अंतिः धरी रिधिवृद्धि
रमइ. ५७०२." नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. मूलतांण, प्र.वि. मूल-गा.५०., पदच्छेद
सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ४-५४२८-३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय.
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१२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जीव कहतां च्यार; अंतिः एक सिद्ध अनेक सिद्ध. ५७०३. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- सोम, (२५.५४११.५, ९४३६-४३).
वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, सं.,मागु., गद्य, आदिः (१) ज्ञानं सारं सर्व (२) ज्ञान छै ते संसार; अंतिः केवलपाली मुक्ति गया. ५७०४. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. ६०, जैदेना., ले.- पं. राजु (गुरु रामकिशन), प्र.वि. ग्रं. १२१६,, ९-व्याख्यान.
*ग्रंथ के पत्र अबरखयुक्त है।, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र,प्र.ले.श्लो. (८७) सर्वमंगल मांगल्यं, (२५.५४११.५,
११४३९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ५७०५. पञ्चाख्यान सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. कडीनगर, ले.- गणि भाग्यविजय,
प्र.वि. मूल-श्लो.४५., (२६४१२, १८-१९४३४-४०). पंचाख्यान वार्तिक, सं., पद्य, आदिः कुश्रितं कुप्रनष्टं; अंतिः कस्य न तुल्यते.
पंचाख्यान वार्तिक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः दक्षिणदेश; अंतिः तिहाथी चाल्या वली को. ५७०६. चारप्रत्येकबुद्ध कथा, संपूर्ण, वि. १७९२, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-९, (२७X१२, १४-१५४३५-४२).
४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., पद्य, आदिः करकण्डू कलिङ्गेषु; अंतिः चत्वारोपि मोक्षगता. ५७०७." प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ-श्रुतस्कन्ध १, प्रतिपूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. १०२, जैदेना., ले.स्थल. भुजनगर, ले.
हरदेवजी छगनजी त्रवाडी, प्र.वि. प्र.पु.-मूल अंश-अध्याय-५., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४११.५, ४४२६-३४). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हे जम्बू एह; अंति:५७०९.” समवायाङ्गसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४११.५,
१५४५२-५८).
समवायाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः वृत्तितः समाप्तम्. ५७१०." समाधितन्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८२, श्रेष्ठ, पृ. १३६, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.१०६., संशोधित, (२६४११.५,
१२-१४४३७-४२). समाधिशतक, आ. देवनन्दी, सं., पद्य, आदिः येनात्मा बुध्यतात्म; अंतिः समाधितन्त्रम्. समाधिशतक-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मागु., गद्य, आदिः (१) जिनान् प्रणम्याखिल (२) जिण अनादिकाल की;
अंतिः (१)कृतधीः समाधौ (२)लीलाइ पामिस्यइ. ५७११. उववाइसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७४, श्रेष्ठ, पृ. ६०, जैदेना., प्र.वि. मूल-सूत्र-१८९, ग्रं. १६००., (२५.५४१२, ६
८४५४-५८). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता.
औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मु. राजचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः तेणइ कालि अवसर्पिणी; अंतिः सुख पाम्या थका. ५७१२. उपासकदशाङ्गसूत्र व दशश्रावक यन्त्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, पे. २, जैदेना., (२५.५४१२, ५
७५२-५८). पे.१.पे. नाम. उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-४३अ
उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नाम नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु., गद्य, वि. १६९३, आदिः ते० तेणे का० काले; अंतिः विषे अङ्ग
तिम ज., पे.वि. मूल-अध्याय-१०. पे.२. पे. नाम. श्रावकनी अग्यारप्रतिज्ञा गाथा सह टबार्थ, पृ. ४३अ-४३अ
श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदिः दंसण वय सामाई पोसह; अंतिः चज्जएसमणभूएय.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
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५७१४. नवग्रह पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ( २५x१२, १२-१३x२९-३२).
नवग्रह पूजा, सं., मागु., गद्य, आदिः प्रथम दिवस्ये सुखड; अंतिः दक्षिण दीसे मुकीइ..
पे.वि.
श्रावक ११ प्रतिमा गाथा- बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: प्रथम प्रतिमा निर्मल; अंतिः शेष सर्व साधुनी परे., मूल-गा. १.
५७१५. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४४, श्रेष्ठ, पृ. १४१, जैदेना., ले. मु. सुखलाल, प्र. वि. मूल-गा. ७००, अध्याय- अध्ययन १० चूलिकार (२६.५४११, २-४x२१-२७).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः निच्चला होसु. दशवेकालिकसूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि ६० दुर्गत पडता जीवनइ अंतिः तुजने प्रायश्चित नथी.
(#)
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५७१६." नवपद क्षमाश्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना, दशा वि. विवर्ण- पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी
है, (२५x१२, ११४२८-३४)
नवपद खमासण विचार, प्राहिं., सं., गद्य, आदिः तिहां प्रथम पदै; अंतिः सर्व भेद ३६४६ होय.
५७१८. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, पोसह सज्झाय व देशावगासिक पच्चक्खाण संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३. पे. ३. जैवेना..,
·
(२५.५X१२, १०X२७-३०).
पे.-१. श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मागु., गद्य, (पृ. १आ - ११अ ), आदि: (१) नाणंमि दंसणंमि० (२) विशेषतः श्रावक तणआइ: अंति: मिच्छामि दुक्कडम्
पे. २. पौषध सज्झाय खरतरगच्छीय प्रा. पद्य (पृ. ११अ - १३आ) आदि जगचूडामणिमूओ उसभो; अंतिः उप्पन्नं केवलं नाणं.. पे. वि. गा.३३.
पे.-३. देशावगासिक पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, (पृ. १३आ - १३आ), आदि: अहण्णं भन्ते तुम्हाण; अंतिः ताव अभिगाहो० वोसिरइ.
५७१९. खरतरगच्छीय सप्तस्मरण प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना, पू.वि. छ स्मरण हैं. उवसग्गहर स्तोत्र नहीं है... दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है अल्प (२६४१२, ११४३३-३८).
सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. पद्य आदि अजिअं जिअ सव्वभयं अंतिः
"
,
.
१३
५७२०. दादाजी की अष्टप्रकारी पूजा, सरस्वती अष्टक व ज्ञान के ५१ गुण, संपूर्ण वि. १९२० श्रेष्ठ, पृ. ६. पे. ३. जैदेना,
ले. स्थल. बीकानेर, ले. गङ्गाराम, ( २६४१२, ११४२५-२८).
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पे.-१. पे. नाम. जिनकुशलसूरिजी री अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १-४
जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, वि. १८५३, आदि: स्मृत्वा गुरुपद; अंतिः संस्तुवैः संस्तुतं.
पे. २. सरस्वतीदेवी अष्टक, आ. दयासूरि, मागु, पद्य, (पृ. ४अ-५अ) आदि बुध विमल करणी विबुध अंतिः नीत नवेवी जगपती. पे.वि. गा.९. सं., मागु गद्य (पृ. ५अ-६आ), आदि: श्रीश्रोत्रेन्द्रिय: अंतिः #.
पे. ३. ५१ ज्ञान गुण
"
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५७२१. कल्पसूत्र, संपूर्ण वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना. ले. स्थल. बीकानेर, ले. पं. मेरुकुशल, प्र. वि. ग्रं. १२१६९
-
व्याख्यान, ( २५.५x१२, ११x२६ - २९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य आदि णमो अरिहन्तानं पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि
५७२२. जैनकुमारसम्भव काव्य, संपूर्ण वि. १९५२ श्रेष्ठ, पृ. ३९ जैदेना. प्र. वि. ग्रं. १२२५, सर्ग -११ (२६.५४१२.५, १३४३७
४५)
जैन कुमारसम्भव, आ. जयशेखरसूरि सं., पद्य, आदिः अस्त्युत्तरस्यां अंतिः महाकाव्येयमेकादशः.
५७२३. नन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.- श्रा. रोडुलाल पोरवाड, ( २६.५x१२.५, १५X३८-४१).
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नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से त्तं परोक्खणाणं.
५७२४. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., प्र. वि. मूल- अध्याय - ९२. प्र. पु. - उभय ग्रं.
३००८, (२५४१२५ ७-८३०-३४).
·
अन्तकृदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदि: तेण कालेनं० चम्पा०: अंतिः अयमट्ठे पणते. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: अन्तगड शब्दस्य; अंतिः धर्मकथानी परइ जाणवो.
५७२५. जीवविचार सह टदार्थ, संपूर्ण वि. १८९९ श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. ले. स्थल, पवनासनपुर, पठ. मु. धनराज, प्र. वि. मूल
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"
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
गा. ५१, (२५१२, ५x२९-३२).
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: तीन भुवन रै विषै; अंतिः उद्धर्यो ए विचार.
५७२६. श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७१, मध्यम, पृ. ४४, जैदेना., ले. स्थल विक्रमपुर, ले. पं. महिमारत्नजी (गुरु वा. जैसार खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. १३४१, ग्रं. १६७५ प्र. पु. -मूल-ग्रं. १५५० (२५.५४१२, १५X३८-४४). सिरिसिरिवाल कहा. आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १४२८ आदि अरिहाइ नवपयाई अंतिः वाइज्जन्ता कहा एसा. ५७२७. प्रकरणचतुष्क, विनय कुलक व सङ्ग्रहणी सूत्र, संपूर्ण वि. १९०२ श्रेष्ठ, पृ. २१+१० (१ से १०) ३१ पे ६ जैवेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, ( २६ १२, ११३५-३७). पे. १. जीवविचार प्रकरण आ. शान्तिसूरि प्रा. पद्य (पृ. १अ ४अ) आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि.गा. ५१.
पे. २. नवतत्त्व प्रकरण प्रा. पद्य (प्र. ४अ-६आ), आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय.. ये वि.
-,
गा. ५१.
पे. ३. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा. पथ (प्र. ६आ-८आ), आदि: नमितं चउवीस अंतिः एसा विनति अप्यहिआ.. पे.वि. गा.४०.
पे. ४. लघुसङ्ग्रहणी आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पद्य (प्र. ८आ- १०आ) आदि नमिय जिणं सव्वनुं अंतिः रईया
1
हरिभद्दसूरिहिं., पे.वि. गा. ३०.
"
पे. ५. विनय कुलक, प्रा. पद्य (पृ. १० आ-११अ ), आदि: विनयो जिणसासणे मूलं अंतिः संलेहणा मरणं. पे. वि. गा. १३. पे.-६. बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, (पृ. ११आ-३१अ), आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा
वीरजिण तित्थं पे. वि. गा.३१२.
"
५७२८. चातुर्मासिक व्याख्यान, पूर्ण, वि. १८९८, श्रेष्ठ, पृ. १७-१ (१) = १६, जैदेना., ले. स्थल. सिहोरनगर, ले.- मु. अजयराज,
(२६.५४१२.५. ९४१५-२५).
चातुर्मासिक व्याख्यान *, राज, गद्य, आदि:-; अंतिः पञ्चपरमेष्ठि साखै.
(+)
५७२९. कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ( २६४१२.५, १४४२८-३१).
कल्पसूत्र - पीठिका, संबद्ध, मागु, गद्य, आदि: अज्ञानतिमिरान्धानां अति:
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זי
५७३२. स्तवनवीसी- स्तवन १ से १५, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, (२७x१२.५, १२४३४-३५).
-
विहरमानजिन स्तवनवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि मागु, पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे अंति:५७३३. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण वि. १९०७ श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. ले. स्थल जावरा ले. पं. हर्षसुन्दर (२६४१२, १३४३२-३४). १७ भेदी पूजा, मु. साधुकीर्ति मागु., पद्य, वि. १६१८ आदि भाव भले भगवन्तनी; अंतिः सब लीला सुख साजै. ५७३४. पार्श्वजिन महिम्नस्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. श्लो. ४०+१, (२५. ५x१२, ९-१०X१७-२४).
पार्श्वजिन महिम्नस्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., पद्य वि. १८५७ आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंतिः लिखितो मुमोद भरतः.
,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१५
५७३५. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.- पं. तत्वामृत, (२५४१२, ११४२९-३२).
पाशाकेवली-भाषा*, आधारित, मागु., गद्य, आदिः (१) ॐ नमो भगवति (२) एकसो इग्यारै इण सुकन; अंतिः दर्शन हूवौ
अथवा हुसी. ५७३६. चौमासी देववन्दन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., (२५.५४१२.५, १३-१६४२६-४२).
चौमासीपर्व देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः आदिदेव अलवेसरू; अंतिः#. ५७३७. मानतुङ्गमानवती रास, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., ले.स्थल. वासाग्राम, ले.- मु. राजरतन, प्र.वि.
गा.१०१५, ढाळ-४७,प्र.ले.श्लो. (५१०) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा; (५७४) केड गुडा करी एकठा, (२६४१२.५, १४
१६४३४-३७). मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द
पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. ५७३९. अट्ठाई व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९६६, श्रेष्ठ, पृ. २०+१(९)=२१, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, ले.- पं. कनकसिंह
मुनि(खरतरगच्छ), (२६४१३, १२-१४४३२-३९).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, राज., गद्य, आदिः शान्तीशं शान्ति; अंतिः वाञ्छित सिद्ध हुवै. ५७४०." श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले.स्थल. मकसुदाबाद-अजीम, ले.- मु.
रूपचन्द(पार्श्वचन्दसूरि).प्र.वि. ४प्रस्ताव, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१३, १६x४०-४६).
श्रीपाल चरित्र, मु. जयकीर्ति-शिष्य, सं., गद्य, वि. १८६८, आदिः प्रणम्य सिद्धचक्रं; अंतिः सद्गुरु प्रसादात्. ५७४१. चैत्रपुनम व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमनगर, ले.- मु. विनयसागर, (२७४१२.५,
१३४३०-३२).
चैत्रीपूर्णिमा व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६९, आदिः तीर्थराजं नमस्कृत्य; अंतिः कान्तिरत्न सहायतः. ५७४३. समयसार नाटक की भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२३, जैदेना., प्र.वि. गा.७२७, (२४.५४१४, १९-२०x१२-१७).
समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९३, आदिः करम भरम जग तिमिर; अंतिः नाममइ
परमारथ विरतन्त. ५७४४. दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५०., (२५.५४१२.५,
६४३७-३९). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदिः देवाहिदेवं नमिऊण; अंतिः सूरि खमउ तेणं.
दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः देवाधिदेव श्रीमहावीर; अंतिः ते आचार्य खमज्यो. ५७४९. सत्तरभेदीपूजा विधि सहित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., (२३.५४१३.५, १२४३०-३३).
१७ भेदी पूजा, मु. साधुकीर्ति, मागु., पद्य, वि. १६१८, आदिः भाव भले भगवन्तनी; अंतिः (१)सब लीला सुख साजै
(२)साधु भक्ति कीजे. ५७५१. स्तोत्र, सज्झाय, स्तवन, आरती व छन्द सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ६, पे. ७, देना., प्र.वि. अशुद्ध पाठ,
प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पत्रांक नंबर किसी ने पेन्सील से लिखा है. सही पत्रांक नंबर नहीं है. पत्र ३ और ४ के
बीच का पत्र नहीं है., (२५४११.५, ११-१४४१९-२३). पे.१. भवानी स्तोत्र, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१आ, संपूर्ण), आदिः कीरपाली काली तु कर; अंतिः चरणमर लगनीया. पे.२. जीव सज्झाय, मु. लाभ, मागु., पद्य, (पृ. २अ-३अ, संपूर्ण), आदिः सीमरीय सरसत सामणीजी; अंतिः दान तणे
परमाण रे जी., पे.वि. गा.१४. पे..३. पार्श्वजिन स्तवन-चिन्तामणि, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदिः आणि मनसुध
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आसता देव; अंतिः कहे सुख भरपुर., पे.वि. गा.७. पे.-४. आदिजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ-, अपूर्ण), आदिः ऋषभ जिणन्द जुहारीय; अंति:-, पे.वि. अंत के
पत्र नहीं हैं. गा.४ अपूर्ण तक है. पे.५. देवी आरती, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण), आदिः मङ्गल की सेवा सुण; अंतिः#., पे.वि. गा.८. पत्रांक ५आ
पूर्णतया रिक्त है. पे.६. कर्मरेखा लावणी, मूलचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५अ, संपूर्ण), आदिः मूलचन्द श्वेताम्बर; अंतिः करो भव लाख
चतुराई., पे.वि. गा.१. पे:७. अम्बिकादेवी छन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-६आ-, अपूर्ण), आदिः सदा पूर्णं ब्रह्मांड; अंतिः-,पे.वि. आगे का पत्र नहीं
है. गाथा ७ तक है. ५७५२. भगवतीसूत्रे- विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-२(१ से २)=९, जैदेना., (२६४१२.५, ७-१६४३४-४३).
भगवतीसूत्र-विचार सङ्ग्रह', संबद्ध, मागु., गद्य, आदि:५७५३. बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., (२७x१२.५, २९-३६४७-१२).
बोल सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः#; अंति:#. ५७५७. मौनएकादशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.- पं. डुङ्गरविजय, प्र.वि. मूल-श्लो.१६३.,
(२६.५४१३.५, ५४३०-३३). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनन्दिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदिः अन्यदा नेमिरीशाने; अंतिः हम्मीरपुरसंश्रितैः.
मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मु. सौभाग्यचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः मौनएकादशीपर्वस्य; अंतिः हमीरपुरने विषे रहीने. ५७७१. वर्षप्रबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. , (२६x१४.५, १०४३२-३६).
वर्षप्रबोध, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, वि. १७३२, आदिः श्रीतीर्थनाथवृषभं; अंति:५७७६. सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन-अध्याय ८ प्राकृतव्याकरण सह स्वोपज्ञ टीका व ढुण्ढिका वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ.
२२३+१(१७७)=२२४, जैदेना., ले.स्थल. जामनगर, ले.- मु. खूबचन्द, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ४ पाद; प्र.पु.-हिस्सामूलसूत्र-१२७९. प्र.पु.-टीका-ग्रं. २१८५.प्र.पु.-टीका-ग्रं. ६३८०. शान्तिनाथ प्रसादात्. ताराचन्द प्रागजी झवेरी, लखमीचन्द हीराचन्द झवेरी तथा हंसराज वेलजी पारेख ने मिलकर मुनि मोहनविजयजी को यह प्रति वहोरायी.,
त्रिपाठ, (२९x१४, १-९४३१-४०). प्राकृत व्याकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः अथ प्राकृतम् बहुलम; अंतिः संस्कृतवत्सिद्धम्. प्राकृतव्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः अथ शब्द आनन्त; ___ अंतिः मुनि हेमचन्द्रः. सिद्धहमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टमअध्याय की व्युत्पत्तिदीपिका टीका, गणि उदयसौभाग्य, सं., गद्य, आदिः यस्य
क्रमनमस्कारः; अंतिः निवारणायेत्यर्थः. ५७७७. लोकप्रकाश, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१३-६(१,३१,१२१,१६०,१७५ से १७६)+९(६७,६९ से ७३,७५ से ७६,७८)=२१६,
जैदेना.. पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (३०x१३, १५४४१-४७).
लोकप्रकाश , उपा. विनयविजय , सं., पद्य, वि. १७०८, आदि:-; अंति:५७७८. दशवैकालिकसूत्र सार्थप्रकाश, संपूर्ण, वि. १८६३, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., ले.- मु. चन्द्रमुनि, प्र.वि. खण्ड-सज्झाय-११,
(२६.५४१४, १२-१३४२८-३०). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, संबद्ध, मागु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंतिः गायो सकल
जगीसे रे. ५७८१.” समेतशिखर रास, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. बालुचर, ले.- ऋ. गुलाबचन्द, प्र.वि. ग्रंथ रचना
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
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के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२७X१३.५, १३-१५४४५-४६). सम्मेतशिखरतीर्थ रास, मु. बालचन्द, मागु., पद्य, वि. १९०७, आदिः वान्दी वीस जिनेसरू; अंतिः भणतां
मङ्गलमालजी. ५७८२. चतुर्मासिकपर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., (२७.५४१३, १३-२१४४३-४८).
चातुर्मासिक व्याख्यान, राज., गद्य, आदिः श्रीपाश्र्वं सुख; अंतिः दुक्कडं होज्यो. ५७८४. उत्तराध्ययनसूत्र सह सूत्रार्थदीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९७-१३१(१४७,१८९,४३२ से ५१६,६१७ से
६६०)+३(१४३,१८७,२२५)=६६९, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., (२८x११.५, ९-११४२७-३४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८पू, आदिः अर्हन्तो ज्ञानभाजः; अंतिः
__ महतामपीत्युक्तेः. ५७८६.” नवपदपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९६२, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. अजीमगंज, ले.- पं. सत्योदय मुनि, दशा वि.
अक्षर फीके पड गये हैं, (२५.५४१३, १५४३१-४०). नवपद पूजाविधि, सं.,मागु., पद्य, आदिः नवपद मण्डल विधि; अंति: देव प्रसीद परमेश्वर. ५७८७. कालकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. मलसीसर,ले.- पं. हेमचन्द्र (गुरु गणि
ज्ञाननिधान), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ग्रं. ४५१, (२५.५४११.५, १२-१६४३२-३८).
कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., प+ग, वि. १६६६, आदिः प्रणम्य श्रीगुरुं; अंतिः सङ्घः प्रवर्त्तताम्. ५७८८. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- पं. तत्वामृत, (२६४१२.५, १४४३३-३७).
पाशाकेवली-भाषा* , आधारित, मागु., गद्य, आदिः (१) ॐ नमो भगवति (२) एकसो इग्यारै इण सुकन; अंतिः दर्शन हूवौ
अथवा हुसी. ५७९१. बुढला री ढाल, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. ढाल-२२, (२४.५४१२, १४-१५४२३-२५).
बुढ़ापा रास, मु. चन्द, राज., पद्य, वि. १८३६, आदिः दयाज माता वीनवु; अंतिः सुणौ कलियुग निसाणी. ५७९२. विदग्धमुखमण्डन, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. श्रीनगर, ले.- ऋ. जिनदत्त, प्र.वि. ४ परिच्छेद,
(२६.५४१२, ११४३७-३९).. विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदिः सिद्धौषधानि भवदुःख; अंतिः मेकान्त मदनोत्तरम्. ५७९३. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना., ले.स्थल. अहिपुर, प्र.वि. मूल-अध्याय
अध्ययन१०; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ५०००., (२७४१२.५, ६-१५४३६-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः तुज प्रतै कदै छइं. ५८००. अट्ठाई व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., (२६४१२, ११४४४-४६).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, राज., गद्य, आदिः शान्तीशं शान्ति; अंतिः वाञ्छित सिद्ध हुवै. ५८०२. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, कथा व जन्मकुण्डली, अपूर्ण, वि. १९४५, श्रेष्ठ, पृ. ५२-२३(१ से
२२,२५)+१(३५)=३०, पे. २, जैदेना., ले.- पं. राजसोम, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४१२.५, ११
१२४३७-४२). पे.-१.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, पृ. २३आ-५२आ, संपूर्ण
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः लक्ष्मी स्वयंवर वरै.,
पे.वि. मूल-श्लो.४४. मन्त्रयुक्त.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
"
पे. २. वारभवन विचार, सं. पद्य (पृ. ५२आ-५२आ अपूर्ण) आदि लग्नस्थितो दिनकर अंति, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
५८०३. अष्टाह्निकामहोत्सव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., ले. स्थल. बम्बई, ले. - पं. उदयविजय, पठ.- मु. रूपविजय, ( २६.५X१२, ६३०-४७).
पर्युषणाष्टानिका व्याख्यान, मु. नन्दलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदिः स्मृत्वा पार्श्व; अंतिः नन्दहेतुः सकामान्. अष्टानिका महोत्सव-टबार्थ, राज, गद्य, आदिः श्रीपार्श्वनाथजी नै; अंतिः धर्म मे ऋषभ तुल्य.
५८०६.” ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९- १ ( २ ) = ८, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६ ११.५, ६×३३-३७).
"
ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेनं० चम्पाए: अंति:ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः
५८०७. मौनअग्यारस कथा संपूर्ण वि. १८४७ श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना. ले. स्थल नागोर ले. मु. गुमानचन्द, ( २६४११.५, १२
,
7
१३X२७-३४),
मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., पद्य, आदि सिरिवीरं नमिऊण अंतिः विषै सकल सुख भोगवी.
५८०८. आबू व सहस्रकूट पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९ पे. २. जैदेना.. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५४१२.५. १४X३६-३९).
पे.- १. अर्बुदगिरितीर्थ पूजा, मु. मोहन, मागु., पद्य, वि. १९४०, (पृ. १अ - ६अ, संपूर्ण), आदि: श्रीजिनवर आराधियै; अंतिः मुनि० प्रेमसु गावै.
पे. २. सहस्रकूट पूजा, भु. सुमति, सं. मागु, पच (प्र. ६अ ९अ, अपूर्ण), आदि: श्रीजिनवर प्रणमी अंति:, पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, ध्वजपूजा- गाथा १ तक लिखा है.
५८१०.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६५, मध्यम, पृ. ४५, जैदेना., प्र. वि. मूल- अध्याय १० अध्ययन., युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (२६४१२.५, ५-६४३७-४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बे दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) ध० दुर्गत पडता जीवनइ; अंतिः छे तेम हुं कहूं
टिप्पण
छु.
,
५८११.” दानादि कुलक सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १०८ + २ (२८ से २९) = ११०, जैदेना, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दशा वि. विवर्ण- पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है अल्प (२६.५x११.५, १६-२०x४४-५१). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य आदि परिहरिय रज्जसारो; अंति
दानशीलतपभावना कुलक- टीका, सं., गद्य, आदि: महावीरं नमस्कृत्य; अंति:
-
५८१२." कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. २१४, जैदेना. ले. स्थल. बीकानेर, ले. मु. आणन्दविनय (गुरु मु. सत्यसौभाग्य, बृहत्खरतरगच्छ गच्छा. आ. जिनहर्षसुरि (गुरु आ जिनदेवसूरि,
बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत प्र. वि. सूत्रपाठ प्रतिकात्मक लिखा है. अबरख युक्त संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र, (२५X११, १३४३३- ४०).
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कल्पसूत्र- कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य वि. १८वी आदिः श्रीवर्द्धमानस्य अंतिः कल्पसूत्रस्य
"
चेमाम्.
मूल
५८१३. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. १४४, जैदेना., ले. स्थल. बीकानेर, प्र.वि. ९-व्याख्यान.प्र.पु.-सर्वग्रं. ९०००. सामाचारी- २६ तक मूलपाठ लिखा है. वाचना-११, (२५.५x१२, १२-१६x२८-३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः #.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
कल्पसूत्र-बालावबोध', मागु.,राज., गद्य, आदिः महावीर प्रणमुं सदा; अंतिः श्रीसङ्घ वर्तमान. ५८१५. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, पृ. १९७-१०(१ से १०)=१८७, जैदेना., ले.स्थल.
बीकानेर, ले.- चनजी,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. प्र.पु.-सर्वग्रं. ७०००., पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. जिनदास श्रावक
की कथा से है., (२६४१२, १३४३३-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि.
कल्पसूत्र-बालावबोध , मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंतिः (१)भणी उपदेश देवू छु (२)प्रवो छै. ५८१६." कल्पसूत्र का बालावबोध- १ से ७ व्याख्यान, प्रतिपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. १४२+१(१०९)=१४३, जैदेना., प्र.वि.
पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. ऋषभदेव निर्वाण वाचना-९ तक है., (२५४१२.५, १५४३६-४१).
कल्पसूत्र-बालावबोध', मागु.,राज., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति:५८१७." प्रचवनसारोद्धार व दुहो, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. १३१, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. जैसलमेरु, प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, (२४४१२, १०x२६-२९). पे.-१. प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, (पृ. १अ-१३१आ), आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंतिः
नन्दउ बहु पढिज्जन्तो., पे.वि. गा.१६१०. पे.२. औपदेशिक दूहा* , प्राहिं., पद्य, (पृ. १३१आ-१३१आ), आदि: पढण गुणण कविचातुरी; अंतिः गगन चढन
मुश्किल.,पे.वि. गा.१. ५८१९." कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१-१(७५)+२(७७ से ७८)=८२, जैदेना.,
प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. सातवीं वाचना प्रारंभिक कुछेक अंश तक
है., (२५४१२, ११-१२४३७-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिः
कल्पसूत्र-बालावबोध', मागु.,राज., गद्य, आदिः अज्ञान तिमिरान्धानां; अंति:५८२०. कल्पसूत्र व कल्पसूत्र स्तुति, पूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. ५३-२(११,३८)-५१, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि.
___ मूल-ग्रं. १२१६., (२५४१०.५, ११-१२४३४-४१). पे.-१. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (पृ. १अ-५३आ, पूर्ण), आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ ___त्ति बेमि., पे.वि. ग्रं.१२१६. पे..२. पे. नाम. कल्पसूत्र स्तुति, पृ. ५३आ-५३आ, संपूर्ण
___ कल्पसूत्र-स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदिः अर्हन्मूलः सुधर्मादि; अंतिः दानाद्यो नीरपूरै., पे.वि. श्लो.१. ५८२३. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना., ले.- पं. तत्वामृत, प्र.वि. ग्रं. १२१६, अध्याय-८-व्याख्यान, पदच्छेद
सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२५.५४११.५, ११४३०-३४).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ५८२७. प्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति, स्तोत्र व स्तवनादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. ७५, पे. ९८, जैदेना., ले.स्थल.
वालूचर, ले.- पं. आनन्दविनय, पठ.- श्रा. लाभू, (२६४१२, १३४३२-३९). पे.-१. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग, आदिः णमो अरिहन्ताणं; अंतिः करेमि
काउसग्गं. पे.२. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः महीमण्डणं; अंतिः देहि मे सुद्धनाणं., पे.वि. गा.४. पे.-३. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण), आदिः पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च; अंतिः सिद्धायिका त्रायिका.,
पे.वि. श्लो.४.
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२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.४. विहरमान २० जिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः पञ्चविदेह विषय; अंतिः जण मनवञ्छित
सारै., पे.वि. गा.४. पे.५. पार्श्वजिन स्तुति-पलाङ्कित जेसलमेरमण्डन, सं., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः शमदमोत्तमवस्तुमहापणं;
अंतिः सा जिनशासनदेवता., पे.वि. श्लो.४. पे.६. पार्श्वजिन स्तुति-पलबन्ध, सं., पद्य, (पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण), आदिः श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्., पे.वि.
श्लो.४.
पे.-७. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण), आदिः हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंतिः शस्त निजाघः., पे.वि.
श्लो.४.
पे..८. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण), आदिः यदह्रिनमनादेव देहिन; अंतिः नित्यं मम मङ्गलेभ्यः.,
पे.वि. श्लो.४. पे.-९. महावीरजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८अ, संपूर्ण), आदिः बालपणे डाबो पाय; अंतिः काज चढइ प्रमाणइ.,
पे.वि. गा.४. पे.-१०. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण), आदिः अविरलकमलगवलमुक्ताफल; अंतिः देवी
श्रुतोच्चयम्., पे.वि. श्लो.४. पे.-११. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमण्डन, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः वरमुक्तियहार सुतार; अंतिः सुहाणि
कुणे सुसया., पे.वि. गा.४. पे..१२.२४ जिन स्तुति, अप., पद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः भरहेसर कारियदेवहरे; अंतिः विगणंतु
अणंतदहंसगुणा., पे.वि. गा.२. पे.-१३. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण), आदिः वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवी दद्यात्सौख्यम्., पे.वि.
श्लो.१. चार बार बोली जानेवाली स्तुति. पे.१४. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९अ, संपूर्ण), आदिः चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंतिः
जीवित जनम प्रमाण., पे.वि. गा.४. पे.१५. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण), आदिः अश्वसेन नरेसर; अंतिः कलत्र
बहु वित्त., पे.वि. गा.४. पे.-१६. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ९आ-९आ, संपूर्ण), आदि: अरस्य प्रवज्या; अंतिः प्लवः क्षितौकल्याणा.,
पे.वि. श्लो.४. पे:-१७. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबन्ध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण), आदिः → दें कि धपमप;
अंतिः दिशतु शासनदेवता., पे.वि. श्लो.४. पे:१८. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ, संपूर्ण), आदिः ऋषभनाथ भनाथनिभानन; अंतिः तनुभातनु भारती.,
पे.वि. श्लो.४. पे.-१९. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ, संपूर्ण), आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय; अंतिः कूष्माण्डी कमलेक्षणा.,
पे.वि. श्लो.४. पे.२०. दीपावलीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण), आदिः पापायां पुरि; अंतिः
शार्दूलविक्रीडितम्., पे.वि. श्लो.४. पे:२१. शान्तिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदिः देवदेवाधिपैः सर्वतो; अंति: यच्छताद्वस्सदा., पे.वि.
श्लो .४. पे.२२. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११अ, संपूर्ण), आदिः मुरति मनमोहन कञ्चन;
अंतिः इम श्रीजिनलाभसूरिन्द., पे.वि. गा.४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२१
पे..२३. नेमिजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः गिरनार सिहरि पर; अंतिः ___ आस फले सुजगीस., पे.वि. गा.४. पे.२४. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदिः निरुपम सुखदायक जगनाय;
अंतिः श्रीजिनलाभसूरिन्दाजी., पे.वि. गा.४. पे:२५. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण), आदिः वलि वलि हुं ध्यावं; अंतिः
कहै जिनलाभसुरीन्द., पे.वि. गा.४. पे:२६. नेमिजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः सुरअसुरवन्दितपाय; अंतिः करो ते अम्बा देवीए.,
पे.वि. गा.४. पे.२७. शत्रुजयतीर्थ स्तुति-शत्रुञ्जयमण्डन, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण), आदिः
श्रीशत्रुञ्जमण्डण; अंतिः तुम्ह पाय सेवता., पे.वि. गा.४. पे.२८. चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः सेत्रुञ्जगिर नमीयै;
अंतिः श्रीजिनलाभसुरिन्द., पे.वि. गा.४. पे.२९. नमस्कारमाहात्म्य श्लोक, सं., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ, संपूर्ण), आदि: नमस्कार समं मन्त्रं; अंतिः न भूतो न
भविष्यति.,पे.वि. श्लो.१. पे.-३०. अजितजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः विश्वनायक लायक; अंतिः
होज्यो जय जयकारी., पे.वि. गा.४. पे.३१. सम्भवजिन स्तुति, आ. जिनहर्षसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः मनमोहन मूरति सुन्दर; अंति:
प्रणमौ भाव अपार., पे.वि. गा.४. पे.-३२. शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण), आदिः त्रिभुवन जिन नायक; अंतिः
श्रीजिनलाभसूरिन्द., पे.वि. गा.४. पे..३३. धर्मजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१३आ, संपूर्ण), आदिः मूरति मन हरणी जाणै; अंतिः
श्रीजिनलाभसूरिन्द., पे.वि. गा.४. पे..३४. समवसरण स्तुति, मु. जयत, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण), आदिः मिलि चौविह सुरवर; अंतिः पामै ___ जयत० सुनाणी., पे.वि. गा.४. पे.-३५. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तुति, आ. जिनसौभाग्यसूरि, सं., पद्य, (पृ. १४अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः श्रीसम्मेतगिरो; अंतिः
करोतु सुखमव्ययम्., पे.वि. श्लो.४. पे.-३६. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, (पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण), आदिः संसार विसम सायर भवजल; अंतिः तरंति ते
भवसलिलरासिं., पे.वि. गा.३४. पे.-३७. सन्थारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण), आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: वन्दामि जिणे
चउवीसं., पे.वि. गा.२४. पे.३८. पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, (पृ. १६अ-१८आ, संपूर्ण), आदिः चत्तारि मङ्गलं; अंतिः वन्दामि जिणे
चउवीसं. पे.-३९. वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १८आ-२०आ, संपूर्ण), आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धे; अंतिः वन्दामि जिणे
चउवीसं.,पे.वि. गा.५०. पे.-४०. पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, प्रा., पद्य, (पृ. २०आ-२१आ, संपूर्ण), आदिः जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः
उप्पन्नं केवलं नाणं., पे.वि. गा.३३. पे:४१. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. २२अ-२३आ, संपूर्ण), आदिः उग्गए सूरे नमोक्कार; अंतिः वत्तियागारेणं
वोसिरइ.
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२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-४२. शान्तिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण), आदिः शान्तये शान्तिकामाय; अंतिः पापशान्तिर्भवेदपि.,
पे.वि. श्लो.३. पे.-४३. आदिजिन नमस्कार, सं., पद्य, (पृ. २४अ-२४अ, संपूर्ण), आदिः वन्दे देवाधिदेवं तं; अंतिः नाथ मम भूयात्
भवेभवे., पे.वि. श्लो.३. पे.-४४. पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. २४अ-२४अ, संपूर्ण), आदिः अमरतरु कामधेनु; अंतिः सिद्धिं कुणसु पहु पा.,
पे.वि. गा.३. पे.-४५. पार्श्वजिन स्तोत्र-वाराणसी, प्रा., पद्य, (पृ. २४अ-२४अ, संपूर्ण), आदिः चित्तबहुलाइ चविउं; अंतिः विहुयसे
बोहिलाभम्मि., पे.वि. गा.३. पे.४६. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण), आदिः त्रिभुवन जन तारण; अंति:
बोधन वासरेस., पे.वि. गा.७. पे.-४७. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. २४आ-२४आ, संपूर्ण
सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदिः उसभस्सय पारणए; अंतिः भरहे साहू न सीयन्ति., पे.वि. गा.५. पे.-४८. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानन्दसूरि?, सं., पद्य, (पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण), आदिः इन्द्रभूतिं वसुभूति; अंतिः
लभन्ते नितरां क्रमेण., पे.वि. श्लो.१०. पे.-४९. तीर्थवन्दना चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण), आदिः सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः सततं
चित्तमानन्दकारि., पे.वि. श्लो.९. पे.-५०. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. कुशल, सं., पद्य, (पृ. २६अ-२६अ, संपूर्ण), आदिः ॐ ह्रीं श्रीं धरणो; अंतिः नमामः कुशलं
लभामः., पे.वि. श्लो.५. पे:५१. पार्श्वजिन स्तव-फलवर्द्धि, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २६अ-२६अ, संपूर्ण), आदिः ॐ मम हरओ जरं मम; ___ अंतिः कुणउ पास जिणो., पे.वि. गा.३. पे.-५२. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कमलरत्न, प्रा., पद्य, (पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण), आदि: नमिय सुरासुर कोडी;
अंतिः पासजिणो वञ्छियं कुणह., पे.वि. गा.५. पे.५३. पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. २६आ-२६आ, संपूर्ण), आदिः ॐ ह्रीं श्रीं पार्श; अंतिः मे वाञ्छितं नाथ.,
पे.वि. श्लो.५. पे:५४. पंचजिन बृहत्स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २६आ-२७आ, संपूर्ण), आदि: जय जय जगदानन्दन जय; अंतिः बोधिलाभाय
सन्तु., पे.वि. श्लो.२६. पे.-५५. महावीरजिन वृद्धस्तवन, आ. अभयसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २७आ-२८आ, संपूर्ण), आदिः जइज्जा समणे भयवं;
अंतिः पढउ कयं अभयसूरीहिं., पे.वि. गा.२२. पे.५६. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., पद्य, (पृ. २८आ-२८आ, संपूर्ण), आदिः धर्ममहारथसारथिसारं; अंतिः
यूयमखण्डम्., पे.वि. श्लो.५. पे.-५७. पे. नाम. करहेटक पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २९अ-२९अ, संपूर्ण ___ पार्श्वजिन स्तवन-करहेटक, सं., पद्य, आदिः आनन्दभंदकुमुदाकर; अंतिः यदि मेरुधीरम्., पे.वि. श्लो.५. पे.-५८. पे. नाम. श्रृङ्खलाबद्ध स्तवन, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-श्रृङ्खलाबन्ध, मु. जैनचन्द्र, सं., पद्य, आदिः सर्वदेवसेवितपदपद्म; अंतिः मुक्तालतावाङ्मुदे.,
पे.वि. श्लो.७. पे.-५९. पार्श्वजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, (पृ. २९आ-२९आ, संपूर्ण), आदिः सदानीलगात्रं; अंतिः वल्लभः
सर्वदा स्यात्., पे.वि. श्लो.७. पे..६०. जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. रत्नसोम, सं., पद्य, (पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण), आदिः देवराजपुरमण्डनमाप्त; अंतिः
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२३ रत्नसोम समसद्यशोभरम्., पे.वि. श्लो.९. पे.६१. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जैनचन्द्र, सं., पद्य, (पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण), आदिः अविचललक्ष्मीविमल; अंति: जैनचन्द्र
श्रियम्., पे.वि. श्लो.७. पे..६२. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिन्तामणि, सं., पद्य, (पृ. ३०आ-३१आ, संपूर्ण), आदिः किं कर्पूरमयं सुधारस; अंतिः बोधिबीजं __ददातु., पे.वि. श्लो.११. पे.-६३. पार्श्वजिन लघुस्तवन, सं., पद्य, (पृ. ३१आ-३१आ, संपूर्ण), आदिः भजेश्वसेननन्दनं; अंतिः सुजैनधर्मवर्द्धनम्.,
पे.वि. श्लो.५. पे.६४. नमस्कार महामन्त्र स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, राज., पद्य, (पृ. ३१आ-३३अ, संपूर्ण), आदिः किं कप्पत्तरू रे; ___ अंतिः सेवा देज्यो नित्त., पे.वि. गा.१३. पे.६५. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण), आदिः राजते श्रीमतीदेवता; अंति: मेधामाह्वयति
विभवेन.,पे.वि. श्लो.९. पे:६६. शारदादेवी स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण), आदिः प्रथमं भारती नाम; अंतिः हरतु मे दुरितम्., पे.वि.
श्लो.८. पे.६७. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ३४अ-३४अ, संपूर्ण), आदिः सिद्धो विज्जाय चक्की; अंतिः तित्थमेयं नमामि.,
पे.वि. गा.१. पे.६८. पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३४अ-३४अ, संपूर्ण), आदिः अर्हन्तो भगवन्त; अंतिः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्.,
पे.वि. श्लो.१. पे.-६९. सकलकुशलवल्लि चैत्यवन्दनसूत्र, सं., पद्य, (पृ. ३४अ-३४अ, संपूर्ण), आदिः सकलकुशलवल्ली; अंतिः श्रेयसे
पार्श्वनाथः. पे:-७०. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३४अ-३४अ, संपूर्ण), आदिः ब्राह्मी चन्दनबालिका; अंतिः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्.,
पे.वि. श्लो.१. पे.-७१. गौतमस्वामी स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३४अ-३४अ, संपूर्ण), आदिः सर्वारिष्टप्रणाशाय; अंति: गौतमस्वामिने नमः.,
पे.वि. श्लो.१. पे.-७२. जैनकाव्य सङ्ग्रह', मागु., पद्य, (पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण), आदिः#; अंति:#. पे.-७३. ग्रहशान्ति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, (पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण), आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंतिः
ग्रहशान्तिविधि स्तवः., पे.वि. श्लो.११. पे.-७४. साढसतीशनिश्चर मन्त्र, सं., गद्य, (पृ. ३५अ-३५अ, संपूर्ण), आदिः ॐ षां षीं चूं षौं; अंतिः निवारिणे नमः
स्वाहा., पे.वि. श्लो.२. पे.-७५. सरस्वत्यष्टक, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण), आदिः ॐ नमस्त्रिदशवन्दित; अंतिः तेषां __मधुरोज्वलागिरः., पे.वि. श्लो.९. पे.-७६. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३५-३६अ, संपूर्ण), आदिः श्रीचक्रेश्वरी; अंतिः मनो मे ___ सर्वदा सर्वथा., पे.वि. श्लो.१०. पे.-७७. २४ जिन स्तुति-महाप्रभाविक यन्त्र गर्भित, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण), आदिः
सुवर्णवर्णं गजराजराज; अंतिः मोक्षलक्ष्मी निवासः.,पे.वि. श्लो.८. पे.-७८. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, (पृ. ३६आ-३९अ, संपूर्ण), आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख;
अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय., पे.वि. गा.३०. पे.-७९. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, (पृ. ३९अ-४७अ, संपूर्ण), आदिः अजिअं जिअ
सव्वभयं; अंतिः भवे पास जिणचन्द.
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२४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-८०. दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४७अ-४९अ, संपूर्ण), आदिः दुरिअरयसमीरं मोह;
अंतिः सया पायप्पणामो तुह., पे.वि. गा.४४. पे..८१. महावीरजिन स्तव, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, (पृ. ४९अ-५०आ, संपूर्ण), आदि: भावारिवारणनिवारणदारु;
अंतिः दृष्टिं दयालो मयि., पे.वि. श्लो.३०. पे.-८२. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, (पृ. ५०आ-५३आ, संपूर्ण), आदिः
कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४. पे.-८३. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. ५३आ-५६अ, संपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः
समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४. पे:८४. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. ५६अ-५७अ, संपूर्ण), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः सूरिः
श्रीमानदेवश्च., पे.वि. श्लो.१७. पे.-८५. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. ५७अ-५७आ, संपूर्ण), आदिः तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह.,
पे.वि. गा.१४. पे..८६. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५७आ-५८अ, संपूर्ण), आदिः दोसावहारदक्खो
नालिया; अंति: गहा न पीडन्ति., पे.वि. गा.१०. पे.८७. बृहत्शान्ति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., पद्य, (पृ. ५८अ-६०आ, संपूर्ण), आदिः भो भो भव्या श्रृणुत; अंतिः जैनं
जयति शासनम्. पे.८८. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-१ से २ अध्ययन, पृ. ६०आ-६१अ, प्रतिपूर्ण
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति:पे.-८९. पे. नाम. पाक्षिकखामणा, पृ. ६१अ-६१आ, संपूर्ण
क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. पे.९०. पे. नाम. सामायिक के ३२ दोष, पृ. ६१आ-६२अ, संपूर्ण
सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः प्रथम १० मन सम्बन्धी; अंतिः ३२ दुषण जाणने. पे.९१. पे. नाम. मुहपत्ति पडिलेहण के ५० बोल, पृ. ६२अ-६२आ, संपूर्ण
मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के पचास बोल, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः सूत्र अर्थ तत्त्व; अंतिः कायदण्ड परिहरूं. पे.-९२. पे. नाम, अतिचार आलोयणा सूत्र, पृ. ६२आ-६३अ, संपूर्ण
अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, मागु., गद्य, आदिः आजुणा चौपहुर दिवस; अंति: आलोअणमांहि आलोयस्यां. पे.-९३. पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन, सं., पद्य, (पृ. ६३अ-६३अ, संपूर्ण), आदिः श्रीसेढीतटिनीतटे; अंतिः नाथो नृणां श्रिये.,
पे.वि. श्लो.२. पे.-९४. पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, प्रा., पद्य, (पृ. ६३अ-६३अ, संपूर्ण), आदिः चउक्कसायपडि; अंतिः पासु पयच्छउ वञ्छिउ.,
पे.वि. मूल-गा.२. पे..९५. आदिजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ६३अ-६३अ, संपूर्ण), आदि: जयजय त्रिभुवन; अंतिः अन्तरगतिगामी., पे.वि.
गा.३. पे.-९६. सीमन्धरजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ६३अ-६३अ, संपूर्ण), आदिः पूर्व विदेह विराजता; अंतिः नित प्रति करूं
प्रणा., पे.वि. गा.१. पे.-९७. पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, (पृ. ६३अ-७३आ, संपूर्ण), आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे.-९८. पे. नाम. धर्मोपदेश श्लोक सङ्ग्रह, पृ. ७३आ-७५आ, संपूर्ण व्याख्यान सङ्ग्रह', सं.,मागु., गद्य, आदिः देवपूजा दयादानं; अंतिः तम्हा धम्मायरं कुणह.,पे.वि. प्र.पु.-मूल
श्लो .३४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२५
५८२९. द्वादशव्रत टीप, संपूर्ण, वि. १८३७, श्रेष्ठ, पृ. ७४, जैदेना., ले.स्थल. अजीमगंज, (२६.५४१२.५, १५४४२-५०).
१२ व्रत टीप, गणि उदयसागर, राज., गद्य, आदिः सदा सिद्ध भगवान के; अंतिः लक्ष्मी निरन्तर वरै. ५८३०. ज्ञानपञ्चमी व चैत्रीपूनम व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, (२५.५४१२,
१४४३९-४३). पे.-१. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, सं.,मागु., गद्य, (पृ. १अ-४अ), आदिः ज्ञानं सारं सर्व; अंतिः प्रपाल्य मुक्तिं गतः. पे..२. चैत्रीपूर्णिमा व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६९, (पृ. ४अ-६आ), आदि: तीर्थराजं नमस्कृत्य; अंतिः सदा
श्रेयो भवतु. ५८३२. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले.- मु. ठाकरसी माहात्मा;
मु. गणेश महात्मा, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०अध्ययन. महात्मा गणेश ने १९५७ बिकानेर में टबार्थ लिखा., (२५४१२.५,
६४३९-४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः धर्मरूपीओ मङ्गलिक; अंतिः शिष्य प्रति कह्यो. ५८३३. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना.,प्र.वि. संबद्ध-गा.५०. टिप्पण रूप प्रारंभ में
चातुर्मासिक कर्तव्य व अतिचार का उल्लेख अन्त में दिया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४१२,
४४४१-४२). वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धे; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं.
वन्दित्तुसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वान्दि सर्व सिद्ध; अंतिः चतुर्विंशतिजिन. ५८३४. अनित्यभावना व कालाभेरु मन्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., (२६४१२, ११४२६-३१).
पे.-१. अनित्य भावना, राज., गद्य, (पृ. १अ-९अ), आदिः अनित्यानि शरीराणि; अंतिः मङ्गलिकमाला सम्पजे. पे.२. पे. नाम. कालाभेरु मन्त्र, पृ. ९आ-९आ
__ मन्त्र-तन्त्र-यन्त्र सङ्ग्रह*, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, आदिः#; अंतिः#. ५८३५. कालसत्तरी सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१)=१०, जैदेना.,ले.- पं. सुमतिसागर,प्र.वि. मूल-गा.७२.,
पू.वि. गाथा १ से ३ नहीं हैं., (२६४१२, ४-५४३१-३४). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं.
कालसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः सरुप कांइक ए कहिउ. ५८३६." पर्वकथा व्याख्यान सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, पे. ७, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें,
(२६x११.५, १३४२७-३०). पे.-१. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, (पृ. १अ-८अ), आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; ___ अंतिः शिष्यैरामोदतस्त्वदः., पे.वि. ग्रं.१६५. पे..२. पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेन्द्रसागर, सं., पद्य, (पृ. ८अ-११आ), आदिः ध्यात्वा वामेयमर्हन्; अंतिः शीघ्रं
रचयाञ्चकार., पे.वि. श्लो.७५. पे..३. पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, (पृ. ११आ-१४आ), आदिः अभिनवमङ्गलमालाकरणं; अंति: आनन्दमाला भवतु. पे.-४. दीपावलीपर्व व्याख्यान, सं.,प्रा., गद्य, (पृ. १४आ-२०आ), आदिः जाते वीरजिनस्य; अंतिः विझवणं रायभुवणं वा. पे.-५. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, सं.,मागु., गद्य, (पृ. २०आ-२५अ), आदिः ज्ञानं सारं सर्व; अंतिः प्रपाल्य मुक्तिं गतः. पे.६. कृष्णभक्ति पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. २५आ-२५आ), आदिः वा रे कानां रे झुक; अंतिः गावत है मीठा ताना रे., पे.वि.
गा.३.
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२६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-७. आदिजिन जन्मबधाई पद, मागु., पद्य, (पृ. २५आ-२५आ), आदिः सखि गावो वधाई प्यारी; अंतिः रहो जिनराई
री., पे.वि. गा.५. ५८४१. मछोदर चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२८, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. गा.९४८, ढाळ-३३; प्र.पु.-मूल
गा.१२९९, (२६४११.५, १३-१५४३१-३६).
मछोदर चौपाई, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पोहो ऊठी प्रणमुं; अंति: तेतीसमी ढाल वखाण. ५८४२. दशाश्रुतस्कन्धसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६२, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., प्र.वि. मूल-१० दशा; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ८००.,
(२५.५४१२, ४-७४३५-४२). दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० हवइ; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि.
दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमो० नमस्कार अरिहन्त; अंतिः तिम कहुं . ५८४४. उपासगदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना., ले.स्थल. रूपगढ, ले.- साध्वीजी माना (गुरु
साध्वीजी जीउजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., (२७४११.५, ८४३७-४५). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नाम नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव.
उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते० तेणइ का० कालिइ; अंतिः करीनइ उपदेश दीधउ. ५८४६. भववैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८३, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. कुचरा, ले.- साध्वीजी रुक्ष्मा आर्या,
प्र.वि. मूल-गा.१०४., (२६४१२, ७४३३-४०). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ए संसार असार जांणिउ; अंतिः मोक्षरूपीयो धर्म. ५८४७.” कर्मग्रन्थ १-६, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. ६, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन
विभक्ति संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४१२, ११४३४-३६). पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-४आ), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ
देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६०. पे.२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४आ-६आ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं ___ नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-८अ), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं
कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५. पे.४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ८अ-१२अ), आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः
देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८६. पे.५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १२अ-१८अ), आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः
सयगमिणं आयसरणट्ठा., पे.वि. गा.१००. पे.६. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. १८अ-२३आ), आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ., पे.वि.
गा.९२. ५८४८. प्रदेशीराजा के प्रश्न- राजप्रश्नीयसूत्रे, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. ११ प्रश्न, (२६.५४१२, १३४३३
३८). प्रदेशीराजा के प्रश्न-राजप्रश्नीयसूत्रे, मागु., गद्य, आदिः (१) प्रथम हिवे ११ प्रश्न (२) प्रथम जम्बूद्वीप; अंतिः ठामि
सद्गति आण्यो. ५८४९. बोल सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५४१२, १७४४९-५१).
बोल सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः जीव कुं समझावा हेतु; अंति:
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२७
५८५०." छत्रीसी सङ्ग्रह व संस्कृत परिपाटी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ५, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें
____ अंतिम कुछ पत्र, (२५.५४११.५, १५-१६४३२-४०). पे.-१. भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः क्रिया अशुद्धता कछु; अंति: मुनिज्ञानसार मतिमन्द.,
पे.वि. गा.३९. पे.२. आत्मप्रबोधछत्तीसी.मु. ज्ञानसार, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ-४अ), आदिः श्रीपरमातम परम पद; अंतिः ए आतम
छत्तीस., पे.वि. गा.३६. पे.-३. चारित्रछत्तीसी, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-५अ), आदिः ज्ञान धरौ किरिया; अंतिः वाकौ नहि लवलेस., पे.वि. गा.३६. पे.-४. मतप्रबोधछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-६अ), आदिः तप तप तप तप क्यौं; अंतिः रची बुद्ध आधार.,
पे.वि. गा.३७.
पे.-५. जैनधार्मिक परिपाटी, सं., गद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदिः भो त्वया यदुक्तं ; अंतिः समागच्छ पश्चाद्वद. ५८५१.” लघुक्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना.,प्र.वि. गा.२६६, पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत,
___ अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, १२४३५-३९). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमयं
पसिद्धं. ५८५२. नन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६४, मध्यम, पृ. १३, जैदेना., ले.- नारायण शर्मा, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें,
(२६.५४११.५, १५४५४-५८).
नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं परोक्खणाणं. ५८५३." दशाश्रुतस्कन्धसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., ले.स्थल. सुरत, प्र.वि. मूल-१० दशा.,
टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११.५, ७४३१-४३). दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः सुयं मे आउसं तेण०; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि.
दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सु० सांभल्यो मे० मइ; अंतिः तिम कहुं छु. ५८५५.” वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले.- पं. आनन्दविनय,प्र.वि.
मूल-गा.१०५., पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ४४२७-३०). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसारने विषे सार; अंतिः स्थानं मोक्षलक्षणम्. ५८५७.” कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. सतट्ठ
भव गाहणाइ तक है., (२६४१२, ११४३३-३७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः५८५८. उपासकदशाङ्गसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. मुलताननगर, ले.- मु. मयाचन्द्र,
प्र.वि. मूल-अध्याय-१०,ग्रं. ८१२., त्रिपाठ, (२६४११.५, ३-१७४५८-६८). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नाम नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव.
उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १११७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे. ५८५९. रोहिणी व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५१, मध्यम, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. सीरसा, ले.- उपा. कल्याणनिधान,
प्र.वि. मूल-श्लो.१२९., (२६.५४११, ५४३१-३७). रोहिणीतप व्याख्यान , आ. नरेन्द्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७७०, आदि: नत्वा च श्रीमहावीरं; अंतिः देवश्चसूरिकृतम्. रोहिणीतप व्याख्यान-टबार्थ, मु. भक्तिनन्दन, राज., गद्य, आदिः श्रीमहावीर भगवान कु; अंतिः आचार्यस्यौ.
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२८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५८६०." भवभावना, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना.,प्र.वि. गा.५३१, पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत,
टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६.५४११.५, ११४४२-४५).
भवभावना, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः णमिऊण णमिरसुरवर; अंतिः कीरउ अलङ्कारो. ५८६१. विजयचन्द्र चरित्र, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-२(१ से २)=३२, जैदेना., पू.वि. गा.५० अपूर्ण से है., (२६.५४११,
१३४४७-५२). विजयचन्द्रकेवली चरित्र, मु. चन्द्रप्रभ महत्तर, प्रा., पद्य, वि. ११२७, आदि:-; अंतिः सिरिविजयचन्दस्स. ५८६३. देवराजवच्छराज रास व नेमिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १६१४, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. २, जैदेना., ले.- मु. देवशील,प्र.वि.
___ मूल-गा.२९९., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२६४११.५, १३४३९-४४). पे.-१. देवराजवच्छराज रास, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १६वी, (पृ. १अ-१९अ), आदिः सकल जिणवर सकल __ जिणवर; अंतिः नवनिधि ते घरबारि., पे.वि. ग्रं.६१२, खण्ड-६. पे..२. नेमिजिन गीत, मु. सोमविमल, राज., पद्य, (पृ. १९आ-१९आ), आदिः मन्त तन्त यन्त कुछ; अंतिः उन्ह की
आस्या पुहुती., पे.वि. गा.३. ५८६४. रत्नसारकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना.,प्र.वि. गा.२९९, (२५.५४११.५, ११४४२-४९).
रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १५८२, आदिः सरसति हंसगमनि पय; अंति: आणी बुद्धि प्रकाश
५८६५. विवेकमञ्जरी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.१४४, (२७४११, १३-१४४४०-४६).
विवेकमञ्जरी, श्रा. आसड कवि, प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदिः सिद्धिपुरसत्यवाहं; अंतिः वसुजलहि० वरिसम्मि. ५८६६. श्रीपालराजा रास व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. ५३, पे. २, जैदेना., ले.- साध्वीजी चैनाजी (गुरु साध्वीजी
फुलाजी), (२६४११.५, १६४३१-३९). पे.-१. श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, (पृ. १अ-५३आ), आदिः
कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी., पे.वि. गा.१८२५, खण्ड-४, ढाळ ४१.
पे.२. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ५३आ-५३आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. गा.१. ५८६७. रूपसेन चरित्र, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. मल्लवणकर्णसर, ले.- मु. कनकसेन (गुरु गणि
दयानन्द, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. श्लो.२२४, (२५.५४१२, १६४३६-४०). रूपसेन कनकावती चरित्र चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदिः आरोग्यभाग्याभ्युदय; अंतिः सुकृताय कृता
कथा. ५८६८. दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन १ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२६४१२, १३४३६).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति:५८६९." धर्मध्यान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि.
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. (२६.५४११, ८x२६).
धर्मध्यान लक्षण, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:५८७०. जयतिहुअण स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०. प्र.पु.सर्व-ग्रं. ३५०.,
(२७४११.५, ११४४५-४८). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय.
जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः अत्रायं वृद्ध; अंतिः त्रिलोकलोकश्लाघितः. ५८७१. अक्षरबावनी व पद सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. ५, जैदेना., (२६४११.५, १४४४१-४६).
पे.१. अक्षरबावनी , मु. केशवदास, प्राहिं., पद्य, वि. १७३६, (पृ. १अ-५आ), आदिः ॐकार सदा सुख देत; अंति:
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
केसवदास सदा सुख पावै., पे.वि. गा.६२. पे..२. अक्षरबावनी, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४२, (पृ. ५आ-१०अ), आदिः ॐ अक्षर सार सयल; अंतिः सुगुरू
पाए नमी., पे.वि. गा.५३. पे..३. औपदेशिक पद, मु. केशवदास, प्राहिं., पद्य, वि. १८वी, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः मालव देश नरेस महिपति;
अंतिः रेख टरे नही टारी., पे.वि. गा.२. पे.४. औपदेशिक पद, मु. केशवदास, प्राहिं., पद्य, वि. १८वी, (पृ. १०आ-१०आ), आदिः जा घरि तेल फूलेल; अंतिः
मजूर कुं काहे सतावे., पे.वि. गा.२. पे.५. औपदेशिक पद, मु. बालचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ), आदिः जरा दुर जब लग तब लग; अंतिः दिन
रात आउखो गलत., पे.वि. गा.५. ५८७२. शत्रुञ्जययुगादिजिन विनतीस्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. गा.३५., (२६४१२,
११४३३-३६). आदिजिन विनतीस्तवन-शत्रुञ्जयतीर्थ मण्डन, आ. विजयतिलकसूरि, मागु., पद्य, आदिः पहिलं पणमीय देव; अंतिः
विजयतिलय निरञ्जणो.
आदिजिन विनतीस्तवन-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रथम प्रणमीइ देव; अंतिः विजयतिलकनइं निरञ्जण. ५८७३. गीत, सज्झाय व श्लोक सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. १४, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२६४११.५, १०-११४३७-४०). पे.-१. अनुयाईआ हरियाली, साहा मेहा, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२अ, संपूर्ण), आदिः गोहूं ग्रहीआ हाथि; अंतिः जनम ___ मरणना भय टलइ., पे.वि. गा.२७. पे.२. कर्त्तव्यबोध, सं., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः पश्चात् रजनीयां मे; अंतिः तस्य जन्म निरर्थकम्., पे.वि.
श्लो.११. पे-३. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ-३अ, संपूर्ण), आदिः देखत हुं दुनीआ के; अंति: भणइ पण्डितजन सोई.,
पे.वि. गा.७. पे.-४. आध्यात्मिक जकडी, मु. कवियण, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदिः बहु बोलणा क्या कहीइ; अंतिः
कविअण ते बहु जस पावइ., पे.वि. गा.८. पे.-५.१५ तिथि ७ वार गीत, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदिः प्रथम तिथ परमेश्वर; अंतिः भविक त्रिजग जिन
नायक., पे.वि. गा.५. पे:६. औपदेशिक सज्झाय-निन्दात्याग, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण), आदिः जीवडा दलहु मानव भव; अंतिः
आराधु जिनवाणी रे., पे.वि. गा.९. पे:७. आध्यात्मिक जकडी, साहा मेहा, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदिः सद्दहणा धरम खरउ मनि; अंतिः ____ करीनइ ग्रहसि रे., पे.वि. गा.५. पे..८. मान सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५अ, संपूर्ण), आदिः म करि मोटाई रे मानवी; अंतिः नाटिकडु नाची जाय.,
पे.वि. गा.४. पे-९. औपदेशिक गीत, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण), आदिः एकेन्द्री पूजता; अंतिः गणधर वचने सोई., पे.वि.
गा.४. पे.-१०. आध्यात्मिक जकडी, मु. कवियण, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण), आदिः जिनसु राखु चित्त; अंतिः नाही
तस फिरणा., पे.वि. गा.८. पे.-११. आध्यात्मिक जकडी, मु. कवियण, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदि: काहेकुं कीजइ ध्यान; अंतिः मइ
तु सिद्धि पावइ., पे.वि. गा.५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे.-१२. अक्षर हरिआली, मागु., पद्य, (पृ. ६अ - ६अ, संपूर्ण), आदि: त्रिहुं नारिइं नर; अंतिः ध्यान मन सधि एहनु ए., पे.वि. गा.८.
पे. १३. जीव हरियाली, मागु., पद्य, (पृ. ६आ - ६आ, संपूर्ण), आदि: एक पुरूष अति रूअडउ; अंतिः ते पण्डित जाणीइए., पे.वि. गा. ८..
पे.-१४. कवित्त, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ-, अपूर्ण), आदिः परख एक छइ अति; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं है. ५८७४. चातुर्मासिक व्याख्यान, पूर्ण, वि. १८०८, मध्यम, पृ. १२ - १ ( १ ) = ११, जैदेना., ले. स्थल. विक्रमपुर, ले. पं. रङ्गवल्लभ, प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. २१० प्र.ले. श्लो. (१६६) यावत् जंबूदीवो (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्: (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट (३६७) अक्षरमात्र पदस्वरहीनं, (२५x१२, १८९४०).
चातुर्मासिक व्याख्यान, उपा. समयसुन्दर गणि सं. गद्य वि. १६६५, आदि:- अंति: व्याख्यानम्.
"
५८७५. सङ्ग्रहणी प्रकरण, पूर्ण, वि. १८५५ श्रेष्ठ, पृ. १५-१ (१) १४, जैदेना. ले. स्थल, वागसिणनगर, ले. पं. भाणविजय ( गुरु पं. देवेन्द्रविजय) प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. गा. ३६१. पू. वि. गा. १ से १२ तक नहीं है. प्र. ले. श्लो. (२३) जब लग मेरु अडग है, (२५४११.५. १४४३९).
"
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि:-; अंतिः जा वीरजिण तिथं.
५८७६. धर्मबुद्धिमन्त्री पापबुद्धिराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१ (१) - २०, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. ढाल-१ गाथा १० से ढाल-२८ गाथा १४ तक है., (२५.५x१२, १५x४०).
पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री रास, मु. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १७४२, आदि:-; अंति:
५८७७. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी तक है., ( २४x१२, ५X३०-३५ ).
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प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे. मू. पू. संबद्ध, प्रा. सं., मागु प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति:प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे. मू. पू. - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार होजो; अंति:
श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उवसग्गहरंसूत्र
५८७९. साधुवन्दना व साधुगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२ - ५ ( १ से ४, ६ ) = १७, पे. २, जैदेना., ले. स्थल.
सिद्धक्षेत्र, ले. ठाकर पण्ड्या, (२७x११.५, १०X३१-३६).
-
P
पे. १. साधुवन्दना चौपाई चौवीसजिन ऋ. कुंवरजी मागु पद्य वि. १६२४ (पृ. ५-२२अ अपूर्ण), आदि:-: अंति: वेगी एणी परि पाइयइ., पे. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं.
पे. २. साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मागु., पद्य, (पृ. २२अ - २२आ, संपूर्ण), आदि: सकल देव जिणवर; अंतिः मोक्षसुख निश्चल करी., पे.वि. गा. १५.
·
५८८०. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह अर्थ, नक्षत्रलिङ्ग व उपधान यन्त्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ८, जैदेना.,
(२६४११.५, १५-१७४३६-४०).
पे. १. नक्षत्रलिङ्ग विचार, सं., पद्य, (पृ. १अ - १अ ), आदिः आद्रादौ दसभिर्योषा; अंति:#., पे.वि. श्लो. १.
पे. २. उपधानतम विधि यन्त्र प्रा. मागु. कोष्टक (प्र. १अ १अ ), आदिः #; अंतिः #. पे. ३. पे नाम. आवश्यकसूत्र प्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ, पृ. १आ ११अ - प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे. मू. पू. संबद्ध प्रा. सं. मागु
वञ्छिउ .
""
प+ग, आदि नमो अरिहन्ताणं अंतिः पासु पयच्छउ
प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे. मू. पू. टवार्थ माग गद्य आदि अरिहन्तनइ नमस्कार अंतिः पइछो कही दिउ
वाञ्छित.
पे.-४. संसारदावानल स्तुति- अन्तिमपादपूर्तिमय, सं., पद्य, (पृ. ११अ - ११अ ), आदिः सिद्धि विधत्ते; अंतिः सादरं साधु सेवे, पै. वि. श्लो. ४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे.५. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ११अ-११अ), आदिः श्रीवीरोदितवाचश्च; अंतिः ददतां शिव सम्पदः., पे.वि. __श्लो.१. पे.६. शान्तिजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११अ), आदिः शान्तिजिन शान्ति; अंति: पुण्य प्रभाविका., पे.वि. गा.४. पे.-७. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ-११आ), आदिः आगे पूरव वार निवाणुं; अंतिः कारिज सिद्धि
हमारीजी., पे.वि. गा.४.
पे.-८. औषध सङ्ग्रह* , मागु., गद्य, (पृ. ११आ-११आ), आदिः#; अंतिः #. ५८८१. स्तुतिचतुर्विंशतिका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.२४४४+१, (२६४११.५, ९४३८-४०). जिनस्तुतिचतुर्विंशतिका, गणि मानसागर, मागु., पद्य, वि. १७वी, आदिः समरूं सरसति सामिणी; अंतिः विजयदेव
सुहङ्करा. ५८८२." स्तवन सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ५, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं
हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११, ९४३४-३९). पे..१. जिनभवन ८४ आशातनापरिहार स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. १अ-३अ, संपूर्ण), आदिः सकल सुरासुर प्रणमइ; अंतिः
शिरि बे कर करी., पे.वि. गा.२५. पे..२. वासुपूज्यजिन स्तवन-विनती, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण), आदिः जिननायक पूजीय; अंतिः देव ताहरू
स्वरूप., पे.वि. गा.१३. पे.-३. वचनातिशय स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण), आदिः वन्दीय वीर जिणेसर; अंति: पद दिइ निर्वाणि.,
पे.वि. गा.१२. पे.-४. पार्श्वजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-८आ, संपूर्ण), आदि: विमल कमल सम पढम; अंतिः जोगीसर कर जोडी.,
पे.वि. गा.३३. पे.५.गुरुआशातनापरिहार स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९आ-, अपूर्ण), आदिः गोयम गणहर गुण भण्डार; अंति:
पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१ से १५ तक है. ५८८३. उपमितिभवप्रपञ्चा कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रथम प्रस्ताव अपूर्ण
है., (२६४११.५, ९४३१-३४).
उपमितिभवप्रपञ्चा कथा, गणि सिद्धर्षि, सं., पद्य, वि. ९६२, आदिः नमो नि शिताशेषमहा; अंति:५८८४.' विचार सार-सङ्ग्रहणीरत्न (सङ्ग्रहणीसूत्र ), संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. गा.२७६; प्र.पु.-मूल-ग्रं.
३४५, पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ,
(२६.५४११, १४-१५४५३-५८).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः नन्दओजाजिणमयंलोए. ५८८५. ज्योतिषसार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.२६०, (२६.५४११, १५-१६x४६).
ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः नरचंद्राख्यसुधीप्रवर. ५८८६. भक्तामर स्तोत्र की टीका व टीकार्थ, संपूर्ण, वि. १५४६, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. बेलदाणाग्राम, ले.- मु.
गुणकलश (गुरु आ. कनकप्रभसूरि), (२६.५४११, १२-१४४४१-४७). भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्ये किल; अंतिः तुङ्ग उच्चस्तरम्.
भक्तामर स्तोत्र-टीका का अर्थ, मागु., गद्य, आदिः किल सइ साचइ अहमपि; अंतिः महती करी उच्चस्तर छइ. ५८८७." भासचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- श्रा. चुथा साह, प्र.वि. २४ भास, अशुद्ध पाठ,
(२५.५४११.५, १४-१५४३२-३५). २४ जिन भास, मु. सेवक, मागु., पद्य, आदिः सरसति गजगति काइ दिउ; अंतिः सुख सम्पति बहु ए.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५८८८. पिण्डविशुद्धि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. गा. १०३, ( २६.५ ११.५, ९-१०X३४-३९). पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविन्दविन्दवन्दिय; अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य. ५८८९. सम्यक्तसित्तरी सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. प्र. वि. मूल-गा.190. प्र. पु. उभयग्रं. २२५.. पदच्छेद
"
सूचक लकीरें (२६४११.५, ७४३८-३९).
सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दंसणसुद्धिपयासं; अंतिः दंसणसुद्धिं धुवं लहइ.
सम्यक्त्वसप्ततिका टबार्थ मागु गद्य, आदि सम्यक निर्मलाईनइ अतिः निश्चई हुइ लहइ.
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·
५८९१. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६४३, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना, पठ.- मु. साहा मेहा, प्र. वि. मूल-गा. ६४.,
(२६×११, १२x१७-३०).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि.
गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंतिः श्रीगौतमपृच्छा.
,
५८९२.” हैमलिङ्गानुशासन- आठवां अध्याय, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न वचन विभक्ति संकेत क्रियापद संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२७४१२, ११४४०-४३). हैमलिङ्गानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. पद्य वि. १२वी आदि पुल्लिङ्गं कटणथपममयर अंति
,
7
लिङ्गानाम्.
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५८९३.” सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र. वि. गा. ३१७, पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत,
टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६.५५११५, ११-१२४३१-३४).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं अंतिः जा वीरजिण तित्थं.
(+8)
५८९४. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र भास, अपूर्ण, वि. १६६२, श्रेष्ठ, पृ. १९-२ (१ से २ ) = १७, जैदेना., ले. स्थल. राजपुर, पू.वि. द्वितिय अध्ययन गा.५ से है, (२५.५४१२५, १३४३६-४०).
ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-भास, ऋ. मेघराज, संबद्ध, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः पूगउ मननी आस कि.
५८९५. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टीका, अपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वंदितुसूत्र की टीका गा. ३१ तक है., (२७४११-५, १०४६६-७३).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा., मागु, प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति:
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - टीका, सं. गद्य, आदि नमस्कारः अस्तु इति: अंति:
"
,
५८९७. सुरसुन्दरी चरित्र, संपूर्ण, वि. १६६२, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले. स्थल. राधनपुर, ले. गणि धीरविजय, प्र. वि.
गा.५१०, ढाळ-२१, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प, प्र.ले. श्लो. (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्टं (२६.५X११.५, १३४३४-३८).
सुरसुन्दरी रास, मु. नयसुन्दर मागु पद्य वि. १६४४ आदि आदि धर्मनी करवाए: अंतिः एम भणे आनंदपूरि
५८९९. स्तवन, सज्झाय, बारमासो, स्नात्रपूजा, स्वाध्याय, गीत, कडखोछन्द, सवैया व स्तोत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८१७,
श्रेष्ठ, पृ. २९, पे. ६५, जैदेना., ले. स्थल. पत्तननगर, ( २६१२, १६ - १८३७-४३).
पे. १. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मागु., पद्य, (पृ. १अ - १अ), आदिः वरसे वरसे वचन सुधा; अंतिः सञ्चय समकित छोडी, पे.वि. गा. ९.
पे.-२. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शान्तिकुशल, मागु., पद्य, वि. १६६७, (पृ. १आ-२ आ), आदिः सारद नाम सुहामणुं; अंतिः सेव करता सुख लहइ., पे.वि. गा. ३१.
पे. ३. नेमराजिमती बारमासो, वा देवविजय, मागु पद्य (पृ. २आ-२आ) आदि ब्रह्माणी वर हूं अंतिः नेम जीणेसरने केह्यो, पे.वि. गा. १६.
पे.-४. नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १९वी (पृ. ३अ - ३अ), आदिः गोखे रे बेठी राजुल; अंतिः
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
नमे शुभ युगते रे., पे.वि. गा.९. पे.५. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जगरूप, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः सुजस तुमारो हो; अंतिः सफल फली ___ मुझ आस रे., पे.वि. गा.७. पे.६. नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४आ), आदिः प्रीउडा यादव कुलना; अंतिः बावीसमो
जिनमाहि वसिउ., पे.वि. गा.३२. पे.-७. नन्दिषेणमुनि सज्झाय, कवि श्रुतरङ्ग, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः मुनीवर महिअल विचरइं; अंतिः कवि
श्रुतरंग विनवइ., पे.वि. गा.६. पे.-८. राजिमतीरथनेमि सज्झाय, वा. उदयविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः सोरीयपुरि अति सुन्दर; अंतिः
उदयविजय गुण गाय., पे.वि. गा.१४. पे..९. पार्श्वजिन बारमास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः श्रावण पावस उलयो; अंतिः मुझ पासजी
सम्भरइ., पे.वि. गा.१३. पे..१०. उपधानतप स्तवन, पण्डित प्रेमविजय, मागु., पद्य, वि. १७८५, (पृ. ६अ-७अ), आदिः प्रणमी वीर जिणन्दने;
अंतिः देज्यो मुज सुखदाय., पे.वि. गा.३६, ढाळ-३. पे..११. स्नात्रपूजा सङ्ग्रह', मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ७अ-१०अ), आदि: मुक्तालङ्कार विकार;
अंतिः मिथ्यामत हणीयो रे. पे..१२. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, वि. १७६९, (पृ. १०अ-१२अ), आदिः द्वारिका नयरी;
अंतिः मङ्गलमाला महेमहे जी.,पे.वि. ढाळ-३. पे..१३. आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुञ्जय, मु. प्रेमविजय, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१३अ), आदिः प्रणमु सयल जिणन्द; अंतिः
जिम पामीइ भव पार ए., पे.वि. गा.२३. पे.-१४. नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय , मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ), आदिः यादवजी हो समुद्रविजय; अंतिः
जयो शिवादेवी मल्हार., पे.वि. गा.७. पे.-१५. मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टान्त सज्झाय, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १७९०, (पृ. १३अ-१६आ), आदिः
श्रीजिनवीर नमीकरी जी; अंतिः तस्य घरे कोडि कल्याण.,पे.वि. ढाळ-१०. पे.-१६. आर्द्रकुमार सज्झाय, मु. माणिक, मागु., पद्य, (पृ. १६आ-१६आ), आदिः रे साजनीया रहो रहो; अंतिः माणिक ___ मुनि सुखकार रे., पे.वि. गा.१५. पे.-१७. रोहिणीतप सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. १६आ-१७अ), आदिः वन्दि रोयण विद्या; अंतिः तेहने हर्ष न ___ माय., पे.वि. गा.८. पे-१८. आदिजिन स्तवन-शत्रुञ्जयतीर्थ, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५६, (पृ. १७अ-१७आ), आदिः आदि जिणेसर
वीनती हो; अंतिः त्रिभोवननो आधार., पे.वि. गा.१३. पे:१९. नेमराजिमती स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १७आ-१७आ), आदि: कहिनि सखी हवि किम; अंतिः ते
बोल्युं ते दीधुं., पे.वि. गा.८. पे.-२०. नेमराजिमती गीत, मु. उदयरत्न, राज., पद्य, (पृ. १७आ-१७आ), आदिः सखीरी मोहन वेगिं; अंतिः दीनो
परमानन्द पद पाउ., पे.वि. गा.५. पे.-२१. नेमराजिमती स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १७आ-१८अ), आदिः क्यौं विसरे श्रीनेमि; अंतिः उदयरतन ___कहे एम., पे.वि. गा.४. पे.२२. पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, राज., पद्य, (पृ. १८अ-१८अ), आदिः मुखर्छ जोस्यां पावन; अंतिः कोडि समार्या
काज., पे.वि. गा.५. पे.-२३. पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १८अ-१८आ), आदिः देवमां नगीनो मांहरो; अंतिः
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तुझ पद पङ्कज सेव हो, पे.वि. गा. ७.
पे. २४. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु पद्य ( १८-१८आ) आदि शेत्रुञ्जागढना वासी अंतिः इम कहे उदयरतन करजोड., पे.वि. गा. ५.
पे.-२५. नेमिजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ), आदि: श्रीनेमिजिन तुम्ह; अंतिः मन वञ्छित दान रे., पे.वि. गा. ७.
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पे.- २६. नेमिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-१९अ ), आदि: अरथी हुइ उतावला रे; अंतिः मुगति मझारी रे., पे.वि. गा.६.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे-२७. पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, राज., पद्य, (पृ. १९अ - १९अ ), आदिः थे छो म्हाहरा ठाकुरा; अंतिः पायो सुख साजजी., पे.वि. गा.५.
पे.-२८. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १९अ - १९आ), आदिः पास गोडि प्रभु गाजतो; अंतिः मुझने ते हित आणीनि., पे.वि. गा.३.
पे.-२९. पार्श्वजिन स्तवन- पाटणमण्डण, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १९आ - १९आ), आदिः सेवकनी सुणी राव हो; अंतिः उदयरतन कहे आसिरो, पे.वि. गा. ९.
"
पे. ३०. विमलजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु, पद्य, (. १९आ-२०अ ) आदि भव मांहि हो प्रभु अंतिः मानी लेयो ए वालेसरू., पे.वि. गा.९.
पे. ३१. आदिजिन स्तवन, मु. उदय मागु पद्य (पृ. २०अ २०अ) आदि कोशला नगरीनो राय हो; अंतिः करुणा करुणा करी रे., पे.वि. गा. ५.
पे. ३२. नेमराजिमती स्तवन. मु. हंसरतन मागु, पद्य, (पृ. २०अ २०आ), आदि श्रवण स्यानें आवीयओ अंतिः भली प्रीति निरवाहि., पे.वि. गा.७.
पे. ३३. पे नाम, शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, पृ. २०आ-२० आ
आदिजिन स्तवन, मु. उदय, मागु., पद्य, आदिः शेत्रुञ्जागढ वासि; अंतिः हूं छं ताहरो आसी., पे. वि. गा.५. पे. ३४. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु, पद्य, (पृ. २०-२० आ) आदि मुझनें लागी छिं अंतिः अवसरे आयो काम.. पे.वि. गा. ५.
"
पे - ३५. पार्श्वजिन छन्द-शखेश्वर, मु. उदयरत्न, मागु, पद्य, प्र. २० आ-२१अ) आदि पास शङ्खेश्वरा सार अंति रेख महाराज भीजो., पे.वि. गा.५.
पे: ३६. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु, पद्य, (पृ. २१अ २१अ) आदि प्रभुजी तुमे तो अंति उदयरतन कहि एह वडाई., पे.वि. गा.११.
पे ३७. महावीरजिन स्तवन. मु. उदयरत्न, मागु पद्य (पृ. २१अ - २१आ), आदि गङ्गा गया गोदावरी अंतिः मुगतिनो चाहि माग, पे.वि. गा.१०.
पे ३८. अनन्तजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, राज, पद्य, (पृ. २१आ-२१आ), आदि अनन्त प्रभुशुं आसिकी अंतिः छारिके मिलो उनसी धाई. पे.वि. गा.५.
पे.-३९. धर्मजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२१आ), आदि: नाथजी ताहरी निसेवा; अंतिः दायक शर्मनो रे लो.. पं.वि. गा.५.
पे.:-४०. शान्तिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२१आ), आदि: श्रीशान्तिजिणन्द हो; अंतिः निजरे हो नाथ निहालीइ., पं. वि. गा. ५.
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पे ४१. आदिजिन स्तवन- शत्रुञ्जयमण्डन, मु. उदयरत्न, मागु, पद्य, (पृ. २१-२२अ) आदि जईई शेत्रुज्ञ्जि रे; अंति दीठो देव न कोई दूजो, पे.वि. गा. ५.
पे. -४२. अनन्तजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. २२अ - २२अ ), आदि: तारक तुं त्रिण्य; अंतिः लागो ताहरा
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
तानमां., पे.वि. गा.३. पे.-४३. पार्श्वजिन स्तवन-जगवल्लभ, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. २२अ-२२अ), आदिः पण छे पूज्यानू रे; अंतिः
कर्मनी कासल काढि., पे.वि. गा.५. पे.-४४. पार्श्वजिन स्तवन-शामला, मु. उदयरत्न, राज., पद्य, (पृ. २२अ-२२आ), आदिः प्यारा पासजी रे; अंतिः माहरे ___ तुझस्युं काम., पे.वि. गा.५. पे.-४५. अरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. २२आ-२२आ), आदिः जगमांहि जोतां थकांजी; अंतिः उदय वदे
निरधारजी.,पे.वि. गा.५. पे.-४६. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, राज., पद्य, (पृ. २२आ-२२आ), आदिः साहिबीयानी सेवामां; अंतिः जै जै
श्रीमहावीर., पे.वि. गा.६. पे.-४७. पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. २२आ-२३अ), आदिः मुझ सरीखा मेवासीने; अंतिः लडी प्रभु
पाये लागुं., पे.वि. गा.८. पे.-४८. नेमिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. २३अ-२३अ), आदिः तोरण आवी जोर न कीजें; अंतिः करे
वीनती रे जो., पे.वि. गा.५. पे.-४९. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. २३अ-२३आ), आदिः पास जिणन्दा प्रभूजी; अंतिः
अवधारो सेवकनी हृदीजी., पे.वि. गा.५. पे.-५०. शान्तिजिन स्तवन, मु. न्यानसागर, मागु., पद्य, (पृ. २३आ-२३आ), आदिः शान्तिजिणेसर सोलमा; अंतिः विनवै
रे० जिनराज., पे.वि. गा.५. पे.५१. स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. २३आ-२५आ), आदिः मरुदेवीनो नन्द माहरो; अंतिः तै संसार ___ सारो रे., पे.वि. ढाळ-२४ स्तवन. पे.-५२. शान्तिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. २५आ-२६अ), आदिः अचिरानन्दन वन्दना; अंतिः सर्यां
जिनराजथी रे., पे.वि. गा.९. पे.-५३. मेवाडदेश छन्द, कवि जिनेन्द्र, राज., पद्य, (पृ. २६अ-२६आ), आदिः मन धरी माता भारति; अंतिः रहज्यो चीर
नन्द., पे.वि. गा.८. पे.-५४. मरुधरदेशगुण छन्द, मु. खुशाल, राज., पद्य, (पृ. २६आ-२६आ), आदिः सरसती माता सेवका; अंतिः अवगुण
गुण सूणीएइ., पे.वि. गा.९.. पे.-५५. पार्श्वजिन स्तवन, मु. खेम, राज., पद्य, (पृ. २६आ-२७अ), आदिः पास जिणेसर सामी थारी; अंतिः खेम हुवे
इणि रीति रे., पे.वि. गा.१६. पे.५६. महावीरजिन स्तुति, मु. जयतसी, मागु., पद्य, (पृ. २७अ-२७अ), आदिः दो दौ मृदङ्ग; अंति: जयतसी साज
सजे., पे.वि. गा.१. पे.-५७. आदिजिन स्तवन-राणकपुर, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७६, (पृ. २७अ-२७अ), आदिः राणपुरे
रलीयामणो रे; अंति: समयसुन्दर सुखकार., पे.वि. गा.७.. पे.-५८. महावीरजिन स्तवन, पं. खुशालविजय, मागु., पद्य, (पृ. २७अ-२७आ), आदिः वीर जिणेसर वन्दतां; अंतिः
खुस्याल लेह सुख ठाम., पे.वि. गा.१४. पे.५९. पार्श्वजिन स्तवन-पञ्चासरा, पं. खुशालविजय, राज., पद्य, (पृ. २७आ-२७आ), आदिः थारी सूरति लागे; अंतिः
खुस्यालविजय नित मेवा., पे.वि. गा.७. पे.६०. शान्तिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, राज., पद्य, (पृ. २८अ-२८अ), आदिः मनरा मानीता साहिबा; अंतिः निज आतम
गुण साधे हो., पे.वि. गा.७. पे.६१. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. रामविजय, राज., पद्य, (पृ. २८अ-२८आ), आदिः मोहनगारा रा पुरूडा; अंतिः ते माहि
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३६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नहि सन्देह., पे.वि. गा.७. पे.६२. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २८आ-२९अ), आदिः विपुलसौक्षमनन्तधनागम; अंतिः हृदये कमलापति.,
पे.वि. श्लो.१५. पे.६३. ग्रहशान्ति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, (पृ. २९अ-२९अ), आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंतिः
ग्रहशान्तिरुदीरिता., पे.वि. श्लो.११. पे.६४. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. नेमिविजय, मागु., पद्य, (पृ. २९अ-२९आ), आदिः आवी रूडी भगति में; अंतिः साचो
सिवगति गामी., पे.वि. गा.८. पे.६५. कर्मविचार गीत, मु. नेम, मागु., पद्य, (पृ. २९आ-२९आ), आदिः मुरति मोहन वेलि हे; अंतिः रे देज्यो नेमनेजी.,
पे.वि. गा.८. ५९००. नमस्कार स्तवन व श्लोक, अपूर्ण, वि. १७१०, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. थिरादनगर, ले.- पं.
चरणकुमार, (२६४११, ७४२५-२६). पे.१. नमस्कारमहामन्त्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मागु., पद्य, वि. १२वी, (पृ. -२आ-६आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः तणी
सेवा देज्यो नित., पे.वि. गा.१३. प्रथम पत्र नहीं है.
पे.२. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. गा.२. ५९०१. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.- पं. सौभाग्य मुनि, (२५.५४११, ११४३६-४२).
___ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. ५९०२.” कर्मग्रन्थ १-५, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ५, जैदेना., ले.- पं. नयनभद्र, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६४११.५, १७४४९-५४). पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-२आ), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ
देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६०. पे..२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं
नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं
कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५. पे.४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४अ-६अ), आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः
देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८६. पे.५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ-८अ), आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं
आयसरणट्ठा., पे.वि. गा.१००. ५९०५." चन्द्रलेहा चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.१६६, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र,
(२६.५४११.५, १६४५३-५६).
चन्द्रलेखा चरित्र, ऋ. चोथमल, प्राहिं., पद्य, आदिः ॐ नमिऊण जिणराया; अंति: गुरुवार पर्दूषन मे. ५९०६. सूत्रकृताङ्ग-वीरस्तुति, उत्तराध्ययनसूत्र-९ व ३६ व दशवैकालिकसूत्र-१ से ४ अध्ययन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.
२१, पे. ४, जैदेना., (२६४११.५, १३४३३-३६). पे.१.पे. नाम. सूत्रकृताङ्ग-वीरस्तुति अध्ययन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पुच्छिंसुणं समणा; अंतिः देवाहिव
आगमिस्सन्ति., पे.वि. गा.२९. पे.२. महावीरजिन स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः पञ्चमहव्वयसव्वयमूलं; अंतिः प्रभवस्वामी जाणिये.,
पे.वि. गा.८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे.-३. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र- नमिपवज्जा व जीवाजीवविभत्ति अध्ययन, पृ. २आ-१५आ, प्रतिपूर्ण उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध प्रा. प+ग, आदि: अंतिः सम्मए ति बेमि
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पे:-४. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र - १ से ४ अध्ययन, पृ. १५-२१अ प्रतिपूर्ण
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः५९०७. एकवीसठाणा, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना, प्र. वि. गा. ६६ (२६५११, ९४३२-३८).
एकविंशतिस्थान प्रकरण आ. सिद्धसेनसूरि प्रा. पद्य आदि चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया ५९०८. पासाकेवली शुकनावली, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैवेना. (२६४११.५ १३४३६-४०).
"
पाशाकेवली - भाषा आधारित, मागु, गद्य, आदि (१) १११ उत्तम थानक लाभ (२) ॐ नमो भगवति अंतिः मन सत्य करिमाने,
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५९१०. रत्नावती रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., प्र. वि. गा. ५००, ( २६ ११.५, ११-१२x२८-३५). रत्नपालरत्नावती रास मु. रत्नसुन्दरसूरि मागु पद्य वि. १६३५, आदि सकल सिद्धि नवनिधि अंतिः रास प्रमोदह पूरि.
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५९११.” क्षेत्रसमास व कर्मग्रन्थ, अपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५९-३१(१ से ३१ ) - २८ पे ५ जैवेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६१२, ११४३६-३९).
पे.-१.
पे. १. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी (प्र. ३२-४५अ संपूर्ण), आदि: वीरं
.
जयसेहरपय; अति: कुसलरङ्गमयं पसिद्धं पे. वि. ६ अधिकार. गा. २६६.
"
""
"
पे. २. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४५अ - ४८आ, संपूर्ण), आदि: सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा. ६०.
पे. ३. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. ४८ आ-५०आ, संपूर्ण), आदि: तह थुणिमो वीरजिणं अंति वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४.
पे.-४. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५०-५२आ, संपूर्ण), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अतिः नेयं कम्मत्थवं सोउं पे.वि. गा.२५.
३७
"
पे. ५. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. ५२आ-५९आ, संपूर्ण) आदि नमिय जिणं जिय; अंति देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८८.
५९१२. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १७३५, मध्यम, पृ. १०, जैदेना., ले. स्थल पाटण, ले. मु. मुनिविजय, प्र. वि. गा. ३१९, (२६१०, १४-१५५१-५५).
श्रीपाल रास. मु. ज्ञानसागर, मागु, पथ, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध: अंति: जिम राजन श्रीपाल, ५९१३. अढारपापस्थानक कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. प्र. वि. ग्रं. ३५०, ( २६ ११.५, १३x४२-४३). १८ पापस्थानकपरिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मागु., पद्य, आदिः सुन्दर रूप विचार; अंतिः वन्दियो भवियण प्राणी. ५९१४.” सिद्धपञ्चाशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ५०, त्रिपाठ, दशा वि. विवर्ण- पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-पत्र खंडित है-बीच का एक पत्र (२६४११.५ १-१४४३६-४६). सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण- बालावबोध, मु. कल्याण, मागु., गद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसिद्धार्थसुतं; अंतिः प्रमिते द्वादशोत्तरे.
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५९१५. पुरन्दरकुमार चौपाई, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २९ जैवेना. प्र. वि. गा.३७६. बाळ-१२ (२६४११.५ ९४३३-३६). पुरन्दरकुमार रास, वा. मालदेव, मागु, पद्य, आदि वरदाई श्रुतदेवता अंतिः सील व्रत पालउ रे. ५९१६.” नवतत्त्व, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. गा. ५५, पदच्छेद सूचक लकीरें, ( २६.५x११.५, ८४३१-३५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा.
५९१७. कर्मग्रन्थ १-५ का बालावबोध, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २१ पे ५ जैदेना. प्र. वि. सर्वग्रं. १६०० (२७४११,
१९४५९-६४).
;
पे. १. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध, मागु, गद्य (पृ. १-५अ) आदिः श्रीवर्द्धमान प्रति अंतिः देवेन्द्रसूरि कहिउ
पे.-२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध *, मागु., गद्य, (पृ. ५अ-६आ), आदिः तिम श्रीमहावीर प्रति; अंतिः ते महावीर
प्रति नमु
पे. ३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु, गद्य (प्र. ६आ-८आ) आदि सामान्यइ सविहुजीवा अंति स्वामित्व विचार कहिउ.
पे. ४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध, मागु., गद्य (प्र. ८आ-१२ आ) आदि वीतरागदेव नमस्करी: अंतिः देवेन्द्रसूरिहिं
पे.-५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध, मागु., गद्य, (पृ. १२आ-२१आ), आदिः वीतराग नमस्करीनइ; अंतिः परोपकारनइ काजि.
५९१८.' श्रावकदिनकृत्य प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. स्थल. धीराद्र (थराद), लिखवा. - श्राविका येसा साहा, पठ- श्राविका ब्रह्मा साहा, प्र. वि. गा.३४०, पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभिक पत्र, प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२७.५x१०.५, ११४३८-४३).
श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य आदि वीरं नमिऊण तिलोग अंतिः मिच्छामिह दुक्कडन्ति.
"
५९१९. सम्बोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ६. जैवेना. प्र. वि. गा. ७५. (२६११.५, ९५३१-३२).
सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. ५९२०. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, अजितशान्ति स्तव व अजितशान्ति स्तव के छन्दलक्षण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२
१(७+८) = २१ पे ३ जैदेना. (२६४११.५, ९-१०४३५-३९).
पे. १. पे नाम प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह ( अञ्चलग.), पृ. १आ-१५अ
;
देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र सद्ग्रह- अञ्चलगच्छीय संबद्ध, प्रा. सं., गुज प+ग, आदि नमो अरिहन्ताणं० पदमं अंति जैनं जयति शासनम्, पे.वि. लघु गुरु अक्षर, संपदा आदि गणना सहित.
पे. २. पे नाम. अजितशान्ति स्तव, पृ. १५अ - १९आ
अजितशान्ति स्तव, आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह., पे.वि. अंचलगच्छ मान्य ४५ गाथा प्रमाण. गा. ४५.
पे. ३. पे. नाम. अजितशान्ति स्तव के छन्दलक्षण, पृ. १९आ-२२अ
अजितशान्ति स्तव-छन्द सङ्ग्रह, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नेयमेत्तात्सेंदे अंतिः वेर कीया होइ, पे. वि. अंचलगच्छ
मान्य.
५९२१. शान्तिनाथ विवाहलो, सीमन्धरजिन स्तवन, पद व श्लोक, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, पे. ४, जैदेना., ले. स्थल.
थिराद्रपद्र (२५४११, ११४३६-४०).
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पे.-१. शान्तिजिन विवाहलो, मु. आनन्दप्रमोद, मागु., पद्य, वि. १५९१, (पृ. १अ - २५अ ), आदि: सरसति सामिणी वाणि; अंतिः लहइ ऋद्धि वृद्धि, पे. वि. डाळ-६४.
पे. २. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. खीमा, मागु., पद्य, (पृ. २५अ - २५आ), आदिः श्रीसीमन्धर स्वामि; अंतिः मया करी मझ वासणउ पे.वि. गा. ४.
"
पे. ३. औपदेशिक पद वा मेघ, मागु पद्य (पृ. २५-२५आ), आदि जादव दसणि जीवाढणि अंतिः #. पे.वि. गा.२. कृति अस्पष्ट होने से अंतिमवाक्य नहीं भरा है.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३९
पे.४. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. २५आ-२५आ), आदिः#; अंतिः#. ५९२२.” दीपावली कल्प, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- गणि सुधाहंस, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें,
(२६.५४११, १५४५६).
दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः सन्तु श्रीवर्द्धमान; अंतिः साधितवीरसिद्धिः. ५९२३. जम्बूस्वामी रास-प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. गा.५२५. परिमाण- गाथा. ५२७, प्र.ले.श्लो.
(४९९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२६४१०.५, १४-१५४४४-५३). जम्बूस्वामी रास, मु. राजपाल, मागु., पद्य, वि. १६२२, आदिः सकल जिनवर सकल जिनवर; अंतिः घरि विलसइं
इन्दिरा. ५९२४. साधुवन्दना, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना.,प्र.वि. गा.२४९, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४११, ११४४१-४२).
साधुवन्दना, मागु., पद्य, आदिः वन्दिय गुरूआ सिद्ध; अंतिः शुद्ध करू गीतारथ सोई. ५९२६. सीमन्धरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-४३, (२६.५४११, ११४३८-४६).
सीमन्धरजिन स्तवन, मु. भद्रबाहु, मागु., पद्य, आदिः श्रीजैनेन्द्र दिवाकर; अंतिः सेवक कुं रङ्ग रेलि. ५९२७. आराधना, संपूर्ण, वि. १५७०, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.- मु. देवाणन्द (गुरु आ. देवसुन्दरसूरि, सिद्धान्तीगच्छ), प्र.वि.
ग्रं. २२७, (२६.५४११, ११४३२-४२).
आराधना, मागु., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः ध्यान मनि आणिज्यो. ५९२८. चउशरण, गौतमपृच्छा, जीवविचार, ऋषभपञ्चाशिका व प्रश्नोत्तररत्नपद्धति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ८, पे. ५,
जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२७४११, १३४४८-५२). पे.-१. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-३आ, संपूर्ण), आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं
निव्वुइ सुहाणं., पे.वि. गा.६६. प्रारंभिक चत्तारी मंगलं अतिरिक्त पाठ है. अंतिमवाक्य गाथा नं.६६ का पूर्व पाद ही है. पे.२. गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण), आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि., पे.वि.
गा.६४. पे.-३. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण), आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः
रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे.४. ऋषभपञ्चाशिका, कवि धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, (पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण), आदि: जयजन्तुकप्पपायव; अंतिः
बोहित्थ बोहिफलो., पे.वि. गा.५०. पे.५. प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, (पृ. ८आ-८आ-, अपूर्ण), आदिः प्रणिपत्य जिनवरे; अंति:-, पे.वि.
मात्र प्रथम पत्र है. प्रथम १ गाथा है. ५९२९." स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७२२, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना.,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अध्याय-२४ स्तुति, श्लो.९६, पदच्छेद
सूचक लकीरें, संशोधित, (२६४११, ९४२४-३४).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंतिः हारतारा बलक्षेमदा. ५९३०. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना.,प्र.वि. गा.५४४, (२७४११.५, १३४४४-४८).
उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. ५९३१. मोकला आराधना व उपदेशरत्नकोश सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., (२६४११,
९४३१-३७). पे.-१. पे. नाम, मोकला आराधना सह बालावबोध, पृ. १अ-८अ
पर्यन्ताराधना-सक्षेप, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं; अंतिः सुर समणे नमुक्कारं. पर्यन्ताराधना-सक्षेप का बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः अतिचार आलोज्योहउ; अंतिः ध्यान करिज्यो., पे.वि.
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संक्षेप-गा. ३६.
पे. २. पे. नाम. उपदेशरत्नमाला सह बालावबोध प्र. ८अ ११अ
"
उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उवएसरयणकोसं नासिअ; अंतिः विउलं
"
(+)
उवएसमालमिणं.
उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः उपदेशरूप रत्न तेहनुं; अंतिः स्वेच्छाइ रमइ.,
पे. वि. मूल-गा.२५.
५९३२.“' कल्पसूत्र की पर्युषणाकल्पपुञ्जिका टीका, पूर्ण, वि. १६६५, मध्यम, पृ. २१ - १ ( २० ) = २०, जैदेना., ले.स्थल. जैसलमेर, प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. ३५००, पदच्छेद सुचक लकीरें संशोधित दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं- प्रारंभ व अंत के कुछ पत्र, ( २६ ११, १५X४६).
कल्पसूत्र - सन्देहविषौषधि टीका आ जिनप्रभसूरि सं. गद्य वि. १३६४ आदिः अथ पर्युषणेति का अंति वाञ्छितसिद्धिपारम्
५९३३. क्षेत्रसमास - बृहत् नव्य, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. १३. जैदेना. प्र. वि. गा. ३८८ (२६.५०११.५, १५४५४-५६).
"
बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदि: सिरिनिलयं केवलिणं; अंतिः सोहेयव्वो सुअहरेहिं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
५९३४. नेमिनाथ चरित्र कल्पसूत्र तृतीय व्याख्याने, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना ले. मु. पुण्यकलश, दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. (२६४११ १३४३७-४४).
कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य-नेमिजिन चरित्र, सं., गद्य, आदिः श्रीनेमिनाथदेवस्य; अंतिः स्वस्थानं जग्मुः.
५९३५. अढारपापस्थानकपरिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र. वि. ग्रं. ३५०, ढाळ-१८+ कलश,
(२६.५४११, ११४४३-४८).
१८ पापस्थानकपरिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मागु., पद्य, आदिः सुन्दर रूप विचार; अंतिः वन्दियो भवियण प्राणी. ५९३६. भावडजावड रास, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. गणि कमलोदय (गुरु गणि अनन्तहंस), प्र.ले.पु. मध्यम,
प्र. वि. गा. १९४ (२६४११, १५९४६-४७).
जावडभावडसेठ रास श्री. देपाल भोजक मागु पद्य वि. १६वी आदि पणमवि मरुदेवि सामिणी: अंतिः वर्णवइ कवि
देपाल.
"
५९३७.” श्रीपालनरेन्द्र कथा, अपूर्ण, वि. १५१०, मध्यम, पृ. ३३-८ (१ से ८ ) - २५, जैदेना., ले. - श्रा जिनदत्त सुरा सङ्घवी, प्र.वि. गा.१३४१, ग्रं. १६७४, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. गा. ३२५ अपूर्ण से है., (२६.५४११, १५-१७४१-४९).
सिरिसिरियाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पथ, वि. १४२८ आदि अंतिः वाइज्जन्ता कहा एसा.
·
५९३९. कर्मग्रन्थ चतुष्क, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६ पे ४ जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अंत के पत्र
"
नहीं हैं., ( २६११, १३-१४४५२ - ५४).
पे. १. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. १अ -३अ संपूर्ण) आदि सिरिवीरजिणं वन्दिय: अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे. वि. गा. ६०.
.
पे. २. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. ३अ-४अ संपूर्ण), आदि: तह थुणिमो वीरजिणं अंति वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४.
पे.-३ . बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४अ - ५अ, संपूर्ण), आदि: बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५.
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,
पे. ४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. ५अ ६आ, अपूर्ण) आदि नमिय जिणं जिय: अंति:-, पे. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा. ५४ तक है.
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४१
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२ ५९४०. सङ्ग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-५(९ से १२,१७)=१३, जैदेना., पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.
गाथा २४८ तक हैं, (२६.५४११, ९४३५-३९).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः५९४१. स्तवनचौवीसी व पञ्चकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., (२६.५४११, ९४३५-४०).
पे.१. स्तवनचौवीसी, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१०अ), आदिः त्रिभुवनतत्त्व; अंति: वीरजिणेसर वीनवु ए., पे.वि. ढाळ-२४
स्तवन. पे..२. पंचकल्याणक स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१२अ), आदि: सुरतर पभणइ सुणि; अंतिः आq करवा सेव., पे.वि.
ढाळ-५ स्तवन. ५९४२. आत्मबोध, चारित्र, मतप्रबोधछत्रीसी व आशा मारवानो मार्ग, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल.
जयपुर, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११.५, १०४२७-३०). पे..१. आत्मप्रबोधछत्तीसी, मु. ज्ञानसार, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ-५अ, संपूर्ण), आदिः श्रीपरमातम परम पद; अंतिः ए
आतम छत्तीस., पे.वि. गा.३६. पे.२. चारित्रछत्तीसी, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण), आदिः ज्ञान धरौ किरिया; अंतिः वाकौ नहि लवलेस., पे.वि.
गा.३६. पे.-३. मतप्रबोधछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७आ-१०अ, संपूर्ण), आदिः तप तप तप तप क्यौं; अंतिः रची
बुद्ध आधार., पे.वि. गा.३७. पे.-४. आशामारण मार्ग, मागु., गद्य, (पृ. १०अ-१३आ-, अपूर्ण), आदिः आसा मारवानो मारग; अंतिः-, पे.वि. अंतिम पत्र
नहीं है. ५९४३. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०अध्ययन, (२६४११.५, १७४३५-४७).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि. ५९४४. पचक्खाणसूत्र सङ्ग्रह सह बालावबोध व कुलक सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. २०२-१९४(१ से १९४)=८, पे.
४, जैदेना.,प्र.वि. पत्रांकक्रम तीन अनुक्रम में दिया गया है उसमें प्रथम अनु. १-८, द्वितीय १०४-१११ व तृतीय
१९५-२०२ तक का उल्लेख है.. पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६.५४११, १२-१४४४५-५५). पे.१. पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र सङ्ग्रह सह बालाववोध, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण ।
प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंतिः चेव जइज्झेयारिसम्मिउ.
प्रत्याख्यानसूत्र सङ्ग्रह-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः हवे गुरु वान्दवाना; अंतिः मोक्ष फलदाइउ थाइ. पे.२. देहस्वरूप कुलक, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण), आदिः नमिऊण जिणं वीरं किञ; अंतिः भवियजण
विबोहणट्ठाए., पे.वि. गा.२३. पे.-३. पे. नाम. भावनाकुलं वैराग्यमयं, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण
वैराग्य कुलक, प्रा., पद्य, आदिः जम्मजरामरणजले; अंतिः सुक्खं जेण पावहिसि., पे.वि. गा.२२. पे.४. प्रमादपरिहार कुलक, प्रा., पद्य, (पृ. ८अ-८आ-, अपूर्ण), आदिः दुक्खे सुक्खे; अंतिः-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है.
गा.२९ अपूर्ण तक है. ५९४५. अमरसेनवयरसेन कथा, पूर्ण, वि. १७१४, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, जैदेना., (२६४११, १५४३२-३७).
अमरसेन वज्रसेन कथा, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः भवे सिद्धिं यास्यतः. ५९४६. अट्ठाई व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२५४११, १०४३०-३१).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, राज., गद्य, आदिः शान्तीशं शान्ति; अंतिः मुक्ति मै जाव छै. ५९४७. गौतमपृच्छा सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. लोहीयावट, ले.- पं. दयानन्द (गुरु गणि
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४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुमतिधीर), गच्छा.- गच्छाधिपति जिनहर्षसूरि, राज्यकाल- राजा भीवसिङ्घ, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-गा.६४;
टीका-ग्रं. १६८३., (२५.५४११, १८४४५-४८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंतिः गोयमपुच्छा महत्थावि.
गौतमपृच्छा-टीका , मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदिः वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंतिः नगर्यां च शुभे दिने. ५९४८." सुपार्श्वजिन विवाहलु, अपूर्ण, वि. १६४३, श्रेष्ठ, पृ. २०-४(१ से ४)=१६, जैदेना., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल
मे लिखित, पू.वि. गाथा १ से ५५ ढाल ५ तक नहीं हैं., (२७४११, ११४४७-५१).
सुपार्श्वजिन विवाहलो, आ. विनयदेवसूरि, मागु., पद्य, वि. १६३२, आदि:-; अंतिः जाणउ सूधउ धर्म. ५९४९. अणुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. मांडवी, ले.- कल्याणजी
भट्ट, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ५४२९-३१). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः अणुत्तरोववाईदसाणं.
अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालने विषे ते; अंतिः धर्मकथानी परे जाणवा. ५९५१. प्रतिष्ठाकल्प विधि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ३३८, (२६.५४१०.५, ११४४३-४७).
प्रतिष्ठाकल्प विधि, आ. तिलकाचार्य, सं.प्रा., पद्य, आदिः किं तु श्रावकस्यैव; अंतिः मङ्गलमालाउ विलसन्ति. ५९५३. चित्रसेनपद्मावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, प्र.वि. गा.६२९; प्र.पु.-मूल
ग्रं. ८५०, (२६४११, १४-१५४३०-३४). चित्रसेनपदमावती चौपाई, आ. सोमकलशसूरि, मागु., पद्य, वि. १६१०, आदिः पहिलूं प्रणमूं ऋषभ; अंतिः संघ चतुर्विध
जयजयकार. ५९५४. भावना, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, जैदेना., ले.- गणि अमृतविजय (गुरु पं. तेजविजय), (२६४११, ९४३१
३५).
१२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदि:- अंतिः ध्यान सकल मुनि आणो. ५९५५.” माधवानल चौपाई, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(१)=१५, जैदेना., प्र.वि. गा.५५४, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ
पत्र, पू.वि. गाथा १ से ३६ तक नहीं हैं., (२६.५४१०.५, १७-१९४३९-४३).
माधवानल चौपाई, वा. कुशललाभ, मागु., पद्य, वि. १६१६, आदि:-; अंतिः सुख पामइ संसारि. ५९५६. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्ययन ४ उद्देश ३ गाथा २२
तक है., (२६४११, १६-१७४५८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति:५९५८. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६३७, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४११, १२-१३४४५-४७).
पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. ५९५९. कुर्मापुत्र कथानक, संपूर्ण, वि. १६४८, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. स्थंभनतीर्थ, ले.- मु. महीपाल(तपागच्छ), प्र.वि.
गा.१९८, (२६४११, ११४३६-३९). कुम्मापुत्त चरिअं, मु. माणिक्यविमल, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं; अंतिः स० इच्छन्तं चिरं जयउ. ५९६०." उववाईसूत्र, संपूर्ण, वि. १६२६, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११, १५४४६-४९).
औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. ५९६१. शाश्वतजिन चैत्यवन्दन-स्तवन, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. गा.११४, (२७४१०.५, १०-११४३५-३७).
शाश्वतजिन चैत्यवन्दन, मु. भावसागरसूरि-प्रशिष्य, मागु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर पणमीअ; अंतिः हुइ सकल
विहाण.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
४३
५९६२. साधुवन्दना, संपूर्ण, वि. १७८८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. परग्राम-वाणारस, ले. पं. लक्ष्मीविजय, प्र. वि. गा.९३, (२६४११, १२४२९-४०).
साधुवन्दना, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, आदिः रिसहजिण पमुह चउवीस; अंतिः मुनि आणन्दई सन्थुआ.
·
५९६३. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र. वि. ढाळ - ३६, (२७X१०.५, ११x४०-४५). उत्तराध्ययनसूत्र- सज्झाय, मु. ब्रह्म संबद्ध मागु पद्य वि. १७वी आदि अमीयसमाणी वाणी वरसता अंतिः जिनभाषित निरतउ जाणउ .
·
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५९६४. योगशास्त्र १ से ४ प्रकाश, प्रतिपूर्ण, वि. १५वी श्रेष्ठ, पृ. २७, जैवेना. प्र. वि. सलंग पत्रांक क्रमांक ६६ से ९२.. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न वचन विभक्ति संकेत, (२७४१०.५, १०-१३x२९- उपो
योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंतिः
५९६५. वासुपूज्यजिन धवल, संपूर्ण, वि. १६४३, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. स्थल. थिरपुद्र, प्र. वि. गा.१३०, ढाळ - २३,
(२६.५०१० ११ १२४५२).
वासुपूज्यजिन धवल, आ. विनयदेवसूरि, मागु., पद्य, आदि: चउवीसइ जिन चलणे लागी अंतिः वरतइ जिण धर्म. ५९६९.” ९." जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६. जैवेना., प्र. वि. मूल-गा. ५१ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५X१०.५, ५X३४-३८).
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण अतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: तीन भुवन रै विषै; अंतिः सिद्धान्त समुद्र थकी.
५९७०. सङ्ग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. स्थल. सहजरा, ले. पं. देववर्द्धन मुनि प्र. वि. गा. ३१२,
(२५.५X१०.५, १३४४३-४८).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं.
५९७१. सम्बोधसत्तरी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. पंचपाठ, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गाथा ४९ तक है, (२५.५५११, ४५२७-३२).
सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिःसम्बोधसप्ततिका बालावबोध, मागु, गद्य, आदि वन्दिय पासजिणन्दं अंति
५९७३. भक्तामर स्तोत्र सह सुखबोधिका टीका, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९. जैवेना. प्र. वि. मूल श्लो. ४४. प्र. पु. - टीका
श्लो. ३५०., (२५.५x१०.५, १५X४३-५०).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः समुपैति लक्ष्मी.
भक्तामर स्तोत्र - सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः युग्मं किल इति सत्ये; अंतिः (१) शोध्यतामियम् (२).
५९७४. आलोयणा, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. (२४.५५११.५. ११४३३-३६).
आलोयणा विचार, ऋ. चन्द्रभाण, मागु., पद्य, आदिः सिद्ध श्रीपरमातमा; अंतिः कीयां उपजै आनन्द है..
५९७५.” श्रावकविधिप्रकाश की भाषा, संपूर्ण, वि. १८४१ श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. पं. माणिक्यराज, प्र. वि. ग्रंथ रचना के
समीपवर्ती काल मे लिखित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६११, २१-२२४५३ - ६९ ) .
श्रावकविधि प्रकाश, वा. क्षमाकल्याण, सं., मागु., गद्य, वि. १८३८, आदिः प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: (१) सो सोधीयो सुजान (२) विधिप्रकाशो निर्मितः,
५९७६. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १० - १(१ ) = ९, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. गा. १ से ८ नहीं हैं. गाथा ५१वी अधूरी हैं. (२५x११.५ ६०४५-५०%
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४४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि:-; अंति:
ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:५९७८. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-२४ स्तवन, (२५४१०.५, ११४२५-२८).
स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, आदिः मनमधुकर मोही रह्यो; अंतिः चढती बोलति पावौ जी. ५९७९. दशवैकालिकसूत्र, पूर्ण, वि. १६०८, मध्यम, पृ. २२-१(१)=२१, जैदेना.,प्र.वि. १०अध्ययनरचूलिका, पू.वि. प्रथमपत्र
अध्ययन २ गा.१२ तक नहीं हैं. पूर्णता- १० अध्ययन + चूलिका, (२६४११, १३४३९-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि:-; अंतिः आलणा सो. ५९८०. चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले.- पं. दौला, प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें, (२६४११, १४४४३-५०).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, सं.,मागु., गद्य, आदिः सामायिक आवश्यकव्रत; अंतिः मिच्छामिदुक्कडं देवो. ५९८१. चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., (२६.५४११, १३४३८-४८).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, सं.,मागु., गद्य, आदिः सामायिक आवश्यकव्रत; अंतिः मिच्छामिदुक्कडं देवो. ५९८२. दसारणभद्र चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. गा.१०५, (२५४११, १३४३३-३४).
दशार्णभद्रराजा चौढालीयो, मु. धर्मवर्धन, मागु., पद्य, वि. १७५७, आदिः वीरजिणेसर वन्दिनै; अंतिः सुख दौलति दीह. ५९८३." साधुवन्दना, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(९)=९, जैदेना.,प्र.वि. गा.९३, ढाळ-७., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ
पत्र, (२४.५४११, १०x२५-२७).
साधुवन्दना, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, (पूर्ण), आदिः रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मुनि आणन्दई सन्थुआ. ५९८५.” कल्पसूत्र सह बालावबोध व्याख्यान ४-?, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९४, जैदेना., ले.स्थल. सांखू, प्र.वि.
वाचना-४ पत्र-२२, वाचना-५ पत्र-३३, वाचना-६ पत्र-१५-३३, वाचना-७ पत्र-२० कुल मिलाकर पत्रसंख्या-९४., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. व्याख्यान ४ से ७ अपूर्ण तक.,
(२६४११, १६-१७४३८-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र-बालावबोध , मु. शिवनिधान, मागु., गद्य, वि. १६८०, आदि:-; अंति:५९८६. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३५, जैदेना.,प्र.वि. गा.५४४, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२६x१०.५,
९४३५-४१).
उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. ५९८७.” साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६९७, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, प्र.वि. प्र.पु.-सर्वग्रं.
२७१९., त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१०.५, १-२४२९-५२). पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः करेमि भन्ते० चत्तारि; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं.
पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रतिक्रमणावश्यक; अंतिः समाधान ए जाणिवउ. ५९८८. जिनशतक सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, देना., प्र.वि. मूल-४परिच्छेद, श्लो.१००., पंचपाठ,
पू.वि. परिच्छेद १ गाथा १ से १८ तक नहीं हैं., (२६.५४११, १५-१६x४९-५२). जिनशतक, मु. जम्बू कवि, सं., पद्य, वि. ११वी, आदि:-; अंतिः वागसौ द्राग्विधेयात्.
जिनशतक-अवचूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः भवते न प्राप्नोति. ५९८९. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. सक्कीनगर, ले.- मु. गुमान (गुरु पं. नेमराज),प्र.ले.पु.
विस्तृत, प्र.वि. श्लो.१९३, (२५.५४१०.५, १३४३२-३८). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंतिः सत्योपासक केवली.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
४५
५९९१. आठकर्म १५८ प्रकृति विवरण, संपूर्ण, वि. १७३८, श्रेष्ठ, पृ. ५,पे. २, जैदेना., ले.स्थल. देवासनगर, ले.- पं. रङ्गचन्द्र
(गुरु पं. रायचन्द्र),प्र.ले.पु. मध्यम, (२५४१०, १३-१४४३५-४०). पे.१.८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, (पृ. १अ-५आ), आदिः पहिलु न्यानावरणी; अंतिः देता दोहिलं थाइ.
पे..२. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-पआ), आदिः#; अंतिः #. ५९९२. अर्बुद कल्प, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- वा. मणिविजय (गुरु मु. सुरेन्द्रविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत,
प्र.वि. गा.४४, प्र.ले.श्लो. (४६) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, (२४४१०.५, ८-९x४४-५०).
अर्बुदगिरितीर्थ कल्प, मागु., प+ग, आदिः अर्बुदाचल उपरे; अंतिः थुकीइं रूपो थाय. ५९९३." सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., प्र.वि. २० प्राभृत, पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति
संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४११, ११४४१).
सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सोक्खुप्पाए सदापाए. ५९९५. आनन्द सन्धि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ढाल-७ गा.२२ तक है.,
(२६.५४११, १२४३३).
आनन्दश्रावक सन्धि, पाठक श्रीसार, मागु., पद्य, वि. १६८४, आदिः वर्द्धमान जिनवर चरण; अंति:५९९८." प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०८, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. मरता, ले.- ऋ. करमचन्द
(गुरु मु. दीपचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टबार्थ लेखन संवत १८१६ रूपनगर मध्ये है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
(२८x१३, ६४३८). साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः णमो अरिहन्ताणं०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्.
साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमो० नमस्कार होवउ; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. ५९९९. उत्तराध्ययनसूत्र गीत, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. अध्ययन ढाल-३६ गा.१८
तक है., (२५.५४११, १३४३७-४०).
उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, मु. ब्रह्म, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १७वी, आदिः अमीयसमाणी वाणी वरसता; अंति:६०००. शान्तिनाथ लघुचरित्र, संपूर्ण, वि. १६६४, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., ले.स्थल. सवालाग्राम, राज्यकाल- राजा शिलेमशाहि
पातशाह, प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ३९५०., प्र.ले.श्लो. (६३) अदृष्टि दोषान्मति विभ्रमाश्च, (२४.५४११, १५४४३).
शान्तिनाथ लघुचरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि, संक्षेप, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः शान्तिनाथः प्रकाशितः. ६००१. स्तवन, सज्झाय, चोक, वधावो, वेली, रास आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. १५९, पे. ६२, जैदेना., ले.
ऋ. खुबचन्द, (२५४११.५, १३४३८-४०). पे.-१. पे. नाम. सीमन्धरस्वामी स्तवन, पृ. १आ-६आ सीमन्धरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १७१३, आदिः अनन्त चोवीसी; अंतिः भविक जन मङगल
करो., पे.वि. गा.११५. पे..२.पे. नाम. अवन्तिसुकमाल सज्झाय, पृ. ६आ-१२आ अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४१, आदिः मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंतिः सुख पावी रे.,
पे.वि. गा.१०४, ढाळ-१३. पे.-३. पे. नाम. पुण्यप्रकास आराधन स्तवन, पृ. १३अ-१७आ पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः सकल सिद्धिदायक; अंतिः नामे
पुण्यप्रकाश ए., पे.वि. ढाळ-८. पे.-४. पे. नाम. शान्तिजिन निश्चयव्यवहार विचार स्तवन, पृ. १७आ-२०आ
शान्तिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३४, आदिः शान्ति जिणेसर
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केसर; अंति: जसविजय विबुध जयवरी, पे.वि. गा. ४८, ढाळ - ६.
पे. ५. पे. नाम. षट् अष्टानिक स्तवन, पृ. २०आ-२३आ
६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु, पद्य, वि. १८३४, आदिः श्रीस्याद्वाद; अंतिः सङ्घ मङ्गल पाइया., पे.वि.
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ढाळ - ९.
पे ६. पे नाम. पार्श्वदेव से तवन, पृ. २३आ-२५आ
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शान्तिकुशल, मागु., पद्य, वि. १६६७, आदिः वदन अनोपम चन्दलो; अंतिः सेव करतां सुख लह्यो, पे.वि. गा.४१.
पे. ७. पे नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २५-२७अ
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
नवपदजी स्तवन, मु. दानविजय, मागु पद्य वि. १७६२ आदि सकल कुशल कमलानो अंतिः दानविजय जयकारा रे., पे.वि. गा. २३.
पे. ८. पे नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २७अ-२८अ
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मु. सूरविजय, मागु पद्य वि. १७१३, आदि: सरसति देवीने नमी अंति: गाइओ
1
श्रीगोडी धणी, पे.वि. गा.२५.
पे. ९. पे नाम. दानशील चोपी, पृ. २८अ ३२अ
दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि मागु पद्य वि. १६६२ आदि प्रथम जिनेसर पाय: अंतिः
"
सकल सङ्घ सुजगीसो रे, पे.वि. गा.९७, ढाळ-५.
पे. १०. पे नाम, नेमिसंवाद २४ चोक, पृ. ३२आ-३७अ
..
पे- १४ पे नाम, सिधाचलजीनो रास प्र. ५१अ-५६अ
"
नेमगोपी संवाद - चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मागु, पद्य वि. १८३९, आदि एक दिवस दसै नेमकुंवर अंति अमृत गुण गाया. पे.वि. २४ चोक.
पे. ११. पे नाम. विमलाचल तीर्थमाला स्तवन, पृ. ३७१-४४आ
शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन. मु. अमृतरङ्ग, मागु, पद्य, वि. १८४०, आदि विमलाचल वाहला वारु: अंतिः
अमृतरङ्ग सुहङ्करु. पे.वि. डाळ १०.
पे. १२. सिद्धचक्र स्तवन मु. सुविधिविजय, मागु पद्य वि. १४१७, (पृ. ४५ ४५आ) आदि सकल सुरासुर सेवित; अंतिः सुविधिविजेय सुपसाय, पे.वि. गा. १३.
पे. - १३. पे नाम. सेत्रुञ्जानो उधार, पृ. ४५आ-५१अ
शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर मागु, पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल अंतिः देही दरीसण जय करूं, पे.वि. गा. ११८.
शत्रुंजयतीर्थ रास उपा. समयसुन्दर गणि, मागु पद्य वि. १६८२ आदि श्रीरिसहेसर पाय नमी अंतिः सुणतां
आणन्द थाय.
पे.-१५. पे. नाम. वीरना पाञ्चकल्याणक वधावो, पृ. ५६अ - ५९अ
महावीरजिन पञ्चकल्याणक वधावा स्तवन, मु. दीपविजय मागु, पद्य, आदि वन्दी जगजननी अंतिः फल महाराज वाला, पे.वि. अध्याय-५.
पे. १६. पे नाम वैराग्यदीपक मदनवजीपकाद्यनेकगुणजनीतोद्भवभावजलरेलिरन्तकृतकेली धुलभद्रस्य सीयलवेल, पृ.
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५९अ-६९अ
स्थूलिभद्र शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मागु, पद्य वि. १८६२ आदिः सयल सुहंकर पासजी अंतिः विमला कमला वरशे रे., पे.वि. गा.२४६, ढाळ - १८.
पे. १७. पे नाम. थूलभद्र नवरसो, पृ. ६९ अ-७५आ
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
४७ स्थूलिभद्र नवरसो, वा. उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५९, आदिः सुखसम्पत्ति दायक; अंति: मनोरथ वेगे फल्या.,
पे.वि. ढाळ-९. पे.-१८.पे. नाम. माहावीरजिन पञ्चकल्याणक स्तवन, पृ. ७५आ-७९अ महावीरजिन स्तवन-पञ्चकल्याणक, मु. रामविजय, मागु., पद्य, वि. १७७३, आदिः शासननायक शिवकरण; अंति:
नामे लही अधिक जगीस ए., पे.वि. गा.५६, ढाळ-३. पे.-१९. पे. नाम. नववाडि सीयलनी स्वाध्याय, पृ. ७९अ-८१अ नववाडि सज्झाय, वा. उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७६३, आदिः श्रीगुरुने चरणे नमी; अंतिः तेहने जाउ भामणे.,
पे.वि. ढाळ-१०. पे.-२०. पे. नाम. भावनावलि, पृ. ८१अ-८७अ १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर
मझार., पे.वि. गा.१२८. पे..२१. जीवोत्पत्ति सज्झाय, गणि राम, मागु., पद्य, (पृ. ८७अ-८९आ), आदिः प्रणमुं प्रेमइं सरसत; अंतिः नर सेवे धरम
सदाय रे., पे.वि. ढाळ-५. पे..२२. पे. नाम. आठदृष्टिगर्भित वीरसाहेबजिन स्तवन, पृ. ८९आ-९४अ ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः (१) शिवसुख कारण उपदेशी (२) मित्रा
तारा बला; अंतिः वाचक जशने वयणेजी.,पे.वि. गा.७७, ढाळ-८. पे..२३. पे. नाम. चवदगुणठाणा विचारगर्भित स्तवन, पृ. ९४अ-९६अ पार्श्वजिन स्तवन-१४ गुणठाणागर्भित, गणि लक्ष्मीवल्लभ, मागु., पद्य, आदि: नमिय सिरि पास जिणराय; अंतिः
मति निरमल सदा., पे.वि. गा.४३, ढाळ-५. पे.२४. पे. नाम. कर्मविचारगर्भित पार्श्वकुमर स्तवन, पृ. ९६अ-९८अ पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमण्डन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा.,मागु., पद्य, वि. १६६५, आदिः
नमिअ सिरिपासजिणसुजणं; अंतिः दिणयर सयलअतिसयस ओ.,पे.वि. गा.१९, ढाळ-३. पे.-२५. पे. नाम. चोविसदण्डक विचार स्तवन, पृ. ९८अ-१००अ पार्श्वजिन स्तवन-२४ दण्डकविचारगर्भित, पाठक धर्मसिंह, मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः पूर मनोरथ पास
जिणेसर; अंतिः गावै धरमसी सुजगीस ए.,पे.वि. गा.३४, ढाळ-४. पे.२६.११ अङ्ग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७२२, (पृ. १००अ-१०४आ), आदिः आचाराङ्ग
पहेलुं; अंतिः कीजे कोडि जतन्न रे., पे.वि. ११ स्वाध्याय. पे.-२७. महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७उ., (पृ. १०४आ-१०६अ),
आदिः श्रीवीरजिणेसर सुपरे; अंतिः मुझ देज्यो भवोभवे., पे.वि. गा.२८. पे.-२८. पे. नाम. अडदोषप्रतिपक्ष अडगुण सज्झाय, पृ. १०६अ-१०६आ ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, आदिः प्रणमीय सरसति भगवती; अंतिः सहज स्वभावनी
सिद्धि., पे.वि. गा.१५. पे.-२९. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १०६आ-१०८आ आदिजिन विनतीस्तवन-शत्रुजयमण्डन, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७उ., आदिः पामी सुगुरु पसाय रे;
अंतिः विनय करीने विनवे ए., पे.वि. गा.५८. पे.-३०. पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. १०८आ-१०९आ अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदि: चेतन ज्ञान अजुवाळीए; अंतिः लहे सुयश रङ्ग
रेल रे., पे.वि. गा.२९.
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४८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे ३१. पार्श्वजिन स्तवन फारसी भाषा में, फारसी, पद्य (पृ. १०९आ-११०३), आदि गोरी पासजुं हस्तसदक: अंतिः जाहर खल्क गाजीली. पे.वि. गा.५.
"
पे. ३२. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन आ. लक्ष्मीसूरि मागु पद्य (पृ. ११०अ १११आ), आदि: प्रणमो पंचमी दिवसे अंति
"
ज्ञानमहोदय गेह रे.. पे.वि. बाळ-५.
पे. ३३. पे. नाग पञ्चमीतपविषये गुणमञ्जरीवरदत्त कथा, पृ. १११आ-११५अ
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन पं. जिनविजय, मागु पद्य वि. १७९३ आदि सुत सिद्धारथ भूपनो अंतिः सकल भवि मङ्गल करे., पे.वि. ढाळ - ६.
.
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,
पे. ३४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मागु पद्य (पृ. ११५अ ११७) आदि प्रणमी पास जिणसर; अंति गुणविजय रङ्गे भयो, पे.वि. ढाळ -६.
पे.- ३५. पे. नाम. पञ्चमीलघु स्तवन, पृ. ११७-११९अ
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ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंतिः भगति भाव प्रशंसीयो. पे. वि. गा.२१.
पे: ३६. पे नाम पञ्चमी स्तवन, पृ. ११९अ - ११९आ
ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः पञ्चमी तप तुमे करो: अंतिः पञ्चमो भेद रे., पे.वि. गा. ५.
पे. ३७. पे. नाम. ज्ञानपञ्चमी गिरवी स्तवन, पृ. ११९आ-१२१अ
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, कवि दीपविजय, मागु., पद्य, आदिः ज्ञानावरणी क्षय करी; अंतिः सहजमां भवदधि तरो., पे.वि. ढाळ - ४.
पे.-३८. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कान्ति, मागु., पद्य, (पृ. १२१अ - १२२ आ), आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंतिः कान्ति सुख पावे घणो, पे.वि. गा.८+१५+१, ढाळ - २.
पे:-३९. १२ व्रत सज्झाय, मु. विनयविजय, मागु., पद्य, (पृ. १२२आ - १२३अ), आदि: श्रीगौतम गणधर पाय; अंतिः नही कोइ तोले.
"
पे - ४०. पे. नाम. सातव्यसनोपरि स्वाध्याय, पृ. १२३अ - १२३आ
७ व्यसन राज्झाय ऋ. धर्मसी, मागु, पद्य, आदिः सात व्यसननो रे सङ्ग अंतिः कहे धर्मसी सुखकार. पे. वि.
.
·
गा. ९.
पे. ४१. इरियावही राज्झाय उपा. विनयविजय मागु पद्य वि. १७३४ (५. १२३आ-१२४आ) आदिः श्रुतदेवीना चरण
"
नमी: अंतिः विनयविजय उवझाय रे, पे. वि. गा.२३. बाळ-२.
पे ४२. पे नाम काजलमेघा तवन चोढालीयो, पृ. १२४-१३१आ
.
काजलमेघा चौढालिया, मु. नेमविजय, मागु., पद्य, वि. १८१७, आदिः प्रणमुं नित परमेश्वर; अंतिः इम नेमविजय जयकारे, पे.वि. ढाळ- १५.
पे - ४३. पे नाम, सीमन्धरस्वामीजी से स्तवन, पृ. १३१आ - १३८ आ
सीमन्धरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, पद्य, आदि स्वामी सीमंधर विनती अंतिः जसविजय बुध जयकरो, पे. वि. गा. १२५. ग्रं. १८८, डाळ- ११ प्र.पु. प्र. १८८.
पे. -४४. पे. नाम. पञ्चकारणगर्भित महावीरजिन स्तवन, पृ. १३८-१४१
५ कारण छढालिया, उपा. विनयविजय, मागु., पद्य, वि. १७३२, आदिः सिद्धारथ सुत वन्दिये; अंतिः विनय कहे आणन्द ए., पे.वि. गा.५८, ढाळ - ६.
पे-४५. पे नाम पद्मावतीना खामणा, पृ. १४१-१४२आ
पद्मावती आराधना उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पथ, आदि: हवि राणी पद्मावती अंतिः मिच्छामि दुक्कड.,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे.वि. गा.३५, ढाळ-३. पे.-४६. पे. नाम. नेमीराजुलनवरसो, पृ. १४२आ-१४५अ नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, आदिः समुद्रविजय सुत; अंतिः प्रभु उतारो भवपार.,पे.वि. गा.४०,
ढाळ-९. पे.-४७. महावीरजिन बामणवाडजीतीर्थ नीसाणी, मु. हर्षमाणिक्य, मागु., पद्य, (पृ. १४५अ-१४८आ), आदिः श्रीमाता
सरसती सेवक; अंतिः हुइ हर्षमाणिक्य मुनि., पे.वि. गा.३७. पे.-४८. बामणवाडजीतीर्थ सवैया, मु. माणिक, मागु., पद्य, (पृ. १४८आ-१४९अ), आदिः बम्भणवाड; अंतिः मानव को ___ दील छाजै., पे.वि. गा.२.. पे.-४९. कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १४८अ-१५०अ), आदिः शुद्ध संवेगी कीरिया; अंतिः
लाजे नही वलि टाला., पे.वि. गा.२२. अंतिम कुछेक गाथाएँ व कर्ता का नाम नहीं लिखा हैं. पे.-५०. ढुण्ढकपच्चीसी-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., पद्य, (पृ. १५०अ-१५१अ), आदिः श्रीश्रुतदेवी
प्रणमी; अंतिः हितकारी अधिकार., पे.वि. गा.२५. पे.-५१. पे. नाम. आदिश्वर विनती, पृ. १५१आ-१५३आ आदिजिन विनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थमण्डन, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर;
अंतिः मुनि वैरागी ईम भणी., पे.वि. गा.४५. गा.३७ के बाद गाथांक नही लिखा है. पे.५२. अतीतअनागतवर्तमानजिनचौबीसीनाम स्तवन, वा. तेजविजय, मागु., पद्य, (पृ. १५३आ-१५४आ), आदिः
सितरिसो जिन करि; अंतिः सङ्घ जयलच्छी लहइ.,पे.वि. गा.२१. पे.-५३. पे. नाम. आवती चउवीसी तीर्थकर नाम, पृ. १५४आ-१५४आ
अनागतचौवीसजिन नाम व जीव नाम, मागु., गद्य, आदिः श्रीपद्मनाभ १; अंतिः भद्रकृत्२४ स्वाति२४. पे.५४. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १५४आ-१५५अ महावीरजिन स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, आदिः सासननायक साहिबा; अंतिः मांहे बहु आनन्दी रे., पे.वि.
गा.६. पे.-५५. पे. नाम. भास, पृ. १५५अ-१५५आ
लक्ष्मीसूरि भास, मागु., पद्य, आदिः घडीय न विसरे ला घडीय; अंतिः रटडे बेली साम्भरो ला., पे.वि. गा.५. पे.-५६. पे. नाम. पार्श्वथम्भण स्तवन, पृ. १५५आ-१५५आ पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन, मु. सौभाग्यसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, आदि: हा रे प्रभु वामा रे; अंतिः सुख आतम गेह.,
पे.वि. गा.७. पे:५७. शान्तिजिन स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १५५आ-१५६अ), आदिः हां रे प्रभु अचीरा; अंतिः कीजे __ प्रभुने प्रणाम., पे.वि. गा.७. पे.-५८. पे. नाम. जिन स्तवन, पृ. १५६अ-१५६आ
पार्श्वजिन होरी , मु. रत्नसागर, प्राहिं., पद्य, आदिः रङ्ग मच्यो जिनद्वार; अंतिः मुख बोले जयकार., पे.वि. गा.७. पे.-५९.पे. नाम. पद, पृ. १५६आ-१५६आ साधारणजिन पद, मु. रुपचन्द, मागु., पद्य, आदिः आज घरे नाथ पधारे; अंति: चरणकमल जाउं वार हजार.,
पे.वि. गा.६. पे.६०. पे. नाम. नेम गीत, पृ. १५६आ-१५६आ
नेमिजिन गीत, मु. रुपचन्द, राज., पद्य, आदिः होरी खेले निरञ्जण; अंतिः द्यो कीरतार सही., पे.वि. गा.५. पे.६१. पे. नाम. पद, पृ. १५६आ-१५७अ
नेमिजिन पद, मु. उदयरतन, मागु., पद्य, आदिः स्याने आवे नेम मोह; अंतिः तो राजुल मुगते जासी., पे.वि. गा.४.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-६२. पे. नाम. आषाढभूतिनी सिझाय, पृ. १५७अ-१५९आ
आषाढाभूति सज्झाय, मु. राजविजय, मागु., पद्य, आदिः दरसन परिसह बाविसमो; अंतिः दृढता ग्रहो रे लाल.,
पे.वि. ढाळ-५. ६००२. व्रत, तपादि विधान व कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८३२, श्रेष्ठ, पृ. २१२, पे. ७४, जैदेना., ले.स्थल. अजैनगर, ले.
रामजी ब्राह्मण, (२४.५४१०.५, ११४३२). पे.-१. मेघमालाव्रत कथा, सं., गद्य, (पृ. १आ-४अ), आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंतिः पूर्वमेव उक्तं भवति. पे..२. सर्वार्थसिद्धि कथा, सं., गद्य, (पृ. ४अ-५आ), आदि: त्रैलोक्यतिलकं वीरं; अंतिः स्यात् स्वर्गमेव च. पे.-३. एकावलिव्रत कथा, मु. विशदकीर्ति, सं., पद्य, (पृ. ५आ-८आ), आदिः श्रीवीरं जिनमानम्य; अंतिः संस्तुते
तद्गुणाय., पे.वि. श्लो.५८. पे.४. द्विकावलीव्रत कथा, मु. विमलकीर्ति, सं., पद्य, (पृ. ८आ-१२अ), आदिः वासुपूज्यं जिनाधीशं; अंतिः वीतरागं
स्तुवेदाम्., पे.वि. श्लो.७९. पे.५. रत्नावलीव्रत विधान, सं., पद्य, (पृ. १२अ-१५अ), आदिः वर्द्धमानसुराभ्यर्च; अंति: गुणाप्त्यै मुदा., पे.वि. श्लो.५५. पे.६. नन्दीश्वरपङ्क्ति विधान, सं., पद्य, (पृ. १५अ-१७आ), आदिः जिनान् नत्वा जगन्नाथ; अंतिः संस्तुवेहं च नत्वा.,
पे.वि. श्लो.५१. पे-७. शीलकल्याणकव्रत विधि, मु. सुखकीर्ति, सं., पद्य, (पृ. १७आ-२१अ), आदिः जितघातीन् जिनान; अंतिः
तद्गुणाय.,पे.वि. श्लो.७१. पे..८. नक्षत्रमाला विधान, मु. परमकीर्ति, सं., पद्य, (पृ. २१अ-२२आ), आदिः चतुर्विंशतितीर्थेशान; अंतिः संस्तुवेहं
प्रणम्य., पे.वि. श्लो.२८. पे.-९. विमानपङ्क्ति विधि, मु. विमलकीर्ति, सं., पद्य, (पृ. २२आ-२४आ), आदिः श्रीमतो वृषभादीं; अंतिः तद्गुणाप्त्यै.,
पे.वि. श्लो.४१. पे..१०. मेरुपङ्क्ति विधि, मु. धवलकीर्ति, सं., पद्य, (पृ. २४आ-२६आ), आदिः जितारातीन् जगन्नाथान; अंतिः नमो
मुक्तयेस्तु., पे.वि. श्लो.४०. पे.-११. श्रुतस्कन्धतप विधान, सं., पद्य, (पृ. २६आ-२९अ), आदिः जिनेन्द्रगुरूपूर्वाङ; अंतिः श्रुतस्कन्धमीडे., पे.वि.
श्लो.५६.
पे.-१२. जिनकल्याणकदिन स्तव, प्रा., पद्य, (पृ. २९अ-२९आ), आदिः सिद्धिः पणविवि; अंतिः (१)सत्ति महोच्छवेण
(२)सत्ति महोच्छवेण हुवइ. पे.-१३. रैदव्रत कथा, गणि देवेन्द्रकीर्ति, सं., गद्य, (पृ. २९आ-३४अ), आदिः नेमिनाथं जिनं नत्त्व; अंतिः कृतिरियम्. पे.-१४. दुग्धद्वादशीव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. ३४अ-३५अ), आदिः सन्मतिजिनमानम्य गणेश; अंतिः संसारं मुक्तिभाकृतः.,
पे.वि. श्लो.२२. पे.-१५. भावनापञ्चविंशतिव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. ३५अ-३६आ), आदिः भक्त्या जिनेश्वरं; अंतिः भावनापञ्चविंशतिः.,
पे.वि. श्लो.३४. पे.-१६.२४ जिनव्रत कथा-त्रिकालवर्ती, सं., पद्य, (पृ. ३६आ-३७आ), आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: नन्दी च
सोद्भुतम्., पे.वि. श्लो.२४. पे.-१७. श्रुतस्कन्धतप विधान, सं., गद्य, (पृ. ३८अ-४०अ), आदिः षट्कर्मोपदेशमध्यात्; अंतिः भक्त्या च कर्तव्यः. पे.-१८. सिद्धचक्रतप विधान, सं., गद्य, (पृ. ४०अ-४६अ), आदिः (१) ॐ अहँ असिआउसा (२) कर्माष्टकविनिर्मुक्त; अंतिः ____ मुक्तिं लभते. पे.-१९. शीलश्रीविधान कथानक, सं., गद्य, (पृ. ४६अ-५३आ), आदिः नमस्कृत्य महावीरं; अंतिः फलं प्राप्नोति. पे.२०. द्वादशव्रत कथा-पद्यानुवाद, गणि राजेन्द्र , सं., पद्य, (पृ. ५३आ-५८आ), आदिः नेमीशं श्रीजिनं नत्व; अंतिः
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
(१)कथां विदधे प्रजां वा (२)विश्ववन्द्यान्., पे.वि. श्लो.१००+३+१. पे:२१. जिनमुखावलोकनव्रत कथा, सं., गद्य, (पृ. ५८आ-६४अ), आदि: जयन्ति भव्यांबुरुह; अंति: फलं प्राप्स्यन्ति. पे.:२२. श्रुतज्ञानतप कथा, सं., पद्य, (पृ. ६४अ-६७आ), आदिः नत्वा जैनं वचो; अंतिः ज्ञानेन मत्राचदे., पे.वि. श्लो.७७. पे.२३. सुखसम्पतिव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. ६८अ-६९आ), आदिः जितघातीन् जिनान्; अंतिः सिद्ध्यै भवत्वत्र मे.,पे.वि.
श्लो.४३. पे.-२४.१० लक्षणव्रत कथा, सं., पद्य, (प्र. ७०अ-७३अ), आदिः क्षमादिदशधा धर्म; अंति: धर्मरक्षात्र माम.,पे.वि.
श्लो.७३. पे:२५. कनकावलीव्रत, मु. विमलकीर्ति, सं., पद्य, (पृ. ७३अ-७५अ), आदिः नत्वा वीरं जगन्नाथं; अंतिः विश्ववन्द्यान्.,
पे.वि. श्लो.४९. पे..२६. मुकुटसप्तमीव्रत कथा, मु. सकलकीर्ति, सं., पद्य, (पृ. ७५अ-७७आ), आदिः नाभेयादिजिनाधीशान्; अंतिः तन्
महये.,पे.वि. श्लो.५५. पे..२७. १६ कारण व्रतकथा, सं., पद्य, (पृ. ७७आ-८३आ), आदिः प्रणम्य श्रीजिनाधीशा; अंति: यान्त्येव मुक्तालयम्.,
पे.वि. श्लो.१२८. पे.२८. मौनव्रतविधान कथा, कवि रत्नकीर्ति, सं., गद्य, (पृ. ८३आ-८५अ), आदिः इहैव जम्बूद्वीपे; अंतिः पठन्तु कवयो
गतैणसः. पे.-२९. कर्मनिर्जरणी चतुर्दशीव्रत विधान, सं., गद्य, (पृ. ८५आ-८७अ), आदिः जयन्ति भव्याम्बुरुह; अंति: गृहीत्वा स्वर्ग
गता. पे.३०. कोकिलापञ्चमीव्रत विधान, सं., गद्य, (पृ. ८७अ-८८अ), आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंतिः सुखं प्राप्नोति. पे..३१. निर्जरपञ्चमीव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. ८८अ-९०अ), आदिः सन्मतिनाथमानम्य गौतम; अंतिः सिद्धो भविष्यति.,
पे.वि. श्लो.४२. पे.-३२. आकाशपञ्चमीव्रत फल, पण्डित अभ्र, सं., पद्य, (पृ. ९०अ-९४आ), आदिः प्रणम्य वीतरागस्य; अंतिः तेव
गच्छन्ति मोक्षम्., पे.वि. श्लो.१०३. पे.-३३. आदित्यवारव्रत कथा , सं., पद्य, (पृ. ९५अ-९७अ), आदिः प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: मुक्तिभाग्भवेत्., पे.वि.
श्लो .३९. पे.-३४. कवलचन्द्रायणव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. ९७अ-९८आ), आदिः महावीरं जिनं नत्वा; अंतिः आजगाम निजं गृहम्.,
पे.वि. श्लो.४५. पे.-३५. जिनगुणसम्पतिव्रत कथा, सं., गद्य, (पृ. ९९अ-१०१अ), आदिः जिनाधीशं नमस्कृत्य; अंतिः सौख्यं प्राप्स्यति. पे.-३६. जिनरात्रिव्रत कथा, सं., गद्य, (पृ. १०१अ-१०६आ), आदिः तपोलक्ष्मीपतिं वीरं; अंतिः सौख्यं भोक्ष्यति. पे.-३७. निर्दोषसप्तमी व्रतकथा, सं., गद्य, (पृ. १०६आ-१०९अ), आदिः शान्तिनाथं नमस्यामि; अंतिः शिवसौख्यदं परम्. पे.-३८. सुगंधदशमीव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. १०९अ-११३अ), आदिः श्रीसन्मतिं सन्मानम; अंतिः यास्यति निश्चयात्., ___ पे.वि. श्लो.९६. पे.-३९. रक्षा विधान, सं., गद्य, (पृ. ११३अ-११५अ), आदिः अवन्तीदेशे उज्जयिन्य; अंतिः श्रावकाश्च जाता इति. पे.-४०. मेघमालाव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. ११५अ-११८आ), आदिः श्रीवर्द्धमानं; अंतिः दासेन वृषाभिवाञ्छया., पे.वि.
श्लो.७०. पे.-४१. रोहिणीतप कथा, सं., पद्य, (पृ. ११८आ-१२३अ), आदिः समानम्य महावीरं गौतम; अंतिः मुक्तिं लभेत सः.,पे.वि.
श्लो.९९. पे.-४२.२४ जिनव्रत कथा-त्रिकालवर्ती, कवि अभ्रदेव, सं., पद्य, (पृ. १२३अ-१२६अ), आदिः स्मृत्वा पञ्चनमस्कार; अंतिः
लभ्यते तेन मोक्ष सा., पे.वि. श्लो.७६.
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५२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-४३. रुक्मिणी चरित्र, आ. छत्रसेन, सं., पद्य, (पृ. १२६आ-१२९अ), आदिः जिनं प्रणम्य नेमीशं; अंतिः जैनीं श्रियम्.,
पे.वि. श्लो.५९. पे.-४४. चन्दनषष्टिव्रत कथा, आ. छत्रसेन, सं., पद्य, (पृ. १२९अ-१३२आ), आदिः जिनं प्रणम्य चन्द्रा; अंति: जैनी
श्रियम्.,पे.वि. श्लो.७७. पे.-४५. पुरन्दरखतविधान कथा, मु. ब्रह्मश्रुतसागर, सं., पद्य, (पृ. १३२आ-१३५आ), आदिः उमास्वामिनमर्हन्तं; अंतिः
सिद्ध्यङ्गनालालसः., पे.वि. श्लो.६३. पे.-४६. मौनव्रत कथा, आ. गुणचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. १३५आ-१४१अ), आदिः सकलज्ञानसम्पूर्णं; अंतिः नन्दत्वियं
भूतले., पे.वि. श्लो.१२९. पे.-४७. जिनकल्याणकमाला, श्रा. आशाधर, सं., पद्य, (पृ. १४१अ-१४२आ), आदिः पुरदेवादिवीरान्तजिने; अंति: स
स्यादाशाधरे डितः., पे.वि. श्लो.३५. पे.-४८. मुक्तावली कथा, सं., पद्य, (पृ. १४२आ-१४५आ), आदिः वीरमानम्य देवेन्द्रं; अंतिः मुक्तिं विशिष्टधीः., पे.वि.
श्लो.६०. पे.-४९. पे. नाम. पल्य विधान, पृ. १४५आ-१४९अ
पल्योपम विधान, सं., पद्य, आदिः वृषभं वृभं नत्वा; अंतिः मुक्तिं विशिष्टधीः., पे.वि. श्लो.८१. पे.-५०. अक्षयनिधितप कथा, सं., पद्य, (पृ. १४९अ-१५२अ), आदिः श्रीमते वर्द्धमानाय; अंतिः सौख्यं लभेत् सः., पे.वि.
श्लो.६२. पे.५१. रत्नत्रयतप कथा, सं., पद्य, (पृ. १५२अ-१५३आ), आदिः महावीरं जिनं नत्वा; अंतिः सिद्धिभाग् भवेत्., पे.वि.
श्लो.३०. पे.५२. होलीपर्व कथा, सं., पद्य, (पृ. १५३आ-१५५आ), आदिः वर्द्धमानं जिनं; अंतिः विज्ञानं वाचनोचितः., पे.वि.
श्लो .५०. पे:५३. लब्धिविधान कथा, सं., पद्य, (पृ. १५५आ-१६०आ), आदि: नमस्कृत्य महावीर; अंतिः स लभते परं पदम्., पे.वि.
श्लो.१०४. पे:५४. शीलश्रीव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. १६०आ-१६३अ), आदिः नत्वा श्रीसन्मतिं; अंतिः स्वपालकान्., पे.वि. श्लो.५१. पे.-५५. श्रुतस्कन्धतप कथा, सं., पद्य, (पृ. १६३अ-१६५आ), आदिः सन्मतिं नाथमानम्य; अंतिः मोक्षं लभेत सः., पे.वि.
श्लो.४८. पे.-५६. मौनव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. १६५आ-१६६आ), आदिः श्रीवीरजिनमानम्य; अंतिः मुक्तिभाक् भवेत्., पे.वि.
श्लो.३०. पे.-५७. कर्मनिर्जरणीव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. १६६आ-१६७आ), आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः नन्दी च सोद्भुतम्.,
पे.वि. श्लो.२३. पे.-५८. कोकिलापञ्चमीव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. १६७आ-१६९आ), आदिः प्रणम्य वीरमर्हन्तं; अंतिः सिद्धो भविष्यति.,
पे.वि. श्लो.४१. पे.-५९. मुकुटसप्तमीव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. १६९आ-१७१आ), आदि: नमस्कृत्य महावीरं; अंति: भुङ्क्ते निरन्तरम्.,
पे.वि. श्लो.४२. पे.-६०. चन्दनषष्टिव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. १७१आ-१७३आ), आदिः वर्द्धमानं जिनं; अंतिः निश्चयाद् भवेत्., पे.वि.
श्लो.४१. पे.६१. श्रावणद्वादशी व्रतकथा, सं., पद्य, (पृ. १७३आ-१७४आ), आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः नन्दी च सोद्भुतम्.,
पे.वि. श्लो.२७. पे-६२. एकावलिव्रतविधान कथा, सं., पद्य, (पृ. १७५अ-१७७आ), आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः नन्दीव सोद्भुतम्.,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
५३ पे.वि. श्लो.५२. पे.-६३. द्विकावलीव्रत कथा, सं., पद्य, (प्र. १७७आ-१७९आ), आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः नन्दी च सोदभुतम.,पे.वि.
श्लो.२५. पे.-६४. रत्नावलीव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. १७९आ-१८१आ), आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः नन्दीव सोद्भुतम्., पे.वि.
श्लो.४१. पे.६५. रुक्मिणीव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. १८१आ-१८३आ), आदिः अन्तिमं जिनमानम्य; अंतिः भुवनत्रयम्., पे.वि.
श्लो.४१. पे.६६.१० लक्षणतप कथा, सं., पद्य, (पृ. १८३आ-१८५आ), आदिः सन्मतिं जिनमानम्य; अंतिः मुक्तिं प्रयाति सः., पे.वि.
श्लो.३९. पे-६७.१६ कारण व्रतकथा, सं., पद्य, (पृ. १८५आ-१८७आ), आदिः वर्द्धमानं जिनं नत्व; अंतिः मोक्षं लभेत्सः., पे.वि.
श्लो .४१. पे.-६८. जिनपूजापुरन्दरव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. १८७आ-१९२अ), आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः स्व भूत्याप्तये., पे.वि.
श्लो.८८. पे:६९. जिनपूजापुरन्दरव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. १९२अ-१९३आ), आदिः श्रीसन्मतिं जिनं; अंतिः सयनिष्पत्ते., पे.वि.
श्लो.३१. पे.-७०. कवलचन्द्रायणव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. १९३आ-१९७आ), आदिः अथ नत्वा जिनेशानं; अंतिः कुर्वन्तु मङ्गलम्.,
पे.वि. श्लो.८७. अंत में जापमंत्र. पे.-७१. जिनरात्रीव्रत कथा, सं., पद्य, (पृ. १९७आ-२०१आ), आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः याति परमं पदम्., पे.वि. ___ श्लो.८२. पे.-७२. जिनगुणसम्पत्तिव्रत कथा, मु. लाहड, सं., पद्य, (पृ. २०१आ-२०५अ), आदिः प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंतिः तेनेयं
सत्कथा कृता., पे.वि. श्लो.७७. पे.-७३. निर्दोषसप्तमी व्रतकथा, सं., पद्य, (पृ. २०५अ-२०७अ), आदि: महावीरं जिनं नत्वा; अंतिः मोक्षं लभेत सः., पे.वि. __ श्लो.४६. पे.-७४. जिनमुखव्रत कथा , सं., पद्य, (पृ. २०७अ-२१२अ), आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः केवलं शाश्वतं पदम्., पे.वि.
श्लो.१०३. ६००३. बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., (२६४११, १५-१६x४१).
५८ बोल सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः समकित का नाम कहे छे; अंतिः जीवा का सुख जाणवां. ६००४. सज्झाय सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, पे. ६४, जैदेना., ले.- मु. खन्तिविजय, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२६४११, ११४३०). पे.-१. पे. नाम. काया उपर सझाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण
औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. पदमतिलक, मागु., पद्य, आदिः वनमाली धणी इम कहे; अंतिः मत खोड लगाई.,
पे.वि. गा.११. पे..२. पे. नाम. बाहूबल सझाय, पृ. २अ-२अ, संपूर्ण
बाहुबली सज्झाय , मु. माणिक्य, मागु., पद्य, आदिः बेहनड बोले हो बाहूबल; अंतिः चढतो छ वान., पे.वि. गा.५. पे..३. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः श्रीसरसतिने चरणे; अंतिः वाचक
देव सुजगीस., पे.वि. गा.७. पे.-४. पौषदशमीपर्व सज्झाय, मु. दानविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ, संपूर्ण), आदिः प्रणमी पास जिणेसर; अंतिः
प्रणमे तस पाय., पे.वि. गा.७.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे.५. एकादशीतिथि सज्झाय, वा. उदयरतन, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदिः आज एकादसी हे नणदल;
अंतिः अविचल लीला लेसी., पे.वि. गा.७. पे.६. मान सज्झाय, पण्डित भावसागर, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदिः अभिमान न करस्यो कोई; अंतिः
रहिया चोमासे हो., पे.वि. गा.८. इस प्रत में कर्ता का नाम भवसागर लिखा है. पे.-७. माया सज्झाय, मु. भावसागर, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण), आदिः माया मूल संसारनो; अंतिः लहे सुख
निर्वाण., पे.वि. गा.७. इस प्रत में कर्ता का नाम भवसागर लिखा है. पे.-८. पे. नाम. लोभ उपर सज्झाय, पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण
औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पण्डित भावसागर, मागु., पद्य, आदिः लोभ न करीये प्राणीया; अंतिः पामे सयल
जगीस., पे.वि. गा.८. पे.९. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-पआ, संपूर्ण), आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंतिः
वंछित फल सिधो जी., पे.वि. गा.११. पे.-१०.पे. नाम. रुष्मणी सझाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण रुक्मिणी सज्झाय, मु. राजविजय, मागु., पद्य, आदिः विचरन्ता गामोगाम; अंतिः राजविजय रङ्गे भणे., पे.वि.
गा.७. पे.-११.७ व्यसन सज्झाय, मु. जयरङ्ग, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण), आदिः पर उपगारी साध सुगुरु; अंतिः गुरु
सिस जयरङ्ग कहे., पे.वि. गा.९. पे.-१२. नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः रहो रहो रहो वालहा; अंतिः
रुपविजय जयकार., पे.वि. गा.५. पे.-१३. आध्यात्मिक पद, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण), आदिः किसके बे चेले किसके; अंतिः विराजे ___ सुख भरपूर., पे.वि. गा.४. चार-चार पदों की एक गाथा गिनने से ४ गाथा मानी गयी है. पे.-१४.पे. नाम. प्रसनचन्दऋषि सझाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण प्रसन्नचन्द्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मागु., पद्य, आदिः प्रणमुं तुमारा पाय; अंति: पाय नमुं निसदीस., पे.वि.
गा.६. पे.-१५. पे. नाम. मेतारीज ऋषि सझाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मागु., पद्य, आदिः समदम गुणना आगरुजी; अंतिः साधु तणी ए सज्झाय.,
पे.वि. गा.१३. पे.-१६. गजसुकुमाल सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण), आदिः नयरी द्वारामती;
अंतिः समयसुन्दर तसु ध्यान., पे.वि. गा.५. पे.-१७. बलदेव सज्झाय, मु. सकल, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९अ, संपूर्ण), आदिः तुङ्गीआगीर शिखर सोहे; अंतिः सकल ___ मुनि सुख देइ रे.,पे.वि. गा.८. पे.-१८. शालिभद्र सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-९आ, संपूर्ण), आदिः शालिभद्र आज तमने;
अंतिः वीरचरणे जाई लागो रे.,पे.वि. गा.५. पे.:१९. चन्दनबाला सज्झाय , मु. सिंहविमल, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण), आदिः आज हमारे आङ्गणडे; अंतिः
नित प्रणमुं पायाजी., पे.वि. गा.६. पे..२०.पे. नाम. उपदेश सज्झाय, पृ. १०अ-१०अ, संपूर्ण दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः
साहुणो त्तिबेमि., पे.वि. गा.५. पे..२१.पे. नाम. पाञ्चमी सझाय, पृ. १०आ-१०आ, संपूर्ण
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, आदिः सद्गुरू चरण पसाउले; अंतिः कांतिविजय गुण गाय
रे., पे.वि. गा.७. पे.२२. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदिः धर्म म मुकीस विनय;
अंतिः ते चिर काले वन्दो.,पे.वि. गा.८. पे.२३. औपदेशिक सज्झाया-घृत विषये, मु. लालविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः भवियण भाव
घणो धरी; अंतिः लालवि० घीनो गुण कहिउ.,पे.वि. गा.१९. पे:२४. बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण), आदिः बीज कहे भव्य; अंतिः नित्य
विविध विनोद रे., पे.वि. गा.८. पे.-२५. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण), आदिः आठम कहे आठिम दिने; __अंति: पुण्यनी रेह रे., पे.वि. गा.९. पे-२६. पे. नाम. बाहुबल सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः राजतणा अति लोभीया; अंतिः समयसुन्दर गुण
गायारे.,पे.वि. गा.७. पे:२७. सीतासती सज्झाय , मु. उदयरतन, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण), आदिः जनकसुता हुं नाम; अंतिः ___ नित्य होजो प्रणाम., पे.वि. गा.७. पे:२८. सीतासतीशील सज्झाय, गणि जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण), आदिः जलजलती मलती घणुं रे;
अंतिः नित प्रणमी जे पाय रे., पे.वि. गा.९. पे.२९. नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण), आदिः राजगृही नयरीनो वासी;
अंति: गुरुने कुण तोले हो..पे.वि. गा.१३. पे.-३०. पे. नाम. रात्रीभोजनवरत साध्याय, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण रात्रिभोजन सज्झाय, मु. वसता, मागु., पद्य, आदिः ग्यान भणो गुण खाणी; अंतिः मोक्षतणा अधिकारी रे., पे.वि.
गा.१३. प्रतिलेखक की भूल से कर्तानाम में "मुनि वसता" की जगह "मुनि वचनानि" ऐसा पाठ लिखा गया है. पे..३१. कर्म सज्झाय, मु. दान, मागु., पद्य, (पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण), आदिः सुख दुख सरज्यां; अंतिः धरम सदा
सुखकार रे., पे.वि. गा.८. पे.-३२. जीव सज्झाय , मु. सुमतिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण), आदिः समोवसरण सिङ्घासणेजी; अंतिः
प्रणमुंबे करजोडी.,पे.वि. गा.८. पे.-३३. दयापच्चीसी, मु. विवेकचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १८अ-१९आ, संपूर्ण), आदिः सयल तीर्थङ्कर करु; अंतिः मुनि ___ एह विचार., पे.वि. गा.२५. पे.-३४. पे. नाम. थुलिभद्र सझाय, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण
स्थूलिभद्र सज्झाय, कवि सहजसुन्दर, मागु., पद्य, आदिः चन्दलीया तुं वेहलो; अंतिः जोज्यौ चौमासे रे., पे.वि.
गा.६.
पे.-३५. प्राणातिपातविरमणव्रत सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. २०अ-२०अ, संपूर्ण), आदिः सकल मनोरथ
पूरवे रे; अंतिः प्रेमे प्रणमे पाय रे., पे.वि. गा.६. पे.-३६. अदत्तादानविरमणव्रत सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ, संपूर्ण), आदिः त्रिजुं महाव्रत;
अंतिः पाय नमे करजोड., पे.वि. गा.६. पे.-३७. शील सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण), आदिः सरसती केरा रे चरणकमल;
अंतिः सीयल पालो नरनारी.,पे.वि. गा.८. पे.-३८. पे. नाम. आत्म सझाय, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण
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ऑपदेशिक राज्झाय कवि मानसागर मागु, पद्य, आदि मानवभव भलो पामीयो: अंति कहे सुख लही निरवाण., पे.वि. ढाळ - २, गा.११.
पे- ३९. पे नाम, ढण्ढणाकुमार सझाय, पृ. २१आ-२२आ, संपूर्ण
ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, आदिः ढण्ढणऋषिने वन्दणा; अंतिः कहे जिनहर्ष सुजाण रे., पे.वि. गा. ९.
पे.-४०. औपदेशिक सज्झाय- परनारीपरिहार, मु. शान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. २२आ - २२आ, संपूर्ण), आदिः जीव वारु छं मोरा अंतिः जीव आवागमन निवारो., पे.वि. गा.५.
;
पे -४१. औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि मागु, पद्य, (पृ. २२आ-२३अ संपूर्ण) आदि गुण छे पुरा अंतिः भणीस हलावा रे बोल., पे.वि. गा.६.
"
रे;
पे - ४२. मधुबिन्दु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद - शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. २३अ - २४अ, संपूर्ण ), आदिः ए सरसति मुझ रे मातजी; अंतिः परमसुख इम माङ्गीये., पे.वि. गा. १०.
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पे. -४३. मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मागु., पद्य, (पृ. २४अ - २४आ, संपूर्ण), आदिः धारणी मनावे रे मेघ; अंतिः छुटे भवना पाप, पे.वि. गा. ५.
पे: ४४. अरणिकमुनि सज्झाय उपा. समयसुन्दर गणि मागु., पद्य, (पृ. २४-२५अ संपूर्ण) आदि एक दिन अरणिक जाम, अंतिः शिवनारी सुख ते वरे, पे. वि. गा. १८.
पे. ४५. पंचमवाड राज्झाय मु. केशरकुशल, मागु, पद्य, (पृ. २५-२५आ, संपूर्ण) आदि गोतम पुछे श्रीवीरने; अंतिः केशरकुशल जयकार हो., पे.वि. गा. ७.
"
,
,
पे.-४६. रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २५-२६अ, संपूर्ण), आदिः श्रीवासुपूज्य जिणन्द; अंतिः विजयलक्ष्मीसूरि भूप., पे. वि. गा. ९.
पे-४७. शालिभद्र धन्ना सज्झाय वा उदय, मागु पद्य (पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण) आदि अजिया मुनि तो वैभार अंति पाम्या भवजल तीर रे., पे.वि. गा. ७.
पे.-४८. पे. नाम. सरवारथसिद्धविमान सज्झाय, पृ. २६आ-२७आ, संपूर्ण
सर्वार्थसिद्धविमान वर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मागु., पद्य, आदि: जगदानन्दन गुणनीलो; अंतिः पुन्य थकी फले आसो रे, पे.वि. गा.१५.
पे.-४९. नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूप, मागु., पद्य, (पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण), आदि: काउसग्ग ध्याने मुनि; अंतिः निर्मल सुन्दर देह रे, पे.वि. गा. ८.
पे. ५०. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु पद्य (पृ. २८आ-२९आ, संपूर्ण), आदि: वीर कहे गौतम सुणो अंति भाख्या वयण रसाल., पे.वि. गा.२१.
"
पे.-५१. पे. नाम. दशानभद्र सज्झाय, पृ. २९आ - ३१अ, संपूर्ण
दशार्णभद्रराजा सज्झाय, मु. लालविजय, मागु., पद्य, आदिः सारद बुधदाइ सेवक, अंतिः लालविजय निशदिश., पे.वि. गा. ९.
पे. ५२. पे नाम. आत्महेतु सिझाय पृ. ३१३-३२अ संपूर्ण
"
औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि मागु, पच, आदि: विणजारा रे ऊभो रहे अंतिः समयसुन्दर इम उचरे., पे.वि. गा. १२.
.
पे. ५३. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय आ. लक्ष्मीसूरि मागु पद्य (पृ. ३२-३३आ, संपूर्ण) आदि श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंतिः सङ्घ सकल सुखदाय रे.
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पे. ५४. मृगापुत्र सज्झाय, मागु, पद्य, (पृ. ३३आ-३४अ संपूर्ण) आदि सुग्रीवनयर सोहामणुं अंतिः होज्यो त्रिकाल हो.. पे.वि. गा. १४..
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे.५५. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ३४अ-३६आ, संपूर्ण), आदिः प्रह उठी रे ___पञ्च; अंतिः कुशल नित घर अवतरे., पे.वि. ढाळ-३, गा.२५. ईस प्रति में कर्ता का नामोल्लेख नहीं है. पे.५६. पे. नाम. हितौउपदेश सज्झाय, पृ. ३६आ-३७अ, संपूर्ण
औपदेशिक श्लोकसङ्ग्रह, प्रा., पद्य, आदिः जयई जगजीवजोणी विआणओ; अंतिः भदं दम सङ्घ सुरस्स., पे.वि.
गा.१०. पे.५७. औपदेशिक सज्झाय, महमद, मागु., पद्य, (पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण), आदि: भूलो ज्ञान भमरा कांई; अंतिः लेखो
अरिहन्त हाथ., पे.वि. गा.११. पे.५८. पे. नाम. आत्मउपदेशक सिझाय, पृ. ३७आ-३८अ, संपूर्ण __ औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, आदि: मम करो काया माया; अंतिः सहजसुन्दर उपदेश रे.,
पे.वि. गा.६. पे.५९. पे. नाम. सातव्यसनोपरि सज्झाय, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण ७ व्यसन सज्झाय, ऋ. धर्मसी, मागु., पद्य, आदिः सप्त व्यसननो सङ्ग; अंतिः कहे धर्मसी सुखकार., पे.वि.
गा.९. पे.६०. १२ व्रत सज्झाय, मु. विनयविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण), आदिः श्रीगौतम गणधर पाय; अंतिः
नही कोइ तोले., पे.वि. गा.९. पे.६१.१८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३९आ-४१अ, प्रतिपूर्ण), आदिः ___ पापस्थानक पहिलं; अंतिः-, पे.वि. प्रथम ४ स्थानक की ही सज्झाय लिखी है. पे.६२. पे. नाम. मानव दशदृष्टान्त सज्झाय, पृ. ४१अ-४७आ, संपूर्ण मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टान्त सज्झाय, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १७९०, आदिः श्रीजिनवीर नमीकरी जी;
अंतिः तस्य घरे कोडि कल्याण., पे.वि. ढाळ-१०. पे..६३. खन्धकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४७आ-४८आ, संपूर्ण), आदिः नमो नमो खन्दक; अंतिः ___ सेवक सुखीयो कीजेजी.,पे.वि. ढाळ-२, गा.८+९. पे..६४. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ४८आ-४८आ-, अपूर्ण), आदिः दसविह प्रह उठी; अंतिः-, पे.वि.
___ मात्र प्रथम पत्र है. गा.५ अपूर्ण तक है. ६००५. समाधिमरणस्वरूप, पूर्ण, वि. १८२५, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(१)=१६, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, प्र.वि. श्रीऋषभ प्रसादात्.,
प्र.ले.श्लो. (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२५.५४११.५, १३४३०).
अन्तसमाधि, प्राहिं., गद्य, आदि:-; अंति: महिमा वचन गोचर है. ६००६. बावनी सङ्ग्रह, हितपच्चीसी व पद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-३(१,७ से ८)=८, पे. ५, जैदेना., ले.- साध्वीजी
फतु आर्या (गुरु साध्वीजी अखुजी). पू.वि. प्रथम व बीच के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१२.५, १९४६०). पे.-१. अक्षरबावनी, वा. किशन, प्राहिं., पद्य, वि. १७६७, (पृ. -२अ-४आ, अपूर्ण), आदि:-; अंति: कीनी उपदेश बावनी.,
पे.वि. गा.६२. प्रथम पत्र नहीं है. गा.१ से १० नहीं है. पे..२. अक्षरबावनी , मु. केशवदास, प्राहिं., पद्य, वि. १७३६, (पृ. ४आ-६आ-, अपूर्ण), आदिः ॐकार सदा सुख देत;
अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१ से ५८ तक है. पे..३. पे. नाम. हितपचीसिका, पृ. -९अ-९आ, अपूर्ण हितपच्चीसी, प्राहिं., पद्य, वि. १८३५, आदि:-; अंतिः तो सिवपुर पाइ है., पे.वि. गा.२५. मात्र अंतिम पत्र है. गा.१
से १४ नहीं है. पे.-४. अक्षरबावनी, मु. जसराजजी, मु. जिनहर्ष, प्राहिं., पद्य, वि. १७३८, (पृ. ९आ-११आ, संपूर्ण), आदिः ॐकार अपार
जगत आधार; अंति: गुणचितकु रिझाए है., पे.वि. गा.५६.
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५८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.५. वैराग्य निसाणी, मु. धर्मसी, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदिः काया माया कारमी दिन; अंतिः सुख
होइ सटकी. ६००७. आणन्द सन्धि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-१५, (२५.५४१०.५, १३-१४४४५-४७).
क सन्धि, पाठक श्रीसार, मागु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमान जिनवर चरण; अंतिः पभणइ मुनि श्रीसार. ६००८. सज्झाय, लावणी, स्तवन व निसाणी सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २३, जैदेना., (२८x११.५, १३४४०).
पे.-१. गजसुकुमाल सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मागु., पद्य, (पृ. १आ-आ), आदिः सोरठदेश मझार द्वारका; अंति: गावे
जिणराजियाजी.,पे.वि. गा.५०. पे..२. कीर्तिध्वज राजा सज्झाय, मु. खेम, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः कीरतधज राजान सूरज; अंतिः भवसागर
तिरोजी., पे.वि. गा.३६. पे.-३. राजिमती विनती, कवि कृष्णदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः सुण सुण हो राजुल के; अंतिः नारी सम
विनती कहीजी.,पे.वि. गा.१४. पे.-४. पे. नाम. नेमजी राजमती सज्झाय, पृ. ३आ-४अ
राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मागु., पद्य, आदिः सञ्जम लेईनें परिवरी; अंतिः चिन्ता सब जाय.,पे.वि. गा.१३. पे.५. पे. नाम. गाफल सज्झाय, पृ. ४अ-६अ कंसकृष्ण विवरण लावणी, ऋ. विनयचन्द, प्राहिं., पद्य, आदिः गाफल मत रहे रे मेरी; अंति: सुणतां स्नेही
आणंद., पे.वि. गा.४३. पे.६. कुगुरुबत्रीसी, भीमा, राज., पद्य, (पृ. ६अ-७अ), आदिः भांति भांति की टोपी; अंतिः राच रसा संसारा., पे.वि.
गा.३१. पे.-७. धन्नाकाकन्दी सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः सतगुरु वचन विचार कर; अंतिः पामसी केवलज्ञान.,
पे.वि. गा.१६. पे..८. पे. नाम. नेमनाथ राजमती सज्झाय, पृ. ७आ-८अ नेमराजिमती गीत, ऋ. सुन्दर, मागु., पद्य, आदिः जादूबंसी नेमजिणेसर; अंतिः सरणा दोउ चरणान्दा.. पे.वि.
गा.१६. पे.९. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदिः मैं तो नित्य नमाउ; अंतिः जिनदास० चहु
सङ्घनकु., पे.वि. गा.४. पे.-१०. पे. नाम. हितोपदेश सज्झाय, पृ. ८आ-८आ
औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचन्द, प्राहिं., पद्य, आदिः हां रे कर गुजरान; अंतिः भेट भया दुख मीटता है., पे.वि.
गा.८. पे.-११. औपदेशिक सज्झाय, ऋ. रतनचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ-९अ), आदिः हां रे ए जग जाल सुपन; अंतिः भर्म
मिटाणा रे., पे.वि. गा.८. पे.-१२. विहरमान २० जिन स्तवन, ऋ. जैमल , राज., पद्य, वि. १८२४, (पृ. ९अ-९आ), आदिः सीमन्धर युगमन्धर;
अंतिः समत अठारासै चौवीसो.,पे.वि. गा.१०. पे.-१३. पे. नाम. चौवीसी मातापिता नाम स्तवन, पृ. ९आ-१०अ
२४ जिन स्तवन, मागु., पद्य, आदि: नाभिराय राजा मरुदेवा; अंतिः पहुंति मुक्त मझार., पे.वि. गा.२५. पे..१४.२० बोल सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३३, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः किणसुं वाद विवाद; अंतिः
आतम पर उपगारजी., पे.वि. गा.१८. पे.-१५. साधारणजिन स्तवन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०आ-११अ), आदिः प्रभु मेरी विनती; अंतिः निसा वासर गुण गावै.,
पे.वि. गा.८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे. १६. धन्नाकाकन्दी सज्झाय, राज, पद्य, (प्र. ११अ ११अ), आदि: मुनिवर धनाजी महाराज अंतिः थे वरस्यो सिवराणी., पे. वि. गा.६.
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पे. १७. गीतमस्वामी सज्झाय मागु पद्य (पृ. ११अ ११अ ) आदि लबध पाटक गुण गौतम अंतिः तार तार भव तीर.. पे.वि. गा.६.
पे. १८. औपदेशिक राज्झाय मु. रतनचन्द राज, पद्य, (पृ. ११अ ११आ) आदि इण कालरो भरोसो भाई: अंति भाखी विश्वावसो ए., पे.वि. गा.११.
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;
पे. १९. साधारणजिन स्तवन, मु. हर्षकीर्ति, राज पद्य (पृ. ११-१२अ ) आदि जिण जपि जिण जपि अंतिः जपि जपि बारंबारोजी., पे.वि. गा.१३.
""
पे. २०. महावीर जिनविनती स्तवन मु. कनककीर्ति प्राहिं पद्य (पृ. १२-१२आ) आदि वन्दु श्रीजिनराय मन: अंतिः
,
सुरगा सुख लह्योजी, पे.वि. गा.१२.
,
7
पे. २१. औपदेशिक राज्झाय मु. शीलरतन प्राहिं, पद्य, (पृ. १२आ-१३अ) आदि अतीत काल जिनवर हुवा अंति जगत में ते नर नार., पे.वि. गा.२५.
(+)
पे. २२. कलियुग निसाणी, राज., पद्य, (पृ. १३अ - १४अ), आदि: वीतरागउ नमु वन्दुः अंतिः कलयुग की निसाणी रे.. पे.वि. गा.२८.
पे -२३. पे नाम उपदेसी सझाइ, पृ. १४३-१४आ
औपदेशिक सज्झाय, राज, पद्य, आदि: वोपार विध परकारनी अंति: गुर करो पिछाणी रे, पे. वि. गा. २७.
·
६००९. रत्नाकरपच्चीसी सह टवार्थ, बालावबोध व वीरद्वात्रिंशिका, संपूर्ण वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. ३. जैदेना.,
-
ले. स्थल. कपर्दीपूरी, ले. पं. देवेन्द्र, प्र. वि. संशोधित, ( २६१२, ४ - १३×३७). पे. १. पे नाम. अध्यात्मजिन स्तवन (रत्नाकर स्तोत्र ) सह टबार्थ, पृ. १७५अ
रत्नाकरपच्चीसी आ. रत्नाकरसूरि सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये.
"
"
रत्नाकरपच्चीसी-टवार्थ, मु. कुंवरविजय, मागु, गद्य वि. १७१४, आदि (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) श्रेयः क० मङ्गलीक: अंतिः (१)बोधमिह पूर्णतां दधी ( २ ) एहवो नाम पिण जणाव्यु पे.वि. मूल-श्लो. २५.
पे. २. पे. नाम. साधारण स्तोत्र सह बालावबोध, पृ. ५आ - ११आ
रत्नाकरपच्चीसी आ. रत्नाकरसूरि सं. पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये.
"
५९
रत्नाकरपच्चीसी-बालावबोध, गणि पुण्यविजय, मागु., गद्य, वि. १७७९, आदिः श्रीरत्नाकरसूरि पोते; अंतिः जयतात् भूमिमण्डले, पे. वि. मूल - श्लो. २५.
पे: ३. पे नाम वीरद्वात्रिंशिका, पृ. ११-१३अ
महावीरद्वात्रिंशिका आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि सं., पद्य, आदिः सदायोगसाम्यात् अंतिः तांश्चक्रिशक्रश्रियः..
,
ये वि. श्लो. ३३.
६०१०. अर्हदेवमहाभिषेक विधि, संपूर्ण वि. १६२७ श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना, लिखवा. आ. नेमिचन्द्रदेव (गुरु आ. धर्मचन्द्रदेव, सरस्वतीगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. यह प्रति नेमिचंद्रदेव आचार्यने स्वपठनार्थ लिखवाई, पदच्छेद सूचक लकीरेंसंधि सूचक चिह्न, संशोधित, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८.५५११५, ७२७). अर्हद्देवमहाभिषेक विधि, श्रा. आशाधर, सं., पद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० साहू; अंतिः सुखसुधाम्बुधौ मज्जति. ६०११. प्रतिक्रमणसूत्र व स्तोत्रादि, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६१ - १ (१८) = ६०, पे. ४८, जैदेना., ले. मु. सिद्धमेरु, (२६×१२,
१३-१४४२७-३८).
पे.-१. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, (पृ. १आ- ९अ, संपूर्ण ), आदिः णमो अरिहन्ताणं० जयउ; अंतिः प्रधानो जिनराजसूरि.
पे. २. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, (पृ. ९अ - १०आ, संपूर्ण), आदि: संसार विसम सायर भवजल; अंतिः तरंति ते
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भवसलिलराशि, पे.वि. गा.३४.
पे. ३. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १०आ - १३अ, संपूर्ण
पगामसज्झायसूत्र संबद्ध प्रा. गद्य, आदि: चत्तारि मङ्गलं अंतिः वन्दानि जिणे चउवीस,
पे. -४. क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. १३अ - १३आ, संपूर्ण), आदि: इच्छामि खमासणौ पिअं अंतिः इच्छामो अणुसट्ठि
पे. ५. पौषध राज्झाय खरतरगच्छीय, प्रा., पद्य, (पृ. १४-१५आ, संपूर्ण), आदि जगचूडामणिमूओ उसभो; अंतिः उप्पन्नं केवलं नाणं, पे.वि. गा.३३.
पे. ६. वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १५-१७आ, संपूर्ण), आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धेः अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं., पे.वि. मा.५०.
पे.-७. सन्थारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, (पृ. १७आ - १७आ-, अपूर्ण), आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति:-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा. ४ तक है.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे. ८. जयतिहुअण स्तोत्र आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य (प्र. १९अ २०आ, पूर्ण) आदि अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय., पे.वि. गा.३०. प्रथम पत्र नहीं है. गा. २ तक नहीं है.
"
पे.-९. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, (पृ. २१अ -३०अ, संपूर्ण), आदि: अजि
सव्वभयं; अंतिः भवे पास जिणचन्द, पे.वि. ७ स्मरण.
पे.-१०. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३०अ - ३१अ, संपूर्ण), आदिः शान्ति शान्ति; अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च., पे.वि. श्लो. १७.
पे. ११. विजयपहुत्त स्तोत्र प्रा. पद्य (पृ. ३१-३२अ संपूर्ण) आदि तिजयपहुत्तपयासाय अट्ठ: अंतिः निच्चमच्चेह पे.वि. गा. १५.
.
"
पे. १२. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि सं पद्य (पृ. ३२-३५अ संपूर्ण), आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि: अंतिः समुपैति लक्ष्मी, पे.वि. श्लो. ४४.
पे.-१३. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, (पृ. ३५अ-३८आ, संपूर्ण), आदि:
कल्याणमन्दिरमुदारमवद अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते पे.वि. श्लो. ४४.
"
पे.-१४. महावीरजिन स्तव, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३९अ -४१अ, संपूर्ण), आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंतिः दृष्टिं दयालो मयि., पे.वि. श्लो. ३०.
·
पे. १५. दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४१अ - ४३आ, संपूर्ण), आदि: दुरिअरयसमीरं मोह; अंतिः सया पायप्पणामो तुह., पे.वि. गा.४५.
"
पे. १६. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४३आ - ४६अ, संपूर्ण), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, पे. वि. गा. ५१. अंत में टिप्पण है.
पे. १७. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा. पद्य (पृ. ४६अ ४८ आ. संपूर्ण) आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा अंतिः बोहिय
"
"
इक्कणिक्काय., पे.वि. गा. ५०. अंत में टिप्पण है.
पे.-१८. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ४८आ - ५०आ, संपूर्ण), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः सावित् अप्पहिआ., पे.वि. गा. ४०.
पे १९. पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्मित आ. जिनप्रभसूरि प्रा. पद्य (पृ. ५० आ-५१अ संपूर्ण) आदि दोसावहारदक्खो
T
,
"
नालिया; अंतिः गहा न पीडन्ति, पे.वि. गा. १०.
पे.-२०. महावीरजिन वृद्धस्तवन, आ. अभयसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५१अ - ५१आ, संपूर्ण), आदिः जय जासमणे भयवं; अंतिः पढइ कहइ अभयसूरीहि., पे. वि. गा. २३.
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,
पे. २१. नमस्कार महामन्त्र स्तोत्र आ. जिनवल्लभसूरि राज, पद्य, (पृ. ५२-५३अ संपूर्ण) आदिः किं कप्पतरु रे अयाण; अंतिः सेवा देज्यो नित्त., पे. वि. गा.२६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे.२२. बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, (पृ. ५३अ-५४आ, संपूर्ण), आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः जैनं
जयति शासनम्. पे.-२३. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५४आ-५५अ, संपूर्ण), आदिः यदह्रिनमनादेव देहिन; अंतिः नित्यं मम
मङ्गलेभ्यः.,पे.वि. श्लो.४. पे.२४. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५५अ-५५अ, संपूर्ण), आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय; अंतिः कूष्माण्डी कमलेक्षणा.,
पे.वि. श्लो.४. पे.-२५. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५५अ-५५अ, संपूर्ण), आदिः ऋषभनाथ भनाथनिभानन; अंति: तनुभातनु भारती.,
पे.वि. श्लो.४. पे.२६. अष्टमीतिथि स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ५५अ-५५आ, संपूर्ण), आदिः महामङ्गलं अष्ट सोहै; अंतिः सन्ति
कल्याणदाता., पे.वि. गा.४. पे.२७. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५५आ-५६अ, संपूर्ण), आदिः पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च; अंतिः सिद्धायिका
त्रायिका., पे.वि. श्लो.४. पे.-२८. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबन्ध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, (पृ. ५६अ-५६अ, संपूर्ण), आदिः → दें कि धपमप; ___अंतिः दिशतु शासनदेवता.,पे.वि. श्लो.४. पे.-२९. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५६अ-५६आ, संपूर्ण), आदिः अविरलकमलगवलमुक्ताफल; अंतिः देवी
श्रुतोच्चयम्., पे.वि. श्लो.४. पे.-३०. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमण्डन, प्रा., पद्य, (पृ. ५६आ-५७अ, संपूर्ण), आदिः वरमुक्तियहार सुतार; अंतिः
सुहाणि कुणे सुसया., पे.वि. गा.४. पे.-३१. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ५७अ-५७अ, संपूर्ण), आदिः महीमण्डणं; अंतिः देहि मे सुद्धनाणं., पे.वि. गा.४. पे.-३२. पार्श्वजिन स्तुति-पलाङ्कित जेसलमेरमण्डन, सं., पद्य, (पृ. ५७अ-५७आ, संपूर्ण), आदिः __शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंतिः सा जिनशासनदेवता.,पे.वि. श्लो.४. पे.-३३. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५७आ-५७आ, संपूर्ण), आदिः हर्षनतासुरनिर्जरलोकं ; अंतिः शस्त निजाघः., पे.वि.
श्लो.४. पे.-३४. विहरमान २० जिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ५७आ-५७आ, संपूर्ण), आदिः पञ्चविदेह विषय; अंतिः जण ___ मनवञ्छित सारै..पे.वि. गा.४. पे.-३५. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ५८अ-५८आ, संपूर्ण), आदि: चम्पक केतकी पाडल; अंति:
जो तुंसे देवी अम्बाई..पे.वि. गा.४. पे.-३६. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५८आ-५८आ, संपूर्ण), आदिः वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवी दद्यात्सौख्यम्.,
पे.वि. श्लो.१. पे.-३७. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ५८आ-५८आ, संपूर्ण), आदिः अश्वसेन नरेसर; अंतिः
कलत्र बहु वित्त., पे.वि. गा.४. पे.-३८. शत्रुजयतीर्थ स्तुति-शत्रुञ्जयमण्डन, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ५८आ-५९अ, संपूर्ण), आदिः
श्रीशत्रुञ्जमण्डण; अंतिः तुम्ह पाय सेवता., पे.वि. गा.४. पे.-३९. दीपावलीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ५९अ-५९अ, संपूर्ण), आदिः पापायां पुरि; अंतिः
शार्दूलविक्रीडितम्., पे.वि. श्लो.४. पे.-४०. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५९अ-५९आ, संपूर्ण), आदिः अरस्य प्रवज्या; अंति: प्लवः क्षितौकल्याणा.,
पे.वि. श्लो.४. पे.-४१. महावीरजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ५९आ-५९आ, संपूर्ण), आदिः बालपणे डाबो पाय; अंतिः मेले मुक्ति साथ.,
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.वि. गा.४. पे.-४२. पार्श्वजिन स्तुति-पलबन्ध, सं., पद्य, (पृ. ६०अ-६०अ, संपूर्ण), आदिः श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्.,
पे.वि. श्लो.४. पे.४३. नेमिजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ६०अ-६०आ, संपूर्ण), आदिः सुरअसुरवन्दितपाय; अंतिः करो ते अम्बा देवीए.,
पे.वि. गा.४. पे.-४४. शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ६०आ-६०आ, संपूर्ण), आदिः सुख समिकित दायक ____ कामि; अंतिः कहै जिनलाभसूरीस., पे.वि. गा.४. पे.-४५. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ६०आ-६१अ, संपूर्ण), आदिः निरुपम सुखदायक जगनाय;
अंतिः श्रीजिनलाभसूरिन्दाजी., पे.वि. गा.४. पे.-४६. अजितजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ६१अ-६१आ, संपूर्ण), आदिः विश्वनायक लायक; अंतिः
होज्यो जय जयकारी., पे.वि. गा.४. पे.-४७. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ६१आ-६१आ, संपूर्ण), आदिः वली वली हुं ध्या; अंतिः
कहै जिनलाभसुरीन्द., पे.वि. गा.४.
पे.४८. मन्त्र-तन्त्र-यन्त्र सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ६१आ-६१आ, संपूर्ण), आदिः#; अंति:#. ६०१२. कर्मग्रन्थ विचार यन्त्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-४(१ से ४)=८, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित
है., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५४११x). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, राज., गद्य, आदि:-; अंति:६०१७. स्तवन, पद व सज्झायादि, अपूर्ण, वि. १८०१, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. ३६, जैदेना., ले.स्थल. लिंबडी, पू.वि. पत्र १४ और
१५ के बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं., (२३४१०, ३४४१५-२०). पे.१. आदिजिन स्तवन , वा. उदयविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१आ, संपूर्ण), आदिः श्रीआदीसर उलगुं रे; अंतिः
संथुण्यो श्रीजिनवरो., पे.वि. गा.२४. पे.२. औपदेशिक पद, मु. रूपचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ-२अ, संपूर्ण), आदिः मानो सीख हमारी तौ; अंति: भगतन के
हीतकारी., पे.वि. गा.५. पे..३.४ मङ्गल पद, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२अ, संपूर्ण), आदिः आज घर नाथ पधारो दीजे; अंतिः गाउ नाचू थई
थईकार रे., पे.वि. गा.४. पे.४. साधारणजिन पद, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२अ, संपूर्ण), आदिः हुं तो तेरे सङ्गनी; अंतिः तुम विनु
केसे तरु., पे.वि. गा.४. पे:५. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः सेत्रुजे शिखर; अंतिः मोहन लहे
अल्हाद.,पे.वि. गा.७. पे.६. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ति स्वाध्याय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. धर्मसी, मागु., पद्य, आदिः साचा सुज्ञानी ध्यानी; अंतिः श्रीधर्मसी वारंवारा., पे.वि.
गा.१६. पे.-७. जम्बूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदिः राजग्रही नगरी वसे; अंतिः
सिधिविजय उवज्झायो रे., पे.वि. गा.११. पे..८. नेमराजिमती सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदिः तोरणथी नेमजी वल्या; अंतिः
तुम दास हो लाल., पे.वि. गा.५. पे.९. परमार्थअष्टपदी, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-४अ, संपूर्ण), आदिः ऐसै ज्यौं प्रभु पाईइ; अंतिः एकहि तबको कहि भेटे.,
पे.वि. गा.८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
६३ पे.१०. सुविधिजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण), आदिः आस्य करीनेइं ओलगुं; अंति: प्यारो छोजी राजि.,
पे.वि. गा.६. पे.-११. बाहुबली सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदिः वीराजी मानो वीनती; अंतिः होज्यो
वन्दना खास., पे.वि. गा.९. पे..१२. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, संबद्ध, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण), आदिः नवमी नेमि
जिणन्दनइ; अंतिः विजय इम भासइ रे., पे.वि. गा.१५. पे.-१३. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रामविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः सोनानीआंगी हे सुन्दर;
अंतिः रामविजय शुभ सीसने जी. पे.-१४. कृष्ण गीत, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः सासू पूछे रे वहू; अंति: साधो मोक्ष गवाया रे., पे.वि.
गा.६. पे:१५. औपदेशिक कवित्त, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः रावण राज करे त्रिहुं; अंतिः करती दिण ए
करती को., पे.वि. गा.१. पे.-१६. दुहा सङ्ग्रह, मागु.,प्रा.,सं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. पे.-१७. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः प्रभुजीस्युं बान्धी; अंति: वालो
जिनवर एह., पे.वि. गा.७. पे.-१८. पे. नाम. नेमराजिमती स्वाध्याय, पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १९वी, आदि: गोखे रे बेठी राजुल; अंतिः होज्यो एहवि
जुगते रे., पे.वि. गा.९. पे.१९. नेमराजिमती सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८अ, संपूर्ण), आदिः तोरणथी नेमजी वल्या; अंतिः ___तुम दास हो लाल., पे.वि. गा.५. पे.-२०. आदिजिन स्तवन, मु. भीमचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः सकल कला; अंतिः भीमचन्दे गुण
गाया हो., पे.वि. गा.८. पे.-२१. सम्भवजिन स्तवन, मु. कान्ति, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९अ, संपूर्ण), आदिः हां रे प्रभु सम्भव; अंतिः सवी लेखे थइ
रे लो.,पे.वि. गा.५. पे.-२२. १४ राजलोक सज्झाय, मु. देवविजय-शिष्य , मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण), आदिः वागेस्वरी वाणी मागी;
अंतिः भावथी लहीयइ जगीस., पे.वि. गा.१०. पे.-२३. मन्त्र-तन्त्र-यन्त्र सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ९आ-९आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. पे..२४. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ, संपूर्ण), आदिः सुरिवर आगम जम्पे हो; अंतिः मोजे सहु आवी
मले रे. पे.-२५. औपदेशिक पद, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदिः अरज करू करजोडि; अंतिः ओढण पीली पामरी
जी.,पे.वि. गा.५. पे.२६. औपदेशिक पद, राज., पद्य, (पृ. ११अ-११अ, संपूर्ण), आदि: पेट पोयणरो पान रे; अंतिः दाडिमरा बीज रे. पे.-२७. औपदेशिक पद, कबीर, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदिः मछा मालली संजा योगणी; अंतिः चडावा
ए देव छे नजीत., पे.वि. गा.३. पे.-२८. नववाडि सज्झाय, वा. उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७६३, (पृ. ११आ-११आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः तेहने जाउ
भामणि., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मात्र दसवीं ढाल गा.३ अपूर्ण से है व प्रारंभ का पाठ कही अन्य जगह लिखा
है. ढाळ-१०. पे..२९. साधारणजिन स्तवन-देवनाटक विचार, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः प्रभु
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आगल नाचें; अंतिः जोवण उछक छे अति., पे.वि. गा.९.
पे. ३०. पार्श्वजिन स्तवन- शङ्खश्वर, मु. मोहनविजय, मागु, पद्य, (पृ. १२आ- १२आ, संपूर्ण) आदि अलगी रहने रहने
अलगी; अंतिः पभणै जिनमूरति लटकाली, पे.वि. गा.६.
पे.-३१. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३अ १३अ, संपूर्ण), आदिः शत्रुञ्जे ऋषभ अंतिः समयसुन्दर कहे एम. पं.वि. गा. १६.
पे.-३२. रत्नसागर सज्झाय, मु. सोहमस्वामी, मागु., पद्य, (पृ. १३अ - १३अ, संपूर्ण ), आदि: नगर रतनपुर जाणिइ; अंतिः पे.वि. गा. ७.
श्रीसोहमसामी इम भणइ.,
पे. ३३. औपदेशिक पद मागु पद्य ( १३आ-१४अ अपूर्ण) आदि जीय माह मोहन छण्ड्यो अंति:-, पे. वि.
1
·
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
पे.-३४. ज्योतिष*, सं.,मागु., पद्य, (पृ. १४- १४आ, संपूर्ण), आदि: #; अंतिः#.
पे.-३५. पार्श्वजिन स्तवन- शङ्खेश्वर, वा. उदयविजय, मागु., पद्य, (पृ. १५अ - १५आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः जिनवरतणी राजगीता., पे.वि. गा. ३६. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
"
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
·
पे. ३६. स्तवनचौवीसी, मु. मानविजय, मागु पद्य (प्र. १५-१६ आ-, अपूर्ण) आदि ऋषभ जिणन्दा ऋषभ अंतिः-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्तवन ५ गा.५ तक है.
"
६०१८. स्तोत्र, स्तुति, स्तवन सङ्ग्रह व दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण वि. १८९१ मध्यम पृ. १७-२(१ से २) १५, पे. ७ जैदेना..
ले. स्थल, बीकानेर, ले. पं. जीवराज ( खरतरगच्छ ), ( २४.५४९.५. ७०४१८).
पे.-१. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३अ ११अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो. ४४ प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्लो. १ से ७ तक नहीं है.
पे.-२. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. ११अ - १३आ, संपूर्ण), आदिः शान्ति शान्ति; अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च., पे.वि. श्लो. १७.
,
पे:-३. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. १३आ - १४आ, संपूर्ण ), आदिः उवसग्गहरं पासं पासं: अंतिः भवे पास जिणचन्द, पे.वि. गा. ५.
पे.-४. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १४आ - १४आ, संपूर्ण), आदिः ब्राह्मी चन्दनबालिका; अंतिः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्. पे.-५. गौतमस्वामी छन्द, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. १४- १६अ, संपूर्ण ), आदि: वीर जिणेसर केरो सीस; अंतिः गौतम तुठे सम्पति कोड, पे. वि. गा.९.
पे. ६. श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, (पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण), आदि: #; अंतिः #,
पे.-७. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र का हिस्सा प्रथम अध्ययन, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण
दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः
साहुणो त्तिबेमि., पे.वि.गा. ५.
६०१९. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, कल्याणमन्दिर स्तोत्र व गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६ - १(७) = १५, पे. ९, जैदेना. प्र. वि. बीच का पत्र नहीं है., (२५.५४१०.५. १४४४९).
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.
पे. १. साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय संबद्ध प्रा. सं. मागु प+ग, (पृ. १अ ४आ, १० आ-१२अ संपूर्ण) आदि नमो
"
..
अरिहन्ताणं; अंतिः समत्तं मए गहिअं.
पे. २. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, (पृ. ५-६आ, पूर्ण) आदिः
कल्याणमन्दिरमुदारमवद, अंति:-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. श्लो. १ से ४२ तक है.
पे. ३. अजितशान्ति स्तव आ. नन्दिषेणसूरि प्रा. पद्य (पृ. ८अ अ अपूर्ण) आदि अंतिः जिणवयणे आयरं
,
कुणह., पे. वि. गा. ४० प्रथम पत्र नहीं है. गा. १ से १६ तक नही है.
पे-४. आवक पाक्षिक अविचार- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मागु, गद्य (पृ. ९-१०अ संपूर्ण), आदि: नाणंमि दंसणंमि०,
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. पे.-५. वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धे; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं.,
पे.वि. गा.५०. पे.६. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मागु., पद्य, वि. १४१२, (पृ. १३अ-१५आ, संपूर्ण), आदिः वीर जिणेसर चरण
कमल; अंतिः सयल सङ्घ आनन्द करो., पे.वि. गा.४७. पे.-७.बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, (पृ. १५-१६अ, संपूर्ण), आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः जैनं जयति
शासनम्. पे..८. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः जैनं जयति
शासनम्., पे.वि. श्लो.१७+२. पे..९. कल्लाणकन्द स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. १६आ-१६आ, संपूर्ण), आदिः कल्लाणकन्दं पढमं; अंतिः अम्ह सया पसत्था.,
पे.वि. गा.४. ६०२०. स्तवन सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, पे. ५, जैदेना., (२६४१०.५, १३-१४४३९).
पे:१. पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन , मागु., पद्य, (पृ. २अ-२अ, संपूर्ण), आदिः थम्भणपुर श्रीपास; अंतिः पार्श्वनाथ चौसालो.,
पे.वि. गा.९. पे.२. पंचकल्याणक स्तवन, मु. पुण्यसागर, मागु., पद्य, (पृ. २अ-३आ, संपूर्ण), आदिः नमिय पयकमल सुभ भावि;
अंतिः एह आराहउ मुदा.,पे.वि. गा.२१. पे.३. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण), आदिः पय पणमी रे जिणवरना; अंतिः
साधुकीरति इम कहइ.,पे.वि. गा.१३. पे.-४. पे. नाम. शान्तिनाथ स्तवन, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण
शान्तिजिन स्तवन, वा. हर्षधर्म, मागु., पद्य, आदिः सूरज ऊगमतइ नमुं; अंतिः हर्षधर्मह वीनवइ.,पे.वि. गा.२३. पे.५. पे. नाम. नाणपञ्चमी स्तोत्र, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, वा. शिवदास, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः पास जिण नमुं; अंतिः तेहना गुण इम कहइ.,
पे.वि. गा.२५. ६०२१. दीक्षादि विधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ८, जैदेना., (२५.५४११, १६x४८).
पे.-१. उपधानतप विधि, सं.,मागु., गद्य, (पृ. १अ-३अ), आदिः (१) प्रथमं नन्दिः (२) तत्र प्रथमं प्रवेश; अंतिः एटली ____ आलोयण छइ. पे..२. दीक्षा विधि, सं.,प्रा., गद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदिः आदौ खमा० मुखवस्त्रिक; अंतिः परावृत्या गृह्यते. पे.-३. ज्ञानपंचमीतपउद्यापन विधि, मागु., गद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः बिम्ब ५ पुस्तक ५; अंति: नाण पञ्च पञ्च. पे.४. ब्रह्मचर्य व्रत दण्डक, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः खमासमण मुखवस्त्रिका; अंतिः सव्व० वोसिरइ. पे.-५. सम्यक्त्व आरोपण आलापक, प्रा.,सं., गद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदिः सविस्तरनन्दिपूर्वकं; अंति: गहिअं वारत्रयं
पाठः. पे:६. दीक्षा विधि, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ५अ-पआ), आदिः योग्य पुरुष स्त्री; अंतिः १ नुकार गुणावीइ. पे.-७. अनुयोग विधि, मागु.,प्रा.,सं., गद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः मुहपत्ती पडिलेही; अंतिः आलोअण दीजइ लोच कीजइ. पे..८. उपस्थापना विधि, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः खमासमण मुहप० खमा०; अंतिः काउसग्ग नवकार
प्रगट. ६०२२." विचार सङ्ग्रह, आत्मप्रबोध सज्झाय व राजुल गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ९, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें-अंतिम कुछ पत्र, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२७४१२, १५४४२-४५). पे..१.३६३ पाखंडी भेद, मागु., गद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः एकसौ असी क्रियावादी; अंतिः भाङ्गा तीनसै तेसठि.
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६६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे. २. ४ निक्षेप विचार, प्रा. मागु पद्य (प्र. २अ-२अ) आदि (१) नाम निक्षेप स्थापना (२) नामजिणाजिणनामा ठवण अंतिः दृष्टान्त कह्या छइ.
,
पे. ३. बेइन्द्रीयादिजीव आयु विचार, सं. मागु, गद्य, (पृ. २अ-२आ), आदि: त्रसनो त्रस जीव रहे अंतिः आज्ञातो ते ततो दोषः
..
पे. ४. पल्योपम विचार मागु गद्य (पृ. २आ-३अ) आदि पल्य ३ भेद उद्धार अंति प्रमाण प्ररूप्या छे.
पे. ५. स्त्रीयोनि जीवोत्पत्ति गाथा, प्रा., सं., पद्य, (पृ. ३अ - ३अ), आदि: इत्थी जोणीए सम्भवन्त; अंतिः जनयन्ति तथाविधाम, पे.वि. गा. ७.
पे - ६. २३ लब्धि विचार, मु. देव, प्रा., पद्य, (पृ. ३अ - ३आ), आदिः गङ्गावत्तसुणाभं; अंतिः लिहिओ सिरिदेवनामेण पे.वि. गा.२१.
पे. ७. पे. नाम. सात निह्नव सह बालावबोध,
"
पृ. ४अ-४अ
७ निह्नव गाथा, प्रा., पद्य, आदि: बहुयर जमालि पभवा; अंतिः पुट्ठमवड्ढं परूवन्ति.
७ निह्नव गाथा-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः क्रमालि चौद वरसे; अंतिः परै एहवो कर्म वेदै., पे. वि. मूल - गा.२.
पे. ८. औपदेशिक सज्झाय श्रा. जीवा ब्रह्मचारी मागु, पद्य, (पृ. ४अ ४आ), आदि जीवा चेतो थे नरभव: अंतिः लीज्यो
.
7
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सदा लाल., पे.वि. गा.६.
पे.-९. राजिमती लैहर्यो, राज, पद्य, (पृ. ४-४आ), आदि: कांइ भीजै कांइ भीजै; अंतिः गावत अतिसुख पावै रे, पे.वि.
गा. ३७.
६०२३. महावीरजिन, शान्तिजिन व सीमन्धरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पे ३ जैदेना, दशा वि. विवर्णपानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है अल्प, ( २६.५x११, ११-१२X४६-४८).
"
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,
पे. १. महावीर जिन स्तवन मागु पद्य वि. १६७७ (पृ. १अ - ५अ ), आदि: त्रिसलानन्दन गुण अंतिः शुक्ल पक्षि०
.
उल्हासि पे.वि. गा. ७५.
पे. २. शान्तिजिन स्तवन, मु. ब्रह्म मागु, पद्य, (पृ. ५अ ५आ), आदि गगहइ सकल कला गुणइ: अंतिः वन्दइ वारंवार, पे.वि. गा. ७.
पे - ३. सीमन्धरजिन गीत पण्डित जयवन्त, मागु पद्य (पृ. ५आ-५आ), आदि सगुण सोभागी सलूणडउ अंतिः कहइ
"
श्रीजयवन्त रे, पे. वि. गा. ५.
"
.
६०२४. प्रतिक्रमणादि विधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. सांडिलनगर, ले.- मु. सुखसागर (गुरु मु. जीतसागर) (२२.५४१०.५, ९४२५).
प्रतिक्रमणविधि सङ्ग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, गुज., मागु., प्रा., गद्य, आदिः #; अंतिः #.
६०२५. सज्झाय, बारमास व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ५, जैदेना., ( २६११, १५ - १६x४१-४२). पे. १. औपदेशिक राज्झाय मागु पद्य (पृ. १अ १आ) आदिः श्रीगुरु आगम साख्यथी अंतिः नरभव हास्यो रे जाय.. पे.वि. गा.२८.
7
पे. २. सुकोशलमुनि सज्झाय, पं. देवीचन्द, मागु., पद्य, वि. १६०२, (पृ. १आ-२ आ), आदि: जम्बूदीप मझार; अंतिः मुनि दोई पुङ्गवा ए., पे.वि. इस प्रति में कर्ता का नाम नहीं है. गा. ५०.
"
पे.-३. औपदेशिक बारहमासा, मागु., पद्य, (पृ. २आ - ३आ), आदिः अनन्त चौवीसी पाय; अंतिः आगला सुखा रे काज रे. पे. ४. महावीर जिन स्तवन ऋ. जैमल मागु पद्य (पृ. ३-४अ), आदि सिद्धारथ नन्दन मुख अंतिः आही कर्म
,
"
ठीलो., पे. वि. गा. १८.
पे. ५. खन्धकमुनि चौपाई, गणि दुर्गदास, मागु., पद्य वि. १६३५ (पृ. ४अ-६अ ) आदि मुनिसुव्रत जिन वीसमउ: अंतिः सुविचारो रे., पे.वि. गा.६६.
६०२६. गजसुकुमाल, बावीस परिषह, बुढा रास व सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. ४, जैदेना.,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
__ले.स्थल. महेसर, ले.- ऋ. रणधीर (गुरु मु. मलुकचन्द), (२५४१०.५, १७४३४-४१). पे.-१. गजसुकुमाल चौपाई, मु. माधव, मागु., पद्य, (पृ. १अ-७अ), आदिः रिठनेमि नामे हुवा; अंतिः इसीए० आण रिदय
विवेक., पे.वि. ढाळ-१४. पे.२.१६ सती सज्झाय, मु. टीकम, मागु., पद्य, वि. १७७०, (पृ. ७अ-७आ), आदिः श्रीऋषभ तणी धुया; अंतिः ते पामे __ भवपार., पे.वि. गा.१६. पे.३.२२ परिसह सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८२२, (पृ. ७आ-१३आ), आदिः श्रीआदेसर आद दै; अंतिः
बृहस्पति भलो वारो रे., पे.वि. ढाळ-२२. पे.४. बुढ़ापा रास, श्रा. मोतीचन्द, राज., पद्य, वि. १८३६, (पृ. १३आ-१७अ), आदिः दया ज माता वीनवू; अंतिः
कलजुग केरी नीसाणी., पे.वि. ढाळ-२२. ६०२७. पिण्डविशुद्धि प्रकरण आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ६, जैदेना., (२६.५४११, १३४४३).
पे.१. पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-५अ), आदि: देविन्दविन्दवन्दिय; अंति: बोहिन्तु
सोहिन्तु य..पे.वि. गा.१०३. पे..२. वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ-७आ), आदिः उसभाइजिणिन्दे पत्तेय; अंतिः ___ मुणिचंदसूरिहिं., पे.वि. गा.७१. पे.-३. विचारसप्ततिका, आ. महेन्द्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-१०आ), आदिः पडिमा मिच्छा कोडी; अंतिः सिवपासाए
सया वसह.,पे.वि. गा.७५. पे.४. सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १०आ-१३अ), आदिः दंसणसुद्धिपया; अंतिः दंसणसुद्धिं धुवं
लहइ., पे.वि. गा.७०. पे.५. प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, (पृ. १३अ-१४अ), आदिः प्रणिपत्य जिनवरे; अंतिः कण्ठगता किं न
भूषयति., पे.वि. श्लो.२९. पे.६. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. १४अ-१५आ), आदिः नमिउं चउवीस; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ.,
पे.वि. गा.३८. ६०२८. सज्झाय व स्वाध्याय सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. १४, जैदेना., (२४.५४११.५, १६४३२). पे.-१. पे. नाम. पोसह सज्झाय, पृ. १अ-१अ, संपूर्ण
पौषध सज्झाय, ऋ. कीर्ति, मागु., पद्य, आदिः श्रावकना गुणछे एकवीस; अंति: मुगति वधु ते लहइ., पे.वि. गा.११. पे..२. पे. नाम. सचित्तअचित्त स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण सचित्तअचित्त सज्झाय, मु. लालविजय, मागु., पद्य, आदिः प्रथम प्रणमुं सहि; अंतिः कहइ० वृतथी ते लहै., पे.वि.
गा.५. पे.-३. सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मागु., पद्य, (पृ. १आ-१आ, संपूर्ण), आदिः सामायिक मन सुद्ध; अंतिः
सामायिक पालो निसदीस., पे.वि. गा.५. इस प्रति में कर्ता रूप में विद्यासूरि सीस ऐसा लिखा है. पे.-४. नन्दिषेणमुनि सज्झाय, कवि चतुरङ्ग, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण), आदिः मुनिवर महियल वीचरे; अंतिः
कविजन एम वीनवे.,पे.वि. गा.६. पे.५. नववाडि सज्झाय, आ. अजितदेवसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः रमणी पशु पण्डितणीजी; अंतिः
श्रीअजितदेवसूरि कइ., पे.वि. गा.१५. पे.६. असणादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल , मागु., पद्य, (पृ. २आ-३आ, संपूर्ण), आदिः प्रणमुं श्रीगौतम;
अंतिः वीरविमल करजोडी कहे.. पे.वि. गा.१८. पे.-७. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. नेमीसागर, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदिः सालिभद्र सहोदर वैराग; अंतिः
सकल सङ्घ मङ्गलकारी., पे.वि. गा.६.
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६८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे..८. औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, अपूर्ण), आदिः पारकी होड
तुं म कर; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.३ प्रारंभ तक लिखा है, पश्चात् अन्य प्रतिलेखक द्वारा नयी
कृति लिखी गयी है. पे.९. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण), आदिः इक दिन अरणक नाम; अंतिः
करजोडी कवियण भणेजी.,पे.वि. गा.२४. पे.-१०. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदिः ढण्ढणऋषिने वन्दणा; अंतिः कहे
जिनहर्ष सुजाण रे., पे.वि. गा.९. पे.-११. राजिमतीरथनेमि सज्झाय , मु. ऋद्धिहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण), आदिः देखि मन देवर का; अंतिः
ऋद्धिहर्ष कहे एम., पे.वि. गा.१९. पे.१२. धन्नाकाकन्दी सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदिः श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंतिः
गाया हे मन में गहगही., पे.वि. गा.२२. पे.-१३.पे. नाम. खीमऋषि स्वाध्याय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण
खीमऋषि सज्झाय, मागु., पद्य, आदिः सरसति सामण द्यौ मुज; अंतिः पामे मोक्ष दुवार., पे.वि. गा.१८. पे.-१४. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. सुमतिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः हुं तो वारुं
छु; अंतिः मुगतिर्नु वासो आपो रे., पे.वि. गा.५. ६०२९. प्रतिक्रमणसूत्र व सज्झायादि, अपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. १९-९(१ से ९)=१०, पे. १२, जैदेना., ले.स्थल. गोपालपुरा,
ले.- मु. परमानन्द, (२४.५४११.५, १२४३७-४०). पे.-१. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ., पे.वि. मात्र
अंतिम पत्र है. पे.-२. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १०आ-१०आ, संपूर्ण), आदिः करेमि भन्ते पोसहं; अंति: अप्पाणं
वोसिरामि. पे.-३. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ, संपूर्ण), आदिः मन्हजिणाणं आणं; अंतिः
निच्चं सुगुरूवएसेणं., पे.वि. गा.५. पे.-४. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दण्डकविचारगर्भित, पाठक धर्मसिंह, मागु., पद्य, वि. १७२९, (पृ. १०आ-१२आ, संपूर्ण),
आदिः पूर मनोरथ पास जिणेसर; अंतिः गावै धरमसी सुजगीस ए.,पे.वि. गा.३४. पे.५. पे. नाम. धन्ना स्वाध्याय, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण
धन्नाकाकन्दी सज्झाय मु. ठाकुरसी, मागु., पद्य, आदिः जिनवाणी रे धना अमीय; अंतिः गाया हे मन मै गहगही.,
पे.वि. गा.२२. पे.६. वैराग्य सज्झाय, महम्मद काजी, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१३आ, संपूर्ण), आदिः गाफल वन्दे नीदडली; अंतिः
बीडली पार लङ्घाय., पे.वि. गा.५. पे.-७. नेमराजिमती गीत , गणि जीतसागर, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण), आदिः तोरण आया हे सखी कहे;
अंतिः नरनार इण विध करैजी., पे.वि. गा.१५. पे:८. पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण), आदि: सुरतरुनी परि दोहिलो; अंतिः
श्रीविजयदेवसूर के., पे.वि. गा.१६. पे.९. शान्तिजिन स्तवन, मु. खेम, मागु., पद्य, वि. १७४२, (पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण), आदिः श्रीशान्ति जिणेसर; अंतिः __ सिद्ध श्रीसंघ धरै., पे.वि. गा.१३. पे.-१०. शान्तिजिन स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण), आदिः सुन्दररूप सोहामणो;
अंतिः मुज आपो परमाणन्दे रे., पे.वि. गा.६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे:११. आषाढाभूति चरित्र, वा. कनकसोम, मागु., पद्य, वि. १६३८, (पृ. १६अ-१९अ, संपूर्ण), आदिः श्रीजिनवदन
निवासिनी; अंतिः श्रीसङ्घकुं सुखकारा., पे.वि. गा.६७. पे.-१२. साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण), आदिः पाञ्चे इन्द्री रे; अंति:
श्रीविजयदेवसूरिजी., पे.वि. गा.९. ६०३०. नवकार, अजितशान्ति स्तव, उपसर्गहर व भयहर स्तोत्र सह टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि.
त्रिपाठ, पू.वि. चार स्मरण हैं., (२६.५४११, १-४४५०). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंति:
नवस्मरण-सप्तस्मरणटीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनं; अंति:६०३१. स्तवनचौवीसी, एकादशी स्तवन व नेमजिन बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., (२५.५४११, १५
१७४४५). पे.-१. स्तवनचौवीसी, मु. मानविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-५अ), आदिः ऋषभ जिणन्दा ऋषभ; अंतिः मानविजय नितु
ध्यावे., पे.वि. अध्याय-२४ स्तवन. पे.२. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः प्रणमी पूछे वीरने; अंतिः भणे
भवियण सादरे., पे.वि. गा.२८. पे..३. नेमिजिन बारमासो, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः समरु माता सारदा; अंतिः लक्ष्मी सुख
जयवरो., पे.वि. गा.३५. ६०३२." कर्मविषयक स्तवन सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-२(१,६)=११, पे. ५, जैदेना., ले.- मु. ज्ञानकीर्ति (गुरु
आ. हीरानन्दसूरि, चन्द्रगच्छ),प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२४.५४१०.५, १५४५१-५६). पे.१. पे. नाम. वरकानकमण्डन श्रीपार्श्वनाथ स्तवनम्, पृ. -२अ-३अ, अपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, आ. अजितदेवसूरि, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः वञ्छित सवि सौख्य लहइ., पे.वि.
गा.४९. प्रथम पत्र नहीं है. गा.१ से २६ नहीं है. पे.२. पे. नाम. कर्मविपाके बन्धयन्त्रकबन्धन पार्श्वस्तवन, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-नवपल्लव-कर्मविपाके बन्धयन्त्रकबन्धेन, आ. अजितदेवसूरि, मागु., पद्य, आदिः श्रीनवपल्लव
पास; अंतिः मुझ छोडउ जगदीस., पे.वि. गा.४०. पे..३. पे. नाम. सत्तायन्त्रकबन्धन रावणमण्डन पार्श्वस्तव, पृ. ५अ-७आ, अपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-सत्तायन्त्रकबन्ध-रावणपार्श्व, आ. अजितदेवसूरि, मागु., पद्य, आदिः जिण ठवणा रे देखी; अंतिः
आसठा मन मूकियइ., पे.वि. गा.३०. बीच का एक पत्र नहीं है. गा.५ से १५ तक नहीं है. पे.-४. पे. नाम. महावीर स्तवन बन्धस्वामित्वयन्त्रकबन्ध, पृ. ८अ-१०आ, संपूर्ण __ महावीरजिन स्तवन-बन्धस्वामित्त्वयन्त्रबन्ध, आ. अजितदेवसूरि, मागु., पद्य, आदिः चरम जिणेसर वीनवू; अंतिः
अचल निजपद थापियइ., पे.वि. गा.५४. पे.५. पे. नाम. विचार बहुत्तरी, पृ. ११अ-१३अ, संपूर्ण षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बासठमार्गणा सज्झाय, आ. अजितदेवसूरि, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १६७४, आदिः पय
पङ्कज श्रीवीरजिण; अंतिः बहुतरि गाह विचार., पे.वि. गा.७३. ६०३३. स्नात्र पूजा, अष्टप्रकारी पूजा, चारमङ्गल पद व नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ५, जैदेना.,
ले.स्थल. पालीपुर, ले.- मु. प्रेमचन्द (गुरु ऋ. ताराचन्द, चन्द्रगच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम, (२७.५४११, १६x४५-४८). पे.-१. स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. १अ-६अ), आदिः (१) चोतिसे अतिसय (२)
मुक्तालङ्काविकार; अंतिः (१)कही सूत्र मझार (२)यथाशक्ति दान दीजै., पे.वि. कर्तानाम चौथे पेज पर है.
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७०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.२.८ प्रकारी पूजा विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, सं.,मागु., गद्य, वि. १७४३, (पृ. ६अ-८आ), आदिः प्रथम हुन्ति
सगली; अंतिः सर्वद्रव्य चढाइजै. पे..३.पे. नाम. शान्तिजिन की आरती, पृ. ८आ-८आ
शान्तिजिन आरती, प्राहिं., पद्य, आदि: जय जय आरति शान्ति; अंतिः नरनारी अमर पद पावे., पे.वि. गा.६. पे.४.४ मङ्गल पद, मु. सकलचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९अ), आदिः आज म्हारै च्यारुं; अंति: आनन्दघन० उपगार.,
पे.वि. गा.७. पे.५. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,सं.मागु., पद्य, (पृ. ९अ-१४आ), आदिः (१) उपन्नसन्नाणमहोमयाणं
(२) प्रथम बल बाकुल; अंतिः (१)सिद्धिचक्कं नमामि (२)निर्वियामि ते स्वाहा., पे.वि. गा.४६, ढाळ-११. ६०३४. स्तोत्र, स्तवन, सज्झाय, चैत्यवन्दन व पद सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, पे. ८, जैदेना., पू.वि.
प्रथम व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११, १२४३०). पे.१. गौतमस्वामी छन्द, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. -२अ-२अ, अपूर्ण), आदि:-; अंति: गौतम तुलै सम्पति कोड.,
पे.वि. गा.९. प्रथम पत्र नहीं है. गा.१ से ५ नहीं है. पे..२. श्रावक करणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. २अ-३अ, संपूर्ण), आदिः श्रावक तुं उठे परभात; अंतिः
करणि दुखहरणि छे एह., पे.वि. गा.२३. पे..३. झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्नसूरि, मागु., पद्य, वि. १७५६, (पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण), आदिः सरसति चरणे
शीस नमावी; अंतिः साम्भलतां मन आणन्दा., पे.वि. गा.४३, ढाळ-४. पे:४. महावीरजिन पारणा स्तवन, मु. माल, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण), आदिः श्रीअरिहन्त अनन्त; अंतिः तेहने __ मङ्गलमाल., पे.वि. गा.३१. पे.-५. पार्श्वजिन पद, मु. जिनचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण), आदिः अर्हत भगवत वामानन्दन; अंतिः नित्यं
रतिपतितेहम्., पे.वि. गा.३. पे.६. नमस्कारमहामन्त्र पद, मु. जिनसमुद्र, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण), आदि: जप रे जीव जाप जाप; अंतिः __जपतां सुख उदार रे., पे.वि. गा.३. पे.-७. आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण), आदिः आज ऋषभ घर आवे; अंतिः
साधुकीरति गुण गावे., पे.वि. गा.३. पे.-८. आदिजिन पद, मु. राज, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण), आदिः दीजे माहरा राज दिल; अंतिः छोजी छोजी
छोजी., पे.वि. गा.३. ६०३५. स्तवन व बारमासो सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-२(१,१२)=१४, पे. २२, जैदेना., (२५.५४११, १३४४०-४२).
पे.-१. शाश्वतजिनबिम्ब स्तवन, मु. जैनेन्द्रसागर, मागु., पद्य, (पृ. -२अ-३आ, अपूर्ण), आदि:- अंतिः जम्पइ सार ए
अधिकार ए., पे.वि. गा.६०, ढाळ-६. प्रथम पत्र नहीं है. गा.२३ तक नहीं है. पे.२. आदिजिन स्तवन, मु. गुणसागर, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण), आदि: जिन जीम जाणे होते; अंतिः तुम __तुठां आणन्द रली., पे.वि. गा.२५. पे.-३. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. उत्तमसागर, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण), आदिः श्रीसीमन्धर वीनवु; अंति: पामे
अधिक जगीसोजी., पे.वि. गा.२३. पे.४.२४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित मु. आणन्द, मागु., पद्य, वि. १५६२, (पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण), आदिः
सयल जिणेसर प्रणमुं; अंतिः तास सीस प्रणमु आणन्द., पे.वि. गा.२९. पे.५. नेमिजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण), आदिः राणी राजुल इण परि; अंतिः पाले
अविहड प्रीत रे., पे.वि. गा.१३. पे.६. नेमिजिन स्तवन, मु. कान्तिसागर, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण), आदिः नेमकुमर फागुण रमे; अंतिः कान्ति
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
७१
वन्दे० राजवी., पे.वि. गा.१०. पे-७. गिरनार-शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९अ, संपूर्ण), आदिः सारो सोरठ देश
देखाओ; अंतिः प्रभु सिर धरीया., पे.वि. गा.७. पे..८. धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण), आदिः हां रे मारे धर्म; अंतिः उलट अति
घणे रे लो..पे.वि. गा.७. पे..९. पे. नाम. नाटिक स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण साधारणजिन स्तवन-देवनाटक विचार, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., पद्य, आदिः प्रभु आगल नाचें; अंतिः जोवण
उछक छे अति.,पे.वि. गा.९. पे.-१०. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. कान, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण), आदि: महाविदेहक्षेत्रनो; अंति: गुण गाउ
नित ताहरा जी..पे.वि. गा.७. पे.११. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मानसागर, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदिः बे करजोडीने कामणि; अंतिः
मन पूगी जगीस., पे.वि. गा.१५. पे.-१२. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कान्तिसागर, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः आवो सहिअर सहु
मिलि; अंतिः उलग करे कसहीआं हे., पे.वि. गा.११. पे.-१३. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, राज., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदि: नीजरां रहस्याञ्जी; अंतिः ___जय जय श्रीमहावीर., पे.वि. गा.७. पे.१४. अभिनन्दनजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-११आ-, अपूर्ण), आदिः अरज सुणो अभिनन्दन; अंति:-, पे.वि. ____ अंत के पत्र नही हैं. गा.३ तक है. पे:१५. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, आ. कमलकलशसूरि, मागु., पद्य, (पृ. -१३अ-१३आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः ___ कमलकलससूरीसर सीस., पे.वि. गा.२१. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.७ तक नही है. पे.-१६. नेमिजिन बारमासो, मु. जिनचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण), आदिः गोखे बेठी राजुल गोरी; अंतिः
भणी जिनचन्द लाल., पे.वि. गा.१७. पे.-१७. नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण), आदिः वैशाखे वन मोरीया; अंतिः
पुहता मुगति आवास., पे.वि. गा.१५. पे.-१८. नेमिजिन स्तवन, मु. कान्ति, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१५अ, संपूर्ण), आदिः कालीने पीली वादली; अंतिः कान्ति
नमे वारंवार., पे.वि. गा.७. पे.-१९. नेमिजिन स्तवन, वा. उदयविजय, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण), आदिः पशु पुकार सुण्या; अंतिः
मिलस्ये नेणोनेण के., पे.वि. गा.७. पे..२०. पे. नाम. विहरमान अढारमाजिन स्तवन, पृ. १५आ-१५आ, संपूर्ण महाभद्रजिन स्तवन, मु. शान्तिविजय, मागु., पद्य, आदिः विहरमान अढारमा रे; अंतिः कांइ मिलवारी मनखन्त.,
पे.वि. गा.८. पे..२१. आदिजिन स्तवन, मु. श्रीविजय, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१५आ, संपूर्ण), आदिः प्रभु अनड पहाडां; अंतिः विजय
अविचल पद लह्यो., पे.वि. गा.८. पे:२२. आदिजिन स्तवन, मु. सिंहकुशल, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण), आदिः तु तो किणही नगरथी; अंतिः
साहिब सुख सम्पदा., पे.वि. गा.१०. ६०३६.” उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय-३ से १३ व ३६वाँ अध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., दशा वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है-अल्प, (२४४११.५, १३४४०). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, वा. उदयविजय, संबद्ध, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः जे थकी नवनिध
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७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
थाय. ६०३७. सज्झाय व स्तवन सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. ५, जैदेना., (२५.५४११.५, १३४२९-३३).
पे..१.१८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-९आ), आदिः पापस्थानक
पहिलं; अंतिः वाचकजस इम भाखेजी., पे.वि. १८ सज्झाय. पे.२. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कान्ति, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-११अ), आदिः हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे
घणु., पे.वि. ढाळ-२. पे.३. १२ व्रत सज्झाय, मु. विनयविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ), आदिः श्रीगौतम गणधर पाय; अंतिः नही कोइ
तोले. पे.४.७ व्यसन सज्झाय, ऋ. धर्मसी, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ), आदिः सात व्यसननो रे सङ्ग; अंतिः कहे धर्मसी
सुखकार., पे.वि. गा.९. पे.५. इरियावही सज्झाय, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७३४, (पृ. १२अ-१३अ), आदिः श्रुतदेवीना चरण नमी;
अंतिः विनयविजय उवज्झाय रे., पे.वि. ढाळ-२, गा.२३. ६०३८." बोल सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले.- मु. अमरचन्द्र (गुरु मु. फतेचन्द),
प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५४११, २०४५८).
५८ बोल सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः समजवा हेते मन राखवा; अंति:६०३९. स्तवन, सज्झाय, पद व स्तुति सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. २१-५(१ से ४,१२)=१६, पे. २४, जैदेना.,
ले.स्थल. जावालनगर, ले.- पं. केशरविजय (गुरु पं. देवेन्द्रविजय), पृ.वि. प्रारंभ व बीच का एक पत्र नहीं हैं.,
(२६४११, १२-१५४३०-३२). पे.-१.५ कारण छढालिया, उपा. विनयविजय, मागु., पद्य, वि. १७३२, (पृ. -५अ-५अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः विनय
कहे आणन्द ए., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.१ से ५५ तक नही है. पे.२.पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, (पृ. ५अ-१०आ, संपूर्ण), आदिः सकल
सिद्धिदायक; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए., पे.वि. गा.१०२. पे..३. महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७उ., (पृ. १०आ-११आ-, ____ अपूर्ण), आदिः श्रीवीरजिणेसर सुपरे; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नही हैं. गा.१ से १९ तक है. पे.-४. भगवतीसूत्र-सज्झाय, उपा. विनयविजय , संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १७३८, (पृ. -१३अ-१३आ, अपूर्ण), आदि:-; ___ अंतिः विनयविजय गुण गाय रे., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नही हैं. गा.१ से ९ तक नहीं है. पे.५. नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१५आ, संपूर्ण), आदिः समुद्रविजयनृप कुल; अंतिः
प्रभु थुण्या सानुकूल., पे.वि. गा.२७. पे.६. आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण), आदिः चेतन जो तुं ग्यान;
अंतिः अन्तरदृष्टि प्रकाशी., पे.वि. गा.८.. पे.-७. औपदेशिक पद , उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ, संपूर्ण), आदिः परम प्रभु सब जन;
अंतिः सेवक जन गुण गावे., पे.वि. गा.६. पे.८. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १६आ-१६आ, संपूर्ण), आदिः औधू नट नागर की बाजी; अंतिः
परमारथ सौई पावे., पे.वि. गा.४. पे:९. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण), आदिः औधू नाम हमारा राषे; अंतिः
सेवक जन बलिहारी., पे.वि. गा.५. पे.-१०. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७अ-१७अ, संपूर्ण), आदिः औधूं क्या सौचे तन; अंतिः सेवक
जन बलि जाही., पे.वि. गा.४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे.-११. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण), आदिः आस्या औरन की कहा; अंतिः
खेले देखै लोक तमासा.,पे.वि. गा.४. पे..१२. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७आ-१७आ, संपूर्ण), आदिः साधो भाई सुमता; अंतिः हित ___ करि कण्ठ विलाई.,पे.वि. गा.५. पे.-१३. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण), आदिः कोट कलप नारे करम; अंतिः
सुख कह्या न जाय., पे.वि. गा.४. पे.-१४. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, राज., पद्य, (पृ. १८अ-१८अ, संपूर्ण), आदिः निसदीन जोउं थांरी; अंतिः
सञ्जडीइ रङ्ग रोला., पे.वि. गा.५. पे.-१५. पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण), आदिः घोर घटा करी आयोरी; अंतिः
तब परमारथ पायोरी., पे.वि. गा.५. पे.-१६. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण), आदिः वीरजी प्यारा हो;
अंतिः नही कोई विरजीने तोले., पे.वि. गा.७. पे.-१७. पार्श्वजिन स्तवन-सूरतमण्डन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण), आदि: सुरति
मण्डण पास; अंतिः सुख धरी अविहड रङ्गो., पे.वि. गा.७. पे.-१८. महावीरजिन स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १९आ-१९आ, संपूर्ण), आदि: सासननायक साहिबा; अंतिः ___ मनमांहे बहु आवन्दरी., पे.वि. गा.६. पे-१९. अवधिज्ञान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण), आदिः पूजो पूजो अवधिज्ञान; अंतिः
जयलक्ष्मी सुख धाम रे.,पे.वि. गा.५. पे.२०.२० स्थानकतप स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण), आदिः अरिहन्त पद ध्याइये; __अंतिः लक्ष्मी पद पाया रे., पे.वि. गा.७. पे.२१.२० स्थानकतप स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ, संपूर्ण), आदिः विसस्थानिक तप; अंतिः
लक्ष्मी दातारजी., पे.वि. गा.४. पे.२२. आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण), आदिः
गजकुंभे बेसी आवे; अंतिः मोहन जयजयकार., पे.वि. गा.४. पे:२३. कालोदास सज्झाय-ज्ञानगवेषणा, उपा. मानविजय, मागु., पद्य, (पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण), आदिः ज्ञान गवेषी
प्राणीया; अंतिः मान कहे सुविचार., पे.वि. गा.७. पे.-२४. पार्श्वजिन स्तवन-शद्धेश्वर, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२१आ, संपूर्ण), आदिः अलगी रहेने तु;
अंतिः जिनगुण स्तुती लटकाली., पे.वि. गा.५. ६०४०. पञ्चप्रतिक्रमणविधि सूत्रसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. २८, जैदेना.,प्र.वि. खरतरगच्छीय पंचप्रतिक्रमण, पौषध,
साधुप्रभातिक्रिया आदि विधि सहित., (२४.५४११, १२-१४४३६-३९). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः भूमिकादिकै जाईजै. ६०४१. स्तुति, नमस्कार व चैत्यवन्दन सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. ४०, जैदेना.. पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं.,
(२५४११, १३४४०-४२). पे.-१. कल्लाणकन्द स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः कल्लाणकन्दं पढमं; अंतिः अम्ह सया पसत्था.,
पे.वि. गा.४. पे..२. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः दिन सकल मनोहर; अंतिः पुरो
मनोरथ माय., पे.वि. गा.४. पे..३. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १अ-१आ, संपूर्ण), आदिः समुद्रभुपाल कुल; अंतिः देवी जगतः किं लम्बा.,
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पे.वि. श्लो. ४.
पे. ४. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १आ आ, संपूर्ण), आदि: श्रीनेमिः पञ्चरूप: अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना.. पे.वि. श्लो. ४.
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पे.-५. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., प्रा., पद्य, (पृ. १आ - २अ, संपूर्ण ), आदिः संसारदावानलदाहनीरं, अंतिः देवि सारम्., पे.वि. श्लो. ४.
पे. ६. अष्टमीतिथि स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. २अ - २अ, संपूर्ण), आदिः अष्टमी अष्ट परमाद; अंतिः विघन दूरे हरे., पे.वि.
गा. ४.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे.-७. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदि: एकादशी अति रुअडी; अंतिः सङ्घ तथा निशदिश., पे. वि. गा.४.
पे. ८. पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. २आ-३अ, संपूर्ण), आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, पे.वि. श्लो.४.
पे - ९. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मागु., पद्य, (पृ. ३अ - ३अ, संपूर्ण), आदिः सासननायक श्रीमहावीर; अंतिः द्यो सरसती वाणीजी., पे.वि. गा. ४.
पे. -१०. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३आ - ४अ, संपूर्ण ), आदिः गौतम बोले ग्रन्थ; अंतिः सङ्घनां विघन निवारी, पे.वि. गा.४.
,
पे ११. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मागु पद्य (प्र. ४अ-४अ संपूर्ण), आदि: चम्पक केतकी पाडल अंति जी तू देव अम्बाई., पे.वि. गा. ४.
पे. १२. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी मु. लब्धिरुचि, मागु पद्य (प्र. ४-४आ, संपूर्ण ) आदि श्रीजिन गोडी पार्श्व: अंति लब्धिरुचि जयकार.
पे. १३. सिद्धचक्र स्तुति, मु. उत्तमसागर मागु पद्य (पृ. ४आ-५अ संपूर्ण), आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो अंतिः वाचक० उत्तम सीस सवाई, पे.वि. गा. ४.
पे. - १४. सिद्धचक्र स्तुति, मु. माणेकविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण), आदिः आसो चैत्र आम्बिल; अंतिः नितनित जय जयकारी जी., पे.वि. गा. ४.
.
पे. १५. पर्युषण पर्व स्तुति, मु. शान्तिकुशल, मागु पद्य (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण) आदि परव पजुसण पुन्यँ अंति: गुण गायाजी., पे.वि. गा. ४.
पे. १६. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति प्राहिं, पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण) आदि आगे पूरव वार नीवाणु अंतिः कारिज सिद्धि
हमारीजी, पे.वि. गा. ४.
पे.-१७. सीमन्धरजिन स्तुति, मु. शान्तिकुशल, मागु., पद्य, (पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण), आदि: श्रीसीमन्धर मुझनै; अंतिः शान्तिकुशल सुखदाताजी.
पे. १८. पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण ), आदि: श्रीपास जिणेसर पुजा अंतिः सुख
सम्पति हितकार
"
पे.-१९. शान्तिजिन स्तुति- फलवर्द्धि, मु. देवकुशल, राज., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः फलवधीरो मण्डण सान्ति; अंतिः कुशलनी आसा सफल करे. पं. वि. गा.४.
"
पे.-२०. पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमी, आ. उदयसमुद्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण), आदि: जय पास देवा करूँ; अंतिः सङ्घ आस्या तुरणी. पे.वि. गा.४.
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पे:- २१. नेमिजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण), आदि: सुरअसुरवन्दितपाय; अंतिः करो ते अम्बा देवीए. पे. २२. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबन्ध, आ. जिनकुशलसूरि सं., पद्य, (पृ. ७आ-८अ संपूर्ण), आदि ट्रें हैं कि धपमप अंतिः दिशतु शासनदेवता., पे.वि. श्लो. ४.
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे. २३. आदिजिन स्तुति चतुर्थी तिथि, सं., पद्य, (पृ. ८अ ८अ संपूर्ण) आदि उद्यत्सारं शोभागारं अंतिः तारा भूत्यै स्तात्.
"
पे- २४. विजयरत्नसूरि स्तुति, सं. पद्य (पृ. ८अ आ, संपूर्ण) आदि नृपतिनाभिकुलाम्बर अंति: गणाद्विपती श्रियम्.. पे.वि. श्लो. ४.
पे २५ आदिजिन स्तुति- वीसलपुरमण्डन, मु. देवकुशल, मागु, पद्य, (प्र. ८आ८.आ. संपूर्ण) आदि विसलपुर वान्दुः अंतः सङ्घना विघ्न निवार., पे.वि. गा. ४.
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पे. २६ आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ८आ-९अ संपूर्ण) आदि आनन्दानम्रकम्रत्रिदश अंतिः विघ्नमर्दीकपर्दी. पं.वि.
"
श्लो ४.
पे. २८. दीपावलीपर्व स्तुति, मागु
पे.वि. गा.१.
पे. २७. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मागु, पद्य, (पृ. ९अ - ९अ, संपूर्ण), आदि: जय जय कर मङ्गल दीपक; अंतिः भालतिलक वर हीर. पे.वि. गा.१.
"
पद्य (पृ. ९अ ९अ संपूर्ण) आदि जय मानव सेवीत: अंतिः तीर्थाधिप सुरराज..
"
पे.-२९. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ९अ - ९अ, संपूर्ण), आदिः कल्याणानि समुल्ल; अंतिः सत्कल्याणमाहात्म्यतः., पे.वि. श्लो. १.
पे.-३०. आदिजिन स्तुति, मु. सौभाग्य, मागु., पद्य, (पृ. ९अ - ९अ, संपूर्ण ), आदिः पुण्डरगिरिस्वामी; अंतिः सौभाग्यनो दातार, पे.वि. गा.१.
अंतिः
पे - ३१. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण), आदिः पुण्डरीक मण्डण पाय; सुखकन्दा जी., पे.वि. गा.१.
पे.-३२. पंचमीतिथि स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-९आ, संपूर्ण ), आदिः सिद्धवधु केरो सिणगार ; अंतिः आस्या सविमन तणी., पे.वि. गा. ४.
,
पे. ३३. आदिजिन स्तुति, कवि ऋषमदास सङ्घवी, मागु पच (पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण ) आदिः प्रह उठी बन्दु अंतिः रुषभदास गुण गाइ, पे. वि. गा. ४.
पे.-३४. सीमन्धरजिन चैत्यवन्दन, मु. हर्षविजय, मागु., पद्य, (पृ. १०अ १०अ संपूर्ण), आदि: पूरव दिशि इशान; अंतिः (१) पुरो सङ्घ जगीश (२) केवली वन्दु बे करजोड., पे.वि. गा. १०..
पे. ३५. आदिजिन नमस्कार, मु. प्रीतिविजय, मागु., पद्य, (. १०अ १०अ संपूर्ण) आदि नाभी निरेसर कुल कमल; अंतिः आवागमण निवार., पे.वि. गा.३.
पे. ३६. नेमिजिन नमस्कार कवि ऋषभ मागु, पद्य, (पृ. १० आ १० आ, संपूर्ण) आदि नेम नमु निसदीस जन्म; अंति महिमा जग मे रह्यो, पे.वि. गा. ३.
अंतिः
पे. ३७. पार्श्वजिन नमस्कार, कवि ऋषभ, मागु., पद्य, (पृ. १०आ - १०आ, संपूर्ण), आदि: वन्दु पासजिणन्द कमठ; महिमा जग कीद्ध, पे.वि. गा.३.
"
पे. - ३८. महावीर जिन नमस्कार कवि ऋषम मागु, पद्य, (प्र. १० आ १०आ, संपूर्ण), आदि वन्दु वीर जिणन्द अतिः बहोजन पाम्या पार., पे.वि. गा. ३.
पे. ३९. २४ जिन चैत्यवन्दन- भवसङ्ख्यागर्मित आ. ज्ञानविमलसूरि मागु पद्य (पृ. १०आ १० आ, संपूर्ण ) आदि प्रथम
"
·
तीर्थङ्कर तणा; अंतिः तणो ज्ञानविमल गुणगेह., पे. वि. गा.३.
पे.-४०. पंचजिन चैत्यवन्दन, मु. कमलविजय, मागु., पद्य, (पृ. १०आ- १०आ-, अपूर्ण), आदिः धुरि समरु श्रीआदिदेव; अंति:-, पे. वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्रथम गा. १ है.
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६०४२. चैत्यवन्दन, नमस्कार, स्तोत्र, अष्टक व स्तवन सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १४-२ (३ से ४) = १२, पे. ३१, जैदेना., पू. वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं., (२६×११, १३४३०-३८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे. १. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवन्दन, मु. सिद्धिविजय, मागु, पद्य, (पृ. १आ-१आ, संपूर्ण), आदि घुर समरु श्री आदिदेव अंतिः तुं तरीयो मुज तार., पे.वि. गा. ८.
पे. २. २४ जिन चैत्यवन्दन- भवसङ्ख्यागर्मित आ. ज्ञानविमलसूरि मागु पद्य (पृ. १आ- १आ, संपूर्ण ), आदि: प्रथम तीर्थङ्कर तणा; अंतिः तणो ज्ञानविमल गुणगेह., पे. वि. गा.३.
पे.-३. आदिजिन नमस्कार, मु. प्रीतिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-१आ, संपूर्ण), आदिः नाभी निरेसर कुल कमल; अंतिः आवागमण निवार, पे.वि. गा.३.
पे. -४. सीमन्धरजिन चैत्यवन्दन, मु. हर्षविजय, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२अ, संपूर्ण), आदि: पूरव दिशि इशान; अंतिः केवली वन्दु से करजोड, पे. वि. गा. १०.
पे. ५. तीर्थवन्दना चैत्यवन्दन, सं., पद्य (पृ. २अ आ अपूर्ण) आदि सद्भक्त्या देवलोके अंति, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लो. ९ तक है.
1
पे. ६. पंचजिन चैत्यवन्दन, मु. कमलविजय मागु पद्य, (पृ. ५अ-५अ संपूर्ण) आदि धुर समé श्री आदिदेव अंतिः
,
त्यां घर जयजयकार., पे.वि. गा.६.
"
पे.-७. आदिजिन चैत्यवन्दन, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, (पृ. ५अ - ५अ, संपूर्ण ), आदि: प्रथम पुजो आदिदेवः अंतिः श्रीधर्मनाथ रे नाम.. पे.वि. गा. ५.
पे.-८. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवन्दन, मागु., पद्य, (पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण ), आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंतिः शासनं ते भवे भवे., पे.वि.गा. ५.
पे.-९. सकलकुशलवल्लि चैत्यवन्दनसूत्र, सं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण), आदिः सकलकुशलवल्ली; अंतिः श्रेयसे पार्श्वनाथ:
पे.- १०. प्रार्थना स्तुति *, सं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण), आदिः दर्शनं देवदेवस्य; अंतिः ताइं सवाई वन्दामि ., पे.वि. श्लो. ५.
पे.-११. सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण), आदि:
सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः श्रीवीरजिननेत्रयो:., पे.वि. श्लो. २६.
"
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पे. १२. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवन्दन आ. लक्ष्मीसूरि मागु पद्य (पृ. ६आ-८अ संपूर्ण) आदि श्रीसौभाग्यपञ्चमी अंतिः
·
.
"
.
"
विजयलक्ष्मी गुण उचरे, पे.वि. ५ चैत्यवंदन, गा. १५.
पे. १३. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ८अ ८अ संपूर्ण), आदि: पञ्चपरमेष्ठि नमस्कार; अंतिः चापि कदाचन, पे. वि.
श्लो. ८.
पे - १४. साधारणजिन अष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं. पद्य (पृ. ८अ आ, संपूर्ण) आदि जयति जङ्गमकल्प; अंतिः विश्वाधिपः सर्ववित्., पे.वि. श्लो. ९.
,
पे. १५. साधारणजिन अष्टक, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य ( ८-अ, संपूर्ण) आदि वीतरागविगत्स्मरकोप अंतिः अभावयन्न० वीतरागः, पे.वि. श्लो. ९.
पे.-१६. सीमन्धरजिन स्तव, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, (पृ. ९अ- ९आ, संपूर्ण), आदिः जयश्रियाढ्यं; अंतिः भविता प्रभुस्त्वम्., पे.वि. श्लो. ५.
पे १७ वीतरागाष्टक, सं., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण), आदि शिवं शुद्धबुद्ध: अंतिः श्रीमानमुदं च्युताः, पे.वि. श्लो. ९. पे.-१८. पार्श्वजिन अष्टक, सं., पद्य, (पृ. १०अ १०अ संपूर्ण), आदिः सुरदानवमर्त्यमुनि; अंतिः गुरूणां सुप्रसादतः., पे.वि.
श्लो. ९.
पे.-१९. महावीरजिन अष्टक, मु. बालचन्द्र, सं., पद्य, (पृ. १०आ - १०आ, संपूर्ण), आदि: महानन्द शुद्धाश्रितं; अंतिः बालचन्द्रार्चितम्., पे.वि. श्लो. ९.
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पे. २०. साधारणजिन स्तव आ. जयानन्दसूरि सं., पद्य (पृ. १०आ ११अ संपूर्ण) आदि देवाः प्रभो यं अंति
"
,
,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
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जयानन्दमय प्रदेया., पे.वि. श्लो. ९.
पे.- २१. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तव, पृ. ११अ - ११आ, संपूर्ण
२४ जिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, आदि: जिनर्षभप्रीणितभव्यसा; अंतिः त्रैलो० लक्ष्मीश्वरा., पे.वि. श्लो. ८. पे. २२. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवन्दन, मागु, पद्य, (५. ११आ-११आ, संपूर्ण) आदि श्री आदिनाथ जगन्नाथ; अंतिः शासनं ते
भवे भवे., पे.वि. गा.५.
पे.- २३. शान्तिजिन चैत्यवन्दन, आ. चैत्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ११आ - १२अ, संपूर्ण), आदिः शान्तिं शिवं शिवपद; अंतिः पुण्यरहित नहि वीतराग, पे.वि. श्लो. ८.
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पे.-२४. पार्श्वजिन अष्टक - कलिकुण्ड, मु. कल्याण, सं., पद्य, (पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण), आदि: विबुधादिराजैर्नतपाद; अंतिः विलसत्यवश्यम्., पे.वि. श्लो. ९.
पे. २५. पार्श्वजिन चैत्यवन्दन- चिन्तामणी सं. पद्य (पृ. १२आ-१३अ संपूर्ण), आदि: पार्श्वनाथ: अंतिः चिन्तामणिपार्श्वः पे.वि. श्लो. ४.
पे. २६. साधारणजिन स्तवन, सं., पद्य, (प्र. १३अ १३अ संपूर्ण) आदि जयत्वं जगतां नाथ जय अंतिः प्रसीद परमो मयि., पे.वि. श्लो. १०.
पे. २७. सर्वज्ञ स्तवाष्टक, सं., पद्य, (पृ. १३आ-१३आ, संपूर्ण), आदिः कृतार्थोपि जगन्नाथ; अंतिः लीन भृङ्गवन्मानस मम., पे.वि. श्लो. ८.
पे. २८. सर्वज्ञ स्तव, सं. पद्य (पृ. १३आ १४अ संपूर्ण) आदिः प्रातरेव समुत्थाय: अंतिः प्रभागल० स मुक्ते:., पे.वि. श्लो. १३.
.
७७
पे. २९. पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, प्र. १४- १४आ, संपूर्ण) आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः मे वाञ्छितं नाथ.. पे.वि. श्लो. ५.
पे.-३०. प्रार्थना स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १४- १४आ, संपूर्ण), आदिः दर्शनं देवदेवस्य; अंतिः अवताणन्तगुण., पे.वि.
श्लो. ८.
पे.-३१. शाश्वताशाश्वतजिन स्तवन, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, (पृ. १४आ - १४आ-, अपूर्ण), आदिः नित्ये श्रीभुवनाधि; अंतिःपे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा. २ अपूर्ण तक है.
६०४३. चौमासी देववन्दन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २४-२ (१ से २) २२. जैदेना.. पू. वि. बीच के पत्र हैं., (२५४११,
१०x२९-३१).
चौमासीपर्व देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु, पद्य, आदि:-: अंति:
(+)
६०४४. " अङ्गुलसत्तरी प्रकरणादि संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६ पे ६ जैवेना. ले. स्थल विद्यापुर प्र. वि. टिप्पण युक्त
..
विशेष पाठ, (२५.५४११, १७०४५१-५४).
"
"
.
पे. १ अङ्गुलसप्ततिका आ. मुनिचन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. १अ २अ) आदि उसमसमगमणमुसभचिण: अंतिः रइअमिणं सपरगुणहेउं, पे. वि. गा. ६९.
पे.-२. जीवअल्पबहुत्व सङ्ग्रहणी, प्रा., पद्य, (पृ. २आ-२आ), आदिः रुअगा पत्थिम पुव्वा, अंतिः अहगामादादिणेउसिरं., पे. वि. प्रज्ञापना - तृतीय पाद से उद्धृत. गा.२०.
पे.वि.
पे.-३. कोटीशिला स्तवन, प्रा., पद्य, (पृ. २आ- ३अ), आदिः सिद्धिसुहसमिद्धाणं; अंतिः हियत्तणं सो सिवं लहइ.,
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गा. १०.
,
पे. ४. दुषमकाल श्रीश्रमणसङ्घ स्तव आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य (पृ. ३अ - ३आ), आदि: वीरजिण भुवण विस्सुय अंतिः दूसमसद्धं नमह निच्चं.. पे.वि. गा.२५.
पे.-५. कालविचार शतक, आ. मुणिचन्दसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-६अ), आदिः नमिय जिण काल कीलं; अंतिः देसिउ पडवणेहि, पे.वि. गा. १००.
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पे.-६. योनिस्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ - ६आ), आदि: देविन्दनयं विज्जा; अंतिः कुलसम्भवो भगवं., पे.वि. गा.१३.
.
६०४५. सम्यक्त्व स्वरूप संपूर्ण वि. १८४४ श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदेना ले. स्थल स्थंभतीर्थ, ले. पं. कनकविजय (गुरु पं. शुभविजय गणि) प्र. वि. द्विपाठ (२६४११.५, १४-१५४५०-५६).
सम्यक्त्व स्वरूप सं. पद्य आदि प्रणम्य परया भक्त्या अंतिः निजगुण कुसुम सुवास
.
६०४६. पञ्चमी स्तवन, पुण्याहवाचन व शुकनावली संपूर्ण वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. ५. पे ४ जैदेना, ले स्थल, बेलानगर, ले.
"
गणि रङ्गविजय, प्र. वि. श्रीअजितनाथ प्रसादात्., (२५४१२, १५०४०),
पे. १. पे नाम. पञ्चमीतपोगर्भित महावीरजिन स्तवन प्र. १अ-२अ
ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंतिः भगति
भाव प्रशंसीयो., पे.वि. ढाळ - ३, गा.२०. प्रतिलेखन वर्ष - १८६७.
पे. २. पंचमीतिथि लघुस्तवन, पं. राजलाभ गणि, मागु पद्य (प्र. २अ २अ ), आदि: प्रणमी पास जिणेसरु अंतिः हो जे नवे निधान., पे.वि. गा. ७.
"
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पे. ३. पुण्याहवाचन, सं., पच (पृ. २अ-२आ) आदि # अंतिः #.
पे.-४. शुकनावली, सं., पद्य, (पृ. ३अ - ५आ), आदिः पदं पदं पदं चैव; अंतिः प्रार्थितं सुखम्., पे.वि. श्लो. ११४.
६०४७.” चौपाई, श्लोक, स्तवन तथा सज्झाय व गीत, अपूर्ण, वि. १७७५, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. २९, जैदेना., ले. स्थल. बेलानगर,
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२८x११.५, १२-१५X३०-४५).
पे. १. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि मागु पद्य वि. १६६२ (पृ. १आ-४अ संपूर्ण ) आदि प्रथम जिनेसर पाय अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे, पे. वि. बाळ ४ पे.-२. ११ गणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. मनवञ्छित सार के., पे.वि. गा. ५.
"
पे.-३. पार्श्वजिन दसगणधर सज्झाय, गणि शीलविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण ), आदिः सरसति माता वीन; अंतिः तणो शीलविजय गुणगाया., पे.वि. गा. ५.
पे. -४. ज्योतिष चौपाई, मु. सूरचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५-५आ, संपूर्ण ), आदिः समरिय सामणि सारदी; अंति: धरमइ सम्पद गेह., पे.वि. गा. ३६.
,
पे. ५. विमलमन्त्री श्लोक, पण्डित विनीतविमल, मागु पद्य (पृ. ६अ ९आ, संपूर्ण), आदि: सरसति समरु; अति विनीतविमल गुण गायो, पे.वि. गा.१०९.
,
गा.१०१, ग्रं. १३५.
४आ-४आ, संपूर्ण ), आदिः वीर पटधर वन्दीये; अंतिः
पे. ६. पंचतीर्थ स्तवन, मु. लावण्यसमय, मागु पद्य, (पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण ) आदि आदि हे आदि जिणेसरु: अंतिः घरघर नव निधान के., पे.वि. गा.११.
पे. ७. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ललितसागर, मागु पद्य वि. १७२७ (५. १० आ १०आ, संपूर्ण) आदि समस्थ साहिब साम्भलो अंतिः दिनदिन अधिक उच्छाह.. पे.वि. गा.१०.
;
पे. ८. थावच्चाकुमार गीत उपा. समयसुन्दर गणि मागु पद्य (पृ. ११अ ११अ संपूर्ण) आदि नयरी द्वारिका निरखी;
अंतः वान्दु सहु सीधा, पे.वि. गा. ५.
पे.-९. मृगापुत्र गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य, (पृ. ११अ - ११अ, संपूर्ण), आदिः सुग्रीवनगर सोहामणुं; अंतिः ए मोटर अणगार, पे.वि. गा. ८.
पे. १०. गजसुकुमाल सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य, (पृ. ११-११अ संपूर्ण), आदि: नयरी द्वारामती; अंत समयसुन्दर तसु ध्यान., पे. वि. गा. ५.
"
पे ११. ढण्ढणकुमार गीत उपा. समयसुन्दर गणि मागु पद्य (पृ. ११३ ११आ, संपूर्ण) आदि नगरी अनोपम
7
द्वारिका अंतिः नित प्रणमुं पायोजी. पं.वि. डाळ-२ गा.२०.
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
७९
पे.-१२. प्रसन्नचन्द्रराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः मारगमें मूझने
मिल्यो; अंतिः समयसुन्दर मन धील.,पे.वि. गा.५. पे.-१३. अरणिकमुनि गीत , उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः विहरण वेला; अंतिः
त्रिकरण सुद्ध प्रणाम.,पे.वि. गा.९. पे.-१४. अवन्तिसुकमाल गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२अ, संपूर्ण), आदि: नयरीउजेणी मांहि
वसइ; अंति: मुनिवरनइ त्रिकालोजी., पे.वि. गा.५. पे.-१५. संयतीसाधु गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ, संपूर्ण), आदि: कम्पिलानगरी धणी;
अंतिः हुयइ निस्तारो रे., पे.वि. गा.११. पे.-१६. मेतारजमुनि गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः नगर राजगृह ___ आवीयोजी; अंतिः करण शुद्ध त्रिकाल., पे.वि. गा.७. पे:१७. पे. नाम. शालीभद्र गीत, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण
शालिभद्र सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः शालिभद्र आज तमने; अंतिः वीरचरणे जाई लागो
रे., पे.वि. गा.५. पे.-१८. धन्नाशालीभद्र गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः धन्नउ सालिभद्र बेउ;
अंतिः कहे हुं सदाजी हो., पे.वि. गा.८. पे-१९. गौतमस्वामी विलाप गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः मुगति समउ
जाणी करी; अंतिः समयसुन्दर कर जोडि रे., पे.वि. गा.७. पे..२०. गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण), आदिः प्रह उठी गौतम प्रणमी; अंतिः
प्रगट्यो परधान., पे.वि. गा.७. पे.२१. गौतमस्वामी गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १७वी, (पृ. १३आ-१३आ, संपूर्ण), आदिः गौतम नाम __जपो परभाते; अंतिः सुन्दर गौतम गुण गाते., पे.वि. गा.३. पे.-२२. धन्नाअणगार गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१३आ, संपूर्ण), आदिः वीर जिणन्द
समोसर्या; अंतिः निरुपम सिवसुख थाय., पे.वि. गा.८. पे.२३. भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण), आदिः भवदत्तभाई घरे
आवीओजी; अंतिः समयसुन्दर कहे सार रे.,पे.वि. गा.८. पे.२४. रथनेमि गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः जदुपति वान्दण जावतां;
अंतिः अखण्डित पाल्यो रे., पे.वि. गा.५. पे.-२५. रथनेमि गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः काल अनन्तानन्त; अंतिः हो
समयसुन्दर भणे., पे.वि. गा.८. पे:२६. राजिमतीरथनेमि गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण), आदिः रूडा रहनेमि मम;
अंतिः हां मनवाली रे., पे.वि. गा.२. पे.-२७. रथनेमिरथनेमि गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१४आ, संपूर्ण), आदिः राजुल चाली
रङ्गसु; अंतिः लाधा अविचल लील., पे.वि. गा.५. पे:२८. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१४आ, संपूर्ण), आदिः श्रेणिक रयवाडी
चड्यो ; अंतिः वन्दे रे बे करजोडि., पे.वि. गा.९. पे.२९. जम्बूस्वामी गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१४आ-, अपूर्ण), आदि: नगर राजगृह मांहि;
अंतिः-,पे.वि. अंत के पत्र नही हैं. गा.२ तक है. ६०४८. कल्पसूत्रनवव्याख्यान सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-११ सज्झाय, (२७X१२, ११४३६).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-नवव्याख्यान सज्झाय, मु. माणेक, संबद्ध, मागु., पद्य, आदिः पर्व पजुसण आवीया; अंतिः बुध माणेक मन
भाय. ६०४९." स्तवन, गीत, सज्झाय, होरी व पद सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पे. २४, जैदेना., प्र.वि. अशुद्ध
पाठ, (२६४१२, १९४५४). पे.-१. आदिजिन स्तवन, बंसी, प्राहिं., पद्य, (पृ. -२अ-२अ, संपूर्ण), आदिः श्रीआदिनाथ पणमेर; अंतिः अभय पद मोहि
दिजीए., पे.वि. गा.५. पे.२. नेमराजिमती गीत, मु. लालचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ-२अ, संपूर्ण), आदिः छबि स्याम बरण; अंतिः राह बताज्या ___ हो., पे.वि. गा.५. पे..३. औपदेशिक गीत, मु. लालचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ-२अ, संपूर्ण), आदिः दया बिन करनी दुख; अंतिः जाणी
प्रभु जैनवाणी.,पे.वि. गा.५. पे.४. गौतमस्वामी स्तवन, ऋ. चन्द्रभाण, प्राहिं., पद्य, वि. १८५५, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः अरे लाला
गौतमगणधर; अंतिः चन्द्रभाण सुखकार रे., पे.वि. गा.१२. पे.५. नेमिजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ-२आ, संपूर्ण), आदि: जै जै देव अरिहन्त; अंतिः जहि ए ____ कवल बिकसन्तजूं., पे.वि. गा.६. पे:६. सन्तसङ्गती मरहटी गीत, मु. जिणदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ-३अ, संपूर्ण), आदिः में नित नमाउं सीस; अंतिः ___णदास चहुं सङ्घन कुं., पे.वि. गा.४. पे.-७. नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. लालविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३अ, संपूर्ण), आदिः वैरागे संयम लीयो हो; अंतिः
पूरी मननी जगीस., पे.वि. गा.१३. पे.-८. आध्यात्मिक होरी, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदिः मनुषा देही पाया लाहा; अंतिः अब बी सुरत सम्भाल
रे., पे.वि. गा.१०. पे.९. साधारणजिन स्तवन, मु. उदयरतन, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदि: पामी प्रभुजीना पाय; अंतिः हूं
दामण बिलगो रे., पे.वि. गा.६. पे.-१०. नेमराजिमती गीत, ऋ. सुन्दर, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदि: जादूबंसी नेमजिणेसर; अंतिः सरणा
दोउ चरणान्दा., पे.वि. गा.१६. पे.-११. कुव्यसनत्याग सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-४अ, संपूर्ण), आदिः छांड रे छांड कुबिष्ण; अंतिः हुय मुढ कसै
तुहारी., पे.वि. गा.८. पे.-१२. साधारणजिन गीत, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण), आदिः साधु सुपात्र बडे; अंतिः अजर अमर पद ____ पाउङ्गा., पे.वि. गा.१२. पे.-१३.४ कषाय गीत, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदिः दम का नहीं भरोसा रे; अंतिः भज तज अभिमान.,
पे.वि. गा.८. पे.-१४. औपदेशिक गीत, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदि: माल मुलक अर सुख; अंतिः बालम बिछुरे प्रान.,
पे.वि. गा.५. पे.-१५. आध्यात्मिक होरी, राज., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदिः होरी खेलण दे दिन; अंतिः इणविध खेलै फाल.,
पे.वि. गा.८. पे.-१६. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण), आदिः राजतणा अति
लोभीया; अंतिः समयसुंदर वंदे पाय रे..पे.वि. गा.७. पे.-१७. औपदेशिक पद-बुढ़ापा, मु. भुधर, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५अ, संपूर्ण), आदिः आयो रे बुढापा बैरी; अंतिः फिर
पाछै पछतानी., पे.वि. गा.४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
८१
पे. १८. औपदेशिक पद, मु. मोजी, राज., पद्य, (पृ. ५अ -५अ, संपूर्ण), आदि: तोरी रे भइया तोरी; अंतिः मोजी कहै कर जोरी रे., पे.वि. गा. ५.
पे.-१९. साधारणजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ - ५अ, संपूर्ण), आदि: लागी जाउगी में तो; अंतिः प्रभु मुक्त बरुङ्गी ., पे. वि. गा. ४.
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पे.-२०. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, राज, पद्य, (पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण ), आदिः धना चौकी पर थयोजी; अंतिः भगवन्त बचन प्रमान हो, पे.वि. गा. १९.
पे. २१. जम्बूस्वामी सज्झाय पञ्चभववर्णन मु. रामजी मागु., पद्य, (प्र. ५आ-६अ, संपूर्ण) आदि श्रीजिन प्रणमु हो;
अंतिः सुख लहइ मुक्ति तणां., पे.वि. गा.३३.
पे. २२. २४ जिन स्तवन ऋ रतनचन्द प्राहिं पद्य वि. १८७९ (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदि श्रीऋषभजिणेसर ध्याउं
·
7
अंतिः जैपुर में गाया हो., पे.वि. गा.१५.
पे. -२३. पार्श्वजिन स्तवन- अन्तरिक्ष, मु. आनन्दवर्द्धन, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदि: प्रभु पासजी ताहरो; अंतिः आणन्दवर्धन वीनवे., पे.वि. गा.८.
"
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पे. २४. पार्श्वजिन स्तवन- चिन्तामणि ऋ. रतनचन्द राज, पद्य (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण) आदि चिन्तामण प्रभु पासजी; अंतिः तुम छो सुरतरु कन्द.. पे.वि. गा.९.
"
"
६०५०. वीसस्थानकतप विधि आदि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. ६, जैदेना., ले.- मकनचन्द, (२५.५X११.५, १२१३४३४-४०).
पे.-१. २० स्थानकतप उच्चारणविधि, सं., प्रा., मागु., गद्य, (पृ. १आ-३आ), आदि: प्रथम इरियावहि; अंतिः ते पदनुं नाम लीजे.
पे. २. उपधान तपविधि, सं., प्रा., मागु., गद्य, (पृ. ३आ - १०आ), आदि: प्रथम गृहस्थ शुभ; अंतिः पछी माल पेहिरि सूझै.. पे. ३. साधुवारप्रतिमा मागु. गद्य (पृ. १०आ ११अ ) आदि पहिलि प्रतिमा १ मास अंतिः एक रात्र इम रहे ए.
पे. -४. २४ माण्डला, प्रा., गद्य, (पृ. ११अ - ११आ), आदि: ६ हाथ १ प्र० १ आगाढे; अंति: पासवणे अणहियासे. पे.-५. २४ जिन राशिनक्षत्र, सं., गद्य, (पृ. ११आ - ११आ), आदिः नक्षत्र योनिश्च; अंतिः मानवगण वृषभयोनि .
पे. ६. २० स्थानकतम विधि, सं. पद्य (पृ. ११आ- १२आ) आदिः ॐ नमो अरिहन्ताणं अंतिः ॐ नमो तित्थयस लो ४.
६०५१. प्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति व स्तवनादि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३३-४(२५ से २८ ) = २९, पे. १२, जैदेना, पू.वि. बीच व
अन्त के पत्र नहीं हैं. (२६.५४११.५ १३४३८-४२).
"
पे.-१. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे. मू. पू. *, संबद्ध, प्रा., सं. मागु., प+ग, (पृ. १अ - २४आ-, अपूर्ण), आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति: पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
"
पे. २. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदि: दिन सकल मनोहर; अंतिः पुरो मनोरथ माय. पे.वि. मा.४.
पे. ३. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण), आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना., पे.वि. श्लो. ४.
पे. -४. पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ६आ - ६आ, संपूर्ण), आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, पे. वि श्लो. ४.
पे. ५. मीनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य मागु पद्य (पृ. ६आ-७अ संपूर्ण) आदि एकादशी अति रुअडी; अंतिः सङ्घ तणा निशदिश., पे.वि. गा. ४.
पे. ६. पार्श्वजिन स्तुति - नाटिकाबन्ध, आ. जिनकुशलसूरि सं., पद्य, (पृ. ७अ आ, संपूर्ण) आदि में ट्रें कि धपमप अंतिः दिशतु शासनदेवता., पे.वि. श्लो. ४.
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पे. ७. २४ दण्डक स्तुति आ जिनेश्वरसूरि सं., पद्य, (पृ. ७आ-८अ संपूर्ण), आदि: रुचितरुचिमहामणि; अंति
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रदद्यात् भारती., पे.वि. श्लो.४. पे.८. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ८अ-८अ, संपूर्ण), आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय; अंतिः कूष्माण्डी कमलेक्षणा., पे.वि.
श्लो.४. पे.९. पार्श्वजिन स्तुति-पलबन्ध, सं., पद्य, (पृ. ८अ-८आ-, संपूर्ण), आदिः श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्., पे.वि.
श्लो .४. पे.-१०. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १७१३, (पृ. -२९अ-३२आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः भविक
जन मङ्गल करो., पे.वि. गा.१०७. प्रथम पत्र नहीं है. गा.१ से १३ तक नहीं है. पे.-११.२४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणन्द, मागु., पद्य, वि. १५६२, (पृ. ३२आ-३३आ, संपूर्ण), आदि:
सयल जिणेसर प्रणमुं; अंतिः तास सीस प्रणमु आणन्द., पे.वि. गा.२९. पे.-१२. साधुवन्दना, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ३३आ-३३आ-, अपूर्ण), आदिः रिसहजिण पमुह चउवीस;
अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रथम ३ गाथा है. ६०५२. चौढालीया, सज्झाय, लावणी, व स्तवनादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. ५०, पे. ६४, जैदेना., ले.
दोलतराम, (२५४११.५, १४-१५४४१-४७). पे.१. खन्धकमुनि चौढालिया, ऋ. जैमल, राज., पद्य, वि. १८११, (पृ. १अ-४अ, संपूर्ण), आदि: नमुं वीर सासनधणीजी; ___ अंतिः सङ्कजो नरनार., पे.वि. ढाळ-४. पे.२. बलभद्रमुनि सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण), आदिः मासखमणने पारणे तपसी; अंतिः
वसे रे वयरागमे., पे.वि. गा.१४. पे..३.३० बोल सज्झाय, ऋ. लालचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण), आदिः विनय करी सीस नमाय; अंतिः
आरोजी होसी पाञ्चमो., पे.वि. गा.३०. पे.-४. औपदेशिक लावणी-पौद्गलिकसुख, मु. जिनदास, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण), आदिः सूकृत की वात रत
हाथ; अंतिः मान सुख कलपना कई रे..पे.वि. गा.६. पे:५. आदिजिन स्तवन, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८८२, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदिः आदिजिन अरज
सूणोजी; अंतिः विनन्ती करी थारी., पे.वि. गा.९.. पे:६. नागश्री सज्झाय, मु. विनयचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण), आदिः धर्मघोष आचार्यना; अंतिः सब दुख
जात परेरा रे., पे.वि. ढाळ-२. पे.-७. वेश्यासङ्गपरिहार सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण), आदिः हसती गज असवार; अंतिः यकां के धर
राज रे., पे.वि. गा.१३. पे.-८. अमरकुमार सज्झाय, मु. सेवक , मागु., पद्य, (पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण), आदिः (१) पुरव कृत करमा तणो (२)
राजग्रही नगरी भली; अंतिः ते शिवसुखने पाया रे.,पे.वि. गा.५४. पे.९. कीर्तिध्वज राजा सज्झाय, मु. खिमा, मागु., पद्य, (प्र. ९आ-१०आ, संपूर्ण), आदि: नगर अजोध्या रायजी; अंतिः
भवसार ए तिरेजी., पे.वि. ढाळ-२, गा.२८. पे.-१०. जिनरक्षितजिनपाल चौढालिया, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः अनन्त चोवीसी आगे; अंतिः ___ माहाविदेह जासी मोक्ष., पे.वि. ढाळ-४. पे.-११.२२ परिसह सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८२२, (पृ. १२आ-१८आ, संपूर्ण), आदिः श्रीआदेसर आद
दै; अंतिः मिच्छामिदुक्कड मोयजी., पे.वि. ढाळ-२२. पे.-१२. पञ्चपाण्डव सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पू. १८आ-१९अ, संपूर्ण), आदिः हस्तीनापुर नगर भलो; अंतिः
मुज आवागमन निवार रे., पे.वि. गा.२०. पे.-१३. औपदेशिक सज्झाय-निन्दक, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३५, (पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण), आदिः नवरो
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
माणस तो नन्दक; अंतिः सहर जोधपुर चोमासे ए., पे.वि. गा.२७. पे.-१४. औपदेशिक सज्झाय-कपटोपरि, ऋ. रायचन्द, राज., पद्य, वि. १८३३, (पृ. २०अ-२१अ, संपूर्ण), आदिः कपटी
माणसरो विश्वास; अंतिः आसोज तीज उचारो रे.,पे.वि. गा.२४. पे.-१५. पंचमआरा ३० बोल दुढालिया, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण), आदिः धर्मकथा हिरदे धरो;
अंतिः विनय नमे नित पाय., पे.वि. ढाळ-२. पे.-१६. गजसुकुमाल सज्झाय, मु. विनयचन्द्र, प्राहिं., पद्य, (पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण), आदि: कैसे कहुं वातवडे; अंतिः
मनवच देवकीनन्दन की., पे.वि. गा.५. पे.-१७. औपदेशिक पद, मु. विनयचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. २२आ-२२आ, संपूर्ण), आदिः धन ब्राह्मण जिण; अंतिः जीव ___ अनन्त एना छे., पे.वि. गा.१२. पे.१८. वैराग्य सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८२२, (पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण), आदिः लख चोरासी मे भमो
रे; अंतिः आतम उपगार., पे.वि. गा.२२. पे.-१९. गणधर स्तवन, ऋ. रायचन्द, राज., पद्य, (पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण), आदिः इन्द्रभुती गोतमसामी; अंतिः तिवरा
चोमासो० कावो.,पे.वि. गा.१५. पे..२०. मुक्तिमार्ग स्तवन, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, (पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण), आदिः तन्त मारग एक सुगत; अंतिः ___ म्हारी पुरो जगीस., पे.वि. गा.९. पे:२१. औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मागु., पद्य, (पृ. २४अ-२४अ, संपूर्ण), आदिः दया नर सङ्गो वाजीयो; अंतिः
तिर्थङ्कर गोत्र रे., पे.वि. गा.८. पे.-२२. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. २४अ-२४अ, संपूर्ण), आदिः जिवडो तो कहे तु सुणि; अंतिः कायाने अधर
जलाय., पे.वि. गा.५. पे.२३. सीमन्धरजिनविनती स्तवन, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८५३, (पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण), आदिः
पुण्डरीगिणी नगरी; अंतिः रचनचन्द रे अरदास.,पे.वि. गा.१३. पे.२४. सीमन्धरजिनविनती स्तवन, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, (पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण), आदिः सीमन्धरजिण साहिबा; __अंतिः वान्दु बे करजोड., पे.वि. गा.९. पे.-२५. औपदेशिक सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण), आदिः अब मन मेरे बे सुणि; अंतिः शरण इस भव
वन मे., पे.वि. गा.५. पे.-२६. वैराग्य सज्झाय, मु. रतनतिलक, मागु., पद्य, (पृ. २५आ-२५आ, संपूर्ण), आदिः काया रे वाडी कारमी; अंतिः
करिज्यो ढङ्गवाली., पे.वि. गा.८. पे.२७. महावीरजिन पद, मु. विनयचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण), आदि: मत कर ममता परभवनो; अंतिः
सहसी भव भव ना करे., पे.वि. गा.१४. पे.२८. भावना सज्झाय, मु. विनयचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८७४, (पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण), आदिः येतो दुर्लभ न भव;
अंतिः पामे छे कोड कल्याण., पे.वि. गा.११. पे.-२९. औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८७४, (पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण), आदिः श्रीजिनवरनो ए
उपदेस; अंतिः विनयचन्द ए जोडी ढाल., पे.वि. गा.२५. पे.-३०. जीवदयाप्रतिबोध गीत, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण), आदिः दुलहे नरभव भमता
दुलभ; अंतिः ज्ञानकला उजवालइ., पे.वि. गा.१६. पे..३१. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. जैतसी, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १७१७, (पृ. २७आ-३०आ, संपूर्ण), आदिः
धर्ममङ्गल महिमा; अंतिः सदाजी जयतसी जयजय रंग., पे.वि. अध्याय-१०अध्ययन. पे.-३२. सीमन्धरजिन गीत, मागु., पद्य, (पृ. ३०आ-३०आ, संपूर्ण), आदिः मुज हीयडो हे जालुओ; अंतिः कहइ मत
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मुङ्को विसारी., पे.वि. गा.७. पे.-३३. उपदेशछत्रीसी, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ३१अ-३२अ, संपूर्ण), आदिः सबद करी सतगुरु; अंति: सुणता
पातक नासे रे., पे.वि. गा.३६. पे.-३४. पे. नाम. अनाथी रिषराज चरित्र, पृ. ३२अ-३५अ, संपूर्ण
अनाथीमुनि रास, ऋ. खेमो, मागु., पद्य, वि. १७३५, आदिः वन्दियै वीर जिणेसर; अंतिः लहे पामे कोडि कल्याण.,
पे.वि. ढाल-८. प्रत में कर्तानाम दिया गया है परंतु बाकी की प्रशस्ति नहीं लिखी गयी है.. पे.३५. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, ऋ. जैमल, मागु., पद्य, (पृ. ३५अ-३६अ, संपूर्ण), आदिः मोह मिथ्यात की नींद; __ अंतिः रिषि जैमल कहे एमजी., पे.वि. गा.३५. पे.-३६. आचारछत्रीसी, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ३६अ-३७आ, संपूर्ण), आदि: गुर समज मे को नही; अंतिः
सुणज्यो भवियण प्राणी., पे.वि. गा.३७. पे.-३७. आचारछत्रीसी, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ३७आ-३८आ, संपूर्ण), आदिः शुद्ध समकित पाया; अंतिः कर्मीने
थोडो संसारो., पे.वि. गा.३८. पे.-३८. रायसंयती चौढालिया, मागु., पद्य, (पृ. ३८आ-४१अ, संपूर्ण), आदिः चरम जिणेसर प्रणमी; अंति: नामइ पातिक
जाय., पे.वि. ढाळ-४. यह कृति पेज ३८आ के बाद ३९आ से ४१अ पर पूर्ण की गई है. पे.-३९. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ३९अ-३९अ, पूर्ण), आदिः आद अनादरो जीवडो रे; अंतिः-, पे.वि. यह
कृति प्रतिलेखक द्वारा बिच में लिखि गई हैं. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.२२ तक लिखा है. पे.४०. वैराग्य सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मागु., पद्य, (पृ. ४१अ-४१अ, संपूर्ण), आदि: आज की काल चलेसी रे; अंतिः
नारी विनां सोभागी रे., पे.वि. गा.७. पे.४१. आध्यात्मिक जकडी, मागु., पद्य, (पृ. ४१आ-४१आ, संपूर्ण), आदिः बे कर जोडी कामण; अंतिः संग न कीजीये
परनारी., पे.वि. गा.४. पे.-४२. स्वार्थपच्चीसी, मागु., पद्य, वि. १८६७, (पृ. ४१आ-४२अ, संपूर्ण), आदिः भरत बाहुबल दोन्यु; अंतिः नामइ
पातिक जाय., पे.वि. गा.२५. पे.-४३. औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु. कुशल, मागु., पद्य, (पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण), आदिः सदगुरु भाखे देसना; __अंतिः कुसल कहै समझाय., पे.वि. गा.८. पे.-४४. समता सज्झाय, मु. रतनचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४२आ-४२आ, संपूर्ण), आदिः समता रस का प्याला; अंतिः पामे
केवलज्ञान., पे.वि. गा.५. पे.-४५. औपदेशिक पद, मीराबाई, राज., पद्य, (पृ. ४२आ-४२आ, संपूर्ण), आदिः सुकृत करले रे मुंजी; अंतिः भक्ती न
सुडी., पे.वि. गा.५. पे.-४६. सासुवहु सीखामण सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ४२आ-४३अ, संपूर्ण), आदिः सुणज्यो हे म्हारी; अंतिः पाछा बोन न
कहीये., पे.वि. गा.७. पे.-४७. औपदेशिक सज्झाय, ऋ. शिवलाल, राज., पद्य, (पृ. ४३अ-४३अ, संपूर्ण), आदि: जग मे कुण छे रे थारो; अंतिः
पामे भवपारो., पे.वि. गा.७. पे.४८. औपदेशिक पद, रामचन्द्र, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४३अ-४३आ, संपूर्ण), आदिः अबगत मुरात नही छे; अंतिः अव के
पार उतारो., पे.वि. गा.११. पे.४९. औपदेशिक सज्झाय-नारी, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४३आ-४४अ, संपूर्ण), आदिः मुरख के मन भावे नही; अंतिः आगेइ
छे थारी रे., पे.वि. गा.१५. पे.-५०. औपदेशिक सज्झाय, ऋ. जैमल, मागु., पद्य, (पृ. ४४अ-४४आ, संपूर्ण), आदिः तु ले जिनवरजी रो; अंतिः मेडत
काया कारज सारो., पे.वि. गा.१४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
८५
पे.५१. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ४४आ-४४आ, संपूर्ण), आदिः राजतणा अति ___ लोभीया; अंतिः समयसुंदर वंदे पाय रे., पे.वि. गा.७. पे:५२. नेमराजिमती पद, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ४४आ-४५अ, संपूर्ण), आदिः होली नेम मीले मे; अंतिः रुपचन्द
जस लीजीये., पे.वि. गा.६. पे.५३. औपदेशिक पद, आनन्दराम, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४५अ-४५अ, संपूर्ण), आदि: छीटीसी ग्यान जरासी; अंतिः सम्पत्त
बहु करणा वे., पे.वि. गा.४. पे-५४. औपदेशिक पद, मु. देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ४५अ-४५अ, संपूर्ण), आदिः कर्म शत्रु मारो काइ; अंतिः हरख
निरख गुणगाय जी., पे.वि. गा.५. पे.-५५. चन्दनबाला चौढालिया, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, वि. १८२५, (पृ. ४५अ-४७आ, संपूर्ण), आदिः अविन्यासी ____ अविकार; अंतिः सहर सखरो साम्भली., पे.वि. ढाळ-४. पे.-५६. औपदेशिक सज्झाय, वा. रत्नचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ४७आ-४८अ, संपूर्ण), आदिः ओ छे जनम जीवणो थोडो;
अंतिः इण सेती निसतरीये रे..पे.वि. गा.८. पे.-५७. निह्नव सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ४८अ-४८आ, संपूर्ण), आदिः डुंगर उपर वासरो गांठ; अंतिः छोडिने निवारी
वाणी., पे.वि. गा.२१. पे.५८. शील सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ४८आ-४९अ, संपूर्ण), आदिः ममता को नार विराणी; अंतिः जस उत्तम प्राणी.,
पे.वि. गा.६. पे.-५९. औपदेशिक पद-कायामाजन, कबीर, मागु., पद्य, (पृ. ४९अ-४९अ, संपूर्ण), आदि: भया रे काया माजन; अंतिः
भव सागर तार मुरारी., पे.वि. गा.४. पे-६०. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४९अ-४९अ, संपूर्ण), आदिः वा वा गुजरान; अंतिः चालत चाले उरादी., पे.वि.
गा.४. पे.-६१. अकल्पनीय आहारदान सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. ४९अ-४९आ, संपूर्ण), आदिः खुसामदी कर दातार री; अंतिः
जोवो हिरदे विचार., पे.वि. गा.२०. पे.-६२. औपदेशिक पद, ऋ. रतनचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४९आ-४९आ, संपूर्ण), आदिः तन धन जोबन पलक मे; अंतिः
सतगुरु चरणे आया.,पे.वि. गा.८. पे.-६३. उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचन्द, राज., पद्य, वि. १८७८, (पृ. ४९आ-५०आ, संपूर्ण), आदिः निठ निठ नर भवे
लहो; अंतिः एह दीयो उपदेस.,पे.वि. गा.२७.
पे.-६४. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ५०आ-५०आ, संपूर्ण), आदि:#; अंतिः#. ६०५३." स्तवन व सज्झायादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. २०, जैदेना., ले.स्थल. कासंद्रा, ले.- मु.
शिवरतन, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-बीच का एक पत्र, (२६४११.५, १५-१६४३२-३३). पे..१. धर्मजिन आत्मज्ञानप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , आधारित, मागु., पद्य, वि. १७१६, (पृ. १आ-७अ), आदि:
चिदानन्द चित चिन्तवु; अंतिः विनयविजय रस पूरि., पे.वि. मूल-गा.१२५. सलंग गाथा क्रमांक-१२५. पे.२. प्रदक्षिणा दूहा, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-८आ), आदिः अनन्त चोऊवीसी जिन; अंतिः ते सुधा अणगार., पे.वि. गा.४०.
सलंग गाथा क्रमांक-१२५ से १६४ तक. पे..३. एकादशीतिथि पुराण, मु. भूषणदास, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-१०आ), आदिः मिथ्यात्वीनो मत जुओ; अंतिः विष्णु
भूषण प्रमाणि., पे.वि. ढाळ-२. पे.-४. पार्श्वजिन स्तवन-शेरीसा, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५६२, (पृ. १०आ-१२आ), आदिः सामी सोहाकर; ____ अंति: नमोनमो त्रिभुवन धणी., पे.वि. गा.३०. पे.५. नेमराजुल कागल, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ), आदिः स्वस्ति श्रीरेवन्त; अंतिः रूपविजय
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उलास., पे.वि. गा.११.
पे.-६. नेमिजिन स्तवन, पण्डित मानविजय, मागु., पद्य, (पृ. १३अ - १३आ), आदिः पोपटडा सन्देसो कहेजे; अंतिः मानविजय सुखकारो रे., पे.वि. गा.११.
पे. ७. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मागु पद्य वि. १७५६ (पृ. १३-१५२), आदि: ऋषभ जिणन्द रङ्गे
"
अंतिः ए तीरथ जयकारी रे.. पे.वि. ढाल २. गा.३०.
पे. ८. सीतासती सज्झाय, मु. उदयरतन मागु, पद्य, (पृ. १५अ - १५अ) आदि जनकसुता हुं नाम: अंतिः नितनित होजो
प्रणाम., पे.वि. गा.८.
पे. ९. इलाचीकुमार राज्झाय मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (. १५-१५आ), आदि नाम इलापुत्र जाणिये; अंति लब्धिविजय गुण गाय.. पे.वि. गा. ९.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे. १०. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु, पद्य, (पृ. १५-१६ अ ), आदि अरणिक मुनिवर चाल्या; अंतिः वंछित फल सिधो जी., पे.वि. गा.११.
पे ११. तीर्थवन्दना चैत्यवन्दन, सं., पद्य (प्र. १६अ - १७अ ), आदि: सद्भक्त्या देवलोके अंतिः सततं चित्तमानन्दकारि., पे.वि. श्लो. १०.
1
पे. १२. तीर्थवन्दना चैत्यवन्दन, सं., पद्य (प्र. १७अ - १७अ ) आदिः ख्यातोष्टापदपर्वतो अंतिः युष्मान् जिनेश्वरा, पे. वि.
"
श्लो. ४.
"
पे.-१३. २४ जिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. १७ - १८अ ), आदि: जिनर्षभप्रीणितभव्यसा; अंतिः ऋषभं जिनोत्तमम्., पे.वि. श्लो १० अशुद्ध पाठ.
पे. -१४. नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १८अ -२०अ), आदिः समुद्रविजय कुलचन्दलो; अंतिः प्रभु उतारो भवपार.
पे. १५. नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्मित मु. रङ्गविजय, मागु, पद्य, (पृ. २०अ २१अ ) आदि जे जिन मुख कमले अंतिः रङ्गवीजय चढते रङ्गे, पे.वि. गा.२३.
पे.-१६. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शिवरत्न, मागु., पद्य, वि. १८५२, (पृ. २१अ - २१आ), आदि: गोडीजी दीन
दीयाल; अंतिः जिनराज सीवपद आपो रे, पे. वि. गा. ९. कर्ता द्वारा लिखित.
पे.-१७. नेमराजिमती बारमासो, मु. रङ्गरत्न, मागु., पद्य, वि. १८५४, (पृ. २२अ-२२आ), आदिः सरसती स्वामिनी; अंतिः प्रभु गुण गाय रे. पे.वि. मा. १९.
पे. १८. आदिजिन स्तवन, श्रा. ऋषभदास, मागु., पद्य, (पृ. २२आ - २३अ), आदि: मुरति मोहन वेलडीजी; अंतिः ऋषभदास गुण गेलडीजी पे.वि. गा.६.
पे.-१९. पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मु. शिवरतन, मागु., पद्य, (पृ. २३अ - २३आ), आदिः पासजी आसा पुरतां रे; अंतिः कमला मागता रे लोल, पे. वि. गा.९. कर्ता द्वारा लिखित.
पे.-२०. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मागु., पद्य, (पृ. २३आ-२३आ), आदिः नरनारी नरनारी; अंतिः भगती करू एक तारी, पे.वि. गा. ५.
(4)
६०५४. * स्तुतिचीवीसी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२. जैवेना. ले. स्थल भीनमालनगर, ले. मु. सुखसागर (गुरु मु. जीतसागर), प्र. वि. अध्याय- २४ स्तुति, दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं-अल्प (२६४११.५, १०x२६३४).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि से पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक: अंतिः हारतारा बलक्षेमदा.
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"
६०५५. सरस्वतीदेवी व पार्श्वजिन छन्द सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. ९-२ (१ से २७, पे. ५. जैदेना. ले. स्थल. महेसाणा, ले.- मु. दयाविजय; मु. खान्तिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५x१२, १२-१५x२२).
पे.-१. सरस्वतीदेवी छन्द-अजारी, मु. शान्तिकुशल, मागु., पद्य, (पृ. ३अ - ४अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः अस्या फल
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
८७
सीता हरी.,पे.वि. गा.३५. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.११ तक नहीं है. पे.२. ओसियामाता छंद, मु. हेम, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण), आदिः देवी सेवी कोड कल्याण; अंतिः करजोडी
सेवक हेम कहै., पे.वि. गा.५. पे..३. सरस्वतीदेवी छन्द, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण), आदिः शशिकरनिकर समुज्वल; अंतिः ___पुजोनी सरस्वती., पे.वि. गा.१४, ढाळ-३. पे.-४. पार्श्वजिन छन्द-गोडीजी, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण), आदिः सुवचन आपो शारदा मया; अंतिः छन्द
देशन्तरी., पे.वि. गा.३९. पे.५. पार्श्वजिन छन्द-१०८ नामगर्भित, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९आ-, संपूर्ण), आदि: पायो कर पास जिनराज; अंतिः
__ उतमे संपदा सुख वरीओ., पे.वि. गा.२१. ६०५६. समवसरण स्तवनादि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ४, जैदेना., (२६.५४१२, १०४३१-३३).
पे.-१. समवसरण स्तवन, कवि रूपचन्द, मागु., पद्य, वि. १८२१, (पृ. १अ-२अ), आदिः मोरी वीनतडी अवधारो; अंतिः __अनुपम जिनवन्दन भास., पे.वि. गा.२१. पे.२. मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ , मागु., पद्य, वि. १७५६, (पृ. २अ-५अ), आदिः नवपद समरी मन शुद्ध; अंतिः
धरमराग मन मे धरी., पे.वि. ढाळ-५. पे:३. अष्टमीतिथि स्तवन, पं. लावण्यसौभाग्य, मागु., पद्य, वि. १८३९, (पृ. ५अ-६आ), आदि: पंचतिरथ प्रणमुं सदा;
अंतिः संघने कोड कल्याण रे., पे.वि. ढाळ-४. पे.-४. आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित , मु. धर्मवर्धन, मागु., पद्य, वि. १७२६, (पृ. ६आ-८आ), आदिः प्रणमुं प्रथम;
अंतिः प्रगट ग्यान प्रकाश., पे.वि. ढाळ-३, गा.२५. ६०५७. सज्झाय, स्तवन, लावणी व पद सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २५, जैदेना., (२४.५४१२, १७-१९४३६
४३). पे:-१. नेमराजिमती सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदिः कौन नेमकवार इनमें; अंति: वरेग शिवपुर वास.,
पे.वि. गा.६. पे.२. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, ऋ. रतन, मागु., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदिः श्रीवीर वखाणी हो; अंतिः रतन कहै।
करजोड तम., पे.वि. गा.१४. पे..३. धन्नाकाकन्दी सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः सतगुरु वचन विचार कर; अंतिः पामसी केवलज्ञान.,
पे.वि. गा.१८. पे.४. साधुगुण सज्झाय, ऋ. आशकरण, प्राहिं., पद्य, वि. १८३८, (पृ. २अ-२आ), आदिः साधुजीने बन्दना नीत; अंतिः
उतम साधुजी रो दास रे.,पे.वि. गा.१०. पे.५. पार्श्वजिन आरती, मु. अमृतविजय, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ-आ), आदिः आरती करूं; अंतिः विस्तार प्रभुजी का.,
पे.वि. गा.७. पे.६.५ इन्द्रिय सज्झाय, मु. धनदास, मागु., पद्य, वि. १९१५, (पृ. २आ-३अ), आदिः काया कोट सुहामणुं; अंतिः सुणु ___ बाल गोपाल., पे.वि. गा.१९. पे.७. चेतन सज्झाय, मु. धनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः चेतन चेतत नाहि विषै; अंतिः गायो० चरणे सीस
नमायो..पे.वि. गा.८. पे..८. गुरु उपदेश लावणी, मु. धनदास, प्राहिं., पद्य, वि. १९१७, (पृ. ३आ-४अ), आदिः तु सुणि सतगुरु का; अंतिः
गुरु चरणा चित धर रे., पे.वि. गा.५. पे..९. वज्रदन्तचक्रवर्ती सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४अ), आदि: बइठे बज्रदन्तेई; अंतिः तपन वञ्छत दातार., पे.वि.
गा.५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-१०. महावीरजिन स्तवन, मु. धनदास, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः प्रभुजीरी वाणी धनजुं; अंति: गोतम हुया
केवलनाणी., पे.वि. गा.९. पे..१२. औपदेशिक सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५अ), आदि: कमर कुं मोड कर चलते; अंतिः मनखा दे दोहिलि
पाई.,पे.वि. गा.८. पे.-१३. प्रभाति उपदेश पद, मु. धनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः किस विध ख्याल रच्यौ; अंतिः विध मुक्ति
बताइ रे., पे.वि. गा.९. पे.-१४. औपदेशिक पद, मु. धनदास, राज., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः बीति राति हूयो तब; अंतिः व्यथारो इकतारो
रे., पे.वि. गा.७. पे.-१५. औपदेशिक पद, मु. धनदास, राज., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः वीतराग को सुमरण कीजे; अंतिः सहु सुख
होय घणेरो., पे.वि. गा.७. पे.-१६. जम्बूस्वामी सज्झाय, मु. ऋषभ, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः स्वामी सुधर्मा की; अंतिः पहुंच्या मुकति
मझार.,पे.वि. गा.१४. पे.-१७. कृष्णरुक्मणी सज्झाय, मु. धनदास, राज., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः रुकमण घर सुं निसरी; अंतिः द्वारामति
माहि आयो..पे.वि. गा.१२. पे.-१८. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदि: मैं तो नित्य नमाउ; अंतिः जिनदास० चहु
सङ्घनकु., पे.वि. गा.४. पे.-१९. महावीरजिन स्तवन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ-७अ), आदिः तुम प्रभु मेरे मन; अंतिः मरण मिटायाजी छिनक मे.,
पे.वि. गा.१२. पे.२०. औपदेशिक सज्झाय, ऋ. रतनचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः हां रे ए जग जाल सुपन; अंतिः
पुद्गल भरम मिटाणा रे., पे.वि. गा.८. पे.२१. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः ढण्ढणऋषिने वन्दणा; अंतिः कहे जिनहर्ष
सुजाण रे., पे.वि. गा.९. पे.-२२. औपदेशिक लावणी, मु. अखमल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७आ-८अ), आदिः खबर नहीं है जग में; अंतिः विनति
अखमल की., पे.वि. गा.९. पे.-२३. औपदेशिक पद, राज., पद्य, (पृ. ८अ-८अ), आदि: कुड कपट कर माया मेली; अंतिः कुण मनुषा छलीया.,
पे.वि. गा.१०. पे.२४. जम्बूस्वामी सज्झाय, ऋ. खुशालचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८१७, (पृ. ८अ-८आ), आदि: मगध देश राजगृही
नगरी; अंतिः सील तणी महिमा आणी., पे.वि. गा.१४. पे.-२५. औपदेशिक पद, ऋ. देवीदासजी, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः दुरमति दूर खडी रहो; अंतिः तुमको
धका दिलवाया., पे.वि. गा.४.. ६०५८. कथा व चरित्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. ७, जैदेना., (२६४११.५, २१-२४४४५-५३).
पे.१. अगडदत्त चरियं-बालावबोध, आ. शान्तिसूरि, मागु., गद्य, (पृ. १अ-३आ), आदिः सङ्खपुरनगर सुन्दर; अंतिः
(१)मोक्षना सुख पाम्या (२)वसुदेवहींडिथी जाणीवउ. पे..२. ऋषिदत्तासती कथा, मागु., गद्य, (पृ. ४अ-८अ), आदिः इण मगधदेशि रथमदिनि; अंतिः बेहूं मोक्षि पहूता. पे-३. कमलावती कथा, मागु., गद्य, (पृ. ८अ-९अ), आदिः श्रीनाटदेशि भृगकच्छ; अंतिः बेहुं मोक्ष पहुन्ता. पे.-४. कलावतीसती कथा, मागु., गद्य, (पृ. ९अ-११आ), आदिः इणइं जम्बूद्वीपे; अंतिः कालि मोक्ष पहूचस्यै. पे:५. नर्मदासुन्दरी कथा, मागु., गद्य, (पृ. ११आ-१४अ), आदिः एहज जम्बूद्वीप माहि; अंतिः वतार लेई मुगति जासें. पे:६. रतिसुन्दरी कथा, मागु., गद्य, (पृ. १४अ-१५आ), आदि: साकेतपुर नगरि; अंतिः बेहूं मोक्ष पहुन्ता.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे. ७. शीलवती अजितसेन कथा, मागु., गद्य, (पृ. १५आ - १८आ), आदिः इणइ जम्बूद्वीपि; अंतिः लही मोक्ष पामिसइ. ६०५९. स्तोत्रभाषा, स्तवन स्तोत्र, स्वाध्याय, सज्झाय व स्तुति सह, अपूर्ण, वि. १९०० श्रेष्ठ, पृ. १६-३(१ से ३) १३, पे. ३१. जैवेना. ले. स्थल आग्रा ले आरज्या (२४४१२, १५-१७९३२-४०).
पे. १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र का भाषानुवाद (भाषा भक्तामर ), पृ. ४-४अ, अपूर्ण
भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. हेमराज, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः ते पावै शिवखेत, पे.वि. अंतिम पत्र है. (अंतिम गाथा भी अधुरी है .).
पे. २. पे नाम, कल्याणमन्दिर स्तोत्र का भाषानुवाद पृ. ४-५आ, संपूर्ण
कल्याणमन्दिर स्तोत्र-पद्यानुवादचोपाई, कवि बनारसीदास, प्राहिं, पद्य, आदि परमज्योति परमातमा: अंतिः कारन समकित शुद्धि., पे.वि. गा. ४४चोपाई.
पे.-३. पे. नाम. पार्सनाथ स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तवन, मु. खेमकरण मागु, पद्य, आदि श्रीसुगुरु चिन्तामणि अंतिः प्रभु पारसनाथकी ए.. पे.वि.
"
"
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गा. १५.
पे. ४. पे नाम. शङ्खेश्वर पारसनाथ स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन छन्द-शङ्खश्वर, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, आदिः सेवो पास शङ्खश्वरो; अंतिः आपो आप तुठा., पे.वि.
गा. ७.
पे.-५. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः उवसग्गहरं पासं पासं; अंतिः भवे पास जिणचन्द, पे.वि. गा. ५.
पे.-६. घण्टाकर्णमहावीर स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः ॐ घण्टाकर्णो महावीर; अंतिः ठः ठः ठः स्वाहा.
पे.-७. पे. नाम. पञ्चषष्टियन्त्र स्तोत्र, पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण
२४ जिन स्तोत्र. मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि आदी नेमिजिनं नौमि अंतिः मोक्षलक्ष्मीनिवासम्.. पै. वि. श्लो. ९. पे. ८. साधारणजिन स्तोत्र प्राहिं पद्य (पृ. ७अ आ, संपूर्ण) आदि इन्द्रं नरिद्र अंति सुन लीजो भगवान, पे. वि.
;
·
गा.१०.
पे - ९. साधुगुण पद, प्राहिं, पद्य, (पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण), आदिः गहि सुधग्यान धरे है; अंतिः धन धन साधु गुणधारी., पे.वि. गा. ५.
८९
पे. १०. आदिजिन स्तवन, मु. किसनदास, प्राहिं, पद्य, (पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण ), आदिः वंस इख्याग तिलक सम; अंतिः कर पढत गुणत सरवे जयो., पे.वि. गा. ५.
पे.-११. सिद्धपद स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ८ आ-आ, संपूर्ण), आदिः ॐ जगतभूषण विगतदूषण; अंतिः नमो सिद्ध निरञ्जनं. पे. वि. गा. १३.
पे.- १२. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. आदिजिन स्तवन, मु. किसन
९अ - ९आ, संपूर्ण
मागु, पद्य, आदि: श्री ऋषभ जिणेसर जगत: अंतिः मुनी किसन भणी, पे. वि.
गा. १८.
पे. १३. पे. नाम. महावीर स्तोत्र, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण
महावीरजिन स्तवन ऋ रायचन्द, मागु पद्य वि. १८३७, आदि सिद्धारथ कुल दीपक अंतिः कायाना प्रभुजी
पीड., पे.वि. गा.१२.
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पे. - १४. साधारणजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १०अ - १०आ, संपूर्ण ), आदिः दुखहरण जिणेन्द्र, अंतिः तुम ग्यान पायो., पे.वि. गा.१०.
पे. १५. पे नाम वीर थुई पृ. १० आ-११अ संपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्लाणकन्द स्तुति, प्रा., पद्य, आदिः कल्लाणकन्दं पढमं; अंतिः अम्ह सया पसत्था., पे.वि. गा.४. पे.-१६. पे. नाम. पार्श्वनाथ थुइ, पृ. ११अ-११अ, संपूर्ण
सकलकुशलवल्लि चैत्यवन्दनसूत्र, सं., पद्य, आदिः सकलकुशलवल्ली; अंतिः श्रेयसे पार्श्वनाथः. पे.-१७.पे. नाम. गौतम स्तोत्र, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण गौतमस्वामी छन्द, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, आदिः वीर जिणेसर केरो सीस; अंति: गौतम तुटै सम्पति कोड.,
पे.वि. गा.९. पे.-१८. पे. नाम. नमोकार स्तोत्र, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण
नमस्कार महामन्त्र छन्द, मागु., पद्य, आदिः सुखकारण भवियण; अंतिः और मन्त्र कांइ पढे., पे.वि. गा.१६. पे.-१९. पे. नाम. स्तोत्र राउली, पृ. १२अ-१२अ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला, मागु., पद्य, आदिः जीरावली देवजी करौ; अंति: करी सेवका निज थापो., पे.वि. गा.९. पे.२०. शान्तिजिन स्तवन, ऋ. सावत, राज., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण), आदिः उठ प्रभात समरलै साहब; अंतिः
जनममरण मिट जाई., पे.वि. गा.९. पे.२१. शान्तिजिन स्तवन, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः प्रात उठ श्रीसन्ति; अंतिः पापी
जाय कषाय टली., पे.वि. गा.५. पे.-२२. पार्श्वजिन स्तवन-चिन्तामणि, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः आणि __ मनसुध आसता देव; अंतिः कहे सुख भरपुर.,पे.वि. गा.७. पे.-२३. पे. नाम. सन्तनाथ स्तोत्र, पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण शान्तिजिन स्तोत्र, ऋ. दुर्गदास, मागु., पद्य, आदि: मङ्गलदायक श्रीजिनराइ; अंतिः इक मन सिमरन्त., पे.वि.
गा.५. पे.२४. पार्श्वजिन स्तोत्र, ऋ. जीणलाल, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः पार्श्व जिणेसर पुरण; अंतिः सङ्घ
मे मङ्गल करो., पे.वि. गा.१४. पे.२५. पे. नाम. सोल्या सति, पृ. १४अ-१४अ, संपूर्ण
१६ सती सज्झाय, मागु., पद्य, आदिः शीतल जिणवर करी; अंतिः कुलकी सोभा शील. पे.२६. श्रावक करणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण), आदिः श्रावक तुं उठे परभात; अंतिः ___ करणि दुखहरणि छे एह., पे.वि. गा.२२. पे.-२७. शान्तिजिन स्तवन, मु. खेम, मागु., पद्य, वि. १७४२, (पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण), आदिः श्रीशान्ति जिणेसर; अंतिः
सिद्ध श्रीसंघ धरै., पे.वि. गा.१३. पे.२८. पे. नाम. नमोकार मन्त्र, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण नमस्कारमन्त्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मागु., पद्य, आदिः श्रीनवकार जपो मनरङ्ग; अंतिः महिमा जस अपार रे.,
पे.वि. गा.१०. पे.२९. औपदेशिक सज्झाय, ऋ. बुधरदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ, संपूर्ण), आदिः अहो जगत गुर एक; अंतिः
प्रभु ढील न कीज्यौ., पे.वि. गा.१२. पे.-३०. पे. नाम. गौतमस्वामीजी विनति, प्र. १६अ-१६आ, संपूर्ण गौतमस्वामी स्तवन , मु. पुण्यउदय, मागु., पद्य, आदिः प्रह उठी गौतम प्रणमी; अंतिः प्रगट्यो परधान., पे.वि.
गा.८. पे.-३१. शान्तिजिनविनती स्तवन, मु. रतन, मागु., पद्य, (पृ. १६आ-१६आ, संपूर्ण), आदिः सन्त करता श्रीसन्त; अंतिः
करत तुम गुण सुहावै., पे.वि. गा.७. ६०६०. स्तवन व चौढालीया आदि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-७(४ से ६,१४ से १७)=१२, पे. ९, जैदेना.,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
(२६४१२, १४४३२-४३). पे..१.२४ जिन स्तवन, मु. द्यानत, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ-२आ, संपूर्ण), आदिः राज वीषै जुगल न सुख; अंतिः प्रभु
कीउन सहाय., पे.वि. गा.२५. पे:२. पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रेमविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-आ, संपूर्ण), आदिः सुन्दर रूप सोहमणो; अंतिः प्रेममुनि ___ सुखकार हो., पे.वि. गा.७. पे..३. साधारणजिन विनती स्तवन, पं. भूधर, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३आ, संपूर्ण), आदिः त्रिभूवनगुरु स्वामी; अंतिः
निरभय कीजीयेजी.,पे.वि. गा.१८. पे:४. गुरुगुण सज्झाय, मु. भूधर, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३आ-३आ-, अपूर्ण), आदिः ते गुरु मेरे उर वसे; अंतिः-, पे.वि. अंत
के पत्र नहीं हैं. गा.१ से १३वीं अधूरी तक है. पे-५. महावीरजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. -७अ-७अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः सोहै कणकन दोरोजी., पे.वि. गा.१५.
प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा १ से १२ नहीं है. पे:६. अक्षरबत्तीसी-आत्महितशिक्षागर्भित, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण), आदिः कक्का तें किरिया; अंतिः जे पामे
भवपार., पे.वि. गा.३२. पे.-७. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, (पृ. ८अ-११आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम
जिनेसर पाय; अंतिः धरम हीय धरो., पे.वि. ढाळ-४. पे..८. भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. हेमराज, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१३आ-, अपूर्ण), आदिः श्रीआद पुरुष आदीसर;
अंतिः -,पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१ से ३५ तक हैं. पे..९. चित्रसम्भूति चौपाई, मागु., पद्य, (पृ. -१८अ-१९आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः पहूतो मोक्ष मझार.,पे.वि. प्रारंभ के
पत्र नही हैं. ६०६१. अष्टाह्निकामहोत्सव सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. ५८,पे. २, जैदेना., ले.स्थल. विहारनगर, ले.
पं. प्रतापरुचि (गुरु पं. अमृतरुचि), (२६.५४१२, ४४४०). पे..१. पे. नाम. पर्युषणाष्टाह्निका महोत्सव सह टबार्थ, पृ. १आ-५८आ
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नन्दलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदिः (१) स्मृत्वा पार्श्व; अंतिः नन्दहेतु: __सकामान्.
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ, गणि ऋद्धिविजय, मागु., गद्य, आदिः स्मृत्वा समरीने; अंतिः धर्ममार्ग प्ररूपीने. पे.२. पे. नाम. श्लोक सङ्ग्रह, पृ. ५८आ-५८आ
श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, आदिः#; अंतिः#. ६०६२. प्रतिक्रमणसूत्र, प्रकरण व स्तोत्रादि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९-१८(१० से १२,१६ से १९,२३,४७,५१ से ५२,६०,६३
से ६८)=५१, पे. १८, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२७४१२, १२४३६). पे..१. साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, (पृ. १आ-३७अ, अपूर्ण), आदि: नमो अरिहन्ताणं नमो;
अंतिः नित्थारपारग्गहोह.,पे.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. पे.२. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३७अ-३९आ, संपूर्ण), आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः
देविन्दसूरिहिं., पे.वि. गा.५०. पे.३. औपदेशिक सवैया , प्राहिं., पद्य, (पृ. ३९आ-४०आ, संपूर्ण), आदिः नक विन नकटा देखे; अंतिः भूत कैसै ___समजाइयै., पे.वि. गा.६. पे.-४. साधुदेवसिप्रतिक्रमणअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. ४०आ-४०आ, संपूर्ण), आदिः ठाणे कमणे
चङ्कमणे; अंतिः अतिचार लाग्यो होय. पे.५. साधुराईप्रतिक्रमणअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण), आदिः सन्थारा
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उवट्टणकि; अंतिः मिच्छा मि दुक्कडं. पे.६. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. ४१अ-४३आ, संपूर्ण), आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंतिः इति दत्ति
पच्चक्खाण. पे.-७.ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन विधि, मागु., गद्य, (प्र. ४३आ-४५अ, संपूर्ण), आदिः तिहां प्रथम पवित्र; अंतिः पछै पाञ्च
जपती दीजै. पे.८. तपग्रहणविधि सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. ४५अ-४६आ-, अपूर्ण), आदिः प्रथम इरियावही; अंतिः-, पे.वि. ___ अंतिम पत्र नहीं है. पे.९. माण्डला विधि, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. -४८अ-४८अ, संपूर्ण), आदिः तिहां प्रथम; अंति: वारणासु अलग करे. पे.-१०. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ४८अ-४८अ, संपूर्ण), आदिः #; अंतिः #., पे.वि. प्र.पु.-२. पे.-११. १२ व्रतउच्चारण विधि, प्रा., गद्य, (पृ. ४८अ-४९आ, संपूर्ण), आदिः सम्यक्त्वदण्ड भणन्ति; अंतिः वेइ सूरो न __अनाओ. पे.-१२. चैत्रीपूर्णिमा विधि, सं.प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ४९आ-५९आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम जागा प्रमार्जन; अंतिः कीजै पछै
उजमीजै. पे.-१३. श्रावक करणी विचार, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ५९आ-५९आ-, अपूर्ण), आदिः पांच अभिगमण श्रावकना; अंति:-,
पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पे..१४. लोच विधि, प्रा., गद्य, (पृ. -६१अ-६१आ, संपूर्ण), आदिः इच्छाकारेण सन्दीसह; अंतिः पवेयणाइ न करेइ. पे.-१५.घृतपतनदोषनिवारण विधि, सं., गद्य, (पृ. ६१आ-६२अ, संपूर्ण), आदिः अथ कदाचित् रभस; अंतिः ततो जनादि
क्रियते.
पे.-१६. प्रतिक्रमणमध्ये मार्जारीदोष निवारण विधि, सं., गद्य, (पृ. ६२अ-६२आ, संपूर्ण), आदिः ननु यदि दैवसिक; अंतिः
भूमिराहन्यते च. पे.-१७. क्षुद्रोपद्रवनिवारण विधि, सं., गद्य, (पृ. ६२आ-६२आ-, अपूर्ण), आदि: नतु पाक्षिक चातुर्मा; अंतिः-, पे.वि. अंत के
पत्र नहीं हैं. पे..१८. नमस्कारमहामन्त्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मागु., पद्य, वि. १२वी, (पृ. -६९अ-६९आ-, अपूर्ण), आदि:-; अंति:
पे.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ६०६३. वीसस्थानक, शाश्वतजिन व इकवीसप्रकारीपूजा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, पे. ३, जैदेना., पू.वि. अन्त के
___पत्र नहीं हैं., (२६४१२, ११४२९-३४). पे.१.२० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मागु., पद्य, वि. १८७८, (पृ. १अ-२१आ, संपूर्ण), आदिः सुख सम्पति दायक
सदा; अंतिः (१)तणी रचना करी (२)जनपङ्कविखण्डनाय. पे.२. नन्दीश्वरद्वीप बावनजिनप्रसाद स्तवन, गणि शिवचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८७७, (पृ. २२अ-३१आ, संपूर्ण), आदिः
स्वस्ति श्रीसुखकरण; अंतिः प्रणमत नित शिवचन्द. पे.-३.२१ प्रकारी पूजा, गणि शिवचन्द्र, मागु.,सं., पद्य, वि. १८७८, (पृ. ३१आ-३२आ-, अपूर्ण), आदि: मङ्गल
हरिचन्दन रूचिर; अंति:-,पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. द्वितिय पूजा का पारंभ का भाग है. ६०६४. सज्झाय व स्तवनादि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. ८७, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
(२७X१२.५, २१४५४-५६). पे.-१. कमलावती सज्झाय, ऋ. जैमल, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण), आदि: महिला में बेठी राणी; अंतिः लेइ होवै
सासता.,पे.वि. गा.२८. पे.२. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पाठक श्रीसार, मागु., पद्य, (पृ. २अ-३अ, संपूर्ण), आदिः उत्पति जोज्यो आपणी;
अंतिः कीजई तेही कर्म., पे.वि. गा.७०.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
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पे.-३. दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदिः दान एक मन देह जीवडे;
अंतिः कहे जयैतादास रे., पे.वि. गा.१३. पे.४. साधारणजिन आरती, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदिः आरती श्रीजिणराज; अंति: सेवक कुं सुख
दीजे., पे.वि. गा.७. पे.५. साधारणजिन आरती, मु. द्यानत, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदिः इहविध मङ्गल आरती; अंतिः सुरग ___ मुक्ति सुखदानी., पे.वि. गा.८. पे:६. जिनगुण पद, जिनवालम , मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदिः करिए अरिहन्तनी चाकरी; अंतिः फल पाउ
रे जीव., पे.वि. गा.५. पे.-७. औपदेशिक पद-जूठीप्रीत, मु. जिनतुलसी, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदिः देसडो विराणो रे अपनुः ___ अंतिः मेरा मननी रे आस., पे.वि. गा.५. पे..८. औपदेशिक पद, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदिः विषिया लालच रस तणो; अंतिः महा अथिर संसार.,
पे.वि. गा.१२. पे.९. महावीरजिन स्तवन, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४अ, संपूर्ण), आदि: सासन नायक वीरजिणन्द; अंतिः
दीज्यो मुक्तनो वास., पे.वि. गा.१२. पे:१०. चित्रसम्भूति सज्झाय, मु. राजहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण), आदि: बान्धव बोल मानोजी; अंतिः
भवस्थिति नाई हो.,पे.वि. गा.२०. पे.११. औपदेशिक सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदिः एह संसार खार सागर; अंतिः जिन धूर की
वेदन खोई..पे.वि. गा.१०. पे.-१२. पंचमआरा सज्झाय, ऋ. लालचन्द, राज., पद्य, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण), आदिः श्रीजिण चर्ण कमल; अंतिः धरम
रा प्रकास., पे.वि. गा.१४. पे.-१३. वैराग्य सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण), आदिः रतन जडता का पिञ्जरा; अंतिः गया जमारा ___हारजी., पे.वि. गा.१४. पे.-१४. औपदेशिक सज्झाय-निन्दात्याग, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-आ, संपूर्ण), आदिः निन्दा म
करजो कोईनी; अंतिः जिम छूटक वारो थाय रे.,पे.वि. गा.५. पे-१५. बुढ़ापा सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदिः सुगुण बूढापो आवीयो; अंतिः कहै
कवीयण ज्ञान रे., पे.वि. गा.१६. पे.-१६. औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, मु. नवल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः देवमे अरिहन्त देव; अंतिः दीन
नवल बताय. पे.-१७. दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. दुर्गदास, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः साम्भलौजी बारे दान; अंतिः
सुधभाव कार्ज सिध थयो..पे.वि. गा.४. पे.-१८. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः वीर जिणेसर वांदीने;
अंतिः ते मुनिवरना पाया.,पे.वि. गा.१८. पे.-१९. औपदेशिक सज्झाय-संसार अनित्यता, मागु., पद्य, (पृ. ६-६आ, संपूर्ण), आदिः रे जीव जगत सुपनो; अंतिः
जस सुमर्या फल होय रे., पे.वि. गा.७.. पे..२०. पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, गणि जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः अन्तरजामी सुण
अलवेसर; अंति: मुजने भवसागरथी तारो.,पे.वि. गा.५. पे.-२१. पार्श्वजिन छन्द-नाकोडा, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः आपण घर बेठा
लील करो; अंतिः सुन्दर कहै गुण जोडो., पे.वि. गा.८.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.२२. महावीरजिन स्तवन, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३७, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः सिद्धारथ कुल दीपक;
अंतिः कायाना प्रभु पीर., पे.वि. गा.११. पे:२३. महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण), आदिः श्रीसीधार्थ कुल; अंतिः मुनि भाव
प्रधान., पे.वि. गा.५. पे..२४. आदिजिन स्तवन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण), आदिः अंस बंस का उपना सामी; अंतिः मुड मुड लागु
पाय., पे.वि. गा.१३. पे.२५.१६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण), आदिः सील सुरङ्गी भाल; अंतिः प्रसाद
सदा पद्मावती., पे.वि. गा.१४. पे.२६. गौतमस्वामी छन्द, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण), आदिः वीर जिणेसर केरो सीस; अंतिः
गौतम तुलै सम्पति कोड., पे.वि. गा.९. पे.-२७. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८अ, संपूर्ण), आदिः ए भव रतन चिन्तामणी; अंतिः भव जीव तरीया
रे., पे.वि. गा.१३. पे..२८. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८अ, संपूर्ण), आदिः राग तणा रसीया हूं; अंतिः पूहूती जमद्र वार.,
पे.वि. गा.७. पे.२९. औपदेशिक पद, कबीर, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण), आदिः भेष को देखकर भर्म; अंतिः चौट कु खाय
पाजी., पे.वि. गा.२. पे.-३०. औपदेशिक पद, मु. भूधर, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः पाप धतुरा न बोय रे; अंतिः फिर कभ तु
दुन हो रे., पे.वि. गा.५. पे.-३१. गजसुकुमाल सज्झाय, मु. खेमकुशल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः द्वारापुरी नगरी के; अंतिः
वन्दै पायो हो., पे.वि. गा.७. पे.-३२. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. खीमा, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण), आदिः कचा था सोई चल गया; अंतिः
आया जिण दिस जाय रे., पे.वि. गा.१२. पे.-३३. दानशीलतपभावना सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९अ, संपूर्ण), आदिः भव जीव भजीय श्रीजिन; ___ अंतिः बारह भावना भावो., पे.वि. गा.५. पे.-३४. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण), आदिः नाम एला पुत्र जाणीए;
अंतिः लब्धिविजय गुण गाय., पे.वि. गा.४३. पे.-३५. औपदेशिक सज्झाय, ऋ. रतनचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ, संपूर्ण), आदिः हां रे ए जग जाल सुपन;
अंतिः भर्म मिटाणा रे.,पे.वि. गा.८. पे.-३६. औपदेशिक सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ, संपूर्ण), आदिः सोहबत थोडी रे जीव; अंतिः पछताइ कांइ
होसिजी., पे.वि. गा.६. पे.-३७. औपदेशिक पद, कवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ, संपूर्ण), आदि: समझ रे नर समझ चेतन;
अंतिः वीनवे बनारसीदास रे.,पे.वि. गा.७. पे.-३८.२४ जिन मातापितादि ७ बोल स्तवन, मु. दीप, मागु., पद्य, वि. १७१९, (पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण), आदिः
श्रीजिनवाणी सरस्वती; अंतिः दीपो कुलथपुर चोमास ए.,पे.वि. गा.२६. प्रशस्तिसूचक गाथाएँ नहीं लिखी गयी है. पे.-३९. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदिः जसै काग ऊडा वण कार्ण; अंतिः घठ नहीं धोया
रे.,पे.वि. गा.४. पे.-४०. औपदेशिक पद, राज., पद्य, (पृ. ११अ-११अ, संपूर्ण), आदि: माने निर हिलीया सो; अंतिः भानि छिध मिलिया.,
पे.वि. गा.४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे.-४१. युगमन्धरजिन स्तवन, ऋ. रायचन्द, राज., पद्य, वि. १८४४, (पृ. ११अ-११अ, संपूर्ण), आदिः जगत गुरु
जुगमन्द; अंतिः प्रीत रही भेला., पे.वि. गा.१०. पे.-४२. महावीरजिनविनती स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः वीर सुणो मुज
विनती; अंतिः थुण्यो त्रिभुवन तिलो.,पे.वि. गा.२०. पे.-४३. शान्तिजिन स्तवन, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदिः चित चाहत सेवा चरण; अंतिः
भीत मिटावो मरण की.,पे.वि. गा.६. पे.-४४. पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदि: निकी मूर्ति वामानन्द; अंतिः दाता
परमानन्द की., पे.वि. गा.५. पे.-४५. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, राज., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदि: म्हे तो नजरा; अंतिः जय जय
श्रीमहावीर., पे.वि. गा.७. पे:४६. होलीपर्व सज्झाय , मु. रतनचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदिः सुध ग्यानीजी फागुणमे; अंतिः ____ मुक्तवधुसो होत जोरी., पे.वि. गा.७. पे.-४७. आध्यात्मिक होरी, ऋ. रतनचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण), आदिः एसै भव जिण खेले सुमत;
अंतिः आस फलै जीव तोरी रे., पे.वि. गा.६.. पे.-४८. नेमराजिमती सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः नेमजी से कहियो मोरी; अंतिः दर्सउ
नहीको कोरो री., पे.वि. गा.५. पे.-४९. औपदेशिक सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः रे जीव को कहना नही; अंतिः रुलई पामै
भवपारु रे., पे.वि. गा.१५. पे.-५०.गौतमपृच्छा सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण), आदिः गोतमस्वामी पूछा करई; अंतिः स्वामी पहुते
निर्वाण., पे.वि. गा.२०. पे.-५१. आध्यात्मिक सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः मूरख के भावे नही; अंतिः होवे कोड
कल्याण., पे.वि. गा.८. पे.-५२. महाविदेहक्षेत्रे बत्रीसविजय नाम, मागु., गद्य, (पृ. १२आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः कछ सुकछ महाकछ कछावती;
अंति: गन्धिल गन्धि लावई. पे:५३. वैराग्य सज्झाय, गङ्गादास, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण), आदिः पलक एक रैनका सुपना; अंतिः
गङ्गादास सजन तेरा., पे.वि. गा.५. पे.-५४. सुभद्रासती सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः आज्ञा मागे मातनी; अंतिः पाप सरीर जाय रे.,
पे.वि. गा.१३. पे.-५५. महावीरजिन तपस्तवन, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण), आदिः गौतमस्वामीजी बुद्धि; अंतिः आपो स्वामी
सुख घणा., पे.वि. गा.११. पे.-५६. गजसुकुमाल सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. १३आ-१३आ, संपूर्ण), आदि: दूजै दिन श्रीकृष्णजी; अंतिः तो मरमाठी
गत को गयो., पे.वि. गा.११. पे.-५७. महावीरजिन स्तवन-नालन्दापाडा, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३९, (पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण), आदिः मगध
देशमांहि विराजै; अंतिः मुक्त महलमे जासी जी.,पे.वि. गा.१९. पे.-५८. शील सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः रीस चढी बोलै छै राणी; अंतिः सील फलो
ततकालो जी.,पे.वि. गा.१४. पे.-५९. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण), आदिः प्रह उठी दसविध पचखाण; अंतिः
पामी निश्चै निर्वाण.,पे.वि. गा.८.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
P
पे. ६०. मेतारजमुनि सज्झाय, मु. कनकविजयजी- शिष्य मागु पद्य (पृ. १४- १४आ, संपूर्ण) आदि धन धन मेतारज मुनि; अंतिः गावता लह अवचल ठानो., पे.वि. गा.१५.
पे ६१. औपदेशिक सज्झाय- धर्मकरणी मागु, पद्य, (प्र. १४-१५अ संपूर्ण) आदि अहो अहो दुर्जन मोहनी अंतिः एम भाखे अणगार रे., पे.वि. गा.१७.
P
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पे ६२.६ संवर सज्झाय, राज, पद्य, (पृ. १५-१५अ संपूर्ण) आदि पहिलो संवर जिनवर इम अंतिः मुक्ति लीली वेगा वरौ., पे.वि. गा.६.
पे. ६३. औपदेशिक राज्झाय, मु. रतनचन्द प्राहिं, पद्य, (पृ. १५-१५आ, संपूर्ण), आदि हां रे कर गुजरान अंतिः भेट भया दुख मीटता है., पे.वि. गा. ७.
पे.-६४. राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मु. जिनराज, मागु., पद्य, (पृ. १५आ- १५आ, संपूर्ण), आदि: सतगुरु प्रणमुजी पाय; अंतिः सवपुर लीला भोगवीजी., पं.वि. गा. १४.
"
पे. ६५. श्रावक करणी राज्झाय. मु. जिनहर्ष मागु पद्य (प्र. १५-१६अ, संपूर्ण) आदि श्रावक तुं उठे परमात; अंतिः करणि दुखहरणि छे एड., पे.वि. गा.२२.
,
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,
"
पे ६६. औपदेशिक राज्झाय- नारी मागु, पद्य, (पृ. १६अ - १६अ, संपूर्ण) आदि नारि नहिं कोई अंतिः दसवीकालकै माहि रे, पे.वि. गा.११.
पे ६७. सीमन्धरजिन स्तवन ऋ रायचन्द राज, पद्य वि. १८२५ (पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण), आदि: पुरव माहावदेव
1
भलो अंतिः थानै करुं त्रिकाल पे.वि. गा.१०.
·
पे.-६८. शान्तिजिन स्तवन, आ. गुणसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १६आ - १७अ, संपूर्ण), आदि: शारद मात नमुं सिरनाम; अंतिः नर मनवांछित फल पावै., पे.वि. गा.२३.
"
पे. ६९. सासुवहु सझाय मागु, पद्य, (पृ. १७अ १७अ संपूर्ण) आदि सासु कर बहुसुं वात अंतिः कुलवन्ती नरनारि., पे.वि. गा.१७.
पे. ७० सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. खेम मागु, पद्य वि. १७४६ (पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण), आदि: सुरपति प्रशंसा
"
"
करे; अंतिः गातां सुख पावै अपारो., पे.वि. गा.२०.
पे.-७१. सतीकुसती सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १७आ - १७आ, संपूर्ण), आदिः वात सुणो नारि तणी; अंतिः गइ कर्या कर्म नास., पे.वि. गा.२०.
पे. ७२. महावीरजिन जन्म स्तवन मागु, पद्य, (पृ. १८अ १८अ संपूर्ण), आदि: गरभ अवधि पूरण थई: अंति: अनुमत घो हम नखन्त, पे.वि. गा. २९.
J
पे.-७३. आदिजिन स्तवन, ऋ. मूला, मागु., पद्य, वि. १७५९, (पृ. १८अ - १८आ, संपूर्ण ), आदिः प्रथम जिणेसर स्वाम; अंतिः ऋष मूला गुण गाई, पे.वि. ढाळ-३.
पे. ७४. कृष्णबलराम सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण), आदि: एसु आज अवोलणो; अंतिः निसदिन जस वर्धमान, पे.वि. गा.२०.
पे. ७५. अजितजिन स्तवन, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १९अ - १९अ, संपूर्ण), आदि: जम्बूदीपना भरत मे; अंति: हुं प्रणमुं कृपानाथ., पे.वि. गा. १९.
पे. ७६. सती सज्झाय प्राहिं, पद्य, (पृ. १९अ १९आ, संपूर्ण), आदिः सतीयां दीपेडा नीराला अंतिः मोक्ष रसाला है. पे.वि. गा.१४.
पे.-७७. १८ नातरा सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १९आ - १९आ, संपूर्ण), आदि: एक ही माइ तिण मुझ; अंतिः अठारा नाता भाखुं., पे.वि. गा.८.
पे. ७८. हरिश्चन्द्रराजा राज्झाय मागु, पद्य, (पृ. १९आ-२०अ संपूर्ण), आदि वचन इसा राणि प्रतें अंतिः सत सबल
अधकार.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
९७
पे.-७९. औपदेशिक पद, कबीर, प्राहिं., पद्य, (पृ. २०अ २०अ, संपूर्ण), आदि: मेरी पीया वसइ हइ अंतिः मुठे जिन सिर भार., पे.वि. गा. ७.
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पे. ८०. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति मागु पद्य (पृ. २०अ २०अ संपूर्ण) आदि बाहुबल चारित लीयो; अंतिः विमलकीरत गुण गाय., पे.वि. गा.१२.
पे:-८१. शान्तिजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण), आदिः शान्ति जिणेसर सोलमा; अंतिः स्वामी सुख अनन्त., पे. वि. गा. १८.
पे.-८२. महावीरजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ, संपूर्ण), आदिः साढ सुदी छठे कुं; अंतिः सोहे कण कन्दोरा रे... पे.वि. गा. १३.
पे.-८३. दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. २०आ - २१अ, संपूर्ण ), आदिः रे जीव जिन धरम; अंतिः मुगति तणां फल तांहि., पे.वि. गा.६.
पे. ८४. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. २१अ - २१अ, संपूर्ण), आदि: पुहे महीने सापडे मक; अंतिः सुमरि श्रीभगवान, पे.वि. गा.२८.
पे. ८५. माया पद मागु, पद्य, (पृ. २१अ-२१अ संपूर्ण), आदि: एक राक सारो सहर अंति जस सुमर्या फल हुई रे... पे.वि. गा. ३.
"
पे.-८६. नमस्कार महामन्त्र - सज्झाय, संबद्ध, मागु., पद्य, (पृ. २१अ - २१आ, संपूर्ण), आदिः पो सम उठा भावसु; अंतिः आखर छै हे रुडा हे., पे.वि. गा.८.
पे:-८७. आदिजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२१आ, अपूर्ण), आदिः प्रथम जीणेसर पाय; अंतिः-, पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, गा. ३ तक लिखा है.
६०६५. पञ्चपरमेष्ठि स्तवन, दोहरा सङ्ग्रह व समयसारकलश पद्यानुवाद के चयनित पद्य सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ,
पृ. ८, पे. ३, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५x१२, १३-१४X३८-५१).
"
पे.-१. पंचपरमेष्ठि स्तवन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण ), आदि: त्रिभुवननाथ त्रिगुणा; अंतिः में विराज रहे आप ही., पे.वि. गा. ५.
पे. २. पे. नाम. छूटक दोहरा, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण
औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, ऋ. रूपचन्द, प्राहिं., पद्य, आदिः अपनौ पद न विचारहु., पे.वि. गा.४४.
पे.-३. पे. नाम. समयसार के छूटक सवैये, पृ. ३अ - ८आ-, अपूर्ण
समयसार नाटक पद्यानुवाद के चयनित पद्य, प्राहिं., पद्य; अंति:-, पे.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.८० तक है. ६०६६. सज्झाय, चैत्यवन्दन सङ्ग्रह व छीङ्कदोष निवारण, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२ पे ६ जैवेना. (२५.५४१२,
"
.
११x२४).
पे. १. दशवैकालिकसूत्र- सज्झाय मु. वृद्धिविजय संबद्ध मागु पद्य (पृ. १आ९आ) आदिः श्रीगुरुपदपंकज नमीजी
J
"
J
अंतिः गायो सकल जगीसे रे, पे.वि. ११सज्झाय.
पे.-२. एकादशीतिथि नमस्कार, गणि खिमाविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ ), आदि: नेमि जिणेसर गुणनीलो; अंतिः थी शुभ सुरपति गुणगाय., पे. वि. गा.१२.
पे.-३. अष्टमीतिथि नमस्कार, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १०अ ११अ ), आदिः आठिम तप आराधिइं भाव; अंतिः तप करतां जस सम्पजे., पे.वि. गा.१२.
पे.-४. अष्टमीतिथि नमस्कार, पण्डित खीमाविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११अ - १२अ ), आदि: चैत्र वदी आठम; अंतिः प्रगटे ज्ञान अनन्त, पे.वि. गा. १४.
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पे.-५. नववाडि सज्झाय, मु. शिवकुशल, मागु., पद्य, (पृ. १२अ - १२अ ), आदि: गोतम पुछे वीरनें; अंतिः सीवकुसल गुणगाय हो., पे. वि. गा.५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.६.क्षुद्रोपद्रवनिवारण विधि, सं.,मागु., गद्य, (पृ. १२आ-१२आ), आदिः अमृत रीजी पाखी; अंतिः टले दुषण मिटे
सहिम्.
६०६७. सज्झाय, स्तवन, पद, श्लोक, पोसह विधि, कवित व गीत सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(०५)=१४, पे.
३३, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, ले.- मु. हेतविजय, प्र.वि. अशुद्ध पाठ, (२५.५४१२, १२-१३४३४). पे.-१. नेमराजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२अ, संपूर्ण), आदिः दो कर जोडि रे विनवू; अंतिः
मलिआ मुक्ति मझार.,पे.वि. गा.२३. पे..२. पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः सुण सखि रे मुझ; अंतिः मेरु तणि
प्ररधिर., पे.वि. गा.९. पे.३. राजिमती गीत, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ, संपूर्ण), आदिः मनडो आज उमाहियो; अंतिः पदमणि मसवीकाओ __ हठ., पे.वि. गा.८. पे.४. स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. शान्ति, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदिः बोली गयो मुख बोल; अंतिः पभणुं सात __ मया करी जी.,पे.वि. गा.१२. पे.५. पाण्डव सज्झाय-शत्रुञ्जयतीर्थगर्भित, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण), आदि: जी हो पञ्च
पाण्डव; अंतिः जे सिद्धाचले हो ला., पे.वि. गा.१९. पे.६. आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मागु., पद्य, (पृ. -६अ-६अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः वीर नमे करजोडी रे., पे.वि.
गा.५. प्रथम पत्र नहीं है. पे.-७. आदिजिन पद, मु. आनन्दघन, मागु.,राज., पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः आदिजिणन्द मया करो; अंतिः हम
तुमारी आसा रे., पे.वि. गा.३. पे..८.१४ स्वप्न स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम ऐरावण दिठो; अंतिः राणी बहु सुख पावे.,
पे.वि. गा.७. पे-९. औपदेशिक दूहा* , प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः सोरठ गढथी उतरी; अंतिः झांझर रे झमकार.,
पे.वि. गा.१. पे.-१०. मेघकुमार सज्झाय, मु. अमर, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण), आदिः धारणी मनावे रे; अंतिः छुटीजे भव
तणा पास., पे.वि. गा.५. पे.११. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः#; अंति:#., पे.वि. प्र.पु.-१. पे.-१२. सीमन्धरजिनविनती स्तवन, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण), आदिः श्रीसीमन्धर जिनवर; अंतिः
पद पावे रे स्वामी., पे.वि. गा.९. पे.-१३. जैन दुहा सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-१. पे.-१४. मदनरेखा सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण), आदिः लघु बन्धव जुगबाहूनो; अंतिः हुं ___वंदु त्रण काल., पे.वि. गा.८.. पे.-१५. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८अ, संपूर्ण), आदिः वीरे वखाणी राणी;
अंतिः पामशे भव तणो पार., पे.वि. गा.७. पे.-१६. औपदेशिक पद, महमद, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण), आदिः कुम्भ काचो रे काया; अंतिः लेखें साहेब
हाथ., पे.वि. गा.७. पे.-१७. आदिजिन स्तवन-अक्षयतृतीयापारणागर्भित, उपा. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण), आदिः ऋषभ
लही वरसी उपवासि; अंतिः रुषभजिणन्दना पाया., पे.वि. गा.७. पे..१८. औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, राज., पद्य, (पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण), आदिः कागद को लखनो किसो; अंतिः कठीन की
ठोर., पे.वि. ढाळ-३, गा.७+११+१४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे.-१९. शीतलजिन स्तवन, आ. विजयदेवसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ, संपूर्ण), आदि: सीतल जिन सहज
सूरङ्गा; अंतिः देवसूरि गुण गाया रे., पे.वि. गा.५. पे.२०. दृष्टि सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ, संपूर्ण), आदिः दर्शन तारा द्रष्टि;
अंतिः न करे जूठ डफाण., पे.वि. गा.५. पे.२१. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदिः ढण्ढणऋषिने वन्दणा; अंतिः कहे
जिनहर्ष सुजाण रे., पे.वि. गा.९. पे.२२. मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः समदम गुणना आगरुजी;
अंतिः साधु तणी ए सज्झाय., पे.वि. गा.१३.. पे.२३. औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण), आदिः नरभव नयर सोहामणो;
अंतिः पामे अविचल ठाम रे., पे.वि. गा.५. पे:२४. रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण), आदिः सोवन सिहासन रेवति; अंतिः __पामशे भव तणो पार., पे.वि. गा.१०. पे.:२५. पौषध विधि*, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण), आदिः इरियावहि पडिकमिइं. पे.२६. दुहा सङ्ग्रह', मागु.,प्रा.,सं., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण), आदि: #; अंतिः#. पे.२७. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१३आ, संपूर्ण), आदिः पद्मप्रभु तुम सेवना; अंतिः
निरवहयो साचो नेह., पे.वि. गा.५. पे.२८. अनन्तजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१३आ, संपूर्ण), आदिः हो जिनजी अनन्त; अंतिः ___भक्ति मधुर जिम द्राख., पे.वि. गा.५. पे.:२९. सीमन्धरजिन स्तवन, गणि ऋद्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण), आदिः चितडुं सन्देसो मोकले;
अंतिः रीद्ध कहे नीत मेव., पे.वि. गा.६. पे.-३०. पार्श्वजिन गीत-मोढेरा, मु. नायसागर-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः सङ्घवी जगाघर
छाजें; अंतिः जय जय करयो निसदीस रे., पे.वि. गा.५. पे.-३१.११ अङ्ग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७२२, (पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण), आदिः __आचाराङ्ग पहेलुं; अंति:-,पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. चतुर्थ अध्ययन की प्रथम गाथा तक लिखा है. पे.-३२. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, मु. वनितसागर, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण), आदिः लोभ न करीये
प्राणिया; अंतिः सयल जगीस., पे.वि. गा.७.
पे.-३३. औषधवैद्यक सङ्ग्रह *, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १५आ-१५आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. ६०६८. स्तवन व पद सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. १७, जैदेना., (२४४१२.५, १२४३५-३७).
पे.१. साधारणजिन स्तवन, पं. वीरविजय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः मे बी सेवक तोरे पाय; अंतिः शुभवीर
बले गाजी., पे.वि. गा.७. पे.२. महावीरजिन स्तवन, मु. रङ्गविजय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदिः प्रभुजी वीर जिणन्दने; अंतिः भवोभव
तुम पाय सेव हो.,पे.वि. गा.५. पे..३. आदिजिन स्तवन, मु. जिनचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः धूसो वाजे रे माहराज; अंति: गुणगावो नीत
जिनवर को.,पे.वि. गा.८. पे.४. औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसागर, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ-२अ), आदिः मत डारो पीचकारी रे; अंतिः होरी लाल मे
तो सघरी., पे.वि. गा.६. पे.५. शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरङ्ग, मागु., पद्य, वि. १८४०, (पृ. २आ-३अ), आदिः विमलाचल व्हाला वारू;
अंतिः भावना शुभ भावो रे.
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१००
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.६. पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखर, मु. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः समेतशिखर जिन वन्दीये; __ अंतिः पास सामलनु चैत्य रे., पे.वि. गा.८. पे.-७. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४आ), आदिः आबु अचल रलिआमणो; अंतिः कहे ते
बलिहारी रे., पे.वि. गा.१६. पे.-८. साधारणजिन स्तवन-जिनवाणी महिमा, कवि कान्त, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः जिणन्दा तोरी वाणीइ; ___ अंतिः उम कहे कवि कान्त रे., पे.वि. गा.५. पे.९. पार्श्वजिन स्तवन, मु. मुक्तिविजय, राज., पद्य, (पृ. ५अ-५अ), आदिः कुण खडा गोडी रा अखडा; अंतिः सुखसार
मेरे प्यारे., पे.वि. गा.४. पे.-१०. नवपद स्तवन, मु. कान्तिसागर, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः सेवो रे भवी भावे; अंतिः कान्तिसागर
नीसदीस., पे.वि. गा.५. पे.-११. सिद्धचक्र स्तवन, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः नवपद महिमा सार; अंतिः नवपद
महिमा जाणज्यो., पे.वि. गा.१०. पे.-१२. नवपद स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः गोतम पुच्छीत श्रीजिन; अंति: भक्ति करो भगवान की..पे.वि.
गा७. पे.-१३. विहरमान २० जिन स्तवन, गणि खिमाविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः सीमन्धर युगमन्धर; अंतिः
जराना दुख वारो रे., पे.वि. गा.७. पे.-१४. सम्भवजिन स्तवन, आ. उदयसागरसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः सम्भवजिननी सेवा; अंतिः सूरिश्वर
जगमाय., पे.वि. गा.५. पे.-१५. अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः अजित जिणन्द जुहारीइ;
अंतिः ध्यावो ए जिनदेव रे., पे.वि. गा.५. पे.-१६. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, वि. १८वी, (पृ. ७अ-७आ), आदिः रीषभदेव सुखकारी;
अंतिः तुमही पर उपगारी., पे.वि. गा.६. पे.-१७. साधारणजिन स्तवन, मु. वलभ, मागु., पद्य, वि. १८४०, (पृ. ७-८अ), आदिः चालो सहेली आपण सहु; अंतिः
पलपल वलभ करे प्रणाम., पे.वि. गा.७. ६०६९. पार्श्वजिन, नमिजिन स्तवन सङ्ग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ५, जैदेना., (२५४१२, ११४२७).
पे.-१. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुरगोडीजी प्रतिष्ठा महोत्सव, मु. प्रीतिविमल , मागु., पद्य, (पृ. १अ-४आ), आदिः वाणी
ब्रह्मावादनी; अंतिः नाम अभिराम मन्ते., पे.वि. ढाळ-५, गा.५५. पे.२. पार्श्वजिन छन्द-नाकोडा, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः आपणे घेर बेठा लील;
अंतिः सुन्दर कहै गुण जोडो., पे.वि. गा.८. पे.-३. पार्श्वजिन स्तवन-चिन्तामणि, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः आणि मनसुध आसता
देव; अंतिः कहे सुख भरपुर., पे.वि. गा.७. पे.-४. नेमिजिन स्तवन, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ-आ), आदिः माई री में जिनजी; अंतिः पायो मन की आस ____ फरी., पे.वि. गा.४.
पे.-५. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. गा.१. ६०७०. पर्वव्याख्यान व कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११५, पे. १२, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. प्रतिलेखक की भूल से पत्रांक ५५ व ५६ एक ही पत्र पर अंकित है., (२७.५४१०.५, १०४३४
३६). पे.-१. चातुर्मासिक व्याख्यान*, राज., गद्य, (पृ. १आ-२६अ), आदिः श्रीपार्वं सुख; अंतिः दुक्कडं होज्यो.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१०१ पे.२. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, राज., गद्य, (पृ. २६अ-४२आ), आदिः शान्तीशं शान्ति; अंतिः वाञ्छित सिद्ध हुवै. पे..३. दीपावलीपर्व व्याख्यान, राज., गद्य, (पृ. ४२आ-७०आ), आदिः पणमिय वीरं वुच्छं; अंति: मङ्गलीकमाला सम्पजे. पे.४.पे. नाम. ज्ञानपंचमी व्याख्यान, पृ. ७०-७७आ
वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, सं.,मागु., गद्य, आदिः ज्ञानं सारं सर्व; अंतिः मङ्गलीक माला सम्पजै. पे.५. कार्तिकपूनम व्याख्यान, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ७७आ-८२आ), आदिः सिद्धो विज्जाय चक्की; अंतिः जणमारो सफल
करणौ. पे:६. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मागु., गद्य, (पृ. ८२आ-८८अ), आदिः सिरिवीरं नमिऊण; अंतिः तपस्या अङ्ग्रेजी. पे:७. पौषदशमीपर्व कथा, राज., गद्य, (पृ. ८८अ-९२अ), आदिः ध्यात्वा वामेय; अंतिः पोष दसमरी कथा. पे..८. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान-भाषान्तर, मागु., गद्य, (पृ. ९२अ-९९अ), आदिः (१) मारुदेवं जिनं नत्वा (२)
श्रीऋषभदेवस्वामीनै; अंतिः सम्पत्ति प्रगट हुवै. पे..९. फाल्गुनचौमासीपर्व कथा, राज., गद्य, (पृ. ९९अ-१०२अ), आदिः फाल्गुण शुदि पुनिम; अंतिः मुक्ति रूप सुख
मिले. पे-१०. चैत्रीपूर्णिमा व्याख्यान, राज., गद्य, (पृ. १०२अ-१०६अ), आदिः (१) तीर्थराजं नमस्कृत्य (२) अहो भव्य जीवो; ___ अंतिः सुख सम्पदा पामै. पे.-११. अक्षयतृतीया व्याख्यान, राज., गद्य, (पृ. १०६अ-११०आ), आदिः (१) प्रणिपत्य प्रभु (२) श्रीचिन्ताणिपार्श्व; अंतिः ___ मङ्गलीक माला सम्पजै. पे.-१२. रोहिणीतप कथा, राज., गद्य, (पृ. ११०आ-११५अ), आदिः (१) उच्छिट्ठम सुन्दरयं (२) उषराड अनै विरुऊ
जूठो; अंतिः क्षय करी मुगतै गया. ६०७१. इकवीस बोल, जीवभेद व चौवीसदण्डक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६-६७(१ से ६७)=९, पे. ३, जैदेना.,
ले.- मु. शिवरत्न, पू.वि. अन्त के पत्र हैं., (२७x१२.५, १३-१५४२५-३१). पे..१.२१ बोल, मागु., गद्य, (पृ. -६८अ-६८अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः सघलुं ते जोज्यो., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
१ से १८ बोल नहीं है. पे..२. जीवभेद सङ्क्षिप्त विचार, मागु., गद्य, (पृ. ६८अ-६८आ, संपूर्ण), आदिः जीवना बे भेद सिद्ध; अंतिः शरीरे
सन्तान न थाय. पे..३.२४ दण्डक विचार, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ६९अ-७६आ-, अपूर्ण), आदिः अहं परमेश्वरं परम; अंति:-, पे.वि. अंत
के पत्र नहीं हैं. ६०७२. सप्तस्मरण, पार्श्वजिन स्तोत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. ३, जैदेना., ले.- पं. युक्तिविमल,
(२५४१२.५, ११-१३४३६-३८). पे.-१. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-१०अ), आदिः अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः
भवे पास जिणचन्द., पे.वि. ७ स्मरण. पे..२. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः दोसावहारदक्खो नालिया; ___ अंति: गहा न पीडन्ति., पे.वि. गा.१०.
पे..३. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ), आदिः#; अंतिः#. ६०७३. सज्झाय व स्तवनादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. १७, जैदेना., (२६.५४११.५, १०x४१).
पे..१. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः आठम दिन आठ मद तजी; अंतिः
पुण्यनी रेह रे.,पे.वि. गा.९. पे.२. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः अनन्त सिद्धने करी; अंतिः
अमृतपदना थाओ धणी., पे.वि. गा.११.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
7
पे. ३. पार्श्वजिन स्तवन- पल्लविया, मु. रग मागु, पद्य, (पृ. २अ-२अ ) आदि परम पुरुष परमेसरु अंति: अविचल पद निरधार, पे.वि. गा. ७.
.
,
पे. ४. नवअङ्ग पूजा दुहा. मु. वीरविजय, मागु पद्य (प्र. २अ-२आ) आदि जल भरि सम्पुट अंतिः कहे शुभवीर मुणिन्द, पे. वि. गा. १०.
पे. ५. जिनबल विचार मागु, पच, (पृ. २आ-३अ) आदि सुणो वीर्य बोलु अंतिः अग्रबल नेमि ते तु.
पे. ६. अक्षौहिणीसैन्य मान, सं., पद्य, (पृ. ३अ-३अ) आदि दशलक्षदन्ति त्रिगुणं अंतिः तां मुनयो वदन्ति, पे.वि.
"
श्लो. १.
पे. ७. रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ३अ - ३आ), आदिः सोवन सिङ्घासने रेवती; अंतिः दानथी जयजयकार रे., पे.वि. गा.१०.
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पे. ८. धन्ना अणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदि: जिनवचने वयरागी हो; अंति: होये जय जयकार रे, पे.वि. गा. १२.
पे. ९. राजिमतीरथनेमि राज्झाय आ. ज्ञानविमलसूरि मागु पद्य (पृ. ४अ ४आ) आदि अगनिकुंडमां निज तनुः अंति ज्ञानविमल गुणमाला, पे.वि. गा. ५.
पे.-१०. विनय सज्झाय, आ. विमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ ), आदिः विनय करो चेला गुरु; अंतिः थाइ गुरुने सरखो., पे.वि. गा. ५.
,
पे ११. शिष्य सज्झाय. मु. जिनमाण, मागु, पद्य, (पृ. ५अ-५अ) आदि चेला रहे गुरुने पास अंतिः इम कहे
जिनभाण, पे. वि. गा. ७.
पे. १२. अनाथीमुनि सज्झाय उपा. समयसुन्दर गणि मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदि श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति
वन्दे रे वे करजोडि., पे.वि. गा.९.
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पे. १३. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन आ. ज्ञानविमलसूरि मागु, पद्य, (पृ. ५आ-६अ ), आदि बापडला रे पातिकडा; अंतिः बांहि ग्रहिने रे, पे. वि. गा.८.
·
पे. १४. औपदेशिक सज्झाय- निन्दात्याग, उपा. समयसुन्दर गणि मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदि नियाम किजे केहनी अंतिः समयसुंदर सुखकार रे, पे. वि. गा.५.
पे.-१५. इरियावही सज्झाय, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ ), आदि: गुरु सन्मुख रही विनय; अंतिः एकवीस वरस हजार, पे.वि. गा.१४.
पे. १६. आध्यात्मिक सज्झाय आ. विनयप्रभसूरि मागु पद्य (पृ. ७1-3आ) आदि सासरीये इम जइये रे; अंतिः सीवपद लहीई रे बाई.. पे. वि. गा८.
"
पे १७. १० त्रिक स्तुति, मु. क्षमाविजय, मागु, पद्य, (पृ. ७आ-८अ) आदि निसिहि त्रण अंति: शासन सुर संभारोजी.. पे.वि. गा. ४.
P
६०७४. सज्झाय व स्तवन सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८. ये. ४ जैवेना. (२६४१३, ११४३४).
.
पे.-१. नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय,
कुण तोले हो, पे. वि. डाळ-२, गा. १६.
"
"
मागु., पद्य, (पृ. १आ-२आ), आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: गुरुने
पे. २. रात्रिभोजन सज्झाय मु. वसता मागु पद्य (पृ. २आ-३आ), आदि पुन्य संयोगे नरभव; अंतिः मोक्षतणा पे.-२.
7
.
·
अधिकारी रे., पे.वि. गा.१३.
पे. ३. महावीरजिन स्तवन- उपधानतपविधिगर्मित उपा. विनयविजय मागु पद्य वि. १७७, (पृ. ३आ-५अ), आदि:
"
श्रीवीरजिणेसर सुपरे अंतिः मुझ देज्यो भवोभवे. पे.वि. गा.२७.
1
पे.-४. ५ कारण छढालिया, उपा. विनयविजय, मागु., पद्य, वि. १७३२, (पृ. ५अ - ८आ), आदि: सिद्धारथ सुत वन्दिये; अंतिः विनय कहे आणन्द ए., पे.वि. ढाळ-६, गा. ५८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१०३
६०७५. गीत, स्तवन व सज्झाय सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ९, जैदेना., (२५४१०.५, ११४३७). पे.१.पे. नाम. सारङ्गपुरादि पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ पार्श्वजिन स्तवन-सारङगपुर, मु. विवेकविजय, मागु., पद्य, आदिः श्रीगुरुचरण नमी करी; अंतिः विवेकविजय गुण
गाया., पे.वि. गा.९. पे:२. पे. नाम. मगसीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ-१आ पार्श्वजिन गीत-मक्षीजी, मु. विवेकविजय, मागु., पद्य, आदिः तार श्रीमगसीय पासजी; अंतिः देस जस वापीऊ नूर
रे., पे.वि. गा.५. पे..३. चन्द्रप्रभजिन स्तवन, मु. विवेकविजय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः श्रीसरसति सामणि; अंति: गायो
विवेकविजय उलास., पे.वि. गा.७. पे.-४. पे. नाम. अवन्तीजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ अजितजिन स्तवन, मु. विवेकविजय, मागु., पद्य, आदिः विवेकसु विजया विनमइ; अंति: मुगतिवधु दातार., पे.वि.
गा.९. पे.५. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवनादिगीतं, पृ. ३अ-३आ
आदिजिन स्तवन, मु. विवेकविजय, मागु., पद्य, आदिः सरसती सामणी मन धरी; अंतिः विवेकविजय उल्लास.,
पे.वि. गा.११. पे.६. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. विवेकविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः श्रीसरसती सामणी; अंति: मुज द्यो ___ माहाणन्द., पे.वि. गा.५. पे.-७. राजिमती सज्झाय, मु. विवेकविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः उग्रसेन सुता ईम विनव; अंतिः नेम जपइ
नित नाम., पे.वि. गा.९. पे..८. नेमराजिमती गीत, मु. विवेकविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-६आ), आदिः सरसती पद प्रणमु सदा; अंतिः थूणि
चाली हुया., पे.वि. गा.२२. पे.९. पार्श्वजिन स्तवन, मु. विवेकविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदिः सरसती वरसती वाणियइं; अंतिः कहइ
प्रभु थुणो., पे.वि. गा.२१. ६०७६. बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. गंड, ले.- करणभाण, (२५४१२, २१४४६).
५८ बोल सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः हिवइ पेलाथी लेइ; अंतिः करता अविच्छन वचन कहई. ६०७७. पार्श्वजिन स्तोत्र, गौडीपार्श्वजिन छन्द व महालक्ष्मी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ४, जैदेना., ले.- पं.
मनरूपसागर गणि, (२७४१३, १२-१३४३०-३३). पे.१. ज्योतिषसारणी सङ्ग्रह, , कोष्टक, (पृ. १अ-१अ), आदि:#; अंतिः#. पे.२. चन्द्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. १आ-२आ), आदिः चन्द्रप्रभः प्रभाधीश; अंति: शोभने सिद्धिविद्ये., पे.वि.
श्लो.२०. पे.-३. पद्मपुराण-महालक्ष्मी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २आ-४अ), आदि: जय त्वं पद्म; अंति: चतुर्थं च फलप्रदम्., पे.वि. ____ मूल-श्लो.२७. पे.४. पार्श्वजिन छन्द-गोडीजी, मु. तिलकविजय-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-५आ), आदिः प्रणमिय पय पङ्कज; अंतिः
धवलधिंग गोडि धणि. ६०७८. अक्षयनिधितपआराधना विधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. स्थंभपुरनगर, ले.
कुबेरदास रणछोडदास पटेल, (२७.५४१३, १३४४२). पे::१. अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८७१, (पृ. १अ-३आ), आदिः श्रीशद्धेश्वर शिर; अंतिः
नाचवा घर बारणे.,पे.वि. ढाळ-५, गा.५१.
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पे.२. अक्षयनिधितप खमासमण दूहा, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ - ४आ), आदिः सुखकर सङ्क्षेश्वर नमी ; अंतिः होज्यो ज्ञानप्रकाश, पे.वि. गा.२६.
पे. ३. पे. नाम. अक्षयनिधितपगर्भित पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४आ - ५आ
पाश्वजिन स्तवन- अक्षयनिधितप गर्मित पं. पद्मविजय, मागु पद्य वि. १८४३, आदि: तपवर कीजे रे; अंति पद्मविजय फल लीधो. पे.वि. गा.१२.
पे.-४. अक्षयनिधितप विधि, मागु., पद्य, (पृ. ५आ - ६अ ), आदिः श्रावण वदी चौथने; अंतिः च्यार वरस लगे कर. ६०७९. सिद्धचक्रादि स्तवन सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ८, जैदेना., ( २४४११, ८-९×२१-२९).
पे. १. सिद्धचक्र स्तवन, कवि हिम्मत, मागु., पद्य, (पृ. १अ - १आ), आदिः भवी जिव जपीये रे; अंतिः हिमत ध्यान रसाल, पे.वि. गा. ९.
"
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पे:-२. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रङ्गविजय, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः जी प्रभु पासजी पासजी; अंतिः सेवक सीवराज रे., पे.वि. गा.६.
पे. ३. शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः शीतल जिन सहज सुरंगा ; अंतिः कुशल गुण गाया रे, पे.वि. गा. ८.
पे. ४. महावीर जिन स्तवन, मु. शिवचन्द्रजी, मागु पद्य, (पृ. ३आ-४अ) आदि साहिबा वीर जिणन्दनी अंतिः शीवचन्द वीनवे रे लो., पे.वि. गा. ७.
"
पे-५. अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु, पच (पृ. ४-४आ) आदि अलग अजित जिणन्दनी: अंति रूपनो जिन अन्तरजामी, पे. वि. गा.५.
पे. ६. सुमतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु, पद्य, (पृ. ४आ-५आ), आदि प्रभुस्युं तो बान्धी अंति वालो जिनवर एह., पे.वि. गा. ७.
पे. ७. कुन्थुजिन स्तवन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ ), आदि: रात दिवस नित सांभरे; अंतिः पद्मने मङ्गलमालो लाल. पं. वि. गा.६.
पे.-८. सुमतिजिन स्तवन, मु. जसवन्त- शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ६अ -६आ), आदिः सुमती जिणेसर साहिबा ; अंतिः सीसने अविचल धाम, पे.वि. गा.६.
६०८०. पद व दोहा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. १३-५ ( ३ से ७) = ८, पे. १४, जैदेना. (२७१२.५, ९-१०x२१-२८). पे. १. विरह गीत, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२आ-, अपूर्ण), आदि: करती कमसे मेली; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. १९ तक है.
"
·
पे. २. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि मागु, पद्य, (पृ. ८अ ९अ संपूर्ण), आदि शत्रु ऋषभ अंतिः समयसुन्दर कहे एम., पे.वि. गा. २२.
पे. ३. साधारणजिन पद प्राहिं, पद्य, (पृ. ९अ आ, संपूर्ण) आदि दरसण देख तुमारा अंतिः करम अरिकु टारा,
"
पे.वि. गा. ३.
पे.-४. साधारणजिन पद, मु. दोलतराम, मागु., पद्य, (पृ. ९आ- ९आ, संपूर्ण), आदि: घडी घडी पल पल छिन; अंतिः भवसागरसुं तिरले रे, पे.वि. गा.३.
पे-५. दुहा सङ्ग्रह *, मागु., प्रा., सं., पद्य, (पृ. ९आ - ९आ, संपूर्ण), आदिः #; अंतिः #.
पे. ६. सद्गुरु पद, मु. गङ्गाराम, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण), आदि: सतगुरु साधु सिपाई : अंतिः तिरोगे आवागमन मिटाई., पे. वि. गा. ५.
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पे. ७. साधु पद मागु, पद्य, (पृ. १०आ-१०आ, संपूर्ण) आदि ऐसे मुनिवर देखे वनमै अंतिः नीत उठ ध्यान जपनमे., पे.वि. गा.८.
पे. ८. औपदेशिक कवित्त, ऋ. देवीदासजी, प्राहिं, पद्य, (पृ. ११अ - १२अ, संपूर्ण ), आदि: कुमत तै जस जाय गरव;
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
अंतिः दुर पडेंगे जाय., पे.वि. गा. ८..
पे.-९. पार्श्वजिन पद, पण्डित खीमाविजय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२आ - १२आ, संपूर्ण ), आदि: मधुवन में धूम मची; अंतिः खिमाविजय कहै करजोडी, पे.वि. गा. ४.
,
पे:-१०. धर्मजिन स्तवन, पण्डित खीमाविजय, प्राहिं, पद्य, (पृ. १२आ - १३अ, संपूर्ण), आदिः इक सुणलौ नाथ अरज; अंति: अनुपम कीरत जग तेरी, पे.वि. गा. ५.
पे. ११. नेमिजिन पद, मु. चन्द, प्राहिं, पद्य, (पृ. १३अ १३अ, संपूर्ण), आदिः यादव मन मेरो हर लीयो; अंतिः कहे मन हरखियो रे, पे. वि. गा.३.
पे. १२ ऑपदेशिक पद प्राहिं, पद्य (पृ. १३३ - १३अ संपूर्ण) आदि होरी खेलो रे भविक अंतिः तेरा पाप सबल थरकै.
"
पे. १३. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचन्द्र प्राहिं, पद्य, (पृ. १३३ १३आ, संपूर्ण), आदि जय बोलो पास जिनेसर अंति छाया सुरतरु की., पे.वि. गा. ७.
पे. १४. दुहा सङ्ग्रह मागु. प्रा. सं., पद्य, (पृ. १३-१३आ, संपूर्ण), आदि: * अंतिः
६०८१. प्रभञ्जना, पुन्य सज्झाय, आदिजिन स्तवन व चेतन चरित्र, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२ पे. ४ जैवेना. (२९x१३,
१६५४४).
7
,
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,
पे. १. प्रभञ्जना सज्झाय गणि देवचन्द्र मागु पद्य (पृ. १अ २आ) आदि गिरि वैतावचने उपरे अंतिः करता मङ्गल
"
·
लील सदाई., पे.वि. ढाळ - ३.
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.
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"
पे. २. औपदेशिक सज्झाय- पुण्योपरि, मु. प्रीतिविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-२आ), आदि: पुण्य कर पुण्य कर; अंतिः पदवी वरे प्रीति भाखे, पं.वि. गा.६.
पे. ३. आदिजिन स्तवन, वा. विनयविजय, सं., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः श्रीमरुदेवातनु: अंतिः स्वीयं सदावाञ्छितम्., पै. वि. श्लो19.
पे.-४. चेतन वृतान्त, श्रा. भगवतीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १७३२, (पृ. ३अ - १२अ ), आदि: श्रीजिनचरण प्रणाम; अंतिः रचना कही अनादि.
"
६०८२. चौवीसी व स्तवनादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९४५, श्रेष्ठ, पृ. १९ पे ११ जैदेना ले. स्थल वढवाण, (२७४१३, ११४३८
४६).
पे. १. स्तवनचीवीसी, मु. कमलविजय मागु पद्य वि. १९४६ (५. १आ- १४अ) आदि श्रीसवेश्वर पाय अंति पूर्ण
मनोरथ पाया रे, पे. वि. अध्याय- २४ स्तवन.
"
पे. २. शान्तिजिन स्तवन, मु. कमलविजय, मागु, पद्य वि. १९४६ (पृ. १४-१५) आदिः सान्ति जिन एक गुज
,
अंतिः भविकजन मङ्गल करो., पे.वि. गा.१५.
पे. ३. साधारणजिन स्तवन, मु. कमलविजय प्राहिं. पद्य (पृ. १५-१५आ) आदि तार तार जिनराज प्रभुः अंति
मुक्ति वर आप दीया हे., पे. वि. गा. ७.
पे.-४. वढवाणनगरे जिनमहोत्सववर्णन गहुंली, मु. कमलविजय, मागु., पद्य, (पृ. १५आ - १६आ), आदि: बेनी मोरी सुगुरु; अंति: गुंहली करे रे लोल., पे. वि. गा.१६.
पे. ५. पर्युषण पर्व गहुंली, मु. कमलविजय, मागु पद्य वि. १९४५ (पृ. १६आ- १७आ), आदि सजनी मोरी पर्व पजुसण अंति: गुंहली करे रे लोल.
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पे. ६. औपदेशिक चाबखा, श्री. छगन, मागु., पद्य, (पृ. १७आ-१७आ), आदिः धाखना धन तणी घणी; अंतिः अर्थे में दाखी रे., पे.वि. गा.३.
पे.-७. औपदेशिक चाबखो- परनारीपरिहार, छगन, मागु., पद्य, (पृ. १७आ - १८अ ), आदि: देखोने दुनीयां तणी; अंतिः सेज पामशो ताजी रे.. पे. वि. गा.३.
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पे.-८. कुसङ्गनिवारण चाबखा, श्रा. छगन, मागु., पद्य, (पृ. १८अ-१८अ), आदिः देखो भगतो तणा तुमे; अंतिः सुध
समकीत अजुआला रे., पे.वि. गा.३. पे.९. औपदेशिक चाबखा, श्रा. छगन, मागु., पद्य, (पृ. १८अ-१८अ), आदिः भई तुमे देह मनुष्यनो; अंतिः करो आतम
हवे सीधो रे., पे.वि. गा.३. पे.-१०. औपदेशिक चाबखा, श्रा. छगन, मागु., पद्य, (पृ. १८अ-१८आ), आदिः भई तुमे देह मनुष्यनो; अंतिः साधो धर्म
अभिरामी., पे.वि. गा.३. पे..११. मल्लिजिन कङ्कोतरी, छोटालाल, मागु., पद्य, वि. १९४३, (पृ. १८आ-१९अ), आदिः कंकु छांटीने लखी; अंतिः
महाजन वेहेला आवज्यो., पे.वि. गा.१६. ६०८३.” सप्तस्मरणादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रेष्ठ, पृ. २६, पे. ९, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४१२.५,
१२४२९-३१). पे.-१. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-११अ), आदिः अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः
भवे पास जिणचन्द., पे.वि. ७ स्मरण. पे.२.पे. नाम. सप्तत्युत्तरशतजिनचक्र स्तोत्र, पृ. ११अ-१२अ
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदिः तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह., पे.वि. गा.१४. पे.-३. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. १२अ-१५आ), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति
लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४. पे.-४. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, (पृ. १५आ-१९अ), आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद;
अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४. पे.५.पे. नाम. शान्तिकर स्तोत्र, पृ. १९अ-२०अ
लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च., पे.वि. श्लो.१७. पे.-६. पे. नाम. सप्ततिजिन स्तोत्र, पृ. २०अ-२०आ
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदिः तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह., पे.वि. गा.१४. पे.-७. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २०आ-२१आ), आदिः दोसावहारदक्खो नालिया; __अंति: गहा न पीडन्ति., पे.वि. गा.१०. पे.८.बृहत्शान्ति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., पद्य, (पृ. २१आ-२४आ), आदि: भो भो भव्या श्रृणुत; अंतिः पूज्यमाने
जिनेश्वरे. पे..९. नमस्कार महामन्त्र स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, राज., पद्य, (पृ. २४आ-२६अ), आदिः किं कप्पतरु रे अयाण;
अंतिः सेवा देज्यो नित्त., पे.वि. गा.१३. ६०८४.” पर्वव्याख्यान व विधि सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३-१(३९)=५२, पे. ९, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ, (२६४१३, १७४५१). पे.१. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, (पृ. १अ-२०अ, संपूर्ण), आदिः सामायिकावश्यक; अंतिः
सुविशदं व्याख्याभृत. पे.२. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान , वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, (पृ. २०अ-२८अ, संपूर्ण), आदिः शान्तीशं
शान्ति; अंतिः विलोक्य तत्. पे..३. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, सं.,मागु., गद्य, (पृ. २८अ-३०अ, संपूर्ण), आदिः ज्ञानं सारं सर्व; अंतिः पाल्य मुक्तिं गतः.,
पे.वि. प्र.पु.-ग्रं.१००. पे.-४. चैत्रीपूर्णिमा व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६९, (पृ. ३०अ-३२अ, संपूर्ण), आदिः तीर्थराजं नमस्कृत्य;
अंतिः कान्तिरत्न सहायतः.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१०७ पे.५. मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., पद्य, (पृ. ३२अ-३६अ, संपूर्ण), आदिः सिरिवीरं नमिऊण; अंतिः विषै सकल सुख
भोगवी., पे.वि. ३६आ खाली पेज हैं. पे.६. साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, (पृ. ३७अ-५२आ, पूर्ण), आदिः तीर्थङ्कर गणधर प्रतै; __ अंतिः तिगुणौ कहिणौ., पे.वि. विधियुक्त बीच का एक पत्र नहीं है. पे.-७. क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. ५२आ-५३अ, संपूर्ण), आदिः इच्छामि खमासणी पिअं; अंतिः इच्छामो अणुसटिट्ठ. पे..८. पंचकल्याणकतपउच्चरण विधि, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ५३अ-५३आ, संपूर्ण), आदिः नवविहे पुन्ने पन्नते; अंतिः दिन
सचित्त नही खावे.
पे..९. उद्यापन विधि, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ५३आ-५३आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम मुहूर्त आछा; अंतिः साधर्मि वात्सल्य करै. ६०८५.” पर्वव्याख्यान सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, पे. ८, जैदेना., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-प्रारंभिक
पत्र, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४१३.५, १३४२७-४१). पे:१. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, (पृ. १अ-६अ, संपूर्ण), आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः
तैरेव मेडतानगरे., पे.वि. श्लो.१५०. पे.२. मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनन्दिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, (पृ. ६अ-१०अ, संपूर्ण), आदिः वर्द्धमानजिनं
नत्वा; अंतिः हम्मीरपुरसंश्रितैः., पे.वि. श्लो.११६. पे..३. पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेन्द्रसागर, सं., पद्य, (पृ. १०अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः ध्यात्वा वामेयमर्हन्; अंतिः शीघ्रं
रचयाञ्चकार., पे.वि. श्लो.७५. पे.४. चैत्रीपूर्णिमा व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६९, (पृ. १३अ-१६अ, संपूर्ण), आदिः तीर्थराजं नमस्कृत्य; ____ अंति: कान्तिरत्न सहायतः. पे.५. अक्षयतृतीया व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, (पृ. १६अ-१८अ, संपूर्ण), आदिः प्रणिपत्य प्रभुं; अंतिः
क्षमाकल्याणपाठकैः. पे.-६. होलिकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, (पृ. १८अ-२०अ, संपूर्ण), आदिः होलिका ____फाल्गुनेमासे; अंतिः व्याख्यानमाख्यानभृद्. पे-७. होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, (पृ. २०अ-२२अ, संपूर्ण), आदि: ऋषभस्वामिनं वन्दे; अंतिः यतो धर्मस्ततो जयः.,
पे.वि. श्लो.६५. पे:८. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, (पृ. २२अ-२६आ-, पूर्ण), आदि: मारुदेवं
जिनं नत्वा; अंतिः-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. रचना प्रशस्ति अधूरी है. ६०८६. सरस्वती छन्द व स्तवन सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. ६९, जैदेना., (२८.५४१३.५, १६४४१).
पे.१. सरस्वतीदेवी छन्द, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः शशिकरनिकर समुज्वल; अंतिः पुजोनी __सरस्वती., पे.वि. गा.१४. पे..२. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदिः प्रथम जिनेश्वर सेवना; अंति: मोहन
जय जयकार., पे.वि. गा.७. पे..३. आदिजिन स्तवन-शत्रुञ्जयतीर्थमण्डन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः बालपणे आपण
ससनेहि; अंति: वृषभ लञ्छन बलिहारी., पे.वि. गा.६. पे.४. अभिनन्दनजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२अ), आदिः अकल कला अविरुद्ध; अंतिः मोहन ए
जिनराय., पे.वि. गा.७. पे.५. सुमतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः प्रभूथी बान्धी; अंतिः वालो जिनवर एह.,
पे.वि. गा.७. पे..६. चन्द्रप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-२आ), आदिः श्रीशङ्कर चन्दा; अंतिः मोहन कवि
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रूपनो रे लो., पे.वि. गा.७. पे.-७. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः प्रभुजीसुं लागी; अंतिः मोहन आवे
दाय., पे.वि. गा.७. पे.-८. धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः हां रे मारे धरम; अंतिः उलट अति घणु रे
लो., पे.वि. गा.७. पे-९. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदि: जगजीवन जग वालहो; अंतिः
सुखनो पोष लाल रे., पे.वि. गा.५. पे.-१०. अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदिः अजित जिणन्दस्यु; अंतिः
नित नित गुण गाय के., पे.वि. गा.५. पे..११. सम्भवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः सम्भव जिनवर विनती; अंतिः ___फलशे ए मुज साचुं रे., पे.वि. गा.५. पे.-१२. सुमतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४अ), आदिः सुमतिनाथ गुणस्युं; अंति: मुझ
प्रेम प्रकार., पे.वि. गा.५. पे.-१३. वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः स्वामी तुमे कांइ; अंतिः ___ जस कहे हेजे लहस्युं.. पे.वि. गा.५. पे.-१४. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदिः गिरुआ रे गुण तुम; अंतिः
तुं जीवन आधारो रे., पे.वि. गा.५. पे.-१५. आदिजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदिः ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंतिः आनन्दघन
पद रेह., पे.वि. गा.६. पे.१६. अजितजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः पन्थडो निहालुं रे; अंतिः आनन्दघन मत
अम्ब., पे.वि. गा.६. पे.-१७. अभिनन्दनजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५अ), आदिः अभिनन्दन जिन; अंतिः आनन्दघन __ महाराज., पे.वि. गा.६. पे.-१८. शीतलजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः शीतल जिनपति ललीत; अंतिः आनंदघन
पद लेती रे., पे.वि. गा.६. पे.-१९. विमलजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः दुख दोहग दूरे टळ्या; अंतिः आनन्दघन
पद सेव., पे.वि. गा.७. पे.-२०. धर्मजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः धरम जिनेश्वर गाउं; अंतिः ए सेवक
अरदास.,पे.वि. गा.८. पे.-२१. कुन्थुजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः कुन्थुजिन मनडुं; अंतिः साचुं करी जाणुं
हो., पे.वि. गा.८. पे.-२२. पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः प्रणमुं पद पङ्कज; अंतिः प्रीत प्रतीत रे.,
पे.वि. गा.७. पे.२३. सम्भवजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः समकित दाता समकित; अंतिः रसना ___पावन कीधी., पे.वि. गा.७. पे..२४. सीमन्धरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः पुक्खलवइ विजया जयो;
अंतिः भयभञ्जण भगवन्त.,पे.वि. गा.७. पे:२५. युगमन्धरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७अ), आदिः काया रे पामी; अंतिः पण्डित
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१०९ जिनविजय गाया., पे.वि. गा.९. पे.-२६. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः सिमन्धरजीने वन्दणा; अंतिः जिनेद्र
थुणन्दा रे., पे.वि. गा.७. पे.-२७. आदिजिन स्तवन, मु. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३९, (पृ. ७आ-७आ), आदिः ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन; अंतिः
बीकानेर मझारो रे., पे.वि. गा.११. पे.-२८. सीमन्धरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ), आदिः साचो स्वामि सुजात; अंतिः
जस हेजे हिल्यो रे., पे.वि. गा.६. पे.-२९. वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवीचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८अ), आदिः विहरमान भगवान सुणो; अंतिः मुगति मुझ
आपज्यो., पे.वि. गा.७. पे.-३०. आदिजिन स्तवन, मु. राम, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः आज भले दिन उगो हो; अंतिः राम सफल
अरदास., पे.वि. गा.५. पे.-३१. नेमिजिन स्तवन, मु. रुद्धिहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९आ), आदिः पेखी पसु रथ वालियो; अंतिः सासन
सिणगार रे., पे.वि. गा.१३. पे.-३२. शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदिः सितलजिननी सेवना; अंतिः तु प्राण
आधार हो., पे.वि. गा.७. पे.-३३. पद्मप्रभजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ), आदिः पद्मप्रभुसु काजसुं; अंतिः सन्देसो क्युं लहे., पे.वि.
गा.५. पे.-३४. अजितजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ), आदिः तार किरतार संसार; अंतिः जे रहे नित्य पासे., पे.वि.
गा.५. पे.-३५. शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ), आदिः सीतलजिन सहेज सुरङ्गा; अंतिः
कुशल गुण गाया रे., पे.वि. गा.६. पे.-३६. आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदि: नाभिनन्दन जगवन्दन; अंतिः सुख
केरि बग सिस., पे.वि. गा.७. पे.-३७. पार्श्वजिन स्तवन, मु. उत्तमचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ), आदिः भविक जन वन्दो रुडा; अंतिः
उत्तमचन्द भाव., पे.वि. गा.६. पे.-३८. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११अ), आदिः सारद वदन अमृतनी वाणी; अंतिः
भाग्यदिसा अब जागी रे., पे.वि. गा.७. पे.-३९. विमलजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११अ), आदिः विमल जिनेसर मुज वखते; अंतिः कर मन वच काय.,
पे.वि. गा.५. पे.-४०. शान्तिजिन स्तवन, मु. हर्षसागर, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ), आदिः वंछितपूरण सन्त; अंतिः हर्षसागर गुण
गाया रे., पे.वि. गा.९. पे.-४१. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनलाभ, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-११आ), आदिः तेविसमो त्रिभुवनपति; अंतिः नितमेव
श्रीपास., पे.वि. गा.५. पे.४२. नेमिजिन स्तवन, मु. राजहंस, मागु., पद्य, (पृ. ११-१२अ), आदिः अवगुण कोइ देख्यां; अंति: गुण गाया
कनक करजोड., पे.वि. गा.१०. पे.४३. नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ), आदिः राजुल कहे रथ वालो; अंतिः मोहन कहे
स्याबास., पे.वि. गा.७. पे.-४४. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ), आदिः प्रभुजी तुमे तो; अंतिः उदयरतन कहि
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११०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची एह वडाई., पे.वि. गा.१२. पे.४५. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., पद्य, वि. १७४४, (पृ. १२आ-१३अ), आदिः अष्टापदे
आदेश्वर; अंतिः भावे चैत्यवन्दन करी., पे.वि. गा.६. पे.४६. साधारणजिन स्तवन, मु. जिनचन्द्र, राज., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ), आदिः सुगुण सनेहियो; अंतिः भवजल पार
उतारौ राज., पे.वि. गा.५. पे.-४७. पार्श्वजिन स्तवन, मु. हिम्मत, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ), आदिः दरसण मांहरा जिनजि; अंतिः सुरतरु
सनमन्त., पे.वि. गा.१०. पे.४८. पार्श्वजिन स्तवन, मु. चतुरसागर, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१३आ), आदिः मारो मन मोह्यो प्रभु; अंतिः चतुरसागर
सुख थाय., पे.वि. गा.५. पे:४९. नेमिजिन स्तवन, मु. हर्षचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ), आदिः कांइ हठ माण्ड्यो छे; अंतिः वसिया मुगत
रे वास., पे.वि. गा.१३. पे.-५०. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. उत्तम, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४अ), आदिः वञ्छित फलदायक स्वामी; अंतिः
उतम जिन गुण गावे.,पे.वि. गा.७. पे:५१. पार्श्वजिन स्तवन, मु. हंस, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४अ), आदिः उचारि उचारि प्रभुजी; अंतिः दिनदयाल कृपालो
रे., पे.वि. गा.८. पे:५२. सम्भवजिन स्तवन, मु. उदयसागर, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४आ), आदिः दया रे श्रीसम्भव; अंतिः सुरि चरणां ___ आवे हो., पे.वि. गा.९. पे.५३. सुविधिजिन स्तवन, मु. मोहनरुचि, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१४आ), आदि: सुविधि जिनेश्वर नवमा; अंतिः रमण
सुख पायो रे., पे.वि. गा.८. पे.-५४. अनन्तजिन स्तवन, गणि जिनहर्ष, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४आ-१४आ), आदिः मे तेरी प्रित पीछाणि; अंतिः दीजै
निज सहि नाणी हो., पे.वि. गा.५.. पे.-५५. सीमन्धरजिननुं स्तवन-१, कवि पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१५अ), आदिः सुणो चन्दाजी सीमन्धर;
अंतिः वाधे मुज मन अतिनूरो., पे.वि. गा.७. पे.-५६. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१५आ), आदिः हांजी विमलाचल मन; अंतिः
जिनेन्द्र करे परणाम., पे.वि. गा.१२. पे.-५७. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, राज., पद्य, (पृ. १५आ-१५आ), आदि: नीजरां रहस्याञ्जी; अंतिः जय जय
श्रीमहावीर., पे.वि. गा.७. पे.५८. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१५आ), आदिः तिरथ अष्टापद नित; अंतिः
जिनवर वधते नेहोजी., पे.वि. गा.८. पे.-५९. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ), आदिः शेत्रूञ्जो रलियामणो; अंति: करजोडी करे विचार.,
पे.वि. गा.६. पे.-६०. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ), आदिः सुरत मुरत मोहनगारि; अंतिः जिनहर्ष धरे
इम ध्यान., पे.वि. गा.५. पे.६१. सिद्धचक्र स्तवन, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ), आदि: नवपद महिमा सार; अंतिः नवपद ____ महिमा जाणज्यो., पे.वि. गा.१०. पे.६२. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१७अ), आदिः श्रीवासुपूज्य; अंतिः सङ्घ सयल
सुखदाय रे., पे.वि. ढाळ-५. पे.६३. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कान्ति, मागु., पद्य, (पृ. १७अ-१८अ), आदिः हां रे मारे ठाम धर्म; अंतिः कांति सुख
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१११
पामे घणु., पे.वि. ढाळ-२. पे:६४. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, वि. १७६९, (पृ. १८अ-२०अ), आदिः द्वारिका नयरी;
अंतिः लहे ते मंगल अति घणो., पे.वि. ढाळ-३. पे:६५. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. ऋद्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १८६१, (पृ. २०अ-२०अ), आदिः सेवक पर सुनजर
कीजो; अंतिः विजय प्रणमे रागे., पे.वि. गा.१३. पे:६६. अजितजिन स्तवन, मु. मोहनरुचि, मागु., पद्य, (पृ. २०अ-२०आ), आदिः अजित जिणेसर साहिब; अंतिः
सिवरमणी सुख पावे., पे.वि. गा.६. पे.६७. चन्द्रप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनरुचि, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ), आदिः चन्दाप्रभु जिनराज; अंतिः प्रभु पायो __प्रेमसु., पे.वि. गा.५. पे.६८. नेमिजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२१अ), आदिः समुद्रविजय सुत नेम; अंतिः अजरामर सुख पाया रे.,
पे.वि. गा.७. पे.६९. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. नगविजय, मागु., पद्य, (पृ. २१अ-२१अ), आदिः सुणो भवि जिनजी; अंतिः पुरव
पुण्ये फल दीयो., पे.वि. गा.१०. ६०८७. स्तवन, सज्झाय व गीतादि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-६(१ से ४,२६ से २७)=२४, पे. ४२, जैदेना., (२८.५४१३,
१६x४३-४७). पे.-१. महावीरजिन तपस्तवन, मागु., पद्य, (पृ. -५अ-५अ, अपूर्ण), आदि:-; अंति: मुगत आपो स्वामिये., पे.वि. गा.१०. ___ अंतिम पत्र है. गा.२ अपूर्ण से है. पे..२. पार्श्वजिन स्तवन-चिन्तामणि, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५अ, संपूर्ण), आदिः आणि मनसुध ___ आसता देव; अंतिः कहे सुख भरपुर., पे.वि. गा.७. पे.-३. पद्मप्रभजिन स्तवन-सम्प्रतिराजावर्णगर्भित, मु. कनक, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण), आदिः धन धन सम्प्रति
साचो; अंतिः दिज्यो भवभव सेव रे., पे.वि. गा.९. पे.-४. गौतमस्वामी स्तवन, मु. जयसागर, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदि: गोयमस्वामि गुण निलो; अंतिः
श्रीजयसागर बोले सहि., पे.वि. गा.१२. पे.५. महावीरजिनविनती स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः वीर सुणो मुज
विनती; अंतिः थुण्यो त्रिभुवन तिलो., पे.वि. गा.१९. पे.-६. अष्टापदतीर्थ स्तवन, गणि जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण), आदिः अष्टापद श्रीआदि; अंतिः जिनहर्ष
नमुं करजोडी., पे.वि. गा.३२. पे.-७. पार्श्वजिन गीत-गोडीजी, मु. दुर्गदास, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण), आदिः पारकर देसमे प्रगटियो; अंतिः
सोभावणी तो धणी., पे.वि. गा.५. पे..८. पे. नाम. परनार स्वाध्याय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण
औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, गणि कुमुदचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः सुण सुण कन्ता रे; अंति: गणि इम
कहे.,पे.वि. गा.१०. पे.९. शीलचुन्दडी सज्झाय, मु. करण, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण), आदिः सियल चुन्दडी खरी; अंतिः
आवागमन निवारजी., पे.वि. गा.११. पे-१०. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मानसागर, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण), आदि: निज गुरु केरा प्रणमी;
अंतिः पुर आस्या मन तणी., पे.वि. गा.११. पे..११. पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयशील, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण), आदिः सकल मुरत श्रीपास; अंतिः
नवनिध सदा आनन्द धरे.,पे.वि. गा.११. अंत के पत्र नही.
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११२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे:-१२. पार्श्वजिन स्तवन-शङ्खश्वर, मु. तत्त्वहंस, मागु., पद्य, (पृ. १०अ १०अ, संपूर्ण), आदिः प्रणमुं श्रीसखेसर; अंतिः दिये नित आसिस, पे.वि. गा. ९.
पे.-१३. आलोयणा सज्झाय, मु. मानसागर, मागु., पद्य, (पृ. १०अ ११अ, संपूर्ण), आदिः सुणे कविजन केरि माय; अंतिः मान मनवंछित लौ., पे.वि. गा.२५.
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पे. १४.७ व्यसन सज्झाय, मु. जयरङ्ग, मागु, पद्य (पृ. ११अ ११ आ. संपूर्ण) आदि पर उपगारी साध सुगुरु: अंतिः गुरु सिस जयरङ्ग कहे., पे.वि. गा. ९.
पे. १५. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मागु पद्य (पृ. ११आ- १२अ संपूर्ण) आदि मन मोहनगारो साम सहि; अंति सफल आपणो करैजी लो., पे.वि. गा.१०.
पे.-१६. १४ चौद समुर्च्छिमपञ्चिन्द्रियउत्पत्तिस्थानक जीव सज्झाय, मु. धर्मदास, मागु., पद्य, (पृ. १२अ - १२अ, संपूर्ण), आदिः गौतम गणधर प्रणमी; अंतिः सुणे तस लील विलास., पे.वि. गा.१२.
.
पे. १७. नमस्कारमहामन्त्र सज्झाय मु. गुणप्रभुसुन्दर मागु पद्य (प्र. १२अ - १२आ, संपूर्ण ), आदि सुखकारण भवियण समरो; अंतिः सहस रसाल., पे.वि. गा. ७.
·
पे. १८. औपदेशिक राज्झाय कवि रूपचन्द, मागु पद्य (प्र. १२-१३अ संपूर्ण) आदि श्रीजिनवर इम उपदिसं
अंति: इम पमणे रुपचंद रे पे.वि. गा.२१.
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""
पे.-१९. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १३अ - १४अ, संपूर्ण), आदिः आदिनाथ आदि जिनवर, अंतिः पे.वि. गा.१७.
लेसे सुख सम्पदा ए.,
पे.-२०. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १४अ - १४अ, संपूर्ण ), आदि: दसविह प्रह उठी अंतिः पामी निश्चै निर्वाण, पे.वि. गा.८.
""
,
पे. २१. धर्मलोचन युद्ध. मु. पद्मविजय, मागु पद्य (पृ. १४अ - १६अ, संपूर्ण) आदि आद युगादह इश्वरि अति प्रबल बुध रिघ पाइये, पे.वि. गा. ४७.
पे.-२२. स्वार्थ सज्झाय, मु. मानसागर, मागु., पद्य, (पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण), आदि: सेमुख श्रीजिनवर; अंतिः कीजे परउपगार रे, पे.वि. गा.२०.
पे.-२३. औपदेशिक सज्झाय, कवि धर्मसिंह, प्राहिं., पद्य, (पृ. १६आ - १७अ, संपूर्ण), आदिः करयो मती अहंकार; अंतिः कहे एह धरम मनमें धरो., पे.वि. गा. ११.
पे.-२४. सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय - शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. १७अ - १७आ, संपूर्ण), आदिः प्रणमिय श्रीगौतम; अंतिः श्रीकमलविजय गुरु शीष, पे. वि. गा.१३.
पे.-२५. आदिजिन स्तवन- २८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मागु., पद्य, वि. १७२६, (पृ. १७ - १८आ, संपूर्ण), आदिः प्रणमं प्रथम, अंतिः प्रगट ग्यान प्रकाश., पे.वि. ढाळ - ३.
पे. २६. शान्धतजिनबिम्ब स्तवन, मु. जैनेन्द्रसागर, मागु, पद्य, (पृ. १८आ-२०अ संपूर्ण), आदिः सरसति माता मन धरि अंतिः जम्पइ सार ए अधिकार ए., पे.वि. ढाळ - ६.
"
पे. २७. १० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार मागु, पद्य, (पृ. २०अ २१अ संपूर्ण), आदि: स्यादवादमत श्रीजिनवर अंतिः रत्न बहु मोलस्या., पे. वि. गा. २१.
पे. २८. अतीतअनागतवर्तमानजिनचीवीसी स्तवन, मु. विक्रमसागर, मागु, पद्य वि. १७०४ (पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण), आदि: पारस प्रभु के पय; अंतिः देह मनवञ्छित फलो., पे.वि. ढाळ -३.
पे. २९. पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन मागु, पद्य, (प्र. २१-२२अ संपूर्ण ), आदि थम्मणपुर श्रीपास अंतिः पार्श्वनाथ चौसालो., पे.वि. गा. ८.
पे. ३०. आदिजिन गीत, मु. दुर्गदास मागु पद्य (प्र. २२अ-२२अ संपूर्ण) आदि वडा अनडा पाहडां: अंतिः देव अहोनिस जीह पे.वि. गा.३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
११३
पे.३१. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, प्राहिं., पद्य, (पृ. २२अ-२४अ, संपूर्ण), आदिः सुखसम्पत्तिदायक; अंतिः
जिनहरष कहन्दा है. पे.-३२. पार्श्वजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण), आदिः श्रीसारद हो पाय; अंति: सेवकने सुखिया करो.,
पे.वि. गा.१२. पे.-३३. साधारणजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. २४आ-२४आ, संपूर्ण), आदिः चितराजा सुणवू पसुं; ____ अंति: सुबुद्धि सदा सुख थाय., पे.वि. गा.६. पे.-३४. पार्श्वजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण), आदिः धन चाहे तो धर्म कर; अंतिः पाञ्चे
आगुलियाह., पे.वि. गा.२३. पे.-३५. औपदेशिक पद, मु. जिनहर्ष, मागु., गद्य, (पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण), आदिः भगवत भारथ चरण नमेव; अंतिः
मन धरज्यौ बोल. पे.-३६. मधुबिन्दु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण), आदिः सरसति मुझने रे मात.,
पे.वि. गा.१०. पे.-३७. पे. नाम. वीर पारणा स्तवन, पृ. २६अ-२७अ, संपूर्ण महावीरस्वामीनुं पारणुं मु. माल, मागु., पद्य, आदिः श्रीअरिहन्त अनन्तगुण; अंतिः तेहनै नमइ मुनि माल.,पे.वि.
गा.३१. पे.३८. कर्मछत्रीसी, मागु., पद्य, (पृ. २७अ-२८अ, संपूर्ण), आदिः परम निरञ्जन परमगुरु; अंतिः करे मूढ वडावे सिष्ट.,
पे.वि. गा.३७. पे.-३९. उपदेशपच्चीसी, प्राहिं., पद्य, वि. १७४१, (पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण), आदिः वीतराग के चरण जुग; अंतिः ___ श्रीरविवार प्रत्यक्ष., पे.वि. गा.२६. पे.-४०. १३ काठिया सज्झाय, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण), आदिः पहिला प्रणमुं
गौतम; अंति: हेमविमलसूरि सीसे कही., पे.वि. गा.१५. पे.-४१.२२ अभक्ष्य ३२ अनन्तकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण), आदिः
जिनशासन रे सुधि सदहण; अंतिः कहे ते विध सुख लहे., पे.वि. गा.५. पे.-४२. पे. नाम. चोविस दण्डक स्तवन, पृ. २९आ-३०आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-२४ दण्डकविचारगर्भित, पाठक धर्मसिंह, मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः पूर मनोरथ पास
जिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए., पे.वि. ढाळ-४, गा.३४. ६०८८. स्तुति व होरी सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३२, जैदेना., (२७.५४१३.५, १६x४२-४४).
पे.१. नेमिजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः सुरअसुरवन्दितपाय; अंतिः करो ते अम्बा देवीए., पे.वि. गा.४. पे..२. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः एकादशी अति रुअडी; अंतिः सङ्घ
तणा निशदिश., पे.वि. गा.४. पे..३. पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः श्रीपास जिणेसर पुजा; अंतिः सुखसम्पत्ति
हितकार., पे.वि. गा.४. पे.-४. आदिजिन स्तुति, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदिः प्रह उठी वन्दु; अंतिः रुषभदास ____ गुण गाइ., पे.वि. गा.४. पे.५. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः आगे पूरव वार निवाणुं; अंतिः कारिज सिद्धि हमारीजी.,
पे.वि. गा.४. पे.६. अष्टमीतिथि स्तुति , मागु., पद्य, (पृ. २अ-२अ), आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंतिः पालता सुर सानिधि करे.,
पे.वि. गा.४.
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११४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-७. अमावस्यातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२अ), आदिः अमावस्या तो थई उजली; अंतिः ___ मंगल लील करो नित नित., पे.वि. गा.४. पे.८. सिद्धचक्र स्तुति, मु. उत्तमसागर, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंतिः वाचक० उत्तम
सीस सवाई., पे.वि. गा.४. पे..९. आदिजिन स्तुति, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः सुधर्म देवलोक पहिलो; अंतिः कांतिविजय
गुण गाय., पे.वि. गा.४. पे.-१०. सिद्धचक्र स्तुति, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १८वी, (पृ. ३अ-३अ), आदिः वीर जिनेसर भुवन; अंतिः जिन __ महिमा भासैजी.,पे.वि. गा.४. पे.-११. सीमन्धरजिन स्तुति, मु. शान्तिकुशल, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः श्रीसीमन्धर मुझनै; अंतिः शान्तिकुशल
सुखदाताजी., पे.वि. गा.४. पे.-१२. आदिजिन स्तुति-शत्रुञ्जय मण्डल, मु. तत्त्वहंस, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदिः पहिला पूजो श्रीआदि;
अंतिः दिनदिन दोलत थाय.,पे.वि. गा.४. पे.-१३.२४ जिन स्तुति, मु. परमसागर, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः फलवधिपुर मण्डण फलदाइ; अंतिः
श्रीसिङ्घने सुखकार., पे.वि. गा.४. पे.-१४. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४अ), आदिः दिन सकल मनोहर; अंतिः पुरो मनोरथ
माय., पे.वि. गा.४. पे.-१५. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्रा. ऋषभदास, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः श्रीशत्रुञ्जय तीरथ; अंतिः ऋषभदास
गुण गाय., पे.वि. गा.४. पे.-१६. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदिः आगे पूरव वार निवाणुं; अंतिः कारिज सिद्धि हमारीजी.,
पे.वि. गा.४. पे.-१७. कल्लाणकन्द स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः कल्लाणकन्दं पढमं; अंतिः अम्ह सया पसत्था., पे.वि.
गा.४. पे.-१८. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५अ-५अ), आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना., पे.वि. ___ श्लो.४. पे.-१९. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-पआ), आदिः एकादशी अति रुअडी; अंतिः
सङ्घ तणा निशदिश., पे.वि. गा.४. पे२०. पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु
सिद्धिम्., पे.वि. श्लो.४. पे.२१. पार्श्वजिन स्तुति-शखेश्वर, सं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः श्रीशद्धेश्वर; अंतिः कल्याण विजयश्रियम्., पे.वि.
श्लो.१. पे.२२. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः वीरं देवं नित्यं; अंतिः शनो देवि दयादम्भ., पे.वि. श्लो.१. पे.२३. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः पुण्डरीक मण्डण पाय; अंतिः द्यो
सुखकन्दा जी., पे.वि. गा.१. पे.२४. शत्रुञ्जयगीरनारतीर्थ स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः त्रिभुवनमांहे तिरथ; अंति: जीव सुख सम्पत
वरे., पे.वि. गा.४. पे.२५. सीमन्धरजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः सीमन्धरस्वामी केवला; अंतिः आवागमण निवार निवार.,
पे.वि. गा.१. पे:२६. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदि: पाताले यानि बिम्बानि; अंतिः वन्दे निरन्तरम्., पे.वि.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
११५ श्लो.४. पे..२७. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः मङ्गल आठ करी जिन; अंतिः
तपथी कोडि कल्याणजी., पे.वि. गा.४. पे.२८. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः सत्तरे भेदे जिन पूजा; अंतिः पूरवे देव
अम्बाइजी., पे.वि. गा.४. पे-२९. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबन्ध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः → दें कि धपमप; अंतिः
दिशतु शासनदेवता.,पे.वि. श्लो.४. पे.-३०. साधारणजिन होरी, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७अ), आदिः जिणन्दसु खेलु होरि; अंति: या जुग जुग जोरिने., पे.वि.
गा.४. पे-३१. नेमराजिमती होरी, बाल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ-७अ), आदिः आज चलि गिरनार कामनी; अंतिः कहे भइ मुक्ति
धामनि., पे.वि. गा.३. पे.-३२. नेमराजिमती होरी, मु. रतनसुन्दर, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७अ), आदिः या दिन नेम कुं देखन; अंतिः पञ्चमगति
पद पइया., पे.वि. गा.४. ६०८९. सरस्वती स्तोत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. १०, जैदेना., (२८.५४१४.५, १४४३८-४७).
पे.-१. सरस्वत्यष्टक, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदिः ॐ नमस्त्रिदशवन्दित; अंतिः तेषां
मधुरोज्वलागिर:., पे.वि. श्लो.९. पे.२. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः सरस्वती नमस्यामि; अंतिः करिष्यामि न संशयः., पे.वि.
श्लो.६. पे..३. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २अ-२अ), आदिः वाग्वादिनी नमस्तुभ्य; अंतिः निर्मलबुद्धिमन्दिर., पे.वि. __ श्लो.७. पे.४. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः सरस्वति महाभागे वरदे; अंतिः प्रसीद परमेश्वरि..पे.वि.
श्लो.८. पे.५. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २आ-आ), आदिः नमामि भारति देवी; अंतिः लभते स्त्रियम्., पे.वि. श्लो.९. पे:६. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः ॐ श्रीअर्हन्मुखा; अंतिः प्रसीद परमेश्वरि., पे.वि. श्लो.१२. पे:७. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः व्याप्तानन्त समस्त; अंतिः भवत्युत्तम सम्पदः., पे.वि. श्लो.९. पे..८. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (प्र. ३आ-४अ),आदिः भक्तिप्रवावनी; अंतिः सिद्धः सारस्वतोसौ., पे.वि. श्लो.८. पे..९. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, (पृ. ४अ-५अ), आदिः कदाकुण्डलिनित्वदीय; अंतिः तस्य वाचां ___विलासः., पे.वि. श्लो.१२. पे.-१०. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ५अ-६अ), आदिः ॐ अस्य श्रीसरस्वती; अंतिः ब्रह्मलोके महीयते., पे.वि.
श्लो.१३. ६०९०. प्रतिक्रमणसूत्र, स्तवन, स्तुति, चैत्यवन्दन व स्तव सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, पे. ९, जैदेना.,
प्र.वि. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह नामक प्रथम पेटांक के बीच में अन्य पेटांक भी है., पृ.वि. प्रथम व अंत के पत्र नहीं हैं., (२८x१३.५, ११-१२४२९-३५). पे..१. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. -२अ-१३आ-, अपूर्ण
प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदि:-; अंतिः-, पे.वि. बीच के पत्र हैं. पे.२. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण), आदिः पूर्वविदेह विजये; अंतिः जिनहरख
घणे ससनेह., पे.वि. गा.५. पे..३. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र का हिस्सा प्रथम अध्ययन, पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
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दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा प्रथम अध्ययन, आ. शय्यम्भवसूरि प्रा. पद्य आदि धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ: अंतिः साहुणो त्तिबेमि., पे. वि. गा. ५.
पे.-४. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १३ - १३आ-, संपूर्ण), आदि: मुरति मनमोहन कञ्चन; अंतिः इम श्रीजिनलाभसूरिन्द. पं. वि. गा. ४.
पे.-५. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १३आ - १३आ, संपूर्ण), आदि: वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवी दद्यात्सौख्यम्., पे.वि. श्लो. १.
पे. ६. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. १४अ - १४ अ, संपूर्ण ), आदिः महीमण्डणं; अंतिः देहि मे सुद्धनाणं., पे.वि. गा.४. पे. ७. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण ), आदिः पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च; अंतिः सिद्धायिका त्रायिका., पे.वि. श्लो. ४.
पे. ८. अष्टमीतिथि स्तुति आ जिनसुखसूरि मागु., पद्य, (पृ. १४आ १४आ, संपूर्ण) आदि चोवीसे जिनवर प्रणमुं अंतिः जीवित जनम प्रमाण, पे.वि. गा. ४.
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पे. ९. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (प्र. १४- १४आ अपूर्ण) आदि अरस्य प्रवज्या अंतिः पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रथम गाथा अधूरी है.
६०९१.” क्षमा, सीखामण छत्रीसी, नवकार मन्त्र, स्तवन, छन्द व स्तुत्यादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २२, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१४, १८ - १९३६) -
पे. १. पे नाम. नवकार मंत्र, पृ. १३-१अ संपूर्ण
नमस्कार महामन्त्र, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः पढमं हवई मङ्गलम्., पे.वि. ९ पद.
पे. २. क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य, (पृ. १अ-२अ संपूर्ण), आदि आदर जीव क्षमागुण अंति चतुर्विध संघ जगीश जी., पे.वि. गा. ३६.
पे. ३. उपदेशछत्तीसी, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण), आदिः साम्भलज्यो सज्जन; अंतिः जय मुख वाणी मोहनवेली, पे.वि. गा. ३६.
.
पे.-४. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३अ - ४अ, संपूर्ण), आदि: हवे राणी पद्मावती; अंतिः तिणसु प्रतिबन्ध, पं.वि. गा. ३६.
पे. ५. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन. मु. खिमाविजय, मागु पद्य (पृ. ४-४आ, संपूर्ण), आदि: करजोडी कहे कामिनी: अंतिः
,
सेवक जिन धरे ध्यान पं. वि. गा. १६. वस्तुतः गाथा १६ ही है परंतु प्रतिलेखक ने २ कडी को साथ में जोड़कर १६x२= ३२ गाथा गिनी है.
पे. ६. पे. नाम. पञ्चमी स्तुति थुई, पृ. ४-४आ, अपूर्ण
ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि:-, अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र अंतिम गाथा की २-४ पाद है.
पे. ७. नमस्कार महामन्त्र छन्द, वा. कुशललाम, मागु, पथ (पृ. ४-५आ, संपूर्ण) आदि वञ्छित पूरे विविध अंति ऋद्धि वांछित लहे, पे.वि. गा.१७.
7
पे.-८. ४ मङ्गल पद, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदि: सिद्धार्थ भूपति सोहे; अंतिः उदयरत्न भाखे एम., पे. वि. गा. ४.
पे. ९. गौतमस्वामी छन्द उपा. यशोविजयजी गणि मागु पद्य (प्र. ६आ-६आ, संपूर्ण ) आदि मात पृथ्वी सुत: अंतिः
.
सौभाग्य दोलत सवाई. पे.वि. गा. ९.
"
"
पे. १०. महावीरजिन पालणं, मु. अमीयविजय मागु पद्य (पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण), आदि: माता त्रिशला ए पुत्र अंतिः थाय लीला लेहेर, पे.वि. गा.१८.
पे.-११. महावीरजिन हालरडुं, मु. दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण ), आदि: माता त्रिशला झुलावे; अंतिः
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
११७ दीपविजय कविराज., पे.वि. गा.१७. पे.१२. औपदेशिक सज्झाय-निन्दात्याग, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः निन्दा म ___ करजो कोईनी; अंतिः समयसुंदर सुखकार रे., पे.वि. गा.५. पे..१३. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, गणि कुमुदचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण), आदिः सुण सुण ___ कन्ता रे; अंतिः कुमुदचन्द सम उजलो., पे.वि. गा.१०. पे:१४. औपदेशिक सज्झाय-शीयलेस्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण), आदिः एक
अनोपम रे सीखामण; अंतिः अष्ट महा जस विस्तरे.,पे.वि. गा.१०. पे-१५. वैराग्य सज्झाय, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण), आदिः परषदा आगे दिये; अंतिः सार छे
एह हो., पे.वि. गा.११. पे:१६. गोचरी आलोअण गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ, संपूर्ण), आदिः अहो जिणेहिं असावज्जा; अंतिः तहा
चरणाईयारो., पे.वि. गा.२. पे:१७.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र प्रथम अध्ययन से तृतीय अध्ययन प्रथम गाथा तक, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, आदिः धम्मोमङ्गल मुक्किट्ठ; अंतिः निग्गन्थाणं महेसिणं.,
पे.वि. गा.१७. पे.-१८. साधुराईप्रतिक्रमणअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ११अ-११अ, संपूर्ण), आदिः सन्थारा
उवट्टणकि; अंतिः मिच्छा मि दुक्कडं. पे-१९. बाहुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११अ, संपूर्ण), आदिः साहिब बाहु जिणेसर;
अंतिः यश कहे सुख अनंत हो., पे.वि. गा.५. पे:२०. नेमराजुल काव्य, वा. उदय, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः जइने रहेजो माहरा; अंति: सारा
आतम काज.,पे.वि. गा.७. पे..२१. पार्श्वजिन छन्द, मु. उदय, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः प्रभु दर्शन तेरो., पे.वि. गा.१५.
प्रतिलेखक द्वारा मात्र गा.९ से समाप्ति पर्यंत है, प्रारंभिक बाकी १ से ८ गाथाएँ पत्रांक ५७ हेतु प्रतिलेखक द्वारा
हांसिए में उल्लिखित है. पे.-२२. पार्श्वजिन छन्द-शखेश्वर, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदिः सेवो पास शर्खेश्वरो;
अंतिः आपो आप तुठा., पे.वि. गा.७. ६०९३. भक्तामर, लघुशान्ति व कल्याणमन्दिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. सोजित, ले.
पं. निहालचन्द, (२५.५४१०.५, १२४३४-३६). पे.-१. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-४अ), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति
लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४. पे..२. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च., पे.वि.
श्लो.१७. पे..३. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, (पृ. ४आ-७आ), आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद;
अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४. ६०९४." ज्ञानपञ्चमी, पाक्षिक व अष्टमी स्तुति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-५(१ से ५)=५, पे. ३, जैदेना.,
ले.स्थल. शिवपुरी, ले.- पं. देवेन्द्र, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४१०.५, ४४२५-३१). पे.१.पे. नाम. ज्ञानपञ्चमी स्तुति सह टबार्थ, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण
ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीनेमीनाथ पाञ्च; अंतिः पण्डीतने सावधान हूती., पे.वि. मूल
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११८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्लो.४. पे..२.पे. नाम. पाक्षिकस्तुति सह टबार्थ, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण
पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्.
पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः न्हवराव्यौ निरूपम; अंतिः सर्वदा कार्यनइ विषे., पे.वि. मूल-श्लो.४. पे.३. पे. नाम. वीरजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण
संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं.,प्रा., पद्य, आदिः संसारदावानलदाहनीरं; अंति: देवि सारम्. संसारदावानल स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसाररूपीउ दावानलनो; अंतिः श्रीदेवी सरस्वती., पे.वि. मूल
श्लो .४. ६०९५. पद, सज्झाय, लावणी व स्तवन सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-६(१ से ४,६,८)=९, पे. ३१, जैदेना.,
(२६४१२, १६४५२-५४). पे.-१. आध्यात्मिक सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. -५अ-५अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः मुकत न पहोचे कोय., पे.वि. गा.१५.
प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.३ से शुरुआत है. पे.२. औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण), आदिः तुम तजौ जगत का ख्याल; अंतिः ___ उपदेस सुनो मत काना., पे.वि. गा.४. पे.-३. साधारणजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-पआ, संपूर्ण), आदि: नेनोमांही सुरमा सारे; अंतिः तिरे नही शङ्कर.,
पे.वि. गा.६. पे.४. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-पआ, संपूर्ण), आदिः अरणिक मुनिवर चाल्या; अंतिः
आतम काज कीधोजी., पे.वि. गा.८. पे.५. आदिजिन पारणा गीत, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ-, संपूर्ण), आदिः घडा एकसो आठ सवा मन; अंतिः
आदिजिनेसर कीयो पारनो., पे.वि. गा.५. पे.६. औपदेशिक सज्झाय, मु. वालभ, मागु., पद्य, (पृ. -७अ-७अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः पामे भवतनो पार रे., पे.वि.
गा.११. प्रथम पत्र नही है. गा.१ से ९ तक नहीं है. पे.-७. गजसुकुमाल सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. ७अ-७आ-, अपूर्ण), आदिः सुवरणमइ है द्वारिका; अंतिः-, पे.वि. अंतिम
पत्र नहीं है. गा.१ से ३० तक है. पे.८. औपदेशिक सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. -९अ-९अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः एक चूनी एक कुकडी., पे.वि. गा.२४.
अंतिम पत्र है. मात्र गा.२४ वीं है. पे.९.निर्मोही सज्झाय, खूबचन्द, राज., पद्य, (पृ. ९अ-९अ, संपूर्ण), आदिः वन्दु नाभिराय के अंति: मेर गुरु ग्यानी.,
पे.वि. गा.९. पे.-१०. नेमराजिमती सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण), आदिः म्हे धावाला प्रभू; अंतिः वरत्या जै जै कार.,
पे.वि. गा.३४. पे.-११. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पाठक श्रीसार, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण), आदि: उत्पति जोज्यो
आपणी; अंतिः इम कहे श्रीसार., पे.वि. गा.६९. पे.-१२. औपदेशिक सज्झाय, मु. परमानन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदिः आया हकीम दिल्ली; अंतिः ___ मुक्त मिलन की आस., पे.वि. गा.५. पे.-१३. साधारणजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदिः तीरथ करता दुख हरता; अंतिः सेवो थाय
सकल मानीये., पे.वि. गा.५. पे.-१४. उपदेशपच्चीसी, ऋ. चन्द्रभाण, राज., पद्य, वि. १८६०, (पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण), आदिः चौरासी मे चाकजू रे;
अंतिः जोडी ढाल उदार.,पे.वि. गा.२५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
११९ पे:१५. औपदेशिक पद, राज., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण), आदिः धोयलारी धोवनीया ए; अंतिः विषर गयो इन
गलीया., पे.वि. गा.७. पे.-१६. सती सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः सतीयां दीपेडा नीराला; अंति: मोक्ष रसाला है.,
पे.वि. गा.१४. पे.१७. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. कुशलमुनि, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण), आदिः सुरपत आप करे
प्रसंसा; अंतिः प्रणमुं सीस नमाय., पे.वि. गा.१६. पे.१८. साधारणजिन पद, ऋ. रतनचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः ओर देव की सेवा न; अंतिः
संसारी गन्दकी., पे.वि. गा.७. पे.-१९. औपदेशिक पद, मु. भूधर, राज., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः अरे अग्यानी जाग जग; अंतिः सरन
सतावी आव., पे.वि. गा.४. पे.२०. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. खेम, मागु., पद्य, वि. १७४६, (पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण), आदिः सुरपत प्रसंसा
करे; अंतिः कहे गाया सुख पावे., पे.वि. गा.२०. पे..२१. औपदेशिक सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. १३आ-१३आ, संपूर्ण), आदिः चली जा चली जा रे; अंतिः मन पर दीवान
वाती., पे.वि. गा.९. पे.-२२. औपदेशिक पद, हेमराज, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण), आदिः दुपटा मेरा नेनो देवी; अंतिः से ध्यान
लगानाजी., पे.वि. गा.८. पे..२३. सामायिक सज्झाय , मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः प्रणमी गोतम गणधर; अंति: लहीय अधिक
जगीस., पे.वि. गा.१३. पे..२४. औपदेशिक पद, राज., पद्य, (पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण), आदिः धर ध्यान निहालडा रे; अंतिः चतर सुजान रे.,
पे.वि. गा.१०. पे..२५. औपदेशिक सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. १४आ-१४आ, संपूर्ण), आदि: समज ले जीव वे प्यारे; अंति: जनम यो तो
वीतता जाइ.,पे.वि. गा.६. पे..२६. गुरु उपदेश लावणी, मु. धनदास, प्राहिं., पद्य, वि. १९१७, (पृ. १४आ-१४आ, संपूर्ण), आदिः तु सुणि सतगुरु ___ का; अंतिः गुरु चरणा चित धर रे., पे.वि. गा.५. पे:२७. अभयकुमार सज्झाय, नन्दा, राज., पद्य, (पृ. १४-१५अ, संपूर्ण), आदिः वीर जिणन्द समोसर्या; अंतिः
भवसागर छुटी., पे.वि. गा.१८. पे:२८. शान्तिजिन स्तवन, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १५अ-१५अ, संपूर्ण), आदिः चित चाहत सेवा चरण; अंतिः
भीत मिटावो मरन की., पे.वि. गा.७. पे..२९. पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, प्राहिं., पद्य, (पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण), आदिः निकी मूर्ति वामानन्द; अंतिः दाता
परमानन्द की., पे.वि. गा.५. पे.-३०. महावीरजिन जन्मबधाई, राज., पद्य, (पृ. १५आ-१५आ, संपूर्ण), आदिः त्रिसला दे माता; अंतिः भवसागर से
उवार., पे.वि. गा.१३. पे.-३१. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, राज., पद्य, (पृ. १५-१५आ, संपूर्ण), आदिः म्हे तो नजरा; अंति: जय जय
श्रीमहावीर., पे.वि. गा.७. ६०९६. चिन्तामणीपार्श्वजिन स्तोत्र व स्तुत्यादि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(३.६)=५, पे. १२, जैदेना., ले.स्थल. चंदूर,
ले.पं. उत्तम, (२४.५४११, १७४४३). पे.१. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिन्तामणि, सं., पद्य, (पृ. १अ-१आ, संपूर्ण), आदिः किं कर्पूरमयं सुधारस; अंतिः बोधिबीजं
ददातु., पे.वि. श्लो.११.
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१२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.२. शान्तिजिन चैत्यवन्दन, उपा. कुशलसागर, सं., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः सकलदेवनरेश्वरवन्दितं;
अंतिः सम्पदः प्राप्नुवन्ति., पे.वि. श्लो.१३. पे.-३. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवन्दन, मागु., पद्य, (पृ. २आ-आ, संपूर्ण), आदिः श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंतिः शासनं ते भवे __भवे., पे.वि. गा.५. पे.४. सकलार्हत् स्तोत्र-जिनभवन स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, (पृ. २आ-आ, संपूर्ण), आदि: अवनितलगतानां; अंतिः
भावतोहं नमामि., पे.वि. मूल-श्लो.१. पे.-५. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २आ-आ-, संपूर्ण), आदि: वीरं देवं नित्यं; अंतिः शनो देवि दयादम्भ., पे.वि.
श्लो.१. पे.६. तीर्थवन्दना चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. -४अ-४अ, संपूर्ण), आदिः सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः सततं
चित्तमानन्दकारि., पे.वि. श्लो.१०. पे.-७. साधारणजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदिः सर्वज्ञ सर्वहित सर्व; अंति: गुणान् गुणिनो नयन्ति.,
पे.वि. श्लो.९. पे.८.२४ जिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदिः श्रीआदिनाथाजितसम्भवे; अंतिः दुरापन्नसुखं च सारम्.,
पे.वि. श्लो.५. पे..९. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण), आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल; अंतिः श्रेयस्करं
प्रार्थये., पे.वि. श्लो.२५. पे..१०. चन्द्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ-, संपूर्ण), आदिः ॐ चन्द्रप्रभ; अंतिः वंशदायनि मे वरप्रदा., पे.वि.
श्लो .५. पे..११. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पण्डित सङ्घविजय, सं., पद्य, (पृ. -७अ-७आ, संपूर्ण), आदिः वृषभलांछनलाञ्छितमादि;
अंतिः भवतु देहवतां सदैव., पे.वि. श्लो.२९. पे.-१२. साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, (पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण), आदिः श्रीतीर्थराजपदपद्म; अंतिः
दाता दधतां शिवं वः., पे.वि. श्लो.१. ६०९७. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८११, मध्यम, पृ. ६-१(४)=५, पे. ५, जैदेना., (२५४११, १६x४१).
पे.-१. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, (पृ. १अ-६अ, अपूर्ण), आदिः नमो अरिहन्ताणं;
अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. पे.२. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः करेमि भन्ते पोसहं; अंतिः अप्पाणं
वोसिरामि. पे.-३. पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ, संबद्ध, प्रा.,गुज., गद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः सागरचन्दो कामो;
अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. पे.-४. पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः चउक्कसायपडि; अंतिः पासु पयच्छउ वञ्छिउ., __ पे.वि. मूल-गा.२. पे.-५. सन्थारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः निसिही निसिही निसीहि; अंतिः समत्तं मए गहिअं.,
पे.वि. गा.१४. ६०९८.” जम्बूस्वामी चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८११, मध्यम, पृ. ५९, जैदेना., ले.स्थल. राजकोट, ले.- पं. लक्ष्मीविजय
(गुरु गणि अमृतविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, दशा वि. विवर्ण-पानी से-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५२६)
भग्नि मुष्टि कटी ग्रीवा; (६९) जब लग मेरु अडग है, (२६४११, ७४४१). जम्बूस्वामी चरित्र, प्रा., प+ग, आदिः नमिऊण वद्धमाणं जस्स; अंतिः भवमझे सिज्झिस्संति. जम्बूस्वामी चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करी; अंतिः भवमां मोक्षे जास्ये.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
६०९९. गुरुतत्त्वप्रदीप, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १५. जैवेना. प्र. वि. ८ विश्राम प्र.पु. मूल-ग्रं. २४५ (२७४१२, १८४४०-४५),
.
गुरुतत्त्वप्रदीप, सं., पद्य, आदिः इह केचिद् धर्मार्थि; अंतिः मिथ्यादुःकृतं मम.
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६१००.” समगति व गुणकरण्ड गुणावली चौपाई, संपूर्ण, वि. १६९३, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. वापारी, ले.
साध्वीजी केसरदे (गुरु साध्वीजी कस्तूरजी) प्र.ले.पु. विस्तृत प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है (२६४११, १७-१८४५०-५१ ).
"
पे.-१. समगति चौपाई, मु. अमृत, मागु., पद्य, (पृ. १अ - ४अ), आदिः आणन्द मुनि उछरङ्ग; अंतिः नितनित ध्या
जी., पे.वि. ढाळ - ९.
पे. २. गुणकरण्डक गुणावलि चौपाई- बुद्धिविषये, मु. ज्ञानमेरु, मागु., पद्य, वि. १६७७, (पृ. ४अ-८आ), आदिः समरु चउवीसे जिणराय अंतिः सुणतां होवइ खेम, पे.वि. डाळ- १६ प्र. पु. ४००
६१०१. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., ले. पं. मयाचन्द्र ( खरतरगच्छ ), प्र. वि. गा. ३१२, ( २४.५x११,
११-१३x४४-४८).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं.
६१०३. कल्पसूत्र व श्लोक, संपूर्ण वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. ३७, पे. २, जैदेना. ले. स्थल तोलीयासर प्र.ले. श्लो. (५०९) यादर्श
"
पुस्तके दृष्टं, (२५.५x११.५, १५X३७-४०).
पे. १. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य (पृ. १अ-३७), आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ सि बेगि, पे.वि. ग्रं. १२१६, ९ - व्याख्यान.
,
पे. २. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ३७अ - ३७अ), आदिः#; अंतिः#.
६१०५. दशदृष्टान्त, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना, ( २६ ११.५, १५X३८-४०).
मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टान्त, सं., गद्य, आदिः संसारे चतसृषु गतिषु: अंतिः न शक्यते जीवेन.
६१०४.” सारदीनाममाला, पूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २३-१ (१) = २२, जैदेना., प्र. वि. ३कांड, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, प्र. वि. गा. १ से ११ तक नहीं है., (२५.५४११, १०-१२४३२-३८).
लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि सं., पद्य, आदि:- अति हर्षकी० बत नाममाला.
६१०६. वसुधारा, संपूर्ण, वि. १९१३, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. विक्रमपुर, पठ- पं. लिखमण, (२५X१२, १३४३४). वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति.
६१०७. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले. स्थल. कालूग्राम, ले. पं. नारायण,
(२५.५X११.५, १२४३३-३९).
"
अष्टानिकापर्व व्याख्यान वा क्षमाकल्याण, सं. गद्य वि. १८६०, आदि: शान्तीशं शान्ति अतिः विलोक्य तत्. ६१०८. लघुक्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र. वि. गा. २६४ (२६.५x११, १३ - १६×३५-४०).
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमयं पसिद्धं.
१२१
६११२. सनत्कुमार रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गाथा २५५ तक हैं., (२५.५४१०.५, ११४३९-४२).
सनत्कुमार चक्रवर्ति रास मागु, पथ, आदि: पहिलु प्रणमु मनहरंगि; अंति:
"
६११४. दृष्टान्त सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२७४११, १५X४३-४८). दृष्टान्त सङ्ग्रह, मागु., पद्य, आदिः इहा कुलवालनुं; अंतिः
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६११५. श्रावक आराधना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. प्र.पु. - ग्रं. १६६., ( २६ ११, १३x४६-५३).
श्रावक आराधना, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत; अंतिः मुनिषडरसचन्द्रवर्षे.
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१२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६११६. नवकार मन्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. जैसलमेर (२६x१०.५, १३-१४४४४
५३%
नमस्कार महामन्त्र प्रा. पद्य, आदि नमो अरिहन्ताणं नमो अंतिः पढमं हवई मङ्गलम्
नमस्कार महामन्त्र-बालावबोध *, मागु., गद्य, आदि: माहरओ नमस्कार; अंति: गुणता विशेष लाभ छइ.
६११७. उत्तराध्यननसूत्र - अध्ययन ३६, प्रतिपूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. ऋ. टेकचन्द्र, प्र. वि. प्र. पु. - मूलअंश-ग्रं. ३००., (२५.५४११, १३४३७-४५),
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः सम्मए त्ति बेमि
६११८. मौनएकादशी कथा व उवसग्गहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७३६, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. विक्रमपुर, ले.- मु. देवेन्द्रविजय, ( २६११.५, ११४३१-३३).
पे.- १. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मागु., गद्य, (पृ. १अ - ९आ), आदि: सिरिवीरं नमिऊण; अंतिः सकल सुख विभागी थाइ.
"
पे. २. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५. आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. पद्य (पृ. ९आ९आ) आदि उवसग्गहरं पासं पासं: अंति भवे पास जिणचन्द, पे.वि. गा.५.
६११९. बार भावना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र. वि. गा. १२५, ( २६.५x११, ११-१२x२७-२९).
१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी अंतिः भणी जेसलमेर
मझार.
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(+)
६१२०. नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९०५ मध्यम, पृ. १२, जैदेना. ले. मैयादास गोसांई. प्र. वि. मूल-गा. ९३...
-
"
टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६४११.५, ५X३३-३६).
·
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवापुन्नं; अंतिः कम्माणं वग्गणाणन्ता.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्व; अंतिः कर्मणा वर्गणा अनन्त.
६१२१. आलाप पद्धति व संसारी परिवर्तन, पूर्ण, वि. १७४९, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१) - १०, पे २ जैदेना ले. मु. नयकुशल,
(२५.५४११.५, ११४४१-४४ ).
पे. १. पे नाम. सुखबोधार्थमालापपद्धति, पृ. २अ-७आ, अपूर्ण
आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः यथा जीवस्य शरीरमिति, पे. वि. प्रथम पत्र नहीं है.
"
पे. २. पे. नाम संसारी परिवर्तन पृ. ७आ-११आ, संपूर्ण
,
संसारी परिभ्रमण, सं., गद्य, आदिः परिवर्तनं परिभ्रमणं; अंतिः दुःखाकुले भ्रमति.
६१२२. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. स्थल. सिरदारनगर, ले. पं. जयदत्त,
(२५.५४११.५, १४४३३-३९).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: (१) स्मारं स्मारं स्फुरद (२) चतुर्मासिक पर्वणि; अंतिः सर्वेष्टार्थसिद्धिः.
६१२३.” बार भावना, सवैया व आत्मचर्या, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११.५, १५४३८-४४).
.,
पे. १. १२ भावना विलास, गणि लक्ष्मीवल्लभ, मागु पद्य वि. १७२७ (पृ. १३-५अ ), आदि: प्रणमि चरण युग पास अंतिः बुद्धि न होइ विरुद्ध. पे.वि. गा.५२.
पे. २. प्रास्ताविक सवैया मागु, पद्य, (प्र. ५अ ५अ) आदि एक ही मातपिता तसु अंतिः मुखी उमे साध अवधूत, पे. वि.
गा.३.
पे. ३. अध्यात्म चर्या, मु. ज्ञानसार, मागु., पद्य, (पृ. ५आ - ५आ), आदिः आसा साधो भाई निहचै; अंतिः तौ ह्वै भवदधि
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पारा..
पे.वि. गा. १४.
६१२५. नवपद क्षमाश्रमण विधि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. (२६४१२, १३४३१-३३).
नवपद खमासण विचार, प्राहिं., सं., गद्य, आदिः तिहां प्रथम पदै; अंतिः सर्व भेद ३६४६ होय.
·
६१२८.” दीपावली कल्प, संपूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. गा. १३७. गाथा ४३ और ४४ के बीच गद्य व १६ गाथा और हैं। टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५x१२, १७४३५-३९).
,
दीपावलीपर्व कल्प. प्रा. पद्य आदिः उप्पायविगमधुवमयमसेस अंतिः सोहेयच्वो सुअधरेहिं.
"
.
६१२९.” जम्बू अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र. वि. २१उद्देश, टिप्पण युक्त विशेष पाठ - प्रारंभिक पत्र,
(२५.५४१२.५, १७४३८-४२).
जम्बू अध्ययन प्रकीर्णक, गणि पद्मसुन्दर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे ; अंतिः से आराहगा भणिया ६१३०. नवकार मन्त्रमहिमा कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ( २५x११.५, १५X३७-४३). कथा सङ्ग्रह **, सं., प्रा., मागु., पद्य, आदि: नवकार इक्क अक्खरेण; अंतिः क्षय करी मोक्ष जासी.. ६१३२. नवपद चैत्यवन्दन व स्तुति सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. १९, जैदेना., (२३.५X११, १०x२४-२८). पे.-१. नवपद चैत्यवदन, पाठक हीरधर्म, मागु., पद्य, (पृ. १आ - १आ), आदि: जयजय श्रीअरिहन्त; अंतिः हीरधर्म अलिसन्त, पे.वि. गा.३.
पे. २. सिद्धपद चैत्यवन्दन पाठक हीरधर्म, मागु., पद्य, (पृ. १आ - १आ), आदिः श्रीशैलेसी पूर्व; अंतिः वन्दे धरी शुभ भाव., पे.वि. गा.३.
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"
पे. ३. आचार्यपद चैत्यवन्दन पाठक हीरधर्म मागु, पद्य, (पृ. १आ-२अ) आदि जिनपद कुल मुखरस अनिल; अंतिः अठठोत्तरसो बार पे.वि. गा.३.
पे. ४. उपाध्यायपद चैत्यवन्दन पाठक हीरधर्म मागु, पद्य, (पृ. २अ-२अ) आदि धन धन श्रीउवज्झाय: अंतिः वन्दे पाठकवर्य, पे.वि. गा. ३.
,
"
पे. ५. साधुपद चैत्यवन्दन पाठक हीरधर्म, मागु, पद्य, प्र. २अ-२आ), आदि दंसण नाण चरित करी; अंतिः हीरधर्म के काज.. पे.वि. गा.३.
पे.-५.
पे. ६ दर्शनपद चैत्यवन्दन पाठक हीरधर्म मागु पद्य (पृ. २आ-(आ) आदि हुय पुग्गल परिअठ्ठ; अंतिः अहनिश
करत प्रणाम., पे.वि. गा. ३.
पे. ७. ज्ञानपद चैत्यवन्दन पाठक हीरधर्म प्राहिं पद्य (प्र. २आ-३अ) आदि क्षिप्रादिक रामवह्नि अंतिः नित चाहत
,
"
देवी करे सुपसाय पे. वि. गा.४.
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"
१२३
अवकाश, पे.वि. गा.३.
पे. ८. चारित्रपद चैत्यवन्दन पाठक हीरधर्म प्राहिं, पद्य, (पृ. ३अ-३अ), आदि: जस्स पसाये साहु पाय; अंतिः नमन करत नितसङ्ग, पे. वि. गा.३.
,
पे.-९. तपपद चैत्यवन्दन पाठक हीरधर्म, मागु., पद्य, (पृ. ३अ - ३आ), आदिः श्रीऋषभादिक तीर्थनाथ; अंतिः दूर भवतु भवकूप., पे. वि. गा.३.
पे. -१०. अरिहन्तपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ३-४ अ ), आदि: सहु यन्त्र शिरोमणि; अंतिः चारित्रनन्दी मन भाय.. पे.वि. गा. ४.
पे - ११. सिद्धपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, प्राहिं, पद्य, (पृ. ४अ - ४आ), आदि: निज भाव विलासी पर; अंतिः चारित्र मन लाय., पे.वि. गा. ४.
पे - १२. आचार्यपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ ), आदि: धन धन सिद्धचक्रै; अंतिः चारित्रनन्दि सुख थाय., पे. वि. गा. ४.
पे. १३. उपाध्यायपद स्तुति उपा. चारित्रनन्दि प्राहिं, पद्य (पृ. ५-५आ) आदि सहु पाप पणासन नवपद अंतिः
P
·
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-१४. साधुपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः सुरतरु सम ध्यावो; अंतिः चक्केसरी
रखवाल., पे.वि. गा.४. पे.-१५. दर्शनपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः अनुपम सिधचक्रे पूजो; अंतिः देवी करो
सुखकन्द., पे.वि. गा.४. पे.-१६. ज्ञानपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः सुर नर मुनि वन्दित; अंतिः चक्केसरि
सुखकार., पे.वि. गा.४. पे.-१७. चारित्रपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः सिद्धचक्र प्रणमन्तां; अंतिः वञ्छित पूरे
काम., पे.वि. गा.४. पे.-१८. तपपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ), आदिः त्रिकरण भवि ध्यावो; अंतिः देवी करो जस __वृद्धि., पे.वि. गा.४. पे.-१९. ओलीपारणा स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदिः नित प्रति हुं प्रणमु; अंति: नवपद
स्तुति गुणगाय., पे.वि. गा.४. ६१३३.” उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-२(१ से २)=१७, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, पु.वि. बीच के पत्र हैं. प्रथम अध्ययन गा.४ अपूर्ण से चर्यापरीसह कथा तक है., (२५.५४१०.५, ५
१४४३६-४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः६१३६." सीमन्धरजिनवीनती स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले.स्थल. सरीद, ले.- मु.
सुमतिविजय, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.१७७ तक हैं., (२५.५४११.५, ३-४४२८
३३).
सीमन्धरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः सीमन्धर साहिब आगइं; अंति:सीमन्धरजिन विज्ञप्तिस्तवन-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः (१) प्रणम्य पार्श्व देव (२)
श्रीसीमन्धरस्वामी; अंतिः६१३७. पाक्षिकसूत्र, खामणा व औषधी, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ३, जैदेना., ले.- पं. प्रेमविजय(तपागच्छ),
(२५.५४११.५, १५-१७४३३-३७). पे.-१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-९अ
पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे..२.पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ९अ-९आ
क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. पे.-३. औषधवैद्यक सङ्ग्रह *, सं.प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदिः#; अंतिः#. ६१३९. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२६.५४१२, १५-१६४३६-४२). पाशाकेवली-भाषा', आधारित, मागु., गद्य, आदिः (१) १११ उत्तम थानक लाभ (२) ॐ नमो भगवति; अंतिः सुखनो
देनार सुकन छै. ६१४२. भासचौवीसी, सामान्यजिन पद व आदिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ३, जैदेना., पठ.- श्रा. चुथा
साह, (२७.५४११.५, ११४३४-४३). पे.१. सरस्वतीदेवी पद, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदि: कर कमल जोडी करी; अंतिः जाणे ते सवि नाद., पे.वि.
गा.३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे:२. आदिजिन गीत , मु. शुभ , मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः कोसो जेणि तुम ईषु; अंतिः बोलि तुम सकलपती.,
पे.वि. गा.४. पे.३.२४ जिन भास, मु. सेवक, मागु., पद्य, (पृ. १आ-८आ), आदिः सरसति गजगति काइ दिउ; अंतिः सुख सम्पति
बहु ए., पे.वि. २४ भास. ६१४४. साधुप्रतिक्रमण, श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व स्तोत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल.
सांतलपुर, पठ.- मु. हरचन्द, (२५४११.५, १२-१६४३१-३८). पे.१. पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, (पृ. १अ-३आ), आदिः चत्तारि मङ्गलं; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. पे..२. वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-५आ), आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धे; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं., पे.वि.
गा.५०. पे.-३. सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः ___श्रीवीरजिननेत्रयोः., पे.वि. श्लो.२६. पे.४. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिन्तामणि, सं., पद्य, (पृ. ६अ-७अ), आदिः किं कर्पूरमयं सुधारस; अंतिः बोधिबीजं ददातु.,
पे.वि. श्लो.११. ६१४६. बारभावना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. गा.१२०. इस प्रत मे कर्ता का उलेख नही है., (२६४११.५,
११-१२४३१-३५). संवेगद्रुममञ्जरी चौपाई, मु. कुशलसंयम, मागु., पद्य, वि. १६वी, आदिः सकल सरूप प्रणमी; अंतिः पय सेवा हुयो
जिनराज. ६१५१. सील रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा. ५३ तक लिखा हैं.,
(२६.५४११.५, १२४३१-३६).
शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मागु., पद्य, आदिः पहिलो प्रणाम करौ; अंति:६१५३.” पासाकेवली, अपूर्ण, वि. १८३६, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने
सामने छप गए हैं, (२५.५४११.५, ११४३४-३८).
पाशाकेवली-भाषा* , आधारित, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: गुरुभक्ति करे सही. ६१५४. श्रीपाल रास-४ खण्ड, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-११(१ से ११)=१४, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
(२५.५४१२, ४-५४२३-२७).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंति:६१५७." गजसुकुमाल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, पृ. १५-२(१ से २)=१३, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-१८, संशोधित, पू.वि.
प्रारंभ के पत्र ढाल २ गाथा १० तक नहीं हैं., (२७४१२, १०-११४३६-५०).
गजसुकुमाल रास, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः सतगुरु कहिभ साम्भलो. ६१५८. विष्णुकुमार चरित्र, दामनखो, होलीका, विरजिन व चन्दनबाला ढाल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९७१, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ५,
जैदेना., ले.स्थल. विनातट, ले.- ऋ. न्यालचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४१२, १८x२८-४८). पे:१. विष्णुकुमार पञ्चढालीयो, मु. रामचन्द, मागु., पद्य, वि. १९११, (पृ. १आ-३अ), आदिः प्रणमी श्रीमहावीरने; अंतिः ___मुनिवरना गुण गावीया., पे.वि. ढाळ-५. पे.२.पे. नाम. दामनखो ढाल, पृ. ३अ-४आ दामनककुमार चौपाई, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८९१, आदि: वीर नमुं त्रिभुवन; अंतिः अष्टढाल गुण
गाया., पे.वि. ढाळ-८. पे.३. होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-६अ), आदिः प्रथम पुरुष राजा; अंतिः विनयचंदजी कहे
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची करजोडी., पे.वि. ढाळ-४. पे.-४. महावीरजिन चौढालिया, ऋ. रायचन्द, राज., पद्य, वि. १८३९. (पृ. ६अ-७अ), आदिः सिद्धार्थकुलमई जी; अंतिः
दीवालि रे दिनव्ये., पे.वि. ढाळ-४, गा.६३. पे.५. चन्दनबाला चौपाई, मु. रतनचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-९आ), आदिः प्रणमी मण्डित नीलतनु; अंतिः भवपारो रे
लो., पे.वि. ढाळ-१४. ६१५९. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१(५)=१८, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.
भरहेसर गा.१० अपूर्ण तक है., (२५.५४१२, ७-९४२१-२७).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः६१६०." चन्द चरित्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०५-८६(१ से ८३,९२,९८,१०४)=१९, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के
पत्र हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४१२, १७४४२-४७).
चन्द्रराजा चौपाई, गणि विजयशेखर, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:६१६२. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. बम्बई, ले.- पं. ऋद्धिविलास (गुरु
गणि अमरसिन्धु), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२५.५४१२.५, १२४३२-३५). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते.
कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदिः प्रणम्य पार्श्वमिष्ट; अंतिः भवति षष्टोलः. ६१६४. पञ्चप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२५४१२, १३४४८-५३).
पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति: दोय नमोथुणं देणा. ६१६६. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ६०-२५(२ से २६)=३५, जैदेना., ले.स्थल. मकसुदावाद(बालोच, ले.- पं.
माणेकविमल, प्र.वि. खण्ड-४, ढाळ १४, (२५४१२, १४४३१-३७). श्रीपाल रास , उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी;
अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी. ६१६८." श्रुतबोध सह टीका (छन्दशास्त्र), संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. ११, देना., प्र.वि. मूल-श्लो.४१., त्रिपाठ,
(२५.५४१२.५, २-४४२६-३०). श्रुतबोध, कालिदास, सं., पद्य, आदि: छन्दसां लक्षणं; अंतिः सा प्रसिद्धा.
श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीमत्सारस्वतं; अंतिः अवसेयानि. ६१७०.” समयसारनाटक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७४०, श्रेष्ठ, पृ. १७१, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, प्र.वि. टिप्पण
युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२७४१२, ११४४३-५१). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचन्द्राचार्य, सं., पद्य, आदिः ॐ नम
समयसाराय; अंतिः मेवामृतचन्द्रसूरेः.
समयसारनाटक कलश-बालावबोध, राज., गद्य, आदिः भावाय नमः भावशब्दै; अंतिः करिइ साचै शब्द राशि. ६१७५.” मृत्यु महोत्सव सह अर्थ व भावार्थ, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, प्र. ६, जैदेना., ले.स्थल. हरिदुर्ग, ले.- रेखराज, प्र.वि.
मूल-श्लो.१८. अंतिम श्लोक का भावार्थ नहीं लिखा है. अर्थरचना के समीपवर्ति काल में लिखी गयी प्रति., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टबार्थादि, (२७.५४१२.५, १७-१८४४८-५७). मृत्यु महोत्सव, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः मृत्युमार्गे प्रवृत्; अंतिः सन्तो लभन्ते स्वतः. मृत्यु महोत्सव-अर्थ, श्रा. सदासुखजी, प्राहिं., गद्य, वि. १९१८, (संपूर्ण), आदिः मुक्ति के मार्ग में; अंतिः (१)सदा मन धरे
सम्यक गाढ (२)प्राप्त होय है. मृत्यु महोत्सव-भावार्थ, श्रा. सदासुखजी, प्राहिं., गद्य, (पूर्ण), आदिः मै अनादि काल सैं; अंतिः
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१२७ ६१७७. कनिरामजी चरित्र व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. नवनगर, प्र.वि. मूल-ढाळ
१६., (२७४१२.५, १३४३७-५०). पे.-१. कनिराम चरित्र, मु. रेखराज, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१६आ), आदिः सासण नायक समरिये; अंतिः पावहि सिवसुख ___ सिरी., पे.वि. ढाळ-१६.
पे.२. ज्योतिष, सं.,मागु., पद्य, (पृ. १६आ-१६आ), आदि: #; अंतिः#. ६१७८. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९७०, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. सिवपुरी, ले.- ऋ. लालचन्द (गुरु आ.
__ अजयराजसूरि), प्र.वि. श्लो.४४+४. ऋद्धिमंत्र यंत्र विधि सह., (२६.५४१२.५, ११४३६-४६).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. ६१८०. समकित सडसठबोल सज्झाय व वीरजिन पञ्चकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९००, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.
पं. कस्तूरविजय, (२७.५४१३, १३-१५४३०-४६). पे.१. सम्यक्त्व सडसठबोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-५अ), आदिः सुकृतवल्लि
कादंबिनी; अंतिः वाचक जस इम बोले रे., पे.वि. ढाळ-१२, गा.६८. पे.२. महावीरजिन स्तवन-पञ्चकल्याणक, मु. रामविजय, मागु., पद्य, वि. १७७३, (पृ. ५आ-७आ), आदिः शासननायक
शिवकरण; अंतिः नामे लही अधिक जगीस ए., पे.वि. ढाळ-३, गा.५६. ६१८१. ज्ञानपञ्चमी देववन्दन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., (२६.५४१२, १२४३६).
ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, आदिः प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज. ६१८२. चैत्रीपूनम देववन्दन व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.- पं. कस्तूरविजय,
(२८x१३, १४-१५४३२-४३). पे.१. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववन्दन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-७आ), आदिः प्रथम प्रतिमा च्यार; अंतिः
एकवीस नाम. पे..२. महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (प्र. ७आ-७आ), आदिः वीरकुंवरनी वातडी; अंति: भागे सादि
अनन्त.,पे.वि. गा.१०. ६१८३. जलयात्रा विधि, संपूर्ण, वि. १९००, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. थरानगर, ले.- पं. कस्तूरविजय, पठ.- मु. चतुरजी
(गुरु पं. हंसराज), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रथम पत्र, (२७.५४१३, १३४३०-३८).
जलयात्रा विधि, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः अष्टप्रमाण कार्य. ६१८६. वरदत्तगुणमञ्जरी चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. डीसा, ले.- पं. मोहन, प्र.वि.
मूल-श्लो.१५३., (२८x१३.५, ६४३१-३५). वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे.
ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) ऐन्द्रनतपदं पार्वं (२) श्रीज्ञानवन्त; अंतिः मेरुतानगरने विषेइ. ६१८७." कालिकाचार्य कथा व गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण
युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, १४४३३-४१). पे.१. कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., प+ग, वि. १६६६, (पृ. १आ-१५अ), आदिः प्रणम्य श्रीगुरुं; अंतिः
सङ्घः प्रवर्त्तताम्., पे.वि. ग्रं.४५१.
पे.२. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१५अ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. परिमाण गा.१. ६१९०. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९२९, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., ले.स्थल. वासाग्राम, ले.- मु. राजरतन, लिखवा.- श्रा.
उगरचन्द सेठ,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. खण्ड-४, ढाळ ४१, प्र.ले.श्लो. (५७९) कड गुडा करी एकठा, (२९x१३, १३१५४३९-४०).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
श्रीपाल रास उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि मागु पद्य वि. १७३८ आदि कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी.
·
"
६१९२. मेरुत्रयोदशी कथा अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (१) -५, जैवेना. ले. गणि केसरविजय, ( २६.५४१३, १६-१८४३४
३७).
मेरुत्रयोदशी कथा, सं., गद्य, आदि: अंतिः यः स मुक्तिसाधनकृतः.
i
·
"
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६१९४. उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३९-२३ (१ से २३ ) = ११६, देना., ले. स्थल. कसराग्राम,
·
- मु. ऋद्धिविजय, प्र. वि. मूल-गा.५८७. कथा - परिमाण ७२ प्र. पु. कथा व टबार्थ-ग्रं. ५०४७. पू. वि. गा. १ से ३९ तक नहीं हैं., (२८x१३, ५-१९३०-४० ).
उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी..
उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु., गद्य, वि. १७१३, आदि:-; अंतिः वाणी श्रुतदेवता ते. उपदेशमाला-कथा*, मागु., गद्य, आदि:- अंति:
६१९५. नेमिजिन विवाहलो व बारव्रत पूजा, अपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. १० - १(१ ) = ९, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. नडियाद, ले.
मु. सोभागविजय, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. (२८४१३.५, १२x२८-३४).
पे.-१. नेमिजिन विवाहलो, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, वि. १८८६, (पृ.
जयकार., पे.वि. ढाळ - १७. प्रथम पत्र नहीं है. प्रथम ढाल नहीं है.
२अ - ८आ, पूर्ण), आदि:-; अंतिः ए ते लहे
पे. २. १२ व्रत पूजा विधि, मागु, गद्य (पृ. ८-१० आ अपूर्ण) आदि विसाल जिनभुवने अथवा अंतिः, पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण प्रथम व्रतपूजा तक लिखा है.
६१९६. लघुसङ्ग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१४, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. मूल - गा. ३०., (२८x१३, ३-४४३१-३६).
लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं सव्वन्नुं; अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं. लघुसङ्ग्रहणी-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदिः नमिय क० नमस्कार करी; अंतिः वधे ते सारु करीने.
६२०१. ज्ञानपञ्चमी देववन्दन विधि, संपूर्ण वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना, ले स्थल कोठ, ले. पं. चतुरविजय, (२९x१३.५.
१४X३६-३९).
ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, आदिः श्रीसौभाग्यपञ्चमी; अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज. ६२०२. अजितशान्ति व बृहत्शान्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२८x१३, १३४३०-३५ ).
पे.-१. अजितशान्ति स्तव, आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ - ४अ), आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह., पे.वि. गा. ४०.
पे.-२. बृहत्शान्ति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., गद्य, (पृ. ४अ - ६आ), आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः जैनं जयति शासनम्. ६२०३. पखवाडो, बारमासो, लावणी, पद व स्तवन सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. १४, जैदेना., पू.वि. अंत के
पत्र नहीं हैं., (२७.५४१३.५, १६४४०-४३)
पे.-१. औपदेशिक पखवाडो, मु. डूङ्गरसी, राज., पद्य, (पृ. १अ - १आ, संपूर्ण), आदि: एकम जीव इकेलो आयो; अंतिः भवभव में सुख पावो.. पे.वि. गा. १६.
पे. २. १५ तिथि सज्झाय, मागु, पथ, (पू. १आ-२अ संपूर्ण) आदि प्रीया पखवाडो वितो: अंतिः लाहो लेन्या लार.. पे.वि. गा.१७.
पे. ३. नेमराजिमती स्तवन- १५ तिथिगर्मित मु. रङ्गविजय, मागु पद्य, (पृ. २अ आ, संपूर्ण), आदि जे जिनमुख कमले राजे; अंतिः रङ्गविजय वधते रङ्गे, पे. वि. गा. २३.
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पे. ४. आदिजिन वारहमासा ऋ. मूलचन्द, मागु, पद्य (पृ. २आ-३अ संपूर्ण) आदि प्रथम जिणन्द प्रणमु: अंतिः देव तणा देवा रे, पे.वि. गा.१४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१२९
पे.५. नेमिजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदिः राणी राजुल इण परि; अंतिः पाले
अविहड प्रीत रे., पे.वि. गा.१३. पे.६. नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदिः सांवण मासे स्वाम; अंतिः एह
नवनिध पामि रे., पे.वि. गा.१३. पे.७. नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण), आदि: वेसाखे वन मोरिया; अंतिः
मिलीया मुगति मझार.,पे.वि. गा.१४. पे..८. स्थूलिभद्र बारमासो, आ. लाभोदयसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण), आदिः सखी रे साम्भल मोहि; अंतिः
सुखकारी हो लाल.,पे.वि. गा.१५. पे..९. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण), आदिः सुकृत की बात तेरे; अंतिः से जोर
तेरो नहीं रे., पे.वि. गा.५. पे..१०. पार्श्वजिन लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण), आदिः मुगतगढ़ जीत लिया; अंतिः काइ ___ मन मे सङ्का. पे:११. नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५-६अ, संपूर्ण), आदिः हारे सजन समजाणा; अंतिः नित
उठ जाता दरसण कुं.,पे.वि. गा.५. पे.-१२. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः लाभ नहि लियो जिणन्द; अंतिः
किया भव धुर भज के.,पे.वि. गा.४. पे.-१३. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदि: जल लावो मुसाफर; अंतिः
जिनराज चरण पर ठेहरी., पे.वि. गा.४. पे..१४. नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः कहोरी माई केसे लगे; अंतिः
जिनदास सेव थांरी., पे.वि. गा.४. ६२०५. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. कोठ, ले.- पं. चतुरविजय, प्र.ले.पु. मध्यम,
पू.वि. अंतिम तीन गाथा का टबार्थ नहीं लिखा है., (२९x१४, ६४२५-३३). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, (संपूर्ण), आदिः सरस्वतीं हृदि; अंति: मुनि हस्तिना.
वैद्यवल्लभ-टबार्थ , मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः श्रीसरस्वतीने; अंति:६२०९. सप्तस्मरण, स्तोत्र व स्तुति सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ५, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है.,
(२५४१४, १४-१५४३०-३६). पे.-१. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, (पृ. १अ-१०अ, प्रतिपूर्ण), आदि: नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः
जैनं जयति शासनम्., पे.वि. ७ स्मरण है. नवकार व कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है. पे:२. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः जैनं जयति
शासनम्., पे.वि. श्लो.१७+२. पे-३. सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः
सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: मरालायार्हतेनमः., पे.वि. श्लो.२६. पे.-४. महावीरजिन स्तुति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदिः वीरः
सर्वसुरासुरेन्द; अंतिः श्रीवीर भद्रं दिश., पे.वि. श्लो.१. पे.५. आदिजिन चैत्यवन्दन, सं., , (पृ. ११आ-११आ-, अपूर्ण), आदिः सुवर्णवर्ण गजराज; अंति:-,पे.वि. अंतिम पत्र
नहीं है. ६२१०. पाञ्चभाव विचार - अनुयोगद्वारे, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, जैदेना.,प्र.वि. पत्रों पर नम्बर नहीं दिया गया है.,
(२७.५४१३, १६-२२४३०-४३).
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१३०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
अनुयोगद्वारसूत्रे-पञ्चभाव विचार, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः उदयभाव उपशमभाव; अंतिः भाव ४ उदयभाव. ६२१५.” दृष्टान्त-कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. स्थल. गारवदेसर, ले. - पं. शिवचन्द ( गुरु मु. खिमराज). प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६.५४१३, १९४४४)
द्रष्टान्त कथा सङ्ग्रह *, मागु, गद्य, आदि: #; अंतिः #.
६२१६. ज्ञानपञ्चमी देववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. स्थल. पालनपुर, ले.- पं. रत्नविजय, (२७०४१३, १५-१६९४३).
ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन आ. लक्ष्मीसूरि, मागु, पद्य, आदि: श्रीसौभाग्यपञ्चमी अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज.
·
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६२१७. इरियावही मिच्छामि दुक्कडं व मल्लीजिन पूर्वभवसम्बन्ध स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६. पे. २, जैदेना..
(२६.५x१३, १२x२१ ) .
पे. १. इरियावही मिच्छामि दुक्कडं सङ्ख्या स्तवन, गणि लक्ष्मीवल्लभ, मागु, पद्य, (पृ. १अ २आ), आदि पद पङ्कज रे प्रणमी; अंतिः सन्थव्यो भावइ करी., पे.वि. गा.१५.
P
पे. २. मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मागु पद्य वि. १७५६ (पृ. २आ-६अ ) आदि नवपद समरी मन शुद्धे अंति धरमराग मन मे धरी., पे.वि. ढाळ-५.
६२१८. स्तवनचौविसी व तीर्थङ्कर वरसीदान स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-१ (१) = ८, पे. २, जैदेना., (२७X१३,
98X89).
पे.- १. स्तवनचौवीसी, गणि मानविजय, मागु., पद्य, (पृ. २अ - ८आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः समकित शुद्ध ठरावो रे.. पे.वि. ढाळ - २४. प्रथम पत्र नहीं है. स्तवन- २ गा. ७ तक नहीं है.
पे. २. जिनवरसीदान स्तवन, मु. लब्धिअमर, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण), आदिः श्रीवरदाईना चरण नमी ; अंतिः वञ्छित पाया रे, पे.वि. गा.२८.
६२१९. वर्द्धमानद्वात्रिंशिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. मूल - श्लो. ३३., (२७X१३, ११४३६). महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि सं., पद्य, आदि सदायोगसाम्यात् अंतिः तांश्चक्रिशक्रश्रियः. महावीरद्वात्रिंशिका-अवचूरि, मु. उदय, सं., गद्य, आदिः स्याद्वादविद्यामृत; अंतिः अंगीकुर्वन्तीत्यर्थः.
६२२०. नवतत्त्व चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. ढाळ - ९, (२७४१३, २१X५०).
नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः सकल जिनेसर प्रणमी; अंति: गणतां सम्पति कोडि. ६२२२. पार्श्वजिन स्तवन छन्द व पार्श्वजिन मन्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.- मु. चतुरविजय,
(२६.५४१२.५, १४४३९).
पे- १. पे नाम. पार्श्वजिन मंत्र. पू. १३-१अ
मन्त्र-तन्त्र-यन्त्र सङ्ग्रह सं. प्रा. मागु प+ग, आदि में अंति
पे. २. पार्श्वजिन छन्द-आशापूरण, मागु, पद्य, वि. १८१९ (पृ. १अ - ५अ ), आदिः आसापूरन जगधणि पारस; अंतिः चेतत ग्यान जगीस., पे.वि. गा.१०१.
६२२३.' चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४-३ (१ से २,४१ ) + १ (२४) = ६२, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ( २६.५x१२, ३-११४३९-५०). चन्द्रप्रज्ञप्ति प्रा. पद्य, आदि:-: अंति:
चन्द्रप्रज्ञप्ति - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:- अंतिः
६२२४. नवप्रदीप अनुसप्तभङ्गनयलक्षण, प्रतिपूर्ण, वि. १८८२ श्रेष्ठ, पृ. ५. जैवेना. ले. स्थल जोधनगर, (२५.५४१२, २५
२६x४६-४९).
सप्तभङ्गीनयप्रदीप प्रकरण उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि: अंतिः सौख्यकृते सततं सताम्
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१३१
६२२५.” साधुप्रतिक्रमण सूत्रसङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-११(१ से ११)=१०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण
युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६.५४१२, ४४३०-३४). साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः
साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:६२२६. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-४(२ से ४,११)=३०, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२७४१२, १७४४०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंति:६२२८. सम्बोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.७२, (२६.५४११, ९४३२).
सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. ६२२९. नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अन्तिम पत्र नहीं है. नौवे पद की पूजा अधूरी तक.,
(२७.५४१२, १०४३२).
नवपद पूजा, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, वि. १८३८, आदिः श्रुतदायक श्रुतदेवता; अंतिः६२३०. आनन्दघन पद सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ५७, जैदेना., (२६.५४१२.५, १८४४६).
पे.-१. आनन्दघन पदसङ्ग्रह, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः क्या सोवे उठ जाग; अंतिः निरञ्जन
देव गाउं रे., पे.वि. गा.३. पे:२. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः रे घरियारी बाउ रे; अंतिः विरला कोइ पावे.,
पे.वि. गा.३. पे.-३. औपदेशिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदि: जिया जानै मेरी सफल; अंतिः नर मोह्यो ___ माया करीरी., पे.वि. गा.३. पे.-४. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः सुहागणि जागी अनुभव; अंतिः अकथ कहानी
कोय., पे.वि. गा.४. पे.-५. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः अनुभव प्रीतम; अंतिः नहींतर करहु हांसी.,
पे.वि. गा.३. पे.-६. साधारणजिन पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः अब मेरे पति; अंतिः मतङ्ग गज गञ्जन.,
पे.वि. गा.३. पे.-७. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, राज., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदि: बालुडी अबला जोर; अंतिः आनन्दघन
अतिरञ्ज.,पे.वि. गा.५. पे..८. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदिः साधु सङ्गति बिनु; अंतिः आनन्दघन
महाराज री., पे.वि. गा.४. पे.९. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदिः कोउ राम कहो; अंतिः चेतन मेनि क्रम री.,
पे.वि. गा.४. पे.-१०. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, राज., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः मुदल थोडो रे भाईडा; अंतिः बाहोडी
झालजो रे आय., पे.वि. गा.३. पे:११. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ-२अ), आदिः ओधू क्यां सूवै तन; अंतिः नाथ निरञ्जन
पावै.,पे.वि. गा.५. पे.-१२. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२अ), आदिः आशा औरन की क्या कीजे; अंतिः खेले
देखै लोक तमासा., पे.वि. गा.५. पे.-१३. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२अ), आदिः अवधू राम राम जग; अंतिः रमता पङ्कज
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१३२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भमरा., पे.वि. गा.४. पे.-१४. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः अवधू क्या मागु गून; अंति: रटन करूं
गुणधामा., पे.वि. गा.५. पे.-१५. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ-आ), आदिः अवधू नट नागर की बाजी; अंतिः परमार्थ
सो पावै., पे.वि. गा.५. पे.-१६. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ-आ), आदिः आतम अनुभव रसीक को; अंतिः को नवि
वलगे वेलु., पे.वि. गा.१. पे.-१७. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ-आ), आदिः माहरओ बालूडो सन्यासी; अंति: सीझे
काज सवारी., पे.वि. गा.४. पे:१८. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. २आ-२आ), आदिः क्यारे मने मलस्ये; अंति: पछि कोइ न ___ वलगे चेलु., पे.वि. गा.२. पे::१९. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. २आ-२आ), आदिः क्यारे मने मळशे; अंतिः क्यम जिवै मठ मे
ही..पे.वि. गा.२. पे.२०. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः कुबुद्धि कूबरी कुटिल; अंतिः बतावै तो
जीतोगे गाजि.,पे.वि. गा.५. पे:२१. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ-३अ), आदिः आतम अनुभव रस; अंतिः घुमैं सब संसार.,
पे.वि. गा.१. पे.-२२. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (प्र. ३अ-३अ), आदिः मोर बताय निज रूप; अंतिः सर वग धरी
री., पे.वि. गा.३. पे.-२३. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ-३अ), आदिः चेतन चतुर चोगान; अंतिः आनन्दघन पद
पकरी री., पे.वि. गा.३. पे.-२४. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ-३अ), आदिः पीया विना निस दिन; अंतिः आनन्दघन
पीउख झरी री., पे.वि. गा.३. पे.-२५. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३अ), आदिः परम नरममति और; अंतिः कहा कहु ढोल
बजावै.,पे.वि. गा.३. पे.२६. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ-३अ), आदिः ठगोरी भगोरी लगोरी; अंतिः घाट उतारन
नाव मरोरी.,पे.वि. गा.३. पे.२७. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदिः तेरी हुं तेरी हुं; अंति: गङ्ग तरङ्ग बहु
री., पे.वि. गा.३. पे.-२८. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदिः मेरी तुं मेरी तुं; अंति: आनंदघन पद केल
करी री., पे.वि. गा.३. पे.-२९. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, राज., पद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदिः वारी हुं बोलडे मीठडे; अंतिः भागे आन
वसीठडे., पे.वि. गा.३. पे.-३०. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदिः अठीली आंखा; अंतिः उर आनन्दघन नाहे
रे., पे.वि. गा.४. पे.-३१. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदि: नीस दिस सोहामणो; अंतिः आनन्दघन
पद भोग हो.,पे.वि. गा.७. पे.-३२. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-४अ), आदिः अनन्त अरूपी अविगत; अंतिः आनन्दघन
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१३३ पद पाम., पे.वि. गा.५. पे.-३३. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४अ), आदि: नट नागर सुं जोरी; अंतिः देखत धृष्ट
चकोरी., पे.वि. गा.५. पे.-३४. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-४अ), आदिः दरसन प्राण जीवन मोहि; अंति: कोड
जतन ज्यो कीजै., पे.वि. गा.३. पे.-३५. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-४अ), आदिः पिया तुम निठुर भए; अंतिः कीजीयै तुम हौ
तैसे..पे.वि. गा.३. पे.-३६. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः मोकुं कोउ हंसै हुत; अंतिः यह
जनरावराधको., पे.वि. गा.२. पे.-३७. आध्यात्मिक पद-जकडी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदिः राशि शशि तारा कला; अंतिः
आनन्दघन की आस.,पे.वि. गा.५. पे.-३८. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदि: रीसानी आप मनावो; अंतिः आपहि सुमता
सेज., पे.वि. गा.५. पे.-३९. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदिः मेला पीआनि मिलावो; अंतिः आय घरे ___ हरी भांत., पे.वि. गा.५. पे.-४०. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः मेरा माझि मजेठी सुण; अंतिः घर ही घर
घाटा., पे.वि. गा.३. पे:४१. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५अ), आदिः भोरे लोगा हुं रडुं; अंतिः आनन्दघन करु ___ घर दीया., पे.वि. गा.४. पे:४२. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, राज., पद्य, (पृ. ५अ-५अ), आदिः निशदिन जोउ तारी वाट; अंतिः सेजडि __रङ्ग रोला., पे.वि. गा.५. पे.-४३. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५अ), आदिः निसाणी कहा बतावु रे; अंतिः आनन्दघन
महाराज.,पे.वि. गा.५. पे.-४४. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः विचार कहा विचारे रे; अंतिः लखे अनादि __ अनन्त., पे.वि. गा.६. पे:४५. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः देखो आली नट नागरको; अंतिः कहो
ओर दीजे बङ्ग., पे.वि. गा.३. पे:४६. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदि: प्रीत की रीत न होइ; अंतिः घनधारा
तबहि दे पठई., पे.वि. गा.३. पे.-४७. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ-आ), आदि: कैरे ज्यारे ज्यारे; अंतिः अम्रत सुख
देज्या ., पे.वि. गा.३. पे.-४८. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः अवधू अनुभव कलिका; अंतिः जगावै ___अलख कहावे सोई.,पे.वि. गा.५. पे.४९. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः अवधू नाम हमारा राखे; अंतिः मुरत
सेवकजन बल जाइ., पे.वि. गा.५. पे.-५०. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः साधो भाई सुमता; अंतिः नायक रिझकर
कण्ठ लगाई., पे.वि. गा.४. पे:५१. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः आतम अनुभव फूलकी नवली; अंतिः धनवा
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची __ के न कहावै., पे.वि. गा.३. पे.-५२. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः अनुभव तूं है हेतु; अंतिः बाजे जीत
नगारो., पे.वि. गा.३. पे.-५३. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः अनुभव हमतो; अंतिः सुमता अटकलि ओर
नवासी., पे.वि. गा.३. पे.-५४. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः नाथ निहारो आप; अंतिः और नहीं तू
समतासी., पे.वि. गा.३. पे:५५. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः आतम अनुभव रस; अंतिः नमीता परे
पचाए., पे.वि. गा.१. पे.-५६. औपदेशिक पद, मु. जिनराज, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः कहा रे अग्यानी जीवकु; अंतिः कहा वाको
सहज मिटावै., पे.वि. गा.३. पे.-५७. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः एसो ज्ञान बिचारी; अंतिः कुन पुरुष कुन
नारी., पे.वि. गा.६. ६२३२. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ- अध्ययन १५-१६, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं. अध्ययन १५-१६वाँ मात्र. , (२६.५४११.५, ५४३१-३८). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:
ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:६२३३. चौवीसतीर्थकरनाम माता लञ्छनादि वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ९, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित
है।, (२६४११.५४).
२४ जिन माता-पिता नामादि यन्त्र, मागु., कोष्टक, आदि:#; अंतिः#. ६२३४. आचाराङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७-३१(१ से ३१)=१६, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२५.५४११.५, १५४४६-५४).
आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:६२३६.” अभिधानचिन्तामणि नाममाला, त्रुटक, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. पत्र के नम्बर अस्त-व्यस्त हैं।,
पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. बीच बीच के पत्र हैं., (२७.५४११.५, १५४६४-७७).
अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंति:६२३७. सत्तरभेदी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)-५, जैदेना., ले.स्थल. मोरबी, ले.- मोनजी रावल, प्र.वि.
ढाळ-१७, पू.वि. पूजा १ से ४ तक नहीं हैं., (२८x१२, १०४३७).
१७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः सुरपति जिम थुणियो. ६२३८. थावच्चाकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना.,प्र.वि. गा.२८२; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ५९४, (२६४११, ११४४३).
थावच्चाकुमार रास, मु. विमलप्रभसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, वि. १६५५, आदिः पढमजिणपमुहसव्वेवि; अंतिः घरि अचल
वधामणूं. ६२३९. इलाकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गाथा १४४ तक हैं.,
(२५.५४११, १५-१७४४२).
इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७१९, आदिः सकलसिद्धदायक सदा; अंति:६२४०." भाव सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ६, जैदेना., ले.स्थल. लाहोर-थराद, ले.- उपा. रविवर्द्धन, प्र.वि. गा.७६,
टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२५.५४११.५, १३४३२).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१३५
भावत्रिभङ्गी , मु. श्रुतमुनि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः खवियघणघाइकम्मे; अंतिः पुण्णा दुगुणपुण्णा. ६२४१. ठाणाङ्गसूत्र, त्रुटक, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पू.वि. नम्बरवाला भाग टूट गया हैं.,
(२९x१०.५, १३४५१-६४).
स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:६२४२. चैत्यवन्दन व स्तोत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ६, जैदेना., (२६४१२, १२४३२).
पे.१.२४ जिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-४अ), आदिः प्रथम नमुं श्रीआदि; अंतिः रुप सदा
आणन्द., पे.वि. गा.२५. पे..२. सिद्धचक्र चैत्यवन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४अ-४अ), आदि: उप्पन्नसन्नाणमहो; अंतिः सिद्धचक्कं
नमामि., पे.वि. गा.५. पे..३. सिद्धपद चैत्यवन्दन, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः सिद्धाणमाणदरमालयाणं; अंतिः
अपुनर्भव्यादिस्वरूपा., पे.वि. श्लो.२. पे.४. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, (पृ. ४आ-आ), आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल; अंतिः श्रेयस्करं
प्रार्थये., पे.वि. श्लो.२५. पे.५.२४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १६५२, (पृ. ६अ-७अ), आदिः ऋषभनम्रसुरासुरशेखर; अंतिः
जरसा रहितं पदम्., पे.वि. श्लो.२९.
पे.६. शान्तिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः सुरराज सम्य जनतां; अंतिः भवभव्यभीतहरम्., पे.वि. श्लो.९. ६२४५. सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३-५(१,४ से ५,२७ से २८)=३८, जैदेना., पू.वि. बीच बीच
के पत्र हैं., (२५.५४११, ७४३३-४१). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:
सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:६२४७. घटकर्पर काव्य सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.२१. प्रत ताडपत्र पर से लिखी
__ गयी है., (२५.५४१२, १३४४७-५०). घटखर्पर काव्य, कवि घटकर्पर, सं., पद्य, आदिः निचितं खमुपेत्य; अंतिः हेयमुदकं घटकर्परेण.
घटखर्पर काव्य-टीका, आ. शान्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रोषितप्रमदयेद; अंतिः तृषितः पिपासितः सन्. ६२४८." प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९००, श्रेष्ठ, पृ. ८६-२(५०+५१,८५+८६)+१(७८)=८५, जैदेना., प्र.वि. मूल
अध्याय-१०; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १२५०.प्र.पु.-बालावबोध-ग्रं. ६८००. बालावबोध टबार्थ पद्धति से लिखा गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, प्र.ले.श्लो. (५१७) यादृशं पत्रयो दृष्टं ; (४७१) भग्नपृष्टं कटिग्रीवा; (५१८) तैलाद्रक्षे
ज्जलाद्रक्षेत्, (२६४१२, ५-६४३९-६३). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जंबू अपरिग्गहो; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति.
प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: जाइं अनन्तसुख पामे. ६२४९. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, ले.- बुलाखीराम गणपतराम
क्षत्रीय, प्र.वि. मूल-गा.५३., (२७४१२, ३४२३-२६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, राज., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः परावर्त्त जास्यइ. ६२५०. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. वडनगर, ले.- ऋ. मनसुखराम, (२७४१२,
९४२६-३०). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः विशेषतः श्रावक तणआइ; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२५२. कर्मग्रन्थ १ से ३, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ३, जैदेना., (२५४१२.५, १०४३१-३४). पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-५आ), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ
देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६०. पे.२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ-८आ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं
नमह तं वीरं.,पे.वि. गा.३३. पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-११अ), आदि: बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं
कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५. ६२५३. पञ्चकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. बम्बई, ले.- श्रा. लवजी मोतीचन्द, (२६४१२.५,
११४२८-३२). पंचकल्याणक पूजा-पार्श्वजिन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८९, आदिः सवेश्वर साहेब; अंतिः वञ्छीत दाय
सुहायो रे. ६२५४.' पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२.५,
६४२१-३७). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं.
पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तीर्थङ्कर प्रते; अंतिः मिथ्या विफल होज्यो. ६२५५. सुयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ - श्रुतस्कन्ध १, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ, (२५.५४१२, ६४३७-४१). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः
सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रथम श्रीआचाराङ्ग; अंति:६२५६. पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. २६ वी पाट श्री समुद्रसूरि तक है., (२७४११.५, १५४३८-४०).
पट्टावली*, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान; अंतिः तीर्थउ नमस्कार करीओ. ६२५७. बारभावना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. गा.१२८, ढाळ-१३, (२७४१३.५, १२४२८-३०).
१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर
मझार. ६२६०. होली कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- पं. चतुरविजय, प्र.वि. मूल-श्लो.५३., (२७४१३,
५४२६-३३). होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदिः वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंतिः विज्ञानायाञ्चनोचितः.
होलिकापर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंतिः जीवनइ अर्थि रच्यो. ६२६१. स्वरोदयशास्त्र, स्वरोदयसाधनिका व आत्मशिक्षा, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ३, जैदेना., ले.- पं.
चतुरविजय, (२७४१३.५, १७-२०४३४-५०). पे.-१. स्वरोदय शास्त्र, मु. चिदानन्द, मागु., पद्य, वि. १९०७, (पृ. १अ-१०अ), आदिः नमो आदी अरिहन्त देव; अंतिः ___ चन्द्र चित्तधार., पे.वि. गा.३८१. पे.२. स्वरोदय साधनिका, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०अ-११आ), आदिः अथवा प्राणायाम जें; अंतिः तत्व लखे जब कोई.,
पे.वि. गा.६०. पे.-३. आत्मशिक्षा, कवि हंसरत्न, मागु., पद्य, वि. १७८६, (पृ. १२अ-१४आ), आदिः सकल सास्त्रे; अंतिः घरि
जयकमला थीर थाय., पे.वि. गा.११०. ६२६३. रत्नाकरपच्चीसी सह टबार्थ (वीतरागस्तव), संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. ५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.२५. प्र.पु.-टबार्थ
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१३७
ग्रं. १८०., (२७४१३.५, ४४३१-३६). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये.
रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि: कल्याण लक्ष्मी; अंतिः स्वामी मांगु छु. ६२६४. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्तवन १ से ९ तक है., दशा वि.
अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२६.५४१३.५, ४-५४३१-३६). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति:६२६५. विवाहपण्णत्तीसूत्र सह टबार्थ, प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०२-४४(२१ से ६४)=५८, जैदेना., प्र.वि. प्रत नं.१००
का यह अवशेष भाग है. पत्रांक अव्यवस्थित व गलत होने से निर्दिष्ट अंश को अलग किया गया है.. पू.वि. बीच व
अंत के पत्र नहीं हैं. शतक-८ उद्देश-९ से शतक-१० उद्देश-३५ अपूर्ण तक है., (२६.५४१२, ७४२०-७०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
भगवतीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:६२६६. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.१०२, ढाळ-८. परिमाण- श्लो.१२७, ढाळ-७,
(२६४१३, ११४३०-३३).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः सकल सिद्धिदायक; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए. ६२६७. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)=८, जैदेना., पू.वि. प्रथम दो पत्र स्तवन १ से ४ नहीं हैं.
अन्तिमपत्र प्रतिलेखन पुष्पिका का नहीं हैं., (२५.५४१३.५, १२४३५-३८). स्तवनचौवीसी, पं. मुक्तिविमल, मागु., पद्य, वि. १९७०, आदि:-; अंतिः अविचल लीला लेशेजी. ६२६८. पञ्चकल्याणक विधिसामग्री, संपूर्ण, वि. २०२३, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. खिमेलनगरे, ले.- मु. मनोहरविजय
(गुरु आ. लावण्यसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पत्र के दोनों ओर नम्बर हैं।, (२८.५४१२.५, १६-१८४३०
३८).
अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठा पञ्चकल्याणक विधिसामग्री, मागु., गद्य, आदिः च्यवन कल्याणक इन्द्र; अंतिः न्हानुं हाथ प्रमाण. ६२६९. स्तोत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ७, जैदेना., (२४४११., १३४३८-४३).
पे..१. पार्श्वजिन स्तोत्र-शखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः महानन्द लक्ष्मी धना; अंतिः
श्रीहंसरत्नायितम्., पे.वि. श्लो.११. पे..२. तीर्थवन्दना चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः सततं चित्तमानन्दकारि.,
पे.वि. श्लो.९. पे.-३. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः अनन्तविज्ञानमनन्त; अंतिः तिलकोवहिवीरमाम्., पे.वि.
श्लो.५. पे.४. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, (पृ. २आ-३आ), आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल; अंतिः श्रेयस्करं
प्रार्थये., पे.वि. श्लो.२५. पे.५. आदिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदि: जयानन्दलक्ष्मी; अंतिः जोपासनां देवदेया., पे.वि. श्लो.११. पे.६. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानन्दसूरि?, सं., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः श्रीइन्द्रभूति; अंतिः लभन्ते नितरां
क्रमेण., पे.वि. श्लो.९.
पे.-७. महावीरजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः सिद्धे समासाधन; अंति: नतानि सुखानि वीर., पे.वि. श्लो.८. ६२७०. मेरुत्रयोदशी व अक्षयतृतीय कथा, अपूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. १९-४(१ से ४)=१५, पे. २, जैदेना., (२७४१३, १२४३५
४३). पे.-१. मेरुत्रयोदशी कथा, सं., गद्य, (पृ. ५अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः प्रणम्य भारती; अंतिः स मुक्तिसाधनं भवति.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.२. अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, (पृ. १४अ-१९आ, संपूर्ण), आदिः स्वस्ति श्रीसुखदातार; अंतिः कथा निरुपितास्ति. ६२७१. आदिजिन तेरभव वर्णन व खीर-घृत लोकदृष्टान्त, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, प्र. ९, पे. २, जैदेना., (२७७१३, १२४३५
४३). पे.१. आदिजिन १३ भव वर्णन, मागु., गद्य, (पृ. १अ-८आ), आदिः श्रीआदेसरना १३ भव; अंतिः आधारे मेलव्यो. पे..२. खीरघृत लोकदृष्टान्त, मागु., गद्य, (पृ. ८आ-९आ), आदिः सासु जमनी परें अली; अंतिः आचार रुडी रीते
पालवो. ६२७२. होलीपर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. डीसा-राजपूर, ले.- मु. कस्तूरविजय
(गुरु मु. मोहनविजय),प्र.वि. मूल-श्लो.३४., (२६.५४१३, ५४३२-३५). होलिकापर्व प्रबन्ध, गणि पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदिः प्रणम्य सम्यक; अंतिः चिरं वाच्यताम्.
होलिकापर्व प्रबन्ध-टबार्थ, मु. कान्तिविजय, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करिनेइं; अंतिः पर्वनो सदल्पे रच्यो. ६२७५. मौनएकादशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. डीसा, ले.- मु. कस्तूरविजय (गुरु
मु. मोहनविजय), प्र.वि. मूल-श्लो.२०१., (२७४१३, ६x२९-३४). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य ऋषभदेवं; अंतिः सागरशररसशशिप्रमिते.
मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य पुरहुतालिपरि; अंतिः १६६७ वर्षे ए कथा करि. ६२७६. चातुर्मासिक व्याख्यान (कथा), संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., (२६४१३, १४-१६४३६-४२).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, सं.,मागु., गद्य, आदिः सामायिक आवश्यकव्रत; अंतिः मिच्छामिदुक्कडं देवो. ६२७७." परमाणुखण्ड, पुद्गल व निगोदषट्त्रिंशिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. ३, जैदेना., ले.- पं.
सुखरत्न मुनि,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२४४११, १३-१५४४३-४८). पे.-१.पे. नाम. परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका सह टीका, पृ. १अ-४आ भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः खित्तोगाहणदव्वे भाव;
अंतिः बहुतराणं गुणाण ठिई. परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदिः यथास्थिताणुजीवादि; अंति: गुणमिति
स्थितम्., पे.वि. हिस्सा-गा.१५. पे.२.पे. नाम. पुद्गलषट्त्रिंशिका सह टीका, पृ. ४आ-११अ
भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः वुच्छं अप्पाबहुअं; अंतिः ते __ अणन्ते जिणाभिहिए. पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदिः अथ पञ्चम एव; अंतिः हितान्
जानीयादिति., पे.वि. हिस्सा-गा.३६. पे.-३. पे. नाम. निगोदषट्त्रिंशिका सह टीका, पृ. ११अ-१८आ
भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः लोगस्सेगपएसे जहन्नय; ___ अंतिः ते अणन्ता असङ्खा वा. भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका के हिस्सा-निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदिः
अथ पंचमांग; अंतिः सङ्ख्येया अवसेयाः., पे.वि. हिस्सा-गा.३६. ६२७९. स्तोत्रादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९७०, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २३, जैदेना., ले.स्थल. धानेरा, ले.- वा. मणिविजय (गुरु मु.
सुरेन्द्रविजय), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x१३, १२-१४४३१-३७). पे.-१. जैनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः श्रीजिनं भक्तितो; अंतिः सम्पदश्च पदे पदे., पे.वि. श्लो.१८. पे.२. चन्द्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः ॐ चन्द्रप्रभ; अंतिः वंशदायनि मे वरप्रदा., पे.वि. श्लो.५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१३९
7
पे.-३. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २अ-२अ), आदिः ॐ परमेष्ठि नमस्कारं अंतिः चापि कदाचन., पे.वि. श्लो. ८. पे. ४. शान्तिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २-२ आ), आदिः ॐ विश्वातिशायिमहिमं अंति: शान्तिनाथसेवाकरे मयि पे. वि.
;
..
"
·
श्लो. ५
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पे. ५. ऋषिमण्डल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य (प्र. २आ-५आ) आदि आद्यन्ताक्षरसंलक्ष्य अंतिः स्तोत्रमुत्तमम्., पे.वि. श्लो. ६८.
पे. ६. नमस्कार महामन्त्र आम्नाय संबद्ध सं. मागु, गद्य (पृ. ५आ-५आ) आदिः ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अंतिः सामा बेसी गुणवो.
पे. ७. ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं. गद्य (प्र. ६अ-७आ), आदिः ॐ नमो भगवते अंतिः भवति नास्ति संशयः.
,
"
पे. ८. जिनपञ्जर स्तोत्र आ. कमलप्रभसूरि सं., पद्य, (पृ. ८अ ९अ) आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अहं अंतिः श्रीकमलप्रभाख्याः,
,
पे.वि. श्लो. २५.
पे.-९. चन्द्रप्रज्ञप्तिगाथा कल्प, मागु., गद्य, (पृ. ९अ - ९अ), आदिः ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं; अंतिः पवित्राइथी गुणवो सही.. पे.-१०. लोगस्ससूत्र-लोगस्सकल्प, संबद्ध, सं., प्रा., गद्य, (पृ. ९आ-१०अ ), आदिः ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं ; अंतिः महाफल थाय. पे.-११. शान्तिमन्त्र, सं.,मागु., गद्य, (पृ. १०अ १०अ ), आदिः ॐ नमो श्रीशान्ति: अंति: गुणीइ सिद्धिर्भवति. पे.-१२. लोगस्ससूत्र-लोगस्सकल्प की यन्त्रविधि, संबद्ध, सं.,मागु., गद्य, (पृ. १०आ- १०आ), आदिः ए लोगसनो यन्त्र; अंतिः प्रजा मित्र वश्यं.
पे.-१३. नमस्कारमहामन्त्र में चौबीसजिन, मागु., गद्य, (पृ. १०आ - १०आ), आदि: नवकार मध्य २४; अंति: गुरु मुखे जाणवी.
पे.:-१४. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, (पृ. ११अ - १२आ), आदिः श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंतिः प्रसीद परमेश्वरि., पे.वि. श्लो. ३४.
पे.-१५. १६ विद्यादेवी मन्त्र, सं., गद्य, (पृ. १३अ - १३अ), आदि: रोहिणी प्रज्ञप्ति; अंति: १६ देवीभ्यो नमो नमः . पे. १६. २४ जिन यक्ष नाम, सं. गद्य, (पृ. १३अ १३अ), आदि: गौमुख यक्ष महायक्ष अंतिः मातङ्गयक्ष २४. पे.-१७. २४ जिन यक्षिणी नाम, सं., गद्य, (पृ. १३अ - १३अ), आदिः चक्रेश्वरी अजिता अंतिः पद्मावती सिद्धाई.. पे १८. १८ अक्षरी नमिऊणवीज मन्त्र. सं. गद्य (पृ. १३३ - १३अ), आदिः ॐ नमिऊण पास विषहर अंतिः पसमन्ति
;
".
"
मम स्वाहा.
,
पे. १९. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. कुशल, सं., पद्य, (पृ. १३आ- १३आ), आदिः ॐ ह्रीं श्रीं धरणो अंतिः नमामः कुशलं लभाम:., पे.वि. श्लो. ५.
पे.-२०. पार्श्वजिन मन्त्र- स्वप्नफलकथन, सं.,मागु., पद्य, (पृ. १३आ- १४अ), आदिः ॐज्जतुं ॐज्जतुं; अंतिः सुपनमधे आवी वात कहे.
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पे.-२१. माणिभद्रवीर स्तोत्र, वा. उदय, मागु., पद्य, (पृ. १४अ - १४आ), आदिः नित समरुं त्रिपुरा: अंतिः माणिभद्र सेवे सदा.. पे.वि. गा. २२.
पे. २२. पे नाम. मुगसीजी फलोधी पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १५-१५अ
पार्श्वजिन स्तव-फलवर्द्धि, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदिः ॐ नमो हराउ जरं मम; अंतिः अपवगा कुणउ पास जिणो., पे.वि. गा.३.
"
,
पे. २३ जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं. पद्य (पृ. १५अ १५आ), आदि: श्रीधरालक्ष्मी: अंतिः भुयात् सतां श्रेयसे, पे.वि. श्लो. ९. ६२८१. मौनएकादशी देववन्दन, संपूर्ण वि. १८९५ श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना ले. पं. कस्तुरविजय, (२७.५०१३, १४-१५०३७-४२). मौनएकादशीपर्व देववन्दन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः सयल सम्पत्ति; अंतिः नामे नवनिध था. ६२८४. प्रवचन सन्दोह, संपूर्ण, वि. १९९६, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. मेथाणा, ले.- करुणाशङ्कर छगनलाल व्यास, प्र. वि.
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१४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
प्र.पु.-ग्रं.३३४., (२८.५४१२., १३४५३).
प्रवचन सन्दोह, प्रा., प+ग, आदिः नमिऊण वद्धमाण; अंतिः अग्गिवाचे वरिदाय. ६२८५. चार्चीक, संपूर्ण, वि. १९९५, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.- कान्तिलाल नन्दलाल पञ्चोली, (२८x१३., १३४४२-५६).
चार्चिक, सं., गद्य, आदिः अवरुप्यरसंवाहं; अंतिः सतामुचित एवास्ति. ६२८६. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- पं. सागरचन्द्र, प्र.वि. गा.१०२, ढाळ-८. परिमाण
श्लो.१२७, ढाळ-७, (२५४१२.५, १२-१४४३३-३९). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः सकल सिद्धिदायक; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए. ६२८८. विजयप्रशस्ति महाकाव्य, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक
युक्त पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सर्ग ५ गाथा ५८ तक लिखा है., (२७४१२.५, १०४३२-३४). विजयप्रशस्ति महाकाव्य, गणि हेमविजय, सं., पद्य, आदिः श्रेयांसि वः सृजतु; अंति:६२८९. पञ्चकारण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.५८, ढाळ-६, (२७.५४१२.५, ११४३४-३६).
५ कारण छढालिया, उपा. विनयविजय, मागु., पद्य, वि. १७३२, आदिः सिद्धारथ सुत वन्दिये; अंतिः विनय कहे आणन्द
६२९०. नवपद पूजा व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२६४१२.५, १२४३७-४०).
पे.-१. नवपद उलाळा, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८वी, (पृ. १आ-७अ), आदिः तीर्थपति अरिहा नमुं; अंतिः तणा
नाथ देवाधिदेवो.,पे.वि. ढाळ-९. पे.२. पार्श्वजिन स्तवन, यति रूपचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः दीजे मोहे दरसण पास; अंति: दरशन पास
जिणन्दा., पे.वि. गा.३. ६२९२. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.- पं. माणिक्यनाथ, (२६४१२, १३-१६x२९-३२).
बृहत्शान्तिस्नात्र विधि सङ्ग्रह, सं.,मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्व; अंतिः साधर्मिने जीमाडे. ६२९३. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-२(१,७)=२९, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक, बीच
व अंत के पत्र नहीं हैं., (२८x१२, १९४४२-५५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि:-; अंति:
उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः६२९६." श्रेणिकराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना.,प्र.वि. गा.३४८, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र,
(२७४११.५, १६-१८४४५-५२).
श्रेणिकराजा रास, श्रा. देपाल भोजक, मागु., पद्य, वि. १६वी, आदिः सोहावा श्रीवीरजिण; अंतिः मेलु प्रथम अध्याय. ६२९८. धर्मध्यान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., (२६.५४११.५, ९-११४२६-३३).
धर्मध्यान लक्षण, मागु., गद्य, आदिः धम्मेज्झाणे चउविहे; अंतिः धर्मध्यान ध्याइई. ६२९९. स्तवनचौवीसी, पूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, जैदेना..पू.वि. प्रथम पत्र स्तवन २ गाथा ३ तक नहीं हैं.,
(२६.५४१२, १३-१४४२७-३४).
स्तवनचौवीसी, मु. मानविजय, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः मानविजय नितु ध्यावे. ६३००. चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-७(७ से १३)=७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६३.,
पू.वि. गा.३१ से ६१ तक नहीं हैं., (२५.५४११.५, १०४३९-४५). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१४१ चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः पहिलु छ आवश्यकनां; अंतिः मुक्तिनां सुख लहइ. ६३०२. धनदत्त चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.१६१, ढाळ-९, (२६४११.५, १५-१६x४४-४६).
व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६९६, आदिः शान्तिनाथ जिन सोलमो; अंति: सीझई
वंछित काज. ६३०३. भगवतीसूत्र- शतक १२ उद्देश १, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.. पू.वि. शतक बारहवाँ., (२६.५४११,
११४३३).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:६३०५." आदिनाथ देशनोद्धार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.८८., (२६४११, ६४२९-४४).
आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदिः संसारे नत्थि सुहं; अंतिः सिवं जन्ति.
आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसारमांहि नथी सुख; अंतिः शिव मोक्ष पहुंचइ. ६३०७." उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-३०(१ से ३०)=८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५४४., टिप्पण
युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. अन्त के पत्र हैं. गाथा ४३० से ५४४ तक हैं., (२६४११, ७X४०-४४). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी.
उपदेशमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः थकउ नीकली वाणी. ६३०८. क्रियारत्नसमुच्चय, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५४-४५(१ से ४३,४६ से ४७)=९, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
(२६.५४११.५, १७४५३-६०). क्रियारत्नसमुच्चय , आ. गुणरत्नसूरि, आधारित, सं., गद्य, वि. १४६६, आदि:-; अंति:६३०९. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, पू.वि. बीच व
अंत के पत्र नहीं हैं. नमुत्थुणंसूत्र अपूर्ण तक है., (२५४११, १२-१६४३६-४१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, (पूर्ण), आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति:
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंति:६३१०." कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४-३०(१ से ३०)=५४, जैदेना., ले.स्थल. पाडलीपुर, ले.- मु.
गम्भीरविजय (गुरु मु. प्रसिद्धविजय, तपागच्छ),प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. बा.अंतिम-कह्यो छइ त्ति बेमि., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; (५०३) भग्नपृष्टी कटिग्रीवा; (८५) जलाद्रक्षे
स्थलाद्रक्षे, (२६.५४११.५, १५-१६x४४-४९).
कल्पसूत्र-बालावबोध', मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंतिः कह्यो छइ त्ति बेमि. ६३११. नवतत्त्व विचार व गौतमस्वामी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४,पे. २, जैदेना., (२६४११.५, ११४३५-३९).
पे.-१. नवतत्त्व विचार, मु. परमसौभाग्य, मागु., गद्य, (पृ. १अ-१४अ), आदिः सम्यग्दृष्टिने जे; अंतिः सामग्री पुण
दुल्लहा. पे:२. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानन्दसूरि?, सं., पद्य, (पृ. १४आ-१४आ), आदिः इन्द्रभूतिं वसुभूति; अंतिः लभन्ते
नितरां क्रमेण., पे.वि. श्लो.१३. ६३१२." ध्यानमाला सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. २, जैदेना., ले.- वेलचन्द, प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, (२५.५४११.५, ५४२७-३८). पे.१. पे. नाम. ध्यानमाला सह टबार्थ, पृ. १आ-२०आ ध्यानमाला, कवि नेमिदास रामजी शाह कवि, मागु., पद्य, वि. १७६६, आदिः श्रीजिनवाणी प्रणमन; अंति: नेमीदासे
व्रतधारि. ध्यानमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीजिन चोत्रीसअतिसय; अंतिः ध्यानमाला इम रची., पे.वि. मूल-गा.१४३.
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१४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.२. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. गा.१. ६३१३. चौवीसदण्डक विचार, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, पू.वि. अन्तिम पत्र नहीं
है. २४ द्वार तक है., (२६४११.५४).
२४ दण्डक २६ द्वार विचार, मागु., गद्य, आदि: चौवीस दण्डकना नाम; अंति:६३१४. विद्याविलास चरित्र, संपूर्ण, वि. १५५४, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. गा.१८६, (२६.५४११, १३-१४४४२-४८). विद्याविलास पवाडउ, आ. हीरानन्दसूरि, मागु., पद्य, वि. १४८५, आदिः पहिलं पणमिय पढम; अंतिः हीराणन्द तास ए
अचल. ६३१५. भास-गीत सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ५, जैदेना., (२६४११, १२-१३४३७-४१).
पे.-१. अघटकुमार भास, मागु., पद्य, (पृ. १अ-३आ), आदिः इन्द्रादिक वन्दित; अंतिः वांदुं आणी ध्यान., पे.वि. गा.४०. पे.२. मेतारजमुनि भास, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-५अ), आदिः राजगृहपुर नायक; अंतिः सयल सङ्घ जयवन्त., पे.वि.
गा.१८. पे..३. मंगलकलश गीत, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-६आ), आदिः सिरि जिणवर धरम धरम; अंतिः दोड्यो श्रीमुनिराय., पे.वि.
गा.१६. पे.-४. वज्रकुमार गीत, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदिः वर पूरव महाविदेहि; अंतिः मुगति तणउ दातार., पे.वि.
गा.१४. पे.-५. मेघरथराजा सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ७-८अ), आदिः सरण भणी पारेवडउ आवी; अंतिः मूह नइ मयण
वारेवउ रे., पे.वि. गा.१८. ६३१६. आर्यवसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- मु. खीमा (गुरु आ. विमलचन्दसूरि), (२६४११, १३
१४४४२-४७). वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति. ६३१७. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११७-१०३(१ से ९६,९८ से १०३,१०८)=१४, जैदेना., पू.वि.
बीच के पत्र हैं., (२६४११, ६४३९-४६). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:६३१९. धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- पं. खुशालविजय (गुरु पं. हस्तिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम,
प्र.वि. मूल-गा.१३८., (२६४११.५, १५४३६-४६). धर्मजिन आत्मज्ञानप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , आधारित, मागु., पद्य, वि. १७१६, आदिः चिदानन्द चित चिन्तवु;
अंतिः विनयविजय रस पूरि. ६३२०. भक्तामर व कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, तन्त्रप्रयोग व श्लोक, अपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. ११-५(१ से ५)=६, पे.
३, जैदेना., ले.स्थल. बिकानेर, ले.- पं. जैतसी गणि, पू.वि. प्रारंभ के कुछ पत्र नहीं हैं., (२६४१०.५, ५४५७-६०). पे.-१.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. -६अ-६आ, अपूर्ण
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मु. रूपचन्द्र, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः (१)प्रते समुपैति पामै (२)शिष्यबोध हेतवे., पे.वि.
मूल-श्लो.४४. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्लो.१ से ३९ नहीं है. पे..२.पे. नाम. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ६आ-११अ, संपूर्ण
कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मु. रूपचन्द्र, मागु., गद्य, वि. १८११, आदिः (१) जिनेश्वरस्य अंह्रिपद (२)
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१४३ कल्याणमन्दिर कहता; अंतिः (१)क० मोक्ष पामै (२)शिष्ययोराग्रहादसौ., पे.वि. मूल-श्लो.४४. पे..३. मन्त्र-तन्त्र-यन्त्र सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. श्लो.५. ६३२१. उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.५४४ तक है.,
(२६.५४११, ७-८४४०-४८). उपदेशमाला , गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिन्दे; अंति:
उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमिऊण कहीइ नमीनइ; अंति:६३२२." उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-१४(१ से १४)=२४, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.
गा.१८७ से ५२७ तक है., (२६.५४११, ९४३०-३३). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः६३२३.' गीतवीसी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-२० स्तवन, संशोधित, (२६.५४११, ११४३५-४०).
विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, आदिः मुझ हियडउं हेजालूयउं; अंतिः विहरमाण जिन वीस. ६३२४. चौवीसदण्डक त्रीसद्वार बोल, संपूर्ण, वि. १७९९, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., पठ.- गणि मोहनविजय (गुरु मु. तीकमविजय,
तपागच्छ), (२५.५४११.५, १३४३७).
२४ दण्डक २६ द्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः दण्डक लेशाहीती; अंतिः आंतरु जाणवउ. ६३२५. आगमिकपाठ सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२४.५४११, १९४३१-३७).
आगमिकपाठ सङ्ग्रह, सं.,प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः६३२६. आदिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(१ से २)=१०, जैदेना., पू.वि. ढाल ३७ तक लिखा हैं., (२६४१२,
११-१२४३०-४०).
आदिजिन चौपाई, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः६३२७. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-५(१ से ३,८ से ९)+१(५)=६, जैदेना., पू.वि.
बीच बीच के पत्र हैं., (२४४१२.५, १३-१५४३२-३८). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंति:
कल्याणमन्दिर स्तोत्र-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:६३२८. उवासगदशाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १५५३, श्रेष्ठ, पृ. २७-४(११ से १२,१४ से १५)=२३, जैदेना., ले.स्थल. खुडनगर
मेरुदेश, ले.- आ. धनप्रभसूरि,प्र.वि. अध्याय-१०; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ८१२, पंचपाठ, पू.वि. बीच बीच के पत्र नहीं हैं.,
दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-कुछ पत्र, (२८x११.५, १२-१३४३८-४०).
उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. ६३३१. श्रीपालराजा प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना.,प्र.वि. गा.७४; प्र.पु.-मूल-ग्रन्था-५५०, (२८x११.५,
१५४४८-५३).
श्रीपाल प्रबन्ध, उपा. धर्मसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १५०४, आदिः स्वामी बम्भणवाड; अंति: गुणतां अफलां फलइंउं. ६३३२. सङ्ग्रहणीसूत्र का बालावबोध व कर्मबन्ध विचार, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, पे. २, जैदेना., (२८x११, १५
१८४६३-७८). पे.१. बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध, गणि दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १४९७, (पृ. १अ-२७आ), आदि: नत्वा श्रीवीरजिनं; ___ अंतिः लवलेश जाणिवानइ., पे.वि. प्र.पु.-ग्रं.१०००.
पे..२. कर्मबन्ध विचार, मागु., गद्य, (पृ. २७आ-२७आ), आदि: जिम सूकी छोह; अंतिः लागइ तत्काल विलय जाइ. ६३३४. श्रावकदिनकृत्य सह टीका, त्रुटक, वि. १५वी, जीर्ण, पृ. ३३, जैदेना.,प्र.वि. पत्र अव्यवस्थित, जीर्ण तथा पत्रांक भाग
नष्ट है., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२८x१२.५, १५४४८-५७).
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,
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"
आद्धदिनकृत्य प्रकरण आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (अपूर्ण), आदि: अंति:
8
·
"
"
श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण- टीका सं., गद्य (अपूर्ण) आदि-: अंति:
(+)
६३३७. पिण्डविशुद्धि प्रकरणादि व स्तोत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १६वी, मध्यम, पृ. १० पे ७ जैदेना. (२७.५४९.५ १३४५६
६३).
पे. १. पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ - ३आ), आदिः देविन्दविन्दवन्दिय; अंतिः बोहिन्तु सोहन्तु य., पे.वि. गा. १०५.
६३४०. भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६६४, श्रेष्ठ, पृ. ३१९, जैदेना., ( २६ ११, १५x५०).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदि: नमो अरहन्ताणं अंतिः अविग्धं लिहन्तस्स.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे. २. गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-५अ), आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि., पे.वि. गा.६४. पे. ३. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ-७अ ), आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं., पे.वि. गा.६३.
पे.-४. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ - ८अ ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः ओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१.
पे. ५. अजितशान्ति स्तव आ. नन्दिषेणसूरि प्रा. पद्य (पृ. ८ अ-१०अ ) आदि अजियं जिय सव्यभयं अंतिः जिणवयणे
,
"
आयरं कुणह., पे.वि. गा.४२.
"
पे.-६. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ १०आ), आदिः नमिऊण पणयसुरगण; अंतिः नासइ
तस्स दूरेण., पे.वि.गा.२५.
पे. ७. महावीर जिन स्तव, सं. पद्य (पृ. १० आ-१०आ ) आदि नत्वा निकामं भुवन; अंतिः सोत्रभावच्छ्रियाढ्यः, पे.वि.
"
,
श्लो. ९.
पे. ३. जैन गाथा. प्रा. पद्य (पृ. ७आ-७आ) आदि # अंति# पे.वि. गा.१.
"
६३४१.” सामुद्रिकशास्त्र, चाखनाम व श्लोक, संपूर्ण, वि. १६६४ श्रेष्ठ, पृ. ७, पं. ३, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें,
(२६४११, १५९५०).
पे.-१. सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, (पृ. १अ-७आ), आदिः आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंतिः कलहमिच्छति शङ्खिनी., पे.वि. श्लो. २२५, प्र.पु. - ग्रं. २२८.
पे. २. चाखनाम, सं. पद्य (पृ. ७आ-७आ) आदि अशोकश्च विशोकश्च अंतिः दिव्यभोग वरस्त्रियः, पे. वि. श्लो. २.
"
६३४४. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- मु. कीर्ति (गुरु आ . जिनसाधुसूरि), प्र. वि. गा. ९५,
(२७.५X११, १३ - १४४३८-४५).
महावीरजिन स्तवन, मु. लक्ष्मण मागु, पद्य वि. १५२१ आदि पहिलो घुरि समरु: अंतिः घर निश्व अफला फलै. ६३४५. एकादशी स्तवन, अहोडाचक्र व सरस्वती छन्द, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पे ३ जैवेना. (२७.५x११, ९-११४३१
३५).
पे. १. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पं. जिनविजय, मागु पद्य वि. १७९५ (पृ. ११-३अ), आदि: जगपति नायक नेमिः अंतिः जिनविजय जय सिरी वरी, पे.वि. गा.४२.
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पे.-२. होडाचक्र वर्णमाला, मागु., गद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदिः चू चे चो ला ली लु; अंतिः दे दो च ची मीने.. पे.-३. सरस्वतीदेवी छन्द-अजारी, मु. शान्तिकुशल, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-५आ), आदिः सरसति सरस वचन समता; अंतिः अस्या फल सीता हरी, पे.वि. गा. ३५.
६३४६." भक्तामर स्तोत्र सह सुखबोधिका टीका, संपूर्ण वि. १६९५ श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. ले. मु. अमृतसुन्दर (गुरु मु.
विमलसुन्दर) प्र. वि. मूल - श्लो.४४ संशोधित त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-मूल पाठ,
.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१४५
(२८.५४११, ५४३६-४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्ये किलेति; अंतिः (१)विचित्रपुष्पाम्
(२)शोध्यतामियम्. ६३४७. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा १-८, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७९-१०१(१ से ५१,५९ से ८०,९५,९९ से
१००,१०३ से १०८,११६ से ११९,१४२ से १५६)=७८, जैदेना.. पू.वि. बीच बीच के पत्र हैं. स्थविरावली में
शय्यंभवसूरि का संबंध तक लिखा है., (२७.५४११, ५-१३४३५-४९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः६३४९.' कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ (पार्श्वजिन स्तवन), अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-२(२,४)=७, जैदेना., प्र.वि.
मूल-श्लो.४४., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू.वि. बीच बीच के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११, ५४२८). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते.
कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः मङ्गलीक, घर; अंतिः कालिइ मुक्ति जासिइ. ६३५१. अढारपापस्थानक भाषा, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना.,प्र.वि. ढाळ-१८+ कलश, (२७X१०.५, ११४४७).
१८ पापस्थानकपरिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मागु., पद्य, आदिः सुन्दर रूप विचार; अंतिः वन्दियो भवियण प्राणी. ६३५२. नलदमयन्ती रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २९-२(१,२३)=२७, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. खंड६ ढाल१० गा.१
तक है., (२५.५४१०.५, १५४४८). नलदमयन्ती रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७३, (पूर्ण), आदि:-; अंति:६३५३. पार्श्वजिन नमस्कार सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७५०, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- पं. ज्ञानतिलक, प्र.वि. मूल-गा.३०.,
(२६४१०.५, १६x४६). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय.
जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: जय सर्वोत्कर्षेण; अंतिः त्रिलोकलोकश्लाघितः. ६३५४. साधु वन्दना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.१०९. लेखक द्वारा गाथा ८६ के बाद गाथा क्रमांक
नंबर नहीं दिया है., (२७४१०.५, ९४३६-४२).
साधुवन्दना बडी, ऋ. जेमल, मागु., पद्य, वि. १८०७, आदिः नमो अनन्त चौवीसी; अंति: जेमल एहीज तरणनो दाव. ६३५५. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२५, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.- गणि लक्ष्मीविजय, प्र.वि. मूल-श्लो.४४.,
(२६x१०.५, ५४४९-५३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी.
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भक्तिवन्त जे अर कदिइ; अंति: लक्ष्मी क० लाछि. ६३५६. चौवीसदण्डक-३० बोल, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., (२६.५४११.५, ११-१३४३४-४६).
२४ दण्डक २६ द्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः गइ इन्दिय काए जोए; अंतिः द्वार सम्मत्तं. ६३५८. निघण्टुशेष व सारङ्गशब्दार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., (२६४११, १७४५१-५६).
पे.-१.निघण्टुशेष, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १अ-९अ, संपूर्ण), आदिः विहितैकार्थनानार्थ; अंतिः
तुषे बुसे कडङ्गिरः., पे.वि. ६कांड. पे:२. महीपकोश-हिस्सा सारङ्गशब्दार्थ, महीप, सं., पद्य, (पृ. ९आ-९आ, प्रतिपूर्ण), आदिः सारङ्ग कुञ्जरो ख्यात;
अंतिः शब्दान्तैव केवलात्., पे.वि. प्र.पु.-शब्दपर्याय-५५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६३६०. उत्तराध्ययनसूत्र कथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना.,पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४११,
१६x४८-५८).
उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह, पं. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः६३६३. समकित सडसठबोल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.६६ अपूर्ण तक
है., (२५४१०.५, १०४३४-३७).
सम्यक्त्व सडसठबोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति:६३६४. सप्तस्मरण व सत्तरीसय स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(७+८)=१७, पे. २, जैदेना., (२४.५४११.५, ८
९४२८-३२). पे.१. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-१७अ), आदिः अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः ___ भवे पास जिणचन्द., पे.वि. ७ स्मरण. पे.२. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. १७अ-१८अ), आदिः तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह., पे.वि.
गा.१४. ६३६५. आत्मशिक्षा भावना, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. सांणद, ले.- छगन मणिआर, प्र.वि. गा.१८५,
(२६४११.५, ११४३०-३४).
आत्मशिक्षा भावना, मु. रतनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदिः जिनवर मुख वासिनी जग; अंतिः ते लहेसी सिवठाम. ६३६६. कुमतिउत्थापन चर्चा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. २४०, (२६.५४१२, १३४५८-६३).
ढूण्ढकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, प्राहिं., गद्य, आदिः दुण्ढियो कहे हुं; अंतिः पन्नत्तीए वुच्छं. ६३६७. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., (२५.५४१२, १२४२६-२७).
श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नाणंमि दंसणंमि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. ६३६८. अजितसेनकनकावती रास, संपूर्ण, वि. १८१८, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले.- पं. हेतसुन्दर, प्र.वि. गा.७५८, ग्रं. १०१४,
ढाळ-४३, (२५४१२, १३-१४४३८-४६). अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७५१, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंतिः थास्यै लाभ सवाई
हो.
६३७१.” कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८-१(१)=१०७, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि.
प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११, ७-८४२५-३३).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:६३७६. प्रतिक्रमण की आलोअणा, संपूर्ण, वि. १९३१, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. धोराजी, ले.- ऋ. उत्तमचन्द (गुरु ऋ.
लाधाजीस्वामी).प्र.ले.पु. मध्यम, (२८x११, ९-११४४२). प्रतिक्रमण आलोयणा, ऋ. अजरामरस्वामी, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः प्रथम आत्मा अनादिकाल; अंतिः छए आवश्यक
करवा. ६३७७. रात्रीभोजन रास, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,प्र.वि. गा.२५६, (२६x११, १५४४८).
जयसेन चौपाई-रात्रिभोजन विषये, वा. धर्मसमुद्र, मागु., पद्य, आदिः पणमिसु गोयम गणहरराय; अंतिः सिद्धि सम्पद ते
लहई.
६३७८. सनतकुमार चक्रवर्ति रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., पठ.- श्रा. चुथा, प्र.वि. गा.२८१, (२६.५४११,
११४४५). सनत्कुमार चक्रवर्ति रास, आ. पुण्यरत्नसूरि, मागु., पद्य, वि. १६३७, आदि: जय जय जगगुरू जागतओ; अंतिः सिरवर
जिनवरा.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१४७ ६३७९. नलदवदन्ती रास, संपूर्ण, वि. १६४३, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. रायधनपुरनगर, ले.- पं. जोधमल (गुरु पं.
संयममूर्ति, अञ्चलगच्छ), प्र.वि. प्र.पु.-ग्रन्था-५२५., (२६४११, १३४३६). नलदमयन्ती रास, आ. ऋषिवर्द्धनसुरि, मागु., पद्य, वि. १५१२, आदि: सयल सङ्घ सुहसन्तिकर; अंतिः मन्दिर तस
तणइ ए. ६३८१. महावीरजिन सत्तावीसभव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, प्र.वि. गा.८७, ढाळ-११,
(२६.५४११.५, १०-११४३७-४०).. महावीरजिन २७ भव स्तवन, पं. ज्ञानकुशल, मागु., पद्य, वि. १७३१, आदिः पूरण प्रेमे प्रणमीइ; अंतिः वीर जिनवर जय
करो.
६३८२.” अभिधानचिन्तामणि नाममाला, त्रुटक, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७५-६३(१ से १२,१४ से १६,२१ से २३,२५,२८ से ३३,३५
से ३६,३८ से ७३)=१२, जैदेना.,प्र.वि. चार पत्रों के पत्रांक भाग खंडित तथा अस्त-व्यस्त है., पदच्छेद सूचक
लकीरें, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२५४११, १३-१४४३९-४९).
अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंति:६३८३." पाञ्चकारण स्तवन (बोल), संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. वढवाण,प्र.वि. गा.५८, ढाळ-६,
(२५.५४११, ११४२८-३३). ५ कारण छढालिया, उपा. विनयविजय, मागु., पद्य, वि. १७३२, आदिः सिद्धारथ सुत वन्दिये; अंतिः विनय कहे आणन्द
६३८४.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना.,प्र.वि. मूल-१०अध्ययनरचूलिका. चूलिका का
टबार्थ नही लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ६-७४२९-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः आलणा सो.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः धर्मरूपीओ मङ्गलिक; अंतिः#. ६३८६. राजप्रश्नीयसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना.,प्र.वि. सूत्र-१७५, (२५.५४११.५, १३४४७-५०).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से पस्सवणा नमो. ६३८८. निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९९, जैदेना.,प्र.वि. मूल-२०उद्देश., (२६४११.५, ४-६४३९-५५).
निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जे भिखु हत्थ; अंतिः पसिस्सोवभोज्जं च.
निशीथसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो सु; अंतिः लिखी छे सर्व पहिली. ६३८९. चारप्रत्येकबुद्ध चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(७)=१४, जैदेना.,पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. खंड१
पूरा- करकंड, खंडर-ढाल७ गाथा -तक है.आगे नहीं, नमिराज., खंड३ ढाल३ गाथा ५ तक नहीं है., खंड४ ढाल८
गाथा २२ तक है. आगे नहीं., (२६४११.५, १९-२३४५०-६१).
४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६५, आदिः सिद्धारथ शशिकुलतिलो; अंति:६३९०. भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.१८०, (२५४१०.५, १२-१३४३२-३९).
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः. ६३९१.” लघुस्तव सह टीका, संपूर्ण, वि. १६८४, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. योधपुर, ले.- पं. उदाकिन, राज्यकाल- राजा
गजसिंह,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.२१; टीका-ग्रं. ४७०., पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२६४१०.५, १७
१८४४३-५१). त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदिः ऐन्द्रस्यैव शरासनस्य; अंतिः यस्मान्मयापि ध्रुवम्. लघुस्तव-ज्ञानदीपिका टीका, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३७९, आदिः सर्वज्ञं पुण्डरीका; अंतिः (१)चतुःशती
अङ्कतोपि (२)मया० विवृत्तार्थः.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६३९२." आगमिकपाठ सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२८x११, १३४४१-४६).
आगमिकपाठ सङ्ग्रह, सं.,प्रा., गद्य, आदिः कप्पइ निग्गन्थाण; अंति:६३९३. उपदेश सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१)=१७, देना., प्र.वि. ग्रं. ५६८, (२८x११, ११४४६-५०).
औपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह, प्रा.,सं.,मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंतिः पूर्वाधीतं विनश्यति. ६३९४. भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १७२७, जीर्ण, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. डेह, प्र.वि. श्लो.१६३, (२५.५४११, १५४४०-४२).
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः. ६३९५. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९९०, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. गा.५०, (२५.५४११, ५४१८-२१).
वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धे; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. ६३९६. सिन्दूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१००, (२५.५४११, १३४३९-४१).
सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. ६३९८.” सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. खारीया भांणजीरा, प्र.वि. गा.३९३, दशा वि.
_ विवर्ण-पानी से-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२४४११, १५-१७४३४-३९).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ६३९९. पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री कथा, संपूर्ण, वि. १९००, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. मान्धातानगर, ले.- मु.
दोलतसोम, प्र.वि. ऋषभदेव प्रसादात्., (२६४११, १२-१३४२९-३४).
पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री कथानक, सं., गद्य, आदिः धर्मतः सकलमङ्गलावली; अंतिः मोक्षं प्राप्तौ. ६४००. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८४४, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. सूरत, (२६४११, १०x२५-२८).
स्तुतिचौवीसी, मु. दानविजय, मागु., पद्य, आदिः श्रीऋषभजिणेशर केशर; अंतिः मङ्गल करजो माय. ६४०१. सरस्वती स्तोत्रादि, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, देना., ले.स्थल. लसकर, ले.- पं. रतनचन्द, (२४.५४११.५,
९४२५-२७). पे.१. त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, (पृ. १आ-४आ), आदि: ऐन्द्रस्यैव शरासनस्य; अंतिः यस्मान्मयापि
ध्रुवम्., पे.वि. श्लो.२१. पे.२. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ५अ-६अ), आदिः व्याप्तानन्त समस्त; अंतिः भवत्युत्तम सम्पदः., पे.वि. श्लो.९.
पे..३. भुवनेश्वरी अष्टक, सं., पद्य, (पृ. ६अ-७आ), आदिः ॐ ऐं ह्रीं श्रीं; अंतिः निर्मलं ज्ञानरत्नम्., पे.वि. श्लो.८. ६४०३. सार शिखामण रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. गा.२३१, (२६.५४११, ११-१३४३१-३७).
सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १५४८, आदिः श्रीपार्श्वनाथ सुमरन; अंतिः शिवसुख अविचल
पामस्यइ. ६४०४. भाष्यत्रय, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(२)=१२, पे. ३, जैदेना.,ले.- मु. हीरसागर, (२६४११, १०x२८-३२).
पे.१. चैत्यवन्दनभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-६अ, पूर्ण), आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः परमपयं पावइ
लहुं सो., पे.वि. गा.६३. बीच का एक पत्र नहीं है. पे.२. गुरुवन्दनभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ-९अ, संपूर्ण), आदिः गुरुवन्दनणमह तिविहं; अंतिः __ अणभिनिवेसीयमच्छरिणो., पे.वि. गा.४१. पे.-३. प्रत्याख्यानभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ९अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः दस पच्चक्खाण चउविहि; अंतिः
सासयसुक्खं अणाबाहं., पे.वि. गा.४८. ६४०५.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९६, मध्यम, पृ. ६८, जैदेना., ले.स्थल. कान्हडग्राम, ले.- श्रा. कल्याण
शाह, प्र.वि. मूल-अध्याय-अध्ययन१०चूलिकार. प्र.पु.-सर्वग्रं. २०००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४१०.५,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१४९ ५४२९-३१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: आलणा सो.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः धर्म उत्कृष्टओ; अंतिः (१)गतिनइ विषइ जाय (२)करी ए सत्य वात. ६४०९. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. श्लो.४४, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२३४११., १०x२८
३२).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. ६४१०. हंसराज वच्छराज चौपाई, पूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. २६-१(१)=२५, जैदेना., पू.वि. गा.११ अपूर्ण से है., प्र.ले.श्लो.
(५२३) मङ्गलं लेखकानां च, (२६.५४११.५, १६-१७४३९-४३). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदि:-; अंतिः एहवा साधु नमुं. ६४१२. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., प्र.वि. टीका का आदिवाक्य १७ मे पत्र
पर दीया है..पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. महावीरस्वामी ७ भव वर्णन तक हैं., (२६.५४१२, १२४४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंति:
कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका , गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः तस्मिन्काले; अंति:६४१४. पार्श्वजिन विवाहलो, संपूर्ण, वि. १९०५, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. धोलेराबंदर, ले.- मु. चतुरविजय, प्र.ले.पु.
मध्यम, प्र.वि. ढाळ-१८, (२९x१२.५, १८-१९४३७-४३). पार्श्वजिन विवाहलो, मु. रङ्गविजय, मागु., पद्य, वि. १८६०, आदिः स्वस्ति श्रीदायक; अंतिः उलट आणी अङ्ग रे. ६४१५." अनुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. चूडाग्राम, ले.- ऋ.
आदेसङ्ग, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२७.५४१२, ६x४०
४३).
अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः अणुत्तरोववाईदसाणं.
अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालने विषे ते; अंतिः परि तिमज जाणिवा. ६४१६. शान्तिस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९७४, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. मरपुरनगर-सिंधु, ले.- मु. मणिविजय, (२६४१२,
१०४३८). शान्तिस्नात्र विधि, उपा. सकलचन्द्रगणि, सं.,मागु., पद्य, आदिः अथ प्रतिष्ठायां वा; अंतिः (१)वाजा वागते धारा देवी
(२)भवन्तु स्वाहाः. ६४१८. श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. खण्ड ३ तक हैं., (२६४१२, १४
१६x४३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी;
अंति:६४१९.” समवायाङ्गसूत्र, पूर्ण, वि. १६५६, श्रेष्ठ, पृ. ६९-२(१३ से १४)+१(५२)=६८, जैदेना., ले.- ऋ. हरजी (गुरु ऋ.
सोमजी).प्र.वि. संशोधित, पंचपाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के
दो पत्र नहीं हैं., (२७४११.५, ११४३४-४२).
समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. ६४२०. पार्श्वजिन स्तोत्र, स्नात्रपूजा, रत्नाकरपच्चीशी व साधारणजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ,
पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. रानेर, ले.- गणि नरविजय, पू.वि. प्रथम २ पत्र नहीं हैं., (२७X१२, ११४३६). पे:१. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिन्तामणि, सं., पद्य, (पृ. -३अ-३अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः बोधिबीजं ददातु., पे.वि. प्रारंभ के
पत्र नहीं हैं. अंतिम गाथा अधूरी है.
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१५०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.२. स्नात्रपूजा सङ्ग्रह', मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ३अ-९आ, संपूर्ण), आदिः (१) मुक्तालङ्कार
विकार (२) पूर्वदिसइ तथा उत्तरइ; अंतिः (१)भविआ पूजो एहिज देव (२)लुणपाणी होमावीइ. पे.-३. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, (पृ. ९आ-११अ, संपूर्ण), आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल; अंतिः
श्रेयस्करं प्रार्थये., पे.वि. श्लो.२५. पे.-४. साधारणजिन स्तव, आ. जयानन्दसूरि, सं., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः देवाः प्रभो यं; अंतिः
जयानन्दमयप्रदेया., पे.वि. श्लो.९. ६४२१. महावीरजिन, इग्यारगणधर भास व नेमिजिन चौवीसचोक, अपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)=५, पे. ३,
जैदेना., (२५.५४१२, १६x४१). पे.-१. महावीरजिन भास, मागु., पद्य, (पृ. -३अ-३अ, संपूर्ण), आदिः जिनउदयो अभिनव भाण; अंतिः अमृतधारा वरसी.,
पे.वि. गा.७. पे.२.११ गणधर भास, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-४अ, प्रतिपूर्ण), आदिः पहिलो गणधर वीरनो
वर; अंतिः-,पे.वि. १ से ५ गणधर तक के है. पे.-३. नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, वि. १८३९, (पृ. ४अ-७आ, संपूर्ण), आदिः एक दिवस
वसै नेमकुंवर; अंतिः अमृत गुण गाया., पे.वि. २४ चोक. ६४२३. दशलक्षणव्रत कथा, श्लोक, मन्त्र व औषध सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. १०, जैदेना., ले.स्थल.
किसनगढ, ले.- पण्डित देवकरण, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१०.५, १०x२९-३२). पे.-१.१० लक्षणव्रत कथा, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, (पृ. १अ-४आ), आदिः प्रथम नमन जिनवरनै; अंतिः ग्यानसागर
सुविचार.,पे.वि. गा.५५. पे.२. नववाडि श्लोक, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः नव वाडि सीलकी तिय; अंतिः नववाडि जानि मत जैन.,
पे.वि. गा.१. प्रथम पत्र के साईड में लिखा है. पे..३. औषध सङ्ग्रह', मागु., गद्य, (पृ. ४आ-५आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. पत्र के दोनो साइड में औषध लिखा है. पे.४. मूर्ख कवित्त, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदिः माथै बान्धे न पाग; अंतिः बात करै राजा जिसी., पे.वि. गा.१. पे.५. औपदेशिक दूहा', प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदिः तन को मिलबो जब; अंतिः निर्मल चहिये चित्त., पे.वि.
गा.१. पे.६. कवित्त, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः संवत्सत्तरासैचोहतरे; अंति: नितिप्रति नही., पे.वि. गा.३. पे.-७. दुण्ढिया सवैया-स्थानकवासीमतनिरसन, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः जा कै सब मल; अंतिः ऐसो दुण्ढियो ___ होत है., पे.वि. गा.२. पे..८. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ५-५आ), आदि: #; अंतिः#., पे.वि. गा.१. पे.९. काजलनिर्माण विधि, मागु., गद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः काजल धोलो; अंति: #.
पे.-१०. मन्त्र सङ्ग्रह*, मागु., गद्य, (पृ. ५आ-पआ), आदिः#; अंतिः#. ६४२४." नवस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. भक्तामर की २ गाथा
तक है. नवकार, उवसग्गहरं, संतिकरं तक टबार्थ है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
(२५.५४११.५, ५४३०-३३). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंति:
नवस्मरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार अरिहन्तनइ; अंतिः#. ६४२७. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लो.७४ तक है., (२६.५४१२, ८x२४
२६). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१५१
६४२९.” कल्पसूत्र सह अन्तर्वाच्य व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७००, मध्यम, पृ. १४७, जैदेना., ले.- ऋ. श्रीविजय, प्र.वि. मूल-९
व्याख्यान, ग्रं. १२१६. प्र.पु.-मूलटबार्थ-ग्रं. ३४३६., दशा वि. विवर्ण-पानी से-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प,
प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२५४११, २-६४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य* , सं., गद्य, आदिः ग्रामेशस्त्रिदशो; अंतिः श्रीसङ्घभट्टारका..
कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनइ माहरो; अंतिः कहइ ए गुरुक्त जाणिवउ. ६४३०. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३, जैदेना.,पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. ८ व्याख्यान वाचना
१४ तक है., (२६.५४११, ११४३३).
कल्पसूत्र-बालावबोध* , मागु.,राज., गद्य, आदिः एसोमङ्गलनिलो भय; अंति:६४३१. द्रव्य सङ्ग्रह व चौवीसठाणा, संपूर्ण, वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.- दयाचन्द पाण्डे, (२५४१०.५,
१०x४०-४७). पे:१. द्रव्य सङ्ग्रह, मु. नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-४अ), आदि: जीवमजीवं दव्वं; अंतिः मुणिणा
भणियं जं..पे.वि. अध्याय-३, गा.५८. पे..२.२४ स्थानक प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ४अ-५आ), आदिः गइ इन्दिय च काए; अंतिः आहारो छविहो भणिवो., पे.वि.
गा.३६. ६४३२." अष्टाह्निका, एकादशी व पञ्चमी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. ३, जैदेना., (२५.५४११, १४४३९
४७). पे:१. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, राज., गद्य, (पृ. १अ-९आ), आदिः (१) शान्तीशं शान्ति (२) इहां समस्त खोटै; अंतिः
तत् वर्तमान जोग. पे..२. मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ-१३आ), आदिः सिरिवीरं नमिऊण; अंतिः विषै सकल सुख भोगवी.
पे.-३. सौभाग्यपञ्चमीपर्व व्याख्यान, मागु., गद्य, (पृ. १३आ-१६आ), आदिः भव्यैरासाद्यते; अंतिः मङ्गलीकमाला सम्पजै. ६४३४. सौभाग्यपञ्चमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले.- पं. डुङ्गरविजय, प्र.वि. मूल
श्लो.१५०. *पत्र क्रमांक मळता नथी., (२५.५४१२, ६४३५). वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः रसिन्दुमितवर्षे.
ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः श्रीमन्त शोभालक्ष्मी; अंतिः संवत १६५५ना वर्षे. ६४३५. वैद्यवल्लभ, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. भूगुपूरे, प्र.वि. अध्याय-८विलास, (२६.५४११.५,
१३४४३).
वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदिः सरस्वतीं हृदि; अंतिः पदस्परवान बहु. ६४३६. ज्योतिषसार सक्षेप, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. भीनमाल, ले.- पं. प्रतापविजय, पठ.- पं.
लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. श्रीशान्तिनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११.५, ९४२९).
ज्योतिषसार-लघुनारचन्द्र ज्योतिष, संक्षेप, सं.,मागु., प+ग, आदिः चैत्र वैशाख ज्येष्ठ; अंतिः दिनमान लहेवो. ६४३७. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., (२६.५४११, ११४२८). पे.१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-९आ।
पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे.२. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ९आ-१०अ
क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह. ६४३८. विवाहपडल व सामान्यजिन चैत्यवन्दन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२६४११.५, १६४३९).
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१५२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-१. पे. नाम. विवाहपडल-बाणपञ्चक, पृ. १अ-५अ, प्रतिपूर्ण
विवाहपडल, सं., पद्य, आदिः जम्भाराति पुरोहिते; अंतिःपे.२. साधारणजिन चैत्यवन्दन, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण), आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः थूलिभदं
च गोयमं., पे.वि. गा.२६. ६४३९. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६५-५६(१ से ५६)=९, जैदेना., पू.वि. बीच के
कुछ पत्र हैं. गणधर संवाद के आसपास का भाग है., (२६४११, ६-१९४३६-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः६४४०. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३४, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. १ से ३ कांड
तक है., (२६४११, १३४३७-४०).
अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः६४४१. चतुःपर्वी विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से
अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६.५४११, १४४४९-५८).
चतुःपर्वी विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदिः श्रीसिद्धान्ते; अंतिः देवेज्यादि कुर्वन्ति. ६४४२." ठाणाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६४११.५, १०-११४२९-३८).
स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:६४४५. बार भावना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. अहम्मदपुर, ले.- पं. न्यायकुशल (गुरु मु. मतिकुशल),
प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाळ-१३, (२४.५४१०.५, ११-१३४२६-२७). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर
मझार. ६४४६. गजसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.९२, (२४४१०.५, १५४३२-३३).
गजसुकुमाल रास, मु. शुभवर्द्धन-शिष्य, मागु., पद्य, आदिः देस सोरठ द्वारापुरी; अंतिः अविचल सम्पदा थाइ. ६४४७. विवेकमञ्जरी प्रकरण, अपूर्ण, वि. १५६५, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(७)=१०, जैदेना., ले.स्थल. दांतीवाडा, ले.- साध्वीजी
विवेकशोभा (गुरु साध्वीजी लाभशोभा), पठ.- साध्वीजी विवेकशोभा (गुरु साध्वीजी लाभशोभा), गच्छा.- आ.
हेमविमलसूरि(तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. गा.१४४, पू.वि. गा.२६ से ५० नहीं हैं., (२६.५४११, १३४४३). विवेकमञ्जरी, श्रा. आसड कवि, प्रा., पद्य, वि. १२४८, (संपूर्ण), आदिः सिद्धिपुरसत्थवाह; अंतिः वसुजलहि० वरिसम्मि. ६४४८. महावीरजिननिर्वाण स्तवन व स्तुति सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १७३५, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. जीर्णदुर्ग,
पठ.- श्राविका रम्भाबाई, पू.वि. गा.१ से १८ तक नहीं है., (२५४११, १५४४४-४५). पे.-१.पे. नाम. दीपावलिका महोत्सव स्तवन, पृ. -२अ-६अ, पूर्ण महावीरजिन निर्वाण महिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः श्रीगुणहर्ष वधामणे.,
पे.वि. ढाळ-१०, गा.१२३. प्रथम पत्र नहीं है. गा.१ से १८ तक नही है. पे.२. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः पर्व पनोता पुन्ये; अंतिः लब्धि लील
लख लीजेजी., पे.वि. गा.४. पे..३.बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः दिन सकल मनोहर; अंतिः पुरो
मनोरथ माय., पे.वि. गा.४. पे.-४. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः एकादशी अति रुअडी;
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१५३ अंतिः सङ्घ तणा निशदिश., पे.वि. गा.४. ६४४९. सप्तनयक्रम, पूर्ण, वि. १७८३, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१)=११, जैदेना., ले.स्थल. भुजनगर, ले.- पं. रत्नविजय, (२५.५४११,
१५४४२-५१).
सप्तनय क्रम, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः लोह सुवर्ण न थाइ. ६४५१.” कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४. प्र.पु.-उभय-ग्रं.
३९२., पंचपाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है. गा.१ से ७ तक नहीं है., (२६४११, ७
८४३४).
कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते.
कल्याणमन्दिर स्तोत्र-अवचूरि*, सं.,मागु., गद्य, आदिः रागादि शत्रूणां; अंतिः तु ते ज्ञातव्या. ६४५२. चन्द्रलेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६६, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले.स्थल. पाटणबंदर, ले.- मु. केसररुचि (गुरु पं.
कनकरुचि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ढाळ-२९, (२५.५४१०.५, ११-१२४४४-४६).
चन्द्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदिः सरसति भगवति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह. ६४५३. चतुःशरण प्रकीर्णक व सम्बोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १८१८, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., पठ.- पं. उदयविजय, (२५४११,
१४४४१-४२). पे..१. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-३अ), आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ
सुहाणं., पे.वि. गा.६३. पे..२. सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि
सन्देहो., पे.वि. गा.११२. ६४५४. सुयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ - श्रुतस्कन्ध २, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ९१-१(४३)=९०, जैदेना., प्र.वि. मूल
अध्याय-२३., पू.वि. बीच में एक पत्र नहीं है., (२४.५४११, ६-७४३७-४४). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विहरति त्ति बेमि.
सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः-; अंतिः विहरवा इच्छउ छउ.. ६४५५.' जमाली कथा भगवतीसूत्रे, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि.
बीच के पत्र हैं., (२६.५४११, १२४४१-४५).
भगवतीसूत्र-कथा सङ्ग्रह, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:६४५७. विमलसामन्त्री रास, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४-३(२७,३९,४९)-५१, जैदेना., पू.वि. बीच बीच व अन्त का पत्र नहीं
हैं., (२६४११, १३४४८-५०).
विमलमन्त्री प्रबन्ध, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५६८, आदिः आदिजिनवर आदिजिनवर; अंति:६४५८. झाञ्झरमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १७२५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. व्यालपुर, ले.- गणि सुगुणकीर्ति, प्र.वि. ढाळ
७, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६x१०.५, १५४५१-५३). झाझरियामुनि चौपाई, मु. रामविजय, मागु., पद्य, वि. १६९८, आदिः आदीसर जिनवर तणा चरण; अंतिः थायइ
दिनदिन रङ्ग. ६४६०. षडावश्यकसूत्र, स्वाध्याय, चैत्यवन्दन, विधि व स्तुति-स्तव सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, पृ. २४, पे. २९, जैदेना.,
ले.स्थल. तेरवाडानगर, ले.- मु. रत्नविजय (गुरु गणि शुभविजय), पठ.- मु. गलालविजय (गुरु गणि कुशलविजय),
प्र.ले.पु. विस्तृत, (२५४११, १४४४०-४२). पे:-१. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, (पृ. १आ-१९आ), आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः
जैनं जयति शासनम्.
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१५४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.२. गौतमस्वामी छन्द, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ), आदिः वीर जिणेसर केरो सीस; अंति: गौतम
तुलै सम्पति कोड., पे.वि. गा.९. यह कृति बीच के पेटांक के रुप में लिखि गई हैं. पे..३. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ), आदिः किं कर्पूरमयं सुधारस; अंतिः भूयाद् भवालम्बनम्., पे.वि.
श्लो.१. यह कृति बीच के पेटांक के रुप में लिखि गई हैं. पे.-४. साधारणजिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ), आदिः पातालं कलयन्; अंति: भावतोहं नमामि., पे.वि.
श्लो.९. श्लोक संग्रहात्मकरूप चैत्यवंदन. यह कृति बीच के पेटांक के रुप में लिखि गई हैं. पे.५.बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १९आ-१९आ), आदिः दिन सकल मनोहर; अंतिः पुरो मनोरथ ____ माय., पे.वि. गा.४. पे.-६. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १९आ-२०अ), आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना.,
पे.वि. श्लो.४. पे.-७. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. २०अ-२०आ), आदिः एकादशी अति रुअडी; अंतिः
सङ्घ तणा निशदिश., पे.वि. गा.४. पे..८. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ), आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय; अंतिः कूष्माण्डी कमलेक्षणा., पे.वि.
श्लो.४. पे.९. साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ), आदिः श्रीतीर्थराजपदपद्म; अंतिः वदाता
ददतां शिवं वः.,पे.वि. श्लो.१. पे.-१०. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ), आदिः वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवीदेयादम्बा., पे.वि. श्लो.४. पे.-११. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ), आदिः विश्वस्वामी जीयात्; अंतिः विशालां मङ्गलमालाम्., पे.वि.
श्लो.४. पे.-१२. सीमन्धरजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ), आदि: सीमन्धरस्वामी केवला; अंतिः आवागमण निवार
निवार., पे.वि. गा.१. पे.-१३. विजयदेवसूरि स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ), आदिः सोवनगढ ऊपरिं वीर; अंतिः विजयदेवसूरि नित
समरु., पे.वि. गा.१. पे:-१४. विजयदेवसूरि स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२१अ), आदि: जय गौतम हितकर वीर; अंति: गले मुक्ताफल हार.,
पे.वि. गा.१. पे.-१५. विजयप्रभसूरि स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २१अ-२१अ), आदिः श्रीवर्द्धमानविजय; अंतिः विजयप्रभ सूरिराज., पे.वि.
श्लो .१. पे:१६. विजयप्रभसूरि स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २१अ-२१अ), आदिः नयविभूषणपारगतागमः; अंतिः विजयप्रभसद्गुरोः.,
पे.वि. श्लो.१. पे-१७. विजयप्रभसूरि स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २१अ-२१अ), आदिः विजयप्रभसूरे; अंतिः लब्धिमहो गौतमस्वामि., पे.वि.
श्लो .१. पे.-१८. विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २१अ-२१अ), आदिः विजयरत्नगणाधिप धीमता; अंतिः
तदयामितकान्तिसुखावहः., पे.वि. श्लो.१. पे.-१९. विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २१अ-२१अ), आदिः प्रथम तीर्थकर; अंतिः जयतांजयतांदिशन्., पे.वि.
श्लो .१. पे.-२०. क्षमासूरि स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. २१अ-२१अ), आदि: जय जय गणधारक विजय; अंतिः माणिभद्र जस वीर.,
पे.वि. गा.१. पे.-२१. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २१अ-२१अ), आदिः कल्याणानि समुल्ल; अंतिः सत्कल्याणमाहात्म्यतः., पे.वि.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१५५ श्लो.१. पे.-२२. साधारणजिन चैत्यवन्दन, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, (पृ. २१अ-२१आ), आदिः जय श्रीजिनकल्याण; अंतिः
सुखास्पदम्., पे.वि. श्लो.५. पे.-२३. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवन्दन, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२१आ), आदिः श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंतिः शासनं ते भवे भवे.,
पे.वि. गा.५. पे.२४. महावीरजिन स्तोत्र, मु. मुनिसुन्दर, प्रा., पद्य, (पृ. २१आ-२२अ), आदि: जयसिरिजिणवरतिहुअणजण; अंतिः
नियपइ सुदाणओ अइरा. पे.२५. प्रतिक्रमणविधि सङ्ग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, गुज.,मागु.,प्रा., गद्य, (पृ. २२अ-२२अ), आदि:#; अंतिः#., पे.वि. ___ पोसह पारवा, काजो लेवा पच्चक्खाण लेवा विधि. पे:२६. प्रातःमङ्गल विधि, सं.,मागु., गद्य, (पृ. २२अ-२२आ), आदिः प्रभाते उत्थाय द्वौ; अंतिः देइने स्तुति करे. पे.२७. प्रभातिमङ्गल स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. २२आ-२३अ), आदिः गोयम सोहम जम्बू पभवो; अंतिः पञ्चमं हवइ
मङ्गलं..पे.वि. गा.१८. पे..२८. नेमिजिन स्तुति, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, (पृ. २३अ-२३आ), आदिः श्रावण सुदि दिन; अंतिः ___सफल करो अवतार तो., पे.वि. गा.४. पे.-२९. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. २३आ-२४अ), आदिः चम्पक केतकी पाडल; अंति: जौ तू?
देव अम्बाई., पे.वि. गा.४. ६४६१.” चतुर्विंशतिप्रबन्ध व स्तुति, अपूर्ण, वि. १५०८, श्रेष्ठ, पृ. १३१-९९(१ से ९९)=३२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. वराहीनगर,
गच्छा.- आ. मुनिचन्द्रसूरि, राज्यकाल- राजा कुतुबुद्दीन बादशाह, लिखवा.- श्रा. जावड,प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-बीच के कुछ पत्र, पू.वि. अन्त के पत्र हैं. प्रारंभ से आंशिक रत्नश्रावक
पाठ तक नहीं है., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२८.५४१०.५, ११४४२-४५). पे.१. प्रबन्धकोश, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४०५, (पृ. -१००अ-१३१आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः
(१)तयोर्व्याप्तिः (२)ग्रन्थमिमां कारयामास., पे.वि. २४ प्रबन्ध. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
पे.२. जैन सुभाषित *, सं., पद्य, (पृ. १३१आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. श्लो.१. ६४६२. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६-२५(१ से २२,२४,२६ से २७)=११, जैदेना.. पू.वि. बीच-बीच के पत्र
हैं., (२७.५४११, ५४४८).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि:-; अंति:६४७०.” अनेकार्थध्वनिमञ्जरी, संपूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ३ अधिकार, टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
(२५.५४११, १५-१६४३९-४४).
अनेकार्थध्वनिमञ्जरी, सं., पद्य, आदिः शुद्धवर्णमनेकार्थं; अंतिः समयो शुद्धसङ्गयोः. ६४७२. नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-१८, (२४.५४११.५, १५४४०).
नेमिजिन रास, मागु., पद्य, आदिः सङ्खराजाने जसोमता; अंतिः छतीससू सिवपूरी. ६४७३. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र- पर्व ८, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१)=१८, जैदेना., पू.वि. पर्व ८ के श्लो.१ से
७७ तक नहीं है., (२५.५४११, २३४६०-६६). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंतिः६४७४. दीपावली कल्प, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. साणंदनगर, (२६४११.५, ११४२९-३०).
दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः मङ्गलीक दीवा सरीखी; अंतिः लगे जगतने विषेइ रहो. ६४७६. आउरपच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. गा.६८, (२६४११.५, १०४३३-३५).
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१५६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., प+ग, आदिः देसिक्कदेसविरओ; अंतिः सव्वदुक्खाणम्. ६४७८. अजितशान्ति, नमस्कारचौवीसी, उपदेशक सज्झाय, स्तुति व स्तोत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४०-२९(१
से १६,२० से ३२)=११, पे. ८, जैदेना., (२५.५४११, १०-११४३०-३१). पे.-१. अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. -१७अ-१९आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः-,पे.वि. बीच के पत्र
हैं. गा.८ से ३६ तक है. पे.२.२४ जिन नमस्कार, कवि ऋषभ, मागु., पद्य, (पृ. -३३अ-३४अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः (१)बहुजन पाम्या पार (२)सिद्धि दातार., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नमस्कार १७ गा.१ तक नहीं है. पूर्णता- गाथा ३X२४ नमस्कार +
कलश. पे.-३. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण), आदि: मारग वहि उतावलो उडि; अंतिः आतमा ओल
जगनाथ., पे.वि. गा.७. पे.-४. बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, (पृ. ३४आ-३६आ, संपूर्ण), आदिः भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः जैनं जयति
शासनम्. पे.५. पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३६आ-३७अ, संपूर्ण), आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः ___ कार्येषु सिद्धिम्., पे.वि. श्लो.४. पे:६. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण), आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां
सावधाना., पे.वि. श्लो.४. पे.-७. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३८अ-३९अ, संपूर्ण), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः सूरिः
श्रीमानदेवश्च., पे.वि. श्लो.१७. पे.-८. सकलाहत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. ३९अ-४०अ, संपूर्ण), आदिः
सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः पक्षालनजलोपमां., पे.वि. श्लो.२६. ६४८१. रत्नाङगद कथानक, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, जैदेना., पू.वि. प्रथम व अन्त के पत्र नहीं हैं.,
(२६४१०.५, ११४३६-३९).
रत्नाङ्गद कथानक , सं., गद्य, आदि:-; अंति:६४८२. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, त्रुटक, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४०-२२(१ से २,१० से १२,१४ से ३०)=१८, जैदेना.,
प्र.वि. पत्रांक भाग खंडित एक पत्र है., पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. कांड-१ के श्लो. ६६ से
है तथा अन्त अपूर्ण., (२६.५४१०.५, १३-१४४५१-५७).
अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंति:६४८३. साधुवन्दना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-१४; प्र.पु.-मूल-१४ ढाल, गा.५७२, दूहा-४०, सर्व
श्लो.७०५., (२६४११.५, ११४३२-३५).
साधुवन्दना रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः शासननायक गुणनिलो; अंतिः नितु मङ्गल च्यारिजी. ६४८४. सूर्यशतक सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ६, जैदेना., ले.- मु. हेम (गुरु आ. रत्नशेखरसूरि, तपागच्छ),
प्र.वि. मूल-श्लो.१०१. सचित्र प्रत., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि
सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत, पंचपाठ, (२६४११, १६४३६-५१). सूर्यशतक, कवि मयूर, सं., पद्य, आदिः जम्भारातीभकुम्भोद्रव; अंतिः सोत्र सूर्यप्रसादात्.
सूर्यशतक-अवचूर्णि, मु. मुनिचन्द्रसूरि-शिष्य, सं., गद्य, आदिः भानवीयाः सूर्य; अंतिः भवतां वाञ्छितं ददातु. ६४८५. उपसर्गहर स्तोत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१०(१ से १०)=१२, जैदेना.. पू.वि. लेखकद्वारा अपूर्ण है.,
(२६४१२, १६x४८). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की टीका, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१५७ ६४८६. आत्मभावना व नवतत्त्व बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०-५(९ से १३)=६५, पे. २, जैदेना., (२५.५४११.५, ३८
४१४२-३१). पे.-१. आत्मभावना, प्राहिं., गद्य, (पृ. १आ-आ, संपूर्ण), आदिः (१) श्रीवर्द्धमानाय (२) बहिरात्मा अन्तरात्मा; अंतिः साल
ऐसे हाल होपस्यो. पे.२. नवतत्त्व प्रकरण-बोल सङ्ग्रह, श्रा. दलपतराय, संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. २आ-७०अ, अपूर्ण), आदिः श्रीवर्द्धमानाय;
अंतिः यन्त्रइ मोक्षतत्त्वै., पे.वि. बीच के पत्र नही हैं. ६४८७. चन्द्रलेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९७४, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले.स्थल. लूणकरणसर, ले.- पं. खेमचन्द मुनि, प्र.वि.
ढाळ-२९, (२५.५४१२, १२-१३४३२-४०).
खा रास, मु. मतिकुशल, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदिः सरसति भगति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह. ६४८८. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ४७, जैदेना., ले.- ऋ. लक्ष्मीचन्द महात्मा, प्र.वि. ३६अध्ययन; प्र.पु.-मूल
ग्रं. २०००, (२६x११.५, १५-१७४४४-४९).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. ६४८९. पासाकेवली, रमलफल व अबयदी शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. ३, जैदेना., (२५.५४११.५, १४
१६४३२-३६). पे.-१. पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, (पृ. १आ-आ), आदिः ॐ नमो भगवती; अंतिः सत्योपासक केवली. पे.२. रमल शुकनावली, प्राहिं., गद्य, (पृ. ५आ-८अ), आदिः अरे यार वहुत दिन; अंतिः राजा राज प्रजा सुख.
पे.३. अबयदी प्रश्न, राज.,प्राहिं., गद्य, (पृ. ८अ-१३अ), आदिः ए च्यारि अक्षर पाशे; अंतिः होइगा सत्यमेव जाणि. ६४९१. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, नवस्मरण व लघुशान्ति, पूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. २४, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. वटप्रदनगर,
ले.- मु. कल्याणसागर,प्र.वि. मनमोहन पार्श्वनाथ प्रसादात्. प्रतिलेखन वर्ष- पत्रांक २२ पर है.,पू.वि. अन्तिम पत्र
नहीं है., (२४.५४१२, १२४३२). पे.-१. पे. नाम. साधु प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण
साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,गुज., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः वन्दामि जिणे
___ चउवीसं. पे.२. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, (पृ. १०आ-२४अ, संपूर्ण), आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः
जैनं जयति शासनम्., पे.वि. ९ स्मरण. पे.-३. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. २४आ-२४आ-, अपूर्ण), आदिः शान्तिं शान्ति; अंति:-, पे.वि. अंतिम
पत्र नहीं है. श्लो.८ तक है. ६४९२. रत्नाकर पच्चीशी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. श्लो.२५, (२५.५४१२, ३४३९).
रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये. ६४९३. जीवविचार सह टबार्थ, नवतत्त्व व दण्डक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल.
गारबदेसर, ले.- आ. भावहर्षसूरि (गुरु गणि माणिक्यमूर्ति, खरतरगच्छ), (२६.५४११, ५४३६-४०). पे.-१. पे. नाम, जीवविचार सह टबार्थ., पृ. १आ-६आ, संपूर्ण
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य(अपूर्ण), आदिः भुवणने विषे दीपक; अंतिः-, पे.वि. मूल-गा.५१. टबार्थ
केवल ३१ गाथा तक लिखा है. पे:२. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-११अ, संपूर्ण), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय.,
पे.वि. गा.४९.
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१५८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे.-३. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ११आ - १५आ, संपूर्ण ), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः सावित् अप्पहिआ., पे.वि. गा. ३९.
(+)
६४९४. प्रियमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. स्थल. चाहडवास, ले.- वा. सुमतिधीर (गुरु मु. ज्ञानविलास खरतरगच्छ ) प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. डाळ- ११ (२५.५४११, १६४४५-४७).
प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७२, आदिः प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंतिः पुण्ये अधिकुं प्रमोद.
६४९५. शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण वि. १९०४ श्रेष्ठ, पृ. २४, जैवेना. ले. स्थल बिकानेर, प्र. वि. ढाळ - २९ (२५४११.५, १३१५४३२-३६).
शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि मागु पद्य वि. १६७८ आदि सासननायक समरियै अंतिः फल लहिस्यइजी. ६४९६. चन्दराजा चौपाई, संपूर्ण वि. १८५५ श्रेष्ठ, पृ. ८९, जैदेना, ले. स्थल बिकानेर, ले. पं. चैनरूप, प्र. वि. दाळ - १०८,
-
उल्लास- ४, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६ ११, १५X३६-४८).
चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ६४९७. उपकेशगच्छ गुर्वावली व पद्मचरित्रान्तर्गत गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ६, पे. २, जैदेना, (२५x११, १५४४२).
पे.-१. पट्टावली-उपकेशगच्छीय, सं., गद्य, (पृ. १अ - ६अ ), आदिः श्रीपार्श्वनाथ; अंतिः वाचनाभिर्गुर्वावली.
पे-२. जिनभवन दर्शनफलविचार गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ-६अ ), आदि: वाणंवइकोडिओ; अंतिः अनंत पुण जिणे थुणी., पे.वि.गा. ४.
"
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६४९८." चतुशरणपयन्ना सन्धि व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पे. २, देना., ले. स्थल. जैसलमेर, प्र. वि. टिप्पण
युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१०.५, १३४४५)
·
पे. १. चतुःशरण सन्धि, मु. चारित्रसिंह मागु पद्य वि. १६३१ (पृ. १अ -७आ), आदि: पय पणमवि चउवीस अंति नित नवनिधि वृद्धि, पे. वि. गा. ९१.
पे. २. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदि: #; अंति:#., पे. वि. प्र. पु. १.
,
जैदेना.,
६४९९.” कल्पसूत्र व्याख्यान १ सह बालावबोध, व्याख्यान+कथा व श्लोक, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, प्र. वि. संशोधित, (२५.५४१०.५, १३-१४x२७-३२).
पे.-१. पे. नाम. कल्पसूत्र - प्रथम व्याख्यान सह बालावबोध व व्याख्यान + कथा, पृ. १अ - १२अ प्रतिपूर्ण कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: तेण कालेनं० समणे; अंति:
कल्पसूत्र - बालावबोध*, मागु., राज., गद्य, आदि: तीणइ कालि तीणइ समइ, अंति:
कल्पसूत्र - व्याख्यान+कथा' मागु, गद्य, आदिः
है.
श्रीवर्द्धमानं जिनं अंतिः, पे. वि. मूलपाठ आदिवाक्य पत्रांक-११ पर
संपूर्ण) आदि # अति:#. पे.वि. गा.१.
पे. २. जैन गाथा प्रा. पद्य (पृ. १२अ १२अ ६५०१." सम्यक्त्वकौमुदी, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २३, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२९x१२, १७९५२). सम्यक्त्वकौमुदी आ. जयशेखरसूरि से गद्य वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य अति:
,
""
1
६५०२. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९ जैदेना. प्र. वि. मूल श्लो.४४. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं
"
"
है. गाथा ४४वी की कथा अधूरी है. दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है. (२६.५४१०.५, १०४३५
३७)
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र - बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर मागु, गद्य (पूर्ण) आदि प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति६५०६.” कर्मग्रन्थ १ से ४ अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २२-४(२ से ५) १८, पे. ४ जैदेना, (२५.५४१०.५, ९४४३).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१५९ पे:१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-आ-, अपूर्ण), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय;
अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१ से ८ तक है. पे..२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. -६अ-९आ, संपूर्ण), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः
वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ९आ-१३आ, संपूर्ण), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः
नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२४. पे.-४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १४अ-२२आ, संपूर्ण), आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः
देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८९. ६५०७. पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ८, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गुरावली संवत-१६१३ तक.,
(२५.५४१०.५, १३४४२).
पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरनै पाटि; अंति:६५०८. शत्रुञ्जय रास व पौषधविधि पद, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)=५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. राजधानी,
पठ.- पं. प्रेमरत्नगणि, (२६x१०.५, १३४४३). पे.१. शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८२, (पृ. १अ-५आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः सुणतां
आणन्द थाय., पे.वि. ढाळ-६; प्र.पु.-१०९. प्रारंभ के पत्र नही हैं. गाथा १ से ४६ तक नहीं है. पे.२. पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६७, (पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण), आदि: जेसलमेर
नगर भलो; अंतिः समयसुन्दर भणई सीस., पे.वि. गा.३७. ६५०९. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ६४-५४(१ से ५४)=१०, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं.
तृतीयकांड श्लो.९७ से चतुर्थ कांड श्लो.११३ अपूर्ण तक है., (२५४११, १४४३६).
अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:- अंति:६५१०. सीमन्धरजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. गा.१२५, (२५.५४१०.५, ९४२९).
सीमन्धरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः स्वामी सीमंधर विनती; अंतिः
जसविजय बुध जयकरो. ६५११. कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८५-३(३,६,७९)=८२, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित,
पू.वि. बीच-बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५४१०, ६x४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:
कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः सकलार्थसिद्धिजननी; अंति:६५१२." कवित, पद, छन्द, निसाणी, अष्टक, कुण्डलीयो, सज्झाय व स्तुति सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८०३, श्रेष्ठ, पृ. १९-१२(१
से १२)=७, पे. १३, देना., ले.- पं. सिंहविजय (गुरु मु. भक्तिविजय),प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५४११, १४-१६x४१-५१). पे.-१. प्रास्ताविक कवित्त, कवि सिंह, मागु., पद्य, (पृ. -१३अ-१३अ, पूर्ण), आदि:-; अंतिः कवणरूप संसार वरि., पे.वि.
गा.७. प्रथम पत्र नहीं है. गा.३ से है. यह कृति प्रतिलेखक के द्वारा रचित है. पे..२. पार्श्वजिन पद, राज., पद्य, (पृ. १३आ-१३आ, संपूर्ण), आदिः निरमल पारसनाथरो; अंतिः नेण निरञ्जणनाथ.,
पे.वि. गा.९. पे.-३. पार्श्वजिन छन्द-फलौदि, मु. विजयसिंह, राज., पद्य, (पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण), आदिः तो निरञ्जणनाथ नवें;
अंतिः एता समपि कीजे अरज., पे.वि. गा.२२. पे:४. औपदेशिक निसाणी, मु. विजयसिंह, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण), आदिः सवर माता सरसति मोउक;
अंतिः कोइ जाणे जगदम्बा., पे.वि. गा.२०.
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१६०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.५. औपदेशिक निसाणी, कवि सिंह, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण), आदिः राम विना सब झूठ हे; अंतिः
जोवणा संसार पयाणा., पे.वि. गा.३१. यह कृति प्रतिलेखक के द्वारा रचित है. पे.६.६४ योगिनी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण), आदिः ॐ दीव्य जोगी; अंतिः सर्वोपद्रवनाशिनी., पे.वि.
श्लो.११. पे.-७. सूर्याष्टक, कवि सिंह, सं., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण), आदिः रक्तवर्णं महातेजो; अंति: आरोग्यं बलवान्
भवेत्., पे.वि. श्लो.१५. यह कृति प्रतिलेखक के द्वारा रचित है. पे.-८. ढुण्ढकमत कुण्डलियो-स्थानकवासीमतनिरसन, राज., पद्य, (पृ. १६आ-१६आ, संपूर्ण), आदिः ढुण्ढे बेठा ढुण्ढीया;
अंतिः थे भया दुण्ढीया.,पे.वि. गा.१. पे.९. साधुगुण सज्झाय, पं. सिंहविजय, मागु., पद्य, (पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण), आदिः प्रह उठी नित; अंतिः धरम चित्त
ध्यान., पे.वि. गा.३२. पे.-१०. भक्तिविजयनिर्वाण छन्द, पं. सिंहविजय, मागु., पद्य, (पृ. १७आ-१९अ, संपूर्ण), आदिः देवी दरसण देखवा जपु;
अंतिः वृद्ध जती मोटे वखत., पे.वि. गा.५२. पे.-११. आदिजिन स्तुति-शत्रुञ्जयमण्डण, पं. सिंहविजय, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९अ, संपूर्ण), आदिः सेत्रुञ्जोगिर
वन्दु; अंतिः दालिद विघन निवार., पे.वि. गा.४. पे.-१२. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, पं. सिंहविजय, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण), आदि: भवियणना मन मोहे
नयणा; अंतिः पासप्रभु हीतकारी.,पे.वि. गा.४. पे.-१३. अफीण सज्झाय, कवि सिंह, राज., पद्य, (पृ. १९आ-१९आ, संपूर्ण), आदिः अमल पीवो राजे सुरां; अंतिः
अमल्ला अहीनाणा.,पे.वि. गा.१६. यह कृति प्रतिलेखक के द्वारा रचित है. ६५१३.” सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६५-१(१४९*)=१६४, जैदेना., प्र.वि. ३वृत्ति,
पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-प्रारंभिक पत्र, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ,
(२५४११, १५४४६). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः (१) नमोस्तु सर्वकल्याण (२)
प्रणम्येत्यादि०; अंतिः (१)बुधैश्चिरम् (२)चरणकमले यस्य स. ६५१४.” राजप्रश्नीयसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १०९-६(२७ से ३१,६६)=१०३, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-मूल-ग्रं.
२१२०; टीका-ग्रं. ३७००., पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२६.५४१०.५, १०४३४). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से पस्सवणा नमो. राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः (१) प्रणमत वीरजिनेश्वर (२) तेणं कालेणमित्यादि; अंतिः
तेन भवतु कृती. ६५१५. अरहन्ना मुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., (२५.५४१०.५, १६४६२).
अरणिकमुनि चौपाई, गणि राजहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७३२, आदिः श्रीफलवधि प्रणमुं; अंतिः सदा सुख संपजइए. ६५१६. शालिभद्र रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-२९, (२६४१०.५, १५-१७४५३).
शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः फल लहिस्यइजी. ६५१७." स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १७८५, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. पट्टणा, ले.- पं. तत्त्ववल्लभ मुनि, प्र.ले.पु. मध्यम,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ११४३८).
स्नात्र पूजा, आ. मङ्गलसूरि, मागु., पद्य, वि. १३वी, आदि: मुक्तालङ्कारविकारसार; अंतिः भविया पुजो एह ज देव. ६५१८. कर्मग्रन्थ १-४ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, पे. ४, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र,
प्र.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, ५४५१).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१६१ पे.-१.पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ., पृ. १अ-८अ, संपूर्ण
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिन वान्दीने; अंतिः लिखी देवेन्द्रसूरिइ., पे.वि. मूल
गा.६०. पे.२. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ., पृ. ८अ-१२अ, संपूर्ण
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः तथा तिम स्तवउ; अंतिः ते श्रीमहावीरदेव., पे.वि. मूल-गा.३४;
टबार्थ-गा.३४. पे..३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ., पृ. १२अ-१५अ, संपूर्ण
बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः बन्धविधान कर्मबन्धना; अंतिः कर्मस्तव साम्भलीने., पे.वि.
मूल-गा.२५; टबार्थ-गा.२५. पे.-४. पे. नाम. षडशीति सह टबार्थ., पृ. १५अ-१६आ-, अपूर्ण
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंति: देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वीतरागदेवनइ नमस्करी; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
गा.१ से १२ तक है. ६५१९. कर्मग्रन्थ ३ व ४ सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १७८९, श्रेष्ठ, पृ. २०-२(२ से ३)=१८, पे. २, जैदेना.,ले.- गणि
ऋद्धिविजय (गुरु पं. प्रमोदविजय),प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा पत्रांक नहीं दिया हुआ है. पाठ की कमी के आधार से
घटते पत्र का अनुमान लगाया गया है तथा उसी क्रम में माहिती भरी गयी है., त्रिपाठ, (२७४११.५, १-४४४४-५१). पे.-१.पे. नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. १अ-१अ-, अपूर्ण
बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिःबन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः सर्वशर्मप्रदं नत्वा; अंति:-,पे.वि. मात्र
प्रथम पत्र है. गा.५ तक है. पे.२. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. -४अ-२०अ, पूर्ण
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः देवेन्द्रसूरिहिं., पे.वि. मूल-गा.८६. प्रारंभ के पत्र
नहीं हैं. गा.७ तक पाठ नहीं है. ६५२०. महावीरजिन सत्तावीसभव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२६४११, १६४४१).
महावीरजिन २७ भव वर्णन, मागु., गद्य, आदिः (१) अथ हिवइ श्रीमहावीर (२) भगवन्त श्रीमहावीरनइं; अंतिः
___ महावीरस्वामी थया. ६५२४." पूजाष्टक कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८२१, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. कालूग्राम, ले.- पण्डित लब्धकमल मुनि,
प्र.वि. ८ कथा, पदच्छेद सूचक लकीरें-अंतिम कुछ पत्र, (२५४११, १५४५६). ८ प्रकारीपूजा कथा सङ्ग्रह, प्रा., पद्य, आदिः पणमह तं नाभिसुयं; अंतिः सुहं सासयं ठाणं. ६५२५. अडसठिआगम पूजा, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.- मु. रामविजय, (२६४१२, १२४३२). ६८ आगम पूजा, कवि दीपविजय, मागु., पद्य, वि. १८५६, आदिः (१) प्रथम विशाल जिन भुवन (२) प्रवचन परमेस्वर;
अंतिः सुलभ बाधी काजे. ६५२६. मानतुङ्गमानवती रास व सुलतान सैन्य वर्णन, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६१-३(१ से ३)-५८, पे. २, जैदेना., पू.वि.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., (२४.५४११, ११४२८). पे.-१. पे. नाम. सुलतान सैन्य वर्णन, पृ. -४अ-४अ, अपूर्ण
काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः-, पे.वि. गा.२०. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.१५ से है. पे.२. मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, (पृ. ४अ-६१आ-,
पूर्ण), आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंति:-,पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पत्रांक-६२ प्रशस्तिभाग नहीं है. ६५२७." नवतत्त्व, जीवविचार तथा दण्डक प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-३(१,१५ से १६)=१४, पे. ३,
जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ५४३६). पे.-१.पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. -२अ-६आ, अपूर्ण
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः-,पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. गा.१ से १० तक नही है. पे.२. पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. ६आ-१२आ, संपूर्ण
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः अथाह श्रुतसमुद्र थकी..पे.वि. मूल-गा.५१. पत्र चिपके
__ होने से आदिवाक्य नही भरा है. पे.-३.पे. नाम. दण्डक सह टबार्थ, पृ. १२आ-१७अ, अपूर्ण
दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ ऋषभ; अंतिः हितकारणी कीधी., पे.वि. मूल-गा.३९.
बीच के पत्र नही हैं. ६५२८. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३९-१(५४)=१३८, जैदेना., ले.- पं. आगमविजय,
पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. अंतिम व्याख्यान गा.६३ अपूर्ण तक., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही
फैल गयी है-अल्प-, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२६४१२, ३-१४४२५-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनइ माहरो; अंति:
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति:६५२९. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., ले.- दोलतराम हरखचन्द भोजक, (२६.५४१२, १३४३७).
आगमसारोद्धार, गणि देवचन्द्र, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः तिहां प्रथम जीव; अंतिः फली मन आस. ६५३०. कर्मग्रन्थ नव्य १-५ सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५४-४(१,५ से ६,३७)=५०, पे. ५, जैदेना.,पू.वि. प्रथम
व बीच-बीच के कुछ पत्र नहीं हैं., (२६.५४११, १३४४५-५६). पे.-१.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. -२अ-१२अ, अपूर्ण
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:-,पे.वि. मूल-गा.६०. प्रारंभ व बीच के कुछ पत्र
नहीं हैं. पे.२. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. १२अ-१७अ, संपूर्ण
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः तिम श्रीमहावीर प्रति; अंतिः ते महावीर प्रति नमु., पे.वि.
___ मूल-गा.३४. पे.-३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. १७अ-२०आ, संपूर्ण
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१६३
बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः बन्ध सामित्त विचार; अंतिः बन्धसामित्व जाणिवउ.,
पे.वि. मूल-गा.२५. पे.४.पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. २०आ-३१आ, संपूर्ण
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: वीतरागदेव नमस्करी; अंतिः देवेन्द्रसूरिहिं., पे.वि. मूल
गा.८६. पे.५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. ३१आ-५४आ, पूर्ण
शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः वीतराग नमस्करीनइ; अंतिः कीधउ परोपकारनइ काजिइ.,
पे.वि. मूल-गा.१००. बीच का एक पत्र नहीं है. गा.२९ से ३३ नहीं है. अन्त में क्षपकश्रेणि का यन्त्र दिया हुआ
६५३१.” दौपदी चौपाई, पूर्ण, वि. १७०२, मध्यम, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-३४, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित,
पू.वि. प्रथम ढाल गा.५ अपूर्ण से है., (२६४११, १३४४६).
द्रौपदी चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १७००, आदि:-; अंतिः तेहनई त्रिकालो रे. ६५३२. आत्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९००, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. अजीमगंज, ले.- पं. जीतमल, प्र.वि. गा.२१,
(२५.५४११.५, ६x२२).
औपदेशिक सज्झाय, कवि रूपचन्द, मागु., पद्य, आदिः जिणवर इम उपदिसै आगै; अंतिः इम पभणै रूपचंद रे. ६५३३. कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२-१(१)+१(३२)=६२, जैदेना., पू.वि. प्रथम व अन्तिमपत्र नहीं हैं., (२७४१२,
९४३८).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:- अंति:६५३४. कल्पसूत्र, त्रुटक, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १३१-११५(१ से ३,९,१३,१५,१७ से १९,२१ से १२६)=१६, जैदेना., प्र.वि. तीन
पत्र ज्यादा है जो बिना नम्बर के हैं।, पू.वि. बीच बीच के पत्र हैं., (२७.५४ १२.५, ७४२५-२७).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:६५३७. पर्वव्याख्यान सङग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ९, पे. ५, जैदेना.. पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५४१२, ११४३१)
पे.१. दीपावलीपर्व व्याख्यान, सं.,मागु., गद्य, (पृ. १अ-२अ, संपूर्ण), आदिः (१) पापायां पुरिचारुषष्ट (२) अर्हन्त
भगवन्त अशरण; अंतिः माला विस्तरन्तु. पे.-२. होलिकापर्व व्याख्यान, राज., गद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः होलिका फाल्गुने मासे; अंतिः मङ्गलीकमाला
सम्पजे. पे.-३. अक्षयतृतीया व्याख्यान, राज., गद्य, (पृ. २आ-४अ, संपूर्ण), आदिः (१) उसभस्सय पारणए (२) अर्हन्त भगवन्त __ अशरण; अंतिः पुण्य० विस्तरन्तु. पे.-४. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, सं.,मागु., गद्य, (पृ. ४अ-९अ, संपूर्ण), आदिः ज्ञानं सारं सर्व; अंतिः केवलपाली मुक्ति
गया. पे.-५. मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., पद्य, (पृ. ९अ-९अ, अपूर्ण), आदिः सिरिवीरं नमिऊण; अंतिः-,पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. मांगलिकश्लोक मात्र है. ६५३९.” कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिकाटीका की पीठिका, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से
अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५.५४१२, १३४२८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य; अंति:६५४०. अञ्जनासती रास, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. चिकातेर, प्र.वि. गा.१६८, (२६४१२, १६४३६
४४).
अंजनासुन्दरी रास, मु. पुण्यसागर, मागु., पद्य, वि. १६८९, आदिः श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंतिः सती ए सीरोमण गाई
६५४९. सद्भाषितावली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९+१(१४)=३०, जैदेना., प्र.वि. यत्र-तत्र कठिन शब्दों का शब्दार्थ दिया
गया है., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. श्लो.४४० तक है., (२८x१२.५, ९४३७).
सदभाषितावली, आ. सकलकीर्ति, सं., पद्य, आदिः जिनाधीशं नमस्कृत्य; अंति:६५५२. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९-६(१४ से १९)=३३, जैदेना., प्र.वि. ६ कांड, पू.वि. बीच
बीच के पत्र नहीं हैं. काण्ड-२ की गा.२५१ से काण्ड-४ तक नहीं हैं., (२५.५४११, १३४३९-४२). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ
नमः.
६५५३. निर्यावलिकादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, पे. ५, जैदेना., पठ.- ऋ. जगमाल सारण,
प्र.वि. पंचपाठ, (२६४११, ११४३५-३९). पे.-१. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टीका, पृ. १अ-२१आ, संपूर्ण
कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः भणियव्वो तहा. कल्पिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य(अपूर्ण), आदिः पार्श्वनाथं नमस्कृत्; अंतिः-, पे.वि. मूल-अध्याय-१०
अध्ययन. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. टीका क्रमशः नहीं है. पे.२. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टीका, पृ. २१आ-२३आ, संपूर्ण
कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः वा सेज्झिहिंति. कल्पावतंसिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य(अपूर्ण), आदि:-; अंतिः द्वितीयवर्गश्च., पे.वि. मूल-अध्याय-१०
अध्ययन. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. टीका क्रमशः नहीं है. पे.-३.पे. नाम, पुष्पिकासूत्र सह टीका, पृ. २३आ-४४अ, संपूर्ण
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः अथ तृतीयवर्गोपि दशा; अंतिः देवस्य व्यक्तव्यता., पे.वि. मूल
१० अध्ययन. पे.-४. पे. नाम. पुष्पावतंसिकासूत्र सह टीका, पृ. ४४अ-४६आ, संपूर्ण
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः वासे सिज्झिहिंति. पुष्पचूलिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य(अपूर्ण), आदिः चतुर्थवर्गोपि; अंतिः-,पे.वि. मूल-अध्याय-१०
अध्ययन. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. टीका क्रमश: नहीं है. पे.५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टीका, पृ. ४६आ-५२अ, संपूर्ण
वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य(अपूर्ण), आदिः पञ्चमवर्गे वन्हिदसा; अंति:-, पे.वि. मूल-अध्याय-१२
अध्ययन. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. टीका क्रमशः नहीं है. ६५५४. चैत्यवन्दन की पदपर्यायमञ्जरी वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३-१(४२)=४२, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
, (२६.५४११, १७४५७-५९). चैत्यवन्दनसूत्र-विषमपदपर्यायमञ्जरी वृत्ति, आ. अकलङ्कदेवसूरि, सं., गद्य, आदिः तं नमो ज्ञानफलायैतां; अंति:
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१६५
६५५६. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र. वि. मूल - श्लो. ४४., पू.वि. अन्तिम पत्र नहीं है. अन्तिम गाथा की टीका अधूरी है.. (२६.५x११.५, ८४२८-३१).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानवुङ्गसूरि सं., पद्य (संपूर्ण), आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः समुपैति लक्ष्मी.
भक्तामर स्तोत्र - सुबोधिका टीका, सं., गद्य, (पूर्ण), आदि: श्रीसर्वज्ञं नमस्कृत; अंतिः
.
६५५७.” योगचिन्तामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१-४ (१ से ४ ) = १७, जैदेना., पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-, अक्षर फीके पड गये हैं, ( २४ ११.५, १५४३२-३४).
योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि:-, अंतिः
योगचिन्तामणि- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि:-: अंतिः
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P
६५५८. लब्धिप्रकाश सह टवार्थ रास व चौदलब्धि विचार संपूर्ण वि. १९३५ श्रेष्ठ, पृ. २६. पे. २. जैवेना. ले. स्थल वीनोली,
ले. साध्वीजी मोहनी आर्या, प्र.ले. श्लो. (५३३) मङ्गलं लेखकानां च (२५.५x१२, १८ - १९६३).
पे. १. पे नाम लब्धिप्रकाश सह टवार्थ व रास, पृ. १आ-२६आ
लब्धिप्रकाश कवि नन्दलाल, प्रा. पद्य वि. १९०३ आदि नमिऊण महावीरं अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्
"
"
लब्धिप्रकाश-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: नमस्कार करीने अंतिः पाप मिथ्या करू छु
लब्धिप्रकाश स्वोपज्ञ चौपाई, कवि नन्दलाल, मागु पद्य वि. १९०३ आदि रामचन्द्र बनवास में अंतिः ग्रन्थ भयो
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"
छे पूर्ण., पे.वि. मूल-गा.३७.
पे.-२. १४ लब्धि विचार, प्राहिं., गद्य, (पृ. २६आ-२६आ), आदि: जे लक्षण रहित; अंतिः चतुर्दशपूर्वलब्धि.
६५५९. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६४ -७ (९, १८ से १९, २२, ५० से ५१,५३ ) = ५७, जैदेना, पू. वि. बीच बीच व अन्त के
कुछ पत्र नहीं हैं. (२५८१२, ११४३३).
"
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः
६५६०. कल्पसूत्र, संपूर्ण वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. ९२ जैदेना ले. पं मतिमन्दिर, प्र. वि. ९व्याख्यान प्र. पु. मूल ग्रं. १२१६,
(२६४११.५, ८४३२).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि
६५६१. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ (स्थानकवासी), संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६.५४१२, ४४२८).
"
,
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा. मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः आणाए अणुपालियं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी-टबार्थ मागु, गद्य आदि तिनवार जिमणा कानथी अंतिः आज्ञाइ पाल्यउ.
,
;
.
६५६२ . विचारपञ्चाशिका सह टवार्थ व पुद्गल विचार, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना. (२६.५४१२, ४४३८
·
४०).
पे. १. पे नाम. विचारपञ्चाशिका सह टवार्थ, पृ. ११-८आ
"
विचारपंचाशिका, गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं; अंतिः सूरिवराणं विणएण. विचारपंचाशिका-टवार्थ मागु, गद्य, आदि: वीर पय क० महावीरदेव अंतिः आचार्यमाहि प्रधान ए., पे.वि. मूल
गा. ५१.
पे. २. पुद्गल विचार मागु, गद्य, (पृ. ८आ८आ) आदि पुद्गलनो विचार अंतिः यन्त्रथी भावना जाणवी.
६५६३. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. प्र. वि. मूल-गा. ६३: बार्थ ग्रं. ३४१ प्र. पु. बार्थ ग्रं. ४२० चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं.
१६, जैदेना., ले. स्थल. विद्यापुरनगर, ले. नारायण भट्ट, (२६.५०१२ ३x२६-२९).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणिपत्य महावीरं; अंतिः ए अध्ययन इत्यर्थः. ६५६४. धर्मचर्चा, पूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(२)=११, जैदेना., ले.स्थल. खेटकपुर, ले.- पं. अमृतरत्न, (२६.५४१२,
१६x४२).
औपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः धर्मे राग श्रुते; अंतिः शेषैकला उच्यते. ६५६५. ठाणाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८२६, श्रेष्ठ, पृ. १५८-१(१)=१५७, जैदेना., प्र.वि. मूल-१०स्थान., टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, (२७.५४१२, ८४४६-५१). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता.
स्थानाङ्गसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः पुदगल अनंते कहेहइ छइ. ६५६७. सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७४-२(२७,३६)+१(२९)=७३, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. , (२७४११.५, ५४२८-३७). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति:
सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः बुज्झि० छकाय जीवना; अंति:६५६९. आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.
अन्नत्थसूत्र अपूर्ण से पगाम सज्झाय अपूर्ण तक है., (२८x१३, ५-६४५७-७८). साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः
साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:६५७२. विपाकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१(१)=२६, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२७४११.५, ९४४९-५१). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
विपाकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः६५७५. तप सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- पं. इन्द्रविजय गणि, (२५.५४१२.५, ११४३७).
तपावली, मागु., गद्य, आदिः पुरिमढ्ढ १ एकासणां; अंतिः शासननी प्रभावना करवी. ६५७६. सप्त व नव स्मरण, अपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. १६-४(१ से ४)=१२, पे. २, जैदेना., (२४.५४१२, १३४३२-३५).
पे.-१. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, (पृ. -५अ-९आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः भवे पास
जिणचन्द., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे.२. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, (पृ. ९आ-१६आ, प्रतिपूर्ण), आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः
_जैनं जयति शासनम्., पे.वि. कल्याणमंदिर नही है. ६५७८. मयणरेहासती रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- छगन, प्र.वि. गा.१८१, (२५४१२.५, १७-१८४३८-३९).
मदनरेखा रास, मागु., पद्य, आदिः जूआ मांस दारु तणी; अंतिः पाई वीरवचन मन लाभई. ६५७९. नन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. बिकानेर, ले.- मु. लक्ष्मीचन्द, प्र.वि. गा.७००,
(२४.५४१२.५, १७X४२-४८).
नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से त्तं परोक्खणाणं. ६५८०. ऋषभजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-४७, (२४.५४१२.५, १९-२१४३७-४२).
आदिजिन चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८४०, आदिः अरिहन्त सिद्धनै; अंतिः ऋषभ चरीत टकसाल ए. ६५८२. मङ्गलकलस रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ढाल-६ की दो गाथा तक
है. , (२७४१२.५, १६४३९-४६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१६७ मंगलकलश रास, मु. दीप्तिविजय, मागु., पद्य, आदिः प्रणमुं सरसति स्वामी; अंति:६५८३. विक्रमादित्य नवसै कन्या खापराचोरनो रास, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, पठ.- मु.
तेजविजय, प्र.वि. ढाळ-२७, गा.५८५; प्र.पु.-मूल गा.५९०, (२६४१२.५, १४-१५४३८-४४). विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मागु., पद्य, वि. १७२३, आदिः पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंतिः तेहने सदा हुइ कल्याण. ६५८४. महापच्चक्खाणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.- मु. मूलचन्द, प्र.वि. मूल-गा.१४२.,
प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६४१३, ५४२९-३४). महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदिः एस करेमि पणामं; अंतिः अहवा वि सिज्झेज्जा.
महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ए हुं प्रणाम करूं; अंतिः अथवा मुक्ति पामइ. ६५८५.” ऋषिमण्डल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. श्लो.८१, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६.५४१२,
११-१३४२९-४१).
ऋषिमण्डल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः आद्यन्ताक्षरसंलक्ष्य; अंतिः परमानन्द नदितः. ६५८७. लघुक्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. गा.२६४, (२६४१२.५, ७४३१).
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमई
पसिद्धिं. ६५८८. पट्टावली खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४१२.५,
१६x४१). पट्टावली खरतरगच्छीय, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३०, आदिः प्रणिपत्य जगन्नाथं; अंति:६५८९. चातुर्मासिक व्याख्यान, पूर्ण, वि. १९५३, श्रेष्ठ, पृ. २४-१(२१)+१(२४)=२४, जैदेना., ले.स्थल. रुणीयै, ले.- पं.
महिमाभद्र, (२६.५४१२.५, १०४३४).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, सं.,मागु., गद्य, आदिः सामायिक आवश्यकव्रत; अंतिः मिच्छामिदुक्कडं देवो. ६५९०. गणधरवाद व हरिवंशउत्पत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(१ से ४)=५, पे. २, जैदेना., (२७.५४११.५, १३४३९).
पे.-१. पे. नाम. कल्पसूत्र की कल्पसुबोधिका टीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता, पृ. -५अ-८आ, अपूर्ण कल्पसूत्र-कल्पसुबोधिका टीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, आदि:-; अंतिः
अस्निहा भवन्ति., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.. पे..२. कल्पसूत्र-हरिवंशोत्पत्ति सप्तमआश्चर्य, संबद्ध, सं., गद्य, (पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण), आदिः इहैव कौशाम्ब्यां; अंतिः
(१)प्रभृति हरिवंशो बभूव (२)आयु भोगवी नरकि गयो. ६५९१.” कल्पसूत्र का कल्पलता बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. १०१, जैदेना., ले.स्थल. चांवडीया, ले.- पं.
राजेन्द्रहर्ष,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५४१२.५, १५४४२).
कल्पसूत्र-बालावबोध*, मागु.,राज., गद्य, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. ६५९३. नवपद चैत्यवन्दन, स्तवन व स्तुति सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. ९,पे. २७, जैदेना., ले.स्थल.
सवाईजयपुरनगर, पठ.- साध्वीजी छगनश्रीजी, (२४.५४१२.५, ९४३२). पे..१. साधारणजिन चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः श्रीअरिहन्त अनन्त; अंतिः वन्दे
जिनपद तास., पे.वि. गा.३. पे..२. पे. नाम. अरिहन्तपद स्तवन, पृ. १अ-१आ अरिहन्तपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, आदिः श्रीअरिहन्त अनुप; अंतिः अरिहन्त रूप बताया., पे.वि.
गा.३. पे.३. अरिहन्तपद स्तुति , उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः सहु यन्त्र शिरोमणि; अंतिः
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१६८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चारित्रनन्दी मन भाय., पे.वि. गा.४. पे.४. सिद्धपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. २आ-आ), आदिः ह्रस्वाक्षर परमाण; अंतिः प्रणमे निज __ रूपी., पे.वि. गा.३. पे.५. सिद्धपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. २आ-आ), आदिः शुद्ध सरूपी आतमरूपी; अंतिः त्रिकरण
वन्दी ., पे.वि. गा.६. पे.६. सिद्धपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः निज भाव विलासी पर; अंतिः चारित्र मन ___ लाय., पे.वि. गा.४. पे.-७. पे. नाम. सूरि चैत्यवन्दन, पृ. ३अ-३अ
आचार्यपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, आदि: जैनागम सुप्रकाश भास; अंतिः नमित सूरि
गुणदायक.,पे.वि. गा.३. पे.८. आचार्यपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३अ), आदिः आचारज गुण धामी; अंतिः अविचल पद
सुखदाई हो., पे.वि. गा.६. पे..९. आचार्यपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदिः धन धन सिद्धचक्रै; अंतिः चारित्रनन्दि __ सुख थाय., पे.वि. गा.४. पे.१०. उपाध्यायपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः पाठक गुण भविवि; अंतिः
चारित निम्मल., पे.वि. गा.३. पे.-११. उपाध्यायपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः हम तुमरी बलिहारी; अंतिः
पाठकपद चित धार्यो हो.. पे.वि. गा.४. पे.-१२. उपाध्यायपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः सहु पाप पणासन नवपद; अंतिः
देवी करै सुपसाय., पे.वि. गा.४. पे.-१३. साधुपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५अ), आदिः दिग गिरि संयमपाल; अंतिः साधु
भक्ति सिरनामे., पे.वि. गा.३. पे.-१४. साधुपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः समतासागर मुनिपद; अंतिः सकल गुण
पुनम चन्दे., पे.वि. गा.३. पे.-१५. साधुपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः सुरतरु सम ध्यावो; अंतिः चक्केसरी
रखवाल., पे.वि. गा.४. पे.-१६. दर्शनपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदि: जैनागम रुचि रूप; अंतिः यह
समकित गुण ठाण., पे.वि. गा.३. पे.-१७. दर्शनपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः सम्यग् दरशन हे पायो; अंतिः दरसन
भाव्यो., पे.वि. गा.८. पे.-१८. दर्शनपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः अनुपम सिधचक्रे पूजो; अंतिः देवी करो ___ सुखकन्द., पे.वि. गा.४. पे.१९. ज्ञानपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः लोकालोक प्रकाशरूप; अंतिः चारित
निज ध्याने., पे.वि. गा.३. पे.:२०. ज्ञानपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः मत्यादिपण नाण भाव; अंतिः त्रिकरण
वन्दै रे., पे.वि. गा.३. पे.२१. ज्ञानपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः सुर नर मुनि वन्दित; अंतिः चक्केसरि
सुखकार., पे.वि. गा.४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१६९ पे..२२. चारित्रपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७आ-८अ), आदिः चारित दुग विध सरबदेस; अंति: ___ सुख संजम धारै., पे.वि. गा.३. पे..२३. चारित्रपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८अ), आदिः दुविध चारित सुखदायी; अंतिः कराई
जगत मे.,पे.वि. गा.३. पे:२४. चारित्रपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदिः सिद्धचक्र प्रणमन्तां; अंतिः वञ्छित पूरे
काम., पे.वि. गा.४. पे.२५. तपपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदिः सेवो तप भवि वार; अंतिः श्रीतप __आराध्यो., पे.वि. गा.३.
पे.-२६. तपपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९अ), आदिः द्वादश विध तप; अंतिः हो नरसुर शिवसुख ___ कै.,पे.वि. गा.३. पे.-२७. तपपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९आ), आदिः त्रिकरण भवि ध्यावो; अंतिः देवी करो जस
वृद्धि., पे.वि. गा.४. ६५९५. तत्त्वबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. अंतिम वाक्य वाला पत्र कटा हुआ है., (२६४१२.५, १६x४६).
तत्त्वबोध , मागु., पद्य, आदि: नमुं देव अरिहन्त; अंति:#. ६५९६. मौनएकादशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२६४१२.५, १४४४१).
मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरं नमिऊण; अंतिः विषै सकल सुख भोगवी. ६५९९.” गति आगति यन्त्र (जीव), अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२७.५४१३.५४).
जीवगति आगति यन्त्र, मागु., यंत्र, आदि:-; अंति:६६०३. सुरसुन्दरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५८, मध्यम, पृ. १८, जैदेना.,प्र.वि. गा.६१९, ग्रं. ९००, खण्ड-४, (२८x१३, १३४५१).
सुरसुन्दरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मागु., पद्य, वि. १७३६, आदिः सासण जेहनउ सलहियइ; अंतिः आनंद लील उमंगेजी. ६६०५. सिन्दूरप्रकर सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. टबार्थ गा.६९ तक हैं।
गा.१ से ८६ तक हैं., (२८.५४१३.५, ५४३३). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति:
सिन्दूरप्रकर-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः सिन्दूरनो प्रकर; अंति:६६०६. चोवीसजिन स्तुति व स्तवनादि, अपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ११, जैदेना., ले.- मु. गुलाबसागर, पू.वि. अन्त
___के पत्र नहीं हैं., (२८.५४१३, १६४५२).
पे.१.२४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२आ, संपूर्ण), आदिः ब्रह्मसुता वाणी; अंतिः धरि ___ निसुणो नरनारी., पे.वि. गा.२६. पे.२. आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुञ्जय, मु. प्रेमविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३आ, संपूर्ण), आदिः प्रणमु सयल जिणन्द;
अंति: जीम पामो भवपार ए., पे.वि. गा.२२. पे..३.२४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदिः शत्रुजे ऋषभ;
अंतिः समयसुन्दर कहे एम., पे.वि. गा.२५. पे.-४. अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचन्द, प्राहिं., पद्य, वि. १६८५, (पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण), आदिः अजर अमर पद परमेसरकुं;
अंतिः कहे अरिहन्त देव रे.,पे.वि. गा.३१. पे.५. महावीरजिन भास, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः वीरजी आया रे गुणशैल; अंतिः
लक्ष्मीसूरि गुणठाण., पे.वि. गा.५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे.६. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पाठक श्रीसार, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण), आदि: उत्पति जोज्यो आपणी;
अंतिः इम कहे श्रीसार., पे.वि. गा.७१. पे.७. पद्मप्रभजिन स्तवन-सम्प्रतिराजावर्णगर्भित, मु. कनक, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८अ, संपूर्ण), आदिः धन धन सम्प्रति
साचो; अंतिः दिज्यो भवभव सेव रे., पे.वि. गा.९.. पे.-८. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शान्तिकुशल , मागु., पद्य, वि. १६६७, (पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण), आदिः वदन अनोपम
चन्दलो; अंतिः सेव करतां सुख लह्यो.. पे.वि. गा.४१. पे-९. चक्रेश्वरीदेवी छन्द-शत्रुञ्जयतीर्थअधिष्ठात, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-९आ, संपूर्ण), आदिः मा चकेश्वरी सिद्धाचल; __ अंतिः सेवा करी ते फल लेजो., पे.वि. गा.११. पे.-१०. साधारणजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-९आ, संपूर्ण), आदिः किहांथी रे आया बिडला; अंतिः सम्भलावी हमने
वात रे., पे.वि. गा.६. पे.-११. पे. नाम. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, पृ. ९आ-११आ-, अपूर्ण श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः विशेषतः श्रावक तणआइ; अंति:-,पे.वि. अंत
के पत्र नहीं हैं. संलेषणा पांच अतिचार से बाकी. ६६०८. जयविजय चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले.स्थल. डभोडा, ले.- मु. हितविजय (गुरु पं.
लालविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-श्लो.४७३., (२८x१२.५, ६x४७-४९). जयविजय चरित्र, सं., पद्य, आदिः जीवाई नव पयत्थे; अंतिः विधो विधिवद्यतद्यम्. जयविजय चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जीवादीक नवपदार्थ; अंतिः सुखनी प्राप्ति पामो.
सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ४५-३(१ से ३) ४२, जैदेना., पृ.वि. बीच के पत्र हैं. दस कल्प अपूर्ण से सरीर विलेपन व आभूषण तक है., (३०.५४१३.५, ५-६४३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः६६१०. देउलामण्डण जुगादिजिन स्तुति सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.- मु. धनविजय, प्र.वि.
गा.२४., त्रिपाठ, (२७४१२.५, ४४४१-४४). आदिजिन स्तव-देउलामण्डण, मु. शुभसुन्दर, प्रा., पद्य, आदिः जय सुरअसुरनरिन्द; अंतिः तह तुह गुण थुत्तह. आदिजिन स्तव-देउलामण्डण-मन्त्राम्नाय अवचूरि, सं.,मागु., गद्य, आदिः (१) कियदनुभूतमन्त्र (२) ॐ नमो कोइल्लवीर;
अंतिः करोति इत्थं० सुगमम्. ६६११. सम्यक्त्वकौमुदी कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. १००-५५(१ से ५३,६०,७१)=४५, जैदेना.,पू.वि. प्रारंभ व
बीच बीच के पत्र नहीं हैं., (२७.५४१३, ६४३९-४०). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदि:-; अंतिः स्वर्गमश्नुते.
सम्यक्त्वकौमुदी कथानक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः ते नर मोक्षसुख पामे. ६६१९. कर्मग्रन्थ १ से ३, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४१३.५, १२४३२).
पे.१. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-३अ, संपूर्ण), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः
वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. पे:२. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः
नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५.. पे.-३. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४आ-६आ-, अपूर्ण), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय;
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
अंति:-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. १ से ४५ तक है.
६६२०.” अष्टाह्निका व दीपावली व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१४ (१ से १४ ) = ७, पे. २, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित (२६४१३, ११४३६).
पे. १. अष्टानिकापर्व व्याख्यान राज. गद्य (प्र. १५-१५अ, अपूर्ण), आदि-: अंति पर्वरो वखाण कह्यो, पे. वि. मात्र अंतिम पत्र है.
पे. २. दीपावलीपर्व व्याख्यान, राज गद्य (प्र. १५-२१आ, संपूर्ण ), आदि पणमिय वीरं वुच्छं; अंतिः मङ्गलीकमाला सम्पजे.
"
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६६२१. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २९ जैदेना. पृ.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. खंड ४ ढाल १ की गा ४ तक है..
,
(२५.५X१३.५, १५-१८X३५-३९).
श्रीपाल रास उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि मागु पद्य वि. १७३८ आदिः कल्पवेल कवियण ताणी; अंति:
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६६२२. श्रद्धपाक्षिकअतिचार, पञ्चमी, आदिजिन व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. १० पे ४ जैदेना.. ले. स्थल. विजापुरनगर, ले. हरिलाल लहिया (२६४१३.५, १३४३०-३२).
"
"
पे. १. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू. संबद्ध मागु., प्रा., गद्य (५. १अ - ९आ), आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०: अंतिः अनेरो
.
जे कोई अतिचार.
पे.२. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ ), आदि: श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधान.., पे.वि. श्लो. ४.
पे. ३. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १०अ १०अ ), आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय; अंतिः कूष्माण्डी कमलेक्षणा., पे.वि. श्लो. ४.
·
१७१
"
पे. ४. पार्श्वजिन महिमाश्लोक सं., पद्य (पृ. १०-१०अ ) आदि पार्श्वनाथं नमस्कृतः अंतिः दालिद्रं नोपजायते. पे.वि.
,
श्लो. १.
६६२७. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह विधि अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३२-५ (१ से ५) २७, जैदेना. पु. वि. बीच के पत्र है., ( २६x१३, ११×३०). साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय संबद्ध, प्रा. प+ग, आदि अंतिः
हैं. वान्दणा से सिद्धाणं बुद्धाणं तक
i
..
६६२८.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९०-९ (१ से ९ ) = ८१, जैदेना, पू. वि. प्रारंभ व
अंत के पत्र नहीं हैं. पंचम व्याख्यान तक पूर्ण., ( २६.५X१३.५, ६-१५X३३-३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: अंतिःकल्पसूत्र - टवार्थ माग गद्य, आदि: अंतिः
कल्पसूत्र- व्याख्यान+ कथा' मागु, गद्य, आदि: अंति
६६२९. मेघकुमार चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२६×१४, १४४४१).
मेघकुमार चौढालीया, राज., पद्य, आदिः रिषभादिक चोवीसने; अंतिः ए लागा दीसे छे लार र.
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६६३०. स्तवनचौवीसी, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., पू.वि. स्तवन- २ से १६ तक है., ( २६१२.५, १०x२१-२३). स्तवनचीवीसी मु. आनन्दघन, मागु पद्य वि. १८५, आदि:-: अंति:
.
६६३१. चैत्यवन्दन व स्तवन सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २८, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं.,
(२६×१४,
१३-१४X३९-४४).
पे. १. पे नाम ऋषभजिन चैत्यवन्दन ५ १आ-१आ, संपूर्ण
आदिजिन चैत्यवन्दन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, आदिः सर्वार्थ सिद्धे थकी अंतिः वीर कहे शिवकन्त.,
पे.वि.
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१७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
गा.३. पे.२. आदिजिन चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-१आ, संपूर्ण), आदिः आदिदेव अलवेसरु; अंतिः
लहीये अविचल ठाण., पे.वि. गा.३. पे.-३. शान्तिजिन चैत्यवन्दन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-१आ, संपूर्ण), आदिः सर्वारथसिद्धे थकी; अंति: करी
नव शतसुं निर्वाण., पे.वि. गा.३. पे.४. शान्तिजिन चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-१आ, संपूर्ण), आदिः शान्तिजिनेसर सोळमा; अंतिः
दीठे परम कल्याण., पे.वि. गा.३. पे.५.२४ जिनलञ्छन चैत्यवन्दन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण), आदिः वृषभ लञ्छन
ऋषभदेव; अंतिः लक्ष्मीरतन सूरिराय., पे.वि. गा.९. पे.६. सिद्धचक्र चैत्यवन्दन, अप., पद्य, (पृ. २अ-२अ, संपूर्ण), आदिः जो धुरि सिरि अरिहन्त; अंतिः मनवञ्छिय फल
दियो., पे.वि. गा.३. पे.-७. बीजतिथि चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः दुविध धर्म जिणे; अंति: नमता
होय सुख खाण., पे.वि. गा.७. पे.-८. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवन्दन, मु. रङ्गविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-आ, संपूर्ण), आदिः त्रिगडे बेठा वीर; अंतिः
रङ्गविजय लहो सार., पे.वि. गा.९. पे..९. अष्टमीतिथि चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ, संपूर्ण), आदिः महा सुदी आठमने दिने;
अंतिः सेव्याथी सिव वास., पे.वि. गा.७. पे.-१०. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवन्दन, मु. कल्याण, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३अ, संपूर्ण), आदि: जय जय नाभिनरिन्दनन्द;
अंतिः निसदिन नमत कल्याण., पे.वि. गा.३. पे.-११.पे. नाम. नेमनाथ चैत्यवन्दन, पृ. ३अ-३अ, संपूर्ण नेमिजिन चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदि: नेमिनाथ बावीसमा; अंतिः नमतां अविचळ ठाण., पे.वि.
गा.३. पे.-१२. पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३अ, संपूर्ण), आदि: जय चिन्तामणी; अंतिः लहिये अविचल ठाण.,
पे.वि. गा.३. पे.-१३. पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदिः आशा पूरे प्रभु पासजी; अंतिः ___ नमतां सुख निरधार.,पे.वि. गा.३. पे.-१४. महावीरजिन चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदिः सिद्धारथ सुत वन्दिये;
अंतिः पद्मविजय विख्यात., पे.वि. गा.३. पे.-१५. एकादशीतिथि चैत्यवन्दन, मु. खिमाविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदिः शासननायक वीरजी;
अंतिः सफल करो अवतार., पे.वि. गा.९. पे.-१६. साधारणजिन चैत्यवन्दन, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४अ, अपूर्ण), आदिः जय जय तुं जिनराज आज; अंति:-, पे.वि.
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.१ लिखी है. पे.-१७. पर्युषणपर्व चैत्यवन्दन, मु. विनितविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४अ, संपूर्ण), आदिः प्रणमु श्रीदेवाधिदेव; अंतिः
प्रवचन वाणी वनीत., पे.वि. गा.३. पे.-१८. पुण्डरिकस्वामी चैत्यवन्दन, मु. दानविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४अ, संपूर्ण), आदिः आदीश्वर जिनरायनो;
अंतिः नाम दान सुखकन्द.,पे.वि. गा.३. पे.-१९. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण), आदिः सुण सुण शत्रुञ्जय; अंतिः
जिनभक्ति मुनिन्दा., पे.वि. गा.१०.
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१७३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे..२०. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदिः मनमोहन प्रभु पासजी;
अंतिः पूरजो मननी आशजी.,पे.वि. गा.६. पे:२१. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. पद्मविजय , मागु., पद्य, वि. १९वी, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण), आदिः तुमे तो भले
बीराजोजी; अंतिः पद्मविजय कहे जेण., पे.वि. गा.८. पे..२२. पुण्डरिकस्वामी स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण), आदिः एकदिन पुण्डरिक; अंतिः विशाल मनोहारी रे.,
पे.वि. गा.५. पे.-२३. शत्रुजयरायणवृक्ष स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण), आदिः नीलुडी रायणतरु
तले; अंतिः महात्म्य माहे रे. पे.-२४. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. क्षमाविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण), आदिः पद्मचरण जिनराय; अंतिः
जिन राजवीजी., पे.वि. गा.६. पे.२५. अभिनन्दनजिन स्तवन, मु. खिमाविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदिः अभिनन्दन जिनवर सुणो;
अंतिः कीजीये सुगुणज भाव., पे.वि. गा.५. पे.२६. श्रेयांसजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः तुमे बहु मैत्री रे; अंतिः
भक्ते कामण कन्त., पे.वि. गा.५. पे.-२७. शान्तिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः सुणो शान्तिजिणन्द; अंतिः इम
उदयरत्ननी वाणी.,पे.वि. गा.१०. पे..२८. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, अपूर्ण), आदिः श्रीराजगृही शुभ ठाम; अंतिः-,
पे.वि. प्रथम पत्र है. द्वितीय ढाल की द्वितीय गाथा अपूर्ण तक है. ६६३४. श्राद्ध पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९१६, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., (२८x१३.५, १३४३४).
श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. ६६३५. नवतत्त्व, जीवविचार, दण्डक प्रकरण व रहनेमी चोक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ४, जैदेना.. पू.वि. अन्त के
पत्र नहीं हैं., (२७.५४१३.५, १०४३९). पे..१. नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-४अ, संपूर्ण), आदिः जीवाजीवापुन्नं पावा; अंतिः लिहिओ ___ मणिरयणसूरिहिं., पे.वि. गा.५६. पे..२. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः ___रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे.३. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-९अ, संपूर्ण), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति
अप्पहिआ., पे.वि. गा.४४. पे.-४. रथनेमि चोक, मु. उत्तमविजय, मागु., पद्य, वि. १८७५, (पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण), आदिः एक दिवस वसे रहेनेमी;
अंति:६६३६. चौदगुणठाणा यन्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२९४१३, ७४२१).
___१४ गुणठाणा यन्त्र, मागु., यंत्र, आदि:#; अंति:#. ६६५३. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह विधिसहित, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
जिनदत्तसूरि आराधना काउसग्ग तक है., (२८.५४१४, ९-१०x२३-२९).
साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग, आदिः णमो अरिहन्ताणं; अंति:६६५६. चातुर्मासिक व अष्टाह्निका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९६६, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. देसणौक, ले.- पं.
हर्षउदय, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं, अष्टाह्निका व्याख्यान का आधा पत्र., (२८x१३.५, १३४३७-३९). पे.-१. चातुर्मासिक व्याख्यान, राज., गद्य, (पृ. १अ-१६आ, संपूर्ण), आदिः श्रीपार्वं सुख; अंतिः दुक्कडं होज्यो.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे.-२. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, राज, गद्य, (पृ. १६आ - १६आ, अपूर्ण), आदिः शान्तीशं शान्ति; अंति:-, पे.वि. आगे के पत्र नहीं है. शुरुआत का आधा पत्र है.
६६५७. इकवीसठाणा सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८ - १ (१) = १७, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ७१. प्र.पु. -मूल-ग्रं. ४८०.,
पू. वि. प्रथम पत्र गा. १ नहीं हैं., (२८.५४१३.५, ३४३०-३५),
एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः असेस साहारणा भणिया. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः साधारण सरीखा कहीया.
६६६९. सिरिसीरीवाल कहा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१ - २२ (१ से १९, २४ से २६ ) = १९, जैदेना, पू.वि. बीच
बीच के पत्र हैं., ( २४४१३.५, ६x२४).
सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि:-; अंति:सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
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६६७७. अट्ठाई व्याख्यान व पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रेष्ठ, पृ. २२, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. लूणकरणसर, ले.- पं.
सदासुख (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२८.५x१३, १०-१३x२३-२५).
पे. १. अष्टानिकापर्व व्याख्यान, राज, गद्य (प्र. १-२२अ) आदि शान्तीशं शान्ति अति पर्व वखाण कयो.
·
पे. २. पट्टावली*, सं., प्रा., मागु., गद्य, (पृ. २२अ - २२अ), आदि: #; अंतिः #, पे.वि. उद्योतनसूरी से जिनसिंहसूरि तकखरतरगच्छीय.
६६८४.” अणुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९६९, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैवेना. प्र. वि. मूल- अध्याय ३३, प्र. पु. मूल ग्रं. १०००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x१२.५, ६-८x४१-५०).
"
अनुत्तरीपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स अंतिः पण्णत्ते तिबेमि अनुत्तरीपपातिकदशाङ्गसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि आठमा अन्तगडदशाङ्गने अंतिः परि तिमज जाणिवा ६६८५. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि संपूर्ण वि. १९५६ श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवेना. ले. स्थल भिन्नासर ले. ऋ खेमचन्द (२८४११, १०
-
११४३४-४० ).
बृहत्शान्तिस्नात्र विधि सङ्ग्रह, सं. प्रा. मागु, गद्य, आदि प्रथम उपगरण मेलवा; अंतिः २० नालेयर दीजै. ६६८८.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८७९ मध्यम पृ. ४८-१ (४)+१(१७) =४८, जैदेना. ले. स्थल सरसरवाड, प्र. वि. मूल- अध्याय ९२. प्र. पु. मूल ग्रं. ८९० प्र.पु. टबार्थ ग्रं. ३००, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२८४१२, ७८X३६-४०).
,
अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अयमट्ठे पण्णत्ते. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते काल चउथ आरो; अंतिः धर्मकथानी परइ जाणवो.
"
६६९०.” श्रावकविधिप्रकाश, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४ जैवेना. प्र. वि. संशोधित ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे
P
लिखित (२७४१२.५. १४४३३-३८).
·
आवकविधि प्रकाश वा. क्षमाकल्याण, सं. मागु, गद्य वि. १८३८, आदिः प्रणम्य श्रीजिनाधीशं अति: (१) सो सोधीयो सुजान (२) विधिप्रकाशो निर्मिता.
६६९१. हस्तसञ्जीवनी सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र. वि. पंचपाठ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२८x१२, ११-१३X२८-३७).
हस्तसञ्जीवन, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरं पार्श: अति:
हस्तसञ्जीवन - टिप्पण, सं., गद्य, आदिः अङ्गविद्याया मुखत्वं; अंति:
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६६९४. श्रावकविधिप्रकाश सह बीजक, संपूर्ण, वि. १९१४, मध्यम, पृ. २०, जैदेना. (२६.५x१३, १३x२४-३४).
श्रावकविधि प्रकाश वा. क्षमाकल्याण, सं. मागु, गद्य वि. १८३८ आदि प्रणम्य श्रीजिनाधीशं अंतिः विधिप्रकाशो
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
निर्मितः.
श्रावकविधि प्रकाश-बीजक, मागु., गद्य, आदिः प्रभातसामायिक ग्रहण; अंतिः तप चिन्तन विधि. ६६९५. बृहत्शान्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८४, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. मकसूदाबाद, (२५४१३.५, ५४२६-३२).
बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः जैनं जयति शासनम्.
बृहत्शान्ति स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अहो भव्य जीवो; अंतिः वरतो शासन सदा. ६६९८. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. ९९-९(९० से ९८)=९०, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, प्र.ले.श्लो. (१७१) भणजो
गुणजो वाचजो, (२५.५४१३, ११x१९-२५).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ६६९९. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९७-३(५,२९,३७)+२(४,३६)=९६, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-मूल-ग्रं.
१२५०., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ अपूर्ण. मात्र दूसरे द्वार तक ही टबार्थ है., (२५.५४१३, ६४३२-३९). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (पूर्ण), आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति.
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः अहो जम्बू हुं धुरै; अंतिः६७०४. नैमराजुल बारमासी, ज्ञानचिन्तामणि दोहा व उपदेश पचीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, पे. ३, जैदेना.,
(२६.५४१२.५, ११४३८-४४). पे:-१. नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-२आ), आदिः विनवे उग्रसेन की; अंतिः उत्तर __ लालविनोद गाये.,पे.वि. गा.२६. पे..२. ज्ञानचिन्तामणी दोहा, मनोहरदास, मागु., पद्य, वि. १७२८, (पृ. २आ-९आ), आदिः सकल विद्या वरदायनी; अंतिः ___ कहे मनोहरदास., पे.वि. गा.१२८. पे..३. उपदेशपच्चीसी, मु. रामदास, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०आ), आदिः लख चौरासी जन्म मे; अंतिः उतारे पार रे
भाई., पे.वि. गा.२५. ६७०५. आदिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-४७, (२७४१२.५, २३४५३-५६).
आदिजिन चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८४०, आदिः अरिहन्त सिद्धनै; अंतिः ऋषभ चरीत टकसाल ए. ६७०६. सुभद्रासती चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. बिकानेर, ले.- पं. अखैचन्दजी, प्र.वि. ढाळ
४, (२५४१२.५, १३४३०-३२). सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मागु., पद्य, वि. १७५९, आदिः सरसति सामणि वीनवू; अंतिः फलीया
मनोरथ माल. ६७०९. छन्द व स्तवनादि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. ३२, जैदेना., (२६.५४१२.५, १६-१७४४८-५३).
पे:१. जिनदत्तसूरि छन्द, पाठक रुघपति, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२अ), आदि: वरदायक हंसवाहनी सारद; अंति: रचीयो
छन्द मनोहरु., पे.वि. गा.३५. पे.२. जिनप्रभसूरि कवित्त, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२अ), आदि: गयण थकी जिण कुलह; अंतिः भरहखित्त मण्डण रयण., __ पे.वि. गा.१. पे.-३. जिनरत्नप्रभसूरि कवित्त, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२अ), आदिः वर्धमान जिन थकी; अंतिः ओसवाल थिर थप्पया. पे.-४. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, पाठक रामविजय, मागु., पद्य, वि. १८२३, (पृ. २अ-२आ), आदिः भलै दीठी सवालख
भूम; अंतिः कहे ए सफली घडी., पे.वि. गा.७. पे.-५. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पाठक क्षमाकल्याण, मागु., पद्य, (पृ. २आ-आ), आदिः श्रीगवडीपुर मण्डण; अंतिः __ कल्याण सवाई थायै हो., पे.वि. गा.५. पे.६. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपविजय, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः पुरसादाणी पासजी थे; अंतिः देज्यो
जा"
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बारबारजी., पे.वि. गा.७. पे.-७. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवामण्डन, मु. राजरङ्ग, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३अ), आदिः आज हुं जाऊ रे तीरथ; अंतिः
तुम्हारी सुसेव रे., पे.वि. गा.३. पे.८. १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३अ), आदिः सील सुरङ्गी सुभान्त; अंति: गन्ध सदा __पद्मावती., पे.वि. गा.७. पे.९. जिनदत्तसूरि पद, मु. राजहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदि: अरे लाला श्रीजिनदत्त; अंतिः सुद्ध चरण
त्रिकाल रे., पे.वि. गा.९. पे.-१०. जिनदत्तसूरि पद, पाठक रुघपति, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदिः श्रीजिणदत्तसूरि; अंति: मनवञ्छित दाता
हो., पे.वि. गा.८. पे.-११. जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः दादा चिरञ्जीवो सेवक; अंतिः मनवञ्छित ____ फलज्यौ ., पे.वि. गा.११. पे.-१२. जिनकुशलसूरि स्तवन, गणि राजसमुद्र, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४अ), आदि: जी हो धन वेला धन्यसा; अंतिः
समर्या देज्यो साद., पे.वि. गा.९. पे.-१३. जिनकुशलसूरि स्तवन, गणि समयहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः जी हो श्रीजिनकुशल; अंतिः दिनदिन
करू प्रणाम., पे.वि. गा.१८. पे.-१४. जिनचन्द्रसूरि पद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः सगुरु जिणचन्द सोभाग; अंतिः
बिरूद साच बोलै..पे.वि. गा.६. पे.-१५. पार्श्वजिन स्तवन-अन्तरीक्ष , वा. विनयराज, मागु., पद्य, वि. १७७२, (पृ. ५अ-६अ), आदि: पर उपगारी परम
गुरु; अंतिः विनव्यो त्रिभुवनधणी., पे.वि. ढाळ-४, गा.३३. पे.-१६. जिनबिम्बस्थापन स्तवन, श्रा. लधो, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः श्रीजिनप्रतिमासु; अंति: युं चिर कालै
नन्दो., पे.वि. गा.२५. पे.-१७. त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदिः सदगुरु चरणकमल मन; अंतिः मुनि
वसतौ मुदा., पे.वि. गा.१८. पे.-१८. गोचरी ४२ दोष वर्जन सज्झाय, मु. रुघनाथ, मागु., पद्य, वि. १८७८, (पृ. ७आ-८आ), आदिः सासनपति
चोवीसमो; अंतिः अठारै अट्ठोत्तरै., पे.वि. गा.३६. पे.-१९. पार्श्वजिन स्तवन, मु. वसता, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः सेवकनी अरदास सूणीजै; अंतिः सफल करो
उलासो रे., पे.वि. गा.७. पे.२०. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः समेत शिखर गिरराय; अंतिः भवभव होज्यौ
सहाय., पे.वि. गा.६. पे.२१. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९आ), आदिः जात्रीडा भाई आबूजीनी; अंतिः आवै
रूपचन्द बोलै रे., पे.वि. गा.२१. प्रतिलेखक ने कृति की गा.४० गिनी है, दो-दो पदों की एक गाथा गिनने के
कारण. पे.-२२. आदिजिन स्तवन, पाठक सहजकीर्ति, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ), आदिः विमलगिरि सिखर; अंतिः
सहजकीरति इम कह.,पे.वि. गा.१७. पे..२३. स्थूलिभद्र सज्झाय, पाठक रुघपत, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः सखीरी पाडलीपुर नगर; अंतिः श्रीमुनि
पाया हो लाल.,पे.वि. गा.१७. पे..२४. साधुगुण सज्झाय, गणि मान, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११अ), आदिः कईयै मिलस्यै रे; अंति: गणिवर मानजी
गावैजी.,पे.वि. गा.१८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
"
पे. २५. श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि मागु पद्य (पृ. ११अ ११आ), आदि: कईये मिलस्यै रे; अंतिः जन्म तिण लाघो जी. पं.वि. मा.२१.
"
,
पे.-२६. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ११आ - ११आ), आदि: जी हो मिथीला नगरीनो;
अंतिः पामी जे भवपार., पे.वि. गा. ८.
.,
पे- २७. चन्द्रगुप्त चौढालिया, मु. गुणचन्द, मागु पद्य वि. १८५० (पृ. ११आ- १३अ) आदि विमल बोध उद्योतकर; अंति: लहीये लील विलास हो.. पे.वि. ढाळ-४.
पे. २८. पे नाम करकण्डुरिषि सिज्झाय, पृ. १३अ १३अ
करकण्डुऋषि-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि मागु पद्य, आदि चम्पानगरी अति भली अंति
प्रणम्या पाप पलाय रे., पे.वि. गा. ५.
पे. २९ पे नाम. दुमहरपि शिज्झाय, पृ. १३अ १३आ
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"
दूमराय- प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदि: नगर कपीलानो धणी रे; अंतिः नित प्रणमुं पाय रे., पे.वि. गा. ७.
पे.-३०. पे. नाम. नमिरिषी शिज्झाय, पृ. १३ - १३आ
नमीराय प्रत्येकबुद्ध सज्झाय उपा. समयसुन्दर गणि मागु., पद्य, आदि: नयर सुन्दरसण राय हो; अंति समयसुन्दर कहै साधुनै, पे. वि. गा. ६.
,
१७७
पे. ३१. पे. नाम निगई सिज्झाय, पृ. १३आ- १३आ
नीगइराय प्रत्येकबुद्ध राज्झाय उपा. समयसुन्दर गणि मागु, पद्य, आदि पुण्डरवरधनपुर राजीयो; अंतिः प्रत्येक बुद्ध हो.. पे. वि. गा.६.
पे - ३२. पे नाम, च्यार प्रतिकबुद्ध चोढालीयो, पृ. १३आ-१३आ
४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि मागु, पद्य, आदि चिहुं दीसथी च्यारे अंति: गाया पाटण पर सिद्ध., पे.वि. गा. ५.
.
1
.,
६७१६. त्रिलोकसुन्दरी चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. ढाळ - १२, (२५.५x११, १४४४४-४८). त्रैलोक्यसुन्दरी रास ऋ. सबलदास, मागु, पद्य वि. १८५२ आदि विहरमान वीसे नमुं अंतिः जिण घर लील विलासो रे.
६७१७. साधुवन्दना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र. वि. ढाळ - १३, (२५.५x११.५, १३×३१-३५). साधुवन्दना, मु. श्रीदेव, मागु, पथ, आदि: पञ्च भरत पञ्च एरचय अंतिः मुनि ते संधुण्या ६७१९. नन्दीसूत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३. जैदेना (२५.५४११.५, १६४४९-५६).
"
""
नन्दीसूत्र, आ. देववाचक प्रा. प+ग, आदि जयइ जगजीवजोणीवियाणओ अंतिः से तं परोक्खणाणं. ६७२१. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र. वि. २४स्तवन, ( २४.५x११.५, १३३०-३९).
स्तवनचौवीसी, श्रा. विनयचन्द्र कुमट, मागु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदिश्वर सामी हो; अंतिः महास्तुति पूरण करी. ६७२२. कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६६ - १ (५३) - ६५, जैदेना. प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. १२५० (२५४११, १०९३४),
"
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य (संपूर्ण) आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेड़ त्ति बेमि ६७२३. भुवनदीपक सह टीका व सुवृष्टि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, पे. २, जैदेना., ( २४४११, ९-१०X३४-३८). पे. १. पे नाम. भुवनदीपक सह टीका, पृ. १आ-२२अ
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि सं., पद्य, वि. १३५, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः
भुवनदीपक-टीका सं. गद्य आदि गर्भस्य क्षेममेतस्य अंतिः कन्यकोच्यते, ये. वि. मूल श्लो. १११. क्रमबद्ध टीका
7
नहीं है.
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पे. २. पे. नाम. सुवृष्टि विचार, पृ. २२आ-२२आ
ज्योतिष सं., मागु, पद्य, आदि: अंतिः. पे.वि. श्लो. २.
.
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६७२५. व्यवहारसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. व्यवहारसूत्र आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. व्यवहारसूत्र- टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:
,
६७२९.” पद सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी
३-४०२७-३१).
पे.- १. पे नाम. अध्यात्म पद सह टबार्थ,
पृ. १-२अ
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं, पद्य, आदि: नाथ निहारो आप अंतिः और नहीं तु समतासी. आध्यात्मिक पद-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रद्धानो चेतनथी; अंतिः अवधारो नाम एज छै., पे. वि. पे. २. पे नाम आध्यात्मिक पद सह टवार्थ, पृ. २४-३अ
मूल-गा. ३..
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"
१९वी मध्यम पृ. २९ जैदेना. प्र. वि. मूल १० उद्देशक, (२७.५x११.५, ८४४७-५१). गद्य, आदि जे मिक्सू मासियं अंतिः महापज्जवसाणे भवइ. जे०
"
जे कोइ भि० साधु अंतिः क्षय करवारूप फल हुइ.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
श्रेष्ठ, पृ. १४ पे १३ जैदेना, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८४११.५.
"
,
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, आदि: आतम अनुभव रस; अंतिः दीनौ आनन्दघन राज. आध्यात्मिक पद-टवार्थ माग गद्य, आदि आनन्दघन कहे आतम अंतिः सुमतेति शेष ४ लीनी पे.वि. मूल-गा. ४. पे-३. पे नाम, आध्यात्मिक पद सह टवार्थ पू. ३-४आ
..
""
आध्यात्मिक पद-जकडी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, आदिः राशि शशि तारा कला; अंतिः आनन्दघन प्रभु आस. आध्यात्मिक पद-टवार्थ प्राहिं, गद्य, आदि एनी अर्थासय आनन्दघन: अंतिः आस्या सम्पूर्ण करे. पे.वि. मूल-गा. ५. पे. -४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद सह टबार्थ, पृ. ४-५
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, आदि: पिया तुम निठुर भए; अंतिः कीजीये तुम हौ तैसे..
आध्यात्मिक पद-टवार्थ प्राहिं गद्य, आदि: सुमति श्रद्धा सखी अंतिः मुझने ही मिलावी लीजै, पे.वि. मूल-गा.३. पे. ५. पे नाम. आध्यात्मिक पद सह टवार्थ, पृ. ५-६ आ
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, आदि: पिया विनु सुद्धि; अंतिः ऐसे निठुर ह्वै जाहो.
आध्यात्मिक पद-टवार्थ प्राहिं, गय, आदि: सुमतिनी वाक्य अंतिः हवे ज्यां न होज्यो, पे. वि. मूल-गा. ६.
;
पे: ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद सह टवार्थ प्र. ६आ-७अ
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, आदि: अनुभव प्रीतम; अंतिः नहितर करो धनासी.
आध्यात्मिक पद-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: आत्मानै पुद्गल मै; अंतिः पिण बीजा घरना नथी., पे. वि. मूल-गा. ३. पे. ७. पे नाम. आध्यात्मिक पद सह टबार्थ,
पृ. ७अ-८अ
साधारणजिन पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं पद्य, आदि अब मेरे पति अंतिः मतङ्ग गज गञ्जन.
साधारणजिन पद-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: लाभानन्द कविराज अंतिः मदनो उतारवावाली छे, पे. वि. मूल-गा. ३. पे८. पे नाम. आध्यात्मिक पद सह टवार्थ, पृ. ८अ ९अ
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, आदिः साधु सङ्गति बिनु; अंतिः आनन्दघन महाराज री.
आध्यात्मिक पद-टवार्थ मागु., गद्य, आदि आनन्दघन मुनिराज अंतिः तुमथी ते तुमे आपज्यी, पे. वि. मूल-गा. ४.
पे ९. पे नाम आध्यात्मिक पद सह टवार्थ, पृ. ९-१०अ
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, आदि: सलौणे साहिब आवेंगे; अंतिः लीन्है आनन्दघन मांहि .. आध्यात्मिक पद-टवार्थ माग गद्य, आदि भाई विवेक आयासू अंतिः आनन्दघन रूप थई गया. पे.वि. मूल-गा. ४. पे. १०. पे नाम. आध्यात्मिक पद सह टबार्थ प्र. १०अ ११अ
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आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, आदिः माला पूछीयै आली खबर; अंतिः ल्याई आनन्दघन तान. आध्यात्मिक पद-टबार्थ, प्राहिं, गद्य, आदिः सुमतिनौ वाक्य; अंतिः तदाकार मिलै तइयै, पे.वि. मूल-गा. ४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
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पे. - ११. पे. नाम. आध्यात्मिक पद सह टबार्थ, पृ. ११अ - १२अ
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, आदिः छबीले लालन नरम; अंतिः वदै आनन्दघन मेद.. आध्यात्मिक पद-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: इण पद में श्रद्धा अंतिः कथा बात निरर्थक छै. पे. वि. मूल-गा.३. पे. १२. पे नाम, आध्यात्मिक पद सह टबार्थ प्र. १२-१३ अ
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, राज, पद्य, आदि छोरानै क्युं मारे अंतिः जनम जनम के सैण.
आध्यात्मिक पद-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: ऊपजती उपसम सम्यक्त्व अंतिः कविनुं आसये ते जाणे., पं.वि. मूलगा.३.
पे. १३. पे नाम, आध्यात्मिक पद सह टवार्थ, पृ. १३-१४
T
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, आदिः कन्त चतुर दिल जानी; अंतिः भविकजन प्राणी हो.
आध्यात्मिक पद-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चतुर भर्ता म्हारौ; अंतिः ए पदना रहस्यनै जाणै, पे.वि. मूल-गा. ५. ६७३०. साधुप्रतिक्रमणसूत्र की अवचूरि, पूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६-१ (१) = ५, जैदेना., (२७११, १६४५१-५२). पगामसज्झायसूत्र लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि:: अंतिः श्रेय एवेति मन्यते. ६७३४. नन्दीषेणमुनि चौपाई व सज्झाय, संपूर्ण वि. १८७३ श्रेष्ठ, पृ. १० पे. २. जैवेना. (२६४११, १४४३९-४६).
"
पे.- १. नन्दिषेणमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मागु., पद्य, वि. १८०३, (पृ. १अ - १०आ), आदि: वर्त्तमान चौवीसने; अंतिः नवनिध मङ्गल मालो रे., पे.वि. ढाळ - १५.
पे. २. नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. लालविजय, मागु., पद्य, (पृ. १०आ - १०आ), आदिः वैरागे संयम लीयो हो; अंतिः सोभाग पहुती जगीस., पे.वि. गा.१३.
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कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः
कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र - व्याख्यान+ कथा' मागु, गद्य, आदि:-: अंति:
"
६७३५. खन्धकमुनि चौढालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ढाल - ४ की गा.८ तक
लिखा है., (२५.५४११.५, १२४३३-३५).
खन्धकमुनि चौढालिया, ऋ. जैमल, राज, पद्य, वि. १८११, आदिः नमुं वीर सासनधणीजी; अंति:
६७४४. स्वरोदय शास्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पृ. २२-११ (१ से ९१४ से १५) ११, जैदेना, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.
गाथा १४६ से ३८८ तक है. (२५४११.५, ११-१३x२६-२९).
स्वरोदय शास्त्र, मु. चिदानन्द, मागु., पद्य, वि. १९०७, आदि:-; अंति:
६७४५. नववाडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. खीचुंदग्राम, ले. मु. दलीचन्द ( गुरु मु. पुनमचन्द) प्र.ले.पु. विस्तृत प्र. वि. गा. ९७ ढाळ- ११ (२५४११, ११-१२x२४-३०),
"
नववाडी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः श्रीनेमीसर चरणयुग; अंतिः हो जुगति नववाडि. ६७४८.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११३ - ५ ( १ से ५) १०८, जैदेना.. प्र.वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ कुछ पत्र, पृ. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. व्याख्यान १ से ८ तक., (२५४११.५, १-५४२८-३४).
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(+)
६७४९. कल्पसूत्र, संपूर्ण वि. १९३० श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैवेना. प्र. वि. ग्रं. १२१६ ९ - व्याख्यान, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें,
(२५४११.५, ११४२८-३२).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि
६७५१. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा.५१. पत्रक्रमांक १० से प्रारंभ
किया है. (२६४११, ४४३०-३१).
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१८०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भुवन तीने त्रिभुवनइं; अंतिः समुद्रथकी. ६७५२. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह व्याख्या व टीका का अर्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, जैदेना., ले.- आ.
भागचन्द्र, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., संशोधित, पू.वि. प्रारंभ की ४ गाथाएँ नहीं हैं., (२६.५४११, १५४४१-४४). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः विगलितमलनिचयाः.
कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका का अर्थ, राज., गद्य, आदि:-; अंतिः समूह जिणां रे. ६७५४. ज्योतिषसार, दिनरात्रि विवरण, शीध्रबोध, विवाह पद्धति व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. ५, जैदेना.,
ले.स्थल. तोलीयासर, ले.- मु. हीरा, (२६४११, १५४४२-५४). पे.१.पे. नाम. नारचन्द्र ज्योतिष सह यन्त्रकोद्धार टिप्पण-संवत्सरी प्रकरण, पृ. १अ-१६अ, प्रतिपूर्ण
ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंति:___ज्योतिषसार-यन्त्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंतिःपे.-२.पे. नाम. दिन रातरो विचार, पृ. १६अ-१६अ, संपूर्ण ____ ज्योतिष*, सं.,मागु., पद्य, आदिः#; अंतिः#. पे..३.पे. नाम. शीघ्रबोध-विवाह प्रकरण, पृ. १६आ-२०आ, प्रतिपूर्ण
शीघ्रबोध, काशीनाथ भट्ट, सं., पद्य, आदिः भासयन्तं जगद्भासा; अंति:पे.-४. विवाह पद्धति, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२१आ, संपूर्ण), आदिः श्रीसद्गुरु वाणी; अंतिः जोतिस तणो ____ मर्म., पे.वि. गा.३७.
पे.५. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२१आ, संपूर्ण), आदि: #; अंति: #. ६७५६. गुणरत्नाकर (प्रस्ताविक श्लोक काव्यादि सङ्ग्रह), संपूर्ण, वि. १८११, मध्यम, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. सांडवानगर,
ले.- पं. रघुपति गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.७१५, ग्रं. २५५१, (२५.५४११, १५-१८४५२-५८).
सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह* , सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः दानं सुपात्रे; अंतिः पिण माहेमां लेरा. ६७५९. कर्मविपाक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले.स्थल. बिकानेर, प्र.वि. मूल-गा.६०., (२६४११,
१७४४३-५०). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः (१) श्रेयोमार्गस्य (२) सकल त्रिभुवन जनमनने;
अंतिः बालावबोधिनी. ६७६६. हंसराजवछराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. ३३+१(२९)=३४, जैदेना., ले.स्थल. घङसीसर, ले.- मु. दयाचन्द
शिष्य (गुरु पं. दयाचन्द, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. गा.९०५, खण्ड-४ ढाळ-४८; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ९००,
(२५४१०.५, १४४३२-४१). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदिसर आदे; अंतिः हंस अनै वच्छराज. ६७६७. जसविलास पद, स्तवन, जकडी, पद, गीत, व सज्झाय सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, पे. ७५, जैदेना.,
(२५.५४११.५, १०४३२-३८). पे.१. औपदेशिक पद-ज्ञानदृष्टि, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदि: चेतन ज्ञान की दृष्टि;
अंतिः रस सज्जन हृदय पखालो., पे.वि. गा.६. पे.२. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः कन्त विण कहो कुण; अंतिः रमे
रङ्ग अनुसारी., पे.वि. गा.६.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१८१
पे.-३. आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः चेतन जोतुं ज्ञान; अंतिः ___ अन्तरदृष्टि प्रकासि., पे.वि. गा.८. पे.४. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः चेतन अब मोहे दरशन; अंतिः
सेवक सुजस वखाणे., पे.वि. गा.६. पे.५. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः सजन राख तरी भली विनु; अंतिः
सुख सज रङ्गरली., पे.वि. गा.५. पे.६. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदि: अजब गति चिदानन्द घन; अंतिः
उनके समरन की., पे.वि. गा.५. पे.-७. साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः प्रभु मेरे अइसी आय; अंतिः
दीजे अपने दासभनी.,पे.वि. गा.४. पे:८. साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-४अ), आदिः प्रभु तेरो गुण गान; अंतिः तास
जस प्रभु छायो हे.,पे.वि. गा.४. पे.९. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४अ-५अ), आदिः चेतन मोह को सङ्ग; अंतिः एक
भावको होय., पे.वि. गा.१६. पे:१०. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-पआ), आदिः अवधु सोजोगी गुरू; अंतिः आनन्दघन पद
पावे., पे.वि. गा.६. पे.-११. औपदेशिक पद, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः जोगी एसा होय फीरु; अंतिः सुध मारग
देखायो., पे.वि. गा.५. पे.-१२. औपदेशिक ध्रुव पद, मु. विनय, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः साधो भाई सोहे जे; अंति: फिर संसार न
आया., पे.वि. गा.४. पे.-१३. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः साधु भाई वैराग बेटा; अंतिः घटघट रह्यो
समाय., पे.वि. गा.५. पे.-१४. औपदेशिक ध्रुव पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः ए परम ब्रह्म; अंतिः सुजस
प्रभु चित आयो., पे.वि. गा.४. पे.१५. आध्यात्मिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७अ-७अ), आदिः पवन को करे तोल रवि; अंतिः बात सोहि मेरो गोर रे.,
पे.वि. गा.२. पे.-१६. साधारणजिन पद, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-८अ), आदिः सुणि जैन त्रिभु वेद; अंतिः
सकलचन्द कृपा करो., पे.वि. गा.८. पे.-१७. साधारणजिन पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८अ), आदिः जिन आपकुं जोया नहि; अंतिः हु वातो क्या हुवा., पे.वि.
गा.६. पे.-१८. उपशम सज्झाय, मु. हेमविजय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदिः जबलग उपशम नाहि रति; अंतिः हेम प्रभु
सुखसन्तति., पे.वि. गा.७. पे.-१९. आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ-९आ), आदि: जब लगे समता क्षणु; अंतिः
वाधे सुजस प्रेम., पे.वि. गा.१२. पे.-२०. आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदिः तो विना ओर नहि जाचे; अंतिः ___ रसमां माचू प्रभुजी., पे.वि. गा.३. पे.-२१. महावीरजिन स्तवन-राजनगरमण्डन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-११अ), आदिः समरीअ
सरसती वरसती; अंतिः पाय सेवक ईम भणे रे., पे.वि. गा.११.
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१८२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे.२२. औपदेशिक पद , उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११अ-११आ), आदिः परम प्रभु सब जन; अंतिः
सेवक जन गुण गावे., पे.वि. गा.६. पे:२३. औपदेशिक जकडी-जीवकाया, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ), आदिः काया कामनी वेलाल; अंतिः युं
अभेदे तुज मिलुं..पे.वि. गा.५. पे:२४. औपदेशिक पद, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ-१२अ), आदिः कहा करू मन्दिर; अंतिः करुया दुनिया मे __ फेरा., पे.वि. गा.५. पे.२५. आध्यात्मिक पद, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ), आदिः किसके बे चेले किसके; अंतिः विराजे सुख
भरपूर.,पे.वि. गा.७. पे..२६. औपदेशिक पद, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ), आदिः घोरा जूठा हे रे तु; अंतिः सिखाउ ज्यु
भवपारा., पे.वि. गा.५. पे.२७. औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ), आदिः पांचे घोरो रथ एक; अंतिः विनय जनुं
पाया.,पे.वि. गा.५. पे.२८. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ), आदिः प्रभु तेरे वचन; अंतिः तुहि
तुहि जिनमान.,पे.वि. गा.५. पे.२९. औपदेशिक सज्झाय-कुमार्गत्याग, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ), आदिः चेतन राह
चले उलटे; अंतिः तत्त्वज्ञान प्रगटे., पे.वि. गा.६. पे.-३०. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ-१४आ), आदिः चेतन ममता छारी परी; अंतिः चिदानन्द
घनपद वीचरी., पे.वि. गा.६. पे.-३१. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४आ-१४आ), आदिः या गति कोन हे सखि;
अंतिः प्रणमे जस याजोरी., पे.वि. गा.३. पे.-३२. शान्तिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४आ-१५अ), आदिः हम मगन भए प्रभु; अंतिः
जीत लीओ मेदान मे., पे.वि. गा.६. पे.-३३. नेमराजिमती पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १५अ-१५अ), आदिः देखत हि चित चोर लीओ;
अंतिः सिवसुख अमृत पीओ., पे.वि. गा.३. पे.-३४. पार्श्वजिन स्तवन-अन्तरिक्ष, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१५आ), आदि: सलुने प्रभु भेटे;
अंतिः कहे भक्ति में भेटे.,पे.वि. गा.३. पे.-३५. साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १५आ-१५आ), आदि: जिन तेरे चरण सरण;
अंतिः ज्युं भवदुख न लहुं., पे.वि. गा.३. पे.-३६. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ), आदिः अजब बनी हे जोरी; अंतिः
छाहि रति अनुसरी है., पे.वि. गा.४. पे.-३७. कर्मयुद्ध सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ), आदिः धर्म के विलास वास; अंतिः
ताकुं हम पाय लगे है., पे.वि. गा.५. पे.-३८. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, वि. १८वी, (पृ. १६आ-१७अ), आदिः ऋषभदेव
हितकारी; अंतिः तुम हो परम उपकारी., पे.वि. गा.६. पे.-३९. गौतमस्वामी पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७अ-१७अ), आदिः गौतम गणधर नमीये हो;
अंतिः नहि हम अमीये हो., पे.वि. गा.४. पे.-४०. पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १७अ-१७आ), आदिः सुखदाई रे सुखदाई; अंतिः
घर अंगन नवनिधि आई., पे.वि. गा.४.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१८३
पे.-४१. आदिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७आ-१७आ), आदिः तुम्हारे सिर राजत; अंतिः ए ___ हमहि अति उलटा., पे.वि. गा.३. पे.४२. साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७आ-१८अ), आदिः अब में साचो साहिब; अंतिः
सो जस लीला पावे., पे.वि. गा.८. पे:४३. नेमिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १८अ-१८अ), आदिः सयन की नयन की वयन;
अंतिः समो रङ्ग रमो रतीयां., पे.वि. गा.२. पे.-४४. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ), आदिः साहिब ध्याया मन; __अंति: ज्योति मिलाया.,पे.वि. गा.७. पे:४५. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-१९अ), आदिः प्रभु बल देखी; अंतिः हुं
न परि हुं भोले.,पे.वि. गा.४. पे.-४६. महावीरजिन स्तवन , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९अ), आदिः प्रभु धरी पीठि वेताल;
अंतिः तुंही वीर शिव साधे., पे.वि. गा.४. पे.-४७. पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १९अ-१९आ), आदिः अब मोही ऐसी;
अंतिः सुख जस लील धणी., पे.वि. गा.६. पे:४८. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १९आ-२०अ), आदिः विमलाचल नित वन्दीये;
अंतिः तेह नर चीर नंदे., पे.वि. गा.५. पे.-४९. नेमिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २०अ-२०अ), आदिः देखो भाई अजब रूप; अंतिः __ साहिब नेमजी त्रीभुवन., पे.वि. गा.२. पे.-५०. साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. २०अ-२०अ), आदिः वाला रूपशाला गले; अंतिः
धारा वज्र दोरिसी.,पे.वि. गा.१. पे.-५१. आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २०अ-२०आ), आदिः जब लगे आवे नही मन;
अंतिः विलासी प्रगटे आतमराम., पे.वि. गा.६. पे.-५२. सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२१अ), आदिः चतुर नर साय नायक;
अंतिः ज्ञानवन्त के पासे., पे.वि. गा.८. पे.-५३. आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २१अ-२१आ), आदिः सबल या छाक मोह मदिरा;
अंतिः उनकी में बलिहारी., पे.वि. गा.७. पे.-५४. औपदेशिक पद, मु. विनयविवेक, प्राहिं., पद्य, (पृ. २१आ-२२अ), आदिः मगन भयो माह मोह मे; अंतिः सिद्ध
सदा सुख सोहमे., पे.वि. गा.४. पे.-५५. औपदेशिक पद, उपा. समयसुन्दर गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २२अ-२२अ), आदिः मन चेला पद साध की; अंतिः
एक मुगति सम्पदं., पे.वि. गा.१. पे.-५६. औपदेशिक पद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. २२अ-२२अ), आदिः एक मनसुद्धि विण कोउ; अंतिः
ध्यान निरञ्जन ध्याइए.,पे.वि. गा.३. पे.-५७. साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २२अ-२२आ), आदिः जीउ लागी रह्यो पर; अंतिः
वेधक रस धाउ मे., पे.वि. गा.५. पे.-५८. साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २२आ-२३अ), आदिः मेरे प्रभुस्यु; अंतिः जस कहे
इसु हुं वडभाग., पे.वि. गा.५. पे:५९. शीतलजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २३अ-२३अ), आदिः शीतलजिन मोहे; अंतिः
तुम्ह नामे भव पारा.,पे.वि. गा.६.
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१८४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-६०. लाभलोभसन्तोष जकडी, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. २३अ-२३आ), आदिः अजब तमासा एक भारा; अंतिः __ अधम सेति न्यारा., पे.वि. गा.५. पे.६१. साधारणजिन पद, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. २३आ-२४अ), आदि: जागो प्यारे भयो; अंतिः करी विनवू पीउ
चेत.,पे.वि. गा.५. पे.-६२. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २४अ-२४आ), आदिः परम गुरु जैन कहो; अंतिः
जैनदशा जस उची., पे.वि. गा.१०. पे.६३. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २४आ-२५अ), आदिः साहिब ध्याया मन; अंतिः
ज्योति मिलाया., पे.वि. गा.७. पे.६४. पार्श्वजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. २५अ-२५अ), आदिः वामानन्दन जगदानन्दन; अंतिः
तुम हो मेरे आतमराम., पे.वि. गा.३. पे.६५. सम्भवजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २५अ-२५आ), आदिः सम्भवजिन सब नय; अंतिः
सुरतरु होय फल्यो हो., पे.वि. गा.४. पे.६६. पद्मप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २५आ-२६अ), आदिः घडी घडी साम्भले;
अंतिः कुन चाखे लूना., पे.वि. गा.५. पे.-६७. चन्द्रप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. २६अ-२६अ), आदिः श्रीचन्द्रप्रभु जिन; अंतिः __टालि मुज भवफन्द रे., पे.वि. गा.५. पे.६८. आध्यात्मिक पद, उपा. मानविजय, मागु., पद्य, (पृ. २६अ-२७अ), आदिः अलख अगोचर अकलरूप; अंति: नाठा
सघला दुख., पे.वि. गा.५. पे.६९. दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. २७अ-२७आ), आदिः दृष्टि रागइ
विरागीइ; अंतिः मन धरज्यो दीठा., पे.वि. गा.११. पे.-७०. औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २८अ-२८अ), आदि: चिदानन्द अविनाशि हो;
अंतिः ब्रह्म अभ्यासी हो., पे.वि. गा.६. पे.७१. पार्श्वजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. २८अ-२८आ), आदिः चउ कषाय पाताल कलश;
अंतिः कर तहे निमङ्ग उमङ्ग., पे.वि. गा.२. पे.-७२. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २८आ-२८आ), आदिः मन की तहु न लाहे; अंतिः
ब्रह्म के तेजे रे., पे.वि. गा.३. पे.-७३. सुविधिजिन स्तवन , उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २८आ-२८आ), आदिः मे कीनो नही तुम बिन;
अंतिः तामे दीजे भगत पराग., पे.वि. गा.५. पे.-७४. औपदेशिक सज्झाय, गणि मणीचन्द, मागु., पद्य, (पृ. २९अ-२९अ), आदिः कोइ कीनहीकोउ काज न; अंतिः
दुखा देखने प्रीछे रे., पे.वि. गा.६. पे.-७५. सुपार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २९आ-२९आ), आदिः ऐसे स्वामी सुपास; अंतिः
दिओ समता रस पारणा., पे.वि. गा.५. ६७६८. खरतरगच्छीय साधुप्रतिक्रमण सूत्रसङ्ग्रह, सप्तस्मरण व लघुशान्ति, पूर्ण, वि. १७३५, श्रेष्ठ, पृ. २६-२(१ से २)=२४,
पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुरनगर, ले.- वा. विशाल (गुरु उपा. उदयरत्न', खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत,
(२५४११, ११४२९-३८). पे.-१.पे. नाम. खरतरगच्छीय साधु प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. ३अ-१३आ, संपूर्ण साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः#; अंतिः जिणे चउव्वीसं., पे.वि. अंत में पोरसि,
पउणपोरसी, साढपोरसि, पुरिमढ़ की गाथाएँ लिखी है.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
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पे २. पे नाम, जयतिहुअण स्तवन, पृ. १४अ-१६आ, संपूर्ण
जयतिहुअण स्तोत्र आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य आदि जयतिहुयणवर कप्परुक्ख अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय..
"
"
"
पे.वि. गा. ३०.
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"
पे. ३. सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय. मु. मित्र मित्र कर्तृक, प्रा. पथ (पृ. १६आ-२५आ, संपूर्ण), आदि अजिअं जिअ पद्य, सव्यभयं अंतिः भवे पास जिणचन्द, पे.वि. ७ स्मरण उवसग्गहरं स्तोत्र प्रथम गाथामात्र लिखा है.
पे. ४. पे नाम, लघुशान्ति स्तव, पृ. २५-२६आ, संपूर्ण
लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदिः शान्ति शान्ति; अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च., पे.वि. श्लो. १७. ६७६९. रत्नसार चौपाई, अपूर्ण, वि. १६७९, मध्यम, पृ. १२ - १ ( १ ) = ११, जैदेना., ले. स्थल. माहरुठ, ले.- मु. झाञ्झण (गुरु ऋ. लीलाजी स्थविर, गुजरातीलुङ्कागच्) प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. गा. २९१ पू.वि. गा.२१ तक नहीं है. (२६.५५११, १४१५X४०-४३).
वि. १५८२, आदि अति: आणी बुद्धि प्रकाश रे. ५, जैदेना., प्र. वि. गा. १२१, ( २६ ११, १३x४६).
रत्नसारकुमार रास. भु. सहजसुन्दर, मागु, पद्य ६७७०. गौतमपृच्छा चोपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंतिः जे जिनवचने वसि ६७७१.” चारप्रत्येकबुद्ध रास, संपूर्ण, वि. १८०२, श्रेष्ठ, पृ. २६ + १ (१०) = २७, जैदेना., ले. स्थल. कुंभाणा, ले.- मु. ज्ञानविलास ( गुरु पं. ज्ञानविजय, खरतरगच्छ ) प्र.ले.पु. विस्तृत प्र. वि. खण्ड-४, ढाल ४५ प्र. पु. मूल ग्रं. १५०० पंचपाठ (२६×१०.५, १५X४०-४६).
४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु पद्य वि. १६६५, आदि श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ अंतिः आनंद लीलविलास.
-,
६७७२. उपसर्ग सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ५. (२५४१०.५, १५X३१-३५).
उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः उवसग्गहरं पासं पासं; अंतिः भवे पास जिणचन्द. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि: अत्र प्रथम गाथानइ अंतिः आणन्दकारकपणाथकी.
६७७३. जयतिहुअण स्तोत्र, सप्तस्मरण व लघुशान्ति अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-३ (४ से ६) २. पे ३ जैदेना.. पू.वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं., (२६×१०.५, १३×३२-३५).
१८५
पे.- १. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ - ३आ-), आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति:-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १ से २८ तक है.
पे. २. सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. पद्य (प्र. ७अ - १२ आ) आदि अंतिः भवे पास जिणचन्द, पे. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रथम स्मरण अजितशांति गा. ३६ अपूर्ण से है.
पे:-३. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. १२आ- १२आ-), आदिः शान्ति शान्ति; अंतिः-, पे.वि. मात्र प्रथम पत्र है. श्लो. अपूर्ण तक है.
६७७५. श्लोक सङ्ग्रह शान्तिजिन चरित्रे, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १० -२ (१ से २ ) = ८, जैदेना., प्र. वि. श्लो. १९९, (२६×११,
१३४३२-३८).
औपदेशिक श्लोक सग्रह शान्तिचरित्रे, सं., पद्य, (अपूर्ण), आदि:-: अंति: प्रकरोतु शान्ति.
६७७७. पोषदशमी कथा व व्याख्यान, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पे २ जैदेना, (२५४११, १३४३८-४१).
पे.-१. पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेन्द्रसागर, सं., पद्य, (पृ. १अ - ३आ), आदिः ध्यात्वा वामेयमर्हन्; अंतिः शीघ्रं रचयाञ्चकार, पे.वि. श्लो. ७५.
(+)
पे. २. पौषदशमीपर्व कथा सं. गद्य (५. ३आ-५आ) आदि अभिनवमङ्गलमालाकरणं अंतिः आनन्दमाला भवतु.
"
६७७८. अञ्जनासती रास अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, जैदेना, पू.वि., अन्त के पत्र नहीं हैं. गा. १ से १९३ तक है..
·
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१८६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२५.५४११, १५४४०).
अंजनासुन्दरी रास, मागु., पद्य, आदिः पणमिय थम्भन पासजी; अंति:६७८०." श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ (खरतरगच्छीय), संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, जैदेना., प्र.वि. संशोधित,
(२५.५४११, ५४२८-३२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदि: णमो अरिहन्ताणं; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मागु., गद्य, आदिः गुरुनइ अभावइ नमस्कार; अंतिः
(१)विमलकीर्तिभिः (२)तीर्थङ्कर देव प्रतइ. ६७८१. स्तोत्र सङ्ग्रह व नवतत्त्व, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-२५(१ से २५)=१२, पे. ५, जैदेना.. पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
(२५४११, ११४४०-४४). पे.१.पे. नाम. आदिनाथ स्तवनामय भक्तामर स्तोत्र, पृ. २६-२८आ, संपूर्ण भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि.
श्लो.४४. पे:२. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, (पृ. २८आ-३१आ, संपूर्ण), आदिः
कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४. पे..३. पे. नाम. समसंस्कृतमय वीर स्तवन, पृ. ३१आ-३३आ, संपूर्ण महावीरजिन स्तव, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंतिः दृष्टिं दयालो मयि.,
पे.वि. श्लो.३०. पे..४.पे. नाम. महावीरदेव चरित्र, पृ. ३३आ-३६अ, संपूर्ण दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः दुरिअरयसमीरं मोह; अंतिः सया पायप्पणामो तुह.,
पे.वि. गा.४४. पे.५. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ३६अ-३७आ-, अपूर्ण), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं. गाथा १ से ४३ तक है. ६७८२." दानाधिकारे धरमसेन सम्बन्ध चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. पडसीसर, ले.- पं.
दयाचन्द्र, गच्छा.- गच्छाधिपति जिनहर्षसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. ढाळ-३६, संशोधित, (२५.५४१०.५, १६४३६-४३).
धर्मसेन चौपाई, मु. यशोलाभ, मागु., पद्य, वि. १७४०, आदिः चरणकमल श्रीपासना; अंतिः मङ्गलमाला जयकारी वे. ६७८३. दिनकृत्य प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-२(१ से २)=१३, जैदेना., प्र.वि. गा.३४४; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ४४०. पू.वि.
__ गा.३४ अपूर्ण से है., (२६x१०.५, ११४४१-४५).
श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः मिच्छामिह दुक्कडन्ति. ६७८५. मङ्गलिकमालाविस्तार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., (२५.५४११, १४४४०-४५).
__ मंगलिकमाला विस्तार, मागु., पद्य, आदिः (१) अर्हन्तो भगवन्त (२) अर्हन्त भगवन्त असरण; अंतिः माला विस्तरन्तु. ६७८७." कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., टिप्पण युक्त विशेष
पाठ-कुछ पत्र, (२५४११.५, ४४३८-४०). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते.
कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः कल्याण क० मङ्गलीक; अंतिः प्रपद्यन्ते क० पामइ. ६७८९." नयपालपुण्यपाल कथा, संपूर्ण, वि. १६६६, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. उजेणी, प्र.वि. संशोधित, दशा वि.
विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६.५४११, १२४३१-३५). नयपालपुण्यपाल कथा, सं., गद्य, आदिः (१) जंपइ सुपत्तदाणं (२) अत्रैव भरते उसभपुरं; अंतिः (१)अहभवे परभवे तु ह्यः
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१८७ (२)गृहीत्वा सिद्धिं गतः. ६७९०. अनुभववाणी सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. , (२६४११.५, १८४४६
५०).
अनुभववाणी सङ्ग्रह, मागु., पद्य, आदिः गुरु को अङ्ग इन्द; अंति:६७९१. उपदेशमाला की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-७(१ से २.५ से ६,८,१६ से १७)=१४, जैदेना., प्र.वि. मूलपाठ
प्रतीकमात्र है.,पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. गा.३९ से ४४१ अपूर्ण तक है., (२६.५४११.५, १९४५२-५७).
उपदेशमाला-टीका', सं., गद्य, आदि:-; अंतिः६७९२. कल्पसूत्र-साधुसमाचारी सह कल्पलताटीका, प्रतिअपूर्ण, वि. १७६३, मध्यम, पृ. ३०-२१(१ से २१)=९, जैदेना., ले.स्थल.
कृष्णवट, ले.- गणि जयविजय, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२५.५४११, १५४४०-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि.
कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि:-; अंतिः समयादिमसुन्दराः. ६७९४. नेमनाथ चन्द राउला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(४)=५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच व अंत के पत्र
नहीं हैं. गा.६३ तक है., (२६४११, १३४३४).
नेमिजिन स्तवन, मागु., पद्य, आदिः सरसिति भगवति मनि; अंति:६७९५. प्रतिमापूजासिद्धि, त्रुटक, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-२०(१ से १४,१६,१८ से १९,२१ से २३)=६, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच
के पत्र हैं., (२६.५४११, १०x४३). जिनप्रतिमापूजा सिद्धि, प्रा.,मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंति:६७९६.” सङ्ग्रहणीसूत्र, त्रुटक, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२-३२(१ से १९,२२ से २३,२६ से ३३,३६,३९,४१)+१(४०)=११, जैदेना.,
प्र.वि. गा.३३७, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२५x१०.५, ९४३५).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि:-; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ६७९९.' ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४४-३१(७ से २६,३० से ३१,३५ से ४३)=१३, जैदेना.,प्र.वि.
संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र हैं., (२६४११, १३४४४-४६).
ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंति:६८००." क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से २,४)=५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.
गाथा ४३ से २५४ तक है., (२६४११.५, १६x४९).
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि:-; अंतिः६८०१." योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-३(१ से २,१२)=१४, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. बीच
बीच के पत्र हैं. प्रकाश १ गाथा ३५ से प्रकाश ४ गाथा ६१ तक है., (२६.५४११, १३४३५).
योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंति:६८०२. सुभाषितनाम सङ्ग्रह व जिननामयुक्त वैदिकग्रन्थसूचि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, पे. २, जैदेना.,
(२६.५४१०.५, १३४४१-४५). पे.१. औपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. -२अ-९आ, अपूर्ण), आदि:-; अंति: मेघनादस्य नालिका.,पे.वि. __श्लो.२६९. प्रथम पत्र नही है. गाथा १ से ३४ तक नहीं है. पे..२. वैदिकग्रन्थों में जिननाम वर्णन, सं., गद्य, (पृ. ९आ-९आ, संपूर्ण), आदिः ब्रह्मपुराण भोरुह; अंतिः ऋजुवेदे २४
जिननाम छे. ६८०३. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, (२५.५४१०.५, २-७४२४
२७).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पगामसज्झायसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि (१) करेमि भन्ते० चत्तारि अंति: वन्दामि जिणे चउवीस, पगामराज्झायसूत्र - बालावबोध, मागु, गद्य, आदि नमो अरिहन्ताणं क० अंतिः तीर्थड़कर वान्दउ ६८०४. कान्नडकठियारा रास अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैवेना. पु.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बाल-८ दूहा - १ तक है..
(२६x१०.५, १३४३९).
कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मागु पद्य वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा अंति:
६८०५. गौतमपृच्छा सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. तक हैं., (२४×११, १५-१६४४१-४४). गौतमपृच्छा, प्रा. पथ, आदि:-: अंति:
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१३-५ (१ से ५ )-८, जैदेना. पु. वि. बीच के पत्र हैं. गा. १८ से २७
गौतमपृच्छा- टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं. गद्य वि. १७३८, आदि:- अंति:
"
६८०६. कथा व निह्नव वर्णनादि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पे. ७, जैदेना., प्र. वि. पंचपाठ, (२७४११, १५४३६-३७).
पे.-१. १२ व्रत कथानक, मागु., गद्य, (पृ. १अ - ४आ), आदिः समकित सूधउं पालता; अंतिः पुण सुपात्र दान देवु.. पे. २. ४ गारव कथानक सङ्ग्रह, मागु, गद्य, (प्र. ४-५ अ) आदि गारवेसु गारव त्रिणि अंतिः साता गारव न
करवउ.
P
पे. ३. जहाविसंकुट्ठ कथा, मागु, गद्य (पृ. ५-५आ) आदि जहाविस कुठ क० अत्र अंतिः कर्म हणइ पहरां करइ. पे. ४. ७ निनव वर्णन, मागु, गद्य (प्र. ५आ-६आ) आदि क्षित्रीकुण्डपुर अंतिः कांइ शुद्ध न थईए. पे.-५. आगमिक ग्रन्थकर्ता के नाम, सं., गद्य, (पृ. ६आ-७अ ), आदि: अङ्गानि सुधर्मस्वामि; अंतिः श्रुतमङ्गबाह्यम्. पे ६. पौषधदोष विचार, मागु, गद्य (पृ. ७अ-७अ) आदि पोसह ए श्रावकनि पोसा अंतिः फलनी प्राप्ति हुई. पे. ७. सामायिक के ३२ दोष, प्रा. मागु
,
गद्य (पृ. ७आ-७आ) आदि हवि सामायक चउवीसथउ: अंति: गणधर
वचनात्.
"
६८०८. चारप्रत्येकबुद्ध रास अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा. १-२४८ तक है. खंड ४ अधूरा है., (२५x११, १३-१६×५०).
४ प्रत्येकबुद्ध रास मागु., पद्य, आदि जिण चुवीसह पय कमल अंति:
,
६८०९. धर्मबुद्धिमन्त्री पापबुद्धिराजा रास अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१, जैदेना, पू. वि. अन्त के पात्र नहीं हैं. ३७ ढाल की ८ गाथा तक है., (२५.५४११, १३x४२-४४).
पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री रास, मु. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १७४२, आदिः प्रथम जिणेसर परगडो; अंति:
६८११. अरिहन्त्रक चौपाई, चित्तसम्भूति सन्धि व उपदेश पद, अपूर्ण, वि. १७२१, मध्यम, पृ. ९-४ (१ से ४) = ५. पे. ३. जैदेना.,
प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५.५११, १५X३७).
पे. १. अरणिकमुनि चौपाई, मु. नयप्रमोद, मागु., पद्य, वि. १७१३, (पृ. ५अ-७आ, अपूर्ण), आदि : -; अंतिः कहतां कोडि कल्याण., पे.वि. ढाल - ४. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
पे.-२. चित्रसम्भूति सन्धि, मु. नयप्रमोद, मागु., पद्य, वि. १७१९, (पृ. ७आ- ९आ, संपूर्ण), आदिः श्रीवीतराग गुण वरवुं; अंतिः नवलई हो मुनिवर माहरउ. पे.वि. गा.३८.
पे. ३. औपदेशिक पद, मु. दिलहर्ष, मागु., पद्य, वि. १८३२, (पृ. ९आ - ९आ, संपूर्ण), आदि: मनधर सारद मातजी वली; अंतिः कामडानो कामो रे लाला. पे.वि. गा. ९. प्रत पूर्णता पश्चात् लिखी गई कृति.
६८१२. प्रदेशीराजा रास, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैवेना. पु.वि. अन्तिम पत्र नहीं है. ढाल २ गा. २ तक है., (२५४११,
१७४३४-३७).
प्रदेशीराजा रास, ऋ. जयमल्ल, मागु., पद्य, (अपूर्ण), आदि: रायप्रसेणी सूत्रमें; अंति:
६८१३. कर्मग्रन्थ-५ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३९ - १२९ (१ से १२९ ) = १०, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१८९ कर्मग्रंथ-५ गाथा ५४ से ६६ तक हैं., (२५.५४१०.५, १५४४६-४७). शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:
शतक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:६८१४." षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि.
प्रारंभ के पत्र हैं. वंदित्तु सूत्र गा.३७ तक है, (२५४१०.५, ५४४१-४२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति:
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमो० नमस्कार अरि०; अंति:६८१५.” सम्बोधसत्तरी व श्लोक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ८-१(१)=७, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
___पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. प्रथम पत्र (गाथा १ से१०) नहीं है., (२७४११, ५४३३-३७). पे.-१. पे. नाम. सम्बोधसत्तरी सह टबार्थ, प्र. -२अ-८आ, अपूर्ण
सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः श्रीजयशेखरसूरिरिति., पे.वि. मूल-गा.७३. प्रथम पत्र नही है.
गा.१० अपूर्ण से है. पे.२.पे. नाम. जैन संस्कृत गाथा सह टबार्थ, पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण
जैन गाथा *, सं.,प्रा., पद्य, आदिः#; अंतिः#.
जैन गाथा -टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. मूल-श्लो.१. ६८१८. मृगावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-८(१ से ५.७ से ९)=८, जैदेना.. पू.वि. बीच बीच के पत्र हैं. खंड-२
तक हैं., (२५४११, १९-२०४४२-४६).
मृगावती चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६८, आदि:-; अंति:६८२१. हंसावली चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रारंभ खंड-२, कड़ी-७८ तक
पाठ है., (२६४११, १५-१६x४१-४३). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदिसर आदे; अंतिः६८२२. हरिवंश प्रबन्ध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. सप्तमो अधिकार गा.९३ अपूर्ण से
अष्टमो अधिकार गा.५५ तक है., (२६४११, १३४४१). पाण्डव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदि:-; अंति:६८२३." कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३६-२३(१ से २३)=११३, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान.,
संशोधित, पू.वि. प्रारंभ से महावीर जन्म प्रसंग तक नहीं है., (२६४११.५, ११-१२४३२-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि.
कल्पसूत्र-बालावबोध', मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंतिः कथा वाच्यमान जाणवी. ६८२५. उत्तराध्ययनसूत्र, त्रुटक, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५७-४९(१ से ७,१० से ४८.५० से ५२)=८, देना., पू.वि. बीच-बीच के
पत्र हैं., (२६.५४१०.५, १४-१५४३७-४०).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:६८२७. बोल सङ्ग्रह, त्रुटक, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १००-३६(१ से ६,१५,२८ से ३०,३४,४४,४९ से ७२)=६४, जैदेना., प्र.वि. एक
पत्र बिना नम्बर का ज्यादा हैं।, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. , (२६४११.५, २४-२६४६४-६५).
बोल सङ्ग्रह , सं.,प्रा.,मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंति:६८२८. आयुर्वेदसार सङ्ग्रह व विवेचन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१-५(२ से ६)=४६, पे. २, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के
पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, १२-१३४३४-३७).
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१९०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-१. औषध सङ्ग्रह', मागु., गद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. पे.२. आयुर्वेदसार सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. १आ-५१आ-, अपूर्ण), आदिः स्वस्ति श्रीमरुदेवि; अंतिः-, पे.वि. बीच व अंत
के पत्र नहीं हैं. ६८२९. सिद्धान्तचन्द्रिका की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-३२(१ से ३२)=६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
(२६४११, १७४४०). सिद्धान्तचन्द्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, गणि सदानन्द, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि:-; अंति:६८३०. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२-२(१ से २)=५०, जैदेना., प्र.वि. प्रारंभिक
कुछेक पत्रों पर ही टबार्थ है. व्याख्यान कहीं-कहीं संस्कृत में भी है..पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. टबार्थ
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४११.५, ७४६६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः नमो क० माहरो नमस्कार; अंति:
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:६८३१. वैदर्भि चौपाई, अपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(१ से ४)-५, जैदेना., ले.स्थल. बिकानेर, पू.वि. गा.१ से ९५ नहीं हैं.,
(२७४११, १५४३३).
दमयन्ती चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः अनंताइ पावसी० बहुमान. ६८३३. ३३ बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(५ से ६)=६, जैदेना., पू.वि. बीच के दो पत्र नहीं हैं., (२६.५४११.५,
१९४३८). ३३ बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः सात्त भये इहलोक भय; अंतिः कहतो चित उपसजाइ. ६८३४. बुढानी चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंदर ढाल अपूर्ण तक है.,
(२७४११.५, १४४२८).
बुढ़ापा चौपाई, मागु., पद्य, वि. १८४५, आदि: नीरुधन क घर बेटी; अंति:६८३५.” दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, पू.वि.
बीच के पत्र हैं. अध्ययन-३ गा.४ से अध्ययन-५ उद्देश-२ के गा.३६ तक है., (२६.५४११, १६४५३).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि:- अंति:६८३६. चतुःशरण प्रकीर्णक, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. अन्तिम पत्र नहीं है. गा.५८ तक है., (२६.५४११,
५४३५-३८).
चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंति:६८३७." चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, जैदेना., पू.वि. प्रथम व अन्तिम पत्र नहीं
हैं. गा.५ से ५९ तक है., (२५.५४११, ४४३६-३७). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि:- अंतिः
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:६८३८." निर्यावलिकादिपञ्चोपाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-१८(१ से १६,३०,३६)=२०, पे. ४, जैदेना.,प्र.वि.
पंचपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. वह्निदशा नामक पाँचवा उपांग नहीं है., (२६४११,
११४३८-४०). पे.-१. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. -१७अ-१८अ, अपूर्ण ___ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः मायातो सरिसणामाओ., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे..२. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १८अ-१९आ, संपूर्ण
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१९१ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जति णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिद्धे., पे.वि. १० अध्ययन. पे..३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. १९आ-३७अ, अपूर्ण
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंतिः चेइयाई जहा संगहणीए.,पे.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. पे.-४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ३७अ-३८आ-, अपूर्ण
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ६८३९. चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध व जीवखामणा कुलक, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., पू.वि. अंत
के पत्र नहीं हैं. , (२७४११, ९-११४३०-३२). पे..१. पे. नाम. कुशलानुबन्धी सह बालावबोध, पृ. १अ-११अ, संपूर्ण
चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः पहिलु छ आवश्यकनां; अंतिः मुक्तिनां सुख लहइ., पे.वि. मूल
गा.६३. पे:२. खामणाकुलक, प्रा., पद्य, (पृ. ११अ-११आ-, अपूर्ण), आदि: जो कोवि मए जीवो; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं
हैं. गा.२५ तक है. ६८४०. चन्दराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ८-२(१ से २)=६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२४४११, १६x४६).
चन्द्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मागु., पद्य, वि. १७१७, आदि:-; अंति:६८४१. उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ३६, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.२२५ तक
__ है., (२७X११, १६x४९).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:६८४२." शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, त्रुटक, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७०-११८(१ से ३१,६९ से ९४,९६ से ९७,१०८ से
१६६)=५२, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. आंशिक भाग सुकोशल कथा से
समुद्रदत्त कथा तक है., (२६४११, १५४४७). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंति:
शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १५५१, (अपूर्ण), आदि:-; अंति:६८४४." अनुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, त्रुटक, वि. १७९३, श्रेष्ठ, पृ. २४-१४(३ से ११,१६ से २०)=१०, जैदेना.,
ले.स्थल. उटालाग्राम, ले.- मु. कानजी (गुरु मु. गुलालचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-ग्रं. १९२., दशा वि. विवर्ण
पानी से-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प-अंत के कुछ पत्र, (२५.५४११, ५-६४३४-३६). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं.
अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणं का० चोथो आरो; अंतिः तिमही ज जाणवो. ६८४५.” सङ्ग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें,
अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.२४० तक है., (२६x१०.५, १२४४१-४२).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः६८४६. कल्याणमन्दिर स्तोत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-४(१ से ४)=१४, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र
नहीं हैं. प्रारंभ से श्लो.९ तक तथा अन्तिम प्रशस्ति भाग नहीं है., (२६४११, १३४४४-४५).
कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि:-; अंति:६८४७." उपासकदशाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २६, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं. , (२५.५४१०.५, १३४४१). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति:
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६८४८. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. अध्ययन-५ गा. १ तक है., (२७.५४११, १७४३७).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः
६८४९. सुदर्शनशेठ रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २८-२३ (१ से २३) -५, जैदेना. पु.वि. बीच के पत्र हैं. ढाल -३३ गा. १४ से ढाल- ३७ गा.१२ तक है., ( २६.५x११, १५X३९).
सुदर्शनसेठ रास, मु. मुनिसुन्दरसूरि शिष्य मागु पद्य वि. १५०१ आदि-: अंति
६८५० कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८२० श्रेष्ठ, पृ. ८७-४२ ( १६ से ५७ ) = ४५, जैदेना. ले. स्थल. कृष्णगढ, प्र. वि. ९- व्याख्यान, पू. वि.. ग्रं. ३३३ से ७८२ नहीं है. (२५.५४१०५ ९x२८).
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कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि
P
६८५३. श्रावक आलोयणा, पूर्ण, वि. १८९१ श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१) =६, जैदेना. ले. स्थल, सीहवाडी, ले. पं. सुमतिविजय,
(२६.५४१०.५ १२४३३-३७).
श्रावक आलोयणा, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंतिः सहस्र सज्झाय उपवास.
६८५४. अञ्जनासती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. गा. ५४ तक है., (२६×१०.५, १५४३४).
"
अंजनासुन्दरी रास, मागु, पद्य, आदि: पहलेने कडाव हो पाय; अंति
-
चिह्न,
६८५६." अष्टानिका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६ ११.५, १२४३७-३८).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदिः शान्तीशं शान्ति; अंतिः
६८५८.” अन्तगडदशाङ्गङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी पदच्छेद सूचक लकीरें, पु.वि. बीच के तक है., (२५.५x११.५, ११४३४)
अन्तकृदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदि:- अति:
,
·
श्रेष्ठ, पृ. ३५-२० (१ से २०) = १५, जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पत्र हैं. आंशिक पाठ वर्ग-६ अध्ययन- ३ से वर्ग-८ अध्ययन १० आंशिक पाठ
(+)
-
६८६१. जीरापल्लि पार्श्वजिन स्तोत्र सह पञ्जिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-२(२ से ३ ) - ९, जैदेना. ले. मु. क्षीरसागर, प्र. वि. श्लो. १३. पत्रांक- ५A पर भगवान पार्श्वनाथ का सुन्दर यन्त्र है. अन्तिम पत्र पर उर्दू में कुछ लिखा हुआ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. गा. २ से ३ तक नहीं है., ( २६×११, १५X४५-५२).
पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला - महामन्त्रमय, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदिः ॐ नमो देवदेवाय; अंतिः लभेत्
ध्रुवम्.
पार्श्वजिन स्तोत्र पञ्जिका टीका, मु. पुण्यसागर सं., गद्य वि. १७२५ आदिः श्रीपार्श्व जीरिका अंतिः (१) टीका सुबोधिका ( २ ) श्रीमालानिधेनगरे.
६८६३.' वैराग्यशतक सह लेश व्याख्या, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.
शिवदत्त पुरोहित, प्र. वि. मूल-गा. १०४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ प्रारंभिक पत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभिक पत्र. पू. वि. मात्र गा. ५४ तक ही टबार्थ लिखा है.. (२६.५४११.५, ०x३६)
1
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहसि जहा सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, सं., गद्य, (अपूर्ण), आदि: वीरं वारिधिगम्भीरं; अंतिः
',
६८६६.” क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १८१५, जीर्ण, पृ. १९-८ (२ से ३.६ से १०, १५) - ११, जैवेना. प्र. वि. गा. २६६. पाठगत उदाहरणार्थ सारणी दी गयी है., पदच्छेद सूचक लकीरें (२६४११. १४४४३).
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि वीरं जयसेहरपय अंतिः कुसलरङ्गमयं
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पसिद्धं.
६८६७. पासाकेवली-शुकनावली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५X११.५, १२३०
३१).
पाशाकेवली-भाषा*, आधारित, मागु., गद्य, आदि: (१) १११ उत्तम थानक लाभ ( २ ) ॐ नमो भगवति; अंतिः६८६८.” मयणरेहा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. अशुद्ध पाठ, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. १६३ गाथा तक है., ( २६११, १५ - १७३२-३६).
मदनरेखा रास, मागु., पद्य, आदि: जूआ मांस दारु तणी; अंति:
६८७३. आठकर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. (२५.५५११, १७४३५). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः आठ कर्म ते केहा; अंतिः विषइ उद्यम करिवउ.
६८६९. सीताराम रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४ - १(१ ) = १३, जैदेना., पू. वि. बीच के पत्र हैं. ढाल ७ गा. १३ वीं अपूर्ण तक है., ( २६.५x११.५, १०-११४३५-३९).
रामसीता रास उपा. समयसुन्दर गणि मागु पद्य वि. १७उ. आदि-: अंतिः
(+)
६८७४ " ऋषिदत्ता चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६. जैवेना. पु.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. १३३ गाथा तक है..
(२६.५x११, १४४३९).
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"
-
ऋषिदत्ताराती चाँपा- शीलव्रतविषये मु. देवकलश मागु पद्य वि. १५६९, आदि: श्रीसरसति सुपसाउलइ अंति:६८७५. सङ्ग्रहणीरत्न, पूर्ण, वि. १६५९, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१ ) = ११, जैदेना ले. स्थल. सकराणी ले मु. केशव (गुरु मु. विनयकीर्ति) प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. गा.२८० प्र. पु. मूल ग्रं. ३४५ (२४.५४१०.५, १३४३५-३९). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, (अपूर्ण), आदि:- अंति: जा वीरजिण तित्थं.
६८७६. योगोद्वहन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२७.५×११.५, १४४५४). योगोदहन विधि, सं., प+ग, आदि मनोवाक्कायानां अंति:
i
से ९२ तक है. (२७००११, ६×३३-३०).
"
६८७७. पासाकेवली शुकनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७ - १ ( १ ) = ६, जैदेना, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.
श्लो. १२ से १६१ तक है., (२७४१२, १२३४-३८).
पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदि:- अंति:
""
६८७८. चौवीसदण्डकविचार-भगवतीसूत्रे शतक २४ अपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५६-३७(१ से ३७ ) = १९, जैदेना. पु. वि. अन्त के पत्र हैं.. (२६.५४११.५, ३५-३६x२१-२४).
भगवतीसूत्र-विचार सङ्ग्रह *, संबद्ध, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदि: #; अंति:#.
६८७९. क्षेत्रसमास सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०- १ ( १ ) - ९, जैवेना. पु. वि. प्रथम व अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.६
"
,
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य वि. १५वी, आदि:-; अंतिःलघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः
·
६८८० सम्बोधसप्ततिका प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ९-१ (१) -८, जैवेना. प्र. वि. मूल-गा. ७२. अन्तिमवाक्य वाला भाग फटा है, त्रिपाठ, ( २६ ११, १४४४२).
सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो .
सम्बोधसप्ततिका-बालावबोध *, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि:- अंति:
१९३
६८८१. कल्पसूत्र वाचना १ का अन्तर्वाच्य प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है..
(२७४११.५, १४४३५).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
कल्पसूत्र अन्तर्वाच्य* , मागु., गद्य, आदिः उत्तराफाल्गुनी; अंति:६८८२. विपाकसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ले.- ऋ. सागा (गुरु ऋ. सवसी), (२८x११.५,
११४३५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: सेसं जहा आयारस्स. ६८८३." चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५९९, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६३. बालावबोध का
प्रतिलेखन सं. १६०८ दिया गया है., पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ७४३०). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निखुइ सुहाणं.
चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः पहिलउ आवश्यकना नाम; अंतिः सुखनु कारण हुई. ६८८४. विदग्धमुखमण्डण सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-८(१ से ८)+१(११)=२१, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं.
परिच्छेद-१ गा.५२ से परिच्छेद-३ गा.२२ तक है., (२८x११, १३-१४४४१-४२). विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंति:
विदग्धमुखमण्डन काव्य-टीका, मु. विनयरत्न, सं., गद्य, आदि:-; अंति:६८८५.” तत्त्व सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. भुजनगर, ले.- पं. प्रेमराज, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ, (२७.५४१२, १७४४७-५५).
तत्त्व सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदि: बारस गुणा अरिहन्ता; अंतिः समकित पामइ. ६८८६. श्राद्धजीतकल्प सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. त्रिपाठ, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.५४
तक है., (२८x१०.५, २-६x४१-४४). श्राद्धजीतकल्प, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः कयपवयणप्पणामो जीयगयं; अंति:
श्राद्धजीतकल्प-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः कृतः प्रकर्षेण परसमय; अंति:६८८७. नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२९., पंचपाठ, (२७x११, १
११४३९-४१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवा अजीवा पुन्नं; अंतिः बोहिक्क अणिक्काय.
नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदिः जयति श्रीमहावीर; अंति: सेधनादनेकसिद्धाः. ६८८८." प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
(२९x११, ५४३५-३९). प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः अप्पाणं वोसिरामि.
प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-अवचूरि*, सं., गद्य, आदिः#; अंतिः#. ६८९१. भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०८, श्रेष्ठ, पृ. ९२५, जैदेना., ले.स्थल. तिथूजगणाग्राम, ले.- मु. सङ्घमाणिक्य
(गुरु पं. गजमाणिक्य, तपगच्छ), पठ.- मु. समुद्रमाणिक्य (गुरु मु. सङ्घमाणिक्य, तपगच्छ); मु. राजमाणिक्य (गुरु मु. सङ्घमाणिक्य, तपगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-४१शतक.,प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ;
(५३६) जलाद् रक्षेत् तैलात् रक्षेत्, (२५.५४११, ७X४२-४३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः देउ अविलिहं तस्स.
भगवतीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्तनइ; अंतिः विघ्न अपहरु. ६८९२. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-१(१)=३३, जैदेना., पू.वि. प्रथम व अंत के पत्र नहीं हैं.
प्रथम अध्ययन की तृतीय गाथा से चतुर्थ अध्ययन तक है., (२५४११, ३४२४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि:-; अंति:दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१९५ ६८९३. विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६१-४०(१ से २०,२७ से ३०,३७,३९,४१ से ४७,४९ से ५२,५५ से ५७)=२१,
जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२७ ११.५, ११४२८-२९). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:६८९४. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०-२७(१ से २७)=४३, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२५.५४१२, १०x२६-३०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:६८९५. ऋषभदत्तदेवानन्दा ढालीयो व नेमिजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १९४७, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.- गुलाबचन्द,
पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२६४११, १३४४२). पे.१. ऋषभदत्तदेवानन्दा सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-३आ, संपूर्ण), आदिः तिण काले तिण समे; अंतिः माहे मत
परज्यो., पे.वि. ढाळ-६. पे.२. नेमिजिन विवाहलो, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-६आ-, अपूर्ण), आदिः नगर सोरीपुर राजीओ; अंति:-, पे.वि. अंत के
पत्र नहीं हैं. गाथा ४९ तक है. ६८९६. साधु वन्दना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.१ से ८२ तक है., (२५.५४११.५,
९-११४३६-३७).
साधुवन्दना, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, आदिः रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति:६८९७. पासाकेवली शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. अक्षर-अवाच्य, दशा वि. अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, (२४४१०.५, ११४३४). पाशाकेवली-भाषा* , आधारित, मागु., गद्य, आदिः (१) ॐ नमो भगवति (२) एकसो इग्यारै इण सुकन; अंति: मे
देवदर्शन हुयो. ६८९८. रूपसेन कथानक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-२(१ से २)=२६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२४.५४१२, १६
१८४३६-३८). रूपसेन कथानक, सं., पद्य, आदि:-; अंति:६९००. लोकनाडी सह व्याख्या, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. ६, जैदेना.. पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गाथा २८ की व्याख्या
अधूरी तक है., (२६४११.५, १७४४३). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जिणदंसणं विणा जं; अंति:
लोकनालिद्वात्रिंशिका-व्याख्या, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:६९०१. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १७-४(१ से ४)=१३, जैदेना.. पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६४१२.५,
१६x४०-४३).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि:- अंति:६९०२. गर्भवेली व शील कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पे. २, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२६४११.५,
१६४३४). पे.-१. गर्भवेलि, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १६वी, (पृ. १आ-५आ, संपूर्ण), आदिः ब्रह्माणी वर आलि मझ; अंतिः
धर्म थकी मुज जोडि.,पे.वि. गा.११२. पे.२. शील कुलक, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६आ-, अपूर्ण), आदिः जिणवर हु पय नमी; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं
हैं. गा.१ से ४८ तक है. ६९०३. स्तुति चतुर्विंशतिका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. स्तुति-२२ श्लो.१ तक है.,
(२६४११.५, १२४३४).
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१९६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंतिः६९०५. उदाई चरियं, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, जैदेना., (२६.५४११, ८४४०).
उदायीनृप चरित्र, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः काहिति सेवं भन्ते. ६९०८. नन्दीश्वरद्वीप पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ९-२(१ से २)=७, जैदेना., ले.- पं. धर्मचन्द्र गणि, प्र.वि. ढाळ-१२,
पू.वि. प्रथम पूजा अपूर्ण से है., (२६४१२, १३४३७-३८).
नन्दीश्वरद्वीप पूजा, मु. धर्मचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८९६, आदि:-; अंतिः सङ्घ सकल हरखायो रे. ६९०९. सत्तरभेदी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-५(१ से ५)=५, जैदेना., ले.स्थल. उजीण, ले.- मु. रत्नविजय, पू.वि.
पूजा ८वीं से है., (२६.५४१२, ११४४३).
१७ भेदी पूजा, मु. साधुकीर्ति, मागु., पद्य, वि. १६१८, आदि:-; अंतिः सब लीला सुख साजै. ६९१०. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६३, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.२६०., त्रिपाठ, टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, (२५४११.५, २-५४४२-४८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः सुय सुयदेवी
पसाएण. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध , पं. दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १५२९, आदिः (१) हुं ब्रह्मज्ञान- (२) वीरं० हुं क्षेत्र;
अंतिः श्रीरत्नशेखरसूरिहि. ६९११. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८-४३(१ से ४३)=३५, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि.
बीच-बीच के पत्र हैं. अध्ययन-२४ गा.१६ से अध्ययन-३६ गा.१६२ तक है., (२६४११.५, ११४४०-४१).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:६९१२. ठाणाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., प्र.वि. त्रिपाठ, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं.,
(२६.५४११.५, २-९४३२-३५). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंति:
स्थानाङ्गसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः नत्वा स्थानाङ्गकतिपय; अंतिः६९१३. आचाराङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४१-२४(१,३ से १७,३३ से ४०)=१७, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,
(२७४११, १३४४९-५१).
आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:- अंति:६९१४." जीवाभिगमसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०५-२(१,४४*)=१०३, जैदेना., प्र.वि. १० प्रतिपत्ति; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ५१३५,
संशोधित, (२६.५४११, १५४५१-५६).
जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे. ६९१५. भगवतीसूत्र-बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८७, जैदेना., प्र.वि. पत्र अव्यवस्थित है., (२७.५४१२, ३५
५४४१७-२८).
भगवतीसूत्र-विचार सङ्ग्रह', संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः#; अंति:#. ६९१६." भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २७१-२३५(१ से ९,१३,१६,१९,२१ से १५३,१५५ से १६४,१६६ से १७०,१७२
से १७८,१८१ से १८४,१८७.१९०,१९७,२०२ से २०६,२०८,२१२,२१५,२१७,२१९ से २७०)=३६, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण
युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२७.५४११.५, १५४५४-५९).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:६९१७. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. ५२-४६(१ से ४६)=६, जैदेना., ले.स्थल. नवानगर, प्र.वि.
मूल-१०अध्ययनरचूलिका., पू.वि. अन्त के पत्र हैं. अध्ययन-१० गा.१७ अपूर्ण से है. टबार्थ चूलिका की अंतिम कुछेक
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गाथाओ में ही लिखा है. (२७०४१२. ७०४४०)
"
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि:-; अंति: (१) मुच्चइ त्ति बेमि (२) निच्चला होसु. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः धर्ममां निश्चल थाउ.
-
""
"
६९१९. वैदर्भि चौपाई, अपूर्ण, वि. १८९३ श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१) -६, जैवेना. ले. स्थल कीसनघड ले साध्वीजी वन्दना, पू. वि. गा. १ से १६ तक नहीं है.. (२७४१२.५ २३४३१).
दमयन्ती चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः न आवई अवतार.
१४४४४-४६).
पे. १. औषध सङ्ग्रह मागु, गद्य (प्र. १अ १अ संपूर्ण) आदि # अंतिः #.
.
(+)
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६९२० मेघविसाल व औषध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७ पे २ देना.. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२७.५४१३ १२
"
"
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पे. २. मेघविसाल, मु. मेघ, मागु., पद्य, (पृ. १आ-१७आ-, अपूर्ण), आदिः चरण युगल जिनहर्ण; अंति:-, पे. वि. अंत के
पत्र नहीं हैं. सर्ग ४ गाथा २८ तक है.
६९२१. ठाणाङ्गसूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी
श्रेष्ठ, पृ. २३७+१(२०७) २३८, जैवेना. प्र. वि. प्रतीकमात्र सूत्रपाठ लिखा है., संशोधित, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२७.५x१२, १६-१७४५८-५९).
स्थानाद्गसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि सं गद्य वि. ११२०, आदिः श्रीवीर जिननार्थ अति
,
१९७
(+)
६९२२. ठाणाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६०-६ (१ से ६ ) = ५४ जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- अंतिम कुछ पत्र, पू. वि. बीच के पत्र हैं., ( २६.५x११.५, ११×३६-३९).
स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि:-: अंति
,
"
६९२३.'' प्रज्ञापनासूत्र, अपूर्ण वि. १७वी मध्यम, पृ. २०१, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है अंतिम पत्र (२६.५x११.५ १३४५२-५५)प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहन्ताणं; अंति:
"
,
,
.
६९२४.' पण्णवणासूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९५-४(१५८ से ५९,२०९ ) + १ (७५) - २९२, जैदेना. प्र. वि. टिप्पण
,
युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., ( २६.५x११.५, ५X३६-३९).
प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि:-: अंति:
प्रज्ञापनासूत्र - टबार्थ* मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
६९२५. शालीभद्र रास, त्रुटक, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-२० (१,४ से २२ ) = ६, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., ( २६.५x१२,
१०४३५).
.
"
शालिभद्र रास, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः
६९२७. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १५-१० (१ से ८, १३ से १४ ) -५ पे. २. जैवेना. पु.वि. बीच
बीच के पत्र हैं., ( २६ ११.५, ५X३१).
पे. १. पे नाम बन्दित्तुसूत्र सह टवार्थ, पृ. ९अ-१२
वन्दित्तुसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:
वन्दित्तुसूत्र -टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-, अंति:-, पे.वि. बीच के पत्र हैं. गा.५ से ३९ तक है.
पे २. पे नाम श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ, पृ. १५२-१५
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श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा. मागु., प+ग, आदि:-; अंतिः
आवक प्रतिक्रमणसूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, आदि - अंति:, पे. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.
६९२८. कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १४३-१३६ (१ से १२८, १३५ से १४२ ) =७, जैवेना., पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., ( २६१२, ७- २३३७-४१).
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कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि:- अति:
"
i
कल्पसूत्र- टवार्थ मागु. गद्य, आदि:-: अंति:
"
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कल्पसूत्र- व्याख्यान + कथा* माग गद्य, आदि:-: अंति:
६९३६. स्नात्र पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ जैदेना. पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं.. (२७४१३ १३४३३).
स्नात्र पूजा, मागु, प+ग, आदि: पवीत्र धोति पेहरी; अंति
६९३८. सुभद्रा व सुरसुन्दरी चौपाई. अपूर्ण, वि. १९८४ श्रेष्ठ, पृ. ९ पे. २, जैदेना. ले. स्थल भीवाणि ले. मु. खुशालचन्द,
पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२८.५x१४, १०-१४X३३-४४).
·
पे.-१. सुभद्रासती चौपाई, ऋ. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १८५८ (पृ. १आ-७आ, संपूर्ण ), आदि: अरिहन्त सिध समरुं; अंतिः कियो चित्तलायजी., पे.वि. ढाळ-७.
पे. २. सुरसुन्दरी रास, ऋ. दोलतराम, मागु., पद्य, (पृ. ८अ - ९अ, अपूर्ण), आदिः सान्ति जिनेश्वर, अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण ढाल ३ की गाथा १ अधूरी तक है.
·
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६९४०. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२८ + १ (६७) = १२९, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र
नहीं हैं., (३०x१३.५, ६-१६x४२-४८).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पदमं अंति:
"
कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: अरिहन्तनइ माहरो; अंति:
कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा* माग गद्य, आदि: अंति:
६९४२.” कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८२-३ (१ से २,५४ ) = ७९, जैदेना, पू.वि. प्रारंभ, बीच का एक व
अंत के पत्र नहीं है., (३०.५०१३-५, १०x३२-३५).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र - बालावबोध' मागु, राज, गद्य, आदि:-: अंति:
"
६९४३. वीसस्थानक पूजा व विधि, संपूर्ण, वि. १८८६, मध्यम, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. पालिताणा, ले. - गणि
जनकुशल (गुरु गणि अमृतकुशल), प्र. वि. मूल ढाळ - २०, ( २८.५x१४, १२४३७-३९).
पे.-१.२० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, (पृ. १आ-१०आ), आदिः श्रीशङ्खश्वर पासजी ; अंतिः पभणै सयल सङ्घ जयकरू., पे.वि. ढाळ - २०.
पे.२.२० स्थानकतप विधि, मागु., गद्य, (पृ. १०आ - ११अ ), आदि: दिन शुद्धिये शुभ; अंतिः करे पञ्चतीर्थीनी.
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः
कल्पसूत्र - टबार्थ मागु, गद्य, आदि अरिहन्तने नमस्कार; अंति:
६९४४. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११७ -१ ( १ ) - ११६, जैदेना.. पू. वि. प्रथम व अन्त
के पत्र नहीं हैं., (२८.५४१४. ६x२४).
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कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
"
६९४८. उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८२-४ (१,४३,७८ से ७९ ) =७८, जैदेना. पु. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. १९ वे अध्ययन तक है., ( २७१३, ९-१७४१-५३).
उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-: अंति:
उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ+ कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि - शिष्य, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
६९४९.” स्तुतिचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. कुंथुनाथ स्तुति की गा .२ अपूर्ण
तक है., (२५.५x११, १३४३४-३९).
स्तुतिचौवीसी, वा. पुण्यशील, सं., पद्य, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
१९९
६९५०.” सम्यक्त्वकौमुदी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४८-३७ ( २ से २९,३४ से ३९, ४१, ४४ से ४५ ) = ११, जैदेना., एवं एक पत्र बिना नंबर का आधा फटा हुआ हैं., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पत्र नहीं हैं., ( २६.५X१२.५, ९x४६).
प्र.वि. कुछ पत्र आधे फटे हुए है पाठ, पू. वि. बीच-बीच व अंत के सम्यक्त्वकौमुदी आ. जयशेखरसूरि सं., गद्य वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य अंति:सम्यक्त्वकौमुदी कथानक-टवार्थ मागु गद्य, आदि श्रीवर्द्धमान अंतिः
६९५१.' क्षेत्रसमासविचार यन्त्र अपूर्ण वि. १८८२ मध्यम, पृ. ७१-४ (३३.५९ से ६१ ) + १ ( ३६ ) - ६८, जैवेना. ले. स्थल. कृष्णगढ, ले. जसकर्ण मथेन प्र. वि. 'पंति-अक्षर अनियमित है. एक पत्र बिना नंबर का है. सयन्त्र ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५x१२४).
-
,
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण- बीजक विचार, पं. सुमतिवर्धन माग गद्य वि. १८७५ (पूर्ण), आदि जगत का सिखर के विषे अंतिः समुद्र थकी जाणवो.
,
उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: अंति:
"
i
उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ+कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य मागु, गद्य, आदि:- अंति:
६९५२. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५६-२७ (१ से २७ ) - २९, जैदेना, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू. वि. बीच के पत्र हैं. अध्ययन- ३ गा. २ से अध्ययन - ९ गा. २९ तक है., (२६×१२, ५-२०x४७44).
"
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६९५३. उपदेशमाला सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९ - १ ( १ ) = १८, जैदेना., पू. वि. बीच के पत्र हैं. गा.८ से १०४ तक
है.. (२६४१२.५, ७-१५X३७-४१).
"
उपदेशमाला गणि धर्मदास, प्रा. पद्य, आदि:- अति:
उपदेशमाला-कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य गुरुपादाब्जं; अंतिः
६९५४. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२ - २ (१,११ ) = १०, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,
(२७.५४११.५, १३-१४४३९-४२).
बृहत्शान्तिस्नात्र विधि सङ्ग्रह, सं., प्रा.,मागु, गद्य, आदि:- अंति:
"
६९५५. चन्दराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४० - ३४ (१ से ३४ ) = ६, जैदेना, पू. वि. बीच के पत्र हैं., ( २७x१२, २१x४२). चन्द्रराजा चौपाई, मागु., पद्य, आदि:- अंतिः
(+)
६९५७. बृहत्सग्रहणी सह टवार्थ, अपूर्ण वि. १९वी मध्यम पृ. १४ जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक
"
"
लकीरें, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. १०३ तक है., (२५.५X१२.५, ५x२८).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदिः नमिउं अरिहन्ताई; अंतिः
बृहत्सद्ग्रहणी-टवार्थ प्राहिं गद्य, आदि: अरिहन्त सिद्ध आचार्य अंतिः
६९५९. अजितशान्ति, बृहत्शान्ति व लघुशान्ति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३०-२२ (१ से २२ ) = ८, पे. ३, जैदेना.,
(२५.५४१२.५, ११४२८-३१).
पे.-१. अजितशान्ति स्तव, आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २३अ-२७अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह., पे. वि. गा. ४१. प्रथम पत्र नहीं है. गा. ४ अपूर्ण से है.
पे.-२. पे. नाम. वडीशान्ति, पृ. २७अ - २९आ, संपूर्ण
बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, आदिः भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः जैनं जयति शासनम्. पे. ३. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. २९आ-३०आ, संपूर्ण) आदि शान्ति शान्ति: अंति जैन जयति शासनम्. पे.वि. श्लो. १७+२.
"
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६९६१. हरिबल रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०-१४ (१ से ५,११ से १९) = ६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., ( २६×१२.५,
.
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२००
१३-१६x२७-३२).
हरिबल रास मागु., पद्य, आदि:-: अंति:
६९६३. दस अछेरा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८-२२ (१ से २२ ) = ६, जैदेना., ले. स्थल. धोराजी, ले. - ऋ. रायचन्द,
(२६४११.५. १६४३९).
१० आश्चर्य वर्णन, प्रा., मागु., पद्य, आदि:- अंतिः व्यतिक्रमे थये थया.
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६९६४.” क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १९०१, मध्यम, पृ. ११-६ (१ से ६ ) = ५, जैदेना., ले. स्थल. उदयपुर, प्र. वि. गा. २६२, अध्याय-६ अधिकार संशोधित, पू.वि. गा. १४८ अपूर्ण से है. (२४.५५१२.५ १३४४२-४६).
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि:- अंतिः कुसलरङ्गमयं पसिद्धं.
"
.
,
६९६६. नेमजिन चौवीसचोक, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. चोक-२३ गा. १ तक है.,
.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
(२६४१३, १३-१५x२४-२६).
नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, वि. १८३९, आदिः एक दिवस वसै नेमकुंवर, अंति:६९६७. भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८८६, जीर्ण, पृ. ११-५ (१ से ५) ६, जैदेना. ले. स्थल आसोप, प्र. वि. मूलश्लो. ४४., पदच्छेद सूचक लकीरें-मूल पाठ, पू. वि. श्लो. २० अपूर्ण से है., ( २६१३, ४x२६-३३).
"
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः समुपैति लक्ष्मी.
भक्तामर स्तोत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि:-: अंतिः समुपैति लक्ष्मी पामै
६९६८. अन्तगडदशाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९-२ (१,८) = १७, जैदेना, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. (२६.५०१३.
६x२९-३३).
अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
६९७१. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६२८, मध्यम, पृ. २०८, जैदेना., प्र. वि. मूल- ३६ अध्ययन. प्र. पु. उभय ग्रं.
१४०००., (२४×१३.५, ६-७ ३६-३८).
उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्यमुक्कस्स अंतिः पुव्वरिसी एवं भासन्ति
उत्तराध्ययन सूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा०: अंतिः एह वचन भाष्यकारनं.
६९७३. जिनयज्ञ कल्प, अपूर्ण, वि. १५८९, श्रेष्ठ, पृ. ९९ २६ (१ से २५.९२ ) + १(९६) =७४, जैदेना. ले. स्थल मांडवगड, लिखवा.मु. अनन्तकीर्ति (गुरु आ. पद्मनन्दि सरस्वतीगच्छ मूलसङ्घ- बलात्कारगण), राज्यकाल राजा सग्राम शाह, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. अध्याय ६. पू. वि. अध्याय-२ के गा. १०१ तक पाठ नहीं है. (२७४१२.५, १०४३५-३७). प्रतिष्ठासारोद्धार, श्रा. आशाधर, सं., पद्य, वि. १२८५, आदि:- अंतिः प्रथमपुस्तकः.
"
६९७५.' प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह - स्थानकवासी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२ - १५(१ से १५ ) = ७, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र
हैं.. (२६.५x१२.५, १०x२९-३०)
"
साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., गुज., प+ग, आदि:-; अंतिः
६९७६. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्याय ४ के गा. २८ तक है.,
(२६.५x१२.५, १८४३२).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि प्रा. पद्य,
६९७८. अभिधानचिन्तामणी नाममाला अपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना.. पू. वि. अन्त के पत्र नहीं है. कांड-२ श्लो. ७१
"
तक है., (२७x१२.५, १३३४-४२).
अभिधानचिन्तामणि नाममाला आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः अंतिः
वी. वी आदि धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ: अंति
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६९८१. सत्तरीसयठाण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३६. जैदेना.. पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.३४७ तक है., (२६.५X११, ६x४१ - ४९).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि: सिरिरिसहाइ जिणिन्दे; अंतिःसप्ततिशतस्थान प्रकरण टवार्थ, मागु, गद्य, आदि ऋषभाविक जिनेन्द्र अंतिः
६९८४ पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११-१( ४ ) - १०, जैदेना, पू. वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं., ( २६११, ११४३७-४१).
पाक्षिकसूत्र प्रा. प+ग, आदि तित्थङ्करे य तित्थे अंति
;
६९८५. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १८-२(१ से २) - १६, जैदेना. प्र. वि. १० अध्ययन२चूलिका (२६९११,
१३x४५-५०).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि:-; अंति: (१) मुच्चइ त्ति बेमि (२) आलणा सङ्घे .. ६९८६. सीताराम चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ५०-४१ (१ से ४१ ) = ९, जैदेना, पू.वि. बीच के पत्र हैं. खंड-८ ढाल १ गा. ३४ से खंड-९ दाल-४ गा.१६ तक है.. (२६९११, १७४५६-५८)
रामसीता रास उपा. समयसुन्दर गणि मागु पद्य वि. १७३. आदि-: अंतिः
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६९८७. हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण वि. १९वी जीर्ण, पृ. १०-३ (१ से ३) ७, जैवेना. पु.वि. बीच के पत्र हैं. खंड-१ ढाल६ दुहा-४ से खंड-२ ढाल ८ गा.८ तक है. (२५.५४११, १६-१७०४३८-४३). हंसराजवत्सराज चौपाई, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:
साम्ब प्रद्युम्न रास* मागु, पद्य, आदि:- अंति:
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६९८८. साम्वप्रद्युम्न रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७-२ (१ से २) ५. जैदेना. पु.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. दाल-२ गा.३४ से
ढाल - ६ तक है., (२७X११.५, १४X३०-३७).
२०१
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६९८९. चौवीसदण्डक विचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा. १ से गा. ४०
तक है. (२७४११.५, ३४३५).
"
दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंति:
दण्डक प्रकरण- टवार्थ मागु, गद्य आदि-: अंतिः
६९९०. सुदर्शनसेठ कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा. ६९ तक है., ( २४×११.५,
१४-१८४२८-३९).
सुदर्शनसेठ कवित्त, मु. रुप मागु, पद्य, आदि: वान्दु श्रीजिनवर अंति:
,
६९९१ आतमराजा रास व जीवोत्पत्ति रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पे २ जैदेना, लेॠ घना नारद वीरजी, पू.वि.
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ( २६.५x११.५, १३-१५x२९-३५).
,
पे.-१. आत्मराजा रास, मु. ज्ञानरतन, मागु., पद्य, वि. १५२२, (पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण), आदिः द्यो सरसति आपो वचन; अंतिः जिहा भोग विभोग.
पे. २. जीवोत्पत्ति रास, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ-, अपूर्ण), आदिः सुणि सुणि रे जीव; अंतिः-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
६९९२. पार्श्वजिन स्तवनादि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३५-२२ (१ से ४१० से ३४ ) ६. पे ६ जैदेना, (२५.५०११,
१३x४२-४५) .
पे. १. पे नाम, पारसनाथसामिना दशभव, पृ. ५-५आ, अपूर्ण
पार्श्वजिन दसभव स्तवन, मु. मयाचन्द, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः मयाचन्द पाय हो, पे.वि. गा.३५. मात्र अंतिम पत्र है.
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पे. २. नेमिबहुत्तरी स्तवन, मु. मूलचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८३६, (पृ. ५आ - ९अ, संपूर्ण), आदि: प्रथम जिणेसर पाय; अंतिः तस घर होवे जयजयकार., पे. वि. गा. ७३.
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२०२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-३.पे. नाम. मल्लिनाथ पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण __ मल्लिजिनपार्श्वजिन स्तवन, ऋ. रायचन्द, राज., पद्य, वि. १८४२, आदिः हरिआने रङ्ग भरिआ हो; अंतिः हइडे
_हर्ष उलास., पे.वि. गा.१३. पे.-४. पद्मप्रभवासुपूज्यजिन स्तवन, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-९आ-, अपूर्ण), आदिः रङ्गभर राता हौ दाता;
अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं है. गाथा ३ तक है. पे.५. पे. नाम. महावीरसामिनु तवन, पृ. -३५अ-३५अ, अपूर्ण महावीरजिन स्तवन, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः जपता जय जयकार., पे.वि. गा.९. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. केवल
अंतिम गाथा हैं. पे.६. महावीरजिन स्तवन-नालन्दापाडा, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३९, (पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण), आदिः मगध
देशमांहि विराजै; अंतिः हयडे हर्ष उलाशोजी., पे.वि. गा.२१. ६९९३." अभिधानचिन्तामणि नाममाला सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४०-३३(४७ से ५४,५९,६३,६६,६९ से
७२,७५,८०,८७,८९ से ९१,९३,९५,९८,१००,१०८,११२,११४,१२१,१२५,१२८,१३४,१३७)+१(१४०)=१०८, जैदेना.,प्र.वि. त्रिपाठ, संशोधित, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. कांड-५ के श्लो.७४ तक है., (२५.५४११, २-५४४८-५२). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिःअभिधानचिन्तामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२१६,
आदिः धर्मतीर्थकृतां वाचां; अंति:६९९४. योगशास्त्र-१ से ४ प्रकाश, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-६(१ से ६)=५, जैदेना., (२६४११, १५-१६४५०-५६).
योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः६९९५. रामविनोद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१-११(१ से ३,१४ से १६,२४ से २८)=२०, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र
हैं., (२६.५४१०.५, १५४४५-५०).
रामविनोद, पं. रामचन्द्र गणि, मागु., पद्य, वि. १७२०, आदि:-; अंति:६९९६. रामसीता रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प्र. ३०-५(१ से २,२१ से २३)=२५, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,
(२६४११, १७४५३-५८).
रामसीता रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १७उ., आदि:-; अंति:६९९७. ढोलामारू चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-५(१ से ५)=६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्रारंभ से गा.२३७
तक है., (२६४११, १५४४०-४५).
ढोलामारू दोहा, मागु., पद्य, आदिः पिङ्गल पूगलराउ नल; अंति:६९९८." चन्दराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५-३(१ से ३)=३२, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-बीच के
कुछ पत्र, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२४.५४१०.५, १०-१३४३१-३८).
चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदि:-; अंति:६९९९. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३४-१(११)=३३, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ
पत्र, संशोधित, त्रिपाठ, पू.वि. बीच का एक व अन्त के पत्र नहीं हैं. अंतिम ४ गाथाएँ नहीं है., (२६४११, २-४४५२
५६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिःलघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मु. उदयसागर , मागु., गद्य, वि. १६७६, आदिः (१) ग्रन्थनी आदि० ग्रन्थ (२)
निश्शेषकर्मदलनं; अंति:७०००. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, स्तुति व स्तोत्रादि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४८-२२(१ से ५,२३ से ३९)=२६, पे. ७,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२०३ जैदेना., (२५४११, ९-१३४२३-२८). पे.-१. पे. नाम. खरतरगच्छीय साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. -६अ-२२आ-, अपूर्ण
साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः-, पे.वि. बीच के पत्र हैं. पे.२. पे. नाम. वर्द्धमान स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण
महावीरजिन स्तुति, प्रा.,सं., पद्य, आदिः परसमयतिमिरतरणिं; अंतिः मे मङ्गलं देवि सारं., पे.वि. गा.४. पे..३. पे. नाम. सप्ततिशान्तिजिन स्तवन, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदिः तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह., पे.वि. गा.१४. पे.-४. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: गहा न
पीडन्ति., पे.वि. गा.१०. पे.५. पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, प्रा., पद्य, (पृ. २०अ-२२अ, संपूर्ण), आदिः जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः उप्पन्नं ___ केवलं नाणं., पे.वि. गा.३३. । पे.६. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, (पृ. -४०अ-४६आ, प्रतिअपूर्ण), आदि:-; अंति:-, पे.वि.
प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. तृतीयस्मरण गा.७ अपूर्ण से हैं. स्मरण ६ हैं. पे.-७. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. ४६आ-४८अ, संपूर्ण), आदिः गंठसिय मुट्ठिसय; अंति: वत्तियागारेणं
वोसिरइ. ७००१. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-३(१ से ३)=६, जैदेना., प्र.वि. मात्र ४अ पर ही टबार्थ
है., पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा.१८ से ४४ तक हैं., (२६४११, ३४२६-३०). वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः-; अंति:
वन्दित्तुसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७००२. सुरपती चौपाई, अपूर्ण, वि. १७०१, श्रेष्ठ, पृ. १५-२(१ से २)=१३, जैदेना., ले.स्थल. सदांमापुरी-सोरठ, ले.- ऋ. धना,
पठ.- ऋ. नारद, पू.वि. गा.१ से ४० तक नहीं हैं., (२६४११.५, १५४३८-४४).
सुरपति राजा रास-दानधर्मे, मु. दामोदर, मागु., पद्य, वि. १६६५, आदि:-; अंतिः रिद्धि वृद्धि कल्याण. ७००३. नवस्मरण व पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-३(१ से ३)=८, पे. २, जैदेना., प्र.वि. अन्वय दर्शक
अंक युक्त पाठ-बीच के कुछ पत्र, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२४.५४१०.५, ११४३१-३७). पे.-१. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, (पृ. -४अ-११आ, अपूर्ण), आदि:- अंतिः लहइ सुहसम्पयं
परमम्., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १. भयहरं स्तोत्र- गाथा १९ से २४ (अपूर्ण), २. अजितशांति- गाथा ३९, ३.
भक्तामर- गाथा ४४, ४. संतिकर गाथा १३. (२ से ४ संपूर्ण). पे.२. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १०आ-१०आ, संपूर्ण पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंतिः मे वाञ्छितं नाथ.,पे.वि. श्लो.५. यह कृति बीच
में लिखि गई हैं. ७००६. शत्रुञ्जयउद्धार रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.१०५ तक है.,
(२४.५४११, १३४२९-३३).
शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल; अंति:७००७. आदिनाथदेशनोद्धार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६४६, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.८९., (२६.५४११, ७४३९-४८).
आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदिः संसारे नत्थि सुहं; अंतिः सिवं जन्ति. आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जिम संसारसमुद्रमांहि; अंतिः शिव मोक्ष पहुंचइ.
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२०४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७००८. चन्दकेवली रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १११-८७(१ से ८६,८९)=२४, जैदेना., प्र.वि. उल्लास-४, (२४.५४१०.५,
१४-१५४२६-३१).
चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदि:-; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ७००९." नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७१५, मध्यम, पृ. १०-३(१ से ३)=७, जैदेना., ले.स्थल. जयतारणनगर, ले.- गणि
दयासुन्दर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.५४., संशोधित, पू.वि. गा.१६ अपूर्ण से है., दशा वि. अक्षरों की स्याही
फैल गयी है-अल्प, (२६x१०.५, ३-४४३१-३४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः कालइ अनन्तगुणा छइ. ७०१०. विचारषट्त्रिंशिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३)=५, जैदेना., ले.- मु. जसविजय (गुरु पं. शान्तिविजय),
प्र.वि. गा.४०, पू.वि. गा.१२ अपूर्ण से है., (२५४१०.५, ४४३५-३९).
दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. ७०११. मुनिपति चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा.२५ से १८३ तक हैं.,
(२७४११, १२-१३४२८-३३).
मुनिपति चरित्र, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७०१२. पासाकेवली, अग्यासभाव व श्लोक सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)-५, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. वढवाण,
(२६.५४११, ११-१८४३२-३७). पे.-१. पाशाकेवली-भाषा* , आधारित, मागु., गद्य, (पृ. -२अ-६अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः सुखनो देनार सुकन छै., पे.वि.
प्रथम पत्र नहीं हैं. पे.२. अग्यासभाव, मागु., गद्य, (प्र. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः जेतली घडी होइ तेतली; अंतिः दुकाल ए भाव जाणवा. पे..३. वैद्य लक्षण, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः करमरोग की प्रकृति; अंति: होय सबनि कौ चैन., पे.वि.
गा.१९. ७०१३. चन्दराजा रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९-४७(१ से ३९,६० से ६७)=३२, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच
बीच के पत्र हैं., (२४.५४१०.५, १३४४९-५६).
चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदि:-; अंति:७०१६. उवासगदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८००, जीर्ण, पृ. ४१-३३(१ से ३३)=८, जैदेना., ले.स्थल. सवाइजैपुर,
ले.- ऋ. रघुनाथ (गुरु ऋ. वुधरजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., पू.वि. सातवां अध्ययन अपूर्ण से हैं.,
(२५.५४१०.५, ८४४८-५५). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव.
उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः ते दिवसे अणुजाणे. ७०१७. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, पूर्ण, वि. १७४२, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, जैदेना., ले.स्थल. धोराजी, ले.- मु. सुन्दरकुशल
(गुरु मु. वृद्धिकुशल, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, पू.वि. सज्झाय-३ के गा.३ तक नहीं हैं., (२५४११, १२४४४-४५). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, वा. उदयविजय, संबद्ध, मागु., पद्य, आदि:-; अंति: जे थकी नवनिध
थाय.
७०२०. विमलशाहमन्त्री रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५-३५(१ से ३२,४० से ४२)=१०, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र
हैं., (२५.५४११, १५४४३-४५).
विमलमन्त्री रास, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:७०२२. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, त्रुटक, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६०-९७(१ से २४,२८ से ६५,६७ से
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि:-: अंतिः
कल्पसूत्र- टवार्थ माग गद्य, आदि: अंति:
i
कल्पसूत्र - व्याख्यान+कथा' मागु, गद्य, आदि:-: अंति
(+#)
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२०५
६८,७०,७२,७५,७९,८२,८५,८९ से ९०,९२,९४ से ९६,९८, १०२, १०६, ११० से ११३, ११६, १२२ से १२३, १४१, १४५ से १५१,१५५,१५८ से १५९)=६३, जैवेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. अंत के पत्र में स्थविरावलि वज्रस्वामी चरित्र तक है., ( २६११, ६-१५X३१-४१).
७०२५. मानतुङ्गमानवती चौपाई, अपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६६-२५ (१४ से २८,३९ से ४८ ) - ४१, जैवेना. प्र. वि. डाळ- ४७, संशोधित, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-बीच के कुछ पत्र, (२५.५X१०.५, १०-११४३१-३७). मानतुङ्गमानवती रास- मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु पद्य वि. १७६०, आदि ऋषमजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे..
७०२६.” खण्डप्रशस्ति सह सुबोधिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३६-९ (१ से ७,३१,३३ ) - २७, जैदेना., प्र. वि. पत्रांक-३२ वाला पत्र आधा है. संशोधित, पृ. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. (२६४१०.५. १७४५०-५८).
खण्डप्रशस्ति कवि हनुमत् सं., पद्य, आदि: अंतिः
·
खण्डप्रशस्ति-सुबोधिका टीका, आ. गुणविनयसूरि सं. गद्य वि. १६४१, आदि अंति
"
,
७०२७. सङ्ग्रहणीसूत्र, अपूर्ण वि. १८वी मध्यम, पृ. ४१-३२ (१ से ५.७ से २६,२८ से ३१,३४ से ३६ ) - ९ जैदेना. पु.वि. बीचबीच के पत्र हैं. दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२७४११, ७-११४३३-४०).
बृहत्सङ्ग्रहणी आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि अंति
7
"
"
(२६×११.५, ११x४१-५०).
अंजनासुन्दरी रास, मागु., पद्य, आदि:- अंतिः
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,
७०२८. अञ्जनासती रास अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २०-८ (१ से ६.९.१२ ) - १२, जैवेना. पु. वि. बीच-बीच के पत्र हैं..
.
"
७०२९. महाबलमलयसुन्दरी चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८-४२ (१ से ४२ ) = ६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्रस्ताव१ ढाल-३५ गा.११ से प्रस्ताव - २ ढाल - १ गा .२ अपूर्ण तक है., ( २५x११.५, १७×३५-३८).
मलयासुन्दरी रास, मु. जिनहर्ष, मागु पद्य वि. १७५१, आदि:-: अंति.
"
(+0)
७०३१. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ५१. जीवविचार संपूर्ण है परंतु
प्रतिलेखन पुष्पिका पत्र नहीं है., संशोधित, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प, (२५.५X११.५, ५X३०-३४). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ .. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवनमांहि प्रदीप अंतिः सिद्धान्तनु लेइने.
७०३२. क्षेत्रसमास व जापविधि- फल, संपूर्ण वि. १६६४ श्रेष्ठ, पृ. १३ -१ ( १ ) - १२ पे. २ जैवेना. ले. स्थल वीरमगाम, ले. ऋ. कांहानजी गुडलिया (गुरु ऋ. हेमा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, ( २६११, ११-१२४३३-३६). पे. १. पे नाम, खेत्तसमास, पृ. २अ १३अ पूर्ण
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः णा झा सम्मदिट्ठीए., पे.वि. गा. २३९ अध्याय ६ अधिकार. प्रथम पत्र नहीं है. गाथा १ से ९ नहीं है.
पे. २. जापविधि व प्रकीर्णफल श्लोक, सं., पद्य, (पृ. १३आ - १३आ, संपूर्ण), आदिः अङ्गुल्याग्रे च; अंतिः कनिष्ठा न कदाचन, पे. वि. श्लो. २.
(२६४१०.५ १२-१४४३२-३८).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति:
७०३३. गौतमपृच्छा सह वृत्ति अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६ जैदेना. पु.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. १ से ३० तक है..
"
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गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदिः वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंतिः
७०३४. भुवनदीपक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. पु. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.४९ तक है..
"
(२६४१०.५, ११-१३४३३-४२).
भुवनदीपक आ. पद्मप्रभसूरि सं., पद्य वि. १३५ आदि सारस्वतं नमस्कृत्य अंति:
"
भुवनदीपक बालावबोध *, मागु., गद्य, आदि: सरस्वती नै नमस्कार; अंतिः
अनुयोगद्वारसूत्र आ. आर्यरक्षित, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:
,
७०३६. अनुयोगद्वारसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४१ - १(१) = ४०, जैदेना., पू. वि. प्रथम व अन्त के पत्र नहीं हैं., (२६×११, १३४०४६).
·
७०३७. देवकी गजसुकमाल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. १५-८ (१ से ८) =७, जैदेना ले खुबचन्द, प्र. वि. डाळ- १४,
""
पू. वि. दाल -२ गा. २ तक नहीं है. (२६४११.५, ११४३४-४४).
गजसुकुमाल चौपाई, मागु, पद्य, आदि-: अंति: उजल गमे सोभाग है,
"
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,
७०३८. मृगलीसंवाद रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२ - ३ (१ से ३ ) = ९, जैदेना., ले. ऋ. जीवा, प्र. वि. गा.३५२, पू.वि. गा.७२ तक नहीं है., (२५X११, १३-१७x४२-५०).
मृगलीसंवाद रास, श्रा. जावड, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः होय शिवपुर वास.
७०३९. अन्तगडदशाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २५-६ (१ से ६) = १९, जैदेना, पू.वि. बीच के पत्र है. (२६४११.
"
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे. मू. पू. संबद्ध, प्रा., सं. मागु प+ग, आदि:- अंति:
""
१३X३८-४० ) .
अन्तकृदशाङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदि:-: अंति:
७०४०. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०-१ (१) -९, जैवेना.. पू. वि. प्रथम व अंत के पत्र नहीं हैं..
(२६.५x१२, १०x२९-३४).
७०४३.” चारप्रत्येकबुद्ध रास, पूर्ण, वि. १६९३, श्रेष्ठ, पृ. ३३-२ ( २१ से २२ ) = ३१, जैदेना., प्र. वि. खण्ड-४, ढाल - ४५, गा. ८२५;
प्र. पु. - मूल ग्रं. ११२०, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, ( २७ ११.५, १३-१६×३३-३८).
४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६५, (संपूर्ण), आदि: सिद्धारथ शशिकुलतिलो; अंतिः आणंद लीलविलास.
- -
७०४४. हरीवंश प्रबन्ध- खण्ड ३ से ७, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना... प्रतिपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना, प्र. वि. प्र. पु. मूल अंश ढाल ११२. गा.२२१३. (२५.५४११, १७५४६-५८),
-
पाण्डव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु, पद्य, वि. १६७६, आदि:- अंतिः
७०४५. हरिबल रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५-२ (१ से २ ) = १३, जैदेना., पू. वि. बीच के पत्र हैं. ढाल - ४ गा. ११ से ढाल
२८ गा. १७ तक है., (२७X११.५, १७-१९५४-६०).
हरिबल रास, मु. भावरतन मागु, पद्य, आदि अंति
गौतमपृच्छा-बालावबोध+ कथा' माग गद्य, आदि एकई गामि धनसार इसिइ अंति:
"
७०४७. चारशिखामण रास, पूर्ण, वि. १६४१, मध्यम, पृ. १६, जैदेना., ले.- मु. गोविन्द, प्र. वि. गा.२८०, पू. वि. गा. १ से २४ नहीं
है., (२७X११, ११३३-३७).
सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १५४८, आदि:-; अंतिः शिवसुख अविचल पामस्यइ.
७०४८. गौतमपृच्छा सह बालावबोध+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-७ (१७ से २३ ) = १९, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. गा. ४४ तक है., ( २६.५X११, १४-१५X३२-३७).
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं अंति:
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२०७
"
७०४९.” नवतत्त्व सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २३-१२ (१ से ६,९ से १०, १८ से १९, २१ से २२ ) = ११, पे. २, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६X१२, १५X३४-४०).
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पे- १. पे. नाम. नवतत्त्व सह बालावबोध, पृ. ७-१७आ
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: अंति:
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध *, राज, गद्य, आदि:-; अंति:-, पे.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. गाथा २१ से ४७ तक है.
पे. २. पे नाम, जीवविचार सह वालावबोध, पृ. २०३-२३आ
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः
जीवविचार प्रकरण बालावबोध' मागु, गद्य, आदि अंति, पे.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.
७०५१. एकवीसा ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६ जैदेना. पु. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.६६ तक है. (२५.५४११.५,
१२-१३४३८-४०).
कलावतीसती रास, कवि विजयभद्र, मागु, पद्य, आदि भरतक्षेत्रइ रे नयरी; अंति:
७०५२. कल्पसूत्र सामाचारी व्याख्यान सह टीका, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३ - १ ( १ ) = १२, जैदेना, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६४११.५, १५४२९-४३)
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी प्रा. गद्य, आदि:-: अंति:
.
कल्पसूत्र- टीका सं., गद्य, आदि:-: अंति:
"
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७०५४.” विक्रमराजा अबोलाराणी रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११-५ (१ से ५) = ६, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ३२५, दशा वि.
अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प (२५.५४११.५ १५४२८-४२).
विक्रमचौबोली रास पुण्यफलकथन, वा. अभयसोम, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदि:-; अंतिः मतिसुन्दर काजे कही..
७०५५. मृगाङ्कलेखा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा. २९० अपूर्ण तक है.,
(२७.५४११.५, १६-१००४४०-४६)
मृगाङ्कलेखा चीपाई मागु, पद्य, आदि गोयम गुणहर पय: अंतिः
"
७०५६. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९५-१५७(१ से १५७ ) = ३८, जैदेना, पू. वि. प्रारंभ व अन्त के पत्र नहीं हैं. अध्ययन-३४ गा.२१ से अध्ययन - ३६ गा. २१७ तक है., (२५X११.५, ५x२४-३२).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि:: अंति:
७०६१. मुनिपति चरित्र, अपूर्ण, वि. १९१५ श्रेष्ठ, पृ. ३७-३२ (१ से ३२) -५, जैदेना. ले. स्थल. खेतडी ले. ऋ. नेणसुखदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल -६५, पू. वि. प्रारंभ से खंड-४ ढाल -८ की गा.७ अपूर्ण तक नहीं है., (२५x१२, १७
(+)
१९४४०-४५).
मुनिपति चौपाई. मु. धर्ममन्दिर, मागु पद्य वि. १७२५ आदि: अंतिः नवेय निधानो रे.
७०६२. अनुयोगद्वारसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६० - १० (१ से १० ) = ५०, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. टवार्थ पत्र ५० तक है.. (२६.५४११.५. ४X३०-३४).
अनुयोगद्वारसूत्र आ. आर्यरक्षित, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः
·
अनुयोगद्वारसूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि: अंति:
i
७०६४." मलयागीरी रास अपूर्ण वि. १९वी जीर्ण, पृ. १४-९ (१ से ९)-५, जैवेना. ले. ऋ. मूला ( हसेराजे गच्छ ). प्र. वि.
"
,
"
गा. २०५, अशुद्ध पाठ, पू. वि. गा. १३० अपूर्ण तक नहीं है., ( २६.५x१२, १०x२६-२९).
चन्दनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, प्राहिं., पद्य, आदि:-; अंतिः सञ्जोके दुव एव.
७०६५.” निरयावलियादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रेष्ठ, पृ. ७२, पे. ५, जैदेना., ले. ऋ. वस्ताजी (गुरु ऋ. चन्द्रभाण), प्र.ले.पु. मध्यम. प्र. वि. संशोधित प्र.ले. श्लो. (५०२) मङ्गलं लेखकस्यापि (२६४११.५, ६४३५-४२).
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पे. १. पे नाम. कल्पिकासूत्र सह टवार्थ, पृ. १अ-२९अ
कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०: अंतिः मायातो सरिसणामाओ.
कल्पिकासूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: ते० ते कालने विषइ; अंतिः कुमरना नाम छइ., पे. वि. मूल- अध्याय - १०
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अध्ययन.
पे. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २९अ - ३१आ
कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः महाविदेहे सिद्धे.
कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जउ भं० हे पूज्य; अंतिः खेत्र सीझस्यै, पे.वि. मूल- अध्याय - १०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
अध्ययन.
पे. ३. पे. नाग. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३१आ-५८आ
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जति णं भंते समणेर्ण०: अंतिः चेइयाई जहा संग्रहणीए.
पुष्पिकासूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि ज० जो मं० हे पूज्य अंतिः गाथामाहे छे तिम. पे. वि. मूल- अध्याय १०
अध्ययन.
पे. -४. पे. नाम. पुप्फचुला सह टबार्थ, पृ. ५८आ-६३अ
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः वासे सिज्झिहिंति.
पुष्पचूलिकासूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि जर हे पूज्य श्रमण; अंतिः सर्व पाछली परे कहेवो, पे. वि. मूल-अध्याय
१० अध्ययन.
पे. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ६३अ - ७१आ
वृष्णिदशासूत्र, प्रा. गद्य, आदि जइ णं भंते० पंचमस्स: अंतिः मइरित एक्कारससु वि.
वृष्णिदशासूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जो हे पूज्य श्रमण; अंतिः इग्यारे ज अध्ययने, पे.वि. मूल- अध्याय - १२
अध्ययन.
७०६७.” स्तवनचौवीसी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६१-८ (१ से ४,६, ४८ से ५० ) = ५३, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं, अजितजिन स्तवन अपूर्ण से धर्मजिन स्तवन अपूर्ण तक है, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अंत के कुछ पत्र (२६.५x१२, १४-१६४३२-४०).
स्तवनचीवीसी मु. देवीचन्द्र मागु पद्य, आदि:-: अंति:
स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
७०६९.” भगवतीसूत्र- चमर व खन्दग अध्ययन, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. शतक-३ उद्देश १ सनत्कुमारप्रबन्ध से खन्धक उद्देश-२ अपूर्ण तक है.. (२६.५४११-५, ११४३४-४३),
चन्द्रराजा रास मु. मोहनविजय, मागु पद्य वि. १७८३ आदिः प्रथम धराधव तीम: अंति:
"
7
"
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदि: अंति:
७०७१." चन्दराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८-१(२) - ७, जैदेना, पृ. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२७.५X१२, १३-१५x५१-५६).
७०७२. जीवविचार यन्त्र, संपूर्ण वि. १८८१ श्रेष्ठ, पृ. ७ जैवेना. प्र. वि. पंक्ति- अक्षर अनियमित है.. (२६४११.५४).
"
"
जीवविचार प्रकरण यन्त्र, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः जीवना २ भेद एक अंतिः अनन्त स्थिति छे.
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७०७३. नवतत्त्वविचार यन्त्र व आयुष्य विचार, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., प्र. वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित
है., (२६×११.५x).
पे. १. नवतत्त्व प्रकरण विचार यन्त्र, संबद्ध, मागु., गद्य (पृ. १अ-७अ) आदि जीवतत्त्व प्राणचेतना; अंतिः एक सिद्ध
,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२०९ अनन्त सिद्ध.
पे..२. आयुष्य विचार*, मागु., गद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः १२० हाथीनो आयु १२०; अंतिः कंसरीमासनो. ७०७६." भावना सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६-६५(१ से ६५)=११, जैदेना., प्र.वि. यन्त्रों के साथ., पदच्छेद सूचक
लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ,पू.वि. अन्त के पत्र हैं. प्रारंभ से गा.२७ अपूर्ण तक नहीं है., (२७४११.५, ११४३५
३६).
भावत्रिभङ्गी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि:-; अंतिः पुण्णा दुगुणपुण्णा. ७०७७.” समवायाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.३२० प्रकीर्णक समवाय
अपूर्ण तक है., (२७४११, ११४३५-४२).
समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंति:७०८०. नन्दीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-६(१ से ६)-५, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२७X१२, १३-१४४३४-३६). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:
नन्दीसूत्र-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः७०८१. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-७(१ से ७)=६, जैदेना.,पू.वि. बीच के पत्र हैं. अध्ययन-४ गा.१० से
अध्ययन-५ उद्देश-२ गा.८ तक है., (२६.५४११.५, ११४३२-३५).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि:-; अंति:७०८२." नवतत्त्व चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(१ से २)=१०, जैदेना., प्र.वि. ढाळ-९, पू.वि. ढाल-२ गा.१० तक
नहीं है., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६.५४१२, ११४३६-३९).
नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः गणतां सम्पति कोडि. ७०८३. सङ्ग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-५(१ से ५)=९, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा.३५ से १०२ तक
है., (२६४११.५, ५४३२-३३).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि:-; अंतिः७०८४.” दशाश्रुतस्कन्धसूत्र सह विषमपदटिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ, पू.वि. प्रथम व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११, ११४३८-४२). दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:
दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-विषमपद टिप्पण', मागु., गद्य, आदि:- अंति:७०८५. सामायिक दृष्टान्त, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. बालोतरानगर, प्र.वि. पत्रांक भाग कीटखादित
__ है अतः कुल पृष्ठ गिनकर पत्रांक दिया गया है.,पू.वि. प्रथम व बीच के पत्र नहीं हैं., (२६x११, ११-१२४३७-४१).
सामायिक के दृष्टान्त, राज., गद्य, आदि:-; अंतिः आठ दृष्टान्त वखाण्या. ७०८६. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, जयतिहुअण स्तोत्र व खरतरगच्छीय सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी,
__ मध्यम, पृ. २०-१०(१ से १०)=१०, पे. ५, जैदेना., (२५४११.५, १४-१५४४१-४८). पे.१. पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, (पृ. -११अ-१२आ, अपूर्ण), आदिः-; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं., पे.वि.
प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे..२. क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण), आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह.,
पे.वि. सूत्र-४ आलावा. पे.-३. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः मुहपत्तिवन्दणयं;
अंतिः पक्खिपडिक्कमणं., पे.वि. गा.२.
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२१०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-४. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, (पृ. १३अ-१५अ, संपूर्ण), आदिः जयतिहुयणवर कप्परुक्ख;
अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय., पे.वि. गा.३०. पे.५. पे. नाम. खरतरगच्छीय सप्तस्मरण, पृ. १५अ-२०आ, प्रतिपूर्ण
सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदिः अजिअं जिअ सव्वभयं; अंति:-,पे.वि. मात्र ६
स्मरण है. १, अजितशांति स्तोत्र- गाथा ३९.२, उल्लासिक्कम स्तोत्र- गाथा १७.३, भयहरं स्तोत्र- गाथा २१.
४, सर्वाधिष्ठायक स्तव- गाथा २६.५, मयरद्विय स्तोत्र- गाथा २१ व शीघ्रविघ्नहर स्तोत्र- गाथा १४. ७०८७. लीलावती रास, पूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१)=१०, जैदेना., ले.- मु. हस्तिविजय, प्र.वि. ढाल-२१, गा.३३४,
पू.वि. प्रथम पत्र नहीं हैं. ढाल-२ की ८ गाथा तक नहीं है., (२६४११.५, १६x४०-४७).
लीलावतीसुमतिविलास रास, वा. उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७६७, आदि:- अंतिः सुख सम्पति सूरसालजी. ७०८८. पार्श्वजिन, शीखामण व माणिभद्र छन्द, अपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ४, जैदेना., ले.- पं. मनरूपसागर (गुरु
गणि माणिकसागर), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११.५, ११४२९-३२). पे.-१. पार्श्वजिन छन्द-अमीझरा, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण), आदि: उठत प्रभात अमीझरो; अंतिः अमीझरा एती
पुरो आस ए.,पे.वि. गा.१८. पे.२. औपदेशिक छन्द-त्रोटकनामा, कवि दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ, संपूर्ण), आदिः वरदायक माय सलाम
करी; अंतिः त्रोटक नामह छंद खरो., पे.वि. गा.९. पे.-३. पार्श्वजिन छन्द-भीडभञ्जन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण), आदि: वारु विश्वमां देस; अंतिः
आज नवनिधि पामी., पे.वि. गा.२५. पे.४. माणिभद्रवीर छन्द, मु. उदयकुशल, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ-, अपूर्ण), आदिः सरस वचन द्यो सरसती; अंति:
पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १ से १३ तक है. ७०९०. पदचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. पद-२० के गा.५ तक है., (२६४१२,
१७४४१).
स्तवनचौवीसी, श्रा. विनयचन्द्र कुमट, मागु., पद्य, वि. १९०६, आदिः श्रीआदिश्वर सामी हो; अंतिः७०९१. ठाणाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५०-६२(१ से ६०,१४८ से १४९)=८८, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२७X११, ११४३९-४०). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:७०९२. परदेशीराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-३(१ से ३)=१०, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. ढाल-१३ गा.५ से
ढाल-२६ दोहा १ तक है., (२७४११, १७-१८४३४-४०).
प्रदेशीराजा रास*, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:७०९३. शालीभद्र रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना.,पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ढाल-१७ गा.१४ तक है., (२८x१०.५,
१४४३०-३४).
शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंति:७०९५. अनेकार्थध्वनिमञ्जरी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८-२(१,७)=६, जैदेना., प्र.वि. ३ अधिकार, पू.वि. प्रथम व बीच का
___ एक पत्र नहीं हैं., (२७ ११.५, १३४३९-४२).
अनेकार्थध्वनिमञ्जरी, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः सौभाग्यं पठतामनिशं. ७०९६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३०, जैदेना., प्र.वि. पन्ने अस्त-व्यस्त व फटे हुए
हैं जिससे पत्रांक का पता नहीं चलता।, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२६४११, ७X४२-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:- अंति:
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२११ कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७०९७. उत्तराध्ययसूत्र - अध्ययन ३६, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.२४८ तक है.,
(२८x११, १६-१७४३६).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः- अंति:७०९८. कर्मग्रन्थ १ से ४ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-५(१,१३ से १५,२१)=२३, पे. ४, जैदेना.,प्र.वि.
पत्रांक अस्तव्यस्त है., पंचपाठ, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२६.५४११.५, ४-७X४५-४७). पे.१. पे. नाम. कर्मविपाक सह बालावबोध, पृ. -२अ-७आ, पूर्ण
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध', मागु., गद्य, आदि:-; अंति: देवेन्द्रसूरि कहिउ., पे.वि. मूल-गा.६१. प्रथम
पत्र नहीं है. गा.३ अपूर्ण तक नहीं है. पे.२.पे. नाम. कर्मस्तव सह बालावबोध, पृ. ७आ-१२आ-, संपूर्ण
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः हिव कर्मस्तवनउ; अंतिः प्रतिइ नमो स्तवो., पे.वि. मूल
गा.३४. पे..३. पे. नाम, बन्धस्वामित्व सह बालावबोध, पृ. -१६अ-१९अ, अपूर्ण
बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः सांभली नई जाणिवो., पे.वि. मूल-गा.२५.
प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.१० तक नहीं हैं. पे.-४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. १९अ-२८आ-, अपूर्ण
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जिय; अंति:षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः तीर्थकरनइं नमस्करी; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
___ गा.६६ तक है. ७०९९.” राजप्रश्नीयसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५-३२(१ से ३,८ से ९,१५ से १९,२१ से ४१,४३)=१३, जैदेना., प्र.वि.
पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२७४१०.५, ९४३१-३४).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः७१००. प्रबन्धकोश, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२-१(५१)=५१, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२८.५४१०.५,
१०-११४४५-४७).
प्रबन्धकोश, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४०५, आदिः राज्याभिषेककनकासनस्थ; अंति:७१०१." आवश्यकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३-१६(१ से १५,२०)=२७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि.
बीच-बीच के पत्र हैं., (२५.५४११, १७४५०-५६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध', मागु., गद्य, आदि:- अंति:७१०२." साम्बप्रद्युम्न रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-२(१,९*)=१७, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. ढाल-२ गा.७ से
__ढाल-२१ दोहे ३ तक हैं., (२६४११, १५४४०-४६).
साम्ब प्रद्युम्न प्रबन्ध, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६५९, आदि:-; अंति:७१०३. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-८(१ से ५,७,१२,१४)=१०, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. गा.१३२
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२१२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची से ४३७ तक है., (२६.५४११.५, १३४४६-५१).
उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:७१०४." दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६-३(१ से ३)=१३, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. अध्ययन-४ अपूर्ण
से दूसरी चूलिका गा.४ तक है., (२६.५४११, १५४५०).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि:-; अंति:७१०५. नवकार रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र.६, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.११० तक है., (२७४११, ११
१२४३७-४४).
नमस्कारमहामन्त्र रास, मागु., पद्य, आदिः सकल मनोरथ पुरवो; अंतिः७१०६. अम्बड चरित्र, अपूर्ण, वि. १६५१, मध्यम, पृ. ३८-१६(१ से १६)=२२, जैदेना., ले.स्थल. खरोडग्राम, ले.- आ.
हर्षसागरसूरि, राज्यकाल- राजा अकबर,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.१२२०, ग्रं. १११६, पू.वि. प्रारंभ से आदेश-४
श्लो.८४ तक नहीं है., प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६४११, १३४३९-४४).
अम्बड चरित्र, आ. मुनिरत्नसूरि, सं., पद्य, आदिः धर्मात् सम्पद्यते; अंतिः तावद्वाच्यमानं बुधैः. ७१०७.” श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ व चौदनियमगाथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(५)=५, पे. २, जैदेना.. पू.वि.
गा.३३ से ४२ तक नहीं है., (२६४११, ५४३४-३६). पे.१.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-६अ, अपूर्ण
वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धे; अंतिःवन्दित्तुसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:-, पे.वि. संबद्ध-गा.४३. बीच का एक पत्र नहीं है. गा.३३ अपूर्ण से
४२ तक नहीं है. पे.२. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः सच्चित्त दव्व विगई; अंतिः दिसि न्हाण भत्तेसु.,
पे.वि. गा.१. ७१०८." भगवतीसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४०८-४०३(१ से १९२,१९४ से १९६,१९८,२०० से ४०६)-५,
जैदेना.,प्र.वि. पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२६.५४११, ११४३७-४२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
भगवतीसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः७१०९. सुपार्श्वजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. प्रारंभ से गा.२७१ तक है.,
(२६.५४११, १४-१५४३१-३७).
सुपार्श्वजिन विवाहलो, आ. विनयदेवसूरि, मागु., पद्य, वि. १६३२, आदिः सुन्दर सुगुण सुहामणउ; अंति:७११०. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. पत्रांक भाग खंडित होने से उपलब्ध अंतिम पत्र
को पत्रांक ५ दिया गया है., पू.वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, १०-११४३५). प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः७१११. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३२-२३(१ से २३)=९, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. अध्ययन-१५ गा.१
से अध्ययन-२० गा.१ तक है., (२६४११, १३-१४४२९-३८).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:७११२. नवतत्त्व प्रकरण, विचारषट्त्रिंशिका व ज्योतिष श्लोकसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८३७, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., पठ.
मु. जगनाथ, (२४.५४११, १४४३२). पे.-१. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-३अ), आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः तिन्निवि ए पउवा एया., पे.वि.
गा.५३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२१३ पे.२.पे. नाम. विचारषट्त्रिंशिका, पृ. ३अ-५अ
दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.४४. पे..३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोकसङ्ग्रह, पृ. ५अ-५अ
____ ज्योतिष*, सं.,मागु., पद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. श्लो.५+१. ७११५. गौतम कुलक की वृत्ति व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९-२२(१ से २२)=१७, जैदेना., ले.- ऋ. गणेश, प्र.वि.
प्र.पु.-टीका-६९ कथाएं., पू.वि. गा.३८ तक की टीका नहीं है., (२५x१०.५, १३-१४४४३-५५).
गौतम कुलक-टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदि:-; अंतिः भुवि चिरं जीयात्. ७११६. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६१-४०(१ से ३९,४३)=२१, जैदेना., प्र.वि. ३६अध्ययन, पू.वि. अध्ययन
२४ गा.६ से है., (२६४११, १४-१५४३८-५५).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. ७११७. वैदर्भी चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. ६, जैदेना., पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-७ की गा.५ तक है., (२६४११,
१३४३६-४८).
दमयन्ती चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मागु., पद्य, आदिः जिण धरम मांहि दीपता; अंति:७१२०. सूयगडाङ्गसूत्र सह दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९-१(१६)=३८, जैदेना., पृ.वि. बीच व अंत के पत्र
___नहीं हैं. प्रारंभ से नरक विभक्ति के द्वितीयोद्देश गा.१२ तक है., (२४.५४१०.५, १७४५४-५७). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति:
सूत्रकृताङ्गसूत्र-सम्यक्त्वदीपिका टीका, उपा. साधुरङ्ग, सं., गद्य, वि. १५९९, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति:७१२१. जीवविचार चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१)=१४, जैदेना., पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण. गा.१ से १३ तक नहीं हैं एवं गाथा २०६ तक लिखा है., (२६.५४११.५, ९४३५-३९).
जीवविचार चौपाई, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः७१२२.” कल्पसूत्र-गणधरवाद का बालावबोध, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि.
बीच के पत्र हैं. गणधरवाद से प्रारंभ किया है., (२६.५४११, १३४४०-५२). कल्पसूत्र-बालावबोध , मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंति:७१२३. विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-८(१ से ३,९ से १०,१५,१७,२०)=१५, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र
हैं., (२६.५४११, ११-१२४३४-३९). जिनदाढादि विचारसङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७१२४. आवश्यकनियुक्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७४-३०(१ से ३०)=४४, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६.५४११.५,
१५४४७-५५).
आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:७१२५. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-५(१,३,५,१२ से १३)=१६, जैदेना., पू.वि. बीच
बीच के पत्र हैं., (२६.५४१०.५, १३४४२-४७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७१२६. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र हैं. अध्ययन-३५ गा.१ से हैं., (२५४१०,
११४३७-४०).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पसाया अहिजेज्झा. ७१२७." श्रीपाल रास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०-६५(१ से ३०,३३ से ३६,३९ से ४२,४४,४६ से ५०,५२ से
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२१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
६९,७७,८७,८९)=२५, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. टबार्थ कहीं-कहीं है., (२५.५X११, ६-११४३३-३६).
श्रीपाल रास उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु पद्य वि. १७३८ आदि अंतिः
श्रीपाल रास-टबार्थ* मागु., राज, गद्य, आदि:-; अंतिः
,
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७१२८. नूतन ढालसागर व गाफल लावणी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १० - १ (८) = ९, पे. २, जैदेना., पू.वि. बीच के व अंतिम
पत्र नहीं हैं.. (२५.५४११.५. १७४६६).
उत्तराध्ययनसूत्र- राज्झाय मु. ब्रह्म संबद्ध, मागु ७१३०. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी
पे. १. नूतन ढालसागर, ऋ. चोथमल राज, पद्य, (पृ. १आ-३आ + ९अ १०आ ) आदि श्रीमत् शान्तिप्रभू: अंति, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पत्र ३आ पर ढाल ९ गाथा ४५ तक है तथा इसी का अवशेष पाठ पत्र ९अ से है जो ढाल १७वीं की अधूरी प्रथम गाथा तक है..
पे. २. कंसकृष्ण विवरण लावणी, ऋ. विनयचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३आ- ९अ ), आदि: गाफल मत रहे रे मेरी; अंतिः सुणतां स्नेही आणंद, पे.वि. ढाळ-२७. बीच का एक पत्र नहीं है. ढाल २७वीं गा १ से ३१ तक नहीं है. ७१२९. उत्तराध्ययनसूत्र भास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६ - १० ( १ से १० ) = ६, जैदेना., ले. ऋ. जेठा, प्र. वि. ढाल - ३६भास,
पू.वि. प्रारंभ से अध्ययन - २३ के गा १९ तक पाठ नहीं है., (२५.५x१२, १६४३६).
पद्य वि. १७वी, आदि:-: अंतिः जिनभाषित निरतउ जाणउ. श्रेष्ठ, पृ. २७-१५(१ से १५ ) - १२, जैवेना. पु.वि. बीच के पत्र हैं. अध्ययन - ५ की गा.२९ से अध्ययन - १० की गा.८ तक है., ( २६.५x११.५, ६×३२-३९).
उत्तराध्ययन सूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि:-: अंति:
उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ' मागु गद्य, आदि: अंतिः
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७१३२. बोल सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४ - ९ (१ से ९) = ५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५X११.५, २९x१९). ५८ बोल सङ्ग्रह सं.प्रा. मागु, गद्य, आदि:-: अंतिः
·
७१३३. सुक्तमाला अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना.. पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. वर्ग-४ गा. १३ तक है., (२५.५०११,
१४-१५४३८-४८).
सूक्तमाला मु. केशरविमल, सं. मागु, पद्य, वि. १७५४ आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द अंतिः
७१३६. रिषिदत्ता चउपही अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-६ (१ से ६) -८, जैदेना. प्र. वि. गा. ३०२. पू. वि. गा. १३३ तक नहीं
है., ( २६.५x११, १४४३६-३७).
ऋषिदत्तासती चौपा- शीलव्रतविषये, मु. देवकलश, मागु. पथ, वि. १५६९, आदि:-: अंतिः विधन सवि दृरि,
"
"
७१३७. व्यवहारसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-३(१९ से १० ) = ८, जैदेना. प्र. वि. एक पत्र पत्रांक भाग के साथ आधा फटा हुआ है., ( २६११.५, १८-१९४३९-४१).
व्यवहारसूत्र - बालावबोध *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
,
७१३८. भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अंतिम पत्र, पू.वि.
"
अन्त के पत्र नहीं हैं. काव्य- २७ तक है व टबार्थ मात्र प्रथम पत्र पर ही है., (२५x१२, ४-६x२४-२९).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः
७१४०. हरिवंश प्रबन्ध, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ९-२ (१ से २ ) =७, जैदेना, पू. वि. बीच के पत्र हैं. गा. १० से ९३ तक है.,
(२५४१०.५. १४-१५४३९-४२).
पाण्डव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदि:-; अंतिः
७१४१. अमरसेनवयरसेन चौपाई, अपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना, पू.वि.] अन्त के पत्र नहीं हैं. डाल-८ की गा.४ तक
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२१५
है., (२४.५४११.५, १४४३३-४१).
अमरसेन वज्रसेन चौपाई, मु. जीवसागर, मागु., पद्य, वि. १७६८, आदिः तीर्थधणी त्रिभुवन; अंति:७१४३. धर्मबिन्दु सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १०-४(१ से २,७ से ८)=६, जैदेना., प्र.वि. मूलपाठ कहीं-कहीं
नहीं हैं..पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. गा.६ से ४७ तक है., (२६.५४११.५, १८-१९४६२-७०). धर्मबिन्दु प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंति:
धर्मबिन्दु प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७१४४. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७२-१५५(३ से ५.९ से १०,१४ से १६१,१६४ से १६५)=१७,
जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र हैं., (२६४११, ५४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थी, मागु., गद्य, आदिः संयोग बे प्रकारे; अंति:७१४५. मुनिपति चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-१९(१ से १५,१८ से १९,२४ से २५)-७, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के
__ पत्र हैं., (२५.५४११.५, १७४३६-४०)..
मुनिपति चरित्र, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७१४६." नन्दीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-५(१ से ४.९)=५, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,
(२५४११.५, १५४५२).
नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः७१४७. सुक्तमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.. पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. वर्ग-४ गा.८ तक है., (२६.५४११.५,
१८X४८).
सूक्तमाला , मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंतिः७१४८. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७-३९(१ से २५,३१ से ४४)=८, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के
पत्र हैं., (२६४११.५, ५४३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि:-; अंति:
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७१५०. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४८-८२(१ से ६,२५ से ४२,६६,७२ से
१२७,१६४)+३(५८,२१०,२२४)=१६९, जैदेना.. पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२६४११.५, १०४३१-३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र-बालावबोध', मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंति:७१५१. मानतुङ्गमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ढाल-९ दोहा-४ तक है.,
(२५.५४११.५, १५४५३). मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द
पदाम्बुजे; अंतिः७१५२. पच्चीस बोल, आदिजिन व पार्श्वजिन श्वासोश्वास प्रमाण, अपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३)=५, पे. ३,
जैदेना., ले.स्थल. देवलगांव, (२६४१२.५, १६४५५). पे:१.२५ बोल, मागु., गद्य, (पृ. -४अ-८अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः यथाख्यातचारीत्र., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. बोल
१ से अपूर्ण ७ तक नहीं है. पे..२. आदिजिन पार्श्वजिन श्वासोश्वास प्रमाण, मागु., गद्य, (पृ. ८आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. पे..३. पार्श्वजिन श्वासोश्वास प्रमाण, मागु., गद्य, (पृ. ८आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१५३. सिन्दूरप्रकर, पूर्ण, वि. १९५९, मध्यम, पृ. १७-१(१)=१६, जैदेना., ले.स्थल. निबलीग्राम, प्र.वि. श्लो.८९, पू.वि. गा.१ से
६ तक नहीं है., (२६.५४१२, ७४२७-३२). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः- अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. ७१५४. सिन्दूरप्रकर सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. टबार्थ पत्र ९आ
तक ही लिखा है. गा.१ से ६५ तक है., (२५४१२.५, ५४३०-३६). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति:
सिन्दूरप्रकर-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः सिन्दूरनो प्रकर; अंति:७१५६. सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५-११(१,३ से १२)=३४, जैदेना., पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.
.. (२५४१२, ७४३९-४२). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-: अंति:
सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७१५७. अणुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. ११-६(१ से ६)=५, जैदेना., ले.- मु. उमेदचन्द्र,
(२५.५४१२, ८४५५). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं.
अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:- अंतिः तिमही ज जाणवो. ७१५८. भक्तामर स्तोत्र सह सुखबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. १३-३(१ से ३)=१०, जैदेना., ले.स्थल.
तागपुरग्राम, ले.- ऋ. भैरवचन्द्र, पू.वि. काव्य-१ से १० तक नहीं है., (२७४१२.५, १४४३६-३७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः समुपैति लक्ष्मी..
भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः शोध्यतामियम्. ७१५९. ऋषभपञ्चाशिका सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. २४-१९(१ से १९)=५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, त्रिपाठ,
पू.वि. गा.४६ से ५० तक है., (२६४१२, १४३२). ऋषभपञ्चाशिका, कवि धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि:- अंतिः बोहित्थ बोहिफलो.
ऋषभपञ्चाशिका-टीका* , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः कर्तुरभिधानमिति.. ७१६०. उत्तराध्ययनसूत्र-३६ अध्ययन, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.१९६ तक है.,
(२६४१२.५, १५४३९).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:७१६१. जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-२(१ से २)=११, जैदेना.. पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
(२५४१२.५, ७४३८-४०). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः७१६२." कल्पसूत्र-साधुसमाचारी की कल्पद्रुमकलिकाटीका, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-५(१ से ५)=९, जैदेना., प्र.वि.
संशोधित, (२५४१२, १३४३८-४१).
कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, (अपूर्ण), आदि:-; अंतिः जिनदत्तसूरिः. ७१६३. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१)=१९, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा.५ से ३९
तक है., (२७४१२, १५४४०-४१). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
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२१७
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२ ७१६४. अणुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-५(१ से ५)=७, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
(२५.५४१२, ५-७X४४-५३). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:
अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः७१६५. कयवन्नाश्रेष्ठि चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(१ से २)=६, जैदेना., ले.- ऋ. रघुनाथ (गुरु मु. मङ्गलसेन),
प्र.वि. ढाळ-४, पू.वि. ढाल-१ नहीं है., (२६४१३, १२-१६४३३-३५).
कयवन्ना चौपाई, ऋ. फतेचन्द, मागु., पद्य, वि. १८८१, आदि:-; अंतिः पोषवद इग्यारस सुहाय. ७१६६. चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. १०, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. देशावगासिकव्रत अतिचार
तक है., (२६.५४११.५, १७-१८४४८-४९).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, सं.,मागु., गद्य, आदिः सामायिक आवश्यकव्रत; अंतिः७१६७. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२६.५४१२, १०४३९).
पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति:७१६८." श्राद्धपाक्षिकादि अतिचार व पञ्चमी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ७, पे. २, जैदेना.. पू.वि. अन्त के पत्र नहीं
हैं., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२७४११.५, १२४३७). पे-१. पे. नाम. श्राद्धपाक्षिकादि अतिचार, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण
श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नाणंमि दंसणंमि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. पे..२. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ-, अपूर्ण), आदिः अनन्त सिद्धने करूं; अंति:
पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७१६९." भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५३-३८(१ से ४,१४ से ४७)+१(६८)=११६, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. शतक-२४ के १ उद्देश तक है.,
(२७.५४१२, १४-१५४३८-४१).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:७१७०. खरतरगच्छीय प्रतिक्रमण सूत्रसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं.,
(२५.५४११, १४४३५-४२). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः णमो अरिहन्ताणं० जयउ; अंति:७१७१. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. भक्तामर की १ से ६ गाथा तक है.,
(२६४११, १२४३८-४०).
नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंति:७१७२. भारतद्विशतपणट्ठी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-६(७ से १२)=७, जैदेना.,पू.वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं.
गा.१ से १०४ व २३५ से २५४ तक है., (२६४११.५, १२४५२-५८).
पाण्डव चरित्र, आ. रामचन्द्रसूरि, प्राहिं., पद्य, आदि: गर्व मत करो रे मेरी; अंतिः७१७५. अनुयोगद्वार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., (२६.५४१२, ४४३१-३७).
अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षित, प्रा., प+ग, आदिः नाणं पञ्चविहं; अंति:
अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः ना० ज्ञान पञ्च; अंतिः७१८२.” ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं.
गा.३०८ तक है., (२७४११.५, २१x६१). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंति:
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,
२१८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
७१८३.” स्तवचौवीसी सह अवचूर्णि व नवग्रहगर्भित स्तम्भकपार्श्वजिन स्तव, अपूर्ण, वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. १६-९(१ से ९)=७, पे. २. जैवेना. ले. पं. यशविजय पठ. आ. विजयदिन्द्रसूरि प्र. वि. संशोधित त्रिपाठ, (२८४१२, ४-५०४३-४५), पे.-१. पे. नाम. स्तवचौवीसी सह अवचूर्णि, पृ. -१०अ १६अ, अपूर्ण
जिनस्तवचौवीसी, मु. समन्तभद्रस्वामि सं., पद्य, आदि अंतिः मतं समन्तभद्रं सकलम्.
7
;
स्तवचांवीसी अवचूरि, सं. गद्य, आदि अंति: नयभक्त्यवतं सकलम्. पे.वि. मूल- अध्याय २४ स्तव प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. स्तवन १६ की गाथा १ तक नहीं है.
पे. २. पे. नाम. नवग्रह श्रीस्तम्भकपार्श्व स्तव, पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तव- स्थम्भन नवग्रहगर्भित सं., पद्य, आदि जीयाज्जगच्चक्षुर अंतिः चकोरप्रमदं तनोतु नः पे.वि. श्लो. १२.
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७१८६. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. स्तवन- ११ तक है., ( २६×११.५, ११x२७-३३).
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स्तवनचीवीसी मु. मानविजय, मागु पद्य, आदि ऋषम जिणन्दा ऋषभ अंति:
""
७१८७. नीसिथसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, जैवेना. पु.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है - अल्प (२५.५४१०.५, १९ २०४४१-४६)
निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि जे मिखु हत्थ अंतिः
७१८८. मृगावती चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७- २ (१ से २ ) =५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा. ३३ से १३० तक है., (२७४११.५, १३-१५४३१-३४).
मृगावती चौपाई *, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:
७१८९. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११-१ ( ६ ) = १०, जैदेना, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. अध्ययन-६ गा. ५० अपूर्ण तक है., (२६X११, १६-१७३७-४०).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि प्रा. पद्य वी स्वी आदि धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ: अंति
७१९१. बलिनरेन्द्र कथा, त्रुटक, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३७-३०(१ से ७९ से ११, १४, १६ से २५.२७ से ३०.३२ से ३६ ) =७, जैदेना. प्र. वि. एक पत्र बिना नम्बर का ज्यादा हैं, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, ( २६४१२.५, १५०४०-५२).
भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः नरेन्द्रर्षिः केवली.
७१९२. मानतुङ्गमानवती रास अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३५-१२(१ से ८, १६.३१ से ३२,३४ ) - २३, जैवेना. पु.वि. बीच-बीच
,
के पत्र हैं. ढाल - ९ गा. १० से ढाल - ३६ दूहा २ तक है., (२५.५x११, १३×३६).
"
"
मानतुद्गमानवती रास- मृषावादविरमण अधिकारे मु. मोहनविजय, मागु पद्य वि. १७६०, आदि: अंति:
,
"
अंत के पत्र नहीं हैं. खंड-३ ढाल - २ गा. १३
७१९३. हंसराज वछराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना. पू. वि.
तक है., ( २५x११, १४४३६-३७).
हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि मागु, पद्य, वि. १६८०, आदि
आदिसर आदे अंति
७१९४. मलीअरिहन्तनी चिरित्र अपूर्ण वि. १९६२. श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (६) - ६, जैवेना. ले. स्थल. जगरी ले. साध्वीजी मकुजी (गुरु साध्वीजी चीमनाजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - १७, पू. वि. बीच का पत्र नहीं है., ( २६ ११, १८x४५).
मल्लिजिन चौपाई. मु. जेमल- शिष्य मागु पद्य वि. १८२० आदि नमस्कार अरिहन्तनै; अंतिः भणता गुणता जयकार. ७१९५. सूक्तमाला, अपूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. १०-५ (१ से ४७ ) -५, जैदेना. ले. मु. शुभसागर (गुरु पं. पद्मसागर ). प्र. वि. ४ वर्ग, पू.वि. वर्ग-२ गा. २४ तक नहीं है., (२५.५४११, १७४५२).
सूक्तमाला मु. केशरविमल सं. मागु पद्य वि. १७५४, आदि: अंति: केसरविमलेन विबुधेन,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२१९
७१९६. हरिवंश प्रबन्ध, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८६-७१(१ से ७१ ) - १५, जैदेना. पु.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक से ढाल - ९३ गा. ५ तक है., ( २६ ११, १४४५०-५३). मागु, पद्य, वि. १६७६ आदि अंतिः
i
द्वारा अपूर्ण. ढाल - ७० गा. २१९८ पाण्डव रास. आ. गुणसागरसूरि ७१९८. तेजसिंह रास अपूर्ण वि. १९वी दोहा - ३ तक है., ( २५X११,
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श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से ३) ७, जैदेना.. पू. वि. बीच के पत्र हैं ढाल -६ गा४ से ढाल १९ १६x४४ - ४६ ) .
तेजसिंह रास ऋ. चोथमल मागु पद्य, आदि:-: अंति:
७१९९. बारआरा रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा. ७३ तक है., ( २६ ११.५,
"
११४३०).
१२ आरा रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु, पद्य
७२००. मुनिपति चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२ - १( ४ ) = ११, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६×११.५,
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१२४३६-३७).
मुनिपति चरित्र, मागु., गद्य, आदिः नमिऊण वद्धमाणं; अंति:
७२०२. बोल सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १० -५ (१ से ४,७ ) = ५, जैदेना, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२६×१२.५, १३x४१-४८ ) .
५८ बोल सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
७२०३. बोल सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ ( १ ) = ५, जैदेना., पू.वि. प्रथम पत्र नहीं हैं., ( २६१२, २४x७५).
.
बोल सङ्ग्रह, मागु., प्रा., सं., गद्य, आदि:- अंति:
"
७२०५. धर्मदत्त धनवती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४ - १ ( १ ) = १३, जैदेना., पू. वि. बीच के पत्र हैं. खंड-१ ढाल - २ गा. ९ से खंड-२ ढाल १५ गा. १ तक है. (२४.५४११, १५९४६-४७)
""
धर्मदत्तधनवती चौपाई, मु. कुशलहर्ष, मागु, पद्य, वि. १७८८ आदि अंतिः
(+)
वि. १६७८ आदि सरसति भगवति भारती अंति:
;
७२०६. उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३०-३२ (१ से ३२) ९८, जैवेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. बीच के पत्र हैं. अध्ययन - १० गा. १२ से अध्ययन - २९ गा. ६२ तक है., ( २५x११.५, ५X३९-४०).
उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि:: अंति:उत्तराध्ययनसूत्र - टबार्थ* मागु., गद्य, आदि : -; अंति:
,
७२०७" मलीअरिहन्तनो चीरत अपूर्ण वि. १८२८, श्रेष्ठ, पृ. साध्वीजी उदाजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल २०
६-१(१) -५, जैवेना. ले. स्थल रिया ले. साध्वीजी जीउजी (गुरु प्रतिलेखक द्वारा कृति की रचनासंवत् सूचक गाथा नहीं लिखी गयी है. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२५.५११.५, १९५०).
मल्लिजिन रास ऋ रायचन्द मागु पद्य वि. १८२४ आदि अंतिः सुत्र ग्यातानै जोय.
+
"
P
७२०९. स्तुतिचीवीसी, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६. जैदेना. प्र. वि. श्लो. ९६ अध्याय - २४ स्तुति, संशोधित पू. वि. अंतिम पत्र
"
,
नहीं है. अंतिम गाथा का कुछेक अंश ही नहीं है. दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है. (२६५११, १३x४३-४५).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि सं., पद्य, आदि: भव्याम्भोजविबोधनैक: अंतिः
७२१०. ठाणाङ्गसूत्र, अपूर्ण वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १५१-१४२ (७ से १४७, १५० ) - ९, जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पंचपाठ, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र हैं., ( २६.५X११, ११x४०).
स्थानाद्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: सुर्य मे आउस तेणं अति:
"
;
७२१३. साधुप्रतिक्रमण सूत्रसङ्ग्रह (तपागच्छीय) अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. पु. वि. अंत के पत्र नहीं हैं..
"
(२६×११.५, १३ - १४X३२-३३).
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२२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,गुज., प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं; अंति:७२१४." जिनपालितजिनरक्षित सन्धि, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)-५, जैदेना., प्र.वि. गा.९८, पू.वि. गा.१ से ११ नहीं
__ हैं., (२६४११, १३४४४).
जिनरक्षितजिनपाल सन्धि, मु. शील, मागु., प+ग, वि. १६३२, आदि:-; अंतिः लखपरि पामइ लील. ७२१५. वच्छराजहंसराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-६(१ से ६)=२०, जैदेना., ले.- पं. खुशालविजय, प्र.वि.
खण्ड-४/ढाल ४८, गा.९१६, पू.वि. गा.२०५ तक नहीं है., (२५४११, १७४४६). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदि:-; अंतिः हंस अनै वच्छराज. ७२१६. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७-२७(१ से २७)=३०, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६x१०.५, ९४२२-२६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:७२१७. साम्बप्रद्युम्न चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२, जैदेना.. पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. ढाल- २० अपूर्ण तक है.,
(२५.५४११, १३-१४४३४-३६).
साम्ब प्रद्युम्न प्रबन्ध, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६५९, आदिः श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति:७२१८. मानतुङ्गमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८-३९(१ से ३८,४७)=९, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.
ढाल-२८ के गा.१४ से ढाल-३५ गा.१४ तक है., (२५.५४१०.५, १०४३०-३४).
मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदि:-; अंति:७२१९. सामुद्रिकशास्त्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११,
१८४४९).
सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध , मागु., गद्य, आदिः सामुद्रिकनइ विषइ; अंति:७२२१. औपपातिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८७-३६(१,४ से ८,१०,१४ से १७,२१ से २५,२७,६५ से ६९,७३
से ८६)=५१, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. (२६४१०.५, ६-७४५७-६२). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:
औपपातिकसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७२२२.” कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि.
प्रारंभ के पत्र हैं., (२६४११.५, १०-११४३०-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंति:
कल्पसूत्र-बालावबोध', मागु.,राज., गद्य, आदिः नैतत् पर्वसमं पर्व; अंति:७२२४. नवस्मरण व लघुशान्ति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-२(३९ से ४०)=३९, पे. २, जैदेना., पू.वि. बीच व
___ अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४१२, ४४२२). पे.१.पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पृ. १आ-३८अ, प्रतिपूर्ण
नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंति:नवस्मरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनई माहरो; अंतिः-, पे.वि. बृहत्शांति एवं कल्याणमंदिर नहीं लिखा
पे..२. पे. नाम. लघुशान्ति सह टबार्थ, पृ. ३८आ-४१आ-, अपूर्ण
लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदिः शान्तिं शान्ति; अंति:लघुशान्ति-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:-, पे.वि. मूल-श्लो.१७+२. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. श्लो.३
अपूर्ण से १४ अपूर्ण तक नहीं है व अंतिम श्लोक अधूरा है. ७२२५.” पिण्डविशुद्धि प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पंचपाठ, पू.वि.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
"
प्रथम व अंतिम पत्र नहीं हैं. गा. १ से ५ नहीं है. अंतिम गाथा सटीक अधूरी है. (२६.५X११, ५-७x२९-३६). पिण्डविशुद्धि प्रकरण आ जिनवल्लभसूरि प्रा. पद्य (पूर्ण) आदि अंतिःपिण्डविशुद्धि प्रकरण- दीपिका टीका, आ. उदयसिंहसूरि,
"
"
,
सं., गद्य वि. १२९५, (पूर्ण), आदि:-, अंतिः
,
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,
७२२८. वैदर्भि चौपाई व गजसुकुमाल चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९-४१३ से ५)=५ पे २, जैदेना.. पू. वि. बीच-बीच
,
के पत्र हैं., ( २४४१२, १४-१५४३०-३१).
"
पे. -१. दमयन्ती चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मागु., पद्य, (पृ. ४अ - ९अ), आदि : -; अंतिः पहुंचइ मोक्ष मोझार., पे. वि. प्रथम व बीच बीच के पत्र नहीं हैं.
"
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पे. २. गजसुकुमाल चौपाई. मु. माधव मागु, पथ (पृ. ९आ-९आ) आदि रिठनेमि नामे हुवा अंतिः- पे. वि. मात्र
-
,
प्रथम पत्र है. ढाल २ की प्रथम गाथा अधूरी है.
७२३०. अमरसेनमन्त्रीवयरसेनपरममंत्र रास संपूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. ३३. जैवेना. प्र. वि. खण्ड-४, ग्रंथ रचना के
समीपवर्ती काल मे लिखित (२६४१२.५, १४-१५०३०-३३)
अमरसेन वज्रसेन रास, मु. तेजपाल, मागु., पद्य, वि. १८२४, आदिः प्रथम जिणेशर प्रणमीय; अंतिः प्रकास जय
"
जयकार.
(+)
७२३१. उपदेशमाल प्रकरणं, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २९ जैदेना, प्र. वि. गा. ५४० टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र,
(२४.५०१० १०४११ ).
उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी.
२२१
७२३४.” प्रतिक्रमण सूत्रसङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९ - २ (१ से २ ) = ७, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पृ. वि. बीच के पत्र हैं (२५४११. ५०३२-३४).
प्रतिक्रमणसूत्र सग्रह स्थानकवासी संबद्ध प्रा. प+ग, आदि: अंतिः
प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह*-स्थानकवासी-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः-; अंतिः
७२३५. नेमजिन बाललीला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (५) = ५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं परंतु पत्र क्रमांक १ से दिया है. ढाल २९ से ढाल - ३३ तक है. (२६४११, १५४४७).
नेमिजिन बाललीला, मु. गुणसागर, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः
७२३६.” भाष्यत्रय की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, ( २६.५X११, २१४७७). भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः वन्दि० वन्दनीयान्; अंतिः पच्चक्खाणम० सुगमा.
७२३७.” प्रतिक्रमण सूत्रसङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३- २(२ से ३ ) = ११, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. वंदित्तुसूत्र संपूर्ण व आयरिय उवज्झाए का प्रारंभ तक है., (२५.५५११, ६×३२-३८). प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह. भू. पू. संबद्ध प्रा. सं., मागु प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं अंति:
·
"
प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे. मू. पू. -टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
७२३९. चौरासीमार्गणा यन्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र. वि. * पंक्ति - अक्षर अनियमित है., ( २४.५x११ ). ८४ मार्गणा यन्त्र, मागु., कोष्टक, आदिः #; अंतिः #.
जैदेना.,
७२४३. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रसङ्ग्रह, नवतत्त्व व जीव विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४६, मध्यम, पृ. १८, पे. ३, ले. स्थल जगत्तारिणी, ले. पं. रामचन्द्र (गुरु वा ज्ञानमूर्ति, बृहत्खरतरगच्छ गच्छा. गच्छाधिपति जिनचन्द्रसूरि(बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, (२५.५X१०.५, ७x४९-५५).
पे. १. पे नाम श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रसङ्ग्रह सह टवार्थ, पृ. १आ-१२आ
T
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श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा. मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः जिणे चउव्वीसं. आवक प्रतिक्रमणसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि समोसरणे बइठा अरिहन्त: अंतिः २४ नइ नमस्कार करु.
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२२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे.२.पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. १२आ-१५आ
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः भेद सिद्धना १५., पे.वि. मूल-गा.५१. पे.-३. पे. नाम. जीवविचारसूत्र सह टबार्थ, पृ. १५आ-१८आ
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः भुवन क० त्रिभुवन; अंतिः श्रुतसिद्धान्त थकउ., पे.वि. मूल-गा.५१. ७२४४. अञ्जनासुन्दरी रास, अपूर्ण, वि. १७०३, मध्यम, पृ. २०-८(१ से ८)=१२, जैदेना., ले.स्थल. राजधन्यापुरनगर, ले.
मु. प्रीतविजय (गुरु पं. ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. खण्ड-३/२२ ढाल, गा.६३२; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ९०५, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२५x१०.५, १८४४२-४३).
अंजनासुन्दरी रास, मु. पुण्यसागर, मागु., पद्य, वि. १६८९, आदि:-; अंतिः वृद्धि मङ्गलमाल. ७२४५." सिन्दूर प्रकरण, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.१ से ९४
अपूर्ण तक है., (२५.५४१०, १३४३८-४२). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति:७२४६. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-२(१,१०)=९, जैदेना.,पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. स्तवन-३ गा.५ से
स्तवन-२३ गा.२ तक है., (२६.५४११.५, ११४४७-४९).
स्तवनचौवीसी, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:७२४७. स्थूलभद्र चरित्र, अपूर्ण, वि. १५२६, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, जैदेना., ले.स्थल. गोराणाग्राम, ले.- पं. सरणसाधु गणि,
प्र.वि. श्लो.६८६, संशोधित, पू.वि. गा.१ से ५४ तक नहीं है., (२६.५४११, १७४५६-५८).
स्थूलिभद्र चरित्र, आ. जयानन्दसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः पुण्यशीलप्रवृद्धिम्. ७२४८. सम्बोधसप्ततिका प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना..पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रारंभ से
गा.७५ तक है., (२४४१०.५, ६४३०-३४). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति:
सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमिऊण नमि नइं; अंति:७२४९. लीलावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-१४(१ से १२,२२,२६)=१६, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ढाल
१२ गा.१ से ढाल-२९ गा.१ तक है., (२६४११.५, ११४३६-३८).
लीलावती रास, मु. लालचन्द, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:७२५१. प्रदेशीराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१(१)=२२, जैदेना.,पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा.१६ से ५७८ तक है.,
(२६४११.५, १४-१५४४२-४४).
प्रदेशीराजा रास, ऋ. जयमल्ल, मागु., पद्य, आदि:- अंतिः७२५२." चतुःशरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-४(४ से ५,८ से ९)-६, जैदेना., प्र.वि. मूल
गा.६३., संशोधित, पंचपाठ, (२५.५४११, ४-५४३५-४७). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं.
चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः इदमध्ययनं परमपद; अंतिः भवतीति गाथार्थः. ७२५३." माधवनिदान सह मधुकोश टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०-३१(१ से ३१)=२९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि.
बीच के पत्र हैं. ज्वरनिदान अपूर्ण से कासनिदान अपूर्ण तक है., (२६.५४१२, १६x४३-४८). माधवनिदान, आ. माधवाचार्य, सं., पद्य, आदि:-; अंति:माधवनिदान-मधुकोश टीका, विजयरक्षित, श्रीकण्ठदत्त, सं., गद्य, आदि:-; अंति:
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
७२५६. हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-१८ (१ से १८ ) = १३, जैदेना, पू. वि. बीच के पत्र हैं., (२५x१०.५, १४X३९-४० ) .
हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु, पद्य, वि. १६८०, आदि:-; अंतिः
७२५७." षट्दर्शन विचार व आत्मनिन्दाष्टकादि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम पृ. २३-१६ (१ से १०, १३ से १८) ७ पे ४ जैदेना..
पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है अल्प, (२५.५४११, ११४३०).
पे. १. निरञ्जनाष्टक, सं. पद्य (पृ. ११अ ११अ संपूर्ण) आदि स्थानं न मानं न च अंतिः देव निरञ्जनाय पे.वि.
श्लो. ८.
पे.-२. आत्मनिन्दाष्टक, सं., पद्य, (पृ. ११अ - १२अ, संपूर्ण), आदिः कट्यां चोलपटं तनौ; अंतिः कियज्जानाति तत्केवली., पे.वि. श्लो. ८.
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पे. ३. ६ दर्शन विचार, सं., पद्य, (पृ. १२-१२आ अपूर्ण), आदि जीवो नास्तीति मन्यते अंतिः पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
7
पे. ४. अर्जन सुभाषित सं., पद्य, (प्र. १९अ-२३आ अपूर्ण) आदि अंति, पे.वि. बीच के पत्र हैं. गाथा ३५ से १०० तक है..
७२५८. अमरसेनवयरसेन रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. खंड - १ ढाल - ५ गा. ९ तक है., (२६.५x११, १६x४०).
पद्य वि. १७६८ आदि तीर्थधणी त्रिभुवन अंति:
.
अमरसेन वज्रसेन चौपाई, मु. जीवसागर मागु ७२५९.” कविशिक्षा सह काव्यकल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९ - १ (१) = १८, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पू. वि.
बीच के पत्र हैं. सिद्धि नामक प्रथम प्रतान के आंशिक अपूर्ण प्रथम स्तबक से आंशिक दूसरे प्रतान के प्रथम स्तबक तक है., ( २६.५४१०.५, ११४५०-५२).
कविशिक्षा, श्रा. अरिसिंह, सं., पद्य, ईस. १३वी, आदि:-; अंतिः
कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, यति अमरचन्द्र, सं. गद्य ईस. १३वी आदि:-: अंति:
"
.
२२३
७२६०. सुभाषित सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २८-२३ (१ से २३) ५ जैदेना. पृ. वि. बीच के पत्र है. अनित्याधिकार की गा.६३९ से है, दशा वि. अक्षर फीके पड़ गये हैं, (२५x११, १६४४५).
श्लोकसङ्ग्रह जैनधार्मिक सं., पद्य, आदि:- अति:
पे:-१. सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १आ-२आ-, अपूर्ण), आदिः सकलात्प्रतिष्ठान अंति, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. श्लो. २६ प्रारंभ तक है.
(+)
७२६१.” सकलार्हत्, अजितशान्ति व बृहत्शान्ति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १० - ४ ( ३ से ६) = ६, पे. ३, जैदेना., ले.
गणि जिनसूर मु. हर्षविजय, प्र. वि. संशोधित, ( २६.५११५, ११x२०-२७).
पे.-२. अजितशान्ति स्तव, आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ-८अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह., पे. वि. गा. ४०. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.२८ अपूर्ण से है.
पे.-३. बृहत्शान्ति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., गद्य, (पृ. ८अ - १०आ, संपूर्ण), आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः जैनं जयति शासनम्.
७२६२. आवश्यक सूत्र की नियुक्ति अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ४१-८ (१ से ८) ३३, जैदेना. प्र. वि. संशोधित, (२७४११.५,
"
१९६९-७३).
आवश्यक सूत्र- नियुक्ति आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. पद्य, आदि अंतिः चरणगुणाट्ठिओ साहू.
"
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७२६३. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०३-१९५ (१ से १९५ ) =८, जैदेना. प्र. वि. ३६ अध्ययन, पू. वि. अन्त के पत्र
,
"
हैं. श्लो. १७ अपूर्ण से है. (२५४११.५ ५४२६-३०).
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२२४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुवरिसी एव भासन्ति. ७२६४. नवाणुप्रकारी पूजा व वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. राधिकापुर,
लिखवा.- श्रा. मगन धनजी सेठ, प्र.वि. श्रीगौडीजी पार्श्वनाथ प्रसादात्., (२६.५४११.५, १२४३५-३८). पे.-१.९९ प्रकारी पूजा- शत्रुञ्जयमहिमा गर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८४, (पृ. १आ-७आ), आदिः
श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः आतम आप ठवायो रे., पे.वि. ढाल-११; प्र.पु.-गा.१७५. पे.२.२० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, (पृ. ७आ-१६), आदिः श्रीशर्केश्वर पासजी; अंतिः
सयल सङ्घ मङ्गल करो., पे.वि. ढाळ-२०; प्र.पु.-गा.२७५ आशरे. ७२६५. चन्दनमलयागिरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा.१५ से १८७ अपूर्ण
तक है., (२५.५४११, ११-१४४४५-४६).
चन्दनमलयागिरि रास, प्राहिं., पद्य, आदि:-; अंति:७२६६. विद्याविलास रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. ढाल-११ गा.२२३ तक है.,
(२५.५४११, १५४३६-४६). विद्याविलास चौपाई, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७११, आदिः सरसति नित आपो सुमति; अंति:७२६७. कातन्त्रविभ्रम सह बीजक (अवचूर्णि), अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-३(१ से २,८)=७, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-मूल पाठ, त्रिपाठ, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. कारिका-५ से २६ तक हैं.,
दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४११.५, १-३४३४-३९). हैमविभ्रम, आधारित, सं., पद्य, आदि:-; अंति:
हैमविभ्रम-अवचूरि, मु. चारित्रसिंह, सं., गद्य, वि. १६२५, आदि:-; अंति:७२६८. हरिचन्द्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-३(१ से ३)=६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. ढाल-७ गा.२ से
ढाल-२६ गा.७ तक है., (२५४११.५, १८-२०x४०-४२).
हरिश्चन्द्रराजा चौपाई, मु. कनकसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६९७, आदि:-; अंति:७२६९. कल्पसूत्र सह अन्तर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., (२७४११.५, १२-१३४३३
३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य, सं., गद्य, आदिः पुरिम चरिमाण कप्पो; अंतिः७२७०.” अवन्तिसुकमाल चौपाई व दुहा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(३ से ६)=५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल.
मेडतापुर, ले.- मु. ज्ञानविजय (गुरु पं. मोहनविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दशा वि.
अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५.५४१०.५, १०x२०). पे.-१. अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४१, (पृ. १अ-९अ), आदिः मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंतिः
सुख पावी रे., पे.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. पे..२. दुहा सङ्ग्रह', मागु.,प्रा.,सं., पद्य, (पृ. ९अ-९आ-), आदि:-; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १ से १८
तक है. ७२७१. मानतुङ्गमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. पहिला व अंतिम पत्र का नंबर फटा हुआ है.,
पू.वि. बीच के पत्र हैं. ढाल-२५ गा.१७ से ढाल-३३ दोहा-१ तक है. गा.५३५ से ६८५ तक है., (२५.५४११, १६x४६).
मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदि:-; अंति:७२७२. रामयशोरसायन रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-२(१,१४)=१५, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ढाल-१
गा.१५ से ढाल-१५ गा.५७७ तक है., (२५.५४१२, १७४४६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
रामयशोरसायन रास, मु. केशराज, मागु, पद्य वि. १६८३, आदि:- अंति
७२७३. स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१(२) -५, जैदेना. प्र. वि. २० स्तवन (२६४१२, १३४३८-३९). स्तवनवीसी मु. जसकीर्ति मागु पद्य वि. १७९०, आदि सुजन सुजन सोभागी अंतिः वीसी चढी प्रणाण.
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७२७४. सुदर्शनशेठ कवित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४- २ (१ से २ ) = २२, जैदेना., प्र.वि. गा. १२४, पू.वि. गा. १ से ९ तक
नहीं है., ( २४x११.५, ११-१२x२५-२८).
सुदर्शनसेठ रास, मु. दीपो राज, पद्य, आदि: अंतिः अंहकार ईम दीपो कवित
७२७६. सिन्दूरप्रकर सह टवार्थ व कथा अपूर्ण, वि. १८९९ श्रेष्ठ, पृ. २०७-१९४(१ से १९३,२०२ ) - १३, जैदेना. पु.वि. बीच
बीच के पत्र हैं. गा.८१ से ८५ तक है., (२५४१२, १३x२९). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंति:
सिन्दूरप्रकर-टवार्थ, मु. केसरविजय, मागु, गद्य, आदि: अंति:सिन्दूरप्रकर- कथा मागु, गद्य, आदि:-: अंति:
७२७७. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., (२५.५x१२, १५X३६-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति:
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७२७८. स्तुतिचौवीसी, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लो ४४ तक है., ( २४.५x१०.५,
.
९x३४).
,
स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक: अंतिः
७२७९. हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैवेना. पु.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. खंड-२ ढाल ३ दोहा-६ तक हैव गा. २३४ तक है., (२८x११, १९३७).
हंसराजवत्सराज चौपाई. आ. जिनोदयसूरि मागु पद्य वि. १६८०, आदि आदिसर आदे; अंति:
.
·
७२८०. आदिनाथदेशनोद्धार सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १६१३. श्रेष्ठ, पृ. १३-६ (१ से ६) ७, जैदेना. ले. स्थल, सरधारनगर,
"
पू. वि. प्रारंभ के पत्र गा. ४० तक नहीं हैं., ( २६.५X११.५, ५x२९-३०). आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि:- अंति: सिवं जन्ति.
आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः शिव मोक्ष पहुंचइ.
७२८३.” विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४ - ५ ( १, ५, १० से १२ ) = ९, जैदेना., पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है अल्प (२७४११.५, ३९४१७).
.
विचार सङ्ग्रह' मागु, गद्य, आदि:-: अंति *,
२२५
७२८४. श्रेणिकराजा चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. खंड-२ ढाल - १ गा ४ तक है.,
(२७.५४११.५, १२-१५X३०-४०).
श्रेणिकराजा रास, मु. भीमजी, मागु., पद्य, वि. १६२१, आदिः गोतिमनइ सिर नमिय; अंतिः
७२८५. धर्मोपदेश, सामायिकलाभ दृष्टान्तगाथा व श्रेयांसजिन प्रथमभव कथा, अपूर्ण, वि. १६६९, श्रेष्ठ, पृ. १५-४(१ से
४) - ११, पे. ३. जैवेना. पु. वि. प्रारंभ के कुछ पत्र नहीं हैं. (२७४११.५, १५४३५-३७).
,
"
पे - १. धर्मोपदेश कथा सङ्ग्रह सं. गद्य (प्र. ५अ-१५अ अपूर्ण), आदि: अंतिः धनपति श्रेष्टि कथा. पे. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है.
पे. २. सामायिक लाभ गाथा प्रा. पद्य (पृ. १५-१५ आ. संपूर्ण ) आदि पल्लयगिरि सरिउवल अंतिः सामाइय लाभ दिट्ठन्ता, पे. वि. गा.१.
पे. ३. श्रेयांसजिन प्रथमभव कथा, सं., पद्य, (पृ. १५-१५आ, संपूर्ण), आदि अथ श्रेयांसजीवेन; अंति ललिताङ्गसुरस्सी., पे.वि., श्लो. १४.
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२२६
७२८६. उक्तिरत्नाकर, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ११-२(१ से २) -९, जैवेना. (२७४११५ १९४५०-६०).
उक्तिरत्नाकर, उपा. साधुसुन्दर, प्रा., सं., गद्य, आदि:-; अंतिः चिरं नन्दतु.
७२८९.” दशवेकालिकसूत्र, पूर्ण, वि. १९५० मध्यम, पृ. २२- २(१,१९) २०, जैदेना. ले. स्थल बिकानेर, ले. पं. छगनचन्द्र, प्र. वि. १० अध्ययन र चूलिका प्र.पु. मूल ग्रं. ७०० (२७४१२, १३४४१-४७).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि:-; अंतिः मुच्चइ त्ति बेमि.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
७२९०. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रसङ्ग्रह का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३२, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं.,
(२७.५४१२ १२ १३४३६-४२)
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - बालावबोध, मागु, गद्य, आदि षडावश्यकसूत्राणां अंतिः
पंचाख्यान वार्तिक, सं., पद्य, आदि: कुश्रितं कुप्रनष्टं; अंतिः
पंचाख्यान वार्तिक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः दक्षिणदेश; अंतिः
७२९१. पञ्चाख्यान वार्तिक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा. १ से ८ तक है., (२८.५४१२, १६४३६-३८).
७२९२. प्रदेशीराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, जैदेना, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६११, १४X३८-४२). प्रदेशीराजा रास, मागु., पद्य, आदिः देवतणी रिध देखनै; अंतिः
७२९३. भाष्यत्रय का टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., प्र. वि. द्विपाठ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चैत्यवंदन व गुरुवन्दन संपूर्ण तथा प्रत्याख्यानभाष्य मात्र गा. ७ तक ही है., (२८.५x१०.५, ११×५२-५८). भाष्यत्रय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वन्दित्तु कहितां; अंतिः
७२९४. गुणावली चौपाई व उधार उपरि कुलधरशेठ दृष्टान्तकाव्य, अपूर्ण, वि. १७१६, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. पोरबंदर, ले. ऋ. यशोराज (गुरु मु. धर्मसिंह, लुङ्कागच्छ) प्र.ले.पु. मध्यम, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२७४११, १७६१).
पे:-१. गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मागु., पद्य, वि. १६७६, (पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण), आदिः प्रणमुं चउवीसे; अंतिः तेहेनी पूगइ आस., पे.वि. ढाल - १६.
पे:-२. कुलधरसेठ दृष्टान्त काव्य- उधारोपरी, मागु., पद्य, (पृ. ५-५आ-, अपूर्ण), आदि: गोयम गणहर प्रणमी; अंतिः-, पे.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं.
७२९५. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१) = ६, जैदेना., (२७x११.५, ११-१२४३१-३४).
,
श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मागु., गद्य, आदि:- अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्.
७२९९. श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३२, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा. १३११ अपूर्ण तक है.,
(३०x११, १५४६१-६२)
सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः अरिहाइ नवपयाइं अंतिः
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:
उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ* मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
७३००.” उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९१-८३(१ से ८३ ) = ८, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं. अध्ययन- २४, २५ है, (२७.५X११, ४-६x२९-३२).
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७३०२. दानादिविषयक कथासङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६४७, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- ऋ. माहावजी, (२७४११, २३-२५४४९-५६). दानादि विषयक दृष्टान्त कथा सङ्ग्रह, प्रा. सं., गद्य, आदि: वसही सयणासण भत्तपाणे; अंतिः तृतीयभवे मोक्षः. ७३०४. सुदर्शनसेठ कवित्त, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १३. जैदेना. पु. वि. अन्तिम पत्र नहीं है. गा १२२ तक है. (२६.५०१२,
""
१४४२-४४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
सुदर्शनसेठ कवित्त, मु. रुप मागु, पद्य, आदि: वान्दु श्रीजिनवर अंति:
"
७३०५. कल्पसूत्र सह टीका- साधुसमाचारी, प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२५.५०१२, १३४३६).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: अंतिः
कल्पसूत्र- टीका' सं., गद्य, आदि:-: अंति:
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,
७३०६. जम्बू अध्ययन का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. प्रारंभ से उद्देश-८
आंशिक अपूर्ण तक है., (२५x१२, १०x२६-२७).
जम्बू अध्ययन प्रकीर्णक- बालावबोध *, मागु, गद्य, आदिः हवे चोथा आराने विषे; अंति:
""
७३०७. रुक्मणी विवाह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना. प्र. वि. पत्रांक पत्र के दोनो ओर है. पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., ( २४.५x१२, २२x४०-४५).
रुक्मिणी विवाह, प्राहिं, पद्य, आदि मेरी भव बाधा हरो अंति:
रत्नसंचय आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण जिणं वीरं अंति
J
"
७३०८. सिद्धान्तसार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा. १८९ तक है. (२६.५४१०.५, १५४३७-३८).
(+)
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७३१३." हंसराजवच्छराज चौपाई, संपूर्ण वि. १८२८, मध्यम, पृ. २३ जैदेना. प्र. वि. खण्ड-४खंड, ४८ ढाल, गा. ९०८ प्र.पु. - मूल-ग्रं. १२००, दशा वि. विवर्ण अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, ( २४.५x११.५, १६ - १७x४२). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि मागु, पद्य वि. १६८०, आदि आदिसर आदे अंतिः हंस अनै बच्छराज
""
७३१९. सिद्धराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-४ (५ से ७, १२) १३, जैदेना ले ऋ रतन प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१०, १४४४०).
२२७
सिंहराजा चौपाई, वा. कवियण, मागु., पद्य, वि. १६४४, आदि: श्रीलम्बोदर प्रणमिनइ; अंतिः वंछित सुखसम्पति थाइ. ७३२१. उपधान विधि व जैनश्लोक, अपूर्ण, वि. १६९८ श्रेष्ठ, पृ. ११-४(१ से ४)-७, पे. २, जैदेना. ले. स्थल. मिनमाल, ले.
""
मु. पुण्यरुचि (गुरु पं. उदयरुचि, तपागच्छ), (२५X१०.५, १०- ११४३०-३३).
पे. १. उपधान तपविधि, मागु. प्रा. पे. २. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ.
गद्य (पृ. ५अ ११आ अपूर्ण) आदि अंतिः एतला वाना करवा. ११आ - ११आ, संपूर्ण), आदि: #; अंतिः#.
·
७३२२.” बन्धस्वामित्व सह टीका, संपूर्ण, वि. १६०१ श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. मु. सुमतिधीर (गुरु आ . जिनमाणिक्यसूरि *),
प्र.वि. मूल-गा. २५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (४६३) पुस्तके यादृशं दृष्टं, ( २६ ११, १६×५१-५९). बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- टीका, सं., गद्य, आदिः समासतः सङ्क्षेपतो; अंतिः स्वामित्वं समत्तम्.
उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध प्रा. प+ग, आदि: अंति:
.
"
उत्तराध्ययनसूत्र - टबार्थ* मागु., गद्य, आदि : -; अंति:
-
७३२३. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ ३४ अध्ययन प्रतिअपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१) ९ जैदेना ले ॠ वेलजी (गुरु ऋ नानजी) पु.वि. मात्र लेश्या अध्ययन गा.१ से ४ नहीं हैं. (२५.५४१०.५, ४९३०).
""
,
७३२५.” सीताराम प्रबन्ध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३ - १९ ( ३ से २१ ) = ४, जैदेना., प्र. वि. एक पत्र बिना नम्बर का ज्यादा है., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ( २६११, १८×६५). रामसीता रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १७उ., आदिः स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंतिः
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७३२६. मानवुद्गमानवती रास अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २८-१३ (१ से १३ ) = १५ जैदेना, पू.वि. बीच के पत्र हैं. दाल-१
,
हा - ३ से ढाल - २१ गा. १४ तक है., (२५.५४११, १०x३१).
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२२८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदि:-; अंति:७३२७.” श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्रसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., दशा वि.
विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४११, १०४३३-३४).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदि:-; अंतिः७३३१.” उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५४-१(१)=५३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ,पू.वि. बीच के पत्र हैं.. (२६४१०.५, ६४३९). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:- अंति:
उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७३३२. कर्मग्रन्थ २ का बोलसङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(६)=९, जैदेना., ले.स्थल. बेलानगर, ले.- केशव धनराज,
(२४४१०.५, ११४३७).
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-बोलसङ्ग्रह, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः अथ द्वितीयकर्मग्रन्थ; अंतिः पेहले समेट ले. ७३३३." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-१०(१२,१७ से २५)=१८, जैदेना.,प्र.वि. पत्र
क्रमांक नहीं है., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. अध्ययन-१६ से अध्ययन-१८ गा.४२ तक है., (२६x१०.५, १-१४४४०
४७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह', सं., पद्य, आदि:-; अंति:७३३४. लीलावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. ढाल-४२ तक है.,
(२५.५४१०.५, १२-१३४३६-३८).
विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः सुखदाता सङ्घश्वरो; अंति:७३३५. सामुद्रिकशास्त्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१८, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. कोटानगर,प्र.वि. मूल-अध्याय-३६.,
(२५४१०.५, ८-९x४८-५२).
सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदिः आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंतिः वृद्धिं भवेद्यत. ७३३६. आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३-३८(१ से १०,१२ से ३९)-५, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के
पत्र हैं., (२५.५४११.५, ६४३७). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:
आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७३३७." स्तुतिचतुर्विंशतिका सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. स्तुति-५० अपूर्ण
तक है., (२७४११, १७४६०). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंतिः
स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः धनपालपण्डितबान्धवेन०; अंति:७३३९. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना., प्र.वि. ३६अध्ययन, (२६.५४११, १३४५५).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. ७३४०.” कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., पू.वि. अन्तिमपत्र नहीं है., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है
अल्प, (२६.५४१०.५, ११-१२४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:७३४१.” श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह बालावबोध व औषध, पूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३०-२(२६ से २७)=२८, पे. २,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
.
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देना. दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है अल्प, (२७४१०.५, ६-९३२).
पे. १. औषध सङ्ग्रह " मागु, गद्य (पृ. १आ- १आ, संपूर्ण), आदि: # अंतिः #, पे. वि. यह कृति बीच में लिखि गई हैं. पे २. पे नाम श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह वालावबोध, पृ. १-३० आ, पूर्ण
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र -बालावबोध *, मागु., गद्य, आदिः नमो नमस्कारहु कहिनइ; अंतिः श्रीमहावीर वखाणइ., बीच के पत्र नहीं हैं.
७३४२. अनुयोगद्वारसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६९-६० (१ से ६० ) = ९, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६X११.५,
४x२८-३६).
अनुयोगद्वारसूत्र आ. आर्यरक्षित, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:
"
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७३४३. अनुयोगद्वारसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., ले. स्थल. बिकानेर, ले. ऋ. खेमाजी (गुरु ऋ. उग्रसेन),
प्र. वि. ग्रं. २००५, प्र.ले. श्लो. (५७५) जलं रक्षेत्, (४६९ ) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा (५७६) यादिसं पुस्तकं लीख्यत्त वा, (२७४११.५, १८x४७).
अनुयोगद्वारसूत्र आ. आर्यरक्षित प्रा. प+ग, आदि नाणं पञ्चविहं अंतिः दुक्खक्खयट्ठाए.
7
;
७३४४.” कर्मग्रन्थ १ से ४ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. ४, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. कर्मग्रंथ ४ गा.१ से ४ तक है. (२६.५५११, ५४३६).
पे. १. पे नाम, कर्मविपाक सह टवार्थ प्र. १- ९अ संपूर्ण
,
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेव प्रति; अंतिः श्रीदेवेन्द्रसूरिइं., पे.वि. मूल-गा.६०. पे. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. ९अ - १३आ, संपूर्ण
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं .. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ- स्वार्थ मागु, गद्य (अपूर्ण), आदि तथा स्तवुं छु: अंति, पे.वि. मूल-गा.३४. टबार्थ गाथा १४ तक ही है.
२२९
पे:-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १३आ - १७अ, संपूर्ण), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं, पे.वि. गा.२५.
"
पे.-४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १७अ - १७आ-, अपूर्ण), आदिः नमिय जिणं जिय; अंति:-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १ से ४ तक है.
७१).
५८ बोल सङ्ग्रह, से, प्रा. मागु, गद्य, आदिः श्रीसिद्धान्तमाहि: अंति:
पे.वि.
७३४६. समवायाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १६४२, श्रेष्ठ, पृ. ६८-६३ (१ से ६३ ) =५ जैदेना. प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. १६६७. पू. वि. अन्त के
""
पत्र हैं.. (२७९११, ९x४२).
समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि.
७३४७. बोल सङ्ग्रह (५८ बोल), अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., ( २६ ११, १८४६८
J
"
·
७३४८. अभिधानचिन्तामणिनाममाला सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १५०-१४३ (१ से १४१, १४४, १४७) =७, जैदेना., प्र.वि. मूल-६ कांड. प्र.पु.ग्रं. १००००., त्रिपाठ, पू. वि. बीच-बीच व अन्त के पत्र हैं., (२५.५X११, ३-४४४८49).
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अभिधानचिन्तामणि नाममाला आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ सं., पद्य, आदि: अंतिः रोषोक्ता नती नमः
"
अभिधानचिन्तामणि नाममाला- स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. गद्य वि. १२१६.
""
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२३०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदि:-; अंतिः निपात्यन्ते पदे पदे. ७३५०.” मङ्गलकलश फाग, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, जैदेना., प्र.वि. गा.१४४, पू.वि. गा.१ से-१४ तक नहीं
है., (२५.५४१०.५, ११४३५).
मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मागु., पद्य, वि. १६४९, आदि:- अंतिः मङ्गल चरित्त जगीस. ७३५१.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४२, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अन्त
के पत्र नहीं हैं. अध्ययन-९ वां अपूर्ण तक है., (२५४११, ६४३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति:
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः ध० दुर्गत पडता जीवनइ; अंति:७३५५. पासाकेवली, देवी स्तुति व लुहर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., (२६४११, १२-१४४३४).
पे.-१. पाशाकेवली-भाषा* , आधारित, मागु., गद्य, (पृ. १अ-४आ), आदिः (१) १११ उत्तम थानक लाभ (२) ॐ नमो
भगवति; अंतिः करै सुख थाइं भलुसै. पे.२. देवी आरती, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः मङ्गल की सेवा सुण; अंतिः सन्त धुप ध्यान धरै.,पे.वि. गा.७. पे.-३. लुहर स्तुति, सांइ दीन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-पआ), आदिः साय कीजै यै भवानी; अंतिः ज्युं दिलपती जीये.,
पे.वि. गा.५. ७३५६. चमत्कारचिन्तामणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि.२०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, देना.,प्र.वि. प्र.पु.-सर्वग्रं. ६५०., (२५.५४१०.५,
५४३४). चमत्कारचिन्तामणि, राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, आदिः न चेत्खेचराः स्थापित; अंतिः ऋषिर्नामचिन्तामणीयं.
चमत्कारचिन्तामणि-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवामेय जिनं नत्वा; अंतिः मणीयं ग्रन्थ करो. ७३५८. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७४-६७(१ से ६७)=७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित,
त्रिपाठ-शुरुआत व अंत के कुछ पत्र, पू.वि. बीच के पत्र हैं. गणधरवाद का अंत भाग है., (२६४११, ३-५४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७३५९. प्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-९(१ से ९)=८, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५४११,
५४३४-३६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदि:-; अंतिः
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७३६०. नवस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, जैदेना.,प्र.वि. १. नवकार- गाथा १,२. उवसग्गहरं- गाथा ५,
३. शांतिकरस्तवन- गाथा १३, ४. सप्ततिशतजिनस्तवन- गाथा १४, ५. भयहरंस्तोत्र- गाथा २४, ६. अजितशांतिस्तवन- गाथा ४०, ७. भक्तामरस्तोत्र- गाथा ४४, ८. बृहच्छांति- (अपूर्ण) *ग्रंथ के पत्र अबरखयुक्त है।,
पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मूलपाठ बडीशांति अपूर्ण तक है व टबार्थ भक्तामर तक है., (२५.५४११, ६४३५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंति:
नवस्मरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार अरिहन्तनइ अंतिः७३६२. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९०-१६९(१ से ५६,५८ से १७०)=२१, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ,
बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन-३६ गा.५७ तक लिखा है., (२६४११.५, ५४३१-३२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
७३६३. साधुसमाचारीसूत्र सह व्याख्या अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८ जैदेना. पु. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं.. (२६४११ १५X३८-४० ).
साधुसमाचारी, सं. गद्य, आदि: इह पर्युषणा द्विविधा अंति:
साधुसमाचारीसूत्र - व्याख्या, सं., गद्य, आदि गृहिज्ञातायां तु: अंति:
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७३६५. कल्पसूत्र का बालावबोध- १ से ९ वाचना, प्रतिपूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, पृ. १४६, जैदेना., पू. वि. व्याख्यान-७ ऋषभदेव निर्वाण तक है, (२५४११.५, १६४४०)
कल्पसूत्र - बालावबोध' मागू. राज, गद्य आदि अज्ञान तिमिरान्धानां अंतिः
;
J
"
७३६७. चन्दराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. खंड- २ ढाल - १६ गा. ३ तक है.,
(२६.५४१२.५, १२४३१).
चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु, पथ, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंति:
७३६८. शत्रुञ्जयउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. ढाल - ९ की गा.८३ तक है.,
(२८.५५१२.५, १३-१५४३३-३४).
"
शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास. मु. नयसुन्दर ७३६९. तेतीसवोल थोकडो अपूर्ण, वि. १९वी
मागु., पद्य वि. १६३८ आदि विमल गिरिवर विमल अंतिःश्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. (२७.५१२.५ २०x३९). ३३ बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदि: एक परकारो असञ्जम; अंति:
७३७०. सङ्ग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. पं. मेरुकुशल, प्र. वि. गा. २९१, (२६×११.५, १३×३०). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं.
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७३७२. प्रद्युम्नकुमार रास, अपूर्ण, वि. १६९१, श्रेष्ठ, पृ. २५-७(१ से ७) = १८, जैदेना., ले. स्थल. हालार-सीसा, ले. - ऋ. धना नारदजी, प्र.वि. खण्ड-२खंड, २२ढाल, गा. ५३५, पू. वि. ढाल -७ की गा. १९ तक नहीं है., ( २६.५x१२, १४-१५X३५४०),
साम्ब प्रद्युम्न प्रबन्ध, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु पद्य वि. १६५९, आदि:- अंतिः शुभ मनि जे जगीस ए.
,
"
"
उत्तराध्ययनसूत्र- सज्झाय, मु. ब्रह्म, संबद्ध, मागु पद्य वि. १७वी आदि श्रीगुरु गौतम गुण अंति:
.
७३७३. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. सज्झाय-२३ गा.१९
तक है., ( २५x१२, १६४३४ ).
२३१
निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जे भिखु हत्थ; अंतिः पसिस्सो भवोज्जं च.
निशीथसूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि जे कोई भि० अणगार अंतिः शिष्यनइ भगवानइ अर्थइ.
७३७५. निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८३०, मध्यम, पृ. ४२, जैवेना. ले. स्थल कीसनगढ, ले. ऋ. भवानी, प्र.ले.पु.
विस्तृत, प्र. वि. मूल- २०उद्देश., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (३०x१२, ८४५१).
७३७६. धर्मबुद्धिमन्त्रीपापबुद्धिराजा रास संपूर्ण वि. १९०६
-
श्रेष्ठ, पृ. २३. जैवेना. ले. स्थल. माणसा, ले. पं. मनरूपसागर, प्र. वि. दाल- २७. प्र. पु. मूल ग्रं. ४१६ (२७.५४१२.५ १२-१४४२७-२९). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री रास वा उदयरत्न, मागु पद्य वि. १७६८ आदि श्रीजिन सरस्वती सन्त: अंतिः नित होय मङ्गलमाल रे.
,
"
७३७७. गुरु परपाटी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३. जैवेना. ले. पं. कल्याणविजय (२७.५४१२.५, १५-१९४४३-४८). पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, आदि: तिहां गुरु परपाटि; अंतिः विजयजिनेन्द्रसूरि.
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७३७९. कर्मग्रन्थ १-६, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २५-३(२ से ४ ) - २२ पे ६ जैदेना (२७.५४१२-५, ११४३१-३३)पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ - १आ-, अपूर्ण), आदि: सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंति:-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे-२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ-७अ, पूर्ण), आदि:- अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा. ३४. प्रथम पत्र नहीं है. मात्र गा. १ नहीं है.
पे.-३ . बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५.
पे. ४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. ८आ-१३आ, संपूर्ण) आदि नमिय जिणं जिय: अंतिः
"
"
,
देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा. ८६.
पे. ५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. १३आ-२०अ, संपूर्ण), आदि नमिय जिणं घ्रुवबन्धोदय अंतिः
"
.
सयगमिण आयसरणठा. पं.वि. गा.१००.
पे. ६. सप्ततिका कर्मग्रन्थ प्रा. पद्य ( २०अ २५आ, संपूर्ण) आदि सिद्धपएहिं महत्थं अंतिः एगुणा होइ नउइओ.. पे.वि. गा. ९३.
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७३८१. क्षेत्रसमास सह टबार्थ, त्रुटक, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५५-३६ (१, ३ से २२, २४ से २७, ३० से ३२,३४ से ३५, ३७ से ३९,४१,४८ से ४९)-१९, जैवेना. प्र. वि. पत्र नं.४२ सचित्र है. पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. (२७.५४१३, ७५३८-४२). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि:- अंति:
·
.
,
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
७३८३. उपधान विधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २९ जैदेना. ले. स्थल पालिताणा ले श्री. हरिचन्द जयचन्द गान्धी,
(२८x१२.५ १२४३६-४२).
उपधान तपविधि सं., प्रा. मागु, गद्य आदि पहिलं नवकारनुं अंति: उपद्रये चतुर्गुरुकम्.
"
७३८४. योगविधि यन्त्रसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. - श्रा. हरिचन्द जयचन्द गान्धी, प्र. वि. * पंक्ति - अक्षर
अनियमित है., द्विपाठ, ( २८x१२. ५ ).
योगोद्वहनविधि यन्त्रसङ्ग्रह, प्रा. मागु., गद्य, आदिः आवश्यकाद्युत्कालिक; अंतिः ३ काल ४०० नन्दी ५१.
७३८६. शत्रुञ्जय रास, अपूर्ण, वि. १९२० मध्यम, पृ. ९-१ ( १ ) -८, जैदेना. ले. स्थल जोधपुर, पू.वि. गा. १ से ४ नहीं है..
(२६.५४१३, १०x२९).
शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८२, आदि:-; अंतिः सुणतां आणन्द थाय.
७३८९. भक्तामर, सन्तिकर व मौनएकादशी स्तवन अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पे. ३. जैदेना. ले. स्थल. चरोद, पू.वि.
"
अन्त के पत्र नहीं है. (२६.५४१३.५ १२४२६).
"
पे.-१. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८१, (पृ. १अ -१अ, संपूर्ण ), आदि:
समवसरण बेठा भगवंत अंतिः समयसुंदर कहे दाहाडी. पे.वि. गा. १३.
"
पे.-२. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. १आ-५अ, संपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो. ४४.
,
.
पे.-३. सन्तिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुन्दरसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण), आदिः सन्तिकरं सन्तिजिणं; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १ से ७ तक है.
७३९०.” सज्झाय व स्तवन सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३-१(१ ) - १२, पे. ९. जैवेना. प्र. वि. अशुद्ध पाठ (२६.५४१२,
"
११-१३४३५-३८).
पे. १. चन्दनबाला सज्झाय ऋ. नथमल मागु पद्य वि. १८१९ (पृ. २४-३आ, अपूर्ण), आदि: अंति: करो अठ्ठम
,
.
नरनारी रे., पे.वि. गा.३८. प्रथम पत्र नहीं है. गाथा १ से ९ अधुरा तक नही हैं.
पे-२. चित्रसम्भूति सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदि: चित्त कहे ब्रह्मराय; अंतिः सीवपुरी लेसे हो के., पे.वि. गा.२०.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२३३ पे..३. अरणकश्रावक सज्झाय-अरजिनतीर्थवर्ति, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण), आदिः कष्ट पडे कायर नही; अंतिः ___को अधीकार रे ला., पे.वि. गा.२९. पे.४. कार्तिकसेठ पञ्चढालिया, ऋ. जैमल, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-११अ, संपूर्ण), आदिः अरिहन्त सिद्ध; अंतिः जेमल
उपयोग दील राखी., पे.वि. ढाल-५. पे.५. सुपात्रदान सज्झाय , मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः सङ्खराजा जसोमतीराणी; अंतिः इम बोले
श्रीजिनरायो..पे.वि. गा.१६. पे.६. शील सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण), आदिः वीरा ब्राह्मण रे; अंति: गाइ वैराग साध., पे.वि.
गा.२३. पे:७. गौतमस्वामी स्तवन, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः में ही नवी जाण्यो; अंतिः
नीरञ्जन गुण गायो., पे.वि. गा.७. पे..८. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः श्रेणिक रयवाडी
चड्यो; अंतिः वन्दे रे बे कर जोड., पे.वि. गा.९. पे.९. औपदेशिक लावणी, ऋ. रामकिसन, प्राहिं., पद्य, वि. १८६८, (पृ. १३अ-१३आ-, अपूर्ण), आदिः चेत चतुर नर
कहे; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १ से ११ तक है. ७३९१. सुभाषित सङ्ग्रह व कर्मस्थिति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-३(१ से ३)=८, पे. २, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र
_नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७.५४१२.५, १६x४४-४७). पे:१. सुभाषित सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. -४अ-११अ), आदि:-; अंतिः-, पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ११९ से गाथा ३२६ तक लिखा है.
पे:२. कर्मस्थिति, मागु., गद्य, (पृ. ११अ-११अ), आदिः ज्ञानावर्णा कर्मनी; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७३९३. योगविधि यन्त्रसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-२३(२ से २३,२५)=६, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित
है.पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२७.५४१३x). योगोद्वहनविधि यन्त्रसङ्ग्रह, प्रा.,मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७३९४. चारित्र आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-२६(१ से २६)=१२, जैदेना., (२९.५४१३.५, १४-१७४३६-४१).
चारित्र आराधना, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः अधिकार का छे. ७३९५. श्रुतबोध सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, जैदेना., प्र.वि. त्रिपाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा.४ से
३५ तक है., (२९.५४१३, १०४३४-५१). श्रुतबोध, कालिदास, सं., पद्य, आदि:-; अंति:
श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंति:७३९९.” कल्पसूत्र की अवचूरि, त्रुटक, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २२, जैदेना.,प्र.वि. मूलपाठ प्रतिकात्मक मात्र लिखा है. पत्र के
दोनों तरफ के भाग टूटे हुए होने से पत्र नंबर का पता नहीं चल रहा है.. पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
(३०x१३, १३४४४).
कल्पसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, आदिः अत्राध्ययने त्रयं; अंति:७४०५. विवाहपन्नत्ति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३७, जैदेना.,पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अष्टम अध्याय-९ उद्देस
तक है., (३१x१३.५, ८-९४५१-५३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहन्ताणं; अंति:
भगवतीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालनइ विषइ; अंति:७४०८. मदनकुमार रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६-२२(१ से १०,१६ से २७)=१४, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. ढाल-९
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गा.८ से ढाल - ३० गा. १५ तक है., ( २६१२, १४X३६).
मदनसेन चौपाई, ऋ. सांवतराम, मागु., पद्य, वि. १८९८, आदि:-; अंतिः
७४०९.” सुकुनविचार व जीतडमल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १० - ६ (१ से ६) = ४, पे. २, जैदेना., पू. वि. बीच के पत्र हैं., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. (२६४१३, ९४२७-२९).
पे. १. सुकुन विचार मागु, पद्य, (प्र. -७अ - १६अ), आदि - अंति कहे सुकन नासीका होय. पे. वि. गा. १५१. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.३७ तक नहीं है.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे. २. जीतडमल, मागु., पद्य, वि. १८६३, (पृ. १६अ - १९आ-), आदि: प्रथम तीर्थङ्कर पाए अंति:-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
,
७४१०. मानतुङ्गमानवती रास पूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६-१ ( ८ ) - २५, जैवेना. प्र. वि. ढाल ४७, (२५.५१२.५, १८-१९४५१).
"
.
मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, (संपूर्ण), आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे.
७४१२. चन्द्रलेहा रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. ढाल - २८ गा.१५ तक है.,
(२६४१२.५. १४४४१-४३).
चन्द्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदिः सरसति भगवति नमी करी; अंति:
"
७४१४. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९- २ (७ से ८) =७, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११वे व्रत तक लिखा हैं. (२६४१३.५, १०-११x२६-२९).
श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मागु., गद्य, (प्रतिपूर्ण), आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंतिः
७४१७. मृगलेखा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१) = ६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. (२४.५x१२.५, १४४३४). मृगाङ्कलेखा चौपाई ऋ रायचन्द, मागु पद्य वि. १८३८, आदि:- अंति
७४१९." गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १७५(१ से ५ ) = १२, जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा. २४ से ५७ तक है., ( २४.५X१४, ३१X५०-५२).
गौतमपृच्छा, प्रा. पद्य, आदि:-: अंतिः
"
गौतमपृच्छा- टवार्थ, मागु., गद्य, आदि:-: अंति:
(+)
७४२१. साधुसमाचारीसूत्र सह व्याख्या, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२-१३ (१ से १३ ) = ९, जैदेना., पू. वि. प्रारंभ व अन्त के पत्र नहीं है. (२६११, १५४३६-४२).
"
साघुसमाचारी, सं., गद्य, आदि:-: अति:
साधुसमाचारीसूत्र - व्याख्या सं. गद्य, आदि अंति
७४२२. कथा व बोल सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-२ (१ से २) ५, पे. २, जैवेना. (२५४१२.५, १६४५०),
पे. १. कथा सङ्ग्रह सं. प्रा. मागु, पद्य, (प्र. ३अ ५आ), आदि-: अंति, पे. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
पे. २. बोल सङ्ग्रह, मागु., प्रा., स. गद्य (पृ. ६अ-७आ), आदि: अंतिः पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
"
७४२४. भगवतीसूत्र सह टवार्थ पूर्ण वि. १९४७ श्रेष्ठ, पृ. १०४०-१० (२६९ से २७८ ) = १०३०, जैदेना. प्र. वि. मूल-४१शतक. ग्रं.
१५७५१., (२६.५x१२, ७५१).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदिः णमो बम्भीए लिवीए अंतिः अविग्धं लिहन्तस्स.
भगवतीसूत्र- टवार्थ, गणि मेघराज, मागु, गद्य, आदि देवदेवं जिनं नत्वा अंतिः प्रते नमस्कार करू.
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७४२५.” प्रज्ञापनासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. ५७२+१ (३४४) = ५७३, जैदेना., ले. स्थल जमालपुर-अहमदाबा, ले. पं. अमृतविजय, लिखवा. पं. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल- अध्याय ३६ पद, ग्रं. ७७८७.प्र. पु. बार्थग्रं. २९०००. श्रीगोडीपार्श्वनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (१७४) न्यूनाधिकं यन्मयकात्रबद्ध;
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
·
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(१७५) यावद् जयति सुमेरु; (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, ( २६.५१३, ५-६X३०-४३).
प्रज्ञापनासूत्र वा श्यामाचार्य, प्रा., गय, आदि नमो अरिहन्ताणं अंतिः सुही सुहं पत्ता.
T
T
प्रज्ञापनासूत्र - टवार्थ, मु. जीवविजय, मागु, गद्य वि. १७८४ आदिः प्रणम्य पुण्यपदपद्म अति सुखी थका रहे छे. ७४२६. कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रेष्ठ, पृ. २२६, जैदेना., ले. स्थल. रोहणीग्राम, ले.- पं. हूकमचन्द ताराचन्द, प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान. मूलपाठ पत्रांक ११आ से है., प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२८x१२.५, १२X३०-३९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: णमो अरिहन्तार्ण० पदर्भ; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि
"
कल्पसूत्र - बालावबोध' मागु, राज, गद्य, आदिः कल्पदुम कल्पसूत्र: अंतिः वर्तमान जोग्य छे.
७४२८. आचारदिनकर, संपूर्ण, वि. १९वी
१४-१५४४४-४९).
आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग, आदि: तत्त्वज्ञानमयो लोके; अंतिः महानन्दभृतो जयन्ति ..
७४२९.” कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १७३ - १(१ ) + १ (१५४) = १७३ जैदेना. प्र. वि. मूलपाठ पत्रांक-११अ से प्रारंभ होता है.. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. प्रथम व अन्त के पत्र नहीं हैं., (२८.५४११.५, १३४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति:कल्पसूत्र - बालावबोध* मागु राज, गय, आदि: तीणइ कालि तीणइ समझ अति:
7
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श्रेष्ठ, पृ. ३२५-१ (१८८*) + १ (१९० ) = ३२५, जैदेना., प्र. वि. अध्याय- ४१उदय, (२७X१२,
७४३०. प्रवचनसारोद्धार सह तत्त्वज्ञानविकासिनी टीका, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३५०, जैदेना, प्र. वि. मूल ग्रं. २०००;
टीका- ग्रं. १८०००., त्रिपाठ, प्र.ले. श्लो. (५६१) यावत् चन्द्ररविलोके, ( २६११.५, १-१०X३८-५२).
"
·
प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिऊण जुगाइजिणं अंतिः बहुस्सुया तं विसोह. प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., गद्य, वि. १२४२, आदिः सन्नद्धेरपि यत्तमो; अंतिः जयतु तावदियम्.
७४३१. आवश्यकसूत्र सह वन्दारुवृत्ति व टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २११, जैदेना. पु.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. (२६.५X११.५, ६४३५).
आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः णमो अरहंताणं०; अंति:
श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः वृन्दारुवृन्दारक; अंतिः
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - वन्दारू टीका का टवार्थ, मु. देवकुशल मागु. गद्य वि. १७६१ आदि बालानां सुहितार्थाय०:
"
1
अंति:
७४३२. भरहेसर की वृत्ति, संपूर्ण वि. १६८९ श्रेष्ठ, पृ. ३५८-२(१२१, २८० ) = ३५६, जैदेना ले. स्थल. पत्तन (२६.५४११,
११४३९).
२३५
"
भरहेसर राज्झाय-वृत्ति, गणि शुभशील, सं., गद्य वि. १५०९ आदिः युगादी व्यवहाराध्या अंतिः तमोर्हदादिसाक्षिकम्. ७४३३. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८२२ श्रेष्ठ, पृ. २४४-८० (१ से ८० ) = १६४, जैदेना ले. स्थल. भट्टनेरनगर, ले.- पं. गोकलचन्द ( गुरु मु. नयविजय, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. * ग्रंथ के पत्र अबरख युक्त है. प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (२६.५४११, ७४५). झाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: अंतिः पण्णत्ते तिबेमि
·
ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि: अंतिः सदखेपइ करी वखाण्यो.
राम चरित्र, गणि देवविजय, सं. पद्य वि. १६५२, आदि-: अंतिः
..
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७४३४. राम चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११० - ३५ (१ से ७, २१ से २४,७६ से ९९ ) + १ (३३) = ७६, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच
के पत्र हैं. (२६४१२. १४४३५).
"
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२३६
ne.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७४३७. सुपार्श्वनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रेष्ठ, पृ. ३५६, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. १०१३८; प्र.पु.-मूल-गा.१०८२०, ग्रं. ८६५६,
(२५४११, १३४३६). सुपासनाह चरिअं, गणि लक्ष्मण, प्रा., पद्य, वि. ११९९, आदि: जयइ जुयाईजिणिन्दो; अंतिः (१)अठेव य अक्खरा पायं
(२)सोहेयव्वं च सुयणेहिं. ७४३९. आचाराङ्गसूत्र की टीका व नियुक्ति की टीका, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२२-२(२७५,३३५)+२(३७५,३९०) ४२२,
जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-उभयग्रं. १२०००., (२५४११, १३४३६). आचाराङ्गसूत्र-टीका# , आ. शीलाकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदिः जयति समस्तवस्तु; अंतिः मार्गप्रवणोस्तु
लोकः.
आचारागसूत्र-नियुक्ति की टीका# , आ. शीलाकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदिः तत्र वन्दित्वा; अंति:७४४०. विविक्तनाम सङ्ग्रह- नाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११०-४(१ से ३,२३)=१०६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र
हैं. कांड-६ अधूरा है., (२५४११, १३४३६).
विविक्तनाममाला, उपा. भानुचन्द्र, सं., पद्य, आदि:-; अंति:७४४२." भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७५, श्रेष्ठ, पृ. ९९८+१(८३४)=९९९, जैदेना., ले.- पं. न्यायकुशल (गुरु मु.
मतिकुशल),प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. मूल-४१शतक.प्र.पु.-उभयग्रं. ५२०००. प्रतिलेखन संवत्-नगइंद्रीषींदु., टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (५८०) जां ध्रु सायर चन्द्र रवि, (२६४१२, ६४३६-४६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः उद्दिसिज्झन्ति. भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १८पू, आदिः श्रेयः श्रीसेवितां; अंतिः (१)मया मत्यणुसारतः
(२)विणिग्गया वाणी. ७४४३. भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५५७, जैदेना., (२७४११, ११४४८).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहन्ताणं; अंतिः उद्दिसिज्झन्ति. ७४४४." भगवतीसूत्र सह टबार्थ, श्रुतदेवी स्तुति व दुहा, पूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. ११८९-२३(३ से २५)=११६६, पे. ३,
जैदेना., ले.- पं. भीमविजय गणि (गुरु पं. सुमतिविजय गणि, तपागच्छ),प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. प्रतिलेखन स्थल के पाठ को मिटा दिया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा; (४६९) भग्न पृष्टि कटी
ग्रीवा; (५१८) तैलाद्रक्षे ज्जलाद्रक्षेत्, (२५.५४१२, ६४३६-३७). पे.-१.पे. नाम. भगवतीसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-११८९अ, पूर्ण
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः उद्दिसिज्झन्ति. भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १८पू, आदिः श्रेयः श्रीसेवितां; अंतिः (१)मया मत्यणुसारतः
(२)विणिग्गया वाणी., पे.वि. मूल-अध्याय-४१शतक. बीच के कुछ पत्र नहीं हैं. पे..२. श्रुतदेवी स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ११८९अ-११८९अ, संपूर्ण), आदिः कमलदल विपुलनयना; अंतिः श्रुतदेवता सिद्धिम्.,
पे.वि. श्लो.१.
पे.-३. जैन दुहा सङ्ग्रह*, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ११८९अ-११८९अ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. गा.२. ७४४५. सप्तव्यसन कथा समुच्चय, पूर्ण, वि. १८०९, श्रेष्ठ, पृ. ६२-२(२३,२५)=६०, जैदेना., ले.स्थल. मकसुदाबाद, ले.- मु.
रुपचन्द, प्र.वि. सर्ग-७, श्लो.६८५, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२७४११.५, १२-१५४४४-४८).
सप्तव्यसन कथासमुच्चय, आ. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५२६, आदिः प्रणम्य श्रीजिनान्; अंतिः भव्यजनार्चितः. ७४४६. जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९४, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, प्र.वि. मूल-२१उद्देश., टिप्पण
युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४११.५, ६४४३-४४). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, गणि पद्मसुन्दर, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
जम्बू अध्ययन प्रकीर्णक-टवार्थ मागु, गद्य, आदि ते कालनि विषइ ते अंतिः एकविसमो उद्देशो.
७४४७." सिन्दूर प्रकरण सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१ ( १ ) =७, जैदेना., प्र. वि. त्रिपाठ, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.४८ तक लिखा हैं., ( २६११, ३-६x४५-५१). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि:-: अंति:
सिन्दूरप्रकर- टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि : -, अंतिः
पू.वि.
७४४८." अभिधानचिन्तामणि नाममाला सह स्वोपज्ञटीका, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना. पु. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. तृतीय काण्ड के कुछ अंश तक हैं., ( २६११.५, १९-२२x६०-६३).
अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः
·
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अभिधानचिन्तामणि नाममाला- स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. गद्य वि. १२१६. आदिः धर्मतीर्थकृतां वाचां; अंतिः
७४४९. तपागच्छीय पट्टावली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१ ( ९ ) = १०, जैदेना., प्र. वि. ५९ वी पाट तक है. पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. (२६.५४११.५ १५-१६४३३-३६).
पट्टावली तपागच्छीय, मागु, गद्य, आदिः श्रीमहावीरनै पाटि; अंति:
२३७
७४५०. नेमराजीमती मङ्गल विवाहलो, संपूर्ण वि. १८१६ मध्यम, पृ. ५. जैवेना. ले. स्थल. लाहोर, ले. पण्डित सिद्धितिलक,
(२४.५४११, १२४३२).
"
नेमराजिमती मङ्गल विवाहलो, मु. जिनदास, मागु, पद्य, आदि गोयम गणहर पय नमो: अंतिः इस भव का लाहा लीजइ.
७४५१. श्राद्धजीतकल्प सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १०-३(२ से ३.९)-७, जैवेना. प्र. वि. मूल-गा. १४२. त्रिपाठ,
(२६.५५११, ५४४९-५४).
श्राद्धजीतकल्प, आ. धर्मघोषसूरि प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः कयपवयणप्पणामो जीयगयं; अंतिः सोहिन्तु गीअत्था.
"
श्राद्धजीतकल्प अवचूरि, सं. गद्य, आदिः कृतः प्रकर्षेण परसमय अंतिः कैरष्टमिरितिगम्यम्.
·
७४५३. कालसत्तरी विचार सह टवार्थ पूर्ण वि. १६९७, श्रेष्ठ, पृ. १३-१ ( २ ) = १२, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ७४. पू. वि. गा.३ से ८ तक नहीं हैं., ( २६ ११, ४-५X३०-३२ ) .
कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य, आदि: देविन्दणयं अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं.
;
कालसप्ततिका-बालावबोध, उपा. धनविजय, मागु., गद्य, आदिः ध्यात्वा श्रीशारदा; अंतिः कालस्वरूप काइएक कहिउ. ७४५४. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १६२२, मध्यम, पृ. १०- २(१ से २ ) = ८, जैदेना., ले. स्थल. सारंगपुरनगर, ले.- छीतर जोसी,
(२५.५४११, १३-१४४४३-४५).
पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति..
७४५५. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५X१०.५, ११x४१-४३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय संबद्ध, प्रा. सं., मागु, प+ग, आदि णमो अरिहन्ताणं अंति:
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७४५८. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह बालावबोध (आवश्यक), पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३२-१ (१) = ३१, जैदेना., प्र.वि.
* पंक्ति - अक्षर अनियमित है. टबार्थ केवल बीच के पत्र मे है., ( २५.५X११.५४).
साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी संबद्ध प्रा. गुज प+ग, आदि-: अंतिः आउट्टण पसारेणं.
साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- स्थानकवासी-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः
७४६०. शान्तिजिन व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., ( २६ ११, १७-२१X५६-५७).
,
पे.-१. शान्तिजिन स्तवन- १४ गुणस्थानकगर्भित, उपा. मानविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ -३आ), आदिः शान्ति जिणेसर जग; अंतिः मानविजय सुहं कुरु., पे.वि. गा. ८५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन सह बालावबोध, पृ. ३आ-१२आ महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३३,
आदिः प्रणमी श्रीगुरुना; अंतिः आणा सिर वहेस्येजी. महावीरजिन स्तवन-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः जत्छय जं जाणिज्जा; अंतिः नियुक्ति मध्ये छइं.,पे.वि. मूल
ढाळ-६. ७४६१. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., (२६.५४११.५, १५४४४).
नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मागु., पद्य, वि. १८३०, आदिः श्रीगोडी पासजी नीति; अंतिः उत्तमविजय जगीस रे. ७४६२. सिन्दूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९३८, मध्यम, पृ. ११, देना., ले.- मु. चुनिलाल, प्र.वि. श्लो.९७, (२६.५४११.५, १०
१२४२९-३१). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः स जानाति जनाग्रतः. ७४६४. सूयगडाङ्गसूत्र सह हर्षकुलोदीपिका टीका- श्रुतस्कन्ध २, प्रतिपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. १०७, जैदेना., (२७४११.५,
१०४३२-३७). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विहरति त्ति बेमि.
सूत्रकृताङ्गसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, वि. १५८३, आदि:-; अंतिः जगति जयतु चिरम्. ७४६६." भगवतीसूत्र आलावा विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८१, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. ईल्लोलनगर, ले.- मु.
गुलालविजय (गुरु गणि रूपविजय), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (३२३)
जलात् रक्षे स्थलात् रक्षे, (२६.५४११.५, ७X४४-४६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः कहन्न भन्ते; अंतिः सिद्धगइ पजावसाणे भवइ.
भगवतीसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः जयन्ती पूछइ छइ; अंतिः अङ्ग उपग जीवनी. ७४६७." नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, देना., प्र.वि. मूल-गा.५३+६., टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
(२६४११.५, ४४२५-२९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः तिहां प्रथम नवतत्त्व; अंतिः छे इम उत्तर कहस्ये. ७४६८. सिद्धचक्र पूजाविधि व अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. २१-६(११ से १६)=१५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल.
मीचनगर, ले.- आ. कान्तिसागरसूरि(विजयराजगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, (२६.५४११.५, १०४३२-३६). पे-१. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, (पृ. १अ-१०आ-, संपूर्ण), आदिः (१) __उपन्नसन्नाणमहोमयाणं (२) प्रथम बल बाकुल; अंतिः (१)सिद्धिचक्कं नमामि (२)करे साहमीवच्छल करे. पे.२.८ प्रकारी पूजा, मु. भागचन्द, प्राहिं.,सं., प+ग, वि. १८१६, (पृ. -१७अ-२१आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम न्हवण पूजा;
अंतिः वरषे हरषे जगदाधार की. ७४६९. ज्योतिषसार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, जैदेना., पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., (२७४१२, १३४३१-३८).
ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः७४७२." षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि.
अन्त के पत्र नहीं हैं., (२६.५४१२, ५४२९-३०). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति:
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) नमस्कृत्य महावीरं (२) माहरो नमस्कार हो; अंति:७४७३. सूयगडाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-२३; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २२००, (२६.५४१२.५,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२३९ १३४३८-३९).
सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः विहरति त्ति बेमि. ७४७४. बृहच्छान्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- मु. तेजविजय, (२६.५४१२, ४x
बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः जैनं जयति शासनम्.
बृहत्शान्ति स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः भो भो भव्य जीवो; अंतिः७४७६. धर्मदत्त कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, जैदेना.. पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२७४१२, १५-१७४३८-४१).
धर्मदत्त कथा, सं., गद्य, आदि:-; अंति:७४७७. चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६-३०(१ से ७,२८ से ४८,५४ से ५५)=२६, जैदेना.,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. श्लो.५४ से ६०८ तक है., (२८.५४१२, ५४३८). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि:-; अंति:
चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:-- ७४७८. कविकल्पलता, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. १६-८(१ से ८)=८, जैदेना., पृ.वि. बीच के पत्र हैं. स्तबक-२ के आंशिक
कुसुम-१ से स्तबक-३ कुसुम-६ अपूर्ण तक है., (२६.५४१२, १८-१९४४१-४५).
कविशिक्षा-कविकल्पलता वृत्ति, देवेश्वर, सं., प+ग, ईस. १३५७, आदि:-; अंति:७४८२. सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन की टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)=५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं.
पाद-३ सूत्र-३८ से पाद-६ सूत्र-१६६ तक है., (२६.५४११, २१४६४). सिद्धहेमशब्दानुशासन-टीका, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः७४८३. जीवाभिगमसूत्रवृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २४१-१९८(१ से १००,१०४,१२० से १६७,१६९,१७८ से १८०,१८३,१८६
से १९०,१९२ से १९४,१९६ से १९७,१९९ से २३२)=४३, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४१०.५, १५४४९).
जीवाभिगमसूत्र-वृत्ति , सं., गद्य, आदिः-; अंति:७४८४.” चन्दराजा रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८८-७५(१ से ५४,६३ से ६६,७० से ८६)=१३, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच
के पत्र हैं. , दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५४१२, १६४३८-४३).
चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदि:-; अंति:७४८६.” आवश्यक की नियुक्ति, त्रुटक, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९४-८६(१ से ७५,७७,७९ से ८१,८३,८५ से ८८,९२ से ९३)=८,
जैदेना.. पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. , दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४११, १३४४३
४४).
आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:७४८७." चन्दराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७-५९(१ से ५९)+१(६२)=९, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ
कुछ पत्र,पू.वि. बीच के पत्र हैं. उल्लास-३ ढाल-१३ गा.१३ से ढाल-२४ गा.७ तक हैं., (२४.५४१०.५, १३४४७-४९).
चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदि:-; अंति:७४९१. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५.५४११.५, १३४३१).
पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानसामी; अंतिः शिष्य सोभाग्यहंस. ७४९२. गौतमस्वामी रास व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, प्र. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. खलचीपुरा, ले.- पं.
माणकचन्द, (२४.५४११.५, १५४४०). पे.१. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मागु., पद्य, वि. १४१२, (पृ. १अ-४अ), आदिः वीर जिणेसर चरण कमल;
अंतिः वृद्धि कल्याण करो..पे.वि. गा.५५.
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२४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.२. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, आ. कमलकलशसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-५आ), आदिः समर वीर सारदा
वरदायक; अंतिः श्रीकमलकलशसूरि सीस., पे.वि. गा.२१. ७४९४. स्तुतिचौवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४१, मध्यम, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. सिरोही, ले.- पं. शिवचन्द्रजी, प्र.वि.
मूल-अध्याय-२४ स्तुति., (२६४११.५, ५४३२-३४). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंतिः हारतारा बलक्षेमदा.
स्तुतिचतुर्विंशतिका-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः भव्य प्राणी रुपी; अंतिः मदे रहित देवी छे. ७४९५.” सङ्ग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना., ले.स्थल. स्यांणानगर, ले.- पं. राज्येन्द्रविजय
(गुरु पं. फतेविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.३४९. टबार्थ २३७ गाथा तक दिया है. *पंक्ति-अक्षर अनियमित
है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४१२४). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, (संपूर्ण), आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं.
बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ', मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः अरिहन्त कहिये; अंति:७४९७. समाधितन्त्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१५०. बालावबोधकार पर्वतधर्मार्थी कृत मात्र प्रारंभिक व
अन्तिम मंगल श्लोक दिया है बालावबोध-मंगल का क्रम भी मूल के साथ संलग्न है. मूल में विशेष पाठ भी मिलता
है., प्र.ले.श्लो. (५६३) तैलाद्ररक्षं जलाद्रक्षं, (२५.५४११.५, ११४३५-३६).
समाधिशतक, आ. देवनन्दी, सं., पद्य, आदिः येनात्मा बुध्यतात्म; अंतिः समाधितन्त्रम्. ७४९८. स्नात्र पूजा व नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १८९९, मध्यम, पृ. १५-४(२ से ५)=११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सोजत, ले.
____ मु. कस्तूरहंस (गुरु गणि प्रधानहंस), प्र.ले.पु. मध्यम, (२५४११.५, १३४३२-३४). पे.१. स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. १अ-७आ, अपूर्ण), आदिः मुक्तालङ्काविकार; अंतिः ___मोक्षसौख्यं श्रयन्ति., पे.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. पे.२. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, (पृ. ८अ-१५आ, संपूर्ण), आदिः
उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंतिः ऋध मिले सवि आवी रे., पे.वि. ढाल-१२. ७४९९. नवतत्त्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२५४१२, ११-१३४३३-३५).
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: प्रथम तो नवतत्त्वना; अंतिः पण सम्यक्त्व नीपजे. ७५०४. अष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., (२६४१२, १३४३५).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, राज., गद्य, आदिः शान्तीशं शान्ति; अंतिः करी व्रति आराधन करवा. ७५०५. उपदेशमाला सह बालावबोध, टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. १५७, देना., ले.- मु. हेमविजय (गुरु मु.
हर्षविजय), प्र.वि. मूल-गा.५४४. टबार्थ बीच के कुछ पत्रों पर ही लिखा हैं. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है.', प्र.ले.श्लो.
(५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (२६४१२.५४). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु., गद्य, वि. १७१३, (त्रुटक), आदिः वन्दित्वा वीरजिनं; अंतिः संजात इति
भद्रं. उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंति:
उपदेशमाला-कथा* , मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः वन्दित्वा वीरजिनं; अंतिः आज ताई प्रवर्ते छइ. ७५०८. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, धन्ना सज्झाय व अरणिकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७८९, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३,
जैदेना., ले.स्थल. उदेपुर, ले.- मु. लछा, राज्यकाल- राजा मानसिंह, प्र.ले.पु. विस्तृत, (२६.५४११.५, ४-६x४०-४७). पे.१.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-७अ
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२४१
भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः भक्त जे सेवानई विषइ; अंतिः एह प्रगट कीधुं., पे.वि. मूल
श्लो.४४.. पे.२. धन्ना सज्झाय, आ. रत्नसागरसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः मगधदेश महिमा निलोजी; अंतिः कहे
रत्नसागरसूरि., पे.वि. गा.११. पे.-३. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः अरणिक मुनीवर चाल्या; अंति: वंछित
___ फल सिधो जी., पे.वि. गा.८. ७५०९. तीस बोल, साधुचरित्र के १३ बोल व कर्मप्रकृत्ति गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९, पे. ३, जैदेना., (२७४११.५,
१५-१६x४२-४६). पे.-१. कर्मप्रकृति गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः गइ जाइ तणुय बङ्गी; अंतिः नाम कम्मं च बायाली., पे.वि.
गा.३. पे..२.३० बोल, मागु., गद्य, (पृ. १आ-१९आ), आदिः कर्म आठ- विवरु; अंतिः अगत्थी धुर पमुह.
पे.३. साधुचारित्रीया १३ नाम, मागु., गद्य, (पृ. १९आ-१९आ), आदिः साधू चारित्रीया १३; अंतिः तेरट्ठीतिवा. ७५१०. सामुद्रिक शास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना.. पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. श्लो.१७४ तक
है., (२६.५४११.५, १४४४६-४९). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदिः आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति:
सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः७५११. उत्तराध्ययसूत्र कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., (२६.५४१२, १८-२०४५०-५२).
उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#. ७५१४." धनञ्जयी नाममाला, संपूर्ण, वि. १७९१, मध्यम, प्र. ७, जैदेना., ले.स्थल. समदडी, ले.- मु. कपूरहंस,प्र.वि.
श्लो.२११, दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२६.५४११, १५-१६x४१-४३).
धनञ्जयनाममाला, जैनकवि धनञ्जय, सं., पद्य, आदिः तन्नमामि परं; अंतिः शब्दाः समुत्पीडिताः. ७५१५. तर्कसङ्ग्रह की दीपिका का विवरण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि
सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. विधिप्रत्ययनिरूपण के कुछ अंश तक है., (२५.५४१२, १६-१८४४४-४५).
तर्कसङ्ग्रह-स्वोपज्ञ तर्कदीपिका टीका का विवरण, सं., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वेशं; अंति:७५१६. स्तवनचौवीसी, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. २४ स्तवन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रथम पत्र,
संशोधित, पू.वि. अन्तिम पत्र नहीं हैं. स्तवन-२४ गा.४ तक है., (२४.५४११, १४४३३-३९).
स्तवनचौवीसी, कवि सुन्दरदास, मागु., पद्य, आदिः आदेसर अवधारीए दासतणी; अंतिः७५२०. आवश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना.,प्र.वि. मूल-६ अध्ययन., (२५४१२, ३-५४३६
३९).
आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः णमो अरहंताणं; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ.
आवश्यकसूत्र-बालावबोध , मागु., गद्य, आदि: नमो अ० इत्यादि एहनो; अंतिः तरागनी आज्ञाइ पाल्यउ. ७५२१. शत्रुञ्जयउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. वाडासीधोल, ले.- मु. भीमचन्द, प्र.वि.
गा.१२२, (२५४१२, १०x२५). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः देही दरीसण जय
करूं. ७५२२. मानतुङ्गमानवती रास व शान्तिजिन स्तवन, पूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ३६-१(२०)+१(२१)=३६, पे. २, जैदेना., ले.
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२४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
वीरचन्द, (२५.५४१२, १४-१५४४४). पे.-१. मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, (पृ. १अ-३६आ, पूर्ण),
आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे., पे.वि. ढाल-४७, गा.१०१५ बीच का एक पत्र नहीं है. पे..२. शान्तिजिन स्तवन, मु. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३६आ-३६आ, संपूर्ण), आदिः त्रिभुवन नायक शान्ति; अंतिः
दिन दिन दोलत दे घणी., पे.वि. गा.१७ प्रतिलेखनवर्ष-१८४८. ७५२४. पञ्चमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- मु. चतुरसमय,प्र.वि. ढाल-६, (२५.५४१२, ११४२९).
ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १७९३, आदिः सुत सिद्धारथ भूपनो; अंतिः सकल भवि मङ्गल
करे.
७५२५.” उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., संशोधित,
(२६४१२, ७४५०). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव.
उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ , मागु., गद्य, वि. १६९३, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः दिवसे अङ्ग तहेव. ७५२६.” दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदेना., प्र.वि. मूल-१०अध्ययनरचूलिका., त्रिपाठ,
पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. १० अध्ययन + २ चूलिका + ७गा., (२६.५४११.५, ४-६x४५-४७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः भविआण विबोहणट्ठाए.
दशवैकालिकसूत्र-सुखावबोध, मागु., गद्य, आदिः इहां प्रथम दशवैकालिक; अंतिः बुज्झववानइ अर्थइ. ७५२८." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९८, मध्यम, पृ. २०३, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., टिप्पण युक्त विशेष
पाठ, (२६४११, ५४३३-३४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि.
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः संयोग बे प्रकारे; अंतिः हुँ तुझ प्रते कह्यो. ७५२९. वसुधारा व वसुधारामन्त्र, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. आसोप, ले.- गणि प्रधानहंस (गुरु
गणि युक्तिहंस), पठ.- मु. मनरूपहंस (गुरु गणि प्रधानहंस),प्र.ले.पु. विस्तृत, (२६.५४११.५, १५४३८). पे.१. वसुधारा, सं., गद्य, (पृ. १अ-५आ), आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति.
पे..२. वसुधारा विधि, संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं; अंतिः लाभश्च शुभं भवतु. ७५३१. उपपातिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. ८०, जैदेना., प्र.वि. मूल-सूत्र-१८९., (२५.५४११.५, ६x४४-४६).
औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मु. राजचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः (१) वन्दित्वा श्रीजिनं (२) तेणइ कालि अवसर्पिणी; अंतिः
शास्वता सुख पाम्याछे. ७५३२. पद्मावती कथा, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले.स्थल. थरानगर, ले.- मु. फतेविजय (गुरु पं.
जितविजय), पठ.- मु. तिलकविजय (गुरु मु. फतेविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, (२४.५४११.५, १३-१५४३०-३३). पद्मावतीसती आख्यान, शामलदास, मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः प्रथम समरु शारदा; अंतिः सुभ श्रीसामलदास. ७५३३.” सूक्तिमुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. सोझितनगर, ले.- मु. कनकसागर (गुरु उपा.
धर्मकल्याण, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.१००, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५४१०.५, १५४४३
५१). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. ७५३४." इकवीसठाणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ले.- मु. देवेन्द्रसागर, प्र.वि. मूल-गा.६६. प्र.पु.
टबार्थ-ग्रं. ७०६., (२५४१०.५, ७४३६-४०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२४३
एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया. एकविंशतिस्थान प्रकरण- टवार्थ मागु, गद्य, आदि च्यवनविमाननाम नगरी अंति साधारण सरीखा कहीया.
७५३५. चौवीसदण्डक के ३० बोल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८ जैदेना, प्र. वि. प्र.पु.ग्रं श्लो. १७९० (२६४१०.५, १७
२१९५२-५९)
२४ दण्डक २६ द्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः दण्डक लेशाठ्ठीती; अंतिः मनुष्यआयु देवआउखो.
७५३६. हंसराजवच्छराज रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले. स्थल. राधनपुर, ले. गणि माणिक्यविजय, प्र. वि.
खण्ड-४/ढाल ४८, गा.९१३. प्रतिलेखक की भूल से ढाल क्रम-३३ से ३८ तक का उल्लेख नहीं है तथा ढालक्रम-३८
की जगह ४८ से ५८ तक क्रमशः दिया है. अतः ढाल ४८ से ५८ तक क्रमशः ढाल ३८ से ४८ समझें., (२६११, १६४३८-४२).
हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदिसर आदे; अंतिः दिनदिन हुयै
जयजयकार.
७५३९. रथ व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २१, जैदेना., प्र. वि. *अक्षर माहिती अनियमित हैं.,
(२५.५४१२, १३४ ).
"
पे. १. शीयल १८ हजारभाङ्गा, मागु, गद्य (पृ. १अ १अ ) पे. २. सीलाङ्गरथ १८ हजारमाङ्ग, प्रा. मागु., प+ग, (पृ. जइ धम्मो, पे.वि.गा. ५.
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आदि पृथ्वी कायनों आदि अंतिः अष्टादस सहस्र होय. १आ - १आ), आदिः सीलङ्गाण सहस्सा; अंतिः ९ बम्भं च
पे.-३. दशविधचक्रवाल समाचारी रथ, प्रा. मागु., प+ग, (पृ. २अ - २अ), आदि: मणगुत्तो सन्नाणी; अंति: इच्छाकारी नमोतस्स., पे. वि. गा.१.
पे. ४. आलोयणा रथ, प्रा. मागु प+ग, (पृ. २आ-२आ) आदि कय चउसरणो नाणी अंतिः अरिहसमखं खमोवेगि पे.वि. गा.१.
पे.-५. श्रमणधर्म रथ, प्रा., मागु., प+ग, (पृ. ३अ - ३अ), आदि: नहणेइ सयंसाहु मणसा; अंतिः जिए खन्ति पुन्नो, पे.वि.
गा.१.
पे. ६. सामाचारी रथ, प्रा. मागु प+ग, (पृ. ३-३आ) आदि भईनाण जुआणं जईण अंतिः इच्छाकारम्भणन्ताणं.. पे. वि. गा. १; मूल - गा.१.
पे. ७. नियम रथ, प्रा. मागु, प+ग, (पृ. ४अ ४अ), आदि: अविरिआण सणमणेणो; अंतिः सित्थतवोखीरमविवज्जे., पे.वि.
गा.१.
पे.-८. निन्दा गाथा, प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ४आ-४आ), आदि: मोहवसेणं मणसा देव; अंतिः मंतेण तं निन्दे., पे.वि. गा.१. पे. ९. तप रथ, प्रा., मागु, प+ग, (प्र. ५अ-५अ) आदि नाणाविणई देह विवेगी अंतिः सुज्झइ आलोई उकोई., पे.वि.
1
गा.१.
पे. १०. संसार रथ, प्रा. प+ग (पृ. ५आ-५आ) आदि उद्धदिसि पुरिस जीवो; अंति सो संसारं परिज्झाई पे.वि.
"
गा.१.
पे.-११. संयम रथ, प्रा., प+ग, (पृ. ६अ - ६अ ), आदि: हिंसई नसइ मणसा; अंतिः जीवंपुढविकायम्पि, पे.वि. ग.१. पे - १२. धर्मरथ, प्रा. प+ग, (पृ. ६आ-६आ), आदिः उड्ढदिसिनारिजीवो अंतिः खन्ति खमो जावजीवंचि पे.वि. गा.१. पे.-१३. शुभलेश्यात्रिक रथ, प्रा., प+ग, (पृ. ७अ-७अ ), आदिः जो तेउ लेस मणसा; अंतिः आगमधारिं नम॑सामि., पे.वि.
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"
"
गा.१.
पे. १४. अशुभलेश्यात्रिक रथ, प्रा., प+ग, (पृ. ७आ-७आ), आदि: जो किन्न लेस मणसा; अंतिः तिजू साहुं वन्दामि ., पे.वि. गा.१.
पे. १५. अशुभलेश्यात्रिक रथ, प्रा. प+ग, (पृ. ८अ (अ), आदि जो किन्ह लेस मणसा अंतिः खन्तिजू साहू वन्दामि..
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२४४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे.वि. गा.१. पे.-१६. इकारधर्म स्थ, प्रा., प+ग, (पृ. ८अ-८अ), आदिः धम्मट्ठीउ चमणु उमणसा; अंतिः धम्मसन्नम्परहरेइ.,पे.वि.
गा.१. पे.-१७. इरियावही रथ, प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ८आ-८आ), आदिः उवसम धरेण मणसा कोह; अंतिः अभिहिया खमावेमि.,
पे.वि. गा.१. पे.-१८. आलोयणा रथ, प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ९अ-९अ), आदिः आलोयणा परिणउ मणसा; अंतिः आकंपइ तं विवज्जेमि.,
पे.वि. गा.१. पे.-१९. रागत्रिक स्थ, प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ९आ-९आ), आदिः जे काम्म राग रहिया; अंति: जूया ते मुणि वन्दे., पे.वि.
गा.१. पे.२०.ज्ञानदर्शनचारित्र रथ, प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. १०अ-१०अ), आदि: जेनाणं चियमणसा; अंतिः खमं साहुणं वन्दे.,
पे.वि. गा.१.
पे.-२१. पच्चक्खाण स्थ, प्रा.,मागु., यंत्र, (पृ. १०आ-१०आ), आदिः#; अंतिः#. ७५४०. चैत्यवन्दन व कवित्तसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. १८, जैदेना., ले.- मु. चतुरविजय, (२५४११.५,
११४२४). पे.-१. आदिजिन चैत्यवन्दन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदिः प्रथम तीर्थङ्कर नमुं; अंतिः
सुभ वञ्छित फल लीध.,पे.वि. गा.३. पे..२. आदिजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदिः प्रथम तिर्थङ्कर आदि; अंतिः धणी रुप ___ कहे गुणगेह., पे.वि. गा.३. पे.-३. सीमन्धरजिन चैत्यवन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदि: पहिला प्रणमुं वीहर; अंतिः नय
वन्दुं करजोडि., पे.वि. गा.६. पे.-४. साधारणजिन चैत्यवन्दन*, मागु.,सं., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः अनन्त चोवीसी जिन नमु; अंतिः तानि वन्दे
निरन्तरम्., पे.वि. गा.५. पे.५. अजितजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-आ), आदिः अजित अजोध्यानो धणी; अंतिः प्रभु
आवागमन निवार., पे.वि. गा.३. पे.६. सम्भवजिन चैत्यवन्दन-त्रीजतिथि, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः सम्भवनाथ सदा जयो मन; ___ अंतिः रूप नमे नीत पाय.,पे.वि. गा.३. पे.-७. अभिनन्दनजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३अ), आदिः उच्चपणे त्रणसे; अंतिः रूप नमे
नीत मेव.,पे.वि. गा.३. पे.-८. सुमतिजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३अ), आदि: मेघराय अयोध्यानो; अंतिः तु मुझ ____ मलीओ इस., पे.वि. गा.३. पे.-९. पद्मप्रभजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३अआ), आदिः पद्मप्रभु छठा जयो; अंतिः रूप नमे
करजोडि., पे.वि. गा.३. पे.-१०. सुपार्श्वजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदि: जगतारण जिन सातमा; अंतिः दे
शिवरमणी दान., पे.वि. गा.३. पे.-११. चन्द्रप्रभजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः महासेन मोटो राजीयो; अंतिः दीन __ दीन बहु सुख थाइ., पे.वि. गा.३. पे.-१२. सुविधिजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४अ), आदिः सुविधी भली परे; अंतिः रामा मात
मल्हार.,पे.वि. गा.३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२४५
पे.-१३. शीतलजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अआ), आदि: भदलपुर दृढरथराय नन्द; अंतिः नमो प्रह उगम सूर.. पे.वि. गा.३.
पे:-१४. श्रेयांसजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४-४आ), आदि: विष्णुराय कुल केसरी: अंतिः तुं त्रिभुवन तारणहार, पे. वि. गा.३.
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पे. १५. वासुपूज्यजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु, पद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदि देवलोकन्थी दीपतो नगर; अंति जपो शिवपुर मारग साथ., पे.वि. गा.३.
पे. १६. विमलजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु पद्य (प्र. ४-५अ ) आदि वन्दो वीमलजिनन्द: अंति रूपविजय पे.वि. गा.३.
गुण गाय.,
पे - १७. कवित्त सङ्ग्रह, ज्ञानसुन्दर मागु, पद्य, (पृ. ५७-६२), आदि: फुनज फुल्यो गगन जल: अंतिः सदाजी घड़ी घडीअ भेजेय, पे.वि. गा.११.
पे. १८. नवपद चैत्यवन्दन, मु. सुखविजय, मागु, पद्य, (पृ. ६ अआ) आदि अरिहन्त बार गुणें; अंतिः सुखे कह्या सूत्र पाठ., .पे.वि. गा. ५.
७५४१. स्तुति सङ्ग्रह व दोहो, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २८, जैदेना., ले. स्थल. दूधवड, ले.- पं. तिलोकहंस (गुरु
पं. यूक्तहंस), प्र.ले.पु. मध्यम, पू. वि. गा. ४., ( २६×११.५, १२×३०).
पे १. पे नाम बीज सीमन्धरजिन स्तुति, पृ. १आ-आ
बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु, पद्य, आदि दिन सकल मनोहर अंतिः पुरो मनोरथ माय, पे.वि. गा.४.
पे. २. पे. नाम. पञ्चमी नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ
ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि पे. ३. पे. नाम. अष्टमी वीरजिन स्तुति, पृ.
श्रीनेमिः पञ्चरूप अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना. पं. वि. श्लो. ४. २अ - २आ
संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., प्रा., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंतिः देवि सारम्., पे.वि.
श्लो. ४.
"
पे-४. पे नाम एकादशी नेमजिन स्तुति, पृ. २-३अ
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य मागु, पद्य, आदि एकादशी अति रुअडी; अंतिः सङ्घ तणा निशदिश.. पे.वि. गा. ४.
पे-५. पे नाम चतुर्दशी वर्द्धमान स्तुति, पृ. ३अ - ३आ
पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, आ. बालचन्द्रसूरि सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, पे. वि.
श्लो. ४.
पे.-६. पे. नाम. मिगशिरसुदि एकादशी मुन्नव्रत दोढसैं तिर्थङ्कर स्तुति, पृ. ३-४
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मागु., पद्य, आदि: नेमिजिन उपदेशी मौन; अंतिः शान्ति ते सुरवरा., पे.वि. गा.४. पे. ७. पे नाम. तेरस पंचतिर्थङ्कर स्तुति, पृ. ४-४अ
कल्लाणकन्द स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकन्दं पढमं; अंतिः अम्ह सया पसत्था.,
पे. ८. पे. नाम. चतुर्थी रुषभजिन स्तुति, पृ. ४-४आ
आदिजिन स्तुति-चतुर्थी तिथि, सं., पद्य, आदिः उद्यत्सारं शोभागारं ; अंतिः तारा भूत्यै स्तात्., पे.वि. श्लो. ४.
"
पे.वि. गा. ४.
पे. ९. आदिजिन स्तुति, मु. भावसागर, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः उन्नतपुर मण्डण जगत; अंतिः नवि पामे तेह नरा., पे.वि.गा. ४.
पे १०. पे नाम, सीमन्धरजिन शुक्लपडिवारी स्तुति, पृ. ५अ-५आ
सीमन्धरजिन स्तुति मु. शान्तिकुशल मागु पद्य आदि श्रीसीमन्धर मुझनै अंति: शान्तिकुशल सुखदाताजी..
.
पे.वि. गा. ४.
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२४६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-११. पे. नाम. प्रतिपदा कुन्थुजिन स्तुति, पृ. ५आ-६अ एकमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः एक मिथ्यात असंयम; अंतिः नितुनितु होइ लीला जी.,
पे.वि. गा.४. पे.-१२. पे. नाम. दुतिया पञ्चकल्याणक पञ्चजिन स्तुति, पृ. ६अ-६अ बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः बीज जिनधर्मनुं बीज; अंतिः नयविमल कवि इम कहै.,
पे.वि. गा.४. पे. १३.पे. नाम. तृतीया पञ्चकल्याणक पञ्चजिन स्तुति, पृ. ६आ-६आ त्रीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः श्रेयांस जिणेसर शिव; अंतिः लीला होज्यो अति घणी.,
पे.वि. गा.४. पे.-१४. पे. नाम. चतुर्थी पञ्चकल्याणक पञ्चजिन स्तुति, पृ. ६आ-७अ चतुर्थी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः सर्वारथ सिद्धथी चवी; अंतिः नय धरी नेह निहालतो., पे.वि.
गा.४. पे.-१५. पे. नाम, पञ्चमी पञ्चकल्याणक नवजिन स्तुति, पृ. ७अ-७अ पंचमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः धर्मजिणन्द परम पद; अंतिः दुसमन विघन हरेवी..
पे.वि. गा.४. पे.१६. छट्ठतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः श्रीनेमि जिणेसर लैं; अंतिः रस
साथइ प्रीति धरो., पे.वि. गा.४. पे.-१७. पे. नाम. सप्तमी पञ्चकल्याणक षटजिन स्तुति, पृ. ७आ-८अ सातमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः चन्द्रप्रभजिन ज्ञान; अंतिः नयविमल गुणवन्त., पे.वि.
गा.४. पे.-१८. पे. नाम. अष्टमी पञ्चकल्याणक आठजिन स्तुति, पृ. ८अ-८आ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदि: अभिनन्दन जिनवर; अंतिः ज्ञानविमल कहे सीस.,
पे.वि. गा.४. पे.१९. पे. नाम. नवमी पञ्चकल्याणकजिन स्तुति, पृ. ८आ-९अ नवमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदि: सुव्रत सुविधि सुमति; अंतिः कहे० दोलति अधिक
पामइ.,पे.वि. गा.४. पे.-२०. पे. नाम. दशम्यां पञ्चकल्याणक तिनजिन स्तुति, पृ. ९अ-९अ दशमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः अर नेमि जिणन्दा; अंतिः तास नामे सुखाला., पे.वि.
गा.४. पे.-२१. पे. नाम. एकादशी पञ्चकल्याणक चतुजिन स्तुति, पृ. ९अ-९आ एकादशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., पद्य, आदिः मल्लिदेव सुजन्म संयम; अंतिः ज्ञानात्मनां सूरीणां.,
पे.वि. श्लो.४. पे.२२. पे. नाम. द्वादशी पञ्चकल्याणक नवजिन स्तुति, पृ. १०अ-१०अ
बारसतिथि स्तुति, मागु., पद्य, आदिः जे बारसने दिने ज्ञान; अंतिः पाखे न कमे पतीजं., पे.वि. गा.४. पे..२३. पे. नाम. त्रयोदश्या पञ्चकल्याणक नवजिन स्तुति, पृ. १०अ-११अ त्रयोदशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः पढम जिनेसर शिवपद; अंतिः नयविमल दुःखहरणी.,
पे.वि. गा.४. पे.२४. पे. नाम. चतुर्दशी षटजिन स्तुति, पृ. ११अ-११आ
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२४७
चतुर्दशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः वासुपूज्य जिनेसर; अंतिः नयविमल सदा सुख
__ अखण्ड.,पे.वि. गा.४. पे..२५. पे. नाम. पूर्णिमासी पञ्चकल्याण तीनजिन स्तुति, पृ. ११आ-११आ पूर्णिमातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदि: जिनपति सम्भव सञ्जम; अंतिः जिन नाम तणो गुणी.,
पे.वि. गा.४. पे.२६. पे. नाम. अमावास्या पञ्चकल्याणक च्यारजिन स्तुति, पृ. १२अ-१२अ
अमावस्यातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः अमावस्या तो थई उजली; अंतिः करो नित्य नित्य.,
पे.वि. गा.४. पे.२७. पे. नाम. युगादिदेव तेरसदिन स्तुति, पृ. १२अ-१२आ
आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय; अंतिः कूष्माण्डी कमलेक्षणा., पे.वि. श्लो.४. पे.२८. औपदेशिक दुहा, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ), आदिः सजन फल जिम फूलजो वड; अंतिः तो ईण रङ्गे
रहेजो., पे.वि. गा.१. ७५४२. सज्झाय, स्तवन व छन्दसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८-५३(१ से ५३)=५, पे. १७, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र
है., (२५४१२, २२४५३). पे.१. औपदेशिक सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., पद्य, वि. १८५७, (पृ. -५४अ-५४अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः वद पाञ्चम
चैतीमास रे.,पे.वि. अंतिम पत्र है. पे.२. रामसीता सज्झाय, ऋ. मोजीराम, मागु., पद्य, (पृ. ५४अ-५४अ, संपूर्ण), आदिः उठ प्रभाते समरियें; अंतिः सुप्रीती
उठ प्रभातसे. पे.-३. चन्द्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, ऋ. जैमल, मागु., पद्य, (पृ. ५४अ-५५अ, संपूर्ण), आदिः पाडलीपुर नामे नगर;
अंतिः जेमलजी कीधी जोडो रे.,पे.वि. गा.३९. पे.-४. रतनकुमार सज्झाय , मागु., पद्य, (पृ. ५५अ-५५आ, संपूर्ण), आदिः रतनगुरु गुण आगला रे; अंतिः उपे जिम
तम्बोल., पे.वि. गा.३८. पे.५. विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., पद्य, वि. १८५८, (पृ. ५५आ-५६अ, संपूर्ण), आदिः शीयल
तणी महिमा; अंतिः अट्ठावनें जोधपुरमाइ., पे.वि. गा.२२. पे.६. नेमराजिमती सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., पद्य, वि. १८५७, (पृ. ५६अ-५६आ, संपूर्ण), आदिः समुद्रविजे
सिवादेवी; अंतिः नरनारी गुण जांरा गाइ., पे.वि. गा.२३. पे.-७. आदिजिन भरतचक्रवर्ती स्तवन, मु. आशकरण, मागु., पद्य, वि. १८३५, (पृ. ५६आ-५७अ, संपूर्ण), आदिः प्रथम
जिनेसर ऋषभ; अंतिः नित भरतने हाथेए., पे.वि. गा.२७. पे.-८. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. खेम, मागु., पद्य, वि. १७४६, (पृ. ५७अ-५७अ, संपूर्ण), आदिः सुरपति प्रशंसा
करे; अंति: गातां सुख पावै अपारो., पे.वि. गा.१९. पे.९. नववाडि सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ५७अ-५७आ, संपूर्ण), आदि: नववाड सही जिनराज; अंतिः होय जावै
ब्रह्मचारी., पे.वि. गा.१०. पे..१०.२४ जिन स्तवन, मु. दुर्गादास, मागु., पद्य, (पृ. ५७आ-५७आ, संपूर्ण), आदिः ऋषभ अजित सम्भव देवा; अंतिः
गुण गाया सुख अमीझरणा.,पे.वि. गा.७. पे:११. शान्तिजिन स्तवन, ऋ. रतनचन्द, राज., पद्य, (पृ. ५७आ-५८अ, संपूर्ण), आदिः तुं धन तुं धन तुं; अंतिः हंस हुं
भर पामी.,पे.वि. गा.५. पे.-१२. विहरमान २० जिन स्तवन, ऋ. जैमल, मागु., पद्य, (पृ. ५८अ-५८अ, संपूर्ण), आदिः सीमन्धर पेला नमु; अंतिः
हुं वान्दु तीर काल., पे.वि. गा७.
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२४८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-१३. सीमन्धरजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ५८अ-५८अ, संपूर्ण), आदिः श्रीसीमन्धरस्वाम; अंतिः कर राख आप कि
जाणीजी. पे.-१४. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. लाभउदय, मागु., पद्य, (पृ. ५८अ-५८अ, संपूर्ण), आदिः उठो रे मेरा आतमराम;
अंतिः वरतु सदा बधाइ रे. पे.-१५.१६ सती सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ५८अ-५८अ, संपूर्ण), आदिः शीतल जिणवर करी; अंति: नाम समरो
निसदीस., पे.वि. गा.५. पे.-१६. गौतमस्वामी छन्द, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. ५८अ-५८आ, संपूर्ण), आदि: वीर जिणेसर केरो सीस;
अंतिः गौतम तुलै सम्पति कोड. पे.-१७. श्रावक करणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ५८आ-५८आ, अपूर्ण), आदिः श्रावक तुं उठे परभात;
अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं है. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक नही लिखा है. ७५४३.” स्तवन, पद,सज्झाय व स्वाध्याय सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(५)=९, पे. १२, जैदेना., पू.वि. बीच का
१ पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दशा वि. विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११, १०x२९
३२).
पे.-१. जिनकुशलसूरि स्तवन, उपा. अभयसोम, मागु., पद्य, (पृ. १आ-३आ, संपूर्ण), आदिः समरु माता सरसती; अंतिः ___ विजैसङ्घ लीलावरी., पे.वि. गा.३१. पे..२. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. जिनचन्द, मागु., पद्य, आदिः श्रीजिनकुशलसुरीसर; अंतिः हम है आस तुमारी., पे.वि.
गा.३. पे.३. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचन्द, मागु., पद्य, आदिः दादा चिरञ्जीवो सेवक; अंति: मनवञ्छित फलज्यौ., पे.वि.
गा.११. पे.-४. सीमन्धरजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ-, अपूर्ण), आदिः श्रीसीमन्धर साहिबा; अंतिः-, पे.वि. गा. १ से ४
तक है. अंतिम पत्र नहीं है. पे.५. नमिजिन पद, मु. हर्षचन्द, मागु., पद्य, (पृ. -६अ-६अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः हरषचन्द० आस्या फली., पे.वि.
गा.४ प्रारंभ का पत्र नहीं है. गाथ-२ अपूर्ण से है. पे.६. पार्श्वजिन पद, मु. जिनचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः आज बधाई म्हारै आज; अंतिः
श्रीजिनचन्द सवाइ.,पे.वि. गा.५. पे.-७. महावीरजिन पारणा स्तवन, मु. माल, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-८अ, संपूर्ण), आदिः श्रीअरिहन्त अनन्त; अंतिः तेहने
मङ्गलमाल., पे.वि. गा.२८. पे.८.पे. नाम. काया सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण
औपदेशिक सज्झाय, महमद, माग., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कांई: अंतिः लेसो साहिब हाथ., पे.वि. गा.९. पे.९. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण), आदिः ढण्ढणऋषिने वन्दणा; अंतिः कहे
जिनहर्ष सुजाण रे., पे.वि. गा.९. पे.-१०. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण), आदिः वीर वान्दी वलतां;
अंतिः पामशे भव तणो पार., पे.वि. गा.७. पे.११. पे. नाम. काया सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण वैराग्य सज्झाय, मु. रतनतिलक, मागु., पद्य, आदिः काया रे वाडी कारमी; अंतिः करिज्यो ढङ्गवाली., पे.वि.
गा.८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२४९
पे. १२. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य, (पृ. १० आ-१०आ, अपूर्ण), आदि: राजतणा अति लोभीया; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा. ५ अपूर्ण तक लिखा है.
"
७५४४. प्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति, स्तव व प्रत्याख्यान श्लोकसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, पे. ४१, जैदेना., पू. वि.
अन्त के पत्र नहीं हैं. (२५४१०.५. १३-१४४४२).
"
पे.-१. पे. नाम. खरतरगच्छीय श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय संबद्ध, प्रा. सं., मागु पे. २. श्रुतदेवी स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण), आदिः
श्लो. १.
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१आ - ४आ, संपूर्ण
प+ग, आदि णमो अरिहन्ताणं अंतिः क्षेत्रदेवताः कमलदल विपुलनयना; अंतिः श्रुतदेवता सौख्यम्., पे.वि.
पे. ३. भवनदेवी स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५अ - ५अ, संपूर्ण), आदिः ज्ञानादिगुणयुतानां; अंतिः सदा सर्वसाधुनाम्., पे.वि. श्लो. १.
पे. ४. क्षेत्रदेवता स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, (पृ. ५अ - ५अ, संपूर्ण), आदिः यस्याः क्षेत्रं; अंतिः भूयान्नः सुखदायिनी, पे.वि. श्लो. १.
पे.-५. पे. नाम. वर्द्धमान स्तुति, पृ. ५अ-५अ संपूर्ण
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंतिः प्राणभाजांश्रुताङ्गी., पे.वि. श्लो.४. पे. ६. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. ५अ-५अ संपूर्ण
"
"
महावीरजिन स्तुति, प्रा. सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणि: अंतिः मे मङ्गलं देवि सारं. पे. वि. गा.४. पे.-७. पे. नाम. श्राद्धसम्बन्धी वीर स्तुति, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण
संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि सं., प्रा., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं अंति देवि सारम्.. पे.वि. श्लो. ४.
"
पे. ८. सुपात्रदानफल स्तोत्र प्रा. पद्य (पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण) आदि उस्सभस्स य पारणए अंतिः भरहे साहु न सीयन्ति, पे.वि. गा.५.
पे. ९. पे नाम चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण
२४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदिः नाभेयाजितवासुपूज्य; अंतिः प्रयच्छन्तु नः, पे.वि. श्लो. ४. पे.-१०. पे. नाम. पारणादिने वीर स्तुति, पृ. ६अ - ६अ, संपूर्ण
महावीरजिन पारणा स्तुति, सं., पद्य, आदिः यत्पारणासु प्रथमासु; अंतिः तु मम प्रमोदम्., पे.वि. श्लो. ४. पे. ११. पे नाम ज्ञानपञ्चमी स्तुति, पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण
"
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदिः पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च; अंतिः सिद्धायिका त्रायिका., पे.वि. श्लो. ४. पे.-१२. पे. नाम. तीर्थराज स्तुति, पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण
साधारणजिन स्तुति आ. सोमतिलकसूरि सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजपदपद्म अंतिः दाता दधतां शिवं कः..
·
पे.वि. श्लो. १.
पे. १३. पे नाम दीपालिकापर्व स्तुति, पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण
दीपावलीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः पापायां पुरि; अंतिः शार्दूलविक्रीडितम्., पे.वि. श्लो. ४. पे. १४. पे नाम, मीनैकादशी स्तुति पृ. ६आ-७अ संपूर्ण
.
मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रवज्या; अंतिः विपदः पञ्चकमदः, पे.वि. श्लो.४.
पे.- १५. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः यदंहिनमनादेव देहिन; अंतिः नित्यं मम मङ्गलेभ्यः., पे.वि. श्लो. ४.
पे.-१६. पे. नाम. आदिनाथ स्तुति, पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमण्डन, प्रा., पद्य, आदिः वरमुक्तियहार सुतार; अंति: सुहाणि कुणे सुसया, पे.वि. गा. ४.
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पे. १७. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तुति पृ. ७अ-अ, संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: मज्जन शस्तनिजाय पेवि श्लो ४.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे. १८. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण), आदिः महीमण्डणं; अंतिः देहि में सुद्धिनाणं., पे.वि. गा.४. पे - १९. आदिजिन स्तुति, सं. पद्य (पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण) आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय: अंतिः कृष्माण्डी कमलेक्षणा., पे. वि. श्लो. ४.
पे. २०. पार्श्वजिन स्तुति- पलाङ्कित जेसलमेरमण्डन, सं., पद्य, (पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण) आदि शमदमोत्तमवस्तुमहापणं अंतिः सा जिनशासनदेवता., पे.वि. श्लो. ४.
पे.- २१. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण), आदिः वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवी दद्यात्सौख्यम्., पे.वि. श्लो. १
पे. २२. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति-शत्रुञ्जयमण्डन, आ. नन्दसूरि मागु, पद्य, (पृ. ७आ-८अ संपूर्ण), आदि सेक्रुञ्जमण्डण अंतः तुम्ह पाय सेवता., पे.वि. गा. ४.
पे.- २३. पे. नाम. आदिनाथजिन स्तुति, पृ. ८अ -८अ, संपूर्ण
चैत्री पूर्णिमापर्व स्तुति, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः श्रीशेत्रुञ्जय तीरथ; अंतिः कहै सानिधि करो., पे.वि. गा. ४.
पे: २४. पे नाम पार्श्वनाथजिननाटयक स्तुति, पृ. ८अ ८अ संपूर्ण
पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबन्ध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ट्रें दें कि धपमप; अंतिः दिशतु शासनदेवता., पेवि श्लो ४.
पे -२५. महावीरजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण), आदिः बालपणे डाबो पाय; अंतिः काज चढे प्रमाणे., पे.वि. गा. ४.
पे. २६. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः चम्पक केतकी पाडल; अंतिः जो तुसे देवी अम्बाई. पे. वि. गा.४.
पे. २७. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ८आ-९अ संपूर्ण ), आदि अमरगिरिशिरस्थस्फार अंतिः श्रुतं नः श्रुताङ्गी, पे.वि. श्लो. ४.
पे.- २८. पे. नाम. दण्डक स्तुति, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण
२४ दण्डक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि सं., पद्य, आदि: रुचितरुचिमहामणि अंतिः प्रदद्यात्० भारती, पे.वि., श्लो. ४. प्रतिलेखन पुष्पिका में कर्ता बृहज्जिनेश्वरसूरि का उल्लेख है.
·
पे. २९. अष्टमीतिथि स्तुति मागु पद्य (पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण ) आदि महामङ्गलं अष्ट सोहै: अंतिः सुह सन्ति कल्लाणदाता, पे.वि. गा. ४.
पे.-३०. विहरमान २० जिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १०अ -१०अ संपूर्ण), आदिः पञ्चविदेह विषय; अंतिः जण मनवञ्छित सारै पे.वि. गा४.
पे.-३१. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १०अ १०अ संपूर्ण
महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: पापा धाधानि धाधा; अंतिः अर्हतः पात्वसौ व., पे.वि. श्लो. ४.
"
,
पे. ३२. साधारणजिन स्तुति, सं. पद्य (पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण ) आदि गर्भावतारे जनुषिव्रत अंतिः नेत्रे मम नन्दनाङ्का., पे.वि. श्लो. ४.
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पे ३३. शान्धतजिन स्तुति, प्रा. पद्य (पृ. १० आ-१० आ, संपूर्ण) आदि दीवे नन्दीसरम्मि अतिः सुप्पसन्ना हरन्तु, पे. वि.
गा. ४.
पे. ३४. पे नाम चतुर्विंशतिजिन स्तुति पृ. १० आ ११अ संपूर्ण
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२५१
पंचकल्याणक स्तुति, प्रा., पद्य, आदिः नाभेयं सम्भवं तं; अंति: पञ्चकल्लाण एसो., पे.वि. श्लो.४. पे.-३५. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः अविरलकमलगवलमुक्ताफल; अंति: देवी
श्रुतोच्चयम्., पे.वि. श्लो.४. पे.-३६.२४ जिन स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण), आदिः पणमह मरुदेविजायं; अंतिः रयाणं सुहं दिन्तु ते.,
पे.वि. गा.४. पे.-३७. १० प्रत्याख्याननाम गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. १२अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः नवकार पोरसीए पुरमड्ढ; अंतिः अभिग्गहे
विगहे., पे.वि. गा.१. पे-३८. प्रत्याख्यान आगारसङ्ख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १२अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः दो चेव नम्मोकारे; अंतिः
छप्पाणे चरमे चत्तारि.,पे.वि. गा.२. पे.-३९. १० सङ्केतपच्चक्खाण गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. १२अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः अगुट्ठ गण्ठि मुट्ठ; अंतिः मभिग्गहे
सुच्चियं., पे.वि. गा.१. पे.-४०. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १२अ-१३आ, संपूर्ण), आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंतिः वत्तियागारेणं
वोसिरइ. पे.-४१. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १३आ-१३आ-, पूर्ण
क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः-, पे.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. उवट्ठिओ पाठ तक है. ७५४५. स्तवनसङ्ग्रह, संयम व अभ्यन्तरपरिग्रह के भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८,पे. १८, जैदेना., (२५.५४१३, ११
१३४३०-३१). पे..१. सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः श्रीगौतम पृछा करे; अंतिः कहे सुख अथाग
हो गौतम., पे.वि. गा.१६. पे:२. महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः वीरजी सुणो एक विनति; अंतिः वीर
तोरा वारणे रे.,पे.वि. गा.८. पे..३. महावीरजिन स्तवन , उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७उ., (पृ. २अ-२आ), आदिः सिद्धारथना रे नन्दन; ___ अंतिः विनयविजय गुण गाय., पे.वि. गा.५. पे.४. महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः वीरजिणेसर साहिब मेरा; अंतिः बाह्य ग्रह्यानी
लाज., पे.वि. गा.११. पे.५. शान्तिजिन स्तवन, पं. कीर्तिविजय , मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः सुण दयानिधि तुज पद; अंतिः करे तुज
जीवविजे.,पे.वि. गा.७. पे.६. शान्तिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः सुणो शान्तिजिणन्द; अंतिः इम उदयरत्ननी
वाणी.,पे.वि. गा.१०. पे:७. शान्तिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः बे कर जोडी वीनवू; अंतिः इम पभणे
श्रीजिनराज.,पे.वि. गा.९. पे.८. पुण्डरीकस्वामी स्तवन, मु. ज्ञानविशाल, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः एक दिन पुण्डरीक गणधर; अंतिः
विशाल मनोहारी रे.. पे.वि. गा.५. पे.-९. आदिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः प्रथम जिनेश्वर; अंतिः जेम थाउ अक्षय ___अभङ्ग., पे.वि. गा.७. पे.-१०. सीमन्धरजिननुं स्तवन-१, कवि पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः सुणो चन्दाजी सीमन्धर; अंतिः __ वाधे मुज मन अतिनूरो., पे.वि. गा.७. पे.-११. सीमन्धरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः पुष्कलवइ विजये जयो;
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२५२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अंतिः धरजो धर्मस्नेह., पे.वि. गा.७. पे.-१२. सीमन्धरजिन स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः धनधन क्षेत्र महाविदे; अंतिः
जी वीनतडी अवधार., पे.वि. गा.९. पे.-१३. युगमन्धरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः श्रीयुगमन्धरने कहेजो; अंतिः
जिनविजये गायो रे.,पे.वि. गा.९. पे.-१४. बाहुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः साहिब बाहु जिणेसर; अंतिः यश
कहे सुख अनंत हो., पे.वि. गा.५. पे.-१५. महावीरजिन स्तवन, मु. वीर, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः जय जिनवर जग हितकारी; अंतिः वीरजी
जयकारी रे., पे.वि. गा.७. पे.-१६. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, गणि सौभाग्यविमल, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८आ), आदिः चालो चालोने जइये; अंतिः
सौभाग्यविमल सुखकार., पे.वि. गा.११. पे..१७. पे. नाम. सत्तर प्रकारनु संयम, पृ. १अ-१अ संयम के १७ भेद नाम, मागु., गद्य, आदि: ५ महाव्रत ५ इन्द्री; अंतिः ४ कसाय जीते ३ योग वस., पे.वि. यह
कृति इतनी ही है. पे.-१८. पे. नाम. चौद प्रकारचें अभ्यन्तर परिग्रह, पृ. १अ-१अ
अभ्यन्तरपरिग्रह १४ भेद, मागु., गद्य, आदि: १ मिथ्यात्व ९ नो; अंतिः#., पे.वि. यह कृति इतनी ही है. ७५४६. कच्छीभाषा स्तवन, सज्झाय व स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१)=११, पे. ८, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ व
अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११, १३-१४४४३-४६). पे.-१.पे. नाम. कछिभाषा स्तवन, पृ. -२अ-७आ, अपूर्ण तपागच्छीयप्रतिष्ठा स्तवन-कच्छभूजतीर्थ, मु. विवेकहर्ष, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः सम्पति परमाणन्द करू.,पे.वि.
गा.११३. प्रथम पत्र नहीं है. गा.१ से ९ तक नहीं हैं. पे.२. आदिजिन नेमिजिन स्तवन, मु. विवेकहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७वी, (पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण), आदिः सरसति
भगवति चिति; अंतिः विवेकहर्ष सुहंकरो.,पे.वि. गा.२५. पे..३. हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७वी, (पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण), आदिः मोहनगारो रे
जगगुरू; अंतिः जिनसासन जयकार रे., पे.वि. गा.१५. पे.-४. शीलस्थापन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७वी, (पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण), आदिः सरसति भगवति
चित्त; अंतिः कहईलो सिवपूरी., पे.वि. गा.११. पे.५. शीतपरिसह सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७वी, (पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण), आदिः राजगृही नयरी
वसईय; अंतिः विवेकहर्ष कल्याण करो., पे.वि. गा.६. पे.६. वैराग्य सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदि: जे तरुवर उनमूलता; अंतिः माणन्द पामो राज्य रे.,
पे.वि. गा.११. पे.-७. गजसुकुमाल सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः हरि प्रति बोलई रे; अंतिः
समज्यामीर हमीर रे., पे.वि. गा.११. पे.८. स्थूलिभद्र सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१२आ-, अपूर्ण), आदिः पाय प्रणमी रे वीर; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं. गा.९ तक हैं. ७५४७.” स्तोत्र, छन्दसङ्ग्रह, बरडावीर उपासना विधि व पदस्थध्यान, अपूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(३ से ४)=७, पे. ११,
जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अंतिम कुछ पत्र, (२५४११, १३४४२-४८). पे..१. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण), आदिः श्रीचक्रेश्वरी; अंतिः मनो मे सर्वदा
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२५३ सर्वथा., पे.वि. श्लो.१०. पे..२. प्रत्यङ्गिरा स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २अ-२आ-, पूर्ण), आदिः आरूढा सिंहमुद्यद्विम; अंति:-, पे.वि. अन्तिम पत्र नहीं __ हैं. श्लो.९ तक है. पे..३.पे. नाम. चिन्तामणि पार्श्वजिन स्तोत्र, प्र. -५अ-अ, अपूर्ण पार्श्वजिन स्तोत्र-चिन्तामणिमहामन्त्रगर्भित, धरणेन्द्र, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः सर्वदान्वेषणीयं..पे.वि. श्लो.३२ मात्र
अंतिम पत्र है. प्रारंभ से श्लो.२८ अपूर्ण तक नहीं है. पे.-४. पे. नाम. मन्त्राधिराज अक्षराणां स्थापन स्तोत्र, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण
मन्त्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: मन्त्राधिराजाक्षर; अंतिः श्रीपतिधूमशत्रु:., पे.वि. श्लो.७. पे.-५. मन्त्राधिराज स्तोत्र विधि, संबद्ध, सं., गद्य, (पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण), आदिः ए स्त्रोत्र मासं; अंतिः फुट फुट् स्वाहा. पे.६. जैनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ५-६अ, संपूर्ण), आदिः श्रीजिनं भक्तितो; अंतिः सम्पदश्च पदे पदे., पे.वि.
श्लो.१८. पे.-७. पे. नाम. बरडा क्षेत्राधीश स्त्रोत्र, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण
बरडावीर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः नमदसुरसुराली मौलि; अंतिः श्रेयांसि भूयांसि वः., पे.वि. श्लो.९. पे..८. बरडावीर छन्द, आ. जयचन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण), आदिः एगन्ते एकचित्ते; अंतिः कहे धरम
तूसो सफल., पे.वि. गा.६. पे..९.५२ वीर छन्द, मु. उदयभाण, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण), आदिः सरसति सरसति प्रणमु; अंतिः विकट ___ नाथ भैरव फुरइ., पे.वि. गा.१०. पे.-१०. पे. नाम. वरडाक्षेत्रपाल आराधन विधि, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण बरडावीर उपासनाविधि, सं.,मागु., गद्य, आदि: ओं ह्रीं श्रीं क्लीं; अंति: २१ अथवा १०८ स्मरणीयं., पे.वि.
पाठभेदयुक्त पाठ संलग्न है. यह पाठ आचार्य श्री विद्याप्रभसूरि की पुरानी प्रति पर से लिखा गया है का भी
उल्लेख किया गया है. पे.-११. पदस्थ ध्यान, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ९अ-९अ, संपूर्ण), आदिः पणतीस सोल छपण चउ; अंतिः उपदेशे करे ध्यान
करइ. ७५४८. सज्झाय, स्तवन, स्वाध्याय व बारमासादि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८२३, मध्यम, पृ. ९, पे. २१, जैदेना., ले.स्थल.
जोजावर, ले.- ऋ. राजसी, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं है., (२५.५४११, १९४५२). पे.-१. पञ्चपाण्डव सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः हस्तीनापुर नगर भलो; अंतिः मुज
आवागमन निवार रे., पे.वि. गा.१७. पे..२. सुपार्श्वजिन स्तवन, गणि जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१आ, संपूर्ण), आदि: साहिब हो साहिब मुझ; अंतिः आपो
अविचल वास.,पे.वि. गा.७. पे.-३. नववाडि सज्झाय , मु. अमर, मागु., पद्य, (पृ. १आ-१आ, संपूर्ण), आदिः सदगुरु पाय नमी कहुं; अंति: चौमासै ____ गुण गाया रे., पे.वि. गा.१४. पे.-४. पे. नाम. धन्नामुनि स्वाध्याय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण धन्नामुनि सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मागु., पद्य, आदिः काकन्दी वासी सकज; अंतिः कल्याणसु रंगइ रे., पे.वि.
गा.१५. पे.५. पे. नाम. सीतासती स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण सीतासती सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः छोडी हो पीया छोड; अंतिः पीया कहै हितधरी
जी.,पे.वि. गा.८. पे.६. मेघकुमार सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ, संपूर्ण), आदिः सरस वाणी महावीरनी; अंतिः तो धम्मोत्तर सुख
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२५४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची खेत., पे.वि. ढाल-२. पे-७. नेमिजिन स्तवन, श्रा. महमद जैन, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३अ, संपूर्ण), आदिः तासु कौन सरवर करै; अंतिः
राखलै सरण देवाधिदेवा., पे.वि. गा.४. पे..८. पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण विहरमान २० जिन स्तवन, पाठक धर्मसिंह, मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः वान्दु मन सुद्ध विहर; अंतिः नेहधर
धर्मसी नमै., पे.वि. ढाल-३, गा.२६. पे.९. पे. नाम. गयसुकमाल सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण गजसुकुमाल सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मागु., पद्य, आदिः लाछलदे मात मल्लार; अंतिः सोभाग० मुनि
राजीयोजी., पे.वि. गा.३६. पे.-१०. पे. नाम. नेमिनाथ राजेमति सज्झाय, पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण नेमराजिमती सज्झाय, मु. विनीतसागर, मागु., पद्य, आदिः समुद्रविजय रायहंस; अंतिः विनीतसागर कहे., पे.वि.
गा.११. पे.-११. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण), आदिः जिनवचने वयरागी हो; अंतिः होवै
जय जयकार.,पे.वि. गा.११. पे.१२.पे. नाम. चौवीस तीर्थकर स्तवन, पृ. ५अ-पआ, संपूर्ण
२४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणन्द, मागु., पद्य, वि. १५६२, आदिः सयल जिणेसर प्रणमुं; अंतिः
___ तास सीस प्रणमु आणन्द., पे.वि. गा.२९. पे.-१३. महावीरजिन तपस्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदिः गौतमस्वामीजी बुद्धि; अंतिः आपो स्वामी सुख
घणा.,पे.वि. गा.१०. पे.१४. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. खेम, मागु., पद्य, वि. १७४६, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः सुरपति प्रशंसा ___ करे; अंति: गातां सुख पावै अपारो., पे.वि. गा.१७. पे.१५. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदि: मनमोहनगारो स्वामि; अंतिः सफल
आपणो करैजी लो., पे.वि. गा.१०. पे.-१६. पे. नाम. थूलभद्र स्वाध्याय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण स्थूलिभद्र सज्झाय, गणि जिनहर्ष, मागु., पद्य, आदिः भल ऊगो दिवस प्रमाण; अंतिः सुजाण घणा सुख पावसी.,
पे.वि. गा.११. पे.१७. पे. नाम. रहनेमिराजेमति सज्झाय, पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण स्थनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, मागु., पद्य, आदिः प्रणमी सदगुरु पाय; अंति: पदरा जल लह्यो जी.,
पे.वि. गा.११. पे.-१८. अरणिकमुनि सज्झाय , मु. कीर्तिसोम, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण), आदिः इक दिन अरणक जाम ऊठ्य;
अंतिः इण परि कहै ए.,पे.वि. गा.२४. पे.-१९. नेमिजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण), आदिः राणी राजल इणपरि; अंतिः मुगति
भली रीत रे., पे.वि. गा.१३. पे.-२०. पे. नाम. नेमिकुमार स्तवन, पृ. ८अ-८अ, संपूर्ण नेमिजिन स्तवन, मु. राम, मागु., पद्य, वि. १७४६, आदिः श्रीजगमोहण जादव; अंति: मनवञ्छित सब फल्या.,
पे.वि. गा.११. पे.२१. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १६ की सज्झाय, मु. जिनहर्ष, संबद्ध, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-९आ-, अपूर्ण), आदिः
श्रीनेमिसर चरणयुग; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नही है. ढाल-९ गा.२ अपूर्ण तक है.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२५५
७५४९. छन्द, स्तवन, रास, पद व सज्झायसङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. १० पे ७ जैदेना. ले. स्थल, आंबोरी, ले. ॠ भीवराज (२४.५४११.५ १३४४४-५०).
पे १. पे नाम, अन्तरीकप्रभूजी छन्द, पृ. १३-३आ
पार्श्वजिन छन्द-अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मागु., पद्य, आदि: सरसत मात मना करी; अंतिः भणै जय देव जय जयकरण., पे.वि. गा.५१.
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पे. २. ये नाम, अन्तरीकपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४-५ आ
पार्श्वजिन छन्द- अन्तरीक्ष मु. लावण्यसमय, मागु पद्य वि. १५८५ आदिः सरस वचन द्यो सरसति; अंतिः नर जे
,
-,
हीडे वस्यु., पे.वि. गा. ५५.
पे: ३. पे नाम वरकाणाजी स्तवन, पृ. ६अ-६अ
पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणा, आ, जिनहर्षसूरि मागु, पद्य, आदि: कांइ रे जीव तुं मन अंति: पसाये दादो रङ्गरली., पे.वि. गा.९.
पे. ४. पे नाम, गोतमसामीनो रास, पृ. ६अ ९अ
गीतमस्वामी रास उपा. विनयप्रम मागु, पद्य वि. १४१२ आदि वीर जिणेसर चरण कमल अंतिः जिम साखा विस्तरे ए., पे.वि. गा.६३. इस प्रत में अंतिमवाक्य "विजयभद्र गुरु इम भणै ए" तक ही पाठ है.
पे. ५. आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति प्राहिं पद्य (पृ. ९अआ), आदि देखो माइ आज रिषभ अंतिः साधुकीर्ति गुण गावै. पे.वि. गा.३.
..
पे. ६. पे नाम. अष्टापदसम्पूर्ण स्तवन, पृ. ९आ- १०आ
ऋषिवत्रीसी, मु. यशहर्ष, मागु, पद्य, आदि अष्टापद श्रीआदिजिण अंतिः कहे जसहरष नमुं करजोड., पे. वि.
7
गा.३२.
पे.-७. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १०आ - १०आ), आदि: अवगुण अङ्ग न आणीयै; अंतिः विरवानो सङ्ग छड रे., पे.वि. गा.६.
७५५०. सज्झाय, स्तवन, चारमङ्गलीकशरणा व छन्दसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११-५ (१ से ५)=६, पे. १०,
जैदेना. (२६११.५. १६३५-३८)
पे. १. राजिमतीसतीइकवीसी, ऋ. घोषमल, मागु, पथ, वि. १८५२ (प्र. ६अ ६आ, संपूर्ण), आदि: सासण नायक सुमरिय मन अंति हो श्रावणमास मझार, पं.वि. गा.२१.
J
पे.-२. मेघरथराजा सज्झाय- पारेवडानी विनती, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण), आदिः दया बरोबर धर्म नहीं; अंतिः सन्त सुखी अणगारो जी., पे.वि. गा. ३२.
पे. ३. धन्ना राज्झाय, मु. तिलोकसी- शिष्य मागु., पद्य, (. ७आ-८आ, संपूर्ण), आदि जम्बुतोदीप हो धन्ना; अंतिः गुण गावया मनडे गया., पे.वि. गा. ३६.
पे. -४. मेघमुनि सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ८ आ-९अ, संपूर्ण ), आदि: त्यागि वैरागि मेहा; अंतिः इम मुनि गुण गाया हो., पे.वि. गा.१२.
पे. ५. ४ मङ्गल शरण, ऋ. घोथमल, मागु, पथ, वि. १८५२ (प्र. ९अ ९अ संपूर्ण), आदि पो उठीनें समरीजे ही अंतिः हो सुणजौ बालगोपाल., पे.वि. गा.१२.
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पे.-६. शान्तिजिन छन्द, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ९अ - १०अ, संपूर्ण), आदिः सारद मात नमु सिरनामी; अंतिः नर मनवञ्छित फल पावै, पे.वि. गा.२२.
;
पे. ७. धन्नाशालिभद्र राज्झाय, राज, पद्य, (प्र. १०अ १०आ, संपूर्ण ), आदि धना चौकी पर थयोजी अंति भगवन्त बचन प्रमान हो, पे. वि. गा. १९.
पे. ८. जम्बूस्वामी सज्झाय ऋ रतनचन्द, मागु पद्य (प्र. १०आ-११अ संपूर्ण) आदि रिषभ जे नन्दन धारणी: अंति
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पाम्या अविचल ठामसुं., पे.वि. गा. ७.
पे. ९ पार्श्वजिन स्तवन- चिन्तामणि उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (५. ११अ ११अ संपूर्ण) आदि आणि मनसुध आसता देव; अंतिः कहे सुख भरपुर., पे.वि. गा. ७.
पे. १०. शान्तिजिन स्तवन ऋ रुगनाथ, मागु., पद्य वि. १८३४ (पृ. ११अ ११आ, संपूर्ण) आदि श्रीसन्तनाथजी का अंतिः चिन्त्या म्हारी काटे., पे.वि. गा.१५.
७५५१.” प्रतिक्रमणसूत्र, स्तोत्र, प्रकरण, स्तुति आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. १०४, पे. २५, जैदेना., ले. स्थल.
जोधपुर, ले. मु. परमानन्द (गुरु मु. आनन्दराम ), पठ.- मु. भगवानदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्र. पु. मूल - सर्वग्रं.
-
२०३२, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र (२७४१२, ९३२). संबद्ध, प्रा. सं., मागु प+ग (प्र. १आ-१९अ) आदि नमो अरिहन्ताणं; अंति
पे. १. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे. मू. पू. त्थुइत्थु मङ्गलं.
पे. २. पे. नाम. बृहन्नवकार पृ. १९अ २१आ
नमस्कार महामन्त्र स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि राज, पद्य, आदिः किं कप्पतरु रे अयाण अंतिः तणी सेवा कीजो वित., पे.वि. गा. १३. दो गाथाओं का गाथाक्रम १ ही गिना हुआ है.
पे. ३. वज्रपंजर स्तोत्र सं पद्य (पृ. २१-२१आ) आदिः ॐ परमेष्ठि नमस्कारं अंतिः चापि कदाचन. पं.वि. एलो. 19. प्रतिलेखन वर्ष - १८६१ व प्रतिलेखन स्थल - नाडसर का उल्लेख है.
पे-४. पे नाम प्रथमजिन स्तोत्र, प्र. २१-२५आ
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो. ४४.
पे-५. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं. पथ (पृ. २५आ-२९आ), आदि कल्याणमन्दिरमुदारमवद अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते, पे.वि. श्लो. ४४.
पे. ६. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५. आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. पद्य (पृ. २९-३०अ ) आदि उवसग्गहरं पास पास अंति
"
भवे पास जिणचन्द, पे.वि. गा. ५.
पे.-७. बृहत्शान्ति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., पद्य, (पृ. ३०अ - ३३आ), आदिः भो भो भव्या श्रृणुत; अंतिः स्तूयमाने जिनेश्वरं.
पे. ८. पे. नाम. लघुशान्ति स्तोत्र, पृ. ३३आ - ३४आ
"
लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शान्ति शान्ति अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च पे. वि. श्लो. १७. पे. ९. पे नाम. सप्तत्युत्तरशतजिनचक्र स्तोत्र, पृ. ३४आ- ३५आ पे.-९.
तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह., पे.वि. गा.१४.
पे.-१०. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ३५आ-३८आ), आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय.. पे.वि. गा. ४८.
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पे.-११. ८ कर्म स्थिति, प्रा., पद्य, (पृ. ३८-३९अ ), आदि: जीवो संवर निज्जर; अंतिः आउ ठिई बन्ध मुक्कोसा., पे.वि.
गा. ४.
पे. १२. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३९अ - ४२अ ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, पे. वि. गा. ५१.
पे.-१३. पे. नाम. दण्डकविचारषट्त्रिंशिकासूत्री, पृ. ४२अ - ४५अ
दण्डक प्रकरण, मु. गजसार प्रा. पद्य, आदि नमिठं चचवीस अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ पे.वि. गा.४१.
"
"
पे. १४. पे नाम. चउसरणपइन्नो सह टिप्पण, पृ. ४५अ - ४९अ
चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि सावज्ज जोग विरई अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२५७ चतुःशरण प्रकीर्णक-टिप्पण', सं., गद्य, आदिः सामायिकं करेमि भन्ते; अंतिः सुखानां अवन्ध्यकारणं., पे.वि. मूल
गा.६३. पे.-१५.४ शरण फल, मागु., पद्य, (पृ. ४९अ-४९अ), आदिः च्यार सरणा मङ्गल; अंतिः सरणा पञ्चमी गति करणा.,
पे.वि. गा.१. पे.-१६. पे. नाम. सिन्दूरप्रकराख्य सुभाषितम्, पृ. ४९अ-६०आ
सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्., पे.वि. श्लो.१०१. पे.-१७. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ६०आ-६१अ), आदिः सकलगुणसमेतं दुष्टदोष; अंतिः स्तौमि देवाधिदेवम्.
पे.वि. श्लो.१. पे.-१८. पे. नाम. लघुसङ्ग्रहणी, पृ. ६१अ-८१आ बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं., पे.वि.
गा.३२८. पे.-१९. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, (पृ. ८१आ-९८आ), आदिः वीरं जयसेहरपय; ___ अंतिः कुसलरङ्गमई पसिद्धिं., पे.वि. अध्याय-६ अधिकार, गा.२६५. प्रतिलेखन स्थल-सुभटपुर. पे..२०. जैन सुभाषित *, सं., पद्य, (पृ. ९८आ-१००आ), आदिः #; अंतिः #., पे.वि. प्र.पु.-श्लो.२२. पे..२१. पे. नाम. गौतमर्षि कुलक, पृ. १००आ-१०२अ
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहन्ति., पे.वि. गा.२०. पे.२२. पे. नाम. पुण्य कुलक, पृ. १०२अ-१०३आ पुण्यफल कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भवियजण महिय मोहे; अंतिः धम्मम्मि उज्जमं कुणह.,
पे.वि. गा.१९. पे.२३. पे. नाम, पञ्चशतानि त्रिषष्ट्यधिकानि जीवानां भेदानि, पृ. १०३आ-१०३आ
जीवभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदिः नारयतिरिनरदेवा; अंतिः ए ए सव्वेवि देवाणं.,पे.वि. गा.५. पे.२४. सकलकुशलवल्लि चैत्यवन्दनसूत्र, सं., पद्य, (पृ. १०४अ-१०४अ), आदिः सकलकुशलवल्ली; अंतिः श्रेयसे
पार्श्वनाथः., पे.वि. प्र.पु.-श्लो.१.
पे.२५. श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, (पृ. १०४अ-१०४अ), आदिः#; अंति:#., पे.वि. प्र.पु.-श्लो.१. ७५५२. सज्झाय सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. १५, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५४११, १३४३६
४३). पे.-१. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः नाम एला पुत्र जाणीए; अंतिः ___ लब्धिविजय गुण गाय., पे.वि. गा.९. पे.२. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१आ, संपूर्ण), आदिः श्रेणिक रयवाडी चड्यो;
अंतिः वन्दे रे बे करजोडि., पे.वि. गा.१०. पे.-३. अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण), आदि: अरणिक मुनिवर
चाल्या; अंतिः मनवञ्छित फल लीधो जी., पे.वि. गा.८. पे.-४. स्थूलिभद्र सज्झाय, गणि लब्धिउदय, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः मुनिवर रहण चोमासे; अंतिः ___दिनदिन सुख सवाया., पे.वि. गा.१२. पे.५. पे. नाम. काकन्दीधन्ना सज्झाय, पृ. २आ-२आ, संपूर्ण
धन्ना सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मागु., पद्य, आदिः धन धन्नो ऋषि वन्दीयै; अंतिः नामथकी निस्तार रे., पे.वि. गा.७. पे:६. पे. नाम. काया सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण
औपदेशिक सज्झाय, महमद, मागु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कांई; अंतिः लेखो साहिब हाथ.,पे.वि. गा.९.
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पे.-७. पे. नाम. मेघकुमार गीत, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण
मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, मागु., पद्य, आदिः वीर जिणन्द समोसर्या अंतिः ते तरस्यै संसार, पे.वि. गा.१८. पे. ८. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु पद्य (पृ. ३आ-४अ संपूर्ण) आदि दण्ढणऋषिने वन्दणा; अंतिः कहे जिनहर्ष सुजाण रे, पै. वि. गा.९.
पे. ९. घेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य, (पृ. ४-४आ, संपूर्ण) आदि वीर वान्दी वलतां अंतिः पामशे भव तणो पार., पे.वि. गा. ७.
पे. १०. साधुगुण सज्झाय, आ. आनन्दविमलसूरि, मागु, पद्य, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण ), आदि: श्रीजीनवरने करुं ; अंतिः
पदवी लहिस्यै तेह.. पे.वि. गा. १६.
"
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
T
पे.-११. धन्नाशालीभद्र सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मागु., पद्य, (पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण), आदि: मुनिवर वहिरण; अंतिः राजसमुद्र सुखकार, पे.वि. गा. १७.
पे. १२. पे. नाम. असिज्झाय स्तवन, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण
असज्झाय सज्झाय, मु. हीर, मागु., पद्य, आदि: श्रावण काती मिगसिर; अंतिः नाम कहियो तु इण परै., पे.वि.
गा. १५.
पे.-१३. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः राजतणा अि लोभीया; अंतिः समयसुंदर वंदे पाय रे, पे.वि. गा. ८.
पे.-१४. आध्यात्मिक पद- निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मागु., पद्य, (पृ. ६आ- ७अ, संपूर्ण ), आदि: नीन्दडली वैरण हुय; अंतिः हो मुनि कनकनिधान., पे.वि. गा. ८..
पे. १५. २२ अभक्ष्य ३२ अनन्तकाय सज्झाय आ. लक्ष्मीरत्नसूरि मागु पच (पृ. ७अ-अ- अपूर्ण), आदि जिनशासन रे शुद्धि: अंति, पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.
"
पे. ३. औपदेशिक पद, मागु., पद्य, (पृ. नहीं है. गा. १ नहीं है.
पे.-४. पे. नाम. च्यार बोलरी सज्झाय, पृ. ९अ - ९अ, संपूर्ण
७५५३. स्तोत्र, सज्झाय, स्तवन, छन्द व साधुवन्दनादि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-४ (५ से ८) =२२, पे. १९,
जैदेना, (२५x११.५, १५X३७).
पे. १. पे. नाम. भक्तामरस्तोत्रे महाकाव्येच्छितार्थप्रदाने प्रथमतीर्थङ्करस्य स्तुति, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो. ४४.
पे:-२. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, (पृ. ३आ-४आ-, अपूर्ण), आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद अंतिः पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, श्लो. २० तक है.
"
९अ- ९अ, पूर्ण), आदि:-; अंतिः ते नीचे शिवरमणी वरे, पे.वि. गा.४ प्रथम पत्र
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पे.वि. गा. ५.
४ मङ्गल सज्झाय, मागु., पद्य, आदिः मङ्गलीक पहिलो कहुं; अंतिः तणा सुख लहे अनन्त., पे:-५. २४ जिन परिवार सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण), आदिः चोवीस तीर्थंकरनो; अंतिः कर जोडीने करु प्रणाम., पे.वि. गा. ७.
पे. ६. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण), आदिः श्रीसुगरचिन्तामणदेव; अंतिः प्रभु पारसनाथ कीयै., पे.वि. गा.१५.
पे.-७. पे. नाम. श्रावक री सज्झाय, पृ. १०अ ११अ, संपूर्ण
आवक करणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु पद्य, आदि आवक तुं उठे परभात अंतिः करणि दुखहरणि छे एह.. पे.वि. गा. २१.
पे. ८. पे नाम. सतावीस सतीयां री सज्झाय प्र. ११अ १२अ संपूर्ण
,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२५९ २७ सती सज्झाय, मागु., पद्य, आदिः प्रह समै उठी मननै; अंतिः मिलै ह्वै बहु सुख., पे.वि. गा.२९. पे.९. पे. नाम. शान्तिनाथजिन स्तवन, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण
शान्तिजिन छन्द, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, आदिः सारद मात नमु सिरनामी; अंति: नर मनवञ्छित फल
पावै., पे.वि. गा.२१. पे.-१०. पे. नाम. सीमन्धरस्वामी स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण सीमन्धरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मागु., पद्य, आदिः सफल संसार अवतार; अंतिः पुरी आसा
मनतणी., पे.वि. गा.१८. पे:११. अष्टापदतीर्थ स्तवन, गणि जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण), आदि: अष्टापद श्रीआदि; अंतिः
जिनहर्ष नमुं करजोडी., पे.वि. गा.३२. पे.१२.२४ जिन मातापितादि ७ बोल स्तवन, मु. दीप, मागु., पद्य, वि. १७१९, (पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण), आदिः
श्रीजिनवाणी सरस्वती; अंतिः दीपो कुलथपुर चोमास ए..पे.वि. गा.३१. पे.-१३. पे. नाम. आदीश्वरजी वीनती, पृ. १६अ-१८अ, संपूर्ण आदिजिन विनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थमण्डन, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५६२, आदिः जय पढम जिणेसर;
अंतिः मन वैरागे इम भणियं.,पे.वि. गा.४५. पे.-१४. पे. नाम. नवकार छन्द, पृ. १८अ-१९अ, संपूर्ण नमस्कार महामन्त्र छन्द, वा. कुशललाभ, मागु., पद्य, आदिः वंछित पूरे विविध; अंतिः ऋद्धि वांछित लहे., पे.वि.
गा.१७. पे:१५. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण नमस्कार महामन्त्र छन्द, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, आदिः सुख कारण भवीयण समरो; अंतिः भलतां
जाये भवना पाप., पे.वि. गा.१४. पे.-१६. पे. नाम. साधुवन्दणा चरित्र, पृ. १९आ-२४अ, संपूर्ण
साधुवन्दना, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, आदिः रिसहजिण पमुह चउवीस; अंतिः मन आणन्दे सन्थुआ., पे.वि.
ढाल-७. पे.-१७. मुनिगुणमाला, मु. मनरूप, मागु., पद्य, (पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण), आदिः पञ्चमहाव्रत सुधा; अंतिः परम महासुख
पावै जी.,पे.वि. गा.१३. पे.-१८. पे. नाम. मङ्गलाष्टक-प्रथम श्लोक, पृ. २४आ-२४आ, प्रतिपूर्ण
मङ्गलाष्टक, कालिदास, सं., पद्य, आदिः श्रीमत्पङ्कज विष्टरो; अंतिः-, पे.वि. प्र.पु.-मूल अंश श्लो.१. पे.-१९. पे. नाम. पार्श्वनाथजी री निसाणी, पृ. २४आ-२६आ, संपूर्ण पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, प्राहिं., पद्य, आदिः सुखसम्पत्तिदायक; अंतिः जिनहरष कहन्दा है., पे.वि.
गा.२८. ७५५४. गहुंली व भाससङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)-५, पे. १५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र है., (२६४११,
१३४४४). पे..१. गौतमस्वामी गहुंली, मु. खेमाविजय, मागु., पद्य, (पृ. -३अ-३अ, अपूर्ण), आदि:-; अंति: पामज्यो सुख अभङ्ग.,
पे.वि. गा.६ प्रथम पत्र नहीं है. गा.२ अपूर्ण तक नहीं है. पे..२. सुधर्मागणधर भास, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदिः ज्ञानादिक गुणखाणि; अंति: गावे जिनशासन
धणीजी., पे.वि. गा.८. पे.-३. सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदिः सासन नायक विरनो गणधर; अंतिः
सूत सत्थ रे., पे.वि. गा.६.
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२६०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-४. गुरूगुण गहुंली, मु. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदिः आगम वयण सुधारस पीजे; अंतिः
मङ्गल घरि लावे रे...., पे.वि. गा.५.. पे.५. गौतमस्वामी गहुंली, मु. विजयलक्ष्मी, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४अ, संपूर्ण), आदिः गुणनिधि है गुणनिधि; अंतिः
गुहली करो विज्ञान., पे.वि. गा.८. पे:६. वासुपूज्यजिन गहुंली, मु. विजयलक्ष्मी, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण), आदिः चम्पानयरी अति हे; अंतिः कहे ___मुझ आस्या फली., पे.वि. गा.५. पे.-७. महावीरजिन गहुंली. मु. ऋद्धिसौभाग्य, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण), आदिः श्रीजिनवीर समोसर्या; अंतिः ___ पामीजे देवविमान., पे.वि. गा.९. पे..८. पे. नाम. जम्बु भास, पृ. ५अ-५अ, संपूर्ण जम्बूस्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मागु., पद्य, आदिः स्वामी सुधर्मा सेवीइ; अंतिः ऋद्धिसौभाग्य सुखकार., पे.वि.
गा.९. पे.९. पे. नाम. गौतम भास, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण गौतमस्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मागु., पद्य, आदिः जगगुरु जिनपति हो; अंति: ऋद्धिसौभाग्य दातार., पे.वि.
गा.९. पे.१०.पे. नाम. गौतम भास, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण गौतमस्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मागु., पद्य, आदिः साहिबा गुरु गछपति; अंतिः सदा सुख पावती रे लो.,
पे.वि. गा.५. पे.-११. पे. नाम. सुधर्मा भास, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण सुधर्मास्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मागु., पद्य, आदिः राजग्रही उद्यान गुण; अंतिः पाप दोहग दुख वामवाजी.,
पे.वि. गा.७. पे.-१२. गुरुगुण गहुंली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण), आदिः जिनवयणे अनुरङ्गी; अंतिः धर्मने
वरता रे., पे.वि. गा.६. पे.-१३. गुरुगुण गहुंली, मु. उत्तम, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः तुमे शुभ परिणामें; अंतिः मङ्गल मालो रे.,
पे.वि. गा.७. पे.-१४. गौतमस्वामी भास, आ. जिनेन्द्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण), आदि: सजनी सदगुरु चरण नमी;
अंतिः माणिक नमे कर जोडि हो., पे.वि. गा.७. पे-१५. जिनेन्द्रसूरि भास, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ-, अपूर्ण), आदिः सोझितनगर सोहामणो; अंति:-, पे.वि. अंत के
पत्र नहीं हैं. गा.१ से ५ अपूर्ण तक है. ७५५५.” स्तवन, सज्झाय, गीत व पद आदि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८०५, मध्यम, पृ. १४७-१२५(१ से ५१,५५ से ५७,६५ से
१३०,१३७ से १३८,१४३ से १४५)=२२, पे. ८३, जैदेना., ले.स्थल. मांडहा, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण
युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४११.५, १७-१८४४७-५०). पे..१.१७ प्रकारी पूजाविधि स्तवन, उपा. धर्मसी, मागु., पद्य, (पृ. -५२अ-५२अ, संपूर्ण), आदि: भाव भलै भगवन्तरी;
अंतिः इम ध्रमसी उवज्झाय., पे.वि. गा.१९. पे.२. पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ५२अ-५२आ, संपूर्ण), आदिः सुरतरुनी परि दोहिलो; अंतिः
श्रीविजयदेवसूरि कि., पे.वि. गा.१६. पे..३. नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ५२आ-५३अ, संपूर्ण), आदि: वैशाखें वन मोरीया; अंतिः
मिलीया मुगति मझार., पे.वि. गा.१४. पे.-४. नेमराजिमती सज्झाय , मु. रङ्गविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५३अ-५३आ, संपूर्ण), आदिः प्रणमी सदगुरु पाय; अंतिः
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२६१ पद राजुल लह्यौ जी., पे.वि. गा.११. पे.५. नेमराजिमती सज्झाय, गणि जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ५३आ-५३आ, संपूर्ण), आदिः वीनवै राजुलबाला; अंतिः ___ मुगति महले पावडीए हो., पे.वि. गा.७. पे.-६. सीतासती गीत, मु. जिनरङ्ग, मागु., पद्य, (पृ. ५३आ-५४अ, संपूर्ण), आदिः छोडी हो पिउ छोडि; अंतिः प्रणमु
धरम हीयै धरी., पे.वि. गा.११ प्रतिलेखन वर्ष-१७९२, स्थल-चिरपटिया. पे.-७. चेतनबत्रीसी, मु. राज, मागु., पद्य, वि. १७३९, (पृ. ५४अ-५४आ-, संपूर्ण), आदिः चेतन चेत रे अवसर मत; अंतिः
संवत बोलै राजबत्तीसी., पे.वि. गा.३२. पे.-८. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, (पृ. -५८अ-५८अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः सहिजसुन्दरनी
वाणि., पे.वि. गा.१५. प्रथम पत्र नहीं है. गा.१ से ५ नहीं है. पे:९. पार्श्वजिन स्तवन, मु. लाभवर्द्धन, मागु., पद्य, (पृ. ५८अ-५८अ, संपूर्ण), आदिः सुखकारी हो साहिब; अंतिः सेवक
जाणी कृपा करो., पे.वि. गा.४. पे..१०. दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५८अ-५८आ, संपूर्ण), आदिः रे जीव जिन
धरम; अंतिः मुगतीना फल त्यांह रे..पे.वि. गा.६. पे..११. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्ननिधान, मागु., पद्य, (पृ. ५८आ-५८आ, संपूर्ण), आदि: पास जिणन्द जुहारीयै; अंतिः
पय अरविन्दो रे., पे.वि. गा.९. पे.-१२. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, श्रीचन्द, प्राहिं., पद्य, वि. १७२२, (पृ. ५८आ-५८आ, संपूर्ण), आदिः अमल कमल
जिम धवल; अंतिः फली मन आस., पे.वि. गा.९. पे.-१३. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जैतसी, मागु., पद्य, (पृ. ५८आ-५९अ, संपूर्ण), आदिः सुगुण सोभागी हो; अंतिः माहरै
तूंहिज रे देव., पे.वि. गा.५.. पे.-१४. पार्श्वजिन स्तवन, मु. तिलोकचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५९अ-५९अ, संपूर्ण), आदिः सुन्दर मूरति सोहइ; अंतिः कहै
सेव्या सुख थाय., पे.वि. गा.६. पे.-१५. पे. नाम. कापरहेडा पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५९अ-५९आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-कापरडा, गणि जिनहर्ष, मागु., पद्य, आदिः अङ्ग सुरङ्गी अङ्गीया; अंतिः सदा नमुं
कापरहेडापास., पे.वि. गा.७. पे.-१६. पार्श्वजिन गीत, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५९आ-५९आ, संपूर्ण), आदिः चिन्तामणि सामी सच्चा;
अंतिः बनारसी बन्दा तेरा., पे.वि. गा.४. पे.-१७. धन्नाशालीभद्र गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५९आ-५९आ, संपूर्ण), आदिः धन्नौ सालिभद्र बेउ;
अंतिः कहे हुं सदाजी हो., पे.वि. गा.९. पे.-१८. दशार्णभद्रराजा सज्झाय, मु. लालविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६०अ-६०आ, संपूर्ण), आदिः सारद बुधदाइ सेवक;
अंतिः लालविजय निशिदीस.,पे.वि. गा.१८. पे.-१९. श्रावक करणी कवित्त, मागु., पद्य, (पृ. ६०आ-६०आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम उठि परभात देव; अंतिः लहि नरभव ___ लाहौ लीजीयै., पे.वि. गा.१. पे.-२०. नाटक सङ्ख्या , मागु., गद्य, (पृ. ६०आ-६०आ, संपूर्ण), आदिः दसारणदेश दसारण पर्वत; अंतिः छत्रीससु सेती. पे..२१. पे. नाम. नमि सज्झाय, पृ. ६१अ-६१अ, संपूर्ण नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदि: जी हो मिथीला नगरीनो; अंतिः पामी जे भवपार.,
पे.वि. गा.७. पे.-२२. आदिजिन स्तवन-शत्रुञ्जयमण्डन, मु. रत्नचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ६१अ-६२अ, संपूर्ण), आदिः श्रीविमलाचल
तीरथ; अंतिः वेग सिवरमणी वरउ., पे.वि. गा.२५.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.२३. नेमराजिमती गीत, मु. कवियण, राज., पद्य, (पृ. ६२अ-६२अ, संपूर्ण), आदिः समुद्रविजय कौ नेमि; अंतिः चरणे
चित्त ल्यावोनै., पे.वि. गा.७. पे:-२४. भरतबाहुबली सज्झाय , उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६२अ-६२अ, संपूर्ण), आदिः राजतणा अति
लोभीया; अंतिः समयसुंदर वंदे पाय रे.,पे.वि. गा.७. पे.२५. भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६२अ-६२आ, संपूर्ण), आदिः भवदत्तभाई घरे
आवीओजी; अंतिः सुन्दर वान्दे पाय रे., पे.वि. गा.८. पे.-२६. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६२आ-६२आ, संपूर्ण), आदिः जोवा आया
रे देवता; अंतिः समयसुन्दर कहै सार., पे.वि. गा.५. पे.२७. १२ व्रत सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८२, (पृ. ६२आ-६३अ, संपूर्ण), आदिः श्रावकना
व्रत सुणि; अंतिः सुन्दर कहइ नित साभलउ., पे.वि. गा.१५. पे.-२८. शीलबत्तीसी, मु. राजसमुद्र, मागु., पद्य, (पृ. ६३अ-६४अ, संपूर्ण), आदि: सील रतन यतने करि; अंतिः
राजसमुद्र विचार जी., पे.वि. गा.३२. पे:२९. मेघकुमार सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. ६४अ-६४अ, संपूर्ण), आदिः धारणी समजावे हो मेघ; अंतिः घरवास
जायस्या वनवास., पे.वि. गा.५. पे.-३०. पे. नाम. सोवनगिरि महावीरजिन स्तवन, पृ. ६४अ-६४आ-, संपूर्ण महावीरजिन वृद्धस्तवन-सोवनगिरि, मु. जसवन्त, मागु., पद्य, वि. १७९३, आदिः श्रवणे प्रभुनी कीरति; अंतिः राज
जोइवा मुख जिनराज.,पे.वि. गा.१२. पे.-३१.२४ जिन पद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. -१३१अ-१३१अ, संपूर्ण), आदिः जीउ जपि जपि
जिनवर; अंतिः समयसुन्दर सिरनामी., पे.वि. गा.३. पे.-३२. आदिजिन पद, मु. महिमराज, मागु., पद्य, (पृ. १३१अ-१३१अ, संपूर्ण), आदिः जाग जग मुगटमणि नाभि; अंतिः
के काटि दुख दन्दा., पे.वि. गा.३. पे.-३३. आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३१अ-१३१अ, संपूर्ण), आदिः आज ऋषभ घर आवे; अंतिः
साधुकीरति गुण गावे., पे.वि. गा.३. पे.-३४. शान्तिजिन स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३१अ-१३१अ, संपूर्ण), आदिः अङ्गन कल्प
फल्योरी; अंतिः हु रहिस्युं सोहलोरी.,पे.वि. गा.३. पे.-३५. शान्तिजिन पद, मु. जिनलाभ, मागु., पद्य, (पृ. १३१अ-१३१अ, संपूर्ण), आदिः आणन्द आज भयोरी भविक;
अंतिः तुं जगमांहि जयो री., पे.वि. गा.३. पे.-३६. पार्श्वजिन पद,धर्मसिंह, मागु., पद्य, (पृ. १३१अ-१३१अ, संपूर्ण), आदिः मांनी साहिब सेवा; अंतिः लोह कनकरि
लेवा., पे.वि. गा.३. पे.-३७. पार्श्वजिन पद, मु. चन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३१अ-१३१आ, संपूर्ण), आदिः रूप भलौ जिनजीकौ; अंतिः जिनवर
जगजीवन सबहीको., पे.वि. गा.३. पे.-३८. साधारणजिन पद, पाठक क्षमाप्रमोद, मागु., पद्य, (पृ. १३१आ-१३१आ, संपूर्ण), आदि: मान्यो जिनवर मेरइ; ___ अंतिः मूरति समरत सतत सवेरइ., पे.वि. गा.३. पे.-३९. पार्श्वजिन पद, मु. महिमराज, मागु., पद्य, (पृ. १३१आ-१३१आ, संपूर्ण), आदिः जिन तेरे नयन अनीयारे; अंतिः ____ महिमराज सुखकारे., पे.वि. गा.३. पे.-४०. पद्मप्रभजिन पद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३१आ-१३१आ, संपूर्ण), आदिः मेरौ मन मोह्यो
जिन; अंतिः कुसल मङ्गल सम्पतीयां., पे.वि. गा.३. पे.-४१. महावीरजिन पद, मु. भुवनकीर्ति, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३१आ-१३१आ, संपूर्ण), आदिः मो मन वीर सुहावै; अंतिः
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
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भुवनकीरति गुण गावइ, पे.वि. गा.३.
.
पे. ४२ महावीरजिन पद, मु. खेम मागु, पद्य, (पृ. १३१आ- १३१आ, संपूर्ण), आदि सिद्धारथ सुत साम्भली अंतिः करी भवसागर तारौ ., पे.वि. गा.३.
"
पे. ४३. औपदेशिक पद, मु. जिनराज, प्राहिं, पद्य, (पृ. १३१आ-१३१आ, संपूर्ण), आदि कहा अग्यानी जीवकुं अंति काको सहिज मिटावइ, पे.वि. गा.३.
i
पे. ४४. पार्श्वजिन पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं, पद्य, (. १३१आ- १३२अ संपूर्ण), आदि: मेरइ एती चाहिये नित; अंतिः में
अवर न ध्याउं, पे.वि. गा. ३.
पे.-४५. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३२अ - १३२अ, संपूर्ण), आदिः रे घरियारी बाउ रे; अंति विरला कोइ पावे. पे.वि. गा.३.
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पे. -४६. औपदेशिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३२अ - १३२अ, संपूर्ण), आदि: जीय जानै मेरी सफल; : अंतिः नर मोह्यो माया करी., पे.वि. गा.३.
पे. ४७. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं. पद्य (पृ. १३२अ - १३२अ संपूर्ण) आदि सुहागणि जागी अनुभव अंति
P
अकथ कहानी कोइ., पे.वि. गा. ४.
पे. -४८. आध्यात्मिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं, पद्य, (पृ. १३२अ - १३२अ संपूर्ण ), आदि: तुं आतम गुण जाण; अंतिः अवर न कोई छुडावनहार, पे.वि. गा.८.
पे. ४९ औपदेशिक पद उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३२अ १३२अ संपूर्ण), आदि: करम अचेतन किम
"
हुवै; अंतिः कहे ते साचुं रे., पे.वि. गा.३.
२६३
पे. ५०. औपदेशिक पद, मु. जिनराज प्राहिं, पद्य, (पृ. १३२अ - १३२आ, संपूर्ण), आदि: कबहुं में नीकै नाथ; अंतिः विन युंही जनम गमायो, पे.वि. गा.३.
पे. ५१. औपदेशिक पद, मु. राजसमुद्र प्राहिं, पद्य, (पृ. १३२आ- १३२आ, संपूर्ण ), आदि कउण धरम की मरम अंति पुरुष कुण पावत हैरी., पे.वि. गा.३.
"
"
पे.-५२. आदिजिन पद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३२आ- १३२आ, संपूर्ण), आदि: रिषभ की भगति मोरे; अंतिः प्रणमति उल्लसीरी., पे.वि. गा.३.
पे.-५३. पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३२आ - १३२आ, संपूर्ण), आदि: तूं मेरै मन में तूं अंतिः साहिब
तीन भुवनमें, पे.वि.गा.३.
.
पे.-५४. साधारणजिन पद, उपा. समयसुन्दर गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३२आ - १३२आ, संपूर्ण), आदि: रूप वण्यो अति नीको अंति: देखें सफल जनम ताहीको पे.वि. गा.३.
पे. ५५. शीतलजिन पद उपा. समयसुन्दर गणि मागु पद्य (पृ. १३२आ-१३२आ, संपूर्ण), आदि मुख नीको
शीतलनाथ की अंतिः हे सेवक जिनजी को, पे.वि. गा.३.
र्ह
"
पे. ५६. पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, मागु, पद्य, (पृ. १३२आ-१३२आ, संपूर्ण) आदि नित नमीये पारसनाथजी अंतिः एह अनाथ नाथजी., पे.वि. गा.३.
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पे. ५७. अनन्तजिन स्तवन, गणि जिनहर्ष प्राहिं. पद्य (पृ. १३३अ १३३अ संपूर्ण) आदि मे तेरी प्रित पीछाणि अंतिः
.
दीजै निज सहि नाणी हो., पे.वि. गा. ५ दो-दो गाथा की एक गाथा गिनने के कारण प्रत में तीन गाथा लिखी है.
पे. ५८. ब्रह्मचर्य पद, मु. राज, मागु, पद्य, (पृ. १३३२-१३३अ संपूर्ण), आदिः याली धनओ पीउ धनउ; अंतिः नखसिख परिवारुं डारी, पे.वि. गा. ३.
पे.-५९. औपदेशिक पद, बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३३अ - १३३अ, संपूर्ण), आदिः या चेतन की सब सुद्ध; अंतिः तब सुख होत बनारसीदास, पे.वि. गा.८.
पे.-६०. औपदेशिक पद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३३अ - १३३अ, संपूर्ण ), आदिः जागि भाई तूं जागि;
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अंतिः कहइ पामइ भव पार..
पे.वि. गा. ४.
पे.-६१. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. १३३ - १३३अ, संपूर्ण), आदिः आस्या औरन की कहा; अंतिः
देखे लोक तमासा, पे.वि. गा.४.
भञ्जण श्रीभगवन्त रे. पं.वि. गा.५.
पे ६४. पे नाम, आदिजिन प्रभाति पृ. १३३आ-१३३आ, संपूर्ण
"
पे.-६२. औपदेशिक पद, राज, मागु., पद्य, (पृ. १३३अ - १३३आ, संपूर्ण), आदिः आज प्रीउ सुपनै खरीय; अंतिः टरइ कोटि करउ चतुराई., पे. वि. गा. ३.
पे ६३. पार्श्वजिन स्तवन, मु. खेम मागु, पद्य, (पृ. १३३आ- १३३आ, संपूर्ण), आदि: श्रीपास जिणेसर साहिब: अंति
"
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
आदिजिन पद, मु. खेम मागु., पद्य, आदि: जागीयै नृप नाभिनन्दन; अंतिः मङ्गलतूर खेम जैतवारे, पे.वि. गा. ५..
,
,
पे.-६५. औपदेशिक पद, मु. खेम मागु., पद्य, (पृ. १३३आ - १३३आ, संपूर्ण ), आदि: धरम करि धरम करि धरम; अंतिः आतमहित खेम उपाउ रे., पे.वि. गा.५.
"
पे. ६६. आत्मप्रबोध सज्झाय मागु, पद्य, (पृ. १३४२-१३४अ संपूर्ण), आदि पहिलो पोहर भयो बालक; अंति: पुहरा इण
परि राखौ, पे.वि.गा. ५.
पे. ६७. पे. नाम. आत्मप्रबोध सज्झाय, पृ. १३४अ १३५अ संपूर्ण
उपदेशबत्तीसी, मु. राज, प्राहिं., पद्य, आदि: आतमराम सयाने तें; अंतिः सदगुरु शीष सुणीजै., पे.वि. गा. ३०. पे:-६८. वैराग्य सज्झाय, महम्मद काजी, मागु., पद्य, (पृ. १३५अ - १३५अ, संपूर्ण), आदिः गाफिल बन्दा नीदडली; अंतिः सांई विण सरण न थाय., पे.वि. गा. ५.
पे.-६९. पे. नाम. सासबहूरी थूई, पृ. १३५अ - १३५, संपूर्ण
आध्यात्मिक स्तुति, मागु., पद्य, आदि: सवारे उठी सामायक; अंतिः जीवदया पिण पालुञ्जी., पे.वि. गा.४. पे. ७०. असणादिक कालप्रमाण राज्झाय. मु. वीरविमल, मागु पद्य (पृ. १३५४ - १३५आ, संपूर्ण) आदिः प्रणमुं
श्रीगौतम; अंतिः वीरविमल करजोडी कहे., पे.वि. गा. १८.
.
पे.-७१. पद्मप्रभजिन स्तवन- सम्प्रतिराजावर्णगर्भित, मु. कनक, मागु., पद्य, (पृ. १३५आ - १३६अ, संपूर्ण), आदिः धन धन सम्प्रति साचो; अंतिः देज्यो भवभव सेवा रे, पे.वि. गा. ९.
पे.-७२. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. १३६अ - १३६अ, संपूर्ण), आदिः जीव धरम म मुकिस; अंतिः ते चिर काले वन्दो, पे.वि. गा. ९.
"
पे.-७३. अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३६अ - १३६आ, संपूर्ण), आदि: जिणवर भक्ति; अंतिः नित करे परणाम ए., पे.वि. गा.१७.
पे. ७४. इरियावहि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मागु., पद्य, (पृ. १३६आ - १३६आ-, अपूर्ण), आदि: सकल कुशलदायक अरिहन्त; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. ७ अपूर्ण तक हैं.
पे. ७५. आषाढाभूति चरित्र, वा. कनकसोम, मागु पद्य वि. १६३८ (पृ. १३९अ १४०आ, संपूर्ण), आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंतिः श्रीसङ्घकुं सुखकारा., पे.वि. गा. ६४. प्रतिलेखन वर्ष - १८१६, स्थल - सिणधरी.
पे. ७६. पे नाम. खरतरगच्छ गुर्वावली, पृ. १४१-१४१, संपूर्ण
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पट्टावली खरतरगच्छीय-स्तवन, आ. गुणविनयसूरि, मागु., पद्य, आदिः प्रणमुं पहिली; अंतिः विनयगणि शुभ
कामो जी., पे.वि.गा. ३१.
"
पे. ७७. प्रभाती कडखो, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १४१आ- १४१आ, संपूर्ण), आदि: पूरव दिसि जिन भणी; अंतिः करउ हरष वधामणा., पे.वि. गा. ९.
पे.-७८. आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मागु., पद्य, (पृ. १४१आ - १४१आ, संपूर्ण), आदि: जय जगनायक जगनायक; अंतिः द्यौ दरसण सुखकन्द, पे.वि. गा.५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२६५ पे.-७९. मुहपत्तिपडिलेहण विधिस्तवन, गणि लब्धिवल्लभ, मागु., पद्य, (पृ. १४२अ-१४२अ, संपूर्ण), आदिः वर्धमान
जिनवरतणा जी; अंतिः लब्धिवल्लभ गणि कही., पे.वि. गा.१५. पे.८०. अजितजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १४२अ-१४२अ, संपूर्ण), आदिः सुगण अजित जिनवर गुण;
अंतिः सम श्रीजिनलाभसूरीस., पे.वि. गा.३. पे..८१. पे. नाम. विक्रमपुरमण्डण ऋषभजिन स्तवन, पृ. १४२अ-१४२अ, संपूर्ण
आदिजिन पद-विक्रमपुरमण्डन, आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, आदिः ऋषभजिनन्द सुखकन्द; अंतिः सम
श्रीजिनलाभसूरिन्द., पे.वि. गा.३. पे.-८२. अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १४२आ-१४२आ-, संपूर्ण), आदिः जिणवर भक्ति; ___ अंति: नित करे परणाम ए., पे.वि. गा.१७. पे.८३. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, (पृ. -१४६अ-१४७आ, संपूर्ण), आदिः सकल
सिद्धिदायक; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए.,पे.वि. ढाल-८, गा.१०२. ७५५६. चौढालिया आदि सङ्ग्रह, त्रुटक, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २१-१५(१ से ९,१४ से १५,१७ से २०)=६, पे. ७, जैदेना., पू.वि.
बीच-बीच के पत्र हैं.. (२६४११, १७४५०). पे.-१. विष्णुकुमार पञ्चढालीयो, मु. रामचन्द, मागु., पद्य, वि. १९११, (पृ. -१०अ-११अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः ___मुनिवरना गुण गावीया., पे.वि. ढाल-५. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ढाल-२ अपूर्ण तक नहीं हैं. पे.२. पे. नाम. दामनखाकुमार ढाल, पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण दामनककुमार चौपाई, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८९१, आदिः वीर नमुं त्रिभुवन; अंतिः अष्टढाल गुण
गाया., पे.वि. ढाल-८. पे..३. महावीरजिन चौढालिया, ऋ. रायचन्द, राज., पद्य, वि. १८३९, (पृ. १२आ-१३आ-, अपूर्ण), आदिः सिद्धार्थकुलमई
जी; अंति:-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ढाल-३ तक है तथा ढाल-४ प्रारंभ मात्र हैं. पे.४. श्रीमती चौढालिया, मु. विजयहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. -१६अ-१६अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः सफल फले सबी आस.,
पे.वि. ढाल-४ प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ढाल-४ गा.१४ से है. पे.५. वंकचूल चौपाई, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८९१, (पृ. १६अ-१६आ-, अपूर्ण), आदिः वङ्कचूल भाखी;
अंति:-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ढाल-४ गा.६ तक है. पे:६. चन्दनबाला चौपाई, मु. रतनचन्द, मागु., पद्य, (पृ. -२१अ-२१आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः भवपारो रे लो., पे.वि.
ढाल-१४ प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ढाल-१ से ९ तक नहीं है. पे.-७. होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२१आ-, अपूर्ण), आदिः प्रथम पुरुष राजा; अंति:-, पे.वि.
___ अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-१ गा.५ तक है. ७५५७. सवैया, शीलश्रीचौढालीयो व जिनदत्तसूरि चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. ३, पे. ६, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., (२७.५४१२.५, १४-१७४३७-४३). पे.-१. वीतराग सवैया, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः चन्द में कलङ्क एक; अंतिः श्रीवीतराग वाणी में.,
पे.वि. गा.१. पे.२. हुके का सवैया, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः हुक्का हर का लाडली; अंतिः ज्युं झुठ पर भङ्गी.,
पे.वि. गा.२. पे..३. पे. नाम. ब्राह्मण लखण सवैया, पृ. १अ-१अ, संपूर्ण
ब्राह्मण लक्षण सवैया, चरणदास, प्राहिं., पद्य, आदिः ब्राह्मण सोइ; अंतिः कहे ब्राह्मण सोइ., पे.वि. गा.१. पे.-४. वृद्ध सवैया, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः घटि आङ्ख कि जोत सोच; अंतिः जिनदास
मेरा बसहु चले., पे.वि. गा.१.
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पे.-५. शीलश्री चौढालिया, मु. प्रेमचन्द, मागु., पद्य, वि. १९२८, (पृ. १अ - ६अ, संपूर्ण), आदिः कमल नील सदल समान; अंतिः चालो कुलनी रीत हो. पे.वि. डाल-४.
पे. ६. जिनदत्तसूरि चरित्र मागु, पद्य, (पृ. ६आ-९अ अपूर्ण) आदि पञ्च परमेष्टि परणमु अंतिः- पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण ढाल ७ गा. १३ तक लिखा है,
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७५५८. स्तवन व सज्झायसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२-७ (१ से ३,५ से ८) = ५, पे. ११, जैदेना., पू. वि. बीच बीच
के पत्र हैं.. (२४.५४११.५, १६४४३).
पे. १. आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचन्द, मागु, पद्य, वि. १७वी (पृ. ४अ-४अ अपूर्ण) आदि अति जिण अत से कोई तो. पे. वि. गा. २५ प्रारंभ के पत्र नहीं है. गा. ११ अपूर्ण से है.
पे. २. मान सज्झाय, मु. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८७९, (पृ. ४आ-४आ-, अपूर्ण), आदि: मान न कीजे रे मानवी; अंति:, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा. १ से १७ तक है.
पे. ३. जम्बूस्वामी सज्झाय, अ. खुशालचन्द्र मागु, पद्य वि. १८१७, (पृ. ९अ-अ, अपूर्ण), आदि:-: अंतिः सील तणी महिमा आणी. पं.वि. गा. १६ प्रथम पत्र नहीं है. मात्र अंतिम पंक्ति है.
पे.-४. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ९अ - ९अ, संपूर्ण), आदिः लोभीया; अंतिः समयसुन्दर गुण गायारे, पे. वि. गा.७.
पे. ५. रथनेमिराजिमती राज्झाय ऋ. रामकृष्ण मागु, पद्य, (पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण) आदि बावीसमा श्रीनेमजी अंति वन्दै तनमन हुलसाना., पे.वि. गा. १८..
पे.-६. धर्मरुचि अणगार सज्झाय, ऋ. रतनचन्द, राज, पद्य, वि. १८६५, (पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण), आदिः चम्पानगरी अनोपम सुइ: अंतिः नाम थकी सिव वासो हो, पै. वि. गा. १५.
पे.-७. गजसुकुमाल सज्झाय, ऋ. चौथमल, मागु., पद्य, वि. १८५८, (पृ. १०अ - १०आ, संपूर्ण), आदिः गजसुकमा देवकानन्दन; अंतिः में हर्ष करी गाई, पे.वि. गा.२३.
पे. ८. महावीरजिन स्तवन- नालन्दापाडा, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३९ (पृ. ११अ ११आ, संपूर्ण), आदिः मगध देशमांहि विराजै; अंतिः मुक्त महलमे जासी जी., पे. वि. गा. १९; मूल-गा. १९.
पे. ९. अनाथीमुनि सज्झाय उपा. समयसुन्दर गणि मागु, पद्य, (पृ. ११आ- ११आ, संपूर्ण) आदि राय रीवाडी नीसर्यो
1
·
अंतिः वन्दे रे बे करजोडि., पे.वि. गा.९.
·
पे.-१०. अनाथीमुनि सज्झाय, मु. धीर, मागु., पद्य, वि. १७७४, (पृ. १२अ - १२अ, संपूर्ण ), आदि: थान भणौ राजग्रही रे; अंतिः सदाही कल्याणो रे, पे.वि. गा.१२.
पे. ११. साधुगुण सज्झाय, ऋ. चन्द्रभाण, राज, पद्य, वि. १८६७ (५. १२-१२आ-, अपूर्ण), आदि: समताधारी सुधमतीजी अंति:-, पे. वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा. २२ तक है.
७५५९. प्रबन्ध व ढालसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३७ - १२२ (१ से १२१, १२३ ) = १५, पे. १०, जैदेना., पू. वि. बीच के पत्र
हैं.. (२६४११, १५४५०-५२).
पे.- १. वसूराज प्रबन्ध, मु. रामचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १२२अ - १२२आ-, अपूर्ण), आदि:-; अंति:-, पे.वि. बीच के पत्र हैं. ढाल - २ गा.५ से ढाल - ४ गा.७ तक है..
पे-२. दमदन्तराजर्षि ढाल, मु. रामचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १२४अ - १२४आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः भाद्रव अहिपुर
सुखकरो., पे.वि. ढाल - ३. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ढाल - १ गा. ८ तक के पाठ नहीं हैं.
पे. ३. पे नाम रात्रिभोजनत्यागे केशव वृत्तान्त, पृ. १२४-१२७आ, संपूर्ण
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हंसकेशववृतान्त बाल मु. रामचन्द, मागु पद्य वि. १९४४ आदि नमस्कार सम मन्त्र: अंतिः आत्मप्रबोध
"
निहालियो, पे.वि. ढाल - ७.
पे. ४. जन्मदरीद्री ब्राह्मण कथा-प्रमादोपरि, मु. रामचन्द, मागु पद्य (पृ. १२७-१२८आ, संपूर्ण) आदि श्रवकना व्रत
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२६७ लाधा; अंतिः राम कहे छे तन्त सारा., पे.वि. गा.१५. पे.५. प्रभास कथा , मु. रामचन्द, प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. १२८आ-१२९अ, संपूर्ण), आदिः (१) सम्मत्तमेव मूलम् (२)
सम्यक्त्व मूल सहु; अंति: में सब धर्म राजे., पे.वि. गा.७. पे.६. उपदेशसत्तरि कथा, मु. रामचन्द, मागु., पद्य, वि. १९४८, (पृ. १२९अ-१३०अ, संपूर्ण), आदिः उपदेश शतरी सें
कहुं: अंतिः जग मुनिवरं.,पे.वि. ढाल-३. पे:७. कान्हडकठियारा प्रबन्ध-शीलविषये, मु. रामचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १९००, (पृ. १३०अ-१३२आ, संपूर्ण), आदिः ___ अरहत सिद्ध साधू नमु; अंतिः विस्तार कयूं नथी., पे.वि. ढाल-८. पे:८. पे. नाम. लोभविषये सुरप्रिय कथा, पृ. १३२आ-१३४अ, संपूर्ण
सूरप्रिय कथा लोभविषये, मु. रामचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १९४९, आदिः अरह अरि अरुहन्तजी; अंतिः राखो
जिनमत आसता., पे.वि. ढाल-५. पे..९. पञ्चदृष्टान्त सङ्ग्रह वन्दनगत पञ्चभेदविषये, मु. रामचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १९४९, (पृ. १३४अ-१३६आ, संपूर्ण),
आदिः वन्दन चिति कृति कर्म; अंतिः ज्ञानतणो उद्यम करो., पे.वि. ५ कथाएं. पे..१०. वृद्धिचन्द्रजी प्रबन्ध, मु. रामचन्द, मागु., पद्य, वि. २०वी, (पृ. १३६आ-१३७आ, अपूर्ण), आदिः आप्त पुरुष वाणी
अमल; अंति:-,पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-४ कलशगा.२ तक है. ७५६०. वसही आदि अष्टप्रकारी दानकथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
अशुद्ध पाठ, (२६४१२, ११४३७-४६).
८ दान कथा, सं., गद्य, आदिः वसही सयणासण भत्त; अंतिः तृतीयभवे मोक्षः. ७५६१. भगवाननां गुणग्राम व सज्झायसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. १२, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं.,
(२७४१३, १६x४२). पे.१. पे. नाम. भगवानना गुणग्राम, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण
महावीरजिन के गुणग्राम, मागु., गद्य, आदिः कुण श्रीवीतरागदेव; अंतिः लेणों परुपी. पे.२. औपदेशिक सज्झाय-परनारी, शङ्कर, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ, संपूर्ण), आदिः सुण चतुर सुजाण; अंतिः
धर्मध्यान चीत आणोने., पे.वि. गा.१२. पे.-३. दीप सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदिः दसे धारो दीवो बले; अंतिः ते तो तरत समजी जाय.,
पे.वि. गा.१४. पे.-४. अर्जुनमाली सज्झाय, मु. खेमा, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण), आदिः मगध देसमांही राजगरी; अंति: जर्बु
एने बलीहारी., पे.वि. गा.३१. पे.-५.पे. नाम. चारप्रकार सज्झाय, पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण
औपदेशिक सज्झाय-जीव, मागु., पद्य, आदिः आरम्भ करतां रे जीव; अंति: जीव जाय मोक्षमां., पे.वि. गा.६.
चन्द्रमा सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण), आदिः चान्दो ते छायो वादले; अंतिः निश्चै मुगते लेई जाय. पे.वि. गा.५. पे.७. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५अ, संपूर्ण), आदिः कडवां फळ छे क्रोधनां; ___ अंतिः उपशम रसे नाही., पे.वि. गा.६. पे.८. कार्तिकशेठ सज्झाय, पानाचन्द, मागु., पद्य, वि. १८८८, (पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण), आदिः धन कार्तक सेठजी ए;
अंतिः वीरमगामपुरी छे अरजे., पे.वि. गा.१२. पे..९. औपदेशिक सज्झाय, कवीजन, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदि: चेतन जीव चेतो रे; अंतिः माया सर्वे
काची रे.,पे.वि. गा.१०. पे.-१०. धर्मरुचि अणगार सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः सुणी सीख गुरुतणी हो;
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२६८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अंतिः चोथमलजी ईम भणे हो रे., पे.वि. गा.९. पे.-११. मेघकुमार सज्झाय, मु. कमल, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः धारणी मनावे रे मेघ; अंतिः पामीये
भवनो पार.,पे.वि. गा.५. पे.-१२. सुबाहुकुमार सज्झाय, मागु., पद्य, वि. १८९५, (पृ. ६आ-६आ-, अपूर्ण), आदिः हवे सुबाहु कुवर इम; अंतिः-,
पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.८ अपूर्ण तक है.. ७५६२. सज्झाय, स्तवन व गीत आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. २६, पे. ४७, जैदेना., ले.स्थल. धडूला, ले.- मु.
दयाचन्द, (२६४१०.५, १६-१९४४०-५२). पे.१. पे. नाम. अयवन्तीसुकमाल महामुनि चौपई, पृ. १अ-३अ अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४१, आदिः मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंतिः सुख पावे रे.,
पे.वि. ढाल-१३. पे..२. मृगापुत्र सज्झाय , मु. खेम, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः सुगरीपुर नगर सोहामणौ; अंतिः करण सुद्ध
परिणाम हो., पे.वि. गा.१७. पे.-३. पे. नाम. असिज्झाय स्तवन, पृ. ३आ-४अ
असज्झाय सज्झाय, मागु., पद्य, आदिः पवयण समरी सासणमाता; अंतिः न्याये सिवलछी सु वरै., पे.वि. गा.१६. पे.-४. पे. नाम. बैतालीसदोष विचार स्तवन, पृ. ४अ-५अ गोचरी ४२ दोष वर्जन सज्झाय, मु. रुघनाथ, मागु., पद्य, वि. १८७८, आदिः सासनपति चोवीसमो; अंतिः अठारै
अट्ठोत्तरै., पे.वि. गा.३६. पे.५. सामायिक सज्झाय , मु. कमलविजय-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदि: गोयमगणहर प्रणमी पाय; अंतिः
श्रीकमलविजय गुरु सीस., पे.वि. गा.१३. पे.६. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. जैतसी, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १७१७, (पृ. ५आ-८अ), आदि: धर्ममङ्गल महिमा;
अंतिः सदाजी जयतसी जयजय रंग., पे.वि. अध्याय-१०अध्ययन. पे:७. धन्ना सज्झाय, मु. तिलोकसी-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८अ), आदिः अमीय समाणी मोरानन्दन; अंतिः हे
मनमांहे गहगही., पे.वि. गा.२१. पे:८.पे. नाम. अरणकमुनि सिज्झाय, पृ. ८अ-८आ अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवञ्छित फल
लीधो जी., पे.वि. गा.८. पे.९. पे. नाम. थूलभद्र सिज्झाय, पृ. ८आ-९अ स्थूलिभद्र सज्झाय, गणि लब्धिउदय, मागु., पद्य, आदिः मुनिवर रहण चोमासे; अंतिः दिनदिन सुख सवाया.,
पे.वि. गा.११. पे..१०.पे. नाम. वैराग सीज्झाय, पृ. ९अ-९अ
औपदेशिक सज्झाय, कवि धर्मसिंह, प्राहिं., पद्य, आदिः करिज्यौ मत अहङ्कार; अंतिः कहै एक धरम मनमै धरो.,
पे.वि. गा.११. पे.११. पे. नाम. ढण्ढणरिष सिज्झाय, पृ. ९अ-९आ ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, आदिः ढण्ढणऋषिने वन्दणा; अंतिः कहे जिनहर्ष सुजाण रे., पे.वि.
गा.९. पे.१२.पे. नाम. चेलणा सिज्झाय, पृ. ९आ-९आ
चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः वीरे वखाणी राणी; अंतिः पामशे भव तणो पार.,
पे.वि. गा.७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे. १३. पे नाम, पांचेन्द्री सिज्झाय प्र. ९आ-१०अ
+
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५ इन्द्रिय राज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु, पद्य, आदि काम अन्ध गजराज अंतिः लहो सुख सासता, पे.वि. गा.६. पे.-१४. धन्ना सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मागु., पद्य, (पृ. १०अ १०अ ), आदिः धन धन्नो ऋषि वन्दीयै; अंतिः नाम की निस्तार रे, पे. वि. गा. ७.
पे. १५. पे नाम, वैराग सिज्झाय प्र. १०अ १०आ
आध्यात्मिक पद-काया. मु. जिनराज, मागु, पद्य, आदि सुणि बहिनी प्रीउडी अंतिः नारी विण सोभागी रे, पे.वि.
गा. ७.
पे. १६. पे नाम. इलापुत्र सिज्झाय, पृ. १० आ १०आ
इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, आदिः नाम इलापुत्र जाणिये; अंतिः लब्धिविजय गुण गाय., पे. दि. मा.९.
T
२६९
पे. १७. ७ व्यसन सज्झाय, मु. जयरङ्ग, मागु, पद्य, (पृ. १०आ- ११अ ) आदि पर उपगारी साध सुगुरु: अंतिः रङ्गे जेरगे कहे. पे. वि. गा.९.
"
पे. १८. पे. नाम. बाहूबलमुनि सिज्झाय, पृ. ११अ - ११अ
भरतवाहुबली राज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य, आदि: राजतणा अति लोभीया अंतिः समयसुंदर वंदे पाय रे., पे.वि. गा. ७.
पे. १९. पे नाम, आत्मशिख्या १११-११आ
अपदेशिक राज्झाय मु. कर्मसिंह, मागु पद्य, आदि वली वली नरभव दोहिलो; अंतिः आउह अल्हे सुभावे रे..
पे.वि.
गा. १३.
पे.- २०. पे. नाम. अनाथीरिष सिज्झाय, पृ. ११आ - १२अ
अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पथ, आदि श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: वन्दे रे वे कर जोड., पे.वि. गा.९.
पे. - २१. पे. नाम. प्रथम प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १२अ - १२अ
करकण्डुऋषि-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि मागु पद्य, आदिः चम्पानगरी अति भली अंति प्रणम्या पाप पलाय रे., पे.वि. ढाल - ५.
पे. २२. पे नाम बीजोप्रत्येकबुद्ध सिज्झाय, पृ. १२-१२अ
दुमराय- प्रत्येकबुद्ध सज्झाय उपा, समयसुन्दर गणि मागु, पद्य, आदि नगर कपीलानो घणी रे अंतिः नित प्रण पाय रे., पे.वि. गा.६.
पे. २३. पे नाम तृतीय प्रत्येकबुद्ध सिज्झाय, पृ. १२-१२आ
नमीराय- प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः नयर सुन्दरसण राय हो; अंतिः नित्य प्रणमें पाय., पे.वि. गा.६.
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पे- २४. पे नाम, चौथा प्रत्येकबुद्ध सिज्झाय, पृ. १२-१२आ
नीगइराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः पुण्डसुधनपुर राजीयौ; अंतिः प्रत्येक बुद्ध हो., पे.वि. गा.६.
पे.- २५. पे. नाम. च्यारे प्रत्येकबुद्धि सिज्झाय, पृ. १२आ - १२आ
४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदि: चिहुं दीसथी च्यारे; अंतिः गाया पाटण पर सिद्ध., पे.वि. गा. ५.
पे. २६. पे. नाम. गजसुकमालमुनि सिज्झाय, पृ. १२-१३अ
गजसुकुमाल सज्झाय, मु. भावसागर, मागु., पद्य, आदि: द्वारिका नगरी अति अंतिः भावसुं वन्दौ वारोवार, पे.वि.
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२७०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
गा.१२. पे.-२७. पे. नाम. बाहुबलिमुनि सिज्झाय, पृ. १३अ-१३आ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मागु., पद्य, आदि: बाहुबल चारित लीयो; अंतिः विमलकीरत गुण गाय.,
पे.वि. गा.१२. पे.-२८. पे. नाम. नवकार गुण वर्णन, पृ. १३आ-१५अ नमस्कार महामन्त्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः वारी जाउं हुं; अंतिः एह छै सिद्ध सरूप.,
पे.वि. ढाल-५. पे.-२९. पे. नाम. थूलभद्र सिज्झाय, पृ. १५अ-१५अ ___ स्थूलिभद्र सज्झाय, गणि जिनहर्ष, मागु., पद्य, आदिः प्राण प्यारा हो; अंतिः प्रणमुं हो पाय सनेही., पे.वि. गा.७. पे.-३०. पे. नाम. अरिहना सिज्झाय, पृ. १५अ-१५आ
अरणिकमुनि सज्झाय, मु. ज्ञानकीर्ति, मागु., पद्य, आदिः अरहनो मुनिवर हेण; अंतिः ग्यानकीरत गुण गायोजी.,
पे.वि. गा.१५. पे.-३१. अर्जुनमाली सज्झाय, मु. कानजी, मागु., पद्य, वि. १७४३, (पृ. १५आ-१६अ), आदिः सदगुरु चरण नमी कहू;
अंतिः सेवक कानजी गुणगाय., पे.वि. गा.१६. पे.-३२. पे. नाम. नन्दषेण सिज्झाय, पृ. १६अ-१६आ नन्दिषेणमुनि सज्झाय, कवि चतुरङ्ग, मागु., पद्य, आदिः महीयल मुनिवर वहरें; अंतिः कवि चतुरङ्ग वीनवी.,
पे.वि. गा.६. पे.-३३. पे. नाम. मनक सिज्झाय, पृ. १६आ-१७अ
मनकमुनि सज्झाय, मु. लब्धि, मागु., पद्य, आदिः नमो रे नमो मनक; अंतिः पामो सद्गति सारो रे., पे.वि. गा.१०. पे.-३४. पे. नाम. ऐमुत्तामुनि सिज्झाय, पृ. १७अ-१७आ अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मागु., पद्य, आदिः वीर जिणंद वांदीने; अंतिः वंदे अइमुत्तो अणगार.,
पे.वि. गा.१८. पे.-३५.पे. नाम. धनोसालभद्र सिज्झाय, पृ. १७आ-१८अ शालिभद्र सज्झाय, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, आदिः प्रथम गोवाल तणे भवे; अंतिः सहजसुन्दरनी वाण., पे.वि.
गा.१६. पे..३६. पे. नाम. चित्रसम्भूत सिज्झाय, पृ. १८अ-१८आ चित्रसम्भूति सज्झाय, मु. राजहर्ष, मागु., पद्य, आदिः बन्धव बोल मानो हो; अंतिः मिटै भविथित आई हो., पे.वि.
गा.२०. पे.-३७.पे. नाम. सीलवीत्तीसी, पृ. १८आ-१९आ
शीलबत्तीसी, मु. राजसमुद्र, मागु., पद्य, आदिः सील रतन यतने करि; अंतिः राजसमुद्र विचार जी., पे.वि. गा.३२. पे.-३८.पे. नाम. पुन्यछत्तीसी, पृ. १९आ-२०आ पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६९, आदिः पुण्यतणां फल परतखि; अंतिः पुण्यनां फल
परतक्षजी., पे.वि. गा.३६. पे.-३९. पे. नाम. सील सिज्झाय, पृ. २०आ-२१अ
शीलचुन्दडी सज्झाय, मु. करण, मागु., पद्य, आदिः सील मुद्रडी खरीय; अंतिः जम्पै आवागमण निवारजी., पे.वि.
गा.१०.
पे.-४०. पे. नाम. श्रावकना इकवीसगुणानी सिज्झाय, पृ. २१अ-२१आ
श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः कहिए मिलस्ये रे; अंतिः जनम तेणे लाधो जी.,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२७१
पे.वि. गा.२१. पे-४१. पे. नाम. आत्मपद सिज्झाय, पृ. २१आ-२२अ
औपदेशिक सज्झाय, महमद, मागु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा कांई; अंतिः लेखो साहिब हाथ., पे.वि. गा.१३. पे.-४२.पे. नाम. नववाड सिज्झाय, पृ. २२अ-२२आ
शीलमहिमा सज्झाय, मु. अमर, मागु., पद्य, वि. ??७१, आदिः सदगुरु पाय नमी कहूं; अंति: चौमासै गुण गाया
पे.-४३. पे. नाम. नमिराजा सिझाय, पृ. २२आ-२२आ नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदि: जी हो मिथीला नगरीनो; अंतिः पामी जे भवपार.,
पे.वि. गा.८. पे.४४. नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मागु., पद्य, (पृ. २२आ-२३अ), आदिः साधुजी न जइए रे; अंतिः परघर
गमण निवार., पे.वि. गा.१०. पे.-४५. पे. नाम. सील नववाडी सिज्झाय, पृ. २३अ-२६अ नववाडी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः श्रीनेमीसर चरण युग; अंतिः हो जुगति नववाडि.,
पे.वि. ढाल-११, गा.९७. पे.-४६. रात्रिभोजन सज्झाय, मु. वसता, मागु., पद्य, (पृ. २६अ-२६अ), आदिः पुन्य संयोगे नरभव; अंतिः मोक्षतणा
अधिकारी रे., पे.वि. गा.१३. पे.-४७. पे. नाम. नेमनाथ गीत, पृ. २६आ-२६आ
रुक्मिणी सज्झाय, मु. राजविजय, मागु., पद्य, आदिः विचरता गामो गाम; अंतिः राजविजे रङ्गे भणे., पे.वि.
गा.१४.
७५६३. भगवतीसूत्र सज्झायसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-८(१ से ८)=१०, जैदेना., (२५४११, १३४३१-३५).
भगवतीसूत्र-सज्झाय सङ्ग्रह, उपा. मानविजय, संबद्ध, मागु., पद्य, आदि:-; अंति: मानविजय उवज्झाय. ७५६४. सुभाषित सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., (२६४११.५, २०४६२).
सुभाषित सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., प+ग, आदिः वातमें वटाऊ सो; अंतिः नर अध खण्डे गहगज. ७५६५. सज्झाय, स्तवन, पारणुं व प्रभातीसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-७(१ से ७)=८, पे. ९, जैदेना.,
(२५.५४११.५, १३४३२-३५). पे.-१. गुरुगुण गहुंली, ऋ. जगन्नाथ, मागु., पद्य, (पृ. -८अ-८अ, अपूर्ण), आदि:-; अंति: जय जय भणजो नरनार रे.,
पे.वि. गा.८. प्रथम पत्र नहीं है. गा.१ से ४ अपूर्ण तक नहीं है. पे.२. भगवतीसूत्र-गहुंली, मु. दीपविजय, संबद्ध, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण), आदिः सहीत में सुणजो रे; अंतिः ___ मङ्गल कोड वधायी., पे.वि. मूल-गा.५. पे-३. पे. नाम. अषाढभूति ढाल, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण ___ आषाढाभूति सज्झाय, मु. भावरत्नसूरि, मागु., पद्य, आदिः श्रुतदेवि हीये धरी; अंतिः भावरतन सुजगीसो रे., पे.वि.
ढाल-५. पे.-४.पे. नाम. माता दीकरानी सिझाय, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण
मातापुत्र सज्झाय, सङ्घो, मागु., पद्य, आदिः जारें मास केडे मास; अंतिः वाव्युं तेवू लणजो., पे.वि. गा.१६. पे.५. चन्द्रप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः चन्द्रप्रभुजिन
साहिब; अंतिः तुम त्रुठे सुख थाय., पे.वि. गा.५. पे:६. महावीरजिन हालरडुं.मु. दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः माता त्रिशला झुलावे; अंतिः
दीपविजय कविराज., पे.वि. गा.१८.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे.-७. महावीरजिन पालणुं, मु. अमीयविजय *, मागु., पद्य, (पृ. १३अ - १४अ, संपूर्ण), आदि: माता त्रिशला ए पुत्र; अंतिः थाय लीला लेहेर, पे.वि. गा.१८.
पे. ८. ४ मङ्गल पद, मु. उदयरत्न, मागु पद्य (पृ. १४ अ- १५अ संपूर्ण) आदिः सिद्धारथ भूपति सोहे: अंतिः उदेरत्न भाखे एम., पे. वि. गा.२१.
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"
.
पे. ९. औपदेशिक छन्द पण्डित लक्ष्मीकल्लोल, मागु, पद्य, (पृ. १५-१५आ- अपूर्ण) आदि भगवती भारती चरण अंति: पं. वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा. १२ तक है.
७५६६. अजितशान्ति स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १८०२ श्रेष्ठ, पृ. १४ जैवेना. ले. पं. परमानन्द, प्र. वि. मूल-गा. ३९:
-
टीका- ग्रं. ७४०, ( २६×१०.५, १७५३-५४).
अजितशान्ति स्तव आ. नन्दिषेणसूरि प्रा. पद्य, आदि अजियं जिय सव्यभयं अंतिः पुवु० विणासन्ति
अजितशान्ति स्तव-बोधदीपिकाटीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६५, आदि: अजितशान्तिजिनाधिपयोः; अंतिः चत्वारिंशत्समन्चिता.
७५६७. यती आराधना व पर्यन्ताराधना, संपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पे. २ जैदेना. (२४.५४१०.५, १००९/७०)पे:-१. यति आराधना, सं., प्रा., मागु., पद्य, (पृ. १आ-४अ), आदिः पूर्व ग्लानस्य; अंतिः स्तवनं उपसर्गहरदेशना पे. २. पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि प्रा. पद्य (प्र. ४-५आ) आदि नमिउण भणइ अंतिः ते सासयं सुक्खं.. पे.वि.
A
गा. ७०.
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(+)
७५६८.” इन्द्रीय व वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. २, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें,
(२६४१०.५, ६४३८-३९).
पे.- १. पे. नाम. इन्द्रीशतक सह टबार्थ, पृ. १अ - १०आ
इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि सुच्चिअ सूरो सो चेव अंतिः संवेग रसायणं निच्चं
इन्द्रियपराजयशतक-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: तेहिज सूर तेहिज अंतिः संवेग रसायन नित्यं., पे.वि. मूल
"
गा. १००.
पे. २. पे नाम, वैराग्यशतक सह टवार्थ, पृ. १०-१९आ
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं.
वैराग्यशतक-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंतिः जीव शाश्वतुं ठाम, पं.वि. मूल-गा. १०४. प्रतिलेखक की भूल से गाथांक ३७ देना बाकी रह गया है पर पाठ क्रमशः व्यवस्थित है.
,
७५६९. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १५ जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र (२६४११,
J
८x४०-४४).
पाक्षिकसूत्र, प्रा. प+ग, आदि तित्थकरे य तित्थे अंति: जेसिं सुयसायरे भति
"
पाक्षिकसूत्र- टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: तीर्थङ्कर प्रते; अंतिः मिच्छामिदुक्कडं देवउ..
७५७१.' उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १६४७, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले. स्थल. महिमावती, ले. पं. रत्नरङ्ग, पठ- श्राविका भक्ता दे समरथ (सखवाल ): पं. चारित्रकीर्ति, प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. गा. ५४४ प्र.पु. मूल ग्रं. ७००, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ११-१२४४९-५१).
उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि जगचूडामणिभूओ उसमो अंतिः सोहियवं पयत्तेण.
७५७२. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २०, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ( २६.५x१२, १३x२६). कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पदमं: अंति:
"
७५७३.” नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ११-६ (१ से ६) ५, पे. २, जैदेना ले. स्थल,
भुज, ले. मु. नेमविजय, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र (२६४११.५, ६४३६).
-
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२७३
पे.-१. पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. -७अ-७अ, अपूर्ण
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः एयं बन्ध ठिईमाणं. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:-, पे.वि. मूल-गा.५५. मात्र अंतिम पत्र है. प्रारंभ से गा.५१ तक
पाठ नहीं हैं. पे.२. पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. ७अ-११आ, संपूर्ण
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः तिनभुवनमांहि दीवा; अंतिः रूप समुद्रहुती., पे.वि. मूल-गा.५१. ७५७४." सिन्दूर प्रकरण सह टीका व पद्यानुवाद, सहस्रकूट व समोसरण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. ३,
जैदेना.,प्र.वि. त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-प्रारंभिक पत्र, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ
प्रारंभिक पत्र, (२७४११.५, ४-६x४२-४४). पे..१. पे. नाम. सिन्दूरप्रकर सह टीका व पद्यानुवाद, पृ. १आ-२३अ, संपूर्ण
सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंतिः वृत्तिमिमामकार्षीत्. सिन्दूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९१(अपूर्ण), आदिः शोभत तप गजराज सीस;
अंति:-, पे.वि. मूल-श्लो.१००. प्रतिलेखक द्वारा पद्यानुवाद अपूर्ण. मात्र प्रारंभिक चार श्लोक तक ही पाठ है. पे..२. सहस्रकूट विचार, मागु., गद्य, (पृ. २३अ-२३अ, संपूर्ण), आदिः ५ भरत २४ ५ एरावत; अंतिः ए सहस्रकुट कहीय.
पे..३. समवसरण विचार, मागु., गद्य, (पृ. २३अ-२३अ, संपूर्ण), आदिः सोधर्मो इन्द्रनुं; अंतिः स्त्री ए तीन वेशे. ७५७६.” स्तवन सङ्ग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, पे. ५, जैदेना., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है
अल्प, (२५४११.५, ११-१२४३०-३९). पे..१. पे. नाम. अष्टमी तवन, पृ. १अ-२अ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कान्ति, मागु., पद्य, आदिः हां रे मारे ठाम धर्म; अंतिः कांति सुख पामे घणु., पे.वि. ढाल
२, गा.८+१५+१. पे..२.पे. नाम. मौनइग्यारस स्तवन, पृ. २आ-आ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, वि. १७६९, आदिः द्वारिका नयरी; अंतिः लहे ते मंगल अति
घणो., पे.वि. ढाल-३. पे.-३. पे. नाम. विरजिन पञ्चकल्याणक स्तवन, पृ. ५आ-८आ महावीरजिन स्तवन-पञ्चकल्याणक, मु. रामविजय, मागु., पद्य, वि. १७७३, आदिः शासननायक शिवकरण; अंतिः
नामे लही अधिक जगीस ए., पे.वि. ढाल-३, गा.५६. पे.-४. पे. नाम. पञ्चमीनो स्तवन, पृ. ८आ-११आ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मागु., पद्य, आदिः प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रङ्गे गुणि., पे.वि.
ढाल-६, गा.५०. पे.-५. जैन दुहा सङ्ग्रह*, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ११आ-११आ), आदिः#; अंतिः#. ७५७७. योगचिन्तामणिसारसङ्ग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. ९३, जैदेना., ले.स्थल. मकसुदाबाद, ले.- मु.
नेणचन्द्र (गुरु आ. कान्तिसागरसूरि), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-अध्याय-७.प्र.पु.-उभय ग्रं. ४५००. बृहत्शाखा
विजयराज गच्छ में प्रत लिखी गयी है., प्र.ले.श्लो. (३२१) भग्ननेत्रं कटि ग्रीवा, (२५.५४१२, १५४४५-४६). योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः यत्र वित्रासमायान्ति; अंतिः योगचिन्तामणिश्चिरम्. योगचिन्तामणि-बालावबोध, मु. मानकीर्ति-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः श्रीसर्वज्ञ प्रणम्या; अंतिः लेईने ए ग्रन्थ कीयो.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७५७८. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८१३, श्रेष्ठ, पृ. १६२-१(१६१)=१६१, जैदेना., ले.स्थल. पिंडवाडा,
ले.- मु. हेमविजय (गुरु गणि विवेकविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-ग्रं. १२२०.प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. ४१६५. अंतिमवाक्यवाला पत्र अनुपलब्ध है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं
दृष्टं; (७४) जब लग मेरु अडिग है, (२४.५४११, ५-१४४३२-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ध्याताथी अधिकपणे; अंतिः
कल्पसूत्र-कल्पप्रदीप बालावबोध, मु. भानुविजय, मागु., गद्य, वि. १७२४, आदिः श्रीपाश्र्वं प्रणि०; अंतिः७९. चौवीसदण्डक विचार- भगवती सूत्र- शतक १४, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, प्र. ४१, जैदेना.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर
अनियमित है., (२५४११.५४).
भगवतीसूत्र शतक १४-दण्डक विचार, संबद्ध, मागु., यंत्र, आदिः घर चमालिस जीव; अंति:#. ७५८१. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. ९६, जैदेना., ले.स्थल. शांतलपुर, ले.- पं. लालविजय (गुरु पं.
खिमाविजय); पं. लक्ष्मीविजय (गुरु गणि दयाविजय); पं. रत्नविजय (गुरु पं. जसविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि.
ढाल-१०८, ४ उल्लास; प्र.पु.-मूल गा.३५२५, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११.५, १५-१७४३७-४२).
चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ७५८२. नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. १३०, जैदेना., ले.स्थल. स्थंभनपुर, ले.- कामेश्वर शिवलाल
ब्राह्मण, प्र.वि. मूल-गा.५३., (२७४१२, १३४३४-३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. देवचन्द, सं.,मागु., गद्य, वि. १७६६, आदिः श्रीअरिहन्त जिनं; अंतिः सुलभ बोध फुन
होई. ७५८३. सम्यक्त्वकौमुदी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४३, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. १५००., (२५४११, १७-१८४३६-३७).
सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः चापवर्गं च तपः गताः. ७५८४." कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७७-५(१ से २,१८ से १९,२३)=७२, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें,
टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२७४११, ९४३४-३५).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ७५८६. भक्तामर स्तोत्र, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(२)=५, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.४४, संशोधित, पू.वि. श्लो.५ अपूर्ण से ९
तक नहीं हैं., (२५४१०.५, ९४३५).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. ७५८८." देशनाशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५०, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. धणला, ले.- गणि दोलतविजय (गुरु पं.
शान्तिविजय गणि), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. गा.८८.. (२६४११, ५४४५). आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदिः संसारे नत्थि सुहं; अंतिः सिवं जन्ति.
आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, उपा. समललाभ, मागु., गद्य, आदिः वीरं प्रणम्य सास्तार; अंति: खपावीनइं जाइं उपजइं. ७५८९." योगचिन्तामणि, पूर्ण, वि. १७०५, श्रेष्ठ, पृ. ५४-१(१)=५३, जैदेना., ले.स्थल. वगडा, ले.- पं. मनोहर, प्र.वि. अध्याय
७; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ३५७९. प्र.पु.में जसा द्वारा लिखित "त्रिषट्कलाचन्द्रमिते वर्षे" (१६३६/१६६३) का उल्लेख है.
प्रथमादर्श पुस्तिका पर से लिखी जाने की संभावना है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, १७४४९-५५).
योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि:-; अंतिः योगचिन्तामणिश्चिरम्.. ७५९०. नन्दीषेणमुनि रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१६, (२६४११.५, १६-१७४४५-६१).
नन्दिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२५, आदिः सुत सिद्धारथ भूपनो; अंतिः सिद्धि नित गेहइ रे.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२ ७५९१. जिनपूजाफल, सीमन्धरजिन स्तवन व जिनप्रतिमास्थापन चर्चा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना.,
(२६.५४११, १४४३०-३८). पे.-१. पे. नाम. जिन चैत्यवन्दन, पृ. १अ-१आ जिनपूजाफल स्तवन, श्रा. ऋषभदास, मागु., पद्य, आदिः सरसति सामण समरी माय; अंतिः कहे तेह नर तरे.,
पे.वि. गा.१३. पे.२. जिनप्रतिमास्थापन चर्चा, प्राहिं., गद्य, (पृ. १आ-६आ), आदि: भृमामत्ती कहें हुं; अंति: गतकुं प्राप्त होगा. पे.-३. सीमन्धरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः श्रीसीमन्धर साहेबा; अंतिः भय भञ्जन
भगवन्त हो., पे.वि. गा.९. ७५९२. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. श्लो.४४, पू.वि. गा.४४., (२४.५४११, ९४३७).
__ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. ७५९३. भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले.स्थल. जाणुंदाग्राम, ले.- मु. त्रिलोकहंस (गुरु गणि
युक्तिहंस), पठ.- मु. दीपचन्द्र, प्र.वि. श्लो.२१०, (२५४११.५, ५४३३-३८).
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः. ७५९४. कालिकाचार्य व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८०७, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- मु. आनन्दविजय, (२५४११.५, १२४३६).
कालिकाचार्य व्याख्यान, मागु., गद्य, आदिः हिवे थिरावली मांहि; अंतिः त्राणुं वरसें थया. ७५९५. सिद्धान्तविचारगर्भित वीरजिन स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. चेलावस,
ले.- गणि देवेन्द्रसागर, प्र.वि. ढाल-६. बालावबोध का अंतिमवाक्य नही लिखा है., त्रिपाठ, (२६४११, ४-६x४८-४९). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३३, आदिः
प्रणमी श्रीगुरुना; अंतिः आणा सिर वहेस्येजी.
महावीरजिन स्तवन-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः (१) ए अनुयोगद्वारनो पाठ (२) जत्छय जं जाणिज्जा; अंतिः#. ७५९६. सम्यक्त्वकौमुदी का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४, जैदेना., ले.स्थल. सोजितनगरे, प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२५४११, १३४३८-४४)...
सम्यक्त्वकौमुदी-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरस्वामि; अंतिः पाली मोक्ष पोहता. ७५९७. स्नात्रपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- मु. तिलोकहंस, (२६४११, १२४३१-३२).
स्नात्रपूजा विधिसहित, पं. रूपविजय, मागु.,प्रा., पद्य, आदिः (१) मुक्तालङ्कार विकार (२) अवणिय कुसुम हरणं; अंतिः
इम पूजा जिनराजनी. ७५९८. शत्रुञ्जय रास, अपूर्ण, वि. १८५१, मध्यम, पृ. ७-२(५ से ६)=५, जैदेना., प्र.वि. ढाल-६, (२५.५४११, १०४३५).
शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८२, आदिः श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: सुणतां आणन्द
थाय. ७५९९." आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ- प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. १२३-१(११०)=१२२, जैदेना., ले.स्थल.
भुजनगर, ले.- रूपजी त्रवाडी, प्र.वि. प्र.पु.-सर्वग्रं. ४०००. अन्त में आगमपाठ की फलश्रुति दी गयी है., पदच्छेद
सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१०.५, ४४२९-३२). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंति:
आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, ऋ. धर्मसी, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वजिनंनत्वा; अंति:७६००. निसीथसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. ८६, जैदेना., ले.स्थल. भुजनगर, ले.- रूपजी त्रवाडी, प्र.वि. मूल
२०उद्देश. प्र.पु.-उभय-ग्रं. ३०००.,पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ अपूर्ण., (२५.५४११, ५४३०-३४). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः जे भिखु हत्थ; अंतिः पसिस्सोवभोज्जं च.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची निशीथसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः जे० जे साधु ह०; अंतिः७६०१.” साधु व श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(१)=१२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पाली,
(२६४११, ५-६४३०). पे.-१.पे. नाम. पगामसज्झाय सह टबार्थ, पृ. -२अ-७आ, पूर्ण
पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं.
पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः वान्दउ नमसकार करुं., पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे.२.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. ७आ-१३आ, संपूर्ण
वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वन्दित्तु सव्वसिद्धे; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. वन्दित्तुसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य(अपूर्ण), आदि: वन्दितु क० वान्दीनै; अंतिः-,पे.वि. संबद्ध-गा.५०. प्रतिलेखक द्वारा
टबार्थ अपूर्ण. गा.२८ तक टबार्थ है. ७६०४. चित्रसेनपद्मावती कथा, अपूर्ण, वि. १७४९, श्रेष्ठ, पृ. १०-२(१ से २)=८, जैदेना., ले.स्थल. भिन्नमाल, ले.- पं.
ठाकुरसी गणि, पठ.- मु. रूपकीर्ति, प्र.वि. श्लो.५१२, त्रिपाठ, पू.वि. श्लो.९९ तक नहीं है., (२५.५४११, ५४४६-५१).
चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि:-; अंतिः करोत्पाठक राजवल्लभः. ७६०६. कृष्णरुक्मणीवेली सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७३४, मध्यम, पृ. ३१-१(१)=३०, जैदेना., ले.स्थल. वजीरपुर, प्र.वि. मूल
__गा.३००., (२६४१०.५, ६४३९-४४). कृष्ण रुक्मणी वेलि, राजा पृथ्वीराज राठोड, मागु., पद्य, वि. १६३७, आदि:-; अंतिः कीकमधजकल्याणउत.
कृष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, मु. शिवनिधान, मागु., गद्य, वि. १६३८, आदि:-; अंति: पृथवीराज कृत. ७६०९." नवस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-६(१ से ५,१३)=८, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
पू.वि. बीच के पत्र हैं. भयहर स्तोत्र से अजितशान्ति गा.२७ तक है., (२६.५४११, ४४३६). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदि:-; अंति:
नवस्मरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः७६१०. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७१-६२(१ से ६२)=९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद
सूचक लकीरें, पू.वि. बीच के पत्र हैं. वाचना-३ अपूर्ण से वाचना-४ अपूर्ण तक है., (२६४९.५, ११४४१-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र-बालावबोध* , मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंति:७६११.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, त्रुटक, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३-३०(१,३ से १६,२२,२४ से २५,३४,३६ से ४१,४६ से
४७,४९,५१ से ५२)=२३, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२६.५४११, ५४४१-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि:-; अंति:
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७६१२. उपदेशमाला सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २६८-२२७(१ से २२७)=४१, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५३८.प्र.पु.
टीका-ग्रं. ४०७५. क्षान्तिमन्दिरोपाध्याय के भंडार की प्रत का उल्लेख है., पू.वि. गा.१२० तक नहीं है., (२७.५४११.५,
१७४६६). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः दायव्वा बहुसुयाणं च.
उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, गणि सिद्धर्षि, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि:-; अंतिः साधनपरः खलु जीवलोकः.. ७६१३." कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५०-१३१(१ से ९०,९२ से १३२)=१९, जैदेना.,
प्र.वि. ५ पत्रों पर पत्रांक का उल्लेख नहीं है., संशोधित, पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४११.५, ७-१४४३८-४०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२७७
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिःकल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, आदि:-; अंतिः७६१४. विंशतिस्थानक रास, पूर्ण, वि. १७९८, श्रेष्ठ, पृ. ७६-२(२५ से २६)=७४, जैदेना., ले.स्थल. वीरमग्राम, ले.- पं.
अमिविजय (गुरु पं. माणिक्यविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६.५४१२, १९-२०७५०-५४). २० स्थानक विचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४८, आदिः सकल सिद्धि सम्पतिकरण; अंतिः कहे
जिनहर्ष मलावो रे. ७६१६.” त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र- परिशिष्ट पर्व- स्थविरावली चरित्र, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५२, जैदेना., ले.- मु.
क्षिमासुन्दर,प्र.वि. प्र.पु.-मूल अंश-१३ सर्ग., संशोधित, (२६.५४११, १७४६८). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति:७६१७.' प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०९-३०(५० से ७९)=७९, जैदेना., ले.- गणि
नगर्षि(तपागच्छ),प्र.वि. मूल-अध्याय-१०; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १२५०., त्रिपाठ, प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत,
(२६.५४११, ४४४९). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति.
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः संशोधिता चेयम्. ७६१८." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७८५, जीर्ण, पृ. १७६-३१(१ से ३१)=१४५, जैदेना., ले.स्थल. पचेउरीनगरे,
ले.- साध्वीजी खेमा आर्या, प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अध्ययन १ से ८ नहीं हैं.,
(२६४११.५, ५४३२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः सम्मए त्ति बेमि.
उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः तेहनइ इष्ट वल्लभ छइ. ७६२०. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११४-१(१)=११३, जैदेना.,प्र.वि. प्रारंभिक कुछ
पत्रों पर ही टबार्थ लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. पीठिका
के प्रारंभिक व अन्तिम पाठ के कुछ अंश नहीं हैं.. (२४४११, ७४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (पूर्ण), आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थी, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः श्रीवर्द्धमानं जिनं; अंति:
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंतिः७६२५. अभिधानचिन्तामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना.,प्र.वि. ६ कांड, (२५.५४११, १३४४२).
अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ
नमः. ७६२६. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना.,प्र.वि. ३६अध्ययन, (२५४११.५, १३४३९).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. ७६२७. जम्बूस्वामी रास, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मात्र र.प्र. का भाग नही हैं.,
(२६४११, १०४३४).
जम्बूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः प्रणमी पास जिणन्दना; अंति:७६२८. समवायाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७७३, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना.,ले.- ऋ. जीवण (गुरु ऋ. मोजीराम),प्र.वि. ग्रं. १६६७,
प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२६४११, ७X६५). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि.
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२७८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
७६४९. सङ्ग्रहणीसूत्र, पूर्ण, वि. १८०५, मध्यम, पृ. १२-१(१) - ११, जैवेना. ले. स्थल भुकाग्राम ले. पं. रत्नसागर (गुरु पं. देवकुशल), प्र.वि. गा.३२०. प्र. पु. अन्तर्गत "मलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरीणं कृतं संग्रहणीरत्नं" ऐसा उल्लेख है., पू. वि. गा. १ से अपूर्ण २० गाथा तक पाठ नहीं हैं., (२५४११, १५-१६४३९).
बृहत्सङ्ग्रहणी आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि अंतिः जा वीरजिण तिथं.
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७६५१. प्रश्नोत्तर-३० बोल अपूर्ण, वि. १९वी खरतरगच्छ सम्बन्धी धर्मसागरीय ३० ७६५२. भाष्यत्रय, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ.
श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवेना. पु. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. (२५.५४११, १५४४१-४३). प्रश्नों के उत्तर मागु, गद्य वि. १६२७, आदि: श्रीखरतरगछिय सुविहित: अंति:७-२ (३,५) = ५, जैदेना., पू.वि. बीच के कुछ व अन्त के पत्र नहीं हैं. चैत्यवन्दभाष्य गा. ४२ अपूर्ण तक, गुरुवन्दन गा. २२ अपूर्ण तक व पच्चक्खाणभाष्य अपूर्ण गा. २ से ४३ तक है.. (२६४११, ११४४७).
"
भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा.
पथ, आदि: वन्दित्तु वन्दणिज्जे अंति:
1
७६५३. ऋषभजिन विवाहलो, गीत व
राससङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८-४(७ से १० ) - १४, पे ४ जैदेना, पू.वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५x१०.५, १४X३८-४२).
J
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पे.-१. १आ-१२अ, पे. १. आदिजिन विवाहलो मागु पद्य (पृ. १आ- १२अ अपूर्ण) आदि सासनदेवीय पाय: अंतिः सेवक इम मुदा., पे.वि.
ढाल - ४४. बीच के पत्र नहीं हैं.
पे. २. पे. नाम. मेघकुमार गीत, पृ. १२-१४अ, संपूर्ण
मेघकुमार चौढालिया, कवि कनक, मागु., पद्य, आदिः देस मगध माहे जाणीयइ; अंतिः कवि कनक भइ निशदीश., पे.वि. गा. ४७.
·
पे.-३. आषाढाभूति रास, मु. धर्मरुचि - शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. १४अ - १६आ, संपूर्ण), आदिः श्रीसन्ति जिणेसर; अंतः घरि मङ्गलमालू ए. पे. वि. गा.५७.
पे. ४. स्थूलिभद्र रास, मागु, पथ (पृ. १६-१८आ, अपूर्ण), आदि आस्विन आविउ रे आव्यउ अंतिः, पे.वि. अंत के
,
पत्र नहीं है. गा. ३२ तक हैं.
७६५४.' यतिजीतकल्पवृत्तिगत प्रायश्चितभेद, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक
चिह्न, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. उत्कृष्ट, मध्यम व जघन्य के २७ भेद विवरण तक है., (२६×११, १३x४०). यतिजीतकल्पसूत्र-टीका का प्रायश्चित्तभेद, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः तं दसविहमालोअण; अंतिः
७६५५. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१ ( १ ) = ६, जैदेना., प्र. वि. मूल - श्लो. ४४., पू. वि. श्लो. ७ अपूर्ण
तक नहीं है., ( २५x१०.५, ६३३).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: -; अंतिः समुपैति लक्ष्मी.
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ* मागु., गद्य, आदि:- अंतिः पामइ लक्ष्मी सम्पदा.
७६५६. पट्टावली- महावीरदेवनी पट्टपरम्परा, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. प्र. वि. ६८ वी पाट श्रीविजय
जैनेन्द्रसूरि तक लिखा है., (२५X११, १५X३८).
पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, आदिः श्रीजीनसासन; अंतिः #.
.
७६५८.” हरचन्द्रराजा रास अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम पृ. १८-६ (१ से ५.१७) - १२, जैदेना. प्र. वि. डाल-३८, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. ढाल-८ गा. १८३ अपूर्ण से हैं., ( २६.५X१०, १७४५८).
हरिश्चन्द्रराजा रास, गणि लालचन्द, मागु, पद्य, वि. १६७९, आदि अति हो लालचन्द आणन्द
"
७६५९." सिन्दूर प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७२३, मध्यम, पृ. ६- १ ( १ ) = ५, जैदेना., ले. स्थल. सांडेरानगर - योधप, प्र. वि. श्लो. १०१,
पदच्छेद सूचक लकीरें, पू. वि. श्लो. १९ तक नहीं है., (२५X१०, १३४३१). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
७६६०. पुण्यछत्रीसी, क्षमाछत्रीसी व कर्मछत्रीसी अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६. पं. ३, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., (२५x११, ११-१२X३१-३५).
पे. १. पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६९, (पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण), आदिः पुण्यतणां फल परतखि: अंतिः पुण्यनां फल परतक्षजी., पे. वि. गा.३६.
पे. २. पे नाम, खिमाछत्रीसी, पृ. ३अ-५अ संपूर्ण
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क्षमाछत्रीसी उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य, आदि आदर जीव क्षमागुण अंतिः चतुर्विध संघ जगीश जी.. पे.वि. गा.३६.
पे. ३. कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६८, (पृ. ५अ-६आ-, अपूर्ण), आदि: कर्म थकी छूटे नही; अंति, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.३० अपूर्ण तक हैं.
२७९
७६६१. वैराग्यबावनी, कर्मछत्रीसी व बावन बोल अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३-१( ८ ) - १२, पे. ३. जैदेना.. पू.वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं. (२४.५५११, ११४३०-३५)
पे.- १. वैराग्यबावनी, मु. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १६९५ (पृ. १आ-४आ, संपूर्ण), आदिः समज समज रे भोला; अंतिः परभव सुख अपारजी. पे.वि. गा.५१.
·
पे. २. कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६८, (पृ. ४आ-७अ, संपूर्ण), आदिः कर्म थकी छूटे नही; अंतिः धर्म तणो परमाण जी. पे.वि. गा.३६.
""
पे. ३. ५२ बोल थोकडो मागु, गद्य (प्र. ७अ १३आ अपूर्ण) आदि पहली बोल जीवमै भाव अंतिः पे.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. बोल- २१ अपूर्ण तक हैं.
७६६२. अढारपापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. ले. मु. हेतविजय (गुरु मु. मोहनविजय). प्र. ले. पु.
"
मध्यम प्र. वि. १८ सज्झाय, पू.वि. ढाल १८ (२५४११.५, १७४४७-५०).
१८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः पापस्थानक पहिलुं; अंतिः वाचकजस इस भाखेजी
,
७६६३. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२-५ (१ से २,८ से १० ) = ७, जैदेना., प्र. वि. मूल - गा. ६३.,
.
पू. वि. गा. १ से ९ तथा ३७ से अपूर्ण ५३ तक नहीं हैं., ( २४.५x११, ४x२८-२९).
चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र प्रा. पद्य, आदि: अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं.
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-, अंतिः सुखनुं कारण छे.
७६६४. चौवीस दण्डक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. अक्षर - प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत, पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., ( २४.५X१२, १९४३८).
२४ दण्डक बोलसङ्ग्रह *, मागु., गद्य, आदिः चोबीसडण्डक नारकी एक; अंति:
७६६६. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र अपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८-२(१ से २) -६, देना. प्र. वि. अध्याय १० प्रतिलेखन पुष्पिका पत्र नहीं है. पू. वि. अध्याय- ४ सूत्र - ८ तक पाठ के नहीं है., ( २४.५x११.५, १२x२६). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., प+ग, आदि:-; अंतिः बहुत्वत्तः साध्याः.
-
७६६७. नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३८-३३ (१ से ३१,३६ से ३७) =५, जैदेना ले. मु. अमीविजय, पठश्राविका गौरीबाई, प्र.वि. मूल-गा. ४३. पत्रांक देखने से पता चलता है कि इस कृति के अलावे भी प्रारंभ में और कृतियाँ रही होगी. पू. वि. गा. ३ अपूर्ण तक तथा गा. २९ अपूर्ण से ४१ तक नहीं हैं., ( २५x११, ४x२७).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा..
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः कालइ अनन्तगुणा छइ.
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-
७६६८. आठकर्मप्रकृति विचार, अपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६. जैवेना.. पू. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. (२४.५४१२, १२४३४-३८).
""
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२८०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः आठ कर्म ते केहा; अंति:७६६९. ऋषभजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. जेतारण, प्र.वि. ढाल-४७; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ७५०,
(२५४११.५, २०४३७).
आदिजिन चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८४०, आदिः अरिहन्त सिद्धनै; अंतिः ऋषभ चरीत टकसाल ए. ७६७०. विचार स्तव सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.२१., टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, पू.वि. गा.३ तक नहीं हैं., (२५४१०.५, १५४४४). आदिजिन स्तवन-देउलामण्डन-विज्ञप्तिविचारगर्भित, गणि विजयतिलक, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः विजयतिलओ
निरञ्जणो.
आदिजिन स्तवन-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः तिलक प्राय छे. ७६७१. चउसरण प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. गा.६३, (२५४११, ९४३४).
पे.-१. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-५आ), आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ
सुहाणं., पे.वि. गा.६३. पे..२.४ रत्न गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः जीवदया जिणधम्मो; अंतिः विना न पामन्ति., पे.वि. पेटांक-१ के
श्लोकक्रम से संलग्न ही इसका श्लोकांक दिया गया है किन्तु यह अलग ही कृति है. गा.१. ७६७२. सन्थारापोरसी सह टबार्थ, शाश्वतजिनप्रतिमा विचार व तप सङ्ग्रह आदि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ५, पे. ८,
जैदेना., (२७४१३, ८-१६४३३-४४). पे.१. पे. नाम. सन्थारापोरसीसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ
सन्थारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदिः निसिही निसिही निसीहि; अंतिः चरणश्चरणमेव च.
सन्थारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः त्रि करण सुधि क्षमाश; अंति: #., पे.वि. मूल-गा.१६. पे.२.१८ भार वनस्पति भाव, मागु., गद्य, (पृ. २अ-२अ), आदिः त्रिण्य कोडि एकासी; अंति: एवं अढार भार वनस्पति. पे..३.१८ भार वनस्पती गाथा, कवि शुभ, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२अ), आदिः प्रथम कोडि अडतीस; अंतिः इम अर्थ कहे
मोटा यति., पे.वि. गा.१. पे.४. शाश्वतजिन प्रासाद व जिनबिम्ब विचार, सं.,मागु., गद्य, (पृ. २आ-४आ), आदि: असुरकुमारे चउसठि; अंतिः
सविशेषेण पूजा कार्या. पे.५. जिननरकगमन विचार, मागु., गद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदिः ऋषभ भीमबलनामा रूद्र; अंतिः रूद्र तृतीय नरके
गत.
पे.६. सूतक विचार, सं., पद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदिः सूतकं वृद्धिहानिभ्या; अंतिः क्षारं प्रवर्त्तते., पे.वि. श्लो.६. पे.-७. औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदिः साढडियां ओर गोरडियां; अंति: न जीवे तीन ___ पञ्चासा., पे.वि. गा.३.
पे:८. तप सङ्ग्रह, मागु., गद्य, (पृ. ५अ-पआ), आदिः सोल पचखाणे थाय उपवास; अंति: उपवासे पारणो करवो. ७६७३. हितोपदेशसत्तरी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पालिताणा, ले.- मु. अमृतविजय (गुरु मु.
गौतमविजय), प्र.वि. गा.७२, (२६.५४१३, १२४२४).
औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पाठक श्रीसार, मागु., पद्य, आदिः ऊतपत्ति जोज्यो जीव; अंतिः इम कहे श्रीसार ए. ७६७४. स्नात्रपञ्चाशिका सह बालावबोध, कथा व दूहा, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. २, जैदेना., ले.- पं.
___ महिमाविजय, (२८x१२.५, १४-१५४५३). पे.१. पे. नाम. पूजापञ्चासिका सह बालावबोध व कथा, पृ. १अ-१९आ
स्नात्रपञ्चाशिका, गणि शुभशील, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य श्रीजिनान्; अंतिः मुक्ति सुखार्थिना.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
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स्नात्रपञ्चाशिका - बालावबोध, गणि जिनहर्ष, मागु, गद्य, आदि: प्रणम्य कहेता प्रणाम अंतिः मुक्ति सुखार्थीयइ. स्नात्रपञ्चाशिका-कथा, गणि जिनहर्ष, मागु., गद्य, आदि: श्रीपुर नगरने विषे; अंतिः मुक्तिसुख पामस्ये., पे.वि. मूलश्लो. ५०. कथा- ५० कथा.
पे. २. औपदेशिक सज्झाय, कवि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. १९आ - १९आ), आदिः परम अध्यात्म ने लखे; अंतिः कहे निज आतिम थिर थाय., पे.वि. गा.४.
२८१
७६७५. वैराग्य सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना, पृ.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.३३ अपूर्ण तक हैं. गा. १-३३
तक है., ( २६.५x११.५, ६x२४).
औपदेशिक राज्झाय-वैराग्य ऋ. जंगल मागु, पद्य, आदि: मोह मिथ्यात की नींद अंति:
७६७६. वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १९०३ मध्यम पृ. १८ जैदेना. ले. मु. अमृतविजय ( गुरु मु. गौतम विजय ). प्र. वि. ढाल - २०, प्र.पु. - मूल - श्लो. २८०, ( २६.५x१३, १०x२६).
२० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि मागु पद्य वि. १८४५ आदिः श्रीशङ्खेश्वर पासजी अंतिः पभणे सयल सङ्घ
.
जयकरू.
७६७७. स्तवनवीसी व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८, पे. २, जैदेना, (२७४१३, १३-१५X३६).
पे: १. विहरमानजिन स्तवनवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, पद्य, (पृ. १आ-(अ), आदि: पुखलवई विजये जयो रे; अंतिः वाचक जश इम बोले रे, पे.वि. २० स्तवन.
.
"
पे. २. प्रतिमा स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि मागु., पद्य, (पृ. ८अ ८अ ), आदिः श्रीजिनप्रतिमा हो; अंतिः जिनप्रतिमा शुं नेहजी., पे. वि. गा. ७.
"
७६७८. चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३, देना., प्र. वि. मूल- श्लो. १२३२. पू. वि. गा. १२३२.,
(२६.५x१२.५, ६x४१ ).
चित्रसेनपद्मावती चरित्र आ. महीतिलकसूरि सं., पद्य वि. १५२४ आदि नत्वा जिनपतिमाद्यं अंतिः
पाठकराजवल्लभः
चित्रसेनपद्मावती चरित्र टवार्थ, गणि भक्तिविजय, मागु, गद्य, आदिः अद्य क० पहेला युगल अंतिः अर्थे का छे.
कह्यू
७६७९. जन्मपत्री पद्धति अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १४३-२७(१ से ५,७ से २७,१४२ ) = ११६, पे. २. जैदेना. पु. वि. प्रारंभ, बीच
"
व अंत के पत्र नहीं हैं., (२८x१२.५, १५ - १६x४२).
पे. १. जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर सं., गद्य (प्र. ६अ - १४३आ), आदि:-: अंतिः यस्यैषा जन्मपत्रिका, पे. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.
"
पे. २. ज्योतिष अपूर्ण ग्रन्थ सं. प्रा. मागु प+ग (प्र. १४३आ - १४३आ), आदि: अंति, पे. वि. अंत के पत्र हैं. ७६८०. वर्द्धमानदेशना, संपूर्ण वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. १०९ जैवेना. ले. स्थल पुनरासर ले. पं. देववर्द्धन मुनि (गुरु वा. दयाकमल, बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. १०उल्लास, प्र.ले. श्लो. (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, ( २६.५x१२, १५X४२-४५).
वर्द्धमानदेशना, गणि राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि नमः श्रीपार्श्वनाथाय अंतिः शोधयन्तु गतमत्सराः.
७६८१. चन्दराजा चरित्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. २४२, जैवेना. ले. स्थल पालणपुर, ले. पं. बुद्धिविजय (गुरु पं. भक्तिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - ४ अधिकार, प्र. पु. - मूल - ९६६,, ग्रं. ११११. प्र. पु. - टबार्थ-ग्रं. १११५. श्री पल्लहविया पार्श्वनाथ प्रसादेन. प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्: (१२२) जब लग मेरु स्थिर रहें; (१३६) मंगलं लेखकानां च (१७७) पोथी प्यारी प्राणथी (६००) भग्न पृष्ठी कटि ग्रीवा (१५६) ज्ञान हंदा दोय गुणं, (२६.५x१२, ६×३५-४०).
"
श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र. मु. सिद्धर्षि, सं., पद्य वि. ५९८ आदि ॐ ध्यात्वा श्रीजिना अंतिः सङ्घश्विरं नन्दतात्.
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२८२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ध्यात्वा श्रीमन्; अंतिः ते चिरञ्जीव रहो सङ्घ. ७६८२. कल्पसूत्र सह टबार्थ, बालावबोध व सङ्घस्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०३, श्रेष्ठ, पृ. १५९, पे. २, जैदेना., पठ.
गणि कनकविजय (गुरु पं. दोलतविजय), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं
पुस्तकं दृष्टं; (१७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (२५.५४११.५, ६-१८४३६). पे.-१.पे. नाम. कल्पसूत्र सह बालावबोध, टबार्थ व कथा, पृ. १आ-१५९अ
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः चोसठि इन्द्रनेपूजनीक; अंतिः आपणा शिष्यनइ. कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मागु., गद्य, वि. १७०७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः यः कर्ता तस्य
मङ्गलं. कल्पसूत्र-कथा सङ्ग्रह', सं.,मागु., गद्य, आदिः बलदेव बलिदेव वासुदेव; अंति: दत्तो ते दशपूर्वणः. पे..२.पे. नाम. सङ्घ स्तुति सह टबार्थ, पृ. १५९आ-१५९आ
सङ्घ स्तुति, सं., पद्य, आदिः संघोय गुणरत्नरोहण; अंतिः सङ्घश्चिरं नन्दतात्.
सङ्घ स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीसङ्घ गुण रूप; अंतिः नन्दो जयवन्त वा., पे.वि. मूल-श्लो.१. ७६८३.” महीपाल चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. ९२, जैदेना., ले.स्थल. मेडतानगर, ले.- पं. गुणविजय (गुरु
पं. खुशालविजय), गच्छा.- आ. विजयधर्मसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.१८४०., पू.वि. गा.१८४०., (२६.५४१२,
८४५२). महिपालराजा कथा, गणि वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंतिः निययगुरूणं पसाएण.
महिपालराजा कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करी; अंति: गुरु कै प्रसाद करी. ७६८४. मानतुङ्गमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले.स्थल. पाटणनगरे, ले.- मु. निधानविजय (गुरु पं.
फतेविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ढाल-४७, (२५.५४१२, १३-१४४३९-४१). मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द
पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. ७६८५. सूयगडाङ्गसूत्र प्रथमश्रुतस्कन्ध सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९७१, श्रेष्ठ, प्र. ४३, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-मूल अंश
अध्ययन-१६., (२६४१२, ६x४९-५४). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति:
सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः आदिदेवं नमस्कृत्य; अंतिः७६८६. श्रीपालनरेन्द्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., प्र.वि. ढाल-४९; प्र.पु.-मूल-गा.८५२, अक्षर-प्रसिद्ध
व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत, (२५४१२, १३४३१-३७).
श्रीपाल बृहद्रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४०, आदिः अरिहन्त अनन्तगुण; अंतिः पातकवन लुणिज्ये रे. ७६८७. अष्टमी व एकादशीस्तवन, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. लोहागढ, ले.- पं. लालसागर
(गुरु मु. चतुरसागर, तपागच्छ), (२५४१२, १३४३७). पे.-१. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कान्ति, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कान्ति सुख पावे
घणो., पे.वि. ढाल-२, गा.८+१५+१. पे..२. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, वि. १७६९, (पृ. २आ-५अ), आदिः द्वारिका नयरी; अंतिः
लहे ते मंगल अति घणो., पे.वि. ढाल-३. ७६८९. उत्तराध्ययनसूत्र-३ से ५ व १० अध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-मूल अंश अध्ययन-३
५.१०., (२६.५४१२, १३४३१).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
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उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध प्रा. प+ग, आदि: अंति:
(+)
७६९१. पर्युषणाद्यष्टानिका व्याख्यान, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें- संधि सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र (२५.५४१२, १५४४०-४३).
अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदिः शान्तीशं शान्ति; अंतिः विलोक्य तत्.
7
७६९२. आर्यवसुधाराधारिणी, संपूर्ण वि. १८७६, श्रेष्ठ, पृ. ८. जैवेना. ले. स्थल. राधनपुर प्र. वि. श्रीसमलाजी प्रसादात्..
"
(२४९१२.५ १२-१४४२८-३०)
वसुधारा, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति.
७६९४. कल्पसूत्र सह व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६२-२५७(१ से २५७)-५, जैदेना, पू.वि. बीच के पत्र हैं. पार्श्वनाथ दस भव वर्णन व पार्श्वकुमार दृष्टान्त तक है., ( २४.५x१२, ६३१).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि:-: अंति:
"
कल्पसूत्र - व्याख्यान+ कथा*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
७६९५. इग्यारहअङ्ग सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २० - १२ (१ से १२ ) = ८, जैदेना., प्र. वि. ढाल - १२, (२५.५x१२,
११x२९-३०).
११ अङ्ग सज्झाय, मु. विनयचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १७५५, (संपूर्ण), आदिः पहिलो अङ्ग सुहामणों; अंतिः इग्यार सज्झाय कि.
२८३
७६९६ - बोल सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१-६ (१८ से १०, १७ से १८ ) =१५. जैदेना.. पू. वि. बीच-बीच के पत्र है. (२४.५४१२, १७४३७-३९).
५८ बोल सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
7
७६९७. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३-८ (१ से ८) =५, जैदेना., पू. वि. बीच के पत्र हैं. भक्तामर स्तोत्र का. २४ अपूर्ण से कल्याणमंदिर स्तोत्र का. २९ अपूर्ण तक है.. (२६४१२, ११४३२). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि:-; अंतिः
७७०० " जीवविचार सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. ले. स्थल. वडलू, ले. गु. कस्तूरचन्द ( गुरु मु.
·
"
प्रधानहंस), राज्यकाल- राजा मानसिंह, प्र. वि. मूल-गा.५१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, प्र.ले. श्लो. (६०१) लघु दीर्घ न जाणी (६०२) मन में धारी पालजो (१७९) पोथी प्यारी प्राणशी (२५.५४१२.५ ३x२९-३२). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ . जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः भुवन क० स्वर्ग; अंतिः जीव प्रते उपदेश छे.
७७०१. मौनएकादशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. श्लो. ११८ (२६.५x१२, ११x२५).
मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनन्दिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदिः अन्यदा नेमिरीशाने; अंतिः हम्मीरपुरसंश्रितैः. ७७०२. ५६३ जीवविचार बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२ (२, ४) = ६, जैदेना., प्र. वि. पंक्ति - अक्षर अनियमित है... पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. (२४.५४१२४).
५६३ जीवविचार बोलसङ्ग्रह *, मागु., गद्य, आदिः जीव का भेद वेइन्द्र, अंतिः -
७७०४. स्नात्रपूजा व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.- सुखा (गुरु आ. खेमसी), ( २४.५x१२.५,
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१३४२५-२७).
पे. १. स्नात्रपूजा विधिसहित गणि देवचन्द्र मागु पद्य (५. १अ ६आ), आदि: चोतिसे अतिसय अंतिः कही सूत्र मझार., पे.वि. ढाल - ९.
पे. २. जैन दुहा सङ्ग्रह, सं. प्रा. मागु प+ग, (पृ. ६आ-६आ), आदि: # अंति#. पे. वि. प्र. पु. ग.१.
७७०५.” कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले. स्थल. अहमदाबाद, ले.- सुखदत्त बोडा,
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२८४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्र.वि. मूल-श्लो.४४; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ८७; टीका-ग्रं. ६५०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति
संकेत, त्रिपाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६४१२.५, २४३८-४०). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदिः प्रणम्य पार्श्वमिष्ट; अंतिः
श्लोकानामिहमङ्गलम्. ७७०७. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., (२७४१२.५, ११४२५-२८).
नवपद पूजा, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, वि. १८३८, आदिः श्रुतदायक श्रुतदेवता; अंतिः पद्मविजय गुण गायो. ७७०९." उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रारंभ
के पत्र हैं., (२५.५४१२, २०-२४४३८-४५). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः
उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालनें विषं ते; अंति:७७१२. जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१(२०)=२१, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., (२६.५४१४, १५४३९).
जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रीऋद्धि; अंति:७७१४. वीसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. योधनगर, ले.- अमरु, प्र.वि. ढाल-२०,
(२५x१२.५, १७-१८४४६-४८). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः (१)पभणै सयल सङ्घ
जयकरू (२)यथासक्त करवो. ७७१७. शेत्रुञ्जय माहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ६४९, जैदेना., प्र.वि. मूल-सर्ग-१४. श्रीमनमोहन
पार्श्वनाथप्रसादात्., (२७४१३.५, ६४३७-४२). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः ग्रन्थ एषः.
शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीयुगादीशं; अंतिः ए ग्रन्थ चिरं नन्दतु. ७७१८. सुक्तमाला-१ से २ वर्ग, प्रतिपूर्ण, वि. १९३४, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., पठ.- मु. प्रताप, (२५.५४१३.५, ११४२४-३१).
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलकुशलवल्लिवृन्द; अंतिः७७१९. सङ्घयणीसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले.स्थल. मांडलगढ, प्र.वि. मूल-गा.२७६.
मूल का मात्र संकेतपाठ दिया गया है., (२६.५४१३, १४-१५४४०-५२). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः सन्नि गईरागई वेए. बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध, गणि दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १४९७, आदिः नत्वा श्रीवीरजिनं; अंतिः अनाकार उपयोग
७७२१. सिन्दूर प्रकरण सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले.स्थल. उदयपुर, ले.- अमरदत्त ब्राह्मण,
प्र.वि. मूल-श्लो.१००., (२६४१३.५, १२४४५-४९). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्.
सिन्दूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंतिः वृत्तिमिमामकार्षीत्. ७७२३." भक्तामर स्तोत्र सह टीका व पद, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रेष्ठ, प्र. २२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, ले.
पूनमचन्द बोडा, प्र.वि. त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत, (२७४१३, १-३४३०-३८). पे.१. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः अजब गति चिदानन्द घन; अंतिः
उनके समरन की., पे.वि. गा.५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२८५ पे..२. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह बालहितैषणीनाम्नी वृत्ति, पृ. १आ-२२आ
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदिः प्रणम्य परमानन्ददायक; अंतिः
हि सा समाप्ता., पे.वि. मूल-श्लो.४४. प्र.पु.-टीका-ग्रं.७५८. ७७२४. जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., ले.स्थल. जावदनगर,प्र.वि. मूल-२१उद्देश., पू.वि.
२१ उद्देश., (२७४१३, ७४३१-३५). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, गणि पद्मसुन्दर, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया.
जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः ते कालनि विषइ ते; अंतिः एकविसमो उद्देशो. ७७३०. विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना.,पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२४४१३, १२४३७).
विचार सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७७३२. आगमसार (मोक्ष मार्ग वचनीका), संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना., ले.- श्रा. लखमीचन्द कानचन्द, प्र.ले.पु.
विस्तृत,प्र.ले.श्लो. (६०८) जिहां लगे मेरू अडग हैं; (६०९) लेखण हारा अति चतुर, (२६४१३.५, १५४४३-४६).
आगमसारोद्धार, गणि देवचन्द्र, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः प्रथम भव्य जीवनै; अंति: फली मन आस. ७७३३. जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पठ.- मु. लक्ष्मीविजय, प्र.वि. ढाल-९, गा.८४, पू.वि.
गा.८४, ढाल-९., (२६४१४, १२४२६).
जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १७१२, आदिः श्रीसरसती रे वरसती; अंतिः पभणे आनन्दकारी. ७७३५. स्तवनचौवीसी, पार्श्वजिन स्तवन, औषध सङ्ग्रह व काव्य, पूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. ३६-१(१)=३५, पे. ४, जैदेना.,
ले.स्थल. स्यांणानगर, ले.- पं. राजेन्द्रविजय (गुरु पं. फतेविजय), पठ.- मु. गोरधन (गुरु पं. राजेन्द्रविजय), प्र.ले.पु.
मध्यम, (२६४१४, १६४३२-३५). पे.-१. स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, (पृ. -२अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम;
अंतिः अखय सम्पद अतिघणी., पे.वि. २४ स्तवन. पे..२. पार्श्वजिन स्तवन, मु. नेमविजय, मागु., पद्य, वि. १८७७, (पृ. १२अ-१८अ, संपूर्ण), आदिः भाव धरी भजन करूं;
अंतिः जयकार० रङ्ग वधामणा., पे.वि. ढाल-१६. पे.-३. औषध सङ्ग्रह*, मागु., गद्य, (पृ. १८अ-३६आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#.
पे.-४. जैन दुहा सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ३६आ-३६आ, संपूर्ण), आदिः#; अंति:#., पे.वि. प्र.पु.-श्लो.४. ७७३६. स्तवन, सज्झाय, रोगीविचार, औषध व स्तोत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रेष्ठ, प्र. ८, पे. ६, जैदेना., ले.स्थल.
डाभेलाग्राम, ले.- पं. राजेन्द्रविजय (गुरु पं. फतेविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४१४, १६४२८-३२). पे.-१. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १अ-१अ महावीरजिन स्तवन, मु. अमृत, मागु., पद्य, आदिः त्रिसला देवीनो नन्द; अंतिः वन्दे नित नित रङ्ग., पे.वि.
गा.११. पे.२. पे. नाम. अयवन्तीसुकमाल सझाय, पृ. १आ-६आ
अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४१, आदिः मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंतिः सुख पावी रे.,
पे.वि. ढाल-१३, गा.१०७. पे.-३. पे. नाम. मधुबिन्दु स्वाध्याय, पृ. ६आ-७अ मधुबिन्दु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मागु., पद्य, आदिः सरसति मुझने रे मात; अंतिः परमसुख इम माङ्गीये.,
पे.वि. गा.१०. पे.-४. रोगी विचार सङ्ग्रह, मागु.,सं., गद्य, (पृ. ७अ-८अ), आदि: पल्ली तिथि वार रासि; अंतिः १२ पीडा तत् सुखी.
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२८६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.५. औषध सङ्ग्रह', मागु., गद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदिः#; अंतिः#. पे.६. घण्टाकर्णमहावीर स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः ॐ घण्टाकर्णो महावीर; अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा.,
पे.वि. श्लो.४. ७७४०. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३३, जैदेना., ले.स्थल. पालनपुर, ले.- मु. कस्तूरविजय
(गुरु मु. मोहनविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., (२७x१३x). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः इअ समत्तं मेगहिअं. षडावश्यकसूत्र-टबार्थ+बालावबोध, मु. जिनविजय, मागु., गद्य, वि. १७५१, आदिः श्रीजिसविजय चरणे; अंतिः
लिलेखार्कपुरे मुदेति. ७७४२. श्रीपालनरेन्द्र कथा सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२६, जैदेना.,ले.- पूनमचन्द बोडा, प्र.वि. मूल
__गा.१३४१; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १८३१; अवचूर्णि-ग्रं. ४०२२., पू.वि. गा.१३४१., (२६.५४१३.५, ६४३६-३८). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः अरिहाइ नवपयाइं; अंतिः वाइज्जन्ता कहा एसा. सिरिसिरिवाल कहा-अवचूर्णि, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६९, आदिः ध्यात्वा नवपदी भक्त; अंतिः समृद्धिं
लभताम्. ७७४४." आत्मप्रबोध सह बीजक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८६, जैदेना., ले.- पूनमचन्द बोडा, प्र.वि. मूल-४प्रकाश; प्र.पु.
मूल-ग्रं. ८०००आसरे., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२६.५४१४, १५४३८). आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग, वि. १८३३, आदिः अनन्तविज्ञानविशुद्ध; अंतिः ग्रन्थवरात्मबोधः.
आत्मप्रबोध-बीजक, सं., गद्य, आदिः तत्राद्य प्रकाशे; अंतिः अष्टौ गुणाः. ७७४५. हंसराजवच्छराज चौपाई, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ढाल-४९ गा.९०७ अपूर्ण
तक हैं., (२७.५४१३, १२४२६-३४). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदिसर आदे; अंति:७७४७. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अजितशान्ति तक है., (२६.५४१३,
११४३२).
नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंति:७७५२. सम्यक्त्वकौमुदी कथा, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, ले.- पं. जीतविजय, प्र.वि.
प्र.पु.-मूल गा.४०७. उल्लिखित गाथा संख्या मूल पाठ अन्तर्गत उद्धरण गाथाओं की हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि
सूचक चिह्न, संशोधित, (२७.५४१३, १६x४२).
सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः धर्मो विधीयतां. ७७६२. पण्णवणासूत्र, अपूर्ण, वि. १६६१, श्रेष्ठ, पृ. २६५-१४(१ से १०,२२ से २३,२२३ से २२४)=२५१, जैदेना., प्र.वि. ३६ पद.,
ग्रं. ७७८७, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२८.५४१४, १४४३५-३६).
प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि:- अंतिः सुही सुहं पत्ता. ७७६४. जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., ले.स्थल. सिवपूरी, ले.- ऋ. हीराचन्द (गुरु पं.
वृद्धिचन्द), राज्यकाल- राजा केसरी सिंह,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-२१उद्देश. जीरावलाजी प्रसादात्., (३१.५४१२.५, ६x४१). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, गणि पद्मसुन्दर, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया.
जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालने विषइं ते; अंतिः मार्गना आराधक कह्या. ७७६५. भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २८९-२५०(१ से ३१,३४ से ३६,४७ से ५४,७१ से ९१,९४ से २१८,२२० से
२८१)+३(४२ से ४४) ४२, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२९.५४१२, १३४३२-३६).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२८७
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:७७६६." कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१४-२(६,४७)=२१२, जैदेना.,प्र.वि. मूल-९
व्याख्यान., संशोधित, (२८.५४१३, १३४३७-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य; अंतिः कल्पसूत्रस्य
चेमाम्.
७७६७." नवाण्णुप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. राजपूरनगर, ले.- पं. कस्तूरविजय, प्र.वि.
ढाल-११, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२७.५४१३, १५४३६). ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुञ्जयमहिमा गर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८४, आदिः श्रीशङ्ख्सर पासजी; अंतिः
आतम आप ठवायो रे. ७७६८." जीवविचार व २४ दण्डक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, जैदेना., पठ.- श्राविका
प्रतापकवर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x१३, ५४२७-३५). पे.-१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-८अ
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, प्राहिं., गद्य, आदिः भुवण क० तिलोक में; अंतिः निकालकर के बनाया है.,पे.वि. मूल
गा.५१. पे.२. पे. नाम. विचारछत्रीसी २४ दण्डक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ८अ-१३आ
दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, प्राहिं., गद्य, आदिः णमिउं क० नमस्कार; अंतिः वाले वा पढनेवाले., पे.वि. मूल-गा.४२;
मूल-गा.४२. ७७६९. उपदेशरसाल सह बालावबोध व दृष्टान्तकथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-४ वर्ग.कथा
___ अध्याय-६९ कथा. ग्रन्थोद्धृत कथासूची दी गयी है.,पू.वि. ४ वर्ग., (२७४१२.५, १६-१७४४३-४८). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, (संपूर्ण), आदिः सकलसुकृतवल्लिवृन्द; अंतिः मौक्तिकमालि
किञ्च. सूक्तमाला-बालावबोध', मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः प्रथम काव्य ने विष; अंति:
सूक्तमाला-कथा, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः श्रीआदेश्वरजीनी सेवा; अंतिः खेद पामीने निकल्या. ७७७१. कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-४(१ से ४)=९, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७४१३, १५४३६-४२).
कल्पसूत्र-पीठिका*, संबद्ध, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७७७२." प्राणप्रिय काव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. श्लो.४५; प्र.पु.-संबद्ध-श्लो.७२, संशोधित, (२७.५४१२,
११४३१). भक्तामर स्तोत्र-प्राणप्रियभक्तामर स्तोत्र-चतुर्थपादपूर्तिरूप, मु. रत्नसिंह, संबद्ध, सं., पद्य, आदिः प्राणप्रियं नृपसुता; अंतिः
विदधे कवित्वं. ७७७६." कालस्वरूप सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. गा.१९ तक
है., (२६.५४१३, ३४२८). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः देविन्दणयं; अंति:कालसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: अहँ देवि वनय; अंति:
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२८८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७७७. कर्मग्रन्थ १ से ४, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. आनन्दपुरनगर, (२६.५४१२, १०-११४३७
४१). पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-आ), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः
लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६०. पे.२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ-७आ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं
नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. पे.३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ८अ-९आ), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं
कम्मत्थयं सोउं..पे.वि. गा.२४. पे.४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ-१५आ), आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः
देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८६. ७७७८.” स्थम्भनपार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४०, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- पं. कालुहंस, पठ.- पं. वीरहंस, प्र.वि. गा.३०,
दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६.५४१२.५, ९४३४).
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय. ७७७९. गोराबादल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९+२(२६,२८)=४१, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.७५२ तक
लिखा हैं., (२६४१२.५, १२-१३४३१-३३)..
गोराबादल रास, गणि लब्धिउदय, मागु., पद्य, वि. १७०७, आदिः आदजनसरै प्रथम; अंति:७७८०. जिनचन्द्रसूरिनिर्वाण, भास व प्रतिक्रमणादि विधि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, पे. १०, जैदेना.. पू.वि.
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६.५४१२.५, १५-१८४४४-५३). पे.१. धूरि चूलिका, मागु., गद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः स्वस्ति श्रीयथास्थान; अंतिः सङ्घ गण उल्हास पामि. पे.२. जैन सामान्यकृति-पेटाङ्क बाकी*, सं.प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदि:#; अंतिः#. पे.३. विहरमान २० जिन नाम, मागु., गद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः सीमन्धरस्वामी; अंतिः देवजसा अमितवीर्य. पे.-४. जिनचन्द्रसूरिनिर्वाण रास, मु. समयप्रमोद, मागु., पद्य, (पृ. १आ-३आ, संपूर्ण), आदिः गुणनिधान गुरु पाय; अंतिः
फले हो जपे समयप्रमोद., पे.वि. गा.६९. पे.-५. पे. नाम. युगप्रधान श्रीजिनचन्दसूरि अलजी भास, पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण जिनचन्द्रसूरिआलजा गीत , उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः आसू मास वलि आवीयउ; अंतिः
समयसुन्दर आणन्द., पे.वि. गा.११. पे.६.पे. नाम. देवसी पडिकमणारी विधि, पृ. ४अ-७आ, संपूर्ण
प्रतिक्रमण विधिसङ्ग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः तथा कालवेलायइ; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. पे.७. पौषध विधि, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम इरियावही; अंतिः पछे सज्झाय केवी. पे.-८. आलोयणा, मागु., गद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः ७ सातलाख पृथ्वीकाय; अंति: आलोयण माहि आलोव्यु. पे.९.२४ माण्डला, प्रा., गद्य, (पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण), आदिः ६ हाथ १ प्र० १ आगाढे; अंति: पासवणे अणहियासे. पे.१०.२४ जिन पञ्चकल्याणक-तिथि व जाप, सं., गद्य, (प्र. ९आ-९आ, अपूर्ण), आदिः कारतिक वदि पांचम; अंति:-,
पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७७८१. सज्झाय व स्तवनादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ८, जैदेना., (२५.५४१२.५, १३-१५४३५-४१). पे.१.पे. नाम. जीवदया उपरे सिखामण सिज्झाय, पृ. १आ-आ
दयापच्चीसी, मु. विवेकचन्द, मागु., पद्य, आदि: सयल तीर्थङ्कर करु; अंतिः कहे एह विचार., पे.वि. गा.२५. पे..२.पे. नाम. २२ अभक्ष्य अनन्तकाय सिज्झाय, पृ. २आ-३अ
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२८९ २२ अभक्ष्य ३२ अनन्तकाय सज्झाय, मु. आणन्दविजय, मागु., पद्य, आदिः समरि सान्तिजिणेशर; अंतिः भणो
भविया शुख करु., पे.वि. गा.११. पे.-३. जिनवन्दन विधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मागु., पद्य, (प्र. ३अ-३आ), आदिः सयल तीर्थङ्कर करु; अंतिः __कीर्तिविमल शुभ ठाम., पे.वि. गा.११. पे.-४.पे. नाम. सीखामणनी सीज्झाय, पृ. ३आ-५अ
औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मागु., पद्य, आदिः मङ्गल करण नमीजे; अंति: गर्भावासे न अवतरे., पे.वि.
गा.२५. पे.५. पे. नाम. चन्द्रावतीभीमसेननी सज्झाय, पृ. ५अ-५आ चन्द्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मागु., पद्य, आदि: जीन मुख सोहे सरस्वति; अंतिः विवेकहर्ष भजो
जगदीस., पे.वि. गा.२१. पे.६.पे. नाम. सीखामण जीव उपरे सीज्झाय, पृ. ६अ-६आ श्रावक करणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, आदिः श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणि दुखहरणि छे एह.,
पे.वि. गा.२१. पे.-७. उपसम सज्झाय, मु. विजयभद्र, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः भयभञ्जण रञ्जण जगदेव; अंतिः ते नही
अवतरइं..पे.वि. गा.१२. पे:८. औपदेशिक छन्द, पण्डित लक्ष्मीकल्लोल, मागु., पद्य, (पृ. ७अआ), आदिः भगवती भारती चरण; अंतिः रातो
रङ्गचोल., पे.वि. गा.१६. ७७८२. स्तवन सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. १०, जैदेना., (२७x१३, १३४२९).
पे.१. श्रेयांसजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः श्रीश्रेयांसजिणन्द; अंतिः कहे में सदह्यो
रे.,पे.वि. गा.५. पे..२. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः मोहनजी हो गुण बोहला; अंति: भक्ति
सुधारस पान., पे.वि. गा.५. पे-३. विमलजिन स्तवन, मु. लालविजय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः जि हो वीमल जिणेसर; अंतिः सुखी थयो
त्यांही.,पे.वि. गा.७. पे.४. कुन्थुजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः कुन्थुजिणेसर जाणज्यो; अंतिः लाल ____ मानविजय उवझाय रे., पे.वि. गा.७. पे.५. अरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. २आ-आ), आदि: श्रीअरजिन भवजलनो; अंतिः ए
प्रभुना गुण गाऊ रे., पे.वि. गा.५. पे.-६. मल्लिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. आ-आ), आदिः तुज मुज रीजनी रीज; अंतिः
एह जस चित्त धारेरी., पे.वि. गा.५. पे-७. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः मुनिसुव्रतजिन; अंतिः पण ___ मनमांहे परखाय रे., पे.वि. गा.५. पे..८. नमिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः श्रीनमिजिननी सेवा; अंतिः
सेवक० प्रेम अङ्गिजि., पे.वि. गा.५. पे.९. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदिः गिरुआ रे गुण तुम; अंतिः तुं ___ जीवन आधारो रे., पे.वि. गा.५. पे.-१०. रोहिणीतप स्तवन, कवि दीपविजय, मागु., पद्य, वि. १८५९, (पृ. ३आ-६अ), आदिः हा रे मारे वासु; अंतिः
रोहणी तप गुण गाईया., पे.वि. ढाल-६.
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२९०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७७८४. रामविनोद व औषध सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. ८०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. वडलुग्राम, ले.- ऋ.
मालचन्द(लुङ्का नागोरी), (२६.५४१२, १५४३६-४०). पे.-१. रामविनोद, पं. रामचन्द्र गणि, मागु., पद्य, वि. १७२०, (पृ. १अ-८०अ), आदिः सिद्धबुद्धदायक; अंतिः लगि मेरु ___ दिणन्द., पे.वि. ७ समुद्देश.
पे..२. औषध सङ्ग्रह', मागु., गद्य, (पृ. ८०अ-८०आ), आदिः#; अंतिः#. ७७९०. क्षेत्रसमास सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-संक्षेप-गा.१५५., (२७४१२.५, ३४३९-४१).
बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण , आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊणसजलजलहर;
अंतिः समयखेत्तस्स परिरओ. बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमिऊण कहेतां नमस्कार; अंतिः क्षेत्ररी परधि
जाणवी. ७७९१. शान्तिपूजा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., (२६.५४१२, ८४३२-३६).
शान्तिपूजा विधि, सं.,हिन्दी, पद्य, आदिः शुभदिने जिनमन्दिर; अंतिः कहकर पुष्प चढावे. ७७९२." विचार सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
(२६४१२, ३४४६१). जिनदाढादि विचारसङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदि:#; अंतिः#. ७७९३." जातकदीपका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.९८., टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
पू.वि. गा.९८., (२५४१२.५, ६४३२-३६). जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदिः प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंतिः एषा जातकदीपिका.
जातकपद्धति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य क० नमस्कार; अंतिः पद्धति दीवा समान छै. ७७९४. गौतमकुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है.. पू.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं., (२५.५४१२४). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति:
गौतम कुलक-बालावबोध+कथा, पं. पद्मविजय, मागु., गद्य, वि. १८४६, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंति:७७९८. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा - १-८ व्याख्यान, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३१+१(४८)=१३२, जैदेना.,
पू.वि. ऋषभचरित्र तक है., (२६.५४१२, १५४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः नमस्कार हुवो; अंति:
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः७७९९. श्रीपालरास-चतुर्थ खण्ड सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., पू.वि. ढाल-१४., (२५.५४१२, ६४३६
३७).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंतिः लहसे ज्ञान
विशाला जी.
श्रीपाल रास-टबार्थ', मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंतिः लक्ष्मी पामस्ये. ७८०१." गुर्वावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., ले.स्थल. अजीमगंज, प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें, (२५.५४१२, १३४३५). पट्टावली खरतरगच्छीय, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३०, आदिः प्रणिपत्य जगन्नाथं; अंतिः जीर्णगढेनवासौ. ७८०२. प्रकरणचतुष्क, चौदनियम व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८६२, मध्यम, पृ. १०, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. आडीसरनगर, ले.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
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गणि मोहनविजय (गुरुगणि भावविजय) पठ. मु. हरचन्द (गुरु गणि मोहनविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४११.५, १२X३७-३९).
पे. १. जीवविचार प्रकरण आ. शान्तिसूरि प्रा. पद्य (प्र. १अ ४अ) आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि.गा. ५८.
पे. २. पे नाम, चोवीसदण्डग, पृ. ४अ-६अ
दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे. वि. गा. ४७. पे. ३. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (प्र. ६अ-१०अ ), आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा.. पं.वि.
गा. ७६.
पे. ४. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा. पच (पृ. १०अ १०अ ) आदि सच्चित्त दव्व विगई अंतिः दिसि न्हाण भत्तेसु.. पे.वि. गा.१.
पे.-५. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ १०अ ), आदि: #; अंतिः #., पे. वि. ७८०३. सिन्दूरप्रकरण, चैत्यवन्दन व स्तुति सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ.
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प्र.पु. - मूल गा. २.
१२ - १ ( १ ) = ११, पे. ७, जैदेना., ले.स्थल. व्यालपुर, पत पं. सूरजमल (गुरु पं. दयासुन्दर ), प्र.ले.पु. विस्तृत (२६४११.५, १०x३३-३९).
पे. १. सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. २अ १२अ पूर्ण), आदि: अंतिः सुक्तमुक्तावलीयम्., पे. वि.
श्लो. १००. गा. १ से ६ अपूर्ण तक नहीं हैं. प्रथम पत्र नहीं है.
पे. २. पञ्चतीर्थी स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः श्रीमहावीर सामीजी; अंतिः जैन तीर्थेभ्यो नमः ., पे.वि. गा.१.
पे.-३. पार्श्वजिन छन्द-शङ्खेश्वर, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ, संपूर्ण), आदि: सेवो पास शङ्खेश्वरो; अंतिः आपो आप तुठा.
पे.-४. २४ जिन वर्ण दुहा, मागु., पद्य, (पृ. १२आ - १२आ, संपूर्ण), आदिः दोय गोरा दोय सावला; अंतिः चवीसे जीणचन्द, पे. वि. गा.१.
पे. ५. जैन दुहा सग्रह सं. प्रा. मागु प+ग, (पृ. १२-१२आ, संपूर्ण) आदि में अंतिः #.
पे. ६. प्रभुदर्शन करती वखते बोलाता दुहा, गुज. सं., पद्य, (पृ. १२आ - १२आ, प्रतिपूर्ण), आदिः प्रभु दरशन सुखसम्पदा; अंति:-, पे. वि. प्र. पु. मूल गा.१.
"
पे. ७. जैन दुहा सङ्ग्रह सं. प्रा. मागु, प+ग, (पृ. १२-१२आ, संपूर्ण) आदि # अंतिः #. पे. वि. प्र. पु. मूल गा.१. ७८०५. कुमारपाल रास, पूर्ण, वि. १७७९, श्रेष्ठ, पृ. १६९ - ८ ( ३ से १० ) = १६१, जैदेना., ले. मु. राजविजय (गुरु पं.
-
लाल विजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ४५६१, प्र. पु. - मूल - सर्वगा. ४५९२, ग्रं. ५८००, पू.वि. बीच के पत्र नही हैं., (२६४११.५. १६४३८-४२).
कुमारपाल रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु, पद्य, वि. १६७०, आदिः सकल सिद्ध सुपरि नमुं: अंतिः नामथी नवनिधान पायो.
७८०७. शालीभद्र कथा चरित्र, संपूर्ण वि. १९८९, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैवेना. ले. स्थल नागोर ले. श्रा. हंसराज मुथा,
(२५.५X११.५, १५४४३-४५).
शालिभद्र कथा प्राहिं पद्य, आदि: श्रीगुरु चरण कमल रज: अंति देगा वह सुपात्रदान.
२९१
७८०९. इकवीसठाणा सह टबार्थ व गाथा, संपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. वारईनगर, ले.- मु. हरचन्द (गुरु गणि मोहनविजय) प्र.ले.पु. विस्तृत (२६.५५११.५ ३-५०२४-३१)
पे.- १. पे. नाम. इकवीस ठाणा सह टबार्थ,
,
पृ. १आ-१५आ
एकविंशतिस्थान प्रकरण आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी अंतिः असेस साहारणा
भणिया.
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२९२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चोवीस तीर्थङ्करना; अंतिः समय साधारणइ कह्या., पे.वि.
मूल-गा.७०. पे.२. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. १५-१५आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-१. ७८१०. भक्तामर, कल्याणमन्दिर स्तोत्र व चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२३, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. ३, जैदेना.,
ले.स्थल. अर्मपूर, (२५४११.५, ५-७४४२-४८). पे.१. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-७आ
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी.
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: भक्तिवन्त देवता नमता; अंतिः सेवइ लक्ष्मी तेहनइ., पे.वि. मूल-श्लो.४४. पे.-२. पे. नाम. कल्याणमंदिर सह टबार्थ, पृ. ७आ-१३आ
कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते.
कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वनाथना; अंतिः जासि प्रप० पामिसै., पे.वि. मूल-श्लो.४४. पे.-३.पे. नाम. चउसरणपयन्ना सह टबार्थ, पृ. १३आ-१८अ
चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ए चउसरणनइ विषइम; अंति: मोक्षना सुखनो देणहार., पे.वि. मूल
गा.६३. ७८११. सूयगडाङ्गसूत्र सह बालावबोध श्रुतस्कन्ध-२, प्रतिपूर्ण, वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले.- मोजी, प्र.वि. कहीं
कहीं बालावबोध नहीं लिखा है. बालावबोध टबार्थ स्वरूप में लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४११, ९४५९-६०). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विहरति त्ति बेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः (१)याङ्गस्य वार्तिकं (२)तुम्ह प्रति कहउ
छउ. ७८१२. पाक्षिकसूत्र, पूर्ण, वि. १८२५, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(४)=७, जैदेना., ले.स्थल. कुरलाय, ले.- पं. खुस्यालचन्द्र, (२६४११.५,
१४-१६x४१-४३). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. ७८१४. विक्रम चरित्र, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. धानेरा, ले.- ऋ. सिवचन्द (गुरु गणि उत्तमचन्द्र).
प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ७२६., (२६.५४१२, १६x४३-४५). विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मागु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंतिः तेहने सदा हुइ कल्याण. ७८१५. मौनएकादशी व ज्ञानपञ्चमी कथा, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., (२५.५४१२.५, १५४३६-३७).
पे.१. मौनएकादशी कथा, सं., गद्य, (पृ. १अ-३आ), आदि: अथ मार्गशीर्ष शुक्लै; अंतिः प्रसादानं माला भवतु. पे.२. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, (पृ. ४अ-८आ), आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव
मेडतानगरे., पे.वि. श्लो.१५२. ७८१८. भगवतीसूत्र सारसङ्क्षेप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. आदिवाक्य का भाग फटा होने से नही भरा
है., (२५.५४१२.५, ३०४५४).
भगवतीसूत्र-सारसक्षेप, संक्षेप, मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः बृषस्य फलान्मुनी. ७८२०. महानिसीहसूत्र सह टबार्थ ४ अध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले.स्थल. शांतलपुरनगर, ले.- मु.
हरचन्द (गुरु मु. मोहनविजय); मु. हेतविजय (गुरु मु. मोहनविजय).प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. सं. १८७२ आधोइ गांम में मुनि हेतविजयजी ने वासुपूज्यस्वामी के प्रसाद से टबार्थ लिखा., (२५४१२, ५४२७-२९).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२९३
महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
महानिशीथसूत्र-टबार्थ' , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७८२१. प्रतिक्रमणसूत्र, औषध सङ्ग्रह, सरस्वतीजाप मन्त्र सह विधि व चोरसाहुकार परीक्षा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.
२०, पे. ४, जैदेना., (२५४१२, ११-१२४२९-३१). पे..१. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, (पृ. १आ-१०अ), आदि: नमो अरिहन्ताणं; अंतिः
वन्दामि जिणे चउवीसं. पे..२. पे. नाम. सरस्वती जाप मंत्र सह विधि, पृ. १०आ-१०आ
__ सरस्वती जापमन्त्र सह विधि, सं.,मागु., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं वद वद; अंति: #. पे.३. औषध सङ्ग्रह' , मागु., गद्य, (पृ. १०आ-१०आ), आदि: #; अंति: #.
पे.-४. चोर-साहुकारपरीक्षा, सं.,मागु., गद्य, (पृ. १०आ-१०आ), आदिः ॐ नमो इन्द्राग्नि; अंतिः#. ७८२४.” रत्नसञ्चय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. ५८-३(२१ से २३)=५५, जैदेना., ले.स्थल. लूंणपूर, ले.- मु.
भाणचन्द (गुरु पं. रूपविजय),प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-गा.५१३., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. गा.१९६ से
२२१ तक नहीं हैं., प्र.ले.श्लो. (५३३) मङ्गलं लेखकानां च, (२६४१२, ५-६४३४-३८). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिन्दे; अंति: गाहा आगमे भणिया.
रत्नसंचय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः माहरो श्रीगुरु भणी; अंतिः थकी कहिइ छे. ७८२५. सम्यक्त्व स्वरूप, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-१(१)=२७, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, टिप्पण
युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं हैं., (२६.५४११, १६-२०४५५-५६).
सम्यक्त्व स्वरूप, मागु.,प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: सखेव धम्म रूई. ७८२६. भुवनदीपक सह टबार्थ व अब्दप्रकरण विधि, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. यवनपुर,
(२६४११.५, ७४४०-४३). पे.-१. अब्दप्रकरण विधि, मागु., गद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः साकोवहीनो गगनाभ्रघस; अंतिः लाभै ते उपर माण्डीजै. पे.२. पे. नाम. भुवनदीपक सह टबार्थ, पृ. १आ-१३आ
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः. भुवनदीपक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सरस्वती यो ज्ञान; अंतिः ईस्ये आचार्य कह्यो., पे.वि. मूल-श्लो.१८७.
गा.१८७. प्रतिलेखन पुष्पिका अधूरी है. ७८२७.” कर्मग्रन्थ २ से ६, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-६(१ से ५,११)=१०, पे. ५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच के
पत्र हैं., (२६४११, १३४४१-४२). पे.-१. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. -६अ-६अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं.,
पे.वि. गा.३४ मात्र अंतिम पत्र है. प्रारंभ से गाथा २५ तक नहीं है. पे..२. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः
नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२४. पे.-३. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-१२अ, अपूर्ण), आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः
देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८६ बीच का एक पत्र नहीं है. अपूर्ण गाथा ६१ से ८१ तक नहीं है. पे.-४. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १२अ-१६आ, संपूर्ण), आदि: नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः
सयगमिणं आयसरणट्ठा. पे.५. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. १६आ-१६आ-, अपूर्ण), आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं. गा.५ अपूर्ण तक हैं.
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२९४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
७८२८. दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. ८६+२(१ से २)=८८, जैदेना., ले.- किशनकरण मुथा,
प्र.वि. मूल-१०अध्ययनरचूलिका. पीठिका का पत्रक्रम अलग से दिया गया है., (२६४११.५, ४४३९-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) धर्मो० दुर्गति पडतां; अंतिः तुज प्रतै कयै छइं. ७८२९.' त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र सह टबार्थ - अष्टमपर्व, प्रतिपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. ३१०, जैदेना., ले.स्थल.
कनकावतीनगर, ले.- पं. गुणविजय (गुरु पं. खुशालविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हिस्सा -सर्ग-१२. प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. ५८००., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टबार्थादि, प्र.ले.श्लो. (३९३) यदक्षरं पदभ्रष्टं, (२५४११.५, ६x४५
४६). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा अष्टमपर्व, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो विश्वनाथाय;
अंतिः विस्मयाय त्रिलोक्यं. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा अष्टमपर्व-टबार्थ, मु. रामविजय, मागु., गद्य, वि. १८३४, आदिः प्रणम्य परया
भक्त्या; अंतिः नागचन्द्रेब्दे. ७८३४. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. ६६ वी पाट श्रीविजयजिनेन्द्रसूरि तक., (२५.५४१२, १६४३३
३६).
पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्धमान; अंतिः विजयजिनेन्द्रसूरि. ७८३६. सुक्तावली सह बालावबोध व दृष्टान्तकथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं। वर्ग
२ गा.२४ तक पाठ है., (२६.५४१२, १५४४२-४४). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलकुशलवल्लिवृन्द; अंति:सूक्तमाला-बालावबोध, मु. प्रतापविजय, मागु., गद्य, आदिः तदनुक्रम सङ्ग्रहो; अंति:
सूक्तमाला-कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७८३७. प्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., (२५४१२, ५४४६-४७).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः आणाए अणुपालियं.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तिनवार जिमणा कानथी; अंतिः आज्ञाइ पाल्यउ. ७८३८. शत्रुञ्जय रास, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पारकरनगर, ले.- मु. कल्याणविजय (गुरु पं.
मोहनविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-६, पू.वि. ढाल-६., दशा वि. विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प,
(२५४१२, १४४३८). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८२, आदिः श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंतिः सुणतां आणन्द
थाय. ७८३९. इग्यारअङ्ग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ११ स्वाध्याय, पू.वि. ११ सझाय., (२६.५४१२,
१२४३५-३६). ११ अङ्ग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७२२, आदिः आचाराङ्ग पहेलुं; अंतिः कीधो ए
सुपसाय. ७८४०. ज्योतिषसारोद्धार, लाभालाभ फल व अषाढीपूनम विचार, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. ५१, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल.
आयुषपुरनगर, ले.- गणि प्रधानहंस (गुरु गणि युक्तिहंस), प्र.वि. कर्ता द्वारा विविध ग्रन्थों से संकलित का उल्लेख मिलता है., (२६.५४१२, १५४२२-२३). पे.१. लाभालाभ फल, सं.,मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः जन्मराशिस्थितो ग्राम; अंतिः शुभशर्मफलप्रदः., पे.वि.
श्लो .३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२९५ पे.२.पे. नाम. जोतिकसारोद्धार, पृ. १आ-५१अ ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः तं नमामि जिनाधीशं; अंतिः दक्षिणे वैपरित्यं., पे.वि.
अध्याय-३. पे.-३. आषाढपूनम विचार, मागु., गद्य, (पृ. ५१आ-५१आ), आदिः आषाढी पुनम रे दिन; अंतिः चार खुण्ट सृगाल हुवै. ७८४१. आवश्यकसूत्र, शक्रस्तव व साधु प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ३, जैदेना.,
(२५४१२, ५-६x४०-४४). पे-१. पे. नाम. आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१४आ
आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः णमो अरहंताणं; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. आवश्यकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमो० नमस्कार होवउ; अंतिः वो० वोसरावू अन्यथा., पे.वि. मूल-अध्याय
६ अध्ययन. पे.२.पे. नाम. नमोत्थुणं स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १४आ-१५अ
शक्रस्तव, प्रा., पद्य, आदिः नमुत्थुणं अरिहन्ताणं; अंतिः तिविहेण वन्दामि.
शक्रस्तव-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार हो णं इति; अंतिः हो जिन अरिहन्तने. पे.३. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, पृ. १५अ-१५आ
साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः णमो अरिहन्ताणं०; अंतिः खमामि सवस्स अहियम्पि.
साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः इ० तुमारि इच्छाई स०; अंतिः सर्वने हुं पिण तुमे. ७८४२. उत्तराध्ययनसूत्र सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन-१० कुछ
अंश तक है., (२६४१२, १५४४२-४५).
उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह, पं. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:७८४३. साम्बप्रद्युम्न रास- गुणावली रास, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६-१(२३)=३५, जैदेना.,प्र.वि. अध्याय-२ खंड/५३ ढाल,
__ गा.१२००, (२५.५४१२, १४-१५४४४-४८). साम्ब प्रद्युम्न रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६५९, आदिः सकल मनोरथ पूरवै; अंति: पभणे सङ्घ
सुजस जगीसए. ७८४५. पञ्चाङ्ग विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना.,पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.१५० तक है., (२४.५४१२,
१०४३०-३४). पंचाङ्गगणित विधि, उपा. महिमोदय, मागु., पद्य, वि. १७३३, आदिः परम जोति प्रभुकुं; अंति:७८४६. चारप्रत्येकबुद्ध रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-४, ढाल-४५, (२७X१२, १९-२०४३८-४३).
४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६५, आदिः श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंतिः आणंद
लीलविलास. ७८५०." चारशरण व देवकी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ९,पे. २, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की
स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६.५४११.५, १०४३८-४०). पे-१.४ शरण, मागु., गद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः हिवै चार सरणा करवा; अंतिः छै तमै भाग इधक. पे..२. देवकी सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मागु., पद्य, (पृ. २आ-९आ), आदिः रथनेमि नामे हूवा; अंतिः साखीजी माताजी
हो जी., पे.वि. ढाल-१०. ७८५१.” कुर्मापुत्र चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. गा.१५३ अपूर्ण तक
है., (२५.५४११.५, ७४३८-४३). कुम्मापुत्त चरिअं, मु. माणिक्यविमल, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण वद्धमाणं; अंति:
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कुम्मापुत्त चरिअं-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करी; अंति:७८५२. मङ्गलकलश रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-३(१६,१८ से १९)=२३, जैदेना.. पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र
नहीं हैं., (२५४११, १७-१८४३४-३५).
मंगलकलश रास, मु. दीप्तिविजय, मागु., पद्य, आदिः प्रणमुं सरसति स्वामी; अंति:७८५३." श्राद्धदिनकृत्य, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-२(७ से ८)=८, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद
सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. गा.२१२ तक हैं., (२६.५४११.५, ११४३०-३३).
श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंतिः७८५५. अञ्जनासती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.- श्रा. वसन्त शाह, पठ.- करमचन्द, प्र.वि. गा.१६४,
(२५४११, १५-१६४५४).
अंजनासुन्दरी रास, मागु., पद्य, आदिः पहिलु कडाइ इहो; अंतिः जगत्रनी मात तो. ७८५६. भाव प्रकरण सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०. ले.सं.
संवद्रामरससंयमप्रमिते., (२५.५४११, १५४३०-३६). भाव प्रकरण, गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदिः आणंदभरियनयणो आणंद; अंतिः रम्माओ पुव्वगंथाओ. भाव प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, गणि विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः नत्वा श्रीजिनशम्भवमा; अंतिः विहितेयं
विजयविमलेन. ७८५७.' पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ११४३१
३८).
पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. ७८५८. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ५, जैदेना., प्र.वि. अन्त में आंशिक मुनिसुन्दरसूरि की परंपरा है., टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, (२६४११, ११४४५). पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंतिः भुजनगरे सूरपदं. ७८५९. स्तुतिचौवीसी, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ८-२(१,३)=६, जैदेना.,प्र.वि. २४ स्तुतिजोडा, श्लो.९६, पू.वि. श्लो.१ से
१५ तथा अपूर्ण श्लो.३० से अपूर्ण श्लो.४४ तक के पाठ नहीं हैं., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२५४११,
११४३७).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः हारतारा बलक्षेमदा. ७८६२. स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. चंदूरनगर, ले.- पं. उत्तमविजय, (२४.५४११.५,
१२४३६-३९). स्नात्रपूजा सङ्ग्रह', मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, सं.प्रा.,मागु., प+ग, आदिः (१) मुक्तालङ्कार विकार (२) प्रथम उपगरण
मेलवा; अंतिः समकित सुजस सवायो रे. ७८६३. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना.,ले.स्थल. जालोर, ले.- मु. थीरा,प्र.वि. मूल
१०अध्ययनरचूलिका. प्र.पु.-उभय-ग्रं. १३००., (२६४११.५, ५४३०-३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, (संपूर्ण), आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः भविआण
विबोहणट्ठाए.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः धर्म उत्कृष्टओ; अंति:७८६५. सम्यक्त्वसित्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.७०., संशोधित-पीला, (२६४११.५,
६४३३). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः दंसणसुद्धिपयासं; अंतिः दंसणसुद्धिं धुवं लहइ.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
सम्यक्त्वसप्ततिका टवार्थ मागु, गद्य, आदि सम्यक निर्मलाईनाइ अतिः निश्चई हुइ लहइ.
७८६६. एकादशगणधर देववन्दन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पृ. ७ जैदेना. ले. स्थल. पालनपुर ले. मु. चतुरविजय,
"
"
(२५.५x१२, १३x२९-३७).
११ गणधर देववन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः बिरुद धरी सर्वज्ञनुं; अंतिः सुन्दरी जिन कैलास... ७८६७.” वीतराग स्तव सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७९६, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ ( १ ) = ५, जैदेना., प्र. वि. मूल - श्लो. २५. पू. वि. श्लो. १ से ३
नहीं हैं., ( २६४११.५, ४४२८).
रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि सं., पद्य, आदि:-: अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये.
रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि : -; अंतिः कांइ नथी माङ्गतौ.
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७८६८. सङ्ग्रहणीसूत्र सह टबार्थ व यन्त्र, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले. स्थल. चीतल, ले. - पं. रत्नकुशल (गुरु पं. खीमाकुशल), पठ- श्रा. शिवजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ३४६. गा. २० से २४ का पुनरावर्तन होने का उल्लेख है., पू.वि. गा. ७२ तक ही टबार्थ है., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२५.५x१२, ३०५२). बृहत्सद्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी (संपूर्ण) आदि नमिउं अरिहन्ताई अंतिः जा वीरजिण तित्थे,
"
;
वृहत्सग्रहणी- टवार्थ मागु, गद्य (अपूर्ण), आदि (१) प्रणम्य पार्श्वदेव० (२) नम० करिने अरिहन्त; अंति:बृहत्सङ्ग्रहणी-यन्त्रसङ्ग्रह *, मागु, यंत्र, (संपूर्ण), आदिः #; अंति:#.
७८६९. वर्षप्रबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४१, जैदेना, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अधिकार - ६ श्लो. ९९ तक है., ( २५x११,
"
२९७
१७०४४०-५०).
वर्षप्रबोध, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, वि. १७३२, आदिः श्रीतीर्थनाथवृषभं; अंतिः
७८७०. कर्मग्रन्थ १ से ५ व श्लोकसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, पे. ६, जैदेना., (२५x१०.५, ३-४X३७-४०). पे. १. पे. नाम कर्मविपाक प्रथम कर्मग्रन्थ सह टबार्थ प्र. १आ- १५आ, संपूर्ण
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य आदि सिरिवीरजिणं वन्दिय अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य (अपूर्ण), आदिः श्रीपार्श्वदेवमानम्य; अंतिः
पे.-२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १५आ-२४अ, संपूर्ण), आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं पे.वि. गा.३५.
पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २४अ - ३१अ संपूर्ण ), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं पे.वि. गा.२५.
पे. ६. पे. नाम. जैन धर्ममाहात्म्य श्लोकसङ्ग्रह, पृ. १अ - अ, संपूर्ण
जैन श्लोक सं., पद्य, आदि: अंति, पे. वि. प्र. पु. श्लो. ६.
पे.-४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३१अ - ४७अ, संपूर्ण), आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा. ८६.
पे.-५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४७अ - ६४आ, संपूर्ण), आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा, पे.वि. गा. १००.
७८७१. जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. १७८-४५ (२ से ४६ ) = १३३, जैदेना., ले. - ऋ. वीरचन्द (गुरु ऋ. मोहनलाल), पठ. - ऋ. सुखलाल (गुरु ऋ. वीरचन्द), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. प्र. पु. १०, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (६१३) तैलाद्रक्षे जलाद्रक्षे, (२५.५०१०.५, १६४३७-४४).
जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रीऋद्धि; अंतिः नाथेभवेदत्रनशंसयः.
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७८७२. चन्दराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. १४७, जैदेना., ले. स्थल सिज्योतनगर, ले. पं. राजेन्द्रविजय (गुरु पं. फतेविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ढाल - १०८, ४ उल्लास, (२५.५x११.५, १२-१३X२९-३८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ७८७३. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ व सप्ततिशतजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.- मु. जसराज
(गुरु मु. रामजी), (२६४११, ५४४०-४१). पे.-१. पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-७अ
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी.
भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य प्रथमदेवं; अंतिः आवइ ज कुण लक्ष्मी., पे.वि. मूल-श्लो.४४. पे.२. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह., पे.वि. गा.१३.
७आ का अपूर्ण पाठ ७अ पर दिया गया है. यन्त्र सहित. ७८७८. ज्योतिषसार सह यन्त्रकोद्धार टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-१(१०)=१३, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के
पत्र नहीं हैं. श्लो.३३९ तक है., (२६४१०.५, १५४४९). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंति:
ज्योतिषसार-यन्त्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति:७८८०." नवतत्त्व प्रकरण व ४२ दोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५२, मध्यम, पृ. ६, पे. २, जैदेना.,ले.स्थल. आसोपनगर, ले.
पं. अर्जुनसागर (गुरु पं. तिलकसागर), पठ.- पं. नारायणसागर (गुरु पं. अर्जुनसागर), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ, (२६४१०.५, ४४४३). पे.-१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-६अ
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः दश प्राण धारई ते; अंतिः जाणवा इम १५ भेद., पे.वि. मूल-गा.४९. पे.२.पे. नाम. आहारना बीयालीस दोष सह टबार्थ, पृ. ६अ-६आ
गोचरी के ४२ दोष, प्रा., पद्य, आदिः आहाकमुद्देसियपुइकम्म; अंतिः वा रसहेउ दवसञ्जोगा.
गोचरी के ४२ दोष-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः गृहस्थ सचीत फेडी; अंतिः सञ्जोग एकठा करै., पे.वि. मूल-गा.६. ७८८३. वसुधारा स्तोत्र मन्त्र सहित, संपूर्ण, वि. १७५२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. गुढाख्यसन्निवेश, ले.- पं. मतिहंस (गुरु
पं. तत्त्वहंस), (२६४११, १३४३७).
वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति. ७८८४." श्रीपालनरेन्द्र कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., प्र.वि. गा.१३४१, पू.वि. गा.१३४१., दशा वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११, १५४४२-४४). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः अरिहाइ नवपयाइं; अंतिः वाइज्जन्ता कहा एसा. ७८८५. सम्बप्रद्युम्न रास, पद, व स्थुलीभद्र सज्झाय सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७२६, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल.
अंतर्पल्लीग्राम, ले.- गणि जिनविजय, (२५४११, १६-१७४५५-५८). पे.-१. साम्ब प्रद्युम्न प्रबन्ध, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६५९, (पृ. १अ-१२आ), आदिः श्रीनेमीसर
गुणनिलउ; अंतिः सङ्घ सुजस जगीस ए., पे.वि. २खंड, २२ढाल. पे.२.दीप पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ), आदिः दीया दुनी मै हैं; अंतिः हुइ दीए बिहुणी राति., पे.वि. गा.२. पे.-३. पे. नाम. थूलभद्र स्वाध्याय, पृ. १२आ-१२आ स्थूलिभद्र सज्झाय, कवि सहजसुन्दर, मागु., पद्य, आदिः आणे आङ्गण मैं पिउ; अंतिः वाट जोए चोमासै रे.,
पे.वि. गा.६. पे.४. स्थूलिभद्र कोशा सज्झाय, मु. दयाकुशल, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ), आदिः कोस्या कहैं निज कन्त; अंतिः
समकित शील रसाल रे., पे.वि. गा.५.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
२९९ ७८८९. जन्मप्रकाशिका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.२८० तक लिखा हैं.,
(२६४१०, १६x४६-५२).
जन्मप्रकाशिका, मु. कीर्तिवर्द्धन, मागु., पद्य, आदिः वन्दित सुर मानव; अंतिः७८९०. सुव्रतश्रेष्ठि कथा व मौनएकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना.,ले.स्थल. वांकानेरनगर, ले.
पं. दयाविजय गणि, (२५४१०.५, १३४३६-४२). पे.-१. मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-७आ), आदिः सिरिवीरं नमिऊण; अंतिः तह मुक्खसुक्खं.,पे.वि.
गा.१५७; प्र.पु.-ग्रं.२००. पे..२. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः अरस्य प्रवज्या; अंतिः विपदः पञ्चकमदा., पे.वि.
श्लो.१. ७८९१. कर्मग्रन्थ १ से ४, संपूर्ण, वि. १८४२, मध्यम, पृ. ११, पे. ४, जैदेना., ले.- मु. रूपविजय (गुरु मु. भावविजय),
(२५४१०.५, १३४४१-४४). पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-४अ), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ
देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६०. पे..२.पे. नाम. कर्मग्रन्थ द्वीतीय, पृ. ४अ-५आ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं.,
पे.वि. गा.३४. पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ-७अ), आदि: बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं
कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२४. पे.-४. पे. नाम. षडशीतिकाख्य चतुर्थकर्मग्रन्थ, पृ. ७अ-११आ
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८९. ७८९३. चन्दकुंवर गुणवेली, संपूर्ण, वि. १८०७, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.- ऋ. लालचन्द, पठ.- ऋ. मोतीचन्द, प्र.वि. गा.२२७,
(२५.५४११, ११४२४-२६).
चन्द्रकुमार वार्ता , कवि हंस, मागु., पद्य, आदिः सकलदेव सारद नमू; अंतिः पूरण प्रगटी जोय. ७८९४. छ आराना बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-श्लो.१५०., (२५.५४११, १०x४७-४८).
६ आरा बोल, मागु., गद्य, आदिः दस कोडाकोड सागरोपमना; अंतिः धरम करसे ते सुखी थशे. ७८९५. आत्म कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.४३., (२६४११.५, ४४१२-१३).
आत्मावबोध कुलक, आ. जयशेखरसूरि*, प्रा., पद्य, आदिः धम्मप्पहारमणिज्जे; अंतिः जिणं जयसेहरो होसि.
आत्मावबोध कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः धर्मनी प्रभा कान्ति; अंतिः मोक्ष पुहचइ सही. ७८९७. चित्रसेनपद्मावती कथा, संपूर्ण, वि. १७५८, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. भरडग्राम, पठ.- मु. गुलाबचन्द्र, प्र.वि.
श्लो.५०४, (२५.५४११.५, १५४४६-५०). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः करोत्पाठक
राजवल्लभः. ७८९८." पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- मु. हरचन्द (गुरु मु. मोहनविजय), प्र.वि. ढाल-८,
गा.९७, संशोधित, (२५४११.५, १२४३६).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः सकल सिद्धिदायक; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए. ७९००. प्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह स्तुति व स्तोत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-६(१ से ६)=७, पे. ४, जैदेना.. पू.वि.
प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६x१०.५, १५-१६x४०-४३).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे. १. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य (पृ. ७-७आ, संपूर्ण) आदि श्रीनेमिः पञ्चरूप; अतिः कुशलं धीमतां सावधाना, पे.वि. श्लो. ४.
पे. २. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ - १०आ, संपूर्ण), आदिः नमिऊण पणयसुरगण; अंतिः नासइ तस्स दूरेण., पे.वि. गा.२४.
पे.-३. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. ११अ - १३अ, संपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो. ४४.
पे. ४. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. ७-१३आ-, अपूर्ण
प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे. मू. पू. संबद्ध प्रा. सं., मागु प+ग, आदि: अंतिः पे. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.
,
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.
८x४४-५०).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि : -; अंतिः
भगवती सूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि:- अति:
७९०१. शालिभद्र रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, जैदेना. पु. वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. (२६.५०११.५, १९५२-५५) शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः७९०२. प्रकरण सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८ पं. ४ जैदेना. (२५४१०.५, १४४४४-४५).
"
.
.,
पे.-१. सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ - ३आ), आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो, पे. वि. गा. ७४.
पे. २. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-५अ), आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय., पे.वि.
गा. ४८.
पे. ३. जीवविचार प्रकरण आ. शान्तिसूरि प्रा. पद्य (पृ. ५अ- अ) आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा. ५८.
पे. ४. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र प्रा. पद्य (पृ. ७अ-८आ), आदि सावज्ज जोग विरई अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं., पे.वि. गा.६३.
७९०४. भगवतीसूत्र-तामलीतापसचरित्र सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- मु. कीर्तिराज, ( २४.५११,
"
"
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७९०५." सिद्धान्तचन्द्रिका की कृतप्रकाशिकावृत्ति प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८. जैवेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें
प्रारंभिक पत्र संशोधित (२५.५४११, १६४५१-५२)
सिद्धान्तचन्द्रिका सुबोधिनी वृत्ति, गणि सदानन्द सं. गद्य वि. १७९९, आदि:-: अंति:
"
"
७९०६. इकवीसठाणा सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८वी मध्यम पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. मुलगा. ७०., ( २५X११, ६×५०).
,
एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया .. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः च्यवनविमाननाम नगरी; अंतिः साधारण सरीखा कहीया.
७९०७. रत्नचूडसुरमञ्जरी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६- २ (१ से २ ) =७४, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.
ढाल ४८ तक हैं. (२५.५४११, ११४३५-३८).
"
रत्नचूड चौपाई,
मु. अमरसागर, मागु., पद्य, वि. १७४८, आदि:-; अंति:
७९०९. परदेशीराजा रास, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. (२४४११.५, १३-१४४३४-३५). प्रदेशीराजा रास, मु. न्यायसागर, मागु., पद्य, वि. १७३४, आदि: सकल सिद्ध सम्पद करण; अंतिः७९१०. ५६३ बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १९२८ ५६३ जीवविचार बोलसङ्ग्रह माग
"
श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना. प्र. वि. पंक्ति अक्षर अनियमित है. (२४.५५११५४). गद्य, आदि: बेन्द्री प्रजाप्तमै: अंतिः तथा भवीमे तथा चरममे.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
७९११. गौतमकुलक सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. ३३ तक हैं.. (२४.५X११, १३x४४-४७).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा: अंति:
गौतम कुलक-टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदिः नत्वा श्रीदेवगुरुन्; अंतिः७९१३. स्तुतिचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१) = ५, जैदेना., प्र. वि. त्रिस्तुतिक मान्य, पू. वि. अजितजिन स्तुति अपूर्ण अनंतजिन स्तुति तक हैं. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५×१०.५, १०x२६).
स्तुतिचतुर्विंशतिका. मु. शोभनमुनि सं., पद्य, आदि: अंति:
"
P
७९१४. सूक्तावली, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लो. २३ तक लिखा है. (२६४११,
६×३०).
"
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सूक्तावली, सं., पद्य, आदिः राज्यं निःसचिवं; अंतिः
""
७९१५. विनयदेवसूरि रास अपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९-२ ( १४ से १५ ) - १७, जैवेना. पु. वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं हैं. गा. २३४ अपूर्ण तक है. (२५.५४११, १२४२८-२९)
विनयदेवसूरि रास, ऋ. मनजी ऋषि, मागु., पद्य, वि. १६४६, आदि: सकल सिद्धि आनंदकर; अंतिः
७९१६. प्रकरण सङ्ग्रह व कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण वि. १७०७ श्रेष्ठ, पृ. २२ पे ५ जैदेना, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, ७४४८).
पे १. पे नाम बृहत्क्षेत्रसमास सह टवार्थ, पृ. १आ-१०अ संपूर्ण
बृहत्क्षेत्रसमास सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदि:
नमिऊणसजलजलहर अंतिः समयखेत्तस्स परिरओ.
बृहत्क्षेत्रसमास-सङ्क्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमीनें जलसहित मेघ; अंतिः क्षेत्रनो
परिधि, पे. वि. प्र. पु. संक्षेप-१५०.
-
पे. २. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, पृ. १०आ - १४अ, संपूर्ण
चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: सावद्य योग क० पाप; अंतिः सुख मुक्तिनां सुखनं., पे.वि. मूलगा.६३.
पे.-३. पे. नाम. सम्बोधसप्ततिका सह टबार्थ, पृ. १४अ - १८अ, संपूर्ण
सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य आदि नमिऊण तिलोअगुरु: अंतिः लहई नत्थि सन्देहो.
,
"
सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमीनइ त्रैलोक्यनु; अंतिः नथी ए वातनो सन्देह, पे. वि. मूल-गा.८०. पे.-४. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १८-२२आ, संपूर्ण
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (१) जीवाजीवापुन्नं (२) नमिऊण महावीरं; अंतिः परियटो चेव संसारो.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्व; अंतिः पुद्गल ऊपरान्त न हुइ.
पे. ५. पे नाम, कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टदार्थ पृ. २२आ-२२आ-, अपूर्ण
३०१
कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः
कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः कल्याण क० मङ्गलिक; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक हैं.
सप्ततिका कर्मग्रन्थ- बालावबोध, मागु, गद्य आदि नत्वार्हन्तमनवद्यं अंति:
7
७९१७.” कर्मग्रथ ६ का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५५११, १९-२५४४५-४९).
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३०२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७९१८." भावारिवारण स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.३०. अवचूरि टबार्थ शैली में
है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१०.५, ६४३०). महावीरजिन स्तव, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंतिः दृष्टिं दयालो मयि.
महावीरजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, (पूर्ण), आदि: भावाः क्रोधादयस्त; अंति:७९२०. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१५(१ से १५)=१२, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अंतिम पत्र,
पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५.५४१०.५, ९-१०४३१-३२).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः७९२५. एलाचीकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८०७, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पीलूचाग्राम, पठ.- गणि विजयचन्द, प्र.ले.पु.
मध्यम, प्र.वि. ढाल-१६; प्र.पु.-मूल-सर्व गा.१८७,,प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२४४११.५, १७४४३). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७१९, आदिः सकलसिद्धदायक सदा; अंतिः ज्ञान दर्शन
अजूआले. ७९२८. युगप्रधानतप विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-२(१ से २)=२४, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है. ग्रन्थ के
प्रारंभ में कोष्ठक तथा अंत में विधि दिया गया हैं., (२७४१२.५४).
युगप्रधानतप विधि, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः से भयवं केवइं कालं; अंतिः उपवासनो तप करवो. ७९२९. गच्छाचारपयन्ना सह पर्याय, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. अमदावाद, ले.- जेठालाल चुनिलाल
लहिया,प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-गा.१३७; अवचूरि-ग्रं. ५००., त्रिपाठ, (२७.५४१२, ३-५४४६). गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण महावीरं; अंतिः इच्छंता हियमप्पणो. गच्छाचार प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः आदौ शास्त्रकारः; अंतिः इति गाथार्थः.
धप्रतिक्रमणसूत्र व दशकल्पवृक्षनाम गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६२, मध्यम, प्र. २४, पे. २, जैदेना.,ले.- यति
रत्नविजय, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., (२८.५४१२४). पे.-१. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२४आ
पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः पगाम सिज्झाए निगाम; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७४९, आदिः (१) ॐ नत्वा पार्श्वनाथ (२)
प्रकासक० अतिहिं; अंतिः तीर्थङ्कर जिन प्रति. पे.-२. पे. नाम. १० कल्पवृक्ष नाम सह टबार्थ, पृ. २४आ
१० कल्पवृक्षनाम गाथा, प्रा., पद्य, आदिः ते सिमत्तङ्ग भिङ्गा; अंतिः दसविहा दन्ति. १० कल्पवृक्षनाम गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः मितगनामा भ्रङ्गनामे; अंतिः मनोवाञ्छित सुख आपे., पे.वि.
मूल-गा.२. ७९३१. अजितसेनशीलवती कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- गणि सिद्धान्तहर्ष, प्र.वि. श्लो.२२०, (३०x११.५,
१२४४६).
शीलवती कथा, सं., पद्य, आदिः जम्बू द्वीपाभिधद्वीप; अंतिः निर्मलशील योगात्. ७९३२. धन्यकथानक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.२६६, (३०x११.५, १२४४३-४४).
धन्य कथानक-दानधर्मे, मु. दयावर्द्धन-शिष्य, सं., पद्य, वि. १४६३, आदिः श्रीवीरजिनमानम्य; अंति: चक्रे धन्यनिदर्शनम्. ७९३३. सम्बप्रद्युम्न चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. ढाल-२१ गा.२३१ तक है.,
(२६.५४१०.५, १७४४८-४९).
साम्ब प्रद्युम्न प्रबन्ध, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६५९, आदिः श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंतिः७९३४. जम्बूस्वामी चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, जैदेना.. पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६.५४११,
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"
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
90x48).
जम्बूस्वामी चरित्र, सं., गद्य, आदि:-; अंति:
७९३५. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. पु. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. (पिठिका भी अपूर्ण है. ),
(२६४११, १७४५१-५५.
कल्पसूत्र - बालावबोध *, मागु. राज, गद्य, आदि: अज्ञान तिमिरान्धानां; अंति:
(+)
७९३६. बृहत्सङ्ग्रहणी सह अवचूर्णी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४-२ (४ से ५ ) = १२, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पंचपाठ,
पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. गा. २५१ तक है., ( २६.५x११, १२-१३x४०-४४). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः
बृहत्सग्रहणी- अवचूर्णी, सं. गद्य, आदि नमिऊ० आदी शास्त्रकार अंति:
".
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विविधतप विधि सङ्ग्रह, सं. मागु, गद्य, आदि: अथ पिस्तालिस आगम नो; अंतिः पुजा भणाविइ.
७९३९. राजिमती नाटक, संपूर्ण वि. २०वी
७९३७.” उपदेशमाला, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३ - १ ( ४ ) = २२, जैदेना., ले. पं. सुन्दरकुशल गणि, प्र. वि. गा. ५४४, संशोधित,
(२७११, ११४४४-४९).
उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी.
७९३८. तप विधि सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १९६५ श्रेष्ठ, पृ. १६, जैवेना. ले. मोतीचन्द, प्र. वि. अक्षर अनियमित है (२००५१२.
-
११४).
श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. अंक- ५ श्लो.९० प्र. पु. मूल ग्रं. २८५ (२७.५४१२,
३०३
१४४५५-५९).
राजिमतीसती नाटक कवि यशचन्द्र
(+)
७९४४. योगचिन्तामणी व कर्मविपाक सह
टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४३ - १(१ ) = १४२ पे २ जैदेना, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२७x१२, ६३९-४०).
पे. १. पं. नाग, योगचिंतामणी सह टवार्थ, प्र. २१-१३३आ, पूर्ण
से पच, आदिः उत्कण्ठाकलकण्ठ अंतिः शुचिधियामभिलाषभूमिः
"
योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि:-; अंतिः भ्रूणम्पतित निश्चितं.
योगचिन्तामणि- टवार्थ मागु, गद्य, आदि: अंति: ७ छोड पर्णे निश्चयसुं पे.वि. मूल- अध्याय ७. प्रथम पत्र नहीं है.
पे.-२. पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १३३ - १४३आ-, अपूर्ण
कर्मविपाक, सं., पद्य, आदि: अरुण उवाच कथं कार्यो; अंति:
कर्मविपाक- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि अरजुनजी कहै छे; अंति, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
७९४५." जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. मुलगा. ५१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
( २७१२, ४X३८-४१ ) .
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मागु, गद्य, आदि: त्रिभुवन नइ विषइ; अंतिः अथाह श्रुतसमुद्र थकी.
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७९४८. सङ्ग्रहणीसूत्र त्रैलोक्यदीपिका नाम्नी संपूर्ण वि. १८६२ मध्यम पृ. १७ जैदेना. ले. स्थल आडीसरनगर, ले. गणि मोहनविजय (गुरु गणि भावविजय) पठ. मु. हरचन्द (गुरु गणि मोहनविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ३४६. ( २६११.५, ११x४२).
-
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ७९५१. चन्दराजा रास, अपूर्ण, वि. १८५१, मध्यम, पृ. ५४-१ ( ९ ) - ५३, जैदेना. ले. मु. तेजविजय (गुरु पं. हेमविजय). पू. वि.
,
"
बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल ९ वी अपूर्ण तक हैं. (२६११.५, १४-१५X३८-४४).
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३०४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंति:७९५२. सिद्धहेमशब्दानुशासन की स्वोपज्ञवृत्ति (चन्द्रअभिधान), अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४९-१२९(१ से १२९)=२०,
जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६४११, १५४४६-५०). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि:-;
अंति:
७९५३." धातुरत्नाकर सह क्रीयाकल्पलता स्वोपज्ञटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११, १८४५७). धातुरत्नाकर, उपा. साधुसुन्दर, सं., पद्य, वि. १६८०, आदिः श्रीदं स्तात् परमं; अंति:
क्रियाकल्पलता-स्वोपज्ञ टीका, उपा. साधुसुन्दर, सं., गद्य, वि. १६८०, आदिः श्रीमान् स श्रीसुमति; अंति:७९५४." प्रवचनसारोद्धार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२०, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१६१३ अपूर्ण तक हैं., (२६.५४११, ६४४९-५८). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिऊण जुगाइजिणं; अंति:
प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ युगादि; अंति:७९५७. भुवनदीपक - ग्रहभाव प्रकाश, संपूर्ण, वि. १७११, मध्यम, पृ. १३, पे. २, जैदेना., पठ.- पं. देवा, (२४४१०.५, ११
१२४२३-२९). पे.-१. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, (पृ. १अ-१३आ), आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः
श्रीपद्मप्रभसूरिभिः., पे.वि. श्लो.१६५.
पे:२. वाहन विचार, सं.,मागु., प+ग, (पृ. १३आ-१३आ), आदिः गर्दभोअश्वहस्ती; अंतिः नारद उचते हरि. ७९६१. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२-१७(१ से ९,१३ से १७,१९ से २१)=५, जैदेना.. पू.वि. बीच-बीच के
पत्र हैं., (२६४११, १३-१५४३९-४३).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि:-; अंति:७९६२." प्रकरणचतुष्क सह टबार्थ व आयुप्रमाण, संपूर्ण, वि. १७०४, श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. कालधरी(कालन्द्र,
ले.- गणि अमिरूचि (गुरु पं. हितरूचि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत-टबार्थादि, टिप्पण
युक्त विशेष पाठ, (२४.५४१०.५, ४४४१-४३). पे.-१. पे. नाम. प्रकरण चार सह टबार्थ, पृ. १आ-८आ
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, पं. हितरूचि, मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः कालआश्रीअनन्तगुणाछई.,
पे.वि. मूल-गा.५४. प्रतिले.वर्ष-१७०३. स्थल-खीमेल. पे..२. पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. ९अ-१३आ
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, पं. हितरूचि, मागु., गद्य, आदिः भुवन प्रदीपं क० चउद०; अंतिः सिद्धान्त उद्धरीउ.,
पे.वि. मूल-गा.५१. प्रतिले. स्थल-छेचलीनगर. पे.-३.पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १४अ-२०आ
दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, पं. हितरूचि, मागु., गद्य, आदिः देविं प्रणम्यवामेयां; अंतिः विचारसत्तरी लिखी., पे.वि.
मूल-गा.४४. पे.४. विविध जीवों के आयुप्रमाण, मागु., गद्य, (पृ. २०आ-२०आ), आदिः मनुक्ष १२० वर्ष; अंतिः मास ३ कंसारी वर्ष ३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३०५ ७९६३." भक्तामर स्तोत्र सह सुखबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १७०७, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. राबडीय्याक, ले.- ऋ.
जयमल,प्र.वि. मुल-श्लो.४४. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न,
(२६.५४११). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी.
भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः युग्मं किल इति सत्ये; अंतिः विचित्रपुष्पाम्. ७९६४. क्षेत्रसमास- विचार, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१२५ तक हैं., दशा वि.
अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६x१०.५, १३४४३).
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः७९६६. नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. बम्बई, ले.- मु. मोतीसागर(सागरगच्छ), प्र.ले.पु.
मध्यम, प्र.वि. अध्याय-८ स्मरण, पू.वि. मात्र कल्याणमंदिर स्तोत्र नही है., (२५.५४११, १३४३३-३६).
नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं हवइ; अंतिः जैनं जयति शासनम्. ७९६७. पट्टावली व जिनउदयसूरि स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, पे. २, जैदेना., (२५.५४१०.५, १४
१५४३८). पे.-१. पट्टावली*, मागु., गद्य, (पृ. -२अ-१२आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः श्रीजिनसुन्दरसूरि., पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे.२. जिनउदयसूरि स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १२आ, संपूर्ण), आदिः ये ज्ञानामृत सार; अंतिः भव्या भातारकाः., पे.वि.
गा.१. ७९६९. सिन्दूर प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., पठ.- ऋ. नन्दलाल, प्र.वि. मूल-श्लो.१००.,
(२६४१०.५, १३४३४-४०). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्.
सिन्दूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंतिः व्यरचिता कृता. ७९७०. योगचिन्तामणी सह बालावबोध- वैद्यकसार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२-५१(१ से ४३,७४ से ८१)=३१,
जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र है., (२६४११, १५४४०-४२). योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि:-; अंति:
योगचिन्तामणिसार सङ्ग्रह-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:७९७१. सूयगडाङ्गसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., पठ.- श्राविका पलाहीबाई,प्र.वि. प्र.पु.
__ मूल अंश-१६ अध्ययन., (२६४११, ११४३०-३५).
सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति:७९७२. वसुधारा विधि सहित, संपूर्ण, वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. वलणग्राम, ले.- पं. वल्लभसागर, (२६४११,
१३४३४).
वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः वृद्धयः सम्पद्यते. ७९७४. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १७६६, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, ले.- मु. विद्याविमल
(गुरु वा. ज्ञाननिधान), पठ.- मु. महिमासुख (गुरु मु. विद्याविमल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.४४; प्र.पु.-सर्व-ग्रं.
३१०.प्र.पु.-बालावबोध-२७ कथा.. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., (२६४११.५४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भक्त कहतां सेवा सहित; अंतिः अवसा आपरइ वसइ पामइ.
भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः विषइ सावधान हुंओ. ७९७५." सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ-प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४७-१६(१२,१८ से ३१,३७)=३१,
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३०६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच बीच के पत्र नहीं है. पूर्णता १६
अध्याय., (२५.५४११, ६x४५-४९). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति:
सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीआचाराङ्ग छकाय; अंति:७९७६. सामुद्रिकशास्त्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना.,ले.- सुन्दरदास वैष्णव, पठ.- विष्णुस्वामी,
(२५.५४११.५, ५४३५-३६). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदिः आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंतिः वृद्धिं भवेद्यत.
सामुद्रिकशास्त्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आदि देव नमस्कार; अंतिः स्त्री शुभनी करणहारी. ७९७७." औपदेशिक, धार्मिक दृष्टान्तश्लो, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११,
१७४५७).
औपदेशिक, धार्मिक दृष्टान्तश्लोक सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः विशेषैवेस्त्र भो; अंतिः७९७८." नन्दीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, पू.वि. अंत के
___ पत्र नहीं हैं. प्रति.ले. द्वारा गाथा क्रमांक ४४ तक लीखा हैं. बाद में नहीं लीखा हैं., (२६.५४११, १५-१६x४८-४९).
नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः७९८१. ज्योतिष सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना.. पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.३०६ तक हैं., (२६.५४११,
४४३८). कृष्ण रुक्मणी वेलि, राजा पृथ्वीराज राठोड, मागु., पद्य, वि. १६३७, आदिः परमेसर प्रणमि; अंति:
कृष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, मु. शिवनिधान, मागु., गद्य, वि. १६३८, आदिः पहिलं परमेश्वरने; अंति:७९८३. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, १३४४३-४६).
पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः (१) तित्थङ्करे य तित्थे (२) अन्नाणमोह दलणी जणणी; अंतिः७९८६. मानतुङ्गमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-४(१ से ४)=१८, जैदेना.. पू.वि. बीच के पत्र हैं. ढाल-५ से
ढाल-२१ गा.१० तक हैं., (२५४११, १२-१३४२८-३२).
मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदि:-; अंतिः७९८७. गुणठाणा द्वार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.,पू.वि. अन्त के पत्र नहीं है. १९ द्वार तक है., (२५.५४११.५,
१४४३५-४१).
१४ गुणठाणा २५ द्वार, मागु., गद्य, आदिः नाम लक्ष्यणगुण ठिईं; अंति:७९८८. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २९, जैदेना., प्र.वि. पत्रांक की जगह से कई पत्र टुट जाने से पत्र संख्या पेज
गिनकर दी गयी है. फुल्लिकाओ में सोने का वरख लगाया गया है.,पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६.५४११.५, ७X२२
२३).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:७९९३. वसुधरा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८२८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५.५४११.५, १३४३४).
वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैनस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति. ७९९८. ऋषिमण्डल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. श्लो.९६, (२५४११.५, १०४३०).
ऋषिमण्डल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः आद्यन्ताक्षरसंलक्ष्य; अंतिः लभ्यते पदमव्ययम्. ८०००. ऋषिमण्डल स्तोत्र सह टबार्थ/ऋषिमण्डलदेवीधूप विधिआदि, अपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. ११-२(१ से २)=९, पे. ४,
जैदेना., ले.स्थल. पुफावती नगरे, ले.- मु. ऋषभदास (गुरु मु. प्रेमचन्द),प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४१२, ४४३२-३४). पे.१.पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ३अ-११अ, संपूर्ण
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३०७ ऋषिमण्डल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः आद्यन्ताक्षरसंलक्ष्य; अंतिः परमानन्दसम्पदाम्. ऋषिमण्डल स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आदिको अक्षर अन्तको; अंतिः पामे निहचे करी जाणजउ.,पे.वि.
मूल-श्लो.८१. पे..२. ऋषिमण्डलदेवीधूप विधि, संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. ११अ-११अ, संपूर्ण), आदिः कमल काकडी २१ दाडिम; अंतिः ___ मिश्रीलवङ्ग ऐलची घृत. पे.-३. मूलमन्त्र-गरूडमन्त्रे, मागु., गद्य, (पृ. ११अ-११अ, संपूर्ण), आदिः प्रणवादि नमोन्तं च; अंतिः प्रकिर्तितः.
पे.४. शुभाशुभफल विचार, मागु., गद्य, (पृ. ११अ-११अ, संपूर्ण), आदिः मन्त्र अक्षर आपरा; अंतिः सत्रु भावन गुणीजै. ८००३. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २१०-५५(१ से ५५)=१५५, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१० वर्ग,
(२६.५४११.५, ११४३१-३४).
ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ. ८००४. गुणकरण्डकगुणावली रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. ढाल-२६; प्र.पु.-मूल-ढाल-२७,
सर्वगा.१०००,, (२७.५४१२, १३४३८-३९). गुणकरण्डकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७५१, आदिः श्रीअरिहन्त अनन्त; अंतिः दिन दिन
आणन्द. ८००६." दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले.- मु. रायचन्द (गुरु मु. रतनजी), प्र.ले.पु.
मध्यम,प्र.वि. मूल-अध्याय-१०अध्ययन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४१२, ६x४२-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि.
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) धर्मो० दुर्गति पडतां; अंतिः तुज प्रतै कदै छई ८००७. आवश्यकसूत्र की पीठिका सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१(२२)=२२, जैदेना.,प्र.वि. हिस्सा-गा.८१.,
(२७४११, १५४४७-५३). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा पीठिका, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंतिः अणुओग
पईव दिट्ठन्तो. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा पीठिका का बालावबोध, गणि संवेगदेव, मागु., गद्य, वि. १५१५, आदिः
श्रीवर्द्धमानजिननायक; अंतिः इस्यूं जाणिवउ. ८००८. चतुर्विंशतिजिन स्तुति सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६-८(१ से ४,८ से ९,१४ से १५)=८, जैदेना., पू.वि.
बीच-बीच के पत्र हैं., (२७४११, १७-१८४६८-७१). चतुर्विंशतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि:-; अंति:
२४ जिन स्तुति, सं., गद्य, आदि:-; अंति:८०१२. चौदगुणस्थानक विचार, संपूर्ण, वि. १७३०, जीर्ण, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. योधपूरनगर, ले.- पं. माणिकहर्ष,
(२६.५४११, १७४६०-६१).
१४ गुणठाणा विचार, मागु., गद्य, आदिः श्रीसर्वज्ञं जिनं; अंतिः सिद्धांत हुंती जाणवउ. ८०१६. रामविनोद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६-७६(१ से ७५,७७)=२०, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५४१२, १५४३५-३८).
रामविनोद, पं. रामचन्द्र गणि, मागु., पद्य, वि. १७२०, आदि:-; अंति:८०१७. भगवतीसूत्र-जयन्तीआलापक सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९२६, जीर्ण, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, (२५.५४१२,
७४२८). भगवतीसूत्र-आलापक सङ्ग्रह*, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
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३०८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भगवतीसूत्र-आलापक सङ्ग्रह-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८०१८. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.- पुनमचन्द, (२७४१२.५, १२४३४-३९).
पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. ८०२०. सतसंवत्छर फल, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले.स्थल. रोहिठग्रामे, ले.- ऋ. हर्षचन्द (गुरु मु. नन्दराम),
प्र.ले.पु. मध्यम, (२६.५४१२, १६४३६-३८).
सतसंवत्छर फल, मागु.,सं., गद्य, आदिः प्रणपत्य जिनं वीरं; अंतिः कष्टं सम्भवन्ति. ८०२३. गौडीपार्श्वजिन छन्द, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,ले.स्थल. अजमेर, ले.- ऋ. सदाराम्म, प्र.वि. गा.११२,
(२७४१२.५, १६x४०). पार्श्वजिन छन्द-गोडी, मु. रूप, मागु., पद्य, आदिः त्रिभुवन मझतत सारं; अंतिः धर जयवन्त गवडीधणी. ८०२७. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६३, मध्यम, पृ. ३७, जैदेना., ले.स्थल. पालिताणा, ले.- मु. गुमानविजय (गुरु पं. रत्नविजय,
तपागच्छ), (२८.५४१२, ५४२६).
पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः यवाणी एमब्भखमियव्वं. ८०३१. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९१३, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., ले.स्थल. जालणाकालसकर, ले.- पं. हर्षहेम (गुरु पं. जयरत्न),
प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. ९-व्याख्यान, ग्रं. १२६४, (२६४१२.५, ११४२८-३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१) तेणं कालेणं० समणे (२) णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ
त्ति बेमि. ८०३२. वीसस्थानकतप, नवपद, ज्ञानपञ्चमीदेववन्दन विधिआदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. ५८, पे. ४, जैदेना.,
ले.स्थल. वणारस, ले.- लुणकरण वीरवाडी, (२६.५४१३, ११४३६-५१). पे.१.२० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, प्राहिं., प+ग, (पृ. १आ-४०आ), आदिः (१) अथ वीस स्थानक तप
(२) श्रीमदर्हन्तमानम्य; अंतिः सुख अनन्तसुख अनुभवै. पे.२. नवपदआराधना विधि, मागु.,सं., गद्य, (पृ. ४०आ-५४अ), आदिः प्रथम आशु शुदि सातम; अंतिः निधि प्रगटे
चेतनरूप. पे.-३. ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन विधि, मागु., गद्य, (पृ. ५४अ-५५आ), आदिः तिहां प्रथम पवित्र; अंतिः व्याख्यान सुणीजै.
पे.४. सिद्धचक्रयन्त्र पूजनविधि, सं.,मागु., पद्य, (पृ. ५५आ-५८अ), आदिः ॐ ह्रीं अर्हन्ट्य ; अंतिः कार्याणि साधयेत्. ८०३३. रत्नपाल चौपाई १ से ३ खण्ड, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, (२७४१३, १४-१५४४०
४६).
रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः सकल श्रेणि में; अंति:८०३५. देवधर्मपरीक्षा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२८x१३,
१५४४३).
देवधर्मपरीक्षा, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदिः ऐन्द्र वृन्दनतं नत्व; अंतिः श्लोकानां तु चतुःशती. ८०३७. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, पूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(३)-५, जैदेना., (२७.५४१३.५, १३४४३).
श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः (१) नाणंमि दंसणंमि० (२) विशेषतः श्रावक
तणआइ; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. ८०३९. सुयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ- द्वितीयश्रुतस्कन्ध, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ,पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. (२६.५४१३, ६x४७). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-: अंतिः
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३०९
८०४६. दानशीलतपभावना संवाद रास, संपूर्ण, वि. १९३५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. वीजापुरनगर, ले.- श्रा. माहासुख
रवचन्द दोसी, प्र.वि. ढाल-५, (२८x१३, १२४३४). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदिः प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः समृद्धि
सुप्रसादो रे. ८०४८. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९-३(१ से ३)+१(३४)=३७, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं
है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मूल गा.४९ तक तथा बालावबोध-गा.४८ तक लिखा हैं., (२६४१२.५, १३४३०-३३). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:
गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८०४९. चित्रसेनपद्मावतीकथा सह टबार्थ व खामणा, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, पे. २, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., (२५४१२, ७४३७-३८). पे.-१. क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः (१) इच्छामि खमासमणो (२) पियं च मे जम्मे; अंतिः
नित्थारगपारगाहोह., पे.वि. सूत्र-४ आलावा. पे.२. पे. नाम. चित्रसेनपद्मावती कथा सह टबार्थ, पृ. १आ-४४आ-, पूर्ण
चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति:चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आदिजिनपति जे; अंतिः-,पे.वि. गा.५०७ तक हैं. अंतिम पत्र
नहीं है. ८०५०." श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं. खण्ड-३ ढाल-४
गा.१५३ तक हैं., (२५४१२.५, १०-११४२०-२१). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी;
अंति:८०५१. प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रश्न-६२ तक है., (२६.५४१२, १३४२७
३३).
प्रश्नोत्तर*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८०५२. चन्द्रदूत काव्य सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.२३., (२६.५४१२, १५४३६-३७).
चन्द्रदूत काव्य, कवि जम्बू, सं., पद्य, आदिः यदतिसितशराग्रग्रस्त; अंतिः ध्वन्य वध्वा.
चन्द्रदूत काव्य-वृत्ति, सं., गद्य, आदिः जम्बू नाग कविश्च; अंतिः (१)वचनैः शेषं पूर्ववत् (२)निर्वान्तु देहिनः. ८०५४. प्रायश्चितसाध्योपनिषद्, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-१०(९,१७ से १८,२०,२९ से ३०,३६,३८ से ३९,४१)=३२,
जैदेना.,पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. अध्याय-१३ अपूर्ण तक है., (२७४१२.५, १२४३८-३९).
प्रायश्चितसाध्योपनिषद- निगमशास्त्र, सं., गद्य, आदिः एवं भगवदभिनन्दन देवा; अंतिः८०५५. धम्मिलञ्चरित्र, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९९-२(३० से ३१)=९७, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.३४९१+१२; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ३५०४,
(२७.५४१२, १४४४२-४६).
धम्मिलकुमार चरित्र, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४६२, आदिः बोधिबीजं सतां; अंतिः मुनीन्द्रैश्चिरं. ८०५७. हरिबल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७५-२(१,६९)=७३, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.
उल्लास-४ ढाल-१० गा.२ तक हैं., (२७.५४१३, १५४३३-३५).
हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १८१०, आदि:-; अंति:८०५८. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८०-६४(१ से ५८,७५ से ७९,६४)=१६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
(२८x१२.५, ५४३२-३६).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रीपाल चरित्र, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:८०५९. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३-१३(२३ से ३५)=३०, जैदेना., पू.वि. बीच व अन्त के पत्र नहीं है. गा.
८४९ तक है., (२८x१२.५, १३४३३-३५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी;
अंति:८०६०. मदनकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-५(१ से ५)=१४, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि.
बीच के पत्र हैं. ढाल-८ दूहा- २ से ढाल-२८ गा.१ का प्रारंभ मात्र तक हैं., (२७.५४१३, १६-१७४४७-४९).
मदनसेन चौपाई, ऋ. सांवतराम, मागु., पद्य, वि. १८९८, आदि:-; अंतिः८०६२. वाग्भट्टालङ्कार व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. स्थंभतीर्थ, ले.- पं.
राजेन्द्र, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१२, १५-१६४५०-५२). पे.-१. वाग्भटालङ्कार, जैनकवि वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, (पृ. १अ-७अ), आदिः श्रियं दिशतु वो देवः; अंतिः
सारस्वताध्यायिनः.,पे.वि. ५परिच्छेद पत्रांक ७आ पर लिखित मूल श्लोक प्रतिलेखक की भूल से लिखा गया है. पे..२. पे. नाम. श्लोक सङ्ग्रह, पृ. ७अ-७आ
अजैन सुभाषित *, सं., पद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-मूल श्लो.५. पे.३. पे. नाम. सुभाषित सङ्ग्रह, पृ. ७आ-७आ
जैन सुभाषित *, सं., पद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-मूल श्लो.५. ८०६३. बारभावना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२७४१२.५, ११४४३).
१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर
मझार ८०६४. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- पं. मोतीसागर, (२८x१२.५, १२४३४).
श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः (१) नाणंमि दंसणंमि० (२) विशेषतः श्रावक
तणआइ; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. ८०६५. पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७०., (२७.५४१२.५, ६x४१).
पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं.
पर्यन्ताराधना-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अढारदोष रहित देवनइं; अंतिः शाश्वता सुख प्रतइं. ८०६६. होलिराजपर्वकथा, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपूर, ले.- पं. लब्धिविजय (गुरु गणि
नायकविजय), पठ.- आ. मोतिविजय (गुरु पं. लब्धिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.५१, (२७.५४१२.५, ५४२६
२७).
होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदिः वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंतिः विज्ञानायाञ्चनोचितः. ८०६७. जिनप्रतिमासिद्धि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-४(१ से ४)=६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र है।, (२७४१३, १४४५२).
जिनप्रतिमापूजासिद्धि , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८०६८. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-८(१ से ८)=११, जैदेना.,पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२७.५४१२.५, १०४३३
३५).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:८०६९. सिद्धपाहुड सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रेष्ठ, पृ. २२+१(२०)=२३, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.११८., त्रिपाठ, (२७.५४१३,
१-४४४५-४८). सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदिः तिहुयणपणए तिहुयण; अंतिः सुयाणुसारेण णायव्वं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक-टीका, सं., गद्य, आदिः सकलभुवनेशभूतान्निखिल; अंतिः टीकाकृ० चिरन्तनैः.
८०७०. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. श्लो. १८४, (२७.५X१३, ११४३७-३८).
.
पाशाकेवली. ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती अंतिः कुलीनाय हितात्मने.
"
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"
८०७१.' नवतत्त्व व दण्डक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९१९, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.- मु. नरेन्द्रविजय, प्र. वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें (२८४१३.५, १४४३८).
पे. १. नवतत्त्व प्रकरण आ. मणिरत्नसूरि प्रा. पद्य (प्र. १अ ३अ) आदि जीवाजीवापुनं पावा; अंतिः लिहिओ
,
1
मणिरयणसूरिहिं., पे.वि. गा. ५६.
पे. २. दण्डक प्रकरण. मु. गजसार, प्रा. पद्य, (पृ. ३अ-५अ) आदि नमिठं चउवीस अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ पे.वि. गा. ४४.
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(+)
"
-
८०७२. दीपावलीकल्प सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८९९ श्रेष्ठ, पृ. ४९-३१(१ से २८,३५ से ३७ ) - १८, जैदेना. ले. स्थल. हरीचंद्रपुरी, ले. मु. विद्याविजय (गुरु गणि भीमविजय, तपागच्छ), लिखवा गच्छाधिपति विजयप्रभसूरि ( तपागच्छ ). प्र.ले.पु. विस्तृत प्र. वि. मूल श्लो ४३६ युक्त विशेष पाठ, (२९x१३.५, ६-१८४३६-४२).
गणि भाग्यविजय (तपागच्छ), गच्छा.बार्थ ग्रं. १२०० संशोधित टिप्पण
-
·
दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि सं., पद्य वि. १४८३ आदि अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, गणि सुखसागर, मागु., गद्य, वि. १७६३, आदि:-; अंति: (१) सम्यक्तोदो भवतु (२) तिहां लगे ए
प्रतपो.
(+)
८०७५. पदार्थसङ्ग्रह (विचार), अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-१८ (१ से १८ ) = २०, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं..,
(२५.५०१२. १४४४५-४९),
पदार्थ सङ्ग्रह, प्रा. मागु, गद्य, आदि:-: अंति:
८०७६. विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४५-२३(१ से २३ ) - २२, जैवेना. पु.वि. बीच के पत्र है. (२६.५४१३. १०५२७-३५).
,
जिनदाढादि विचारसङ्ग्रह, सं. प्रा. मागु, गद्य, आदि:- अंति:
८०७७. सुभाषित सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२८x१२.५, १०x४८-४९). सुभाषित सङ्ग्रह सं., प्रा. मागु, प+ग, आदिः चत्वारोनरकद्वारा अंति:
८०८५. भक्तामरस्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२-३ (२ से ३ ११ ) - ९, जैवेना. प्र. वि. मूल- श्लो. ४४.,
( २८x१३, ११-१२x२८-४१).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि: अंतिः समुपैति लक्ष्मी.
भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रथम जीनेश्वरना; अंतिः वडे करीने रङ्गी छे.
"
.
३११
८०८७." प्रमाणसुन्दर प्रकरण, अपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, पू. वि. अंत के
१५, जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पदच्छेद पत्र नहीं हैं. खंड-४ अपूर्ण तक है. (२९.५४१३, १६-१७०४७-५१). प्रमाणसुन्दर प्रकरण, भु. पद्मसुन्दर, सं. गद्य वि. १७३२, आदि: स्यात्कारमुद्रितानेक अंति:
"
८०८८. मुहूर्त्तमुक्तावली सह टबार्थ व ज्योतिष श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., ले.- मादोदास
व्यास, (३०.५४१३, ६४४१-४५).
पे. १. पे नाम. मुहूर्त मुक्तावली सह टवार्थ, पृ. १आ-८अ
मुहूर्तमुक्तावली. आ. परमहंस परिव्राजक सं., पद्य, आदि: श्रीशं श्रीहरशारदां: अंतिः पादपलितौषधिरोपणं च.
मुहूर्त्तमुक्तावली-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वनाथ; अंतिः औषधीरोपणं रोपवुं., पे. वि. मूल- श्लो. ४६.
पे. २. ज्योतिष सं. मागु पद्य (पृ. ८अ (अ) आदि में अंति, पे. वि. प्र.पु. - श्लो. १.
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३१२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८०९२. जोतसचक्र, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., (३०.५४१३.५, १३४४३-५३).
ज्योतिषचक्र विचार, मागु., गद्य, आदिः जम्बुद्विपपन्नति; अंतिः एवं क्षत्रनो विचार. ८११६. नवतत्त्व स्तुति व २९ द्वार, अपूर्ण, वि. १९६०, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(५,११)=१०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पेथापुर, ले.
जेसङ्गलाल चुनिलाल, (२७४१२.५, १२४३४-३५). पे..१. नवतत्त्व स्तुति, पण्डित मानविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः जीवा रे जीवा पुन्य; अंति: गुण चित
धरज्योजी., पे.वि. गा.४. पे..२.पे. नाम, दण्डकनामा ओगणत्रिसद्वार, पृ. १आ-१२आ, अपूर्ण २९ द्वार २४ दण्डक नाम, मागु., गद्य, आदिः प्रथम नामद्वार बीजू; अंतिः जीव अनन्तगुणा अधिका.,पे.वि. ग्रं.२८०
बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. ८१२०. मोतीशाह ढालीया, अपूर्ण, वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(२ से ३)=६, जैदेना., ले.स्थल. मुमाइबंदर, ले.- उमेदराम,
लिखवा.- श्रा. वीरचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-७, (२७४१२, ९४३०). शत्रुजयतीर्थोपरि मोतीशाटूक इतिहास, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, आदिः उठी प्रभाते प्रभु; अंतिः कहे विरविजय
महाराज. ८१२४. षडावश्यकसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७०-१३(१ से ६,८,३६ से ३८,५७ से ५९)=५७, जैदेना., पू.वि.
बीच-बीच के पत्र हैं., (२६.५४११.५, १६x४०-४६). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
षडावश्यकसूत्र-वृत्ति, सं., गद्य, आदि:-; अंति:८१२६. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लो.२४१ तक हैं., (२६४११,
११४२८-३०).
ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः८१२७. जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मूल गा.४२ तक, प्रतिले.
द्वारा टबार्थ गा. १० तक ही लिखा है., (२४४११.५, ५४२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति:
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवननइ विषइ दीवा; अंति:८१२९. श्रीमन्धरजिन स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-४(१ से ४)=८, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा.१५
से गा.५४ तक हैं., (२६४१२.५, ४४२७-२८). सीमन्धरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:
सीमन्धरजिनविनती स्तवन १२५ गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः८१३०. मानतुङ्गमानवती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५-५(१ से ४,९)=२०, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.
ढाल-५ गा.७ से ढाल-३३ गा.२ तक हैं., (२४.५४११.५, १६४३८-४२).
मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदि:-; अंति:८१३१.” सङ्ग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(३)=१५, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति
संकेत-प्रारंभिक पत्र, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. गा.२९१ तक
हैं., (२५४१२, ९-११४३४-३८).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंति:८१३३. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८-५१(१ से ५१)=७, जैदेना.. पू.वि. बीच के पत्र हैं.
अध्ययन-६ गा.२४ से अध्ययन-७ गा.१ तक हैं. तथा टबार्थ गाथा -२४-२५ तक ही प्रतिले. द्वारा लीखा हैं., (२६४१२,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३१३
४४३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि:-; अंति:
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८१३४." सुभाषितश्लोकसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-२६(१ से २४,२९ से ३०)=५, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५.५४११.५, १८४४७).
सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदि:-; अंति:८१३५.” कर्मग्रन्थ १ से ६, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२-२(१ से २)=३०, पे. ६, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें,
(२६४१२, ९४३८-४०). पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. -३अ-५आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः लिहिओ
देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६०. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.२१ अपूर्ण से हैं. पे.२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ-८आ, संपूर्ण), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः
वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. पे..३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-११आ, संपूर्ण), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः
नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५. पे.४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ११आ-१८अ, संपूर्ण), आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः
देविन्दसूरीहिं.,पे.वि. गा.८६. पे.५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १८अ-२६अ, संपूर्ण), आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः
सयगमिणं आयसरणट्ठा., पे.वि. गा.१००. पे.-६. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. २६अ-३२अ, संपूर्ण), आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ.,
पे.वि. गा.९३. ८१३६.” कर्मग्रन्थ-५ शतक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१५(१ से १५)=८, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच के पत्र हैं.
अंतमें गाथा ९७ तक हैं., (२६४१२, ११४२८-३१).
शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पूर्ण), आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंति:८१३७.” सत्तरीसयठाणा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-४(१ से ४)=२०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६४११.५, ५४३१). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि:-; अंति:
सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८१३८. महावीरजिन दीपालिका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०२, श्रेष्ठ, प्र. १२, जैदेना.,ले.स्थल. पाटणनगर, ले.- ओझा
नारायणजी, पठ.- मु. मयाविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-१०, गा.१२३, संशोधित, (२६.५४११, १५४४८-४९). महावीरजिन निर्वाण महिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मागु., पद्य, आदिः श्रीश्रमणसङ्घ तिलको०; अंतिः
श्रीगुणहर्ष वधामणे. ८१३९. नवस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है.. पू.वि. मूल
अजितशांति गा.११ तक, औह टबार्थ नमिऊण की गाथा २२ तक प्रतिले. द्वारा लीखा हैं. अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२५.५४१२४). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंति:
नवस्मरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः परमेष्टि क्रमकमलं; अंति:८१४०." नवतत्त्व का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना.,पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी
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३१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची से-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११, १६४३७).
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति:८१४१." पोषदशमी कथा, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, प्र. ५, जैदेना., ले.- गणि कान्तिविजय, प्र.वि. संशोधित, (२६४१२,
१२४३६).
पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंतिः इदं सम्बन्धं रचनीयम्. ८१४२. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-१(१)=२५, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा.१४ से
५८४ तक हैं.. (२५४१२, १४४३४-३५).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, (संपूर्ण), आदि: #; अंतिः#. ८१४३." श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१)=१७, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र है. खंड-१ ढाल-१ गा.३ से
खंड-२ ढाल-३ गा.११ तक हैं., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४१२.५, १६x२५-२६).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंति:८१४४. शत्रुञ्जय रास, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. ढाल-६, पू.वि. अन्तिम पत्र नहीं है. रचना प्र. का आंशिक
भाग मात्र नहीं हैं., (२६४१२, ९४३१-३३). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८२, आदिः श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंतिः सुणतां आणन्द
थाय. ८१४५. मेरतेरस कथा- व्याख्या प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. बीजापुर, ले.- पं. भक्तिविजय,
(२५.५४१२, १५४४३).
मेरुत्रयोदशी कथा, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य भारती; अंतिः यस्यमुक्तिसाधनकृतः. ८१४६. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. १५८+२(४२,७६)=१६०, जैदेना., ले.स्थल. आणंदपुर,
ले.- पं. उमेदसागर (गुरु पं. विशेषसागर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-गा.१२५०; बालावबोध-ग्रं. ७००० उभय.,
प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२६४१२, १६-१७४३४-३७). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति.
प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: जाइं अनन्तसुख पामे. ८१४७. नवस्मरण व लघुशान्ति, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, पे. २, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..
(२६.५४११.५, ९-१०x२०-२३). पे.-१. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, (पृ. १अ-२३आ, प्रतिपूर्ण), आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः
जैनं जयति शासनम्., पे.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं हैं. पे.२. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. २३आ-, अपूर्ण), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः-, पे.वि. गा.५ तक हैं.
अंत के पत्र नहीं हैं. ८१४९. नवतत्त्व सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पू.वि. गा.३३ तक हैं. अंत के पत्र
नहीं हैं., (२६४१२, १४४४०-४४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति:
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः पहिलउं जीव तत्त्व; अंति:८१५०.” साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं
पुस्तकं दृष्ट्वा , (२५४१२, ८x२७).
साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः वन्दामिजिणे चउवीसं. ८१५१. बासठमार्गणायन्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
हैं., (२५.५५११.५४).
बासठमार्गणायन्त्र, सं.,मागु., कोष्टक, आदि:-; अंतिः
८१५३. सुभाषितसङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९. जैदेना. पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. (२४.५११५, ८४३६
".
,
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३७).
महाभारत तत्त्वसार, संक्षेप, सं., पद्य, आदि: श्रूयतां धर्म सर्व अंतिः
महाभारत तत्त्वसार-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: साम्भलो धर्मनुं तत्व; अंतिः
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"
J
"
८१५७. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०-४ (५ से ८) -६, जैदेना. प्र. वि. संशोधित, द्विपाठ, पदच्छेद
सूचक लकीरें, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६.५x११.५, १३x४२).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति:
कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मागु., गद्य, वि. १७०७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः
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८१५८. शालिभद्र चौपाई, पूर्ण, वि. १७६८, श्रेष्ठ, पृ. १३-१ (१) - १२, जैदेना ले. स्थल पालीताणा ले. मु. भाणविजय (गुरु पं.
"
सिद्धिविजय) प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. डाल- २९. पू.वि. गा. १ से २३ नहीं है. (२७४१२, १८४४८-४९).
शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदि : -, अंतिः मनवंछित फल लहिस्यैजी.
३१५
(+)
८१६०.” वसुधारास्तोत्र व वाचनविधि, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. ५. पे. २, जैदेना. ले. स्थल, छवडा, ले.. लाभचन्द (गुरु ऋ. बालचन्द्र, नागोरीलुङ्कागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१२, १७५४३), पे. - १. वसुधारा, सं., गद्य, (पृ. १आ-५अ), आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति.
पे. २. वसुधारा विधि, संबद्ध मागु, गद्य (प्र. ५४-५५), आदि दीवालिकानि रात्री अंतिः निर्मल थइ अने वाचवी,
"
८१६१. अवन्तिसुकमाल तेर ढालनी सज्झाय व चिन्तामणिपार्श्व गीत, संपूर्ण वि. १८८३. श्रेष्ठ, पृ. ९ पे. २, जैदेना, ले. स्थल.
राधनपुर (२६११.५, ११४३२).
पे. १. अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु पद्य वि. १७४१ (पृ. १ ९अ ) आदि मुनिवर आर्य सुहस्ती : अंतिः सुख
पावे रे., पे.वि. ढाल - १३, गा. १०६.
पे. २. पार्श्वजिन स्तवन- चिन्तामणि, मागु, पद्य, (पृ. ९अ - ९आ) आदि चिन्तामणि स्वामी रे अंतिः अविचल दीपे
जयकारी, पे.वि. गा.५.
८१६२. शारदीलघुनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., पू. वि. कांड - ३ श्लो. ४६ तक हैं. अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२७०४१२, १२-१३४३५-४१)
लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः
८१६३. विधिसङ्ग्रह व नन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ४, जैदेना., ले. मु. ऋद्धिहंस, ( २६.५x११.५, १७x४४). पे. १. उपधान तपविधि, सं. प्रा. मागु, गद्य (पृ. १अ ५अ ) आदि पहिलं नवकारनुं अंतिः मालेवमालाभिताः.
पे. २. व्रतोच्चारण विधि आलापकयुक्त, प्रा.सं., प+ग, (प्र. ५ -६आ), आदि: प्रथम नालिकेरादि अंतिः विहरामि वार ३
उच्चार.
पे.-३. योगनन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः नाणं पञ्चविहं; अंतिः नित्थारपारगाहोह. पे. -४. दीक्षा विधि, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदि: इच्छकार भगवन् तुम्हे ; अंतिः करि सामाचारी मध्ये.
(+)
८१६४. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५९-१ (२२) -५८, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. (२६.५x११.५, ११४३२-३३).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि (१) तेणं कालेनं० समणे (२) णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः
"
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८१६६. श्राद्धपाक्षिकअतिचार व पाक्षिकआदितप, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१) = ११, पे. २, जैदेना, पू. वि. बीच के पत्र
हैं.. (२७४१२. ९४३१-३३).
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३१६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे.-१.पे. नाम. श्राद्धपाक्षिकादिअतिचार, पृ. -२अ-११आ, पूर्ण श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्., पे.वि. प्रथम पत्र
नहीं है. पे..२. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १२अ-१२आ-, पूर्ण), आदिः इच्छाकारेण
सन्दिसह; अंतिः-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ८१६९. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., (२७.५४१२, १०४३२).
८ प्रकारी पूजा, मु. देवचन्द्र, सं.,मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः दर्शनसल्लभन्ते. ८१७०. आलोयणा (श्रावक), अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं है., (२६४१२.५, १३४३४-३५).
श्रावक आलोयणा, मागु., गद्य, आदिः श्रीश्रावकने सकल; अंतिः८१७२. वृन्दावनकाव्य सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, देना., प्र.वि. मूल-श्लो.५२., (२६.५४१२, १५४३८).
वृन्दावन काव्य, सं., पद्य, आदिः वरदाय नमो हरये पतति; अंतिः दशनैः सह लीलाजानाम्.
वृन्दावन काव्य-वृत्ति, आ. शान्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः वर्द्धमानं सुधामानं; अंतिः निर्वान्तु देहिनः. ८१७५. नवपदपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., (२८x१२, १०x२०-४४).
नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, आदिः उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंतिः तणा नाथ जीवानुजीवो. ८१७६. श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, देना., प्र.वि. ४प्रस्ताव, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा,
(२७४१२, १५-१६x४२-४३).
श्रीपाल चरित्र, मु. जयकीर्ति-शिष्य, सं., गद्य, वि. १८६८, आदिः प्रणम्य सिद्धचक्रं; अंतिः सद्गुरु प्रसादात्. ८१७८. चित्रसेनपद्मावती कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. श्लो.५०९, (२७.५४१२.५, १३-१४४४८-५०). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः करोति पाठक
राजवल्लभः. ८१७९. पञ्चज्ञान पूजा सविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. ढाल-११, गा.८९+१५०, (२८x१२.५, १४४२९
३०). ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पं. रूपविजय, मागु., पद्य, वि. १८८७, आदिः सकल कुशल कमलावली; अंतिः रुपविजय गुणगाया
८१८०. मानतुङ्गमानवती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-६(१ से ६)=१७, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. ढाल-१०
__गा.११ से ढाल-३४ गा.१५ तक है., (२८x११.५, १५४३७-४६).
मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदि:-; अंति:८१८१. शान्तिस्नात्र विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२८x१२, १४४४६).
शान्तिस्नात्र विधि, उपा. सकलचन्द्रगणि, सं.,मागु., पद्य, आदिः अथ प्रतिष्ठायां वा; अंति:८१८२. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. अध्ययन-२ अपूर्ण
से अध्ययन-९ तक की सज्झाय हैं., (२७.५४१२.५, १२४३६).
दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय सङ्ग्रह, मु. वृद्धिविजय, संबद्ध, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:८१८४. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७६-४६(१ से १७,२४ से ५२)=३०, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र
हैं. स्थविरावली व साधुसामाचारी वाला हिस्सा हैं., (३०x१२, ७४३३-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३१७ ८१८५. सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन के लघुवृत्ति की अवचूरी, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४४-१२(१,३ से ८,२९ से ३३)=३२,
जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२९.५४११.५, १६-१७४४६-४८). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति की अवचूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः८१८६. श्लोकसङ्ग्रह- प्रकीर्णक गाथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २३-१५(१ से १५)=८, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
(२८x१२, १६-१७४५२-६३).
श्लोक सङ्ग्रह-, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:८१८७. नन्दीसूत्र-स्थविरावली व आवश्यकसूत्रनियुक्तिगाथा, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. ८-१(१)=७, पे. २, जैदेना., पू.वि.
प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७.५४१२, १९-२०४४६-५४). पे:१.पे. नाम. थेरावलीय, पृ. -२अ-२अ नन्दीसूत्र-स्थविरावली, आ. देववाचक, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः नाणस्स परूवणं वुच्छं., पे.वि. गा.५०
प्रथम पत्र नहीं हैं. मात्र अंतिम गाथा है. पे:२. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. २अ-८अ-), आदिः (१) आभिणिबोहियनाणं (२)
तित्थयरे भगवंते अणुत; अंति:-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. उपोद्घातनिर्युक्त गा.१८९ तक है. ८१९२. विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२८x१२, ४०-४४४२०-२१).
विचार सङ्ग्रह", मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८१९६. प्रद्युम्न चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५-२(२ से ३)=२३, जैदेना.. पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. सर्ग-४
गा.३७ तक हैं., (२७.५४११, ११४२६-२७). प्रद्युम्न चरित्र, मु. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५३३, आदिः श्रीमन्तं सन्मतिं; अंति:८१९७." चोसठप्रकारी पूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-सर्वगा.८६३., ग्रंथ रचना के
समीपवर्ती काल मे लिखित, (२८x१२, ११४३०-३८). ६४ प्रकारी पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८७४, आदिः श्रीशद्धेश्वर साहिबो; अंतिः (१)वरस
विराजते (२)पधराविइ महोत्सवे. ८१९८. महीपालचरित्र, संपूर्ण, वि. १९५९, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना.,प्र.वि. सर्ग-५, ग्रं. ८९५, (२८x१२, ११४४६-४८).
महीपाल चरित्र, उपा. चारित्रसुन्दर, सं., पद्य, आदिः यस्यां सदेशे शिति; अंतिः चरिते भववर्णनाख्यः. ८१९९. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना.,पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पांचवा अध्ययन गा.२० अपूर्ण
तक हैं., (२७.५४११, ११४३२-३७).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति:८२०१.” शुकराजा कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. रायधनपुर, ले.- गणि नर्बदा, प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं.
५००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५६७) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२७४११, १३४३४-३६). शुकराज कथा-शत्रुञ्जयमाहात्म्ये, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीशत्रुञ्जयतीर्थेश; अंतिः कथासौ लभतां
प्रथाः. ८२०३. दशविधयतिधर्म सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-८(१ से ८)=६, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-१०, गा.१३५. पू.वि.
ढाल-४ से हैं., (२६४१२, ११४४२).
१० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः सुजस लीला अनुभवइं. ८२०४. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.८३ तक हैं., (२७४११, ११४२९).
उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंति:
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३१८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८२०६. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. तपाचार तक हैं.,
(२७.५४१२, १०-११४२९-३०)..
श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नाणंमि दंसणंमि०; अंति:८२०७. सुन्दरी कहा, संपूर्ण, वि. १९३५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. मंमोईनगर, (२६४११.५, ११४४०).
सुन्दरी कथा-अक्षयनिधितपोपरि, प्रा., गद्य, आदिः पज्जसवणेकप्पे भावणाई; अंतिः पभावउ खिवइ दारिदं. ८२०८.” शत्रुञ्जयमहात्म्य, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३७-४(३,२४ से २६)=३३, जैदेना., पू.वि. गा.१४४५ तक हैं. बीच-बीच
व अंत के पत्र नहीं हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११, १५४४४-४८).
शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति:८२०९. आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ- द्वितीय श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १७७०, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना., ले.स्थल. दासरा, ले.- ऋ.
जीवण (गुरु ऋ. मोजीराम), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु.-मूल अंश-१६ अध्ययन.., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११, ७४६९-७०). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि.
आचाराङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, वि. १८वी, आदि:-; अंतिः चिरं नन्द्यात्. ८२१०." कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १८-३(१,६,१३)=१५, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. टबार्थ व कथा प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
(२६.५४१०.५, ५४३६-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:- अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८२११. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०३-८२(१ से ८२)=२१, जैदेना..प्र.वि. बीच के पत्र हैं. प्रतिलेखक
द्वारा टबार्थ अपूर्ण., (२७.५४११, ५४३९-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:- अंति:
कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८२१२. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४५-१(१)=४४, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६.५४११, १३४३४).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:८२१३.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-७(१ से ७)=१७, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२७४११, ६x४०-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८२१४.” ढोलामारू रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-६(१ से ३,९,१३ से १४)=१३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. गा.६९ से ६५८ तक हैं., (२६४११, १५-१६x४९).
ढोलामारु चौपाई, वा. कुशललाभ, मागु., पद्य, वि. १६७७, आदि:-; अंति:८२१६. पउम चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७९-१(१७८)=१७८, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र है., (२६.५४११, १७४५६
५९).
पउमचरिय, आ. विमलसूरि, प्रा., पद्य, ईस. ३वी, आदि:-; अंति:८२१७. पञ्चदण्डीप्रबन्ध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७२-६०(१ से ४५.५० से ५७,६०,६५ से ७०)=१२, जैदेना., पू.वि. बीच
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
बीच के पत्र हैं., (२७४११, १५४४० -५१).
पञ्चदण्ड कथा- विक्रमचरित्रे, आ. रामचन्द्रसूरि
(+)
"
,
'दृष्टान्त श्लोक सह कथा संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २५, देना, गुजराती, प्र. वि. मूल श्लो. १ कथा- अध्याय- १९ कथा, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत,
-
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( २६१०.५, १५ - १६x४५-४८).
धर्मप्राप्ति १८ दृष्टान्त गाथा. सं., पद्य, आदि: लज्जातो भयतो वितर्क अंतिः तेषाममेयं फलम्.
"
धर्मप्राप्ति १८ दृष्टान्त गाथा-कथा
सं. पद्य वि. १४९०, आदि:-: अंति:
"
सं. पद्य, आदि पितुर्मातुस्तथाभ्रात: अंतिः आप्पणीयअत्यसंमोरम्.
"
"
८२२०. विक्रमादित्य रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३६-२ (१,५ ) - ३४, जैदेना. पु. वि. बीच-बीच के पत्र हैं, ढाल ४५
गा. ९१४ तक हैं., ( २६११, १५- १६३६-४३).
विक्रमसेनराजा चौपाई. मु. परमसागर, मागु पद्य वि. १७२४, आदि:-: अंति:
८२२१.” वैद्यवल्लभ सह टबार्थ व औषध सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-१२ (५ से १६) = ५, पे. २, जैदेना., प्र. वि.
टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. (२६४१०, ६४३९)
पे. १. पे नाम वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, पृ. १आ-१७आ
वैद्यवत्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं. पद्य वि. १७२६, आदि सरस्वतीं हृदि अंतिः
,
वैद्यवल्लभ-टबार्थ, राज, गद्य, आदि: सरस्वती माता हृदय; अंति:
(+)
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पे.-२. औषध सङ्ग्रह*, मागु., गद्य, (पृ. १अ - १अ), आदि:-; अंति:-, पे.वि. आदि - अंतिमवाक्य का पता नहीं चल रहा हैं. मात्र प्रथम पत्र है.
८२२२. चित्रसेन चरित्र, अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-२ (१,६ ) -५, जैवेना.. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ढाल २ दुहा- ३ से
ढाल-८ गा. ४ तक है., (२७X१२, १३३१).
चित्रसेन चरित्र, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:
स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि:-: अंति
"
स्थानाद्गसूत्र- टवार्थ, उपा. मेघराज, मागु, गद्य, आदि:-: अंति:
(+)
८२२४. ठाणाङ्गसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सुचक चिह्न,
पू.वि. बीच के पत्र हैं. ( अध्ययन-७, ८ अपूर्ण हैं.). (२६.५४१२, ७०४०).
.
३१९
८२२५. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१ ) =८, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, पु.वि. बीच के पत्र हैं., (२५.५X११, ९३६).
पाक्षिकसूत्र प्रा. प+ग, आदि:-: अंति
P
८२२६. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७६-६(१ से ५.२० )-७०, जैदेना.. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. गा.८ से ५४ अपूर्ण तक हैं., ( २६.५x१०.५, १३४४८-५१).
शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:
शीलोपदेशमाला - बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
(+)
८२२८. पञ्चदण्डीप्रबन्ध, पूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५५ जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, पू. वि.
श्लो. १३०८ तक हैं. अंतिम पत्र नहीं है., ( २६×११, १५x५२-५३).
पञ्चदण्ड कथा विक्रमचरित्रे, आ. रामचन्द्रसूरि सं., पद्य वि. १४९०, आदि: प्रणम्य जगदानन्द अंतिः
,
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(+)
८२२९. निरयावलियादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११७ पे ५ जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-संधि सूचक चिह्न, पू. वि. पूर्णता - ५वर्ग मूल, टबार्थ सर्व-ग्रं. ग्रं. ४०००., (२६X११, ५X३०-३२). पे.-१. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह ( मा.गु.) टबार्थ, पृ. १-४८अ
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३२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते० ते अवसरपणी काल०; अंतिः नाम सरिषा नाम., पे.वि. मूल-अध्याय-१०
अध्ययन. पे.-२. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. ४८अ-५२आ
कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः महाविदेहे सिद्धे. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जउ भं० हे पूज्य; अंतिः खेत्रै सीझस्यै., पे.वि. मूल-अध्याय-१०
अध्ययन. पे.-३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. ५२आ-९७आ
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जो भं० हे पूज्य; अंति: गाथामाहे छे तिम., पे.वि. मूल-अध्याय-१०
अध्ययन. पे.-४.पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. ९७आ-१०४आ
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं० अंति: वासे सिज्झिहिंति. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जो हे पूज्य; अंतिः सर्व पाछली परे कहेवो., पे.वि. मूल-अध्याय-१०
अध्ययन. पे.५.पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह (मा.ग.)टबार्थ, पृ. १०४आ-११७अ
वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जो भं० हे पुज्य; अंतिः इग्यारे ज अध्ययने., पे.वि. मूल-अध्याय-१२
अध्ययन. ८२३१. बोल सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, जैदेना.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है। प्र.वि. बीच के पत्र
हैं., (२६x११x).
५८ बोल सङ्ग्रह, सं.प्रा.,मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८२३२. प्रवचनपरीक्षा- प्रथम परीक्षा, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. प्रथम
विश्राम., (२५.५४११, ११४३२-३३).
प्रवचनपरीक्षा, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, वि. १६२९, आदिः पणमिअ णाणनिहाणं वीर; अंति:८२३५. सिद्धहेमलघुप्रक्रिया सह टीका व धातुविभक्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-५(१ से ३,१० से ११)=१९, पे. २,
जैदेना., पृ.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४११.५, ११४३४-३५). पे.१.पे. नाम. हैमलघुप्रक्रिया सह टीका-स्यादिसन्धि पर्यन्त, पृ. -४अ-२३आ, प्रतिअपूर्ण
सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १७१०, आदि:-; अंति:सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया की स्वोपज्ञ हैमप्रकाश वृत्ति, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १८वी,
आदि:-; अंतिः-, पे.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. पे..२. धातुविभक्ति, सं., गद्य, (पृ. २४अ-२४अ, अपूर्ण), आदिः श्रीपञ्चमार्हतो मेघ; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८२३६. सिद्धहेमशब्दानुशासन बृहद्वृत्ति की स्वोपज्ञ बृहन्न्यास टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-२(१,६)=१२, जैदेना.,
पू.वि. बीच के पत्र हैं. अध्याय-४ के पाद-१ व ४ अपूर्ण तक है., (२६४११.५, २६४६७-७१). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिकाबृहद्वृत्ति का तत्त्वप्रकाशिकाप्रकाश शब्दमहार्णवन्यास, आ. हेमचन्द्रसूरि
कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि:- अंति:८२३७. सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-२(७ से ८)=८, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३२१ (२६.५४११, १७-१८४५४-५९).
सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह*, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदि:-; अंति:८२३९. सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रथम पत्र, (२६४११,
२४-२७४६०-८०).
सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदि: #; अंति: #. ८२४०. क्षेत्रसमास सह टबार्थ,समाचारी गाथा व श्लोक, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(१)=१६, पे. ३, जैदेना., (२५.५४११,
५४२९-३९). पे.-१.बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण , आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, (पृ. २अ-१७आ, पूर्ण),
आदि:-; अंतिः समयखेत्तस्स परिरओ. बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:- अंतिः २१९ जयण झाझिरा., पे.वि.
प्र.पु.-संक्षेप-१४२. पे..२.१० समाचारी गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. १७आ-१७आ, संपूर्ण), आदिः पडिलेहणा पमज्जण; अंतिः थंडिल __आवस्सयाइया., पे.वि. गा.१.
पे.-३. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. १७आ-१७आ, संपूर्ण), आदि:#; अंतिः#. ८२४१. षडावश्यकसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२६.५४११.५, ५४२६-२९). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः
षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः माहरउ नम० अरिहन्त; अंति:८२४२." प्रियमेलक चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १०-१(९)=९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. प्रथम पत्र का आधा भाग
ही है. अन्त के पत्र नहीं है. ढाल-१० गा.१७ तक है., (२५४११, १२४४३-४५). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७२, आदि:-; अंति:८२४५. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९-५४(१ से ५३,६०)=१५, जैदेना., पू.वि. बीच के कुछ पत्र है.,
(२६४१२, १५-१७४३५-६१).
कल्पसूत्र-बालावबोध', मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंति:८२४६. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७३३, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. पन्तननगरे, प्र.वि. पन्ना नंबर १ सचित्र है.,
(२५४११.५, १३४३७).
वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनन्दन्निति. ८२४८. मौनएकादशीव्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.१०९, (२६४११.५, १३४३०).
मौनएकादशीपर्व माहात्म्य, मु. धीरविजय, सं., पद्य, वि. १७७४, आदिः वर्द्धमान तीर्थेश; अंतिः तावन्नदतुचिरायैषा. ८२४९. प्रस्ताविकश्लोक व कथाबद्धश्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६,पे. २, जैदेना., (२६४११.५, २०x४४).
पे.-१. प्रास्ताविक श्लोक, सं., पद्य, (पृ. १अ-४आ), आदिः नमोस्तु देवदेवाय; अंतिः रुदंती परिमोचयेत्., पे.वि.
श्लो.१८१. पे.२. कथा श्लोक सङ्ग्रह-सम्यक्त्वादिविषये, सं., पद्य, (पृ. ५अ-६आ), आदिः त्वं स्मरसि निजपुत्र; अंतिः धर्मे
श्रेणिकभूपवत्., पे.वि. श्लो.६७. ८२५०. क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्रथम अधिकार गा.२२ अपूर्ण से
पंचम अधिकार गा.६ अपूर्ण तक हैं., (२५४११, १८४५२-५५). बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदि:- अंतिः
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३२२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८२५१. बासठमार्गणा बोल, अपूर्ण, वि. १७८८, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(३)=६, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबादमध्ये, ले.- ऋ.
कुशलसिङ्घ, (११.५४११, २७-२८x१६-१७).
६२ मार्गणाद्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः गई इन्द्रिय काय जोए; अंतिः लाभे लेश्या लाभे. ८२५३. पुन्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. १८-११(१ से ११)=७, जैदेना., ले.- मु. कपुरविजय (गुरु पं.
तत्त्वविजय),प्र.वि. ढाल-८, गा.१००.पू.वि. गा.११ तक नही हैं., (२५.५४१२, १०४२६-३०).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, (पूर्ण), आदि:-; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए. ८२५५. निमितग्रन्थसमुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-३(१४,१६,२८)+३(१९,१९,२७)=३०, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., (२६x११.५, १३४४८). भद्रबाहुसंहिता, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदिः मगधेषु पुरं ख्यातं; अंति:८२५६. प्रतिष्ठाकल्प, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., ले.स्थल. महिमापुर, ले.- ऋ. रुपचन्द्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि.
प्र.पु.-ग्रं. ११२५., (२५.५४११.५, १३४३६-३८).
प्रतिष्ठाकल्प, उपा. सकलचन्द्रगणि, सं.,मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः हानि फलानिचयथाक्रम. ८२५७. सङ्ग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., पू.वि. गा.३११ तक हैं. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११,
१३४३८). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंति:८२५८. कल्पसूत्र सह टीका, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०३-१८७(१ से १८७)=१६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद
सूचक लकीरें, (२५.५४११.५, १३४३६).
कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः८२६१. जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-९, (२५.५४११.५, ११४३३).
जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १७१२, आदिः श्रीसरसती रे वरसती; अंतिः पभणे आनन्दकारी. ८२६२. दशाश्रुतस्कन्धसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५.५४११.५, ५४३८
४४). दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः
दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः८२६३. अष्टलक्षी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११.५, १३४३४-४०).
अष्टलक्षी, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६४६, आदिः श्रीसूर्यः श्रेयसे; अंति:८२६४. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(३.६)=६, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११,
९४२८).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१) तेणं कालेणं० समणे (२) णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंति:८२६७.” अमिधानचिन्तामणी नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४०-७(१ से ७)=३३, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. बीच के पत्र हैं. कांड-२ गा.१६३ से कांड-६ गा.१५३ कर हैं., (२६४११, १५४४३-४६).
अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंति:८२६८." विचारसङ्ग्रह व सवैया, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(२)=७, पे. २, जैदेना., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी
है-अल्प, (२५.५४११, १३४४१). पे.-१.जिनदाढादि विचारसङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १अ-८अ, संपूर्ण), आदि: भगवतीसूत्रे चमरेन्द; अंति: गाथानो
ए परमार्थ छे. पे.२. सवैया, शुकनन्द, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८अ, संपूर्ण), आदिः कहे कृष्ण पतीयाको; अंतिः क्युं अनाथ जारीयें.,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३२३
पे.वि. गा.१. ८२७०. कर्मग्रन्थ विचार सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित हैं., (२६४११x).
कर्मग्रन्थ विचार सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः अधुना बन्धउदय उदीरणा; अंतिः मध्यम जाणवो. ८२७१. आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ-प्रथमश्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना., ले.स्थल. साधीसर, ले.- मु.
पदमसी (गुरु पं. डूङ्गरसी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु.-मूल-९ अध्ययन. टबार्थ लेखन वर्ष-१७७४ हैं. प्रतिलेखक ने प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक का भी टबार्थ लिखा हैं., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (५१८) तैलाद्रक्षे
ज्जलाद्रक्षेत्, (२५.५४११, ५४४६). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंति:
आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, ऋ. धर्मसी, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वजिनंनत्वा; अंति:८२७३. ज्योतिषसार सङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., पू.वि. गा.३९८ अपूर्ण तक हैं. प्रथम पेज का
उपरी भाग खंडीत होने से टबार्थ का आदिवाक्य नहीं भरा हैं. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, ६x४३-४६). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंति:
ज्योतिषसार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः८२७४." प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४९, मध्यम, पृ. ६७, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., पदच्छेद सूचक
लकीरें, (२४.५४११, ७४४४-४५). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः सरीरधरे भविस्सइति.
प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अहो जम्बू ए; अंतिः चरमशरीरनो धरणहार होइ. ८२७७. चतुर्वर्गव्याख्यान सह टबार्थ व बालावबोध कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर
अनियमित है., पू.वि. अन्त के पत्र नही है. (गाथा ३० तक है)., (२५.५४११४). चतुर्वर्गव्याख्यान, सं., पद्य, आदिः धर्मार्थकाममोक्षाख्य; अंति:चतुर्वर्गव्याख्यान-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः धर्म अर्थ काम मोक्ष; अंतिः
चतुरवर्गव्याख्यान-बालावबोध+कथा, सं., गद्य, आदिः वीतरागजिनं नत्वा; अंति:८२७९. दशवैकालिकसूत्र गीत, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. ७-१(१)=६, जैदेना., ले.स्थल. पालीताणा, ले.- करमचन्द रामजी
लहिया, प्र.वि. ढाल-८ गीत, पू.वि. प्रथम पत्र नही है. द्वितीय गीत अपूर्ण से हैं., (२६४१२, १०x२६).
दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. जैतसी, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १७१७, आदि:-; अंतिः मुनिवर ने कहे रे. ८२८०." भक्तामरस्तोत्र सह टीका व कथा, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-१४(१ से १४)=११, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४+.,
पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अंतिम कुछ पत्र, पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा.२७ से ४४, कथा-१७ से २८
तक हैं., (२६४११, १८-१९४५२-५८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि:-; अंति:
भक्तामर स्तोत्र-कथा, मागु., गद्य, आदि:- अंति:८२८४. नवतत्त्व सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-७(१ से ७)=१४, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५५., पू.वि. गा.१४
अपूर्ण से हैं., (२४.५४११, १३-१६४३५-३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः असन्नी सन्नीण नवदसय.
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः सम्यक्त्व होइ. ८२८५.” अभिधानचिन्तामणी नाममाला, अपूर्ण, वि. १७२१, मध्यम, पृ. ७३-९(१ से ८,११)=६४, जैदेना., ले.स्थल. सिवपूरीमध्ये,
ले.- गणि कनकरत्न, पठ.- मु. अमरविजय, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-प्रारंभिक पत्र,
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२५.५४११, १३४३०-३२). अभिधानचिन्तामणि नाममाला-शेषनाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः
निपात्यन्ते पदे पदे. ८२८६. ज्योतिषसार सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११, ४४३९-४३).
ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंति:८२९०. कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नही है., (२६x११, १२-१३४४०-४२).
कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः अज्ञानतिमिरान्धानां; अंति:८२९१.संहलसुत चौपई-दानाधिकारे, अपूर्ण, वि. १६९१, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, जैदेना., ले.स्थल. सिरवानगरे, पठ.
पण्डित क्षेमसागर, प्र.वि. ढाल-११, गा.२३०, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, पू.वि. ढाल-४ गा.१ अपूर्ण
से हैं., (२६४१०.५, १५४४६). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७२, आदि:-; अंतिः पुण्य अधिक परमोद. ८२९३. नवस्मरण,लघुशान्ति व सकलार्हत स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १६८५, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. सीरोही, ले.- मु.
टाहाक, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१०.५, ९४३०-३१). पे.-१. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, (पृ. १आ-१७आ, प्रतिपूर्ण), आदि: नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः
शमं शिवं भवतु स्वाहा., पे.वि. प्र.पु.-८ स्मरण.. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं हैं. पे.२. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. १७आ-१९अ, संपूर्ण), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः सूरिः
श्रीमानदेवश्च., पे.वि. श्लो.१७. पे.-३. सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १९अ-१९आ-, अपूर्ण), आदिः
सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति:-, पे.वि. गा.१५ अपूर्ण तक हैं. अंत के पत्र नहीं हैं. ८२९६.” अमरकुमारसुरसुन्दर चौपाई, अपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. २६-१७(१ से १७)=९, जैदेना., ले.स्थल. जयतारणिनगरे,
ले.- पं. सोभाचन्द, पठ.- चन्द्रभाण, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अध्याय-४, ढाल ४०, संशोधित, पू.वि. खण्ड-३ ढाल-७
गा.५ तक नहीं हैं., (२६x११, १३४४१-४५).
सुरसुन्दरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मागु., पद्य, वि. १७३६, आदि:-; अंतिः आनंद लील उमंगेजी. ८२९७.” सुक्तावली, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-१६(१,१२,२५ से ३४,३६ से ३८,४१)=२६, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक
लकीरें-प्रथम पत्र, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२६४१०.५, १९४५२-५४).
सुक्तावली, सं., गद्य, आदि:-; अंति:८३०१.” ज्योतिषसार सह टबार्थ व ज्योतिषसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं
हैं., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६x१०.५, ७४३६-४२). पे.१.पे. नाम. ज्योतिष विषयक, पृ. १अ-१अ, संपूर्ण ___ज्योतिष*, सं.,मागु., पद्य, आदिः#; अंति:#. पे.२. पे. नाम. ज्योतिषसार संग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ-८आ, अपूर्ण
ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंति:
ज्योतिषसार-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. टबार्थ का आदिवाक्य नही लिखा हैं. ८३०२. योगचिन्तामणी, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८५-१(४६)=८४, जैदेना.,प्र.वि. अध्याय-७, (२५४१०.५, १७४४८-५७).
योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः यत्र वित्रासमायान्ति; अंतिः योगचिन्तामणिश्चिरम्. ८३०४. अनाथीमुनि सन्धि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. ढाल-८. यह प्रत में रचनासंवत्-१७४५ लिखा है एवं
अन्य प्रतियों में रचनासंवत्-१७३५ मिलती है., (२४.५४१०.५, १२४३४).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
अनाथीमुनि रास ऋ. खेमो मागु पद्य वि. १७३५, आदि: वन्दिये वीर जिणेसर अंतिः सफल करे अवतार.
·
.
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८३०५. नववाडी ढाल व विजासण यन्त्र अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३६-३१ (१ से ३१) -५, पे. २. जैवेना. (२५४११
"
१२४३६).
पे. १. नववाडि ढाल, मु. कीर्तिवर्द्धन, मागु, पद्य, (पृ. ३२-३६आ, अपूर्ण), आदि:- अंति लाभइ अवचल लील. पे.वि.
i
"
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ढाल - ९, गा. ६८.
पे. २. विजासण जन्त्र मागु, पद्य, (पृ. ३६आ, संपूर्ण), आदि: वञ्छी जे जे जन्त्र; अंतिः #.
८३०६.” सिन्दुरप्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., पू. वि. गा.८५ तक हैं. अंत के पत्र नहीं हैं. पत्र चिपके होने से आदिवाक्य नही भरा हैं., दशा वि. विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ( २४४१०.५, १२x४०). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंति:
८३०९. रत्नसञ्चय, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १० - ५ ( २ से ३,५ से ७) = ५, जैदेना., (२५x११, १५×५१).
रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणं वीरं; अंतिः नन्दउ जा दुप्पसहसूरी.
"
८३०७. उत्तमकुमार रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-११ (१ से ११ ) = ८, जैदेना, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ढाल -७ से हैं., (२५.५X११, १२३०).
उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्वहंस, मागु पद्य वि. १७३१, आदि: अंति:
-;
लकीरें (२६.५००११, ६x४२)
पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ अंतिः ते सासयं सुक्खं.
पर्यन्ताराधना-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः नमीनइ नमस्करीनइं; अंतिः लहइ ते शाश्वतरं सुख.
"
८३१०. धम्मिलकुमार रास अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २८-२(१३) २६, जैदेना. प्र. वि. संशोधित, पृ. वि. बीच-बीच के पत्र
"
हैं., ( २६x१०.५, १५X३७-३८).
धम्मिलकुमार रास, मु. गुणविजय, मागु., पद्य, वि. १८८०, आदि:-; अंतिः
८३१२. पर्यन्ताराधनाप्रकरण सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. ४0.,
३२५
ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः
ज्योतिषसार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्त रागद्वेष; अंतिः
८३१३. दीपोस्तवकल्प, संपूर्ण, वि. १७११, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. गा. १२८, (२५४११, १६४४४).
दीपालिका कल्प, आ. विनयचन्द्रसूरि सं. पद्य वि. १३४५ आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य: अंतिः चक्रे दीपालिकाकल्पं.
पदच्छेद सूचक पदच्छेद
८३१४. ज्योतिषसारसङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., पू.वि. गा. ४९९ तक हैं. अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२५.५X११, ६x४८-५०).
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८३१५.''' कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान + कथा, अपूर्ण, वि. १८१२, मध्यम, पृ. १९१ -१५१ (१ से १४९, १८८ से १८९ ) = ४०, जैदेना., ले.स्थल. सादडी, ले.- माधा, प्र. वि. संशोधित, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४१०, १२०४०).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि:- अति:कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र - व्याख्यान+कथा*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
..
८३१६. सङ्ग्रहणीसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण वि. १८५४ श्रेष्ठ, पृ. ३०-२२ (१ से २२ ) =८, जैदेना. ले. स्थल. बेटकपुरमध्ये, ले. पं. दिणयरसागर (गुरु पं. प्रधानसागर) प्र.ले.पु. विस्तृत प्र. वि. प्र. पु. गाथार्थ ३७२ (२६४११, १६-१७४५-४७). बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध *, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः मानो चिरञ्जीयात्.
८३१८.” कल्पसूत्र सह टबार्थ+अन्तर्वाच्य ( व्याख्यान) + कथा, पूर्ण, वि. १६९९, श्रेष्ठ, पृ. १५० - ९(१ से
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३२६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६,६२,६८,१४३)+१(६६)=१४२, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है। अंत में कल्पसूत्र सुनने की विधि दी गयी
है. मूल-९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६; प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. ५००१., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५४११४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१) तेणं कालेणं० समणे (२) णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ
त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः नमो अर्हद्भ्यः अरि; अंतिः जणाविउ ए पण
इमेलिइं. ८३१९. कल्पसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२१-२(३८,११६)=११९, जैदेना.,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६;
प्र.पु.-उभय-ग्रं.३४३६., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-अल्प मात्रा में, (२६४११, ५४३०-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१) तेणं कालेणं० समणे (२) णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ
त्ति बेमि.
कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः नमस्कार अरीहन्तनइं; अंति: महावीरइं उपदेशउ वली. ८३२३. विक्रमसेनकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से २.५)=५, जैदेना., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती
काल मे लिखित, पू.वि. बीच के पत्र हैं. ढाल-२ गा.५ से ढाल-१३ गा.१० तक है, (२४.५४११, १७४४१-४६). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदि:-; अंति:८३२४. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, प्र. ४५-४०(१ से ३५,३७ से ४१)=५, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. सिद्धार्थ राजा स्नानागार वर्णन तक., (२६.५४११, ७४२५).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:८३२५. सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, जैदेना., पू.वि. गा.५ अपूर्ण से १६३ अपूर्ण तक हैं.
बीच के पत्र हैं., (२६४११, १२-१३४४२-४५).
सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदि:-; अंति:८३२९. तेजसार कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.. पू.वि. श्लो.८० अपूर्ण तक हैं. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११,
११४२९).
तेजसारकुमार कथा, सं., गद्य, आदिः सुकुल जन्म विभूति; अंति:८३३१. निरियावलिआदिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६३-२९(१ से २९)=३४, पे. ३, जैदेना., पू.वि.
बीच के पत्र हैं., (२५.५४११, ६४३५-३९). पे.-१. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. -३०अ-३०आ, अपूर्ण
कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि:- अंति: मायातो सरिसणामाओ.
कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः पूर्वपाठनो कहवो., पे.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पे.२.पे. नाम. कल्पवतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३०आ-३३आ, संपूर्ण
कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भन्ते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिद्धे. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जउ हे पुज्य तपस्वीइ; अंतिः महाविदेहइ सीझस्यइ..पे.वि. मूल
अध्याय-१० अध्ययन. पे..३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३३आ-६३आ-, अपूर्ण
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जति णं भंते समणेणं०; अंति:
पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जओ हे पूज्य; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ८३३२." धर्मोपदेशशतक व धर्मोपदेशशतक सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, प्र. ५५, पे. २, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., (२४.५४१०, १३-१४४३६-३८).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३२७
पे..१. पे. नाम. ,पृ. १आ-६अ, संपूर्ण धर्मोपदेशशतक, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणिधाय परं ज्योति; अंतिः निधास्यति तस्य कण्ठे.. पे.वि.
सर्ग-५, श्लो.१०४. पे.२. पे. नाम. धर्मोपदेशशतक सह टीका, पृ. ६अ-५५अ, अपूर्ण
धर्मोपदेशशतक, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणिधाय परं ज्योति; अंति:धर्मोपदेशशतक-स्वोपज्ञ टीका, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति स परमात्माकेवल; अंतिः-, पे.वि.
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८३३३. स्तवनचौवीसी व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., (२४४१०, १३-१४४३३-३४).
पे.-१. स्तवनचौवीसी, मु. मानविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-११अ), आदिः ऋषभ जिणन्दा ऋषभ; अंतिः मानविजय नितु
ध्यावे., पे.वि. संपूर्ण- २४ स्तवन २४ स्तवन.
पे:२. जैन गाथा *, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ११अ-११अ), आदिः#; अंतिः#. ८३३४.” वैधवल्लभ सह बीजक व औषध सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ११, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष
पाठ, पू.वि. अंतिम पत्र जीर्ण है., (२३.५४१०, ३०x४४-५०). पे.१.पे. नाम. वैद्य वल्लभ सह बीजक, पृ. १आ-११आ, पूर्ण
वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंति:वैद्यवल्लभ-बीजक, सं., पद्य, आदि:-; अंति:
वैद्यवल्लभ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:- अंतिः-, पे.वि. अंतिम पत्र खंडति होने के कारण अंतिमवाक्य नही भरा है. पे.२. औषध सङ्ग्रह', मागु., गद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदि:#; अंति:#. ८३३५.” सम्बोधसित्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८४, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१२६., टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
(२४.५४१०.५, ५४२९-३७)... सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो.
सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ॐ नमस्ते जगतस्य; अंतिः तेहने मोक्षसुख हुइ. ८३३६. जीवविचार सह लेशार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है. मूल-गा.५१.,
त्रिपाठ, (२५.५४११४). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ.
जीवविचार प्रकरण-अर्थलेश अवचूरि, सं., गद्य, आदिः भुवनदीपसमं श्रीवीरं; अंतिः श्रुतसमुद्रात्. ८३३७. स्तवनचौवीसी व वीसी, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. फरकंडा, ले.- पं. जिनेन्द्रसागर,
पठ.- मु. अमृतसागर (गुरु पं. जिनेन्द्रसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अन्य प्रतिलेखन वर्ष-१८६७., (२५४११, १३४४३
४६). पे.१. स्तवनचौवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८वी, (पृ. १अ-११अ), आदिः ऋषभ जिणिन्दसु; अंतिः पूर्णानन्द
समाजोजी., पे.वि. संपूर्ण-२४ स्तवन+कलश २४ स्तवन. पे:२. विहरमानजिन स्तवनवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-१८आ), आदिः श्रीसीमन्धर जिनवर; अंतिः
सुजस महोदय वृन्दो रे., पे.वि. संपूर्ण-२० स्तवन+कलश २०स्तवन. ८३३८. जम्बुद्विपप्रज्ञप्ति सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८६-३३४(१ से २६०,३०१ से ३७४)=५२, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति
अक्षर अनियमित है. मूल-७ वक्षस्कार, ग्रं. ४१४६., त्रिपाठ, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. अंत में टिका
का ४२ श्लोक तक हैं., (२५४११४). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि.
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३२८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-प्रमेयरत्नमञ्जूषा टीका, उपा. शान्तिचन्द्र, सं., गद्य, वि. १६५१, आदि:-; अंतिः८३३९." स्तवनचौवीसी व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. २, जैदेना., ले.- गौरीशङ्कर गोविन्दजी भट्ट, पठ.
श्रा. भाईचन्द, प्र.वि. संशोधित, (२५४११.५, १०४३३). पे.-१. स्तवनचौवीसी, मु. मानविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१२आ), आदिः ऋषभ जिणन्दा ऋषभ; अंति: मानविजय नितु ___ ध्यावे., पे.वि. २४ स्तवन. पे.२. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१४आ), आदि: मङ्गल करण नमीजे; अंति: गर्भावासे
न अवतरे., पे.वि. गा.२५. ८३४०." शान्तिनाथचरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४२, जैदेना., प्र.वि. ६प्रस्ताव, श्लो.१६३२; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ४५००,
पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२६४११, १३४४८).
शान्तिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदिः श्रेयोरत्नकरोद्भूता; अंतिः स करोतु शान्तिः. ८३४१. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १८२७, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. साणंद, ले.- पं. रत्नविजय, लिखवा.- ऋ.
राजेन्द्रसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. २० स्तवन, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, कर्ता के हस्ताक्षर से
लिखित प्रत, (२६४११.५, १२४४१).
स्तवनवीसी, गणि रत्नविजय, मागु., पद्य, वि. १८१९, आदिः पूरव दिसई ईशानमें; अंतिः वीसी थई अभङ्ग. ८३४२. पुदगल गीता, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,ले.स्थल. पादलीपीनगरे, ले.- मु. सोभाचन्द,प्र.वि. गा.१०८,
(२६४११.५, १०४३६-४०).
पुदगल गीता, मु. चिदानन्द, प्राहिं., पद्य, आदिः सन्तो देखिये बे परगट; अंतिः चिदानन्द सुखकार. ८३४३." सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ- प्रथमश्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. १००, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-मूल-अंश-१६
अध्ययन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ४४३२). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति:
सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः बु० जिनाज्ञा सहित; अंति:८३४४. सेत्रुञ्जयतीर्थ उद्धार, संपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. पालीताणा, ले.- प्रेमचन्द जेठाचन्द भोजक,
प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. ढाल-१२, गा.१२०; प्र.पु.-मूल-श्लो.२१०,, (२४.५४११, १०-१३४३२).
शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः दरसण जय करुं. ८३४५. नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, जैदेना., (२४.५४११, ४४३८). पे.-१.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-७आ
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, गणि शिवनिधान, मागु., गद्य, आदिः श्रीहर्षसागर सद्गुरु; अंतिः कै समै अनेक पण
सिद्ध., पे.वि. मूल-गा.४७. पे.२.पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. ७आ-१३आ
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः स्वर्ग मृत्यु पाताल; अंतिः जे समुद्र तेह थकी., पे.वि. मूल-गा.५१. ८३४७." विक्रमसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., प्र.वि. ढाल-६४, पृ.वि. ढाल-६४., दशा वि. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५४११, १५४४६-५४). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः परम ज्योति प्रकास; अंति: परमसागर आणन्दो
८३४८. भावना स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, जैदेना., (२५.५४११.५, ९४३४-३७).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३२९
१२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः सकल मुनी चित्ति आणो. ८३४९. दशवैकालिकसूत्र गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०, पू.वि. ढाल-११., (२५४११.५,
११४३४-३७). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. जैतसी, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १७१७, आदिः धर्ममङ्गल महिमा; अंतिः सदाजी
जयतसी जयजय रंग. ८३५०." प्रदेशीराजा सन्धि, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले.- केसरीचन्द मथेन, प्र.वि. ढाल
२१, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५४११.५, १७४४४-४८).
प्रदेसीराजा रास, ऋ. जेमल, मागु., पद्य, वि. १८७७, आदिः सुरीयाभदेव वीर; अंतिः सुत्रथी काढे रे. ८३५१. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह विधि, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. उज्जैन, ले.- मु. रणधीरविजय,
(२५४११.५, १४४३३).
साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः प्रथम थापनाचार्यनी; अंतिः कहवी पछै लोगस्स कहै. ८३५२. दूहावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. गा.४६२, (२४.५४११, २०४५७-६३).
नेमराजिमती बारमासीदूहा, मागु., पद्य, आदिः सारद बुध दाता नामुं; अंतिः समझ लेहु मजबूत. ८३५३. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३४६-६०(२०१ से २५५,३२९ से ३३३)+१(१०५)=२८७,
जैदेना., पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१०.५, ६४३८). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंति:ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) तेणइ कालइ जे
चउथइ; अंति:८३५५. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. भादलाग्रामे, ले.- पं. आणन्दसुन्दर, प्र.वि. २४
स्तवन, (२५४११, १०४३२-३४).
स्तवनचौवीसी, मु. ज्ञानसार, मागु., पद्य, आदिः ऋषभ जिणन्दा आणन्द; अंतिः चौवीसुं स्तुति कीधी. ८३५९. भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. खाखर-कच्छ., ले.- मु. दोलतविशाल
(गुरु पं. जसतिलक, खतरगच्छ).प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टीका-ग्रं. ६९३., द्विपाठ, पू.वि. मूल गाथा १-७ तक लिखे
हैं. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५४११.५, १५४५२-५४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (अपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति:भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, (संपूर्ण), आदिः प्रणम्य परमानन्ददायक;
अंतिः हि सा समाप्ता. ८३६०. शारदीनाममाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. जावाल, पठ.- पं. देवेन्द्रविजय, प्र.वि. ३कांड,
श्लो.४६०, (२३.५४११.५, १२४२७-२९).
लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः हर्षकी० बत नाममाला. ८३६२. चेतनकर्म चरित्र, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. हरजीग्रामे, ले.- गणि खन्तिविजय (गुरु मु.
उत्तमविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.२९८, (२५.५४११.५, १३४३७-३९).
चेतन वृतान्त, श्रा. भगवतीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १७३२, आदिः श्रीजिनचरण प्रणाम; अंतिः रचना कही अनादि. ८३६४. पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., लिखवा.- पं. कल्याणविजय, प्र.वि. मूल-गा.६९.,
(२५४११.५, ५४३४-३६). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमी नमस्करीनें; अंतिः ते शास्वता सुख पामी.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
(+)
८३६५. श्रीपालचरित्र, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र, (२५x१०.५,
१३x४२).
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श्रीपाल चरित्र, मु. शुभविजय, सं., गद्य, वि. १७७४, आदिः ॐ नमः स्वर्द्धिशक्र; अंतिः (१) सावधानास्समं जायन्तः (२) दशमी दिवस एवैतत्.
८३६६. नवतत्त्व, संपूर्ण, वि. १७४९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. गा.४१, (२४×११, ४X३४-३७).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा. पद्य आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा.
"
८३६७. नवतत्त्वप्रकरणादि सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. ३८, पे. ६. जैवेना. ले. स्थल समीनगर, ले. मु.
वल्लभविजय, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२५.५x११.५, २-४X३४).
पे.- १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-२०अ
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नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवापुन्नं पावा; अंतिः लिहिओ मणिरयणसूरिहिं. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनं नत्वा; अंतिः रत्नसूरि एहवे नामे, पे.वि. मूल-गा. ५५. प्रतिलेखन वर्ष १८६५ और रचनास्थल पाटडी है.
पे. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ,
पृ. २०अ २८आ
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ . जीवविचार प्रकरण-टवार्थ मागु. गद्य वि. १८६८ आदि स्वर्ग मृत्यु पाताल अति उद्धयों ते जाणवो., पे.वि.
.
मूल-गा. ५३. गाथा नं३८-३९ पाठान्तरवाली है.
पे.-३. पे. नाम. २४ दण्डक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. २९अ - ३६आ
"
"
दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ.
दण्डक प्रकरण-वार्थ मागु, गद्य, आदि: नमस्कार करीने चोवीस अंतिः भव्यने भाववा, पे. वि. मूल-गा. ४६.
पे.-४. नारकी देहमान व वैक्रीय शरीरमान, मागु., गद्य, (पृ. ३६-३७अ ), आदिः सातमी नारकिइं पञ्चसे; अंतिः सरीरमान जाणवू.
पे. ५. नवतत्त्व विचार मागु, गय, (५. ३०१-३८अ.), आदि: मार्गणा विधि ५: अंतिः वालतणियों जाणवो.
पे:-६. पंचमआरे आयुमान, मागु., गद्य, (पृ. ३८अ -३८अ ), आदिः मनुष्यनो १२० वरसनो; अंतिः कह्यो सङ्क्षेप थकि., पे.वि. अंत में नवतत्त्व का भांगा कोष्ठक में दिया है.
८३६९. बम्भणवाडा महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १६८२, मध्यम, पृ. ५, देना., ले. गणि कीर्तिरत्न (गुरु गणि राजरत्न,
खरतरगच्छ ), प्र. वि. गा. १०३ (२४४१०.५, १३४४४-४६).
महावीर जिन स्तवन- बामणवाडजी आ. सोमविमलसूरि मागु पद्य आदि सरसति शुभ मति दिउ अंतिः श्रीसोमल सन्धुणिओ.
८३७०. जलयात्रा विधि, जिनबिम्बस्थापना विधि व नवग्रह स्थापन विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले.मु. धनविजय, (२५X११.५, १७-१८x४०-४३).
- -
पे. १. जलयात्रा विधि, सं. मागु, पद्य, (पृ. १अ २अ) आदि जल यात्रा योग्य उपगर अंतिः याचकलुञ्छणाकारी हेतू..
,
""
पे. वि. जलयात्रा महोत्सव सामग्री लिस्ट के साथ.
पे. २. जिनबिम्बस्थापना विधि, सं.,मागु., पद्य, (पृ. २अ - ५आ), आदि: नवइ प्रासादि जिहां अंतिः करी थापना कीजइ. पे.-३. नवग्रह स्थापन विधि, मागु., गद्य, (पृ. ५आ - ५आ), आदि: प्रथम स्थापना नवग्रह; अंतिः बदाम अखण्ड मूकीजइ. ८३७१. चौवीसदण्डक विचार व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८३७, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. सूरतबंदर, (२५x१२,
१२X३२-३४).
पे. १. २४ दण्डक २९ बोल, मागु, गद्य (पृ. १ - १६आ), आदि प्रथम नामद्वार बीजु अंतिः अनंत गुणे अधिक जाणवा.
,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३३१
पे..२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. १६आ-१६आ), आदिः#; अंति:#., पे.वि. प्र.पु.-श्लो.४. ८३७२. गम्माऋद्धि विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., (२५४११.५४).
भगवतीसूत्र-विचार सङ्ग्रह', संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#. ८३७३. गम्माऋद्धि विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२५४११.५४).
भगवतीसूत्र-विचार सङ्ग्रह', संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः#; अंति:#. ८३७४.” प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. ९६, जैदेना., ले.स्थल. गोपाचलपुर, ले.- मु. विनयचन्द
(गुरु मु. अनुपचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०, गा.१२५०; प्र.पु.-उभय-ग्रं. ७५२०., दशा वि. विवर्णपानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अंत के कुछ पत्र,प्र.ले.श्लो. (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, (२५४११.५,
४-६x४४). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः सरीरधरे भविस्सइति. प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः (१) श्रीवर्द्धमानमानम्य (२) जं० अहोजम्बूइ०; अंतिः
जाइं अनन्तसुख पामे. ८३७५. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना.,प्र.वि. खण्ड-४, ढाळ ४१, (२५.५४११, १३४४४).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी;
अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी. ८३७७. राजप्रश्नीयसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१, जैदेना.,प्र.वि. सूत्र-१७५, ग्रं.२१७९, (२५४११, ११४४०-४२).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: सुपस्से पस्सवणा नमो. ८३७८. सत्तरिसयठाणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुरनगरे, प्र.वि. मूल-गा.३६०;
प्र.पु.-मूल-ग्रं. ६००. प्र.पु.-उभय-ग्रं. ९००., (२४.५४११.५, ९x४३-४५). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदिः सिरिरिसहाइ जिणिन्दे; अंतिः जाइ सो
सिद्धिठाणे.
सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ऋषभादिक जिनेन्द्र; अंतिः सिद्धि स्थानकने विषइ. ८३७९. वैरीसिंहकुमार बावनाचन्दनकुमरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. धारवासनगरे, ले.- मु.
विनयचन्द (गुरु मु. अनुपचन्द), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ढाल-३८,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२४४११,
२२४५४-५८). वैरसिंहकुमार चौपई-जीवदयाशील विषये, पं. मोहनविमल, मागु., पद्य, वि. १७५८, आदिः प्रणमुं सारद सामनी; अंतिः
बावनाचन्दन बालो रे. ८३८०. सज्झाय व स्तवन सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८०३, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. पीपाडपुर, ले.- पं.
जसवन्तविजय, (२५.५४१०.५, १४-१६४३५-३७). पे.-१. सम्यक्त्व सडसठबोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-४अ), आदिः सुकृतवल्लि ___ कादंबिनी; अंतिः वाचक जस इम बोले रे., पे.वि. अनुवाद-ढाल-१२. पे:२. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दण्डकविचारगर्भित, पाठक धर्मसिंह, मागु., पद्य, वि. १७२९, (पृ. ४आ-६अ), आदिः पूर
मनोरथ पास जिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए., पे.वि. ढाल-४. पे.३.१० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः स्यादवादमत श्रीजिनवर; अंतिः सिद्धान्त रतन
बहुमोल., पे.वि. गा.२१. ८३८१. सीताकृत आलोचना, दानशीलतपभावना संवाद, धन्ना व चन्दनबाला सज्झाय, पूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ४,
जैदेना., ले.स्थल. बाहादरपुर, ले.- ऋ. विनयचन्द्र, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., (२४४१०.५, १६x४४).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे.-१. सीतासती कृत आलोयणा, मु. कुशल, मागु., पद्य, (पृ. १आ - ४अ, संपूर्ण), आदिः सती न सीता सारिखी; अंतिः शाश्वता केवलकुशल कहत., पे.वि. ढाल ६.
पे.-२. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, (पृ. ४आ - ७आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम जिनेसर पाय अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे, पे. वि. ढाल -४.
पे. ३. धन्नाऋषिगुण सज्झाय, मु. विनयचन्द, मागु, पद्य, (पृ. ७आ-८आ. संपूर्ण), आदि जिनशासन स्वामी अन्तर; अंतिः विनयचन्द गुण गाया.. पे.वि. गा.२०.
पे. ४. चन्दनबाला राज्झाय, मु. विनय मागु पद्य (प्र. ८आ-, संपूर्ण) आदि महावीर अभियहधारी अंतिः सरणो जगदीस हो., पे.वि. गा.११.
८३८२. नन्दीसूत्र व लघुनन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. विक्रमपुरे, (२४.५x१०.५, १५०४३).
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पे. १. नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, (पृ. १आ-१९अ ) आदि जयइ जगजीवजोणीवियाणओ अंतिः से सं परोक्खणाणं.
·
"
पे. २. लघुनन्दी सूत्र अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक प्रा. गद्य (पृ. १९ अ २१आ) आदि से किं तं अणुण्णा अंति वीणा णामाई.
८३८३. गौतमकुलक सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ पे २ जैदेना (२४४१०, ३४३०-३३).
पे- १. पे नाम गौतम कुलक सह टवार्थ, पृ. १आ-६आ
.
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि लुद्धा नरा अत्थपरा अंतिः सुहं लहन्ति.
गौतम कुलक- टवार्थ मागु, गद्य, आदि: लुद्धा० लोभीया नर अंतिः पामे निश्चये करी. पे.वि. मूल-गा.२०.
कुलक-टबार्थ,
पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदि: #; अंति:#., पे. वि. प्र. पु. १.
पे. २. दोहा, मागु., पद्य, (पृ. ८३८५. प्रश्नोत्तर संपूर्ण, वि. १८वी प्रश्नोतर, मागु, गद्य, आदि
-
८३८४. श्रेणिक रास व दोहा, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. ४८, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. धारानगर, ले. ॠ. रणधीर (गुरु मु. मलुकचन्द), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. ले. श्लो. (६०४) जब लग मेरु अडिग है; (१८२) पोथी और पद्मनी (१८३) पोथी और पद्मनी, (२५x१०.५, १४४४०).
पे.-१. श्रेणिकराजा चरित्र, मु. वल्लभकुशल, मागु., पद्य, वि. १७७४, (पृ. १आ- ४८अ ), आदिः आदिसर आदे नमुं; अंतिः
थास्ये परत संसारी, पं.वि. डाल- ४९ प्र.पु. सर्वगा. १२३६.
,
४८अ - ४८अ ), आदिः आदिनाथ प्रणमुं सदा; अंतिः नितप्रति बन्दु पाय., पे.वि. ग.१. श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. प्र. वि. २१ प्रश्न (२४४१०.५, १८०४७-४९), (१) प्रश्न २१ की विगतवार (२) श्रीसूत्र मध्ये गहन अंतिः खादम सादम आणी आपे. ८३८६.” लीलावती भाषा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., प्र. वि. अध्याय- १६, पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन
विभक्ति संकेत, (२५४११, २१४४९-५२).
पे. १. लीलावती भाषानुवाद, मु. लालचन्द, मागु पद्य वि. १७३६ (प्र. १४-८अ ), आदि सोभित सिन्दूर पुर अंतिः वरतो जनसुख काज.
पे. २. स्थान गुणण विचार, सं., मागु प+ग, पृ. ८अ-८आ), आदि धानक माहे हीनइ करि अंतिः चन्द्रोदय मित्यमाह..
"
पे.वि. श्लो. ६.
..
८३८७. चतुःशरणप्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८६८, मध्यम, पृ. १२, जैवेना. ले. स्थल राजनगर, ले. गणि न्यायवर्द्धन (गुरु पं. खेमवर्द्धन), पठ.- साध्वीजी फूल, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल-गा. ६३, प्र.पु - मूल - ६४, ग्रं. ८०. कृति पूर्ण होने के बाद गाथा अनुक्रमसे सिद्धांत विचार की १ गाथा अधिक लीखी गइ हैं., (२५.५X११, ४x२९). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई, अंति: (१) कारणं निव्वुइ सुहाणं ( २ ) हिंविणा न
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पामन्ति,
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ मागु, गद्य, आदि: सावद्य योग क० पाप अंतिः (१) मुक्तिना देणहार छे (२) विना पांगवा दोहिला.
८३८९." भवणद्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११९, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - प्रारंभिक पत्र, ( २५X११, १०x३६-३८).
नारकीभवनद्वार विचार मागु, गद्य, आदि नरक ७ ना भवन सासता अंतिः सिद्ध सदा जयवन्त.
८३९१. स्तवनचौवीसी, स्तवनवीसी व कर्मप्रकृति विचार, संपूर्ण वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. १७, पं. ३, जैदेना. ले. स्थल जयनगर,
ले. पं. मनसुख, ( २५X११.५, १०x३२).
पे. १. स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १अ - ९आ), आदि: मनमधुकर मोही रह्यो; अंतिः चढती बोलति
पावी जी. पे. वि. संपूर्ण २४ स्तवन+कलश, ग्रं.ग्र. २५० २४ स्तवन प्र. पु. ग्रं. २५०.
""
पे. २. पे नाम, विहरमाणजिन गीत पृ. १०अ १७आ
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विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, आदि: मुज हीयडौ हेजालूवौ; अंतिः विहरमाण जिन वीस., पे.वि. २० स्तवन + कलश २० स्तवन.
पे.-३. पे. नाम. कर्मप्रकृति विचार, पृ. १७आ - १७
जैन सामान्यकृति-पेटाक बाकी
सं. प्रा. मागु प+ग, आदि: # अंतिः #
८३९२. विद्याविलास चौपाई, संपूर्ण वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना ले. स्थल बिकानेर, ले. मु. रत्नसागर, प्र. वि. दाल-३०,
(२५.५४११, १७४३७-४३).
विद्याविलास चौपाई, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७११, आदिः सरसति नित आपो सुमति; अंतिः तीस ढाल सुख पायाजी.
·
८३९४. नन्दी सूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. ४३, पे. २, जैदेना. प्र. वि. टबार्थ पत्र ३६ तक है, (२५.५x११.५. ६-७x४२-४४).
पे.- १. पे. नाम. नन्दीसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-३८आ, संपूर्ण
नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से त्तं परोक्खणाणं.
नन्दीसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य (पूर्ण) आदि विषय कषायना जीपणहार अंतिः, पे. वि. मूल गा. 900 टबार्थ
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.३६ तक हीं लीखा हैं.
"
३३३
पे. २. लघुनन्दीसूत्र - अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, (पृ. ३८आ- ४३आ, संपूर्ण), आदि: से किं तं अणुण्णा; अंतिः वीसमण्णा णामाई., पे.वि. सूत्र - ३०.
८३९५. सम्यक्तकौमुदी सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८६१ श्रेष्ठ, पृ. १०५ जैदेना. ले. स्थल. भावनगरबिंदरे, ले. गणि निधानविजय
(गुरु पं. हेमविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले. श्लो. (६१४) यादृसं पुस्तकं दृष्टा (२६.५४१२, ६४३९). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः स्वर्गमश्नुते. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक-टबार्थी मागु, गद्य, आदि श्रीवर्द्धमानस्वामी; अति ते नर मोक्षसुख पामे.
८३९८. कवित सङ्ग्रह, देवरचना व सीमन्धरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ४, जैदेना., ( २४ ११, १७३७
(४१),
पे. १. शाखपुमार कवित, मागु पद्य (पृ. १आ-१आ), आदिः शाख शिसोदि सगला रैणा अंतिः सूर क्षत्री मडशाषरा., पे.वि. गा.१.
"
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पे. २. साठीवारन्यात कवित, मागु पद्य (५ १आ-१आ) आदि श्रीश्रीमाल श्रीमाल अंतिः ए साढीबारा न्यात सही.. पे. वि. गा.१.
,
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३३४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-३. देवरचना, मु. गुणचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १आ-५आ), आदिः सयल जगतपति परमपद; अंतिः थुवें गुणचन्द
सवारी., पे.वि. गा.७७. पे.-४. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १८६५, (पृ. ६अ-७आ), आदिः सकल जगत परिद्याल;
___अंतिः देही प्रभु समता घणी., पे.वि. गा.३२. ८४०१. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिबिंदरे, प्र.वि. ढाल-८, (२५.५४११, ११४३९).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः सकल सिद्धिदायक; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए. ८४०२. सुदरसन सेठ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., प्र.वि. ढाल-३७, (२६.५४११.५, ११-१२४३८).
सुदर्शनशेठ चौपाई, ऋ. ब्रह्म, मागु., पद्य, आदिः श्रीजिणचरण प्रणीमइ; अंतिः सुख पावै ते सासता. ८४०४. चोमासी देववन्दन, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. सरसपुर, (२६.५४१२, १२४३४).
चौमासीपर्व देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः विमलकेवलज्ञान कमला; अंतिः पास सामलनु चेई रे. ८४०५. सीमन्धरजिन स्तवन सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८५६, मध्यम, पृ. २१-२(१,३)=१९, जैदेना., प्र.वि. मूल-ढाल-११, गा.१२६.
___ अंतिमवाक्य का टबार्थ नहीं लिखा हैं., (२५४११.५, ४४३५). सीमन्धरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः जसविजय बुध जयकरो.
सीमन्धरजिनविनती स्तवन १२५ गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः८४०६. दीपावलीकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले.स्थल. मजादरग्रामे, ले.- पं. उत्तमविजय,
प्र.वि. मूल-श्लो.४३३; टबार्थ-ग्रं. १२००., (२६.५४१२, ६x४०-४३). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्रये. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, गणि सुखसागर, मागु., गद्य, वि. १७६३, आदिः अष्टमहाप्रातिहार्यनी; अंतिः
वोर्हद्धर्मदीपोत्सवः. ८४०७. अजितशान्ति, मोटीशान्ति व पाक्षिकचैत्यवन्दन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना., (२७४१२.५, ११४३७).
पे.१. अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-४आ), आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे ___ आयरं कुणह., पे.वि. गा.४०. पे.२.बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, (पृ. ४आ-६आ), आदिः भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. पे.-३. सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः
श्रीवीरभद्रं दीसम्., पे.वि. श्लो.३०. ८४०८. साधुनिर्वाण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२६.५४१२.५, ८x३०).
साधु कालधर्म विधि, मागु., गद्य, आदिः ज्यारे साधु कालकरे; अंतिः जमणी बाजु मुकवो. ८४०९. मौनएकादशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. पेथापूर, ले.- गणि नरेन्द्रविजय,
प्र.वि. मूल-श्लो.११०., (२५.५४१२.५, ७X४२-४४). मौनएकादशीपर्व माहात्म्य, मु. धीरविजय, सं., पद्य, वि. १७७४, आदिः प्रणम्य श्रीवर्द्धमा; अंतिः तावन्नदतुचिरायैषा.
मौनएकादशीपर्व माहात्म्य-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामि; अंतिः तांइ ए कथा रहेज्यो. ८४११. कर्मग्रन्थ १-४ सह टबार्थ व सम्यग्दृष्टिलक्षण श्लोक, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. ७३, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल.
अमदावादनगर, ले.- कलाशिवदान ब्राह्मण, (२६४११, ३४२८-३५). पे.-१. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १आ-१९अ
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेव प्रति; अंतिः इत्यबन्धादिचतसयलक्षण., पे.वि.
मूल-गा.६३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पे.२. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, प्र. १९अ-३०आ
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः तथा प्रकारे स्तुति; अंतिः करु ते महावीर प्रतै., पे.वि. मूल
गा.३४. पे.-३.पे. नाम. बंधस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. ३०आ-४०अ
बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः बन्धना कारण ५७ हेतु; अंतिः स्तवथी साम्भली नयइ.,
पे.वि. मूल-गा.२५. पे.-४. पे. नाम. षडसीति सह टबार्थ, पृ. ४०अ-७३अ
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वान्दीनइं तीर्थङ्कर; अंतिः सूरिनामा आचार्यै., पे.वि. मूल
गा.८९. पे.५. सम्यग्दृष्टिलक्षण श्लोक, मागु., पद्य, (पृ. ७३अ-७३अ), आदिः समदृष्टि संसार मे; अंतिः क्षुधाय खेलावत बाल.,
पे.वि. गा.१. ८४१३. आलोचना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२५.५४११, १०-११४३०).
साधु आलोयणा, सं., गद्य, आदिः ज्ञानाशातनायां; अंतिः अभणने आचाम्लंसाधोः. ८४१४." राजप्रश्नीयसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १५५६, मध्यम, पृ. ७३+२(७,४७)=७५, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थे, लिखवा.- श्राविका
भीमी रत्नपाल, पठ.- मु. तिलक,प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. ग्रं.३७००, संशोधित-प्रारंभिक पत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें
संधि सूचक चिह्न-प्रारंभिक पत्र, (२६४१०.५, १५४४८-५३).
राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः प्रणमत वीरजिनेश्वर; अंतिः ताडनानि कशादिघाताः. ८४१५. कर्मग्रन्थ १-४ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, पे. ४, जैदेना., (२५.५४११.५, ४४३०-३५). पे.-१. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १आ-१५अ
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः कर्मग्रन्थस्य षटकस्य; अंतिः सूरिइं सिद्धान्त थकी., पे.वि.
मूल-गा.६०. पे.२. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १५अ-२३आ
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः हिवे बीजो कर्मविपाक; अंतिः छु नमस्कार करुं छु., पे.वि.
मूल-गा.३४. पे.३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. २३आ-२९आ
बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ५७ हेतु बन्धना कारण; अंतिः पयडी थी साम्भलीने., पे.वि.
मूल-गा.२५. पे.-४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. २९आ-५०आ
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंति: देविन्दसूरीहिं.
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हवइं चउथा कर्मग्रन्थ; अंतिः देविन्द्रसूरिइं., पे.वि. मूल-गा.८६ ८४१६." स्नात्रपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. पाटणमध्ये,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ
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कुछ पत्र, ( २६११.५, १३ - १४X३४-४० ).
स्नात्रपूजा सङ्ग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, सं., प्रा.,मागु., प+ग, आदिः (१) मुक्तालङ्कार विकार (२) पवित्र उदक इ अङ्ग; अंतिः (१)जयो जयो भगवन्तजी ( २ ) उतारी राजा कुमारपाल.
गा. १०४., ( २६११.५, ४x२२ - २८ ) .
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असार अप्रधान; अंतिः जीव सास्वतो स्थानक.
८४१७. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९१९ श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना ले. स्थल राजनगरमध्ये ले खेमचन्द, प्र. वि. मूल
P
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८४१८. ओघनिर्युक्त्यावचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., प्र. वि. प्र.पु. - ग्रं. ३३३४., ( २६×११, २१x६९-७२). ओघनिर्युक्ति-अवचूर्णि# आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३९, आदिः प्रक्रान्तोयमावश्यका; अंतिः एसाअण० स्पष्टा. ८४२०. क्षेत्राधिकार यन्त्र व बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. दिल्ली, ले. ऋ.
.
-
विनयचन्द्र (२६४११.५ ७२९-३३).
.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे.-१. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-यन्त्र सङ्ग्रह *, मागु., कोष्टक, (पृ. १अ - १०आ), आदिः#; अंतिः#.
पे.-२. बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, (पृ. १०आ-१६अ ), आदिः विखम्भवग्गदहगुण मूलं; अंतिः ते देखी लेवो.
८४२३.” कर्मग्रन्थ १-४ सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१५, श्रेष्ठ, पृ. ले. पं. उमेदसागर (गुरु पं. विशेषसागर), प्र.ले.पु. विस्तृत प्र. वि. युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, प्र.ले. श्लो. (६१५) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा पे. १. पे. नाम कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, उपा. जयसोम, मागु., गद्य, आदिः एहवा श्रीमहावीर; अंतिः देवेन्द्रसरूश्वरे. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मागु., गद्य, आदिः ऐंदवीयकलाशौक्लीं; अंतिः
तपागच्छनायक, पे.वि. मूल-गा.६१ प्र. पु. सर्व ग्रं. १४६५.
पे. २. पे नाम, कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ सह टवार्थ व बालावबोध, पृ. ३५आ-५६आ
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ उपा. जयसोम मागु, गद्य, आदि: तेम स्तवीस श्रीवीर०: अंतिः महावीरदेवना
"
·
१२९, पे. ४, जैदेना., ले. स्थल. सांतलपुरनगरे, पंक्ति अक्षर अनियमित है। संशोधित टिप्पण (४६२) मङ्गलं लेखकस्यापि ( २६४११४).
१आ-३५आ
चरणकमल.
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. जयसोम, मागु., गद्य, आदिः ॐनमः स्त्रिजगत्सृ०; अंतिः अपूर्वके नमस्कार हो.., पे.वि. मूल-गा.३५. प्र. पु. बालावबोध ग्रं. ७४१.
पे. ३. पे नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह टवार्थ व बालावबोध पृ. ५६आ-७६अ
बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ मु. जयसोम मागु. गद्य, आदिः कर्मबन्धननुं विधानक अंतिः कर्मस्तव
,
साम्भलीनई.
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बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मागु., गद्य, आदिः ऐन्द्रचान्द्रपदवी; अंतिः यशस्सोममुखान्श्रृणुं, पे. वि. मूल-गा. २५.
पे. ४. पे नाम षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. ७६ अ १२९
"
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि: नमिय जिणं जिय: अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, उपा. जयसोम, मागु., गद्य, आदिः नमिनिं जिनप्रति जीव; अंतिः गच्छाधिराज
तेहोणं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३३७ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मागु., गद्य, आदिः प्रविगध्यायपरन्तेजो; अंतिः तपागच्छाधिराज
तिहोणे., पे.वि. मूल-गा.८९. ८४२४. निरयावलियादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. ५९, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेरमध्ये,
पू.वि. अंत में टबार्थ सर्व ग्रं.११०९ लिखा है., (२६४११, ६x४४-४७). पे.१. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. १आ-२४अ
कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते० ते अवसरपणी काल० अंतिः आठमओ स० सम्पूर्ण थयओ.,पे.वि.
___ मूल-अध्याय-१० अध्ययन. पे..२. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. २४अ-२६आ
कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिद्धे. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जउ भं० हे पूज्य; अंतिः महाविदेहइ सीझस्यइ., पे.वि. मूल
अध्याय-१० अध्ययन. पे.-३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. २६आ-५०आ
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जति णं भंते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए.
पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जओ हे पूज्य; अंतिः गाथामाहे छे तिम., पे.वि. मूल-अध्याय-१० अध्ययन. पे..४.पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. ५०आ-५३आ
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः वासे सिज्झिहिंति. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: ज० जो हे पूज्य; अंतिः विषइं सि० सिझस्यइं., पे.वि. मूल-अध्याय-१०
अध्ययन. पे.५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. ५३आ-५९आ
वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज० जओ भं० हे पूज्य; अंतिः अध्ययन जाणि वा., पे.वि. मूल-अध्याय-१२
अध्ययन. ८४२५. वैराग्यशतक सह टबार्थ, धर्मफल व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ३, जैदेना., (२६४११, ५४५२-५५). पे..१. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १आ-९आ
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चउदश राजप्रमाण लोक; अंतिः स्थानक प्रतिइ.,पे.वि. मूल-गा.१०४;
प्र.पु.-उभय-ग्रं.४२५. पे:२. धर्मफल गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदि: धम्मेण कुलप्पसइ; अंतिः धम्मोत्ताणञ्चसरणञ्च., पे.वि. गा.२.
पे..३. जैन दुहा सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ९आ-९आ), आदिः#; अंति:#., पे.वि. प्र.पु.-१. ८४२६." वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२७, श्रेष्ठ, पृ. ७, देना., ले.स्थल. फतेपुर, प्र.वि. मूल-गा.१०४., पदच्छेद
सूचक लकीरें, (२६.५४११, ६४५३-५६). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असार अप्रधान; अंतिः सास्वतउ वा स्थानक. ८४२७. सन्थारापयन्ना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- मु. महताबराय (गुरु मु. भवानजी), प्र.वि.
मूल-गा.१२२. प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. ५००., पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६x१०.५, ६४५४-५७). संस्तारक प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंतिः सुहसंकमणं मम दिंतु.
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३३८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ___ संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: करीनइ नमस्कार जिणवर; अंतिः मनोरथ जाणिवा. ८४२८. भरतबाहुबली सवैया, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. गा.३५, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा,
(२६४१०.५, १२४३६-४२).
भरतबाहुबली सवैया, मु. सभाचन्द, मागु., पद्य, आदिः परम पुरुष धरा जुगल; अंति: जगतमे शोभ चढावे. ८४२९. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व श्लोक-सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६४०, श्रेष्ठ, पृ. ६,पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिबंदर, ले.
ऋ. हेमा, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१०.५, ६४३५-४०). पे.-१.पे. नाम. गौतमपृच्छा सह टबार्थ, पृ. १अ-६आ
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि.
गौतमपृच्छा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंतिः प्रति प्रगटार्थ कहीउ., पे.वि. मूल-गा.६४. पे.२. जैन दुहा सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ६आ-६आ), आदि:#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-२. ८४३०. कालसप्ततिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- देवकृष्ण वेलजी, प्र.वि. गा.७५, (२६४११, १०४३१-३६).
कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः देविन्दणयं; अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं. ८४३१. निगोदषट्त्रिंशिका सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८५८, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले.- मु. विनयचन्द, प्र.वि. हिस्सा-गा.३६.
प्रतिलेखन वर्ष-"वसुस्मरबालशंभुमूर्तिभूवर्षे", पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२५.५४११.५, १५४४७-४९). भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः लोगस्सणम्भन्तेएगम्मि; अंतिः ते
अणन्ता असखा वा. भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका के हिस्सा-निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसुरि, सं., गद्य, आदिः अथ
पंचमांग; अंतिः सङ्ख्येया अवसेयाः. ८४३२." विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., ले.- मु. महताबराय (गुरु मु. भवानजी), प्र.वि.
मूल-अध्याय-२श्रुत./२०अध्य.., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंतिमवाक्य का टबार्थ नही लीखा हैं., (२६४११.५,
१०४५७-६२). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स.
विपाकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अथविपाकश्रुतमिति कः; अंतिः#. ८४३३. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-११(४ से १४)=५, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के
__पत्र नहीं हैं., (२६४१०.५, १९x४७-६७). प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति:
प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः नमो० नमस्कारहुवउ; अंति:८४३४. चन्दराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२१, श्रेष्ठ, पृ. १२३, जैदेना., ले.स्थल. भावनगरे, ले.- मु. वस्ताजी (गुरु मु. हीरजी),
प्र.वि. ढाल-१०८, ४ उल्लास, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२६४११.५, १३४४१).
चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ८४३५. रुपसेन रास, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. १०२-१(३०)=१०१, जैदेना., ले.स्थल. सरधारग्रामे, ले.- ऋ. अमीधर (गुरु
मु. भीमसेन), पठ.- ऋ. गङ्गाधर (गुरु ऋ. अमीधर),प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. ढाल-७५, गा.२००२, पू.वि. ढाल-७५,
गा.२००९., (२६४११.५, १५४३१).
रूपसेन रास, मु. महानन्द, मागु., पद्य, वि. १८०९, आदिः श्रीऋषभादिक नित्य; अंतिः थाये परम मङ्गल पावए. ८४३६. स्नात्रपूजा, अष्टप्रकारी व सत्तरभेदीपूजा, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. जावाल, ले.- मु.
जसवन्तविजय, (२६४११.५, ११४४४). पे.-१. स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. १आ-५अ), आदिः चोतिसे अतिसय; अंतिः कही सूत्र
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
मझार.
पे. २.८ प्रकारी पूजा, मु. देवचन्द्र, सं., मागु., पद्य, वि. १७२४, (पृ. ५आ-७आ), आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः क्लेशक्षयाकाङ्क्षया
पे - ३. १७ भेदी पूजा, मु. साधुकीर्ति, मागु., पद्य, वि. १६१८ (पृ. ७आ - १४आ), आदिः भाव भले भगवन्तनी; अंतिः सब लीला सुख साजे.
८४३७. आणन्दश्रावक सन्धि व प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. १८ पे २, जैदेना. ले. स्थल दिल्लीनगर, मु. विनयचन्द (गुरु मु. अनुपचन्द), (२५.५४११.५. २१४४८-५२).
पे. १. आनन्द श्रावक सन्धि पाठक श्रीसार, मागु पद्य वि. १६८४ (पृ. १आ-६आ) आदि वर्द्धमान जिनवर चरण अंतिः पभणइ मुनि श्रीसार, पे.वि. डाल-१५.
पे. २. पे. नाम. केशीकुमार भ्रमण प्रतिबोध परदेशीनृप प्रबन्ध, पृ. ६आ-१२अ
केशीगणधर परदेशीराजा चौपाई. मु. ज्ञानचन्द, मागु पद्य वि. १८वी आदि प्रणमी श्रीअरिहंत अंतिः पामे शिवसुख सार., पे.वि. ढाल - ४१.
३३९
८४३८. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. गणि खन्तिविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम. प्र. वि. ढाल ९ गा.७७ (२६४११, ११४३२-३५).
८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मागु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर निकलङ्क जे; अंतिः थाय० आप समवड थापीये.
८४४२. भावना वेली, पद व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. कालद्री, ले. - गणि नायकविजय (गुरु गणि कपूरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले. श्लो. (५३३) मङ्गलं लेखकानां च (२५.५४११ १३४४२).
पे. १. १२ भावना राज्झाय उपा. जयसोम मागु पद्य वि. १७०३ (५. ११-६अ ) आदि पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर मझार, पे. वि. गा.१२८.
पे. २. ४ कषाय परिहार, मागु पद्य (पृ. ६आ-६आ ) आदि परनन्द्या त्याग करि अंतिः मिथ्याती महापातिकी, पे.वि.
गा.२.
पे. ३. जैन श्लोक सं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदि # अंतिः #, पे. वि. प्र.पु.गा. १.
८४४३.” सम्बोधसत्तरि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. १२६., संशोधित, ( २६.५X११,
४X३२).
सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु, गद्य, आदिः ॐ नमस्ते जगतस्य अंतिः मोक्ष सुख हुई पानें.
८४४४. भाव प्रकरण सह टवार्थ व यन्त्र, संपूर्ण वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ३०. (२६९११, ३४३२). भाव प्रकरण, गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदिः आणंदभरियनयणो आणंद, अंतिः रम्माओ पुव्वगंथाओ. भाव प्रकरण- टवार्थ* मागु, गद्य, आदि आनन्दइ करि भरिय कहता अंतिः अपूर्व गाथा कही.
P
भाव प्रकरण का यन्त्र, मागु., गद्य, आदिः #; अंतिः #.
८४४५. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र. वि. २४ स्तवन, पू. वि. २४ स्तवन., (२७X१०.५, १०X३८). स्तवनचीवीसी कवि पद्मविजय, मागु, पद्य, आदि ऋषभ जिनेश्वर ऋषभ अंतिः पद्मविजय गुण गाया रे.
;
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८४४७.) राजप्रश्नीयसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११०, जैदेना., प्र. वि. मूल- सूत्र - १७५ प्र. पु. - मूल ग्रं. २१२०.प्र.पु. -
टीका-३६५०. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें - कुछ पत्र, ( २६११x). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से परसवणा नमो.
राजप्रश्नीयसूत्र - टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि प्रणमत वीरजिनेश्वर अंतिः तेन भवतु कृती.
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३४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
८४४८." नलराजादवयन्ती चरित्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-२(१,५)=१८, जैदेना.,ले.- वासण, पठ.- साध्वीजी रङ्गाई,
प्र.वि. गा.३२१; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ४७१, दशा वि. विवर्ण-पानी से-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५४१०.५,
१२४३९-४२). नलदमयन्ती रास, आ. ऋषिवर्द्धनसूरि, मागु., पद्य, वि. १५१२, आदि:-; अंतिः मन्दिर तस तणइ ए. ८४४९." भाष्यत्रय सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-१(१)=१९, जैदेना., पठ.- श्राविका बाईफडकु, प्र.वि. मूल-३
भाष्य., पदच्छेद सूचक लकीरें, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५.५४११, ५४४०). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं.
भाष्यत्रय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः रहित एहवें स्थानक. ८४५३. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि.
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन-५ गा.२५ तक लीखा हैं., (२७४११, ७X४०-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति:
दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः दुर्गतिपडतां उधरइ; अंतिः८४५४. गीतचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. २४ स्तवन, (२६x११.५, ११४३६).
स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, आदिः मरुदेवीनो नन्द माहरो; अंतिः तै संसार सारो रे. ८४५५.” गीतचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७२२, मध्यम, प्र. १२, जैदेना., ले.- गणि हेमसागर, पठ.- श्राविका मानबाई,प्र.वि. २४
स्तवन, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२६४११.५, ९४२९-३३).
स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, आदिः मनमधुकर मोही रह्यो; अंतिः हिव करी आप समान रे. ८४५८. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.- रुपचन्द, प्र.वि. २०स्तवन, (२७४१२, १२४४१-४३).
_ विहरमानजिन स्तवनवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः श्रीसीमन्धर जिनवर; अंतिः सुजस महोदय वृन्दो रे. ८४५९. अध्यात्म गीत, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पालीताणा, प्र.वि. गा.४९, (२७४१२, ९x४०-४२).
अध्यात्मगीता, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः प्रणमियै विश्वहित; अंतिः रङ्गी मुनि सुप्रतीता. ८४६२. पिस्तालीस आगम पूजा, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. राधणपुर, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती
काल मे लिखित, (२४४१२, १४४३७-३९). ८ प्रकारी पूजा-पिस्तालीसआगमगर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८१, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः
सङ्घने तिलक कराओ रे. ८४६३. बारव्रत पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.१२४; प्र.पु.-मूल-श्लो.२०३., (२४४१२, १४-१६x४१).
१२ व्रत पूजा विधि, मु. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८७, आदिः (१) उच्चैर्गुणैर्यस्य (२) सद्धेश्वर साहिबो; अंतिः
जग जस पडह वजायो रे. ८४६४. बारभावना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१३, (२४.५४१२, ११४२६).
१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर
मझार. ८४६५. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. २३-१(१)=२२, जैदेना., ले.स्थल. रवनगरे, ले.- मु. सुमतिविजय
(गुरु पं. हस्तिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२४४११.५, ५-६x४०-४२). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि:- अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति.
पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः श्रुतसागर भक्ति. ८४६६. दशवैकालीकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, पे. ३, जैदेना., (२५४११.५, १३४३७-४३).
पे:१. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, (पृ. १अ-२२आ), आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३४१
गई त्ति बेमि., पे.वि. अध्याय-१०अध्ययन. पे.२. सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. २२आ-२३आ), आदिः पुच्छिंसुणं
समणा; अंतिः देवाहिव आगमिस्सन्ति., पे.वि. गा.२९. पे..३. प्रास्ताविकगाथा सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. २३आ-२४आ), आदिः पञ्च महव्वय सुव्वय; अंति: जैनधर्मोस्तु
मङ्गलम्., पे.वि. गा.२८. ८४६७. तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, (२६४११.५, ६
७५१-५४). तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, आदिः निज्जरिय जरामरणं; अंतिः कारणं लहिइ शिव सुखं. तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः (१) श्रीमहावीरदेवने (२) अथ ग्रन्थकर्ता
कहइछइ; अंतिः मुक्ति पहोचें ए भाव. ८४६८. षडावश्यकसूत्र व सूत्र अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२, पे. २, जैदेना., (२५.५४११.५, ९४३४-३६).
पे.-१. आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, (पृ. १आ-९आ), आदिः णमो अरहंताणं०; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ., पे.वि. ६
अध्ययन. पे.२. आवश्यकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, (पृ. ९आ-६२आ), आदिः ग्रन्थारम्भेभिमतदेवत; अंतिः चत्वार एवेति. ८४६९. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, प्र. ५, जैदेना.,प्र.वि. संबद्ध-गा.५०., पदच्छेद सूचक लकीरें,
संशोधित, (२६४१२, ६४३५). वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धे; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं.
वन्दित्तुसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः वान्दि सर्व सिद्ध; अंतिः चतुर्विंशतिजिन. ८४७०. पाखिसूत्र व खामणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पे. २, जैदेना., ले.- मु. गलालविजय (गुरु पं.
कुअरविजय), (२५.५४११.५, ७४३४-३७). पे.-१.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२१आ
पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिजेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तीर्थङ्करसिद्ध तीर्थ; अंतिः हुइ ते मिच्छामिदुकडं., पे.वि. प्र.पु.-उभय ___ग्रं.७००१. दुसरे पेटांक का भी ग्रन्थान इसके साथ संलग्न हैं. पे.२.पे. नाम. क्षामणासूत्र सह टबार्थ, पृ. २१आ-२२आ
क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासणौ पिअं; अंतिः नित्थारग पारगा होह. क्षामणकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हे क्षमाक्षमण वाञ्छु; अंतिः मने करी वान्दु छु., पे.वि. हिस्सा-सूत्र-४
आलावा. ८४७१. अञ्जनासती रास, संपूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले.- पं. वृद्धिचन्द्र, प्र.वि. खण्ड-३/२२
ढाल, (२५४११.५, १६x४४-४८). अंजनासुन्दरी रास, मु. पुण्यसागर, मागु., पद्य, वि. १६८९, आदिः श्रीगौतम गणधर प्रमुख; अंति: भारज्या जगतनी
मायतो. ८४७२. श्रीपालभूपाल, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले.- प्रमोद रताणी, प्र.वि. गा.८८१,
(२५४११.५, १४४४२-४८).
श्रीपाल बृहद्रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४०, आदिः अरिहन्त अनन्तगुण; अंतिः पातकवन लुणिज्ये रे. ८४७३. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. जावाल, ले.- मु. उत्तम, प्र.वि. ढाल-९, गा.७७,
(२५.५४११, ११४३३-३८).
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३४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मागु., पद्य, वि. १८२१, आदिः अजर अमर निकलङ्क जे; अंतिः थाय० आप समवड
थापीये. ८४७४. पिस्तालीस आगम पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. मुंबैइंबिंदर, ले.- मु. खन्तिविजय,
(२५.५४११.५, १२४३८-४२). ८ प्रकारी पूजा-पिस्तालीसआगमगर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८१, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः
सङ्घने तिलक कराओ रे. ८४७६. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, बीज व एकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल.
पत्तननगर, पठ.- श्राविका वाल्ही, (२६४११.५, ११४३७-३९). पे.-१.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. १आ-१४अ
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः अम्ह सया पसत्था. पे..२. पे. नाम. द्वितिया स्तुति, पृ. १४अ-१४अ
बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, आदिः दिन सकल मनोहर; अंतिः पूर मनोरथ माय., पे.वि. गा.४. पे.-३. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १४अ-१४आ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, आदिः एकादशी अति रुअडी; अंति: सङ्घ तणा निशदिश.,
पे.वि. गा.४. ८४७७. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.- कुंअरजी लहीया, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ
अपूर्ण हैं., (२६.५४१२, ७४३३-३७). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, (संपूर्ण), आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति.
पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः एकतो ते० तीर्थङ्कर; अंतिः८४७८. प्रकरणचतुष्क सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. त्रिपाठ, पू.वि.
सर्वग्रं.१०८३., (२५.५४११.५, २-५४४०). पे.१.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, पृ. १आ-१०आ
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा.
नवतत्त्व प्रकरण- टीका, सं., गद्य, आदिः जयति श्रीमहावीरः; अंतिः शीद्धं प्राप्नुवन्ति., पे.वि. मूल-गा.४२. पे.२. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टीका, पृ. १०आ-१७अ
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-अक्षरार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदिः भुवणपईवमिति० अहं; अंतिः अर्थदीपिका समाप्ता.,
पे.वि. मूल-गा.५१. पे.-३.पे. नाम. दण्डक प्रकरण सह टीका, पृ. १७आ-२१आ
दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ.
दण्डक प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: नमिऊ० नत्वामनोवाक्का; अंतिः भवतीतिसूक्तं स्थापित., पे.वि. मूल-गा.३८. ८४७९.” पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८३०, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. राजपुर, ले.- मु. बालचन्द, पठ.- मु. वागजी (गुरु मु.
बालचन्द), प्र.वि. श्लो.१८४, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२४४११.५, १७-१८४४४-४७).
पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंतिः सर्वंसत्यं भवत्तीति. ८४८०.” परमाणु व पुदगलविचार सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक
लकीरें, (२५.५४११.५, १८४४९). पे.१. पे. नाम. परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण सह टीका, पृ. १आ-३आ
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३४३ भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः खित्तोगाहणदवे भाव;
अंतिः बहुतराणं गुणाण ठिई. परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदिः यथास्थिताणुजीवादि; अंति: गुणमिति
स्थितम्., पे.वि. हिस्सा-गा.१५. पे.२. पे. नाम. पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण सह टीका, पृ. ३आ-८अ भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: वुच्छं अप्पाबहुअं; अंतिः ते
अणन्ते जिणाभिहिए. पुदगलषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदिः अथ पञ्चम एव; अंतिः हितान्
__जानीयादिति., पे.वि. हिस्सा-गा.३६. ८४८१. श्रीचन्द्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १६७६, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., ले.स्थल. कटारीयामध्ये, ले.- पं. अमरचन्द्र (गुरु उपा.
___शान्तिचन्द्र), पठ.- गणि जयचन्द्र, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ४ अधिकार, श्लो.९६६, (२५.५४११, १५४४०-४३).
श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., पद्य, वि. ५९८, आदिः ॐ ध्यात्वा श्रीजिना; अंतिः सङ्घश्चिरं नन्दतात्. ८४८२." रत्नसञ्चय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिमध्ये, ले.- लालचन्द, पठ.- ऋ.
रामजी (गुरु ऋ. सामजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.५४५., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, ७X४२-४५). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिन्दे; अंति: गाहा आगमे भणिया.
रत्नसंचय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरनै नमस्कार; अंतिः सूत्रनेंविषं कही छै. ८४८३." रत्नसञ्चय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., ले.स्थल. वीरमग्राम, ले.- ऋ. जयानन्दजी, प्र.वि.
मूल-गा.३४७., संशोधित, (२५४११.५, ५४२९-३३). विचारसार, प्रा., पद्य, आदिः बारस गुण अरिहंता; अंतिः नइणम्माणं मणूयलोए.
विचारसार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः बा० १२ बारगूणअरीहन्त; अंतिः द्वीपने विषे जाणवौ. ८४८५. मेरुत्रयोदशी कथा, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. उतेलीयाग्रामे, ले.- मु. रङ्गरत्न (गुरु पं.
कशलरत्न), पठ.- पं. तेजविजय (गुरु पं. माणिक्यविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें
संधि सूचक चिह्न, (२६४१२, १५४३५). मेरुत्रयोदशी कथा, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य भारती; अंतिः अतिस्यमुक्ति साधनं. ८४९०. निन्हबारी सिझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना., (२४.५४१२, ७४२३-२६).
निह्नव सझाय, राज., पद्य, आदिः ठाणाअङ्ग उवाइ उपङ्गम; अंतिः नीचो मत निनवां तणो. ८४९१. चउमासी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९३५, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., (२५४१२, १२४३६-४३).
चातुर्मासिक व्याख्यान, राज., गद्य, आदि: अष्ट महाप्रातिहार्य; अंतिः मङ्गलीकमाला पामें. ८४९२. लुकारी हुण्डी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना., (२४.५४१२, ८x२३).
लुङ्कारी हुण्डी, मागु., गद्य, आदि: जगरसनरानीचं जागरमाण; अंतिः चुत्र विचषणको छे. ८४९३. चउसरण पयन्ना व महादण्डक कुलक, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अजयमेरुनगर,
पठ.- श्रा. गम्भीरमल बाण्ठीया, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२६४१२.५, ९४२९). पे.-१. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-६अ), आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ
सुहाणं., पे.वि. गा.६३. पे..२. महादण्डक कुलक, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदिः थोवागब्भय मणुआ सखे; अंतिः अत्ताणं
पढणणट्ठाए., पे.वि. गा.१९. ८४९४. ज्ञानपञ्चमी देवन्दन-सौभाग्य, संपूर्ण, वि. १९०१, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., ले.- पं. चन्द्रदत्त(खरतरगछ), पठ.- गणि
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
खन्तिविजय(खरतरगच्छ), (२५.५४१२, १३४३१-३३). ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, आदिः श्रीसौभाग्यपञ्चमी; अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज. ८४९५. भगवतीसूत्र हुण्डी, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है*, (२६.५४१२.५
भगवतीसूत्र-हुण्डी, ऋ. धर्मसिंह, मागु., गद्य, वि. १८८२, आदिः नवकार नमो बम्भीए; अंतिः ऋष धर्मसिह कृत. ८४९६. कर्मग्रन्थ-४ षडशीति, संपूर्ण, वि. १८९३, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.८६, (२६४१२.५, १०४३३-३६).
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. ८४९७. साधु वन्दना, संपूर्ण, वि. १८०९, मध्यम, पृ. ७, जैदेना.,प्र.वि. गा.८८, (२५.५४१२, ११४३४-३६).
साधुवन्दना, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, आदिः रिसहजिण पमुह चउवीस; अंतिः मन आणन्दे सन्थुआ. ८४९८. बारभावना, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-१३, (२५.५४१२.५, ११४३७-३९).
१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर
मझार. ८४९९. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, ले.- वनमाली मूलजी ठकर, प्र.वि.
अध्याय-२० स्तवन; प्र.पु.-मूल-२१ स्तवन., (२६४१२.५, १०४२७). स्तवनवीसी-अतीत, मु. देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः जिणन्दा तारा नामथी; अंतिः होज्यो सदा सहाय. ८५०१. षटपर्व वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ढाल-८, (२५४१२.५, ११४३३).
महावीरजिन स्तवन-षट्पर्वी, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, वि. १८३०, आदिः श्रीगुरुपदपङ्कज नमी; अंतिः नाम षट्पर्वी
धर्यो. ८५०२. ढालसागर, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं है. गा.३४४३ तक हैं., (२६.५४११,
१९४५४-५६).
पाण्डव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदिः श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंतिः८५०४.” समवायाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. ९४, जैदेना., ले.स्थल. अकबराबार, ले.- ऋ. महताब (गुरु
ऋ. भवानिदास); मु. गोपालदास (गुरु दोलतराम), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-१०३अध्ययन, सूत्र-१५९; प्र.पु.-मूलग्रं. १६६५; टबार्थ-ग्रं. ४४५७. टबार्थ प्रतिलेखक- गोपालदास. प्रतिले- वर्ष-१८५५, स्थल-आगरा., टिप्पण युक्त विशेष
पाठ, (२६४११.५, ७-९४४१). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. समवायाङ्गसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., गद्य, वि. १७उ., आदिः (१) देवदेवं जिनं नत्वा (२) पांचमो गणधर
सुधर्मा; अंतिः बहुमान देखाड्यउ. ८५०८. षटपर्व माहात्म्य स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. ढाल-९, (२८x११.५, १२४३२-३७).
महावीरजिन स्तवन-षट्पर्वी, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, वि. १८३०, आदिः श्रीगुरुपदपङ्कज नमी; अंतिः नाम षट्पर्वी
धर्यो. ८५११. कर्मग्रन्थ-६ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९६३, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., ले.- पं. कनैयालाल बुधालाल, प्र.वि. मूल
गा.९३., (२६.५४१२, ११४३४-४०). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ.
सप्ततिका कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः ए गाथाने विषै च्यार; अंति: नेऊ गाथा होइ. ८५१२.” पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- करसन वेलजी दवे, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें,
संशोधित, (२६.५४१२, १२४३७). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३४५
८५१३. गजसुकमाल सज्झाय, द्रौपदी रास व चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४४, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल.
अजमेर, अन्य- श्रा. सुगनचन्द, (२७४१२.५, १७X४३). पे..१. गजसुकुमाल सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. १अ-२आ, संपूर्ण), आदिः सुवरणमइ है द्वारिका; अंतिः गन वन समरो ___साहिब नेम., पे.वि. गा.३६. पे:२. द्रौपदी रास, मागु., पद्य, (पृ. २आ-५आ, अपूर्ण), आदिः कृष्ण नरेसर आद; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पे.-३.२४ जिन स्तवन, मु. नन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५आ, संपूर्ण), आदि: चतूर वीस जिनराज नमुं; अंतिः सफल फली
मुझ आसोजी., पे.वि. गा.७. ८५१४. वैराग्यशतक सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., (२७.५४१२.५, ६४३५). पे.१. पे. नाम. वैराग्य शतक सह टबार्थ, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य(पूर्ण), आदि:-; अंतिः लहइजीव शाश्वतु ठांम., पे.वि. मूल-गा.१०५. प्रतिलेखक द्वारा
प्रारंभ की ३ गाथा का टबार्थ नही लीखा हैं. पे..२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-१. ८५१५. नवपदखमासमण व अरिहन्तगुण, संपूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.- खुबचन्द, (२६४१२, १४४२०
३८). पे.-१. नवपद गुण, सं., गद्य, (पृ. ७-७), आदिः (१) अथ अरिहन्तजी ना (२) स्वर्णसिङ्घासणस्थिता; अंतिः उत्सर्ग
तपसे नमः.
पे.२. अरिहन्त वर्णन, मागु., गद्य, (पृ. ७-७), आदिः अरिहन्त केहवा छे; अंतिः अखुट खमासमणा होज्यो. ८५१६. रत्नसञ्चय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२१, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपूर, प्र.वि. मूल-गा.५०२.,
(२७४१२, १६-१७४५५-५८). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणं वीरं; अंतिः इय भणियं आगमे निश्चं.
रत्नसंचय-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः नमिऊण क० श्रीमहावीर; अंतिः कह्या छे ते जाणवा. ८५१८. महीपालचरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., प्र.वि. गा.१८३६, (२६.५४१२, १४४४४-४७).
महिपालराजा कथा, गणि वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंतिः निययगुरूणं पसाएण. ८५१९." विक्रमचरित्र- पञ्चदण्ड कथा, संपूर्ण, वि. १९६९, श्रेष्ठ, पृ. ११४, जैदेना., ले.- लालजी शिवजी ठक्कर, प्र.वि.
श्लो.२५५०, संशोधित, (२६.५४१२, ११४२९-३१). पञ्चदण्ड कथा- विक्रमचरित्रे, आ. रामचन्द्रसूरि, सं., पद्य, वि. १४९०, आदिः प्रणम्य जगदानन्द; अंतिः शतानि सन्ति
सङ्ख्यया. ८५२०. चित्रसेनपद्मावती कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. श्लो.५०९, (२७.५४१२, ११-१३४४६-५२). चित्रसेनपदमावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः करोति पाठक
राजवल्लभः. ८५२१. आत्मानुशासन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. श्लो.७७, (२७.५४१२, ५४३१).
आत्मानुशासन, गणि पार्श्वनाग, सं., पद्य, वि. १०४२, आदिः सकलत्रिभुवनतिलकं; अंतिः भाद्रपदिकायां. ८५२३. युगप्रधानस्वरुप यन्त्र, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, ले.- लालजी कल्याण लहीया,
प्र.वि. २३ उदय. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२७४१२४).
युगप्रधान स्वरुप-यन्त्र, आ. देवेन्द्रसूरि, सं.,मागु., यंत्र, आदि: नमः श्रीभद्रबाहवे; अंतिः न्यासीचक्रे लिखितं च. ८५२५. पर्युषणाअष्टाहिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., (२७X१२, १४४४३-४७).
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३४६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ____ अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदिः शान्तीशं शान्ति; अंतिः विलोक्य तत्. ८५२६. चौवीसदण्डक के ओगणतीसद्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., पू.वि. ग्रं.ग्रं.३००., (२७.५४१२.५, १०x४०
४३).
२४ दण्डक २९ बोल , मागु., गद्य, आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः जीव अनन्तगुणाधिका. ८५२७. सञ्जमश्रेणी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-३, पू.वि. ढाल-३., (२७४१२.५, १०४३२).
महावीरजिन स्तवन-संयमश्रेणिगर्भित, पं. उत्तमविजय , मागु., पद्य, वि. १७९९, आदिः केवलज्ञान दिवाकरुजी; अंति:
उत्तमविजय मल्हायो रे. ८५२८. दीपावली वीरजिननिर्वाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१०, गा.१२३, (२६.५४१२.५,
१०४३२). महावीरजिन निर्वाण महिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मागु., पद्य, आदिः श्रीसमण सङ्घ तिलकोपम; अंतिः
श्रीगुणहर्ष वधामणे. ८५२९. प्रतिष्ठाकल्प स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, ले.- श्रा. मोहन गिरधर भोजक,
लिखवा.- पं. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-१९, ग्रं. ३७५, (२६.५४१२.५, ११-१२४४३). पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर पञ्चकल्याणकगर्भित प्रतिष्ठाकल्प, मु. रङ्गविजय, मागु., पद्य, वि. १८४९, आदिः (१)
स्वस्ति श्रीदायक (२) श्रीमद्यादेव सैनिक; अंतिः सदा रङ्गविजय लहे. ८५३०. समाचारी सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. १०३, जैदेना., ले.स्थल. भरुच, ले.- बंसीधर मञ्छाराम व्यास,
(२७.५४१२.५, १४४४१-४६). सामाचारी सङ्ग्रह, आ. नरेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः नाणं किरिया सहित्यं; अंतिः (१)काउस्सग्गोविनकीरइ (२)सूरि
श्रीमानदेवश्च. ८५३१. समवसरण प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- मोतिचन्द, प्र.वि. मूल-गा.२४., (२७४१२.५,
४४३१-३३). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः थुणिमो केवलीवत्थं; अंतिः कुणउ सुपयत्थं.
समवसरण प्रकरण-टबार्थ, पं. रुपविजयजी , मागु., गद्य, आदिः स्तवनां करुं छु; अंतिः टबार्थ प्रयत्ननमिदं. ८५३२.” अध्यात्मकल्पद्रुम सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., ले.- मु. डुङ्गरविजय, प्र.वि. मूल
१६अधिकार. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत,
संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (१२७) शिवमस्तु सर्वजगतः, (२६४१२.५४). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदिः अथाय श्रीमान् शान्त; अंतिः जयश्रिया शिवश्रीः.
अध्यात्मकल्पद्रुम-बालावबोध , मु. हंसरत्न, मागु., गद्य, आदिः श्रीशद्धेश्वरपार्श्व; अंतिः चिरं जयतात्. ८५३३. मङ्गलकलश चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३३, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-२१, (२५४१२.५, १२-१३४३७-४०).
मङ्गलकलश चौपाई, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७१४, आदिः पास जिनेसर पय कमल; अंति: आदरिज्यो गुणवन्त. ८५३४. गौतमपृच्छा, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. पाली, ले.- पं. हर्षचन्द(खरतरगच्छ), पठ.- श्रा.
तिलोकचन्द भण्डारी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.१२६, पू.वि. गा.१२६., (२५.५४१३, १०x२८). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५४५, आदिः सकल मनोरथ पूरवे; अंतिः मन जे जिनवचने
वस्यो. ८५३५. सौभाग्यपञ्चमी कथा सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, प्र. ९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पेथापुर, ले.- मु.
नरेन्द्रविजय, (२६.५४१२.५, ७४४६-५०). पे.-१.पे. नाम. सौभाग्यपंचमी कथा सह टबार्थ, पृ. १आ-९आ
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३४७
वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे. ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं (२) श्रीपार्श्वनाथ प्रते; अंति: मेडता नगरने
वीषे., पे.वि. मूल-श्लो.१५२. पे..२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदिः #; अंतिः #., पे.वि. प्र.पु.-२. ८५३७. नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-८ स्मरण., पू.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं हैं.,
(२५.५४१३, १३४३४-३८).
नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः शमं शिवं भवतु स्वाहा. ८५४०. पृथ्वीचन्द्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, ले.- जेशङ्कर मुलजी, प्र.वि. ढाल-३,
(२७४१३.५, ११४३२). पृथ्वीचन्द्रगुणसागर सज्झाय, पण्डित जीवविजय, मागु., पद्य, आदिः शासन नायक सुखकरु; अंतिः जिनविजय धरे
ध्यान. ८५४१. दीक्षाविधि, वर्द्धमानविद्या व योगक्रिया विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. ३, जैदेना., (२५.५४१३.५, ९४२२
२४). पे.-१. दीक्षा विधि, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १अ-९आ), आदिः प्रथम दिने साञ्झरी; अंति: जयवीयराय कहीजे. पे.२. वर्द्धमानविद्या विधिसह, सं.,मागु., गद्य, (पृ. ९आ-१०अ), आदि: ॐ ह्रीं श्रीं कलीं; अंतिः हवनं कार्यसिद्धि.
पे.३. योगोद्वहन विधि, मागु., गद्य, (पृ. १०अ-११अ), आदिः आवश्यक योगदिन ८; अंतिः सुयोगरी किरिया कीजै. ८५४३. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ व कल्पवृक्ष नामगाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. २, जैदेना.,
ले.स्थल. पालिताणा, ले.- मु. गुमानविजय; मु. रत्नविजय, (२६.५४१४, ५-१७४२८-३३). पे.१. पे. नाम. साधुवन्दित्तुसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-२२आ
पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः पगाम सिज्झाए निगाम; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७४९, आदिः ॐ नत्वा पार्श्वनाथ; अंतिः तीर्थङ्कर
जिन प्रति. पे.२. पे. नाम. दश कल्पवृक्षनाम गाथा सह टबार्थ, पृ. २२आ-२३अ
१० कल्पवृक्षनाम गाथा, प्रा., पद्य, आदिः ते सिमत्तङ्ग भिङ्गा; अंतिः दसविहा दन्ति. १० कल्पवृक्षनाम गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः मितगनामा भ्रङ्गनामे; अंतिः मनोवाञ्छित सुख आपे., पे.वि.
मूल-गा.२. ८५४५.” सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(१)=१५, गुजराती, प्र.वि. संशोधित, पू.वि.
व अंतिम श्लोक का बालावबोध नहीं लीखा हैं., (२५४१३, १३-१४४३६-३९). सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः यथा तरती साशिला.
सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह - बालाबबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८५४६.” चौढालीया, महावीरजिन स्तवन व बत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२,पे. ३, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५.५४१४, १२४३०-३२). पे.-१. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, (पृ. १अ-६आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम
जिनेसर पाय; अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे.,पे.वि. ढाल-५. पे.२. महावीरजिन पाञ्चकल्याणक चोढालियु.मु. नित्यलाभ, मागु., पद्य, वि. १७८१, (पृ. ६आ-११अ, संपूर्ण), आदिः
प्रेमे प्रणमुं सर०; अंति: लाभ वाञ्छित लहे., पे.वि. ढाल-४. पे.-३. अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचन्द, प्राहिं., पद्य, वि. १६८५, (पृ. ११अ-१२आ-, अपूर्ण), आदि: अजर अमर पद
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३४८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची परमेसरकुं; अंति:-,पे.वि. गा.१२ तक लिखा है. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८५४७. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, मध्यम, पृ. ४४, जैदेना., ले.स्थल. विसलनगरे, प्र.वि. मूल
२१उद्देश., (२६४१३.५, ८४३४). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, गणि पद्मसुन्दर, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया.
जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः ते कालनि विषइ ते; अंतिः आराधक जीव कह्या. ८५४८. मृगसुन्दरी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. गा.१४७, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१२.५, १३
१४४४२).
मृगसुन्दरी कथा, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य प्रथमं देवं; अंतिः स्युः सुखसम्पदः. ८५४९." श्रीपाल चरित्र-खण्ड २,३, प्रतिपूर्ण, वि. १८८५, मध्यम, पृ. २७, जैदेना., ले.- गणि प्रेमविजय, प्र.वि. नम्बर बिना का
फटा हुआ एक पत्र है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२८.५४१२.५, १२४३३-३५).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:- अंति:८५५०. चैत्यप्रतिष्ठा विधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. पेथापुर, ले.- श्रा. जेशीङ्घ
साकरचन्द, प्र.वि. मूल-श्लो.२८+४०., (२८x१३, ५४३३). चैत्यप्रतिष्ठा विधि, सं., पद्य, आदिः विषमैरङ्गुलैर्हस्तैः; अंतिः लग्नेतत्सर्वमाचरेत्.
चैत्यप्रतिष्ठा विधि-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः विषम क० एकी गणतीइं; अंतिः चैत्यप्रतिष्ठा करवी. ८५५१. स्तवनचौवीसी, पूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१)=११, जैदेना., ले.- मु. मेघवल्लभविजय,प्र.वि. २४ स्तवन, पू.वि.
स्तवन-१ से २ गा.२ तक नहि हैं., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२७४१२.५, १२-१३४३६-३९).
स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदि:-; अंतिः आनन्दघन प्रभु जाग रे. ८५५२. चौमासी देववन्दन, पूर्ण, वि. १९३०, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(८)=१८, जैदेना., ले.- तलसी फतेचन्द भोजक, (२७४१३,
११४३०).
चौमासीपर्व देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः आदिदेव अलवेसरू; अंतिः पास सामलनु चेई रे. ८५५३. सुक्तमालाभाषा व सुभाषित सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. मंम्माईबंदर, ले.- पं.
केसरविजय (गुरु पं. दीपविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२७४१२.५, १६-१७४३९). पे..१. सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, (पृ. १अ-१०आ), आदिः सकलकुशलवल्लिवृन्द; अंतिः
केसरविमलेन विबुधेन., पे.वि. ४ वर्ग. पे..२. जवऋषि गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ), आदिः उहावसीहा पुयावसहा; अंतिः दिग पठीओ तुह भय., पे.वि.
गा.३. पे.-३. जैन दुहा सङ्ग्रह*, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. १०आ-१०आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-१. ८५५४. सिद्धहेमचन्द्रव्याकरणधातुपाठ व अनुबन्धकारिका-फल, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.- मु.
रामचन्द (गुरु पं. मोतीचन्द), प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-प्रारंभिक पत्र, (२७.५४१३, १७
१८४४७). पे.१. सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., गद्य, वि. ११९३, (पृ. १अ
७अ), आदिः भू सत्तायां पां पाने; अंतिः बहुलमेतन्निदर्शनम्., पे.वि. प्रतिपूर्ण. पे.२. सिद्धहेमचन्द्रव्याकरणअनुबन्धकारिका, आ. हेमचन्द्रसूरि, सं., गद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः यथा अकार
उच्चारणार्थ; अंतिः नास्ति इन्यनुबन्धफलं..पे.वि. प्रतिपूर्ण. ८५५५. भाष्यत्रय सह टबार्थ, प्रतिअपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. ३२-१(२)=३१, जैदेना., ले.- नागरदास, पठ.- साध्वीजी
चन्दनश्रीजी,प्र.वि. बालावबोध-ग्रं. ३५०. बालावबोध टबार्थ शैली में लिखा गया हैं. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
पृ.वि. चैत्यवंदनभाष्य नही हैं.,प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२७४१२.५४). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसुरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं.
भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७५८, आदि:-; अंतिः इत्यादि ग्रन्थ जोवा. ८५५७. षष्टिशत सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.१६१., (२७४१३, ५४३०-३३).
षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदिः अरिहं देवो सुगुरू; अंतिः जाणन्तु जन्तु सिव्वं.
षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्त देव; अंतिः तिम सूष अनन्ता हुइ. ८५५८. चैत्यमत उपर सूत्रसाख सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ढाल-५, (२६.५४१३, १७X४४-४६). सिद्धान्तसार सज्झाय, ऋ. जेष्टमल, मागु., पद्य, वि. १८७८, आदि: चरण कमल जिनराजना; अंतिः समकित लहे
उल्लास रे. ८५५९. श्रीपाल रास सह टबार्थ-खण्ड-३,४, प्रतिपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले.- मु. निधानविजय (गुरु पं.
फतेविजय), प्र.वि. प्र.पु.-मूल-सर्वगा.३८३. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है. उपयुक्त स्थान परहि टबार्थ दिया गया हैं.,
टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२७४१३x). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंतिः लहसे ज्ञान
विशाला जी.
श्रीपाल रास-टबार्थ', मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंति:८५६०. उपदेशसार सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५७, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., द्विपाठ,
(२७.५४१३.५४). उपदेशसार, गणि कुलसार, सं., , आदिः यत्कल्याण करो अवतार; अंतिः सङ्घार्चादिमङ्गलम्.
उपदेशसार-वृत्ति, सं., गद्य, आदिः (१) नमो अरिहन्ताणं० मङ्ग (२) यत्कल्याणप सम्यग्; अंतिः यतीनां भुवि शेषतः. ८५६१. महाभारत तत्त्वसार सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९१०, जीर्ण, पृ. २०-१(१९)=१९, जैदेना.,पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं हैं.
__ श्लो.१६४ से १७२ तक नहीं है. अन्तिम पत्र पर टबार्थ नहीं है., (२७.५४१३, ५४३३). महाभारत तत्त्वसार, संक्षेप, सं., पद्य, (पूर्ण), आदिः श्रूयतां धर्म सर्व; अंतिः मार्गस्य कारणम्.
महाभारत तत्त्वसार-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंति:८५६२. चौवीसदण्डक २९ द्वार व ऋषभजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. जैनशाला, ले.
हरीलाल मालजी बारोट, पठ.- मु. प्रधानविजय,प्र.ले.पु. मध्यम, (२९x१३.५, १८४४७). पे.-१.२४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, (पृ. १आ-८अ), आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः अनंत गुणे अधिक जाणवा.
पे..२. आदिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ८आ), आदिः जय वृषभजिनोभिष्ट्रयसे; अंतिः कृत्बन्धुरङ्गी., पे.वि. श्लो.८. ८५६३. दीपावलीकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५८, मध्यम, पृ. २७, जैदेना., ले.- मु. अमरचन्द (गुरु लालसागर+अमरचन्द
के गुरु); पं. गोविन्दसागर (गुरु गणि वीरसागर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-श्लो.४४१., (२६.५४१४, ८४३६-४२). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये.
दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर देव मङ्गल; अंतिः चन्द्र सूर्जताई. ८५८३. पर्युषणअष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६६, मध्यम, पृ. ८७, जैदेना., (२८x१५, ५४२३-२४).
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नन्दलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदिः स्मृत्वा पार्श्व; अंतिः नन्दहेतुः सकामान्.
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वनाथजीने; अंतिः करणहार धर्म छै. ८५९०. चौवीसठाणा सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१९९., पंचपाठ, पदच्छेद सूचक
लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, पू.वि. प्रथम पत्र का उपरी भाग खंडित होने से टीकाका आदिवाक्य नही भरा हैं और अंतमें प्रतिलेखक द्वारा टीका अपूर्ण., (२९.५४१३.५, १०-११४३६-४१).
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३५०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चतुर्विंशतिस्थानक, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः सिद्धं शुद्धं पणमिय; अंति: कुलकोडि हवदि कम्मेण.
चतुर्विंशतिस्थानक-टीका, सं., गद्य, (अपूर्ण), आदि:- अंतिः८५९६. रुपसेन चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, प्र. ९१, जैदेना., ले.स्थल. वडनगरे, ले.- पं. निधानविजय (गुरु पं.
खुशालविजय, तपागच्छ), प्र.वि. मूल-श्लो.२९९, ग्रं. १५३०; टबार्थ-ग्रं. २३४५., प्र.ले.श्लो. (४६९) भग्न पृष्टि कटी
ग्रीवा, (२७.५४१३, ६४३३-३४). रूपसेन कनकावती चरित्र चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीमन्तं विदुरं; अंतिः सुकृताय कृता कथा.
रूपसेनकनकावती चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीविद्या देणहारी; अंतिः कथा सूत्रे किधी. ८६०७. रत्नकोष सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., पू.वि. श्लो.५२९ अपूर्ण तक हैं. अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२६.५४१२.५, १०४५१-५८). विचारसार, प्रा., पद्य, आदिः बारस गुण अरिहन्त; अंति:
विचारसार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः बा० १२ बारगूणअरीहन्त; अंति:८६०८." ज्ञानसार सह बीजक, अपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. १६-४(१ से ४)=१२, जैदेना.,प्र.वि. मूल-३२अष्टक+कलश
गा.१७., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, (२६.५४१२.५,
१०४३०-३३). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः स्वीयं कृतं मङ्गलम्.
ज्ञानसार-बीजक, सं., गद्य, आदि:-; अंति:८६१०." कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८४७, मध्यम, पृ. १२५, जैदेना., ले.स्थल. मक्षुदाबाद, ले.- मु.
मोहणचन्द्र(विजयगच्छ); मु. ग्यानचन्द्र, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., पदच्छेद सूचक लकीरें, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (२८२) जीहा लग मेरु अडग हे; (६१५) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा,
(२५.५४१३.५, ६x२८-३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः माहरो नमस्कार हूवौ; अंतिः आगै एहवौ कहता हूआ.
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा', मागु., गद्य, आदिः जिसदिन ते महावीर के; अंतिः दुक्कडं दीजै. ८६११. सीताप्रबन्ध रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९४, जैदेना.,पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. खंड-६ ढाल-३ गा.७३ तक
लिखा हैं., (२७७१३, ११४२९).
रामसीता रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १७उ., आदिः स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति:८६१३. भवभावना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना., ले.स्थल. राधनपुर, ले.- गणि कस्तुरविजय (गुरु मु.
मोहनविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-गा.५३१; टबार्थ-ग्रं. ३४२५. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., (२८x१३x). भवभावना, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण णमिरसुरवर; अंतिः कीरउ अलङ्कारो. भवभावना-टबार्थ, पं. शान्तिविजय गणि, मागु., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनम्; अंतिः (१)करवो अलङ्कार आभरण
(२)चतुस्त्रिंशत्शतानि च. ८६१५. मेरुत्रयोदशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. वडलु, ले.- मु. कीस्तूरहंस (गुरु मु.
प्रधान्नहंस), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ पत्र १-५ तक ही
लीखा हैं., प्र.ले.श्लो. (१८७) धने च जोवने,पुस्तकैषु रंभे, (२८x१२.५४). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, (संपूर्ण), आदिः मारुदेवं जिनं नत्वा; अंतिः
लिखत्वां साधनं भवतिः. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान- टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः मरुदेवीको पुत्र; अंति:
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३५१ ८६१७. कल्पसूत्र का व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पीठिका भाग
तक है., (२७.५४१३, १३४४०-४१).
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः सकलार्थसिद्धिजननी; अंति:८६२२. स्नात्रपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., (२६.५४१३.५, १३-१५४२३).
स्नात्रपूजा सङ्ग्रह', मु. भिन्न भिन्न कर्तृक , सं.,प्रा.,मागु., प+ग, आदिः मुक्तालङ्कार विकार; अंतिः उतारी राजा
कुमारपाल. ८६२५. स्नात्रपूजा, अष्टप्रकारी व नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. ३, जैदेना., (२७४१४, १०x२८-२९).
पे.-१. स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. १अ-७आ), आदिः चोतिसे अतिसय; अंतिः सङ्घ सकल __आणन्द., पे.वि. गा.६०. पे..२.८ प्रकारी पूजा चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. ७आ-८आ), आदिः विमलकेवलभासनभास्कर; अंतिः सिध फलाय
महाजना., पे.वि. श्लो.९. पे.-३. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, (पृ. ८आ-१८आ), आदिः (१) उपन्नसन्नाणमहोमयाणं
(२) परम मन्त्र प्रणमि; अंतिः कोई नये न अधूरी रे. ८६२७. चौमासी देववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.- मु. लक्ष्मीरत्न, प्र.वि. संशोधित, (२८x१२,
१२-१३४३१-३५). चौमासी देववन्दन सविधि, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, आदिः (१) प्रथम ईरियावहि पछे (२) श्रीशर्केश्वर ईस्वर; अंतिः
__ शिव मन्दिरीइं रे. ८६३१. सोहमकुलकल्पवृक्ष तपविधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८+१(१२)=१९, पे. ७, जैदेना., (२८x१३, ११४३४). पे.-१.पे. नाम. इच्छापूरण तप, पृ. १आ-१३अ कल्पवृक्षतप विधि, पं. दीपविजय, मागु.,प्रा., प+ग, वि. १८८२, आदिः एहनो तप दसदिवसनो; अंतिः ए सघलो
साम्राज. पे..२. महावीरजिन ऋद्धिवर्णन स्तवन, पं. दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१४अ), आदिः वन्दू सिद्ध भगवन्तने; अंतिः
सङ्घने जयजयकार रे., पे.वि. गा.१३. पे.-३. खामणा स्तवन, पं. दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१५अ), आदिः खांमणला खांमो रे; अंतिः तेहनी बलिहारी.,
पे.वि. गा.१५. पे.-४. आदिजिन स्तवन-त्रिलोकीपातसाह ऋद्धिवर्णन, पं. दीपविजय, मागु., पद्य, वि. १८८६, (पृ. १५अ-१६अ), आदि:
भरतजी कहे सुणो मावडी; अंतिः मङ्गलमाल सवाय रे., पे.वि. गा.१६. पे:५. साधारणजिन स्तवन, पं. दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ), आदिः जिमतिम प्रभू गूण; अंतिः मोतीडें __ वधावज्यो रे., पे.वि. गा.८. पे:६. मुनिगुण सज्झाय, पं. दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. १६आ-१७आ), आदिः ते मुनीराज ने वन्दना; अंतिः दीपविजय० ___मानवभव सार.,पे.वि. गा.९. पे:७. सकलजिनविनती स्तवन, पं. दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. १७आ-१८अ), आदि: अबोला स्याने ल्यो; अंतिः
। अनन्तगूणी गुणवन्ता., पे.वि. गा.११. ८६३२. कर्मग्रन्थ १-६ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. ८८+१(५९)=८९, पे. ६, जैदेना., ले.- मु. रूपविजय (गुरु मु.
दीपविजय, तपागच्छ), पठ.- मु. कानजी (गुरु मु. रूपविजय, तपगच्छ),प्र.ले.पु. विस्तृत, (२८x१३, ३४३६-३८). पे.-१. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १आ-१३आ
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, वि. १७वी, आदिः (१) शारदां वरदां (२) श्रीमहावीर
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प्रति अति श्रीदेवेन्द्रसूरी, पे.वि. मूल-गा. ६०.
पे. २. पे नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १३आ- २१अ
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, आदिः तिम हुं स्तवं छं; अंतिः श्रीमहावीर प्रतिइं., पे.वि. मूल-गा.३४.
पे.-३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. २१अ - २९आ
बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, आदिः कर्मबन्धथी मुकाणउं; अंतिः कर्मस्तव साम्भली. पे. वि. मूल-गा. २५.
पे.-४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. २९आ - ५१अ
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षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं.
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, उपा धनविजय, मागु, गद्य आदि वान्दीनइ तीर्थकर अंतिः श्रीतपागच्छ नायकइ.. पे.वि. मुलगा. ८६.
पे.-५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. ५१अ-७२आ
शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मागु, गद्य, आदि ध्रुवबन्धी प्रकृति अंतिः सम्भारवानइ अर्थइ.. पे. वि. मूल-गा. १०० प्र. पु. मूल ग्रं. १४७. प्र. पु. बार्थ ग्रं. ५०७.
पे. ६. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह टवार्थ पृ. ७२आ-८८आ
सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु, गद्य वि. १७००, आदि: सिद्धि निश्चल पद अतिः हितहेतुं समुद्दिश्य., पे. वि. मूल-गा. ९३.
८६३३. जयानन्दकेवली चरित्र रास, संपूर्ण वि. १९०६ मध्यम, पृ. १२२+१०९१ से २१.२३ से ११० ) - २३१, जैदेना ले. स्थल.
धोलेराबिंदरे, ले.- मु. चतुरविजय (गुरु मु. कस्तूरविजय), पठ. - मु. फतेचन्द ( गुरु मु. चतुरविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. खण्ड-९ / ढाल २०२, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (६०५) भग्न पुष्टि कट ग्रिवा, (२९x१२.५,
,
१५४४३-४५),
जयानन्दकेवली रास, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, वि. १८५८, आदिः प्रथम प्रथम प्रणमुं: अंतिः वरसे मङ्गलमालाजी.
८६३४.' धन्नाचरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. ११०, जैदेना., ले. स्थल. गोत्रकामध्ये, प्र. वि. मूल-ढाल - ९ पल्लव., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित - टबार्थादि, (२९x१३, ६३६).
दानकल्पद्रुम आ जिनकीर्तिरि सं., पद्य, आदि सश्रेयस्त्रिजगद्ध्ये अंतिः श्रीदानकल्पद्रुम.
,
धन्ना चरित्र-टबार्थ, पं. रामविजय, मागु., गद्य, वि. १८३३, आदिः श्रीऋषभदेवस्वामी; अंतिः प्रति जीयात्.
"
"
८६३५. स्तवन व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पे. ७, जैदेना., ले. स्थल. धोलेरा, ले.- मु. चतुरविजय,
(२८.५४१२.५, १९४४१-४२).
पे.-१. पार्श्वजिन चौढालिया, ऋ. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १८९४, (पृ. १अ - ४अ), आदि: श्रीशङ्केश्वर जगधणी; अंतिः जैनधर्म ए जगतीलो., पे.वि. ढाल-५.
पे. २. २४ जिन स्तवन-अतीत . लालचन्द, मागु, पच (पृ. ४-४आ) आदि अतित चोवीसी छू नमुरे अंति लालचन्दही अगे बूध रे., पं.वि. गा. १५.
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पे. ३. वर्तमान २४ जिन स्तवन ऋ. लालचन्द, मागु पद्य ( ४-५ अ) आदि प्रथम तिर्थंकर ऋषभ अंतिः कहे वान्दो ए जिनगोडि., पे.वि. गा. ७.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३५३ पे.४.२४ जिन स्तवन-अनागत, ऋ. लालचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-६अ), आदि: चोवीसे जिनवर हूं; अंतिः प्रेम धरी
पुज्यो पास., पे.वि. ढाल-२, गा.३९. पे.५. विहरमान २० जिन स्तवन, ऋ. लालचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदि: श्रीसीमन्धर ते नमीइं; अंतिः
वन्दना सीद्धी., पे.वि. गा.११. पे.६. भरतचक्री शलोको, ऋ. लालचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदिः सरसती माता सान्निध; अंति: सलोको
कीधो० घर थाए., पे.वि. गा.३६. पे-७. पार्श्वजिन श्लोक-शखेश्वर, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५९, (पृ. ८अ-९अ), आदि: माता भवनेसरी भवन;
अंतिः उयरत्न कहे०सनमुख थाय., पे.वि. गा.२३. ८६४२. चातुर्मासिक देववन्दन, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. डीसा, ले.- गणि कस्तुरविजय (गुरु मु.
___ मोहनविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (६५३) भग्न पुष्टि कटि ग्रीवा, (२८x१३, १६x४८-५०)..
चौमासीपर्व देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः आदिदेव अलवसरू; अंति: पास सामलनु चेई रे. ८६४३. अक्षयनिधितप विधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ४, जैदेना., (२८x१३, ११४४४).
पे.१. अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८७१, (पृ. १आ-४अ), आदिः श्रीशद्धेश्वर शिर; अंतिः ___नाचवा घर बारणे., पे.वि. ढाल-५, गा.५१. पे.२. अक्षयनिधितप खमासमण दूहा, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-५अ), आदिः सुखकर सोश्वर नमी; अंतिः
होज्यो ज्ञानप्रकाश., पे.वि. गा.२६. पे.-३. पाश्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितप गर्भित, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, वि. १८४३, (पृ. ५अ-५आ), आदिः तपवर
कीजे रे; अंतिः पद्मविजय फल लीधो., पे.वि. गा.१२.
पे.-४. अक्षयनिधितप विधि, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६आ), आदि: श्रावण वदी चौथने; अंतिः च्यार वरस लगे करवू. ८६४४. सुभाषित श्लोक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. श्लो.४३० अपूर्ण तक लीखा
हैं., (२८.५४१३.५, १७-१८४४२).
सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः स्नाने भोजने अंति:८६४७. पार्श्वजिन, एकादशी स्तवन व दोहा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ३, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
(२८.५४१४, १०-११४२१-२७). पे.-१. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. अनोपचन्द, मागु., पद्य, वि. १८२५, (पृ. १अ-९आ, संपूर्ण), आदिः श्रीजिन वदन
निवासनी; अंतिः धवलधींग गौडीधणी., पे.वि. ढाल-८. पे.२. पे. नाम. औपदेशिक दोहा सङ्ग्रह, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण
सुभाषित दोहा पचहत्तरी, प्राहिं., पद्य, आदिः ज्ञान पदारथ पाय के; अंतिः जात न लागे वार., पे.वि. गा.१२. पे..३. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ-, अपूर्ण), आदि: सन्तिकरण श्रीशान्ति;
अंति:-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८६४८. कल्याणमन्दिरस्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२८x१३.५, ५४२८
३३). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते.
कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः कल्याण कहीयइं श्रेय; अंतिः मुक्तिना सुख पामइ. ८६४९. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., (२८x१३.५, १३५४२-४६).
आगमसारोद्धार, गणि देवचन्द्र, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः हिवै भव्यजीवने; अंतिः फली मन आस. ८६५०." उत्तराध्यायनसूत्र सह वृत्ति-उत्तरार्ध सूत्रार्थदीपिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७६-१(३७२)=३७५, जैदेना., प्र.वि.
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३५४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मूल-३६अध्ययन; टीका-ग्रं. १५३००., पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२९x१४, १५४४४-४७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८पू, आदिः अर्हन्तो ज्ञानभाजः; अंतिः
सुदीपिकेयम्. ८६५१. समकित सडसठबोल स्तुति, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. जालोर, ले.- श्रा. मानमल जैन, प्र.वि.
अनुवाद-ढाल-१२, गा.६८., (२८.५४१४, ११४३३). सम्यक्त्व सडसठबोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंतिः वाचक जस
इम बोले रे. ८६५४." प्रकरणचतुष्क, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. धोलेराबिंदरे, ले.- मु. चतुरविजय (गुरु मु.
कस्तूरविजय), पठ.- मु. फतेचन्द (गुरु मु. चतुरविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित, (२९x१४, १४-१५४३३
३७). पे.-१. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-३आ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ
सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५८. पे.२. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-५आ), आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ.,
पे.वि. गा.४७.
पे..३. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ-९अ), आदिः जीवाजीवापुन्नं; अंतिः चवन्तीइगईदजमंमि., पे.वि. गा.८०. ८६५५. पान्त्रीसबोल व ईग्यारमिथ्यात्त्वनाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है.,
(२७४१४). पे.-१.३५ बोल, मागु., गद्य, (पृ. १आ-आ), आदि:#; अंतिः#., पे.वि. पत्र खंडीत होने से आदि-अंतिमवाक्य नहीं भरा
पे.२.११ मिथ्यात्त्व नाम, मागु., गद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदि: १ अभिग्रहिक मिथ्यात; अंतिः पूर्वगत मिथ्यात्व. ८६५६. राजसागरसूरि रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२९x१२.५, १०४३१-३२).
राजसागरसूरिनिर्वाण रास, आ. तिलकसागरसूरि, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदिः वर्द्धमान जिनवर; अंति:८६६१. वनीतअवनीत अधिकार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., प्र.वि. ढाल-११, (२७.५४१३, १०४३८-४०).
विनीतअविनीत अधिकार, राज.,मागु., पद्य, आदिः नमो वीर सासणधणी ते; अंतिः ते तो परमेसुररा पूरा. ८६६३. योगचिन्तामणी सह टबार्थ- वैद्यक सारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९०२, श्रेष्ठ, पृ. १३४, जैदेना., ले.स्थल. बांतानगरे, ले.- पं.
प्रेमहंस (गुरु पं. ईश्वरहंस),प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-अध्याय-७., (२८x१३, ८४३०-३२). योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः कुकुममदनीमुस्ता; अंतिः सप्तमको मिश्रकाध्याय.
योगचिन्तामणि-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हिवै चूर्णाधिकार; अंतिः सातमो मिश्रकाध्याय. ८६६४. क्षेत्रविचार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., पू.वि. गा.१७९ तक हैं. अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२७४१३, ५-६४३४-३६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंति:
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः वीरं० ग्रन्थनोकरणहार; अंति:८६६५. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., ले.स्थल. वावनगर, ले.- ऋ. वेलचन्द (गुरु ऋ. जीवराज),
प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. खण्ड-४, ढाळ ४१; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १८००, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (६०६) याद्रस्टं
पुस्त के द्रष्टा, (२८.५४१३, १५-१६x४८-५२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी;
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
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अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी..
८६६६. अष्टप्रकारी पूजा रास व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९०५, मध्यम, पृ. १०५, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. धोलेरा बंदर, ले. मु. चतुरविजय (गुरु मु. कस्तूरविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले. श्लो. (६०५) भग्न पुष्टि कट ग्रिवा; (६०७) जलं रक्षे थलं रक्षे, (२८x१३, १४x२९-४३).
"
पे. १.८ प्रकारी पूजा रास वा. उदयरत्न, मागु पद्य वि. १७५५ (पृ. १आ- १०५अ ) आदि अजर अमर अविनाश अंतिः सम्पति बहु पाया रे.. पे.वि. श्लोक ३.८५. डाल-७८.
.
पे. २. जैन श्लोक सं., पद्य, (प्र. १०५-१०५अ) आदि # अति #, पे. वि. प्र.पु.गा. १.
८६६८. शान्तिनाथ चरित्र सह टवार्थ, अपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९६+१ (९४) = १९७, जैदेना. पु.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..
(२९x१३.५, ५४४७-४८).
शान्तिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि सं. पद्य वि. १३०७, आदिः श्रेयोरत्नकरोद्भूता; अंति:
शान्तिनाथ चरित्र - टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मागु., गद्य, वि. १७९९, आदि: मंगलिक रूप समुद्र, अंतिः
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"
1
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः ते काल चउथो आरो; अंतिः वार वार उपदिस्यो.
कल्पसूत्र- व्याख्यान+ कथा*, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य; अंतिः चोवीसमी समाचारी कही.
८६७०.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान + कथा, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रेष्ठ, पृ. १८३, जैदेना., ले. स्थल. सहजापुर, ले.- पं. माणिक्यविमल (गुरु पं. विद्यासमुद्र, खरतरगछ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान., संशोधित, (२८x१३, ८१५X३२-३७).
३५५
८६७१. बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २५, जैदेना., प्र. वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है। पन्ना नंबर अस्तव्यस्त है। किनारी खंडीत होने से आदि अंतिमवाक्य नही भरा हैं.. (२७.५४१२-५०).
५८ बोल सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु., गद्य, आदि: #; अंतिः #.
८६७२.” त्रैलोक्यविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७७०, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - प्रारंभ में ज्यादा, बाद में क्वचित ( २८x१२.५, ९x४१).
·
त्रैलोक्य विचार, प्रा., पद्य, आदि: (१) चुलसी दिलक्ख सत्ताणउ (२) स्वस्ति श्रीशिव; अंतिः बन्धइ रूह परिणामो.
त्रैलोक्य विचार- बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: चोरासी लाख सत्ताणूं; अंतिः नरकनुं आयुषु बाधइ.
८६७४. नेमराजिमति कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-१ (६) =७, जैदेना. (२७.५०१२.५ १२-१३४३३-३७).
नेमराजिमति कथा, मागु., गद्य, आदिः श्रीमथुरानगरीइं उग्र अंतिः करति विचरती रहै छे.
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८६७६.” गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. ४१ + १ (३३) = ४२, जैदेना., ले. स्थल. धोलेराबंदरे, ले.- मु. चतुरविजय (गुरु मु. कस्तूरविजय), पठ. - मु. फतेचन्द (गुरु मु. चतुरविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल-गा. ६४.,
संशोधित पू. वि. अंत में बीजक लीखा हैं.. प्र.ले. श्लो. (६०५) भग्न पुष्टि कट ग्रिवा (२९x१२.५ १५३५-४४).
,
गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंतिः पुच्छावि सन्देहो.
गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मागु., गद्य, आदिः नत्वा श्रीवीरं जिनं; अंतिः सुधाभूषणसेविना.
८६७७. पवनञ्जयप्रियाञ्जनसुन्दरी रास, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले. स्थल. आयुग्रामे, ले. पं. जैतसी (गुरु आ. जिनचन्द्रसूरि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. खण्ड-३ खंड / ४३ ढाल, ग्रं. ७०७, पू. वि. ३ अधिकार, गा. ७०० श्लोक., (२८.५x१२.५, १७४७१-७२ ). अंजनासुन्दरी चौपाई, गणि भुवनकीर्ति, मागु., पद्य, वि. १७०६, आदिः करतां सगली साधना; अंतिः भुवनकीरति इ परि भणई. ८६८०. सौभाग्यपञ्चमी कथा सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना. ले. स्थल कंटालीयानगरे, ले. पं.
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३५६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तिलोकहंस (गुरु पं. यूक्तहंस), पठ.- मु. हुकमहंस; मु. दीपहंस (गुरु मु. हुकमहंस),प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल
श्लो.१४९.. पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ का अंतिमवाक्य नही लीखा हैं., (२९x१२.५, ५४३३-३४). वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे.
ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः लक्ष्मी शोभायुक्त; अंति: #. ८६८१. कुर्मापुत्र चरित्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.१९६ अपूर्ण तक हैं.,
(२८x१२.५, ४४४४-४५). कुम्मापुत्त चरिअं. मु. माणिक्यविमल, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण वद्धमाणं; अंति:
कुम्मापुत्त चरिअं-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:८६८२. योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२-१३(१ से ७,१० से १५)=३९, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,
(२८x१२, ९४३५-३८)..
योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:- अंतिः८६८४. कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२७४११.५, ११-१३४३४
३६).
कालिकाचार्य कथा, सं., पद्य, आदिः (१) श्रीवीरवाक्यानुमतं (२) श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति:८६८५. विक्रमादित्य-नवसौकन्या चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. पीपाड, ले.- पं. बगतावर विजय,
प्र.वि. ढाल-२७, (२७४१२.५, १८-१९४४७).
विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मागु., पद्य, वि. १७२३, आदिः पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंतिः तेहने सदा हुइ कल्याण. ८६८६. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्तवन-१७ गा.७ तक हैं.,
(२७.५४१२, ५४४१-४२).
स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति:८६८७." विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२२, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-२श्रुत./२०अध्य.., टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, (२७X१२.५, १०-११४४७-५०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः वं भन्ते सेवं भन्ते.
विपाकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेकाल ते समे विहार; अंतिः हे भगवन कल्याणार्थ. ८६८८. भुवनदीपक का बालावबोध, फल वर्णन, दृष्टियोग व युगसङ्ख्या , संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ४, जैदेना.,
(२६.५४११, १५-१६x४७-५२). पे.१.पे. नाम. भुवनदिपक (ग्रहप्रकाश) बालावबोधा, पृ. १अ-७आ
भुवनदीपक-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः सरस्वती नै नमस्कार; अंतिः सून्यु कांईनु हुई. पे..२. फल वर्णन, सं., गद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः पलाश फल पाके न; अंतिः षड पाके सर्वधान्यम्. पे..३. ग्रहदृष्टियोग, सं., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः प्रावृषि सीतकरो भृगु; अंतिः वक्रे चैव शनैश्चरे., पे.वि. गा.२.
पे.४. युगसङ्ख्या , मागु., गद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः कृतयुग वर्ष १७२८००; अंतिः गतकलि ४६१५. ८६९१. धन्य चरित्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. ६९९-४९६(१५९ से ६५४)+१(११६)=२०४, जैदेना., पठ.- मु.
कल्याणजी, (२४.५४१२, ११-१३४३०-३१).
धन्य चरित्र-बालावबोध , मागु., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रीसुखदं; अंतिः कल्याणकारि छे. ८६९२. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि.२०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(९)=१६, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं
हैं. गा.१९ की टीका अपूर्ण तक हैं., (२५४१२.५, ८-९४२९-३०). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति:
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३५७ कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, पाठक हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्य एषः; अंति:८६९३. शालीभद्रधन्ना रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना.. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१९० तक हैं., (२५४१२,
१२४२७-२९).
शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः शासण नायक समरीये; अंति:८६९६. एकसौबावन बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-२५(१ से २५)+१(३०)=१४, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा -१५१
बोल तक लिखा हैं., (२६४१२, ११४३४).
१५२ बोल', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८६९८. शत्रुञ्जयउद्धार, कुगुरु व सुगुरुपचीसी, संपूर्ण, वि. १९३१, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. वडग्राम, ले.- पं.
दोलतरुचि, पठ.- पुनमचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, (२६.५४१२, १४४५३). पे-१. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, (पृ. १अ-५अ), आदिः विमल गिरिवर विमल; ___ अंतिः दरिशन जयकरो., पे.वि. गा.१२५. पे.२. कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-६अ), आदिः श्रीजिनवर प्रणमी; अंति: पभणे सुखदाय इसि.,
पे.वि. गा.२५. प्रतिलेखन वर्ष-१९३१. पे..३. सुगुरुपच्चीशी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः सुगुरुपीछाणों एणे; अंतिः शान्तिहर्ष
उछरङ्गजी., पे.वि. गा.२५. ८६९९. महानिशीथसूत्र सह टबार्थ, त्रुटक, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६-४७(१ से १४,४१ से ४३,५१,५६ से ८४)=३९, जैदेना.,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२६.५४१२, ५४२८). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
महानिशीथसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८७०१." कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिकाटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७१-१३(१३५ से १४५,१६९ से १७०)=१५८,
जैदेना.,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११.५, १५४४६-४९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि.
कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य; अंतिः सतांश्रेयो भवतु. ८७०२. यतिजीतकल्प सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १२६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०६; टीका-ग्रं. ५७००.,
(२६.५४१२, १३-१५४४५-४८). यतिजीतकल्पसूत्र , आ. सोमप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः कयपवयणप्पणामो० भिन्न; अंतिः सोहन्तु गीअत्था. यतिजीतकल्पसूत्र-टीका, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५६, आदि: जयति महोदयशाली भास्व; अंतिः शतैः
सप्तभिरन्वितः. ८७०३. स्नात्रपञ्चासिका सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.. पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.,
(२६.५४१२.५, ११४३५). स्नात्रपञ्चाशिका, गणि शुभशील, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य श्रीजिनान्; अंति:
स्नात्रपञ्चाशिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य कहेतां प्रणा; अंतिः८७०५. चौदगुणस्थान पचीसद्वार, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. २४ द्वार अपूर्ण तक हैं.,
(२६४११.५, ८४३१-३२).
१४ गुणठाणा २५ द्वार, मागु., गद्य, आदिः ते चउदें गुणठाणा; अंतिः८७०६. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५+१(३७)=५६, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-१०अध्ययन.,
(२५.५४१२, ६४३२-३४).
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दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गइं त्ति बेमि दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्यचार्हत्सिद्धा; अंतिः जनम मरण बन्धन छेदई.
८७०७. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, श्लोक सङ्ग्रह व वीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १७९४, श्रेष्ठ, पृ. १८-५ (१ से ५) = १३, पे. ३,
जैदेना., ले. पं. प्रीतिविजय (२६.५x१२, १०x३५-३६).
.
पे. २. जैन श्लोक सं. पद्य (पृ. १८अ १८आ, संपूर्ण) आदि # अंतिः #
"
"
पे.- १. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., प+ग, (पृ. ६अ - १८अ, अपूर्ण), आदि: -; अंतिः नित्थारपारगाहोह, पे. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
"
पे.-३. महावीरजिन स्तोत्र, मु. मुनिसुन्दर, प्रा., पद्य, (पृ. १८आ - १८आ, संपूर्ण), आदि: जयसिरिजिणवरतिहुअणजण; अंतिः नियपइ सुदाणओ अइरा. पं. वि. गा.५.
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८७०८. विमलाचल तीर्थमाला, संपूर्ण वि. १८८९ श्रेष्ठ, पृ. ५. जैवेना. ले. स्थल डीसानगरे, ले. पं. मोहनविजय (गुरु गणि कस्तुरविजय), प्र. वि. ढाल - १०, ( २६.५x१२.५, १६x४५).
शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरद्ग, मागु पद्य वि. १८४० आदि विमलाचल वाहला वारु; अंतिः अमृतरग
सुहङ्करू.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
८७०९. द्विजमुखचपेटा अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४ जैवेना. पु. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लो. ३१६ तक है.. (२६.५५१२,
"
"
१२४३५).
द्विजमुखचपेटा, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः सद्भूत भाव्यर्थ; अंति:
८७११. चन्दनमलयगिरी चरित्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ९, जैदेना. पु. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. र गा. १२९ तक हैं...
"
(२६४१२, ९-१०x३०-३२).
चन्दनमलयागिरि रास, मु. मद्रसेन प्राहिं, पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीविक्रम: अंतिः
८७१३. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३८-१० (१ से ३,७ से ११,१२९ से १३० ) = १२८, जैदेना.,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. अध्ययन-२ से अध्ययन - ९ गा. ६ तक हैं., ( २६ १२.५, २-३X२८-२९).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि:- अंतिःदशवेकालिकसूत्र टवार्थ मागु, गद्य, आदि: अंति:
दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस अंति:
दण्डक प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः नमिउं क० नमस्कार; अंति:
८७१५. दण्डकप्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम प्र. १४ जैदेना. प्र. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.३८ तक हैं..
"
(२६.५X११, ११३६-३८).
८७१६. भक्तामर स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना ले. स्थल थिरुपुद्र, ले. मु. वासा. प्र. वि. मूलश्लो.४४., पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें - प्रारंभिक पत्र, (२८x११, ३-७३२-३४).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुद्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः समुपैति लक्ष्मी.
भक्तामर स्तोत्र- गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंतिः अवशात० इति पंचमोर्थः
"
८७१७. रत्नपाल चौपाई व औषध, संपूर्ण वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. ४७ पे. २. जैवेना. ले. गणि भाग्यविजय (२७४१२, १४
.
94x80-84).
पे. २. औषध सङ्ग्रह' मागु, गद्य (पृ. १अ) आदि #; अंति#.
P
"
पे. १. रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मागु, पद्य, वि. १७६० (पृ. १आ-४७आ), आदि: सकल श्रेणि में;
अंति: मोहनविजय विलासजी ये वि. अध्याय ६६.
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३५९
८७१९. महाबलमलयसुन्दरी रास, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. ९९, जैदेना., ले.स्थल. जोधपुर, पठ.- ऋ. मोहनलाल, प्र.वि.
खण्ड-४/ ढाल-९१, (२७.५४१२, १४४४४-४७).
मलयासुन्दरी रास, मु. कान्तिविजय , मागु., पद्य, वि. १७७५, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः चोथा खण्डनी ढाल रे. ८७२०." जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.४९., टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
(२७.५४११.५, ५४४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भुवन क० स्वर्ग; अंतिः विसतारइथी जाणवो. ८७२१.” सम्बोधसत्तरि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दशा वि. अक्षर
___ पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२७X१२, १६x४९). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति:
सम्बोधसप्ततिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: नमिऊण क० नमिनइं कुण; अंति:८७२४. उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५९-५(२५,२७,३१,३६,४६)=५४, जैदेना., प्र.वि. मूल
३६अध्ययन., पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४१२, १२-१४४४४-४७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि.
उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८७२५. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना., ले.स्थल. पीराणपटण, ले.- ऋ. कल्याणचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम,
प्र.वि. खण्ड-४, ढाळ ४१; प्र.पु.-मूल-श्लो.१८००,, (२७.५४१२, १७४३५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (१) कल्पवेल कवियण तणी
(२) नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी. ८७२६. चन्दराजा चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२-५२(१ से ५०,६३,६७)=२०, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.
उल्लास-४ ढाल-१८ वी तक हैं., (२७.५४१२, १७४३८-४२).
चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदि:-; अंति:८७२७." श्रीपालराजा रास सह टबार्थ-खण्ड-४, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त
विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. खंड-४ की ढाल-१३ तक हैं., (२७.५४१२, ६४३२-३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंतिः
श्रीपाल रास-टबार्थ', मागु.,राज., गद्य, आदि:-; अंति:८७२८. विपाकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४-२२(१ से १८.५० से ५३)=६२, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र
हैं., (२७X१२, ६४३५-३८). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
विपाकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः८७२९. पापबुद्धिराजाधर्मबुद्धिमन्त्री कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१०(१ से १०)=१४, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
(२६.५४१२, १०४३४-३६).
पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री कथा, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:८७३१. कर्मग्रन्थ यन्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०-१०(१,४,२८ से ३१,४६ से ४८,५६)=५०, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के
पत्र हैं., (२५४११, १८४३५)..
कर्मग्रन्थ-यन्त्र*, मागु., कोष्टक, आदि:-; अंति:८७३२. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६३२, श्रेष्ठ, पृ. १३०-७३(१ से ७३)-५७, जैदेना., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दृष्टं; (४७९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२६४११.५, ११४३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि.
कल्पसूत्र-बालावबोध*, मागु.,राज., गद्य, आदिः-; अंतिः तेह श्रीकालिकाचार्य. ८७३३." नेमिजिन विवाहलो, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित-प्रारंभिक पत्र,
पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.३९ तक हैं. रचना प्रशस्ति अधुरी हैं.. (२५४१२, ११४३०).
नेमिजिन विवाहलो, मागु., पद्य, आदिः नगर सोरीपुर सोभतो; अंति:८७३४. धर्माधर्मफल सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६१., (२७X११.५, १३
१४४३४-५०). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंतिः जोमन्नइसो न संसारी.
गौतमपृच्छा-बालावबोध+कथा* , मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनइं; अंति: मानै तै हुवै संसारी. ८७३६. पन्नवणासूत्र-अपूर्ण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २०८-१९८(१ से १९८)=१०, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
(२६.५४११, १३४३८-४३).
प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:८७३७. हरीबल चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.१२५ तक लिखा हैं.,
(२६४११, १२४४०).
हरीबल चौपाई, मागु., पद्य, आदिः सन्तिजिणवर सन्तिजिण; अंति:८७३९. त्रणचौमासी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११.५, १७X४८-५०).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, सं.,मागु., गद्य, आदिः सामायकावश्यकपौषधानि; अंतिः८७४०. ठाणाङ्गसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१-१(१)=६०, जैदेना., प्र.वि. *ग्रंथनी पन्ना माहिती चेक करशो.,
पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२५.५४११, १७४३९-४२). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:
स्थानाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि:-; अंति:८७४१.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३०-१(१)=१२९, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११.५, ६४३६-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, सं., गद्य, आदि:-; अंति:८७४६. सिन्दूर प्रकरण सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८११, मध्यम, पृ. २७, पे. ३, जैदेना., ले.- मु. हेमराज (गुरु ऋ. गुलालराज),
प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४१२, ४४२८-२९). पे.-१. सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-१अ, अपूर्ण), आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः-, पे.वि.
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पे.२. पे. नाम. सिन्दुर प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-२७आ, संपूर्ण
सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्.
सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वनाथनै; अंतिः ग्रन्थ कर्ता छु., पे.वि. मूल-श्लो.१००. पे.-३. जैन सामान्यकृति-पेटाङ्क बाकी*, सं.प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. २७आ-२७आ-, अपूर्ण), आदि:-; अंति:-, पे.वि. कृति
टबार्थ के साथ है. अंत के पत्र नहीं हैं. ८७४८. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६-१८(१ से १८)-७८, जैदेना., पठ.- गणि
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३६१ कृष्णविजय (गुरु आ. विजयदेवसूरि). पू.वि. व प्रतिलेखक द्वारा देववंदन, गुरुवंदन, पडिक्कमण व पच्चक्खाण तक
ही लिखा है., (२६x११, १३४४०-४४). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः
षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मु. जिनचन्द्रसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८७४९.” भाष्यत्रय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं
हैं. पच्चक्खाणभाष्य गा.३९ अपूर्ण तक हैं., (२६४१०.५, ७४४३-४७). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः
भाष्यत्रय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वान्दिनई वान्दवायोग; अंतिः८७५०. जीवविचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-५(१ से ३.५ से ६)=७, जैदेना., ले.स्थल. स्थंभतीर्थ, ले.- मु. कनकशील,
पठ.- मु. दीपसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.५१. प्रति ले. वर्ष-१७१६ की प्रत उपर से नकल होने की संभावना हैं.
" संवत षडेंदुअब्धिचन्द्रमा वर्षे"., (२५.५४११.५, ३४३१).
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. ८७५६." षडावश्यकसूत्र की कथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं
हैं. कायोत्सर्गअध्ययन विषयक कथा श्लो.११ अपूर्ण तक है., (२६.५४११, १४-१६x४२-४७).
आवश्यकसूत्र-कथा सङ्ग्रह, सं., पद्य, आदिः अन्तरङ्गारि षड्वर्ग; अंति:८७५७." कर्मग्रन्थ १ से ६ की अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०-१०(१ से ९,११)=३०, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. प्रति में
अवचूर्णिकार का नाम नहीं लिखा है., संशोधित, पू.वि. षडशीति कर्मग्रंथ की गा.२० अपूर्ण से है., (२६.-४११.-,
२०४६१-६८). पे.-१.पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ अवचूर्णि, पृ. -११अ-१३अ, अपूर्ण षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, आदि:-; अंतिः तु केवलिनो वदन्ति.,
पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.२० अपूर्ण से है. पे.२. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रन्थ की अवचूर्णि, पृ. १३अ-२२आ, संपूर्ण शतक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, आदिः घातिन्यस्त्रिधा सर्व; अंतिः
केवलज्ञानी भवति. पे.३. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रन्थ की अवचूर्णि, पृ. २२आ-४०आ, संपूर्ण सप्ततिका कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदिः सिद्ध० सिद्धान्यविचल; अंतिः माह दुर० जो०
स्पष्टे. ८७५८." सिद्धहेमशब्दानुशासनलघुवृत्ति की अवचूरि, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११-१(१०)=१०, जैदेना.,प्र.वि.
संशोधित, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. द्वितीय अध्याय के तृतीय पाद से तृतीय अध्याय के द्वितीय पाद अपूर्ण
तक है., (२७४११.५, २१४६२-६३).
सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति की अवचूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंति:८७५९. जम्बुकुमार रास, पूर्ण, वि. १८०३, श्रेष्ठ, पृ. २१-२(१,१८)=१९, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, ले.- श्रा. फतेचन्द सूरसिङ्घ
सङ्घवी, प्र.वि. ढाल-३५, (२६४११, १३४५८).
जम्बूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंतिः नितु कोडि कल्याण. ८७६०.” समयसार नाटक, संपूर्ण, वि. १७५९, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., ले.स्थल. सप्तच्छदीदुर्ग, ले.- पं. सुजाणहंस (गुरु पं.
ललितहंस), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.७२७, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, १५४४२-४५). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९३, आदिः करम भरम जग तिमिर; अंतिः नाममइ
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची परमारथ विरतन्त. ८७६१. सिङ्घासणबत्रीसीपुतली कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९-३९(१ से ३९)=२०, जैदेना., ले.स्थल. रोहीडा, प्र.वि.
गा.१७०३, पू.वि. गा.१०३२ तक नहीं है., (२५४१०.५, १५४५६-५८). सिंहासनबत्रीसी, गणि सङ्घविजय, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदि:-; अंतिः सुणता एह चरित्र. ८७६२. रामयशोरसायन रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२०-९३(१ से ९०,९३,१०८,११६)=२७, जैदेना., पू.वि. बीच बीच के
पत्र है. ढाल-४९ की गा.३० से ढाल-६२ की २९ तक है., (२६.५४११, १४४३७-३९).
रामयशोरसायन रास, मु. केशराज, मागु., पद्य, वि. १६८३, आदि:-; अंति:८७६३." प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९२-८०(१ से ८०)=१२, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-टीका-ग्रं.
२७२०.,पू.वि. अन्त के पत्र है., (२६४११, १३४४०-४३).
श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः वृत्तितोवरचूर्णितश्च. ८७६४. उपाध्यायसत्यसौभाग्यगणि रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(२)=५, जैदेना., प्र.वि. गा.१५०, पू.वि. बीच का एक
पत्र नहीं है. गा.१४ से ४० तक नही है., (२६४११.५, १३४४५).
सत्यसौभाग्यउपाध्याय रास, गणि धर्मदासजी, मागु., पद्य, आदिः जिनवर नित प्रणमीइ; अंतिः पूरो मननी आस रे. ८७६५. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १६-११(१ से १०,१५)=५, जैदेना., (२६४११, १०x२७).
प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदि:- अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. ८७६६. श्रीपाल रास सह बालावबोध-खण्ड ४, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१-५३(१ से ४५,४९ से ५४,५८,६०)=८, जैदेना.,
पू.वि. बीच बीच के पत्र है., (२५४१०.५, ३-१६४३५-४२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंति:
श्रीपाल रास-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः८७६७. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १४९-१४३(१ से १४३)=६, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र है., (२६४११,
६४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:
कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८७६९." वाग्भट्टालङ्कार सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(३,७)=६, जैदेना., प्र.वि. मूल-५परिच्छेद., संशोधित,
पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पंचपाठ, पू.वि. बीच बीच के पत्र नही है.,
(२६x११, १२४५४). वाग्भटालङ्कार, जैनकवि वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः श्रियं दिशतु वो देवः; अंतिः सारस्वताध्यायिनः.
वाग्भटालङ्कार-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः आशीर्नमस्क्रियाभीष्ट; अंतिः (१)ब्रह्माणः कवित्वमनुज (२)विज्ञेया सहृदयैः. ८७७१. गाथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५४११.५, १२४३४-३८).
जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:८७७४. देववन्दनभाष्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.,ले.स्थल. तीवरी, ले.- पं. रत्नसेन, प्र.वि. मूल
गा.६३., (२६४११, ३-५४३७-३८). चैत्यवन्दनभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः परमपयं पावइ लहुं सो.
चैत्यवन्दनभाष्य-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वान्दि करके सर्व; अंतिः थोडा कालमइ जे जीव. ८७७५. पर्यन्ताराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. धमडका, ले.- मु. हितविजय,
प्र.वि. मूल-गा.७०., (२५.५४११, ६४३३-३६). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३६३
पर्यन्ताराधना-टबार्थ' , मागु., गद्य, आदिः नमस्करी ग्लान कहे; अंतिः साम्भलसे ते लेसे सुख. ८७७६. जम्बूस्वामी रास, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं है. ढाल-३५ दुहा तक है.,
(२५.५४११, १४४३७).
जम्बूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः प्रणमी पास जिणन्दना; अंति:८७७७. उत्तराध्ययनसूत्र की कथाएँ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११५-८(२६ से ३१,३३ से ३४)=१०७, जैदेना., पू.वि. बीच बीच
व अन्त के पत्र नहीं है. २२ वें अध्याय की कथा अधूरी तक है., (२६४११.५, १३४४४-५०).
उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह, पं. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:८७७८." सङ्ग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं गा.३०० तक
है., (२५.५४११, १२४४०-४१).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंति:८७७९. सूयगडाङ्गसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, पू.वि. अन्त के पत्र नही है.
अध्ययन १६ श्लो.१ अपूर्ण तक है., (२६४११.५, ८-११४२६). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः
सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य सद्गुरुन; अंति:८७८०. एकादशी व पाक्षिक स्तुति सह टीका, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., प्र.वि. त्रिपाठ, पू.वि. अन्त के पत्र
नहीं है।, (२५.५४११.५, २४३०). पे.१. पे. नाम. मौनएकादशीतिथि स्तुति सह टीका (वृत्ति), पृ. १अ-३अ, संपूर्ण
मौनएकादशीतिथि स्तुति, सं., पद्य, आदिः श्रीभाग्नेमिर्बभाषे; अंतिः न्यस्तपादाम्बिकाख्या. मौनएकादशीतिथि स्तुति-वृत्ति, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदिः श्रियं भजतीति; अंति: तुः पादपूरणो.. पे.वि.
___मूल-श्लो.४. पे..२. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति सह टीका, पृ. ३आ-४आ, पूर्ण
पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति:
पाक्षिक स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदिः स श्रीवर्द्धमानो; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं है. श्लो.४ अपूर्ण तक है. ८७८३. मङ्गलकलश चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., प्र.वि. ढाल-२१, पू.वि. ढाल-२१., (२४.५४११,
११४२६-२७). मङ्गलकलश चौपाई, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७१४, आदि: पास जिनेसर पय कमल; अंतिः आदरिज्यो गुणवन्त. ८७८४.” सङ्ग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अन्त के पत्र
नहीं है. गा.१ से ३०० तक है., (२४.५४१०.५, ४४३७-३८). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः
बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, ऋ. वच्छराज, मागु., गद्य, आदिः (१) लेलिख्यते टबार्थोयं (२) नमिउ क० वांदीनइ; अंतिः८७८५. चतुर्मासकत्रयी व्याख्यान, पूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. २४-१(१)=२३, जैदेना., ले.स्थल. सादडी, ले.- पं. चतुरविजय
(गुरु मु. हस्तिविजय), पठ.- पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, पू.वि. प्रथम पत्र नही है., प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं
पुस्तकं कृत्वा, (२५४१०.५, ९४३२-३४).
चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः व्याख्यानमाख्यानभृत्. ८७९२." शान्तिजिन चौपाई, संपूर्ण, वि. १७३३, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., प्र.वि. ढाल-६६, गा.१३९८. प्रतिलेखनवर्ष-रामरामहयेंदु.,
ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२४४१०.५, १३४४०-४६). शान्तिजिन रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२०, आदिः सकल सुख सम्पतिकरण; अंतिः शांतिसर स्वामि गायों.
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३६४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८७९३. स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., पठ.- काना, प्र.वि. २४ स्तवन, (२३.५४१०.५, ७४२७-३०).
स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः आनन्दघन प्रभु जाग रे. ८७९५. स्तवनचौवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना., ले.स्थल. जालोर, ले.- पं. कस्तुरविजय (गुरु पं.
रूपविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-२४ स्तवन., (२४४११, ४४३२). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः आनन्दघन प्रभु जाग रे.
स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः आनन्दघघनस्यास्या; अंतिः ते करी मोक्षपद पामे. ८७९६. शत्रुञ्जयउद्धार व पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पे. २, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
(२४४११, १४४३२-३४). पे.१. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, (पृ. १अ-७अ, संपूर्ण), आदि: विमल गिरिवर
विमल; अंतिः देही दरीसण जय करूं., पे.वि. ढाल-१२, गा.१२१. पे.२. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, (पृ. ७अ-७अ, अपूर्ण), आदिः सकल
सिद्धिदायक; अंतिः-, पे.वि. गाथा १-५ अपूर्ण तक लिखा है. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ८७९७. इलाचीकुमार चौपाई व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७८९, श्रेष्ठ, पृ. ८,पे. २, जैदेना., ले.स्थल. कीसरोली, ले.- मु.
सुन्दरविजय (गुरु गणि उदयविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२४x१०.५, १३४४१-४२). पे.-१. इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७१९, (पृ. १अ-८आ), आदिः सकल सिद्धिदाई सदा; ___ अंति: गुण एहवा जाणी., पे.वि. ढाल-१६; प्र.पु.-१८७.
पे.२. दुहा सङ्ग्रह*, मागु.,प्रा.,सं., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-१+१. ८७९८. सामुद्रिक शास्त्र व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७५२, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., ले.- गणि कृष्ण, (२४.५४११, १७
१८४३९-४१). पे.-१. सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, (पृ. १अ-८आ), आदि: देवदेवं नमस्कृत्य; अंति: गवाद्यं दानकेन तु., पे.वि. श्लो.२६७.
पे.२. श्लोक सङ्ग्रह', सं.प्रा.,मागु.,हिन्दी, पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. गा.२. ८७९९. जन्मपत्री पद्धति पञ्चाङ्गफल, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., (२४.५४१०.५, १३४४७-५०).
जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रीऋद्धि; अंतिः नाभिधाने जननविलग्ने. ८८००." नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६९५, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.- उपा. जिनरत्न, पठ.- साध्वीजी विद्याश्री,
प्र.वि. मूल-गा.५४., संशोधित, (२४.५४१०.५, १३४३९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा.
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः पहिलउ जीवतत्व बीजउ; अंतिः ए वातनु सन्देह नही. ८८०२. गुणावली चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६७, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. रोहिनासपुर, ले.- मु. भगवानदास (गुरु मु.
रूपाजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-२९, (२५४१०, १६-१७४५०).
गुणावलि चौपाई, गणि गजकुशल, मागु., पद्य, वि. १७१४, आदिः सकल मनोरथ पूरवे; अंतिः नितनित सुख आणन्दा. ८८०६. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., संशोधित,
त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र.ले.श्लो. (११) अज्ञान भावत्मति विभ्रमद्वा, (२५.५४१०.५, ३-४४३५). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः (१) श्रीमत्पार्श्वजिनं (२) कल्याण क० माङ्गलिक; अंतिः सेनाचार्य
इत्यपरनाम. ८८०७." ऋषिदत्ता रास, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-४१ की
गा.४ तक है., (२६४१०.५, १५४४६-५०).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३६५
ऋषिदत्तासती रास, आ. जयवन्तसूरि, मागु., पद्य, वि. १६४३, आदिः उदय अधिक दिन दिन; अंति:८८०९." सम्यक्त्वकौमुदी, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रस्ताव-७
गा.१३८ तक है., (२५.५४११.५, १३-१७४३७-५१).
सम्यक्त्वकौमुदी, गणि जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १४८७, आदिः ॐ नमः शाश्वतानन्द; अंति:८८१०. चित्रसम्भूति चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., प्र.वि. ढाल-३९, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४११, १५४५३).
चित्रसम्भूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७३१, आदिः प्रथम नमुं परमेसरु; अंतिः दीइं दोलति दीदारु रे. ८८११. नवतत्त्व सह टबार्थ व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७४६, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पत्तननगर, ले.- मु.
जीवनचन्द्र (गुरु गणि तेजचन्द्र), पठ.- श्रा. दीपाबाई, प्र.ले.पु. विस्तृत, (२५.५४११, ३४२८-३२). पे-१. पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. १आ-१२अ
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रथम जीवतत्व बीजुं; अंतिः धरवा सदाई सर्वदा., पे.वि. मूल-गा.४८.
प्र.पु.-सर्वग्रं.३००. पे..२. श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ), आदि: #; अंतिः#. ८८१२. रिषिदत्ता चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. गा.२९६, (२६४११.५, १२-१३४३३-३६).
ऋषिदत्तासती चौपा-शीलव्रतविषये, मु. देवकलश, मागु., पद्य, वि. १५६९, आदिः श्रीसरसति सुपसाउलइ; अंतिः विघन
सवि दूरि. ८८१३." निरयावलिकासूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, पे. ५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक
पत्र, (२५.५४११, ११४३८-४५). पे.१. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. १आ-१७अ), आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः मायातो सरिसणामाओ. पे.२. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. १७अ-१९अ), आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिद्धे. पे.-३. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. १९अ-३७अ), आदि: जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए. पे.-४. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. ३७अ-४०अ), आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः वासे सिज्झिहिंति.
पे.-५. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. ४०अ-४५आ), आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि. ८८१४. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०७, जैदेना.,प्र.वि. ३६अध्ययन; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २०७५. अंत में छत्तीस
अध्ययन के नाम दिये है., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४१०.५, ९४३८).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्बुडे त्ति बेमि. ८८१५. बृहत्सङ्ग्रहणी, संपूर्ण, वि. १५६५, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., पठ.- श्राविका हांसी, प्र.वि. गा.२७६, संशोधित, पदच्छेद
सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१०.५, ११४४१-४४).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः सन्नि गईरागई वेए. ८८१६." उपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १५७२, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. वासण, ले.- मु. भावसागर (गुरु गणि
रुपसागर), पठ.- श्राविका कपूरबाई,प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. गा.५४४, संशोधित, (२६x११, १३४४२-४४).
उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. ८८१७." उववायाङ्ग उपाङ्ग सूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. १२६., संशोधित, (२६४११,
१३४४७-४९).
औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. ८८१९." षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५९५, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. देवगिर महादुर्ग, ले.- कृष्णा
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जोसी, पठ.- श्राविका जसमा चान्दजी साह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अंतिम सूत्र का बालावबोध नहीं लिखा है.,
संशोधित, (२६४११, ११४४३-४५). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः विणा निरत्थयं सव्वं.
षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः समोसरणि बइठा अरिहन्त; अंतिः#. ८८२०." इन्द्रियपराजयशतक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.१०२, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें,
(२५.५४११, ११४३६-३९).
इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. ८८२१." उपदेशमाला दृष्टान्त सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७२६, श्रेष्ठ, पृ. २४-७(३ से ९)=१७, जैदेना., ले.स्थल. योधपुर, ले.- पं.
किर्तिविजय, प्र.वि. प्र.पु.-६७., संशोधित, (२५४१०.५, १६-१७४५०-५३).
उपदेशमाला-कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य गुरुपादाब्ज; अंतिः जीवो नरके व्रजति. ८८२२. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना.,प्र.वि. १०अध्ययनरचूलिका; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ७००, संशोधित,
(२६४१०.५, १३४४७-५२).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः आलणा सो. ८८२३." अनन्तकीर्ति चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. १५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, पू.वि.
अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४१०.५, १३४४३-४४).
अनन्तकीर्ति कथा, सं., गद्य, आदिः (१) परदार विरत्ताणं इहेव (२) अत्रैव भरतक्षेत्रे; अंति:८८२५." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८-१०(१ से १०)=१८, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित,
पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्रथम श्रुतस्कंध प्रथम अध्ययन का बीच का पाठ (श्रेणिक अधिकार) है., (२६.५४११, ६x४५
४९).
ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:- अंति:
ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:८८२६. गुरुवन्दन व पचक्खाणभाष्य सह टीका, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-६(१ से ६)=९, जैदेना., पू.वि. बीच के
पत्र हैं., (२६४११, १७४३९-४२). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:
भाष्यत्रय-टीका, सं., गद्य, आदि:-; अंति:८८२७.” अन्ययोगव्यवछेदद्वात्रिंशिका स्तवन सह स्याद्वादमञ्जरी टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना., प्र.वि.
श्लो.३२., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-प्रारंभिक पत्र, (२६.५४११, १७५७-५८). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः अनन्तविज्ञानमतीतदोष; अंतिः
कृतसपर्याः कृतधियः. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वाद्मञ्जरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, शक. १२१४, आदिः यस्य
ज्ञानमनन्तवस्तु; अंतिः (१)छन्दोलङ्कृतकाव्यार्थ (२)सास्त्यत्र सम्यग्यतः. ८८२८." भगवतीसूत्र सह टीका शतक-२५ उद्देश ६-७, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-हिस्सा-शतक २५
उद्देश ६-७., संशोधित, त्रिपाठ, (२६.५४११, ५-१३४५२). भगवतीसूत्र-हिस्सा*, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः#; अंतिः#.
भगवतीसूत्र-हिस्सा की टीका, सं., गद्य, आदिः#; अंतिः#. ८८२९." वैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१०३, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, संशोधित,
(२६४११, ७४३१).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३६७
वैराग्यशतक, कवि पद्मानन्द कवि, सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्यं युगपत्करा; अंतिः स्वादितः स्वेच्छया. ८८३०. चन्दनमलयगिरी रास, संपूर्ण, वि. १७६१, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. आउआ, ले.- मु. तिलोकचन्द (गुरु ऋ.
गेहाजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-१३, (२६४१०.५, १४४४१).
चन्दनमलयगिरी रास, पं. क्षेमहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७०४, आदिः जिनवर चउवीसे नमी; अंतिः पामइ सुख अनन्ता रे. ८८३३. भक्तामर स्तोत्र सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., संशोधित, (२५.५४११,
२१४४३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी.
भक्तामर स्तोत्र-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्ये अहमपि; अंतिः विचित्रपुष्पां तां. ८८३४." जिनशतक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५३५, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. प्रह्लादनपुर, ले.- मु. भद्रसोम (गुरु गणि
उदयसोम),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-४परिच्छेद, श्लो.१००., संशोधित, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि
सूचक चिह्न, (२६४११, १३४४३-४६). जिनशतक, मु. जम्बू कवि, सं., पद्य, वि. ११वी, आदिः श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंतिः वागसौ द्राग्विधेयात्.
जिनशतक-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः जिनोर्हन्श्रिये; अंतिः क्षुद्रान् न भवति. ८८३५. सालिभद्रधन्ना चरित्र, संपूर्ण, वि. १८३४, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले.स्थल. चांणोद, ले.- गणि प्रतापविजय (गुरु पं.
___भाग्यविजय), पठ.- पं. उदयविजय, प्र.वि. ढाल-२९, (२५४११, १२४३४-३६). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः मनवंछित फल
लहिस्यैजी. ८८३६. विक्रमसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६९, मध्यम, पृ. ३३, जैदेना., ले.स्थल. कुरलाया, ले.- पं. उत्तमविजय (गुरु पं.
वृद्धिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-६४, (२६x१०.५, १७-२०४५१-५८). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः परम ज्योति प्रकास; अंति: परमसागर आणन्दा
८८३७." नवस्मरण सह अवचूरि, प्रतिपूर्ण, वि. १७०८, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि.
कल्याणमंदिर स्तोत्र व बृहत्शांति स्तोत्र नहीं है., (२५.५४१०.५, ५४४५-४९). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः समुपैति लक्ष्मीः .
नवस्मरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः नमो नमस्कारोस्तु; अंतिः विलोक्य सुधियेति. ८८३८. पाक्षिकसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, (२६४११, ११-१४४४८).
पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति.
पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः तीर्थङ्करांश्च शब्दा; अंतिः हेतु तेनाभिहितत्वात्. ८८४०. दशवैकालिकसूत्रटीका, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६-३(१७ से १९)=४३, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. २५००., पदच्छेद
सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-कुछ पत्र, संशोधित, (२४.५४११, १९४५३-५५). दशवैकालिकसूत्र-लघुटीका, आ. सुमतिसूरि, सं., गद्य, आदिः जयति विजितान्यतेजाः; अंतिः यान्ति पदमव्ययम्. ८८४१.” भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. ३ भाष्य, गा.१४५, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित,
(२५.५४१०.५, ११४३६-३९).
भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. ८८४२." सकलार्हत् स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तुति सह वृत्ति,प्रत्ययवाक्य, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल.
सुवर्णगिरिनगर,प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत-मूल पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १६-१७X४७).
२१).
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,
पे. १. पे नाम चतुर्विंशतिजिन नमस्कार सह वृत्ति, पृ. 9अ-७अ
सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः श्रीवीरजिननेत्रयोः. सकलार्हत् स्तोत्र- वृत्ति, गणि कनककुशल, सं., गद्य वि. १६५४ आदि वयमार्हन्त्यं प्रणिद अंति शोधनीयेयमादरात्., पे.वि. हिस्सा - श्लो. २६; टीका- ग्रं. २८२उभय.
;
"
पे. २. पे. नाम. वाक्यप्रकाशगत प्रत्ययवाक्यानि,
पृ. ७अ-७अ
प्रत्ययवाक्य- वाक्यप्रकाश, सं., पद्य, आदिः कश्चिद्ग्रन्थं भणति; अंतिः स्वयमेवालङ्कुरुते. पे. ३. पे नाम. पार्श्वजिन नमस्कार स्तुति सह अवचूरि पृ. ७आ-७आ
·
पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, प्रा., पद्य, आदि: चउवकसायपडि, अंतिः पासु पयच्छउ वञ्छिउ.
पार्श्वजिन स्तुति- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भुवनत्रयस्वामी पार्श: अंति: लाञ्छितश्चिह्नितः, पे.वि. मूल-गा.२. ८८४३. गुणरत्नाकर छन्द, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. गणि कुशलरूचि (गुरु गणि हंसरुचि, तपगच्छ),
प्र. वि. अध्याय- ४ (२५.५४११, १९४५३).
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गुणरत्नाकर छन्द, मु. सहजसुन्दर मागु पद्य वि. १५७२, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल अंति: करो सहिजसुन्दर
मया.
कैलास श्रुतसागर
ग्रंथ सूची
८८४४. समुद्र वाहणाविवाद रास, संपूर्ण, वि. १७८८, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले. स्थल. स्थंभतीर्थ, प्र. वि. ढाल - १७,
(२५.५X११.५, ११×३३).
समुद्रवहाण संवाद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७१७, आदिः श्रीनवखण्ड अखण्ड; अंतिः उपदेश चढ्यो
३५).
पे. १. पे नाम श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टवार्थ, पृ. १३-१८अ
सुप्रमाण.
(+)
-
"
८८४५. पर्यन्ताराधना, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २-२ (६.८) ७, जैदेना. ले. मु. खीमजी, प्र. वि. गा. ७०, संशोधित, पू.वि. गाथा ३५-४२ अपूर्ण तक व ५६-६३ अपूर्ण तक नहीं है., (२५x११, ७-८x२२-२५).
पर्यन्ताराधना. आ. सोमसूरि प्रा. पद्य, आदि नमिउण भणइ अंतिः ते सासयं सुक्खं.
८८४६. ताजिकसार सह टीका व बीजक, संपूर्ण वि. १७४५, मध्यम, पृ. ३७, जैवेना. ले. स्थल भोजासर ले ॠ खेतसिंह, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल - ४४द्वार, संशोधित त्रिपाठ, प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२५.५X१०, २१२४५१-५४).
J
"
ताजिकसार, हरिभट्ट, सं., पद्य, शक. ११०५, आदिः श्रीरामस्य पदारविन्द अंतिः द्विविधैः सुपद्यैः.
ताजिकसार-कारिका टीका, गणि सुमतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७७, आदि: श्रीसूर्यचन्द्रा; अंतिः रचिता तनुताच्चिरं. ताजिकसार-बीजक, सं., गद्य, आदिः वर्षप्रवृत्तिः अहर्ग; अंतिः भोजनचिन्ता दिनस्वप्न.
८८४९. प्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह व श्रावकचौदनियम गाथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. २, जैदेना., (२५.५x१०.५, ७×३२
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय संबद्ध, प्रा. प+ग आदि नमो अरिहन्ताणं०: अंतिः सव्वसमाहि० वोसिरामि श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय- बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: माहरउ नम० अरिहन्त; अंतिः अनेरी प्रकृति
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छोडउं.
पे. २. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. १६आ - १६आ), आदि: सचित्त दव्व विगइ: अंतिः दिसि न्हाण भत्तेसु., पे. वि. गा.१. यह कृति बीचमें लिखि गई हैं.
८८५०." उपासकदसाङ्गसूत्र, संपूर्ण वि. १६९३, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैवेना. ले. मु. लब्धिरत्न ( गुरु आ. कल्याणरत्नसूरि, तपगच्छ), प्र.वि. अध्याय- १०, पदच्छेद सूचक लकीरें - कुछ पत्र, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५X११, १३×३९-४१),
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३६९ उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. ८८५१. उपाशकदशाङ्गसूत्र व गाथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६२०, श्रेष्ठ, पृ. २७,पे. २, जैदेना., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं
पुस्तकं दृष्ट्वा , (२६.५४१०.५, १३-१४४४३). पे:-१. उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (पृ. १आ-२७अ), आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः
दिवसेसु अङ्गं तहेव., पे.वि. श्लोक १. अध्याय-१०.
पे:२. गाथा सङ्ग्रह, प्रा., पद्य, (पृ. २७अ), आदिः वाणिय गामे चम्पापुरि; अंति: छठे चूय वडिंसगे वे., पे.वि. गा.५. ८८५२. योगशास्त्रअवचूरि - प्रकाश १ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १५२०, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.- होथी दूबे, (२५.५४११, २१४७५
८०).
योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः अत्र महावीरायेति; अंति:८८५३." दुग्धघटा, संपूर्ण, वि. १५६८, मध्यम, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. सिरोही, ले.- मु. रत्नविजय-शिष्य (गुरु मु.
रत्नविजय), पठ.- साध्वीजी विवेकचूला, प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. गा.७६१, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५४१०.५,
१४४४३-४६).
सूक्तावली सङ्ग्रह, मागु.,प्रा., पद्य, आदिः कीजइ धर्म सुहामणो; अंतिः राज्यं ततो भुज्यते. ८८५५. ढालामारु चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. खमणोर, ले.- पं. भोजविजय, प्र.वि. गा.७४४,
(२६४११, १४४३६-५०).
ढोलामारु चौपाई, वा. कुशललाभ, मागु., पद्य, वि. १६७७, आदिः सकल सुरासुर सामिनी; अंतिः पामै सुख संसार. ८८५६. मृगाङकलेखा चौपाई, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.३८२ तक लिखा है.,
(२६४११, १७४४२-४४).
मृगाकलेखा चौपाई, मागु., पद्य, आदिः गोयम गुणहर पय; अंतिः८८५७. इलाकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३०, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना.,प्र.वि. गा.२०९, (२४.५४१०.५, १३४३६-४२).
इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७१९, आदिः सकल सिद्धिदाई सदा; अंतिः गुण एहवा जाणी. ८८५८. हंसराजवच्छराज रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं है. गा.८२६ तक है.,
(२५४१०.५, १४-१५४४०). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदिसर आदे; अंति:८८५९. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १७६५, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, ले.- मु. रामविजय (गुरु पं. कुशलविजय),
प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. गा.३२६, (२५४१०.५, १३४४६).
श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १५३१, आदिः करकमल जोडि करि सिद्ध; अंतिः जिम भूपति श्रीपाल. ८८६०. प्रीयमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. ढाल-११, (२६४१०.५, १४-१५४४१-४२). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७२, आदिः प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंतिः पुण्ये
अधिकुं प्रमोद. ८८६१. धर्मबुद्धि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.- पण्डित केसोदास (गुरु उपा. उदयतिलक), प्र.वि.
ढाल-३९, गा.५३५, (२५.५४१०.५, १७४४८-५१). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री रास, मु. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १७४२, आदिः प्रथम जिणेसर परगडो; अंतिः शिवसुख
सुजस लहै. ८८६२." उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६०२, श्रेष्ठ, प्र. १७, जैदेना., ले.स्थल. उन्नतदुर्गे, गच्छा.- आ.
विजयदानसूरि(तपागच्छ), ले.- मु. कुलहर्ष (गुरु आ. विजयदानसूरि, तपागच्छ).प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अध्याय-१०, ग्रं. ८१२, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१०, १५-१७४४९-५२).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. ८८६३. सिद्धान्तहुण्डी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४१०.५,
१४४४४). सिद्धान्तहुण्डी, पं. सहजकुशल, प्रा., गद्य, आदि: नमिऊण जिणवराई; अंति:
सिद्धान्तहुण्डी-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीजिनादिक प्रति; अंति:८८६४. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १५५२, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.- पण्डित धनेश्वर (पिता पण्डित चक्रपाणी), प्र.वि. गा.५४४,
प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६४११, १७४५५-५८).
उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. ८८६५. शुकराज/पुण्यसार व शुभदेव कथा, संपूर्ण, वि. १५२५, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. सिरोही, (२६४११, १६
१७X४५). पे.१.शुकराज कथा, सं., पद्य, (पृ. १अ-११आ), आदिः भो भव्या इह कर्तव्यो; अंतिः विपत्कालेपि योभवत्., पे.वि.
श्लो.४७३. पे.२. पुण्यसारकुमार चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. ११आ-१५आ), आदिः कुलं रूपं कलाभ्यासो; अंतिः
मृत्वा मुगति भागभूत्., पे.वि. श्लो.१८८.
पे..३. शुभदेव कथा, सं., गद्य, (पृ. १५आ-१५आ), आदिः आनन्दपुरे जैनः शुभ; अंतिः लोकगमनं ततो मोक्षः. ८८६७.” अढारअभिषेक, बृहत्स्नात्र, जिनबिम्बप्रवेश व ज्वारारोपण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ४, जैदेना., प्र.वि.
टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-अंतिम कुछ पत्र, (२५.५४११.५, १४४४५-४९). पे.-१.१८ अभिषेक विधि, आ. भावप्रभसूरि, मागु.,सं., गद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः सुवर्ण सहित जल प्रथम; अंतिः
(१)कलश भरी स्नात्र करीइ (२)दिनकरमांहि काउ छइ. पे.२.पे. नाम. अट्ठोत्तरी स्नात्रविधि, पृ. २आ-४आ
बृहत्शान्तिस्नात्र विधि सङ्ग्रह, मागु.,प्रा.,सं., पद्य, आदिः सर्व विधि केडइ आठ; अंतिः नाशय नाशय स्वाहा. पे..३.पे. नाम. गृहबिम्बप्रवेश विधि, पृ. ४आ-६अ
जिनबिम्बप्रवेशस्थापना विधि, सं.,मागु., गद्य, आदिः पहिलु मुहूर्त भलु; अंतिः अट्ठोत्तरसु स्मरइ. पे.-४. ज्वारारोपण विधि, सं.,मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः कुसम्भकं वर्णकमण्डपं; अंतिः मुहूर्तदिन थकी पहिला. ८८६८. निरियावलीयादिपञ्चोपाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५४, पे. ५, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
(२५.५४११.५, ११४२८). पे.-१.पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १आ-२२आ
कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः मायातो सरिसणामाओ., पे.वि. १० अध्ययन. पे.२.पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. २२आ-२४आ
कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः महाविदेहे सिद्धे., पे.वि. १० अध्ययन. पे.-३.पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. २४आ-४५अ
पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए.,पे.वि. १० अध्ययन. पे.-४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ४५अ-४८आ
पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं; अंतिः वासे सिज्झिहिंति., पे.वि. १० अध्ययन. पे.५.पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ४८आ-५४आ
वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि., पे.वि. १२ अध्ययन. ८८७१. शालीभद्रधन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. ध्रांणपुर, ले.- मु. बुधरसागर, प्र.वि. ढाल
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
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३०. (२५.५४१०.५, १२-१४४३६-३९).
शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः मनवञ्छित फल लहस्येजी.
जैदेना.,
८८७२. इन्द्रीयपराजय, वैराग्य शतक व आदिनाथदेशनासारोद्धार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. ३, ले. स्थल. राजधानी ले. पं. धर्मसिन्धुर, (२५.५४१०.५, ७४३५-४१).
,
पे.- १. पे. नाम. इन्द्रियपराजयशतक सह टबार्थ, पृ. १अ-८अ
इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. इन्द्रियपराजयशतक-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: तेहिज सुर तेहिज: अंतिः संवेग रसायन नित्यं पे.वि. मूल
गा. १०१.
पे. २. पे नाम, वैराग्यशतक सह टवार्थ, पृ. ८अ - १५आ
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंतिः तुं शाश्वतुं ठाम., पे.वि. मूल-गा. १०४. पे. ३. पे नाम. आदिनाथदेशनोद्धार सह टबार्थ, पृ. १५आ-२१आ
आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा. पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुहं अंति: सिवं जन्ति
i
"
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आदिनाथदेशनोद्धार-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: संसारमांहि नथी सुख अति शिव मोक्ष पहुंचइ., पे.वि. मूल
·
गा. ८८.
८८७३. दशवैकालीकसूत्र सह टीका व भक्तामर स्तोत्र शेषकाव्य, पूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. २२-१ ( ७ ) -२१, पं. २ जैदेना.. ले.स्थल. छनीआरीग्राम, ले - आ. उदयनन्दिसूरि (गुरु आ. जयचन्द्रसूरि ), पू. वि. बीच का १ पत्र नहीं है।,
(२६.५१११, ८- १२X४८-५९).
पे.-१. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टीका, पृ. १अ - २२आ, पूर्ण
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः कहणा पवियाला
सङ्घे.
दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः जयति विजितान्यतेजाः; अंतिः दशवैकालिकटीका. पं.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मूल- अध्याय १० अध्ययनरचूलिका, गा. ७०० टीका
""
ग्रं.६८५०. (अध्ययन ५ गा. १२ से गा. ३७ तक) नहीं है.
पे. २. भक्तामर स्तोत्र - शेषकाव्य आ. मानतुङ्गसूरि
,
अंतिः परिणतगुणैः प्रयोज्या., पे. वि. श्लो. ४.
३७१
सं. पद्य (पृ. २२आ-२२आ, संपूर्ण) आदि गम्भीरताररवपुरिदिग्ः
"
८८७४. गुरुतत्त्वप्रदीप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. श्री. मोहन गिरधर भोजक, पठ- मु. शान्तिविजय, प्र. वि.
८ विश्राम, श्लो. २४५, प्र.ले. श्लो. (३५०) बंधमुष्टि कटी ग्रीवा, ( २६ ११, ११×३९). गुरुतत्त्वप्रदीप, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीर, अंतिः मिथ्यादुःकृतं मम.
"
८८७७. चित्रसेनविचित्रसेन कुमार चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र. वि. ढाल - २६, पू.वि. ढाल - २६., प्र.ले. श्लो. (१४१) यादर्श पुस्तकं कृत्वा, (२५.५४१०.५. १७४४६ ४९).
,
चित्रसेनविचित्रसेन कुमार चतुष्पदी, मु. राजसिंह, मागु पद्य वि. १७२७, आदि प्रणमुं परमानन्दकर अंतिः वधामणा वंछितलीलविलास.
८८७८. गजसुकमाल चौपाई, संपूर्ण वि. १७१५, मध्यम, पृ. १४ जैदेना. ले. स्थल सत्यपुर, प्र. वि. ढाल ३०, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२५.५४१०.५ १७४६१-६४ ).
"
7
गजसुकुमाल चीपाई आ जिनराजसूरि मागु पद्य वि. १६९९, आदि: नेमिसर जिनवरतणा चरण अंतिः जिणवर चरण नमीजे छे.
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३७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
८८७९.” सत्तरिसयठाणा सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १६९६, श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना. ले. स्थल स्थंभतीर्थ, प्र. वि. मूल-गा. ३५९,
टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११ ५०३८-४२).
.
सप्ततिशत स्थान प्रकरण आ. सोमतिलकसूरि प्रा. पद्य वि. १३८७, आदि सिरिरिसहाइ जिणिन्दे अंतिः जाइ सो सिद्धिठाणे.
सप्ततिशतस्थान प्रकरण- टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ऋषभादिक जिनेन्द्र, अंतिः सिद्धि स्थानकने विषइ.
८८८२. विमलशाहमन्त्री प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १६४७, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., ले. स्थल. गोला, ले.- मु. जयसोम, प्र. वि. खण्ड
९+ चूलिका (२६४११, १३४४४-४९ ).
विमलमन्त्री प्रबन्ध, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५६८, आदिः आदिजिनवर आदिजिनवर; अंतिः धरी रिधिवृद्धि रमइ.
८८८३. संस्तारकविवरण सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. १२१., (२६×११.५, १२x४३). संस्तारक प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि काऊण नमुक्कारं जिणवर अंतिः सुहसंकमणं मम चिंतु. संस्तारक प्रकीर्णक-टीका, सं., गद्य, आदिः शमितनिःशेषकर्मणे; अंतिः कृतेति भद्रं भवतु.
-
T
८८८४. निरयावलिकादिपञ्चोपाङ्ग सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १६०४ मध्यम, पृ. २२. पे. ५. जैवेना. ले. स्थल. नागपुर, ले. मु. देवरत्न (गुरु वा. देवसुन्दर, कोरण्टगछ), प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२७४११.५, १३x४०-४२). पे. १. पे नाम कल्पिकासूत्र सह टीका, पृ. १आ-१३अ
"
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"
कल्पिकासूत्र- टीका, आ. चन्द्रसूरि सं. गद्य, आदि: पार्श्वनाथं नमस्कृत्; अंतिः शेषं सर्वं सुगमम्.
"
पे. २. पे. नाग. कल्पावतंसिका सह टीका, पृ. १३-१४अ
कल्पावतंसिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रेणिकनप्तॄणां; अंतिः द्वितीयवर्गश्च.
पे: ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टीका, पृ. १४अ-२२अ पे.-३.
पुष्पिकासूत्र- टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः अथ तृतीयवर्गोपि दशा; अंतिः देवस्य व्यक्तव्यता., पे.वि. टीका
१० अध्ययन.
पे. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टीका, पृ. २२अ-२२अ
पुष्पचूलिकासूत्र - टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि: चतुर्थवर्गोपि; अंतिः चतुर्थवर्गसमाप्तिः.
पे-५. पे नाम वृष्णिदशासूत्र सह टीका, पृ. २२-२२आ
वृष्णिदशासूत्र - टीका, आ. चन्द्रसूरि सं., गद्य, आदिः पञ्चमवर्गे वन्हिदसा अंतिः दुखानामन्तं करिष्यति.
८८८५.” समवायाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., प्र. वि. १०३ अध्ययन, सूत्र - १५९, ग्रं. १६६७, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. ग्रं. ग्रं. १६६७., (२७४११, १५x५६-५८).
समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि
८८८६.” आवश्यकसूत्रवृत्ति अपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३६-२१ (१ से १८,२० से २१,२६ ) - १५, जैवेना. प्र. वि. मूल का मात्र
प्रतिकपाठ दीया है., संशोधित, पू. वि. बीच के पत्र हैं., (२७११, १२-१४४४२-४६).
पडावश्यकसूत्र वृत्ति, सं., गद्य, आदि-: अंति:
"
८८८७. सुभाषित सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २२-३ (१ से ३) १९, जैदेना. प्र. वि. संशोधित टिप्पणक, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के पत्र है., ( २६.५x११.५, १३×५२-५३). सुभाषित सङ्ग्रह सं. प्रा. मागु पद्य, आदि:-: अंति:
1
८८८९. चतुःशरणप्रकीर्णक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १६५५ श्रेष्ठ, पृ. ९. जैदेना. प्र. वि. मूल-गा.६३.. टिप्पण
पू.वि. गा. ६३. (२६४११.५, ५४३०-३२).
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युक्त विशेष पाठ,
चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र प्रा. पद्य आदि सावज्ज जोग विरई अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं.
,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३७३ चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सावध योग क० पाप; अंति: मोक्षना सुखनुं हेतु. ८८९०. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-२श्रुत./२०अध्य.; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १३१६,
(२७.५४११.५, १३४४१). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. ८८९२. महावीरदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. गा.८३, (२८x११.५, ८-९४३०-३४).
महावीरजिन स्तवन-सत्यावीसभवगर्भित, मु. हंसराज , मागु., पद्य, वि. १७वी, आदिः सरसति भगवति दिओ मति; अंति:
कहे धन मुझ एह गुरू. ८८९३. जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना.,पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उद्देश-६ अपूर्ण तक है.,
(२३.५४१०.५, ६४४६). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, गणि पद्मसुन्दर, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति:
जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालने विषइं ते; अंति:८८९४. होलिकापर्व प्रबन्ध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, पृ. ६, देना., प्र.वि. मूल-श्लो.३१., (२४४१२, १५४३९).
होलिकापर्व प्रबन्ध, गणि पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदिः प्रणम्य सम्यक्; अंतिः ढुंढीतमाहलोकः. होलिकापर्व प्रबन्ध-स्तबक, मु. कान्तिविजय, मागु., गद्य, वि. १७९२, आदिः सम्यक् यथारथ परमार्थ; अंतिः मिथ्यात्वपर्व
वरतेछे. ८८९५. सत्तावीस बोल व बारपर्षदा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६.पे. २, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
(२४.५४१२, ११४३६). पे.१.२७ बोल, मागु., गद्य, (पृ. १अ-६अ), आदि: पहिले बोले गति च्यार; अंतिः वचनसञ्जम कायासञ्जम. पे.२. पे. नाम. बारपर्षदा विचार, पृ. ६अ
१२ पर्षदा विचार, मागु., गद्य, आदिः अग्निकूण में पार्षदा; अंतिः १ मनुष्य २ स्त्री ३. ८८९६. पैन्तीस बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२४.५४११.५, १२४३२-३७).
३५ बोल, मागु., गद्य, आदिः पहेले बोले गति चार; अंतिः गुण श्रावकना कह्या. ८८९७. नेमजिन चौवीसचोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. २४ चोक, (२५.५४११, १३४३८).
नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, वि. १८३९, आदिः एक दिवस वसै नेमकुंवर; अंतिः अमृत गुण
गाया.
८८९९. बारभावना वेली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१३, ग्रं. २००, (२५.५४११.५, १३४४१).
१२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर
मझार. ८९००. सिद्धान्तषट्त्रिंशी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-३६ अधिकार, (२६.५४११, १५-१६४५२-५५).
सिद्धान्तषट्त्रिंशिका, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, आदिः प्रथमं तावज्जिनाझै; अंतिः सिद्धान्तोक्त जाणिवा. ८९०२. जिनशतक सह पञ्जिका अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. मूल-४परिच्छेद, श्लो.१००.,
पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, पंचपाठ, पू.वि. ४ परिच्छेद, गा.२५४४, ग्रं.ग्रं.१०००., (२६४११, ११४३८
४३). जिनशतक, मु. जम्बू कवि, सं., पद्य, वि. ११वी, आदिः श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंतिः वागसौ द्राग्विधेयात्.
जिनशतक-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः रागादिदोष जेतृत्वा; अंतिः श्रुन्यान्विधियादिति. ८९०३. स्तुतिचौवीसी सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,प्र.वि. मूल-२४ स्तुतिजोडा, श्लो.९६. प्र.पु.-मूल-ग्रं.
६००., पंचपाठ, (२६४११, ११४३९-४३).
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स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक: अंतिः हारतारा बलक्षेमदा. स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः धनपालपण्डितबान्धवेन०; अंति: लोकमवेति सम्बन्धः.
""
८९०५. दयाछत्रीसी, संपूर्ण वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. ५. जैवेना. ले. गौरीशङ्कर भट्ट, प्र. वि. गा.३६ प्र. पु. मूल ग्रं. १०० ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, ( २६ १२, १०X३४ ).
दयाछत्रीशी, मु. चिदानन्दजी मागु पद्य वि. १९०५ आदि: चरन कमल गुरुदेव के अंतिः कृपाथी सफलफलि मन
आश.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
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८९०६. वीरजिननिर्वाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. ढाल - १०, गा. १२५ प्र. पु. -मूल-ग्रं. २६०,
(२६४११.५, ९४३९)
महावीरजिन निर्वाण महिमा स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मागु, पद्य, आदिः श्रमणसङ्घतिलकोपमं अंतिः श्रीसङ्घहर्ष वधामणा.
८९०७. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २०, जैदेना., (२६×११.५, १०x२६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः कार्येषु सिद्धि.
"
८९०८. यतिप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१३, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले. स्थल. वाराहीनगरे, ले.- मु. हीरविजय, प्र. वि. संबद्ध - सूत्र - २१, ( २६ ११.५, १९-२१x२८-४३).
पगामराज्झायसूत्र संबद्ध प्रा. गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम: अंतिः वन्दागि जिणे चउवीसं.
पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु, गद्य, वि. १७४९, आदिः ऐं नत्वा पार्श्वनाथ; अंतिः श्रीराजधन्यपुरे. ८९०९. दण्डक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- मु. रामविजय (गुरु पं. गुणविजय), प्र.वि. गा.३८,
(२५४११.५, ५३५).
दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ.
८९१०. अवन्तीसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७८७, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना, राज्यकाल- गच्छाधिपति
जिनचन्द्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ ), ले.- सदाराम, प्र. वि. ढाल - १३, पू. वि. गा.१०४., (२५x११.५, ११×३०). अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंतिः सुख पावी रे.. ८९११. व्रत, वाचनाचार्यस्थापन व आचार्यप्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७- २ (१ से २ ) = ५, पे. ३, जैदेना.,
पू.वि.
प्रारंभ के पत्र नहीं है. (२६.५४१०.५, १३४३९-४१).
पे. १. व्रत विधि, प्रा., सं., गद्य, (पृ. ३अ -३अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः यालापकान् उच्चार्यते, पे. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
पे.-२. वाचनाचार्यस्थापन विधि, प्रा., सं., गद्य, (पृ. ३अ - ४आ, संपूर्ण), आदिः शुभतिथिवारनक्षत्र; अंतिः स च नन्दी करोति.
पे: ३. आचार्य प्रतिष्ठा विधि, प्रा.सं. गद्य (पृ. ४आ-७अ संपूर्ण) आदि अथ आचार्यप्रतिष्ठा अंतिः रमणकायोत्सर्ग
"
करोति.
८९१२. नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ३१., पंचपाठ, (२५.५x१०.५, २
४४३४-३७).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय.
नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि. मु. साधुरत्न, सं. गद्य आदि जयति श्रीमहावीर अंतिः सेधनादनेकसिद्धाः.
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८९१३. वीरजिनसत्तावीसभव स्तवन, संपूर्ण वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. ५. जैवेना. ले. जगदानन्द जोशी, प्र. वि. ढाल ५,
-
(२५.५५११.५ १०४३४).
महावीरजिन २७ भव स्तवन, पं. वीरविजय, मागु, पद्य, वि. १९०१, आदि: शुभविजय सुगुरू नमी; अंतिः सेवक वीर
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३७५ विजय जय करो. ८९१४. ऋषभदेवपञ्चासिका- वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- पं. जगतचन्द, (२६४११.५, १७४३८-४२).
ऋषभपञ्चाशिका-टीका, गणि नेमिचन्द्र, सं., गद्य, आदि: जय० नमस्तुभ्यमस्त्वि; अंतिः मध्यस्थाः कृतकृपाश्च. ८९१५. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
(२५.५४१२, ३४२९-३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीरः; अंतिः १५ भेदे सिद्ध कह्या. ८९१६.” रोहिणीतप व्याख्यान सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा
अपूर्ण गाथा ८९ अपूर्ण तक है., (२६४११.५, ६-७X३२). रोहिणीतप व्याख्यान , आ. नरेन्द्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७७०, आदिः नत्वा च श्रीमहावीरं; अंतिः
रोहिणीतप व्याख्यान-टबार्थ, मु. भक्तिनन्दन, राज., गद्य, आदिः श्रीमहावीर भगवान कु; अंति:८९१७." सम्बोधसप्ततिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. अगस्तपुर, ले.- ऋ. गुलाबचन्द
(गुरु मु. रायचन्द, खरतरगच्छ), प्र.वि. मूल-गा.८४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१२, ५४३०). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो.
सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीसर्वज्ञ सर्वलोका; अंति: ए वातमा सन्देह नही. ८९१८. सम्यक्त्व स्तवन सह बालावबोध व सम्यक्त्व विचार, अपूर्ण, वि. १७०५, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल.
किसनगढ, ले.- समरथ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१०.५, १३४४२). पे.-१. पे. नाम. सम्यक्त्व स्तवन सह बालावबोध, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण
सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदिः जह सम्मत्तसरूवं; अंतिः हवेउ सम्मत्तसम्पत्ति. सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः मनोवाञ्छितदातारं; अंतिः माङ्गलिकवचनमिदं कवेः.,पे.वि. मूल
गा.२५. पे:२. सम्यक्त्व विचार सङ्ग्रह, मागु., गद्य, (पृ. ११आ-११आ, अपूर्ण), आदिः धर्म मै न संसै शुभ; अंतिः-, पे.वि. अंत
के पत्र नहीं हैं. ८९१९. चन्दराजा चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-३(१ से ३)=९, जैदेना.,पू.वि. बीच के पत्र हैं. खंड-१ की ढाल-४
की गा.८ अपूर्ण से खंड-२ की ढाल-८ की गा.८ अपूर्ण तक है., (२५.५४१०.५, १६४७०).
चन्द्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मागु., पद्य, वि. १७१७, आदि:-; अंति:८९२२. नन्दीश्वरविधान कथा व पदसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प्र. ६, पे. ३, जैदेना., (२७४११, ८x२७).
पे.१. नन्दीश्वरविधान कथा, सं., गद्य, (पृ. १अ-६अ), आदिः पान्तु श्रीपादपद्मान; अंतिः तस्य महापुण्यं भवति. पे:२. औपदेशिक पद, नेमिदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः ना भमियो मुनि सङ्गि; अंतिः भरथ ही केवल कौ
भयौ., पे.वि. गा.१. पे.-३. ध्यान पद, कवि मल्ह, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः सुध ध्यान पावक सघण; अंतिः भरथ हौ केवलयौ
भयौ.,पे.वि. गा.१. ८९२३." आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति व टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना.,प्र.वि. नियुक्ति की पीठिका और उसकी
टीका नहीं है. उपोद्घातनियुक्ति के साथ ही टीका का प्रारंभ होता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सामायिकसूत्रान्तर्गत नमस्कारनियुक्ति की प्रास्ताविक गाथा
और उसकी टीका तक है., (२५.५४११.५, १७४५४). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः तित्थयरे भगवंते अणुत; अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू.
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आवश्यक सूत्र- लघुवृत्ति आ. तिलकाचार्य, सं. गद्य वि. १२९६ आदि साम्प्रतं तीर्थकुन अंति:
आवश्यक सूत्र- नियुक्ति का भाष्य प्रा., पद्य, आदि: अवरविदेहे गामस्स: अंति:
·
7
कैलास श्रुतसागर
नयचक्र, आ. कुन्दकुन्दाचार्य, प्रा., पद्य, आदिः दव्वाविस्स सहावा; अंति: उवलद्धं समग्ग तच्चेण.
नयचक्र- अवचूरि सं. गद्य आदि श्रीकुन्दकुन्दाचार्य अंतिः #.
,
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आवश्यक सूत्र- नियुक्ति के भाष्य की लघुटीका#, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि:-; अंति:
८९२४.” नयचक्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, देना., प्र. वि. मूल - गा. ४५३. प्राचीन हिन्दीमे पादटिप्पण भी दिया
है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६ ११, १५४३६).
ग्रंथ सूची
८९२५. दीपावलीकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७९, श्रेष्ठ, पृ. २४, देना., ले. स्थल. मालवणनगरे, ले.- पं. सुन्दरविजय (गुरु पं. अमरविजय), पठ. मु. जयविजय प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. अंतिम ३ श्लोक दीपोत्सव आशिर्वादात्मक है.
पाठान्तरयुक्त., (२५x११, ७४३५).
दीपावली कल्प, सं., गद्य आदि सन्तु श्रीवर्धमानस्य अंति: ( १ ) पुण्यमुपायते (२)पर्ववेदं परमं तदा.
·
दीपावली कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कारहो श्रीमहावीर; अंतिः (१) घणो फल उपार्जे (२) ए पर्व दीवालीनो एह. ८९२६. नेमराजुलश्लोक, सुदर्शन व नमिराजर्षिढाल, अपूर्ण, वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. ६. पं. ३, जैदेना. ले. स्थल नागोर, ले.
साध्वीजी वीनो (गुरु साध्वीजी राज्याजी). (२४.५४११ १७-१९४४१).
पे.-१. नेमराजिमति श्लोक, मु. कुशलविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ - १आ, संपूर्ण), आदिः समरुं सारदा गुणपति; अंतिः सान्निध सदा जगवीसी, पं.वि. गा.२०.
पे. २. सुदर्शनशेठ ढाल, मागु., पद्य, (पृ. १आ-६अ, संपूर्ण), आदिः सुदरसण सेठ की पलैवउ, अंतिः मोक्ष परा पूहुवा. पे: ३. नमिराजर्षि ढाल, मागु, पद्य, (पृ. ६आ-६आ-, अपूर्ण) आदि हो राज बेड रुडी परई अंतिः, पे.वि. गा. १६ अपूर्ण तक हैं. अंतिम पत्र नहीं है.
८९२७. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सप्तस्मरण व तिजयपहूत्त अपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४८-३५(१ से ३५)-१३ पे ३, जैवेना..
1
(२६४११, ११४३६).
पे.-१. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, (पृ. ३६अ-३८आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते, पे.वि. श्लो. ४४. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.
पे. २. सप्तस्मरण खरतरगच्छीय. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पच, (पृ. ३८ आ-४७आ, संपूर्ण), आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः भवे पास जिणचन्द, पे.वि. ७ स्मरण उवसग्गहरं स्तोत्र मात्र प्रतिक पाठ दिया गया है.
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पे. ३. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. ४८अ - ४८आ, संपूर्ण), आदिः तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निच्चमच्चेह., पे.वि. गा. १४.
८९२८. सिन्दूर प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (१) = ५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५.५x११.५, १०x३२).
सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंति:
सिन्दूरप्रकर- टीका, सं., गद्य, आदि:- अंतिः
८९२९. साधुप्रतिक्रमणसूत्र लघुशान्ति व सामायिकपोसह सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०४ श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल.
सांडेराव, ले. गणि नरेन्द्रविजय, (२५x११.५, १०x३४).
पे- १. पे नाम साधुप्रतिक्रमणसूत्र पृ. १अ-४आ
पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं.
पे. २. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. ४आ- ५आ), आदिः शान्ति शान्ति; अंतिः जैनं जयति शासनम्., पे.वि. श्लो. १८.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३७७ पे..३. सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः सामायिक मन सुधे करो; अंतिः सामायिक
पालो निसदीस., पे.वि. गा.५. ८९३१. मदनरेखा रास, जिनदर्शन स्तुति, आदिजिन स्तवन व कवित, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ४, जैदेना.,
(२५४११.५, १४४३८). पे..१. मदनरेखा रास, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, वि. १८७० , (पृ. १अ-५आ), आदिः आदि धरम धोरी प्रथम; अंतिः
प्रसादे सुणो भवियण., पे.वि. ढाल-६. पे.-२. प्रार्थना स्तुति*, सं., पद्य, (पृ. ५आ-आ), आदिः दर्शनं देवदेवस्य; अंतिः न भूतो न भविष्यति., पे.वि. श्लो.९. पे.-३. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदि: जगजीवन जग वालहो; अंतिः ___सुखनो पोष लाल रे.,पे.वि. गा.५. पे.४. औपदेशिक पद, मु. नाथ, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः कुल कलङ्क गही जग; अंतिः अवगुण हु कही.,
पे.वि. गा.१. ८९३२. दीपावली कल्प बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., (२६४११.५, १७X४६).
दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः वर्द्धमानस्वामी; अंतिः लगे जगतने विषेइ रहो. ८९३३. चतुर्मासत्रय व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. सोझतनगर, ले.- पं. हमीरविजय (गुरु मु.
रत्नविजय), प्र.वि. श्रीशान्तिजिनप्रसादात्., (२५४१२, १८४४२).
आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वसुखमागारं; अंतिः विमला भवन्ति. ८९३४. अष्टादशपापस्थानकनिवारण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. १८ सज्झाय, (२५४१२, ९४३०).
१८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः पापस्थानक पहिलं; अंतिः वाचकजस
इम भाखेजी. ८९३५.” पौषध विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, देना., प्र.वि. संशोधित, (२५४१२, ११४३०).
पौषध विधि, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः इरियावही पडिकमें लोग; अंति: करि मिच्छामि दुक्कडं. ८९३६. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, प्र.वि. मूल-गा.५१., पू.वि.
___ गा.५१., (२४.५४१२.५, ३४२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: भुवन १४ राजलोक रुपी; अंतिः जे समुद्र तेह थकी. ८९३७. तपसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२४.५४१२, १५४३२-३७).
तपावली, मागु., गद्य, आदिः पुरिमढ्ढ १ एकासणां; अंति:८९३९. गोडीपार्श्वजिनषट्भाषा स्तवन व टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२६४१२, १२-१३४३९).
पे.१. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, सं., पद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः प्रणमति यः श्रीगौडी; अंतिः हाद
सुखादतास्तात्., पे.वि. श्लो.११.
पे.२. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी-टीका, सं., गद्य, (पृ. २अ-५अ), आदिः प्रणमतीति अहं तं; अंतिः रोभागितयानभाव्यमिति. ८९४०." नवाण्णुप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पालीताणा, प्र.वि. ढाल-११, ग्रंथ रचना के
समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४११.५, १७X४७). ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुञ्जयमहिमा गर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८४, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः
आतम आप ठवायो रे. ८९४१. तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. आगरानगरे, ले.- ऋ.
ज्वालानाथ (गुरु ऋ. कर्मचन्द), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. बालावबोध-ग्रं. २००० उभय., (२७४११.५, ७X५४).
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३७८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, आदिः निज्जरिय जरामरणं; अंतिः मुच्चह सव्वदुक्खाणं. तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदि: कल्याणवल्लीतती; अंतिः मुक्ति पहोचें ए
भाव. ८९४२. पूजा चर्चा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२६.५४११.५, १५४४७).
पूजा द्रव्यदया भावदया चर्चा, मागु., पद्य, आदिः जे पर जीवना द्रव्य; अंति: उपसम युगल० समकित धार. ८९४३. साधुवन्दना, चोवीसजिन स्तवन व कनककेतुपद्मावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, पे. ३, जैदेना.,
(२५४११, १३४४२). पे.१. साधुवन्दना, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-५अ), आदिः रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मुनि
आणन्दई सन्थुआ., पे.वि. गा.९३. पे..२.२४ जिन स्तवन, मु. गणपति, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः तव जिणवर रे अव आदि; अंति: गणपति कहइ
विचार., पे.वि. गा.९. पे..३. कनककेतुपद्मावती सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः कनककेतु पद्मावती; अंति: पालहुं वीरदेव
सरणाई., पे.वि. गा.९. ८९४४." लोकनालीद्वात्रिंशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३२., (२७४११.५,
१६४३९). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जिणदंसणं विणा जं; अंतिः जहा भमह न इह भिसं.
लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मु. सहजरत्न, मागु., गद्य, आदिः श्रीमदाप्तौ प्रणम्या; अंतिः शोध्यं धीधनै शं. ८९४६. सिन्दूर प्रकरण सह टबार्थ, तेरकाठिया गाथा व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. २२, पे. ३, जैदेना.,
ले.स्थल. राजनगर, ले.- नागरदास लहीया, (२६.५४१२, ५४३६). पे.-१. पे. नाम. सिंदुर प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-२२आ
सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्.
सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सिन्दूरनो प्रकर समुह; अंतिः रुपोतिनिश्रेणि पणे., पे.वि. मूल-श्लो.९९. पे.२.१३ काठिया गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः आलस मोह अवन्ना थंभा; अंति: नाण पखेव कोहला रमणा.,
पे.वि. गा.१.
पे.-३. श्लोक सङ्ग्रह-, मागु.,सं., पद्य, (पृ. २२आ-२२आ), आदिः#; अंतिः#. ८९४८. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८२, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. राजनगरे, प्र.वि. ढाल-८, गा.१०१, (२६४११.५,
११४२७).
पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः सकल सिद्धिदायक; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए. ८९५०. स्नात्रपूजा व अष्टप्रकारी पूजा काव्य, अपूर्ण, वि. १८९२, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.- मु. हर्षसागर, पू.वि.
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६.५४११.५, १२४४०). पे.१. स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. १अ-५अ, संपूर्ण), आदि: चोतिसे अतिसय; अंतिः कही सूत्र
मझार., पे.वि. ढाल-९. पे.२.८ प्रकारी पूजा चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. ५अ-५अ, अपूर्ण), आदि: विमलकेवलभासनभास्करं; अंतिः-, पे.वि.
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. श्लो.३ अपूर्ण तक लिखा है. अंत के पत्र नहीं हैं. ८९५१. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह व श्रुतपञ्चमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२६४११.५, १२-१७४४०). पे.१.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. १अ-५अ
प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३७९ पे..२. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५अ ५आ), आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना., पे.वि.
श्लो .४. ८९५२. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. २४ स्तुतिजोडा, श्लो.९६, (२६.५४१२, १७-१८४४१).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंतिः हारतारा बलक्षेमदा. ८९५३. प्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
(२७४१२, ४४४०). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग, आदिः णमो अरिहन्ताणं; अंतिः तियागारेणे
वोसिरामि. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-खरतरगच्छीय-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः सुरासुरनमस्कृत्य; अंतिः बालावबोध
हुयउ. ८९५४. पञ्चमी व पुण्डरीकस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२६४१२, १०x२९).
पे.१. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १७९३, (पृ. १अ-७अ), आदिः सुत सिद्धारथ भूपनो; अंतिः
सकल भवि मङ्गल करे., पे.वि. ढाल-६. पे..२. पुण्डरीकस्वामी स्तवन, मु. ज्ञानविशाल, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः एक दिन पुण्डरीक गणधर; अंतिः
विशाल मनोहारी रे., पे.वि. गा.५. ८९५६. महीपाल कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.१०४, (२८x१२, १२४३६).
महीपाल कथा, सं., पद्य, आदिः श्रीवीरयुगाधीशं; अंति: उपगारं भवीकजीवयो. ८९५७. षट्दर्शन विचार, संपूर्ण, वि. १९३९, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. रायपुर, ले.- ऋ.
बगतावचन्द(नागोरीलुङ्कागच्छ), (२७X१२, १४४४२).
षड्दर्शन विचार, मागु., गद्य, आदिः नामबौध १ नैयायिक २; अंतिः ३६३ भांगा जाणवा. ८९५९. सङ्ग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. ५९-३३(५,१६ से १७,२३ से ५२)=२६, जैदेना., ले.स्थल.
पाटण, ले.- पण्डित कल्याणचन्द (गुरु गणि खुशालचन्द्र), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.३४५., (२७४१२.५, ५४४१). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं.
बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ , मु. धर्ममेरु, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीने; अंतिः संघयण जयवंती वरतो. ८९६०. झाञ्झरियामुनि सज्झाय, महावीरररजिन पारणुं व ज्ञानपञ्चमी सज्झाय तथा जिनवर्ण चैत्यवन्दन, संपूर्ण, वि. १९२५,
श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ४, जैदेना., लिखवा.- श्राविका रलियातबाई, ले.- मु. राजविजय, (२६४१३, ११४३४). पे.-१. झाञ्झरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्नसूरि, मागु., पद्य, वि. १७५६, (पृ. १अ-३आ), आदिः सरसति चरणे शीस
नमावी; अंतिः साम्भलतां मन आणन्दा.,पे.वि. ढाल-४, गा.४१. पे.२. महावीरजिन पारणा स्तवन, मु. माल, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-५अ), आदिः अरिहन्त अनन्त गुण; अंतिः ते नमे मुनि ___ माल., पे.वि. गा.२८. पे.-३. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः अनन्त सिद्धने करूं; अंतिः
अमृतपदना थाजे धणी., पे.वि. गा.११. पे.-४.२४ जिनवर्ण चैत्यवन्दन, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः सोल तीर्थकर जाणीये; अंतिः नित चरणे करूं
प्रणाम.,पे.वि. गा.१. ८९६१. परमानन्दपच्चीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.२५.,पू.वि. गा.२५., (२७४१३,
३४२७). परमानन्द स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदिः परमानन्दसम्पन्नं; अंतिः परमं पदमात्मनः.
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३८०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची परमानन्द स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः परमात्माने नमस्कार; अंतिः स्वरुप तेज परमात्मा. ८९६२. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. जैननगर, ले.- यति लछीराम, प्र.वि.
मूल-गा.१०४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१२.५, ६४३५). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं.
वैराग्यशतक-टीका, सं., गद्य, आदिः संसारेस्मिन् नास्ति; अंतिः स्थानं मोक्षलक्षणम्. ८९६३. बोल सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६.५४११.५, १५७५२).
बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः पहिलै बोले गति ४; अंति:८९६४. वीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-२(२,४)=८, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१०, गा.१२२, (२०.५४१२, १०४३६).
महावीरजिन निर्वाण महिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मागु., पद्य, (संपूर्ण), आदिः श्रमणसङ्घतिलकोपमं; अंतिः
श्रीसङ्घहर्ष वधामणा. ८९६५.” दीपावली कल्प सह बालावबोध व दुहासङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. १०,पे. २, जैदेना., ले.स्थल. विजापुर,
ले.- मु. गुलाबविजय,प्र.वि. संशोधित, (२६.५४१२, १४४३६-३९). पे.-१. दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मागु., गद्य, (पृ. १अ-१०अ), आदिः वर्द्धमानस्वामी; अंतिः लगे जगतने विषेइ रहो.
पे.२. दुहा सङ्ग्रह', मागु.,प्रा.,सं., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ), आदि: #; अंतिः#. ८९६६. ऋषिमण्डल स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.८२., पू.वि. गा.८२.,
(२७.५४१२.५, ३४४२). ऋषिमण्डल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः आद्यन्ताक्षरसंलक्ष्य; अंतिः परमानन्दसम्पदाम्.
ऋषिमण्डल स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आदिको अक्षर अन्तको; अंतिः परम आनन्दकारी छे. ८९६७. बारभावना वेली, संपूर्ण, वि. १८६१, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. अगस्तपुर, पठ.- श्राविका जतनबाई, प्र.वि. प्र.पु.
ग्रं. २००., (२६.५४१२.५, १३४३६-४०). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर
मझार. ८९६८. चौवीसदण्डक के २९ द्वारविचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ३७५., (२६४१२.५,
१३४४२).
२४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः अनंत गुणे अधिक जाणवा. ८९६९."थुलिभद्रशीयल वेली, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.,ले.स्थल. पाटण, ले.- पं. हीरविजय,प्र.वि. ढाल-१८,
ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२७४१२.५, १५४३४). स्थूलिभद्र शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८६२, आदिः सयल सुहङ्कर पासजिन; अंतिः विमला कमला
वरशे रे. ८९७०.” वीरजिन व सामायिक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४९, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. विजापुर, पठ.- मु.
प्रेमविजय, ले.- हरी बारोट,प्र.ले.पु. मध्यम, दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२६.५४१३, १२४३८). पे.-१. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः सुखदायक चोविसमो; अंतिः
जसविजय जय सिरिनमो., पे.वि. ढाल-६. पे.२. सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-आ), आदिः चतुरनर सामायिक नयधार;
अंतिः ज्ञानवन्त के पामे., पे.वि. गा.८. ८९७१. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. २, जैदेना., ले.- मु. लालजी, पठ.- पं. ऋद्धिविजय,
(२६४१२.५, १३४२९).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३८१
पे..१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१४आ
पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. पे.२. पे. नाम. क्षामणासूत्र, पृ. १४आ-१५आ
क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह., पे.वि. सूत्र-४ आलावा. ८९७२. आत्मशिक्षा, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. गा.३६३, पू.वि. गा.३६३., (२७.५४१३, १४४४७).
आत्मशिक्षा, पाठक देवचन्द्रजी, मागु., पद्य, आदिः जिनवर मुख वासिनी जग; अंतिः बीन कायरा हुन्ति. ८९७३. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. २४ स्तुति जोडा, (२७.५४१३, ११४४०).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, वा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सद्भक्त्यानतमौलि; अंतिः मम चिराय संपाद्यताम्. ८९७४. आठकर्म विचार, संपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- मु. राजविजय, पठ.- श्राविका नवलबाई, (२५.५४१३,
१४४३८).
८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः पहीलौ ज्ञानावरणी; अंतिः कर्म विचारो ज्ञेया. ८९७५. गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२०., (२६४१३, ४४२५).
गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहन्ति.
गौतम कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः लु० लोभीया नर मनुष्य; अंतिः सेव्याथी सुख पामीजइ. ८९७६. कर्मविपाक व कर्मस्तव कर्मग्रन्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.- विद्यालाल, (२५४१३, १३४३२). पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-५अ), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ
देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६२. पे.२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ-७आ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं
नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. ८९७७. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. अजमेर, प्र.वि. मूल-गा.५१., (२५४१३,
४४२४). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भुवन कहतां तीन भवन; अंतिः समुद्र हुन्ती. ८९७९. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ विलास-८, प्रतिपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. मौर्यपूर, ले.- मु. अमृतरत्न,
पठ.- मु. लाभरत्न, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४१२.५, ७४४१-४५). वैद्यवल्लभ , मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदिः सरस्वतीं हृदि; अंति:
वैद्यवल्लभ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः८९८०. वसुधरा स्तोत्र व आरती, संपूर्ण, वि. १९७८, श्रेष्ठ, पृ. ६,पे. २, जैदेना., ले.स्थल. कलकत्ताबंदर, ले.- यति
गिरधारीलाल, (२५४१२, १३४४१). पे:१. वसुधारा, सं., गद्य, (पृ. १अ-६अ), आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः तत्पाठकवाचकयोः. पे.२. वसुधरा आरती, मु. सौभाग्यचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदि: जय जय वसुधारे माता; अंति: भाखे इच्छा
फल पावे., पे.वि. गा.३. ८९८१." नवकारमन्त्र कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. अजीमगंज, ले.- पं.
सालगराम,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रंथाग्र २८०., संशोधित, (२५.५४१२, १३४३७-४०). पे.-१. श्रीमती कथा-नमस्कार महामन्त्र विषये, सं., पद्य, (पृ. १आ-३आ), आदिः नवकारअक्खरकरेणं पावं; अंतिः यथाप्त
श्रीमती पुरा., पे.वि. गा.५३. पे:२. शिवकुमार कथा-नमस्कार महामन्त्र विषये, सं., पद्य, (पृ. ३आ-पआ), आदिः नवकारप्रभावेन सङ्कटा; अंतिः
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३८२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मृत्वा सद्गतिकं ययौ., पे.वि. श्लो.५८. पे.-३.जिनदासश्रावक कथा, सं., पद्य, (प्र. ५आ-७आ), आदिः आपतितः सङ्कटे जीवो; अंतिः प्राप्तश्च सुरालये., पे.वि.
श्लो.४६. पे.४. नमस्कारमहामन्त्रमाहात्म्य कथा सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. ७आ-८आ), आदिः परत्रापि हि लभ्यन्ते; अंतिः सञ्जाते
जैनमंत्रतः., पे.वि. श्लो.४५. पे.५. हुण्डकचोर कथा, सं., पद्य, (पृ. ८आ-१०आ), आदि: पापिष्ट चौरकर्मात्र; अंतिः यथा चौरेण हुंडिके., पे.वि.
श्लो.४८. ८९८२. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- मु. विनयचन्द्र (गुरु मु. ज्ञानतिलक, खरतरगच्छ),
प्र.वि. गा.३०, (२७४१२, ७४२१).
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय. ८९८३. सीमन्धरजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.१२५., पू.वि. टबार्थ गा.१ से
११३ तक लिखा है., (२९x१३, ५४३२). सीमन्धरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (संपूर्ण), आदिः स्वामी सीमंधर विनती; ___ अंति: जसविजय बुध जयकरो.
सीमन्धरजिनविनती स्तवन १२५ गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः हे श्रीसीमन्धरस्वामी; अंति:८९८४. सीमन्धरजिन स्तवन व जिनप्रतिमाहुण्डी रास, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले.
यति अनोपचन्द, पठ.- श्रा. सूरजकुवर, प्र.ले.पु. मध्यम, (२७४१२.५, १३४४०). पे..१. सीमन्धरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-५आ), आदिः स्वामी
सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो., पे.वि. ढाल-११. पे.२. जिनप्रतिमाहुण्डि रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७२५, (पृ. ५आ-९आ), आदिः सुयदेवी हीयडै धरी; अंतिः
जिनहर्ष कहंत के., पे.वि. गा.६७. ८९८५. सिद्धाचल वेल, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. पांमोल, ले.- पण्डित निधानविजय (गुरु पं.
गुलाबविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-१३, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४१२, ११-१५४३५
४०). शत्रुञ्जयतीर्थ वेल, मु. उत्तमविजय, मागु., पद्य, वि. १८८५, आदिः पासतणा पदकज नमी समरी; अंतिः विजये गिरि
गायो रे. ८९८६. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. वीजापूर, ले.- त्रिभोवन मोहनलाल
बारोट,प्र.वि. मूल-गा.६३; टबार्थ-ग्रं. ३४१., (२६४१२, २४३२). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं.
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणिपत्य महावीरं; अंतिः ए अध्ययन इत्यर्थः. ८९८७. शत्रुञ्जयतीर्थोपरीमोतीशाटूक इतिहास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(३)=६, जैदेना., पू.वि. बीच का एक पत्र
नही है।, (२६४११.५, १०४३२). शत्रुजयतीर्थोपरि मोतीशाटूक इतिहास, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, आदिः उठी प्रभाते प्रभु; अंति: कहे विरविजय
महाराज. ८९८८." भक्तामर स्तोत्र बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि.
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.१ से २१ तक लिखा है.. (२६.५४१३, १३४३०). भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः जिनपादयुगं सम्यग; अंति:
८९८६. चारोट, प्र.वि. मूल-
रभद्र , प्रा.. पद्य,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३८३ ८९९०." सिद्धाचल तीर्थमाला, अपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, ले.- पं. जीतवर्द्धन (गुरु पं.
कल्याणवर्द्धन), पठ.- श्राविका अमृतीबाई,प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. ढाल-१०, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, पू.वि. ढाल-१ की गा.१७ तक नही है., (२६.५४१२, १३४४५).
शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरङ्ग, मागु., पद्य, वि. १८४०, आदि:-; अंतिः नीत नमो गीरीराया रे. ८९९१. जिनेन्द्रपूजादि श्लोक सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६-१(२)=५, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.१., (२५४१०.५,
१५४३७). व्याख्यानश्लोक सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, (संपूर्ण), आदिः जिनेन्द्रपूजा गुरु; अंतिः वृक्षसफलानि मूर्ति.
व्याख्यान सङ्ग्रह-व्याख्या, सं., गद्य, (पूर्ण), आदिः नृजन्मवृक्षस्य अमूनि; अंतिः फलानि ज्ञेयानि. ८९९२. भरतचरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पृ.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., (२६४११, ६४३९). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरतचरित्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं से भरहे राया; अंति:
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा भरतचरित्र का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तिहवार पछी ते भरत; अंति:८९९३. विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १६९४, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१८)=१८, पे. ५, जैदेना., ले.- पं. कल्याण (गुरु मु. दयाशेखर),
प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११, १७X७१). पे.१. विचार सङ्ग्रह', मागु., गद्य, (पृ. १अ-७अ, संपूर्ण), आदिः वीरंपुरंश्चवन्दित्वा; अंतिः आबाधा काल विचारउ. पे.२.८ कर्म विचार, मागु., गद्य, (प्र. ७अ-१०आ, संपूर्ण), आदिः आठकर्म बन्धतेरे थाके अंतिः लहुइ ते विचारीया. पे.-३. अल्पबहुत्व विचार, आ. सोमसुन्दरसूरि, मागु., गद्य, (पृ. १०-१२अ, संपूर्ण), आदिः पृथ्वी मध्य जे मेरु; अंतिः ____ अल्पबहुत्व विचारिउ. पे.-४. इन्द्रियादिक विचार सङ्ग्रह, प्रा., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण), आदिः चउदसपुवी ओही मणनाण; अंति:
पोषेनिहिनपामः. पे.-५.पे. नाम. लोकनालिका द्वात्रिंशिका सह बालावबोध, पृ. १२आ-१९अ, अपूर्ण
लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जिणदंसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः भिसं कहतां अतिसइं., पे.वि. मूल
गा.३२. बीच का एक पत्र नहीं है. ८९९४. सत्तरीसयठाणा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५७-२८(१ से २७.५५)=२९, जैदेना., प्र.वि. टबार्थ-ग्रं. १३२०.,
पू.वि. गा.१६६ से ३४४ तक है., (२६४११, ५४३३-३६). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि:-; अंति:
सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-: अंति:८९९८. सिद्धाचल १०८ खमासणादुहा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.९६ तक है.,
(२६४११.५, ११-१५४३२).
शत्रुजयतीर्थ १०८ खमासमण दूहा, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, गुज., पद्य, आदिः सिद्धाचल समरो सदा; अंति:९०००. स्तवन सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-२(३४ से ३५)=३६, पे. २१, जैदेना., ले.स्थल. भिनमाल, पू.वि. बीच व
अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११.५, १२४४०-४६). पे..१.२० स्थानकतप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७६६, (पृ. १आ-५आ, संपूर्ण), आदिः
जिनमुखपंकजवासिनी; अंतिः नितुनितु मङ्गलचार जी., पे.वि. ढाल-६. पे.२. नेमिजिन स्तवन-समवसरणगर्भित, मु. सुजाणविजय, मागु., पद्य, वि. १८२६, (पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण), आदिः
नेमिसर पय नमी यादव; अंति: जयजय जयजय करो., पे.वि. अध्याय-६.
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३८४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पे.३. उपधानतप स्तवन, मु. उत्तमचन्द, मागु., पद्य, वि. १७११, (पृ. ८अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः समरी सरसति सारदा
रे; अंतिः उत्तमचन्द मङ्गल करो., पे.वि. ढाल-५. पे.४. शाश्वतजिन स्तवन, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१४आ, संपूर्ण), आदिः सरसती माता मनधरी सह;
अंतिः सीस जपे सारए अधिकारए., पे.वि. गा.६०. पे.५. विहरमानजिन स्तवनवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-२०आ, संपूर्ण), आदिः पुखलवई
विजये जयो रे; अंतिः वाचक यश इम बोलई रे., पे.वि. २० स्तवन. पे.६. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. कान, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण), आदिः महाविदेहक्षेत्रनो; अंतिः गुण गाउ
नित ताहरा जी., पे.वि. गा.७. पे.-७. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मागु., पद्य, (पृ. २१अ-२३अ, संपूर्ण), आदिः प्रणमी पास जिणेसर; अंतिः
गुणविजय रङ्गे गुणि., पे.वि. ढाल-६, गा.४९. पे..८. ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन-बृहत् , उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. २३अ-२४आ, संपूर्ण), आदिः
प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंतिः भगति भाव प्रशंसीयो., पे.वि. ढाल-३, गा.२५. पे.९. ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. २४आ-२४आ, संपूर्ण), आदिः पञ्चमी तप तुमे
करो; अंतिः पञ्चमो भेद रे., पे.वि. गा.५. पे..१०. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कान्ति, मागु., पद्य, (पृ. २५अ-२६अ, संपूर्ण), आदिः हां रे मारे ठाम धर्म; अंतिः कान्ति
सुख पावे घणो., पे.वि. ढाल-२, गा.२३. पे.-११. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, वि. १७६९, (पृ. २६अ-२८आ, संपूर्ण), आदिः द्वारिका
नयरी; अंतिः लहे ते मंगल अति घणो., पे.वि. ढाल-३. पे.-१२. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८१, (पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण), आदिः
समवसरण बेठा भगवंत; अंतिः समयसुंदर कहे दाहाडी.,पे.वि. गा.१३. पे.-१३. मौनएकादशी स्तवन, आ. जिनउदयसूरि, प्राहिं., पद्य, वि. १८७५, (पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण), आदिः अविचल
व्रत एकादशी; अंतिः हो जिनउदयसुरिन्द के., पे.वि. गा.१३. पे.-१४. रोहिणीतप स्तवन, पाठक श्रीसार, मागु., पद्य, वि. १७००, (पृ. २९आ-३१आ, संपूर्ण), आदिः सासणदेवति
सामणीए; अंतिः हिव सकल मन आसा फली., पे.वि. ढाल-३, गा.२६. पे.-१५. सिद्धचक्र स्तवन, मु. कान्तिसागर, मागु., पद्य, (पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण), आदिः वीर जिणन्द वखाण्यौ; अंतिः ___सागर सुख पाया रे., पे.वि. गा.१०. पे.-१६. सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ३२अ-३२अ, संपूर्ण), आदिः नवपद महिमासार
सांभल; अंतिः नवपदमहीमा जाणज्योजि.,पे.वि. गा.५. पे.-१७. नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण), आदिः गोयम नाणी हो कहै; अंतिः
बहु सुख पाया., पे.वि. गा.५. पे.-१८. नवपदजी स्तवन, मु. दानविजय, मागु., पद्य, वि. १७६२, (पृ. ३२आ-३३आ, संपूर्ण), आदिः सकल कुशल
कमलानो; अंतिः दानविजय जयकारा रे.,पे.वि. गा.२३. पे.-१९. सिद्धचक्र स्तवन, पण्डित उत्तमसागर, मागु., पद्य, (पृ. ३३आ-३३आ-, अपूर्ण), आदिः सकल कुशल वर मन्दरु;
अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१ से ५ तक है. पे.-२०. महावीर स्तवन-१४ गुणस्थानगर्भित , उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७उ., (पृ. -३६अ-३८अ, संपूर्ण),
आदिः वीर जिनेसर प्रणमी; अंतिः श्रीजिनवीरगाया., पे.वि. ढाल-४, गा.७२. पे.-२१. जिनकल्याणक स्तवन, मु. दानविजय, मागु., पद्य, वि. १७६२, (पृ. ३८अ-३८आ, अपूर्ण), आदिः निज गुरु पय
प्रणमी; अंतिः-,पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-२ की गा.१ अपूर्ण तक है.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३८५
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९००१. सत्तरभेदी पूजा व गीत सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७०५, जीर्ण, पृ. ६, पे. ६, जैदेना., ले. स्थल. घोघा, ले. गणि कमलचन्द्र (गुरु पं. मतिचन्द्र), पठ.- बकारण सोनी, प्र.ले.पु. मध्यम (१९x१५.५, १२X३०-३१).
,
पे. १. १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि मागु पद्य (प्र. १आ-६अ ) आदि अरिहन्त मुखपङ्कज; अंतिः स्यो फल चुंणीयो रे..
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पे. २. नेमराजुल पद, मु. भानुचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ६अ - ६अ ), आदिः नयना नीन्द न आवइ; अंतिः राजुल शिवसुख पावई., पे.वि. गा.२.
पे. ३. औपदेशिक गीत, मु. भाणचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ - ६अ), आदि: हां इक तुंही तुंही; अंतिः पङ्कजनइ कसन मुख जोय. पं. वि. गा.२. पे.वि.
पे.-४. पार्श्वजिन गीत-चिन्तामणि, मु. भानुचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ६अ - ६अ ), आदि: प्रभु की वरणी न जाइ; अंतिः पूजो निरमल पहइरी धोत. पे.वि. गा.२.
पे.- ५. पर्युषणपर्व गीत, मु. भानुचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः परव पजुसण ए सखीरी; अंतिः सब पुण्य परापत पाए., पे.वि. गा.२.
(+)
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पे. ६. नेमिजिन गीत, मु. भावविजय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदि: नेमि किउं तोरण थइ, अंतिः किठ तोरण घर धवार्यो. पे.वि. गा.५.
९००२.” योगशास्त्र सह टीका प्रकाश १ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १५३६, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., ले. स्थल. अहिपुर, ले.- मु. चारित्रभूषण ( उपकेश गच्छ). प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अंतिम पत्र पर रंगीन रेखाचित्र विवरण अध्याय-१-४प्रकाश; प्र. पु. - मूल- प्रकाश-४, प्र. पु. - विवरण - प्रकाश-४, (३०x१२, १६४३२-४२).
योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (प्रतिपूर्ण) आदि नमो दुर्वाररागादि: अंतियोगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १-४ की अवचूरि, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः नमस्कारोस्तु; अंतिः यस्य स सुसंस्थानः.
९००३. शीलोपदेशमाला सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ९. जैदेना.. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. (३०x११, १५४६०
६१).
शीलोपदेशमाला. आ. जयकीर्तिसूरि प्रा. पद्य, आदि आबालबम्भयारिं; अंति:
शीलोपदेशमाला-वृत्ति, आ. विद्यातिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३९४, आदिः यस्योपदेशमाय दशनां; अंति:
९००४. मनोरथ भावना विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२९x१४, ९-१६x४४-४७).
मनोरथ भावना, मु. हुकमचन्द, मागु, प+ग, आदिः समरी सरसति भगवति; अंतिः कहे० सिवसुख माण.
९००५. आत्मप्रबोध दोहा व स्तुति सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. मुंबई, ले. - गणि फतेविजय, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., ( २८x१३.५, १४४४५-५१).
पे. १. आत्मप्रबोध दोहा, मु. ऋषभ, मागु, पद्य, (पृ. १अ-५अ, संपूर्ण), आदि: सुक्ष्मबोध विनु भविक अतिः अड्गे न लागे पाप, पे.वि. गा. १६२.
,
पे. २. सीमन्धरजिन स्तुति मु. शान्तिकुशल मागु पद्य (प्र. ५आ-५आ, संपूर्ण) आदि श्रीसीमन्धर मुझनै अंतिः
"
शान्तिकुशल सुखदाताजी., पे.वि.गा. ४.
पे.-३. श्लोक सङ्ग्रह*, सं., प्रा., मागु., हिन्दी, पद्य, (पृ. ५आ-५आ-, अपूर्ण), आदिः कामीनाहं सकामानां; अंतिः-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. श्लो. ३ अपूर्ण तक है.
"
९००६. वङ्गचूलिका प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैवेना. ले. स्थल पोरबंदर, ले. मु. विद्याविजय
( गुरु गणि पृथ्वीचन्द्र ), प्र.ले.पु. विस्तृत, (२८x१३, ६×३५-३६).
वङ्गचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भत्तिब्भरनमियसुरवर; अंतिः दढचित्तो होह पइदियहं .. वङ्गचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: भक्तिना समुहे करीने; अंतिः विषे दृढचित्त करे..
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
९००७. कर्पूरमञ्जरी सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, देना., ले. स्थल. नागमंडलपुर, ले.- वा. उदयसागर, प्र. वि. मूल-४ जवनिका, पू.वि. टीका ४ श्लोक तक है। प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२८.५x१२.५, १७५०-५२). कर्पूरमञ्जरी, कवि राजशेखर, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदि: भद्दं होउ सरस्सईइकइण; अंतिः वहलं पुलयङ्कुराइ. कर्पूरमञ्जरी - टीका, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि: अर्ह सरस्वत्यः भद्र, अंतिः प्राकृतबंधेन उच्यते. ९००८. वीसस्थानकतप खमासमण, संपूर्ण वि. १९६९, श्रेष्ठ, पृ. १४ जैदेना. ले. पं. लाभविजय पठ श्राविका जडीबाई,
-
(+)
(२१×१३, २५x२२).
२० स्थानक खमासणदान विधि, मागु., गद्य, आदिः तिहां प्रथम स्थानके; अंतिः काउसग्ग णमो तित्थस्स.
९००९." हीरप्रश्नोत्तर समुच्चय सह वीजक, संपूर्ण वि. १८३२, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना ले. स्थल, वाराहीनगरे, प्र. वि. मूल४प्रकाश. ३०६ प्रश्न, संशोधित, (२९x१३.५, १६४४२-४५).
हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय, सं., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रियो निदान; अंतिः तु तत्वविद्वेद्यमिति. हीरप्रश्न- बीजक, सं., गद्य, आदिः विमलहर्षगणिकृत २०; अंतिः को हेतुरिति प्रश्नः .
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"
.
९०१०. तेर काण्ठीयां सम्बन्ध, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले. स्थल. पोरबंदर, ले.- दयाशङ्कर, पठ.- श्रा.
मूलचन्द माधवजी पारख, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्र. पु. श्लो. ३४८, ( २१४१३.५, १३४२५-२८)
१३ काठिया स्वरुप, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गद्य, वि. १८वी, आदि: (१) अथ हवें श्रीवर्धमान (२) नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंतिः ते धरवां दुरलभ.
९०१२. स्तवनवीसी व स्तवनचीवीसी प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ पे. २. जैवेना. ले. स्थल सूरत, ले. पं. रुपविजय,
(२३४१३, ३०-३७०४१६-२० )
पे. १. विहरमान २० जिन स्तवन आ. झानविमलसूरि मागु पद्य (पृ. १अ ५अ संपूर्ण), आदि: श्रीसीमन्धरसाहिबा ; अंतिः दिनदिन सुजस सवाया., पे.वि. २० स्तवन + कलश २० स्तवन.
पे. २. जिनस्तवनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ५अ - ६आ, प्रतिपूर्ण), आदिः आदिकरण अरिहन्तजी; अंति:-, पे.वि. स्तवन १ से ८ तक लिखा है.
९०१३. जीवाभिगमसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८३९. श्रेष्ठ, पृ. २९६ + १ (५९) = २९७, जैवेना. ले. स्थल वीरु, ले. पं. केशरविजय (गुरु पं. भीमराज); पं. कनकराज (गुरु पं. भीमराज), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - १० प्रतिपत्ति, ग्रं. ४७५०., (२८x१३, ६x४४-४६).
जीवाभिगमसूत्र प्रा. गद्य, आदिः णमो उसभादियाणं अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे.
"
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जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मागु., गद्य, आदिः श्रीशान्तिनाथमानम्य; अंतिः जीवनुं अभिगम कह्युं ९०१४. थुलीभद्र शीयलवेली, संपूर्ण, वि. १९०४, जीर्ण, पृ. १७, जैदेना., प्र. वि. ढाल - १८, संशोधित, (२७.५x१३, ११x२५-२६). स्थूलभद्र शीयलवेल, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजी अंतिः विमला कमला वरशे
7
रे.
९०१५.” बारव्रत पूजा, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. स्थल. मुंमाइ, ले.- मु. कान्तिविजय, प्र. वि. गा. १२४, ग्रंथ
रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२७.५x१३, १२४३६-३७).
१२ व्रत पूजा विधि, मु. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८७, आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य; अंतिः जग जस पडह वजायो रे. ९०१६. सेनप्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रेष्ठ, पृ. १११, जैदेना., प्र. वि. ४ उल्लास, (२७४१३, १५X४३-४८). प्रश्नोत्तररत्नाकर, मु. शुभविजय, सं. गद्य, आदिः प्रणिपत्य परं ज्योति अंतिः प्रघोषः श्रुतोस्तीति.
९०१७. दर्शनशुद्धि प्रकरण सह टीका, संपूर्ण वि. १९५६, श्रेष्ठ, पृ. ११६, जैदेना. प्र. वि. मूल- अध्याय ५. ग्रं. ग्रं. ३८००,
(२७X१३, १३x४३-४५).
दर्शनशुद्धि प्रकरण, आ. चन्द्रप्रभसूरि प्रा. पद्य, आदि पत्तभवण्णवतीरं दुहदव अंति: सिवसुहं सासयं झत्ति.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३८७ दर्शनशुद्धि प्रकरण-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमाना; अंतिः (१)वादितत्त्वं समाप्तम् (२)चेतश्चिरं
चुम्बतु. ९०१८. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., ले.- ऋ. गङ्ग (गुरु गलालजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि.
ढाल-१०८, ४ उल्लास,प्र.ले.श्लो. (८४) मंगलं भगवान वीरो; (१९१) उपसर्गः क्षयं यांति; (८७) सर्वमंगल मांगल्यं, (२८x१३, १७४४५-४७).
चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ९०१९. आषाढभूति रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नही है. ढाल-१० की गा.१२ तक है.,
(२७४१३, १७४३५-३६).
आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति:९०२०. क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. कनकपूरी, ले.- मु. जिनविजय (गुरु मु. हर्षविजय),
पठ.- श्रा. गलालचन्द, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अध्याय-५, (२७.५४१२, १९x४५-४६). बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर; अंतिः
झाएज्जा सम्मदीट्ठीए. ९०२१. पांच बोल, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., (२७४१३, १६x४३-४४).
देवनारक के ५ बोल १६ द्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः पहिलो नारकीनो द्वार; अंतिः वैमानिक विचरे छे. ९०२२. दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- ऋ. इन्द्रजी (गुरु ऋ. काकाजी),
प्र.वि. मूल-गा.५०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११.५, ६४३३-३६). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदिः देवाहिदेवं नमिऊण; अंतिः सूरि खमउ तेणं.
दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः देवाधिदेव श्रीमहावीर; अंतिः ते आचार्य खमज्यो. ९०२३. वीरजिनविचार स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. १०१, जैदेना., ले.स्थल. पोरबंदर, ले.- मीठा,
प्र.वि. मूल-ढाल-७, ग्रं. २२८; बालावबोध-ग्रं.३११७; प्र.पु.-मूल-ग्रं. उभय-३३६४., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे
लिखित-टबार्थादि, त्रिपाठ-कुछ पत्र, द्विपाठ-कुछ पत्र, (२७.५४१२, १३-१६४३४-४४). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३३, आदिः
प्रणमी श्रीगुरुना; अंतिः आणा सिर वहेस्येजी. महावीरजिन स्तवन-बालावबोध, पं. पद्मविजय, मागु., गद्य, वि. १८४९, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः
तिष्ठताच्छुद्धवासनः. ९०२४. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२१, जैदेना., प्र.वि. ढाल-४ उल्लास, (२७.५४१२, १३४३४-३८).
चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ९०२५. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १८३३, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(९)=९, जैदेना., ले.स्थल. धोराजी, ले.- पं. दोलतसागर
(गुरु मु. विनीतसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६.५४१२, ११-१२४३४-३८).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, (संपूर्ण), आदि: नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः नायव्वो विरीआयारो. ९०२६." चन्द्रराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. ८१, जैदेना.,प्र.वि. ४ अधिकार, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि.
चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखडी हुई-बीच के कुछ पत्र, चिपके पत्र अलग करते वक्त विशीर्ण-बीच का
एक पत्र-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११.५, १९-२१४४१-४३).
श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., पद्य, वि. ५९८, आदिः ॐ ध्यात्वा श्रीजिना; अंतिः मोक्षेपि यास्यति. ९०२७. वीतरागस्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना.,प्र.वि. मूल-२० प्रकाश., टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
(२८x१२, ७४४२-४६).
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वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा परं अंतिः फलमीप्सितम् . वीतराग स्तोत्र-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि जे परात्मा परम आत्मा अंतिः फल प्रते पामो
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९०२८. दीपावली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., ले. स्थल. वामास्तलि, ले. मु. जिनविजय (गुरु मु. हर्षविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - श्लो.४३५., प्र.ले. श्लो. (८१) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा (३२३) जलात् रक्षे स्थलात् रक्षे (२६.५x१२, ६३५-३७).
"
दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये.
दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंतिः त्रिण जग माहे.
दृष्टान्तशतक ऋ. तेजसिद्ध, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभ अतिः विशोध्यं वरे
"
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
९०२९. उपदेशमाला सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७६६, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना. ले. स्थल. वैराउल ले. गणि हीरकुशल (गुरु पं.
"
P
राजकुशल), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल - गा. ५४४., (२७१२, ७३७-४१).
उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे अंतिः वयण विणिग्गया वाणी.
उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमिऊण कहीइ नमीनइ; अंति: थिकुं नीसरी वांणी.
९०३०.” दृष्टान्तशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., ले. पं. प्रमोदकुशल, प्र. वि. मूल - श्लो. १०२. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, ( २६.५x१२, ४x२४-२७).
९०३१. सिन्दुरप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१३, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले. स्थल. दीवबंदिर, ले.- पं. प्रसिद्धकुशल (गुरु
पं. विद्याकुशल), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल - श्लो. १०४., ( २६.५x१२, १५-१६×३५-३६).
सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः पट्टोदयाद्रिः..
सिन्दूरप्रकर- पद्यानुवाद भाषा, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९१, आदि: सोभिततपगजराज ; अंतिः निगोद तेरा घर रे.
९०३२.” उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. १७७ जैदेना. ले. स्थल. खंभालीया, प्र. वि. मूल ३६ अध्ययन. प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. उभय-८०००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७x१२.५, ६×३२-३७).
उत्तराध्ययन सूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्यमुक्करस अति सम्मए ति बेमि उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ* मागु., गद्य, आदिः उत्तराध्ययननो; अंतिः जीवने सम वाल्हा पढवे.
-
९०३३.) रत्नसञ्चय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., ले. स्थल. मंगलापुरी, ले. ॠ रुपचन्द (गुरु ऋ. जगननाथ), प्र.ले.पु. विस्तृत प्र. वि. मूल गा. ४२१ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. गा. ४२१ (२६५१२, ५-६४३२३५).
P
रत्नसंचय आ. हर्षनिधानसूरि प्रा. पद्य, आदि नमिऊण जिणवरिन्दे अंतिः परोपकारो य जयणा य
1
रत्नसंचय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर नमीने; अंतिः हूइ ए जीव मोक्षे जाए.
,
९०३४. नवाण्णुप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- दयाशङ्कर विप्र, प्र. वि. ढाल - ११, प्र. पु. - मूल-ग्रं.
१७८, (२५.५४१२, १८x४०-४२ ) .
९९ प्रकारी पूजा- शत्रुञ्जयमहिमा गर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८४, आदिः श्रीशङ्खश्वर पासजी ; अंतिः आतम आप ठवायो रे.
९०३५. सङ्ग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५७-४८ (१ से ४८ ) - ९, जैवेना. प्र. वि. मूल गा. २७३. प्र. वि. गाथा २०२ से २७३ तक है. (२६४१२, ७-९४३७-४१).
"
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि:-; अंतिः जा वीरजिण तित्थं.
बृहत्सङ्ग्रहणी- टवार्थ मागु गद्य, आदि: अंतिः लगइ न दोष प्रवत.
९०३६. धन्नाशालिभद्र चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १११, जैवेना. पु. वि. अंत के पत्र नहीं है. उल्लास-४ की ढाल ९ की
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३८९ गा.४ तक है., (२६४१२, १२-१३४३२-३६).
धन्नाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १७९९, आदि: ऐन्द्रश्रेणिं नत; अंतिः९०३७. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- भोजकशङ्कर,प्र.वि. मूल-गा.४८., (२६४१२.५, ४
५४३४-३७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त; अंति: १५ भेदे सिद्ध कह्या. ९०३८. सुक्तमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.१५१ तक लिखा है.,
(२६.५४१२.५, १२-१५४३८-४२)..
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंति:९०३९. सत्तरभेदी पूजा व गीत सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ६, जैदेना., (२६४१२.५, ९४३४-४०).
पे.-१. १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, (पृ. १आ-७आ), आदिः अरिहन्त मुखपङ्कज; अंतिः सकल
थुणियो रे. पे..२. नेमराजुल पद, मु. भानुचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः नयना नीन्द न आवइ; अंतिः राजुल शिवसुख
पावई., पे.वि. गा.२. पे.-३. औपदेशिक गीत, मु. भाणचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ७आ-८अ), आदिः हां इक तुंही तुंही; अंतिः पङ्कजनइ कसन ____ मुख जोय., पे.वि. गा.२. पे.-४. पार्श्वजिन गीत-चिन्तामणि, मु. भानुचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८अ), आदिः प्रभु की वरणी न जाइ; अंतिः पूजो
निरमल पहइरी धोत., पे.वि. गा.२. पे.५. पर्युषणपर्व गीत, मु. भानुचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८अ), आदि: परव पजुसण ए सखीरी; अंतिः सब पुण्य
परापत पाए., पे.वि. गा.२. पे.६. नेमिजिन गीत, मु. भावविजय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदिः नेमि किउं तोरण थइ; अंतिः किठ तोरण घइर
धवार्यो.. पे.वि. गा.५. ९०४०. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. श्लो.४४, (२५.५४११.५, ११४२६-२८).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. ९०४१. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. मंगलपुर, ले.- पं. रत्नविजय (गुरु पं. लक्ष्मीविजय,
तपागच्छ), प्र.वि. गा.३१९, (२६४१२, १४-१५४४०-४४).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताई; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ९०४२. काव्यसङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. जीर्णदुर्ग, ले.- मु. जिनविजय (गुरु मु.
हर्षविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-श्लो.१४१., (२५४११.५, ६४३५-३७). सूक्तावली, सं., पद्य, आदिः राज्यं निःसचिवं; अंतिः कौरवकर्णहीनम्.
सूक्तावली सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः राज्य प्रधान बिना; अंतिः कर्णे करी हीणं. ९०४३. शान्तरसवर्णन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. द्वितीय अधिकार
गाथा ६ अपूर्ण तक है., (२६४१२, ३-५४२६-२८). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदिः अथाय श्रीमान् शान्त; अंति:
अध्यात्मकल्पद्रुम-स्तबक, मागु., गद्य, आदिः नत्वार्हत्पदयुगलं; अंतिः९०४४. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, ले.- ऋ. रामचन्द्र (गुरु ऋ. राघवजी),
प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-२४+कलश, प्र.ले.श्लो. (८१) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२५४१२, १३४३२-३७).
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स्तवनचौवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदिः ऋषभ जिणन्दशुं; अंतिः पूर्णानन्द समाजोजी.
९०४५.” जम्बुद्वीप विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., दशा वि. विवर्ण- पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
(२५४१२, ११-१२४२९).
सुन्दरविजय,
-
लघुसङ्ग्रहणी- खण्डाजोयण बोल* संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः जम्बुद्वीप पहिलपणि; अंतिः प्रमाणे लख्यो छे.. ९०४६. उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९६, श्रेष्ठ, पृ. १०६, जैदेना., ले. स्थल. जीर्णदूर्ग, पठ. पं. प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल अध्याय- १० ग्रं. ८१२ प्र. पु. बार्थ ग्रं. उभय- २५०० (२५४११, ४३३-३४). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंतिः दिवसेसु अड्गं तहेव
·
"
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उपासकदशाङ्गसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: ते कालने विषे ते अंति दिवसे श्रुताङ्गतिमज.
.
(+)
९०४७. उत्तराध्ययन सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १५८, जैदेना. प्र. वि. मूल- ३६ अध्ययन. प्र. ले. श्लो. (१४१)
यादर्श पुस्तकं कृत्वा (३२३) जलात् रक्षे स्थलात् रक्षे (२५११, ५-७४३६-३९)
""
उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदिः सञ्जोगाविष्यमुक्करस अंतिः पुव्वरिसी एवं भासन्ति उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि - शिष्य, मागु., गद्य, आदिः पूर्वसंजोग मातापिता; अंतिः जम्बू
प्रतइं कहई छइ.
९०४८. कल्याणमन्दिर स्तोत्र वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७-१० (१ से १० ) = ७, जैदेना., पू.वि. शुरुआत के पत्र नही है | गाथा १-२८ तक नही है पूर्णता गाथा ४४ मू. ग्रं. ग्रं. ६५० वृ मू+ ७२७ ग्रं. ग्रं. (२६४११, १४-१५X४१४८).
कल्याणमन्दिर स्तोत्र- टीका, मु. कनककुशल, सं. गद्य वि. १६५२, आदि अंतिः श्लोकानामिहमङ्गलम्. ९०४९. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६.५X११.५, १८x४३
·
""
४५)
ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी
९०५०. जम्बूस्वामी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०१ श्रेष्ठ, पृ. ६३, जैदेना., ले. मु. गुलाबचन्द (गुरु पं. लक्ष्मीविजय), प्र.ले.पु.
मध्यम, (२५०१२ ९-११x२२-२४).
प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चम्पाए: अंति:
.,
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
जम्बूस्वामी रास. आ. ज्ञानविमलसूरि मागु पद्य वि. १७३८ आदिः प्रणमी पास जिणन्दना: अंतिः नितु कोडि कल्याण.
,
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: अंति उवदंसेइ ति बेमि
J
कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः ए भगवन्त उपदेश्यो .
कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः
९०५१.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९-६ (१ से ६ ) = ८३, जैदेना., प्र. वि. मूल-९
व्याख्यान, ग्रं. १२१६. अंत में संघगुण लिखे है, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पृ. वि. शुरुआत के पत्र नही है।. ( २६४१२, ८x४६-४८).
,
९०५२.” ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११९ + १ (१८) = १२०, जैदेना., ले. - गणि जीवविजय (तपागच्छ), प्र. वि. १९अध्ययन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५x११.५, १५४४८-५०).
ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः पण्णत्ते त्तिबेमि
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९०५३. भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १७९० श्रेष्ठ, पृ. ७३३+२७११६७९) ७३५, जैदेना. ले. स्थल. नुतनपुर, ले. पं. वीररुचि (गुरु मु. हरिरुचि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल- ४१शतक, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (१४१)
यादर्श पुस्तकं कृत्वा (४९५) अक्खरमत्ताहीणं (२६.५४१२, ७४४९-५२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः अविग्धं लिहन्तस्स. भगवतीसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: #; अंतिः शतक चार भणवा.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३९१ ९०५४.” कर्मग्रन्थ(१-६)वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३९८, पे. ६, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, पू.वि.
ग्रं.ग्रं.३८८०५., (२६४१२, १४४४३-४५).. पे.१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, (पृ. १आ-४६आ), आदिः
दिनेशवद्ध्यानवरप्रता; अंतिः सरसीरुहचंचरीकैरिति., पे.वि. ग्रं.१८८२. पे.२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, (पृ. ४७अ-६९आ), आदिः
बन्धोदयोदीरण सत्पद; अंतिः त्रुट्यन्तु जगतोपि. पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, सं., गद्य, (पृ. ६९आ-७९आ), आदिः सम्यग्बन्धस्वामित्व; अंतिः देशद्वारेण
भणनात्. पे.-४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, (पृ. ७९आ-१५५आ), आदि:
यद्भाषितार्थलवमाप्य; अंतिः विचारणा चतुरः., पे.वि. ग्रं.२८००. पे.५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, (पृ. १५५आ-२८४अ), आदिः यो विश्वविश्वभविनां; __अंतिः सर्वोपि तेन जनः., पे.वि. ग्रं.४३४०. पे.६. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, (पृ. २८४अ-३९८अ), आदिः अशेषकर्मांशतमः समूह;
अंतिः (१)धर्म परममङ्गलम् (२)तेनाश्नुतां लोकः., पे.वि. ग्रं.३८८०. ९०५५. कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३६-१(१)=१३५, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, पू.वि.
बीच के पत्र हैं., (२७४११.५, ७४२१-२२).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंति:९०५६. रुपसेनराजा कथावृत्ति व स्तवन, सज्झाय, संपूर्ण, वि. १६७५, श्रेष्ठ, पृ. २६, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. नवानगरे, ले.
मु. राजकीर्ति(अञ्चलगच्छ), पठ.- ऋ. मानसागर(अञ्चलगच्छ), गच्छा.- आ. कल्याणसागरसूरि(अञ्चलगच्छ).
प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित, (२७४११, १५४४०-४४). पे.-१. रूपसेनकनकावती चरित्र-वृत्ति, आ. जिनसूरि, सं., गद्य, (पृ. १आ-२६अ), आदिः श्रीमन्तं विदुरं; अंतिः जिनसूरेण
सुकृताय यथा. पे..२. नवकारवाली सज्झाय, मु. लब्धि, मागु., पद्य, (पृ. २६अ-२६अ), आदिः बार गुण अरिहन्तना; अंतिः नित नित __ नवकारतो., पे.वि. गा.९. पे.-३. सिद्धचक्र स्तवन, मु. आणन्दरुचि, मागु., पद्य, वि. १७४२, (पृ. २६अ-२६अ), आदिः सरसति साम्मन वीनवू; अंतिः
आणन्दरुचि सुखदाय.,पे.वि. गा.११. ९०५७. कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(५)=७, जैदेना., प्र.वि. द्विपाठ, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं
हैं., (२६४१२, १२-१३४३७-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंति:
कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका , उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंति:९०५८. रिषिमण्डल प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. १३८, जैदेना., ले.स्थल. गुंदगिरी, ले.- पं.
विद्याविजय (गुरु पं. वखतविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.२३७., (२६४१२.५, १३४३५-३७). ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं.
ऋषिमण्डल प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सोमगुणे निलयं सुन्दर; अंतिः कर्ताये नाम जाणवो. ९०५९. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. पोरबंदर, ले.- मु. नायकविजय, प्र.ले.पु.
विस्तृत, प्र.वि. मूल-गा.५३., (२६.५४१२.५, ३४२४-२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि: भुवन कहतां तीन भवन; अंतिः सूत्र समुद्र थकी.
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३९२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९०६०. साधु वन्दना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- ऋ. जीवा (गुरु ऋ. धनजी), पठ.- श्राविका नागलबाई,
प्र.वि. गा.१६३, (२७४१२.५, १४४४७-४९).
साधुवन्दना, मु. श्रीधर, मागु., पद्य, आदिः पढम नाह सिरी रिसह; अंतिः कहइ जयभर जयकरी. ९०६१.” रत्नसञ्चय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६९, मध्यम, पृ. ३६, जैदेना., ले.स्थल. मंगलपुर, पठ.- गणि रङ्गविजय,
प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.५४५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ७X४१-४५). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंति: गाहा आगमे भणिया.
रत्नसंचय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः महावीरने नमीने उपगार; अंतिः थकी कहिइ छे. ९०६२. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, प्र. ७४, जैदेना., ले.स्थल. पोरबंदर, ले.- मु. सिवसुन्दर (गुरु मु. माणक्यसुन्दर,
अञ्चलगछ), प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. खण्ड-४,प्र.ले.श्लो. (५७) जिहां लगे मेरु महीधर; (८१) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा; (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (३२३) जलात् रक्षे स्थलात् रक्षे, (२७.५४१२, १४-१६४३०-३१). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी;
अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी. ९०६३.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.- मु. कनककीर्ति, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
पू.वि. ग्रं.ग्रं.७९२., (२८.५४११, १६x४२-४७).
अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अयमढे पण्णत्ते. ९०६४. मेरुत्रयोदशी कथा, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. वेरावलबंदर, ले.- मु. जिनविजय (गुरु मु.
हर्षविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२८x१२, १७-१८४४५-४७).
मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य भारती; अंतिः परभवे सुखसंपदा पामे. ९०६५.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०१, मध्यम, पृ. ४४+१(२१)=४५, जैदेना., ले.स्थल. आगाराकोट, ले.
मु. खङ्गार (गुरु खीमाजी), पठ.- ऋ. वीरदास (गुरु मु. जसवन्त), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-अध्याय-९२, ग्रं.
८९०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११.५, ६x४४-४७). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं.
अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणि कालि चउथइ; अंतिः ए अर्थ कहिउ छइ. ९०६७." स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. टाणाग्रामे, ले.- ऋ. रामचन्द राघवजी, प्र.ले.पु.
मध्यम, प्र.वि. २४ स्तवन, संशोधित, (२६.५४१२, ११४३२-३६).
स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, आदिः मरुदेवीनो नन्द माहरो; अंतिः तै संसार सारो रे. ९०६८.” द्रौपदी चौपाई व सुभाषित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२६४११, १४-२१४४७
५८). पे..१. पे. नाम. द्रौपदी चौपाई, पृ. १अ-२०आ द्रौपदी चौपाई, वा. कनककीर्ति, मागु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंतिः कनककीरति
सुखकार., पे.वि. ढाल-३९; प्र.पु.-ग्रं.१५००. पे.२. सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह*, सं., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ), आदिः#; अंतिः#. ९०६९. सूयगडाङ्गसूत्र सह बालावबोध श्रुतस्कन्ध-२, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, पू.वि.
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. श्रुतस्कंध-२ प्रथम अध्ययन अपूर्ण तक है., (२६४११, ९-१५४२८-३१). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:
सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः९०७०. कल्पसूत्र सह अवचूरि, पूर्ण, वि. १६१०, मध्यम, पृ. ५२-१(१)=५१, जैदेना., ले.स्थल. सारंगपुर, ले.- पाण्डेदास,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३९३
प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान, ग्रं. १२१६. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. पूर्णता मू. १२१६ अ. १३४५. (२६४११, १०११४३६-४५).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: अंति: उवदंसेइ ति बेगि
कल्पसूत्र - अवचूरि सं., गय, आदि: अंतिः पारतन्त्र्यमभिहितम्.
गद्य,
९०७१. उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण वि. १६२५. श्रेष्ठ, पृ. १८ जैदेना, लिखवा गणि कनकरङ्ग (गुरु गणि चारित्रमेरु, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अध्याय- १०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७११, १५४५५-५६). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंतिः भूय वर्डिसे गये कीले.
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९०७२. साधु वन्दना, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. गा. ८८, (२७४११, ११४३९-४१).
साधुवन्दना, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि मागु, पद्य, आदि रिसहजिण पमुह चउवीस अंतिः मुनि आणन्दई सन्धुआ. ९०७३. कविशिक्षा अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. पु. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रतान-३ का स्तबक ७ का श्लो ४ तक
है., (२६.५X११.५, १५×५२-५९).
कविशिक्षा श्रा. अरिसिंह, सं. पद्य, ईस १३वी आदि वाचं नत्वा महानन्द अंतिः
९००४. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैवेना. प्र. वि. ३६ अध्ययन (२६४११, १५४५९-६८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदिः सञ्जोगाविष्यमुक्कस्स अंतिः भवसिद्धिय संवुडे,
९०७५.” पञ्चकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. स्थल. मांघरोल, ले.- भोजकशङ्कर, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५.५४१२, १३३४-३७).
पंचकल्याणक पूजा-पार्श्वजिन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८९, आदिः शङ्खेश्वर साहिबो; अंतिः वञ्छीत दाय सुहायो रे.
(+)
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-
९०७६. बारव्रत पूजा, संपूर्ण वि. १९१४ श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना., ले. स्थल मांगलोर ले. भोजकशङ्कर, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२५.५०१२. १२-१४४३०-३६).
१२ व्रत पूजा विधि, मु. वीरविजय मागु पद्य वि. १८८७ आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य अंतिः जग जस पडह वजायो रे. ९०७७.” नवतत्त्व व जीवविचार सह टबार्थ,
"
संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र. वि. जीवविचार की बीच-बीच की गा.९ दीया है., ( २६४११.५ ५४३५). पे.-१. पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. १अ -६अ, संपूर्ण
"
"
"
जीवविचार प्रकरण आ. शान्तिसूरि प्रा. पद्य, आदि: अंति:
"
जीवविचार प्रकरण- टवार्थ मागु, गय, आदि:- अति:
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु गद्य, आदि साचो वस्तु नो स्वरुप अतिः सर्वाद ए उत्तर. पै. वि. मूल-गा.४६.
पे.-२. पे. नाम. जीवविचार की गाथाएँ सह टबार्थ, पृ. ६अ-७आ, प्रतिपूर्ण
.
९०७८. योगरत्नाकर, अपूर्ण, वि. १८२६, श्रेष्ठ, पृ. २६४ - १३ (७ से १३, १५,३७ से ३९,२२२ से २२३ ) +२ (५७,६०) = २५३, पे. ३,
जैवेना. ले. स्थल अंजार, ले. ऋ. माण्डण (गुरु ऋ. वन्तजी) प्र.ले.पु. विस्तृत (२६११.५, ५४३४-३८).
.
पे.-१. योगरत्नाकर, वा. नयणशेखर, मागु., पद्य, वि. १७३६, (पृ. १आ - २६४आ, अपूर्ण), आदि: सरसति सुखदायक सदा अंति: लहीई मङ्गलमाल., पे. वि. प्र. पु. १००० बीच-बीच के पत्र नहीं हैं.
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पे. २. कजलावतार, मागु. सं., गद्य, (पृ. २६४आ - २६४आ, संपूर्ण), आदि: गुरुपुष्य जोगे जे; अंतिः सुभासुभ कथय स्वाहा.
"
पे.-३. वीरविद्या, मागु., गद्य, (पृ. २६४आ-२६४आ, संपूर्ण), आदिः ॐ नमो गणपति विर; अंतिः मन्त्र इश्वरोवाच. ९०७९. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका व बालावबोध, पूर्ण, वि. १६२५, श्रेष्ठ, पृ. ३००-१ ( १ ) - २९९, जैदेना. ले. गुणवन्त, प्र. वि. मूल- ३६अध्ययन., ( २६.५x१०.५, १३४४४-४७).
-
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः सम्बुडे त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः इष्टान् इति ब्रवीमि.
उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः देखवाई युक्तउ नही. ९०८०. कल्पसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २०१-४(१८ से २१)=१९७, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान, ग्रं.
१२१६; टीका-ग्रं. ५२१६., संशोधित, त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४१०.५, १२-१३४४०-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२८, (संपूर्ण), आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंतिः
(१)मभिहितमिति (२)रमुष्या शतशः प्रतीः. ९०८१. स्तुतिचौवीसी सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-२४ स्तुतिजोडा, श्लो.९६., त्रिपाठ,
(२६x११, ११-१२४४९-५४). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंतिः हारतारा बलक्षेमदा.
स्तुतिचतुर्विंशतिका-टीका, सं., गद्य, आदिः भव्यामुक्तियोग्यतएवं; अंतिः थवले अमदामदरहिता. ९०८२. विचार सङ्ग्रह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६५०, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले.स्थल. मेडतानगर, ले.- गणि रत्ना, पठ.
गणि कीर्तविजय (गुरु पं. नयविजय), प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६४११, १५४३६-४०). विचार सङ्ग्रह-बालावबोध , मागु., गद्य, आदिः वीरं गुरुश्च वन्दि; अंतिः अल्पबहुत्व विचारिउ. ९०८३. शुकराज कथा, संपूर्ण, वि. १६८०, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.- गणि लब्धिविजय (गुरु पं. कीर्तिविजय), प्र.ले.पु.
विस्तृत, (२७४१०.५, १३४४३-४४). शुकराज कथा-शत्रुञ्जयमाहात्म्ये, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीशत्रुञ्जयतीर्थेश; अंतिः कथासौ लभतां
प्रथाः. ९०८४. पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७०., (२६४१०, ५४४२-४७).
पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं.
पर्यन्ताराधना-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर नमस्करी; अंतिः#. ९०८५. सुयगडाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-२३, ग्रं. २१००, (२६.५४११, १३४४५-४८).
सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउटेज्ज; अंतिः विहरति त्ति बेमि. ९०८६. सत्तरीसयठाण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६४३, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३६०., (२६.५४१०.५, ५४४२-४८).
सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदिः सिरिरिसहाइ जिणिन्दे; अंतिः जाइ सो
सिद्धिठाणे.
सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ऋषभादिक जिनेन्द्र; अंतिः सिद्धि स्थानकने विषइ. ९०८७. वैतालपञ्चवीसी कथा, संपूर्ण, वि. १७०२, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले.स्थल. डोढीआ, ले.- मु. नितकुशल (गुरु पं.
सुमतिकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कथा-२५, (२६४११, १२-१३४४३-४४).
वैतालपञ्चवीसी कथा, मु. देवशील, मागु., पद्य, वि. १६१९, आदिः सरसति सांमणि; अंतिः कहितां तपि दिणन्द. ९०८८. मृगाङ्कलेखा चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., प्र.वि. गा.३९८, (२६४११, ९४३२-३५).
मृगाङ्कलेखा चौपाई, मागु., पद्य, आदिः गोयम गुणहर पय; अंतिः सवि हुं कर प्रणाम. ९०८९. गच्छाचार सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६३२, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. अवचूरि-मूल-गा.१३७; अवचूरि-ग्रं. ५००.,
त्रिपाठ, (२६४११, ५४४०). गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं; अंतिः इच्छंता हियमप्पणो. गच्छाचार प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः आदौ शास्त्रकारः; अंतिः इति गाथार्थः.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३९५
९०९०. चतुःशरणप्रकीर्णकादि सङ्ग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १६७९, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. ५ जैदेना. (२६.५४११.५, ९११४३४-३८).
पे १. ये नाम चतुःशरणप्रकीर्णक सह वालावबोध, पृ. १आ-१५आ
चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं.
चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः पहिलं छ आवश्यकनां; अंतिः मुक्तिनां सुख लहइ., पे.वि. मूलगा.६३.
पे. २. पे. नाम. सम्यक्तवनुं आलावु, पृ. १५आ-१६अ
सम्यक्त्व आलावो प्रा. गद्य, आदि अहमन्नं भंते तुम्हाण अंतिः इय सम्मत्तं मए गहये.
"
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पे. ३. पे. नाम. शीलव्रतनुं आलावु, पृ. १६अ -१६अ
ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भन्ते तुम्हाण; अंतिः अप्पाणं वोसिरामि.
पे-४ सम्यक्त्व व शीलवतपालन उपदेश, प्रा. मागु, गद्य (प्र. १६३-१६आ), आदि श्रीसम्यक्त्व पालवान अंतिः
,
शीलव्रत उच्चराविउ छइ.
पे. ५. नमस्कार महामन्त्र स्मरण मागु. प्रा. गद्य (पृ. १६आ-१६आ), आदि: हिव आपणा चितमाहि अंति: नउकारनू ध्यान करज्यो.
.,
९०९१. भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, प्र. वि. मूल- श्लो. ४४ (२६४११, ६४३९-४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी... भक्तामर स्तोत्र-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: भक्तिवन्त जे देवता अंतिः समुपैति लक्ष्मी पानै.
;
९०९२. ज्योतिषसार सङ्ग्रह प्रतिपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६x१०.५, १३१४४३८-४१).
ज्योतिषसार आ. नरचन्द्रसूरि सं. पद्य, आदि: श्री अर्हन्तजिनं: अंति
,
"
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९०९३. नन्दीसूत्र, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २१, जैवेना. (२६४११, १३४४२-४७).
नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः णं तदुभयणं अणुजाणामि.
,
९०९४. ज्योतिषसार सङ्ग्रह सह टिप्पणक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना. (२६.५x११, १४-१५X४८-५०).
ज्योतिषसार आ. नरचन्द्रसूरि सं., पद्य, आदि: श्री अर्हन्तजिनं अंतिः वासराः सम्भवन्ति
P
-
ज्योतिषसार-यन्त्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य केवलज्योति; अंतिः यन्त्रको० टिप्पनम्. ९०९५. पिण्डविशुद्धि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९- १ (१) = ८, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. १०४. पू. वि. गाथा १ से
१२ तक नही है. (२६४१०.५, ६-७५३३-३९).
·
पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदि: #; अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य. पिण्डविशुद्धि प्रकरण-वालावबोध, मागु, गद्य (संपूर्ण), आदि: # अंति अने सोधउ निर्दोष करत.
९०९६. ध्यानस्वरुप संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. प्र. वि. डाल-९ प्र.पु. मूल-ढाल ९. १६३ (२६.५४१२ १२४३८
४०).
ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबन्ध मु. भावविजय, मागु पद्य वि. १६९६ आदि सकल जिणेसर पाय वन्दे अंतिः रच्यो चित्त रङ्गे.
,
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९०९७. शङ्खेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १७६७, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (१) = ५, जैदेना., ले. स्थल राजनगर, प्र. वि. गा. १३६, पू. वि. गा. १ से १५ तक नही है., ( २६११.५, १३x४०-४१).
पार्श्वजिन स्तवन- शङ्खश्वर वा उदयविजय मागु, पद्य, आदि अंतिः देउ मे भद्दम्
९०९८. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र - पर्व ८ नेमिचरित्र, प्रतिपूर्ण, वि. १६४२, श्रेष्ठ, पृ. ९८ + १ (५७) = ९९, जैदेना., ले.- मु.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
जयसुन्दर (गुरु पं. लक्ष्मीराज चन्द्रगच्छ ) प्र.ले.पु. मध्यम (२६.५४१२, १७४५१-५४). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:- अंतिः
(+)
९०९९. कर्मग्रन्थ १ से ४ अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १० पे ४ जैदेना, प्र. वि. संशोधित पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
(२६.५४११.५. ९४२९-३३).
,
पे. १. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. १-५आ, संपूर्ण ), आदि: सिरिवीरजिणं वन्दिय: अंतिः लिहिओ देविन्दसुरीहिं, पे. वि. गा.६१.
पे. २. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ-८आ, संपूर्ण), आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४.
पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२४.
पे. ४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. १० आ-१०आ अपूर्ण) आदि नमिय जिणं जिय अंति:-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १ से ४ तक है.
7
(+)
९१००. चारप्रत्येकबुद्ध चौपाई, संपूर्ण, वि. १६९३, मध्यम, पृ. ३५, जैदेना., ले. स्थल. सतिपालगंज, ले. - गणि रविचन्द्र (गुरु
पं. लब्धिचन्द्र), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. खण्ड-४, ढाल - ४५, प्र. पु. - मूल - खंड -४, ढाल - ४५, गा. ८७०, ग्रं. १११९, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है अल्प-, अक्षर फीके पड गये हैं, (२६४११, ११-१४४३८-४५).
४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६५, आदिः श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंतिः आणंद लीलविलास.
.,
९१०१.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ अध्याय-१ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना. प्र. वि. प्र. पु. अध्याय-मूल-४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७११.५, ७५०-५८).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिःदशवैकालिकसूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट अंति:
-
९१०२. चन्दमुनीप्रेमलासती रास, संपूर्ण वि. १७२७, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना ले. स्थल. वेलाकुल, ले. पं. विबुधकुशल पठ. मु. मानकुशल, प्र.ले.पु. मध्यम, ( २६.५x११, १६५२-५४).
प्रेमलालच्छी रास, मु. दर्शनविजय, मागु, पद्य वि. १६८९, आदि सुखदायक जिनवरु नामई अंतिः गाइयो सरसरस एह रासो.
९१०३. कर्मग्रन्थ १ से ६, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ६, जैदेना., ले. स्थल. पुरबंदिर, ले. पं. रत्नविजय, (२६×११.५, १६x४२-५१).
पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ - ३आ), आदि: सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६३.
i
·
पे. २. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पच (पृ. ३आ-४आ) आदि तह थुणिमो वीरजिणं अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं, पे.वि. गा. ३४.
"
पे. ३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पच (पृ. ४-५आ), आदि बन्धविहाणविमुक्कं अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं, पे.वि. गा.२५.
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पे. ४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. ५आ-८आ) आदि नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा. ८६.
पे. ५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. ८आ-१२अ) आदि नमिय जिणं ध्रुवबन्धोदय अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा, पे.वि. गा.१००.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
३९७ पे.६. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. १२अ-१५आ), आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ., पे.वि.
गा.९४. ९१०४. विदग्धमुखमण्डण सह अवचूरि, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. मूल-४ परिच्छेद, श्लो.२७६., पंचपाठ,
पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४११.५, १३-१५४५४-६१). विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः सिद्धौषधानि भवदुःख; अंतिः मेकान्तमदनातुरं.
विदग्धमुखमण्डन काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, (पूर्ण), आदिः अथादौ धर्मदासनामा; अंति:९१०५. कल्पसूत्र सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४१+१(१३)=४२, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., संशोधित,
पंचपाठ, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२६४११, ११-१२४४४-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि.
कल्पसूत्र-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: अत्राध्ययने त्रयं; अंति: पारतन्त्र्यमभिहितम्. ९१०६.” अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका स्तवन सह स्याद्वादमञ्जरी टीका, अपूर्ण, वि. १५३६, श्रेष्ठ, पृ. ४९-९(१ से ९)=४०,
जैदेना., ले.स्थल. सारंगपुर, प्र.वि. श्लो.३२.,पू.वि. काव्य-८ अपूर्ण तक नहीं हैं., (२६४११.५, १६-१८४५७-६५). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः कृतसपर्याः कृतधियः. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वादमञ्जरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, शक. १२१४, आदि:-; अंतिः सास्त्यत्र
सम्यग्यतः. ९१०७. दण्डक प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१ से ३८ तक है., (२६४१२,
५४३१-३३).
दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंति:९१०८. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. जीर्णदुर्ग, ले.- पं. तेजविजय, पठ.- मु. देवजी (गुरु पं.
तेजविजय, तपागच्छ).प्र.वि. २४ स्तुतिजोडा, (२६४११.५, १३-१४४३७-३८).
स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंतिः हारतारा बलक्षेमदा. ९१०९." स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. मुबे, प्र.वि. २४ स्तवन, संशोधित, (२५.५४११, १२
१३४३१-३२). जिनस्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः जगजीवन जगवाल्हो; अंतिः जीवजीवन आधारो रे. ९११०. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२-२(२ से ३)=६०, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.३१.,
(२७.५४११.५, १५४५७-६०). नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं; अंतिः समत्तं निच्चलं तस्स. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुङ्गसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरं विभुं; अंतिः (१)तबुधैर्विशदाशयैः
(२)सागरासङ्ख्याता. ९१११." शान्तिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११४, जैदेना., ले.- मु. वेलासामजी (गुरु पं. माणक्यभूवन), प्र.ले.पु.
विस्तृत, प्र.वि. ६प्रस्ताव, (२६.५४११, १५४४८-५७).
शान्तिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदिः श्रेयोरत्नकरोद्भूता; अंतिः स करोतु शान्तिः. ९११२." राजप्रश्नीयसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १५६१, श्रेष्ठ, पृ. ६९+१(४)=७०, जैदेना., ले.स्थल. मंडपमहादुर्ग, ले.
श्राविका हामी, पठ.- पं. लावण्यधर्म (गुरु आ. हेमविमलसूरि, तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-सूत्र-१७५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, १३४३५-३९). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से पस्सवणा नमो. राजप्रश्नीयसूत्र-टिप्पण', मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:- अंतिः
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
९११३.” कल्पसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६२९, श्रेष्ठ, पृ. १४४-८ (१ से ७, १४३ ) = १३६, जैदेना., ले.- मु. सुखसागर, गच्छा. - आ. जयसिंहसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. अस्पष्ट अक्षरोमे प्रतिलेखक सुखसागर होने की संभावना प्रतीत होती है, संशोधित टिप्पणयुक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व बीच का एक पत्र नहीं है... प्र. ले. श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा (२६४११, ४-६३३-३५).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः
कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:- अंतिः
(+)
९११४. कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १०वी श्रेष्ठ, पृ. १४७-१ (१) = १४६, जैदेना. प्र. वि. मूल-९व्याख्यान., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पू. वि. प्रथम पत्र नही है ।, प्र.ले. श्लो. (४९०) अज्ञानाच्च मतिभ्रंसा; (३०८) यावज्जिनवर समयो, (२५.५x११.५, १-५X३३-३६).
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कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गय, आदि:-: अंति: उवदंसेइ ति बेमि
कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-, अंतिः अध्ययन सम्पूर्ण थयउ.
कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:
९११५. नवतत्त्वप्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७४५, श्रेष्ठ, पृ. ९६ + १ (२०) = ९७, जैदेना., ले. स्थल. रविनगरे, ले. - पं. राजकुशल (गुरु पं. तेजकुशल). प्र. वि. मूल-गा. ६०., प्र.ले. श्लो. (१७०) यावत् शशी समाधते (२५२) जिहां लागे मेरु महिधर (२६४११.५, १३४४२-४४).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ.
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुङ्गसूरि- शिष्य, मागु, गद्य, आदिः श्रीमेरुतुङ्गसूरीन्; अंतिः सङ्ख्यातानन्तविचार. ९११६. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १६९९, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैवेना. ले. स्थल राजनगरे, ले. आ. हीररत्नसूरि (गुरु आ. विजयरत्नसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - १० अध्ययन२चूलिका, गा. ७००., टिप्पण युक्त विशेष
पाठ, (२५४११.५, ४४३२-४०).
दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः भविआण विबोहणट्ठाए. दशवैकालिकसूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि: जिनधर्म उत्कृष्ट अंतिः जीव प्रतिबोधनइ अर्थइ.
९११८. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६४१, श्रेष्ठ, पृ. १२२, जैदेना., ले.- मु. कल्याणोदय (गुरु पं. पुण्योदय), प्र. वि.
१९ अध्ययन प्र. पु. - मूल ग्रं. ५४६४ (२५.५x१०.५, १५४४१-४३).
ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चम्पाए: अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ
९११९. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १७वी जीर्ण, पृ. १२४, जैदेना. प्र. वि. मूल ग्रं. २२२० टिप्पण युक्त विशेष
"
पाठ, (२५X११.५, ७X३६-४३).
राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः पस्से सुपस्सवणी .
राजप्रश्नीयसूत्र - टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., गद्य, आदिः देवदेवं जिनं नत्वा; अंतिः तेहनइं नमस्कार थाओ.
९१२०. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, पूर्ण, वि. १६६७, श्रेष्ठ, पृ. १३७-३(९, १०८, १३६ ) = १३४, जैदेना., प्र. वि. १९ अध्ययन, ग्रं. ५४००,
(२४.५४११, १३०४६-४७).
ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं काले० चम्पाए: अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ
"
९१२१. शान्तिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १२०-४७(१ से ४४,१०४ से १०६ ) =७३, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक
"
लकीरें, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., ( २६ ११, १३५०-५१).
शान्तिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि:-; अंति:
.
९१२२. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. श्लो. १५२, (२५.५४११, १२-१३४३४-३६)
वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य वि. १६५५ आदिः श्रीमत्पार्श्व अंतिः तैरेव मेडतानगरे,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
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९१२३. नेमिजिन चन्द्राउला संपूर्ण वि. १६६०, श्रेष्ठ, पृ. ७ जैवेना. ले. स्थल छाणी-वटप्रद ले. श्री. देवचन्द, प्र.ले.पु.
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मध्यम, प्र.वि. गा.७२. कर्ता की निश्रामें कर्ता के मूल हस्ताक्षर पर से उतारी हुई प्रत है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती
काल मे लिखित, प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२५x११, १३x४०-४३).
नेमिजिन चन्द्राउला, मु. ज्ञानसार, मागु, पद्य वि. १६५२, आदि: सरसति भगवति मनि घरी अंतिः नेमिस्वामी आधारी ९१२४. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २९-१ (१) - २८, जैदेना. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू. वि. बीच के पत्र हैं., ( २६११, ११x४०-४७). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-: अंति:अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र- टिप्पण मागु, गद्य, आदि:-: अंति
९१२५ आषाठभूति चौपाई, सिद्धचक्र स्तवन व सिद्धचक्र स्तुति सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १७८९ श्रेष्ठ, पृ. ८ पे. ४ जैदेना..
ले. स्थल. नुतनपुर, ले. पं. हंसविजय (गुरु पं. जयवन्तविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५x११.५, १५X४५-४७). पे.-१. आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, (पृ. १आ - ८आ), आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंतिः होजो परम कल्याणो रे, पे.वि. ढाल - १६.
"
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पे. २. सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. १अ - १अ ), आदि: भत्ति जुत्ताण सत्ताण; अंतिः महंताण कल्लाणयम्., पे.वि. श्लो.४; मूल - श्लो. ४.
पे - ३. सिद्धचक्र स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १अ - १अ ), आदि: विपुल कुशलमाला; अंतिः रोहिणीमुख्यदेव्यः., पे.वि. श्लो. ४. पे. ४. सिद्धचक चैत्यवन्दन आ. ज्ञानविमलसूरि प्रा. पद्य (पृ. १अ १अ ), आदि उप्पन्नसन्नाणमहो; अंतिः सिद्धचक्कं
,
नमामि., पे.वि. गा.६.
३९९
३ भाष्य, गा. १४५, ( २६११.५, १२ - १३४३९-४२).
भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबा...
९१२६. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. मु. हितकुशल (गुरु गणि लब्धिकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम, .
प्र. वि.
९१२७. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७४२, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना. ले. स्थल, दिवबिंदर ले आ. वर्द्धमान
ו.
मालजी, (२५x११.५, ५X४०-४३).
साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय संबद्ध, प्रा. सं. मागु प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं अंतिः जिणे चउव्वीसं.
साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र -तपागच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जे त्रिभुवननी पूजानइ; अंतिः थको पापथी हलवर थयो.. ९१२८.” नन्दीषेणमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १७३०, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. स्थल. जीर्णदुर्ग, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ढाल - १६; प्र. पु. मूल- २८३, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२५.५४११.५ १३-१७९४२-४६).
नन्दिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२५, आदिः सुत सिद्धारथ भूपनो; अंतिः सिद्धियोग सुखकारी रे. ९१२९.” तुन्दुलवेयालीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६ ११.५,
५X३८-४२).
तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, आदि: निज्जरिय जरामरणं; अंतिः (१) मुच्चह सव्वदुक्खाणं (२)कारणं लहिइ शिव सुखं.
तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक- बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः कल्याणवल्लीतती; अंतिः अक्षय सुखने पाम्यो.
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९१३०. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले. मु. हेमचन्द्र, प्र. वि. ३ भाष्य, गा. १४५, ( २६११.५, ४x२६-२८). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबा...
९१३१.” प्रत्येकबुद्ध चरित्र, संपूर्ण, वि. १६९४, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. पं. वर्द्धमान, प्र. वि. अध्याय-९ (२६११.५, १३x४०
५३).
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४००
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., पद्य, आदिः करकण्डू कलिङ्गेषु; अंतिः चत्वारोपि मोक्षगता. ९१३२.” मेरुत्रयोदशीतपमाहात्म्यवर्णन, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पोरबंदर, ले.- पं. तेजसागर (गुरु
मु. अजितसागर), पठ.- श्रा. कल्याणजी नानजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित,
(२५.५४१२, १४-१५४३८-४१). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदिः मारुदेवं जिनं नत्वा; अंतिः
शिष्यैरामोदतस्त्वदः. ९१३३. सम्बप्रद्युम्न प्रबन्ध खण्ड-१, प्रतिपूर्ण, वि. १७१०, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. सूरत, (२६४११.५, १५-१७४३९-४७).
साम्ब प्रद्युम्न प्रबन्ध, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६५९, आदिः श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंतिः९१३५. इक्कवीसठाणुं सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. लिबडिग्रामे, ले.- मु. अमररुचि (गुरु पं.
विनोदरुचि), प्र.वि. मूल-गा.७२., (२६४११.५, ५४३०-३३). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया.
एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चवन विमान कहिसुं; अंतिः इम भण्या कह्या. ९१३६. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२-१२(१ से १२)=४०, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. खंड-१ की ढाल-८
____ की गा.१० अपूर्ण से खंड-३ की ढाल-८ की गा.९ अपूर्ण तक है., (२६४११.५, ११४३२-३७).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:- अंति:९१३७. देवकीना छ भाई सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.- मु. अजितकुशल, प्र.वि. गा.३०७, (२६४१२,
१०-११४२८-३०).
देवकी ६ पुत्र रास, मागु., पद्य, आदिः नेम जिणन्द समोसर्या; अंतिः ते लहसे भवजल पार रे. ९१३८. दीपालिका कल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२६४१२, १५४४५-४८).
दीपावली कल्प, सं., गद्य, आदिः सन्तु श्रीवर्धमानस्य; अंति: पुण्यमुपाय॑ते. ९१३९. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- पं. वीररुचि (गुरु मु. हरिरुचि), पठ.- मु. अमररुचि (गुरु
पं. विनोदरुचि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.२९१, (२६४१२, १५-१६x४२-५३).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ९१४०. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७२, मध्यम, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. धोरागीरी, ले.- पं. गुलाबचन्द (गुरु पं.
अमृतकुशल), पठ.- श्रा. कानजी,प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. गा.३३३, (२५.५४१२, १०-१३४२७-३७).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताई; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ९१४१. वीतराग स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२६४११, २०४७०).
वीतराग स्तोत्र-दुर्गपदप्रकाश विवरण, आ. प्रभानन्दसूरि, सं., गद्य, आदिः अनन्तदर्शनज्ञानवीर्य; अंतिः सुलभैश्चेति
समंजसं. ९१४२. बासठिमार्गणा यन्त्र सह विवरण, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, प्र. ११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पाल्हणपुर, ले.- मु.
गणेश, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४११.५, १३४४०-४४). पे.-१.६२ मार्गणा यन्त्र, मु. जीवविजय, मागु., कोष्टक, (पृ. १अ-४अ), आदिः#; अंतिः#. पे.२.६२ मार्गणा यन्त्र-विवरण, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, (पृ. ४आ-११आ), आदिः नरकगति गुणठाणा चार; अंतिः
ज्ञानना नय मार्ग. ९१४३. सूर्य प्ररुपणा १५ द्वार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, पू.वि. अंत के पत्र
नहीं हैं., (२५.५४११.५४). १५ द्वार सूर्य प्ररुपणा, मागु., गद्य, आदिः ते १५ द्वार मण्डल; अंति:
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
४०१ ९१४४. ज्ञातोपनय कथासङ्ग्रह सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ७, जैदेना., (२६.५४११.५, १५-१६४५८-६५).
ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-ज्ञातोपनय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः उखित्तणाए सङ्घाडे; अंति: महारिसिव्व जहा.
ज्ञातानामुद्धार-टीका, सं., गद्य, आदिः उक्षिप्तं उखिता; अंतिः सुखं प्राप्स्यति. ९१४५. भक्तामर स्तोत्र सह व्याख्या, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. श्लो.४३ तक है.,
(२५.५४११, १२-१३४२९-३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः
भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्ये अहं; अंति:९१४६. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८७, जैदेना., प्र.वि. २० प्राभृत, ग्रं. २२००, (२६४११.५, ११४४०-४६).
सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सोक्खुप्पाए सदापाए. ९१४७. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १५७१, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- आ. मुनिचन्द्रसूरि, प्र.वि. गा.९७, (२६४११.५, ११४३८
३९).
महावीरजिन स्तवन, मु. लक्ष्मण, मागु., पद्य, वि. १५२१, आदि: पहिलो धुरि समरूं; अंतिः ते धरि .. फला कलइं. ९१४८. इलासुकुमार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१६; प्र.पु.-मूल-ढाल-१६, २६७., (२५४११, १३
१४४३८-४०). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७१९, आदिः सकलसिद्धदायक सदा; अंतिः ज्ञान दर्शन
अजूआले. ९१४९." भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- पं. वीररुचि (गुरु मु. हरिरुचि), पठ.- मु. अमररुचि (गुरु पं.
विनोदरुचि), प्र.वि. ३ भाष्य, गा.१४५, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, १५४४५-४७).
भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. ९१५१. वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. २० प्रकाश; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २७७, (२६४११.५, १२४३७
४०).
वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा परं; अंतिः फलमीप्सितम्. ९१५२. रात्रिभोजन रास, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-१(१)=३३, जैदेना., ले.- मु. विनीतसागर (गुरु गणि अमृतसागर,
अञ्चलगच्छ), प्र.वि. खण्ड-३/ ढाल ४४, गा.९२५, पू.वि. खंड-१ की ढाल-१ की गा.३ तक नही है., (२६४११.५,
१४-१५४३५-४४).
रात्रिभोजन रास, गणि अमृतसागर, मागु., पद्य, वि. १७३०, आदि:-; अंतिः चतुरपणे चोसाल रे. ९१५३. नवतत्त्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., (२६४१२, १२-१३४२८-३४).
नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः हवे नवतत्त्वनां नाम; अंतिः अजीव ते मिश्र कहिइं. ९१५४. पञ्चमहाव्रत कथासङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-३(१,८,१६)=१४, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं.,
(२५४११.५, १२-१६x२६-३७).
पंचमहाव्रत कथा सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:९१५५. अङ्गचूलिआ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., ले.स्थल. नूतनपूर, ले.- पं. वीररुचि (गुरु मु.
हरिरुचि), पठ.- मु. अमररुचि (गुरु पं. विनोदरुचि),प्र.ले.पु. विस्तृत, पू.वि. टबार्थ पत्र ९A तक है., (२७४१२, ७
८x४३-४४).
अङ्गचूलिका प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदिः नमो सुय० नमो अरि०; अंतिः पवेइयं त्तिबेमि. ९१५६. स्तवन, गीत आदिसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४१२, १२
१८४३०-३४).
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४०२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-१. साधारणजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदि: जब जिनराज कृपा होवे; ___ अंतिः बहु शीवसुख पावे., पे.वि. गा.५. पे.२. पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदि: मेरे साहिब तुमहो; अंतिः
भजनथी तुंही तारणहारा., पे.वि. गा.५. पे..३. पार्श्वजिन गीत, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः मेरे एही ज; अंतिः करो कुछु ओर न
चाहु., पे.वि. गा.३. पे.४. साधारणजिन गीत, मु. रूपचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १अ-१आ, संपूर्ण), आदिः तु निरंजन इष्ट हमेरा; अंतिः फेर न
होवे फेरा रे., पे.वि. गा.३. पे.५. औपदेशिक गीत, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ-१आ, संपूर्ण), आदिः माइ मेरीया रसना रस; अंतिः पथे रोमरोम
मुस्तागो., पे.वि. गा.४. पे.-६. औपदेशिक गीत, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ-१आ, संपूर्ण), आदिः अरे देवाधिदेवाधि; अंतिः को विरला रस पीवा रे.,
पे.वि. गा.३. पे.-७.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-१आ, संपूर्ण
साधारणजिन पद, प्राहिं., पद्य, आदिः जाग जाग रे न गइ भोर; अंतिः ज्युं निरञ्जन पावे., पे.वि. गा.४. पे.-८. सुविधिजिन स्तवन, मु. रूपचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ-अ, संपूर्ण), आदिः मुजरा साहिब मेरा; अंतिः जिन तेरा
रे., पे.वि. गा.३. पे.-९. पे. नाम. नवलखा पार्श्वजिन तवन, पृ. २आ-२आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-नवलखा, मु. जिन, मागु., पद्य, आदिः श्रीनवलख प्रभू पासजी; अंतिः भणे तुमथी सुख छाजे.,
पे.वि. गा.७. पे.-१०. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिन, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३अ, संपूर्ण), आदिः भजि जिन भजि जिन; अंतिः जपे बुधहित
पसाय रे., पे.वि. गा.७. पे..११. नेमिजिन प्रभाति, मु. जिन, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३अ, संपूर्ण), आदिः श्रीमन्नेमि जिन; अंतिः सूभ ध्यान
सूसमितं., पे.वि. गा.५. पे.-१२. पार्श्वजिन प्रभाति, मु. चिदानन्द, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदि: चेतन ममतां छोर के; अंतिः किम
पामे साची., पे.वि. गा.७. पे.-१३. महावीरजिन स्तवन, मु. जिन, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदिः तुमारी करूणा हो; अंतिः जिणेसर
तुठे सूख लहिए., पे.वि. गा.७. पे.-१४. सुविधिजिन स्तवन, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदिः मे परदेसी दूरका; अंतिः निरञ्जन
गुण गाया., पे.वि. गा.४. पे.-१५. पे. नाम. महावीरजिन प्रभाती स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण गौतमस्वामी सज्झाय, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, आदिः मे नहि जाण्यो नाथजि; अंतिः करि चरणे शीर लाया.,
पे.वि. गा.७. पे.-१६. पे. नाम. ऋषभजिन प्रभाति, पृ. ४अ-४अ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मागु., पद्य, आदिः आज तो बधाइ राजा नाभि; अंतिः आदीश्वर दयाल रे., पे.वि.
गा.६. पे.-१७. पे. नाम. ऋषभदेव प्रभाती, पृ. ४अ-४अ, संपूर्ण
आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, आदिः उठ हो नाभि दुलारे; अंतिः पातिक न्यारे हमारे., पे.वि.
गा.३.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
४०३
पे.-१८. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदिः रे घडियाले बाऊरे मत; अंतिः
विरला कोइ पावे., पे.वि. गा.३. पे.-१९. औपदेशिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदि: जिहां जाणे मेरी सफल; अंतिः नर
मोह्यो माया करीरी., पे.वि. गा.३. पे.-२०. साधारणजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदिः जब जिनराज कृपा होवे;
अंतिः बहु शीवसुख पावे., पे.वि. गा.५. पे.२१. पे. नाम. ऋषभजिन तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, आदिः श्रीरे सिद्धाचल; अंतिः श्रीसिद्धाचल गायो., पे.वि. गा.५. पे.-२२. नेमराजिमती गीत, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५अ, संपूर्ण), आदिः वरष्यो वरष्यो नेमिसर; अंतिः जल
पिवे राजुल दोर., पे.वि. गा.३. पे.-२३. नेमराजिमती गीत, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५अ, संपूर्ण), आदिः मोहल चढि मोहरा नाथनी; अंतिः
थइ छे खुस्याली रे.,पे.वि. गा.३. पे:२४. साधारणजिन गीत, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५अ, संपूर्ण), आदिः तु छे सकल देवनो देव; अंतिः
भगति रूपचन्दनी रे..पे.वि. गा.३. पे.-२५. साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण), आदिः यातन काची माटीका; अंतिः __कहे० तारे तारन हारा., पे.वि. गा.४. पे.-२६. सम्भवजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-आ, संपूर्ण), आदिः वाङ्के गढ फोज चढी; अंतिः पकर ल्यावं सबी
चोर., पे.वि. गा.४. पे:२७. औपदेशिक गीत, मागु., पद्य, (पृ. ५-५आ, संपूर्ण), आदिः एसे सेर बिचे कोन; अंतिः ग्यान कबान हेरे., पे.वि.
गा.४. पे:२८. आदिजिन गीत, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-पआ, संपूर्ण), आदिः ततथेइ ततथेइ अपच्छर; अंतिः घट ___घट व्यापक साइ., पे.वि. गा.४. पे.२९. साधारणजिन गीत, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदि: नेनां कामणगारे; अंति: रूपचन्द की
रे घेरे., पे.वि. गा.४. पे.-३०. साधारणजिन गीत, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः ऐसे देव निरञ्जन; अंतिः द्यो सेवा
पग की पति.,पे.वि. गा.५. पे.-३१. साधारणजिन गीत, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः होरी नहि खेलुं प्रीय; अंतिः समरो
निरञ्जन साइ., पे.वि. गा.४. पे.-३२. पे. नाम. बाहूजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण
बाहुजिन फाग, मु. न्यायसागर, मागु., पद्य, आदिः परणे रे बाहू रङ्ग; अंतिः श्रीजिन आण खरी री., पे.वि. गा.९. पे.-३३. पार्श्वजिन गीत, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः बेदरबाजेतडे खोल खोल; अंतिः ___ लागो चित्त चोल चोल., पे.वि. गा.५. पे.-३४. नेमराजिमती गीत, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः होरी खलीइं अलबेली; अंतिः
राजुलसु वीवा जोरीइं., पे.वि. गा.५. पे.-३५. नेमराजिमती गीत , मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः नेम मले तो बातां; अंति: रूपचन्दकुं
सिव दीजिए., पे.वि. गा.५. ९१५८.” अभिधानचिन्तामणीनाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(११)=११, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि
सूचक चिह्न, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. कांड-२ का श्लो.२०५ तक है., (२५.५४११.५, १३-१५४३५-३७).
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अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः, अंतिः
९१५९. सिन्दूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. श्लो. ९७, (२५X११, १३x४०-४१).
सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः: अंतिः ज्ञानगुणास्तनोतु..
"
९१६०. सातस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. ७ स्मरण, ग्रं. २७०, पू. वि. तिजयपहुत्त व
कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है. (२६.५५११.५. ८४२१-२७).
नवस्मरण. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.सं. प+ग, आदि नमो अरिहन्ताणं० हवइ: अंति:
९१६१. योगशास्त्र प्रकाश-१ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. - प्रकाश-४., (२५X११, १४-१५४४५
५२).
योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंतिः
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
९१६२. जिनविजयगणिनिर्वाण प्रशस्ति, संपूर्ण, वि. १८०४ श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. स्थल. पालिताणा, ले.- मु. वाल्हचन्द्र, प्र. वि. ढाल - १६, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, ( २६ ११.५, १४-१५X४२-४६). जिनविजयनिर्वाण प्रशस्ति, मु. उत्तमविजय, मागु., पद्य, आदिः कमलमुखी श्रुतदेवता; अंतिः कोडी कल्याण ए.
९१६४. आठकर्मप्रकृति व चीदगुणस्थानक सज्झाय, संपूर्ण वि. १८३०, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २. जैवेना. ले. स्थल. नवा, ले. मु.
भवानकुसल (२५x११, १२४३५-३९).
पे.-१. १५८ कर्मप्रकृति सज्झाय, मु. मणिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२ आ), आदिः शङ्खश्वर पूर धणीजी; अंतिः मणिविजय बुध उपदिशे ए., पे.वि. डाल-२ गा.३३.
पे. २. १४ गुणठाणा सज्झाय, मु. मणिविजय, मागु, पद्य, (पृ. २आ-७आ), आदि: ज्ञानिवाकर भाखीउ: अंतिः निजमतिने अनुसार, पे. वि. १४ सज्झाय.
,
९१६५. पद, गीत, जकडी व स्तवनादि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. ६५, जैवेना. पु. वि. अंत के पत्र नहीं हैं...
(२८x१२, ११४३४-३७).
पे. १. औपदेशिक पद- ज्ञानदृष्टि, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं, पद्य, (पृ. १आ-१आ, संपूर्ण), आदिः चेतन ज्ञान की दृष्टि ; अंतिः रस सज्जन हृदय पखालो., पे.वि. गा.६.
पे. २. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण), आदिः कन्त विण कहो कुण; अंतिः रमे रङ्ग अनुसारी, पे.वि. गा.६.
पे.-३. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. २अ - २आ, संपूर्ण ), आदिः परम गुरु जैन कहो; अंतिः जैनदशा जस उची. पे.वि. गा.१०.
पे. ४. औपदेशिक पद उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं, पद्य, (पृ. २आ-२आ, संपूर्ण), आदिः परम प्रभु सब जन;
,
अंतिः सेवक जन गुण गावे., पे.वि. गा.६.
पे.-५. आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. २आ - ३अ, संपूर्ण), आदिः चेतन जो तुं ग्यान; अंति: अन्तरदृष्टि प्रकाशी, पे.वि. गा.८.
पे.-६. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण), आदि: अजब गति चिदानन्द घन; अंतिः उनके समरन की., पे.वि. गा. ५.
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पे. ७. साधारणजिन पद उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं, पद्य, (पृ. ३-३आ, संपूर्ण), आदि जीउ लागी रह्यो पर
,
अंतिः वेधक रस धाउ मे., पे.वि. गा.५.
1.
पे८. पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं, पद्य, (पृ. ३आ-४अ संपूर्ण) आदि मेरे साहिब तुमही अंतिः दीओ परमानन्दा., पे.वि. गा. ५.
पे. ९. साधारणजिन पद उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं, पद्य, (पृ. ४अ ४अ संपूर्ण) आदि मेरे प्रभुस्यु: अंतिः जस
,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
कहे इसु हे वडभाग, पं.वि. गा.५.
पे. १०. आदिजिन स्तवन- वर्षीतप पारणा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु पद्य (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण) आदि पसारी करलीजे ईसुरस; अंतिः युं भविकुं जिनभान पे. वि. गा.४.
पे. ११. शीतलजिन स्तवन उपा. यशोविजयजी गणि प्राहि, पद्य, (पृ. ४-४आ, संपूर्ण) आदि शीतल जिन मोहि
"
प्यारा; अंतिः तुम
नामे भव पारा, पे.वि. गा.६.
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पे. - १२. आदिजिन पद, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५अ, संपूर्ण), आदि: सयन सलुने लाल चरण न; अंतिः तेरो
अमी को अञ्जन है., पे.वि. गा.३..
पे.-१३. नेमराजिमती गीत, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ - ५अ, संपूर्ण), आदिः या गति छार दे गुनगोर; अंतिः विनय नमे करजोरी, पे.वि. गा.२.
पे.-१४. नेमराजिमती गीत, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ - ५अ, संपूर्ण), आदिः मेरी गति मेरी मति; अंतिः राजुलकी विनय वीनतिया, पे. वि. गा. ४.
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"
पे. १५. औपदेशिक गीत, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण), आदिः दुरमति डारदे मेरे ; अंतिः विनये जपो सुध ज्ञानी., पे.वि. गा.२.
पे. १६. औपदेशिक गीत. मु. विनय, प्राहिं, पद्य, (पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण), आदि प्यारे काहेकुं ललचाय; अंतिः दिखावे जो लाउ दिलठाय., पे.वि. गा. ५.
.
४०५
पे.-१७. औपदेशिक गीत, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदिः पिउजी मोहि दरसण दीजी; अंतिः घर आवे आनन्दी रे, पे.वि. गा.५.
पे. १८. नेमराजिमती गीत, मु. विनय प्राहिं, पद्य, (प्र. ६अ-६अ, संपूर्ण) आदि प्यारे प्रीतम हठ अंतिः राजुल करत निहोरो, पे.वि. गा.३.
पे. १९. पार्श्वजिन गीत, मु. विनय, प्राहिं, पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदि सुरत मण्डण पास देखत; अंतिः निज ज्युं प्रेम की., पे.वि.गा. ३.
पे.-२०. नेमराजिमती गीत, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण), आदि: जीउ प्रान मेरे मन; अंतिः शिवादेवी किसोर, पे. वि. गा. ५.
.
पे. २१. ऑपदेशिक पद, मु. विनय प्राहिं, पद्य, (. ६आ-७अ संपूर्ण), आदि अज हुं कहाल्युं अंतिः तुम विनये सुना इहो.. पे.वि. ना.६.
"
पे. २२. औपदेशिक पद मु. विनय प्राहिं, पद्य, (प्र. ७अ-७अ संपूर्ण), आदि: सांइ सलुणां केसे अंतिः नेक नजर मोहे
·
जोय., पे.वि. गा. ५.
"
पे. २३. औपदेशिक गीत. मु. विनय प्राहिं, पद्य (प्र. ७अ-७आ, संपूर्ण), आदि: थिर नांहि रे थिर अंतिः छोडणहार वेसांइ पे.वि. गा.५.
पे. २४ ऑपदेशिक गीत मु. विनय प्राहिं, पद्य (प्र. ७आ- ७आ, संपूर्ण), आदि: मन न काहु के वस मन: अंतिः सांइ सेती रस हे.. पे.वि. ना.५.
"
.
पे. २५. लाभलोभसन्तोष जकडी, मु. विनय प्राहिं, पद्य, (. ७ आ-८अ संपूर्ण ) आदि अजब तमासा एक भारा अंति
अधम सेति न्यारा, पे.वि. गा.५.
पे-२६. साधारणजिन पद, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ -८अ, संपूर्ण), आदिः जागो प्यारे भयो; अंतिः करी विनवुं पीउ चेत., पे.वि. गा. ५.
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पे:-२७. औपदेशिक पद-जीवकाया, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण), आदि: सुनि सुहागन वे दिल; अंतिः अविहड करु अयारी, पे.वि. गा.५.
पे. २८. ऑपदेशिक जकडी जीवकाया, मु. विनय प्राहिं, पद्य, (. ८आ-९अ संपूर्ण) आदि काया कामनी वेलाल
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४०६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अंतिः युं अभेदे तुज मिलुं., पे.वि. गा.५. पे:२९. औपदेशिक पद, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ-९अ, संपूर्ण), आदिः कहा करू मन्दिर; अंतिः करुया दुनिया
मे फेरा., पे.वि. गा.५. पे.-३०. आध्यात्मिक पद, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण), आदिः किसके चेले किसके; अंतिः विराजे सुख
भरपूर., पे.वि. गा.७. पे.-३१. औपदेशिक पद, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९आ-९आ, संपूर्ण), आदिः घोरा जूठा हे रे तु; अंतिः सिखाउ ज्युं
भवपारा., पे.वि. गा.५. पे.-३२. औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण), आदि: पांचे घोरो रथ एक; अंतिः विनय
जीउ पाया., पे.वि. गा.५. पे.-३३. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ, संपूर्ण), आदिः प्रभु तेरे वचन; अंतिः ___ तुंहे तुंहे जिनभान., पे.वि. गा.५. पे.-३४. औपदेशिक सज्झाय-कुमार्गत्याग, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण), आदिः चेतन
राह चले उलटे; अंतिः तुमकुं नांहि रटे., पे.वि. गा.५. पे.-३५. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदिः चेतन ममता छारी परी; अंतिः
घन पदवी वरीरी., पे.वि. गा.६. पे.-३६. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११अ-११अ, संपूर्ण), आदिः या गति कोन हे सखि;
अंतिः प्रणमे जस याजोरी., पे.वि. गा.३. पे.-३७. शान्तिजिन स्तवन , उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः हम मगन भए प्रभुः
अंतिः जीत लीओ मेदान मे., पे.वि. गा.६. पे.-३८. नेमराजिमती पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदिः देखत हि चित चोर
लीओ; अंतिः सिवसुख अमृत पीओ., पे.वि. गा.३. पे.-३९. पार्श्वजिन स्तवन-अन्तरिक्ष, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदिः सलुने प्रभु
भेटे; अंतिः कहे भक्ति में भेटे., पे.वि. गा.३. पे.-४०. साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण), आदिः जिन तेरे चरण
सरण; अंतिः ज्युं भवदुख न लहुं., पे.वि. गा.३. पे.-४१. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः अजब बनी हे जोरी;
अंतिः छाहि रति अनुसरी है., पे.वि. गा.४. पे:४२. कर्मयुद्ध सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण), आदिः धर्म के विलास वास;
अंतिः ताकुं हम पाय लगे है., पे.वि. गा.५. पे:४३. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, वि. १८वी, (पृ. १२आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः
ऋषभदेव हितकारी; अंतिः तुम हो परम उपकारी.,पे.वि. गा.६. पे:४४. गौतमस्वामी पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण), आदिः गौतम गणधर नमि
थे; अंतिः नहि हम अमीये हो., पे.वि. गा.४. पे.-४५. पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः सुखदाई रे सुखदाई;
अंतिः घर अंगन नवनिधि आई., पे.वि. गा.४. पे.-४६. आदिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण), आदिः तुम्हारे सिर राजत;
अंतिः ए हमहि अति उलटा., पे.वि. गा.३. पे.-४७. साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३आ-१३आ, संपूर्ण), आदिः अब में साचो
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
४०७
साहिब; अंतिः सो जस लीला पावे., पे.वि. गा.७. पे.-४८. नेमिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण), आदिः सयन की नयन की
वयन; अंतिः समो रङ्ग रमो रतीयां.,पे.वि. गा.२. पे-४९. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः साहिब ध्याया मन;
अंति: ज्योति मिलाया., पे.वि. गा.८. पे.५०. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण), आदिः प्रभु बल देखी; ____ अंतिः हुं न परि हुं भोले., पे.वि. गा.४. पे.-५१. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१४आ, संपूर्ण), आदिः प्रभु धरी पीठ
वैताल; अंतिः तुंही वीर शिव साधे., पे.वि. गा.४. पे.-५२. पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण), आदिः अब मोही
ऐसी; अंतिः सुख जस लील धणी.,पे.वि. गा.६. पे.-५३. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १५अ-१५अ, संपूर्ण), आदि: विमलाचल नित
वन्दीये; अंतिः लहे ते नर चिर नन्दे., पे.वि. गा.५. पे.५४. नेमिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण), आदिः देखो भाई अजब रूप;
अंति: साहिब नेमजी त्रीभुवन., पे.वि. गा.२. पे:५५. औपदेशिक गीत, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१५आ, संपूर्ण), आदिः बाला रूपशाला गले; अंतिः धारा वज्र दोरीसी.,
पे.वि. गा.१. पे.-५६. आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण), आदि: जब लगे आवे नही __ मन; अंतिः विलासी प्रगटे आतमराम., पे.वि. गा.६. पे.५७. सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ, संपूर्ण), आदिः चतुरनर सामायिक
नयधार; अंतिः ज्ञानवन्त के पासे., पे.वि. गा.८. पे.५८. आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण), आदिः सबल या छाक मोह ___ मदिरा; अंतिः उनकी में बलिहारी., पे.वि. गा.८. पे-५९. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण), आदिः चेतन अब मोहे
दरशन; अंतिः सेवक सुजस वखाणे., पे.वि. गा.५. पे.-६०. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७अ-१७अ, संपूर्ण), आदिः मनकित हुं न लागे; __ अंतिः सुजस ब्रह्म ते जइ रे..पे.वि. गा.३. पे-६१. औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण), आदिः चिदानन्द
अविनाशि हो; अंतिः ब्रह्म अभ्यासी हो., पे.वि. गा.६.. पे.-६२. नेमिजिन गीत, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण), आदिः हरी नारी टोले मिली; ___ अंतिः पाए सुजस कल्याण लाल., पे.वि. गा.९. पे.-६३. पार्श्वजिन स्तवन-अन्तरिक्ष, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण), आदि: जय जय
जय जय पासजिणंद; अंतिः बोले तुम गुनके वृंद.,पे.वि. गा.६. पे.-६४. पार्श्वजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ, संपूर्ण), आदिः वामानन्दन
जगदानन्दन; अंतिः तुम हो मेरे आतमराम., पे.वि. गा.३. पे.६५. गीतचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-२०आ, अपूर्ण), आदिः अजितदेव मुझ वाहला;
अंति:-, पे.वि. २४ गीत अंत के पत्र नहीं है. गीत २ से ९ तक है. ९१६६. नवतत्त्व, जीवविचार व महावीर स्तुति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-६(१ से ६)=९, पे. ३, जैदेना.,
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४०८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
(२५.५४११, ४-५४२९-३०). पे.-१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ७अ-७अ, अपूर्ण
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः अनन्तासिद्ध जाणवा., पे.वि. अंत के पत्र हैं. गा.४७ से ४८
तक है. मूल-गा.४८. पे..२. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ७अ-१४अ, संपूर्ण
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः त्रिन भुवन दीप समान; अंतिः समुद्र ते थकी.,पे.वि. मूल-गा.५१. पे.-३. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति सह टबार्थ, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण
पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्.
पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः स्नान कहीइ न्हवरावि; अंतिः कार्यने विषे सिद्धि., पे.वि. मूल-श्लो.४. ९१६७." आरामशोभा कथा, अपूर्ण, वि. १६०८, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से ३)=७, जैदेना., ले.- मु. विमलकुशल, पठ.- गणि
विद्याहर्ष, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, प्र.ले.श्लो. (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२६४११, १७४४९-५२).
आरामशोभा कथा, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः सया जेण लहेह मुक्खं. ९१६८. आरामनन्दन प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. गा.३७०, (२५.५४११.५, १५४४१-४२).
आरामनन्दन प्रबन्ध, मु. भक्तिकुशल, मागु., पद्य, वि. १६८१, आदिः सुख अनन्त सुख अनन्त; अंतिः तस भगवती सार
करयो. ९१६९. उपदेशरत्नाकर मनुष्यभव १०दृष्टान्त व सप्तव्यसन काव्य, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०,पे. ३, जैदेना., (२६x११,
१५-१६x४७-५०). पे-१. उपदेशरत्नाकर, आ. मुनिसुन्दरसूरि, प्रा.सं., पद्य, (पृ. १अ-१०आ, प्रतिपूर्ण), आदि:-; अंतिः करोतु
लसज्जयश्रीः. पे.२. मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टान्त काव्य, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ, संपूर्ण), आदिः चुल्लग पासग धन्न; __ अंतिः स चेत् पूर्ववत्., पे.वि. गा.११. पे.-३.७ व्यसन काव्य, सं., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ, संपूर्ण), आदिः द्युताद्राज्य विनाशन; अंतिः स्त्रीः नृपो रावणः., पे.वि.
श्लो .१. ९१७०. कर्मग्रन्थ १ से ५ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६७९, श्रेष्ठ, पृ. ४७, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. गंधरबंदिर, प्र.वि. त्रिपाठ,
(२५.५४११, ४-६x४१-४५). पे..१.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, प्र. १अ-८अ
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, गणि शान्तिविजय, मागु., गद्य, आदिः वीरजिन प्रति वन्दि०; अंतिः अन्तराई
कर्म बान्धइ., पे.वि. मूल-गा.६२. पे.-२. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, प्र. ८अ-१२आ
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, गणि शान्तिविजय, मागु., गद्य, आदिः सामान्य प्रकारइ एकसो; अंतिः आनुपूर्वि
विना जाणवी., पे.वि. मूल-गा.३४. पे.-३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. १२आ-१६अ
बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
४०९
मा.
बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-बालालबोध, गणि शान्तिविजय, मागु., गद्य, आदि: बन्धविहाण विमुक्कं; अंतिः
गुणठाणा शुकले स्थानइ.,पे.वि. मूल-गा.२५. पे.-४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. १६आ-३०अ
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, गणि शान्तिविजय, मागु., गद्य, आदिः जिनप्रति नमीने दस; अंतिः अनन्तुकृष्ट
थाइ., पे.वि. मूल-गा.८६. पे.५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. ३०अ-४७आ
शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, गणि शान्तिविजय, मागु., गद्य, आदिः योगनाभेद १५ भेद सत्य; अंतिः सञ्जलनो
लोभ उपशमावाई., पे.वि. मूल-गा.१००. ९१७१. वीरजिन स्तवन सह बालावबोध व वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल.
___पुरबंदिर, ले.- पं. दर्शनविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११, १४-१५४३६-४३). पे.-१. पे. नाम. प्रतिमादिस्थापन वीरजिन स्तवन सह बालावबोध, पृ. १आ-२०अ, संपूर्ण महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३३,
आदिः प्रणमी श्रीगुरुना; अंतिः आणा सिर वहेस्येजी. महावीरजिन स्तवन-बालावबोध, मागु., गद्य(अपूर्ण), आदिः अनुयोग द्वारे तथा; अंतिः-, पे.वि. मूल-ढाल-६. टबार्थ
ढाल-६ अपूर्ण तक लिखा है. पे.२. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २०अ-२०अ, (संपूर्ण)), आदिः सिद्धार्थक्षोणीनाथ; अंतिः दैव्य प्रोत्तगः. ९१७२. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १६७५, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. द्वीपमध्ये, प्र.वि. गा.५४४, (२५.५४११, १३४३९-४२).
उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. ९१७३. गजसुकमाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. ढाल-३४, (२५.५४११, १५-१७४५२-६१).
गजसुकुमाल चौपाई, मु. भुवनकीर्ति, मागु., पद्य, आदिः त्रिभुवनपति; अंति: गजसुकमाल मुनीनो रासए. ९१७४. अङ्गचूलिआसूत्र, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. देवकापत्तन, (२४.५४११.५, १०-१५४३५-३६).
अङ्गचूलिका प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, आदिः नमो सुय० नमो अरि०; अंतिः पवेइयं त्तिबेमि. ९१७५. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.४५., (२४.५४११, २-३४२४-२५).
नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः दासय अधा समहीया.
नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः जीवा कहेता जीवतत्त्व; अंतिः जाणीने लिख्या छे. ९१७६. वसुधारा, संपूर्ण, वि. १७७५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपूरनगर, ले.- वा. देवविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि,
तपागच्छ), (२५४११, १०-१४४३९-४३).
वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति. ९१७७. उत्तम चरित्र कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५४११, १५
__ १७४४६-५६).
उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, आदिः भक्त्या वस्त्राणि; अंतिः मुक्तिं यास्यति. ९१७८. पाक्षिकसूत्र व खामणा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७९८, श्रेष्ठ, पृ. २५-२(११,१७)=२३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल
मालनगर, ले.- मु. विलभराज (गुरु मु. गुणराज, अञ्चलगछ), प्र.ले.पु. विस्तृत, (२५४१०.५, ६४३५-३८). पे.१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२४आ, अपूर्ण
पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पाक्षिकसूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: तीर्थङ्कर प्रते; अंतिः मिच्छामिदुक्कडं देवउ., पे.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं.
पे. २. पे. नाग. क्षामणासूत्र सह टवार्थ, पृ. २४आ- २५आ, संपूर्ण
क्षामणकसूत्र प्रा. गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो अंतिः नित्थारग पारगा होह
;
क्षामणकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हे क्षमाक्षमण वाञ्छु; अंतिः मने करी वान्दु छं., पे.वि. हिस्सा - सूत्र - ४
आलावा.
(+)
९१७९.” तेजसार प्रबन्ध, अपूर्ण, वि. १७१२, श्रेष्ठ, पृ. १७-५ (१ से ५) = १२, जैदेना. प्र. वि. गा. ४११ टिप्पण युक्त विशेष पाठ
बीच का एक पत्र, पू.वि. गा. १०४ तक नही है., (२५X११, १४४४०-४२).
तेजसारकुमार रास, वा. कुशललाभ, मागु., पद्य, वि. १६२४, आदि:- अंतिः करजोडीनइ नमइ.
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९१८०. नवतत्त्व, जीवविचार व चतुःशरण, संपूर्ण वि. १७४३, श्रेष्ठ, पृ. ८ पे. ३. जैदेना ले. स्थल. सरखेज, ले. पं.
वृद्धिविजय (गुरु पं. नेमविजय), पठ. - मु. सगाल, प्र.ले.पु. मध्यम, ( २४ ११, ११x२९-३८).
पे. १. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा. पद्य (प्र. १-३अ) आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा अंति बोहिय इक्कणिक्काय, पे.वि.
"
गा. ४६.
पे. २. जीवविचार प्रकरण आ. शान्तिसूरि प्रा. पद्य (पृ. ३अ ५आ) आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाओ
·
,
सुयसमुद्दाओ, पे. वि. गा. ५२.
पे. ३. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ-८आ), आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, पे. वि. गा.६३.
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९१८१ गुणावली रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११-२ (८ से ९) ९, जैदेना.. पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. गा. ३५३
तक है., ( २४.५x१०.५, १५×५१-५७).
गुणावलि चौपाई, गणि गजकुशल, मागु., पद्य, वि. १७१४, आदिः सकल मनोरथ पूरवे; अंति:
,
"
९१८२. श्राद्धसूत्रसङ्ग्रह सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७७५, श्रेष्ठ, पृ. २७-४ (२ से ५) २३. जैदेना, ले. स्थल वीदोरा, ले. पं. जीवणरूचि (गुरु गणि केसररुचि), प्र.ले.पु. मध्यम (२४.५x१०.५, ६x४३-४९).
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, (पूर्ण), आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः करी मिच्छामि दुक्कडं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि: माहरउ नमस्कार; अंतिः निश्चल जाणिव उ.
९१८३. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्तवन- २१ तक हैं., ( २५X११, ११
१४४३६-४८).
जिनस्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदि: जगजीवन जगवाल्हो; अंतिः
९१८४. सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा अपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३२-१६ (१ से १६ ) - १६, जैदेना, ( २४.५X११, १५-१७४३३-३५).
सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा आ. सिद्धिसूरि मागु
पद्य, आदि:-: अंति
·
•
९१८५. सङ्ग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पृ. ४४-२ (३,४१ ) - ४२, जैवेना. पु.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. गा. २६१ तक है., ( २४.५x१०.५, १६x४६-४९). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहन्ताई अंति:
·
बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध, मागु, गद्य, आदि प्रणिपत्य जिनं वीरं अंतिः
7
,
""
,
.
९१८६. कर्मग्रन्थ १-४ सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-५ (१ से ५ ) = १०, पे. ३, जैदेना., प्र. वि. पंचपाठ, पू. वि.
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५४१०.५, १०४३१-३३)
पे. १. पे नाम कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ सह अवचूरि, पृ. ६अ-८अ अपूर्ण
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि: अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं.
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
४११
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः-.पे.वि. मूल-गा.३४. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण. पे.२. पे. नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह अवचूरि, पृ. ८अ-१०अ, संपूर्ण
बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं.
बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि*, सं., गद्य, आदि:#; अंति:#., पे.वि. मूल-गा.२५. पे..३. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ सह अवचूरि, पृ. १०-१५अ, अपूर्ण
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि*, सं., गद्य, आदि:-; अंति:-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९१८७. कल्याणमन्दिर स्तोत्र टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४११, १३
१५४४५-४६).
कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदिः प्रणम्य पार्श्वमिष्ट; अंति:९१८८. सङ्ग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२७६; बालावबोध-ग्रं. १७५७;
प्र.पु.-बालावबोध-ग्रं. १४००., (२६४११, १३४५२-५३). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः सन्नि गईरागई वेए.
बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध, गणि दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १४९७, आदिः नत्वा श्रीवीरजिनं; अंतिः लवलेश जाणिवानइ. ९१८९. प्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४-२९(३ से ३१)+१(६९)=५६, जैदेना., पू.वि. बीच
के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२४.५४११, ३-१६४३१-४१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिःश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मु. जिनविजय, मागु., गद्य, वि. १७५१, आदि: बार गुणे करि सहित;
___अंति:९१९०." क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४, जैदेना., प्र.वि. मूल-६ अधिकार., गा.२६३., संशोधित,
त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२६४११, ४-६x४४-४७). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमयं
पसिद्धं.
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, सं.,मागु., गद्य, आदिः वीरं० श्रीवीर; अंतिः कादि तुल्यमपि. ९१९१. प्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२६४११, ११-१३४३५-४०).
प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्. ९१९२.” भरहेसर सज्झाय सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८५-१९(१ से २,२३ से ३९)=६६, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद
सूचक लकीरें, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, (२४.५४११, १५४४२-४४).
भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, गणि शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदि:-; अंति:९१९३.” सत्तरिसयठाणा व श्लोकसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६५२, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. २, जैदेना., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त
पाठ, (२६४११, १३४४५-५२). पे..१. सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, (पृ. १अ-१६आ), आदिः सिरिरिसहाइ
जिणिन्दे; अंति: जाइ सो सिद्धिठाणे., पे.वि. गा.३५९.
पे.२. श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु.,हिन्दी, पद्य, (पृ. १६आ-१६आ), आदि:#; अंति:#. ९१९४. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. ८४, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ४५००., (२६.५४११, १५-१७४४४
५५).
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४१२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः
श्रुतभक्त्यासमासतः. ९१९५. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र है. गा.१४ से गा.२४८ अपूर्ण तक
है., (२६४११.५, १५४३७-४२).
श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १५३१, आदि:-; अंति:९१९६." भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४१, श्रेष्ठ, प्र. १६, जैदेना., ले.स्थल. वेणयग्रामे, ले.- मु. जीवरूचि, पठ.- मु.
नित्यरूचि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-३ भाष्य, गा.१४५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, ५४३९-४५). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं.
भाष्यत्रय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः बन्दित्तु क० वान्दी; अंतिः सुख प्रति आबाधा रहित. ९१९८." नन्दीसूत्र व लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दी, संपूर्ण, वि. १७३८, श्रेष्ठ, पृ. २७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. खंभातबिंदर, प्र.वि.
पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, १२-१३४२८-३८). पे.१. नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, (पृ. १अ-२३आ), आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं
परोक्खणाणं. पे.२. लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, (पृ. २३आ-२७अ), आदिः से किं तं अणुण्णा; अंतिः
वीसमणुण्णाए णामाई. ९१९९. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१२, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले.- ऋ.
यादवजी (गुरु मु. देवचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११, ६४३६-४४). पे.-१. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-६आ
कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः कल्याण क० मङ्गलिक; अंतिः प्रपद्यन्ते पामइ.,पे.वि. मूल
श्लो.४४. पे..२. सुभाषित सङ्ग्रह-, सं.,मागु.,प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः#; अंतिः#. ९२००.” कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. कोरटानगर, प्र.वि. मूल-श्लो.४४.,
अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२५४१०.५, ५४३७-४४). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते.
कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: पार्श्वनाथना चरण; अंतिः कालिइ मुक्ति जासिइ. ९२०१. उत्तराध्ययनसूत्र सह कथासङ्ग्रह, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,
(२५.५४११, ८४४२-४७). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., . (प्रतिपूर्ण), आदि:-; अंति:
उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा का कथासङ्ग्रह, सं.,मागु., प+ग, (प्रतिपूर्ण), आदि:- अंति:९२०२. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७, जैदेना., प्र.वि. ३६अध्ययन, (२६.५४१०.५, ११४३६-४१).
उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्बुडे त्ति बेमि. ९२०३. चतुःशरणप्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६३., (२५४१०.५, ३-४४३९-४०).
चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं.
चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः मङ्गलीक भणी पहिलं; अंतिः सज्झाय सदैव करवो. ९२०४. वाक्यप्रकाश सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.१३१., त्रिपाठ, (२६.५४११, ३-८४४७
४९).
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
वाक्यप्रकाश, गणि उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदिः प्रणम्यात्मविदं; अंतिः वाक्यप्रकाशोयम्.
वाक्यप्रकाश-टीका, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, आदिः श्रीमज्जिनेन्द्रमानम; अंतिः संपदिवाव्ययीभावसमास. ९२०५. श्राद्धपाक्षिकादिअतिचार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२५४११, १३४४१-४४).
श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नाणंमि दंसणंमि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. ९२०७. श्रीपाल रास व दुहासङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. २, जैदेना., ले.- गणि विमलकुशल, (२२.५४१०,
२०४५०-५३). पे..१. श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, आधारित, मागु., पद्य, वि. १७२६, (पृ. १अ-१७आ), आदिः सकल सुरासुर; अंतिः
रहोज्यो विस्तिर्ण रे., पे.वि. ढाल-४०.
पे..२. जैन दुहा सङ्ग्रह*, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. १७आ-१७आ), आदिः#; अंतिः#. ९२०८. सिन्दूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.- मु. विनयमेर, प्र.वि. पत्रांक ११ पर सिंदूर प्रकर टीप
लिखी हुई है. श्लो.९९, (२३x१०.५, ११४३६-३७).
सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः ज्ञानगुणास्तनोति. ९२०९. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७८, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. वेलाउलबंदिर, प्र.वि. मूल-गा.१०४.,
पू.वि. प्रतिलेखके टबार्थ गा.४१ तक लिखा है., (२३.५४१०.५, ५४३३-३६). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः९२१०. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. गा.८२; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ११२, (२१x११, ८x२३-३३).
गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मागु., पद्य, आदिः वीर जिणेसर चरण कमल; अंति: सयल सङ्घ मङ्गल करो
९२११. परमाणु, पुदगल एवं निगोद विचार सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पे. ३, जैदेना., (२४४११, ९x४१
४३). पे.-१. परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, (पृ. १आ-६अ), आदिः यथास्थिताणुजीवादि; ___ अंति: गुणमिति स्थितम्. पे..२. पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, (पृ. ६अ-१६आ), आदिः अथ पञ्चम एव; अंतिः
हितान् जानीयादिति. पे.३. भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका के हिस्सा-निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, (पृ.
१६आ-२८आ), आदिः अथ पंचमांग; अंति: सङ्ख्येया अवसेयाः. ९२१२. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(६)=६, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२४४१०.५, ११
१२४३२-३८).
पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः९२१३."" अनुत्तरोववाइदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६८८, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. बलुंदाग्रामे, ले.- ऋ.
वीरदास (गुरु मु. जसवन्त), प्र.वि. मूल-अध्याय-३३., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. जीर्ण-अक्षर पत्रों पर
आमने-सामने छप गए हैं, (२४.५४११, ७४३६-४०). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं.
अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणे काल चउथा० तेणइ; अंतिः धर्मकथानी परे जाणवा. ९२१४. मुनिपति चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., प्र.वि. गा.६०६, पू.वि. गा.६०६., (२३४११, १५४४०-४२).
मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मागु., पद्य, वि. १५५०, आदिः गोयम गणहर गोयम गणहर; अंतिः सुणतां हर्ष अपार.
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४१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२१५. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना., ले.- पं. दलपतकुशल,प्र.वि. खण्ड-४, संशोधित,
(२४.५४११.५, १३-१५४३५-३९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी;
अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी. ९२१६. क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले.स्थल. सद्दामापुरी, ले.- ऋ. वालजी, प्र.ले.पु.
विस्तृत, प्र.वि. संक्षेप-अध्याय-५; प्र.पु.-संक्षेप-२१६., (२३४१२, ४४२५-३०). बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊणसजलजलहर; अंतिः
झाएज्जा सम्मदीट्ठीए.
बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमीने जे भगवन्त सजल; अंतिः ध्यावउ सम्यग्दृष्टीइ. ९२१७. चित्रसेनपद्मावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. गा.४९५, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल
___ मे लिखित, (२३४१०, १२४३२-३५). चित्रसेनपद्मावती चौपाई, उपा. रामविजय, मागु., पद्य, वि. १८१४, आदि: रिसहेसर पाय कमल पणमि; अंतिः ए
चौपाई वीकानेर वणाई. ९२१८. जीवविचार, नवतत्त्व, दण्डक व चउशरणपयन्ना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. ४, जैदेना., ले.- पं. रत्नविजय,
पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२३.५४१०.५, १०४३२-३५). पे.-१. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-४अ, संपूर्ण), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः
रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ.,पे.वि. गा.५२. पे.२. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ४अ-७अ, संपूर्ण), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ.,
पे.वि. गा.४८. पे..३. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ-१०अ, संपूर्ण), आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति
अप्पहिआ., पे.वि. गा.४२. पे.४. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ-१२आ, अपूर्ण), आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः-,
पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.४७ तक लिखा है. ९२१९. विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७८, जैदेना., (२५.५४१०.५, ६x४४-४६).
विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स.
विपाकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तिणइ कालइ तिणइ समय; अंतिः सूत्रे कह्यो तिम. ९२२०. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३, जैदेना., ले.- मु. लालचन्द्र (गुरु गणि भावरङ्ग), प्र.वि.
ग्रं. ४३००, (२५४१०.५, १३४५३-५६). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः त्रीणि
सप्तशतानि च. ९२२१.” ऋषिमण्डल स्तोत्र सह बालावबोध व विहरमानजिननाम, संपूर्ण, वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. ६८, पे. २, जैदेना., ले.- मु.
रतनचन्द (गुरु मु. जयकरणजी),प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४x१०.५, ६-२०४४१-४२). पे.-१. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-६८आ ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि ,प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंतिः सो लहइ
सिद्धिसुहं. ऋषिमण्डल प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भक्तिने भर समुहे; अंतिः कर्ताये नाम जाणवो., पे.वि. मूल-गा.२३४. पे.२. विहरमान २० जिन नाम, मागु., गद्य, (पृ. ६८आ-६८आ), आदिः सीमन्धरस्वामी; अंतिः देवजसा अमितवीर्य.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
४१५
९२२२. श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२३.५४११, १०४३४-३७).
श्रीपाल चरित्र, सं., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वनाथपादा; अंतिः सौख्यभाजो भवंतु. ९२२३.” सम्बोधसित्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.७५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ,
(२३.५४१०.५, ५४३३-३६). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो.
सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमुं छु त्रिणलोकना; अंतिः ईहां सन्देह नही सहीइ. ९२२४. चारप्रत्येकबुद्ध रास, पूर्ण, वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. २६-२(२ से ३)=२४, जैदेना., ले.स्थल. गोंडल, ले.- ऋ. मूधर, पठ.
मु. कर्मसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. खण्ड-४, पू.वि. खंड-१ की ढाल-१ की गा.७ से खंड-१ की ढाल-४ तक नही
है., (२४.५४१०.५, १७४३४-४०). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६५, आदिः सिद्धारथ शशिकुलतिलो; अंतिः आणंद
लीलविलास. ९२२६. योगसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले.स्थल. नसरपुर, ले.- नाथकुअर, प्र.वि. मूल
गा.१०८., (२५४१०.५, ३४२६-२७). योगसार, मु. योगीन्द्रदेव, अप., पद्य, आदिः णिम्मलझाणपरिट्ठया; अंतिः कया दोहा इक्कमणेण.
योगसार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः निर्मल ध्यानने विषइ; अंतिः छन्द सहित कीधा. ९२२७. समवायाङ्गसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९२, जैदेना., ले.- मु. लालचन्द्र (गुरु गणि भावरङ्ग), प्र.वि. ग्रं.
४५७५, (२५४१०.५, १३४४३-५३).
समवायाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः पादन्यूना च षट्शती. ९२२८. सम्बोधसत्तरी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(३)=८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७२., पू.वि. गा.१५ से
१९ तक नही है., (२५४११, १८४४७-५०). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः पोसहविहि अप्पमत्तो य.
सम्बोधसप्ततिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः वन्दिय पासजिणन्दं; अंति: गतिने पण छेदई. ९२२९. दशठाणा बोलसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., (२५.५४१०.५४).
स्थानाङ्गसूत्र-बोल, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः एहे आया एगे दण्डे; अंतिः पीया ललताङ्गपीया. ९२३१. नैषधीय चरित्र, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-१. मुखपृष्ठ पर व अंतिम पृष्ठिका पर हर्षकवि
का प्रशस्ति श्लोक तथा अन्य श्लोक दीया है., (२४४१०.५, ९-१०४३२-३३).
नैषधचरित्र, कवि हर्ष, सं., पद्य, आदिः निपीय यस्य क्षिति; अंति:९२३३. कानडकठियारा चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९८, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. ढाल-९, (२४.५४१०.५,
१४४४०-४५).
कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मागु., पद्य, वि. १७४६, आदिः पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंतिः दिनदिन वधते रङ्ग. ९२३४. भरहेसर सज्झाय सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८०९, श्रेष्ठ, पृ. १७६-६१(१ से ४१,१०४ से १२३)=११५, जैदेना., ले.स्थल.
मांडवीबिंदर, प्र.वि. संबद्ध-गा.१३. ग्रं. ग्रं. १२०००, (२५४११, १६-२१४४२-४५). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली; अंतिः जस पडहो तिहुयणे सयले.
भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, गणि शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदि:-; अंतिः तमोर्हदादिसाक्षिकम्. ९२३५. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२४.५४११, १६४५९
६०). सूर्यप्रज्ञप्ति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः यथास्थितं जगत्; अंति:
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
९२३६.” ऋषिदत्ता चौपाई, प्रतिअपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. ९ - २ (१ से २ ) = ७, जैदेना., ले. स्थल. झुंठा, ले. ऋ. अनोपचन्द, पू.वि. ढाल ४ तक नही है. दाल १९ तक लिखा है, दशा वि. अक्षर फीके पड़ गये हैं, (२५.५४११, १५०४०-४३). ऋषिदत्तासती चौपाई, ऋ. चोथमल, मागु., पद्य, वि. १८६४, आदि:-; अंतिः
९२३७. चन्द्रलेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८१, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले. स्थल. शक्तिपुर, प्र. वि. ढाल - २९, (२४.५×११, १४४४३
४८).
चन्द्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह. ९२३८. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवेना. प्र. वि. श्लो. १४८ (२४.५४११, १५X३७-४१). वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे.
(+)
९२४०. उपासकदशाद्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ८५+१ (२७) = ८६, जैदेना, प्र. वि. मूल- अध्याय १०, (२५४११, ५०३१-३७)
-
उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंतिः भूय वडिंसे गये कीले. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते काल चोथो आरो; अंतिः दशमु अध्ययन सम्पूर्ण.
९२४३. चौदगुणठाणेकर्मबन्धउदयसत्ताउदीरणा विचार, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २३-१ ( १ ) -२२, जैवेना., (२५-५४११.५,
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.
१५x५१-५२).
१४ गुणठाणे कर्मबन्धउदयसत्ता व उदीरणा विचार मागु, गद्य, आदि: अंतिः जिनधर्मबोधि बीज पामइ. ९२४४. मानतुङ्गमानवती चौपाई, अपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैवेना. पु.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल ९ की गा. १३ तक
है., ( २५x११.५, ११४३६-४१).
मानतुद्गमानवती रास, उपा. अभयसोम, मागु पद्य वि. १७२७, आदिः प्रणमुं माता सरसती; अंति
""
"
९२४५. व्यवहारशुद्धि चौपाई, संपूर्ण वि. १७५३, श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना, प्र. वि. ढाल ९ प्र. पु. मूल-गा. १६४. ग्रं. २२५. पू. वि.
ग्रं.ग्रं.२२५, ढाल-९, गा. १६४., ( २५x११, १५X४७-४९).
व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६९६, आदिः शान्तिनाथ जिन सोलमो; अंतिः सीझई
वंछित काज.
"
९२४६.” सम्बोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. फलवर्द्धि, ले.- मु. रङ्गसागर (गुरु पं.
सरूपसागर), प्र. वि. मूल-गा.६९., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५x११.५, ५X३८-३९).
सम्बोधसप्ततिका आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य आदि नमिऊण तिलोअगुरु: अंतिः लहई नत्थि सन्देहो.
सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमीनइं त्रिणलोकना; अंतिः लहइ ईहां सन्देह नही.
(+)
-
९२४७. अजितसेनकनकावती रास संपूर्ण वि. १७५२ श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना. ले. स्थल, पत्तन, ले. मु. जिनहर्ष (गुरु मु. शान्तिहर्ष, खरतरगच्छ, क्षेमशाखा), प्र. वि. ढाल - ४३, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत, संशोधित, ( २४.५x११.५, १७४५३-५८). अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मागु, पच, वि. १७५१ आदि वीणा पुस्तक धारणी, अतिः थास्यै लाभ सवाई हो.
९२४८.” चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. १९७, जैदेना., ले. स्थल. बीकानेर, ले. - पं. राजविजय, प्र. वि. प्र.पु.-ग्रं. ९७२०., पदच्छेद सूचक लकीरें (२४.५X१२, १८x४२-४८).
चन्द्रप्रज्ञप्ति- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. गद्य, आदि: मुक्ताफलमिव करतलकलित अंतिः जनस्तेन भवतु कृती.
"
९२४९. सुक्तावली, संपूर्ण वि. १८८९ मध्यम, पृ. २१, जैदेना ले. स्थल. हैदराबाद ले ऋ. अमरचन्द (गुरु आ पुण्यप्रभसूरि
·
तपागच्छ), प्र. वि. ४ वर्ग, (२३.५४११.५, १४४१९-२०).
सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं. मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंतिः मोक्ष साधै जि कोई..
"
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
४१७ ९२५१." स्थानकवासी प्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना., ले.- ऋ. प्रागजी,
(२५.५४११.५, ४४३३-३४). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,गुज., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः ढाणं सम्पत्ताणं.
साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार हो कर्मरूप; अंतिः नमस्कार होज्यो जिनने. ९२५३. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६५९, श्रेष्ठ, पृ. २६३, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन; प्र.पु.
मूल-ग्रं. १२००० .प्र.पु.-टीका-ग्रं. १११२५., त्रिपाठ, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५४११, ४४१८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, (संपूर्ण), आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्बुडे त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः भिक्षो विनयं; अंतिः इष्टान् इति ब्रवीमि.
उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः भिक्षु महात्मानइ; अंति:९२५४. द्रोपदी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-३९, (२५.५४११, १७-१८४४९-५४).
द्रौपदी चौपाई, वा. कनककीर्ति, मागु., पद्य, वि. १६९३, आदिः पुरिसादाणी पासजिण; अंतिः कनककीरति सुखकार. ९२५५. हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. २९-९(१ से ९)=२०, जैदेना., ले.स्थल. धोराजी, ले.- मु. रतनसी
(गुरु ऋ. नागजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. खण्ड-४/ढाल ४८, (२५.५४११, १७४३७-४५). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदि:-; अंतिः दिनदिन हुयै जयजयकार. ९२५६. चन्द्रलेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६२, मध्यम, पृ. २७, जैदेना., पठ.- श्राविका तेजबाई,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-२९,
(२५.५४१०.५, १४४४२-४४).
चन्द्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदिः सरसति भगति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह. ९२५७." अभिधानचिन्तामणीनाममाला काण्ड-१,२, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-२ कांड, ग्रं. २५०.,
पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, १३४४४-४५).
अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:९२५८. अभिधानचिन्तामणीनाममाला, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. ५८-१(५७)=५७, जैदेना.,प्र.वि. ६ कांड,प्र.ले.श्लो. (१४१)
यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६x११, १३४३८-४३). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ
नमः. ९२५९. ऋषिदत्ता चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ढाल-४०, गा.५२१,, ग्रं. ८५०., (२६४११,
११४३१-३७).
ऋषिदत्तासती रास, आ. जयवन्तसूरि, मागु., पद्य, वि. १६४३, आदिः उदय अधिक दिन दिन; अंतिः दिन दिन आस. ९२६०. श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., ले.स्थल. कृष्णगढपुर, प्र.वि. ४प्रस्ताव, ग्रंथ रचना के
समीपवर्ती काल मे लिखित, प्र.ले.श्लो. (३१९) जब लग मेरु थिर रहे; (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६४११,
१४४४२-४५).
श्रीपाल चरित्र, मु. जयकीर्ति-शिष्य, सं., गद्य, वि. १८६८, आदिः प्रणम्य सिद्धचक्रं; अंतिः सद्गुरु प्रसादात्. ९२६१. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८०७, श्रेष्ठ, पृ. १२७, जैदेना., ले.स्थल. पालियादग्रामे, ले.- ऋ.
वणारसी (गुरु ऋ. भागचन्द), पठ.- जोइतो, प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. सर्वग्रं. ७०००,प्र.ले.श्लो.
(१९६) यावन्मेरु धरापीठे, (२५.५४११, ३-७४३६-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि.
कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनइ माहरो; अंतिः उपदेस्यो कह्यो. ९२६२." उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १७६८, श्रेष्ठ, पृ. २७९-२०(६० से ६४,६६ से ८०)+१(१००)=२६०,
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैदेना., ले.स्थल. जैसंघपुर, ले.- गणि रूपविजय, प्र.वि. मूल-गा.५४४., (२६४११.५, ११४३३-३९). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी.
उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु., गद्य, वि. १७१३, आदिः नमस्कार करी नइ; अंतिः संजात इति भद्रं. ९२६३. कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९२, श्रेष्ठ, पृ. १२६, जैदेना., ले.स्थल. मेउ ग्राम, ले.- ऋ. रहीया (गुरु ऋ.
मेघजी), प्र.वि. आंशिक व्याख्यान है. मूल-९-व्याख्यान., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४११, २-५४३४-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि.
कल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानं जिनं; अंतिः भलइ गुरूक्त जणाविउ. ९२६७. अइमुत्तामुनि रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- ऋ. वच्छराज, पठ.- साध्वीजी लीला, प्र.वि. गा.१३५,
(२५.५४११, १५४४०-४२).
अइमुत्तामुनि रास, मु. नारायण, मागु., पद्य, वि. १६८३, आदिः वीरजिणन्द नमु सदा; अंतिः जपइ धरी मनि उल्लास. ९२६८.” कर्मग्रन्थ (१ से ६) सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २७८-१(१)=२७७, पे. ६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित,
(२५४१०.५, १५४४५). पे.-१.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. -२अ-३०आ, पूर्ण
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य(संपूर्ण), आदि: #; अंतिः बालावबोधिनी., पे.वि.
मूल-गा.६०. प्रथम पत्र नहीं है. पे..२. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. ३०आ-४८आ, संपूर्ण
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः वीरं बोधिनिधं धीरं; अंतिः लिखिता
लोकवार्तया., पे.वि. मूल-गा.३४. पे.-३.पे. नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. ४८आ-५८अ, संपूर्ण
बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः सर्वशर्मप्रदं नत्वा; अंतिः परोपकृतिहेतवे.,
पे.वि. मूल-गा.२५. पे.४.पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. ५८अ-९१अ, संपूर्ण
षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जिय; अंति: देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य शिरसा वीरं; अंतिः परोपकृतिहेतवे.,
पे.वि. मूल-गा.८६. पे.५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. ९१आ-१८३अ, संपूर्ण
शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः दृष्ट्वा येन भृशं; अंतिः कृतं गम्यार्थपद्धतिः.,
पे.वि. मूल-गा.१००. प्रतिलेखक की गलती से पत्रांक अव्यवस्थित है. पे.६. पे. नाम. सप्तति नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. १८३अ-२६७अ, संपूर्ण
सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः अभिनम्य जगद्वीरं; अंतिः कृतं गम्यार्थपद्धतिः.,
पे.वि. मूल-गा.९२. प्रतिलेखक की गलती से पत्रांक अव्यवस्थित है. ९२६९. विद्याविलास चौपाई, पूर्ण, वि. १८२०, श्रेष्ठ, पृ. ३१-१(२)=३०, जैदेना., ले.स्थल. बालोतरा, प्र.वि. ढाल-३०,
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
४१९
(२६.५४१०.५, १२-१५४३५-४०). विद्याविलास चौपाई, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७११, आदिः सरसति नित आपो सुमति; अंतिः तीस ढाल सुख
पायाजी. ९२७०." काव्यकल्पलतिका वृत्ति- मकरन्द नाम्नी, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६-१(४७)=६५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित,
प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२६.५४११, १५४५१-५३). कविशिक्षा-मकरन्दवृत्ति, गणि शुभविजय, सं., गद्य, वि. १६६५, आदिः श्रीमद्घोषवतीविभूषित; अंतिः ते सहस्रमिता
इत्यादि. ९२७१. स्यादिशब्दसमुच्चय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६६५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- गणि भुवनकीर्ति (गुरु गणि ज्ञाननन्दि,
खरतरगच्छ), प्र.वि. मूल-४ उल्लास., पंचपाठ, (२६.५४११, ७-११४४३-६०). स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीशारदां हृदि; अंतिः स्यादिशब्दानां.
स्यादिशब्दसमुच्चय-दीपिका अवचूरि, आ. अमरचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीशारदामित्यादि; अंतिः शब्दोल्लासश्चतुर्थः. ९२७३. नामलिङ्गानुशासन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय-८., पंचपाठ, पदच्छेद
सूचक लकीरें, (२८x११, २८४६०-९०). हैमलिङ्गानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पुल्लिङ्गं कटणथपभमयर; अंतिः
सङ्ख्यं च तद्बहुलं.
हैमलिङ्गानुशासन-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः नामेति वक्ष्यमाणमिह; अंतिः कालापकमित्यादिसिद्धं. ९२७४." जम्बूद्वीपप्रज्ञाप्ति सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७८३, जीर्ण, पृ. ३८९-६(२४७ से २५१,३४४)+३(६,१८०,२०४)=३८६, जैदेना.,
ले.स्थल. अनहल्लपुरपाटण, ले.- मु. मानसिङ्घ (गुरु ऋ. लीलाधरजी), पठ.- ऋ. वखतसिंह (गुरु मु. मानसिङ्घ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-७ वक्षस्कार, ग्रं. ४१४६; टबार्थ-ग्रं. १५०००., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित
टबार्थादि, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६x११, ५४३३-३९). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १७७०, (संपूर्ण), आदिः माहरो नमस्कार; अंतिः जम्बू प्रति कहे
९२७५.” मुनिपति चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले.- ऋ.
चतुरचन्द्र(गुजरातीलुङ्कागच्), प्र.वि. मूल-गा.६४६., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१०.५, ७५७-७०). मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदि: नमिउण वद्धमाणं चउव्व; अंतिः रम्यं हरिभद्दसूरिहिं.
मुनिपति चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य परमानन्द; अंतिः हरिभद्रसूरीश्वरे. ९२७६." उपाशकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०, पदच्छेद सूचक लकीरें, पंचपाठ,
(२६४११, ९x४०-४३).
उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. ९२७७. सूर्यप्रज्ञप्ति वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५४, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अष्टादश प्राभृत प्रारंभ तक है.,
(२६४११, १५४५४-६१).
सूर्यप्रज्ञप्ति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः यथास्थितं जगत्; अंति:९२७८. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, श्रेष्ठ, पृ. ४२४+१(३७३)=४२५, जैदेना., प्र.वि. मूल-१९अध्ययन, ग्रं.
६०००. प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. उभय-१८०००., (२६४११.५, ५४४०-४२). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः जाव सम्पत्तेणं. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः टबार्थ सम्पूर्णम्.
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४२०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९२८०.” सारस्वतप्रक्रीया सह टीका - प्रथम वृत्ति, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८१, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पंचपाठ,
पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. तद्धित प्रक्रिया प्रथम वृत्ति है., (२६४१०.५, २-६x४४-४६). सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि:-; अंति:
सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः सरस्वती सदाभक्त; अंति:९२८१. उपासकदशाङ्गसूत्र, अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र,अनुत्तरौपपातिकदशासूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. ३,
जैदेना.,प्र.वि. ग्रं.ग्रं.१३००., (२६४११, १७४५५-५६). पे.-१. उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १११७, (पृ. १अ-१६अ), आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; ___ अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे. पे..२. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, (पृ. १६अ-२१आ), आदिः अथान्तकृतदशासु किमपि; ___ अंतिः ननु विधीयतां सर्वतः. पे.-३. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, (पृ. २१आ-२३अ), आदिः
अथानुत्तरौपपातिकदशा; अंतिः अन्तकृद्दशाङ्गवदिति. ९२८२. ठाणाङ्गसूत्र सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३९-५(४३५ से ४३८,४३१)=४३४, जैदेना., प्र.वि. मूल-१०स्थान;
प्र.पु.-मूल-ग्रं. ३७५०; टीका-१०स्थान; प्र.पु.-टीका-ग्रं. १४५००., त्रिपाठ, (२५४११, ९-१६x४४-५०). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः मङ्खलिपुत्तस्सतवेतेए.
स्थानाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः श्रीवीरं जिननाथं; अंतिः टीकाल्पधियोपि गम्या. ९२८३. प्रद्युम्न चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०१, जैदेना.,प्र.वि. सर्ग-१६, (२६४११, १९x४४-४६).
प्रद्युम्न चरित्र, मु. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५३३, आदिः श्रीमन्तं सन्मतिं; अंतिः श्रीसर्वज्ञ प्रसादतः. ९२८४. राम चरित्र, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. १५५, जैदेना., ले.स्थल. राधनपुर,प्र.वि. सर्ग-१०,प्र.ले.श्लो. (५३३) मङ्गलं
लेखकानां च; (६०५) भग्न पुष्टि कट ग्रिवा; (२१) जिहां ध्रु सायर चंद रवि, (२६४११.५, १३४४२-४४).
राम चरित्र, गणि देवविजय, सं., पद्य, वि. १६५२, आदिः अथ श्रीसुव्रतस्वामि; अंतिः विणिग्गया वाणी. ९२८५.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४३-४(२०७,२१० से २१२)=२३९, जैदेना.,
प्र.वि. प्रारंभ के कुछेक मूलपाठ का टबार्थ नही दिया है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच-बीच व
अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४१०.५, ५४२६-२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः-; अंति:
कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः नाणं पञ्चविहं; अंति:९२८६. उपदेशमाला सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १५५८, श्रेष्ठ, पृ. ९२-४(४ से ५,७.९)=८८, जैदेना.,प्र.वि. प्रारंभमे संपूर्ण मूलपाठ और
बादमे मात्र प्रतिकपाठ दीया है., (२७.५४११, १३-१४४४४). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, गणि सिद्धर्षि, सं., गद्य, वि. १०वी, आदिः हेयोपादेयार्थोपदेश; अंतिः साधनपरः खलु
जीवलोकः. ९२८७. श्रेणिकराजा रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-४; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ८१०, (२६.५४११, ११४२३
४३). श्रेणिकराजा रास, आ. सोमविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १६०३, आदिः सकल ऋद्धि मङ्गलकरण; अंतिः मङ्गल
जयकार. ९२८८. अभिधानचिन्तामणीनाममाला, संपूर्ण, वि. १८०८, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., ले.स्थल. पोरबंदर, ले.- ऋ. मयाचन्द, प्र.वि.
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
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६ कांड, (२८.५x१०.५, १२-१३४५०-५३).
अभिधानचिन्तामणि नाममाला आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः अंतिः रोषोक्तायु नती
7
नमः.
९२८९.” जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ५२., दशा वि. विवर्णपानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, फफुंदग्रस्त, ( २६११, ११४३९-४०).
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण- बालावबोध *, मागु., गद्य, आदिः भुवनत्रिभुवनतणु दीव; अंतिः माहिथी उद्धरिउ.
(+)
९२९०. प्रीयमेलक चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना, प्र. वि. दाल ११ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६११,
१३४५०-५४१.
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प्रियमेलक चीपाई दानाधिकारे उपा. समयसुन्दर गणि मागु, पद्य वि. १६७२ आदि प्रणमुं सद्गुरु पाय अंतिः पुण्य अधिक परमोद.
·
४२१
९२९१.” कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका व टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३८, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., ( २६४११, ६४३३-३९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति:
कल्पसूत्र - कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति:कल्पसूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते काल चउथा आरारूप; अंतिः
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उवदंसे त्ति बेमि कल्पसूत्र - अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: अत्राध्ययने त्र्यं; अंतिः स्याष्टमध्ययनं .
९२९२. तेजसारकुमार रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७२, जैदेना., ले.- ऋ. हीराचन्द (गुरु ऋ. वृद्धिरामजी), प्र.ले.पु.
मध्यम. प्र. वि. ढाल १०९. प्र. ले. श्लो. (१४१) यादर्श पुस्तकं कृत्वा, ( २६४११, १३४४०-४२).
तेजसारकुमार रास. मु. रामचन्द, मागु पद्य वि. १८०८ आदिः स्वस्ति श्रीचन्दगुरु अतिः सिद्धि वञ्छित वरे
९२९३. कल्पसूत्र सह अवचूर्णि संपूर्ण वि. १६२९. श्रेष्ठ, पृ. ८०, जैवेना. ले. स्थल. सारंगपुर, प्र. वि. मूल ९ व्याख्यान..
पंचपाठ, ( २६११, ९x३३-३५) .
९२९४. भगवतीसूत्र पूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३७५, जैवेना. प्र. वि. ४१शतक, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. मूल ग्रन्थ संपूर्ण है
परंतु मूल संबंधी परिमाणगाथा वाला पत्र नहीं है., ( २६.५X११.५, १-८x४०-५२).
भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः भावेमाणे विहरति
९२९५.' जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १७३४, श्रेष्ठ, पृ. ३७५-६ ( १३, २६० से २६४ ) + १ (१४८) = ३७०, जैदेना., ले. स्थल. कोटडी, गच्छा. आ. सिङ्घराजजीआचार्य प्र. वि. मूल-७ वक्षस्कार ग्रं. ४१४६, पदच्छेद सुचक लकीरें प्रारंभिक
,
पत्र, संशोधित, त्रिपाठ, ( २६४११, १३४४३-४६)
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६३९, आदि: जीयात् तेजस्त्रिभुवन; अंतिः समुल्लासविस्मयमानपदं.
९२९६. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. ६०, जैदेना., ले. स्थल. गौडल, ले. ऋ. रवजी (गुरु ऋ. खीमचन्दजी), पठ. - ऋ. जेठा (गुरु ऋ. रवजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. खंड-३, ( २६.५×११.५, ९×३२-३३).
रत्नपालरत्नावती रास- दानाधिकारे, मु. सुरविजय, मागु पद्य वि. १७३२ आदि रीषभाविक जिनवर नमुं अंतिः वयों
जयजयकार रे.
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९२९७. करावन्ना चौपाई, संपूर्ण वि. १८०९, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना. ले. स्थल, धोराजी ले ऋ भुधर (गुरु ऋ. जसराजजी),
"
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
पठ.- ऋ. कर्मसी (गुरु ऋ. भुधर); ऋ. मुलजी (गुरु ऋ. भुधर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ढाल - ३१, प्र. पु. -मूल-ढाल३१, सर्वगा ५९७ (२६४११.५, १७९५२-५४)
कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः धरम करण मन उलसै छै. ९२९८. समैसारनाटक का अनुवाद, संपूर्ण, वि. १७३३, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., ले. स्थल. इदलपुर, ले. ऋ. मनोहरदास (गुरु ऋ. दामाजी), प्र. वि. गा. ७२१, ( २६ ११.५, १६x४८-५२).
समयसार नाटक- पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर अंतिः नाममइ परमारथ विरतन्त.
"
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९२९९. शान्तिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. १५१, जैदेना., ले. स्थल. अजीमगंज, ले. पं. राजसौभाष्य (गुरु मु. मुनेन्द्रसोभाग्य, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ६ प्रस्ताव: प्र. पु. -मूल-ग्रं. ६५००, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, ( २६.५X१२, १६x४१-४४).
शान्तिनाथ चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि सं., गद्य वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः अंतिः स करोतु शान्तिः
९३००." कल्पसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १९७-१ (१) १९६, जैदेना. प्र. वि. पीठिका बार्थयुक्त लिखी है. पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. (२५.५४११.५, ५-७४३८-३९).
कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंतिः
कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः ते काल चउथो आरो; अंति:
(+)
९३०१. उपदेशमाला सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण वि. १७७५, श्रेष्ठ, पृ. १३३+१(४८) १३४, पे. २. जैवेना. ले. स्थल. ओडपाड, ले. - पं. भाणविजय (गुरु पं. न्यायविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६×११.५, १५x४४-४९).
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पे. १. पे. नाम. उपदेशमाला सह टबार्थ + कथा, पृ. १आ - १३३अ
उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी.
,
उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु., गद्य, वि. १७१३, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं अंतिः एहवी वाणी
कीधी छे.. पे.वि. मूल-गा. ५४४.
पे. २. जैन श्लोक सं. पद्य (पृ. १३३अ १३३अ), आदि: #, अंतिः #
"
"
"
,
९३०२. जीवविचार सह वृत्ति, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३ - १ ( १ ) = १२, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ५१. पू. वि. गा. ४ तक नही है.,
(२६४१२, १३४३३-३८).
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-: अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ.
जीवविचार प्रकरण-सुबोधिनीटीका, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८५०, आदि: अंतिः वृत्तिकाम्
९३०३. जीवविचार सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८२५ श्रेष्ठ, पृ. ९. जैदेना ले. स्थल नागोर, ले. पं. नायक विजय पठ
श्राविका वखतुबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ५१ (२५४१२५ १२४३४-३९).
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण अतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मागु., गद्य, आदिः स्वर्ग मृत्यु पाताल; अंतिः जे समुद्र तेह थकी.
९३०४. गुणावली चौपाई, संपूर्ण वि. १८२३ श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. ले. स्थल, मोरबी ले ॠ मयाचन्द, पठ- मु. वर्द्धमान,
"
.
,
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-
प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - २९, ( २६.५x१२, १८५२-५४).
गुणावलि चौपाई, गणि गजकुशल, मागु., पद्य, वि. १७१४, आदिः सकल मनोरथ पूरवे; अंतिः नितनित सुख आणन्दा. ९३०५.” सङ्ग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. २२७ तक है., ( २६१२, १०x२७-३२).
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहन्ताई अंति
९३०६. नर्मदासुन्दरी कथा संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४९ जैवेना. ले. स्थल भाणवड, ले. ॠ माण्डण (गुरु ॠ वन्तजी),
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४२३
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-६३, (२६.५४११.५, १४-१६x४७-४९). नर्मदासुन्दरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः प्रभुचरणाम्बुजरजतणी; अंति: मोहन
वचन विलास जी. ९३०७.” उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८०१, श्रेष्ठ, पृ. १७०, जैदेना., ले.स्थल. पाल्हणपुर, ले.- मु. मयाचन्द्र,
प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-३६अध्ययन; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २०६४. टीका-परिमाण अज्ञात प्र.पु.-टीका-ग्रं. ९२४३., (२६४११, ६-१७४४२-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि.
उत्तराध्ययनसूत्र-सुगमार्थ टीका, वा. अभयकुशल, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य परया भक्त्या; अंतिः सुधर्मा जम्बूं प्रति. ९३०८. सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रुतस्कंध-१ तक है.,
(२६४१२, ४४३७-४१). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति:
सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:९३०९. सुरसुन्दरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. नगर, ले.- ऋ. गुलाबचन्द्र, प्र.वि. अध्याय-४,
(२६४१२, १६x४२-४८).
सुरसुन्दरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मागु., पद्य, वि. १७३६, आदिः सासण जेहनउ सलहियइ; अंतिः आनंद लील उमंगेजी. ९३१०. हंसराजवच्छराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., ले.स्थल. बालाभा, ले.- ऋ. माण्डण (गुरु ऋ.
वन्तजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. खण्ड-४, (२६.५४१२, १३४३४-३६). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदिसर आदे; अंतिः हंस अनै वच्छराज. ९३११. श्रीपालनरेन्द्र कथा सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१३४२ प्र.पु.-मूल-ग्रं. १५५०.
प्र.पु.-अवचूर्णि-ग्रं. ३०२२., (२७ १२.५, ५४४०-४१)... सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः अरिहाइ नवपयाइं; अंति: वाइज्जन्ता कहा एसा.
सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरी, मु. हेमचन्द्र, सं., गद्य, आदिः अर्हदादि नवपदानि; अंतिः नंदतु समृद्धि लभताम्. ९३१२. श्रेणिक रास, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-४, गा.५०४, (२६४१२.५, १६x४४-४९).
श्रेणिकराजा चौपाई, ऋ. नारायण, मागु., पद्य, वि. १६८४, आदि:-; अंतिः भावि भणज्यो शुभ मति. ९३१३. श्रीपाल रास खण्ड १,२,३, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-गा.८४५., (२६.५४१३, १३४३०-३१).
श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी;
अंति:९३१४. प्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
(२५.५४११.५, ३-१२४३६-४०). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः णमो अरहंताणं०; अंति:श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारूटीका का बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः हवे पञ्चपरमेष्ठी; अंति:
|| इति श्री कैलासश्रुतसागरे हस्तप्रतविभागे जैनसाहित्ये द्वितीयः खंडः ||
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परिशिष्ट: कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या विद्वानों की मांग तथा उपयोगिता को दृष्टि में रख कर कैलास श्रुतसागर- जैन हस्तलिखित साहित्य के द्वितीय खंड से सूची के अंत में दो परिशिष्टांतर्गत कृति परिवार अनुसार हस्तप्रतों की अनुक्रम संख्या प्रकाशित की जा रही है.
परिशिष्ट- १ में संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं के कृति परिवार अनुसार प्रत क्रमांक दिए गए हैं. परिवार की मुख्य कृति की भाषा के अनुसार पूरा परिवार इस परिशिष्ट में समाविष्ट कर लिया गया है. पुत्र-प्रपौत्रादि के देशी भाषाओं में होने पर यहीं सम्मिलित कर लिया गया है. ध्यान रहे कि ऐसी कृतियों को परिशिष्ट-२ में पुनः सम्मिलित नहीं किया गया है. इसी तरह एकाधिक भाषा वाली कृतियों में संस्कृत आदि व देशी भाषा दोनों हों वैसी कृतियाँ मात्र इस परिशिष्ट में सम्मिलित की गई है.
परिशिष्ट-२ में मात्र देशी भाषाओं वाली मूल कृति परिवार अनुसार प्रत क्रमांक दिए गए हैं. प्रस्तुत द्वितीय खंड में यह प्रथम व द्वितीय दोनों खंडों की संयुक्त दी जा रही है. इसमें ५५८५ तक के प्रत क्रमांक प्रथम खंड के हैं व शेष क्रमांक प्रस्तुत द्वितीय खंड के हैं. • इस परिशिष्ट में अकारादि क्रम से कृति परिवार को क्रमशः मूल व मूल के ऊपर रचित उसकी संतति स्वरूप कृतियों को प्रथम स्तर- पिता, द्वितीय स्तर पुत्र, तृतीय स्तर पौत्र, चतुर्थ स्तर प्रपौत्र, इत्यादि सदस्य के रूप में प्रकाशित किया जा
रहा है. • प्रथम स्तर के बाद के प्रत्येक स्तर का सूचक अंक (२), (३) इत्यादि कृति नाम के प्रारम्भ में ही दे दिया गया है. यथा
कल्पसूत्र (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका (३) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका का टबार्थ • कृतियाँ परिवारानुसार दी गई हैं. यथा लोगस्स, शक्रस्तव, चैत्यवन्दन, प्रतिक्रमण, पच्चक्खाण आदि स्वतन्त्र तत्-तत् अक्षर
पर न मिलकर आवश्यकसूत्र के परिवार के रूप में मिलेंगे. • कृति को उसके पर्याय नामों से भी खोजें. यथा- नमस्कार हेतु नवकार, पंचपरमेष्ठि; नवपद हेतु सिद्धचक्र आदि. • सामान्य पद, सज्झाय, लघुकाव्यों आदि को औपदेशिक एवं आध्यात्मिक इन नामों से अभिहित कर बाद में विषयानुसार
नामाभिधान करने का प्रयत्न किया गया है. • कृति नाम में यदि कोई संख्यावाचक शब्द है तो एकरूपता लाने के लिए वह संख्या शक्य हद तक अंकों में ही लिखी गई हैं. इससे अष्टकर्म व आठकर्म की जगह ८ कर्म लिखा होने से वे अलग-अलग न मिलकर एक ही जगह मिलेंगे. जहाँ तक हो सका है, संख्याओं को नाम के प्रारम्भ में ही ले लिया गया है. प्रत व पेटांक नाम के रूप में कृति के प्रतिलेखक द्वारा प्रत में उल्लिखित नाम को ही रखकर कृति नाम के रूप में कृति का यथार्थ नाम रखने का नियम अपनाया गया है. इस वजह से प्रत, पेटांक नाम व उसके नीचे आने वाली कृति नाम में उल्लेखनीय फर्क मिल सकता है. यथाप्रत नाम - बारसासूत्र
कृति नाम - कल्पसूत्र • जिन कृतियों के अंत में प्रत क्रमांक की जगह <प्रतहीन> ऐसा लिखा हो वहाँ यह समझना होगा कि प्रस्तुत कृति मात्र उसके
नीचे और पुत्रादि का संबंध बताने हेतु ही है. • नामों में विशेषण अंत में दिए गए हैं ताकि मूल नामों में एकरूपता बनी रहे. यथा- २४ अनागत जिन स्तवन के स्थान पर
२४ जिन स्तवन-अनागत लिखा गया है. इसी तरह शंखेश्वरमंडन पार्श्व जिनस्तवन की जगह पार्श्व जिनस्तवन
शंखेश्वरमंडन दिया गया है. . प्रत की अपूर्णता आदि कारणों से जिन कृतियों के आदिवाक्य नहीं मिल सके हैं, वहाँ आदिवाक्य में (-) ऐसा दिया गया है. • छोटे परिमाणवाली मारूगुर्जर भाषा की कृतियों में क्वचित् वास्तव में राजस्थानी, गुजराती तथा प्राचीन हिन्दी भाषा होने की
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संभावना हो सकती है.
• संभावित अप्रकाशित कृतियों का नाम (आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की कम्प्यूटर आधारित सूचना प्रणाली में अब तक उपलब्ध माहिती के अनुसार ) italics में मुद्रित किया गया है. यथा- अजितशांति स्तव-बोधदीपिका टीका. चूंकि अनेक प्रकाशनों की विस्तृत सूचना अभी भी कम्प्यूटर में प्रविष्ट करनी बाकी है एवं ज्यादातर प्रविष्ट कृतिगत सूचनाओं का अंतिम पुष्टिकरण भी बाकी है - इत्यादि अनेक कारणों से कुछ एक प्रकाशित कृतियाँ भी सम्भवतया अप्रकाशित के रूप में यहाँ आ गई हैं. खासकर लघु कृतियों हेतु यह सम्भावना अधिक है. अतः कृपया इसे एक संकेत मात्र के ही रूप में देखा जाय. क्वचित् ऐसा भी प्राप्त हुआ है कि एक ही कृति के लिए भिन्न-भिन्न कर्ताओं के नाम मिले हैं. कृति का प्रायः सब कुछ एक समान होते हुए भी मात्र रचना प्रशस्ति में फर्क मिलता है. अतः कर्ता नाम अंतिमरूप से तय करना दुष्कर हो ऐसी स्थिति में सामान्यतः प्रत्येक कर्ता के अनुसार उस कृति की स्वतंत्र प्रविष्टियाँ दी गई हैं.
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• अनेक कृतियों के एकाधिक प्रचलितनाम भी मिलते हैं, इनमें से यहाँ व सूचीपत्र में कद बढ़ने के भय से मात्र एक मुख्य नाम ही दिया गया है. यथा- बारसासूत्र के लिए कल्पसूत्र ही दिया गया है..
• इसी प्रकार कृतियों के सामान्य व विशेष फर्क के साथ एकाधिक आदिवाक्य भी मिलते हैं. इनमें से यहाँ मात्र एक ही आदिवाक्य दिया गया है. जबकि सूचीपत्र में तो तत् तत् प्रतगत प्रथम व क्वचित् द्वितीय स्तर के आदिवाक्य दिए गए हैं. जो कि सम्भवतः यहाँ दिए गए आदिवाक्य से न भी मेल खाते हों. ऐसा ज्यादातर टबार्थ व बालावबोधों में पाया गया है. कृति के आदिवाक्य के पहले कृति का मूल स्रोत चिह्नित करने हेतु मूपू., स्था., ते., दि., जै., वै., बौ. इन संकेतों का प्रयोग क्रमशः जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक, जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन श्वेताम्बर तेरापंथी, जैन दिगंबर जैन, वैदिक, बौद्ध के लिए किया गया है. जहाँ पर ये संकेत नहीं हैं वे सामान्य कृतियाँ हैं. इन संकेतों को यथोपलब्ध सूचनाओं के आधार पर दिया गया है तथा इनकी अंतिम रूप से पुष्टि होनी बाकी है..
• वाचकों की सुविधा एवं उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए कृति के साथ दिए हुए प्रत क्रमांक क्रमशः प्रत की शुद्धि आदि महत्ता, संपूर्णता, दशा, अपूर्णता व अशुद्धि की वरीयता से दिए गए हैं. शुद्धता सूचक निशानी (1) वाले प्रत क्रमांकों को सर्वाधिक महत्व दिया गया है, उसके बाद संपूर्ण, पूर्ण व प्रतिपूर्ण प्रतों को तथा अंत में निशानी वाले प्रत क्रमांकों को
रखा गया है. अतः प्रत क्रमांक अपने स्वाभाविक अनुक्रम से नहीं मिलेंगे.
कृति के सामने हस्तप्रत का पहचान स्वरूप प्रत क्रमांक तथा यदि प्रत में एकाधिक कृतियाँ हैं तो प्रस्तुत कृति प्रत में किस क्रमांक की पेटाकृति है, वह पेटांक भी दिया गया है. यथा प्रत क्रमांक १०२०७ के तीसरे पेटांक में महावीरजिन स्तवन है. इसका क्रमांक इस प्रकार लिखा गया है- १०२०७-३.
• प्रत संशोधित होने, टिप्पणक आदि से युक्त होने व कर्ता के स्वहस्ताक्षर से लिखित होने पर प्रत की महत्ता को बताने के लिए प्रत क्रमांक के बाद (+) का चिह्न लगाया गया है. यथा ९१३१(+)
• प्रत दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ वाली होने पर प्रत क्रमांक के बाद () का चिह्न लगाया गया है. यथा ५६९९.
• प्रत में प्रस्तुत कृति अपूर्ण, त्रुटक या प्रतिअपूर्ण होने पर प्रत क्रमांक के बाद (8) का चिह्न दे दिया गया है. यथा ६३८९(७). • कट, फट जाने आदि के कारण नष्ट हुई प्रत व पाठ की निम्नोक्त अवदशाओं की जानकारी कराने के लिए प्रत क्रमांक के अंत में (# ) का चिह्न लगाया गया है. यथा- ५६२२. ऐसे संकेत होने पर प्रत के साथ अग्रलिखित दशा सम्बन्धी सम्भावनाएँ हो सकती हैं, जिनका यथेष्ट विवरण सम्बन्धित प्रत विशेष में देखने को मिलेगा. यथा- (१) मूल पाठ का अंश नष्ट हो गया है. (२) टीकादि का अंश नष्ट है. (३) मूल व टीका का अंश नष्ट है. (४) टिप्पणक का अंश नष्ट है. (५) अक्षर फीके पड़ गये हैं. (६) अक्षर मिट गये हैं. (७) अक्षर पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. (८) अक्षर की स्याही फेल गई है. (९) पत्र नष्ट होने लगे हैं. (१०) पत्र नष्ट हो गये हैं इत्यादि.
हस्तप्रत सूची के अंदर संबंधित प्रत क्रमांक के प्रत दशा' नामक शीर्षक में ये विवरण देखे जा सकते हैं.
• प्रत में प्रस्तुत कृति यदि प्रतिपूर्ण है तो प्रत क्रमांक टेढ़े Italic अंकों में दिखाए गए हैं. यथा- ५८१६.
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट
३३०
२)
४ दुर्लभता गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (चत्तारि पर) ५०५३-२ | (नमस्कार हो) २२६५(+#$) ४ निक्षेप विचार, प्रा.,मागु., पद्य, जै., (नाम निक्षे) ६०२२-२(१) | ८ प्रकारी पूजा चैत्यवन्दन, सं., श्लोक ९, पद्य, मूपू., ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., अध्याय ९, पद्य, मूपू., (करकण्डू कल) | (विमलकेवलभा) ९४८-९, ८६२५-२, ८९५०-२७) ९१३१, ३३०, ५७०६
८ प्रकारी पूजा विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, सं.,मागु., वि. १७४३, (२) ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (करकण्डू) गद्य, मूपू., (प्रथम हुन) ६०३३-२
८ प्रकारी लघुपूजा, सं., प+ग, मूपू., (सुपर्वसिन) ३११५-३(5) ४ रत्न गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, म्पू., (जीवदया जिण) ७६७१-२, ८ लब्धि, सं., गद्य, जै., (अणिमा महिम) १६२५-२५० ५२६४-२(5)
१० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मागु., ग्रं.११३, पद्य, मूपू., (उवसग्ग (२) ४ रत्न गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जीवनी दया) ५२६४- | गब) १९९९-१, ६९६३(७)
१० कल्पवृक्षनाम गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, जै., (ते सिमत्तङ) ६ काय जीव विवरण, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (पहिली प्रथ) ५३७२- ८५४३-२,७९३०-२
(२) १० कल्पवृक्षनाम गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (मितगनामा) ६ दर्शन विचार, सं., पद्य, जै., (जीवो नास्त) ७२५७-३(४६)
८५४३-२,७९३०-२ ६ दर्शन विचार, सं., श्लोक ६६, पद्य, मूपू., (जैनं मैमास) १० प्रत्याख्याननाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूप., (नवकार २२३५-२६), १८५-२, २७८८
पोरस) ७५४४-३७६) (२) ६ दर्शन विचार-अर्थ, मागु.. गद्य, जै., (जिन मिमासि) २७८८ | १० लक्षणतप कथा, सं., श्लोक ३९, पद्य, दि., (सन्मतिं जि) ६ द्रव्यपरिणाम विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (परिणामि जी) । | ६००२-६६) १४०३-२
१० लक्षण पूजा विधि, पण्डित भावशर्म, सं., पद्य, जै., (वार्भिर्वा) ७ निह्नव गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (बहुयर जमाल) ६०२२
५०७९-२(+)
१० लक्षणव्रत कथा, सं., श्लोक ७३, पद्य, दि., (क्षमादिदशध) (२) ७ निह्नव गाथा-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (क्रमालि चौ)
६००२-२४(+) ६०२२-७+#)
१० सङ्केतपच्चक्खाण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (अमुट्ठ) ७ व्यसन काव्य, सं., श्लोक १, पद्य, जै., (धुताद्रा) ९१६९-३ ७५४४-३९७) ७ समुद्घात, प्रा.,मागु., गा. २, पद्य, मूपू.. (वेयण कसाय) १० समाचारी गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पडिलेहणा) ८२४०
१५७३-६ ८ कर्म स्थिति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीवो संवर) ७५५१-११) | १२ व्रतउच्चारण विधि, प्रा., गद्य, जै., (सम्यक्त्वद) ६०६२-११० ८ कर्मस्थिति विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, जै., (नाणे दंसणा) १२ व्रत विधि, प्रा., पद्य, मूपू., (अहं भन्ते) ३९८६ २९२९-२(+)
(२) १२ व्रत विधि-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (अथ हिवइ हे) ८ दान कथा, सं., गद्य, मूपू., (वसही सयणास) ७५६०१२)
३९८६ ८ निह्नव वर्णन, सं., पद्य, मूपू., (-) १९७०(45)
१३ काठिया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (आलस मोह अव) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचन्द्र, सं.,मागु., वि. १७२४, पद्य, मूपू., ८९४६-२(+) (गङ्गा मागध) २७३४, ८४३६-२, ८१६९
१३ दुर्लभगुण श्लोक, सं., श्लोक १, पद्य, जै., (मानुष्यंकर) ८ प्रकारी पूजा, मु. भागचन्द, प्राहि.,सं., वि. १८१६, प+ग, मूपू.,
४६४७-२ (प्रथम न्हव) ७४६८-२(5)
१५ सिद्धभेद गाथा सङ्ग्रह, प्रा., गा.६, पद्य, मूपू., ८ प्रकारीपूजा कथा सङ्ग्रह, प्रा., ८ कथा, ग्रं.१२००, पद्य, मूपू., (भवियजणविहि) १४८६-२ (पणमह तं ना) ६५२४(+), २२६५(+#5)
१६ कारण व्रतकथा, सं., श्लोक १२८, पद्य, दि., (प्रणम्य) (२) ८ प्रकारीपूजा कथा सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.,
६००२-२७)
७)
२
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१६ सती स्तुति, सं., श्लोक १, परा, मूपू (ब्राह्मी) १५६७-२. ५८२७-७०, ४०८०-३१) ६०१८-४
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
१६ कारण व्रतकथा, सं., श्लोक ४१, पद्य, दि., (वर्द्धमानं ) ६००२-६४/
"
१६ विद्यादेवी मन्त्र, सं., गद्य, मुपु (रोहिणी प्र) ६२४९-१५११ १६ शृङ्गार नाम, सं., श्लोक १, पद्य, (आदौ मज्जनं) २२२३g(+#$)
(२) १६ सती स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., (ब्राह्मी) ४०८०-२(M) १६ स्वप्न विचार, प्रा., गा. ४४, पद्य, मुपू., ( उप्पायविगम) ५०४२9(+)
(२) १६ स्वप्न विचार-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (उप्पन्नेवा) ५०४२9(+)
"
१८ अक्षरी नमिऊणवीज मन्त्र, सं., गद्य, जै. (ॐ नमिऊण) ६२०९-१८
१८ अभिषेक विधि, आ. भावप्रभसूरि, मागु., सं., गद्य, मूपू., (सुवर्ण सहि) ८८६७-१(+)
१८ भार वनस्पति मान, सं., मागु., गद्य, जै., (-) ४१८७-२(+) २० स्थानकतप उच्चारणविधि, सं., प्रा., मागु., गद्य, मूप्पू., (प्रथम इरिय ) ६०५०-१
२० स्थानकतप विधि, सं., पद्य, मूप्पू., ( ॐ नमो अरि) ६०५०-६ २० स्थानक नाम, प्रा., पद्य, जै., (अरि १ सि) ४८०५-४ २१ प्रकार के पानी, प्रा., गा. २, पद्य, मुपू., (उस्सेयम सं) ५२६४
(२) २१ प्रकार के पानी-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (पीठानो धवण) ५२६४-३(३)
२१ प्रकारी पूजा, उपा. चारित्रनन्दि, सं., मागु., वि. १८९५, पद्य, मृपू. (श्रीजिनवर ) ३९१४
२१ प्रकारी पूजा, गणि शिवचन्द्र, मागु., सं., वि. १८७८, पद्य, मृपू.. (महगल हरिच) ६०६३-३
२३ लब्धि विचार, मु. देव, प्रा. गा. २१, पद्य, जै.. (गड़गावत्तस)
(+#)
६०२२-६
२४ जिन चैत्यवन्दन, सं., श्लोक १०, पद्य, मूपू., ( जिनर्षभप्र ) ६०५३-१३(+), ६०४२-२१ (8)
२४ जिन चैत्यवन्दन, सं., प्रा., श्लोक २९, पत्र, मृपू. (सुवर्णवर्ण)
"
१४१३-२
२४ जिन नाम से गद्य, भूपू.
अजित) १५६८-२
२४ जिन नामगर्भित मङ्गलाष्टक, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लोक ९. पद्य मृपू. ( नतसुरेन्द) २३३७-८ ९४८-१० १११७-१४
"
"
२४ जिन पञ्चकल्याणक तिथि व जाप, सं., गद्य, मुपू., (कारतिक वदि) ७३८०-१० (8)
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४२७
"
२४ जिन पूजा, सं., गद्य, दि., (विघ्नौघाः) २६६ २४ जिन यक्ष नाम सं., गद्य, भूपू., (गौमुख यक्ष) ६२७९-१६१) २४ जिन यक्षिणी नाम से गद्य, मृपू., (चक्रेश्वरी) ६२०२-१७का २४ जिन राशिनक्षत्र, सं., गद्य, मृपू., (नक्षत्र यो) ६०५०-५ २४ निव्रत कथा - त्रिकालवर्ती, सं., श्लोक २४, पद्य, दि., (प्रणम्य) ६००२-१६)
२४ जिनव्रत कथा-त्रिकालवर्ती, कवि अग्रदेव, सं., श्लोक ७६. पद्य, दि. (स्मृत्वा ) ६००२-४२१
२४ जिन स्तवन, श्रा. भूपाल, सं., श्लोक २६, पद्य, मूपू., (श्रीलीलायत) २५९-५का
२४ जिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मुपू., (पणमह मरुदे) ७५४४3&($)
"
२४ जिन स्तुति, अप. गा. २. पद्य, मूप्पू (भरहेसर कार) २६२६१७(+), १७९४-१३(+#), ५४९०-१३, ५८२७-१२, १७९१-१६ (# ), 98819-9918
.
२४ जिन स्तुति आ जिनकुशलसूरि, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू.. (नामेयाजितव) १४८५-२४४ १७९९-६ ५४९०-३५, १७९११("), १४८७-१६(३), ७५४४-९($)
२४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लोक २९, ग्रं.४४, वि.
१६५२, पद्य, मूपू., (ऋषभनम्रसुर) २७० (+), ९४८-११, ६२४२-५ (२) २४ जिन स्तुति-टीका, गणि कनककुशल, सं. वि. १६५२. गद्य, मूपू., ( प्रणम्य पर) २७० (+)
"
२४ जिन स्तुति- महाप्रभाविक यन्त्र गर्मित, आ. जिनदत्तसूरि, सं.. श्लोक ८, पद्य, मृपू., (सुवर्णवर्ण) ५८२७-७७
२४ जिन स्तोत्र, सं., श्लोक ५, पद्य, मुपू., (श्रीआदिनाथ) ६०९६दाश
२४ जिन स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू., (आदी नेमिजि) २३३७-१११ १८१४-२ ६०५९-० ५६९९२(8)
२४ दण्डक विचार, सं., प्रा., मागु, गद्य, जै, (अहं परमेश) ६००१
२४ दण्डक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., ( रुचितरुचिम) २६२६-२२१) १४८५-४०१२. १७९४-१८००), ५४९०-२३, १७९१-२९ ५४८९-३० ६०५१-४ ७५४४૨૯
२४ माण्डला, प्रा., गद्य, मृपू., (६ हाथ १) ६०५०-४, ७७८०-९ (S) २४ स्थानक प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, जै., ( गइ इन्दिय )
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६४३१-२
२४ स्थानक यन्त्र*, प्रा., मागु., कोष्टक, मुपू., (-) २८५१, ५०३०
३४ अतिशय स्तवन से श्लोक २८, पद्य, भूपु (स्वस्ति)
"
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४२८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
२११८)
८२३१)
९०४३(5)
(२) अजितशान्ति स्तव-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., (२) ३४ अतिशय स्तवन-स्वोपज्ञ वृत्ति, सं., गद्य, मूपू..
ग्रं.४५०, गद्य, मूपू., (अजितनामा) १५८२(5) (मनोज्ञमार) २११८(4)
(२) अजितशान्ति स्तव-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (अजितनाथ ५१ ज्ञान गुण, सं.,मागु.. गद्य, मूपू., (श्रीश्रोत) ५७२०-३
जी) १७७१, ५०८४, १६२६, १५६३ ५८ बोल सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (नाणेम जाणइ) (२) अजितशान्ति स्तव-छन्द सङ्ग्रह, प्रा., गद्य, मूपू.,
६०३८+5), ३३३४-१, ४६८२, ६००३, ६०७६, ८६७१, २५३७(45), (नेयमेत्तात) ५९२०-३ ४२६०(६), ४४३२), ७१३२(5), ७२०२(5), ७३४७६), ७६९६(६), (२) अजितशान्ति स्तवन, उपा. मेरुनन्दन, मागु., गा. ३२, वि.
१५वी, पद्य, मूपू.. (मङ्गल कमला) १७८८-१(45) ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., श्लोक ११, पद्य, वै., (ॐ दीव्य) ६५१२- | अजितशान्ति स्तवबृहत्-अञ्चलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं.,
श्लोक १७, पद्य, मूपू., (सकलसुखनिवह) १७९६-७ अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (स्वस्ति) ९४६, ४२९०-२, अजितशान्ति स्तवलघु-अञ्चलगच्छीय, कवि वीर गणि, प्रा., गा. ४३२१, ६२७०-२(5)
८, पद्य, मूपू., (गब्मअवयार) १७९६-६ अक्षयतृतीया व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं.७०, गद्य, मूपू., | अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., १६अधिकार, श्लोक (प्रणिपत्य) ६०८५-५(48)
२७२, पद्य, मूपू., (जयश्रीरान) २२८(+), ३६५४(+), ४१३६(+) अक्षयनिधितप कथा, सं., श्लोक ६२, पद्य, दि., (श्रीमते वर) ५३८१९), ८५३२(+), २८३९(+), ९०६(+5), ३९५६, ३९९७,
६००२-५०(4) अक्षौहिणीसैन्य मान, सं., श्लोक १, पद्य, जै.. (दशलक्षदन्त) (२) अध्यात्मकल्पद्रुम-अधिरोहिणी वृत्ति, उपा. धनविजय, सं., ६०७३-६
गद्य, मूपू., (ॐ नमः परम) २२८(+) अगडदत्त चरियं, गणि देवेन्द्र, प्रा., ग्रं.३२८, ईस. ११वी, गद्य, (३) अध्यात्मकल्पद्रुम-अधिरोहिणी टीका की टिप्पणी, उपा. (अस्थि जए)-<प्रतहीन.>
धनविजय, सं., गद्य, मूपू., (अथायं श्री) ९०६+5) (२) अगडदत्त चरियं-बालावबोध, आ. शान्तिसूरि, मागु., गद्य, | (२) अध्यात्मकल्पद्रुम-अध्यात्मकल्पलता टीका, उपा. रत्नचन्द्र, मूपू.. (सङ्खपुरनगर) ६०५८-१
सं., अध्याय १६, ग्रं.२४५९, वि. १६७४, गद्य, मूपू.. (प्रणत अङ्गचूलिका प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो सुय०) ९१५५, सुरा) ३६५४(+)
(२) अध्यात्मकल्पद्रुम-बालावबोध, मु. हंसरत्न, मागु., गद्य, मूपू.. अङ्गविद्या, ऋ. नारद मुनि, सं., श्लोक १८, पद्य, (अङ्गविद्या) | (श्रीशोश) ५३८१), ८५३२(+), ३९५६, ३९९७ १११८-२
(२) अध्यात्मकल्पद्रुम-स्तबक, मागु., गद्य, मूपू., (नत्वार्हत) अगुलसप्ततिका, आ. मुनिचन्द्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू... ९०४३(5) (उसभसमगमणमु) ६०४४-१(+)
(२) अध्यात्मकल्पद्रुम-शान्तरसवर्णन, मागु., ग्रं.१८५०, गद्य, मूपू., (२) अङ्गुलसप्ततिका-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (उ०
(अहो भव्य) ७७५, २२९४ । ऋषभदेव) ४२९९
अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका, मु. हर्षवर्द्धन, सं., श्लोक ३२, पद्य, अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., मूपू., (ब्रूमः किम) ५१४३(+), ५०२६
(अजियं जिय) २०९३६), २९२०(+), ३०७१), ४४५२-२(+), (२) अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका-स्वोपज्ञ व्याख्या, मु. हर्षवर्द्धन, सं., ५१९८(+). ६३३७-५(+), १५८२(45), ७२६१-२(45), १७७१, २०९७- गद्य, मूपू.. (वयमध्यात्म) ५१४३(+), ५०२६ २, २५०३-४, ५०८४, ५९२०-२, ६२०२-१, ७५६६, ८४०७-१, अध्यात्ममतपरीक्षा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., गा. १८४, १६२६, १७९६-१, १५६३, ५४४२-६, ५५-२७), ६०१९-३०.. पद्य, मूपू., (पणमिय पासज) ५३०७ ६९५९-१९७), ६४७८-१(5)
(२) अध्यात्ममतपरीक्षा-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, (२) अजितशान्ति स्तव-बोधदीपिकाटीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., सं., गद्य, मूपू., (ऐंकारकलितर) ५३०७
ग्रं.७४०, वि. १३६५, गद्य, मूपू., (अजितशान्ति) ७५६६ | (२) अध्यात्ममतपरीक्षा-छाया, सं., श्लोक १८४, पद्य, मूपू.. (२) अजितशान्ति स्तव-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (अजिअं (प्रणम्य पा) ५३०७ अजित) ५१९८)
अनन्तकीर्ति कथा, सं., गद्य, मूपू., (परदार विरत) ८८२३(45),
९१७४
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्याय ३३, नं. १२२. प+ग, मृपू. (ते काले) १६११) ४४५५ण ५९४९१च ६४१५का ६६८४ईना २०५८का १६१० (क) १२१३/०१ ४४९९ (+), १२५४, १३०७, १६०९, ४०६६, ४२९४, ४४४२, ५३५०, ५६०९, २७१४, १०७६, ३०३१, २०४२ (M), ६८४४ (#S), २७४रामा ७१५७ ७१६४८
(२) अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि सं., वि. १२वी गद्य, मृपू. (अथानुतरी) १६११(+), ९२८१-३, ६५९
"
3
(२) अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र- टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथ) ४४५५(+), ५९४९(+), ६४१५(+), ६६८४(+), २०५८) ९२१३ ४०६६ ४२९४ ४४४२, ५३५०. ५६०९. १०७६. २०४२१ ६८४४२७४२७१५७१६४ अनुबन्धफल, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक १०, पद्य, मूपू., (उच्चारणेस) २२३९-२ (+) अनुयोगद्वारसूत्र आ. आर्यरक्षित, प्रा., गा. १६०४, प+ग, मूपू., (नाणं पञ्चव) ४४०६ (+), ४५१२(+), २०८१(+#), २२५५ (+), २०७० ५२४० ५४५०, ७३४३. ००६२५७३४२ (७०३६)
8
(२) अनुयोगद्वारसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, जै., (ना० ज्ञान) ७०६मा ७१७५
(२) अनुयोगद्वारसूत्र - टबार्थ, मु. धर्मसिंह, मागु., गद्य, मृपू., (वन्दितु जि) ४४०६
(२) अनुयोगद्वारसूत्रे- पञ्चभाव विचार, मागु, गद्य, मृपू.. (उदयभाव उपश) ६२१०
"
अनुयोग विधि, सं., प्रा., मागु, पद्य, भूपू ( वसतिशोधन ) ४७०२ अनुयोग विधि, मागु., प्रा., सं., गद्य, मूपू., (मुहपत्ती) ६०२१-७ अनेकान्तजयपताका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अध्याय ६, ग्रं. ३७५०, गद्य भूपू (जयति विनिर) १७२-१
"
अनेकान्तनयचक्र सं श्लोक ७७, परा, जै. (एकमन्त्र पुर)
१८६१-२
"
"
अनेकान्तनयचकसं गद्य जै. (चिदानन्द) १८६१-१ अनेकान्तवादप्रवेश, आ. हरिभद्रसूरि, सं. ७३० प+ग, मृपू.. ( जयति विनिर) १०४८ (+) अनेकार्थध्वनिमञ्जरी, सं., ३ अधिकार, पद्य, मूपू., ( शुद्धवर्णम) १५९र्शन ६४०० का ४०२० ७०९५शि अनेकार्थनाममाला, जैनकवि धनञ्जय, सं., श्लोक ४६, पद्य, दि., ( गम्भीरं रु) ४४७९अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. अध्याय ९२, ४.८९९.
"
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गद्य, मृपू. (तेण कालेन) १२८) १०९५) १२०९-११) १६१३% ५४५२/ २०६३ ११ ९०६५/० ६६८८१) ५१७४९ ५१५० (+), ५३३३ (+), ६८५८(+), ९१२४ (+), १५८९, २१९९, ४१७४, ४१७६, ५४२१, ५६३५, ५७२४, १४३८, २६७७, ५३१९. २६०८ ६९६८ ७०३९
1
J
(२) अन्तकृदशाङ्गसूत्र- टीका आ. अभयदेवसूरि सं. गद्य, मूपू., (अथान्तकृतद) ५४२१, ९२८१-२ ६५९-२ (8)
(२) अन्तकृदशाङ्गसूत्र - टिप्पण, मागु, गद्य, मृपु (-) ९१२४३ (२) अन्तकृदशाङ्गसूत्र- दवार्थ माग गद्य, मुपू. ( अन्तगड शब ) १२८) १२०९-११) १६१२१९ ९०६५९ ६६८८का ११७७१ ५३३३ (+), २१९९, ४१७६, ५७२४, १४३८, ५३१९. २६०८(#) (२) अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टवार्थ, मागु, गद्य, भूपू (प्रणम्य ) ४५७४, ५६३५, २६७७ अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक ३२, पद्य, मूपू., (अनन्तविज्ञ ) १५८ (+), ८८२७(+), ७७६(+), ९१०६(+$)
(२) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका स्याद्वाद्द्मञ्जरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., शक. १२१४, गद्य, मूपू., (यस्य ज्ञान ) १५८(+), ८८२७(+), ७७६ (+) (+$) ९१०६ अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ६ कांड, ग्रं.१४५२, पद्य, मूपू., ( प्रणिपत्या) ४७३ (+), ४७९(+), ३३६३(+), ५१८५(+), ५१८६-१ (+), ४७० (+), १४८५५४(+), ५६२४(+), १४४०(+), ५७६(+), ४१३१(+), २२४८ (+#), १२६८ला ९२५ ३२३५/म्म २२२६०० २०३९) २७०६(+#$), १११४-१(+$), ४६७ (+), ४७५ (+), की मादुनिया ७४८ (+$) १९३२ (+$), २२८४(+$), ५१७० (+$) ६९९३०६१७४४८६ ९१५८ाला ७४९-१निक १२३१-८२६४/०१ ६२३६ ६३८२ (+), ६४८२ (+), ४७४, ४८०, ३४३३, ३६७३, ७६२५, ९२८८, ९२५८, ७४७, ३८५२-१), १३४३ () १९२२ (क), १६३२ (६), २८९४(s), ३६३२(S), ४३२३ (३), ६५०९(s), ६५५२($), ६९७८ ७३४८१क) ३४९१ाकी ५५०९१मा ६४४०१
(२) अभिधानचिन्तामणि नाममाला - स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२१६, गद्य,
मृपू. (धर्मतीर्थक) ४७०) ६९९३-४१ ७४४८ ७४७. ७३४८ ३४९११
.
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"
४२९
(२) अभिधानचिन्तामणि नाममाला - अवचूरि, मु. साधुरत्न, स.. गद्य, मूपू., (सिद्धं प्र ) ५१८५ (+), २७०६) (२) अभिधानचिन्तामणि नाममाला-बीजक, गणि शुभविजय, मागु..
ग्रं. १०५०, गद्य, मृपू., ( प्रणम्य ) ४५४९ (+)
(२) अनेकार्य सङ्ग्रह, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं...
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४३०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ अध्याय ६+१, श्लोक १९३१, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (ध्यात्वार) | दि., (प्रणम्य वी) ६००२-३२(+) ३८५२-२()
आगमिक ग्रन्थकर्ता के नाम, सं., गद्य, जै., (अङ्गानि सु) (२) अभिधानचिन्तामणि नाममाला-शेषनाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि | ६८०६-५
कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक २०४, पद्य, मूपू.. (प्रणिपत्या) आगमिकपाठ सङ्ग्रह, सं.,प्रा., गद्य, मूपू., (कप्पइ निग) ७४९-२६+६), ८२८५(६)
६३९२(45), ६३२५(६) अमरसेन वज्रसेन कथा, सं., गद्य, मूपू., (दानं सुपात) ५४२४, आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मागु., गद्य, जै., (तेणं ५९४५
कालेण) ४६९१-५५०, ४७४१६+7, ५२१४ अम्बड चरित्र, आ. मुनिरत्नसूरि, सं., ७ आदेश, श्लोक १२२०, आचारदिनकर , आ. वर्द्धमानसूरि, सं., ३६ उदय, प+ग, मूपू.. ग्रं.१११६, पद्य, मूपू., (धर्मात् सम) ७१०६(७)
(तत्त्वज्ञा) २४१(+), ७३६(+), ५४४६, ७४२८ अरिहन्तवाणी के पैंतीसगुण, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (संस्कारत्व) आचारप्रदीप, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., ५ प्रकाश, ग्रं.४०६५, वि. ४६९१-८)
१५१६, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ७८३(+), १०३४, ४३८८(5) अर्हद्गीता, उपा. मेघविजय, सं., अध्याय ३६, वि. १८वी, पद्य, आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., २५अध्ययन, ग्रं.२६४४, मूपू., (सरस्वती सद) २११(+)
प+ग, मूपू., (सुयं मे आउ) १३४८(+), २६९२(+), ४१८४(+), अर्हदेवमहाभिषेक विधि, श्रा. आशाधर, सं., पद्य, दि., (णमो ४५९३(+), ४६३२(+), २४१९५५), ६६१५), १२०(१), ३३६०), अरिहन) ६०१०+)
४८८२(+), ५२८५(+).७५९९), ८२०९(+), १३६१+#5), ४६६१(45), अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, वा. देवविजय, सं., १० शतक, वि. २६३३(+5), ३०८०(45), २९७८(45), २९२४(+5). ५५०४, ६४६, १६५८, पद्य, मूपू., (प्रणम्य मग) २७४(+)
१२५, २९२३, ८२७१, ६२३४६), ४५६३(७), ६९१३(७), ७३३६(5) (२) अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय-स्वोपज्ञ सुबोधिका वृत्ति, वा. (२) आचाराङ्गसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ३४६,
देवविजय, सं., वि. १६९८, गद्य, मूपू., (श्रीसुपार) २७४(+) पद्य, मूपू., (वन्दितु सव) ६४६, २६१४ अशुभलेश्यात्रिक रथ, प्रा., गा. २, प+ग, मूपू., (जो किन्न) (३) आचाराङ्गसूत्र-नियुक्ति की टीका# , आ. शीलाङ्काचार्य, ७५३९-१४, ७५३९-१५
सं., वि. ९१८ , गद्य, मूपू., (तत्र वन्दि) २६३३+5), ६४६, अष्टकप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ३२ अष्टक, पद्य, मूपू.,
७४३९ (यस्य सङ्क) ८८३-५), ८८३-६(4), २३०५(५), १८९(+) (२) आचाराङ्गसूत्र-टीका# , आ. शीलाङ्काचार्य, सं., (२) अष्टकप्रकरण-वृत्ति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., ग्रं.३३७०, वि. ग्रं.१२०००, वि. ९१८ , गद्य, मूपू., (जयति समस्त) २६३३(45), १०८०, गद्य, मूपू., (इह हि सुग) ८८३-६(+), १८९(+)
६४६, ७४३९ अष्टप्रवचनमाता कथा सङ्ग्रह, सं., पद्य, जै., (साधुभिः) ४६९५९) | (२) आचाराङ्गसूत्र-विषमपद पर्याय टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., अष्टलक्षी, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., वि. १६४६, गद्य, मूपू., (जयतीति स्क) ३४७२-८(+) (श्रीसूर्यः) ८२६३(5)
(२) आचाराङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., वि. अष्टापदतीर्थ चैत्यवन्दन, सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुञ) १८वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ८२०९(+), १२५
(२) आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., ग्रं.३००१, गद्य, मूपू., (नत्वा अष्टापदतीर्थ स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (वासवस्तुतप) श्री) ४८८२(+) १७९१-२८)
(२) आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतराग) अष्टाह्निकाधुराख्यान, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा १२०+). ३३६०(+, ५२८५(4). २९७८+5), ४६६१(45), ४५६३६६), गुरु) ५०३६
७३३६(5) (२) अष्टाह्निकाधुराख्यान-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नत्वा केहे) (२) आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, ऋ. धर्मसी, मागु., ग्रं.१२५५४, गद्य, ५०३६
मूपू., (भगवन्त श्र) ७५९९(+), ८२२७१ अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, आचारोपदेश, गणि चारित्रसुन्दर, सं., ६वर्ग, पद्य, मूपू.,
गद्य, मूपू., (शान्तीशं) १८३४(+), ५३७३(+), ६०८४-२(+), (चिदानन्दस) २७२९(+)
७६९१(+), ३८१७+5). ६८५६(45), ५३२२, ६१०७, ८५२५ (२) आचारोपदेश-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ज्ञान अने) २७२९(+) आकाशपञ्चमीव्रत फल, पण्डित अभ्र, सं., श्लोक १०३, पद्य, आचार्य प्रतिष्ठा विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (अथ आचार्यप)
५६९९-१(-)
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२६)
७२५७-२(45)
२७४)
४२()
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-
१
४ ३१ ८९११-३(5)
आदिजिन स्तवन, वा. विनयविजय, सं., श्लोक ७, पद्य, मूपू., आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., गा. ३०, पद्य, (अरहन्ता मङ)- (श्रीमरुदेव) ६०८१-३ <प्रतहीन.>
आदिजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (आनन्दानम्र) ६०४१(२) पञ्चमङ्गलपाठ, प्रा., गा. ८, पद्य, जै., (अरिहन्त मङ) १३१८-२
आदिजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (ऋषभनाथ भना) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, प+ग, २६२६-२४५), १७९४-२०+१), ५४९०-२५, ५८२७-१८, ६०११-२५ मूपू., (देसिक्कदेस) ३६२८, ६४७६
आदिजिन स्तुति, सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू., (जय जय जगदा) आत्मनिन्दाष्टक, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू., (कट्यां चोल)
२६२६-४७), ५४९०-६१, ५४८९-३७६)
आदिजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (नगरकोट्टनग) आत्मप्रतिबोध, सं., श्लोक ४२, पद्य, जै., (महतामपि अभ) ४९९७ | १४८५-४५) (२) आत्मप्रतिबोध-टबार्थ, मागु., गद्य, जै.. (मोटा जे दा) ४९९७ आदिजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (प्रणतसुरास) १७९१आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., ४प्रकाश, वि. १८३३, प+ग, मूपू., (अनन्तविज्ञ) १८१+), १८८(+), ७७४४(+)
आदिजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (युगादिपुरु) २६२६(२) आत्मप्रबोध-बीजक, सं., गद्य, मूपू., (तत्राद्य) ७७४४(4)
२५(+), १४८५-१९(+), १७९४-२१+#), २९९७-१५(45), १३३६-२, आत्मानुशासन, गणि पार्श्वनाग, सं., श्लोक ७७, वि. १०४२, पद्य, ५४९०-२६, ५८२७-१९, ६०११-२४, ६४६०-८, ६६२२-३, मूपू.. (सकल त्रि) ८५२१ ।।
७५४१-२७, १७९१-८(१), १४८७-२४६), ५४८९-२६०, ६०५१आत्मावबोध कुलक, आ. जयशेखरसूरि', प्रा., गा. ४३, पद्य, ८). ७५४४-१९६३) मूपू., (धम्मप्पहार) ३१८४,७८९५, ४२२६-२(#)
आदिजिन स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू.. (श्रियं दिश) ५४८९(२) आत्मावबोध कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (धर्मनी प्र) ७८९५
आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमण्डन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (२) आत्मावबोध कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (धर्मप्पह) (वरमुक्तियह) २६२६-१६), १४८५-३४(+), १७९४-१२+#), ३१८४
२९९७-१२(+5), १७९९-७+5), ५४९०-१२, ५८२७-११, ६०११-३०, आदिजिन चैत्यवन्दन, सं., श्लोक ४, , मूपू., (सुवर्णवर्ण) ६२०९- २३३६-२०, १७९१-६(), १४८७-१०६), ५४८९-२७६), ७५४४
4(5) आदिजिन चैत्यवन्दन, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू., (जयादिनाथ) आदिजिन स्तुति-चतुर्थी तिथि, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., ५६९९-७-)
(उद्यत्सारं) ३९७३-२, ७५४१-८, ६०४१-२३(७) आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,मागु., गा. १९, पद्य, मूपू.. आदिजिन स्तोत्र, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू., (जय वृषभजिन) (विणयनयरी) २७६३-२
८५६२-२ आदिजिन जन्माभिषेक कलश, अप., १६ काव्य, पद्य, मूपू., आदिजिन स्तोत्र, सं., श्लोक ११, पद्य, मूपू., (जयानन्दलक) (मुक्तालङ्क) २०८३(4)
६२६९-५ (२) आदिजिन जन्माभिषेक कलश-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (पूर्व | आदित्यवारव्रत कथा, सं., श्लोक ३९, पद्य, दि., (प्रणम्य) ६००२
दिसइ) २०८३(+) आदिजिन नमस्कार, सं., श्लोक ३, पद्य, मूपू.. (वन्दे देवा) आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., गा. ८८, पद्य, मूपू., (संसारे नत) ५४९०-४९, ५८२७-४३, ५४८९-५३(७)
३८७८-३६), ५६७५९), ६३०५(+), ७५८८), ७२८०+६), ४२१३, आदिजिन नमस्कार, सं., श्लोक १८, पद्य, मूपू., (श्रियं दिश) ७००७, ८८७२-३ ४७००-४
(२) आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (संसारमाहि) आदिजिन स्तव-देउलामण्डण, मु. शुभसुन्दर, प्रा., गा. २४, पद्य, | ३८७८-३), ५६७५९), ६३०५(+), ७२८०(45), ७००७, ८८७२-३ मूपू., (जय सुरअसुर) ६६१०
। (२) आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, उपा. समललाभ, मागु., गद्य, (२) आदिजिन स्तव-देउलामण्डण-मन्त्राम्नाय अवचूरि, सं.,मागु., | जै., (वीरं प्रणम) ७५८८(१) गद्य, मूपू., (कियदनुभूतम) ६६१०
आनन्दादि दशश्रावक नाम, प्रा.,मागु., गा.२, पद्य, मूपू.,
१६)
३३)
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४३२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ (आणन्दे १) १८६६-२
४(45), १३४७-२, ७४८६(45), ७१२४६७), ८१८७-२(5), २४७८-२(१), (२) आनन्दादि दशश्रावक नाम-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (आणन्द २६९१६), २४८९(5) श्रा) १८६६-२
(३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., गा. २५३, पद्य, मूपू.. आनन्दादि दशश्रावक नामादिविवरण यन्त्र, प्रा.,मागु., कोष्टक, (अवरविदेहे) ३४८७+), ७१५९), २५५३(5), ३४२०(+5). __ जै., (-) ४६६५-२(+)
३४२१(+5), ८९२३(45), २६९१(६), २४८९६) । आप्तमीमांसा, आ. समन्तभद्र, सं., श्लोक ११५, पद्य, दि., | (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की लघुटीका#, आ. (देवागमनभोय) ३७५८(+#5)
तिलकाचार्य, सं., गद्य, मूपू., (-) ७१५९५). २५५३+३), (२) आप्तमीमांसा-अष्टशतीभाष्य, आ. अकलङ्कदेव(दि.), सं., ८९२३(45), २६९१(६), २४८९(5) ग्रं.८००, गद्य, (उद्दीपीकृत)-<प्रतहीन.>
(४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की दीपिका टीका#, आ. (३) आप्तमीमांसा-अष्टशतीभाष्य की अष्टसहस्रीटीका, आ. ___ माणिक्यशेखरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (-) २६७९(4)
विद्यानन्दस्वामी, सं., ग्रं.८०००, गद्य, दि., (श्रीवर्द्ध) ३७५८(+#5) | (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, आयुर्वेदसार सङ्ग्रह, सं., पद्य, मूपू., (स्वस्ति) ६८२८-२(१)
सं., गद्य, मूपू., (-) ३४२०(45), ३४२१(+६) आयुर्वेदसार सङ्ग्रह, मु. मानजी, सं., गद्य, मूपू., (-) ४८७८(5) (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की अवचूर्णि# , गणि आयुष्य विचार, प्रा., पद्य, मूपू.. (मणुआण वीसो) ११५१-२
धीरसुन्दर, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (अपरविदेहे) ३४८७१) आरम्भसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., ५ विमर्श, ग्रं.४६०, वि. (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की लघुटीका#, आ. तिलकाचार्य, सं., १३वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमः सकल) ४९८४-१(4)
वि. १२९६, गद्य, मूपू., (-) ७१५(4), २५५३(+5), २६९१(६), आराधनापताका, प्रा., गा. ९३२, ग्रं.१०७०, पद्य, मूपू., (सम्म
२४८९(5) नरिन) ५१५५
(३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की दीपिका टीका#, आ. आराधनापताका प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., गा. ९९०, पद्य, माणिक्यशेखरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (-) २६७९(+) मूपू.. (नियसुचरियग) ३२६३
(३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका#, आ. आराधना वार्ता, प्रा.,मागु., पद्य, जै., (नमो अरिहन) १७३-२(+) हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं.२२०००, गद्य, मूपू., (-) ३४२०(45), आरामशोभा कथा, प्रा., पद्य, जै., (-) ९१६७४+६) आरामशोभा कथानक, सं., गद्य, मूपू., (सद्धर्ममूल) ४१५९ (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की अवचूर्णि#, गणि धीरसुन्दर, सं., आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., गद्य, दि.. (गुणानां वि) ६१२१- वि. १५वी, गद्य, मूपू., (परमेष्ठिनः) ३४८७(+)
(३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा सामायिकअध्ययन नियुक्ति, आलोचना, सं., गद्य, मूपू., (बालालोचनाय) ३२७४-३
आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प्रथमअध्ययन, पद्य, मूपू.. आलोयणा प्रकरण, प्रा., गद्य, मूपू., (-) २६४६
(आभिणिबोहिय) ७१७(+), ७१८(+), ७१९(5) आलोयणा रथ, प्रा.,मागु., गा. १, प+ग, मूपू., (आलोयणा परि) (४) विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., प्रथम ७५३९-१८
अध्ययन, गा. ३६०३, पद्य, मूपू., (कयपवयणप्पण) ७१७+7, आलोयणा रथ, प्रा.,मागु., गा. १, प+ग, मूपू., (कय चउसरणो) ७१८(+), ७१९६६) ७५३९-४
(५) विशेषावश्यकभाष्य-शिष्यहिता बृहट्टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि आलोयणा विचार, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण) ५६७९- मलधारि, सं., ग्रं.२८०००, वि. १२वी, गद्य, पू., (श्रीसिद्धा)
७१८(+), ७१९(६) आवश्यकसूत्र, प्रा., ६ अध्ययन, सूत्र १०५, प+ग, मूपू., (णमो (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा सामायिकअध्ययन की
अरहंता) ३७६३(१), ४३३९(१), ७१५+, ३७१७), २५५३(45), छाया, सं., वि. २१वी, पद्य, मूपू., (कृतप्रवचनप) ७१९७) ३४२१(45), ४०९४+६), ७५२०, ७८४१-१, ८४६८-१, ४६७९, (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा पीठिका, आ. ५५०५(६), ७४३१(६), ९३१४(5), २४८९९६) ।
भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ८१, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहिय) (२) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०,
८००७ ग्रं.३१००, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहिय) ३४८७(+), ७१५(+), (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा पीठिका का बालावबोध, २५५३+६), ३४२०+६), ३४२१(+६), ७२६२(+$), ८९२३(45), २४५२- गणि संवेगदेव, मागु., वि. १५१५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ८००७
३४२१(+9)
२)
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८७५६+६)
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४३३ (२) आवश्यकसूत्र-दीपिका टीका#, आ. माणिक्यशेखरसूरि, सं., | (२) आवश्यकसूत्र-कथा सङ्ग्रह, सं., पद्य, मूपू., (अन्तरङ्गार)
ग्रं.११७१०, वि. १४०१, गद्य, मूपू., (नत्वा श्री) २६७९(+) (२) आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति#, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं.१२३२५, | (२) आवश्यकसूत्र-कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, मूपू., (नवकार इक्क) वि. १२९६, गद्य, मूपू.. (देवः श्रीन) ७१५९), २५५३६+६),
४६८०) ८९२३(+$), २६९१६), २४८९(६)
(२) अतिचार विवरण, सं., गद्य, मूपू., (ननु कथं बन) ३११८-२ (२) आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., (२) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहन) ग्रं.२२०००, गद्य, मूपू.. (प्रणिपत्य) ३४२१(45)
८८१९), ७७४०, ८२४१(६), ८१२४(६), ८७४८(5) (२) आवश्यकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (ग्रन्थारम) ८४६८-२ ।। | (३) षडावश्यकसूत्र-वृत्ति , सं., गद्य, मूपू., (-) ८८८६+६), (२) आवश्यकसूत्र-विषमपद पर्याय टिप्पण, सं., गद्य, मूपू.,
८१२४(5) (जिनेत्यादि) ३४७२-२(+)
(३) षडावश्यकसूत्र-टबार्थ+बालावबोध, मु. जिनविजय, मागु., वि. (२) आवश्यकसूत्र-बालावबोध , मागु., गद्य, मूपू., (नमो अ० इत) १७५१, गद्य, मूपू.. (श्रीजिसविज) ७७४० ७५२०
(३) षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (समोसरणि (२) आवश्यकसूत्र-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू.. (महात्मानी) बइ) ८८१९) ३७१०
(३) षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मु. जिनचन्द्रसूरि-शिष्य, मागु., (२) आवश्यकसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (नमो० नमस्क) गद्य, मूपू.. (सुरासुरनमस) ८७४८७० ४३३९), ७८४१-१
(३) षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (वीतराग१२) (२) चैत्यवन्दनसूत्र, प्रा.,सं., प+ग, मूपू., (नमो अरिहन)
८२४१(६) १४३२(45), ५१२२(5)
(२) क्षेत्रदेवता स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (यस्याः क्ष) (३) चैत्यवन्दनसूत्र-विषमपदपर्यायमञ्जरी वृत्ति, आ.
१११७-१९,७५४४-४(5) अकलङ्कदेवसूरि, सं., गद्य, मूपू., (तं नमो ज्ञ) ६५५४(१) (२) गुरुवन्दनसूत्र-श्वे.मू.पू., प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छा० सन) ४७(३) चैत्यवन्दनसूत्र सङ्ग्रह-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (समणेण सावए) १४३२(45) ।
(३) गुरुवन्दनसूत्र-टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., वि. ११८०, गद्य, (२) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लोक ३, पद्य, मूपू.,
मूपू., (साम्प्रतं) ४७-२(+) (विशाललोचनद) १७८७-७६)
(३) गुरुवन्दनसूत्र-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., वि. (२) लोगस्ससूत्र, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू.. (लोगस्स उज)
१७७३, गद्य, मूपू., (इच्छं क०) ५४-२ २३६१), ४१००)
(२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, (३) लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (चउद राजलोक) मूपू., (नमो अरिहन) १७९२-१(+), ४६१४(4), २४५४-१(+), ४१००)
६४६०-१, २१८१ (३) लोगस्ससूत्र-बालावबोध', मागु.. गद्य, मूपू., (चऊद
(२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-अञ्चलगच्छीय, प्रा.,सं..गुज., राजलोक) २३६१(+)
प+ग, मूपू., (नमो अरिहन) ५९२०-१, २७४९९३) (३) लोगस्ससूत्र-लोगस्सकल्प, सं.,प्रा., गद्य, जै.. (ॐ ह्रीं) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-अञ्चलगच्छीय, प्रा.,सं.,गुज., प+ग, मूपू., ६२७९-१०(+)
(प्रथम सन्ध) ४५५८) (४) लोगस्ससूत्र-लोगस्सकल्प की यन्त्रविधि, सं.,मागु., गद्य, (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, प्रा., प+ग, मूपू.. (णमो मूपू., (ए लोगसनो) ६२७९-१२(4)
अरिहन) २६२६-७४(+), १८४३, ६०११-१, ६०४०, ६१६४, (२) शक्रस्तव, प्रा., पद्य, मूपू., (नमुत्थुणं) ७८४१-२ (३) शक्रस्तव-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हो) ७८४१-२ । (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, मूपू., (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवन्दनसूत्र, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (नमो अरिहन) १२६७-१, ३४६०, ५३७७)
(सकलकुशलवल) ७५५१-२४), ५८२७-६९, ६०४२-९७). (३) पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ, प्रा.,गुज., गद्य, मूपू., ६०५९-१६६७)
(सागरचन्दो) ६०९७-३(६) (२) आवश्यकसूत्र-कथा, मागु., गद्य, मूपू.. (भरतक्षेत्र) ३७१७ (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (करेमि भन्त)
७१७०७)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ ६०२९-२(७), ६०९७-२(5)
(२) प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह', प्रा.,सं.,मागु., प+ग, मूपू., (नमो (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू.. अरिहन) ६८८८(+) (मन्हजिणाणं) २१०६-३(७), ६०२९-३(5) ।
(३) प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., (-) (२) पगामसज्झायसूत्र, प्रा., सूत्र २१, गद्य, मूपू., (करेमि भन्त) ६८८८)
९७३(+), १३०१-१(+), ३२१४-२(+), ४३३६-१(+), ५९८७(+), ६०(+), (२) प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-स्थानकवासी, प्रा., प+ग, स्था., (-) ७६०१-१(+), १७९४-२९+#). २९९७-२६), ३९७५-१(+5), ३४६५, ७२३४+६) ४३१४, ४९४४, ५४१५, ५४४४, ५४४५,
(३) प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह -स्थानकवासी-टबार्थ', मागु., गद्य, ५८२७-३८, ६०११-३, ६८०३, ८५४३-१, ८९०८, ८९२९-१, २०७५- स्था., (-) ७२३४+६)
१, २३४८, ६१४४-१, ७९३०-१, ५६७९-१९७०,७०८६-१(६) (२) प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.', प्रा.,सं.,मागु., प+ग, मूपू., (३) पगामसज्झायसूत्र-लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं.२९६, (नमो अरिहन) २९०४(+), ७५५१-१(+), २२८९(+#), ९७७(45), गद्य, मूपू.. (श्रीवीरजिन) ३२१४-२), ६७३०
१२७६(45), ४९७२६+६), ७२३७+5). १०९८, २२७४, ५८८०-३. (३) पगामसज्झायसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सर्वं नमस) ८९५१-१, ९१९१, १६३०-१, ७८२१-१, २२३०, २५२९(१), ४३१४
५८७७६), ६०५१-१(७), ६०९०-१(६), ७०४०६६), ६०९७-१(६), (३) पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, पू., (निवर्तवा) ७९००-४(5. ८४३३(5), ७११०६६), ८७६५६), २८४५-१) । ९७३, ५४१५, ६८०३, २३४८
(३) प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (३) पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मागु., ग्रं.२४५०, गद्य, मूपू., (हे वीतरागद) २२८९(+), ९७७+5), ७२३७+६), १०९८, २२७४, (प्रतिक्रमण) ५९८७(+)
५८८०-३, ५८७७६), ८४३३(s) (३) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (चार बोल ते) (२) प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वेताम्बर*, प्रा.,सं., प+ग, मूपू., ६०),७६०१-१(+), ४९४४
(नमोअरिहन्त) ३३५८(३) (३) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (वाञ्छउ निव) | (३) प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वेताम्बर-टबार्थ', मागु., गद्य, स्था., ४३३६-१(4)
(अरिहन्तदेव) ३३५८(३ (३) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., (२) प्रत्याख्यानसूत्र, प्रा., पद्य, मूपू.. (उग्गए सुरे) २६२६-६(+), ग्रं.९००उभय, वि. १७४९, गद्य, मूपू., (ऐं नत्वा) ३४६५,
१७९४-२७+#), ११९०-१, १२७९-१, १४९०-१, १८३६-१, ८५४३-१, ८९०८,७९३०-१
२७४६-३, ३१९१-१, ४६००, ५४९०-२, ५८२७-४१, ६०६२-६०, (३) पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू.. (वाञ्छउ ५९४४-१९७), ७०००-७(5), ७५४४-४०६६), १७८७-१०६), ६०२९
निव) १३०१-१६ (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (३) प्रत्याख्यानसूत्र सङ्ग्रह-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू.,
(इच्छाकारेण) ३२६४-३, ५४४२-३, १११७-२०, ८१६६-२(१) (अन्नत्थणाभ) ५९४४-१७) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, प्रा.,मागु., गा. ०३, (३) दश प्रत्याख्यान-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (सुर्योदय) ३१९१-१ पद्य, मूपू., (मुहपत्तिवन) १४१५-३६), ७०८६-३६६)
(३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (सूर्यनइ उद) (२) प्रतिक्रमण आलोयणा, ऋ. अजरामरस्वामी, मागु., गद्य,
२७४६-३ स्था., (प्रथम आत्म) ६३७६
(३) प्रत्याख्यान आगारसङ्ख्या गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (२) प्रतिक्रमणगर्भहेतु, आ. जयचन्द्रसूरि, सं.,प्रा., वि. १५०६, (दो चेव नम) २६२६-२+). ५२५०-५(+), १७९४-२६(#), ७५४४पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ९९७(+)
३८६) (२) प्रतिक्रमणविधि, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रवचन) ४५३६. | (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के पचास बोल, मागु., गद्य, मूपू., ३३३३-३(45)
(तत्त्वदृष) १२७९-२, १८३६-२, ५८२७-९१ (२) प्रतिक्रमण विधिसङ्ग्रह-खरतरगच्छीय, प्रा.,मागु., गद्य, स्पू., । (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, प्रा.,सं..गुज., प+ग, मूपू., (
(पाछिली रात) ६१-७(+), २६२६-६०(+). १८३५, ७७८०-६(5) ) ५०१६) (२) प्रतिक्रमणविधि सङ्ग्रह-तपागच्छीय, गुज.,मागु.,प्रा., गद्य, (३) भरहेसर सज्झाय, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू.. (भरहेसर बाह)
मूपू., (--) १४९०-२, ४२८२-२, ४५२७, ६०२४, ६४६०-२५ २४७६-३(#), ९२३४(६), ४८७७००
१(६)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४३५ (४) भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, गणि शुभशील, सं., २ अधिकार, वि. | ३३१०
१५०९, गद्य, मूपू., (युगादौ व्य) ९१९२(+#5), ७४३२, ९२३४०. | (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अर्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम सकल) ४८७७
३४७७ (५) भरहेसर सज्झाय-टीका का टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (युगने । (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अक्षरार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहन) आदे) ४८७७)
४३२८) (२) लघुप्रतिक्रमणविधि प्राभातिक, मागु., गद्य, मूपू.. (पहिली (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (पहिलं इरिय) ६१-९(+)
सकल) ७३४१-२(+). २९७१(+5), ५२१७(5) (२) लघुप्रतिक्रमणविधि-सन्ध्याकालीन, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम । (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., इरिय) ६१-८(+)
(षडावश्यकसू) ७२९०० (२) वन्दित्तुसूत्र, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू.. (वन्दित्तु) १६५७), (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (अरिहन्तनइ)
१७९२-११), २६२६-६२(+), ७६०१-२(+), ८४६९(+), १७९४- २५०६(+), ७४७२(+), ४८+5), ४५५२+5), ५५३३(45), ६८१४(45), ३१(#). ५८३३(+#), २९९७-३(+5), ४९+5), ७१०७-१(45). २३६७- ५२९२, ७२४३-१, २९५९(१), ११५६(७), ६९२७-२(१), ७३५९(5) १, ५८२७-३९, ६०११-६, ६३९५, ५५२७, ६१४४-२, २०७६), | (३) पञ्चाचार अतिचार गाथा, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (नाणम्मि ६०१९-५७), ६९२७-१९७), ७००१(६)
दं) ५०६२-२ (३) वन्दित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., ५ | (३) श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, गुज., पद्य, मूपू.,
अधिकार, ग्रं.६६४४, वि. १४९६, गद्य, मूपू., (जयति सततोद) (सातलाख पृथ) ४२-२ ४९(45), ५५२७
(४) श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, (३) वन्दित्तुसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (वन्दितु क०)
मूपू., (७ पृथ्वीका) ४२-२ ८४६९(+), १६५७+). ५८३३(+#), ७६०१-२(+), ७१०७-१(45), (३) श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., ६९२७-१९७), ७००१(5)
(नाणंमि दंस) ५६, ४७७९०, १२३४५६, ८८७६), ५७, ५९, (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , प्रा.,मागु., प+ग, मूपू., (नमो अरिहं०) १२३६, १५९१, ३३६२, ४८१५, ४९८२, ५०६२-१, ५७१८-१,
२५०६(+), ३२१४-१(+), ४३२८(+), ७४७२(+), ७३४१-२+#), ६२५०, ६३६७, ८०६४, ९२०५, १००१, १६४४, ६६३४, ८०३७, ४८(45), ४५५२+5), ५५३३(45), २९७१(45), ६८१४+5), ३३१०, २७६५५), ५२०२-२(१), ७१६८-१९४६), ६०१९-४६), ८१६६-१(६), ३४७७, ५२९२, ७२४३-१, ५४४२-४, २९५९(45), ७३२७#5), ७४१४६), १२२४(६), १७२९७), १७३०६), २७५८६६), ६६०६६३०९(5), ११५६(६), ४४८५(६), ५२१७६६), ५८९५(६), ६९२७-२(5), ११), ७२९५७), ८२०६६) ७३५९९७), ६१५९६)
(२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (नमस्कार) मूपू.. (णमो अरिहन) १७३४), ६७८०), १५४३-१(+), ५४९०५८९५(६)
१,७४५५, ७५४४-१(5) (३) श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-बालावबोध, गणि ग्रं.२७२०, गद्य, मूपू., (वृन्दारुव) ३७६३(+), ४०९४(45),
मेरुसुन्दर, मागु., वि. १५२५, गद्य, मूपू., (शिवाय श्री) ८७६३६+६), ४६७९७, ७४३१९३) (४) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारूटीका का बालावबोध, मागु., (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., गद्य, मूपू., (हवे पञ्चपर) ९३१४(5)
(माहरउ नमस) १७३४(+) (४) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका का टबार्थ, मु. देवकुशल, (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति,
मागु., वि. १७६१, गद्य, मूपू., (बालानां सु) ७४३१(5) ___ मागु., गद्य, मूपू., (गुरुनइ अभा) ६७८०(4) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (इह तावत्) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, प्रा., प+ग, मूपू., (नमो ६३०९(5)
अरिहन) ५१), ६२), ३३६७-१(+), ३७५७५), ९०२५(+), (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (इह तावत्) २६५०५). ७१०१+5). १५९०, २७४६-१, ८४७६-१, ८८४९-१, ३२१४-१(+)
८९०७, ९१८२(5), ९१८९६), १५६१(६), ७१२५(5) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अर्थ, मागु., गद्य, मूपू., (अरि कहता) । (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध', मागु., गद्य,
५२७८)
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४३६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ मूपू., (-) ७१०१(45). ७१२५(5)
२६६२-२, ३२६४-२, ३८७२-२, ३९९६-२, ४०१९-२, ४६२५-३, (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मागु., गद्य, ५१००-२, ५३६५-३, ५३७८-२, ५४४२-२, ५५५१-२, ५८२७मूपू., (अरिहन्तनइं) ८८४९-१
८९, ६०११-४, ६१३७-२, ६४३७-२, ८४७०-२, ८९७१-२, (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मु. जिनविजय, १११३-२, ४४१६-२, ५१४४-२, ५५५४-३, १४१५-२, २४७६मागु., ग्रं.८०००उभय, वि. १७५१, गद्य, मूपू., (बार गुणे)
२(१), १८६२-२६*), ३४५०-५(5), ९१७८-२(5),७०८६-२(5), ५१), ३३६७-१(+), ९१८९(5)
७५४४-४१७), ८५९-२(5) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, पं. हेमहंस (४) क्षामणकसूत्र-टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., वि. ११८०, गद्य, गणि, मागु., वि. १५०१, गद्य, मूपू.. (श्रेयांसि) ६२(+),
मूपू.. (ततो यथा रा) ४७-३(4) ३७५७+), १५९०, ५५०५(७)
(४) क्षामणकसूत्र-अवचूरि, मागु., गद्य, मूपू., (अथ पाक्षिक) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., ३९९६-२ (माहरउ नमस) २७४६-१, ९१८२(5)
(४) क्षामणकसूत्र-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., वि. (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तेरापन्थी, प्रा., वि. २०वी, प+ग, तेरा., १७७३, गद्य, मूपू., (इच्छामि क०) ५४-३ (नमो अरिहन) ४४००(+)
(४) क्षामणकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (इच्छु छु) १६९२-२, (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-पायचन्दगच्छीय, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, ३८७२-२, ५३६५-३, ८४७०-२, ९१७८-२७) मूपू., (णमो अरिहन) ४०९३६+६), २०७७
(३) पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, मूपू., (तित्थङ्करे) ४६(+), ४७-१(+), (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-पायचन्दगच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, २६२६-७१(+), २७२८-१(+), २७८९(+), ३१७६-१(+), ३६३९). मूपू.. (श्रीअरिहन) ४०९३(45), २०७७
५३७१-१(+), ५९५८(+), ६२५४(+), ७५६९(+), ८५१२(+), ५३-१(4), (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, प्रा.,मागु., प+ग, स्था., १४८५-४९(+), ७८५७+), ९२२-१(+), १५२८(+१), २३२५-२(+#), (नमो अरिहन) ६५६१), २०७४+३), ७८३७
२९५५(+#s), ३५६२-१(+६), ५२(45), ८२२५(+६), २९५१(+६), ५०, (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मागु., गद्य, स्था., ५४-१, ५८-१, ८१७, १३७८-१, १६९२-१, २३५९, २६६२-१, (नमस्कारहो) ६५६१(+), ७८३७
२७२२, ३२६४-१,३६०२, ३६०६, ३८७२-१,३९९६-१, ४०१९(२) साधुअतिचार सङ्ग्रह', मागु., गद्य, स्था., (-) ५६७९-४(5) १, ४१३८, ४६२५-२, ५१००-१, ५२३७, ५३६५-२, ५३७८-१, (२) साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, प्रा., प+ग, मूपू.,
५४४२-१, ५५५१-१, ५६३३, ५८२७-९७, ५९०१, ६१३७-१, (णमो अरिहन) ६०८४-६(+), ६६२७+5), ६७६८-१, ६०६२-१(5), ६४३७-१, ८०१८, ८४७०-१, ८४७७, ८८३८, ८९७१-१, १११३७०००-१(5)
१, ४४१६-१, ५१४४-१, ५५५४-२, ८०२७, ७८१२, ८४६५, (२) साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-तपागच्छीय, प्रा.,गुज., प+ग, १४१५-१(१), २४७६-१(१), १७७०*). १८६२-१५). ३४५०-४(६),
मूपू., (नमो अरिहन) २७०१(45), ६४९१-१, ५५-१(5), ७२१३(5) ४७७६-३(5), ७१६७६), ७९८३(७), ९१७८-१(5), ९२१२(5), (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, प्रा., प+ग, मूपू., (णमो अरिहन) ६९८४६), ७४५४(६), ११३३(६) ५९९८(+), १०७८, ४२७२, ७८४१-३
(४) पाक्षिकसूत्र-टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., ग्रं.२७००, वि. (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमो० ११८०, गद्य, मूपू., (इहार्हत्प) ४७-१(4) नमस्क) ५९९८५), ४२७२, ७८४१-३
(४) पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू.. (तीर्थङ्करा) ५२(48), (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे.मू.पू., प्रा., प+ग, मूपू.. (नमो | ३९९६-१, ८८३८
अरिहन) ८१५०५), २४७४-१(+), ६२२५(5), १३३६-१, ३२६६-३, (४) पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तीर्थङ्करा) २७२२
८३५१, १०७३, ३०३५, २३४३६), ८७०७-१(७), ६५६९९६) (४) पाक्षिकसूत्र-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., ग्रं.४४००, (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.,
वि. १७७३, गद्य, मूपू.. (ऐन्द्रवृन) ५४-१ (आवसही कहेत) ६२२५६+६), ६५६९(5)
(४) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (तीर्थङ्कर) ४६(५), (३) क्षामणकसूत्र, प्रा., सूत्र ४ आलावा, गद्य, मूपू., (इच्छामि ३६३९(१), ५३७१-१+), ६२५४५), ७५६९६५), ५०, १६९२-१,
खम) ४७-३(+), २७२८-२(+), ३१७६-२६), ५३७१-२(+), ६०८४- २६६२-१, ५३६५-२, ८४७०-१, १११३-१, ८४६५, ८४७७, ८१७, ७(+), ८०४९-१(+), ५३-२(+), ९२२-२(+), १४८५-३(+), २३२५- ९१७८-१(७) ३(१), ३५६२-२(+5), ५४-३, ५८-२, १३७८-२, १६९२-२, (४) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (तीर्थनइ कर) ३८७२-१
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-
१
४ ३७
(३) साधुअतिचारचिन्तवन गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू.,
(सयणासणन्नप) १७९४-२४(१) (३) साधुदेवसिप्रतिक्रमणअतिचार श्वे.मू.पू., मागु., गद्य, मूपू.,
(ठाणे कमणे) ६०६२-४० (३) साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., मागु.,प्रा., गद्य, पू.,
(नाणम्मि दं) १०१४-१, १३७८-३, ४६२५-१, ५२२४, ६६२२-१,
१११७-१, १७३३, ८५९-१(६), ४७७६-२(5) (३) साधुराईप्रतिक्रमणअतिचार श्वे.मू.पू., प्रा.,मागु., गद्य, मूपू.,
(सन्थारा उव) ६०९१-१८(+), ६०६२-५(5) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, प्रा., प+ग, स्था., (नमो __ अरिहन) १५४५५), २४८७(+). ३९०८ (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ', मागु., गद्य, स्था.,
(--) २४८७) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मागु., गद्य, स्था.,
(नमस्कार हो) १५४५(+) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, __ मूपू., (नमो अरिहन) २९३४), ३८४३६+६), ९१२७, ६०१९-१७) (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-अवचूरि, सं., गद्य,
मूपू., (-) ३८४३(45) (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य,
मुपू., (जे त्रिभुव) ९१२७ (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ', मागु., गद्य,
मूपू., (माहरो अरिह) २९३४) (३) पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू..
(चउक्कसायपड) ८८४२-३(+). ५८२७-९४, ५४८९-५०७,
| (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ', मागु., गद्य,
स्था., (-) ५१३४, ७४५८ (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी-टबार्थ, मागु., गद्य,
स्था., (नमस्कार हो) ९२५१(+) (२) सामायिक ३२ दूषण, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम १०) ११०७
३), ५८२७-९० आशीर्वचन पाठ, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (नक्षत्राक) ३७४८-२) आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू.,
(श्रीपार्श) ८९३३ आस्रवत्रिभङ्गी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., गा. ६२, वि. १४वी, पद्य, दि.,
(पणमिय सुरि) ५४५३-१(4), १६४-१(+#) (२) आस्रवत्रिभङ्गी-लाटीय स्वोपज्ञ टीका, मु. श्रुतमुनि, कन्नड,
गद्य, (-)-<प्रतहीन.> | (३) आस्रवत्रिभङ्गी-सुबोधा टीका, सं., गद्य, दि., (सर्वज्ञ) १६४
(२) आस्रवत्रिभङ्गी-यन्त्र, सं.प्राहिं., ३ त्रिभंगी, यंत्र, दि.,
(विशेष शब्द) १६४-१(+#) इकारधर्म रथ, प्रा., गा. १, प+ग, मूपू., (धम्मट्ठीउ) ७५३९-१६ इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., गा. १००, पद्य, मूपू., (सुच्चिअ सू)
७९२-२(+), ३८७८-१(+), ४४३३(+), ७५६८-१(+), ८८२०),
४२६२). ३८४७, ४०९९, ८८७२-१ (२) इन्द्रियपराजयशतक-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (तेहिज
शूरा) ४२६२६) (२) इन्द्रियपराजयशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (तेहिज सूर)
७९२-२(+), ३८७८-१(+), ४४३३(+), ७५६८-१(+), ८८७२-१ इन्द्रियादिक विचार सङ्ग्रह, प्रा., पद्य, मूपू., (चउदसपुवी)
८९९३-४(७ इरियावही कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (चउदस पय अड) । २१६१-१(4)
(२) इरियावही कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (चौदह नारकी)
६०९७-४(5)
२१६१-१(६)
(४) पार्श्वजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भुवनत्रयस)
८८४२-३(+) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-पायचन्दगच्छीय, प्रा., प+ग, मूपू.,
(नमो अरिहन) १६६४ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-लोङ्कागच्छीय, प्रा.,सं., प+ग,
स्था., (णमो अरिहन) २०८९ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-खरतरगच्छीय, प्रा.,सं.,
प+ग, मूपू., (णमो अरिहन) ६१-१(+), ११०७-४(+), ८९५३(+),
१४८५-१(+), १७९४-१(+#), ५८२७-१, ३०६५-१, ६६५३६६) (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-खरतरगच्छीय-बालावबोध,
मागु., गद्य, मूपू., (सुरासुरनमस) ६१-१(+), ८९५३(4) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, प्रा.,गुज., प+ग,
स्था., (नमो अरिहन) ९२५१(+), ६९७५(45), ४०१३, ४३११-१, ५१३४, ५३५२, ७४५८, ३०८१(#-)
इरियावही रथ, प्रा.,मागु., गा. १, प+ग, मूपू., (उवसम धरेण)
७५३९-१७ उक्तिरत्नाकर, उपा. साधुसुन्दर, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (स्मृत्वा)
|
७२८६)
उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (भक्त्या वस) ९१७७ उत्तमकुमार चरित्र-वस्त्रदाने, सं., गद्य, जै., (परमेष्ठिं) ५२७० उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., ३६अध्ययन, ग्रं.२०००,
प+ग, मूपू., (सञ्जोगाविप) ७४(+), ७९(+), १३५(५), १३८(५), ७०९(+), ७१४(+), ८६६(+), ८७७+), १०२१(+), ३६४४(+),
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- ७३२३०. २९५३, १४१०४. ६८४१६
४३८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ ४१८६(+), ४१९०(+), ४३८२(१), ४४६५), ५२७६(+), ८६५०+) | टिप्पण, सं., गद्य, मूपू.. (ऊ र्ध्वा ) ३४७२-७(+) ८८१४(+), ९०३२(+), ९३०७+), २३७७(+), २४४७(+), ३१९८(+), (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., ४५९४+), ७५२८(+), १४१(+), ४०८६(+), ४१७८(+), ४३८४(+), ग्रं.१२०००, वि. ११२९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य वि) ७०९(+), ४६७३(+), ७३(+), ७०१५), १६८१९+), १३४१), ७०४५), १५९४- ७३(+). ७१० २),२८६७+), ४०९१(+), ४१६१(+), ५२१८(+), १७१४(+), २०५- | (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सुगमार्थ टीका, वा. अभयकुशल, सं., १(६), ६९९(+६), १४६१(६), ४०८१(45), ४१९१(45), ५२८४(+६), ग्रं.९२४३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) ९३०७+) ६१३३(45), ६९११(45), ७१३०(+5, ७१४४(45), ७२०६६+६), (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, ७३००(45), ७३३३(45), ९०४+६), ६९५२(45), ८७२४(45),
सं., ग्रं.१५३००, वि. १८पू, गद्य, मूपू., (अर्हन्तो ) ८६५०५), १६४८(45), ७६१८(45), ७०६(45), १२९९(45), १३१७+5), १३६, ३६५१(#$), ५७८४(६) १३७, १३९, २१९८, ३२९३, ५३३८, ५४२०, ५४९२, ६४८८, (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, जै., (सञ्जोगा०) ७३३९, ७६२६, ९०७४, ९२०२, ९२५३, ६९७१, ९०४७, ७१०, १०२१+), १७१४(4) ९०७९, १६४२, ३८५८,४२८३, ४६७६-१,५९०६-३, ६११७, | (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अर्थ', मागु., गद्य, मूपू.. (भिक्षु महा) ७६८९, २७१६, ४०८०-१०, २०७२(45), ३६५१६#5), १७८१-३(5), ५२१८) १६०७६), २०७१(६), ३२८२(5), ३४१६६६), ३६४३(७), ४४८१(६), (२) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध*, मागु., गद्य, जै., (-) ४९३१(७), ५५१५६), ५५३५६), ५७८४(७), ६२९३७), ७०५६(६),
८७२४+६) ७२६३(७), ७३६२(६). ६९८(७), ६९४८(६), ७१११(६), ७११६(s), (२) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध, मु. सोमदेव-शिष्य, सं., गद्य, ७१२६(5), २६३९(5), २५१७(5), ६८२५(६), १४१०६६), ६८४१(६), मूपू., (प्रणम्य) २४४७(+)
(२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा*, मागु., गद्य, जै., (उत्तराध्यय) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ६०७, १६८१(+), २८६७), ६१३३(45), ५५३५(७), २५१७(5)
पद्य, मूपू., (नामं ठवणाद) १७१८(+), ४६७३(+), २०५-२(48), (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मागु., ग्रं.११७१५उभ, गद्य, मूपू., ६९९(45)
(प्रणम्य) ४०८०-१(4) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति का टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू.. (-) | (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानज) २०५-२(45)
४०८६६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानज)
ग्रं.१४२५५, वि. १६८९, गद्य, मूपू.. (ॐ नमः सिद) १३७, २३७७+), ६९७१ १६०७६), २६३९(5)
(२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा सङ्ग्रह , मागु., गद्य, मूपू., (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (-) ४६७३(+), (श्रीमहावीर) १३४) ७०६+६)
(२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (संयोग बे) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-दीपिका टीका, आ. जयकीर्तिसूरि, सं., ४४६५), ९०३२(+), ३१९८(+), ७५२८(+), ४१६१(+), ७९), ग्रं.८६७०, वि. १५वी, गद्य, मूपू., (श्रीउत्तरा) ३४१६६७)
२०५-१(45), ४०८१(+5), ७१३०(+5), ७१४४+६), ७२०६(+5), (२) उत्तराध्ययनसूत्र-दीपिका टीका, मु. विनयहंस, सं.,
७३००(45), ७३३३(45), ७६१८+5), १२९९(45), ४०९१(+), १३९, ___ ग्रं.६०००उभय, वि. १५७२, गद्य, मूपू., (उत्तराध्यय) ३६४३६७) । ३२९३, ४२८३, ३२८२(७), ७३६२(१), ७३२३(5) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, मूपू., (भिक्षो । (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरिविन) ७०४+), ९२५३, ९०७९, ६२९३(5) ।
शिष्य, मागु., ग्रं.९०००उभय, गद्य, मूपू., (पूर्वसंजोग) ७४(+), (३) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मागु., १३८(+), ७१४+), ८६६६), ८७७),७०१(+), ५२८४(45), गद्य, मूपू., (भिक्षु महा) ९०७९, ९२५३, ६२९३(३)
९०४(+5), ६९५२(45), १६४८(45), ९०४७, ५५१५७), ६९४८(5) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-शिष्यहिता बृहद्वृत्ति#, आ. शान्तिसूरि, सं., (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., , मूपू., (-) ग्रं.१६०००, गद्य, मूपू., (शिवदाः सन) १४१(+). ६९९६),
၃၃၀၄(န်) ၊
(३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा का कथासङ्ग्रह, सं.,मागु., प+ग, (३) उत्तराध्ययनसूत्र-शिष्यहिता बृहद्धृत्ति का विषमपदपर्याय मूपू., (-) ९२०१६)
(२) उत्तराध्ययन
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($+)
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
(२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह, मागु, गद्य, जै.. (-) ५२१८(*), ६१३३" ३(+$), ७५११, ५५३५ ($)
(२) उपदेशप्रासाद-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (-) ८८४(+), ४८३०, ४९५९ (S) उपदेशप्रासाद", सं., पद्य, मृपू., (-) ११०२ - १(क)
(२) उत्तराध्ययनसूत्र- कथा सङ्ग्रह *, सं., पद्य, मुपू., (-) ७३३३'
(२) उपदेशप्रासाद-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू. (-) ११०२-१1) उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणव) १६०-११) २३९ ८७३१) २७८५११ २९६८)
उत्तराध्ययनसूत्र- कथा सङ्ग्रह, पं. पद्मसागर, सं., ग्रं. ४५००, वि. १६५७, गद्य, ग्रुप (प्रणम्य) ७०५ ५२८ ७८४२ (+), ८७७७७ ७($) ६३६० (5)
(३) उत्तराध्ययनसूत्र- कथासङ्ग्रह का अनुवाद, मागु, गद्य, मृपू.. (प्रणम्य) ४६७८ (5)
(२) उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, उपा. राजशील, मागु ३६ गीत, पद्य, मूपू., ( सरसति मति) २८२५
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"
8
(२) उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, वा. उदयविजय, मागु. ३६ सज्झाय, पद्य, मूपू (पवयणदेवी) २८५-७८ २८५-८५ १३८१ ७०१० ६०३६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, मु. ब्रह्म, मागु., ३६ सज्झाय, वि. १७वी पद्य भूपू (अमीयसमाजी) १६८९ ५९६३. ५९९९.
"
७१२९७३०३
(२) उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन १६ की सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, मुपू., ( श्रीनेमिसर) ७५४८-२१ (६) उदयत्रिभद्गी, मु. नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, प्रा. ३ त्रिभंगी,
गा. ७३, पद्य, दि., (पञ्चणवदोणि) ५४५३-३(+), १६४-३(+#) (२) उदयत्रिभङ्गी-टीका, सं., गद्य, दि., (सङ्गिपञ्चे) १६४-३ (+#) (२) उदयत्रिभङ्गी- यन्त्र, स. मागु, यंत्र, दि.. ( गुणस्थानरच १६४-३००)
"
उदायीनृप चरित्र, प्रा., गद्य, जै., (-) ६९०५ (S)
उद्यापन विधि, प्रा. मागु, गद्य, जं., ( प्रथम मुद्द) ६०८४-९१) उपदेशकन्दली, आ. आसड, प्रा. १३ विश्राम, पद्य, मृपु.. (तिहुयणमङ्ग) १६९ (+)
(२) उपदेशकन्दली -वृत्ति, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., १३ विश्राम, ६००, गद्य, ग्रुप (यन्त्रापिनास) १६९)
"
उपदेशचिन्तामणि, आ. जयशेखरसूरि प्रा. ४ भाग गा. ५४०, पद्य मृपू. (तित्थयरे) ३६४१११ १०२७
"
(२) उपदेशचिन्तामणि-स्वोपज्ञ टीका, आ. जयशेखरसूरि, सं.. ग्रं. १२०६४, वि. १४३६, गद्य भूपू (प्राचीमेका) ३६४११ उपदेशतरङ्गिणी, गणि रत्नमन्दिरमणि, सं., [५] तरंग, अं.३३००, पद्य, मूपू., ( श्रीनाभेयः) ३२१५(४)
(२) उपदेशतरङ्गिणी-कथा, सं., गद्य, मुपू., (-) ३२१५(S) उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., २४स्तंभ, वि. १८४३, प+ग,
मूपू., (स्वस्ति) ८८४(+), ४१८२ (+), ४८३०, ५१६७ (३), ४९५९($) (२) उपदेशप्रासाद-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू., (श्रेयः सम) ४१८३०
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३६४६४०० ४१७०-१०) ४८७२) ७२३५१) ७५७१ ८८१६) ९३०१-१(+), २५२१(+), २८२४(+), ४२७१(+), ५४००(+), ५९८६(+), ७९३७) ३३८२९ १८२०-१०) ५२१६ का ११०३० ३२४८० ६३० ६३२२०४१ ९२६२/०६३ १३९०. १६६९.
T
४३९
३२५४, ३३३९, ५२००, ५३४१, ५४९९, ५९३०, ७५०५, ८८६४, ९०२९, ९१७२, ९१८, ३६७९, ३७७७, ५१५६, ९२८६, १२८७, २७८२-शमा ६१९४९मा ८२०४१ ११६५शि
($)
१३६६-१, ११५० १९९कि ७०० ६३२५१ ६९५३को ७१०३१) ०६१२८१ (२) उपदेशमाला-उपदेशकर्णिका वृत्ति, आ. उदयप्रभसूरि, सं., ग्रं. १२२०४. वि. १२९९. गद्य मृपू. ( अहं तनोत) ७७० (२) उपदेशमाला- टीका, सं., गद्य, गुप्त.. (-) ६७९१ (२) उपदेशमाला-वृत्ति, गणि रामविजय, सं. ग्रं. ७६००, वि. १७८१, गद्य, भूपू., (श्रेयस्कर) २३४) ११०३.०० ३२४८ ३२५४, ५१६६
"
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"
8
"
(२) उपदेशमाला हेयोपादेया वृत्ति, गणि सिद्धर्षि सं. ग्रं. १५००, वि. १०वी गद्य, मृपू. (हेयोपादेया) १९००) ९२८६ ७६१२० (२) उपदेशमाला- बीजक, प्रा., गद्य, सूपू (नमिऊजिण०१) ४१०-१
"
(२) उपदेशमाला - बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., ( नमस्कार कर) ६३०४(१) १६६९. १८३३ ३३३९
(२) उपदेशमाला - बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु. वि. १७१३, गद्य, ग्रुपु. ( नमस्कार कर) १६०-१११, ८०२/० २९६८० ३६४६००४८० ९३०१-११) ९२६२/० ५४९९. ३७०७, ७५०५, ६१९४(8)
"
(२) उपदेशमाला - बालावबोध आ. सोमसुन्दरसूरि, मागु.. ग्रं. ५९००, वि. १४८५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ३६७९ (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., (धीरं वीरं ) ५२१६ (+#$) (२) उपदेशमाला- टवार्थ, मागु., गद्य, भूपु (नमिऊण कहीइ) ५४०० (+), ५३४१, ९०२९, ९१८, ७५०५, ६३२१ (8) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., (प्रणम्य ) ३६४६ (+) (२) उपदेशमाला- टवार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु, वि. १७३२, गद्य, गुपु. ( श्रीमत्पार) ४१७०-११५)
(२) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. रत्नचरित्र - शिष्य, मागु., गद्य, मृ.. (स्तुत्वा) १३९०
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ (२) उपदेशमाला रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., ढाल उपलब्धि प्रकरण, प्रा., गा. २८, पद्य, जै., (रगे भवचर) १३०२-२
६३, गा. ७१२, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (वेणा वंश) २१३(+) उपस्थापना विधि, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (खमासमण मु) ६०२१(२) उपदेशमाला-कथा*, मागु., गद्य, मूपू., (वन्दित्वा) २९६८), ७५०५, ३०१६(45), १९९(5)६१९४(5)
उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्याय १०, (२) उपदेशमाला-कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य गु) ग्रं.८१२, प+ग, मूपू.. (तेणं० चंपा) १०५-१(+), १७२६(५), ८८२१(+5), १६६९, ३२५४, ४३६३६६), ६९५३(5)
२०५१), ४२०५०, ४६६५-१(4), ७५२५९), ८८५०), ८८६२६), उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, ९०७१(+), ९२७६(+), १०१२), ५३३६(+), ९२४०+), १६१५(५),
मूपू., (उवएसरयणकोस) ९९०-३(+), ४५६१, ५१९९, ५६०८-१, ४४३८(+), १७३२(+#s), १६०८(+६), २०४५+5). ३५५०+६), ५६३१, ५९३१-२, १६५
७७०९+5), ६८४७(45), ७३३१+5), ४५३२(+5), ८९, ४१२०, (२) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर) ५६९३, ५७१२-१, ५८४४, ५८५८, ८८५१-१, ९०४६, ६४७, ४५६१, ५१९९, ५६३१, ५९३१-२
१०९७, ४८८५, ५२५१, ४८६७, ६३२८(45), १७३१(६), ३११७६६), (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (उपदेशरूप)
७०१६() ९९०-३(+), १६५
(२) उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., वि. उपदेशरत्नाकर, आ. मुनिसुन्दरसूरि, प्रा.,सं., ३अधिकार १६अंश, १११७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) २०५१), १६८८, २७३२, ५८५८, ___ पद्य, मूपू., (जय सिरिवंछ) ९१६९-१
९२८१-१, ६५९-१७ उपदेशरसाल, सं., पद्य, जै., (-) ४९६४()
(२) उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) (२) उपदेशरसाल-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू.. (-) ४९६४७) १७२६(+), ४६६५-१५), १०१२), ५३३६(+), ९२४०(+), (२) उपदेशरसाल-कथा', मागु., गद्य, जै., (-) ४९६४६)
१७३२+#5), १६०८(45), ७७०९(45), ७३३१(45), ४५३२+5), उपदेश रसाल, सं., अध्याय ५२, गद्य, मूपू., (एसो मङ्गलन) ४१२०, ५८४४, ९०४६, ६४७, १०९७, ५२५१, १७३१), १७६(+)
७०१६६६) उपदेशश्रेणी, सं., पद्य, मूपू., (गृहकूपी) ५१३५
(२) उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु., उपदेशसप्ततिका, वा. क्षेमराज, प्रा., गा. ७३, वि. १५४७, पद्य, ग्रं.३०००उभय, वि. १६९३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) १०५-१(4), मूपू.. (तित्थङ्करा) ४६९३()
७५२५(+), ४४३८(+), ३५५०+६), ८९, ५७१२-१, ४८८५, ४८६७ (२) उपदेशसप्ततिका-स्वोपज्ञ टीका, वा. क्षेमराज, सं., वि. (२) उपासकदशाङ्गसूत्र-आनन्दश्रावक सम्बन्ध, श्रा. मोतीचन्द, १५४७, गद्य, मूपू., (विश्वाभीष) ४६९३(5)
मागु., पद्य, जै., (वाणीज गामे) २६८ उपदेशसार, गणि कुलसार, सं., अध्याय ५९. , जै.,
उर्द्धलोकदेवायु यन्त्र, सं., कोष्टक, मूपू., (सौधर्म जघन) २५५९(यत्कल्याणक) ८५६०
२) (२) उपदेशसार-वृत्ति, सं., गद्य, जै., (नमो अरिहन) ८५६० उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, उपधानतप मालारोपण विधि, सं.,प्रा., गद्य, मूपू., (ननु महानिश) मूपू., (उवसग्गहरं) ७५५१-६६१), ५४७७-२,६११८-२,६७७२, ३३३३-१(5)
१७९६-३, ६०५९-५(६). ६०१८-३(5) उपधान तपविधि, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (पहिलं नवक) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ०५ की लघुटीका, सं., गद्य, मूपू.,
२५०+), ३५८२-२(4), ६०५०-२, ७३८३, ८१६३-१, २०९६-१) | (अहं पार्श) ५४७७-२ उपधानतप विधि, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (प्रथमं नन) ६०२१-१ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की टीका', सं., गद्य, मूपू., (-) उपधान तपविधि, मागु.,प्रा., गद्य, मूपू., (-) ७३२१-१(5)
६४८५(5) उपधानतप विधि यन्त्र, प्रा.,मागु., कोष्टक, मूपू., (-) ५८८०-२ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., उपमितिभवप्रपञ्चा कथा, गणि सिद्धर्षि, सं., ८ प्रस्ताव,
(अत्र प्रथम) ६७७२ ग्रं.१६०००, वि. ९६२ , पद्य, मूपू., (नमो निर्ना) ५८८३(5) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ०५ की प्रियङ्करनृप कथा, मु. (२) धर्मजिन आत्मज्ञानप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., जिनसूर मुनि, सं.प्रा., वि. १६वी, गद्य, मूपू.. (वंशाब्जश्र) गा. १३८, वि. १७१६, पद्य, मूपू., (चिदानन्द) ४३६२(१),
१९५०, ३१८७, ५४७७-१, ३४१(#) ६०५३-१, ६३१९
ऋषभजिन चरित्र, मु. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., सर्ग २०,
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४४१ ग्रं.४८२८, पद्य, दि., (श्रीमन्तं) २९५(५) ।
१८४९, ५६३९, ५९०७, ७८०९-१, ९१३५, २१८५-१, ५२३१-१, ऋषभपञ्चाशिका, कवि धनपाल, प्रा., गा. ५०, वि. ११वी, पद्य, ७९०६, ६६५७
मूपू., (जयजन्तुकप) ७१५९+5), ९२०, ५९२८-४(5) | (२) एकविंशतिस्थान प्रकरण-अर्थ, मागु., गद्य, मूपू., (चवन (२) ऋषभपञ्चाशिका-टीका, गणि नेमिचन्द्र, सं., गद्य, मूपू., विमान) ४२२९(+) (नत्वा जिने) ८९१४
| (२) एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (चोवीस (२) ऋषभपञ्चाशिका-टीका', मागु., गद्य, मूपू., (-) ७१५९(45) तीर) ३८४(+), ३९२४(+), ५१९४५+), ५२८९(+), ७५३४(+), १८४९, (२) ऋषभपञ्चाशिका-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (जयजं० __७८०९-१, ९१३५, ५२३१-१, ७९०६, ६६५७ जय) ९२०
(२) एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मु. मानचन्द्र, मागु., गद्य, ऋषिमण्डल जयमाला, प्रा., गा.७, पद्य, स्पू., (पणमवि जिणद) मूपू., (श्रीदेवगुर) २९२८९) १६८४-३
एकादशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., श्लोक ४, पद्य, ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २०९, ग्रं.२५९, मूपू., (मल्लिदेव) ७५४१-२१
वि. १४वी, पद्य, मूपू.. (भत्तिभरन) ५०८६+7, ९२२१-१(4). एकावलिव्रत कथा, मु. विशदकीर्ति, सं., श्लोक ५८, पद्य, दि., २३४, २२७९, ९०५८,३४२७
(श्रीवीरं) ६००२-३(+) (२) ऋषिमण्डल प्रकरण-कथार्णवाङ्क वृत्ति, गणि पद्ममन्दिर, एकावलिव्रतविधान कथा, सं., श्लोक ५२, पद्य, दि., (प्रणम्य)
सं., ग्रं.७२६१, वि. १५५३, गद्य, मूपू., (जयाय जगताम) २३४ ६००२-६२(+) (२) ऋषिमण्डल प्रकरण-प्रभातव्याख्यानपद्धति टीका, गणि एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., श्लोक २६, ईस. ११वी, हर्षनन्दन, सं., ग्रं.४५६४, वि. १७०४, गद्य, मुपू., (अथ
पद्य, दि., (एकीभावं गत) २५९-४(+) मल्लिस) ३४२७
एगूणतीसी भावना, प्रा., गा. ३०, पद्य, जै., (संसारम्मि) ४६५२), (२) ऋषिमण्डल प्रकरण-अवचूरि, सं., ग्रं.३८१, गद्य, मूपू., २३१३(१) (भक्तिभरेण) १०३५
(२) एगूणतीसी भावना-टबार्थ', मागु., गद्य, जै., (संसार असार) (२) ऋषिमण्डल प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (भक्ति घणी) | २३१३(१) ५०८६६५), ९२२१-१(+), ९०५८
(२) एगूणतीसी भावना-टबार्थ, सं., गद्य, जै., (संसार किदृ) ऋषिमण्डल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लोक ९२, ४६५२(4)
ग्रं.१५०, पद्य, मूपू., (आद्यन्ताक) ४०३८+). ६२७९-५(५), ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ११६४, पद्य, मूपू., ६५८५(), १४०६(+), २८३-२, १६८४-१, १७६०, ४२९७, ७९९८, | (अरहन्ते वन) ८८६६), ७०८ ८९६६, ८०००-१(s), १४९८०)
(२) ओघनियुक्ति-टीका#, आ. द्रोणाचार्य, सं., ग्रं.६८२५, वि. (२) ऋषिमण्डल स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (आदिको अक्ष) १२वी, गद्य, मूपू., (अर्हद्भ्यस) ८८६६), ७०८ ४०३८(+), १७६०, ८९६६, ८०००-१(5)
(२) ओघनियुक्ति-अवचूर्णि# , आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., ग्रं.३३००, (२) ऋषिमण्डलदेवीधूप विधि, मागु., गद्य, मूपू., (कमल काकडी) | वि. १४३९, गद्य, मूपू., (प्रक्रान्त) २४१०(+). २८१४, ८४१८ ८०००-२(5)
(२) ओघनियुक्ति-विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (२) ऋषिमण्डल पूजा मन्त्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्राँ) २१०३-३) | (प्रयोजनमित) ३४७२-४(4) (२) ऋषिमण्डल पूजा विधि, सं., ग्रं.३८३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) | (२) ओघनियुक्ति का हिस्सा दवम्मि जिणहरा पाठ, आ. १६८४-२, २१०३-१)
भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (दव्वम्मि)-<प्रतहीन.> (२) ऋषिमण्डल स्तोत्र-पूजन विधि, सं.,गुज., गद्य, मूपू., (३) ओघनियुक्ति-हिस्सा दव्वम्मि जिणहरा पाठ की टीका, सं., (यन्त्राच्छ) ३५३०
गद्य, मूपू., (द्रव्यलिङ) ३३३४-२ ऋषिमण्डल स्तोत्र आलेखन विधि, आ. विबुधचन्द्रसूरि, सं., गद्य, ओली विधि सङ्ग्रह, प्रा., गद्य, मूपू., (ए तप प्रथम) २०९५-१ मूपू., (वर्द्धमानम) २१०३-२६)
औपदेशिक, धार्मिक दृष्टान्तश्लोक सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (विशेषैवेस) ७९७७+5)
मूपू., (चवण विमाणा) ३८४(+), १७५१(+), २६२६-७२(+), | औपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह, सं., श्लोक २६९, पद्य, जै., २९२८(+), ३९२४), ४२२९), ५१९४(+), ५२८९), ७५३४५), (महतामपि दा) ३१४७६), ६८०२-१(5)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ (२) औपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह-अर्थ', मागु., गद्य, जै., (मोटा | कर्त्तव्यबोध, सं., श्लोक ११, पद्य, जै., (पश्चात् रज) ५८७३-२) दाननो) ३१४७६)
कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., श्लोक १७९, पद्य, मूपू., (कर्पूरप्रक) औपदेशिक श्लोकसङ्ग्रह, प्रा., गा. १०, पद्य, जै., (जयई
३५६७-१(+), १७१५ जगजीवज) १७९५-२७, ६००४-५६()
(२) कर्पूरप्रकर-टिप्पणक, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (व युष्माक) औपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह, प्रा.,सं.,मागु., ग्रं.५६८, गद्य, मूपू.,
| ३५६७-१(4) (-) ६३९३
(२) कर्पूरप्रकर-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, मूपू., औपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., पद्य, जै., (धर्मे रागः) (पार्श्वश्र) १७१५ २९०५-३(+), १२१०(45), ६५६४
| (२) कर्पूरप्रकर-कथा*, मागु., गद्य, मूपू., (-) १७१५ (२) औपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (अर्हन्त । (२) कर्पूरप्रकर-रोहिणेयचोर कथा, सं., श्लोक ७६, पद्य, मूपू., भग) १२१०+६)
(धेषपिबोधकव) ३०२ औपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह - शान्तिचरित्रे, सं., गा. १९९, पद्य, | (३) कर्पूरप्रकर-रोहिणेयचोर कथा का टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., जै., (-) ६७७५
(हिवई पजूस) ३०२ औपपातिकसूत्र, प्रा., सूत्र १८९, ग्रं.१६००, प+ग, मूपू.. (तेणं कर्पूरमञ्जरी, कवि राजशेखर, प्रा., ४ जवनिका, पद्य, (भदं होउ) कालेण) ७२), ६६४६), २०५६(+), ४१६६६), ४१६७(+),
९००७ ४४१७(+), ५०११-१(+), ५९६०(+), ८८१७+), १४९(+), ८०६(+), (२) कर्पूरमञ्जरी-टीका, मागु., गद्य, मूपू., (अहँ सरस) ९००७ ५४२३(+), ९३०(+). ४६१५(45), ६६५, ६७०, ४४२२, ५२८३, कर्मग्रन्थ , प्रा., अध्याय ६, पद्य, (सिरिवीरजिण)-<प्रतहीन.>
५७११, ७५३१, ९६३, १७१३(45), १२७६६), ९५४(६), ७२२१(5) (२) कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मागु., कोष्टक, मूपू., (--) ८७३१(७) (२) औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं.३१२५, कर्मनिर्जरणी चतुर्दशीव्रत विधान, सं., गद्य, दि., (जयन्ति भव) गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ६६४+), २६९९), ५२८३, ३०५९
६००२-२९(+) (२) औपपातिकसूत्र-विषमपद टिप्पण*, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (-) | कर्मनिर्जरणीव्रत कथा, सं., श्लोक २३, पद्य, दि., (प्रणम्य) ५०११-१५), ९३०+), ८०६)
६००२-५७) (२) औपपातिकसूत्र-दुर्गमपद बालावबोध, ऋ. मोहन ऋषि, मागु., | कर्मप्रकृति, मु. नेमिचन्द्र सैद्धान्तिक, प्रा., गा. १६१, पद्य, दि., गद्य, जै., (प्रणम्य) ४१६६(+) |
(पणमिय सिरस) ४११६-१(+5) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, मूपू., कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., ७ अधिकार, गा. ४७५, पद्य,
(वन्दित्वा) ७२(+), ४१६७(+), ५४२३(+), ९६३, १७१३(#5) ___ मूपू.. (सिद्धं सिद) ९८३ (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मु. राजचन्द्र, मागु., गद्य, मूपू., (२) कर्मप्रकृति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, मूपू., (वन्दित्वा) ५७११, ७५३१
(प्रणम्य कर) ९८३ (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ', मागु.. गद्य, मूपू., (चउथा आरानइ) कर्मप्रकृति गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (गइ जाइ तणु) ७५०९
४४१७+), ४६१५९+5), ४४२२, ७२२१(5) कजलावतार, मागु.,सं., गद्य, जै., (गुरुपुष्य) ९०७८-२७) कर्मप्रकृतिपञ्चविंशतिका, प्रा., गा. २५, ग्रं.१२५, पद्य, मूपू., कथाकलाप, सं., गद्य, जै., (श्रीमण्डोव) ५६३७७)
(मूलपगइ अट) ४५६८-२(+) कथा श्लोक सङ्ग्रह-सम्यक्त्वादिविषये, सं., श्लोक ६७, पद्य, (२) कर्मप्रकृतिपञ्चविंशतिका-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (मूल जै., (त्वं स्मरस) ८२४९-२
कर्मनी) ४५६८-२) कनकावलीव्रत, मु. विमलकीर्ति, सं., श्लोक ४९, पद्य, दि., कर्मरेखा चरित्र, सं., ४ स्कंध, पद्य, म्पू., (प्रणम्य शि) ११९१(६) (नत्वा वीरं) ६००२-२५)
(२) कर्मरेखा चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (वामापुत्र) ११९१७) करणकुतूहल, आ. भास्कराचार्य, सं., १० अधिकार, ग्रं.२००, ईस. कर्मविपाक, सं., पद्य, वै., (अरुण उवाच) ७९४४-२(48) ११८४, पद्य, (गणेशं गिरं) २४९२(+)
(२) कर्मविपाक-टबार्थ, मागु., गद्य, वै., (अरजुनजी कह) ७९४४(२) करणकुतूहल-गणककुमुदकौमुदी टीका, गणि सुमतिहर्ष, सं., ग्रं.१८५०, वि. १६७८, गद्य, मूपू.. (श्च्योतच्छ) २४९२(+). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. ६०, पद्य,
मूपू., (सिरिवीरजिण) २४६९-१(+), २४८०-१९+), २९६९-१(+),
२१८०)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
३२१३-१ (+), ३७३७-१ (+), ४१९६ (+), ४३५२-१ (+), ४३५३-१ (+), ४८६२-१(+), ५२५०-१(+), ५२७३-१(+), ५५९३ (+), ५८४७-१ (+), ५९०२-११) ८४२३-१) १८०५१) ४१२९-१(4) ३०४३) ९२६८-१(+), १५८१-१(+$), २५५२-१ (+$), ५९११-२(+$), १(+$), ९०९९-१(+$), १७९९-२२(+), ५९३९-१(+$), ६५१८-१(+8), ६५०६-१ (+8), ८१३५-१ (+), ५४३०-१ (+), १६७७-१, २३३३-१, ३२१६, ३२२५-१, ३४९०-१, ५३९३-१, ६२५२-१, ६७५९, ७७७७-१, ७८७०-१, ८४११-१, ८४१५-१, ८६३२-१, ८९७६-१, ९१०३-१, ९१७०-१, १६९३-१, ७८९१-१, ६५३०-१, १८५८ (MS), १६१-११) १६४५-१ का ७०९८-११। ५४७३गा ६६१९-३१ १२६०(s) ७३७९-१(S)
(२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि सं. १८८२ गद्य भूपू (दिनेशबद्ध) १८७५११ ९०५४-११०) ३०४३०१४३
"
""
"
(२) कर्मविपाक नव्य कर्मबन्ध-टिप्पण, मागु, गद्य, गुप्पु. (--) २३३३-१
"
(२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध' मागु, गद्य, मृपू.. (ज्ञान अतिस ) ५३९३-१, ६५३०-१ १८५८ ७०१८-१ (#S) (S) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ वालावबोध, मागू.. गद्य, मुपू..
(श्रीवर्द्ध) ३२२५-१, ५९१७-१
(२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध, उपा. जयसोम, मागु.. गद्य, मूपू., (ऐंदवीयकलाश) ८४२३-१(+)
(२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु, गद्य, भूपू. (श्रेयोमार) ९२६८-१११. ३४९०-१, ६७५९
"
(२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध, गणि शान्तिविजय,
मागु., गद्य, गुप्त (वीरजिन प्र) ९१७०-१
(२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श)
"
७८७०-१
(२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु, गद्य, भूपू.. (श्रीवीरजिन) २४८०-१(1), २९६९-११) ३२१३-११) ४३५२चुका ४३५३-११) ४८६२-१११ ५२५०-१११ ५२७३-११ ५५९३का २५५२-१लिका ७३४४-१०) ६५१८-११०१ ३२१६.
, (#S)
८४११-१, ८४१५-१, १८५८
(२) कर्मविपाक नव्य कर्मबन्ध-टवार्थ, उपा. जयसोग, मागु गद्य,
ग्रुप (एहवा श्रीम) ८४२३-१
"
(२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टवार्थ, मु. धनविजय, मागु, वि. १७वी, गद्य, मृपू. (शारदां वरद) ३७३७-११ण १५८१-१० ५४३०-१(+$), ८६३२-१
(२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. राजसार-शिष्य, मागु., गद्य, भूपू (प्रणिपत्य) ४१९६१)
"
४४३
(२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ- यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, राज., गद्य, भूपू. (श्रीवीरजिन) ४३३८-५/- २५४०. ३४७३ ४४३६. (+#S), (+), १३२४. ६०१२१
(२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ- प्रश्नोत्तर, हिन्दी, गद्य, गुप्पु (शास्त्रानु) ४०००
कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. गा. ३४, पद्य, भूपू.. (तह थुणिमो) २४६९-२) २४८०-२१) २९६९-२), ३२१३२(+), ३२१९ (+), ४१२९-२(+), ४३५२-२ (+), ४३५३-३ (+), ४८६२ - २(+), ५२५०-२(+), ५२७३-२(+), ५८४७-२(+), ५९०२-२(+), ८४२३-२३१ ९२६८-३० ३०००-२२०, पपर-शनमा ५९११दुनिया ६५०६-२१०मा ७३४४-२१०१ ८१३५-२०४ ९०९९- २०४ ३(+$), (+), (+), १७९९-२३(+$), ५४३०-२(+), ५९३९-२+s), ६५१८-२(+S), ३९२५ १५८१-३०) ७८२७-१- १६०७-२, २३३३-२,
F
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"
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२८८७, ३२२५-२, ३३९६, ३४९०-२, ५०८७-१, ५३९३-२. ६२५२-२, ७७७७-२, ७८७०-२, ८४११-२, ८४१५-२, ८६३२-२, ८९७६-२, ९१०३-२, ९१७०-२, १६९३-२ ६५३०-२, ७८९१-२, १६१-२ १६४५-२० ६६१९-११ ७०९८-२ ०३७९-२मा ९१८६-१
(२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसुरि, सं. गद्य भूपू (बन्धोदयोदी) ९०५४-२१० (२) कर्मस्तन नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं. गद्य, मुपू. (तथा वीरजिन) ९१८६-१
"
"
(२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध' मागु, गद्य, भूपू.. (तिम श्रीमह) ३२२५-२, ५०८७-१, ५३९३-२, ५९१७-२, ६५३०-२, ७०९८-३)
(२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध, मागु., गद्य, भूपू., (त्रिजगत्) ३३९६
(२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध, मु. जयसोम, मागु., गद्य, मूपू., ( ॐनमः स्त) ८४२३-२(+)
(२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, भूपू (वीरं बोधित) ९२६८-३१) ३४९०-२
(२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ बालानबोध, गणि शान्तिविजय, मागु.. गद्य, मुपू., (सामान्य) ९१७०-२
,
"
(२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थी मागु, गद्य, ग्रुपु (बन्ध से २४८०-२११. २९६९-२११. ३२१३-२१ ३२१९ ४३५२-२०० ४३५३-३(+), ४८६२-२(+), ५२५०-२(+), ५२७३-२(+), ६५१८रामा ३९२५ ७३४४-२० २८८७, ८४११-२, ८४१५-२ (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, उपा. जयसोम, मागु, गद्य, मृपू.. (तेम स्तवीस) ८४२३-२०१
"
#
.
(२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य,
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४४४
मूपू., (तिम हु) ३७३७-२), ५४३०-२+5). १५८१-२+5). ८६३२
(२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ', सं.,मागु., गद्य, मूपू.,
(स्तवीमि ये) २५५२-२(5) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मागु., गद्य, मूपू.. (--)
२८४८() (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., यंत्र,
मूपू.. (बन्ध प्रकृ) २८३२(+), ४९३७), ४३३८-२(+#5). १६६८ (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-बोलसङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (अथ
द्वितीय) ७३३२ कलश विचार, प्रा., गद्य, मूपू., (नेमीवयणेण) ५१४५-२(१) कल्पवृक्षतप विधि, पं. दीपविजय, मागु.,प्रा., वि. १८८२, प+ग,
मूपू., (एहनो तप दस) ८६३१-१ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., ९-व्याख्यान, ग्रं.१२१६, गद्य,
मूपू.. (तेणं कालेण) ३+), ४), ६)७(+). ११(+), १३(4), १८(+), २२(+), २३(+), २४(+), २७+), ३०-१(+), ६७४(+), ६७५(+), ६८१५), ६८३(+), ६८४-१९+), ६८८), ६९०५), ६९१(+), ६९२१), ६९७+), ८३७+), ९४०५५), १६९०(+), २०५९(+), २६३६(+), २६४०(+), २६९०(+), ३२५२+), ३३५९(+), ३३८०(+), ३४४१(+), ३४५९(+), ३४८३(+), ३४९९५), ३६८२(+), ३६९०५), ३६९४-१(+), ३६९७(+), ३६९८(+), ३७०७+), ३७०९+), ३७१३(+), ३७२०(+). ३७२१(+), ३७२५(+), ३७३०५), ३७४२(+), ३७४६(+), ३७४९(+), ३७५०(+), ३७५२), ३७५४(२), ३७७४(+), ३७७५(+), ३७८२(१), ३८३७+). ३८४४(+), ३८६८), ३८७९-१९५), ३९००५), ३९५३(+), ४००९(+), ४३८६(+), ४५८४(+), ५६०२(+), ५७०४(+), ५८२३(+). ६७४९(१), ७६८२-१(+), ८६७०+), ९२६३(१), ७८७-१(4), ८९८), ९५८(+), २१८८५), ३४९५(+), ३६५८(+), ३६८८(१), ३७१०(+), ९०८०+), ९१०५५), १७१), १९), ६८७+), ९८७+), ९९४५), १६७९(+), २६८९(+), ३०२८), ३१९७+), ३४८४(+), ३५०१(+), ३५०७(+), ३६७४(+), ३६८९-१(+), ३७०५(५), ३७२६(+), ३७३५(+), ३७४८-१९+), ३७६७+), ४६७४(+), ५६०१(+), ५८५७), ६५३३६+), ७५७८), ७६२०(१), ७७६६(+). ८३१८+), ८३१९), ९०५१). ९११३(+), ९११४(+), ९२९१(4). १५). २६३४५), ३४९६(+). ३७७०(+), ९०७०(+), ९३००+), ५(+), २५(+), २८(१), ६८२(१), ३६८५(+), ३७१२), ३७८६५), ३७९१(+), ३७९३(+), ४४९१), ५५८४), ६४९९-१(4), ६७९(+), ३७१४+६), ३०२५(१), ३५०३+#), ८६१०+#), ३८(+), ३५३९(+), ३६८४+#), २०६५(१), २६३२(१), १२+#S), ८३१५(+95), ३६९६(+#5), १४७३(+#5), ९०५५), १५३(+5), ६७८(45). ६८५(+5), ६९४(45), ७२३(+5), १३५६(45), २९९४(45), ३०२९(45), ३४८६(45), ३७०६(45),
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ ३७११(45), ३७१५(5), ३७२७+६), ३७३६(45), ३७४७(+5), ३७७६(45), ३८१२+5), ३८२९(48). ३८७३(+5). ५८१५६+६). ५८१९(45), ६३७१(45), ६६२८+६), ६८२३(45), ७२२२६+६), ७३५८(45), ७४२९(45), ७६१३(45), ७९२०(45), ८१५७+5), ८२१३(+5), ८३२४(45), ८७०१(+5), ९२८५(45), ८०२(+s), ८१५५६), ११७५६), ३५१६(45), ५५३९(+5), ६५११(45), ६७४८(45), ७५८४(45), ७६१०(45), ८१६४(+5), ८७४१(45), ६९४२(+5), ८२१०४+६), २०६०(+5), ७०२२(+६), १४(+5), १३८८+5), २०६४+६), ३२३७+5), २६६५९+5), ५९८५(5), ३६४०(+-), ४७९२१), २-१, ८, १५२, ६७७, ६८६, ६९३, २६८८, २९९०, ३०२२,३३१२,३५०२, ३५४०, ३६८१, ३६९३,३७०८,३७२२, ३७२९,३७३३-१,३७३४,३७४३,३७४४-१,३७४५,३७७१, ३७७२, ३७८८, ३७९४, ३७९५-१,३८७०, ३८७७, ३८९९, ४०७४, ४७८०, ५५८०, ५७२१, ५८१३,६१०३-१, ६५६०, ६७२२, ७४२६, ८०३१, ९२६१, ९२९३, ८५६, ८६७, ८७९, ३५००-१, ३५७७,३७९२, ३८७४, ६७६, ६८०, ६९५, ६९६, १६२८, २६३८, ३५०६, ३६९९, ३७३१, ५८२०-१,६८९,२६, ३७०४-१,३७३२,३८२३, ४४९६, ७७९८, ३५०५), ३५४११), २१), ३६९५(४), ६४२९(१), ३६८३(१), ६५२८(१), ७३४०(१), ३७५१(#5), ३०५३(45), ३४९८-१(६), ९(s), २०६६), १६७०(६, ३५१७६), ३६६७६), ३६८६६), ३६९२७), ३७१६(s), ३७१९६६), ३७८५-१९७), ३९२०), ४५२५(७), ४६७२(5), ६२२६(5). ६४१२(s), ६५५९(5), ६६०९६), ६६९८(5), ६८३०(६), ६८५०(७), ६८९४(६), ७२१६(5), ७२६९६), ७२७७६६), ७६९४(६), ८०६८(5), ८२११(६), ८२६४(5), ८७३२(६), ९०५७६), ९२६६), ६४३९७), ६९२८६६), ६९४०(७), ६९४४६७), ७१५०७), ८२१२(), ७०९६(७), ७५७२(७), ७९८८(5), ८१८४६), ८७६७६), ३५२२(5), ५५८७७), ६५३४(६),
२१८९६), ६३४७७), ७३०५(६), ६७९२(5), ७०५२(5) (२) कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं.,
ग्रं.५२१६, वि. १६२८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ३७०७), ३७५०+).
९०८०+), ३७१३(+), १५२, ६७७,३८८६, ३६९५(१) (२) कल्पसूत्र-कल्पदीपिका टीका, मु. मानसागर, सं., वि. १७५४,
गद्य, मूपू., (--) ३७२६(+) (२) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं.,
ग्रं.४१०९, वि. १८वी, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ३७८२(+), ४३८६(५), ५८१२(१), ७७६६(+), ३७८६(+), ६७९+#), ६७८(+5), २९९४(45), ७१६२+5), ८७०१+5), २०६४(45), २६३८, ३८२३, ६५३९),
४५२५७), ६४१२६) (२) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं.,
ग्रं.७७००, वि. १६८५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) ६७५,
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(२) कल्पसूत्र- टीका', सं. गद्य, मु., (प्रणम्य) ३६९४०,
"
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
३७२५(+), ९५८(+), ३६५८ (+), ९२९१ (+), ३५०३(+#) ३७१६ (S), ६७९२ ($)
(३) कल्पसूत्र- कल्पलता टीका का बालावबोध*, मागु., गद्य, मूपू., (4/07 ft)901+1
८२५८ ३५०२ २१ ४३०५ ७०५
.
(२) कल्पसूत्र-सन्देहविषौषधि टीका, आ जिनप्रभसूरि, सं., ग्रं. २२६८, वि. १३६४, गद्य, मूपू., (ते इति प्र) ३४९९ (+), ५९३२/०१ ३५०६
,
www.kobatirth.org:
(२) कल्पसूत्र-सुवोधिका टीका, उपा. विनयविजय सं., ग्रं.६५८०, वि. १६९६, गद्य, मूपू., ( प्रणम्य पर) ८३७(+), ३४४१(+), ३६८२(+), ३६९० (+), ३७५४(+), ३७३५(+), ३७०६ (+$), ३६४०(+), ४७९२(+), ३६९३, ४७८०, ३६९२ (७), ३९२१ (४), Poyo
(३) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका का टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू., (नाया श्री) ३६४०+)
(३) कल्पसूत्र कल्पसुवोधिका टीका का हिस्सा गणधरवाद वक्तव्यता, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, मूपू., (वेदपदानि ) ५०५७, ६५९०-१($)
(२) कल्पसूत्र - अवचूरि*, सं., गद्य, मुपू., (अत्राध्ययन) ६८८(+), ९०७० (+), ७३९९ (+), ३८७७, ३५७७
(२) कल्पसूत्र - अवचूर्णि, सं., गद्य, मुपू., (अत्राध्ययन) ९१०५(+), ९२९३
(२) कल्पसूत्र-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., ( तस्मिन् का ) ६८४ - १ (+) (२) कल्पसूत्र - टिप्पण *, सं., मागु., गद्य, मूपू., (-) १(+) (२) कल्पसूत्र - अर्थ *, मागु., गद्य, मूपू., (--) ३८२९ (+) (२) कल्पसूत्र- माण्डणी, मागु. प्रा. गद्य, मृपू., (ए नाणं पञ) ५०९४
"
(२) कल्पसूत्र-कल्पकल्लोलिका बालावबोध, मु. अमृतकुशल, मागु, वि. १७७५, गद्य, भूपू., ( कल्याणानि ) रतन ३७२२ (२) कल्पसूत्र- कल्पकल्लोलिका बालावबोध, आ. लक्ष्मीरत्नसूर, मागु, गद्य, मृपू. (-) २०१५/०१
(२) कल्पसूत्र - कल्पप्रदीप बालावबोध, मु. भानुविजय, मागु., वि. १७२४, गद्य, भूपु (श्रीपार्श) ३६९८१), ७५७८)
(२) कल्पसूत्र - बालावबोध मु खीमाविजय, मागु वि. १७०७
.
गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ३२७९(+), ३७४६ (+), ३७७३(+), ३९५३ (+), ५६०२(+), ७६८२ - १(+), २६८९ (+), ८१५७ (+४), ३६९१, ३७९४, ३९५५
(२) कल्पसूत्र - बालागबोध, मु. जिनसागरसूरि-शिष्य, मागु, गद्य, भूपू. ( नमः श्रीवर) ८०२/
"
४४५
(२) कल्पसूत्र - बालावबोध, मु. शिवनिधान, मागु., वि. १६८०, गद्य, भूपू.. ( नमः श्रीवर) २२खा ५१८५
(२) कल्पसूत्र - बालावबोध' मागु राज, मद्य, मृपू. ( नमो अरिहन) पुर्णा सुना ६९०१ र २४ ३४२ ३७८३१ ६५९१(+), ३५१४(+), ५५८४(+), ५८१६(+), ६४९९-१ (+),
५४७९(+#), ३६८७(+$), ३७७६ (+), ५८१५ (+8), ५८१९(+$), &390 (+$) ६३१०१०१ ६८२३ ७२२२ ७४२९/०१ ७६१००४) ६९४२(+$), ३२३७(+$), ७१२२(+), ८२१, ३७७१, ५८१३, ७४२६,
६९६, ३७९०, ४४९६ ०३६५. ३६८३ ३९१९ ३७२८ ३८३६ष ४१७५११ ४७४०११ ६४३०११ ७९३५ का
८२४५ कि
($)
"
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J
८७३२७१५०१६
(२) कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य, मागु., गद्य, मृपू., (उत्तराफाल) ६८८olli
P
(२) कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य, मागु., गद्य, मुपू., (कल्याणानि ) १५ (+), ३४९६(+)
(२) कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य, सं., गद्य, मूप्पू., (कल्याणानि ) ३८७५ (+) (२) कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, मृपू., (पुत्राः पञ) ५६९८०) २५६ २६८१
(२) कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य, सं., गद्य, मूपु. (कल्याणापु) ३५२१११, १७५५०३ ६८०, ६४२९७२६९
J
(२) कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य *, सं., गद्य, मूप्पू., (प्रणम्य) ३७१२(+) (३) कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य का टबार्थ *, मागु., गद्य, मूपू., ( नमस्कार कर) ३७५३ण
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(२) कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य-नेमिजिन चरित्र, सं. गद्य, मृपू.. (श्री मिना) ५९३४का
,
(२) कल्पसूत्र-कल्पप्रकाश टबार्थ, गणि सुखसागर, मागु., ग्रं.६२८४, वि. १७६२, गद्य, मृपू., ( ॐ नमः परम ) १४(+) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ, मु. विनितविजय, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीगोडीजि ) २६३२ (+#)
.
(२) कल्पसूत्र-टवार्थ, मागु, गद्य, मुपू. (अरिहन्तनइ) ११) 93(0) 9210) 200(0) 30-g(*), $1080) 80g(*) $290, ९४०१). १६९०), २०५९१) २६९०) ३३५९१) ३६९४-१ (४) ३६९७१, ३७०९१९) ३७४९१ ३७०५ ४००९१०) ४५८४० ५६०झण ७६८२-१९) ८६००१) ९२६३११, २१८८) ३४९५१०९ ३६५८१), ३६८८१) ३७१०१) १७) ११) ६८७) ६९७९ ९८७) ९९४(+), १६७९(+), २६४०(+), ३०२८ (+), ३१९७ (+), ३५०१११ ३५०७०१ ३६७४ ३६८९-११) ३७२६ ३७४८१) ३७६७९) ३००४ ४६७४ ७५ ८३१९१, ९०५१(+), ९११३(+), ९११४(+), ९२९१ (+), २६३४ (+), ३४९६(+), ३७७० (+), ९३००(+), ५(+), २५(+), २८(+), ६८(+), ३६८५),
.
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४४६
३७१२च ३७९वा ३७९३० ४४९५५ ६७८६१००
३८ (+), ३५३९(+), ३६८४(+#) २०६५(+#), ३५०३(+), १२(+#$) ८३१५(+#$), ३६९६(+#$), १४७३ (+#5), ७६२० (+), ६७८ (+$), ६८५(+$), ६९४(+$), ७२३(+), ३०२९ (+), ३४८६ (+$), ३७५ (+$) ३७१५३७२४३७३६० २७४७ ३८१२ (+४), ६६२८निक ९२८५ म्या ७३५८(+$), ७६१३(+$), ८२१३ (+), (94(+8) 99104(+0) 4438/+$1 $16 (108) (1889/05)
८२१० (+), २०६० (+), ७०२२ (+), १३८८ (+), २६६५ (+), ३६४०(+) ६९३, ३५०२, ३७२२, ३७३३-१, ३७७२, ९२६१, ८५६, ३५००-१, ६७६, ६८०, ६८९, २६, ३७३२, ७७९८, ६८६,
३७३१, ४००४, ६४२९ ६५२८१ ३७५५ ३०५३७) १६७० ३१ ३५१७/३, ३६८६१ ३७८५-१११, ४६७२ का ६६०९ क ६८३० मा ८२१११ ९२६६४३९ ६९२८ ६९४०५,
६९४४११ ००९६१९ ८१८४ मा ८७६७९९ २१८९९ ६३४७ (२) कल्पसूत्र- टबार्थ+ व्याख्यान + कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, मुपू., (सकलार्थसिद) ६९२-१ (+), ३७५२(+), ७८७-१ (+), ६९११क) ३४८४(क) ५६०११) ८३१८का ३७१४ला ३०२५ण २६३६(+), १५३(+$), ६५११(+), ३६८१, ३७३४, ३७०४-१ २०(ड) (२) कल्पसूत्र - टबार्थ *, सं., गद्य, मुपू., ( श्रीमद्वीर) २३(+) (२) कल्पसूत्र-टवार्थ+ कथा, सं., गद्य, ग्रुप. (वर्द्धमानं) ६९२-१ (२) कल्पसूत्र- कथा सङ्ग्रह, सं., मागु, गद्य, ग्रुपु., (बलदेव
"
बलिद) ७६८२-११ १३४६
(२) कल्पसूत्र - १४ स्वप्न विचार, राज, गद्य, मृपू. ( परिलइ स्वप) २०६१-२
(२) कल्पसूत्र -दशअच्छेरा कथा, मागु., गद्य, मूपू., (ते मध्ये)
३५३२
(२) कल्पसूत्र- दशआश्चर्य वर्णन, मागु, गद्य, मृपू. ( उवसग्ग गब) २०६१ - १($)
•
.
·
www.kobatirth.org:
.
(२) कल्पसूत्र - नवव्याख्यान सज्झाय, मु. माणेक, मागु., ११ सज्झाय, पद्य, मुपू., ( पर्व पजुसण) ६०४८
(२) कल्पसूत्र - पीठिका, मागु., गद्य, मृपू., (अर्हन्त भग) ५७२९ ( +$), ३८९६ १३९१ ८२९०
(२) कल्पसूत्र-पीठिका, मागु., गद्य, मुपू., (हिवे पञ्चप) ३९४१(# ), २६९३७७७५३
(२) कल्पसूत्र - मांडणी, मागु., गद्य, मुपू., ( वर्द्धमानं ) १८६९ (२) कल्पसूत्र - वाचन विधि, मागु, गद्य, मृपू. (प्रथम दोय) १४९०४, ३७३३-२
(२) कल्पसूत्र-पीठिका, सं. गद्य, मुपू., (श्रीकल्पः) ४६७११९ ३९३१, ११२०(s)
(३) कल्पसूत्र -पीठिका का टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू. ( श्रीकल्पसू)
४६७११) ३९३१, ११२०)
(२) कल्पसूत्र-स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (अर्हन्मूलः)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
५८२०-२
(२) कल्पसूत्र- हरिवंशोत्पत्ति सप्तमआश्चर्य, सं. गद्य, मृपू. (इहैव कौशाम) ६५९०-२
(२) कल्पसूत्र- कल्पवार्तिक व्याख्यान+कथा, पं. जिनविजय, मागु.. गद्य भूपू. (पुरिम चरिम) रक्षका ३७८४४मा
(+),
(२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+ कथा*, मागु., गद्य, मुपू., ( नमः श्रीवर) ४णि १५) १३) १८का रजण धडाका ६९७१) ९४०१०), १६९०९) २०५९१) २६४०१ २६९०) ३३५९ ३६९४-१०), ३७४९१) ४००९) ४५८४) ८६००९) २१८८ ३६८८ १७(+), १९(+), aples Ecoles perles, ६८७(+) ९८७(+) ९९४) १६७९१) ३०२८) ३६७४६१ ३७६७१९ ७६२०११ ९०५१) ९११४१ २६३४लग ३७७०(+), २५(+), ६८२(+), ३६८५(+), ३७९१(+), ३७९३ (+), ६४९९-१(+), ३७१४(+#), ८६१० (+), ३८(+), ३५३९(+), ३६८४(+#), २६३२(+#), १२(+#$), ८३१५ (+#$), ३६९६ (+#$), १४७३(+#$), ६८५ (+8) ६९४निक * 1823(+) 38(+) 3149/+$1311(+5) ० ३८१२/०३ ६६२८(+$), ७३५८(+$), ८२१३(+४), ९२८५(+$), ५५३९(+$), ६७४८(+$), ८२१० (+), २०६० (+), ७०२२(+), ७८६ (+), २६६५ (+), ३७३३-१, ८५६, ३५००-१, ६७६, ६८६, २६. ७०७९८, ६५२८, ३५ २० १६००) २४६९१क) ३५१७१ २७८५-१क ३९२० ४६७२ श ६६०९१ ६८३० ७६९४($), ९२६(s), ६४३९(३), ६९२८ ($), ६९४०($), ६९४४($), ७०९६३ ५५८७१ २१८९ ३७७९ ६३४०
(२) कल्पसूत्र- व्याख्यान + कथा, ऋ. उत्तम, मागु., गद्य, भूपू.. (श्रीऋषभजिन ) ३७७२
(२) कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मागु.. गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद) ४७३९(३), ८६१७($)
T
L
(२) कल्पसूत्र- व्याख्यान, सं., गद्य, मृपु. ( प्रणम्य) ३७४८-११० (२) कल्पसूत्र - व्याख्यान कथा, सं. गद्य, मृपू. (तत्रादी) २४*)
"
३०-११) ६८११) ३७०९१) २७०५०) २०३५११ २०६दुपा
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३०२९(+), ३७१५(+), ३७२७ (+), ३७३६ (+), १२७३६(४) ७६१३(+$), ८१५ (+), ११७५(+$), ८७४१(+), ३४८५ (+), ६९३, ३७३१, ३७३४, ३७३२, ३०५३(#$)
(२) कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, सं., मागु., गद्य, मूप्पू., ( प्रणम्य ) ३६९८०) ३६८९-११)
कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा. १० अध्ययन गद्य भूपू (जति णं भंत) 09-21 १३१-३१) १५०-३ १७५७-२१२, २०५५-२० ४१३९-२ (+), ४१८१-२ (+) ७०६५-२(+), ८२२९-२(+), ८८१३-२(+), ६९-२(*), ६६७-२(+), २१७१-२(+), ४६४२-२ (+), ८८६८-२(+),
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४४७
२७५२-२(१), ६८३८-२(48), ११५-२, ६६९-२, २०५७-२, २९६६- | (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू.. (तस्य तीर्थ) २, २९८६-२, ५३४०-२, ६५५३-२, ८४२४-२, ८३३१-२६)
४८२८ (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (३) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका का अर्थ, श्रा. अखैराज श्रीमाल, (श्रेणिकनप) १५०-२६), ५६४८-२, ८८८४-२, ६५५३-२
प्राहि., गद्य, मूपू., (तेजु है) ४८२८ (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जौ हे भगवन) | (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., ग्रं.६५०,
२०५५-२(+), ४१८१-२(+), ७०६५-२(+), ८२२९-२(+), ६९-२(+), वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पा) ७७०५९), ६१६२,
११५-२, ६६९-२, २०५७-२, २९८६-२, ८४२४-२, ८३३१-२(5) ६८४६(७), ९०४८(5), ९१८७६) (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मागु., ग्रं.२८६८, गद्य, | (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (जउ हे पूज) ४१३९-२६), ५३४०-२
मूपू., (सर्वज्ञ) २५९६६), २११९, ३८९२(१), ३०५१(१) कल्पिकासूत्र, प्रा., १० अध्ययन, गद्य, मूपू.. (तेणं कालेण) ७१- (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणसागरसूरि, सं., ग्रं.२५०,
१९). १३१-१*), १५०-१९५), १७५७-१२), २०५५-१). ४१३९- गद्य, मूपू., (यो नित्यं) ९१४-२ १(+), ४१८१-१+), ७०६५-१(+), ८२२९-१(+), ८८१३-१(+), ६९- (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, पाठक हर्षकीर्ति, सं., गद्य, मूपू., १+), ६६७-१(+), २१७१-१(+), ४६४२-१(4), ८८६८-१(+), २७५२- (श्रीमत्पार) ४८०५-१, ३२८७, ८६९२(३) १(+#), ६८३८-१(45), ११५-१, ६६९-१, २०५७-१, २९६६-१, (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-सौभाग्यमञ्जरी टीका, सं., ग्रं.३४६, २९८६-१, ५३४०-१, ६५५३-१, ८४२४-१, ८३३१-१७)
गद्य, मूपू., (किलेति सत) ५५१६, ४३७२ (२) कल्पिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-अवचूरि*, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ) १५०-१(+), ५६४८-१, ८८८४-१, ६५५३-१
(रागादि शत) ६४५१(+) (२) कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतराग) २०५५- (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-पद्यानुवादचोपाई, कवि बनारसीदास,
१९), ४१८१-१(+), ७०६५-१(+), ८२२९-१(+), ६९-१(+), १३१- प्राहिं., गा. ४४चोपाई, पद्य, दि., (परमज्योति) ६०५९-२(१) १), ११५-१, ६६९-१, २०५७-१, २९८६-१, ८४२४-१, ८३३१- (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-बालावबोध*, मागु., गद्य, मूपू., (किल
इति सम) ८८०६५), २२२३-१(+#5), ६३२७७) (२) कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मागु., ग्रं.२८६८, गद्य, मूपू., (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-बालावबोध, मु. उदयहर्ष, मागु., गद्य, (तेणि कालि) ४१३९-१(+), ५३४०-१
मूपू., (प्रथम मङ्ग) ५२०३ कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., श्लोक (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (कवीशं
४४, पद्य, मूपू., (कल्याणमन्द) २५९-२(+), १३६८), २६२६- सद्ग) ३२२२(+). ५३३४(+) ५६(+), ३२२२+), ६०८३-४), ६४५१), ६७८७९+), ७५५१-५(+), | (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (केहq छ) ७७०५५), ८८०६(+), ९२००(+), १४८५-१२(+), ५३३४.५),
६७८७५), ९२००५), ४१५१९+#), ३२०८+#), २८०४+5), ६७५२(+), ३२०८(१), १६२१(१), ४१५१(६), २२२३-१(+#S), ४५२२६+६), ६३४९६+६), ४२०३, ५१२९, ७८१०-२, ८६४८, २९९७-२९(45), २४५२-३(45), २८४०-२(45), २८०४(45),
३३५०-२(5) ४५२२(45), ६३४९(45), १७८६-२, २११९, २१२२, ४२०३, ४८०५- | (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (मङ्गलिकनुं) १,४८२८, ४९३६, ५१२९, ५२०३, ५२३८-३, ५४९०-४०,
२१२२, ९१९९-१, ७९१६-५६६) ५५१६, ५८२७-८२, ६०११-१३, ६०९३-३, ६१६२, ७८१०-२, (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मु. रूपचन्द्र, मागु., वि. १८११, ९१९९-१, ९१४-२, ८६४८, ११०८, ३२८७, ४३७२, ३८९२१), गद्य, मूपू., (जिनेश्वरस) ६३२०-२(5) ३०५१(१). ५४८९-१०६), ५६७९-३(७), ६३२०-२(5), ६७८१-२(5), (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, आ. वर्द्धमानसूरि, मागु., ६०१९-२(१), ३३५०-२(१), ७९१६-५(१), ८६९२(१), ८९२७-१(१), ___ ग्रं.४२५, गद्य, मूपू., (कल्याण कहत) १६२१+#) ६३२७६, ७५५३-२(६)
(२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-अन्वय, सं., श्लोक ४४, पद्य, मूपू., (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (तद्यथा उज) (किलेति सत) ४९५२
कल्लाणकन्द स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकन्द) (३) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका का अर्थ, राज., गद्य, मूपू., (-) १७९२-२(१), १४८५-३९), ६०८८-१७, ७५४१-७, २३३६-१,
१७९१-१२), ६०१९-९७), ६०४१-१(७), ६०५९-१५९६),
98)
६७५२(4)
६७५२(+)
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४४८
२८४५-२२१
कवलचन्द्रायणव्रत कथा, सं., श्लोक ८७, पद्य, दि., (अथ नत्वा) ६००२-२७०
कवलचन्द्रायणव्रत कथा, सं., श्लोक ४५, पद्य, दि., (महावीरं जि) ६००२-तण
कविशिक्षा श्रा अरिसिंह, सं. ४ प्रतान, ईस. १३वी, पद्य, मृपू.. (वाचं नत्वा) ७२५९ ९ongth)
(२) कविशिक्षा-कविकल्पलता वृत्ति, देवेश्वर, सं., ४ स्तबक, ईस. १३५७, प+ग, () ७४७८
(S)
(२) कविशिक्षा- काव्यकल्पलतावृत्ति, यति अमरचन्द्र, सं...
ग्रं. ३३५७, ईस. १३वी, गद्य, मूपू., (विमृश्य वा) ७२५९ (+३) (३) कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति पर स्वोपज्ञ परिमल वृत्ति,
यति अमरचन्द्र, सं., वि. १३वी, गद्य, (श्रीशारदां) - <प्रतहीन > (४) कविशिक्षा-मकरन्दवृत्ति, गणि शुभविजय, सं. ६ प्रसर, वि. १६६५, गद्य, मूपू., ( श्रीमद्घोष ) ९२७० (+)
कष्टज्ञान विचार, सं., मागु., प+ग, जै., (ॐ सच्चं) ४१७०-२ (+) काकोदरेश्वर स्तुति, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू., ( इहाष्टधा ) ३११५-४
कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमण्डनसुरि, प्रा., गा. २४, पद्य, भूपू .. (जह तुहदंसण) ४०५१) ४१०३) ४५६८-११ ५१०५. ५०६८-१
(२) कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, मूपू., (जिम ताहरे) ४०७१) ४१०३०) ४५६८-१११ ५१०५. ५०६८-१
कार्तिकपूनम व्याख्यान, प्रा., मागु., गद्य, मूपू., (सिद्धो विज)
६०७०-१
.
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कालज्ञान, शम्भूनाथ, सं., श्लोक २५५, पद्य, (कालज्ञानं) ५५२६q(#$)
कालविचार शतक, आ. मुणिचन्दसूरि, प्रा., गा. १००, पद्य, मृपू., ( नमिय जिण) ६०४४-५ (+)
कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसुरि प्रा. गा. ७४, पद्य, मृपू.. (देविन्दनयं) ४१५७/९ ७६४०८७८४३० ५८३५. ७४५३, ३०६१, ५१८३ ($)
"
(२) कालसप्ततिका - बालावबोध, उपा. धनविजय, मागु., ग्रं. ३५०, गद्य, मृपू. ( ध्यात्वा) ७४५३
(२) कालसप्ततिका- टवार्थ, मागु, गद्य, ग्रुप्पु. ( इन्द्र महा) ४१५७(+), ७७७६ (+$), ४०८७, ५८३५, ३०६१, ५१८३(क) कालिकाचार्य कथा, सं., श्लोक ६५, पद्य, मृपू.. (श्रीवीरवाक)
che
कालिकाचार्य कथा, मु. महेश्वरसूरि शिष्य, सं., श्लोक ५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (पञ्चम्यां) ६८४-२ (+)
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
कालिकाचार्य कथा, आ. विनयचन्द्रसूरि, सं., गा. ८८, वि. १४वी पद्य, (उत्पत्ति) - < प्रतहीन >
(२) कालिकाचार्य कथा - बालावबोध, मागु, गद्य, मृपू.. श्रीमहावीर) ५६३६
($)
कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., ग्रं.४४१, वि. १६६६. प+ग, भूपू (प्रणम्य) १८३०, १२४५-११ ६१८७-११) ४२२१(+), ३३२६, ५७८७ कालिकाचार्यसमय विचार, सं., गद्य, मृपू., (श्रीवीरनिर) २५६४
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"
काव्यचमत्कृति श्लोक सं., श्लोक ५, पद्य, (बाश्वारेड) २३४२-३३ कुमारपाल प्रबन्ध, उपा. जिनमण्डन, सं., वि. १४९२, प+ग, मूपू., ( ॐ नमः श्र) ३२५
कुमारसम्भव, कालिदास, सं., सर्ग १७, पद्य, (अस्त्युत्त) ५४५(+) (२) कुमारसम्भव-सुबोधिका व्याख्या, गणि श्रीविजय, सं., सर्ग ७, गद्य, मृपू., (श्रीशङ्खश) ५४५ (+)
कुम्मापुत्त चरिअं, मु. माणिक्यविमल, प्रा., गा. १९८, ग्रं. १०००, पद्य, मृपू. (नमिऊण वद्ध) ४९९५ १ ५६०५
"
९२७, ५९५९, ८६८१
(२) कुम्मापुत्त चरिअंटबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., ( वर्द्धमान) ४९९५९ ७८५११० ९२७, ८६८१
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कुर्मापुत्र चरित्र, सं., पद्य, मूपू., (श्रेयः श्र) ४०४७ कुसुमाञ्जलि, प्रा., सं., गा. ९, पद्य, मूप्पू., (मुक्तालङ्क) २७६३-१ कृपारस कोश, उपा. शान्तिचन्द्र, सं., श्लोक १२८, पद्य, मूपू., (येनादर्शि) ४९६१
कोकिलापञ्चमीव्रत कथा, सं., श्लोक ४१, पद्य, दि., (प्रणम्य वी ) ६००२-५८
कोकिलापञ्चमीव्रत विधान, सं., गद्य, दि.. ( नमः श्रीवर) ६००२30+3
कोटीशिला स्तवन, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (सिद्धिसुहस ) ६०४४-३
क्षमा कुलक, प्रा., गा. २५, ग्रं. ७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण पुव ) ३३२१
(२) क्षमा कुलक-टवार्थ, मागु., गद्य, सूप्पू (नमीनइ पूर) ३३२१ क्षमापना श्लोकसङ्ग्रह प्रा. गा. २. पद्य मूपू. (संसारम्मि)
"
"
,
३५४५-रान
(२) क्षमापना श्लोकसङ्ग्रह-टवार्थ, मागु, गद्य, मुपु. ( संसारमा) 2484-21
क्षुद्रोपद्रवनिवारण विधि, सं. गद्य, मृपू. ( नतु पाक्षि) ६०६२-१७) क्षुद्रोपद्रवनिवारण विधि, सं. मागु, गद्य, मुपू.. (अमृत रीजी) ६०६६-६
"
"
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४४९ क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (सर्वे यक्ष) | (२) गुरुवन्दनभाष्य-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (गुरुवन्दन) १०१४-२
४०१७+), ४०५० खण्डप्रशस्ति, कवि हनुमत्, सं., १० अवतार, श्लोक १५९, गोचरी आलोअण गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अहो जिणेहि) ग्रं.३३६, पद्य, वै., (कृत क्रोधे) ७०२६+5), २७०८(5)
६०९१-१६) (२) खण्डप्रशस्ति-सुबोधिका टीका, आ. गुणविनयसूरि, सं., वि. | गोचरी आलोअण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (कालेणय गोअ) १६४१, गद्य, मूपू.. (श्रीपार्श) ७०२६(45), २७०८(5)
१७९४-२५(२) खामणाकुलक, प्रा., गा. ३८, पद्य, मूपू., (जो कोवि मए) १७३- । गोचरी आलोअण विधि, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू.. (गोचरीथी आव) ३६), ६८३९-२(5)
१४९०-६ गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., गा. १३७, पद्य, मूपू., (नमिऊण महाव) | गोचरी के ४२ दोष, प्रा., गा.६, पद्य, मुपू., (आहाकमुद्दे) ७८८०
४५, ७९२९, ९०८९ (२) गच्छाचार प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., ग्रं.५००, गद्य, मूपू., (आदौ | (२) गोचरी के ४२ दोष-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (गृहस्थ सची) शास्त) २५६४-१+7. ७९२९, ९०८९
७८८०-२(+) (२) गच्छाचार प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार कर) गोम्मटसार, आ. नेमिचन्द्र, प्रा., पद्य, दि., (सिद्धं सुद) २०२+5) ४५
(२) गोम्मटसार-भाषा, राज., गद्य, दि., (सन्दृष्टे) १५०६(+) गजसिङ्घकुमार चरित्र, आ. विनयचन्द्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (२) गोम्मटसार-सम्यक्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका, पण्डित टोडरमल (प्रणम्य भा) ९२१(७)
(दिगम्बर), प्राहिं., गद्य, दि., (वन्दौ ज्ञा) २०२+5), १८८० गर्भापहार गाथा, सं.,प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (योनिद्वारे) १४८९-७ | गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा) ४१६३(+), गाथा सङ्ग्रह, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू.. (वाणिय गामे) ८८५१-२ ७५५१-२१(+), ४११८-२(45), २९२५, ३०६२, ३१३४-१, ३३६१, गुणमाला, उपा. रामविजय, सं.प्रा., वि. १८१७, गद्य, मूपू.,
४००५, ४४६६-२, ८३८३-१, ८९७५, २४५०(७), ७७९४(६), (प्रत्यक्षी) ९७४ (२) गुणमाला-स्वोपज्ञ टीका, उपा. रामविजय, सं., वि. १८१७, (२) गौतम कुलक-टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., वि. १६६०, गद्य, मूपू., (स श्रीसिद) ९७४
गद्य, मूपू., (नत्वा श्री) ७११५(5), ७९११(5) गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लोक १३५, वि. (२) गौतम कुलक-बालावबोध कथा, पं. पद्मविजय, मागु., वि.
१४४७, पद्य, मूपू., (गुणस्थानक) ३८९१९), २६१५६). २००, १८४६, गद्य, मूपू., (नत्वा श्री) २४५०६, ७७९४(5) ५२२३
(२) गौतम कुलक-बालावबोध कथा, ऋ. रिधु?, मागु., गद्य, जै., (२) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., वि. | (सुयदेवी सम) ४१६३६), ४००५ १४४७, गद्य, मूपू.. (अर्ह पदं) ५२२३
(२) गौतम कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनु) (२) गुणस्थानक्रमारोह-बालावबोध, मु. श्रीसार, मागु., वि. १६९२, ३१३४-१, ३३६१, ४४६६-२, ८३८३-१, ८९७५ गद्य, मूपू., (सुरासुरनरा) २००
(२) गौतम कुलक-टबार्थ+कथा, मागु., गद्य, मूपू., (अर्थोपार्ज) गुणानन्दचूडामणि निगम, सं., अध्याय ७, गद्य, मूपू., (ये पूर्वेह) ३०६२
गौतमपृच्छा, प्रा., गा. ६४, पद्य, मूपू.. (नमिऊण तित) १९४५), गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. २३१(+), २३३(१), २९३३(+), ३१९३(+), ८४२९-१(+), ८६७६(+), ४०, पद्य, मूपू., (वीरस्स पए) २८३६(+#5)
२४६३६), ६३३७-२(+), ३८५०+), १२६५(१), ४५९९-२+#S), (२) गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ दीपिका टीका, ४३९८+६, ७४१९(+5), १०३९, २२९५, ५३३०, ५३३९, ५३७९, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., ग्रं.१३००, गद्य, मूपू.. (श्रीमदह)
५३८४, ५८९१, ५९४७, ८७३४, १११०, २७८४, २०८, ४९१९,
५९२८-२(६), ६८०५७), ७०३३(७), ७०४८(5), ७१६३(5), ८०४८(5), गुरुतत्त्वप्रदीप, सं., ८ विश्राम, श्लोक २४१, पद्य, मूपू.. (प्रणम्य) ३९२६(5), ५१३७६-) ४१६०+4). ६०९९, ८८७४
(२) गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., ग्रं.१६८२, वि. १७३८, गुरुवन्दनभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. ४१, पद्य, मूपू.,
गद्य, मूपू.. (वीरजिन) ३१९३६), ३८५०(+), ४३९८(45), ५३३०, (गुरुवन्दनण) ४०१७+), ४०५०, ६४०४-२
५९४७, ६८०५७), ७०३३(5)
७९११)
१८९६)
२८३६(4#5)
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(२) गौतमपृच्छा - बालावबोध, आ. जिनसूरि, मागु., गद्य, भूपू., (नत्वा कहता) २३३). ८६०६१) २४६३१९ १२६५०० १०३९. २२९५, २०८, ३९२६ ($)
(२) गौतमपृच्छा - बालावबोध *, मागु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ ) १९४(+), ५३३९, ५३८४, ५८९१, ७१६३(३), ८०४८($) (२) गीतमपृच्छा वातावबोधकथा' मागु, गद्य, मुपु. ( एकई गाणि ८४३४ ७०४८
($)
(२) गौतमपृच्छा-टबार्थ, मागु., गद्य, मृपू., (तीर्थनाथ) २९३३ (+), ८४२९-११) ४१ ५३७२ १११०, २७८४ ४९१९. 4938/31
(२) गौतमपृच्छा-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (श्रीवामानन) २३१ (+) (२) गौतमपृच्छा-कथा सङ्ग्रह *, मागु., गद्य, मूपू., ( वसन्तपुर) २९३३, ५३३९, ५३७९ २०८ ४९१९. ५१३७मा गौतमस्वामी काव्य, सं., श्लोक १, पद्य, मूप्पू., (अब्धिर्लब) ३६८९ - रा
गौतमस्वामी स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (सर्वारिष्ट) ५८२७
७१
गीतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानन्दसूरि ? सं., श्लोक १०, पद्य, मूपू., ( इन्द्रभूति) ५०२१-१, ५४९०-७३, ५८२७-४८, ६२६९-६, ६३११-२
(२) गीतमस्वामी स्तव-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू.. (महावीरना)
५०२१-१
ग्रहदृष्टियोग, सं., श्लोक २, पद्य, जे. (प्रावृषि) ८६८८-३ ग्रहशान्ति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लोक १०, पद्य, मृपू..
(जगद्गुरुं) ४६३३-३(+), ५८२७-७३, ५८९९-६३, २१०१-५ घटखर्पर काव्य, कवि घटकर्पर, सं., श्लोक २१, पद्य, (निचितं खमु) ६२४७
(२) घटखर्पर काव्य-टीका, आ. शान्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रोषितप्र) ६२४७
घण्टाकर्णमहावीर स्तोत्र, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., ( ॐ घण्टाकर) ७७३६-६, ६०५९-६($)
घृतपतनदोषनिवारण विधि, सं., गद्य, मुपू., (अथ कदाचित) ६०६२-१५०
चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, आ. जिनदत्तसूरि सं., श्लोक १०, पद्य, मूपू., (श्रीचक्रेश) ७५४७-१ (+), ५८२७-७६
"
चतुःपर्वी विचार, प्रा., सं., गद्य, मूपू., (श्रीसिद्धा) ६४४१ (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र प्रा. गा. ६२. पद्य, मृपू (सावज्ज जोग) १४७० ३५५९ ३९१६११ ४०००(५) ४९०४९% ५०९०१) ७५५१-१४८% ८४९३-११) ८८८pl ४३(+), २०७९-१(+), २५८८ (+), २७६०(+), ३५७९(+), ६३३७-३(+),
"
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
६८८३ (+), ४४(+), १६१३ (+३), ६८३७ (+), ७२५२ (+), ८४४, १८६८, २०८०, ३१०३, ३१७५, ४०५४-१, ४३३१, ६४५३-१, ६५६३, ७६७१-१, ७८१०-३, ८९८६, ९०९०-१, ९१८०-३, ९२०३, ४५५४, ७९०२-४, ८३८७, ६८३६, २७०० ("), ६८३९पक्षि ७९१६-राक्ष ५९२८ - पाका २०७८ाइ ५२६४-११ ६३०० ७६६३का ९२१८-४क
7
(२) चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, भूपू.. ( इदमध्ययन) १४७० ७२५२- २७००)
(२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टिप्पण *, सं., गद्य, मुपू., ( सामायिकं ) ७५५१-१४)
(२) चतुःशरण प्रकीर्णक- बालावबोध, मागु., ग्रं. ३४७, गद्य, मूप्पू., (पहिलं छ ) ४१०४(+), १६१३ (+), ४३३१, ९०९० - १, ६८३९-१ (४), $300
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P
(२) चतुःशरण प्रकीर्णक- बालावबोध, मागु, गद्य, भूपू. ( सावद्य योग) ४०००) ३५७९ ६८८३
(२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (चउसरण पड़ना) ५०९०१ ८८८९ ४३९ २७६०९ ६८३७/०६१ १८६८, ३१७५, ७८१०-३, ८३८७, ७९१६-२ (६), २०७८ ($), ५२६४-१मा ७६६३शा
(२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., ग्रं. ३४१, गद्य, मुपू., (प्रणिपत्य ) २५८८ ८४४. ६५६३, ८९८६, ९२०३ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., वि. १७३२, गद्य, मुपू., ( सावद्य योग) २०७९-१ (+)
(२) चतुःशरण प्रकीर्णकटबार्थ, गणि लाभकुशल, मागु., गद्य, मूपू., ( प्रणम्य) ३१०३
चतुर्वर्गव्याख्यान, सं., पद्य, मूपू., (धर्मार्थका ) ८२७७(ड (२) चतुरवर्गव्याख्यान- बालावबोध+कथा, सं. गद्य, भूपू ( वीतरागजिनं) ८२७/
"
(२) चतुर्वर्गव्याख्यान - टवार्थ, मागु., गद्य, मृपू. (धर्म अर्थ) ८२७७ (३)
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चतुर्विंशतिजिन स्तुति, सं., अधिकार, पद्य, मृपू., (--) ८००८ (S) (२) २४ जिन स्तुति, सं., गद्य, भूपू., (-) ८००८ (S) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पण्डित सङ्घविजय, सं., श्लोक २९, पद्य, भूपू.. (वृषभलांछनल) ६०९६-११११ चतुर्विंशतिस्थानक, प्रा., गा. १९९, पद्य, मृपू., (सिद्धं शुद ) ८५९० (+)
(२) चतुर्विंशतिस्थानक-टीका, सं., गद्य, मुपू., (पुनः कथम्भ) capola
चन्दनषष्टिव्रत कथा, सं., श्लोक ४१, पद्य, दि., (वर्द्धमानं) ६००२-६०(+)
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४०२७)
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४५१ चन्दनषष्टिव्रत कथा, आ. छत्रसेन, सं., श्लोक ७७, पद्य, दि., (अरिहननरजोह) २६३०-१ (जिनं प्रणम) ६००२-४४(+)
(२) चारित्रसार-टिप्पणक, सं., गद्य, दि., (नमोनन्तसुख) २६३०-२ चन्द्रगुप्त सोलहस्वप्न विचार, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेण) चार्चिक, सं., गद्य, मूपू., (अवरुप्यरस) ६२८५ १९९१-१(+)
चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., श्लोक १२३२, चन्द्रदूत काव्य, कवि जम्बू, सं., श्लोक २३, पद्य, मूपू.,
_ वि. १५२४, पद्य, मूपू., (नत्वा जिनप) ३३९(+), ८०४९-२), (यदतिसितशर) ८०५२
४२५७+5), ८३९, ३४१७, ३७६८, ३९५४, ५५४०, ७६७८, (२) चन्द्रदूत काव्य-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू.. (जम्बू नाग) ८०५२
७८९७, ८१७८, ८५२०, १९८६), ७४७७(), ७६०४(5) चन्द्रधवल कथा-अतिथिसंविभागवते, आ. माणिक्यसून्दरसूरि, सं., । (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (अशरण ग्रं.४००, गद्य, मूपू., (इह भरतक्षे) ४२५५(4)
शरण) ८०४९-२(१), १९८६(७), ७४७७(5) चन्द्रप्रज्ञप्ति, प्रा., २० प्राभृत, ग्रं.१८५४, पद्य, मूपू., (नमो अरि०) | (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, गणि भक्तिविजय, मागु., ६३), ७०(+), ५४५७), ६२२३+5), ४०२७६)
गद्य, मूपू., (अद्य क० पह) ८३९, ३४१७, ३७६८, ३९५४, (२) चन्द्रप्रज्ञप्ति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं.९४००, गद्य, ७६७८ मूपू., (मुक्ताफलमि) ९२४८(+)
चैत्यप्रतिष्ठा विधि, सं., श्लोक २८+४०, पद्य, मूपू., (विषमैरगु) (२) चन्द्रप्रज्ञप्ति-टबार्थ", मागु., गद्य, जै., (-) ६२२३(+5),
८५५०
(२) चैत्यप्रतिष्ठा विधि-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (विषम क० एक) चन्द्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू., (ॐ चन्द्रप)
८५५० ६२७९-२६), ६०७७-२, ६०९६-१०६६)
चैत्यवन्दनभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू., चमत्कारचिन्तामणि, राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, (क्वणत्किङ) (वन्दित्तु) ४२३४(+), ४११३(+). ३१६८+#), ४२४२, ८७७४, ७३५६
६४०४-१ (२) चमत्कारचिन्तामणि-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवामेय) (२) चैत्यवन्दनभाष्य-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (वं कहतां) ७३५६
३१६८) चम्पकमाला कथा, प्रा., गा.३४४, पद्य, जै., (सम्मत्ते) २८८०-१ (२) चैत्यवन्दनभाष्य-टबार्थ', मागु., गद्य, मुपू., (-) ४११३(१) चरणसत्तरीकरणसत्तरी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (एवय | (२) चैत्यवन्दनभाष्य-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (वन्दित्तुं) ४२४२ समणधम) १८२०-२+#)
(२) चैत्यवन्दनभाष्य-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (वान्दि करक) चाखनाम, सं., श्लोक २, पद्य, (अशोकश्च वि) ६३४१-२(+)
८७७४ चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (सामाइकावश) चैत्रीपूर्णिमा विधि, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम जागा) ६०६२
५९८०१, ५९८१, ६२७६, ६५८९, १८८७, १८५७ ७१६६६६), ८७३९(5)
चैत्रीपूर्णिमा व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., वि. १८६९, गद्य, मूपू., (२) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (तीर्थराज) ६०८४-४), ६०८५-४(+5), ५७४१, ५८३०-२ (आसाढ चौमास) १८८७)
चोर-साहुकारपरीक्षा, सं.,मागु., गद्य, जै., (ॐ नमो इन) ७८२१-४ चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., ग्रं.४०१, गद्य, चौमासी देववन्दन, मागु.,प्रा., प+ग, मूपू., (-) ५४१९
मूपू., (स्मारं स्म) २७६८०, ४७९४), ५५६०५), ६०८४-१(+), छन्दोनुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अध्याय ८, ५५८३-१(45), ३४२४, ४४८२, ६१२२, ८७८५
गद्य, मूपू., (वाचं ध्यात) ५६८५९+#5), ४७२५, १९३९ चातुर्मासिक व्याख्यान, सं.,राज., पद्य, मूपू., (सामायिकावश) (२) छन्दोनुशासन-स्वोपज्ञ छन्दचूडामणि वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि ३५८३, ३११८-१
कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., (शब्दानुशास) ५६८५९+05), चातुर्मासिक व्याख्यान, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., वि. १६६५, ४७२५, १९३९ गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) ५८७४, ३१९५, १८८६(३)
जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, मूपू., (नीचोनितास) चातुर्मासिक व्याख्यान, ऋ. सुरचन्द्र, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., ८७९९, ३१५९७), ७६७९-१(5), ७७१२(5),७८७१(६), २३८०(5) (प्रणम्य) २२००(+)
जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, गणि पद्मसुन्दर, प्रा., २१उद्देश, गद्य, चारित्रसार, चामुण्डराय, सं., ग्रं.१७००, प+ग, दि.,
मूपू., (तेणं कालेण) ७२१(+), १९५६(५), २६४३(+), ३५४७+),
१२(5)
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४५२
४४२६ (+), ६१२९(+), ७४४६ (+), ७२२, १२६६, २३७६, ३०५२, ४५०६, ५२६८, ५४६८, ७७२४, ७७६४, ८५४७, ४४८३ (क), ८८९३
(S)
(२) जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-बालावबोध, मागु, गद्य, मृपू., (हवे चोथा) २९८ ७३०६ (२) जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ*, मागु., गद्य, मूप्पू., (--) ३०५२ (२) जम्बू अध्ययन प्रकीर्णक-टवार्थ मागु, गद्य, गुप्. (ते काल
"
चउथ) ७२१ (+), ४४२६ (+), ७४४६ (+), १९५६ (+), ७२२, १२६६, २३७६, ४५०६, ५४६८, ७७२४, ८५४७
(२) जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू.. (ते कालने) ३५४४) ५२६८ ७०६४ ८८९३
२६४३
(२) जम्बू अध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मागु, गद्य, मृपू., ( एक समें) २८३८१
"
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.
(२) जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मागु, गद्य, मृपू.. (एही ज जम्ब) राज्
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., ७ वक्षस्कार, ग्रं.४१४६, गद्य, मूपू., ( नमो अरिहंत) १३२१, १४८१), १३८९१०), ३६८०१९), ३७६२१ ६६६ (+), ९५९ (+), ९२७४(+), ३४५४(+), ९२९५ (+), २१६२ (+#$), १५१/ २६८७/०१ ४४०७, ६८, ८३३८१
(२) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं. ग्रं. १४२५२ वि. १६३९, गद्य, मूपू., (जीयात् तेज) ९२९५ (+)
(२) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति- टीका, उपा. पुण्यसागर, सं., ग्रं. १३२७५, वि. १६७५, गद्य, ग्रुप.. (प्रथमनाथमह) ११९)
(२) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति प्रमेयरत्नमञ्जूषा टीका, उपा. शान्तिचन्द्र सं., ग्रं.१२०००, वि. १६५१, गद्य, मूपू., ( जयति जिनः) २६३७(+), ८३३८ (४)
"
(२) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टवार्थ, मागु, गद्य, ग्रुप्पू, (ते ते काल) ३४५४(+), २१६२ (+#$), २६८७(+$)
(२) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., ग्रं. १५०००, वि. १७७०, गद्य, मृपू., ( श्रीसिद्धा) १३२ (+), ३६८०(+), ९५९(+), ९२७४(+), ४४०७, ६८
(२) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे भरतचरित्र, प्रा., अध्याय ३६७-७१, गद्य, मूपु. ( तेण से भर ) ८९९२०४ (३) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - हिस्सा भरतचरित्र का टवार्थ, मागु., गद्य, मृपू.. (विहवार पछी) ८९९३०
(२) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-यन्त्र सङ्ग्रह *, मागु., गद्य, मूपू., (-) १०४३)
जम्बूस्वामी चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (-) ७९३४($)
जम्बूस्वामी चरित्र, प्रा., प+ग, मृपू., (नमिऊण वद्ध) ६०९८ (#) (२) जम्बुस्वामी चरित्र - टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू., (नमस्कार कर)
"
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
६०१८
जम्बूस्वामी चरित्र, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, सं., सर्ग ११, 4. ३०००, पद्य, दि., (श्रीवी) ३७८७
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. गा. ३०, पद्य, मूपू., (जयतिहुयणवर) १४८५-५ (+), १७९४-२८(+), २४५२ - १(+$), २९९७-१०१ १५४३-२-६३ ७३७ २७१२ ५४९०-३६. ५८२७७८, ५८७०, ६३५३, ६७६८-२, ८९८२, ६०११-८, ७७७८ (#), ५४८९-१मा ७०८६-४१ १६२५-११मा ६०७३-११
(२) जयतिहुअण स्तोत्र - टीका, सं. ग्रं. २५०, गद्य, मूपू., (अत्रायं वृ) ७३७, २७१२, ५८७०, ६३५३
(२) जयतिहुयण स्तोत्र - बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु, गद्य, मृपू., (जय सर्वोक) १६२५-१($)
(२) पार्श्वजिन स्तवन- स्तम्भन-बालावबोध, मागु., गद्य, मुपू., ( जयतिहुअण) ३६५६
जयविजय चरित्र, सं., श्लोक ४७३, पद्य, जै., (जीवाई नव)
६६०८
(२) जयविजय चरित्र - टवार्थ, मागु, गद्य, जै., (जीवादीक नव)
६६०८
जलयात्रा विधि, सं., गद्य, मुपु. ( प्रणम्य) ६१८३०
जलयात्रा विधि, सं.,मागु., पद्य, मूपू., (जल यात्रा ) ८३७०-१ जवऋषि गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूप्पू., ( उहावसीहा) ८५५३-२ जातककर्मपद्धति, श्रीपति भट्ट, सं., अध्याय ८, पद्य, (नत्वा तो) २४४६)
(२) जातककर्मपद्धति-सुबोधिनी वृत्ति, गणि सुमतिहर्ष, सं., वि. १६७३, गद्य, मूपू., (श्रीअश्वसे) २४४६ (+) जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., श्लोक ९३, वि. १७६५, पद्य, मृपू. (प्रणम्य पा ) १७०२) ३०२३-५०) ७७९३ २४३९-१ (२) जातकपद्धति-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (प्रणम्य क०) ७७९३(+)
"
(२) जानकपद्धति-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू.. (प्रणाम करी) ३०९३-४१० २४३९-१
१७०३
जापविधि व प्रकीर्णफल श्लोक, सं., श्लोक २, पद्य, जै., (अङ्गुल्याग) ७०३२-२क्षण
"
जिनउदयसूरि स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मृप्पू. (ये ज्ञानाम) ७९६७-२११
जिनकल्याणकदिन स्तव, प्रा., पद्य, दि., (सिद्धि: पण ) ६००२ - 92(+)
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जिनकल्याणकमाला, श्री. आशाधर, सं., श्लोक ३५, पद्य, दि., (पुरदेवादिव) ६००२-४७(+)
जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. रत्नसोम, सं., श्लोक ९, पद्य, मृपू..
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
(देवराजपुरम) ५४९०-७१, ५८२७-६० जिनकुशलसूर अष्टक, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., श्लोक ९, पद्य, मृपू.. (श्रीधरालक) ६२०९-२३)
जिनगुणसम्पत्तिवत कथा, सं., गद्य, दि., (जिनाधीश) ६००२
अपर्ण
जिनगुणसम्पत्तिव्रत कथा, मु. लाहड, सं., श्लोक ७७, पद्य, दि.. (प्रणम्य) ६००२-७३
जिनदानादि विचारसङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु, गद्य, मृपू (भगवती सूत्र) ५६४४ २१६१-३००, ७०९२२क ८२६८-११
(s)
७१२३ ८०७६
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(२) जिनदाढादि विचारसङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, भूपू., (-) २१६१-३(#)
जिनदासश्रावक कथा, सं., श्लोक ४६, पद्य, जै., (आपतितः सङ) ८९८१-३(+)
जिनपञ्जर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लोक २५, पद्य, मूपू., ॐ ह्रीं ६२७९-८१
जिनपूजापुरन्दरखत कथा, सं., श्लोक ८८, पद्य, दि., (श्रीवर्द्ध) ६००२-६८)
जिनपूजापुरन्दरव्रत कथा, सं., श्लोक ३१, पद्य, दि., (श्रीसन्मति ) ६००२-६९)
"
जिनप्रतिमा अधिकार, प्रा., मागु., गद्य, मुपू., (जे कोई मूढ ) ५०६३ जिनप्रतिमापूजा सिद्धि प्रा. मागु, गद्य, मृपू. (--) ६७९५कि जिनप्रतिमावर्णन स्तुति, सं., पद्य, मृपू. (ऐन्द्रश्रे) ४९८१-३भि जिनबिम्बप्रतिष्ठा विधि, आ. रत्नशेखरसूरि. सं., मागु, गद्य, भूपू (श्रीपार्श) ३५५८, ३५४का
जिनबिम्बप्रवेशस्थापना विधि, सं., मागु., गद्य, मुपू., (पहिलु मुहू) ८८६७-३(+) ३३८८
जिनबिम्बस्थापना विधि, सं., मागु., पद्य, मुपू., ( नवइ प्रासा )
८३७०-२
जिनभवन दर्शनफलविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, भूपू., (वार्णवइकोसि) ६४९७-२
जिनमुखव्रत कथा, सं., श्लोक १०३, पद्य, दि., (प्रणम्य ) ६००२198(+)
जिनमुखावलोकनवत कथा, सं., गद्य, दि., (जयन्ति भव) ६००२29(+)
जिनरात्रिव्रत कथा, सं. गद्य, दि., (तपोलक्ष्मी) ६००२-२६" जिनरात्रीव्रत कथा, सं., श्लोक ८२, पद्य, दि., (प्रणम्य ) ६००२wale)
"
.
"
जिनशतक, मु. जम्बू कवि सं. ४परिच्छेद, श्लोक १०० वि. ११वी, पद्य, मृपू. (श्रीमद्भिः) ८८३४) ८९०३) ५९८८)
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४५३
(२) जिनशतक - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., ( एष सूर्यो) ५९८८ (8) (२) जिनशतक- अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., ( रागादिदोष) ८८३४(+), ८९०३
जिनसहस्रनाम स्तोत्र, श्रा. आशाधर, सं., श्लोक १४३, वि.. १२८७, पद्य, दि., (प्रभो भवाङ) ४८२० (+) जिनस्तवचौवीसी, मु. समन्तभद्रस्वामि, सं., २४ स्तव, पद्य, दि. (स्वयंभुवा) ७१८३-१
(२) स्तवचौवीसी - अवचूरि, सं., गद्य, दि., (स्वयं परोप) ७१८३9(+$)
जिनस्तवन चौवीसी, आ. लब्धिसागरसूरि मागु., प्रा., २४ स्तवन, पत्र, भूपू. ( नाभिराय कु) २०८८)
जिनस्तुति प्रार्थना सङ्ग्रह सं. प्रा. मागु गा. ८ पद्य, मृपू.. (मङ्गलं भगव) १७८६-४, ३१३१-२, १४०९-३)
जीतकल्पसूत्र, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १०५, पद्य, ( कयपवयणप्पण) - < प्रतहीन >
"
(२) जीतकल्पसूत्र- पूर्णि, आ. सिद्धसेन, प्रा. प+ग, मृपू (सिद्धत्यसि ३७
(३) जीतकल्पसूत्र - चूर्णि की विषमपदव्याख्या, आ. चन्द्रसूरि, सं., ग्रं.११२०, वि. १२२७, गद्य, मूपू., ( नत्वा श्री) ३६ (+) (२) जीतकल्पसूत्र- विषमपदपर्याय टिप्पण, सं. गद्य, मृपू.. (शास्त्रारम) ३४७२-१
(२) जीतकल्पसूत्र - यन्त्र, सं., यंत्र, भूपू., (-) ३४७२-१८) जीव अल्पबहुत्व सङ्ग्रहणी, प्रा. गा. २०, पद्य, मृपू. (रुअगा पत्थ) ६००४-२०
"
जीवभेद गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मुपू., ( नारयतिरिनर) ७५५१२३(+)
जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि प्रा. गा. ५१, पद्य, मृपू.. (भुवणपईवं) १६३ - २ (+), २२९(+), ९४४(+), १२१६(+), १८९३ (+), २१८२(+), २६२६-६४(+), ४१९७(+), ५०३२(+), ५७२७-१ (+), ७५५१-१२ (+), ७७०० (+), ७७६८-१ (+) ७९६२ -२ (+), ८६५४-१(+), ८०२०) ११०१-१) १४८५-१६१) २१९५९ २३००-११), २७७७-१(+), ५९६९(+), ६३३७-४ (+), ७९४५(+), २९५८ (+), ४३४६ - १(+), ९०७७-२(+), ७०३१(+#), १८२३ (+), २२०५ (+), २२१९ (+), २९५राम २८३५/नमा १८ सुनाया ५५५-सम्मका २५३३/-*) २९९७-३०(+$), ४३१२-१(+), ७५७३-२(+), १७९९-१९(+$), ३३७३-३(+$), ६५२७-२(+s), १५५५-२ (+s), २८२९ (+), ४३४-१,
१००३, १०८१, १४५०, १५८५-१, १७७८-१, ३०१७, ३५६१-२, ३५८१, ४०५२, ४१९९ ४९३९, ५४९०-४५, ५७२५ ६०११-१६, ६४९३-१, ८३३६, ८३४५-२, ८३६७-२, ८४७८-२, ८९३६. ८९७७, ९०५९,९१८०-२, ९३०३, ३०६३, ३५७१-१, ६७५१,
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४५४
७२४३-३, ७८०२-१, ७९०२-३, १७७४, ५००१, ९३०२.
९२८९ ५६२२-१ ७०४९-२० १४८७-२
६६३५-शक ९१६६-शका ९२१८-१ाकी ५९२८-३
J
T
८७५०८१२७
"
(२) जीवविचार प्रकरण- अक्षरार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, भूपू ( अहं किञ्चि) ३१५०-१ (+), ८४७८-२
(२) जीवविचार प्रकरण- टीका, सं., गद्य, मुपु. ( अस्यां गाथ)
३०१७
(२) जीवविचार प्रकरण- टीका, पाठक रत्नाकर, सं., वि. १६१०, गद्य. भूपू. (सज्ञानभास) २८२९-३१ ४०५२
५४८९-५ शि ५०६४मा
(२) जीवविचार प्रकरण-सुबोधिनीटीका, मु. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८५०, गद्य, मूपू., ( इह हि संसा) ९३०२
(२) जीवविचार प्रकरण- अर्थलेश अवचूरि, सं., गद्य, मु.. (भुवनदीपसमं) ८३३६
(२) जीवविचार प्रकरण - बालावबोध *, मागु., गद्य, मूपू., (भुवनमाहि) ५००१, ९२८९
(२) जीवविचार प्रकरण बालावबोध" मागु, गद्य, गुपु. (स्वर्ग
"
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मृत) ९३०३. ७०४९-राका
"
(२) जीवविचार प्रकरण- टवार्थ, प्राहि., गद्य, मुपु. ( भुवण क० ति) ७७६८-१(+)
(२) जीवविचार प्रकरण- टवार्थ, मागु, गद्य, भूपु. ( तीन भुवन) १६३-२०) २२९ला मिलला १२१६१ १८९३) २१८३० ५०३२(+), ७७०० (+), ८७२०(+), २१९५ (+), २७७७-१ (+), ५९६९(+), ७९४५११ २९५८११ ४३४६-१११ ७०३५० २२०५/१ २२१९(+), २९५२(+), २८३५(+#), २५५५-२ (+#S), २५३३(+#-), ४३१२-१(+$), ३३७३-३(+), ६५२७-२ (+), १००३, १४५०, ३५८१, ४९३९, ५७२५, ८३४५-२, ८९३६, ८९७७, ९०५९. ३०६३, ३५७१-१, ६७५१, ७२४३-३, ४१९९, ६४९३-१, ५६२२
१(*), ९१६६-२ ($), ५०६४ ($), ८१२७ ($)
(२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, मूप्पू., (भूवनमांहि) ९००७-२७५७३-२०मा १५५५-सामा
(२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., ( श्रीमत्पार ) १८२३(+#), ४१९७(+)
"
(२) जीवविचार प्रकरण- टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू.. (स्मारे रम) १८२४(+#६) १७७४, १०८१
(२) जीवविचार प्रकरण- टवार्थ, मागु, वि. १८६८, गद्य, मृपू.. (स्वर्ग मृत) ८३६७-२
"
(२) जीवविचार प्रकरण-टवार्थ, पं. हितरुचि, मागु, गद्य, मुपू.. (भुवन प्रदी) ७९६२ -2(+)
(२) जीवविचार प्रकरण यन्त्र, मागु., गद्य, मुपू., (जीवना २ भे)
७०७२
जीवामिगमसूत्र प्रा. १० प्रतिपत्ति ४७५० गद्य भूपू. (णमो उसभादि) २५४२११, ३४८८) ६९१४) ८२६०० ६६.३४८९. ४५६४, ४७८१, २०१३, ५२८८७१६५
(२) जीवाभिगमसूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., ग्रं. १४०००, गद्य, मृपू. (प्रणमत पदन) २२५२१) ८१८ ६४२
(२) जीवाभिगमसूत्र- वृत्ति, सं., गद्य, मृपू. (-) ७४८.३शि (२) जीवाभिगमसूत्र - विषमपदपर्याय, सं., गद्य, मूपू., ( इह खलु इति) ३४७२-१४(+)
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
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"
(२) जीवामिगमसूत्र - कठिनपद टिप्पण, सं., मागु, गद्य, मृपू.. (-) ३४८८(+)
(२) जीवाभिगमसूत्र - टबार्थ, मागु., ग्रं. २००००, गद्य, भूपू., (श्रीवीरजिन) ६६
(२) जीवाभिगमसूत्र - टबार्थ, मु. जिनविजय, मागु. ग्रं. ९३००, वि. १७७२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य ) ४७८१
(२) जीवाभिगमसूत्र - टबार्थ, मु. धनविमल, मागु., ग्रं. १६०००उभ, गद्य, मृपु. ( श्रीशान्ति) ८२६०० ४५६४ ९०१३
"
(२) जीवाभिगमसूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू. (-) ७१६१क (२) जीवाभिगमसूत्र-थोकडा, मागु., गद्य, जै., (संसार समाप)
.
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३९४९-३
जैन कुमारसम्भव, आ. जयशेखरसूरि संसर्ग ११, १२२५. पद्य, मूपू., ( अस्त्युत्त) ५७२२
जैनगाथा सङ्ग्रह, संप्रा. मागु, पद्य, मृपू. (-) २००९ -२१०) २०६१-३११
जैनधर्मवर संस्तवन, आ. भावप्रभसूरि, सं., श्लोक ४५, पद्य, मूपू., (कल्याणमन्द) १६०२ (+$)
(२) जैनधर्मवर संस्तवन-स्वोपज्ञ टीका, आ. भावप्रभसूरि सं. वि.
"
१७९१, गद्य, मृपू. (नत्वा पार) १६०२ (क) जैनधार्मिक परिपाटी, सं., गद्य, ग्रुपु. ( भो त्वया) ५८५०-५० जैनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लोक १८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनं) ६२७९१(+), ७५४७-६ (+)
"
,
जैनेन्द्र व्याकरण, सं., गद्य, जै., (सर्वदा विज) ४५३७(+#) ज्ञाताधर्मकथासूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. १९ अध्ययन,
अं. ५५०० प+ग, मृपू. (तेण कालेन) १०) ९९१), १०९१), ११०(+), १११(+), २७९१(+), ३९५० (+), ४५८९ (+), ९०५२(+), ३४९२४) २६८४ला १०१०१) २५६०१५ ९८ २४८३
२०३०निक ५८०६निक ४८ ६७९९८०० ८८२५/ (+$), २१६४४० २९१८) २०४९०४) १४२ ६५७ ४००८, ४३७८. ५६८८, ९११८, ९२७८, २०५०, ९१२०, ६५१(३), ५४९६($), ७४३३(३), ९०४९ ($), ८००३ (६), ८४९ ($), ३८६९ (४),
२७४८ (३),
.
"
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४५५ ८३५३(७), ३१८३(5), ११२(७), ६२३२(5)
६४६०-६, ६६२२-२, ७५४१-२, ८९५१-२, २३३६-५, ६०४१-४, (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं.,
६०५१-३(७). ६४७८-६६.७९००-१६), २८४५-४) ग्रं.३८००, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (नत्वा श्री) ४१८५९), (२) ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीनेमीना) २५६०५०, १४२, ४८२६, ९१९४, ९२२०, २७९०
६०९४-१(45) (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-बीजक, मागु., गद्य, मूपू., (--) ११४(48) ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., ३२अष्टक, श्लोक २७३, (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार) ____ पद्य, मूपू., (ऐन्द्रश्री) १८२(+), ३५२७+), ८६०८(45)
३९५०), ४८७४(45). ८८२५(५६), २१६४+६), २०४९(+६), (२) ज्ञानसार-बीजक, सं., गद्य, मूपू., (-) ८६०८(5) २७४८(5), ७४३३(5), ११२(), ६२३२(5)
(२) ज्ञानसार-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., ग्रं.१०४१०, गद्य, मूपू., गद्य, मूपू., (ऐन्द्रवृन) ३५२७+7 (प्रणम्य) ९२७८
ज्ञान सुखडी, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, मूपू., (प्रणम्य) ३९४६ (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., ज्ञानार्णव, आ. शुभचन्द्र, सं., सर्ग ४२, श्लोक २०७७, पद्य, दि., ग्रं.८५००, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ९०), १०९), ११०).
(ज्ञानलक्ष) १५७+5) १११(+), १०१०(+), ९८५), ५८०६(45), ६५७, ४००८, ६५१६), ज्ञानीदसलक्षण श्लोक, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (अक्रोधवैरा) ८४९), ३८६९६), ८३५३(5)
__१४८४-१३(5) (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, गणि प्रेमजी, मागु., वि. १६९९, ज्योतिष कुण्डली, प्रा.,मागु., कुंडली, (--) ५५१७-२+7 गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ९९+), ४५८९(+)
ज्योतिष बन्धिचक्र, सं.,मागु., पद्य, (मुखाद्यङ्ग) ३६३१-२(+) (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-हिस्सा*, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., श्लोक २९४, पद्य, मूपू., (-)-<प्रतहीन.>
(श्रीअर्हन) ४६२६(+), २००५-१६), ९०९२), २२९८(+4), (३) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-ज्ञातोपनय, प्रा., पद्य, मूपू.,
२०१३(+#), ३०२४(45), ७१८२(45), २८५७+5), ४५७, ४९५७, (उखित्तणाए) ९१४४
५४६४, ५६६७, ५६९०, ५८८५, ९०९४, १२५७, ८२८६, ४३९२, (४) ज्ञातानामुद्धार-टीका, सं., गद्य, मूपू., (उक्षिप्त) ९१४४
१३३३, ६७५४-१, ५३११, ८३०१-२(45), १६२४७), ५१९०७), (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-प्रश्नशतक, मागु., गा. १०१, पद्य, ६४२७(5), ७४६९(5), ८१२६(5), ८२७३(5), ८३१४(६), २००१(६), मूपू., (ज्ञाताधर्म) २२६४-१(+)
७८७८) (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-भास, मु. प्रीतिविजय, मागु., अध्याय (२) ज्योतिषसार-यन्त्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचन्द्रसूरि, सं., १९ भास, २७ ढाल, गा. ६७२, वि. १७२१, पद्य, मूपू.,
गद्य, मूपू., (सरस्वतीं) ४६२६(+), २००५-१(+), २२९८(+#). (श्रीश्रुतद) ९१)
५४६४, ५६६७, ९०९४, ६७५४-१, ५३११, २९६०, ७८७८६६) (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-भास, ऋ. मेघराज, मागु., ढाल १९, (२) ज्योतिषसार-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (पडवा सठइग) ग्रं.५२५, पद्य, मूपू., (-) ५८९४(६)
१२५७ ज्ञानदर्शनचारित्र स्थ, प्रा.,मागु., गा. १, प+ग, मूपू., (जेनाणं | (२) ज्योतिषसार-टबार्थ, मागु., गद्य, मपू.. (माहरो श्री) ३०२४), चिय) ७५३९-२०
८२७३(७) ज्ञानपंचमीतपउच्चरावण विधि, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, जै., (तिहां । (२) ज्योतिषसार-टबार्थ, मागु., गद्य, स्पू., (श्रीअरिहन) ४५७,
प्रथ) ५०३३ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (पञ्चानन्तक) (२) ज्योतिषसार-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहन) ८३०१
२६२६-८(+), १४८५-२१(+), १७९४-३(१), २९९७-५+5), १७९९२(45), १७८९-६, ५४९०-४, ५८२७-३, ६०११-२७, १७९१-४६), (२) ज्योतिषसार-लघुनारचन्द्र ज्योतिष, सं.,मागु., प+ग, मूपू., १४८७-१४६६), ५४८९-२३(७), ६०९०-७(5, ७५४४-११(5)
(अर्हन्तं) ६४३६(५), २७५१-१(4) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (समुद्रभुपा) (२) ज्योतिषसार-जन्मपत्री विचार, सं., गद्य, जै.. (-) ३६१८(5) ६०४१-३(5)
ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अध्याय ३, श्लोक ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः) ३३७, ग्रं.५००, पद्य, मूपू., (तं नमामि) ७८४०-२, ५६५०-१(६),
१७९२-४(+), २४७४-२(+), ६०९१-६(+), ६०९४-१(45), ६०८८-१८,
८३१४()
५६८२(5)
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४५६
१०८५(क)
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ ज्वारारोपण विधि, सं.,मागु., पद्य, मूपू., (कुसम्भकं) ८८६७-४) । (२) तर्कसङ्ग्रह-स्वोपज्ञ तर्कदीपिकाटीका, अन्नं भट्ट, सं., गद्य, ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, जै.. (ॐ नमो भगव) २५९-८(+). | (विश्वेश्वर)-<प्रतहीन.> ६२७९-७+)
(३) तर्कसङ्ग्रह-स्वोपज्ञ तर्कदीपिका टीका का विवरण, सं., तत्त्व सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, मूपू., (बारस गुणा) ६८८५) गद्य, वै., (श्रीपार्श) ७५१५(5) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., अध्याय १०, सूत्र १९८, ताजिकसार, हरिभट्ट, सं., ४४द्वार, श्लोक ४००, शक. ११०५,
प+ग, मूपू., (सम्यग्दर्श) २२२), १०८५(+), १७४२(+), १६५४, पद्य, (श्रीरामस्य) ८८४६) ५०४१, ३०३३, ५३६६-२०. ७६६६७०
(२) ताजिकसार-कारिका टीका, गणि सुमतिहर्ष, सं., वि. १६७७, (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-स्वोपज्ञ भाष्य, वा. उमास्वाति, सं., अध्याय गद्य, मूपू.. (श्रीसूर्यच) ८८४६(+), २५७९-१(+), ५६९५(5) १०, ग्रं.२२००, गद्य, मूपू.. (सम्यग्दर्श) ५३६६-२(5)
(२) ताजिकसार-बीजक, सं., गद्य, (वर्षप्रवृत) ८८४६(+) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टीका# , गणि सिद्धसेन, सं., ग्रं.१८२८२, तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू.. (तिजयपहुत्त) ___ गद्य, मूपू., (जैनेन्द्रश) ३६४२-२५), ५३६६-२()
२६२६-५९). ६०८३-२), ६०८३-६(+), ७५५१-९(+), १४८५(२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-बालावबोध, प्राहि., गद्य, मूपू., (मोक्ष मार) ९), १६७८-३(+#5), २९९७-२६+5), १७८९-१, ५४४२-७,
५४९०-४३, ५८२७-८५, ६०११-११, ६३६४-२, १७९६-८, (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टबार्थ", प्राहिं., गद्य, मूपू., (सम्यग्दर्श) ७८७३-२, ५४८९-११(६), ८९२७-३(१), ७०००-३(5) २२२६)
तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेन्द्रसिंहसूरि, प्रा., गा. १११, पद्य, मूपू.. (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-नयअधिकार, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, (अरिहन्तं) २७१, १३१८-१ मूपू., (नैगमसङ्ग्र) ४५२६(+#)
(२) तीर्थमाला स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अर्हन्तं) २७१ (३) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-हिस्सा नय अधिकार की-सर्वार्थसिद्धि तीर्थवन्दना चैत्यवन्दन, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (ख्यातोष्टा) टीका , आ. देवनन्दी, सं., गद्य, दि., (नैगम १ सङ)
६०५३-१२(+) ४५२६(१)
तीर्थवन्दना चैत्यवन्दन, सं., श्लोक १०, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या ) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-सम्बन्धकारिका आदि, वा. उमास्वाति, सं., ६०५३-११), २३३७-३(+), ९४८-२, १४१३-३, ५४९०-५५, श्लोक ३१, पद्य, मूपू., (सम्यग्दर्श) ५३६६-१(5)
५८२७-४९, ६२६९-२,६०९६-६(७), ६०४२-५(5) (३) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-आद्य सम्बन्धकारिका की टीका , आ. तेजसारकुमार कथा, सं., गद्य, जै., (सुकुल जन्म) ८३२९७) देवगुप्तसूरि, सं., गद्य, मूपू.. (वीरं प्रणम) ३६४२-१५, ५३६६- ।। तेरापन्थीमत खण्डन, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (केइ एक क्र) ४४३९
त्रिपताकाचक्र, सं., पद्य, (रेखात्रयं) २५७९-२(4) तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, मूपू.. (निज्जरिय) ४००४), | त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., श्लोक २४, पद्य, वै., ८९४१(+), ९१२९(+), ८४६७), ३३०५(5), ७२०
(ऐन्द्रस्यै) ६३९१५), ६४०१-१ (२) तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, (२) लघुस्तव-ज्ञानदीपिका टीका, आ. सोमतिलकसूरि, सं.,
मागु., ग्रं.२०००उभय, गद्य, मूपू.. (कल्याणवल्ल) ८९४१), ग्रं.४७०, वि. १३७९, गद्य, मूपू., (सर्व) ६३९१५) ९१२९(+), ८४६७(+). ३३०५६)
त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, (२) तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक-टबार्थ, राज., गद्य, मूपू., (तप जप सं., खण्ड १०पर्व+परिशिष्ट, ग्रं.३५०००, वि. १२२०, पद्य, सञ्ज) ४००४(+)
मूपू., (सकलार्हत्प) ३२८०,३२४३(4),७६१६(१), ३७६ (+5), तपग्रहणविधि सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, मूपू., (प्रथम इरिय) १३२९+5), ४०२५, ९०९८, १९४२(#5), ६४७३(७), १०१७(5) ६०६२-८(5)
(२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-टबार्थ, पं. रामविजय, मागु., तप स्थ, प्रा.,मागु., गा. १, प+ग, मूपू.. (नाणाविणई) ७५३९-९ गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) ४०२५ तपागच्छ पट्टावली, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. २१, पद्य, (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा अष्टमपर्व, आ. मूपू.. (सिरिमन्तो) ४२९२, ४९९६
हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., सर्ग १२, ग्रं.४७८८, पद्य, (२) तपागच्छ पट्टावली-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., मुपू., (नमो विश्वन) ७८२९(4) गद्य, मूपू., (सिरिमन्तोत) ४२९२, ४९९६
(३) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा अष्टमपर्व-टबार्थ, मु. तर्कसङ्ग्रह, अन्नं भट्ट, सं., गद्य, (निधाय हृदि)-<प्रतहीन.>
रामविजय, मागु., वि. १८३४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
७८२९(+)
(२) रामचन्द्र चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., सर्ग १०. अं.४०३२, पद्य, मूपू. (अथ श्रीसुव) २२३३
(३) रामचन्द्र चरित्र - टबार्थ, मु. महानन्द, मागु., ग्रं. ११०१६, गद्य, मूपू., ( नत्वा श्री ) २२३३
(२) सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं.. श्लोक २६, पद्य, मू. (सकलार्हत्य) ८८४२-११) ७२६११ (+), १४१३-१, १७८९-५, ८४०७-३, १११७-२, ५५५४-१, ६१४४-३, ४७७६-१ (क), ६०४२-११(s), ६२०९-३ (S), ६४७८-८ ($), ८२९३-३शि
"
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(३) सकलार्हत् स्तोत्र - वृत्ति, गणि कनककुशल, सं., ग्रं. २८२उभय, वि. १६५४, गद्य, मृपू., (वयमार्हन्त) ८८४२-१(+)
(३) सकलाईत स्तोत्र- जिनभवन स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मुपु.] ( अवनितलगतान ) ६०९६-४०
त्रैलोक्य विचार, प्रा., पद्य, मुपू., (चुलसी दिलक) ८६७२(+) (२) त्रैलोक्य विचार - बालावबोध, मागु, गद्य, गुपू (चोरासी
लाख ८६
दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४५, पद्य, मूपू., (नमिउं चउवी) १६३-१(+), १९३ (+), १२१९(+), २४७१(+), २६२६-६६ (+), ४२१२% ४२३३९ पा७२७-३) ७५५१-१३१ ७७६८-२०१ ७९६२-३११, ८६५४-२१०१ ४३६-२१ ११०१-३१, ११२४ला १४८५-१७(+), १६३१(+), १७६९(+), ८०७१-२ (+), २५००(+#), २३०२/०१ २७८६०१ १३३७ २९९७-३२/०१ १७९९-२००४), ३३७३-५ ६५२०-३० २१२ ४३४-३ ८५८ १५८५-३, ३५६१-३, ५००३, ५४४२-९, ५४७८, ५४९०-४७, ६०११-१८, ६०२७-६, ६४९३-३, ७११२-२, ८३६७-३, ८४७८-३, ८९०९, ७८०२-२. १६६५ १४८७-३ ५४८९-६६634-3 ९२१८-३मि ४९३२२मा ६९८९) ७०१००) ९१०७ ८७१५ (२) दण्डक प्रकरण- टीका, सं., गद्य, मूप्पू., (नमिऊ० नत्व)
.
८४७८-३
(२) दण्डक प्रकरण-अवचूरि, सं. गद्य, भूपू. (श्रीचतुर्व) १९३) (२) दण्डक प्रकरण-अर्थ, राज., गद्य, मूपू., (चोवीस तिर) १६६५
(#)
(२) दण्डक प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्करी च) ११२४ 2894)
($)
(२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, प्राहिं., गद्य, मुपू., ( णमिउं क० ) ७७६८-२३१
(२) दण्डक प्रकरण-टवार्थ, मागु. ग्रं. ३५०, गद्य, मृपु. ( इन्द्रराजि )
२१२
(२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु. गद्य, मृपू. (ऐन्द्रराज) १४६९)
४५७
(२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., (चोवीस तीर) २३०२ (+#)
(२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (चौवीश तीर)
४वर्गका
(२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (नमस्कार कर) १६३१(+), २७८६ (+), ८३६७-३
(२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मृपू., ( प्रणमीनइं) ४२३३(+)
(२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, पं. हितरूचि, मागु., गद्य, मूप्पू., (देविं प्रण) ७२६२-३
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(२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ ) १६३-१(+), २४७१(+), २५०० (+#), १३३७(+), ६५२७-३(+), ५००३. ४९३२ ६९८९) (३),
(२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, राज., गद्य, मूप्पू., (नमीउं क०) १२१९१० ५४७८ ८५८
(२) दण्डक प्रकरण-कोष्टक, मागु., कोष्टक, मुपू., (-) १४३१(s) दर्शनशुद्धि प्रकरण आ. चन्द्रप्रमसूरि, प्रा. अध्याय ५. पद्य, मृपू.. (पत्तभवण्णव) ९०१७
(२) दर्शनशुद्धि प्रकरण- टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., ( नमः श्रीवर) ९०१७ दशविधचक्रवाल समाचारी रथ, प्रा., मागु., गा. १, प+ग, भूपू.. (मणगुत्तो) ७५३९-३
"
दशवेकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि प्रा. १० अध्ययनरचूलिका, गा. ७०० वी. रवी, पद्य, मूपू., ( धम्मो मङ्ग) ८० (+), ८२(+), ८३(+), ८५(+), ७०३ (+), १२८४ (+), २०६६ (+), २८१३ (+), ३१७९(+), ३४००१) ३४०३९ ३७६५) ३८५११९ ३९७६१) ४०८३०) (+) ४२५३का ४५९०१९ ४६११-१११ ४६४०००९ ५२५६१) १२८खाका ५७००(+), ६३८४(+), ७५२६ (+), ८००६ (+), ८८२२ (+), ९११६ (+), ८९९(+), १०५१(+), २०६९ (+), २८२७ (+), ३४१५ (+), ३५३८ (+), ५३९७९ ५६७६९ ५८१०१) ६४०५% २८१११ 2289-911, ३२७१-१(+), ७२८९१) ९१०५) १४८५-४००% १६५०८९ २०६८ (m) १७९४३३(+#), ८४-१(+$), २४९(+), १०१५ (+), २३८७ (+), २६९८(+$) ३३९५(+), ६८३५ (+), ८४५३ (+), ७१०४ (+), ७३५१ (+$), ७६११(+), १४८३ (+), ७००, ३४१२, ३५५३, ३७६६, ४००२, ४०२२, ४२५४, ४३७६, ४३९६, ४७७५, ५३४३, ५३९८, ५४२९, ५५४२, ५७१५, ५७९३, ५८३२, ५९४३, ७८२८, ७८६३, ८४६६१८७०६, ९८९, १३०२-१, १३५७, १३७९, ३८३८, ५२७४, ८८७३-१, ५९७९, १४०४, १७९५-२८, ३३९४, ५८२७-८८,
५८६८, ५९०६-४, २०६७, ५५४३, १७३५, २९२७, ५५३१ (#), १६३३ मा १२७पाकी ३२२६ ३६३७१ ४२९८ ४३१०
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४५८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ ५२७५(६), ५४८०(5), ५९५६(७), ६४६२६६), ६८९२(5), ६९१७६७), प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (धम्मो मङ्ग) ५४८९-५६(७). ६००४६९८५(६०, ७०८१७). ७१४८(5), ७१८९६०, ८१३३(७), ८१९९६), २०६), ६०९०-३६. ६०१८-७६)
८७१३६७), ६९७६(७), ७९६१६), ६८४८६), ६९०१६), १७८१-२(5) | (२) दशवैकालिकसूत्र-कथा, मागु., गद्य, मूपू., (-) ५७००(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, | (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. जिनलब्धि, मागु., ढाल ११, मूपू., (सिद्धिगइमु) १४०(+)
_ वि. १७३४, पद्य, मूपू., (सुख दायक) २७०७(+) । (२) दशवैकालिकसूत्र-टीका, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं.७०००, वि. (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. जैतसी, मागु., अध्याय १०, १३०४, प+ग, मूपू., (अर्हन्तः ) २६९८(45), १२७१()
वि. १७१७, पद्य, मूपू.. (धर्ममङ्गल) ४६१७(+), २४०२(+#), (२) दशवैकालिकसूत्र-दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., ४६४१, ६०५२-३१, ७५६२-६, ८३४९, २१७५, १६५८, ८२७९६६)
ग्रं.३४५०, वि. १६९१, गद्य, मूपू., (स्तम्भनाधी) ४००२, ४०२२ | (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय सङ्ग्रह, मु. वृद्धिविजय, मागु., (२) दशवैकालिकसूत्र-लघुटीका, आ. सुमतिसूरि, सं., ग्रं.३५००, पद्य, मूपू., (-) ८१८२(5)
गद्य, मूपू.. (जयति विजित) २०६६(५), ७८+), ८८४०(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, मागु., गा. ७, (२) दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, मूपू.. (गणधर धरम) १७९५-३
ग्रं.६८५०, गद्य, मूपू., (जयति विजित) १४०+), ७०३(+), (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, मागु., गा. १५, ३४१५५), ८८७३-१
पद्य, मूपू., (नवमी नेमि) ६०१७-१२) (२) दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., ग्रं.२२४३, गद्य, मूपू., (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, मागु., (इहार्थतः) २८२७(+)
११सज्झाय, पद्य, मूपू., (श्रीगुरूपद) ८१,४९७०, ५२७१, (२) दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (धम्मो मङ्ग) ६०६६-१, ५७७८ १३०२-१,३३९४
दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., १० दशा, ग्रं.१३८०, (२) दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू.. (संहितादि) १०२३ पद्य, मूपू., (नमो अरिहंत) १५२३(+), १८९८-१(+), ४६४६(+), (२) दशवैकालिकसूत्र-विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., ५०११-२(१), ५८५३(+), ५४३४), ४१२२), ७०८४(45), १७३८, (वोन्दीति) ३४७२-३(+)
५८४२, ८२६२(5) (२) दशवैकालिकसूत्र-सुखावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (इहां प्रथम) | (२) दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-विषमपद टिप्पण', मागु., गद्य, मूपू., (-) ७५२६६५), ४३७६
७०८४(5) (२) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (धर्म सर्वो) | (२) दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (--) ८२६२(१७) २०६९), २०६८(). ३३९४ ।
(२) दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-टबार्थ, मागु.. गद्य, मूपू., (नमस्कार था) (२) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, उपा. राजहंस, मागु., गद्य, १७३८ मूपू., (नत्वा श्री) ५७००(+), ५२७५(5)
(२) दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-टबार्थ, मागु.. गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, प्राहि., गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ८०) ५८५३+), ५८४२, ४७०४-२ । (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (ध० जीवनइ) (२) दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीदशाश्र) ८२(+), ८३(+). ३१७९), ३४००+), ३४०३(+), ३७६५),
१५२३(+), ४६४६(+), ४१२२) ३८५१(+), ३९७६(५), ४०८३(+), ४५९०५), ४६११-१(+), ४६४०). दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., ९ पल्लव, पद्य, मूपू.. (स ५२५६(+), ५२८७), ६३८४(+), ८००६(+), ९११६(+), ८९९(+), श्रेयस्त) ५५९१(+), ८६३४(+), ७५९-१ ३५३८(+), ५३९७+), ५८१०+), ६४०५(५), ८५(4). ३२७१-१(4), (२) दानकल्पद्रुम-टबार्थ, मु. रामविजय, मागु., वि. १८३३, गद्य, ९१०१(+), ८४-१९+), १०१५+६), ८४५३(+६), ७३५१६+६),
मूपू., (श्रीऋषभस्व) ७५९-१ ७६११+5). ७००, ३७६६, ५३९८, ५४२९, ५७१५, ५७९३, (२) धन्ना चरित्र-टबार्थ, पं. रामविजय, मागु., वि. १८३३, गद्य, ५८३२, ७८२८, ८७०६, ५२७४, ७८६३, ३२२६६०, ५४८०६). मूपू., (हे भव्यप्र) ८६३४(+) ६८९२(७), ६९१७६६), ७१४८(5), ८१३३९७), ८७१३(5)
(२) धन्य चरित्र, मु. ज्ञानसागर शिष्य, सं., गद्य, (स श्रेयस्त)(२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., गा. १७, <प्रतहीन.> पद्य, मूपू.. (धम्मोमङ्गल) ६०९१-१७(+)
(३) धन्य चरित्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (स्वस्ति) ८६९१(७) (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन, आ. शय्यम्भवसूरि, दानप्रकाश, गणि कनककुशल, सं., ८ प्रकाश, ग्रं.८३४, वि.
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८५६३
०
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४५९ १६५६, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श) ३२७(+)
३४०४(45), ८०७२(+5), ८४६, ८४०६, ९०२८, ८५६३ (२) दानप्रकाश-टबार्थ, गणि ऋद्धिविजय, मागु., गद्य, मूपू., (२) दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (मङ्गलीक (श्रीपार्श) ३२७+)
दी) ८९६५-१(+), ६४७४, ८९३२ दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (अष्ट माहाप)
जै., (देवाहिदेवं) ९०२२(+), ४३६-१(+), ३९०७(+), ५१११(+), २४४(+), २५५-१(+), ३४०४(+६)
४११८-१(45), १२९५-१(+5), १७४०, ३९८७, ५७४४, १२८६ (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.,
(देवाधिदेवन) ९०२२(+). ३९०७), ५१११(+), ४११८-१(45), (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर) १२९५-१(45), १७४०, ५७४४, १२८६
३२८४(+) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ+कथा, मागु., गद्य, जै., (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ९०२८ (देवाधिदेवन) ३९८७
(२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, गणि सुखसागर, मागु., ग्रं.१२००, दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. २०, पद्य, ___ वि. १७६३, गद्य, मूपू., (अर्हन्त बा) ४५४१(+). ५२०९(+). मूपू., (परिहरिय रज) ५८११(45)
२०८६-१९), २२७७+#), ८०७२(45), ८४६, ८४०६ (२) दानशीलतपभावना कुलक-टीका, सं., गद्य, स्पू., (महावीरं । (२) दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध+कथा, मागु., गद्य, मुपू., नम) ५८११(३)
(स्वस्ति) २५८५६) दानादि विषयक दृष्टान्त कथा सङ्ग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक (वसही सयणास) ४५७१, ७३०२
२७८, पद्य, मूपू., (सन्तु श्री) ५९२२(+), २७३०-१(+#) दीक्षा विधि, सं.,प्रा., गद्य, मूपू., (आदौ खमा०) ६०२१-२ दीपावलीपर्वगुणनविधि, सं., गद्य, जै., (ॐ ह्रीं) १०९६-२, ४०३६दीक्षा विधि, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (पूर्व शुभव) ५०२२-२ दीक्षा विधि, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम दिने) ८५४१-१ दीपावलीपर्व व्याख्यान, सं.,प्रा., गद्य, मूपू., (जाते वीरजि) दीक्षा विधि, प्रा.,गुज.,सं., गद्य, मूपू., (अथ सम्यक्त) २०९६-२) ५८३६-४(4) दीक्षा विधि, प्रा.,सं.,मागु., गद्य, मूपू., (पुच्छा वास) ५०५३-१ दीपावलीपर्व व्याख्यान, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (पापायां पु) ६५३७दीक्षा विधि, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (योग्य पुरु) ६०२१-६, ८१६३
दीपावलीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू.. दीपालिका कल्प, आ. विनयचन्द्रसूरि, सं., श्लोक २७८, वि. (पापायां पु) २६२६-२६(+), १७९४-२२(+), १७९९-१२(+5), १३४५, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ८३१३
५४०४-३, ५४९०-२७, ५८२७-२०, ६०११-३९, १७९१-१८(), दीपावली कल्प, सं., गद्य, मूपू., (सन्तु श्री) ८९२५, ९१३८
१४८७-१५७, ७५४४-१३(5) (२) दीपावली कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कारहो) दुःखप्रतिकारविज्ञप्ति स्तोत्र, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., श्लोक ३६, ८९२५
पद्य, मूपू.. (आनन्दं यः) २६४ दीपावलीपर्व कल्प, प्रा., गा. १३७, पद्य, मूपू., (उप्पायविगम) दुग्धद्वादशीव्रत कथा, सं., श्लोक २२, पद्य, दि., (सन्मतिजिनम) ६१२८(+), २३६३-१(+5), २७२६, ५२४७
६००२-१४(4) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (उप्पन्नेवा) दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, २३६३-१(+5), २७२६, ५२४७
मूपू., (दुरिअरयसमी) २११६(+), २६२६-६७), १४८५-१४(+), दीपावलीपर्व कल्प, प्रा., गा. १३६, पद्य, मूपू., (तेणं कालेण) ५४०४-१, ५४९०-३८, ५८२७-८०, ६०११-१५, ३०६५-२, ५०४२-२(4)
५४८९-८(5), ६७८१-४६) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (पर्यन्त ते) (२) दुरिअरयसमीर स्तोत्र-टीका, गणि साधुसोम, सं., गद्य, मूपू., ५०४२-२(+)
(वर्द्धयतु) २११६(+) दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., श्लोक ४३७, दुषमकाल श्रीश्रमणसङ्घ स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २५,
ग्रं.१५००, वि. १४८३, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) २४४(+), २५५-१(+). ___ पद्य, मूपू., (वीरजिण भुव) ६०४४-४(+) ३२८४(+), ४५४१(+), ५२०९), २०८६-१(+), २२७७+#), दुष्करचतुष्क गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, जै., (अक्खाण रसण)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
५६५-४ दृष्टान्तशतक, ऋ. तेजसिङ्घ, सं., श्लोक १०२, पद्य, जै.,
(नत्वा श्री) ९०३०(+), २९३५), ४३४५ (२) दृष्टान्त काव्य-टबार्थ', मागु., गद्य, स्था., (नमस्कार कर)
२९३५(+) (२) दृष्टान्तशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार कर)
४३४५ देवगुरुधर्म निरूपण, सं., गद्य, वै., (वैशाख्य सि) ४९८१-४(5) देवधर्मपरीक्षा, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., ग्रं.४२५, गद्य, मूपू.,
(ऐन्द्र वृन) ८०३५) देशावगासिक पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, मूपू., (अहण्णं भन) ५७१८
३
देशीनाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, प्रा., ८वर्ग,
ग्रं.३७५, पद्य, पू., (गमणय पमाण) १०१९(+) (२) देशीनाममाला-स्वोपज्ञ टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि
कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., (देशी दुःसन) १०१९(+) देहस्थिति स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू..
(देविन्दमहि) ५६६३-४(4) देहस्वरूप कुलक, प्रा., गा. २३, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणं)
५९४४-२६) द्रव्यगुण शतश्लोकी, त्रिमल्ल भट्ट, सं., श्लोक १०९, पद्य,
(श्रीकण्ठं) ४०१(+) (२) द्रव्यगुण शतश्लोकी-टबार्थ, कवि रूपचन्द, राज., वि. १८३१,
गद्य, मूपू.. (गिरिजा क०) ४०१(+) द्रव्य सङ्ग्रह, मु. नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, प्रा., ३ अधिकार,
गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं) ५४१३-१(+), २३१९-२,
६४३१-१, ८२३ (२) द्रव्यसङ्ग्रह-वृत्ति, आ. ब्रह्मदेव, सं., गद्य, दि., (प्रणम्य पर)
५४१३-१(4). ८२३ (२) द्रव्यसङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जीवद्रव्य) २३१९-२ द्रव्यसप्ततिका, वा. लावण्यविजय, प्रा., पद्य, मूपू.,
(सिरिवीरजिण) ३८६७६+६) (२) द्रव्यसप्ततिका-स्वोपज्ञ टीका, वा. लावण्यविजय, सं., वि.
१७४४, गद्य, मूपू., (इह ग्रन्था) ३८६७(45) द्वादशव्रत कथा, कवि अभ्रदेव, सं., गद्य, (-)-<प्रतहीन.> (२) द्वादशव्रत कथा-पद्यानुवाद, गणि राजेन्द्र, सं., श्लोक
१००+३+१, पद्य, दि., (नेमीशं श्र) ६००२-२०(+) द्विकावलीव्रत कथा, सं., श्लोक २५, पद्य, दि., (प्रणम्य) ६००२
(वासुपूज्यं) ६००२-४(+) द्विजमुखचपेटा, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक
४२१, पद्य, मूपू., (सद्भूत भाव) ८७०९() धनञ्जयनाममाला, जैनकवि धनञ्जय, सं., श्लोक २११, पद्य, __दि., (तन्नमामि) ७५१४(१), ४४७९-१(६) धन्य कथानक-दानधर्मे, मु. दयावर्द्धन-शिष्य, सं., श्लोक २६६,
वि. १४६३, पद्य, मूपू.. (श्रीवीरजिन) ७९३२ धम्मिलकुमार चरित्र, आ. जयशेखरसूरि, सं., श्लोक ३४९१, वि.
१४६२, पद्य, मूपू., (बोधिबीजं) ८०५५ धर्मदत्त कथा, सं., गद्य, मूपू., (--) ७४७६(5) धर्मपरीक्षा, मु. मतिसागर, सं., पद्य, (-)-<प्रतहीन.> (२) धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद, प्राहिं., पद्य, मूपू., (पणऊं अरिहन)
११७२ धर्मपरीक्षा कथा, गणि देवविजय, सं., श्लोक ३६७, पद्य, मूपू.,
(प्रणम्य) ४२८६ (२) धर्मपरीक्षा कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणमीनें) ४२८६ धर्मप्राप्ति १८ दृष्टान्त गाथा, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (लज्जातो
भय) ८२१८६) (२) धर्मप्राप्ति १८ दृष्टान्त गाथा-कथा, सं., १९ कथा, पद्य, मूपू.,
(पितुर्मातु) ८२१८(4) धर्मफल गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (धम्मेण कुल) ८४२५-२ धर्मबिन्दु प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अध्याय ८, सूत्र ५४२, ___पद्य, मूपू.. (प्रणम्य पर) ७१४३६६) (२) धर्मबिन्दु प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू.. (--) ७१४३७) धर्मरत्नाकर, मु. जयसेन, सं., २१अवसर, पद्य, दि., (लक्ष्मीनिर) __१६६(+) धर्मरथ, प्रा., गा. २, प+ग, मूपू., (उड्ढदिसिना) ७५३९-१२ धर्मसङ्ग्रह, उपा. मानविजय, सं., ४ प्रकरण, श्लोक १५९, ___ ग्रं.१४६०२उ., वि. १७३१, पद्य, मूपू., (प्रणम्य) ७६५ (२) धर्मसङ्ग्रह-स्वोपज्ञ टीका, उपा. मानविजय, सं., ४ प्रकरण,
ग्रं.१४६०२उ., वि. १७३१, गद्य, मूपू., (प्रणम्य वि) ७६५ धर्मसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १३९६, पद्य, मूपू.,
(नमिऊण वीयर) ५३७५ (२) धर्मसङ्ग्रहणी-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं.११०००,
गद्य, मूपू., (यथास्थिताश) ५३७५ धर्मोपदेश, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., १२ प्रक्रम, श्लोक ११०, पद्य,
मूपू., (ओमित्यक्षर) १७६७ । (२) धर्मोपदेश-स्वोपज्ञ वृत्ति, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., वि. १७४५,
गद्य, मूपू.. (श्रीपार्श) १७६७ धर्मोपदेश कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, मूपू., (-) ७२८५-१(5)
द्विकावलीव्रत कथा, मु. विमलकीर्ति, सं., श्लोक ७९, पद्य, दि.,
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७०८०६)
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४६१ धर्मोपदेशशतक, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., सर्ग ५, श्लोक १०६, (२) नन्दीसूत्र-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (अथ नन्दि) ७६
ग्रं.७४८, पद्य, मूपू., (प्रणिधाय) ८३३२-१(45), ८३३२-२(45) १(+),७७-१(+).३३४५(45). ३५२०-१, ७०२-१, ४१०१, (२) धर्मोपदेशशतक-स्वोपज्ञ टीका, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं.,
ग्रं.३२७४, गद्य, मूपू., (जयति स परम) ८३३२-२(45) (२) नन्दीसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (नन्दी ते) ८५७-१(4), धातुरत्नाकर, उपा. साधुसुन्दर, सं., वि. १६८०, पद्य, मूपू., (श्रीदं १७५६(+), ४०७८-१(+), ७५-१, ४४२०-१, ५४९४, २६२२-१, स्त) ७९५३(45)
८३९४-१, ५३७६ (-) (२) क्रियाकल्पलता-स्वोपज्ञ टीका, उपा. साधुसुन्दर, सं., वि. (२) नन्दीसूत्र-कथा सङ्ग्रह', मागु., गद्य, मूपू., (नन्दनं नन) १६८०, गद्य, मूपू., (श्रीमान्) ७९५३(45)
__३३४५६), ७५-१, ५४९४ धातुविभक्ति, सं., गद्य, मूपू., (श्रीपञ्चमा) ८२३५-२(७)
(२) नन्दीसूत्र-यन्त्र बोल, मागु., गद्य, मूपू., (नन्दी क०) ४६७५६) धारणा प्रत्याख्यानसूत्र, प्रा., गद्य, जै., (अरिहन्तसक) ४०५६-२६) (२) नन्दीसूत्र-स्थविरावली, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, धीर कथा, सं., गद्य, जै., (प्रियमप्यप) २८८०-३
मूपू., (जयइजगजीवजो) १३४७-१, ८१८७-१९७), २४७८-१(5) धूर्ताख्यान, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणव) नमस्कार महामन्त्र, प्रा., ९ पद, पद्य, मूपू., (नमो अरिहन) ५६८६
३३५७), ६०९१-१(+), ५६६२, ६११६, २२८०, ५२०२-१९), (२) धूर्ताख्यान-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (सदुपनिषदने) १७८७-५() ५१२०()
(२) नमस्कार महामन्त्र-अर्थ, मागु., गद्य, मूपू., (माहरओ नमस) नक्षत्रमाला विधान, मु. परमकीर्ति, सं., श्लोक २८, पद्य, दि., १७८७-५(३) (चतुर्विंशत) ६००२-८(4)
(२) नमस्कार महामन्त्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., नक्षत्रलिङ्ग विचार, सं., श्लोक १, पद्य, (आद्रादौ दस) ५८८०-१ | (पञ्चपरमेष) ५६६२ नदीक्षार श्लोक, सं., श्लोक १, पद्य, (क्षारं नदि) २४७९-२ (२) नमस्कार महामन्त्र-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (बारसगुण नन्दीश्वरपति विधान, सं., श्लोक ५१, पद्य, दि., (जिनान् नत) | अर) ३३५७+), ४१०२(+), ५२०२-१(१) ६००२-६(4)
(२) नमस्कार महामन्त्र-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (माहरउ नन्दीश्वरविधान कथा, सं., गद्य, मूपू., (पान्तु श्र) ८९२२-१
नमस) ६११६, २२८० नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गा. ७००, प+ग, मूपू., (जयइ (२) नमस्कार महामन्त्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (माहरो
जगजीवज) ७६-१(+), ७०७-१(+), ७१२(+), ७१३-१(+), ८५७- नमस) ४६९१-३(4) १(+), १७५६(+), २७२५-१(+), ४०७८-१(+), ९१९८-१(+), ५८५२), | (२) नमस्कार महामन्त्र-सज्झाय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पो १६३५-१(+), ७७-१14), ४४४७(45), ७१४६+६), ७९७८(45),
सम उठा) ६०६४-८६६) २४०१(45), ३३४५(45), ७५-१, १६३८, १७६२, ३५२०-१, ४०४६- | (२) नमस्कार महामन्त्र आम्नाय, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं) १,४४२०-१,५४९४, ५७२३, ६७१९, ८३८२-१,८३९४-१,
६२७९-६(4) ९०९३, २६२२-१, ६५७९, ७०२-१, ४६७७, २०७३(45), ५३७६ (-) | नमस्कारमहामन्त्र कल्प, सं., गद्य, मूपू., (पञ्चादिपदा) ३९७० १३६३(७), ३२१८(5), ४१०१(७, ७०८०(5)
नमस्कारमहामन्त्र गुणनफल गाथा, सं.,प्रा., पद्य, मूपू., (२) नन्दीसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं.७७३२, गद्य, (नमस्कारस्य) ५५७८-२ मूपू., (जयति भुवनै) ३६४७(45)
नमस्कारमहामन्त्रमाहात्म्य कथा सङ्ग्रह, सं., श्लोक ४५, पद्य, (२) नन्दीसूत्र-टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं.२३३६, गद्य, मूपू., जै., (परत्रापि) ८९८१-४(+7, ५५७८-१ (जयति भुवनै) ७०७-१(+), ४१८३(45)
नमस्कार महामन्त्र स्मरण, मागु.,प्रा., गद्य, मूपू., (हिव आपणा) (३) नन्दीसूत्र-हरिभद्रीय टीका का विषमपदटिप्पन, आ.
९०९०-५ चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू.. (पंक्ति २) ३४७२-१+) नमस्कारमाहात्म्य श्लोक, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू.. (नमस्कार (३) नन्दीसूत्र-वृत्ति का बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (-)
सम) ५८२७-२९
नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (२) नन्दीसूत्र-अवचूरि, सं., ग्रं. १७००, गद्य, पू., (जयतीति) (नमिऊण पणयस) ४४५२-१(+), ६३३७-६(+), १७८९-२, २५०३
१,५४४२-८, १७९६-४, ७९००-२(5)
३६४७+5
७१३-१(+)
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४६२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ नयचक्र, आ. कुन्दकुन्दाचार्य, प्रा., गा. ४५३, पद्य, दि.,
६२४९, ६४९३-२, ७११२-१, ७५८२, ८३४५-१,८३६६, ८४७८(दव्वाविस्स) ८९२४(+)
१,८८११-१, ८९१२, ९०३७, ९११५, ९१७५, ९१८०-१, ७२४३(२) नयचक्र-अवचूरि, सं., गद्य, दि., (श्रीकुन्दक) ८९२४५) २, ७८०२-३, ७९०२-२, ३७५५, २३४७#), १८८८(45), ७०४९(२) नयचक्र-भाषावचनिका, श्रा. हेमराज शाह, प्राहि., वि. १७२६, १(45), ५०९२(45), १४८७-१(६), ५४८९-४७), ९२१८-२(७), ६७८१गद्य, दि., (वन्दो श्री) १०४१-२
५(६), ७६६७६६), ८२८४(६), ९१६६-१(5) नयचक्र', सं., गद्य, (प्रणम्य पर)-<प्रतहीन.>
(२) नवतत्त्व प्रकरण- टीका, सं., गद्य, मूपू., (जयति श्रीम) (२) नयचक्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (अनुजोगद्वा) १०४१-१ ८४७८-१ नयचक्रसार, गणि देवचन्द्र, सं., वि. १८वी, गद्य, मूपू.. (प्रणम्य । | (२) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, मूपू., पर) ३०६७(45). ५३६०
(जयति श्रीम) ३१५०-२(१), ६८८७(+), ८९१२ (२) नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, गणि देवचन्द्र, मागु., वि. (२) नवतत्त्व प्रकरण-भाषार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व) १८वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) ५३६०
४२११-१ (२) नयचक्रसार-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (गुणनो विस) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध', राज., गद्य, मूपू., ३०६७+5)
(जीवाजीवा०) २२१, ३५७२-१, ७०४९-१(45) नयपालपुण्यपाल कथा, सं., गद्य, मूपू., (जंपइ सुपत) ६७८९() (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (उत्तराध्यय) नय विचार, प्रा., गा. ४, पद्य, जै., (छन्नन्तह) ५१७४-२
४६४५, ४४२१३ (२) नय विचार-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (निगम सङ्ग) ५१७४-२ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व) नरपतिजयचर्या, कवि नरपति, सं., अध्याय ५, वि. १२३२, प+ग,
८१४० (#s) (अव्यक्तमव) २७१९, १५०२, ४४५०(5)
(२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (नवतत्त्वना) (२) नरपतिजयचर्या-जयलक्ष्मी टीका, कवि हरिवंश, सं., गद्य, ५५१७-१(+), ८८००(+), २२४७, १८४-१(4) (नतिं कृत्व) १५०२
(२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, जै., (पहिलउं जीव) नरवर्म चरित्र, उपा. विनयप्रभ, सं., श्लोक ५०२, वि. १४१२,
८१४९(48) पद्य, मूपू., (आदित्यादि) २६९५(+)
(२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम जीवत) नवग्रह पूजा, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम दिवस) ५७१४
३१२१-१(5) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (जीवा अजीवा) १८६- । (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम तो) १), ६८८७)
७४९९ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, पू., (जीवति प्रा) १८६- (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (समकित १(+)
विना) ४३६८ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा) १६३-३", | (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध', मागु., गद्य, मुपू., (सम्यक्दृष) १३३४(+), १३७६(+), १७०४५), २६२६-६५(+), २९२९-१(+)
३५१३(+), १८८८(45), ५०९२(45) ३३१५९+), ३५१३(+), ४००६(५), ४०४९(+), ४५२४(+), ४५३९(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (हवे नवतत्त) ४६०८८), ५०८३(+), ५११३(+), ५४६७+), ५५१७-१(+), ५७०२(+), ४८१६, ९१५३, ५३९२(5) ५७२७-२(+), ५९१६(+), ७४६७(+), ७५५१-१०+), ७९६२-१(+), | (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (हिवे विवेक) ८८००(+), ८९१५(+), ९०७७-१+), ७८०(+), ७९४(+), ११०१-२(+), ५४६७५), ४२७८, ८२८४(5) १४८५-१५(५), २३००-२(+), २७७७-२(+), ७८८०-१(+), ५३५३(१), | (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. देवचन्द, सं.,मागु., वि. १३३५(५), १५९९५), १५९७(+), २८१९(+#), २८५४+६), २५५५- १७६६, गद्य, मूपू., (श्रीअरिहन) ७५८२ १(+#5), ७००९(+#5), २९९७-३१+5), १७९९-१८(45), ३३७३-४(+5), (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. देवचन्द, मागु., वि. १७६६, ४३१२-२(45), १५५५-१+5), ७५७३-१(+5), ८१४९(45), २९१५- गद्य, मूपू., (ज्ञानं पञ) ३७५५ १(45), ६५२७-१(45), १५८५-२, २२४७, २७०२-१, २९५०, | (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, मूपू., ३३२९, ३५२३, ३५२५, ३५६१-१, ३५७२-१, ४०४३, ४१४५-१, | (जिनमती जीव) ४५७५-१ ४२३६, ४३६०, ४५७५-१, ५२०५, ५४९०-४६, ६०११-१७, (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुङ्गसूरि-शिष्य, मागु.,
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४६३ गद्य, मूपू., (श्रीवीरं) २०६(45), ९११५
(२) नवतत्त्व प्रकरण-रूपी अरूपी मिश्र भेद, प्रा., गा. १, पद्य, (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, आ. सोमसुन्दरसूरि, मागु., गद्य, मूपू., (जीवो संवर) १८६६-३ मूपू., (यथा स्थितस) ४६१६-१(5)
(२) नवतत्त्व प्रकरण-हेयज्ञेयउपादेय, प्रा., गा. २, पद्य, जै., (हेया (२) नवतत्त्व प्रकरण-लेशप्रकाशकस्तवप्रदीप बालावबोध, माग., बन्धा) १४०३-३ गद्य, मूपू., (वन्दित्वान) ४२३६
(२) नवतत्त्व प्रकरण-चौवीस भेद, मागु., गद्य, मूपू., (नवपदार्थना) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, राज., गद्य, स्पू., (जीवतत्त्व)
५३४६ १७३७-१
(२) नवतत्त्व प्रकरण-पदार्थ विचार, मागु., गद्य, जै., (जीव (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (-) १५५५-१(45) अजीव) ३२७५) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (अरिहन्तादि) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बोल, मागु., गद्य, मूपू., (पहेलो जीवत)
२५९९ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थी, मागु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व) १६३- | (२) नवतत्त्व प्रकरण-बोल, मागु., गद्य, मूपू., (हवे विवेकि) ५६०६
३(+), २९२९-१(+). ४६०८(+) ५७०२). ७४६७(१), ८९१५(+), (२) नवतत्त्व प्रकरण-बोल सङ्ग्रह, श्रा. दलपतराय, मागु., गद्य, ७८०), १५९९५), १५९७५), २८१९+4), २५५५-१(+#5),
जै., (श्रीवर्द्ध) ६४८६-२७) ७००९(+#5), ४००६(५), ४३१२-२(+5), ७५७३-१(+5). २९१५-१(45), (२) नवतत्त्व प्रकरण-रुपी अरूपी बोल, मागु., गद्य, मूपू., ६५२७-१+5), २७०२-१, ३५२५, ९०३७, ९१७५, ७२४३-२, (नवतत्त्व) ४०१५) ७६६७), ९१६६-१(७)
(२) नवतत्त्व प्रकरण-विचार, मागु., गद्य, मूपू.. (जीवतत्त्व) ५१५७(२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व) ४०४३ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (दश प्राण) (२) नवतत्त्व प्रकरण-विचार यन्त्र, मागु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व) ७८८०-१(+)
७०७३-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (यथा भूत सा) (२) नवतत्त्व प्रकरण-विचार, मागु., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा)
४०४९)
५११३(4)
३९११(६)
(२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीभगवन्त) (२) नवतत्त्व प्रकरण-विचार, मागु., गद्य, मूपू., (नवतत्त्व) ४२९५३३१५(+)
१,४९३५ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (साचा वस्तु) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापु) ४५३९(+), ९०७७-१(+), ३३२९, ४३६०, ८८११-१
१६२(+), १७०८(+), ८६५४-३(+), २९८५(+), ६१२०(+), १७६५(+#$), (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, ऋ. उत्तम, मागु., गद्य, मूपू.,
२२५, १७७८-२, ३५१२, ४२१४-१, २५४४*-), ७९१६-४(६) (जीवनो जाणव) २९५०
(२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध+यन्त्र, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, मूपू., (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, पं. नित्यविजय, मागु., गद्य, मूपू., (भुवणपइव) १८०-१(+), १९७-१(+) (जयति श्रीम) २८५४(+#)
(२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीशङ्ख्श) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, मूपू., २९८५) (साचउ वस्तु) १७०४(+), २७७७-२(१), ४१४५-१
(२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (हवे नवतत्त) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, गणि शिवनिधान, मागु., गद्य, मूपू., ४२१४-१, १९५ (जेह नमुं) ४५२४(+), ८३४५-१
(२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, पं. हितरूचि, मागु., गद्य, मूपू., १७०८), ६१२०(+), ७९१६-४(६) (जीवतत्त्व) ७९६२-१(+)
(२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (प्रणम्य पा) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, राज., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व)
२९८५) १३३४.५), ५०८३(+), १३३५९५), ५३५३(+), १३७६(५), ३३७३-४(+६), (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन) ५२०५, ६२४९, २३४७)
१७६५+#5), २२५, ३५१२ (२) नवतत्त्व प्रकरण-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., कोष्टक, मूपू., | नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नवतत्त्व) २५८४
(जीवाजीवा) १८२६-२+#), ९११०
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१३२३()
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ (२) नवतत्त्व प्रकरण-विवरण, सं., गद्य, मूपू., (जयति श्रीम) (२) नवस्मरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (त्रिभुवननी) १४२४, १८२६-२{+#)
१६३४-१(45-) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुङ्गसूरि-शिष्य, मागु., (२) नवस्मरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अर) गद्य, मूपू., (श्रीवीरं) ९११०
७६०९(45), ६४२४(45), ८१३९(१), ७३६०(5) नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., गा. ५५, पद्य, मूपू.. | (२) नवस्मरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (माहरो नमस) ५२२२
(जीवाजीवापु) ८०७१-१०,४३४-२, १८५३, ५०९६, ८३६७-१, (२) नवस्मरण-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (अरिहन्तनइं) ७२२४६६३५-१(5)
१), १५१४६) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (नत्वा देवा) १८५३ । (२) बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, मूपु., (भो भो भव्य) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन)
२६२६-४६(+), १४८५-८(+), ७२६१-३(45), २९९७-२४(45), १७८९८३६७-१
३, २२०२, २५०३-२, ३८८५-१, ४४८०, ५४४२-५, ६०११-२२, नवपदआराधना विधि, मागु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम आशु) ८०३२- ६२०२-२, ७४७४, ८४०७-२, ६६९५, ६०१९-७७), ६९५९-२(७),
६४७८-४१७), ३१७३(5) नवपद खमासण विचार, प्राहिं.,सं., गद्य, मूपू.. (तिहां प्रथ) (३) बृहत्शान्ति स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (भो भो भव्य) ६१२५, ५७१६(१)
३८८५-१, ६६९५, २२०२, ७४७४ नवपद गुण, सं., गद्य, मूपू.. (अरिहन्त के) ३४३२-२). ८५१५-१, | नवस्मरण अञ्चलगच्छीय, सं.,प्रा.,९ स्मरण, प+ग, मूपू.,
(परमेष्ठि) १७८४(+) नवपद चैत्यवन्दन, सं., श्लोक १४, पद्य, मूपू., (राजगृहे पु) नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू.. ९४८-३
(नमिय जिणमु) २८४४-१(4) नवपदतप विधि, सं.,राज., गद्य, मूप., (तिहां प्रथ) ४०३६-१, | (२) नाभेय स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्करी जि) १०९६-१, २१२८-१(5)
२८४४-१(+) नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, मूपू.. | निघण्टुशेष, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ६कांड, पद्य,
(उपन्नसन्ना) २८८५-१(+), २९१४(45), १२०५, ४९४५, ६०३३-५, | मूपू., (विहितैकार) ६३५८-१
८१७५, ८६२५-३, १३९८६), २२६८(), ७४६८-१(६), ७४९८-२) | निन्दा गाथा, प्रा.,मागु., गा. १, प+ग, मूपू., (मोहवसेणं) ७५३९-८ नवपद पूजाविधि, सं.,मागु., पद्य, मूपू., (नवपद मण्डल) ५७८६(५) । नियम रथ, प्रा.,मागु., गा. १, प+ग, मूपू., (अविरिआण सण) नवपद लघु पूजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,सं., पद्य, मूपू.,
७५३९-७ (उपन्नसन्ना) २४८६-१
निरञ्जनाष्टक, सं., श्लोक ८, पद्य, (स्थानं न) ७२५७-१(5) नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., ९ स्मरण, प+ग, मूपू., निर्जरपञ्चमीव्रत कथा, सं., श्लोक ४२, पद्य, दि., (सन्मतिनाथम)
(नमो अरिहन) ५१४२-१(+), ११०७-२(१), १५००(१), ५०५८), ६००२-३१) ८८३७+7, २४३८-१(+#), १४२४/+#), १६७८-१(+#5), ७००३- निर्दोषसप्तमी व्रतकथा, सं., श्लोक ४६, पद्य, दि., (महावीरं जि) १(+#$), १२०३-१(45), २४९७६), ५६८३(45), ७६०९(45), २६३-१, ६००२-७३(+) १२५८-१, १६१७, ६४९१-२, १५६४, ५००६, ५२२२, ६०३०, निर्दोषसप्तमी व्रतकथा, सं., गद्य, दि., (शान्तिनाथं) ६००२-३७+) ७९६६,९१६०, १६०५,२१०१-१,८५३७, १४०९-११, २०९२- निशीथसूत्र, प्रा., २०उद्देश, ग्रं.८१५, गद्य, मूपू., (जे भिखु हत) १). ६४२४(5), १६३४-१(#5-). ६२०९-१६,६५७६-२६, ७२२४- ३२२४(+), ४१७२), ७६००+). ७३७५), २७७१(4), ७९६, १(s), ८२९३-१६), ९७६-१(s), ८१४७-१(s), १५१४(६), ३४५०- १७२४, २०६३, ६३८८, ७१८७#5), ३८३४(5) १(s), ७६९७६), ७७४७६), ८१३९९६), १३२८(), ७३६०(६), (२) निशीथसूत्र-विशेष चूर्णी#, गणि जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., ७१७१(६), २२२८)
___ग्रं.२८०००, वि. ८वी , गद्य, मूपू., (नमिऊण अरहन) ३८३४(5) (२) नवस्मरण-सप्तस्मरणटीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, (२) निशीथसूत्र-बालावबोध', मागु., १९उद्देशक, गद्य, मूपू., मुपू., (प्रणिपत्य) ६०३०
(सूत्रमय चि) २७७१(4) (२) नवस्मरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नमो नमस्का) ८८३७), | (२) निशीथसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (जे कोई भि०)
७३७५), १७२४
५६८३(+)
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(२) निशीथसूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., (जे० जे साध)
२२२४
७६००
७९६
(२) निशीथसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, भूपू. (नमस्कार हु) ४१७२०
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
६३८८
नेमिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १५, पद्य, ( मयनाहसरिस ) २८४४-३)
(२) नेमिजिन चरित्र-टवार्थ, मागु.. गद्य, मुपु.. (कस्तूरी सरि) २८४४-३कि
मूपू..
नेमिजिन चरित्र*, सं., गद्य, जै., (-) ५२४२-२ (६)
नेमिजिन नमस्कार, सं., श्लोक १२, पद्य, मृपु. ( नेमिर्विशा)
"
४७००-२
नेमिजिन पञ्चकल्याणक, सं., गद्य, मूपू., (तत्रापि पू ) ४१२७ नेमिजिन स्तुति, सं., श्लोक ३, पद्य, मृपू. (नेमि विंश) ५४८९
नेमिजिन स्तोत्र, सं., श्लोक ५. पद्य, मुपु., (परमान्नं) २६२६४९(+), ४) ५४९०-६३, ५४८९-३९ क
नैयायिक श्लोकानि, मु. यक्षदेव, सं., श्लोक ५, पद्य, मृपू.
(मतिबौद्ध) १७२-२
नैषधचरित्र, कवि हर्ष, सं., सर्ग १२, पद्य, (निपीय यस्य ) ९२३१ न्यायप्रवेशसूत्र, दिनाग, सं., गद्य, बी. (साधनं दूषण) १८५-१ (२) न्यायप्रवेशसूत्र-शिष्यहिता वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सम्यग्ज्ञा) २२३५-१ (+), १८५-१, ४६९० न्यायसार आ. भासर्वज्ञ, सं. ३ परिच्छेद, गद्य (प्रणम्य शं) Poplas
"
(२) न्यायसार न्यायतात्पर्यदीपिका वृत्ति, आ. जयसिंहसूरि सं.. वि. १५वी, गद्य, मूपू., (यत्सत्त्वं) २०९ (+) न्यायावतारसूत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं. का. ३२, पद्य, (प्रमाणं) - <प्रतहीन. >
""
(२) न्यायावतारसूत्र - टीका, गणि सिद्धर्षि, सं., ग्रं. २०७३, गद्य, मृपू.. ( अवियुतसामा) १६७-११
(२) न्यायावतारसूत्र - टिप्पण, आ. देवभद्रसूरि, सं. ग्रं. १०५३, गद्य, मृपू... (मत्वा श्री) १६७-२१ पंचकल्याणकतपउच्चरण विधि, प्रा., मागु., गद्य, जै., ( नवविहे पुन) ६०८४-८
पंचकल्याणक स्तुति, प्रा., श्लोक ४, पद्य, मूपू., ( नाभेयं सम ) १४८५-२५(+), १७९१-५(#), ७५४४-३४($) पंचजिन बृहत्स्तोत्र, सं., श्लोक २६, पद्य, मूप्पू., ( जय जय जगदा) ५८२७-५४
पंचतीर्थ स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मृपू. (श्रीशत्रु) २६२६२४) १४८५-३७९ १७९४-२३१ ५४९०-३०, ५४८९-२४
४६५
पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (अर्हन्तो) २६२६३(+), ५८२७-६८
पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, प्रा. गा. ७, पद्य, मृपू. (परमेष्ठिमन) ९८०
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२५, ५४९०-७४
पंचसूत्र, आ. चिरन्तनाचार्य प्रा. ५ सूत्र, गद्य मृपू. (णमो वीयराग ) ८८३-१०)
(२) पंचसूत्र- टीका, आ. हरिभद्रसूरि सं ८८०, गद्य भूपू.. (प्रणम्य पर) ८८३-२ (+)
पंचाख्यान वार्तिक, सं., श्लोक ४८, पद्य, जै., (कुश्रितं) ५७०५, १२५३-१११ ७२९११का
(२) पंचाख्यान वार्तिक- बालावबोध, मागु ग्रं. १५०० गद्य, जै.. (दक्षिणदेश) ५७०५, १२५३-१ (S), ७२९१(३)
पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., अध्याय १९, गा. ९४०,
ग्रं. ११८७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्ध) ८२२ (+), ८३५(+) (२) पंचाशक प्रकरण-शिष्यहिता वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि सं.,
ग्रं. ७४८०, वि. ११२४, गद्य, मूपू., (सदृष्टीनां) ८२२ (+), ८३५ (+) पउमचरिय, आ. विमलसूरि प्रा. ११८ पर्व, ईस. ३वी पद्य, मृ.. (सिद्धसुरकि) ८२१६ (३)
पच्चक्खाण रथ, प्रा.,मागु., यंत्र, मूपू., (-) ७५३९-२१ पञ्चकल्पसूत्र, प्रा., गद्य, (-) <प्रतहीन >
(२) पञ्चकल्पसूत्र - चूर्णि प्रा. सं. ग्रं. ३३४५, गद्य मृपू
""
·
..
( मङ्गलादीणि) १०२२
7
पञ्चतन्त्र, विष्णु शर्मा, सं., गद्य (ब्रह्मा रु)-प्रतहीन >
"
(२) पञ्चतन्त्र - पञ्चाख्यानोद्धार, उपा. मेघविजय, सं., वि. १७१६, गद्य, मुपू., ( नत्वा श्री) ५२८
पञ्चदण्ड कथा- विक्रमचरित्रे, आ. रामचन्द्रसूरि सं., श्लोक २५५०, वि. १४९०, पद्य, भूपु. ( प्रणम्य जग ) ८५१९) ८२२८१ ८२वर्षीय
"
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पञ्चसङ्ग्रह, आ. चन्द्रमहत्तराचार्य, प्रा., ५ द्वार, पद्य, (नमिउण जिणं)- <प्रतहीन >
(२) पञ्चसङ्ग्रह - स्वोपज्ञ टीका, ऋ. चन्द्र महत्तर, सं., ग्रं. ९०००, गद्य, मूपू., (--) ३६५५
पञ्चस्थानकसूत्र, प्रा. गद्य (-)-प्रतहीन
(२) पञ्चस्थानकसूत्र - विषमपद पर्याय, सं., गद्य, मृपू... ( तत्सन्तानस ) ३४७२-१०(+)
($)
पट्टावली, सं. प्रा. मागु., गद्य, मूप्पू (-) ६६७७-२, १९९२ पट्टावली- उपकेशगच्छीय, सं., गद्य, मृपु. ( श्रीपार्श) ६४९७-१ पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, मृपु. ( श्रीगीतमस) ३०-३०) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., मागु, गद्य, मुपू.. (गुब्बरमा) १२४५-२(+), १९९५(+), १९९४
"
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४६६
३४९८-२(5)
११)
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ पट्टावली खरतरगच्छीय, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (हिवइ गुरा) ८३१२(+), ५६३० १९९७६)
(२) पर्यन्ताराधना-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार कर) पट्टावली खरतरगच्छीय, वा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३०, १३८२), ३५६४+), ३५७५-१(+), ५१३८(+), ४१(+), २७६१-१(+), गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य) १६१४(+), ७८०१(+), १९९६(१), २७६९,
४२-१, १८७१, ५०८१, ५१५८, ८०६५, ८३६४, ८७७५, ९०८४ ३७०१, ६५८८६६)
(२) पर्यन्ताराधना-सक्षेप, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (नमिउण पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ७८५८(4)
भणइ) ३१८५, ५९३१-१ पट्टावली तपागच्छीय, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ३७०४-३, | (३) पर्यन्ताराधना-सक्षेप का बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू.,
(पहिली पहिक) ३१८५, ५९३१-१ पट्टावली प्राचीन, प्रा., गा. ३, पद्य, जै., (सिरि वीर) १९९१-२) | पर्याप्तिविचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, स्पू., (आहार शरीर) पदस्थ ध्यान, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (पणतीस सोल) ७५४७
३५७२-३
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नन्दलाल, सं., श्लोक ६२४, वि. पदार्थ सङ्ग्रह, प्रा.,मागु., गद्य, जै.. (--) ८०७५००
१७८९, पद्य, जै.. (स्मृत्वा) २६६१, ३२८०, ३४७०, ५८०३, पद्मपुराण, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, (शृणु सूत)-<प्रतहीन> ६०६१-१, २९८०, ८५८३, १८१४-१(१) (२) पद्मपुराण-पद्यानुवाद, मागु., पद्य, मूपू.. (आदिनाथ वन) (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., ८२९(5)
(श्रीपार्श) ५३९९ (२) पद्मपुराण-महालक्ष्मी स्तोत्र, सं., श्लोक २७, पद्य, वै., (जय | (२) अष्टाह्निका महोत्सव-टबार्थ, राज., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श) त्वं पद) ६०७७-३
५८०३ पद्मावतीदेवी छन्द, मु. हर्षसागर, सं.,मागु., गा. १०, पद्य, मूपू.. (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं) २८२-४(६)
(समरीने श्र) ३२८०, ८५८३ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लोक २७, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर) (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ', मागु., गद्य, पू., (स्मृ० २५९-७(+), ६२७९-१४(+), ४२९६-१+६)
श्री) ३४७० पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लोक ११, पद्य, मूपू.,
(२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ, गणि ऋद्धिविजय, मागु., (धरणयक्षवलक) २५९-६(+)
गद्य, मूपू., (स्मृत्वा) ६०६१-१ परमाणुपरिमाण गाथा, प्रा., गा. ७, पद्य, जै., (परमाणुउमित) | (२) व्याख्यान कथा सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (समरीने १९७-४(+)
श्र) २६६१, २९८०, १८१४-१(4) परमात्मप्रकाश, मु. योगीन्द्रदेव, प्रा., गा. ३४५, वि. १२वी, पद्य, | पल्योपम विधान, सं., श्लोक ८१, पद्य, दि., (वृषभं वृभं) ६००२दि., (जे जाया झा) ३१९६
४९) परमानन्द स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लोक २५, पद्य, पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू.. (परमानन्दसम) ८९६१, ४२२६-११)
मूपू., (स्नातस्याप) १७९२-९(१), ३३६७-२६१), १४८५-३८), (२) परमानन्द स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (परमात्माने) ६०९४-२(45), १२६७-४, १८०३-९, ५३६५-१, ६०८८-२०, ८९६१
७५४१-५, २३३६-१३, ८७८०-२, १७९१-११(१), ६०४१-८(5), पर्यन्ताराधना, प्रा.,मागु., प+ग, मूपू., (प्रथम इरिय) ५२२९
६०५१-४(६), ९१६६-३(७), ६४७८-५७), २८४५-७) पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (नमिउण (२) पाक्षिक स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (स श्रीवर्द) ८७८०-२
भणइ) १३८२(+), ३५६४(+), ३५७५-१(+), ४२३५९), ५१३८(+), (२) पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (न्हवराव्यौ) ६०९४८३१२(+), ४१(+), २७६१-१(4), ८८४५६+६), ४२-१, १८७१, ५०८१, ५१५८, ७५६७-२, ८०६५, ८३६४, ८७७५, ९०८४, (२) पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (स्नान कराव) ५६३०, ११८०६)
९१६६-३७) (२) पर्यन्ताराधना-अवचूरि, गणि विनयराज, सं., गद्य, मूपू., पाण्डव चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., सर्ग १८, ग्रं.८०००, (कश्चिद् गु) ४२३५)
पद्य, मूपू., (श्रियं विश) २२९६(5) (२) पर्यन्ताराधना-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (नमीनइ नमस) | पाण्डव चरित्र, गणि देवविजय, सं., सर्ग १८, ग्रं.१००००, वि.
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४६७ १६६०, गद्य, मूपू., (ॐ नमो वृष) २८९(45)
सं., श्लोक १०, पद्य, मूपू., (कमनकन्दनिक) २९०५-२(+) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री कथानक, सं., गद्य, मूपू.. (धर्मतः पार्श्वजिन लघुस्तवन-सारङ्गशब्दयुक्त, मु. रामविजय, सं., श्लोक सकल) ६३९९, १२५३-२(5)
७, वी. १९४२, पद्य, मूपू., (वामासुत) २३४२-१०० (२) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री कथानक-कथा, राज., गद्य, पार्श्वजिन स्तवन, मु. जैनचन्द्र, सं., श्लोक ७, पद्य, मूपू., मूपू., (पद्मावती) १२५३-२(5)
(अविचललक्ष) ५८२७-६१ पार्श्वजिन अष्टक, सं., श्लोक ९, पद्य, मूपू., (सुरदानवमर) पार्श्वजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., श्लोक ७, पद्य, मूपू., ६०४२-१८(5)
(सदानीलगात) ५४९०-७०, ५८२७-५९ पार्श्वजिन अष्टक-कलिकुण्ड, मु. कल्याण, सं., श्लोक ९, पद्य, पार्श्वजिन स्तवन-करहेटक, सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू., मूपू.. (विबुधादिरा) ६०४२-२४६७)
(आनन्दभंदकु) २६२६-५२, ५४९०-६८, ५८२७-५७, ५४८९पार्श्वजिन अष्टक-महान्त्रगर्भित, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू.,
५९(5) (श्रीमद्देव) ४२९६-२+5)
पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कमलरत्न, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र, मु. क्षेमराज, सं., श्लोक १३, | (नमिय सुरास) ५८२७-५२ पद्य, मूपू., (सिद्धक्षेत) ५४९०-५६
पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, सं., श्लोक ११, पद्य, पार्श्वजिन चरित्र, आ. देवभद्राचार्य, प्रा., ग्रं.१८६७, वि. ११६८, मूपू., (प्रणमति यः) ८९३९-१ गद्य, मूपू., (रसरुहिरमंस) ३११(+-)
(२) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी-टीका, सं., गद्य, मूपू., (प्रणमतीति) पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., सर्ग ८, ग्रं.६४००, वि. ८९३९-२ १३१२, पद्य, मूपू., (नाभेयाय नम) ५२५४)
पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमण्डन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, पार्श्वजिन चरित्र, मु. हेमविजय, सं., सर्ग ६, ग्रं.३१६०, वि.
मु. राजसमुद्र, प्रा.,मागु., ढाल ३, गा. १९, वि. १६६५, पद्य, १६३२, पद्य, मूपू.. (श्रिये तत) ३३२०(4)
मूपू., (नमिअ सिरिप) ६००१-२४ पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू.. (ॐ नमः पार) । पार्श्वजिन स्तवन-श्रृङ्खलाबन्ध, मु. जैनचन्द्र, सं., श्लोक ७, पद्य,
२४३८-२(+#), ७००३-२(+#5), १२०३-३(45), १७८६-३, ५४९०-६०, | मपू., (सर्वदेवसेव) २२२३-३+#5), ५४९०-६९, ५८२७-५८ ५८२७-५३, २१०१-२, ३१३१-१, २८२-७६), ३४५०-२(5), पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन, सं., श्लोक २, पद्य, मूपू., (श्रीसेढीतट) ६०४२-२९(5)
२६२६-४(+), ५८२७-९३, ५४८९-४९(5) पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, मु. शिवसुन्दर, सं., श्लोक ७, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन स्तव-फलवर्द्धि, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. ३, पद्य, (वरसं वरसं) ९४८-८
मूपू., (ॐ नमो हरा) ६२७९-२२६), ५४९०-५८, ५८२७-५१ पार्श्वजिन चैत्यवन्दन-चिन्तामणी, सं., श्लोक ३, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन स्तव-स्थम्भन नवग्रहगर्भित, सं., श्लोक १२, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ) ६०४२-२५)
(जीयाज्जगच) ७१८३-२(45) पार्श्वजिन दशभवसङ्क्षिप्तवर्णन*, सं., गद्य, जै., (पासे नामन) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू., (अभिनवमङ्गल) ५२४२-१(६)
२६२६-५०+), ५४९०-६४, ५४८९-४०(5) पार्श्वजिन नमस्कार-जीरावला, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (अमरगिरिशिर) (आधिव्याधिह) २६२६-५(+)
__ १४८५-२९(+), १७९१-२६५, ७५४४-२७६) पार्श्वजिन मन्त्र-स्वप्नफलकथन, सं.,मागु., पद्य, पू., (ॐज्जतुं) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (कल्याणानि) ६४६०६२७९-२०(+)
२१, ६०४१-२९६) पार्श्वजिन महिमाश्लोक, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (पार्श्वः) ५४८९-४५(६) ६६२२-४
पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (विश्वस्वाम) ६४६०पार्श्वजिन महिम्नस्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., श्लोक ४०+१, वि. १८५७, पद्य, स्था., (महिम्नः पा) ५७३४
पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुर) २६२६पार्श्वजिन लघुस्तवन, सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू., (भजेश्वसेनन) १२(+, १४८५-२७+), १७९४-८+#), २९९७-११(45), १७९९-९(45), ५८२७-६३
५४९०-८, ५८२७-७, ६०११-३३, १७९१-२(१), १४८७-८(5), पार्श्वजिन लघुस्तवन-श्रृङ्गाटकबन्धमय, उपा. समयसुन्दर गणि, ५४८९-१५(5)
११
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पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, सं., श्लोक ४, पद्य, मूप्पू., (विशदसद्गुण) २६२६-३७(+)
पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबन्ध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लोक ४, पद्य भूपू (मैं) २६२६-२३११ १४८५-४३११७९४-१९०० २९९७-१९(+$), १७९९-५ (+5) ५४९०-२४, ५८२७-१७, ६०११२८, ६०८८-२९, १७९१-३११ ५४८९-३१ ६०४१-२२२१
६०५१-६ ७५४४-२
"
पार्श्वजिन स्तुति-पलबन्ध, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज) २६२६-११(+), १४८५-३१(+), १७९४-७ (+#), २९९७-१० (+), १७९९-१५(+$), ५४९०-७, ५८२७-६, ६०११-४२, १७९१-१०(#), १४८७-१९ ५४८९-१६१ ६०५१-९१
"
पार्श्वजिन स्तुति-पलाङ्कित जेसलमेरमण्डन, सं., श्लोक ४, पद्य, मृपू. ( शमदमोत्तमव) २६२६-१०१० १४८५-१८) १०९४-६० २९९७-७(+$), १७९९-८(+$), ५४९०-६, ५८२७-५, ६०११-३२, १७२१-१४१ १४८७- ५४८९-२८कि ७५४४-२० मा पार्श्वजिन स्तुति- शहखेश्वर, सं., श्लोक १, पद्य, भूपु
(श्रीशदखेश) ६०८८-२१
पार्श्वजिन स्तुति समवसरणभावगर्मित आ जिनकुशलसूर, सं.. श्लोक ४, पद्य, मृपू (हर्षनतासुर) ७५४४-१६४५
पार्श्वजिन स्तुति स्तम्भन प्रा. गा. २. परा, मूपु. ( सिरिथम्भणय ) १७९१-२३११
पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लोक ४९, पद्य, मुपू., (पार्श्वनाथ) ४७००-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लोक ७, पद्य, मृपू. (प्रणमामि ) २३३७९(+), १११७-१६
"
पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., ( अमरतरु काम) ५४९०५०, ५८२७-४४, ५४८९-५५
($)
पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. कुशल, सं., श्लोक ५ पद्य, मूपू.. (ॐ ह्रीं)
६२७९-१९(+), ५४९०-५७, ५८२७-५०
पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू., (धर्ममहारथस) २६२६-५३(+), ५४९०-६७, ५८२७-५६, ५४८९
4618)
पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. गा. १५, पद्य, मूपू.. ( गुणमणिनिहि) २८४४-४
(२) पार्श्वजिन स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., (गुणरूप रतन)
२८४४
पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जीव-शिष्य, सं., श्लोक ८, पद्य, मृपू. (प्रशस्तदेह ) ५६९९-३)
पार्श्वजिन स्तोत्र- चिन्तामणि सं., श्लोक ११ परा, मूपू. (किं कर्पूर) २३३७-२ (+), ९४८-७, ५८२७-६२, ६१४४-४, १५२०, ५४८९-६३क ६०९६-१६४२०-११
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
पार्श्वजिन स्तोत्र-चिन्तामणिमहामन्त्रगर्भित, धरणेन्द्र, सं., श्लोक ३२, पद्य, मूपू., (ओं ह्रीं) ७५४७-३+ (+$) पार्श्वजिन स्तोत्र- जीरावला महामन्त्रमय आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं.. श्लोक १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू. (ॐ नमो देव) ६८६५
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१७९६-५
(२) पार्श्वजिन स्तोत्र-पञ्जिका टीका, मु. पुण्यसागर, सं., वि. १७२५, गद्य, मृपु (श्रीपार्श) ६८६१/०
पार्श्वजिन स्तोत्र - देलवाडामण्डन, प्रा., गा. ३५, पद्य, मूपू., (जय सुरअसुर) ५०८५
(२) पार्श्वजिन स्तोत्र-देलवाडामण्डन- अवचूरि, सं., मागु, गद्य, मूपू., (कियदनुभूतम) ५०८५
पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भित आ जिनप्रभसूरि, प्रा. गा. १०,
पद्य मृपू. (दोसावहारदक) २६२६-६१११ ६०८३-४०२ १४८५
"
१०(+), २९९७-२७ (+), ५४९०-४४, ५८२७-८६, ६०११-१९,
६०७२-२, ५४८९-१२(s) ७०००-४($)
"
पार्श्वजिन स्तोत्र- लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., श्लोक ९, पद्य, दि., (लक्ष्मी) ९७५-२
"
(२) पार्श्वजिन स्तोत्र- टीका, आ. मुनिशेखरसूरि सं. गद्य, मृपू.. (लक्ष्मी इत) ९७५-२
पार्श्वजिन स्तोत्र-वाराणसी, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (चित्तबहुला) ५४९०-५१ ५८२७-४५
पार्श्वजिन स्तोत्र-शङ्खश्वर, मु. लब्धिरूचि, सं., मागु., श्लोक ३२.
वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगना) १३४०-८, २८२-६(S) पार्श्वजिन स्तोत्र- शङ्खेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., श्लोक ११, पद्य, मूपू., (महानन्द लक) ६२६९-१
पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., श्लोक १९६, पद्य, जै, (महादेवं नम) २८२२-१ ४३ २७६२. ४९०६ ५९८९. ६४८९-१,
"
८०७० ११३८, ४६३७०१ ८४७९१ २३१२१ ६८७७) (२) पाशाकेवली-भाषा, प्राहिं., ४ प्रकरण, गद्य, जै., (अवजद ए
च्य) ४५३१
(२) पाशाकेवली भाषा, मागु, गद्य, जे., (१११ उत्तम)
६१५३ (+#5), ४५९, ३६०१, ४२१५, ४५२९-१, ४६२२, ५७३५, ५७८८, ५९०८, ६१३९, ७३५५-१, २५७६, ३३८५, ६८९७(-), ६८६७११ ००१२-१
पिण्डनिर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ६७१, ग्रं. ७०००, पद्य, मृपू.. (पिण्डे उग) २९७९ ७११
F
(२) पिण्डनिर्युक्ति-वृत्ति, आ. मलयगिरिसूरि सं. ग्रं. 8000, गद्य, मृपू. (जयति जिनवर) २९७९ ७११
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(२) पिण्डनिर्युक्ति-विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, मूप्पू., ( परिसण्डियम) ३४७२-५
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-
१ ४ ६९ (२) पिण्डनियुक्ति-विषमगाथा विवरण, सं., गद्य, मूपू., (दस
२०५५-४(+), ४१८१-४), ७०६५-४(+), ८२२९-४(+), ६९-४(+), ससिहा) ३४७२-६(+)
११५-४, ६६९-४, २०५७-४, २९८६-४, ८४२४-४ पिण्ड विचार, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मागु., ग्रं.२८६८, गद्य, (जंमिउ पीलि) ५६६९-२(+)
मूपू.. (जउ हे पूज) ४१३९-४(+), ५३४०-४ (२) पिण्ड विचार-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जीणइ पीलिइ) पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., गा. ५०५, ५६६९-२(+)
पद्य, मूपू., (सिद्धं कम) १०२०(+), २१६, ७७३ पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, (२) पुष्पमाला प्रकरण-लघुवृत्ति, गणि साधुसोम, सं., वि. १५१२, मूपू., (देविन्दविन) ५६६९-१(+), ६३३७-१(+), १८३२(+),
गद्य, मूपू., (इह संहिता) ७७३ ७२२५६), ३२५९, ५८८८, ६०२७-१, १०३७, ९०९५() (२) पुष्पमाला प्रकरण-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, (२) पिण्डविशुद्धि प्रकरण-दीपिका टीका, आ. उदयसिंहसूरि, सं., | सं., ग्रं.१३८६८, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (येन प्रबोध) १८४६
वि. १२९५, गद्य, मूपू.. (तं नमत श्र) १८३२(१), ७२२५(45), (२) पुष्पमाला प्रकरण-अवचूरि, सं., ग्रं.११२०, गद्य, मूपू., (आदौ १०३७
इष्टदे) १०२०(+) (२) पिण्डविशुद्धि प्रकरण-लघुवृत्ति, आ. यशोदेवसूरि, सं., पुष्पिकासूत्र, प्रा., १० अध्ययन, गद्य, मूपू., (जति णं भंत) ७१
ग्रं.२८००, वि. ११७६, गद्य, मूपू., (देवा भवनपत) ३२५९ ३), १३१-३), १५०-३(+), १७५७-३(4), २०५५-३(१), ४१३९(२) पिण्डविशुद्धि प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (इन्द्रना) ३(+), ४१८१-३(+), ७०६५-३(4), ८२२९-३(+), ८८१३-३(+), ६९५६६९-१(4), ९०९५(5)
३), ६६७-३(+), २१७१-३), ४६४२-३(+), ८८६८-३(१), २७५२पुण्यफल कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, पद्य, मूपू., ३(+#). ६८३८-३(45). ११५-३, ६६९-३, २०५७-३, २९६६-३, (छत्तीसदिणस) ७५५१-२२)
२९८६-३, ५३४०-३, ६५५३-३, ८४२४-३, ८३३१-३(5) पुण्यसारकुमार चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., श्लोक २०१, पद्य, (२) पुष्पिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., १० अध्ययन, गद्य, मूपू., (कुलं रूपं) ३३६६, ८८६५-२
मूपू., (अथ तृतीयवर) १५०-३(+), ५६४८-३, ६५५३-३, ८८८४(२) पुण्यसारकुमार चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पा) ३३६६
(२) पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज) २०५५पुण्याभ्युदय काव्य, पण्डित पुण्यनन्दन गणि, सं.,प्रा., वि. १६वी, ३६), ४१८१-३(+), ७०६५-३(+), ८२२९-३(+), ६९-३), ११५-३, प+ग, मूपू., (जयति जगत्त) ७७२(+)
६६९-३, २०५७-३, २९८६-३, ८४२४-३, ८३३१-३(5) पुण्याहवाचन, सं., पद्य, वै., (-) ६०४६-३
(२) पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मु. उत्तम, मागु., ग्रं.२८६८, गद्य, मूपू., पुरन्दरखतविधान कथा, मु. ब्रह्मश्रुतसागर, सं., श्लोक ६३, पद्य, (जउ हे पूज) ४१३९-३०, ५३४०-३ दि., (उमास्वामिन) ६००२-४५६)
पूजा प्रकरण, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५६, पद्य, मूपू., पुराणसार सङ्ग्रह, मु. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., गद्य, दि., (सिरिवद्धमा) ५०४० (सर्वकार) ३६०(45)
(२) पूजा प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (वर्द्धश्चा) ५०४० पुराणहुण्डी, सं., श्लोक २७८, पद्य, जै., (श्रूयतां) ११६६-१ पोरसीमान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (आसाढे मासे) ३२००(२) पुराणहुण्डी-अर्थ, मागु., गद्य, जै., (धर्म सगलां) ११६६-१ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., १० अध्ययन, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते) ७१- | पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अभिनवमङ्गल) ५८३६
४(+), १३१-४(+), १५०-४(+), १७५७-४), २०५५-४(+), ४१३९- । ३), ६७७७-२ ४(+), ४१८१-४(+), ७०६५-४(+), ८२२९-४(+), ८८१३-४(+), ६९- | पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, जै., (प्रणम्य पा) ४), ६६७-४), २१७१-४(+). ४६४२-४), ८८६८-४(+). २७५२- २४२), ८१४१(+) ४(१). ६८३८-४(+६), ११५-४, ६६९-४, २०५७-४, २९६६-४, पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेन्द्रसागर, सं., श्लोक ७५, पद्य, मूपू., २९८६-४, ५३४०-४, ६५५३-४, ८४२४-४
(ध्यात्वा) २५२), ५८३६-२(+). ६०८५-३(45), ५५८३-२(+5), (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, मूपू.,
६७७७-१ (चतुर्थवर्ग) १५०-४(+), ५६४८-४, ८८८४-४, ६५५३-४ | (२) पौषदशमीपर्व कथा-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (इहां ज (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतराग)
भरत) २५२६)
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४७०
पौषध कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, पद्य, मुपू., (बत्तीसदीवस ) २१६१-२ (1)
(२) पौषध कुलक-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू. (हवे सो वर) २१६१
पौषध विधि, प्रा., मागु., गद्य, मृपू., ( प्रथम इरिय) ७७८०-७($) पौषध विधि*, प्रा., मागु., गद्य, मृपू., (इरियावहि) ८९३५ (+), ६०६७-२५११
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पौषधव्रत आहारादिग्रहण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, जै., (फासू असणं) ५६५-३
पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., ( जगवूडामणिम) २६२६-७३ १४८५-४८
१७९४-३४०० ५७१८-२, ५८२७-४०, ६०११-५, ५४८९-३६, ७०००-५० 4 (5) प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., ३६ पद, सूत्र २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहन ) ६४(+), ६५(+), २६८५(+), ४०८५१०९ ७४२५९ २४६७) २०४७/०१ ६९२३(क) (+#) १०८२(+$), ६९२४(+$), ५३३७(#), ६७१ ($), ६७३ (६), ७७६२ ($), ($) CRE
.
L
(२) प्रज्ञापनासूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. ग्रं. १६०००, गद्य, मूपू., ( जयति नमदमर) ६५ (+), २६८५ (+), ६७१(8)
(२) प्रज्ञापनासूत्र- विषमपदपर्याय टिप्पण, सं. गद्य, भूपू (वचनादिति) २४४२-१५
"
(२) प्रज्ञापनासूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (--) ६९२४(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र -टवार्थ, मु. जीवविजय, मागु ग्रं. २८०००, वि. १७८४, गद्य, मुपू., ( प्रणम्य पु) ७४२५ (+)
(२) प्रज्ञापनासूत्र - टबार्थ, मु. धनविमल, मागु., गद्य, मुपू., (प्रणम्य)
६४(क)
(२) प्रज्ञापनासूत्र- विवरण, सं., गद्य, (--) - <प्रतहीन >
(३) प्रज्ञापनासूत्र - विवरण का विषमपदपर्याय टिप्पण, सं. गद्य, मृपू., (सिन्तमिति ) ३४७२-१६ (+)
(२) प्रज्ञापनासूत्र- पर्याय, मागु, गद्य, मृपू. (एम पाञ्च) १०८२ क (२) प्रज्ञापनासूत्र - पर्याय, मागु., गद्य, मुपू., (व्यपगत छइ) २०४८.
"
(२) प्रज्ञापनासूत्र-स्वाध्याय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. १४, पद्य, भूपू (कहजो रे पण) ४१०५-३१ (३) प्रज्ञापनासूत्र- स्वाध्याय काटबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., ( कह्यो देखी) ४१०५-३ प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, आ. रूपसिंह, से श्लोक ३७, पद्य, जै.. (प्रज्ञाप्र) ४६२३
($)
(२) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका - टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (प्रज्ञा क०)
४६२३
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
($)
प्रतिक्रमणमध्ये मार्जारीदोष निवारण विधि, सं., गद्य, जै., ( ननु यदि दै) ६०६२-१६ प्रतिक्रमणादिफलदर्शक गाथा सङ्ग्रह, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., ( आवस्सएण एण) ३०-३१)
(२) प्रतिक्रमणादिफलदर्शक गाथा सङ्ग्रह-टबार्थ, राज., गद्य, मूपू., ( पडिकमणो की) ३०-२(+)
"
"
प्रतिष्ठा कल्प, सं., मागु., पद्य, जे. (तद्यथा सह ) ३३७८ प्रतिष्ठाकल्प, उपा. सकलचन्द्रगणि, सं. मागु., गद्य, मूपू..
"
(प्रणम्य) २३८ (+), २०८५, २९७५, ८२५६
प्रतिष्ठाकल्प विधि, आ. तिलकाचार्य, सं., प्रा., .३३८, पद्य, जै.. (किं तु श्र) ५९५१
प्रतिष्ठा विधि, सं., मागु, गद्य, भूपु. ( पूर्वोक्त) ४९८५) ४८९३. ३९६८
प्रतिष्ठा विधि सङ्ग्रह, सं., मागु., पद्य, मूपू., ( प्रणम्य पा ) ४८९२ - १ प्रतिष्ठा विधि सङ्ग्रह, सं., मागु., गद्य, मूपू., (--) ४७०३ (+) प्रतिष्ठा विधि सङ्ग्रह, स., मागु., गद्य, जै., (प्रणम्य) २०९०.
५३१७, ५३८२
प्रतिष्ठा विधि सङ्ग्रह, आ. चन्द्रसूरि, सं., प्रा., मागु., गद्य, मुपू., (मूलगुरुंमि ) ५४२२
प्रतिष्ठासारोद्धार, श्री. आशाधर, सं., अध्याय ६, वि. १२८५, पद्य, दि., (जिनान्नमस) ६९७३ प्रत्यङ्गिरा स्तोत्र, सं., श्लोक १०, पद्य, जै., (आरूढा सिंह)
(S)
प्रत्ययवाक्य- वाक्यप्रकाश, सं., पद्य, ( कश्चिद्ग्र ) ८८४२-२ (+) प्रत्याख्यानभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. ४८, पद्य, मूपू., (दस पच्चक्ख) ३९९४ - १, ६४०४-३, ४०१२
(२) प्रत्याख्यानभाष्य- स्वार्थ, मागु., गद्य, मूपु. ( दस प्रकारे) ३९९४-१, ४०१२
प्रदेशीराजा चरित्र, सं., पद्य, मृपू., ( श्रीनाभिभू) ४८०७(६) प्रद्युम्न चरित्र, उपा. रत्नचन्द्र, सं., सर्ग १७, ग्रं. ३५६९, वि. १६४४, पद्य, मृपू.. (राज्यलक्ष) २९५१
प्रद्युम्न चरित्र, मु. सोमकीर्ति, सं., सर्ग १६, ग्रं. ४८५०, वि. १५३३, पद्य, मृपू., ( श्रीमन्तं ) ७५४(+), ८१४(+), ९२८३, ८१९६६) प्रबन्धकोश, आ. राजशेखरसूरि सं. २४ प्रबन्ध, वि. १४०५ गद्य, मूपू., ( राज्याभिषे ) ६४६१-१ (+), १०२६, १०३०, ७१००(5) प्रभातिमङ्गल स्तुति, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू., ( गोयम सोहम )
"
६४६०-२७
प्रभास कथा, मु. रामचन्द, प्रा., मागु., गा. ७, पद्य, मुपू., ( सम्मत्तमेव ) ७५५९-५(s)
प्रभुदर्शन करती वखते बोलावा दुहा गुज. सं., पद्य, मृपू. (प्रभु
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
४७१
५५०६(5)
दरशन)७८०३-६
मूपू., (पुष्टेन्दी) ५३२८ प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार, आ. वादिदेवसूरि, सं., ८ परिच्छेद, | प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्याय १०, गा. गद्य, मूपू., (रागद्वेषवि) ३६६२
१२५०, ग्रं.१३००, प+ग, मूपू., (जंबू अपरिग) १०६५), ११३(+), (२) प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति, ६५३(+), ४०६९), ४०७९(+), ४१७९(+), ४५८२(+), ४८९९),
आ. वादिदेवसूरि, सं.,८ परिच्छेद, गद्य, (नमः परमविज)- ६२४८(+), २०४३), ८२७४(+), १४६४/+), ५७००+), २२५७६+#), <प्रतहीन.>
२९८८+#5), ३११९+5), ५४६१(45), ७६१७+5), २७३८, ८१४६, (३) प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार-स्याद्वादरत्नाकर टीका की २६२८, ६६९९, ८३७४(१), ३७६०(४७), ६४५(६), ४६६८(5),
रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., ग्रं.५६८०, गद्य, मूपू., (सिद्धये वर) २२३४५६, ३६६२, ४८८०
(२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं.५६३०, प्रमाणसुन्दर प्रकरण, मु. पद्मसुन्दर, सं., खण्ड ४, वि. १७३२, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ७६१७+5), २६२८, ६४५() ___ गद्य, मूपू., (स्यात्कारम) ८०८७(45)
(२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., प्रमादपरिहार कुलक, प्रा., गा. ३१, पद्य, मूपू., (दुक्खे सुक) ग्रं.७०००उभय, गद्य, मूपू., (अहो जम्बू) ४०७९(7. ४८९९(+), ५९४४-४(5)
६२४८+), २०४३(+), २२५७+#), २९८८(+#5), ५४६१(+5), ८१४६, प्ररूपणा विचार, सं., पद्य, जै.. (आर्हन्त्यम) २५०७)
८३७४(१), ३७६०(४६) प्रवचनपरीक्षा, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., ११विश्राम, ग्रं.१२०५, वि. | (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., ग्रं.७०००उभय, गद्य, मूपू., १६२९, पद्य, मूपू., (पणमिअ णाणन) २८७), ८२३२(4)
(श्रीसुधर्म) ४५८२) (२) प्रवचनपरीक्षा-स्वोपज्ञ सहस्रकिरणा वृत्ति, उपा.
(२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (हे जम्बू) धर्मसागरगणि, सं., ११विश्राम, ग्रं.१३३८७, वि. १६२९, गद्य, १०६), ११३(+), ६५३(+), ४१७९+), ८२७४(+), ४०६९(+), मूपू.. (प्रणम्य) २८७)
१४६४+). ५७०७), ३११९(5), ६६९९, ५५०६(5) प्रवचन सन्दोह, प्रा., गा. २५०, प+ग, म्पू., (नमिऊण वद्ध) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लोक २९, पद्य, मूपू., ६२८४
(प्रणिपत्य) ६०२७-५, १८७६), ५९२८-५(5) प्रवचनसार, आ. कुन्दकुन्दाचार्य, प्रा., गा. २७५, पद्य, दि., (एस प्रश्नोत्तररत्नाकर, मु. शुभविजय, सं., ४ उल्लास, गद्य, मूपू., सुरासुर) ७८१+9)
(प्रणिपत्य) २८६८६+६), ९०१६ (२) प्रवचनसार-वृत्ति, आ. अमृतचन्द्रसूरि, सं., गद्य, दि., प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, जै., (-) ४१३७० (सर्वव्याप) ७८१(48)
प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, उपा. विनयविजय , प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि, प्रा., गा. १५९९, ग्रं.२०००, (नत्वा श्रु) ३९६१
वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण जुगा) ५८१७-१(+), ८९१), | प्रश्नोत्तरैकषष्ठीशतक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लोक १६१, ५५३०+६), ७९५४(45), ७४३०, ९३९
पद्य, मूपू.. (क्रमनखदशको) ४१५२(4) (२) प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, । (२) प्रश्नशतक-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिनत् हानि) ४१५२(+)
सं., ग्रं.१८०००, वि. १२४२, गद्य, मूपू.. (सन्नद्धेरप) ७४३०, प्रातःमङ्गल विधि, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (प्रभाते उत) ६४६०-२६ ९३९
प्रायश्चितसाध्योपनिषद्- निगमशास्त्र, सं., अध्याय १३, गद्य, जै., (२) प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार कर) (एवं भगवदभि) ८०५४(६) ८९१(45), ७९५४(45)
प्रार्थना स्तुति*, सं., श्लोक ६, पद्य, मूपू., (दर्शनं देव) ८९३१-२, प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (संसार विसम) २६२६- __ ५४८९-४८(), ६०४२-१०(६), ६०४२-३०(5)
१(+), १४८५-२(+). १७९४-३०(१), ५८२७-३६, ६०११-२ प्रास्ताविकगाथा सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., श्लोक २८, पद्य, मूपू., प्रशमरति प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., अध्याय १०, श्लोक ३१३, (पञ्च महव्व) ८४६६-३ पद्य, मूपू.. (नाभेयाद्या) १९६
प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लोक १८१, पद्य, मूपू., (नमोस्तु दे) (२) प्रशमरति प्रकरण-टीका, सं., ग्रं.२५५२, गद्य, मूपू.,
८२४९-१ (प्रशमस्थेन) १९६
प्रास्ताविकश्लोक सङ्ग्रह, सं.,प्रा., श्लोक ५७, पद्य, जै., प्रश्नचिन्तामणि, गणि वीरविजय, सं., ग्रं.२२००, वि. १८६८, गद्य, | (दातादरीद्र) २५५८+#), ५४७-३
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४७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ फल वर्णन, सं., गद्य, (पलाश फल पा) ८६८८-२
५२७३-३(+). ५७१-१(+5). ६५१८-३(45), २८८६, २८८९, ८४११बन्धत्रिभङ्गी, मु. नेमिचन्दजिन, प्रा., ३ त्रिभंगी, गा. ४१, पद्य, ३, ८४१५-३ दि., (णमिऊण णेमि) ५४५३-२(+), १६४-२+#)
(२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. जयसोम, मागु., गद्य, (२) बन्धत्रिभङ्गी-टीका, मु. सोमदेव, सं., गद्य, दि., (प्रणम्य पर) मूपू., (कर्मबन्धनन) ८४२३-३(+) १६४-२(+#)
(२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु. (२) बन्धत्रिभङ्गी-यन्त्र, सं.,मागु., यंत्र, दि., (आहारकद्विक) गद्य, मूपू., (कर्मबन्धथी) ३७३७-३(+), १५८१-३(45), ५४३०१६४-२६)
३(5), ८६३२-३ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. २५, पद्य, (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, प्रा., यंत्र, मूपू., (बन्धविहाणव) १४१४+), २४६९-३(+), २४८०-३(+),
मूपू., (-) ४४३४) २९६९-३(+), ३२१३-३(+), ३२२०(+), ४१२९-३(+), ४३५२-३(+), | (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., ४३५३-४(+), ४८६२-३(+), ५२५०-३(+), ५२७३-३(+), ५८४७-३(+), | यंत्र, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ४३३८-३(+#5) ५९०२-३(+), ७३२२(+), ८४२३-३(+), ९२६८-३(+), ३७३७-३(+), बप्पभट्टसूरि चरित्र, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, मूपू., ६५१९-१(+), ५७१-१(45), १५८१-३(+5), ५९११-४(45), ६५०६- (गुर्जरदेशे) ५२०७ ३(+5), ७३४४-३६+६), ७८२७-२(45). ८१३५-३(45). ९०९९-३(45), बरडावीर उपासनाविधि, सं.,मागु., गद्य, मूप., (ओं ह्रीं) ७५४७१७९९-२४(5), ५४३०-३(45), ५९३९-३६+६), ६५१८-३(45), १६७७- १०+) ३, २३३३-३, २८८६, २८८९, ३४९०-३, ५०८७-२, ५३९३-३, बरडावीर स्तोत्र, सं., श्लोक ९, पद्य, मूपू., (नमदसुरसुरा) ६२५२-३,७७७७-३,७८७०-३, ८४११-३, ८४१५-३, ८६३२-३, ७५४७-७(45) ९१०३-३, ९१७०-३, १६९३-३,६५३०-३,७८९१-३, १६१-३०, बारभवन विचार, सं., श्लोक १२, पद्य, (लग्नस्थितो) ५८०२-२(5)
१६४५-३(5), ६६१९-२(), ९१८६-२(७), ७३७९-३(७), ७०९८-३(5) बासठमार्गणायन्त्र, सं.,मागु., कोष्टक, मूपू., (-) ८१५१६) (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टीका, सं., गद्य, मूपू., (समासतः बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू.. (महीमण्डणं) २६२६सङ) ७३२२(+)
७(+). १४८५-३३(+), १७९४-२(+), २९९७-४(45), १७९९-१(45), (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., (-) ५४९०-३, ५८२७-२, ६०११-३१, १७९१-७६), ५४८९-२५६), ९१८६-२६)
६०९०-६६६), ७५४४-१८) (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (बन्ध० | बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., अध्याय ६, ग्रं.४७३, गद्य, बन्ध) २३३३-३
मूपू., (नो कप्पइ) ९३६), १५१८(+), २२७०+), २०६२(+), (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू.,
२४६०, ३५७६, ५३३१ (सम्यग्बन्ध) ९०५४-३(क)
(२) बृहत्कल्पसूत्र-विशेषकल्पचूर्णि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (नमो (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध*, मागु., गद्य, मूपू., अरिहन) ३२
(बन्ध सामित) ५०८७-२, ५३९३-३, ६५३०-३, ७०९८-३६) (२) बृहत्कल्पसूत्र-विषमपद टिप्पण', सं.,मागु., गद्य, मूपू.. (-) (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., ९३६ (सामान्यइ) ५९१७-३
(२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (कव० कश्चित) (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, उपा. जयसोम, १५१८(+), २२७०(+) मागु., गद्य, मूपू., (ऐन्द्रचान) ८४२३-३(+)
(२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., ग्रं.४०००, गद्य, मूपू., (हिवे इहां) (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., ३५७६
गद्य, मूपू., (सर्वशर्मप) ९२६८-३, ६५१९-११), ३४९०-३ बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., ५ अधिकार, (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-बालालबोध, गणि शान्तिविजय, ___गा. ६५५, वि. ६वी , पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलज) ७५० मागु., गद्य, मूपू., (बन्धविहाण) ९१७०-३
(२) बृहत्क्षेत्रसमास-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., अध्याय ५, (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (कर्म | वि. १३वी, गद्य, मूपू., (जयति जिनवच) ७५०
बन्धन) १४१४(+), २४८०-३(+), २९६९-३(+), ३२१३-३(+), (२) बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, ३२२०(+), ४३५२-३(+), ४३५३-४(+), ४८६२-३(+), ५२५०-३(+), ___प्रा., अध्याय ५, पद्य, मूपू., (नमिऊणसजलजल) २०००),
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
२३३९, ९०२०, ९२१६, ८०१, २७३६, ८२५० ($) (३) बृहत्क्षेत्रसमास- लघुक्षेत्रसमास का टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., (नमीने जे) २०००) ९२१६. २०३६
(२) बृहत्क्षेत्रसमास सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण आ. जिनमद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, मूपू., (नमिऊणसजलजल) ४२३० (+), ४४७६ (+), ८२४०-१, ७७९०, ७९१६ - १ (६), ५२३६ (४) (३) बृहत्क्षेत्रसमास-सङ्क्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मागु., गद्य, मुपु. ( नमिकण कहेत) ४४७६ ७७९० ७९१६-१ ५२३६
($)
"
"
(३) बृहत्क्षेत्रसमास सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण का टवार्थ, मागु गद्य, मूपू., ( नमीनइ जलसह) ४२३० (+), ८२४०-१ बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३८७, वि. १३०३, पद्य, मृपू. (सिरिनिलये) ५२३३
बृहत्शान्ति स्तोत्र- खरतरगच्छीय, सं., पद्य, मृपू (भो भो भव्य ) ६०८३-८११, ७५५१-७१ ५४९०-४८, ५८२७-८७, ५६०३-१११ बृहत्शान्तिस्नात्र विधि सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु, गद्य, मु..
(नमोहत्सि ) ५१९३, ६६८५ ६९५४
बृहत्शान्तिस्नात्र विधि सङ्ग्रह, सं., मागु., गद्य, मूपू., ( प्रणम्य पा)
६२९२
बृहत्शान्तिस्नात्र विधि सङ्ग्रह, मा. प्रा. सं., पद्य, ग्रुपु. ( सर्व विधि) ८८६७-३
"
बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मृपू. (नमि अरिह) १७८) २०११) २१९१ )
"
१५) २६२६-६९९ २९४४८१ ३१६५० ३३००१). ४पपला ४८६४९ ५२९३ ५४५९ ५५८९ ५६४० ५७२७-६(+), ५८८४(+), ५८९३ (+), ७४९५ (+), ७५५१-१८(+), ८८१५०) ३९०१०) ७७८०) ७९९१ ८१२० १४३३७/१ १४८५५/० २१९३, २५८३ २९४८) ३६७८) २०४० ७६७(+), २२०७(+), २९९७-३३(+$), १७९९-२१(+$), २२३८(+$) ४०२०(+$), ५३१८(+$), ५४५५ (+$), ८१३१(+), ८७७८+$) ८०८४ ६८४५० ६९५७/१) ७९३६-४१ ९३०५/का (+), ६७९६ (+$), १७१, १७९, १९१, ७९३, ८५०, १३९२, १८५५, २७२०, ३१६७, ३३०४, ४५७८-१, ५३५१, ५५५०, ५९७०, ७३७०, ७७१९ ७८६८, ९०४१, ९१३९, ९१८८, २७३९, ४०९६, ६१०१, ७९४८, ९१४०, ४८६५, ३२३३, ५८७५, ७६४९, ६८७५, ६३९८ (*), ७०२७ (MS), ३९३२(#$), २९१०(#$-), १४८७-४ ($), ५२०६% ५९४७ का ८२५०१ ८९५९१) ९०३५शि ७०८३१
.
९१८५
(२) बृहत्सङ्ग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मूपू., ( अत्यद्भुतं) २१९(+), ७६७(+), १३९२, २७२०
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४७३
(२) बृहत्सङ्ग्रहणी-अवचूर्णी, सं., गद्य, मूपू., (नमिऊ० आदौ ) ७९३६
(२) बृहत्सङ्ग्रहणी- टिप्पण, मु. उदयचन्द, सं., गद्य, मृप्पू .. ( नत्वा गुरू) ४०२०/-छा
($+)
(२) बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध*, मागु., गद्य, मूपू., (ॐ नत्वा) ७७८) २२३८० ८३१६ कि
(8)
(२) बृहत्सङ्ग्रहणी-वालावबोध, मागु, गद्य, मृपू. (प्रणिपत्य ) ९१८५($)
(२) बृहत्सङ्ग्रहणी-वालावबोध, गणि दयासिंह, मागु. ग्रं. १७५७, वि. १४९७, गद्य, ग्रुपु. ( नत्वा श्री) २०११), २२०४) १७१
५५५०, ६३३२-१, ७७१९, ९१८८
(२) बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, प्राहिं., गद्य, मुपू., (अरिहन्त सि)
(२) बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ *, मागु., गद्य, मूप्पू., (नमस्कार अर) ३३०० (+), २०४(+), ७४९५ (+), ४०९६, ९०३५ (६) (२) बृहत्सङ्ग्रहणी-टवार्थ, मागु., गद्य, मृपु. ( नमि० अरिहन) ४८६४
"
(२) बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., (नमिउं कहता) ५५८९(+), ८१२(+), ५३१८ (+), ७९३
(२) बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (प्रणम्य पा) ७८६८ (२) बृहत्सङ्ग्रहणी-टवार्थ, मु. जीवविजय, मागु, गद्य मुपू.. ( नत्वा गुरु ) ३३०४
"
(२) बृहत्सङ्ग्रहणी-टवार्थ, मु. धर्ममेरु, मागु, गद्य, भूपू (नमस्कार कर) ८० ५२९३ ३९० ८५०, ४८६५. ८९५९($)
(२) बृहत्सङ्ग्रहणी- टवार्थ, ऋ. वच्छराज, मागु. ग्रं. १६४९, गद्य, मृ.. (लेलिख्यते) ५४५९१) ८७८४
(२) बृहत्सङ्ग्रहणी-यन्त्रसङ्ग्रह, मागु, यंत्र, मूप्पू., (-) ७८६८ बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लोक ५. पद्य, वै., (ॐ बृहस्पत) २१०१-३. ५४८९-१३
बेइन्द्रीयादिजीव आयु विचार, सं., मागु, गद्य, जै.. (सनोत्र) ६०२२-३(+#)
बोल सङ्ग्रह, प्रा. मागु, गद्य, जै.. (समझवा हेतु) १८५४ बोल सङ्ग्रह, मा. प्रा. सं., गद्य, जै.. () ११२८-३१) ३५२९. ७२०३ ७४२२-शा
बोल सङ्ग्रह से.प्रा., मागु,
गद्य, जे., (हिवे शिष्य) २२३. ५७५३. १८६० ५८४९१ ६८२००१ ४६८११
ब्रह्मचर्य व्रत दण्डक, प्रा., मागु., गद्य, मुपू., (खमासमण० मु)
६०२१-४
ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा., गद्य, मूपू., ( प्रथम इरिय )
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४६९९०
८०८५७)
४७४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ १४९०-५, ९०९०-३, ५६५०-२६)
ग्रं.४७५, वि. १६८७, गद्य, मूपू., (नत्वा जिनं) ४०१४ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., श्लोक ४४+४, ग्रं.७७, (२) भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भक्ता अमरा)
पद्य, मूपू., (भक्तामरप्र) २५९-१(+), २६०), २६१(+), १००९(+), २२८२(+), ३३०३(#5) १५६८-१(+), २१०९(+), २६२६-५५(), २८२३(+), ३६२९(+). (२) भक्तामर स्तोत्र-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत) ३८९३६), ३९४४(+), ४२८४(+), ६०८३-३(+), ६३४६(५), ६४०९(+), ८८३३(+) ७५५१-४(+), ७७२३-२(+), ७९६३(+), ८७१६(+), ८८३३(+), १४८५- (२) भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. हेमराज, मागु., गा. ४८, पद्य, ११(+), २१०४(+), २२१३(+), २२८२(+), २९३९(+), ४१३३(+), मूपू., (आदि पुरूष) ९७२), ४३४०, ४४२५-१, ६०५९-१७, ४३२९(+), ४४७१(+), ४५५७), ५३३५(+), ७५८६६), २१२१#), ६०६०-८() ५५१८(+), २९९७-२८+5). २४५२-२+5), २८४०-१६+६). (२) भक्तामर स्तोत्र-वार्तिक, मागु., गद्य, मूपू., (वरदां शारद) ४६३१(45), ७१३८(+६), ८२८०+६), १०५६(+), ६९६७(+६), १३१६, १३८६, १७८६-१, १८९९, २०९८, ३२३१, ३४४९, ४०१४, (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, ४३१८, ४४२३, ४४२५-२,५२३२, ५२३८-१, ५२४६, ५३५९, मूपू., (वर वाण किल) ४१३३(+), ५३३५(+). १८९९, ४४२३, ५४९०-४१, ५६२९, ५८२७-८३, ५९७३, ६०११-१२, ६०९३-१, ५६२९, ७९७४, ४९९२, ६५०२), ५८०२-१(5) ६१७८, ६५५६, ७५०८-१, ७५९२, ७८१०-१, ७९७४, ९०९१, (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (जिनपादयुगं) २३५८, २६०६, ४९९२, ५५११, ६३५५, ७८७३-१, ९०४०,
८९८८(45) २११०, ८३०, ९१४५, ८३५९, २११५६), ६५०२५), ३०३७(१), (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम जीने) २९००(45), ३३०३(45), २०९१-१(s), ३३५०-१(s), ५४८९-९६), ५८०२-१९६), ६७८१-१(७), ७३८९-२(s), ७५५३-१(s), ७९००-३(s), (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू.. (भक्त जे अम) ३१८०७), ६३२०-१६), ७१५८(5), ८०८५(७), ६०१८-१९७).
१०५६(+) ७६५५७), ४६९९०)
(२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (भक्त जे से) (२) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं.,
७५०८-१ ग्रं.१५७२, वि. १४२६, गद्य, पू., (पूजाज्ञानव) २६०+). | (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मु. शुभवर्द्धन, मागु., वि. १२०२,
२६१), २८२३६), ८७१६६५), २०९८, ५२४३, ५३५९, ३१८०(5) ___ गद्य, मूपू., (श्रीमदादिज) ५२४६ (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू.. (भक्त जे अम) ४७०१, ५८८६, ९१४५
___३९४४(+), ४२८४(+), २१०४(+), ४५५७+), ५३३५९), ४६३१+5), (३) भक्तामर स्तोत्र-टीका का अर्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (किल सइ ७९७४, ७८७३-१, ७६५५६६ साच) ५८८६
(२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (भक्तिवन्त) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (भव्यव्राता) ४३२९), २२१३(+), २१२१(+), ५५१८+#), ७१३८(5), ६९६७+5), ७८१०८२८०+६)
१, ९०९१, २३५८, ६३५५, २११०, ३०३७), ३३५०-१७) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, मु. रायमल्ल ब्रह्म, सं., वि. १६६७, (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (भगत कहिये) गद्य, दि., (श्रीवर्द्ध) १००९(+)
१३८६ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (सेवक अमर)
ग्रं.६९३, वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) ३६२९(+. ७७२३- ४४७१(+), ४३१८ २), ८३५९
(२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, पं. उदयसागर गणि, राज., गद्य, (२) भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., मूपू.. (अथ श्रीभक) ३८९३(+)
गद्य, मूपू., (किल इति नि) २१०९(+), ६३४६), ७९६३(+). (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मु. रूपचन्द्र, मागु., गद्य, मूपू., (-) ५९७३, २६०६, २११५(१),७१५८(5)
६३२०-१(5) (२) भक्तामर स्तोत्र-सुबोधिका टीका, सं., गद्य, मूपू.,
(२) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., श्लोक ४, (नाभेयादिजि) ३४४९, ६५५६
पद्य, मूपू.. (गम्भीरतारर) ८८७३-२ (२) भक्तामर स्तोत्र-सुबोधिका टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., | (२) भक्तामर स्तोत्र यन्त्रमन्त्राम्नाय-पञ्चांगपद्धति विवरण, आ.
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४७५ हरिभद्रसूरि, सं.,प्रा., गद्य, मूपू.. (द्वितीय अङ) ८३०
पंचमांग) ६२७७-३(+), ८४३१(4), ५१७६, ९२११-३ (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, मागु., गद्य, मूपू.. (पूजाज्ञानव) (३) भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा पुद्गलषट्त्रिंशिका ३९४४(+), ८२८०(45)
प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (वुच्छं अप) ५६६३-७+), (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर)
६२७७-२(+), ८४८०-२(+) ४४७१(१), ४९९२, ४३१८
(४) पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा*, मागु., गद्य, मूपू., (-) ४१३३६), गद्य, मूपू., (अथ पञ्चम) ६२७७-२(+), ८४८०-२), ९२११-२ ४४२३, ४६९९०
(३) भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा पञ्चनिर्ग्रन्थी (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा*, सं., गद्य, मूपू.. (-) ३१८०१६)
प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि ,प्रा., गा. १०६, वि. ११२८, पद्य, (२) आदिजिन स्तव- भक्तामरचतुर्थपादसमस्यापूर्तिरूप, उपा. मूपू., (पन्नवण वेय) ५१७५९), १७०, ५१७४-१
समयसुन्दर गणि, सं., श्लोक ४५, पद्य, मूपू., (नमेन्द्र) (४) पंचनिन्थी प्रकरण-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., २९०५-१(4)
ग्रं.३५५, वि. १८वी, गद्य, मूपू., (नयविजयगुरु) ५१७५९), (३) आदिजिन स्तव- भक्तामरचतुर्थपादसमस्यापूर्तिरूप-टिप्पण, १७०, ५१७४-१ सं., गद्य, मूपू., (हे जिनेन्द) २९०५-१(+)
(२) भगवतीसूत्र-विषमपद पर्याय, सं., गद्य, मूपू., (घनोदार इति) (२) भक्तामर स्तोत्र-प्राणप्रियभक्तामर स्तोत्र-चतुर्थपादपूर्तिरूप, मु. ३४७२-१३(+)
रत्नसिंह, सं., श्लोक ४५, पद्य, मूपू., (प्राणप्रिय) ७७७२(+) (२) भगवतीसूत्र-शब्दार्थ, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (अथ विवाहपन) (२) भक्तामर स्तोत्र-मन्त्र, सं., ४८ मन्त्र, गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं) ६५२) २५९-१(+), २९००(#)
(२) भगवतीसूत्र-बीजक, मागु., गद्य, मूपू., (-) ३११४ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., ४१शतक, ग्रं.१५७५२, गद्य, (२) भगवतीसूत्र-हुण्डी, ऋ. धर्मसिंह, मागु., वि. १८८२, गद्य, जै.,
मूपू., (नमो अरहन्त) ९३(+), १०२), १२६(+), १४४(+), ६५२(+), (नवकार नमो) ८४९५ ६५६), ८४२१), ३५०९). ३५६८-२(+), ३६६६६), ७४४२(+). (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुन्दर, मागु., ग्रं.५२०००, वि. ७४६६(५), ९०५३(+), ८८(+), ७४४४-१(+), १०३(+#5). १००+६), १८पू, गद्य, मूपू., (श्रेयः श्र) ३६६६(4), ७४४२(+), ७४४४-१(+) ५२६०+६), २९९८(45), ६९१६(45), ७१०८+5), ७१६९(45), (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ, गणि मेघराज, मागु., गद्य, मूपू., (देवदेवं २९९१+5), ५५६९(+5), ७०६९(45), ९५२+६), ८७, ६३४०, ६८९१, जि) १०२(+), ८४२६५), ८८+), १००+5), ५५६९(5), ७४२४ ७४४३, ७४२४, ९२९४, ६३०३,७९०४, ५२५८), ८६(१), (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ, मु. सत्यसागर, मागु., ग्रं.१५७७५, गद्य, १४५(६), ६४९९६), २६८०(5), ७४०५(), ७७६५(६), १५३१(६), मूपू.. (सुखसंततिवृ) ८७ २०४४), २८७९(5), ६२६५(६) ।
(२) भगवतीसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (ते कालनइ) (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ४१शतक,
७४६६(+), ९०५३(+), ७१०८(45), ९५२(45), ६८९१,७९०४, ग्रं.१८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश) १२६६+), ६४९६), ७४०५(७), ६२६५६)
९०३(+), १०३(+#5), ३६६५(5). ६४४, ६५८, १०८, ९२ (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा', आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (-) (३) भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा
८८२८(+) परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा की टीका, सं., गद्य, मूपू., (-) ८८२८) (खित्तोगाहण) ६२७७-१(+), ८४८०-१(+) ।
(२) भगवतीसूत्र-हिस्सा समवसरण शतक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., (४) परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, गद्य, मूपू.. (णमो सुयदेव) ४६६९(+)
सं., गद्य, मूपू.. (यथास्थिताण) ६२७७-१(+), ८४८०-१(+). (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा समवसरणशतक का टबार्थ, मागु., गद्य, १८२५(5), ९२११-१
मूपू., (न० नमस्कार) ४६६९(4) (३) भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका (२) भगवतीसूत्र-यन्त्र, मागु., यंत्र, मूपू., (-) १०९०-२, १०९०-३,
प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (लोगस्सेगपए) ६२७७-३), ४६६६ ८४३१(+), ५१७६
(२) भगवतीसूत्र-कथा सङ्ग्रह, प्रा., गद्य, मूपू., (-) ६४५५९) (४) भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका के हिस्सा-निगोदषट्त्रिंशिका ४६६७(45)
प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, मूपू.. (अथ (२) भगवतीसूत्र-सारसङ्क्षप, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीभगवतीस)
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पर
१०४६(५)
४७६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ ४६६४(45), ७८१८
भाव प्रकरण, गणि विजयविमल, प्रा., गा. ३०, वि. १६२३, पद्य, (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, उपा. विनयविजय , मागु., गा. २०, वि. | पू., (आणंदभरियनय) ३६२६-१,७८५६, ८४४४
१७३८, पद्य, मूपू., (वंदि प्रणम) १७९५-१२, ६०३९-४१६) (२) भाव प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, गणि विजयविमल, सं., वि. (२) भगवतीसूत्र-आलापक सङ्ग्रह', प्रा., गद्य, मूपू., (-) ८०१७ १६२३, गद्य, मूपू., (नत्वा श्री) ७८५६ (३) भगवतीसूत्र-आलापक सङ्ग्रह-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू.. (-- | (२) भाव प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, मूपू., (आनन्दइ करि) ) ८०१७
३६२६-१, ८४४४ (२) भगवतीसूत्र-द्रव्यानुगम, प्रा., गद्य, मूपू., (कइ विहाणं) (२) भाव प्रकरण का यन्त्र, मागु., गद्य, मूपू., (--) ८४४४
भावशतक, मु. हेमविजय, प्रा., गा. १०३, वि. १६३४, पद्य, मूपू., (२) भगवतीसूत्र-गहुंली, मु. दीपविजय, प्राहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीमान्) ३३४६५), २८७७(+) (सहीत में) ७५६५-२६)
(२) भावशतक-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. हेमविजय, सं., ग्रं.७२७, वि. (२) भगवतीसूत्र-बोलसङ्ग्रह', मागु., गद्य, मूपू., (एक मासनी) १६३४, गद्य, मूपू., (स्मृत्वा) ३३४६(+), २८७७(+) ३९४७
भाव सङ्ग्रह, आ. देवसेन, प्रा., गा. ७०१, ग्रं.९६०, वि. १०वी, (२) भगवतीसूत्र-बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (जीवे तिवा) पद्य, दि., (पणविय सुरस) ३३४२(+#5) ७७९-२
भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., ३ भाष्य, गा. १४५, पद्य, मूपू., (२) भगवतीसूत्र-विचार सङ्ग्रह', मागु., गद्य, मूपू., (-) ६९१५, (वन्दित्तु) ३२७८९५), ४०४४), ४३४३(+), ८८४१५), ९१४९), ८३७२, ८३७३, ६८७८६६), ५७५२(5)
९१९६(+), २५१३(+), २०८२(+#), ८४४९(+#), १३५३६+#5), (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय सङ्ग्रह, उपा. मानविजय, मागु., ३३ २५६१(45, ८७४९(45), ७१६-१, ३९७१, ९१२६, ९१३०, १०६२, सज्झाय, पद्य, मूपू.. (सदहणा सुधि) ७५६३६७)
३३३८(१), ५२९१९), ७६५२(७), ८५५५७, ८८२६(8) (२) भगवतीसूत्र-सप्रदेशअप्रदेश विचार, मागु., गद्य, मूपू.. (--) | (२) भाष्यत्रय-टीका, सं., गद्य, मूपू., (-) ८८२६(5) ११४२)
(२) भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (२) भगवतीसूत्र शतक १४-दण्डक विचार, मागु., यंत्र, मूपू., (वन्दि० वन) ७२३६(+), २५१३(+), २५६१(+#S) (घर चमालिस) ७५७९
(२) भाष्यत्रय-विवरण, मु. धर्मरत्नसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, मूपू.. भद्रबाहुसंहिता, मु. गोवर्द्धन-शिष्य, सं., पद्य, जै., (नत्वा चन्द) (श्रीमद्वीर) ५२९१) १८३८६)
(२) भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., ग्रं.३५०, वि. भद्रबाहुसंहिता, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., अध्याय २८, पद्य, मूपू., १७५८, गद्य, मूपू.. (ऐन्द्रश्रे) ४०४४(+),७१६-१, ८५५५() (मगधेषु पुर) ५३८७, ८२५५७)
(३) भाष्यत्रय-अर्थयन्त्र पदार्थविवरण, मु. सुखसागर, प्रा.,मागु., भवचरिम पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, मूपू., (भवचरिमं पच) ३५७५- वि. १७२४, गद्य, मूपू., (-) ९९२
(२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (बन्दित्तु) ३२७८१), भवनदेवी स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिगु) १११७- ___४३४३(+), ९१९६५), ८४४९(+#), १३५३(45), ८७४९(+5), ७२९३(७) १८, ७५४४-३७)
भीमकुमार कथा, सं., श्लोक २५१, पद्य, मूपू.. (कपिशीर्षकद) भवभावना, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., गा. ५३१, पद्य, मूपू., २२२९(+) (णमिऊण णमिर) ५८६०५), ८६१३
भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लोक १७०, वि. १३पू, पद्य, (२) भवभावना-टबार्थ, पं. शान्तिविजय गणि, मागु., ग्रं.३४२५, मूपू., (सारस्वतं) १२७४-१(+). २४४१(+), २१७८-२), २२२१गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य) ८६१३
११. ६३९४१), २०१५, ४८०९-१, ५५५२-१, ५६८१, ६३९०, भविष्यदत्त कथा-ज्ञानपञ्चमीफलमहात्म्ये, आ. महेश्वरसूरि, प्रा., ६७२३-१, ७५९३, ७८२६-२, ७९५७-१, १११८-१,२३०७१, १० कथा, गा. २०००, पद्य, मूपू., (पञ्चिन्दिय) ५६२६
२७८१() भावत्रिभङ्गी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., गा. ११६, वि. १४वी, पद्य, दि., ३०४०-१(45), ४७३३-१(६), ७०३४(5) (खवियघणघाइक) ५४५३-६(५), ६२४०(+), ७०७६(45)
(२) भुवनदीपक-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (गर्भस्य) ६७२३-१ भावनापञ्चविंशतिव्रत कथा, सं., श्लोक ३४, पद्य, दि., (भक्त्या (२) भुवनदीपक-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (ग्रहाधिपति) जि) ६००२-१५(+)
१२७४-१(4)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
४७७
(२) भुवनदीपक-बालावबोध, गणि लक्ष्मीविनय, मागु., वि. १७६७, | महादेवी सूत्र, महादेव, सं., श्लोक ३९, पद्य, (सिद्धिं कर) २६०४गद्य, मूपू., (सारस्वत्या) ५६८१
१(45), ४८२७, ५३०१ (२) भुवनदीपक-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (सरस्वती ना) (२) महादेवी सूत्र-दीपिका टीका, वा. धनराज, सं., ग्रं.१५००, वि. ४८०९-१, ८६८८-१, १११८-१, ४७३३-१०, ७०३४६)
१६९२, गद्य, मूपू., (श्रीनाभेयं) २६०४-१(45), ४८२७, ५३०१ (२) भुवनदीपक-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (सरस्वती सम) महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्याय ६अध्ययन+२चूलिका, ग्रं.४५४४, २४४१६+), २२२१-१(+), ७८२६-२, २३०७६), ३०४०-१(#5)
गद्य, मूपू., (ॐ नमो तित) ३५(+), ३४,३७१८,७८२०, भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., ग्रं.१८००, गद्य, मूपू., (अस्तीह जम) ८६९९७) २९६(+), ७१९१+5)
(२) महानिशीथसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू.. (--) ३७१८, (२) भुवनभानुकेवली चरित्र-टबार्थ, मु. तत्त्वहंस, मागु., ग्रं.५०००, ७८२०, ८६९९६) वि. १८०१, गद्य, मूपू., (एहीज जम्बू) २९६(+)
महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., गा. १४२, पद्य, मूपू.. (एस करेमि) भुवनेश्वरी अष्टक, सं., श्लोक ८, पद्य, जै., (ॐ ऐं ह्री) ६४०१-३ ६५८४ भोजराज प्रबन्ध, पण्डित बल्लालसेन, सं., ग्रं.३२८, वि. १६वी, (२) महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ए हुं प+ग, (स्वस्ति ) १०२८
प्रण) ६५८४ भोजराज प्रबन्ध, गणि शुभशील, सं., पद्य, मूपू., (नाभेयाद्या) महाभारत, ऋ. वेद व्यास, सं., ग्रं.१०००००, गद्य, (नारायणं नम)३५७८()
<प्रतहीन.> मङ्गलाष्टक, कालिदास, सं., श्लोक १५, पद्य, वै., (श्रीमत्पङ) (२) महाभारत तत्त्वसार, सं., पद्य, मूपू., (श्रूयतां) ८५६१, ७५५३-१८६)
८१५३(5) मध्याह्न व्याख्यानपद्धति, मु. हर्षनन्दन, सं., गद्य, मूपू., (तः (३) महाभारत तत्त्वसार-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (साम्भलो धर) प्रतिष) २६९६(+)
८५६१, ८१५३(5) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टान्त, सं., गद्य, जै., (संसारे चतस) | महावीरजिन अष्टक, मु. बालचन्द्र, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू., ६१०५
(महानन्द शु) ६०४२-१९६६) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टान्त काव्य, प्रा.,सं.,मागु., श्लोक ११, महावीरजिन चैत्यवन्दन, सं.,प्रा., श्लोक ४, पद्य, मूपू., पद्य, जै., (चुल्लग पास) ९१६९-२
(पुरिमचरमाण) ३७९५-२ मन्त्रराजरहस्य, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., श्लोक ६३२, ग्रं.८००, | महावीरजिन जन्मकल्याणक वर्णन, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., वि. १३२७, प+ग, मूपू., (नत्वा जिनं) ३८०७
(चितासायरं) २५४७ मन्त्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लोक ७, पद्य, मूपू., (मन्त्राधिर) ७५४७- | महावीरजिन जन्मपत्रिका, सं., गद्य, मपू., (गतकलि संवत) g()
२२२१-२(+) (२) मन्त्राधिराज स्तोत्र विधि, सं., गद्य, मूपू., (ए स्त्रोत) ७५४७- महावीरजिन पञ्चकल्याणक अधिकार, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू.,
(तेणं कालेण) २७१८ मलयासुन्दरी चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., ४प्रस्ताव, महावीरजिन पारणा स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., ग्रं.२४३०, पद्य, मूपू.. (चतुरङ्गो ) ३५९(१)
(यत्पारणासु) १४८५-३०(+), ५४९०-३४, १७९१-३(१), १४८७मलयासुन्दरी चरित्र, मु. हरिराय, प्रा., गा. ८०३, पद्य, मूपू., १७६६), ७५४४-१०(६) (पणयपयकमलसु) ३११३६६)
महावीरजिन वृद्धस्तवन, आ. अभयसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., महादण्डक कुलक, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. १९, पद्य, मूपू., (जइ जास मणे) ५४०४-२, ५४९०-६६, ५८२७-५५, ६०११-२०, (थोवागब्भय) ८४९३-२)
५४८९-५७(5) महादण्डक स्तोत्र, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू.. (भीमे भवम्म) ५६६३- | महावीरजिन स्तव, सं., श्लोक ६, पद्य, मूपू., (कनकाचलमिव) २(4)
२६२६-५१, ५४९०-६५, ५४८९-४१७) महादेव स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक ४४, | महावीरजिन स्तव, सं., श्लोक ९, पद्य, मूपू., (नत्वा निका) पद्य, मूपू., (प्रशान्तं) ३५३१
६३३७-७(4) (२) महादेव स्तोत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (प्रशान्त) ३५३१ | महावीरजिन स्तव, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जयइ नवनलिन)
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४७८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ १७९६-२
१, पद्य, मूपू., (वीरः सर्वस) ७८७-२(१), ५४८९-४६६७), ६२०९महावीरजिन स्तव, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लोक ३०, ग्रं.३५७, पद्य, मूपू., (भावारिवारण) ९७१(+), २६२६-६८+), ७९१८(+), महावीरजिन स्तोत्र, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू., (सिद्धे समा) १४८५-१३(+), २३३०(+#). ५४९०-३९, ५८२७-८१, ६०११-१४, ६२६९-७ ५४८९-७(5), ६७८१-३(5)
महावीरजिन स्तोत्र, मु. मुनिसुन्दर, प्रा., गा. ५, पद्य, जै., (२) महावीरजिन स्तव-टीका, उपा. जयसागर गणि, सं., वि. (जयसिरिजिणव) १३३६-३, ६४६०-२४, ८७०७-३७) १४६५, गद्य, मूपू., (श्रेयोर्थ) ९७१(+)
महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., श्लोक ३३, (२) महावीरजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भावाः क्रो) पद्य, मूपू., (सदायोगसाम) ६००९-३(+), ४११५, ६२१९ ७९१८)
(२) महावीरद्वात्रिंशिका-अवचूरि, मु. उदय, सं., ग्रं.२५०, गद्य, (२) महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (अन्तरङ्ग) मूपू., (स्याद्वादव) ६२१९ २३३०(+#)
(२) महावीरद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मागु.. गद्य, मूपू., (श्रीगुरुना) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लोक ३, पद्य, मूपू., (नमः श्रीवी)
४११५ १७८७-६६६)
महिपालराजा कथा, गणि वीरदेव, प्रा., गा. १८०९, ग्रं.२५००, महावीरजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (नमोस्तु वर) पद्य, मूपू., (नमिऊण रिसह) ४९०८(+), ७६८३(+), ५६८९(+), १७९१-२३६), ७५४४-५(5)
३२६(45), ८५१८, ३८६१-१९७) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (पापा धाधान) (२) महिपालराजा कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार कर) ५४८९-३२६), ७५४४-३१(६)
____७६८३(+), ५६८९५), ३२६+६) । महावीरजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (यदंह्रिनमन) महीपकोश, महीप, सं., पद्य, (-)-<प्रतहीन.>
२६२६-१३(१), १४८५-२०(+), १७९४-९(१), २९९७-१३(5), (२) महीपकोश-हिस्सा सारङ्गशब्दार्थ, महीप, सं., पद्य, १७९९-१३६+६), ५४९०-९, ५८२७-८, ६०११-२३, १७९१-९(१), (सारङ्ग कुञ) ६३५८-२
१७९१-१५), १४८७-१३(5). ५४८९-२९६, ७५४४-१५) महीपाल कथा, सं., श्लोक १०४, पद्य, मूपू., (श्रीवीरयुग) ८९५६ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (लोकाधारं) महीपाल चरित्र, उपा. चारित्रसुन्दर, सं., सर्ग ५, ग्रं.८९५, पद्य, १७९४-३६+#)
मूपू., (यस्यां सदे) ८१९८ ।। महावीरजिन स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं) २६२६- । मांगलिक श्लोक, सं., श्लोक २, पद्य, मूपू., (अर्हतो मङ) ७१६-२
१८(+), १४८५-३६(+), १७९४-४(+#), ५४९०-१४, ५८२७-१३, माण्डला विधि, प्रा.,मागु., गद्य, जै., (तिहां प्रथ) ६०६२-९७) ६०११-३६, ६०८८-२२, ६४६०-१०, २३३६-५५, १७९१-१३६१), माधवनिदान, आ. माधवाचार्य, सं., पद्य, (प्रणम्य जग) ७२५३(45) १४८७-७६), ५४८९-१७), ६०९०-५(७), ६०९६-५७), ७५४४- (२) माधवनिदान-मधुकोश टीका, विजयरक्षित, श्रीकण्ठदत्त, सं., २१(६), २८४५-१४
गद्य, (प्रणम्येत) ७२५३(45) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू., (वीरः सर्वस) मिथ्यात्व १० प्रकार, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (धमे धूमे) १७३७-२ ११०७-१(4)
मुकुटसप्तमीव्रत कथा, सं., श्लोक ४२, पद्य, दि., (नमस्कृत्य) महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, मूपू., (श्रीदेवार) २६२६-३९(+) ६००२-५९(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, जै.. (श्रीवीरोदि) ५८८०- | मुकुटसप्तमीव्रत कथा, मु. सकलकीर्ति, सं., श्लोक ५५, पद्य,
दि., (नाभेयादिजि) ६००२-२६(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, जै., (सिद्धार्थक) ९१७१- मुक्तावली कथा, सं., श्लोक ६०, पद्य, दि., (वीरमानम्य) ६००२
महावीरजिन स्तुति, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (पञ्चमहव्वय) मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ६४६, वि. ११७२, ४६७६-२, ५९०६-२
पद्य, मूपू., (नमिऊण महाव) ९२७५९) महावीरजिन स्तुति, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (परसमयतिमिर) | (२) मुनिपति चरित्र-अनुवाद, मागु., गद्य, मूपू., (एह भरतक्षे) __१७९१-२४(*), ७०००-२(5), ७५४४-६(६)
__ १९७२(+) महावीरजिन स्तुति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक | (२) मुनिपति चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर)
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९२७५)
५५२६-२(#s)
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४७९
(मारुदेवं) ६०७०-८(+) (२) मुनिपति चरित्र सारोद्धार, सं., गद्य, मूपू., (मुनिपति चर) (२) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान- टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., ५६९२
(मरुदेवीको) ८६१५ मुहपत्तिपडिलेहण गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुहपत्ती) मेरुपङ्क्ति विधि, मु. धवलकीर्ति, सं., श्लोक ४०, पद्य, दि., १४८५-५१(+)
(जितारातीन) ६००२-१०+) मुहूर्तमुक्तावली, आ. परमहंस परिव्राजक, सं., श्लोक ४५, पद्य, मौनएकादशी कथा, सं., गद्य, मूपू., (अथ मार्गशी) ७८१५-१ (श्रीशं श्र) १४४९-१(१), ८०८८-१
मौनएकादशीतिथि स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (श्रीभाग्ने) (२) मुहूर्तमुक्तावली-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श) १४४९- ८७८०-१ १), ८०८८-१
(२) मौनएकादशीतिथि स्तुति-वृत्ति, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, मूत्रपरीक्षा, सं., श्लोक ३०, पद्य, जै., (श्रीमत्पार) १३४५-२(4), मूपू., (श्रियं भजत) ८७८०-१
मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (शान्तीशं) ४७९३) मृगसुन्दरी कथा, सं., श्लोक १४७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य) ८५४८) | मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीर) २५८-१(+), २४६मृगाङ्क चरित्र, मु. ऋद्धिचन्द्र, सं., श्लोक २८८, पद्य, मूपू., १, २३२१-१, ४५५५ (श्रीपार्श) १७१६(+)
(२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) (२) मृगाङ्क चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार)
४५५५ __ १७१६(+)
मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., गा. १५७, पद्य, मूपू.. (सिरिवीर) मृत्यु महोत्सव, सं., श्लोक १८, पद्य, दि., (मृत्युमार) ६१७५(4) ६०८४-५(+, ६४३२-२(+), १९६१, ५८०७, ६५९६, ७८९०-१, (२) मृत्यु महोत्सव-अर्थ, श्रा. सदासुखजी, प्राहिं., वि. १९१८,
६५३७-५७) गद्य, दि., (मुक्ति के) ६१७५(+)
(२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर) (२) मृत्यु महोत्सव-भावार्थ, श्रा. सदासुखजी, प्राहिं., गद्य, दि.,
१९६१ (मै अनादि) ६१७५(
मौनएकादशीपर्व कथा, आ. रविसागर, सं., श्लोक २०१, वि. मेघदूत, कालिदास, सं., श्लोक ११५, ग्रं.३५०, पद्य,
१६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य ऋष) ५४२७९+), ५१४१, ६२७५, (कश्चित्कान) २५३०(4), २५५०()
९१६, २५१ (२) मेघदूत-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (कश्चिदनिर) २५५०(१) (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (पार्श्वदेव) (२) मेघदूत-अवचूरि, सं., गद्य, (रामेण दरथा) २५३०(4)
५४२७+). ५१४१ (२) नेमिदूत, श्रा. विक्रम, सं., श्लोक १२६, वि. १३वी, पद्य, मूपू., | (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणमीने) (प्राणित्रा) २७९८). २४९८६), १९०८
६२७५, ९१६, २५१९७) (३) नेमिदूत-टीका, आ. गुणविनयसूरि, सं., वि. १६४४, गद्य, मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनन्दिसूरि, सं., श्लोक ११६, मूपू.. (श्रीपार्श) २७९८), २४९८+5)
वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेम) २५८-२(+), ६०८५-२(45), मेघमालाव्रत कथा, सं., श्लोक ७०, पद्य, दि., (श्रीवर्द्ध) ६००२- ९४५, १८४४, ५२६३, ५७५७, ७७०१
(२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मु. सौभाग्यचन्द्र, मागु., गद्य, मेघमालाव्रत कथा, सं., गद्य, दि., (नमः श्रीवर) ६००२-१(+) मूपू., (मौनएकादशीप) ५२६३, ५७५७ मेरु १६ नाम, प्रा., गद्य, जै., (एमन्दरस्सण) १४८०-२) मौनएकादशीपर्व कथा माहात्म्य, मु. दानचन्द्र, सं., श्लोक २२०, मेरुत्रयोदशी कथा, सं., गद्य, मूपू., (--) ६१९२(5)
वि. १७०८, पद्य, मूपू., (ऐश्वयौदा) २३६३-२६+६) मेरुत्रयोदशी कथा, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य भा) ८४८५९), (२) मौनएकादशीपर्व कथा माहात्म्य-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., ३२९१९), ४२९०-१, ८१४५, ६२७०-१९७)
(इश्वरपj) २३६३-२(5) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., ग्रं.१६५, वि. | मौनएकादशीपर्व माहात्म्य, मु. धीरविजय, सं., श्लोक १०९, वि.
१८६०, गद्य, मूपू., (मारुदेवं) ५८३६-१+), ९१३२(+), ६०८५- १७७४, पद्य, मूपू., (वर्द्धमान) ८२४८, ८४०९ ८(45), ५४८७, ८६१५
| (२) मौनएकादशीपर्व माहात्म्य-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) (२) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान-भाषान्तर, मागु., गद्य, मूपू.,
८४०९
४०)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू.. (अरस्य प्रव) । पद्य, मूपू., (यत्र वित्र) ३९१(+), ७५८९(+). ७९४४-१(48),
२६२६-२१), १४८५-२३(+), १७९४-१७+#), २९९७-१८(45), ४१५(45), ३५९९(45), ३९४, ८७६, ४९०७-१, ७५७७, ८६६३, १७९९-४(45), ५४९०-१८, ५८२७-१६, ६०११-४०, ७८९०-२, ५६९१-१, ८३०२, ६५५७(45), ३६४५(६), ४७६६(७), ७९७०(5)
१७९१-१७१), १४८७-६(७), ७५४४-१४६), ६०९०-९(5) (२) योगचिन्तामणि-अर्थ', मागु., गद्य, मूपू., (-) ३९१(+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (दीक्षा श्र) (२) योगचिन्तामणि-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम स्त) २६२६-३०(+), ५४९०-१९
५६९१-१, ३६४५७) मौनव्रत कथा, सं., श्लोक ३०, पद्य, दि., (श्रीवीरजिन) ६००२- (२) योगचिन्तामणि-बालावबोध, मु. मानकीर्ति-शिष्य, मागु., गद्य,
मूपू., (श्रीसर्वज) ७५७७ मौनव्रत कथा, आ. गुणचन्द्रसूरि, सं., श्लोक १२९, पद्य, दि., (२) योगचिन्तामणिसार सङ्ग्रह-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (सकलज्ञानसम) ६००२-४६६)
(प्रस्थतीन) ७९७०(5) मौनव्रतविधान कथा, कवि रत्नकीर्ति, सं., गद्य, दि., (इहैव जम्बू) | (२) योगचिन्तामणि-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जबइ वित्रा) __ ६००२-२८)
४१५(45), ८७६ यति आराधना, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, मूपू., (पूर्व ग्ला) ७५६७-१ (२) योगचिन्तामणि-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (हिवै चूर्ण) ८६६३ यतिजीतकल्पसूत्र , आ. सोमप्रभसूरि, प्रा., गा. ३०६, पद्य, मूपू.. (२) योगचिन्तामणि-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू.. (-) ७९४४-१(45), (कयपवयणप्पण) ८७०२
३९४ (२) यतिजीतकल्पसूत्र-टीका, आ. साधुरत्नसूरि, सं., ग्रं.५७००, योगद्वहनविधि सङ्ग्रह, सं.प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (श्रीआवश्यक) वि. १४५६, गद्य, मूपू., (जयति महोदय) ८७०२
२५४९(+), ३८५९ (३) यतिजीतकल्पसूत्र-टीका का प्रायश्चित्तभेद, सं., गद्य, मूपू., योगनन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र ९, गद्य, मूपू., (नाणं (तं दसविहमा) ७६५४(45)
पञ्चव) ७०७-३(), ८५७-३(+), ४०७८-३(+), ७५-३, ८१६३-३ यतिदिनचर्या, आ. भावदेवसूरि, प्रा., गा. १५४, पद्य, मूपू., (वीरं | (२) योगनन्दीसूत्र-टबार्थ", मागु., गद्य, मूपू., (आ० मतिज्ञा) ८५७नमिऊण) २३५(+), ५३६१
३), ७५-३ (२) यतिदिनचर्या-अवचूरि, मु. मतिसागर, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य | योगप्रदीप, सं., श्लोक १४३, पद्य, मूपू., (यावन्न ग्र) २२२६ जग) २३५(+), ५३६१
(२) योगप्रदीप-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जिहा लगइ) २२२६ यन्त्रराज, आ. महेन्द्रसूरि, सं., अध्याय ५, शक. १२९२, पद्य, योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., १२प्रकाश, ___ मूपू.. (श्रीसर्वज) ८९५(45)
श्लोक १०००, पद्य, मूपू., (नमो दुर्वा) ५६४६+०.५९६४), (२) यन्त्रराज-टीका, आ. मलयेन्द्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य ९००२), २२४(+#5), ४६१२६+६), ४६८५(45), ६८०१(45), ५६३४सर) ८९५(5)
१(45), २१८, २६७०, ५६२०, ५६७१, ९१६१, ११५०-२(5), यन्त्र सङ्ग्रह, सं.,अंग्रेजी,मागु., कोष्टक, जै., (-) ३५७१-२ १८०५-१(5), ८६८२(5), ५५३२(5), ५५३७७), ६९९४(5) यशोधर चरित्र, वा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३९, गद्य, मूपू., (२) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, (सकलसुरनरेन) ३५३३
सं., गद्य, मूपू., (अत्र महावी) ३२७२, ८८५२, ५५३२(5) यशोधर चरित्र, मु. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., सर्ग ८, श्लोक (२) योगशास्त्र-हिस्सा, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ९६०, पद्य, दि.. (श्रीमन्तं) ३५७(+)
पद्य, मूपू., (-) ७८२ युगप्रधानतप विधि, प्रा.,मागु.. प+ग, मूपू., (से भयवं के) ७९२८) | (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ की अवचूरि, सं., गद्य, युगप्रधान स्वरुप, आ. भद्रबाहु, प्रा., गद्य, (नमः श्रीभद)
मूपू., (-) ३२७६ <प्रतहीन.>
(३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, सं.,मागु., (२) युगप्रधान स्वरुप-यन्त्र, आ. देवेन्द्रसूरि, सं.,मागु., २३ उदय, ___ गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर) ८०९ यंत्र, मूपू., (नमः श्रीभद) ८५२३ ।
(३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, मागु., योगचिन्तामणि, सं.,मागु., गद्य, (सलेसको मन) ६५५७४६)
४प्रकाश, गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर) ४३७४(+) (२) योगचिन्तामणि-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (--) ६५५७(45) | (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अध्याय ७, वि. १७वी, सोमसुन्दरसूरि, मागु., ४प्रकाश, गद्य, मूपू., (प्रणम्य जि)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-
१ ४ ८१ १८०५-१(5)
(२) रत्नसंचय-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (नमिऊण क०) (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १-४ की अवचूरि, आ.
८५१६ अमरप्रभसूरि, सं., १-४प्रकाश, गद्य, मूपू., (नमस्कारोस) (२) रत्नसंचय-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर) २४१७-१(+), ९००२(4), ५६२०, ७८२
८४८२(+), ९०३३(+), ९०६१), ५१४५-१(+), ७८२४६+६), ५३०९ (२) योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक, आ. हेमचन्द्रसूरि रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लोक २५, पद्य, मूपू., __ कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू.. (परिग्रहारम) (श्रेयः श्र) ७७७(+), ४६३०(+), ६००९-१(+), ६००९-२), ५३८३
७८६७+). ५०५९(), ९४८-५, १४२७-१, ५०२१-२, ६२४२-४, (३) योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक का शतार्थ विवरण, ६२६३, ६२६९-४, ६४९२, ६४२०-३७), ६०९६-९९६)
गणि मानसागर, सं., सूत्र १०६विव., वि. १७वी, गद्य, मूपू., (२) रत्नाकरपच्चीसी-टीका, मु. भोजसागर, सं., वि. १७९५, गद्य, (प्रणम्य पर) ५३८३
मूपू., (नमस्कृत्य) ७७७(4) योगसार, मु. योगीन्द्रदेव, अप., गा. १०८, पद्य, दि.,
(३) रत्नाकरपच्चीसी-बालावबोध, गणि पुण्यविजय, मागु., वि. (णिम्मलझाणप) ९२२६
१७७९, गद्य, मूपू., (श्रीरत्नाक) ६००९-२(4) (२) योगसार-टबार्थ, मागु., गद्य, दि., (निर्मल ध्य) ९२२६ (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (अहो कल्याण) योगोद्वहन विधि, सं., प+ग, मूपू., (मनोवाक्काय) ६८७६(७)
४६३०२), ७८६७+), ५०२१-२, ६२६३ योगोद्वहन विधि, सं., ग्रं.६११, गद्य, मूपू., (आवश्यकं यो) ४०८९ । (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मु. कुंवरविजय, मागु., वि. १७१४, योगोद्वहन विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (पसत्थे खित) २५७), ___गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ६००९-१(+) ५५६१(६)
(२) रत्नाकरपच्चीसी-योगचिन्तामणि टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., योगोद्वहन विधि, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (--) ११३२६७)
(श्रेयः कहत) ५०५९(१) योगोद्वहनविधि यन्त्रसङ्ग्रह, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (आवश्यकाद्य) रत्नाङ्गद कथानक, सं., गद्य, मूपू., (-) ६४८१७) ३९८९-१५, ७३८४, ७३९३(७)
रत्नावलीव्रत कथा, सं., श्लोक ४१, पद्य, दि., (प्रणम्य) ६००२योगोद्वहनविधि यन्त्र सङ्ग्रह, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (वसतिपूर्वक) ३९८९-२(+)
रत्नावलीव्रत विधान, सं., श्लोक ५५, पद्य, दि., (वर्द्धमानस) योनिस्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू.,
६००२-५(+) (देविन्दनयं) ६०४४-६(+)
रागत्रिक रथ, प्रा.,मागु., गा. १, प+ग, मूपू., (जे काम्म) ७५३९रक्षा विधान, सं., गद्य, दि., (अवन्तीदेशे) ६००२-३९(+)
१९ रघुवंश, कालिदास, सं., सर्ग १९, पद्य, (वागर्थाविव) ४६५६), राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सूत्र १७५, ग्रं.२१००, गद्य, मूपू., (नमो ४७५४
अरिहंत) ८३६), ८६५(५), १३७५(+), ४०७५(+), ४३१९(+), (२) रघुवंश-शिशुबोधिनी टीका, गणि गुणरत्न, सं., सर्ग १९, ४९०५८+), ८४४७(+), ९११२(+), २७३३(+), ९११९(+), ४८९४(+), ग्रं.२०००, वि. १६६७, गद्य, स्पू., (पार्वती च) ५२५५(+)
२९७७+), २०५२+#), ७०९९(45), ४०६७+5), ६५१४+६). १३०, (२) रघुवंश-शिशुहितैषिणी टीका, आ. चारित्रवर्धनसूरि, सं., वि. ६३८६, ८३७७, ६३१७(5) १६वी, गद्य, मूपू.. (यस्य भृङ्ग) ५१८६६)
(२) राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं.३७००, (२) रघुवंश-सुबोधिका टीका, गणि श्रीविजय, सं., ग्रं.८०००, गद्य, | गद्य, मूपू., (प्रणमत वीर) ८४४७), ८४१४(+), ११६(+), मूपू., (अहं कालिदा) ४६५(45)
६५१४६), ३६६८, ११७(45) (२) रघुवंश-टिप्पण, गणि क्षेमहंस, सं., गद्य, मूपू., (अहं
(३) राजप्रश्नीयसूत्र-टीका का विषमपद टिप्पण, सं., गद्य, मूपू.. कविकाल) ४७५४
(वक्तव्यता) २०५२(+#) रत्नत्रयतप कथा, सं., श्लोक ३०, पद्य, दि., (महावीरं जि) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टिप्पण', मागु., गद्य, मूपू., (-) ४९०५), ६००२-५१(+)
१३७५), ९११२(4) रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., गा. ५५०, पद्य, मूपू.. (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (तिणि कालि) (नमिऊण जिणव) २४१७-१(+), ८४८२(+), ९०३३(+), ९०६१), ४३१९(+), २७३३(+), ४०६७(45), ६३१७) ५१४५-१(+), ७३०८(45), ७८२४+६), ५३०९, ८५१६, ८३०९(5) | (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मागु., ग्रं.३२८१, गद्य, मूपू., (नत्वा
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वीरज) २९७७ (+)
(२) राजप्रश्नीयसूत्र- टवार्थ, मागु . ५०३९, गद्य, भूपू.. (नमस्कार है) ४०७२/
(२) राजप्रश्नीयसूत्र - टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., ग्रं. ५५००, गद्य, जै.. (देवदेवं जि) ८३६१०१, ८६५०९ ९११९११ ४८९४७०० १३० (२) राजप्रश्नीयसूत्र - चौपाई, आ. जिनचन्दसूरि, मागु., वि. १७०९, पद्य, ग्रुप.. (-) २०५३क
"
राजिमतीसती नाटक, कवि यशचन्द्र, सं., अंक ५, श्लोक ९०, पद्य, जै. (उत्कण्ठाकल) ७९३९
रात्रि पूजानिषेध विचार, प्रा., गद्य, ग्रुप.. (ननु अट्टमी) ३३३३
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राम चरित्र, गणि देवविजय, सं., सर्ग १०, वि. १६५२, पद्य, मूपू., (अथ श्रीसुव) ९२८४३
रुक्मिणी चरित्र, आ. छत्रसेन, सं., श्लोक ५१, पद्य, दि.. (जिन प्रणाम) ६००२-४३
रुक्मिणीव्रत कथा, सं., श्लोक ४१, पद्य, दि., (अन्तिमं जि) ६००२-६५
(+)
रूपसेन कथानक, सं., पद्य, भूपू., ( - ) ६८९८ (5)
रूपसेन कनकावती चरित्र चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., श्लोक २२४ . १५३०, पद्य, मूपू. (श्रीमन्त) २३८), ४८९७ (+), ५८६७, ८५९६, ३१२(S)
(२) रूपसेनकनकावती चरित्र-वृत्ति, आ. जिनसूरि, सं., गद्य, मृपू.. (श्रीमन्तं) ९०५६-११
(२) रूपसेनकनकावती चरित्र-टवार्थ, मागु ग्रं. २३४०, गद्य, भूपू.. (सकल प्रति) ४८९७, ८५९६
रैदव्रत कथा, गणि देवेन्द्रकीर्ति, सं., गद्य, दि., (नेमिनाथं) ६००२93(+)
रोगी विचार सङ्ग्रह, मागु., सं., गद्य, जै., (पल्ली तिथि) ७७३६-४ रोहिणीतप कथा, सं., श्लोक ९९, पद्य, दि., ( समानम्य मह ) ६००२-४१(+)
रोहिणीतप व्याख्यान, आ. नरेन्द्रसूरि, सं., श्लोक १२९, वि. १७७०, पद्य, जै., ( नत्वा च ) ८९१६ (+४), ५८५९ (२) रोहिणीतप व्याख्यान-टबार्थ, मु. भक्तिनन्दन, राज., गद्य, मृपू.. (श्रीमहावीर ) ८९१६निक ५८५१
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, प्रा., गा. ७७, पद्य, मुपू., (सिरिवीरजिण) ३२४५०
"
(२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टवार्थ, मागु., गद्य, ग्रुप्पू (आठप्रातिहा ) ३२४५
""
लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. ६ अधिकार., गा. २६३. वि. १५वी पद्य भूपू (वीरं जयसेह) १८१३१.
"
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
"
२९५६(+), ३६७६(+), ४०३१ (+), ४५४६ (+), ४६२१(+), ५८५१(क), ७५५१-१९११) ६९१०१) ९१९०११ ५२१५१) ७०३२-१), ६९९९) १८१२. २२६९) ५९११-१) ५६५४मस्था १३३१०) ६८०० ६९६४ ६८६६ ३८६ ३८७ १३७३-१, २९३२, ३५६६, ६१०८, ६५८७, ७९६४ (MS), ३८८ ($), ८६६४ ६८७९ को ७३८१
"
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(२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि सं., अध्याय ६, वि. १५वी, गद्य, मूपू., (अर्हमिति ) ३८६ (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बीजक विचार, पं. सुमतिवर्धन, मागु., वि. १८७५, गद्य, भूपू. (जगत का सिख) ६९५१
"
(२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण- वालाचबोध' मागु, गद्य, ग्रुप्पु, (वीरं० ग्रन) ८६६४(s)
"
(२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-वालावबोध, मु. उदयसागर मागु.. वि. १६७६, गद्य, भूपू (निश्शेषज्ञ) ६९९९) १३७३-१ (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, पं. दयासिंह, मागु., ग्रं.४११७, वि. १५२९, गद्य, मृपू., (हुं ब्रह्म) ६९१० (+), ५२१५(+), ३८८शि
"
"
(२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण वालावबोध आ. पार्श्वचन्द्रसूरि मागु, गद्य, गुपू., (वीर केता) ४६२१११ १८१२० १३३१०४ (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण बालावबोध, सं., मागु, गद्य, मृपू. (वीरं० श्री) ९१९०१)
(२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (वीर क० वर) १८१३
"
(२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण- टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू., (वीर श्रीमह) २९३२. ६८७७३८१
(२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., [प्र.२१३५, गद्य, जे. (वीर श्रीमह) २२६९m
(२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-यन्त्र सङ्ग्रह, मागु, कोष्टक, नूपु (-) ८४२०-१, १२८५($)
(२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-विचार, सं., गद्य, मृपू., () ३०६६ (+#)
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लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र ३०, गद्य, मृपू.. (से किं त) ७६-२१, ७७-२१, ७०७-२ ७१३-२११. ८पाउ-सन २०२५-१ ४००८-२००) ९१९८- २११, १६३५-३रान ७५-२, ३५२०-२, ४०४६-२ ८३८२-२ ८३९४ -२ २६२२-२, ७०२-२, ४४२०-२
"
(२) लघुनन्दीसूत्र अनुज्ञानन्दी सूत्र- बालावबोध, मागु, गद्य, भूपू (घणा जीवनुं) ७०२-२
(२) लघुनन्दीसूत्र - अनुज्ञानन्दीसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, मूप्पू., ( से० ते किं) ८५७-२ (+), ४०७८-२ (+), ७५-२, ४४२०-२
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१
६९००)
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८३ लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., ३कांड, श्लोक ४६१, लब्धिविधान कथा, सं., श्लोक १०४, पद्य, दि., (नमस्कृत्य) ग्रं.५५०, पद्य, मूपू.. (प्रणम्य पर) १९३७), २३६९(१), १९३६(+),
६००२-५३(क) ६१०४(+), १११६(45), ८३६०, २९४१-२{#s), ३९३४(#$), ८१६२(5) लाभालाभ फल, सं.,मागु., श्लोक ३, पद्य, (जन्मराशिस) ७८४०लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लोक १७+२, पद्य, मूपू..
(शान्तिं शा) २६२६-४५६), ४५६६५), ६०८३-५(+), ७५५१-८(+), | लीलावती, आ. भास्कराचार्य, सं., प+ग, (प्रीतिं भक)-<प्रतहीन.> १४८५-७+), २४३८-३+#), १६७८-२+#5), २९९७-२५(५६), (२) लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचन्द, मागु., अध्याय १६, गा. १२०३-२(45), ३९७५-२(45), ९४९, १२५८-२, १७८९-४, २५०३- ७०७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (सोभित सिन) ८३८६-१(+), ३, ५२३८-२, ५४९०-४२, ५८२७-८४, ६०११-१०, ६०९३-२, १०८३, ५६२३ ६७६८-४, ८९२९-२, ६४९१-३, १४०९-४(*), १६३४-२(#$-), लेश्या ११ द्वार विचार, प्रा.,मागु., गद्य, जै., (नामाइं पणर) ३४५०-३(5). ५४८९-३(७), ६०१९-८(5), ६२०९-२६), ६९५९-३(5), ३९४९-१ ८२९३-२(६), ६०१८-२(5), ६४७८-७(s), ७२२४-२(६), ९७६-२(5). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ३२, पद्य, ६७७३-३(७), ८१४७-२(5)
मूपू., (जिणदंसणं) ४२६८(+). ५६५६(+), ८९४४(+). २४३०(+), (२) लघुशान्ति-बालावबोध, गणि दयाकीर्ति वाचक, मागु., गद्य, २७५९-१(45), ६९००६), ८९९३-५९६) मूपू., (श्रीमानदेव) ४५६६६)
(२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-व्याख्या, सं., गद्य, मूपू.. (प्रणम्य) (२) लघुशान्ति-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (शान्तिनाथ) १६३४-२5
(२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिणहंस (२) लघुशान्ति-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीशान्ति) ९४९
वइस) ५६५६(५) (२) लघुशान्ति-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (श्रीशान्ति) ७२२४-२(5) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-वार्तिक, ऋ. मोल्हा, मागु., गद्य, जै., लघुशान्तिपूजा विधि, सं.,मागु., पद्य, मूपू., (श्रीपंचपरम) ३०१५) | (आदिदेवं नम) ४२६८(+) लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय । (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य) जिणं) ४२२२(+). ५१४८), ५७२७-४(+), २४९९(१), ३३७३- ८९९३-५ १+5), ४३४-४, २५३२, ३४६८, ४९१६, ६१९६
(२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मु. सहजरत्न, मागु., गद्य, (२) लघुसङ्ग्रहणी-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (जम्बूद्वीप) मूपू., (श्रीमदाप्त) ८९४४(+), २४३०(+)
(२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जिनना दर्श) (२) लघुसङ्ग्रहणी-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (नमीय कहेता) २७५९-१(45) ४९१६
लोकप्रकाश , उपा. विनयविजय , सं., सर्ग ३७, ग्रं.२०६२१, वि. (२) लघुसङ्ग्रहणी-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (नमिय क० नम) १७०८, पद्य, मूपू., (ॐ नमः परम) ५७७७(5)
४२२२+), ५१४८(+), २४९९१), ३३७३-१६+६), ३४६८, ६१९६ लोकानुयोग, सं., पद्य, जै., (-) २९९९(+) (२) लघुसङ्ग्रहणी-यन्त्र, मागु., गद्य, मूपू.. (-) १०९२) लोच विधि, प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण) ६०६२-१४) (२) लघुसङ्ग्रहणी-१० द्वार विचार, मागु., गद्य, मूपू., (खण्डा वङ्गचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., जोयण) २४००
(भत्तिभरन) १००६, ९००६ (२) लघुसङ्ग्रहणी-खण्डाजोयण बोल', मागु., गद्य, मूपू.. (लाख (२) वङ्गचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (भक्तिना
जोयणनो) ३३७३-१(45), ४७८८, ४७९७-१, ५१८७-१, २३१५, सम) ९००६, १००६ ९०४५६), ३१७२(१), ३९७४(१), ४६१६-२६)
वज्जालग्ग, कवि जयवल्लभ, प्रा., गा. ७९५, ग्रं.१२३०, पद्य, मूपू., लब्धिप्रकाश, कवि नन्दलाल, प्रा., गा. ३५, वि. १९०३, पद्य, जै., (सव्वन्नुवय) ५४६२(+). ३१११(5) (नमिऊण महाव) ५३५५, ६५५८-१
(२) वज्जालग्ग-छाया, सं., गद्य, मूपू., (प्राकृतसुभ) ५४६२(+) (२) लब्धिप्रकाश-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (नमस्कार कर) ५३५५, वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू.. (ॐ परमेष्ठ) ६२७९६५५८-१
३), ७५५१-३(+), २३३३-७, ५४९०-७५, ६०४२-१३(१) (२) लब्धिप्रकाश-स्वोपज्ञ चौपाई, कवि नन्दलाल, मागु., वि. वडीदीक्षा अनुयोग विधि, प्रा.,सं.,मागु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहन)
१९०३, पद्य, जै., (रामचन्द्र) ५३५५, ६५५८-१
१२७७)
२३९)
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४८४
(२) वडीदीक्षा अनुयोग विधि-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (पुंजी काजओ) २३९(+)
वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचन्द्रसूरि प्रा., गा. ७५, पद्य, भूपू (उसभाइजिणिन) ६०२७-२
वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, सं., मागु., गद्य, मूपू., (ज्ञानं सार) ५८३६५ ६०००-४मा ६०८४-३२२, ५७०३, ५८३०-१,
·
वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., श्लोक १५०, वि. १६५५, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार) २५३ (+), ९४७(+), ६०८५-१ (+8),
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१९६०, ३१५५, ५३०३, ६१८६, ६४३४, ७८१५-२, ८५३५-१, ८६८०, ९१२२, ९२३८, ५९७६ (६)
(२) ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (ऐन्द्रनतपद)
६१८६
(२) ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टवार्थ, मागु., गद्य, भूपू (प्रणम्य) Ra
(२) ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य)
८५३५-१
(२) ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टबार्थ *, मागु., गद्य, मुपू., (श्रीपार्श) १९६०, ५९७६ (5)
(२) ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू. (श्रीमन्त) २५३० ६४३४
(२) ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, जै. ( सुधर्मास्व)
८६८०
बर्द्धमानदेशना, गणि राजकीर्ति सं १०उल्लास, ग्रं.४३००, गद्य, मृपू.. ( नमः श्रीपा) ३४४०१, १०५-२१० ३९५२ ७६८० वर्द्धमानदेशना, पं. शुभवर्द्धन गणि, प्रा. १० उल्लास, ग्रं. ५२०० पच, भूपू (वीरजिणन्द) २५४/१
वर्द्धमानविद्या मन्त्र, प्रा., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं ) ५०२२-३ वर्द्धमानविद्या विधिसह, सं., मागु, गद्य, जै (ॐ ह्री) ८५४१-२ वर्षप्रबोध, उपा. मेघविजय, सं., अध्याय १३, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थन) ५७७१ (६), ७८६९ (६) वसुदेवहिण्डी, गणि सङ्घदासगणि क्षमाश्रमण, गणि धर्मसेन,
प्रा., २८उपालंभ, ग्रं.१०४८०, प+ग, मूपू., (जयइ नवनलिण) 9039)
वसुधारा, सं., गद्य, मुपू., ( संसारद्वयद ) २८७२(+), ८१६०-१(+), २३३५-१११ १०७९, १२१८-१ १३४९, २१७२ ३१००-१
३५५६-२, ३६२३, ४२८०, ५०४८, ५०७२, ५३१३, ६१०६, ६३१६, ७५२९-१, ७६९२, ७८८३, ७९७२, ७९९३, ८२४६, ८९८०-१९१७६, १९०० ($)
(२) वसुधारा विधि, मागु, गद्य, मुपु. ( पुत्रवती) ८१६०-२१.
"
२३३५-२ (+), ३१००-२, ७५२९-२
वस्तुपालमन्त्री चरित्र, गणि जिनहर्ष सं. ८ प्रस्ताव वि. १४९७ पद्य मूपू. (श्रीमानर्ह) ७५५. ४०२३
वाक्यप्रकाश, गणि उदयधर्म, सं., श्लोक १२८, वि. १५०७, पद्य, भूपू (प्रणम्यात ) २६२०११ ९२०४
(२) वाक्यप्रकाश-टीका, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, मुपू., (श्रीमज्जिन)
"
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
९२०४
वाग्भटालङ्कार, जैनकवि वाग्भट्ट, सं., ५परिच्छेद, वि. १२वी, पद्य, मूपू., ( श्रियं दिश) ८०६२-१ (+), १११५ (+), १९३४(+#$),
(२) वाग्भटालङ्कार ज्ञानप्रमोदिका वृत्ति, वा. ज्ञानप्रमोद, सं., ग्रं.२९५६, वि. १६८१, गद्य, मूपू., (यस्यानेकगु) १११५(+) (२) वाग्भटालङ्कार- टीका, सं., गद्य, मृपू., (-) १९३४) (२) वाग्भटालङ्कार- टीका, आ. जिनवर्द्धमानसूरि, सं., ४ परिच्छेद, गद्य, ग्रुप (श्रियमिह ) ४१२३)
"
(२) वाग्भटालङ्कार- अवचूरि, सं., गद्य, म्पू. (आशीर्नमस्क) ८७६९ (+३)
वाचनाचार्यस्थापन विधि, प्रा. सं., गद्य, मुपु. ( शुभतिथिवार ) ८९११-२ (8)
वासुपूज्य चरित्र, आ. वर्द्धमानसूरि सं . ५४९४ वि. १२९९. पद्य, मूपू., (अर्हन्तं) ३६४ (+), १०१८
"
वाहन विचार, सं., मागु., प+ग, जै., (गर्छभोअश) ७९५७-२ विचारपंचाशिका गणि विजयविमल, प्रा. गा. ५१, पद्य, मृपू..
(वीरपयकर्य) २२६) ६५६२-११)
.
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(२) विचारपंचाशिका-टबार्थ *, मागु., गद्य, मूपू., (वीर पय क०) २२६ (+), ६५६२-१(+)
विचारमञ्जरी, आ. विजयदानसूरि, प्रा., गा. १२७, पद्य, मृपू.. ( वन्दिय वीर) ३०४२ (+)
.
"
विचारसप्ततिका, आ. महेन्द्रसिंहसूरि प्रा. गा. ८१, पद्य, भूपू.. ( पडिमा मिच ) ५५४७-२ ६०२७-३ विचारसार, प्रा., गा. ५०६, पद्य, मृपू. ( वारस गुण) ८४८३०. Clayli
(२) विचारसार-टवार्थ, मागु. गद्य, भूपू (बा० १२ बार) ८४८३०) ८६००
विचारसार प्रकरण, गणि देवचन्द्र, प्रा., २ अधिकार, गा. ३२०, वि. १७९६, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं) ४८५१
(२) विचारसार प्रकरण-बालावबोध, आ. ज्ञानविजयसूरि, मागु.. गद्य, भूपू (वीरप्रभुनी) ४३२५
(२) विचारसार प्रकरण-बालावबोध, गणि देवचन्द्र, मागु., गद्य, मृपू., (-) ४८५१
"
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
($)
(२) विचारसार प्रकरण- बालावबोध गु. देवचन्द्र, मागु, ग्रे.२१२५ गद्य, मूपू., ( प्रणम्य) ७६८, ४३२ विचारामृतसार सङ्ग्रह, गणि जिनहर्ष, सं. ग्रं. ३०००, वि. १५०२, पद्य मृपू.. (श्रीमुर्ग) ७५४) ४८३२००
"
"
(२) विचारामृतसार सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., ( प्रणाम माह) ४८३२०)
विजयचन्द्रकेवली चरित्र, मु. चन्द्रप्रभ महत्तर प्रा. वि. ११२७, पद्य, मूपू., (सयलसुरासुर) ५८६१
विजयप्रभसूरि स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मृपु. ( नयविभूषणपा) ६४६०-१६
विजयप्रभसूरि स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूप्पू., (विजयप्रभसू) ६४६०-१७
विजयप्रभसूरि स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मृपू. (श्रीवर्द्ध) ६४६०
१५
विजयप्रशस्ति महाकाव्य, गणि हेमविजय, सं., सर्ग २१, पद्य, मृपू. (श्रेयांसि ) ६२८८ ३०९
(२) विजयप्रशस्ति महाकाव्य-विजप्रदीपिका वृत्ति, मु. गुणविजय, सं., ग्रं.१००००, वि. १६८८, गद्य, मूपू., (सः नाभेः) ३०९ विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., श्लोक ४, पत्र, मृपू.. ( नृपतिनामिक)
६०४१-२४
विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर) ६४६०-१९
"
विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मृपू. (विजयरत्नगण) ६४६०-१८
विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., ४ परिच्छेद, श्लोक २७६, पद्य, बौ., (सिद्धौषधान) ४८३ (+), ९१०४(+), ५७९२, ६८८४($)
(२) विदग्धमुखमण्डन काव्य-टीका, दुर्गूक, सं., गद्य, जै., (विघ्नौघद्व) ३६७२
(२) विदग्धमुखमण्डन काव्य-टीका, मु. विनवरत्न, सं. गद्य, भूप.. (-) ६८८४
(२) विदग्धमुखमण्डन काव्य-वृत्ति, सं., गद्य, गुप्.. (स्मृत्वा) ४८३(+)
(२) विदग्धमुखमण्डन काव्य- अवचूरि, सं., गद्य, ( अथादी धर्म) Prod
विद्याविलास कथानक पुण्यविषये, सं., गद्य, जै., (ऐश्वर्यराज) (१९७३)
विनय कुलक, प्रा., गा. १३, पद्य, मुपू., (विनयो जिणस) ५७२७५(+), ३१३४-२
(२) विनय कुलक-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू. (विनयते जिन)
३१३४-२
विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., २श्रुत. / २०अध्य. ग्रं. १२५०, गद्य, मृपू. (तेनं काले) १२२३ १३४ प १७५८(+), २८८१(+), ४२३२(+), ५२४५-१(+), ५४५६(+), ५४९५(+), ५५०१(+), ८४३२(+), ८६८७ (+), ४१५३(+), ३५७० (+#$), १४३(+$), ६५७२(+$), १०४, २०४६, ४४०५, ५२९०, ८८९०, ९२१९. ६८८२, ३०७८ ८७२८ ६८९३
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""
(२) विपाकसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं. ग्रं. ९००, गद्य, मूपू., (नत्वा श्री) १४३ (+), १०७, ११०९
(२) विपाकसूत्र-शब्दार्थ, मागु., गद्य, मृपू. (विपचन विपा) ५२४५(+)
(२) विपाकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (अथ विपाकश) २८८५) ५४९५ण ५५०११) ८४३२१ ८६८७१) १७५८) ६५७२ ४४०५ ९२१९, ३०७८ ८७२८
(२) विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कन्ध, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. अध्याय १०, गद्य, मृपू.. ( तेणं कालेण) ५४९१ (+$) १५१७७
"
"
४८५
(३) विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाकद्वितीयश्रुतस्कन्ध का टबार्थ, मागु.. गद्य, मुपू., (ते उत्सर्प) १५७७
"
विमानपङ्क्ति विधि, मु. विमलकीर्ति, सं., श्लोक ४१, पद्य, दि... ( श्रीमतो वृ) ६००२-९ (+)
विवाहपडल, सं., श्लोक १६०, पद्य, ( जम्भाराति) ४२६१, ६४३८-१ (२) विवाहपडल-बालावबोध, मु. सोमसुन्दरसूरि-शिष्य, मागु..
गद्य, मूपू., (प्रणम्य शि) ४२६१
"
विविक्तनाममाला, उपा. भानुचन्द्र, स., पद्य, भूपू (-) ७४४० विविधतप विधि सङ्ग्रह, सं., मागु., गद्य, मृपू., (अथ पिस्ताल)
७९३८
विवेकमञ्जरी, सं., पद्य, भूपू ( भव्यांगोरू) ४०७६
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($)
(२) विवेकमञ्जरी-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., ( श्रीमत्पार) ४०७६ विवेकमञ्जरी, श्रा. आसड कवि, प्रा., गा. १४४, वि. १२४८, पद्य, मूपू., (सिद्धिपुरस) ५८६५, ६४४७/६
विवेकविलास, आ जिनदत्तसूरि, सं. १२उल्लास, पद्य, मृपू..
(शाश्वतानन) ५५३८०० ४६८, ९११
"
(२) विवेकविलास- टीका, सं. गद्य, मृपू. (-) ५५३टाक्या (२) विवेकविलास- बालावबोध, मागु, गद्य, भूपू.. (ते को एक )
"
९११ विशेषणवती, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ३१७, ग्रं. ३८०, प+ग, मृपू. (उस्सेहंगुल) २८१६ विशेषसत्तात्रिभङ्गी, मु. नेमिचन्दजिन, प्रा., गा. ३७, पद्य, दि., (णमिण वह) ५४५३५
Page #506
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४८६
विहरमान २० जिन चैत्यवन्दन, सं., श्लोक ३, पद्य, (सीमन्धर) ४९८१-१ ($)
मूपू..
वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. २० प्रकाश, पद्य, भूपू., (यः परात्मा) २१५/१, ९०२४०० २५४पणे ९१५१) २८०/- २८४०-३०८५११
(२) वीतराग स्तोत्र - अवचूरि
प्रकाश, वि. १५१२, गद्य मृपू. ( जयति श्रीज) २८० (+)
(२) वीतराग स्तोत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., (जे परात्मा) ९०२७(+)
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मु. विशालराजसूरि-शिष्य सं. २०
"
(२) वीतराग स्तोत्र - दुर्गपदप्रकाश विवरण आ. प्रभानन्दसूरि सं.. ग्रं.२१२५, गद्य, मूपू., (अनन्तदर्शन) ९१४१
वीतरागाष्टक, सं., श्लोक ९, पद्य, मूपू., (शिवं शुद्ध) ९४८-४, ६०४२-१७(S)
वृत्तगणफल, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक ६. पद्य, मूपू., (द्युतादेरद) २२३९-३ (+)
वृन्दावन काव्य, सं., श्लोक ५२, पद्य, वै., (वरदाय नमो ) ८१७२ (२) वृन्दावन काव्य-वृत्ति, आ. शान्तिसूरि, सं., गद्य, भूपू.,
(वर्द्धमानं) ८१७२ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., १२ अध्ययन, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते ) ७१दुग १३१-५१) १५०-५१ १७५७-५१, २०५५ ४१३९दुष्ण, ४१८१-५१) ७०६५-५१) ८२२९-५, ८८१३-५११, ६९48+), $818-4(+) 29189-4(+) CC&C-4(+) 21842-45+%), ४६४२-५(+), ११५-५, ६६९-५, २०५७-५, २९६६-५, २९८६-५, ५३४०-५, ६५५३-५, ८४२४-५
(२) वृष्णिदशासूत्र - टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं. गद्य, मूपू.,
"
"
(पञ्चमवर्गे) १५०-५० ५६४८-५. ८८८४-५ ६५५३-५
(२) वृष्णिदशासूत्र- टवार्थ, मागु., गद्य, मृपू., (जी हे पूज) २०५५ दाग ४१८१-५११, ७०६५-५१) ८२२९-५/१, ६९-५११, ११५-५.
६६९-५, २०५७-५, २९८६-५, ८४२४-५
(२) वृष्णिदशासूत्र -टवार्थ, मु. उत्तम, मागु. नं. २८६८, गद्य, मृपू..
(जउ हे पूज ) ४१३९-५ (+), ५३४०-५
वैदिकग्रन्थों में जिननाम वर्णन, सं., गद्य, मूप्पू., ( ब्रह्मपुरा ) ६८०२(s)
वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., ९विलास, श्लोक ३२६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सरस्वतीं) ४११९ (+), ७८८-१ (+), १३४५१ (+), १४७६(+), ८३३४-१(+), ८२२१-१ (+), ६२०५, ६४३५, २१७४, ८९७९
(२) वैद्यवल्लभ-बीजक, सं., पद्य, भूपू. (-) ८३३४-१) (२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ, राज., गद्य, मृपू., (सरस्वती मा) ८२२१
9(+$),
२१७४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
(२) वैद्यवल्लभ-टवार्थ, मागु.. गद्य, ग्रुपु. ( सरस्वति कह) ७८८
"
(२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मागु., गद्य, मुपु., ( श्रीसरस्वत ) १३४५१) १४७६) ८३३४-११ ६२०५
(२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ*, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीसारदा ) ४११९(+),
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८९७९
वैराग्यकल्पलता, उपा. यशोविजयजी गणि, सं. ९स्तबक, श्लोक ११३३, पद्य, मूपू., (ऐन्द्रीं) ७७१
वैराग्य कुलक, प्रा. गा. २२ पद्य भूपू (जम्मजरामरण) ५९४४3($)
वैराग्यशतक, प्रा. गा. १०५ पद्य, मृपू. ( संसारंमि) ७९२-११५) २८७५(+), ३८७८-२(+), ४९४३(+), ५८५५(+), ६८६३(+), ७५६८२०) ८४२६९ ८९६२१, ९२०९०) १८३०-११, ३०४८ ३२८१, ४२६७, ४४६६-१, ५१३१, ५१३३, ५१५२, ५६४९, ८४१७, ८४२५-१, ८५१४-१, ८८७२-२, ५१९६, ५८४६, १८६५(ख)
.
"
(२) वैराग्यशतक- टीका, सं. गद्य, नूपु. ( संसारेस्मि ) ८९६२५) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, मृपू., (ए संसार अस)
५८४६, ८५१४-१
·
"
(२) वैराग्यशतक- टवार्थ, मागु, अं.४२५, गद्य, मृपू. (चउदश राजप) १८३०-१११, ८४२५-१
(२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (चतुर्गति) ५६४९ (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (संसार असार) १८६५११
(२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (संसार असार) ७९२१(+), २८७५(+), ३८७८-२ (+), ४९४३ (+), ७५६८-२(+), ८४२६(+), ९२०९ (+), ३०४८ (+), ४२६७, ४४६६-१, ५१५२, ८४१७, ८८७२
२
(२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., (संसारनइ वि) ३२८१ (२) वैराग्यशतक-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू., (संसारने वि) ५८५५न (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, सं., गद्य, मूप्पू., (वीरं वारिध) ६८६३ (+) वैराग्यशतक, कवि पद्मानन्द कवि सं., श्लोक १०३ पद्य म्पू.. (त्रैलोक्यं ) ८८२९(+)
"
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व्यवहारसूत्र आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. १० उद्देशक, प्र. ३७३. गद्य, मूपू., (जे भिक्खू) ३३ (+), ३९(+), ३४५५ (+), ४२१९ (+), २४६१, ३३७०, ३४१९, ६७२५, ४० (# )
(२) व्यवहारसूत्र-निर्मुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. पद्य भूपू (--)
"
३१
(२) व्यवहारसूत्र - भाष्य #, प्रा., गा. ६४००, पद्य, मूपू., (ववहारो ववह) ३१
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
·
(२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध, गणि शान्तिविजय, गद्य, मूपु. ( योगनाभेद) ९१७०-५
(२) व्यवहारसूत्र - बालावबोध' माग गद्य, मृपू. (-) ७१३०११ (२) व्यवहारसूत्र -टबार्थ, मागु., ग्रं. २५००, गद्य, मूप्पू., (जे० जे कोई) ३३५, ३९१ ३४५५ ४२१९१०) ३३७० ६७२५ (२) व्यवहारसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, मुपू., (-) ४०(M) व्याख्यानश्रवण विधि, प्रा., मागु., गद्य, मुपू., ( इच्छामि खम ) १४९०-३
(२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टवार्थ, मागु, गद्य, मुपु. ( परमात्मानइ ) १७४(+), २४८०-५(+), २९६९-५ (+), ३२२१-१ (+), ४८६२-५ (+), ५२७३-५११ १३०६-१० ३९८०
व्याख्यानश्लोक सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु, पद्य, मृपू. (जिनेन्द्रप) १८१७(+), ५६९४-१, ८९९१(s), २१६३ (३
($)
(२) व्याख्यान सङ्ग्रह- व्याख्या, सं., गद्य, मृपू.. (नृजन्मवृक) ८९९
($)
(२) व्याख्यान सङ्ग्रह - विवेचन, मागु., गद्य, मुपू., ( श्रीअरिहन) १८१७(+)
T
व्याख्यान सङ्ग्रह, से, मागु.. गद्य, भूपू (देवपूजा दय) ३१५६ ३०८ ५८२७-९८
($)
व्रत विधि, प्रा. सं., गद्य, मृ.. (-) ८९११-१ व्रतोच्चारण विधि आलापकयुक्त, प्रा., सं., प+ग, जै., (प्रथमा नाल) ८१६३-२ शक्रस्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., प+ग, भूपू (ॐ नमोर्हत ) ५०६६१), २८३-१, २५२६ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा. गा. १००, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं) १७४) २४८०-५० २५३६) २९६९-५/११ ३२२१-१(+), ३७३७-५(+), ४०२९(+), ४८६२-५ (+), ५२७३-५ (+), ५८४७-५ ५९०२-५ ९२६८-५११ ४७४४-२ ०८२७jlads 2934-4(+8) 2938(+8) 9308-9/+8) 4830-4(+8)
२३३३-५, ३४९०-५, ३९८०, ४३०८-२, ७८७०-५, ८६३२-५.
९१०३-५, ९१७०-५, १६९३-५, ६५३०-५, १६४५-५(5), ५००५राश ७३७९-५शि १६१-५१, ६८१३१
शतक नव्य कर्मग्रन्थ-विनेयहिता वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि ३७००, गद्य, ग्रुपु. ( जयत्यभिप्र) १५४ (२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेन्द्रसूरि सं अं.४३४०, गरा, भूपू., (यो विश्ववि) २५३६) ९०५४-५५ ४७४४-२०१
(२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, मुपू., (नमिअजिणं०)
२३३३-५
(२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ - अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., अं.३१००, वि. १४५९, गद्य, मृपू. (घातिन्यस्त) ८७५७-२०१ (२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ- बालानबोध, मागु, गद्य, मृपु. ( वीतराग नमस) ५९१७-५, ६५३०-५, ६८१३($)
(२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, म.. (रत्नत्रयोप) ४०२९१) ९२६८-५९ ३४९०-५
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४८७
मागु.,
(२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मागु., गद्य, मूपू., (ध्रुवबन्धी) ३७३७-५ (+), ५४३०-५ (+), ८६३२-५
(२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, पं. सुमतिवर्धन, मागु., ग्रं. ९००,
वि. १८७५, कोष्टक, भूपू (श्रीजिन) ४६५४) ४३३८-४० (२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ-कोष्ठक, मागु, यंत्र, मूप्पू., (ध्रुवबन्धन)
१८७४
शत्रुंजयतीर्थ इक्कीसनाम व खमासमण विधि, सं., मागु., गद्य, मूपू., (श्रीशत्रुञ) २७१०-२
शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, सं., श्लोक ७, पद्य,
मूपू., (विमलकेवलज) २३३७-१५(+), १११७-११, २३४०-४ शत्रुंजयतीर्थ स्तव. सं., श्लोक १३, पद्य, मृपू. (धरणेन्द्रप) ४९८१-३
शत्रुंजयतीर्थ स्तव, सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू., ( नव प्रव्रज) १३३६
४
शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मुपू., (सिद्धो विज) ५८२७
६७
शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., सर्ग १४, ग्रं. १००००, पद्य मूपू., ( ॐ नमो विश) ७५५ ७५२ ७७१७ ८२०८ PER
(#$)
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(२) शत्रुंजय माहात्म्य- बालावबोध, सं., मागु., गद्य, मूपू., (--) २४९० ३
"
(२) शत्रुंजय माहात्म्य-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू. (प्रणम्य) ७७१७ शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लोक १०, पद्य, वै., (यः पुरा रा) ५३२०२, २१०१-४, ५४८९-१४(S)
शब्दसंचय, सं., गद्य, भूपू (शब्दाम्भोध) ४७२३ शरीरपर्याप्ति यन्त्र, संयंत्र, भूपू (--) ४३५२४मा शलाकापुरूष बल गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मुपु. (च्छते सि
८६३-२
(२) शलाकापुरूष बल गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (प्रथम वासु) ८६३-२
शान्तिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ३३. पद्य भूपू.. (अप्पडियम) २८४६४-२१०
(२) शान्तिजिन चरित्र-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपु. ( अप्रतिहत) २८४४-२(+)
शान्तिजिन चैत्यवन्दन, उपा. कुशलसागर सं., श्लोक १३, पद्य,
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४८८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ मूपू., (सकलदेवनरेश) ९४८-६, ६०९६-२(5), ५६९९-५(5-)
१३३४, पद्य, मूपू., (श्रीदानधर) ३४६४ शान्तिजिन चैत्यवन्दन, आ. चैत्रसूरि, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू., | (२) शालिभद्र चरित्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (ग्रन्थप्रा) ३४६४ (शान्तिं शि) ६०४२-२३६६)
शाश्वतजिन प्रासाद व जिनबिम्ब विचार, सं.,मागु., गद्य, मूपू., शान्तिजिन नमस्कार, सं., श्लोक १३, पद्य, मूपू., (श्रीमते शा) (असुरकुमारे) ७६७२-४ ४७००-३
शाश्वतजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (दीवे नन्दी) ७५४४शान्तिजिन स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (अं ह्री कू) ५४९०- 33(5) ५२, ५४८९-४७(5)
शाश्वतप्रतिमा वर्णन, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (चत्तारिअट) शान्तिजिन स्तुति, सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू., (किं कल्पद)
४६९१-२(+) २६२६-४८(+), ५४९०-६२, ५४८९-३८६)
शाश्वताशाश्वतजिन स्तवन, आ. धर्मसूरि, सं., श्लोक १५, पद्य, शान्तिजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (देवदेवाधिप)
मूपू., (नित्ये श्र) ४५७६-२(+), २३३७-४(+), ६०४२-३१(5) २६२६-२८०, ५४९०-२८, ५८२७-२१
शास्त्रवार्ता समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लोक ७०१, ग्रं.७००, शान्तिजिन स्तुति, सं., श्लोक २, पद्य, मूपू., (शान्तिः शा) __पद्य, मूपू.. (प्रणम्य पर) १९२(+) ५४८९-४३६)
शिवकुमार कथा-नमस्कार महामन्त्र विषये, सं., श्लोक ५८, पद्य, शान्तिजिन स्तोत्र, सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू., (ॐ विश्वात)
जै., (नवकारप्रभा) ८९८१-२(+) ६२७९-४(+)
शीघ्रबोध, काशीनाथ भट्ट, सं., अध्याय ४, ग्रं.५६१, पद्य, शान्तिजिन स्तोत्र, सं., श्लोक ३, पद्य, मूपू., (शान्तये शा)
(भासयन्तं) ६७५४-३ २६२६-५४+), ५८२७-४२, ५४८९-५४(६) ।
शीलकल्याणकव्रत विधि, मु. सुखकीर्ति, सं., श्लोक ७१, पद्य, शान्तिजिन स्तोत्र, सं., श्लोक ९, पद्य, मूपू., (सुरराज सम) दि., (जितघातीन्) ६००२-७+) ६२४२-६
शीलतारा कथा, प्रा., गा. ११६, पद्य, जै., (वसणदसा पत) शान्तिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., ६प्रस्ताव, श्लोक
२८८०-२ १६३२, ग्रं.५०००, वि. १३०७, पद्य, मूपू., (श्रेयोरत्न) ३४८), शीलवती कथा, सं., श्लोक २२०, पद्य, जै., (जम्बू द्वी) ७९३१ ३७०(+), ३४३५(+), ८३४०+), ९१११(+), ३६३४(६), ९१२१(45), शीलश्रीविधान कथानक, सं., गद्य, दि., (नमस्कृत्य) ६००२-१९(4) ८६६८(5)
शीलश्रीव्रत कथा, सं., श्लोक ५१, पद्य, दि., (नत्वा श्री) ६००२(२) शान्तिनाथ चरित्र-टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मागु., वि. १७९९, गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार) ३६३४+६), ८६६८(5)
शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., ४३ कथा, गा. ११५, शान्तिनाथ चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि, सं., ६ प्रस्ताव, वि. १५३५, पद्य, मूपू.. (आबालबम्भया) ४१८०(+), ४५९९-१(+#5). ३५५२(45),
गद्य, मूपू., (प्रणिपत्या) ३२१(+), ३८०(+), ३४०६-१(+), ४१८७- ४५६९+5), ५४९८+६), ९००३(45), ६८४२(+5), ४८७५, ५५००,
१५), २९६५(45), ५५२८६+६), ९२९९ (२) शान्तिनाथ लघुचरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (२) शीलोपदेशमाला--वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (-) ५४९८+5) (प्रणिपत्या) ६०००
(२) शीलोपदेशमाला-वृत्ति, आ. विद्यातिलकसूरि, सं., ग्रं.६५००, शान्तिनाथ चरित्र', सं., पद्य, मूपू., (-) ४३७९(६)
वि. १३९४, गद्य, मूपू., (यस्योपदेशम) ९००३(+) (२) शान्तिनाथ चरित्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मुपू., (-) ४३७९(६) | (२) शीलोपदेशमाला-शीलतरङ्गिणी वृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, शान्तिपूजा विधि, सं.,हिन्दी, पद्य, मूपू., (शुभदिने जि) ७७९१ ___सं., गद्य, मूपू.. (यस्योपदेशस) ५५०० शान्तिमन्त्र, सं.,मागु., गद्य, जै., (ॐ नमो श्र) ६२७९-११(4) (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (आबाल ब्रह) शान्तिस्नात्र विधि, उपा. सकलचन्द्रगणि, सं.,मागु., पद्य, मूपू., ८२२६६) (अथ प्रतिष) २५४, २६६७, ३३७७, ४०६४, ५३८८, ६४१६, (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, गणि मेरुसुन्दर, मागु.,
ग्रं.६२५०, वि. १५५१, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयम) ४१८०+), शारदादेवी स्तुति, सं., श्लोक ८, पद्य, वै., (प्रथमं भार) ५८२७- ४५३८), ३५५२६+६), ४५६९(45), ६८४२(45). ४८७५
(२) शीलोपदेशमाला-कथा*, मागु., गद्य, मूपू., (-) ४१८०(+) शालिभद्र चरित्र, पण्डित धर्मकुमार, सं., ७प्रक्रम, ग्रं.१२२४, वि. (२) शीलोपदेशमाला-कथा सङ्ग्रह, मु. मेरुसुन्दर, मागु., गद्य,
८२२६(5)
८१८१(६)
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P8)
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८९ मूपू., (पोतनपुर नग) ४५४८००
५७१२-२ शीलोपदेशमाला सङ्क्षिप्तकथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, मूपू., (परलोए । (२) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (पढम विहु) १९४७
उव० पह) ५७१२-२ शुकनावली, सं., श्लोक ११४, पद्य, (पदं पदं पद) ६०४६-४ श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त) शुकराज कथा, सं., श्लोक ४७३, पद्य, जै., (भो भव्या) ८८६५-१ ७१०७-२+5), २७४६-२, ३१९१-२, ८८४९-२,७८०२-४, १७८७शुकराज कथा-शत्रुञ्जयमाहात्म्ये, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., गद्य, मूपू.. (श्रीशत्रुञ) ८२०१(+). ९०८३
(२) १४ नियम गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (पाणी फल बी) शुद्धआयम्बिल विचार, सं.,प्रा., गद्य, जै., (आम्लश्चतुर) २४७
२७४६-२,३१९१-२ (२) शुद्धआयम्बिल विचार-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (साधुने आम) श्रावक आराधना, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., ग्रं.१६६, वि. २४७
१६६७, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज) ६११५ शुभदेव कथा, सं., गद्य, मूपू.. (आनन्दपुरे) ८८६५-३
श्रावक आलोयणा, प्रा.,सं., पद्य, जै., (तिव्वार पन) ३२७४-२ शुभलेश्यात्रिक रथ, प्रा., गा. २, प+ग, मूप., (जो तेउ लेस) श्रावक आलोयणा विचार, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, मूपू., (प्रथमं मुह) ७५३९-१३
३२७४-१, ५१८८, ३२००-१) श्रमणधर्म रथ, प्रा.,मागु., गा. १, प+ग, मूपू., (नहणेइ सयंस) श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मागु..सं., गद्य, मूपू., ७५३९-५
(स्मारं स्म) ४५७६-१(+), ४१३४ श्राद्धगुण विवरण, उपा. जिनमण्डन, सं., अध्याय ३५, वि. १४९८, श्रावक करणी विचार, प्रा.,मागु., गद्य, जै., (पांच अभिगम) गद्य, मूपू.. (प्रणम्य) १५९), ३८४५
६०६२-१३() श्राद्धजीतकल्प, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. १४२, वि. १४वी, श्रावकविधि प्रकाश, वा. क्षमाकल्याण, सं.,मागु., वि. १८३८, गद्य, पद्य, मूपू.. (कयपवयणप्पण) ३२८५, १०२९, ६८८६७),
मूपू., (प्रणम्य) ५९७५), ६६९०(+). ६६९४ ७४५१(६)
(२) श्रावकविधि प्रकाश-बीजक, मागु., गद्य, मूपू., (प्रभातसामा) (२) श्राद्धजीतकल्प-टीका, सं., ग्रं.२६४६, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं) ६६९४ ३२८५, १०२९
श्रावणद्वादशी व्रतकथा, सं., श्लोक २७, पद्य, दि., (प्रणम्य) (२) श्राद्धजीतकल्प-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (कृतः प्रकर)
६००२-६१) ६८८६(5). ७४५१(६)
श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., ४ अधिकार, श्लोक ९६६, श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. ३४१, ग्रं.३९०, वि. ५९८ , पद्य, मूपू.. (ॐ ध्यात्व) ३५५(५), ८३४(+),
पद्य, मूपू., (वीरं नमिऊण) ४२०६(+), ५९१८(१), ७८५३(45), ९०२६६५), ३४३८, ७६८१, ८४८१, ३५३ २४८८+5), ६७८३(६), ६३३४(६)
(२) श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ॐकार सिद) (२) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टीका', सं., गद्य, मूपू., (-) ६३३४(६) ८३४(+), ३४३८, ७६८१, ३५३ (२) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., श्रीपाल चरित्र, सं., गद्य, मुपू., (श्रीपार्श) ९२२२६) (सुरासुराधी) २४८८(45)
श्रीपाल चरित्र, मु. जयकीर्ति-शिष्य, सं., ४प्रस्ताव, ग्रं.१२५७, वि. श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., प्रकाश, पद्य, मूपू., __१८६८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य सि) ५७४०+), ९२६०(+), ८१७६ (सिरिवीरजिण) २२०(+), ४८६६(+)
श्रीपाल चरित्र, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., ग्रं.१८००, वि. १७४५, (२) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ.
गद्य, (सकलकुशलवल)-<प्रतहीन.> रत्नशेखरसूरि, सं., ६ प्रकाश, ग्रं.६७६१, वि. १५०६, गद्य, (२) श्रीपाल चरित्र-वार्तिक, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., ग्रं.३२१, मूपू., (अर्हत्सिद) २२०(+), ४८६६(+)
_ वि. १७७९, गद्य, मूपू.. (प्रणम्य) ३६८ (३) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदीटीका का टबार्थ#, मु. श्रीपाल चरित्र, मु. शुभविजय, सं., वि. १७७४, गद्य, मूपू., (ॐ ___ उत्तमविजय, मागु., गद्य, मूपू., (अरिहन्त सि) ४८६६(+)
नमः स्व) ८३६५(+) (२) श्राद्धविधि प्रकरण-टबार्थी, मु. उत्तमविजय, मागु., वि. श्रीपालनरेन्द्र चरित्र, मु. चारित्रविजय, सं., श्लोक ५७४, वि. १८२४, गद्य, मूपू., (-) ४८६६(+)
१५७२, पद्य, मूपू., (नमन्नाकिसम) ३५६८-१(+) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (दंसण वय सा) | श्रीमती कथा-नमस्कार महामन्त्र विषये, सं., श्लोक ५३, पद्य,
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२२)
६००२-५५)
४९०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ जै., (नवकारअक्खर) ८९८१-१(+)
(२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. श्रुतज्ञानतप कथा, सं., श्लोक ७७, पद्य, दि., (नत्वा जैनं) ६००२- देवेन्द्रसूरि, सं., ग्रं.२८००, गद्य, मूपू., (यद्भाषितार) ९०५४
४(+), ४७४४-१(45) श्रुतदेवी स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (कमलदल विपु) | (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., (-) ___७४४४-२(+), १७९१-२५५), ७५४४-२(5)
९१८६-३(5) श्रुतबोध, कालिदास, सं., श्लोक ४१, पद्य, (छन्दसां लक) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नमनि० ६१६८+), ९१४-१, ७३९५६)
तत्र) २३३३-४ (२) श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., | (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., (श्रीमत्सार) ६१६८५), ९१४-१, १७००७), ७३९५(६)
___ ग्रं.३१००, वि. १४५९, गद्य, मूपू.. (नव्यषडशीति) ८७५७-१(45) श्रुतस्कन्धतप कथा, सं., श्लोक ४८, पद्य, दि., (सन्मतिं ना) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, गणि शान्तिविजय,
मागु., गद्य, मूपू., (जिनप्रति) ९१७०-४ श्रुतस्कन्धतप विधान, सं., श्लोक ५६, पद्य, दि., (जिनेन्द्रग) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., ६००२-११(4)
(वीतरागदेव) ६५१९-२(+), ५३९३-४, ५९१७-४, ६५३०-४, श्रुतस्कन्धतप विधान, सं., गद्य, दि., (षट्कर्मोपद) ६००२-१७+) ७०९८-४(5) श्रृङ्गार श्लोक, सं., श्लोक २, पद्य, (हे कान्ति) ३१२२-२४) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मागु., श्रेयांसजिन प्रथमभव कथा, सं., श्लोक १४, पद्य, जै.. (अथ गद्य, मूपू., (प्रविगध्या) ८४२३-४(+) श्रेयां) ७२८५-३(5)
(२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., श्लोक सङ्ग्रह-, प्रा., पद्य, (-) ८१८६६)
गद्य, मूपू., (प्रणम्य शि) ९२६८-४(4). ३४९०-४ श्लोक सङ्ग्रह-, मागु.,सं., गा. ३, पद्य, (प्यार पाया) ८९४६-३(+) । (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (हवइं श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक, सं., श्लोक ३, पद्य, जै., (देहे निर्म) चउथा) २४८०-४(+), २९६९-४(+), ४८६२-४(+), ५२५०-४(+),
२५५-२(+), ६९२-२(+), ४४३०-२(+), ७५५१-२५(+), १८०८-२), ५२७३-४(१), १८२१(+), ५७१-२(45), ६५१८-४(45), १७५, ४६१, १८३०-२(+), १९६४-२+#), ७५९-३, ३५१०-२, ६०६१-२, ८८११- ४१२१, ८४११-४, ८४१५-४ २, १४८६-१, २०९२-२(१), ७२६०(#5), ३७८५-२६), ६०१८-६६), (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, उपा. जयसोम, मागु., गद्य, ३५५५-३(5)
मुपू., (नमिनिं जिन) ८४२३-४(+) षट्त्रिंशज्जल्पविचार सङ्ग्रह, मु. भावविजय, सं., वि. १६७९, | (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मागु.. गद्य, गद्य, मूपू., (ॐ नमः श्र) ७३९
मूपू., (वान्दीनइ) ३७३७-४(+), ५४३०-४+६), १५८१-४(+8), षट्पञ्चाशिका, आ. पृथुयशा, सं., अध्याय ७, श्लोक ५६, पद्य, ८६३२-४ (प्रणिपत्य) २१७८-१(+), ५५५२-२
(२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बासठमार्गणा सज्झाय, आ. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. ८६, पद्य, मूपू., अजितदेवसुरि, मागु., गा. ७३, वि. १६७४, पद्य, मूपू., (पय
(नमिय जिणं) २४६९-४(+), २४८०-४(+), २९६९-४(+). ३७३७- पङ्कज) ६०३२-५(445) ४(+), ४१२९-४(+), ४८६२-४(+), ५२५०-४(+), ५२७३-४(+). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ७अधिकार, श्लोक ८७, ५८४७-४(+). ५९०२-४५), ८४२३-४(+), ९२६८-४), १८२१(१), पद्य, मूपू., (सद्दर्शनं) ७७४(+), १५६ ।। ६५१९-२), ५७१-२(45), ५९११-५(45), ६५०६-४(+5). ८१३५- (२) षड्दर्शन समुच्चय-तर्करहस्यदीपिका टीका, आ. ४(+8), ५४३०-४(45), १५८१-४(45), ४७४४-१(48), ७३४४-४(+६), गुणरत्नसूरि, सं., ७ अधिकार, ग्रं.५७७३, गद्य, मूपू., (जयति ७८२७-३(45), ९०९९-४(45), ५९३९-४(45), ६५१८-४(45), १७५, विजित) ७७४(+), १५६ ४६१, २३३३-४, ३४९०-४, ४१२१, ४३०८-१, ४५६०, ५३९३-४, षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., गा. १६१, ७७७७-४, ७८७०-४, ८४११-४, ८४१५-४, ८६३२-४, ९१०३-४, पद्य, मूपू., (अरिहं देवो) २८१७+), ४१४०५), ४३०५), ९१७०-४, १६९३-४, ६५३०-४, ७८९१-४, ८४९६, १६१-४, ५०८०+), ५१३२(१), ५५४८(+), ८५५७, १०२४, ५२३९ १६४५-४(६), ७३७९-४(६), २८८४(६), ५००५-१(६), ७०९८-४(5), (२) षष्टिशतक प्रकरण-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू.. (सर्वज्ञदेव)
९१८६-३(5)
५०८०)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
४९१
८४२७)
(२) षष्टिशतक प्रकरण-भाषानुवाद, मोहन, मागु., गा. १६२,
ग्रं.१८५, पद्य, जै., (धन्य कृतार) ३९९५ (२) षष्टिशतक प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (अरिहन्त
क०) ५१३२(+) (२) षष्टिशतक प्रकरण-बालावबोध, आ. सोमसुन्दरसूरि, मागु.,
वि. १४९६, गद्य, मूपू., (सिरिवद्धमा) १०२४, ५२३९ (२) षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (राग अनइ)
२८१७), ८५५७ (२) षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ, उपा. जयसोम, मागु., गद्य, मूपू.,
(इण संसार) ४३०५(+ षोडशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अध्याय १६, श्लोक २५६, ___ पद्य, मूपू.. (प्रणिपत्य) ८८३-३(क) (२) षोडशक प्रकरण-सुगमार्थकल्पना वृत्ति, आ. यशोभद्रसूरि,
सं., ग्रं.१५००, वि. ११वी, गद्य, मूपू., (अमृतमिवामृ) ८८३-४(+) संजयनियण्ठा के बोल, प्रा.,मागु., कोष्टक, जै., (पन्नवणा १)
३९४९-४ संयम के १७ भेद, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पञ्चाश्रवा) १८२०
(२) संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरन्द)
३४७६ सक्षेपपूजाकर्णिका, सं., श्लोक १०, पद्य, दि., (श्रीमत्सर)
५०७९-१(4) सङ्घपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लोक ४०, पद्य, मूपू.,
(वह्निज्वाल) ५०७७+), ५४६०(+), ५६५५(45) (२) सङ्घपट्टक-अवचूरि, गणि साधुकीर्ति, सं., वि. १६१९, गद्य, ____ मूपू., (श्रीमत्पार) ५४६०(4) (२) सङ्घपट्टक-टबार्थ, सं., गद्य, पू., (वह्नि विश) ५०७७५) सङ्घमालापरिधापन विधि, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, मूपू.,
(मालारोपण) ५०२२-१ सङ्घ स्तुति, सं., श्लोक ६, पद्य, मूपू., (संघीय गुणर) ७६८२
(२) सङ्घ स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीसङ्घ) ७६८२-२(+) सतसंवत्छर फल, मागु.,सं., गद्य, जै., (प्रणपत्य) ८०२० सत्तात्रिभङ्गी, मु. नेमिचन्दजिन, प्रा., ३ त्रिभंगी, गा. ३५, पद्य,
दि., (पञ्चणवदोणि) ५४५३-४(+), १६४-४+#) (२) सत्तात्रिभङ्गी-सुबोधा टीका, मु. सोमदेव, सं., गद्य, दि.,
(मिथ्यात्वा) १६४-४(+#) (२) सत्तात्रिभङ्गी-यन्त्र, सं.,मागु., यंत्र, दि., (सत्ताकर्मप) १६४
संयम रथ, प्रा., गा. २, प+ग, मूपू., (हिंसई नसइ) ७५३९-११ संवेगरङ्गशाला, आ. जिनचन्द्रसूरि, प्रा., गा. १००५४, वि.
११२५, पद्य, मूपू., (रेहइ जेसिं) २२५०+) संसार असारतानिरूपक कथा, सं., श्लोक १६०, पद्य, मूपू.,
(श्रीवीरः) ३४८० संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं.,प्रा., श्लोक ४, पद्य,
मूपू., (संसारदावान) १७९२-५(+), ६०९४-३६+६), १२६७-६, ७५४१-३, २३३६-७, १७८७-८(७), ६०४१-५९६०, ७५४४-७”,
२८४५-५९) (२) संसारदावानल स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.,
(संसाररूपीउ) ६०९४-३(45) संसारदावानल स्तुति-अन्तिमपादपूर्तिमय, सं., श्लोक ४, पद्य,
मुपू., (सिद्धि विध) ५८८०-४ संसार रथ, प्रा., गा. २, प+ग, मूपू., (उड्ढदिसिं) ७५३९-१० संसारी परिभ्रमण, सं., गद्य, दि., (परिवर्तन) ६१२१-२ संस्तारक प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मूपू.,
(काऊण नमुक) ४४४६(+), ८४२७+), ३४७६, ८८८३, ५६०४ (२) संस्तारक प्रकीर्णक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (शमितनिःशेष)
८८८३ (२) संस्तारक प्रकीर्णक-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (इहां
सघलाइ) ४४४६(+) (२) संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं०)
सदभाषितावली, आ. सकलकीर्ति, सं., पद्य, दि., (जिनाधीशं)
६५४९(5) सन्तिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुन्दरसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू.,
(सन्तिकरं) ७३८९-३० सन्थारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (निसिही निस)
२६२६-६३६), १७९४-३२+#), १५८१-५६+६), ५८२७-३७, ७६७२
१,६०११-७, ५४८९-३५०, ६०९७-५(5) | (२) सन्थारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (त्रि करण)
७६७२-१ सन्देहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १५०, पद्य,
मूपू., (पडिबिम्बिय) ५५२९(+) सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, प्रा., गा. १६८,
पद्य, मूपू., (सिद्धं सिद) ४२७० सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., गा. ७२, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहिं)
२४५९+), २४८०-६(+), ३७३७-६(५), ४८६२-६(५), ५६३८५), ५८४७-६(५), ८०७+), ९२६८-६(+), १३०६-२(45), ४७४४-३(45), ८१३५-६(45), ७८२७-५(+5), २३३३-६, ३६२४, ३८२५, ४०८२, ४३०८-३, ५४५४, ८५११, ८६३२-६, ९१०३-६, १६९३-६,
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४९२
१६४५-६(७०, ५००५-३७), ७३७९-६(७) । (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं.,
ग्रं.३८८०, गद्य, मूपू., (अशेषकर्मा) ८०७+), ९०५४-६(+),
४७४४-३(45), ४०८२ (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य,
मूपू., (सिद्ध सिद) ८७५७-३(45) (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (ए
गाथाने) ३८२५, ५४५४, ८५११ (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (नत्वार्हन)
७९१७(45) (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध)
२४५९(4) (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य,
मूपू., (सिद्ध कहता) ९२६८-६(+) (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (सिद्ध निश)
२४८०-६(+), ४८६२-६(+), १३०६-२(45) (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., वि. १७००,
गद्य, मूपू., (सिद्धि निश) ३७३७-६(+), ८६३२-६ सप्ततिशतस्थान गाथा-जिनमातापिताविषये, प्रा., गा. २, पद्य,
मूपू., (अट्ठण्हं) १५७३-४ सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., गा. ३६०,
वि. १३८७, पद्य, मूपू., (सिरिरिसहाइ) ८८७९(+), ९१९३-१(+), ८१३७+5), ३८२, ३८३, २३६०, ३१९२, ८३७८, ९०८६,
६९८१(६), ८९९४(६) (२) सप्ततिशतस्थान प्रकरण-भावार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ॐ नमः
श्र) ३८२ (२) सप्ततिशतस्थान प्रकरण-छायानुवाद, आ. ऋद्धिसागरसूरि, ___ सं., गद्य, मूपू., (आदीश्वरं) ३८२ (२) सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.,
(ऋषभादिक जि) ८८७९(+), ८१३७+६), ८३७८, ९०८६,
६९८१), ८९९४(६) (२) सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.,
(श्रीमत्पार) ३८३ (२) सप्ततिशतस्थान प्रकरण-यन्त्र, मागु., कोष्टक, मूपू., (-)
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ पद्य, मूपू.. (णमो अरिहन) २६२६-४४(+), ६०८३-१(+), १४८५६(५), २८४३६#), १७९९-१७+5). १७८३(45), ५४९०-३७, ५८२७७९, ६०११-९, ६०७२-१, ६३६४-१, ६७६८-३, ५७१९(१), ५४८९-२(5), ८९२७-२(5), ७०८६-45), ६५७६-१(६), ५६२५६७),
६७७३-२(5), १७७५९६, ७०००-६(६) (२) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू.,
(नन्दीषण ना) २८४३(+#), १७८३(45) समयसार, आ. कुन्दकुन्दाचार्य, प्रा., गा. ४१५, पद्य, (वन्दितु
सव)-<प्रतहीन.> (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचन्द्राचार्य, सं.,
प+ग, (नमः समयसार)-<प्रतहीन.> (३) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश
टीका, आ. अमृतचन्द्राचार्य, सं., श्लोक २७८, पद्य, दि.,
(नमः समयसार) ६१७०(+) (४) समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., गा.
७२७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग) ७६६६), ८२४५), ८७६०), ३३६४, ३४७१, ४६४७-१, ५७४३, ९२९८,
३८६४, २८७०, २७६७, ७८५७०. ५४८२(१), ८००-१) (५) समयसारनाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, पण्डित रूपचन्द,
प्राहिं., गद्य, मूपू., (जिन वचन सम) ३४२९(45), २८७०,
७८५(5)
(५) समयसार नाटक पद्यानुवाद के चयनित पद्य, प्राहिं., पद्य,
दि., (-) ६०६५-३(७) (४) समयसारनाटक कलश-बालावबोध, राज., गद्य, दि., (भावाय __नमः) ६१७०+) समयसार प्रकरण, आ. देवानन्दसूरि, प्रा., अध्याय १०, वि.
१४६९, गद्य, मूपू.. (सव्वन्नु) १८८१(+), ५६६३-१(4) समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू.,
(थुणिमो केव) ४८९२-२, ८५३१ (२) समवसरण प्रकरण-टबार्थ, पं. रुपविजयजी, मागु., गद्य,
मूपू., (स्तवनां कर) ८५३१ समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., १०३अध्ययन, सूत्र १५९,
ग्रं.१६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे०) ९६(+), ९७), ६६०), १४०७(+), ५२५२(+), ६४१९(+), ८५०४(+), ८८८५(+), ९४(+), ४००३(+), ७०७७(45), ३५३४, ५४४०, ७६२८, १२३, १६६३(१),
७३४६(७) (२) समवायाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं.३५७५, वि.
११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ९६५), ५७०९(+), २८४१६+६),
२८६३, ९२२७, १६६३(१), १३८७७) | (२) समवायाङ्गसूत्र-अवचूरि, मु. हर्षोदय, सं., ग्रं.१६६०, वि.
२२११(+)
सप्तभङ्गीनयप्रदीप प्रकरण, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य,
मूपू., (ऐन्द्रादिप) ६२२४ सप्तव्यसन कथासमुच्चय, आ. सोमकीर्ति, सं., सर्ग ७, श्लोक
६७७, ग्रं.२०६७, वि. १५२६, पद्य, दि., (प्रणम्य) ७४४५(+) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., ७ स्मरण,
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ १६९९, गद्य, मूपू., (द्वाभ्यां) ५२५२(+)
(२) सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (-) ६८१५-१(45) (२) समवायाङ्गसूत्र-विषमपद पर्याय टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., सम्मेतशिखरतीर्थ स्तुति, आ. जिनसौभाग्यसूरि, सं., श्लोक ४, (दुरितानि) ३४७२-१२(+)
पद्य, मूपू.. (श्रीसम्मेत) ५८२७-३५ (२) समवायाङ्गसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., ग्रं.४४७४, वि. सम्यक्त्व आरोपण आलापक, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (सविस्तरनन) १७उ., गद्य, जै., (देवदेवं जि) ९७५), ६६०५), ८५०४(+),
६०२१-५ ९४(+), ४००३(+)
सम्यक्त्व आलावो, प्रा., गद्य, मूपू., (अहमन्नं भं) ९०९०-२ समाधिशतक, आ. देवनन्दी, सं., श्लोक १०६, पद्य, दि., सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., ग्रं.१६७५, वि. १४५७, (येनात्मा) ५७१०+), १६८,७४९७
गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ३१०+), १९५९(+), ५४४७), ७७५२(+), (२) समाधिशतक-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मागु., गद्य, दि., २४०९(+), २७४७+#), ६५०१(45), ६९५०+६), ३३२, ८८०, (जिनान् प्र) ५७१०५), १६८
३५१०-१, ५१८९, ५४९३, ८३९५, ११४६, ७५८३, ७६३, (२) २८ लब्धि वर्णन, मागु., गद्य, दि., (इणी प्रकार) ४६८९ ६६११(६) (२) समाधिशतक दोधकछन्दमय, उपा. यशोविजयजी गणि, (२) सम्यक्त्वकौमुदी-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर)
प्राहिं., गा. १०४, पद्य, मूपू., (प्रणमी सरस) १९८, १०११-१ ७५९६) समोसरणविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, जै., (नागेसु उसभ) (२) सम्यक्त्वकौमुदी कथानक-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवद्ध) ५२३१-२
१९५९(+), ५४४७), ६९५०+६), ८८०, ८३९५, ७६३, ६६११६७) सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५+२, पद्य, सम्यक्त्वकौमुदी, गणि जिनहर्ष, सं.,७ प्रस्ताव, ग्रं.२८५८, वि.
मूपू., (नमिऊण तिलो) १५७१(+). १७०३(+), १७६८(+), ३०९१(+), __ १४८७, पद्य, मूपू., (ॐ नमः शाश) ८८०९(45) ५१०६(+), ५९१९), ८३३५(+), ८४४३(+), ८९१७+), ९२२३(+), सम्यक्त्वकौमुदी कथा, आ. गुणाकरसूरि, सं., श्लोक १५३३, १४८५-५०(+), २२०३(+), ३०६०-१(+), ९२४६(५), ६८१५-१(45), ग्रं.१५३३, वि. १५०२, पद्य, मूपू., (तस्मै नित) ३७४(4) ५३९, ८६३-१, ५४३८, ६२२८, ६४५३-२, १८६६-१, २३०६, सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू.. (जह सम्मत्त) ७९०२-१, ८७२१(45), ७९१६-३(७), ६८८०(5), ५९७१(६),
४२३७+), ४३५३-२(+), १८२६-१+#), ३१६२-१७), ८९१८-१(७), ७२४८(5), ९२२८(5)
३१६२-२(5) (२) सम्बोधसप्ततिका-छाया, सं., गद्य, जै., (नत्वा त्रि) २२०३(+) (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यथा येन औप) (२) सम्बोधसप्ततिका-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (-)
१८२६-१(+#), ३१६२-२(5) ६८८०)
(२) सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (२) सम्बोधसप्ततिका-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (वन्दिय (मनोवाञ्छित) ८९१८-१(5) पास) ८७२१(#5), ५९७१), ९२२८ (5)
(२) सम्यक्त्वपच्चीसी-शिशुबोध बालावबोध, उपा. मतिकीर्ति, (२) सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ॐ नमस्ते) मागु., गद्य, मूपू.. (जिम समकितन) ३१६२-१९७) ८३३५(+), ८४४३(+)
(२) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जह कहतां) (२) सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., ग्रं.४१०, गद्य, मूपू., (नत्वा ४२३७) प्रण) १७६८(+)
(२) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जिम समकितन) (२) सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार कर) ४३५३-२)
१५७१९), १७०३(+), ३०९१(+). ५१०६(+), ३०६०-१(+), ८६३-१, सम्यक्त्व माहात्म्य गाथा, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (ध्यानं दुक) १८६६-१, ७९१६-३(5)
३३७१-२ (२) सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमीनइं त्र) (२) सम्यक्त्व माहात्म्य गाथा-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., ९२२३(+), ९२४६(4)
(समकित विना) ३३७१-२ (२) सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (श्रीसर्वज) सम्यक्त्व व शीलव्रतपालन उपदेश, प्रा.,मागु., गद्य, मुपू.,
(श्रीसम्यक) ९०९०-४ (२) सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (नमिऊण नमि) | सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू.,
(दसणसुद्धि) ५८८९(+), ७८६५९), ५०९७+5), ४७४३(45),
८९१७)
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२२५३(१)
४९४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ ५५४७-१, ६०२७-४
सरस्वतीसूत्र, सं., , (--)-<प्रतहीन.> (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-टीका, आ. सङ्घतिलकसूरि, सं., १२ (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, (प्रणम्य
अधिकार, ग्रं.७७११, वि. १४२२, प+ग, मूपू., (सच्चामीकरब) | पर) ९२८०१), २८४९(45), ४९४६-१, ७४६(६), ५२५३(७) ४७४३(45)
(३) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (सम्यक निर) ३वृत्ति, ग्रं.७५००, वि. १६२३, गद्य, मूपू., (नमोस्तु सर) ५८८९(+), ७८६५), ५०९७(45)
३५०४(+), ६५१३(१), ३६६४+#), ९२८०), ३५६६+६), २८४९(+), सम्यक्त्व स्वरूप, सं., पद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) ६०४५
४८८८(45). ५०७, ७४६(), ५२५३(5) सम्यक्त्व स्वरूप, मागु.,प्रा., गद्य, मूपू., (जिम सम्यक) २३९२१), | (३) सारस्वत व्याकरण-सारस्वतप्रदीप टीका, मु. सहजकीर्ति, ७८२५(क)
सं., ग्रं.२०००, वि. १७वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पा) ३९३८(+) सरस्वती जापमन्त्र सह विधि, सं.,मागु., गद्य, मपू., (ॐ ह्रीं) (३) सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. ७८२१-२
१६६३, पद्य, मूपू.. (श्रीसर्वज) २२५३) सरस्वतीदेवी २१ नाम स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, वै., (वाग्देवी) | (४) सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ की स्वोपज्ञ धातुतरङ्गिणी ५४८९-३४)
टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (नमस्कृत्य) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लोक १३, पद्य, वै., (ॐ अस्य) ६०८९-१०
(२) सिद्धान्तचन्द्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, (नमस्कृत्य) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लोक १२, पद्य, मूपू., (ॐ श्रीअर) ४९२). २५९०(+), ४३६९(+), १९१२). २४६६(+). २९८२(4) ६०८९-६
(३) सिद्धान्तचन्द्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, गणि सदानन्द, सं., वि. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लोक ९, पद्य, (नमामि भारत) ६०८९- १७९९, गद्य, मूपू., (पुराणपुरुष) ४९२), २५९००.४३६९(१),
५४०३(+),७९०५, १९१२), २४६६०,२९८२, ५४०६, सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लोक १०, पद्य, वै., (नमोस्तु शा) १३४०-५
सरस्वत्यष्टक, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लोक ९, पद्य, मूपू., (ॐ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लोक ८, पद्य, वै., (भक्तिप्रह) ६०८९-८ नमस्त्र) ५८२७-७५, ६०८९-१, ५४८९-६०(5) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लोक ९, पद्य, वै., (राजते श्री) ५८२७- सर्वज्ञ स्तव, सं., श्लोक १३, पद्य, मूपू., (प्रातरेव) ६०४२-२८() ६५, ५४८९-६२(5)
सर्वज्ञ स्तवाष्टक, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू., (कृतार्थोपि) ६०४२सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लोक ७, पद्य, वै., (वाग्वादिनी)
२७(5) १३४०-६, ६०८९-३
सर्वज्ञ स्तोत्र, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लोक १०, पद्य, मूपू., सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लोक १५, पद्य, (विपुलसौक्ष) ५८९९- (शुभभावानतः) ९७५-१
(२) सर्वज्ञ स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सह दानवैश) ९७५-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लोक ९, पद्य, मूपू., (व्याप्तानन) सर्वार्थसिद्धि कथा, सं., गद्य, दि., (त्रैलोक्यत) ६००२-२१) ६०८९-७, ६४०१-२
सहस्रकूट पूजा, मु. सुमति, सं.,मागु., पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लोक ८, पद्य, वै., (सरस्वति मह) ५८०८-२० ६०८९-४
सागारधर्मामृत, श्रा. आशाधर भटट, सं., अध्याय ८, वि. १२९६, सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लोक ६, पद्य, वै., (सरस्वती नम) पद्य, दि., (नत्वाह) १७७) ६०८९-२
साढसतीशनिश्चर मन्त्र, सं., गद्य, (ॐ षां षीं) ५८२७-७४ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लोक ९, पद्य, मूपू., (सर्वारिष्ट) सातवाहननृप कथा, गणि शुभशील, सं., श्लोक १७२३, ग्रं.१८००, २६२६-५७), ५४९०-५३
पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ) ४७४९ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लोक १२, पद्य, साधारणजिन अष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., श्लोक ८, पद्य, मुपू., (कदाकुण्डलि) ६०८९-९
मूपू., (जयति जङ्गम) ६०४२-१४(६), ५६९९-६ (-) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, मु. मलयकीर्तिविजय, सं., श्लोक ९, पद्य, साधारणजिन अष्टक, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लोक ९, पद्य, मूपू., (जलधिनन्दनच) ५४८९-६१(६)
मूपू., (वीतरागविगत) ६०४२-१५७)
६८२९६)
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
साधारणजिन चैत्यवन्दन, सं., श्लोक ९, पद्य, मुपू., (पातालं
कलय) ६४६०-४
साधारणजिन चैत्यवन्दन, प्रा. गा. २६, पद्य, मुपू. (जयइ
"
जगजीवज) ६४३८-२
"
साधारणजिन चैत्यवन्दन, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., श्लोक ७, पद्य, भूपू .. ( जय श्रीजिन) २३३७-८११, ६४६०-२२, १११७-१५ साधारणजिनचैवन्दन मागु. सं. गा. ५. पद्य, भूपू. (अनन्त चोवी) ७५४०-४
"
साधारणजिन पद, प्रा. गा. १३०, पद्य, पु. ( चउतीसअइसयज) २७५५१०
साधारणजिन शतार्थी स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं. गा. १, पद्य, मूपू.. (कल्याणसारस) १७८९-७
साधारणजिन स्तव, आ. जयानन्दसूरि. सं., श्लोक ९. पच मूपू.. (देवाः प्रभ) २३३७-१०१%, ६०४२-२०० ६४२०-४१ साधारणजिन स्तवन, सं., श्लोक १०, पद्य, मूपू., (जयत्वं जगत) ६०४२-२६ (ड)
साधारणजिन स्तुति, सं., श्लोक ५, पद्य, मृपु. ( अनन्तविज्ञ)
६२६९-३
साधारणजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू..
( अविरलकमलगाव) २६६-१६) १४८५-२८९ १७९४-११/कि २९९७-१७(+$), ५४९०-११, ५८२७-१०, ६०११-२९, १७९१३०ाक ५४८९-१९१ ७५४४-३५क साधारणजिन स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (किं कर्पूर)
६४६०-३
साधारणजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मृपू., (केवलचन्द्र) ५४८९-५०
साधारणजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, जे. (गर्भावतारे) ७५४४-३२
साधारणजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (नमोदुर्वार) ५४८९-५२ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, भूपू (पाताले यान)
($)
६०८८-२६
साधारणजिन स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, भूपु (सकलगुणसमेत) ७५५१-१७
"
साधारणजिन स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., ( शुभारतीरा) २३३६५६
साधारणजिन स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मृपु. ( सत्वीयनन्द)
२३३६-५७
साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लोक १, पद्य, मृपू. (श्रीतीर्थर) २६२६-३४१ १७८९-८ ६४६०-९ २३३६-५४,
"
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१४८७-१२(३), ५४८९-१८ (S), ६०९६-१२ (३), ७५४४-१२ (8) साधारणजिन स्तोत्र, सं. श्लोक ५. पद्य, मुपू.. (जय वीतमोहा)
४९५
२३३७-५ (+), १११७-१२
साधारणजिन स्तोत्र, सं., पद्य, मृपू., ( श्रियं विश) ३८६१ - २(5) साधारणजिन स्तोत्र, सं. श्लोक ९, पद्य, जै.. ( सर्वज्ञ सर ) ६०१६
साधु आचार गाथा सङ्ग्रह, प्रा., गा. ३९, पद्य, मुपू., ( जिणआणाए कु ) ५६६३-६(*)
साधु आलोयणा, सं., गद्य, गुपु. ( ज्ञानाशातन) ८४१३ साधु उपदेश गाथा सङ्ग्रह, प्रा., गा. ५१, पद्य, मूपू., ( आलय विहार) ५६६३-५ (+)
"
साधुनित्यक्रिया विधि, प्रा. मागु, गद्य, भूपू.. (ए क्रिया) १४९०-७ साधुसमाचारी, सं., गद्य, मुपू.. ( इह पर्युषण) ७४२१७३६३ (२) साधुसमाचारीसूत्र - व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (गृहिज्ञाता) ७४२१का ७३६३ कि साधुसमाचारी खरतरगच्छीय, सं., गद्य, ग्रुपु. ( प्रथम जिनच)
($)
५४२६
सामाचारी*, सं., पद्य, मृपू., ( प्रथम सामा) १४७२ (+), ३७०४-२ सामाचारी प्रकरण, प्रा., सं., गद्य, मूपू., (आयारमयं वी) ३५८२
(क)
३३७९
वि.
सामाचारी रथ, प्रा., मागु., गा. १, प+ग, भूपू., (भर्द्दनाण) ७५३९-६ सामाचारी शतक, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., ५ प्रकाश,
१६७२. गद्य भूपू (श्रीवीर) ७४०)
(२) सामाचारी शतक-बीजक, सं., गद्य, मृपू. (सामायिकदण ) ७४० (+)
"
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सामाचारी सङ्ग्रह, आ. नरेश्वरसूरि, सं., पद्य, मूप्पू., (नाणं किरिय) ८५३०
सामायिक के ३२ दोष, प्रा., मागु., गद्य, जै., (हवि सामायक) ६८०६-७
सामायिक लाभ गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, जै., (पल्लयगिरि) ७२८५-२
सामुद्रिकशास्त्र, सं., अध्याय ३६, श्लोक २७१, पद्य, मृपू., (आदिदेवं ) ६३४१-११) २९४६-११०, ३५९८, ३८८१, ७३३५. ७९७६, ८७९८-१, १४१२, ७५१० (5)
(२) सामुद्रिकशास्त्र - बालावबोध *, मागु., गद्य, मूपू., (पहिलां आउख) ७५१०
($)
(२) सामुद्रिकशास्त्र - बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (सामुद्रिकन) ७२१९)
(२) सामुद्रिकशास्त्र -टबार्थ, मागु., अज्ञात २, गद्य, मूपू., ( आदि देव नम) ७९७६
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३५९८
४९६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ (२) सामुद्रिकशास्त्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (आदिनाथ जे) । (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-टीका', सं., गद्य, मूपू., (-) ७४८२(5)
(२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि सिद्ध के १५ भेद, प्रा., गद्य, मूपू., (तित्थ सिद) ३५७२-२
कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं.६०००, गद्य, मूपू., (अर्हमित्ये) सिद्धचक्र चैत्यवन्दन, अप., गा. ३, पद्य, मूपू., (जो धुरि सि) ५१८४/), ४९०(+#5), ५२४१(६), १९११(६) ६६३१-६६६)
(३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति की अवचूरि, सं., सिद्धचक्र चैत्यवन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., अध्याय २, गद्य, मूपू., (-) ४९०+#5), ८१८५(5)
(उप्पन्नसन) ६१-४(4), २०९५-२, ६२४२-२, ९१२५-४, १११७-१७ (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति की अवचूरि, सं., सिद्धचक्रतप विधान, सं., गद्य, दि., (ॐ अह) ६००२-१८(+) गद्य, मूपू.. (-) ८७५८(45) सिद्धचक्र बृहद्यन्त्र, सं., यंत्र, मूपू., (-) ६१-६(+)
(३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति के आख्यातवृत्ति की सिद्धचक्रयन्त्र पूजनविधि, सं.,मागु., पद्य, मूपू., (प्रथम स्ना) ___ अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वृधूड वृद) २५५४१, ४७१४ ।। ८०३२-४
(३) सिद्धहमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति का टिप्पण", सं., सिद्धचक्र लघुयन्त्र, सं., यंत्र, मूपू., (ॐ ह्रीं) ६१-२)
गद्य, मूपू., (-) ५२४१९३) सिद्धचक्र स्तवन, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (अरिहन्तसिद) ६१-३(+) | (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. सिद्धचक्र स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (विपुल कुशल)
हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं.१८०००, वि. ११९३, ९१२५-३
गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) २३१७). ५१७२, १०१६, ७९५२(5) सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (भत्तिजुत्त) ६१-५47, | (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-बृहद्वृत्ति की दुण्डिका टीका, मु. ९१२५-२, २३३६-४८
सौभाग्यसागर, सं., ग्रं.८०००, वि. १५९१, गद्य, मूपू., सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. ५०, पद्य, (प्रणम्येत) १०१६
मूपू.. (सिद्धं सिद) १८७०(+), ४०४१(+), ४११७(+), ४२०४(+), (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिकाबृहद्वृत्ति का ५९१४), ६०६२-२(5)
तत्त्वप्रकाशिकाप्रकाश शब्दमहार्णवन्यास, आ. हेमचन्द्रसूरि (२) सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (सिद्ध कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२वी, गद्य, मूपू., (श्रीमन्तमज) आपण) १८७०(+), ४०४१(+)
८२३६(६) (२) सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-बालावबोध, मु. कल्याण, मागु., वि. (३) न्यायसङ्ग्रह, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., सूत्र ___१७१२, गद्य, मूपू., (श्रीसिद्धा) ५९१४)
५७, गद्य, मूपू., (स्वं रूपं) ४९७-१(4) (२) सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (सिद्ध (४) न्यायसङ्ग्रह-न्यायार्थमञ्जूषा बृहद्वृत्ति, गणि हेमहंस, सं., ४ कहता) ४२०४(+), ४११७(+)
वक्षस्कार, ग्रं.३२०६, वि. १५१५, गद्य, मूपू., (त्रैलोक्या) ४९७सिद्धपद चैत्यवन्दन, प्रा.,सं. मागु., श्लोक २, पद्य, मूपू.,
१(4) (सिद्धाणमाण) ६२४२-३
(५) न्यायसङ्ग्रह-न्यायार्थमञ्जूषा टीका का न्यास#, गणि सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक, प्रा., गा. ११९, ग्रं.१३५, पद्य, मूपू.,
हेमहंस, सं., ग्रं.१२००, गद्य, मूपू., (श्रीजिनवरग) ५४१८ (तिहुयणपणए) ३३११, ८०६९
(२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-अवचूरि, सं., १-६ पाद, गद्य, मूपू., (२) सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक-टीका, सं., ग्रं.८१५, गद्य, मूपू.,
(प्रणम्य) १०३३ (सकलभुवनेशभ) ३३११, ८०६९
(२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-आख्यात अवचूरि, सं., गद्य, मूपू.. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लोक १३, पद्य, (वृधूड् वृद) १०२५, २७५६(5) मूपू.. (करमरालविहङ) २८२-५९६)
(२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलक्षणसूत्रार्थ १-४ अध्ययन, मु. सिद्धहेमचन्द्रव्याकरणअनुबन्धकारिका, आ. हेमचन्द्रसूरि, सं., गुणधीर, मागु., गद्य, मूपू., (अहँ नत्त) १०३२ गद्य, मूपू., (यथा अकार) ८५५४-२(+)
(२) क्रियारत्नसमुच्चय, आ. गुणरत्नसूरि, सं., ग्रं.५६६१, वि. सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., १४६६, गद्य, मूपू., (जयति जिनवर) ६३०८(5)
अध्याय ८, सूत्र ४६८५, ग्रं.२१८५, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (२) हैमविभ्रम, सं., श्लोक २१, पद्य, मूपू., (कस्य धातोस) (अर्ह सिद) २३१०.५१८४+). ५१७२, १०३२, १०३३, २३३४,
(३) हैमविभ्रम-अवचूरि, मु. चारित्रसिंह, सं., वि. १६२५, गद्य,
७२६७#5)
१०१६, ५२४१(६)
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१९१९(5)
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९७ मूपू., (नत्वा जिने) ७२६७+#S)
(नमिऊण जिणव) ३१९०(+), ८८६३६६) (२) प्राकृत व्याकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ४ (२) सिद्धान्तहुण्डी-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू.. (श्रीजिनादि) पाद, सूत्र १११९, गद्य, मूपू.. (अथ प्राकृत) ५०४(+), ५७७६, ३१९०५), ८८६३(5)
सिद्धिप्रिय स्तोत्र, आ. देवनन्दी, सं., श्लोक २६, ईस. ६वी , पद्य, (३) प्राकृतव्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि | दि., (सिद्धिप्रि) २५९-३(+)
कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं.२१८५, गद्य, मूपू., (अथ शब्द आन) | सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लोक १००, पद्य, मूपू., ५०४(+), ५७७६, १९१९(5)
(सिंदूरप्रक) १२६३(+), १३८०(+), १७६६५), १८२७५), १८७९), (३) सिद्धहमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टमअध्याय की
२४३४(+), २४६२+), २६२६-७०(+), ३५११(+), ४२७४(+), व्युत्पत्तिदीपिका टीका, गणि उदयसौभाग्य, सं., गद्य, मूपू., ५०८२(+), ७५३३(+), ७५५१-१६(+), ७५७४-१(+), ८९४६-१(+), (यस्य क्रमन) ५७७६
१४८५-५३६), १८०८-१९२), ३६१३(+), ५२०१-१(+), ५५६२५), (२) धातुपाठ, गणि पुण्यसुन्दर, सं., गद्य, मूपू., (अकारान्ता) ८७४६-२(+). ७२४५(), २०३(+#), २१७०+#), २५६३(१). २२३९-१(+)
३०४५+#), ५५४९-१(+#), ८७४६-१(+), १७४३(+5), ३२०९(45), (२) न्यायसङ्ग्रह, गणि हेमहंस, सं., सूत्र ८४, ग्रं.६८, गद्य, मूपू., ४३२७+5), ७४४७+5), ११७८+5), ७६५९(45), १८७६, ३३८१, (प्रकृतिग्र) ४९७-२)
५२१९, ५२३५, ७७२१,७९६९, ९०३१, ९१५९, ९२०८, १८९४, (३) न्यायसङ्ग्रह-स्वोपज्ञ न्यायार्थमञ्जूषा बृहद्वृत्ति, गणि हेमहंस, ४२५९, ५११२, ६३९६, ७४६२, ४१०६, ७८०३-१, ३६१५, सं., २-७वक्षस्कार, ग्रं.३०८५, वि. १५१५, गद्य, मूपू.,
७१५३, ३१७४५), १७६४५), ८३०६(5), ४४१४६६), ५०९३(७), (त्रैलोक्या ) ४९७-२(+), ३२८६९०)
७१५४६), ७२७६(६), ८९२८६६), ६६०५(5) (२) प्रयत्न विवरण, गणि पुण्यसुन्दर, सं., श्लोक १४, पद्य, जै., । (२) सिन्दूरप्रकर-टीका, सं., गद्य, मूपू., (पार्श्वप्र) ५२१९ (बाह्याभ्यन) २२३९-४(+)
(२) सिन्दूरप्रकर-टीका, पं. धर्मचन्द्र, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-उणादिगणसूत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि वीरव) १८०८-१(+)
कलिकालसर्वज्ञ, सं., सूत्र १००६, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (२) सिन्दूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५५, गद्य, (कृवापाजिस) १६२३(+#)
___ मूपू., (श्रीमत्पार) ७५७४-१(+), ३६१३(+), १७४३(+६), ७४४७(45), (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ, आ. हेमचन्द्रसूरि
५२३५, ७७२१, ७९६९ कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं.३००, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (भू (२) सिन्दूरप्रकर-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (-) ८९२८६६) सत्ताया) ८५५४-१(+), ४७२४(+#)
(२) सिन्दूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., गा. (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ की अवचूरि, सं., गद्य, १०१, वि. १६९१, पद्य, दि., (सोभिततपगजर) ७५७४-१५). मूपू., (इह पूर्वाच) ४७२४()
९०३१, २५०८-३(5) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय , (२) सिन्दूरप्रकर-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू.. (प्रणम्य) ३३८१
सं., वि. १७१०, गद्य, मूपू.. (अर्हमित्यक) ७४३(+), २३५६(-), | (२) सिन्दूरप्रकर-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू.. (सिन्दूरनो) ८२३५-१(5)
७१५४७), ६६०५() (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया की स्वोपज्ञ हैमप्रकाश | (२) सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, राज., गद्य, मूपू., (ग्रन्थ के) ४२५९
वृत्ति, उपा. विनयविजय , सं., वि. १८वी, गद्य, मूपू.. (प्रणम्य । (२) सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ग्रन्थकर्त) २१७०११) पा) २३५६(-), ८२३५-१(5)
(२) सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (सिन्दूरनउ) ३५११५), सिद्धान्तषट्त्रिंशिका, सं.,प्रा.,मागु., ३६अधिकार, प+ग, मूपू., ८९४६-१(+), ८७४६-२(+) (प्रथमं ताव) ८९००
(२) सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, मु. केसरविजय, मागु., गद्य, मूपू., सिद्धान्तसार चर्चा-तेरापन्थमत निरसन, प्रा., गद्य, स्था.,
(सिन्दूरनो) ७२७६६७) (अणाणाए एगे) २८८(+)
(२) सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, पं. नायकविजय, मागु., गद्य, मूपू., (२) सिद्धान्तसार चर्चा-टबार्थ, मु. दुलीचन्द रतनेश, मागु., वि. (सिन्दुरनो) १८२७+) १९०६, गद्य, स्था., (तेरापन्थिय) २८८(+)
(२) सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (-) २४६२(+) सिद्धान्तहुण्डी, पं. सहजकुशल, प्रा., ग्रं.२०१६, गद्य, मूपू., (२) सिन्दूरप्रकर-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (-) ४४१४६६)
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८६४४(१)
४९८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ (२) सिन्दूरप्रकर-बालावबोध व कथा, पाठक राजशील, सं.,मागु., | सुन्दरी कथा-अक्षयनिधितपोपरि, प्रा., गद्य, मूपू.. (पज्जसवणेकप) गद्य, मूपू., (शारदाचरणयु) ५०९३(१)
८२०७ (२) सिन्दूरप्रकर-कथा*, मागु., गद्य, मूपू., (यतः येषां) ४४१४६, सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., गा. ६, पद्य, मूप., (उसभरसय पा) ७२७६(१)
२६२६-५८), ५४९०-५४, ५८२७-४७, १७९१-३२), १४८७सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१,
१८(६), ७५४४-८(5) ग्रं.१६७५, वि. १४२८, पद्य, मूपू., (अरिहाइ नवप) ३६७०). सुपासनाह चरिअं, गणि लक्ष्मण, प्रा., गा. ८६५०, ग्रं.१०१३८, वि. २५५९-१(+), ५९३७+5), २३८३, २६४९, ७७४२, ९३११, ५७२६, ११९९, पद्य, मूपू., (जयइ जुयाईज) ७४३७ ७८८४), २१२००, ४७०५७), ६६६९७), ७२९९७)
सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह', सं., पद्य, (विद्यालक्ष) २०७-२), (२) सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरी, मु. हेमचन्द्र, सं., ग्रं.४०२२, ९०६८-२), २५६५-२६), ११२२+5), ११६६-२, १११७-३ गद्य, मूपू., (ध्यात्वा) ९३११
सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., श्लोक ७१५, ग्रं.२५५१, (३) श्रीपालराजा रास, मु. लालचन्द, मागु., ढाल ४७, गा.
पद्य, जै., (दानं सुपात) ८२३९(+, ३३७३-२(45), ८१३४(45), १५३५, वि. १८३७, पद्य, मूपू., (स्वस्ति) २३८४
८५४५(45), ६७५६, ५५५५, ४१०५-१९७), ८२३७६६), ८३२५६), (२) सिरिसिरिवाल कहा-अवचूर्णि, वा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं.४०२२, वि. १८६९, गद्य, मूपू.. (ध्यात्वा) ७७४२
(२) सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह - बालाबबोध, मागु., गद्य, जै., (--) (२) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (-) ६६६९) । ८५४५५६) (२) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (अरिहन्त | (२) सूक्तावली-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (सकल क० समस) आद) २३८३, २१२०१६)
३३७३-२(45), ४१०५-१७) (२) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (अरिहन्त) सुभाषित सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, जै., (चत्वारोनरक) २५५९-१(4)
८०७७(5) (२) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहन) सुभाषित सङ्ग्रह-, सं.,मागु.,प्रा., पद्य, (-) ९१९९-२ २६४९
सुभाषित सङ्ग्रह', सं., पद्य, (नागो भाति) २९१५-२(45), ७५९-२ (२) श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., ढाल ४०, ग्रं.११३१, वि. (२) सुभाषित सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (घणा घणा सा)
१७२६, पद्य, मूपू.. (सकल सुरासु) ३१३, ९२०७-१, २२९० ७५९-२ सीमन्धरजिन स्तव, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., श्लोक ५, पद्य, सुभाषित सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., प+ग, जै., (ॐकारबिन्द) मूपू., (जयश्रियाढ) ६०४२-१६(5)
७५६४ सीमन्धरजिन स्तोत्र, सं., श्लोक ८, पद्य, पू., (त्रैलोक्यप) सुभाषित सङ्ग्रह", सं.,प्रा.,मागु., पद्य, जै., (-) ८८८७+5), २३३७-१२(4)
७३९१-१(5) सीमन्धरजिन स्तोत्र, आ. रूपसिंह, सं., श्लोक ५, पद्य, जै., सुभाषितार्णव, सं., पद्य, जै., (चन्द्रनाथ) २७५३ (अनन्त कल्य) २३३७-६(+), १११७-१३
सुभाषितावली, प्रा., गा. ३१, पद्य, मूपू., (इन्दियत्तं) ४१०५-२(5) सीलाङ्गरथ १८ हजारमाङ्ग, प्रा.,मागु., गा. ५, प+ग, मूपू., (२) सुभाषितावली-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (पाञ्च इन्द) ४१०५
(सीलङ्गाण) ७५३९-२ सुकुमालस्वामी चरित्र, मु. ब्रह्मजिनदास, सं., सर्ग ९, श्लोक सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., ४ वर्ग, वि. १७५४, पद्य, ११००, पद्य, दि., (-) ३००(+)
मूपू., (सकलसुकृत्य) २०७-१(+). १८१०-१(4), ७६४, १०५९, सुक्तावली, सं., गद्य, मूपू., (--) ८२९७+5)
१२४७, १८११, १८७८-१, १८८५, १८९२, ३५५१, ७७६९, सुखसम्पतिव्रत कथा, सं., श्लोक ४३, पद्य, दि., (जितघातीन्) ८५५३-१, ५६५-१, ९२४९, १८४७,७७१८,३८१९, २९४१६००२-२३६)
१(#5). ७१३३(5), ७१४७६), ७१९५(६), ७८३६(5), ९०३८(5) सुगंधदशमीव्रत कथा, सं., श्लोक ९६, पद्य, दि., (श्रीसन्मति) | (२) सूक्तमाला-बालावबोध, मु. प्रतापविजय, मागु., गद्य, मूपू., ६००२-३८(4)
(तदनुक्रम) ७६४,३८१९, ७८३६(७) सुधर्मोपदेश, सं., श्लोक १०८, पद्य, मूपू., (लज्जातो भय) १८५१ । (२) सूक्तमाला-बालावबोध*, मागु., गद्य, जै., (सकल सर्व) २०७(२) सुधर्मोपदेश-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (हिवे धर्म) १८५१
१(+), ७७६९
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संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१
४९९
४६७०(48)
५४७४(5)
(२) सूक्तमाला-कथा, मागु., ६९ कथा, गद्य, मूपू., (श्रीआदेश्व) ७७६९
(२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सद) (२) सूक्तमाला-कथा*, मागु., गद्य, मूपू.. (-) ७८३६ (5) सूक्तमुक्तावली, सं., ४ वर्ग, पद्य, मूपू., (अर्थार्थवर) ४८६८ (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, (२) सूक्तमुक्तावली-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (-) ४८६८
मूपू., (प्रणम्य सद) १२९(+), ३७५६(+), ४०६८(+), ५२५९(+), सूक्तावली, सं., श्लोक १३८, पद्य, जै., (राज्यं निः) ३३३०), ७८११), २६८६(45), ८८९(45), ७९५, ९५१,३८५३, ७६८५, ९९०-२(+). ९०४२, १२१५६), ७९१४(5)
२०४०), ८७७९६७), ९०६९६), २०४१(5) (२) सूक्तावली सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (राज्य प्रध) (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ९३०८७) ३३३०(+), ९९०-२(+), ९०४२
(२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (बुज्झि० छक) सूक्तावली, सं.,प्रा.,मागु., श्लोक २६०, पद्य, मूपू., (वीरं विश्व) १४०+), ३३२५), ४४४४).६२५५(+), ८३४३(+), ४०१०+), ३४७५(+), २५७०-१), ३०७३-१
११८(१), १२४). ५४५८(+5), ६५६७५६), ५४३१(45), ८०३९(45), सूक्तावली, प्रा., पद्य, जै., (वरअग्गिमि) ३५२४(45)
७९७५+5), १०१, ४३८१, ७१५६७), ६२४५(६), ६४५४(5) सूक्तावली सङ्ग्रह, सं., श्लोक ३०, पद्य, (आज्ञाभङ्गो) ९९०-४+7 (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (बुझि नइ छक) सूक्तावली सङ्ग्रह, मागु..प्रा., गा. १०७४, पद्य, मूपू., (कीजइ ३७०३४),४६५८), १२१(45), ४०२८(45), ४१६९(१), ११०४, धर्म) ८८५३)
४०३५ सूक्ति सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, मूपू., (धर्मतः सकल) ९३८(9) (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, सूतक विचार, सं., श्लोक ६, पद्य, (सूतकं वृद) ७६७२-६ ___प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिंसुण) १५९४-१९+), ४०७३(+), सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्याय २३, ग्रं.२१००, १४८०-१+१), ८४-२(45), २३१०, ५९०६-१, ८४६६-२, १७८१
प+ग, मूपू., (बुज्झिज्ज) ६६२(+), ८१९), १२९(१), १४dit). ३३२२+), ३७०२). ३७५६(५), ४०६८), ४१६९(१), ४४४४+), (३) सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा महावीरजिन स्तुति-अध्ययन का ४६५८९५), ५२५९०, ६२५५(+), ७८११(+). ८३४३(+), ४०१०), टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (पु० पुछता) ४०७३(+), १४८०-१(+#) ११८(१), १२४+१), ५४५८(+5), २६८६(45), ५१५४(45), ७१२०(+६), ८४-२(45), २३१० ६५६७+६), १२१(48), ८८९(+5), ४०२८(45), ४६७०(45), ५४३१(45), | सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., २० प्राभृत, ग्रं.२२००, गद्य, मूपू., (नमो अरि०) ८०३९(45), ७९७५४+६), ६५५, ७४७३, ९०८५, ७९५, ९५१, १०१, | २२९१(+), ५९९३(+), ८८५(+), ९१४६, १०३६, ४५८३, ६६८(5) १०९९, ११०४,३८५३,४०३५,४३८१,७४६४,७६८५,७९७१, (२) सूर्यप्रज्ञप्ति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं.९०००, गद्य, २०४०), ३८३५६६), ५४७४(5), ७१५६(5), ८७७९(६), ९३०८(s), मूपू., (यथास्थितं) १३३(७), ६६८६), ९२३५(६), ९२७७(5) ६२४५९६), ९०६९६), २०४१(६), ६४५४(६) ।
सूर्यशतक, कवि मयूर, सं., श्लोक १०१, पद्य, वै., (जम्भारातीभ) (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २०५, | ६४८४(+ पद्य, मूपू., (तित्थयरे) ६५५
(२) सूर्यशतक-अवचूर्णि, मु. मुनिचन्द्रसूरि-शिष्य, सं., गद्य, मूपू., (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., ग्रं.७०००, (भानवीयाः) ६४८४१ वि. १५८३, गद्य, मूपू.. (प्रणम्य) ६६२(+), ७४६४
सूर्याष्टक, कवि सिंह, सं., श्लोक १५, पद्य, वै., (रक्तवर्ण) (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-बृहद्वृत्ति#, आ. शीलाङ्काचार्य, सं.,
६५१२-७(45) ग्रं.१२८५०, वि. १०वी, गद्य, मूपू., (स्वपरसमयार) ६५५, ६६३, सौभाग्यपञ्चमीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (जीवानां सर) २४६-२, ३८३५(5)
२३२१-२ (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-सम्यक्त्वदीपिका टीका, उपा. साधुरङ्ग, स्तुतिचतुर्विंशतिका, वा. क्षमाकल्याण, सं., २४ स्तुति जोडा, सं., अध्याय २३, वि. १५९९, गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर)
श्लोक ७७, वि. १९वी, पद्य, मूपू.. (सद्भक्त्या ) २८४५), ७१२०(45)
३४५३, ५१०३, ८९७३ (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., २४ स्तुतिजोडा, श्लोक (सूत्रकृतमि) ३४७२-९(+)
९६, पद्य, मूपू., (भव्याम्भोज) ४२२४(+), ४६३३-१(4). ५९२९(+), (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध*, मागु., गद्य, मूपू., (-)
३३५३६५), ३३६५(+), ७२०९(+), ७३३७+5), ५०४५, ८९०३, ८९५२, ९१०८, ७४९४, ९०८१, ५०६०, २७३७, ३३९९),
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५००
४११०("), ६०५४(*), ७२७८ (5), ७९१३(७), ६९०३ (ड), ७८५९(३) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-टीका, सं., गद्य, मृपू. (भव्यामुक्त) ९०८१ (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका- अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., ( धनपालपण्डि) २३६५ ७३३७ ८९०३ (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-टबार्थ *, मागु., गद्य, मूपू., ( श्रीमत् ...)
(+$)
"
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७४९४
स्तुतिधीनीसी, वा. पुण्यशील, सं., २४ स्तुति जोडा, पद्य, मृपू.. (ऋषभ योगीश) ६९४९ (+$)
"
स्त्री ६४ कला नाम, सं., गद्य, जै., (नृत्यौ ऊचि) ३६९४-३१) स्त्रीयोनि जीवोत्पत्ति गाथा, प्रा. सं. गा. ७, पद्य, ग्रुपु (इत्थी जोणी) ६०२२
स्थविरावली, प्रा., गा. ५०, पद्य, मृपू., ( सावज्जं जो) २७८२-११३ स्थान गुणण विचार, सं., मागु श्लोक ६, प+ग, जै.. (थानक माहे) ८३८६-२(+)
स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., १० स्थान, ग्रं. ३७००, प+ग, भूपू.. (सुर्य मे आउ) ९५१) ६५०११ २१९४९ ४३६६०) ५४९४ २२४९-१११ ६५६५० २६४१११ ६४४२० ६९२२०४, ७०९११००१ ८२२४०० २९६०/०७१ ७२१०० ६२४१ (+), ९२८२, ६४८ (#$), ६९१२($), ८७४०(s), ६५४) (२) स्थानाङ्गसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि सं. १०स्थान, ग्रं. १४२५०, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं) २१९७ (+), ६९२१०६ ९२८२६४८) ८७४०कि ६५४जी
.
(२) स्थानाङ्गसूत्र- दीपिका वृत्ति, गणि नगर्षि सं. १० स्थान, ग्रं.१४१००, वि. १६५७, गद्य, मूपू., (प्रणतसुरास) २६४१ (+) (२) स्थानाङ्गसूत्र- विषमपदपर्याय टिप्पण, सं., गद्य, मृपू., ( पालयति वेत) ३४७२-११ (+)
(२) स्थानाङ्गसूत्र-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू., (--) ६५६५१) (२) स्थानाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मृपू., (नत्वा स्था) ६९१२($)
(२) स्थानाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मृपू., (श्रीसुधर्म) ४३६६ (+) (२) स्थानाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. मेघराज, मागु, ग्रं. १३५००, गद्य, मूपू., ( श्रीमद्वीर) ९५ (+), ८२२४(+$)
(२) स्थानाङ्गसूत्र- बोल, मागु., गद्य, मूपू., (एगे अरिहन ) ९२२९ स्थूलभद्र चरित्र, आ. जयानन्दसूरि, सं., श्लोक ६८४, पद्य, मृपू... (वीरोदर्यः) ३४७८ ७२४४२६७२१
"
(२) स्थूलभद्र चरित्र - टवार्थ, मु. अमृतसागर, मागु, गद्य, भूपू.. (श्रीवीर) ३४७८१*)
स्नात्रपञ्चाशिका, गणि शुभशील, सं., श्लोक ५०, पद्य, मूपू.. (प्रणम्य ) १४५४, ७६७४-१, ८७०३९
($)
(२) स्नात्रपञ्चाशिका बालावबोध, मागु., गद्य, भूपू (प्रणम्य क० )
"
१४५४, ८७०३(३)
(२) स्नात्रपञ्चाशिका - बालावबोध, गणि जिनहर्ष, मागु, गद्य,
मृपू.. (प्रणम्य कह) ७६६७४-१
"
(२) स्नात्रपञ्चाशिका - कथा, मागु, ५० कथा, गद्य, भूपू., (श्रीपुर नग) १४५४
(२) स्नात्रपञ्चाशिका - कथा, गणि जिनहर्ष, मागु., ५० कथा, गद्य, मूपू., (श्रीपुर नग) ७६७४-१
7
स्नात्रपूजा विधिसहित पं. रूपविजय, मागु.प्रा. पद्य, मूपू.. (मुक्तालक) ७५९७
स्नात्र पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, सं. मागु., पद्य, मूपू., (सरसशान्ति ) १७५३-१
स्नात्रपूजा सङ्ग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, सं., प्रा., मागु., प+ग, मृपू.. ( नमो अरिहन ) ८४१६१०१, ४४९०-१, ५८९९-११, ७८६२, ८६२२, ३१२२-१६४२०-२
"
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
""
स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचन्द्रसूरि, सं. ४ उल्लास, पद्य, मृपू.. ( श्रीशारदा) ९२७१
(२) स्यादिशब्दसमुच्चय- दीपिका अवचूरि, आ. अमरचन्द्रसूरि सं.. गद्य, मूपू., ( श्रीशारदाम) ९२७१
स्वयम्भू स्तोत्र, आ. समन्तभद्राचार्य, सं., श्लोक १४३, पद्य, दि., (स्वयम्भुवा) ११५९
(२) स्वयम्भू स्तोत्र-क्रियाकलाप टीका, आ. प्रभाचन्द्र, सं., २ परिच्छेद, गद्य, दि., (स्वयं परोप) ११५९ स्वरोदयज्ञान, शिवपार्वती, सं., श्लोक १४४, पद्य, (अथान्यतः ) ९५६
(२) स्वरोदयज्ञान-भाषाटीका, मु. लालचन्द, हिन्दी, वि. १५५३, गद्य, मुपू., (अब मैं स्व) ९५६ हरिवंशपुराण, आ. जिनसेनाचार्य, सं., सर्ग ६६. शक. ७०५ पद्य, दि., (सिद्धं घ्र) ३२५५०
(२) हरिवंश ढाल, मागु., गा. ११, पद्य, (एक उगे एक) ३१२९
४४ (३)
हरिविक्रम चरित्र, आ. जयतिलकसूरि स. सर्ग १२ श्लोक ४७५०, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्था ) ३७२ (+)
हरिश्चन्द्र कथा, सं., श्लोक ४७३, पद्य, (यद्दुरं यद) ३३९० हस्तसञ्जीवन, उपा. मेघविजय, सं., श्लोक २८३, ग्रं. ५२५, पद्य, मृपू. (स्वस्ति) १६८२ ६६९१
(२) हस्तसञ्जीवन- टिप्पण, सं., गद्य, ग्रुप्पु, (अद्गविद्या ) ६६९१ हिड्गुल प्रकरण उपा. विनयसागर सं., श्लोक १८०, पद्य, भूपू
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(श्रीमच्छ्र) २७७३
हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय, सं. ४प्रकाश, गद्य, मूपू., (स्वस्ति) ९००९१० ५२६५
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५०१
संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) हीरप्रश्न-बीजक, सं., गद्य, मूपू., (तत्र प्रथम) ९००९(१),
५२६५ हुण्डकचोर कथा, सं., श्लोक ४८, पद्य, जै., (पापिष्ट चौ)
८९८१-५(4) हेमदण्डक, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीवभेया सर) २४२९१),
३१३५-२ (२) हेमदण्डक-भाषाटीका, मु. ज्ञानसार, मागु., गा. १०७, वि.
१८६१, पद्य, मूपू., (जो ध्रुव) २४२९(+) । (२) हेमदण्डक यन्त्र, प्रा.,मागु., कोष्टक, जै., (-) ३१३५-१ हैमलिङ्गानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., __ अध्याय ८, श्लोक १३९, वि. १२वी, पद्य, मूपू.. (पुल्लिङ्ग)
९२७३(१), ५८९२(4) (२) हैमलिङ्गानुशासन-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नामेति वक)
९२७३(+) होलिकापर्व कथा, सं., श्लोक ६५, पद्य, मूपू., (ऋषभस्वामिन)
६०८५-७+5), १४३५ (२) होलिकापर्व कथा-टबार्थ, प्राहि., गद्य, मूपू., (ऋषभस्वामी)
१४३५
होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., श्लोक ५३, पद्य,
मूपू., (वर्द्धमानज) २३६३-३(+), ६२६०, ८०६६ (२) होलिकापर्व कथा-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर)
२३६३-३(45) (२) होलिकापर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ६२६० होलिकापर्व प्रबन्ध, गणि पुण्यराज, सं., श्लोक ३४, वि. १४८५,
पद्य, मूपू., (प्रणम्य सम) ६२७२, ८८९४ (२) होलिकापर्व प्रबन्ध-टबार्थ, मु. कान्तिविजय, मागु., गद्य, मूपू.,
(नमस्कार कर) ६२७२ (२) होलिकापर्व प्रबन्ध-स्तबक, मु. कान्तिविजय, मागु., वि.
१७९२, गद्य, मूपू., (सम्यक् यथा) ८८९४ होलिकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३५, गद्य,
मूपू., (होलिका फाल) २७३०-२+#), ६०८५-६(5) होलीपर्व कथा, सं., श्लोक ५०, पद्य, दि., (वर्द्धमानं) ६००२-५२) होलीरजपर्व प्रबन्ध, गणि फतेन्द्रसागर, सं., श्लोक १३९, वि.
१८२२, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) २७७०(+), १०००, ५३४८ (२) होलीरजपर्व प्रबन्ध-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमा)
२७७०+), १०००, ५३४८
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५०२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
मा.गु., प्राचीन हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती आदि देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट
४ कषाय गीत, प्राहिं., गा. ८, पद्य, जै., (दम का नहीं) ६०४९- ४ शरण, मागु., गद्य, मूपू., (हिवै चार) ७८५०-१७) १३
४ शरण फल, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (च्यार सरणा) ७५५१४ कषाय चौढालिया, मु. धनिदास, मागु., ढाल ४, वि. १९०९, १५) पद्य, जै., (क्रोध म कर) ३३४०-१
४ शरण सज्झाय, कवि विजयभद्र, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., ४ कषाय पद, मु. चिदानन्द, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जैन धर्म) । (पहिलो मङ्ग) १३४१-१५) २३४२-१२१, २३४२-१५५
५ अपथ्य कवित्त, कवि गद्द, मागु., गा. १, पद्य, जै., (प्रथम ४ कषाय परिहार, मागु., गा. २, पद्य, जै., (परनन्द्या) ८४४२-२ अपत) १४८९-१४ ४ गति वेलि, मागु., गा. १३५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (आदिदेव ५ इन्द्रिय चौपाई, प्राहि., ढाल ६, गा. १५४, वि. १७५१, पद्य, अरि) ५६१३, ४६५३
मूपू.. (प्रथम प्रण) ५३३२-१ ४ गारव कथानक सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (गारवेसु गा) | ५ इन्द्रियविषय पद, मु. जगराम, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (भोग ६८०६-२
दुखदाई) २३४२-१७ ४ गोला चौढालिया, मु. धनिदास, मागु., ढाल ४, वि. १९०७, | ५ इन्द्रिय सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काम पद्य, जै., (शान्तिनाथज) ४५१४-१
अन्ध) १७९५-३७, ७५६२-१३, ३१३०-३८ ४ ध्यान वर्णन, प्राहिं., गद्य, जै., (ध्यान चार) ४८०५-३
५ इन्द्रिय सज्झाय, मु. धनदास, मागु., गा. २१, वि. १९१५, पद्य, ४ निक्षेप विचार, मागु., गद्य, मूपू., (पिस्तालीस) ५०४९५५ । जै., (काया कोट) ६०५७-६ ४ प्रत्येकबुद्ध रास, मागु., पद्य, मूपू., (जिण चुवीसह) ६८०८ ५ इन्द्रिय सज्झाय, मु. हेमविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., खण्ड ४, (श्रीजिनधर) २८५-६२)
ढाल-४५, गा. ८६२, ग्रं.११२०, वि. १६६५, पद्य, मूपू., ५ कारण छढालिया, उपा. विनयविजय, मागु., ढाल ६, गा. ५८, (सिद्धारथ) ९९५), ६७७१(१), ७०४३(१), ९१००/-), २२९३+#S), वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ) ६३८३", ३६१९-२, ६००१७८४६, ९२२४, ५६४१७, ६३८९(5)
४४, ६०७४-४, ६२८९, ६०३९-१७ ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ५, ५ ज्ञान पूजाविधि, राज., प+ग, मूपू., (ज्ञानं स्य) ३९१८-२
पद्य, मूपू., (चिहुं दीसथ) ७६९-७, ६७०९-३२, ७५६२-२५ ५ ज्ञान विचार, मागु., गद्य, मूपू., (मतिज्ञान) ५०७१ ४ प्रहर वर्णन, मागु., गा. ४, पद्य, (पहिलो पोहर) ५४७-२ ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., ढाल ९, वि. १८३४, ४ मङ्गल पद, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज घर नाथ)
पद्य, मूपू., (श्रीस्याद) ६००१-५ ६०१७-३
६ आरा बोल, मागु., ग्रं.१८०, गद्य, मूपू., (दस कोडाकोड) ४ मङ्गल पद, मु. उदयरत्न, मागु., गा. २०, पद्य, मूपू..
४३१३, ७८९४ (सिद्धार्थ) ६०९१-८२), ७५६५-८६)
६ दर्शन विचार, मागु., गा.६, पद्य, म्पू., (जैन दर्शन) २५७०४ मङ्गल पद, मु. सकलचन्द, मागु., गा.७, पद्य, मूपू.. (आज २), ३०७३-२ म्हारै) ६०३३-४
६ द्रव्य विचार स्तवन, मु. हेम, मागु., गा. ४७, पद्य, मूपू., (सिद्ध ४ मङ्गल रास, ऋ. जेमल, राज., ढाल ४, गा. ११०, पद्य, जै., | नमुं) ३६१९-१ (अनन्त चोवी) २११४-२(+9, १५८७, १७३६
| ६ द्रव्य स्वरूप, मागु., गद्य, मूपू., (पहीलों जीव) १८९० ४ मङ्गल शरण, ऋ. चोथमल, मागु., गा. १२, वि. १८५२, पद्य, | ६ संवर सज्झाय, राज., गा.६, पद्य, जै., (पहिलो संवर) ६०६४
जै., (पो उठीने) ७५५०-५६ ४ मङ्गल सज्झाय, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (मङ्गलीक पह) ७ निह्नव वर्णन, मागु., गद्य, मूपू., (क्षित्रीकु) ६८०६-४ ___७५५३-४१)
७ वार सज्झाय, धनदास, मागु., गा. ८, पद्य, जै., (अतवारने ४ मङ्गल स्तवन, प्राहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (च्यारु मङ)
आत) ४७९७-३ ७ वार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू.,
२७९२-१०
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५०३ (सीखामण सद) १७९५-१४
१० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मागु., गा. २१, पद्य, मूपू.. ७ व्यसन सज्झाय, मागु., गा. ८, पद्य, जै., (काया कामण) (स्यादवादमत) ८३८०-३, ६०८७-२७) । ३१३०-४३
१० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., ढाल ११, गा. ७ व्यसन सज्झाय, मु. जयरङ्ग, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर १३६, पद्य, मूपू., (सुकृत लत्त) ५४६६, ८२०३० __उपगारी) १७९५-२०, ७५६२-१७, ६००४-११७, ६०८७-१४६) १० लक्षणव्रत कथा, मु. ज्ञानसागर, मागु., गा. ५५, पद्य, दि., ७ व्यसन सज्झाय, ऋ. धर्मसी, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सात (प्रथम नमन) ६४२३-१)
व्यसनन) ६००१-४०,६०३७-४, ६००४-५९७, ३१३०-२७) १० स्थान बोल-आनन्दादि दशश्रावक, मागु., गद्य, जै., (मन ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, मूपू.. (मूल कर्म)
ठामि रा) ३४०७, १७८० ४९१७, २५०९, ३२४६, ३४४७-१, ४०२१, ४०६०, ४१३२, ११ अङ्ग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., ११ ५०७०, ५५४६, ५९९१-१, ६८७३, ८९७४, १०८४, २१७६,
स्वाध्याय, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (आचाराङ्ग) १७०६, ६००१५०५६-१७, ७६६८(5)
२६, ७८३९, ६०६७-३१० ८ कर्म ६२ बोल, मागु., गद्य, जै., (पढमं नाणाव) ३३५२१) ११ अङ्ग सज्झाय, मु. विनयचन्द्र, मागु., ढाल १२, वि. १७५५, ८ कर्म दृष्टान्त, राज., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी) १७३७-३ __ पद्य, पू., (पहिलो अङ्ग) १४२३-१६, ७६९५७) ८ कर्म विचार, मागु., गद्य, जै., (ज्ञानावरणी) ३५९२), ८९९३- ११ गणधर देववन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, मूपू..
(बिरुद धरी) ७८६६ ८ प्रकारी पूजा, मागु., पद्य, मूपू., (स्वस्ति) ३११५-२
११ गणधर भास, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, मूपू., ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मागु., ढाल ९+कलश, गा. ७७, (पहिलो गणधर) २३३८-७, ६४२१-२१
वि. १८२१, पद्य, मूपू., (अजर अमर नि) ३९९३), २६५, ११ गणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., ५००२, ८४३८, ८४७३
(वीर पटधर) ६०४७-२+8) ८ प्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मागु., वि. १८५८, पद्य, मूपू., ११ प्रतिमा सज्झाय, मु. ललितविजय, मागु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरस वचन रस) १७५३-२
(गुरुजी कहै) २८५-५८६ ८ प्रकारी पूजा दुहा, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्नात्र कर) ११ मिथ्यात्त्व नाम, मागु., गद्य, मूपू., (१ अभिग्रहि) ८६५५-२ ४४०२-२)
१२ आरा रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., ढाल १२, गा. ८ प्रकारी पूजा-पिस्तालीसआगमगर्भित, पं. वीरविजय, मागु., वि. ७७, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवत) ७१९९७
१८८१, पद्य, मूपू., (श्रीशद्धेश) २६०७), ८४६२), ३९३७, | १२ देवलोक नाम, मागु., गद्य, जै., (पहिलो सौधर) १८१८-२ ८४७४
१२ पर्षदा विचार, मागु., गद्य, म्पू., (अग्निकूण) ८८९५-२ ८ प्रकारी पूजा रास, वा. उदयरत्न, मागु., ढाल ७८, वि. १७५५, १२ भावना, मागु., गद्य, जै., (प्रथम अनित) ३०७६-२)
पद्य, मूपू.. (अजर अमर अव) ३२०, ३१९, १८५०, ८६६६-१ | १२ भावना, उपा. जयसोम, मागु., ढाल १२, गा. ७२, वि. १६४६, ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. १४, पद्य, पद्य, मूपू., (आदीसर जिणव) ८५२-१ मूपू., (प्रणमीय सर) ६००१-२८
१२ भावना, मु. धर्मरुचि, मागु., गद्य, मूपू., (पहिलि अनित) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., ढाल २४३३
८, गा. ७६, पद्य, मूपू., (शिवसुख कार) ४०६, ५११६**), १२ भावना पद, राज., १२भावना, पद्य, मूपू.. (हे रे जीव) ३०६९ ४१०८, ६००१-२२, ११४५७)
१२ भावना बारमासो, ऋ. रतनचन्द, मागु., गा. १५, पद्य, जै., (२) योगदृष्टि सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., (श्रीजिनपद) २६७६-३(+) ___ गद्य, मूपू., (ऐन्द्रश्रे) ५११६(4)
१२ भावना विलास, गणि लक्ष्मीवल्लभ, मागु., गा. ५२, वि. १० का ३५ बोल, मागु., गद्य, मूपू., (पहले बोले) ८५३
१७२७, पद्य, मूपू., (प्रणमि चरण) ६१२३-१) १० त्रिक स्तुति, मु. क्षमाविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., १२ भावना सज्झाय, मागु., गा. १२, पद्य, जै., (जीव सुलक्ष) (निसिहि त्र) ६०७३-१७
३०४१-३ १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दसविह | १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., ढाल १३, गा. १२८, प्रह) ६०६४-५९७, ६०८७-२०७, ६००४-६४६)
ग्रं.२००, वि. १७०३, पद्य, मूपू.. (पास जिणेसर) ९३७-१, १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचन्द्र गणि, मागु., ढाल ३, १३१५, १५९८, ६००१-२०,६११९, ६२५७, ६४४५, ८०६३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनन) ३४४७-३
८४४२-१,८४६४, ८४९८,८८९९,८९६७,३८८८
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५०४
१२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., ढाल १४, पद्य, मूपू., (विमल कुल) ३९६७, ५९५४, ८३४८ (३)
१२ व्रत कथानक, मागु., गद्य, जै., (समकित सूधउ) ६८०६-१ १२ व्रत टीप, मागु, गद्य भूपू (प्रथम सम्य) ३३५६-११
१२ व्रत टीप, गणि उदयसागर, राज., गद्य, मूपू., ( सदा सिद्ध) ५०६९, ५३६२, ५८२९, २६३१९
($)
१२ व्रत टीप, मु. उद्योतसागर, मागु., गद्य, मूपू., (सदा सिद्ध) ४८३३१
२
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"
१२ व्रत पूजा विधि, मागु., गद्य, मूपू., (विसाल जिनभ) ६१९५
($)
१२ व्रत पूजा विधि, मु. वीरविजय, मागु, गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (उच्चैर्गुण) ९०१५ (+), ९०७६ (+), ४२२०, ४८१९,
($)
५०२९, ८४६३, २७५
१२ व्रत विचार, मागु., गद्य, मुपू., (पहिला समकि) १४९०-११ १२ व्रत सज्झाय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अनन्तज्ञान) ११७६२९
१२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मागु., ढाल १२, पद्य, मुपू., (जिनवाणी धन ) ३९०५
१२ व्रत सज्झाय, मु. विनयविजय, मागु, परा, ग्रुपु. ( श्रीगौतम) ६००१-३९, ६०३७-३, ६००४-६० (क)
४०
(+$)
१२ व्रत सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. १५, वि. १६८२, पद्य, मुपू., (श्रावकना) ७५५५-२७ + १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मागु., गा. ७, पद्य, भूपू., (आलस पेलो) १७९८-५
१३ काठिया सज्झाय, गु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मागु., गा. १५. पद्य, सूपु. (पहिला प्रण ) २९४६-४१ २८५-४२-१, ६०८७
"
($)
१३ काठिया स्वरुप, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., वि. १८वी, गद्य, मूपू., ( अथ हवें) ९०१०
१४ गुणठाण वचनिका, मागु. गद्य, जै., (ते माहि) ३४११ १४ गुणठाणा २५ द्वार, मागु., गद्य, मूपू., (नामद्वार) ४३०३-१, ८७०५, ७९८७९
($)
१४ गुणठाणा ४१ द्वार, मागु., गद्य, जै., (नाम द्वार) ५१०८ १४ गुणठाणा यन्त्र, मागु., यंत्र, जै., (-) ३६२६-२, ४५१३-२, ६६३६
""
१४ गुणताना विचार माग गद्य, जै.. (तत्र प्रथम ) ३४६३-२ १४ गुणठाणा विचार, मागु, गद्य, जै. (बन्धप्रकृत) ४३५-१ १४ गुणठाणा विचार, मागु., गद्य, मूपू., ( श्रीसर्वज) २९२६, ८०१२ १४ गुणठाणा विचार, प्राहिं गद्य, भूपू (नामद्वार) १८०९ १४ गुणठाणा सज्झाय, मु. मणिविजय, मागु., १४ सज्झाय, पद्य,
""
मृपु. ( ज्ञानिवाकर ) ९१६४-२
१४ गुणठाणा सज्झाय, मु. ललितविजय, मागु., गा. १५, पद्य,
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
मूपू., ( पहिलुं गुण) २८५-५७ (+5)
१४ गुणठाणे कर्मबन्धउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मागु, गद्य, मृपू. (-) ९२४३
१४ चौद समूर्च्छिमपञ्चिन्द्रियउत्पत्तिस्थानक जीव सज्झाय, मु. धर्मदास, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., ( गौतम गणधर ) ६०८७१६
१४ नियम सज्झाय, मागु., गा. २०, पद्य, मूपू., ( सारदाय प्र) २०७५-२
१४ पूर्व विषय और लेखनप्रमाण, राज, गद्य, भूपु. ( उत्पात पुर) ४२९५-२
१४ बोल, मागु, गद्य, भूपू.. (पेहेले बोल) ३२२१-२
१४ राजलोक सज्झाय, मु. देवविजय-शिष्य, मागु., गा. १०, पद्य,
($)
मृपू., ( वागेस्वरी) ६०१७-२२
१४ लब्धि विचार, प्राहिं., गद्य, जै., (जे लक्षण) ६५५८-२
१४ स्वप्न विचार, मागु, गद्य, मूपु. ( स्वप्न पाठ) ३१५८
"
१४ स्वप्न स्तवन, मागु., गा. ७, पद्य, मुपू., ( प्रथम ऐराव) ६०६७हा
१५ तिथि ७ वार गीत, मागु., गा. ५, पद्य, जै., ( प्रथम तिथ ) ५८७३-५ *
($)
१५ तिथि ७ वार चरित्र, मु. लब्धिविजय, मागु., ढाल १५, पद्य, पु. ( श्रीमत् गी) ९९८
($)
१५ तिथि सज्झाय, मागु., गा. १७, पद्य, मूप्पू., (एकम कहै तू) ११७६-५५, ६२०३-२३१३०-४
($)
१५ तिथि सज्झाय, मु. धनसीराम, मागु., गा. १८, वि. १९१०, पद्य, जै.. (पनरा तिथि) ४७९७-२
१५ द्वार सूर्य प्ररुपणा, मागु., गद्य, जै., (ते १५ द्वा) ९१४३ ($)
१६ सती सज्झाय, मागु., गा. ५, पद्य, मुपू., (शीतल जिणवर) ६०५९-२५ ७५४२-१५ २४३२-६, ३१३०-७
($)
१६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मागु., गा. १७, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि) १५६७-१ १७८२-१४ ६०८७-१९
१६ सती सज्झाय, मु. टीकम, मागु., गा. १६, वि. १७७०, पद्य, जै., (श्रीऋषभ तण) ६०२६-२
१६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, मागु., गा. १४, पद्य, जै., (सील सुरङ्ग) ६७०९-८, ६०६४-२५२, ३१३०-१६
१६ सती सज्झाय, मु. मेघराज, मागु., १६ भास, पद्य, मूपू., (जिन गुरु) १२३८
१६ सती सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु, गा. ७, पद्य, मूपू., (सरसती माता) १४८४-१
($)
१६ स्वप्न सज्झाय, मागु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुपन देखी)
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११७६-३६
१७ प्रकारी पूजाविधि स्तवन, उपा. धर्मसी, मागु., गा. १९, पद्य, मृपू. (भाव भलै भग) ७५५५१/
"
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/प्रणय
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५०५ १७ भेदी पूजा, आ. विजयानन्दसूरि, मागु., १७ पूजा, पद्य, मूपू., | २० स्थानकतप विधि, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीदंयदर) २२३१-२+#), (सकल जिणन्द) ३३०२)
९३२, ६९४३-२ १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., ढाल १७, गा. १०८, | २० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, प्राहिं., प+ग, मूपू.,
पद्य, मूपू., (अरिहन्त मु) ४२७५, ५४२८, २६९-२, ८६०, । (अथ वीस स्थ) ३५४६, ८०३२-१ २७६३-३, ३९१५, ५१६१, ९०३९-१, ९००१-१, २०८४), २० स्थानकतप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., ढाल ६, गा. ६२३७)
८१, वि. १७६६, पद्य, मूपू.. (जिनमुखपंकज) ५०५५, ९०००(२) १७ भेदी पूजा-टबार्थ, मु. सुखसागर, मागु., गद्य, मूपू., (हवें स्नान) ५४२८(+)
२० स्थानकतप स्तवन, मु. भाणविजय, मागु., ढाल ६, पद्य, मूपू., १७ भेदी पूजा, मु. साधुकीर्ति, मागु., वि. १६१८, पद्य, मूपू., (भाव (प्रणमु प्र) ४४२८ ___ भले भग) ४३५८, ५३०२, ५७३३, ५७४९, ८४३६-३, ६९०९७) २० स्थानकतप स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., १७ भेदी पूजा रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., ढाल ९५, ग्रं.७२२५, (अरिहन्त पद) ६०३९-२०) वि. १७९७, पद्य, मूपू., (सुख सम्पति) ३५०८
२० स्थानकतप स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.. १७ भेदी पूजा स्तवन, मु. वीरविजय, मागु., गा. ३१, वि. १६५२, (विसस्थानिक) ६०३९-२१६) पद्य, मूपू., (वन्दी चौवी) १७९७-१
२० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मागु., वि. १८७८, पद्य, १८ नातरा ढाल, मागु., ढाल ४, पद्य, जै., (परबो कहकर) ७६९- पू., (सुख सम्पति) ५४६५, ६०६३-१७ ४५
२० स्थानक पूजा, पं. रूपविजय, मागु., ढाल २१, वि. १८८३, १८ नातरा सज्झाय, प्राहि., गा. ८, पद्य, जै., (एक ही माइ) पद्य, मूपू.. (सुरपति श्र) ५१०९, १६५६ ६०६४-७७६)
२० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., ढाल २०, वि. १८४५, १८ नातरा सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मागु.. ढाल ५, वि. १८१४, पद्य, मूपू.. (श्रीशोश) ३५३७५), ४९२६), ५१२७५), २२३१पद्य, मूपू., (वीर धीर गम) ३६११-१(+#)
१+#), १७०५६, ३२०१-१, ४५९८-१, ४९२७, ४९९९, ५१४७, १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, ७२६४-२, ७७१४, ६९४३-१, ७६७६
मागु., १८ सज्झाय, ग्रं.२११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक) २० स्थानकपूजा विधि, मागु., गद्य, मूपू., (वीस स्थानक) ३२०१२४०५, ४९४८, ८५२-२, १४८८-६, ६०३७-१, ७६६२,
२, ४५९८-२ ८९३४, २१००-१(45), ६००४-६१/)
२० स्थानक विचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल १३१, गा. १८ पापस्थानकपरिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मागु., ढाल १८,
३४०३, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धि) ३१७, ४९१०, ग्रं.३५०, पद्य, जै., (सुन्दर रूप) ५९१३, ५९३५, ६३५१,
७६१४ १४६८-१७
२० स्थानक स्तवन, मु. खिमाविजय, मागु., गा. १४, पद्य, मूपू., १८ भार वनस्पति भाव, मागु., गद्य, मूपू.. (त्रिण्य को) ७६७२-२ (सुअदेवी सम) २३६७-२ १८ भार वनस्पती गाथा, कवि शुभ, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., २१ प्रकारी पूजा, मु. उद्योतसागर, मागु., ढाल २१, गा.७१, वि. (प्रथम कोडि) ७६७२-३
१८२३, पद्य, मूपू., (स्वस्ति) ५६१०७ १८ हजार शीलाङ्गरथ, मागु., पद्य, मूपू., (जे नो करन) ४५१०- | २१ बोल, मागु., २१बोल, गद्य, मूपू., (हसत करम कर) ६०७१
.
..(5)
(२) १८ हजार शीलाङ्गरथ-यन्त्र, मागु., कोष्टक, मूपू., (-) | २२ अभक्ष्य ३२ अनन्तकाय सज्झाय, मु. आणन्दविजय, मागु., ४५१०-२
गा. ११, पद्य, मूपू., (समरि सान्त) ७७८१-२ २० बोल सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., गा. १९, वि. १८३३, पद्य, २२ अभक्ष्य ३२ अनन्तकाय सज्झाय, आ. देवरत्नसूरि, मागु., गा. जै., (किणसुं वाद) ११७६-४९, ६००८-१४, ३१३०-१७
१०, पद्य, मूपू., (जिनसासन रे) १४५१-१ २० स्थानक खमासणदान विधि, मागु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथ) २२ अभक्ष्य ३२ अनन्तकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मागु., ४३०७), ९००८, ३२३८
____ गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनशासन रे) २८५-२२+9, ७५५२-१५७) २० स्थानकतप काउसग्ग चैत्यवन, पं. पद्मविजय, मागु., गा. ५, | २२ अभक्ष्य ३२ अनन्तकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, मागु., पद्य, मूपू., (चोवीस पन्न) २३४०-६
गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनशासन रे) ६०८७-४१(६) २० स्थानकतप चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., गा. ५, पद्य, | २२ अभक्ष्य नाम, मागु., गद्य, मुपू., (वडोलीया पी) १३४१-१७+9) मूपू.. (पहेले पद) २३४०-२
२२ परिसह उदयहेतुभूत कर्म विचार, मागु., गद्य, जै., (चार
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५०६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
२७)
कर्म) १८१८-३
६२३३ २२ परिसह दृष्टान्त, मागु., गद्य, मूपू., (उजेणी नगरी) ४२१०- | २४ जिनलञ्छन चैत्यवन्दन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मागु., गा. ९,
___पद्य, मूपू.. (वृषभ लञ्छन) ६६३१-५5) २२ परिसह सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., ढाल २२, वि. १८२२, २४ जिन लावणी, मु. विनयचन्द, राज., गा. १२, पद्य, मूपू., पद्य, जै., (श्रीआदेसर) ६०२६-३, ६०५२-११
(समर समर जि) २७०२-२ २३ पदवी विचार, मागु.. गद्य, मूपू., (सात एकेन्द) २३१९-३, २४ जिन वन्दना पद, जादुराय, प्राहि., गा. ४, पद्य, जै., (वन्दु ४५०७-२
जिनद) २३४२-१४७ २४ जिन कुसुममाला पद, मु. जगतराम, राज., गा. ४, पद्य, २४ जिनवर्ण चैत्यवन्दन, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (सोल तीर्थङ) मूपू.. (जिनजी के) २३४२-१४८
८९६०-४ २४ जिन गणधर सङ्ख्या स्तवन, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., २४ जिन वर्ण दुहा, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (दोय गोरा) ७८०३
(पहिला वान) ४३११-२ २४ जिन गुण सवैया, कवि लाल, प्राहिं., पद्य, जै., (सरसत कुं) २४ जिन साधुसाध्वीश्रावक श्राविकासम्पदा सज्झाय, मु. करमसी, २४२४-२(१), २३८९-२)
मागु., गा.६, पद्य, जै., (चोवीस तीर) १७९५-१९ २४ जिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., २५चैत्यवंदन, गा. ७५, | २४ जिन स्तवन, मागु., गा. २५, पद्य, मूपू., (नाभिराय रा) पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं) ६२४२-१
६००८-१३ २४ जिन चैत्यवन्दन, पं. वीरविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., २४ जिन स्तवन, प्राहिं., गा. ८, पद्य, म्पू., (श्रीरिषभ) १८००-७) (शान्ति नमि) १११७-८
२४ जिन स्तवन, ऋ. खेमो, मागु., गा.८, पद्य, मूपू., (पहिला २४ जिन चैत्यवन्दन-भवसङ्ख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि,
प्रण) २३२५-४१ मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर) ६०४१-३९), ६०४२- २४ जिन स्तवन, मु. गणपति, मागु., गा. ९, पद्य, जै., (तव
जिणवर) ८९४३-२ २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. २४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.,
२४, पद्य, मूपू., (शत्रुजे) १६०-२(१), २६७५-९, ६०१७-३१, (प्रह समे) २८५-८४(5) ६०८०-२६, ६६०६-३७
२४ जिन स्तवन, मु. दुर्गादास, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ऋषभ २४ जिन दोहरा, मागु., गा. २४, पद्य, मूपू., (आदिनाथ अरि) अजित) ७५४२-१० ४९९३-१
२४ जिन स्तवन, मु. द्यानत, प्राहि., गा. २५, पद्य, जै., (राज २४ जिन नमस्कार, कवि ऋषभ, मागु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (--) वीषै) ६०६०-१७ ६४७८-२
२४ जिन स्तवन, मु. नन्द, मागु., गा. ७, पद्य, जै., (चतूर वीस) २४ जिन नमस्कार-अनागत, मु. विनितविजय, मागु., गा. २, पद्य, ८५१३-३ मूपू., (पद्मनाभि) ४४९०-४
२४ जिन स्तवन, ऋ. रतनचन्द, प्राहि., गा. १५, वि. १८७९, पद्य, २४ जिन पद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., जै., (श्रीऋषभजिण) ६०४९-२२-) (जीउ जपि जप) ७५५५-३१)
२४ जिन स्तवन, मु. साधुरङ्ग, मागु., गा. १४, पद्य, मूपू., २४ जिन परिवार सज्झाय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चोवीस (पहिलं प्र) १७८८-३(5) तीर) ७५५३-५
२४ जिन स्तवन, पाठक सोमसागर-शिष्य, मागु., गा. २४, पद्य, २४ जिन पूजा, मु. रामचन्द, प्राहिं., २४ पूजा, पद्य, मूपू., (सिधि पू.. (पहिलो प्रण) १७९७-५ बुधि) ९६०-१
२४ जिन स्तवन-अतीत, ऋ. लालचन्द, मागु., गा. १५, पद्य, जै., २४ जिन प्रथमगणधर प्रथमसाध्वी नाम, मागु., गा. २, पद्य, मूपू., | (अतित चोवीस) ८६३५-२ (उत्तम नर) २३१९-१
२४ जिन स्तवन-अनागत, ऋ. लालचन्द, मागु., ढाल २, गा. ३९, २४ जिन भास, मु. सेवक, मागु., २४ भास, पद्य, मूपू., (सरसति | पद्य, जै., (चोवीसे जिन) ८६३५-४ गजगत) ६१४२-३, ५८८७
२४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणन्द, मागु., गा. २४ जिन मातापितादि ७ बोल स्तवन, मु. दीप, मागु., गा. ३१, २९, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर) २३२५-११),
वि. १७१९, पद्य, जै., (श्रीजिनवाण) ६०६४-३८६), ७५५३-१२(8) १८०२-१, ६०३५-४६, ६०५१-११, ७५४८-१२) २४ जिन माता-पिता नामादि यन्त्र, मागु., कोष्टक, जै., (-) | २४ जिन स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (अष्टापदगिर) २६२६
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
३८
२४ जिन स्तुति आ ज्ञानविमलसूरि मागु गा. २९, पद्य, मृपू.. (ब्रह्मसुता) २४२४-११२३८९-१६६०६-१
($)
२४ जिन स्तुति, मु. परमसागर, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.,
( फलवधिपुर) ६०८८-१३
२४ दण्डक २६ द्वार विचार, मागु., गद्य, मुपू., (शरीर अवगाह) ४०५७+), २९४०-१(+), १६०६-१, ४५०७-१, ५३४५, ६३२४, ६३५६, ७५३५, ६३१३
२४ दण्डक २९ बोल, मागु गद्य, भूपू (प्रथम नामद) ३७८०
३४५२, ३५१९, ३९९२, ४३४२, ४४७८, ४६५१, ५१०४, ५४१६. ८३७१-१, ८५२६, ८५६२-१, ८९६८, ८५४, १०७०, ३४५१, ४४७४-१, ५११७, ३८१८
२४ दण्डक ३० द्वार विचार, मागु., गद्य, मुपू., (दण्डक लेश) ४४३७, ४६९१-१९, ४२८५, ४५१६. २७२३०
"
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२४ दण्डक ३० बोल विचार, आ. रूपजीवर्षी, मागु., पद्य, जै., (दण्डक १ ले) ११२८-१
२४ दण्डक ३५ बोल, मागु., गद्य, मूपू., (संसारी जीव ) १८७७ (+), ७७९-१
२४ दण्डक बोलसङ्ग्रह *, मागु., गद्य, मुपू., (दण्डक २४)
२४ दण्डक भेदगमा विस्तार, राज, गद्य, मुपू., (--) १४६२ २४ द्वार, मागु., गद्य, जै., (नामद्वार) ३४०९
२४ स्थानक, मागु., गद्य, मुपू., (गयन्दिय च) २३६-१
२४ स्थानक २४ द्वार, मागु., गद्य, मूप्पू., (गइ इन्दीय) ४३०३-२ २४ स्थानक चर्चा, मागु., गद्य, मूपू., ( एक इन्द्री) २३६-२ २४ स्थानक मार्गणा द्वार, मागु. कोष्टक, मृपू., ( गइन्दियकाए) १४०१७
"
($)
२४ हेमदण्डक द्वारयन्त्र, मागु., कोष्टक, मूप्पू., (-) २७५० (5) २५ बोल, मागु., गद्य, मुपू., (नरकगति १) ४२६३, ७१५२-१ २७ बोल, मागु., गद्य, मुपू., (पहिले बोले) ८८९५-१(क)
($)
२७ सती सज्झाय, मागु., गा. २९, पद्य, मूप्पू., (प्रह समै) ७५५३८ ($)
ぐ
२८ दण्डक बोल, मागु., गद्य, मूप्पू., ( प्रथम नाम) ११२३
२९ द्वार २४ दण्डक नाम, मागु., ग्रं. २८०, गद्य, मूपू., (प्रथम नामद) ८११६-२
(S)
३० बोल, मागु, गद्य, भूपू (कर्म आउनु) ७५०९-२
"
३० बोल सज्झाय, ऋ. लालचन्द, मागु., गा. ३०, पद्य, जै., (विनय करी) ६०५२-३
३२ अनन्तकाय विचार, मागु., गद्य, मूपू., ( कचूर हलदनी) ४३४६-२ (+), १३४१-१८ (+8)
"
३३ बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, भूपू (सात भये ४३८९ ६८३३, ७३६९
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५०७
३४ अतिशय, मागु., गद्य, मुपू., ( नमो अरिहन ) ४६९१-६ (+), ४६९१
(+)
३५ बोल, राज., गद्य, मृपू., (--) २१०(5)
३५ बोल, मागु., गद्य, मूपू., (पहेले बोले) ८८९६, ८६५५-१ ३५ वाणीगुण स्तवन, मागु., गा. १०, पद्य, मुपू., (वीर वाणी)
१४२८-३
५२ बोल थोकडो, मागु., गद्य, मूपू., (पहलौ बोल) ७६६१-३ (8) ५२ वीर छन्द, मु. उदयभाण, मागु., गा. १०, पद्य, भूपू., , (+S) (सरसति सरसत) ७५४७-९
६२ मार्गणाउदय यन्त्र, मागु., कोष्टक, मूपू., (अथ नरक गत ) २८३१, ४५२३-२
६२ मार्गणाद्वार विचार, मागु, गद्य, मूपु. (नमिज अरिह)
२७९६ (+), १४०८, २५२८, ४२६४-१, ४५१३-१, ५२३०, ५४४९, ४५२३-१(8), २८३० (), ८२५१(8)
६२ मार्गणा यन्त्र, मु. जीवविजय, मागु, कोष्टक, भूपु. (--) ९१४२-१
"
(२) ६२ मार्गणा यन्त्र- विवरण, मु. जीवविजय, मागु.. गद्य, ग्रुप्पू. ( नरकगति गुण) ९१४२-२
६४ प्रकाशपूजा विधि, मागु, गद्य, भूपू., (विशाल जिनम) ३८२६
२
६४ प्रकारी पूजा विधिसहित पं. वीरविजय, मागु वि. १८७४,
पद्य मुपु. ( श्रीशङ्खे) ८१९७, ३८२६-१
"
.
६८ आगम पूजा, कवि दीपविजय, मागु, वि. १८५६, पद्य, मृपू.. (प्रथम दिशा) ६५२प
८४ मार्गणा यन्त्र, मागु., कोष्टक, मुपू., (--) ७२३९
८४ लाख जीवयोनि विचार, मागु, गद्य, मुपु. ( बावन लाख)
"
५३७२-२
९९ प्रकारी पूजा शत्रुञ्जयमहिमा गर्भित पं. वीरविजय, मागु.. ढाल ११+कळश, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (श्रीशङ्खश) २८९२*), ३४६१ (*), ४९३० (+), ७७६७(+), ८९४० (+), २०९९-२ (+#),
३०९७, ५११०-१, ७२६४-१, ९०३४
१०० बोल, मागु. १०० बोल, गद्य, भूपू (ज्ञाताधर्म) २९५४
($)
१५२ बोल, मागु., गद्य, मूप्पू., (-) ८६९६
१५८ कर्मप्रकृति सज्झाय, मु. मणिविजय, मागु., ढाल २, गा. २२,
पद्य मृपू. (श्रीशङ्खेश) ९१६४-१
"
१५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, जै., (कर्मप्रथम) १८६३
"
३६३ पाखंडी भेद, मागु, गद्य, मूपु. ( एकसी असी) ६०२२-१/ ५६३ जीव बोल थोकडा, मागु., गद्य, स्था., (जीव गइ इन)
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१६३६
५६३ जीव भेद विचार, मागु., गद्य, मूपू., (उंचा लोक) २९४०p(+8)
५६३ जीवभेद स्तवन, कवि ऋषभदास सङ्घवी, प्राहिं., गा. १३,
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५०८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ पद्य, मूपू., (मिच्छामिदु) २३४२-२२
अक्षयनिधितप खमासमण दूहा, पं. वीरविजय, मागु., गा. २६, ५६३ जीवविचार बोलसङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (जीव का भेद) पद्य, मूपू.. (सुखकर सङ्ख) ६०७८-२, ८६४३-२ ७९१०, ७७०२
अक्षयनिधितप विधि, मागु., पद्य, मूपू., (प्रथम इरिय) ५३४४, ८०० बोल बन्धी, मागु., गद्य, जै., (भागा ४ का) ५१५७-२
६०७८-४, ८६४३-४ अंजनासुन्दरी चौपाई, मु. पूज्यराज, प्राहिं., गा. ३२७, वि. १९८९, | अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मागु., ढाल ५, गा. ५१, वि. पद्य, जै., (अरिहन्त सि) ७९७
१८७१, पद्य, मूपू., (श्रीशङ्खश) ६०७८-१, ८६४३-१ अंजनासुन्दरी चौपाई, गणि भुवनकीर्ति, मागु., ३ खंड/४३ ढाल, | अक्षरबत्तीसी-आत्महितशिक्षागर्भित, मागु., गा. ३५, पद्य, मूपू.,
गा. २५३, ग्रं.७०७, वि. १७०६, पद्य, मूपू., (करतां सगली) (कक्का तें) ६०६०-६६ ८६७७
अक्षरबावनी, वा. किशन, प्राहिं., गा.६१, वि. १७६७, पद्य, जै., अंजनासुन्दरी रास, मागु., पद्य, जै., (पणमिय थम्भ) ६७७८६) (ॐकार अमर) ३३१७-१, ४९६२, ५००७, ६००६-१७ अंजनासुन्दरी रास, मागु., गा. १६५, पद्य, मूपू., (शील समो वड) (२) किसनबावनी-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (ॐकार पद) ५००७
१९४४, ५४८६, ७८५५, ३२९२, ४४४९, ६८५४, अक्षरबावनी , मु. केशवदास, प्राहिं., गा. ६२, वि. १७३६, पद्य, ७०२८६, ११३१(8)
मूपू.. (ॐकार सदा) ५८७१-१, २७२७), ६००६-२) अंजनासुन्दरी रास, मु. पुण्यसागर, मागु., ३/२२ ढाल, गा. अक्षरबावनी, उपा. क्षमालाभ, राज.,प्राहिं., गा. ५६, वि. १८८०,
६३२, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (गणधर गौतम) ७२४४+5), पद्य, मूपू., (ॐ आदि अजि) ५५७० ३८८७+8, ४४५३, ३२३, ४८११, ६५४०, ८४७१, २४२५, अक्षरबावनी, मु. जसराजजी, मु. जिनहर्ष, प्राहिं., गा. ५६, वि. ३१६३१)
१७३८, पद्य, मूपू.. (ॐकार अपार) ६००६-४६) अंजनासुन्दरी रास, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल ११, पद्य, स्था., | अक्षरबावनी, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. ५३, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (परमेष्ठिपद) ३४०५७
(ॐ अक्षर) ५८७१-२ अंजनासुन्दरी रास, मु. शान्तिकुशल, मागु., गा. ५७१, वि. अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, प्राहि., गा. ५७, वि. १७२५, पद्य, मूपू., १६६७, पद्य, मूपू., (सरस वचन वर) ३६६९
(ॐकार उदार) ४४७७-१ अंजनासुन्दरी सम्बन्ध, मागु., पद्य, मूपू., (श्रीगणधर) ९८१ अक्षरबावनी, मु. मान, प्राहिं., गा. ५७, पद्य, जै., (ॐकार अपार) अइमुत्तामुनि ढाल, मु. रायचन्द, मागु., ढाल ६, वि. १८३१, पद्य, | ६४३-१, ४३०४-१ मूपू., (बुधबालकनी) ७६९-३६
अक्षरबावनी, ऋ. लालचन्द, प्राहिं., गा. ५८, वि. १८७०, पद्य, अइमुत्तामुनि रास, मु. नारायण, मागु., गा. १३५, वि. १६८३, स्था., (सरस वचन सर) १६८५, ३१२३-२) पद्य, जै., (वीरजिणन्द) ९२६७
अक्षर हरिआली, मागु., गा. ८, पद्य, जै., (त्रिहुं ना) ५८७३-१२(१) अइमुत्तामुनि सज्झाय, उपा. मानविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., अक्षौहिणीसैन्य मानसूचक कवित्त, मागु., पद्य, मूपू., (-) १४८९
(गुण आदरीइ) १७९५-१० अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., अगडदत्त चौपाई, मागु., पद्य, मूपू., (-) १५२१*#5) (वीर जिणेसर) ५४७-६
अगडदत्त ढाल, मु. नन्दराम, मागु., ढाल ५, वि. १९७८, पद्य, अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मागु., गा. १८, पद्य, ___ जै., (अरिहंत सिध) ७६९-११
मूपू., (वीर जिणंद) १४९१-७,७५६२-३४,६०६४-१८), अग्निकाय विचार, मागु., गद्य, मूपू., (वीजा पदता) ४०८८-२१ ३१३०-३१७
अग्निभूतिगणधर सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. हीरालाल, मागु., गा. १४, वि. १९४०, ७, पद्य, मूपू., (गोबर गाम) २३३८-८ पद्य, जै., (एवंता मुनि) ३१३३-४+5)
अग्यासभाव, मागु., गद्य, (जेतली घडी) ७०१२-२६) अकर्मी सज्झाय, मागु., गा. २१, पद्य, जै., (एक सीखामण) अघटकुमार भास, मागु., गा. ४०, पद्य, जै., (इन्द्रादिक) ६३१५-१ ११७६-६४
अघटकुमार महीधवराजा चौपाई, गणि पुण्यशील, मागु., पद्य, अकल्पनीय आहारदान सज्झाय, राज., गा. २०, पद्य, मूपू.,
मूपू.. (-) १२४३) (खुसामदी कर) ६०५२-६१
अगुलमान विचार, मागु., गद्य, मूपू., (अनुयोगद्वा) १४८९-२४ अक्षयतृतीया व्याख्यान, राज., गद्य, मूपू., (उसभस्सय पा) अङ्गोपांग नाम, मागु., गद्य, जै., (-) ४६४२-६(+) ६५३७-३15
अजरामलजी जोड, मु. डुङ्गर, प्राहि., गा. ३, पद्य, स्था., अक्षयतृतीया व्याख्यान, राज., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य) ६०७०-११(+) (अरज सुणो) ११७६-१५
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५०९ अजरामलजी जोड, मु. डुङ्गर, प्राहिं., गा. ४, पद्य, स्था., (चरन | अणगस गीत, मु. माणिक, मागु., गा. २३, पद्य, मूपू.. (अणगस सरन नि) ११७६-१४
करवो) २८५-४८ अजरामलजी जोड, ऋ. मोतीचन्द, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., (तुम | | अणाहारीवस्तु नाम, मागु., गद्य, जै.. (हलदेर १ बे) ११९०-२ प्रह) ११७६-१२
अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, मागु., गद्य, मूपू., (आजुणा अजरामलजी जोड, ऋ. मोतीचन्द, प्राहिं., गा. ७, वि. १८६८, चौपह) १४८५-४), ५८२७-९२ पद्य, जै., (हां रे प्र) ११७६-१३
अतीतअनागतवर्तमानजिनचौबीसीनाम स्तवन, वा. तेजविजय, अजापुत्र चौपाई, मु. धर्महंस, मागु., खण्ड ४, गा. ४६९, वि. ___ मागु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सितरिसो जि) ६००१-५२ १५६१, पद्य, मूपू., (गौतम गणधर) ५५१०
अतीतअनागतवर्तमानजिनचौवीसी स्तवन, मु. विक्रमसागर, मागु., अजितजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., ढाल ३, वि. १७०४, पद्य, मूपू., (पारस प्रभु) ६०८७-२८ (अजित अजोध) ७५४०-५
अदत्तादानविरमणव्रत सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु., गा. ६, अजितजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (त्रीजुं मह) १७९८-१८, ६००४-३६ (सुगण अजित) ७५५५-८०+5)
अधमपुरूष लक्षण, कवि गद्द, मागु., गा. १, पद्य, जै., (तरणो अजितजिन स्तवन, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तार किरतार)
डार्य) १४८९-१३ ६०८६-३४
अधमपुरूष लक्षण, कवि गद्द, मागु., गा. १, पद्य, जै., (बुरो पन्थ) अजितजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू.,
१४८९-१० (पन्थडो निह) ६०८६-१६
अध्यात्मगीता, गणि देवचन्द्र, मागु.. गा. ४९, पद्य, मूपू.. अजितजिन स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमियै) १५५, ४६५५, ४७८२, ८४५९ (अजित जिणेस) १४९२-१४)
(२) अध्यात्मगीता-बालावबोध, मागु., गद्य, म्पू., (प्रणमीये) ४६५५ अजितजिन स्तवन, वा. मेघ, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., (तुं मेरे) (२) अध्यात्मगीता-बालावबोध, मु. अमीकुंयरजी, मागु., ग्रं.१२५०, १३४२-१२)
वि. १८८२, गद्य, मूपू.. (संवेगी सिर) १५५, ४७८२ अजितजिन स्तवन, मु. मोहनरुचि, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू.. अध्यात्मगीता , उपा. विनयविजय , मागु., ढाल ९, गा. २४२, (अजित जिणेस) ६०८६-६६
ग्रं.३३०, वि. १७उ., पद्य, मूपू.. (इष्टदेव) ४५०८ अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.. अध्यात्म चर्या, मु. ज्ञानसार, मागु., गा. १४, पद्य, जै., (आसा (ओलग अजित) १४९२-१०), ६०७९-५
साधो) ६१२३-३ अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचन्द, प्राहिं., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, (ओलगडी अजित) १४९२-१८), २३३८-४
जै., (अजर अमर पद) १०६३, ८५४६-३, ६६०६-४१ अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, पद्य, अध्यात्मवाणी सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., मूपू., (अजित जिणन) ६०६८-१५
(ए अध्यातमन) ५५३४-२६ अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, पद्य, अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, मागु., गद्य, जै., (चेतः केवरा) २१५५) मूपू., (अजित जिणन) ६०८६-१०
अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, मु. अमीकुंअर, मागु., वि. १८८२, गद्य, अजितजिन स्तवन, ऋ. रायचन्द, मागु., गा. १९, पद्य, जै.,
मूपू., (जय भगवान) ३६४९११ (जम्बूदीपना) ६०६४-७५७
अध्यात्मसारमाला, कवि नेमिदास रामजी शाह कवि, मागु., ५ अजितजिन स्तवन, मु. विवेकविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., पीठ, गा. १०८, वि. १७६५, पद्य, जै., (श्रीजिनवाण) ५५३४
(विवेकसु वि) ६०७५-४ अजितजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., अनन्तजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, राज., गा. ५, पद्य, मूपू., (विश्वनायक) ५८२७-३०, ६०११-४६
(अनन्त प्रभ) ५८९९-३८ अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल ४३, गा. अनन्तजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू.,
७५८, ग्रं.१०१४, वि. १७५१, पद्य, मूपू.. (वीणा पुस्त) ९२४७), (तारक तुं) ५८९९-४२ ६३६८
अनन्तजिन स्तवन, गणि जिनहर्ष, प्राहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मे अजीवतत्त्व भेद, मागु., गद्य, जै.. (धर्मास्तिक) ४८०५-२
तेरी) ७५५५-५७, ६०८६-५४ अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठा पञ्चकल्याणक विधिसामग्री, मागु., गद्य, | | अनन्तजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., मूपू., (च्यवन कल्य) ६२६८
(प्रीतडी अन) १४९२-१६
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ अनन्तजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., १८ (हो जिनजी) ६०६७-२८)
अमरकुमार रास, गणि लक्ष्मीवल्लभ, मागु., ढाल १८, पद्य, मूपू., अनागतचौवीसजिन नाम व जीव नाम, मागु., गद्य, मूपू.,
(आदीसर प्रथ) ४४८७ (पद्मनाभ) ४२६४-२, ६००१-५३
अमरकुमार सज्झाय, मु. सेवक, मागु., गा. ५२, पद्य, मूपू.. (पुरव अनाथीमुनि चौपाई, मागु., गा. ६३, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (सिद्ध कृत) ६०५२-८ सवेन) ४१४३
अमरगुप्त चरित्र, मु. अमृतरङ्ग, मागु., ३ उल्लास, वि. १६९७, अनाथीमुनि रास, ऋ. खेमो, मागु., ढाल ८, वि. १७३५, पद्य, । पद्य, जै., (ऋषभादिक चउ) ५५८५ मूपू., (वन्दियै वी) १९४३, ६०५२-३४, ८३०४
अमरदत्त चौपाई, मागु., ४ खंड/३४ ढाल, गा. ७९३, पद्य, जै., अनाथीमुनि सज्झाय, मु. धीर, मागु., गा. १०, वि. १७७४, पद्य, (पहिलु प्रण) ५३२३ जै., (थान भणौ रा) ७५५८-१०६)
अमरसेन चौपाई, मु. पुण्यकलश, मागु., पद्य, मूपू., (जिन मुख अनाथीमुनि सज्झाय, पं. रामविजय, मागु., गा. ३०, पद्य, मूपू., कम) ४३३७ (मगधादिप) २८५-५(48). ३१३०-१२
अमरसेन जयसेननृप चौपाई, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल २४, वि. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ९, पद्य, ___१७५९, पद्य, मूपू., (श्रीसवेश) ४०६५
मूपू., (श्रेणिक रय) २८५-४५६, ६०४७-२८+5), १४९१-१२, अमरसेन वज्रसेन चौपाई, मु. जीवसागर, मागु., वि. १७६८, पद्य, ६०७३-१२, ७५६२-२०, ७५५२-२६, ७५५८-९६, ७३९०-८(-)
मूपू., (तीर्थधणी) ७१४१७, ७२५८६) अनित्य भावना, राज., गद्य, मूपू., (अनित्यानि) ५८३४-१
अमरसेन वज्रसेन रास, मु. तेजपाल, मागु., खण्ड ४, वि. १८२४, अनुभववाणी सङ्ग्रह, मागु., पद्य, जै., (गुरु कौ अङ) ६७९०६) पद्य, जै., (प्रथम जिणे) ७२३०+) अनुयाईआ हरियाली, साहा मेहा, मागु., गा. २७, पद्य, पू., अमावस्यातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, (गोहूं ग्रह) ५८७३-१(5)
मूपू., (अमावस्या) १८०३-१२, ६०८८-७, ७५४१-२६ अनुयोगद्वारसूत्रे-सङ्ख्याभेद विचार, मु. पार्श्वचन्द्र, मागु., गद्य, अमावस्याव्रत कथा, राज., गद्य, वै., (श्रीअर्जुन) ३१३१-१० मूपू., (हिवं गण सङ) ४६९६
अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. २९, अन्तसमाधि, प्राहि., गद्य, मूपू.. (हे भव्य तु) ४४९३, ६००५
पद्य, मूपू., (चेतन ज्ञान) ६००१-३० अफीण सज्झाय, कवि सिंह, राज., गा. १६, पद्य, (अमल पीवो) अम्बड चरित्र, मु. विनयसमुद्र, मागु., गा. ५०१, पद्य, मूपू., ६५१२-१३)
(पहिलउ पणम) १६४९ अबयदी प्रश्न, राज.,प्राहि., गद्य, (ए च्यारि) ६४८९-३
अम्बिकादेवी छन्द, मागु., गा. ९, पद्य, वै., (सदा पूर्ण) ५७५१अब्दप्रकरण विधि, मागु., गद्य, (साकोवहीनो) ७८२६-१ अभयकुमार सज्झाय, नन्दा, राज., गा. १८, पद्य, स्पू., (वीर अरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., जिणन्द) ६०९५-२७
(जगमांहि जो) ५८९९-४५ अभव्यसाधु १५ लब्धि, मागु., गद्य, जै., (अभवि साधु) ५६९४-३ अरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, पद्य, अभिनन्दनजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीअरजिन) ७७८२-५ मूपू., (उच्चपणे) ७५४०-७
अरणकश्रावक सज्झाय-अरजिनतीर्थवर्ति, मागु., गा. २९, पद्य, अभिनन्दनजिन स्तवन, मागु., पद्य, मूपू., (अरज सुणो) ६०३५- जै., (कष्ट पडे) ७३९०-३(5)
अरणिकमुनि गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ९, पद्य, अभिनन्दनजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू.. मूपू., (विहरण वेला) ६०४७-१३+5) (अभिनन्दन) ६०८६-१७
अरणिकमुनि चौपाई, मु. नयप्रमोद, मागु., खण्ड ४, वि. १७१३, अभिनन्दनजिन स्तवन, मु. खिमाविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (पारसनाथ पस) ६८११-१+5) (अभिनन्दन) ६६३१-२५७
अरणिकमुनि चौपाई, गणि राजहर्ष, मागु., वि. १७३२, पद्य, मूपू., अभिनन्दनजिन स्तवन, मु. प्रेमविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू... (श्रीफलवधि) ६५१५ (संवरराय घर) ११७६-४५
अरणिकमुनि रास, गणि महिमासागर, मागु., ढाल ८, वि. १७७४, अभिनन्दनजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू.. | पद्य, मूपू., (सरसति सामि) ३३८६ (अकल कला अव) ६०८६-४
अरणिकमुनि सज्झाय, मागु., पद्य, मूपू., (अरहन्नो गय) २१००अभ्यन्तरपरिग्रह १४ भेद, मागु., गद्य, मूपू., (१ मिथ्यात) ७५४५
७(5)
१४
३
)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५११
अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मागु., गा. २४, पद्य, मूपू., | अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मागु.. गा. १६, पद्य, मूपू.. (इक दिन अरण) ६०२८-९
(आबु अचल रल) ६०६८-७ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मागु., गा. २४, पद्य, मूपू., | अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचन्द, मागु., गा. २२, पद्य, मूपू, (इक दिन अरण) ७५४८-१८५७)
(जात्रीडा) ६७०९-२१ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. खीमा, मागु., गा. १२, पद्य, जै., अल्पबहुत्व विचार, आ. सोमसुन्दरसूरि, मागु., गद्य, मूपू., (पृथ्वी (कचा था सोई) ६०६४-३२
मध) ८९९३-३ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. ज्ञानकीर्ति, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू.. | अवधिज्ञान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरहनो मुनि) ७५६२-३०
(पूजो पूजो) ६०३९-१९१६) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., अवन्तिसुकमाल गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ५,
(अरणिक मुनि) ६०५३-१०, १७९५-११, ७५०८-३, ३१३१- ___ पद्य, मूपू., (नयरीउजेणी) ६०४७-१४) ११, ६००४-९", ६०९५-४७, ३१३०-३५१
अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल १३, गा. १०७, अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ८... वि. १७४१, पद्य, मूपू.. (मुनिवर आर) १३४१-२५७, ७६९-४६,
पद्य, मूपू., (अरणिक मुनि) ३१३३-३(45), ७५६२-८, ७५५२-३, १२७८, २६७५-३, ४२८१, ६००१-२, ७५६२-१, ७७३६-२, २४३२-३७, १८००-२५
८१६१-१, ८९१०, ७२७०-१(65) अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. १८, अवन्तिसुकुमाल सज्झाय, गणि महानन्द, मागु., गा. १३, पद्य, पद्य, मूपू., (एक दिन अरण) ६००४-४४६)
मूपू., (सरसति मुझ) २८५-११(45) अरिहन्तपद स्तवन, मु. कुशल, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., अविश्वास कवित्त, कवि गद्द, प्राहिं., गा.२, पद्य, (सापां कीसो) (श्रीतेरम) २१२८-४०
१४८९-२० अरिहन्तपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., | अशुभकर्मफल पद, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुन रे प्र) २३४२(श्रीअरिहन) ६५९३-२
९२ अरिहन्तपद स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (द्रव्यपर्य) २१२८- अष्टप्रवचनमाता सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., ढाल ९, पद्य,
मूपू., (वजन वदन वा) ४९२५ अरिहन्तपद स्तुति , उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., अष्टमहासिद्धि स्वरूप, मागु., गद्य, मूपू., (ते के ही) १४८९-२५ (सहु यन्त्र) ६१३२-१०, ६५९३-३
अष्टमीतिथि चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., गा. ७, पद्य, अरिहन्त वर्णन, मागु., गद्य, मूपू., (अरिहन्त के) ८५१५-२
मूपू., (महा सुदी) २३४०-८, ६६३१-९७ अर्जुनमाली ढाल, ऋ. जैमल, मागु., ढाल ७, वि. १८२३, पद्य, अष्टमीतिथि चैत्यवन्दन, मु. मेघविजय, मागु., गा.६, पद्य, मूपू., ___ स्था., (राजगरी नगर) १२४२-१६, ७६९-३४, ४२७६-२
(श्रीचन्द्र) २३३७-१८), १११७-६ अर्जुनमाली लावणी, श्रा. सुरतराम, मागु., गा. ६, वि. १९३२, अष्टमीतिथि नमस्कार, पण्डित खीमाविजय, मागु., गा. १४, पद्य, पद्य, जै., (राजग्रही) ३१३३-२८६)
मूपू., (चैत्र वदी) ६०६६-४, ५६९९-९९६-) अर्जुनमाली सज्झाय, मु. कवियण, मागु., गा. १५, वि. १७४७, अष्टमीतिथि नमस्कार, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुचर) २८५-४१+5)
पद्य, मूपू., (आठिम तप आर) ६०६६-३ अर्जुनमाली सज्झाय, मु. कानजी, मागु., गा. १६, वि. १७४३, अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., पद्य, जै., (सदगुरु चरण) ७५६२-३१
(श्रीसरसतिन) १४९१-२०, १७९५-४, ६००४-३(१) अर्जुनमाली सज्झाय, मु. खेमा, मागु., गा. ३१, पद्य, जै., (मगध अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., देसमां) ७५६१-४६)
(आठम कहे आठ) ६०७३-१, ६००४-२५६ । अर्द्धपुद्गलपरावर्तनविचार सज्झाय, मु. मोहनविजय, मागु., गा. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कान्ति, मागु., ढाल २, गा. २४, पद्य, १३, पद्य, मूपू., (श्रीजिन उप) १४९२-२५)
मूपू., (हां रे मार) ६००१-३८,६०३७-२, ६०८६-६३,७६८७-१, अर्बुदगिरितीर्थ कल्प, मागु., गा. ४४, प+ग, मूपू.. (अर्बुदाचल) १८०६-१, ७५७६-१*), ९०००-१०(5) ५९९२
अष्टमीतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मागु., ढाल २, पद्य, मूपू., अर्बुदगिरितीर्थ कल्प, मागु., गद्य, मूपू., (अरबुदाचल) ४९९८ (श्रीराजगृह) ६६३१-२८) अर्बुदगिरितीर्थ पूजा, मु. मोहन, मागु., वि. १९४०, पद्य, मूपू., अष्टमीतिथि स्तवन, पं. लावण्यसौभाग्य, मागु., ढाल ४, वि. (श्रीजिनवर) ५८०८-१
१८३९, पद्य, मूपू., (पंचतिरथ) ६०५६-३
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४७४२)
५१२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ अष्टमीतिथि स्तुति , मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.. (अष्टमी अष)
५९४६, ६६७७-१, ७५०४, ६६५६-२७ २६२६-३३, १८०३-७, ५४९०-१७, ६०८८-६, २३३६-९, असज्झाय सज्झाय, मागु., गा. १६, पद्य, जै., (पवयण समरी) ६०४१-६६)
७५६२-३ अष्टमीतिथि स्तुति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामङ्गलं) असज्झाय सज्झाय, मु. हीर, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रावण
१४८५-२२१, १७९४-१४१, २९९७-९, १७९९-३, ५४९०- कात) ७५५२-१२ १६, ६०११-२६, १४८७-२१, ७५४४-२९६)
असणादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मागु., गा. १८, अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (प्रणमुं) ७५५५-७०, ६०२८-६ (चोवीसे जिन) २६२६-१९", १७९४-१५५१), २९९७-८+5, आगमसारोद्धार, गणि देवचन्द्र, मागु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., १७९९-१४+६, ५४९०-१५, ५८२७-१४, ६०९०-८)
(हिवै भव्यज) ४३८०", १८६७, ३८४१, ४८२९, ५३९६, ६५२९, अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., ७७३२, ८६४९, २७४०, ३१८६, २२९९(), २९७३, १६९९७),
(अभिनन्दन) ७५४१-१८ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.. | आचारछत्रीसी, ऋ. रतनचन्द, मागु., गा. ३७, पद्य, जै., (गुर (मङ्गल आठ) १३४१-१२, ६०८८-२७, २३३६-८
समज मे) ६०५२-३६ अष्टमीतिथि स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., आचारछत्रीसी, ऋ. रतनचन्द, मागु., गा. ३८, पद्य, जै., (शुद्ध (श्रीरिसहेस) २३४२-९७
समकि) ६०५२-३७ अष्टापदतीर्थ रास, मु. कवियण, मागु., ढाल ७, वि. १८३९, पद्य, आचार्यपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आदी करण आद) २९६४
मूपू., (जैनागम सुप) ६५९३-७ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मागु., गा. ३१, पद्य, मूप., (चउवीसे जिण) आचार्यपद चैत्यवन्दन, पाठक हीरधर्म, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., १७८८-४६)
(जिनपद कुल) ६१३२-३, २१२८-९६) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जयसागर, मागु., गा. ५२, पद्य, मूपू., । आचार्यपद स्तवन, मु. कुशल, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (खन्ती (इक सरसति) २४१६-१
खडगथ) २१२८-१० अष्टापदतीर्थ स्तवन, गणि जिनहर्ष, मागु., गा. ३२, पद्य, मूपू., आचार्यपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अष्टापद) ९८०-१९, ६०८७-६६, ७५५३-११)
(आचारज गुण) ६५९३-८ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., आचार्यपद स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू.. (पञ्चाचारकु) २१२८(तिरथ अष्टा) ६०८६-५८
११) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा.८, पद्य, मूपू., आचार्यपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टापद गि) २३४०-१२
(धन धन सिद) ६१३२-१२, ६५९३-९। अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मागु., ढाल २, गा. ३०, वि. | आत्मगर्दा सज्झाय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीगर्भाव) २८५१७५६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणन्द) ६०५३-७)
३५+5 अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. दानविनय, मागु., गा. ३२, पद्य, मूपू., । आत्मनिन्दा पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा.६, पद्य, मूपू., (तप (-) ३१४९-१
जप विना) २३४१-२० अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. पद्मराज पाठक, मागु., ढाल ४, गा. । आत्मनिन्दा भावना, मु. ज्ञानसार, प्राहि., गद्य, जै., (हे आत्मा) १५, पद्य, जै., (जिनवर चरण) ९८०-२०
३०७६-३६) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. वीरविजय, मागु.. गा. ८, पद्य, मूपू., आत्मप्रबोधछत्तीसी, मु. ज्ञानसार, प्राहि., गा. ३६, पद्य, मूपू.. (चउ अठ दस) २३४०-१३
(श्रीपरमातम) ५८५०-२(), ५९४२-१ अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. १७, आत्मप्रबोध दोहा, मु. ऋषभ, मागु., गा. १६२, पद्य, मूपू.,
पद्य, मूपू., (जिणवर भक्त) ४५७६-३, ७५५५-७३, ७५५५- (सुक्ष्मबोध) ९००५-१७ ८२/+8)
आत्मप्रबोध सज्झाय, मागु.. गा. ५, पद्य, मूपू., (पहिलो पोहर) अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ५, पद्य, ७५५५-६६६) मूपू., (मनडो अष्टा) १८०२-९
आत्मभावना, मागु., प+ग, जै., (धन्य हो) ३०७६-१(+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, राज., गद्य, मूपू., (शान्तीशं) ६०७०- आत्मभावना, प्राहि., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ६४८६-१७)
२), ६४३२-१47, ६६२०-१६, २५३९-२, ५७३९, ५८००, | आत्मराजा रास, मु. ज्ञानरतन, मागु., वि. १५२२, पद्य, जै.. (द्यो
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५१३ सरसति) ६९९१-१७)
आदिजिन पद, मागु., गा.३, पद्य, मूपू., (मूरतमा धरी) २६७५आत्मशिक्षा, पाठक देवचन्द्रजी, मागु., गा. ३६३, पद्य, मूपू., (जिनवर मुख) ८९७२
आदिजिन पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., (अब मोय तार) २३४२आत्मशिक्षा, कवि हंसरत्न, मागु., गा. ११०, वि. १७८६, पद्य,
१४९ मुपू., (सकल सास्त) ४६८३, ६२६१-३ ।
आदिजिन पद, प्राहि., गा. ४, पद्य, जै., (जिनस्वामी) २३४२-७ आत्मशिक्षा भावना, मागु., गा. ७९, पद्य, जै., (श्रीसरसती) आदिजिन पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (भज श्रीऋषभ) २७९२
१८२२-१ आत्मशिक्षा भावना, मु. रतनहर्ष, मागु.. गा. १८५, वि. १६६२, आदिजिन पद, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सफल घरी रे) २७९२
पद्य, मूपू., (जिनवर मुख) ६३६५, ५३०६७ आत्मस्वरूप पद, मु. ज्ञानसार, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (जाग रे | आदिजिन पद, मु. आनन्दअमृत?, राज., गा. ३, पद्य, मपू., सब) २३४२-११८
(जित जाउ ति) २३४२-५१ आत्मा के ६५ गुण, मागु.. गद्य, मूपू.. (असङ्ख्यात) २५१०-१ आदिजिन पद, मु. आनन्दघन, मागु.,राज., गा. ३, पद्य, मूपू., आदिजिन १३ भव वर्णन, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीआदेसरन)
(आदिजिणन्द) ६०६७-७ ६२७१-१
आदिजिन पद, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., आदिजिन अष्टक, मागु., गा.८, पद्य, म्पू., (विमलकमलनेत) (मरुदेवीनो) २५६५-३ ५६९९-४18-)
आदिजिन पद, मु. खेम, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जागीयै नृप) आदिजिन गीत, मु. दुर्गदास, मागु., गा. ३, पद्य, जै., (वडा ७५५५-६४ अनडां) ६०८७-३०
आदिजिन पद, मु. चतुरकुशल, राज., गा. ३, पद्य, मूपू., (विसरे आदिजिन गीत, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ततथेइ मत) २३४२-१३५ ततथे) ९१५६-२८
आदिजिन पद, श्रा. चम्पाराम दीवान, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., आदिजिन गीत, मु. शुभ, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कोसो जेणि) (श्रीऋषभदेव) २३४२-१२६ ६१४२-२
आदिजिन पद , मु. जयन्त, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज तो आदिजिन चैत्यवन्दन, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., गा. ५, हमार) १७८२-१२ पद्य, मूपू., (प्रथम पुजो) १४२७-७, ६०४२-७३
आदिजिन पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांझ आदिजिन चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., समें) २७९२-१२) (आदिदेव अलव) ६६३१-२६)
आदिजिन पद, मु. जिनराज, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जाग आदिजिन चैत्यवन्दन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ३, जग मुक) २३४२-११९ पद्य, मूपू., (प्रथम तीर) ७५४०-१
आदिजिन पद, मु. नवल, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (घडी धन आदिजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., आजक) २३४२-९१, २७९२-१८) (प्रथम तिर) ७५४०-२
आदिजिन पद, मु. भूधर, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज गई आदिजिन चैत्यवन्दन, पं. वीरविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., मरुद) २७९२-५८ (सर्वार्थ) ६६३१-१
आदिजिन पद, मु. भूधर, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (लगीलो आदिजिन चौपाई, मागु., पद्य, मूपू., (-) ६३२६
नाभि) २३४२-६२ आदिजिन चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., ढाल ४७, वि. १८४०, | आदिजिन पद, मु. महिमराज, मागु., गा. ३, पद्य, जै., (जाग पद्य, जै., (अरिहन्त सि) ६५८०, ६७०५, ७६६९, ५२२५,
जग मुग) ७५५५-३२+5 १७५०, ४६०४७
आदिजिन पद, मु. मान, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज तो आदिजिन जन्मबधाई पद, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (सखि गावो) हमार) १३४२-४(4) ५८३६-७)
आदिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ३, पद्य, आदिजिन नमस्कार, मु. प्रीतिविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., ___ मूपू., (तुम्हारे) ६७६७-४१, ९१६५-४६(७) (नाभी निरेस) ६०४१-३५७, ६०४२-३६
आदिजिन पद, मु. राज, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दीजे माहरा) आदिजिन नेमिजिन स्तवन, मु. विवेकहर्ष, मागु., गा. २५, वि. ६०३४-८ १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति भगवत) ७५४६-२७
| आदिजिन पद, मु. विनय, प्राहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (सयन
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८७)
६०९५-५७
५१४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ सलुने) ९१६५-१२७
आदिजिन स्तवन, मागु., पद्य, जै., (ऋषभ जिणन्द) ५७५१-४९-) आदिजिन पद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., | आदिजिन स्तवन, मागु., गा. ३, पद्य, जै., (प्रथम जीणे) ६०६४
(रिषभ की भग) ७५५५-५२ आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू.. (आज आदिजिन स्तवन, प्राहि., गा. १३, पद्य, मूपू., (अंस बंस का)
ऋषभ घर) १३४२-५, ७५५५-३३, ७५४९-५, ६०३४-७६), ६०६४-२४) २७९२-४८
आदिजिन स्तवन, प्राहिं., पद्य, मूपू., (चरन सरन मो) १४५६-३६) आदिजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (उगत आदिजिन स्तवन, मु. अमरविजय, मागु., ढाल ४, पद्य, मूपू., प्रभात) २७९२-५२
(गुरुचरण कम) ४४१५-१ आदिजिन पद-विक्रमपुरमण्डन, आ. जिनलाभसूरि, मागु., गा. ३, . आदिजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., गा.६, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (ऋषभजिनन्द) ७५५५-८१७
(ऋषभ जिणेसर) ६०८६-१५ आदिजिन पारणा गीत, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (घडा एकसो) आदिजिन स्तवन, मु. उदय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कोशला
नगरी) ५८९९-३१ आदिजिन पार्श्वजिन श्वासोश्वास प्रमाण, मागु., गद्य, जै., (--) आदिजिन स्तवन, मु. उदय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शेत्रुञ्जा) ७१५२-२६)
५८९९-३३ आदिजिन बारहमासा, ऋ. मूलचन्द, मागु., गा. १४, पद्य, जै., आदिजिन स्तवन, वा. उदयविजय, मागु., गा.२४, पद्य, मुपू., (प्रथम जिणन) ६२०३-४
(श्रीआदीसर) ६०१७-१६ आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुञ्जय, मु. प्रेमविजय, मागु., गा. २३, आदिजिन स्तवन, श्रा. ऋषभदास, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू.. (प्रणमु सयल) ५८९९-१३, ६६०६-२६)
(मुरति मोहन) ६०५३-१८) आदिजिन भरतचक्रवर्ती स्तवन, मु. आशकरण, मागु., गा. २७, आदिजिन स्तवन, मु. कनककुशल, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., वि. १८३५, पद्य, जै., (प्रथम जिने) ७५४२-७१)
(अईयो अइयो) १३४२-१७+) आदिजिन रास, मागु., ढाल १७, पद्य, जै., (जुगल्यानौ) ७६९-२४ | आदिजिन स्तवन, मु. किसन, मागु., गा. १८, पद्य, मूपू., आदिजिन लावणी-केसरीयाजी, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू.,
(श्रीऋषभ जि) ६०५९-१२) (सुनीओ बात) ४९४९-३
आदिजिन स्तवन, मु. किसनदास, प्राहि., गा. ५, पद्य, जै., (वंस आदिजिन विनती, मु. ब्रह्मदेव, राज., गा. १०, पद्य, मूपू., (प्रथम इख्याग) ६०५९-१० तीर) २६७६-१०)
आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जे आदिजिन विनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थमण्डन, मु. लावण्यसमय, जगनायक) ७५५५-७८ , ३६७-४
मागु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (जय पढम जिण) आदिजिन स्तवन, मु. गुणसागर, मागु., गा. २५, पद्य, मूपू., ६००१-५१, १५७३-१, ७५५३-१३
(जिन जीम जा) ६०३५-२(5) आदिजिन विनतीस्तवन-शत्रुजयमण्डन, उपा. विनयविजय , आदिजिन स्तवन, मु. चन्दकुशल, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू.,
मागु., गा. ५७, वि. १७उ., पद्य, मूपू.. (पामी सुगुर) ६००१- (देखोने आदे) २३४२-१५७, १४८४-२७) २९
आदिजिन स्तवन, मु. जिनचन्द, प्राहि., गा. ८, पद्य, जै., (धूसो आदिजिन विनतीस्तवन-शत्रुञ्जयतीर्थ मण्डन, आ.
वाजे) ६०६८-३ विजयतिलकसूरि, मागु., गा. ३५, पद्य, मूपू.. (पहिलं पणम) आदिजिन स्तवन, आ. जिनरङ्गसूरि, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ५८७२
(रिषभ जिणेस) ४६११-२(+) (२) आदिजिन विनतीस्तवन-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम | आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचन्द, मागु., ढाल २, गा. २६, वि. प्रण) ५८७२
१७वी, पद्य, जै., (श्रीनाभिकु) ७५५८-१९७) आदिजिन विवाहलो, मागु., ढाल ४४, गा. २४३, पद्य, मूपू., आदिजिन स्तवन, मु. देवचन्द्रजी, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू..
(सासनदेवीय) १४०५, ४१४६(१), २९७/5, १९८०, ५१९५-१, (ऋषभ जिणन्द) १४८४-९६) ५५४१, ३९०४, ३३३७६, ७६५३-१(5)
आदिजिन स्तवन, मु. धर्मचन्द्र, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ आदिजिन शलोको, मागु., पद्य, मूपू., (सरसत सामण) ४३७-१+) ___ जिनेन) ५१२८-२) आदिजिन सवैया, प्राहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (गङ्गतरंग) १४८४- आदिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.,
(जगचिन्तामण) १४८४-५
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५१५ आदिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., तो किणह) ६०३५-२२६) (प्रथम जिने) ७५४५-९
आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., आदिजिन स्तवन, बंसी, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., (श्रीआदिनाथ) (नाभिनन्दन) ६०८६-३६ ६०४९-१(-)
आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मागु., ढाल ३, आदिजिन स्तवन, मु. भीमचन्द, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू.,
गा. २५, वि. १७२६, पद्य, मूपू.. (प्रणमुं) २६७५-५३, ६०५६-४, (सकल कला) २८५-९०१, ६०१७-२०१७
१७८७-४७), ६०८७-२५ आदिजिन स्तवन, ऋ. मूला, मागु., ढाल ३, गा. १७, वि. १७५९, | आदिजिन स्तवन-अक्षयतृतीयापारणागर्भित, उपा. उदयरत्न, पद्य, जै., (प्रथम जिणे) ६०६४-७३(७)
मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ऋषभ लही वर) ६०६७-१७) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, राज., गा. ७, पद्य, मूपू., आदिजिन स्तवन-आत्मनिन्दागर्भित, वा. कमलहर्ष, मागु., ढाल (राज मरुदेव) १४९२-७)
४, गा. ५२, पद्य, मूपू., (आदीसर पहिल) १३४१-२४*७), आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., ९८०-२१, १३२२-१ (आदीसर जगदी) १४९२-१५)
आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मे तो आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ३,
जाउ) २६७६-१२) (उठ हो नाभि) ९१५६-१७१
आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मागु., गा.६, पद्य, मूपू., (आज तो आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., बधाइ) १७८२-२, ९१५६-१६ (सेत्रुजे) ६०१७-५
आदिजिन स्तवन-त्रिलोकीपातसाह ऋद्धिवर्णन, पं. दीपविजय, आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, प्राहि., गा. ७, पद्य, मूपू., मागु., गा. १६, वि. १८८६, पद्य, मूपू.. (भरतजी कहे) ८६३१
(प्रभुजीस्य) ६०१७-१७ आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, पद्य, आदिजिन स्तवन-देउलामण्डन-विज्ञप्तिविचारगर्भित, गणि मूपू.. (जगजीवन जग) १४८८-१३, ६०८६-९, ८९३१-३
विजयतिलक, मागु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पहिलु पणमि) आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहि., गा. ६, वि. ४६८४५, ३१५४), ४२६६(#-), २७५९-२६), ७६७०/+5)
१८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव हित) १३४२-२६), ६०६८-१६, (२) आदिजिन स्तवन-विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, पाठक ६७६७-३८, ९१६५-४३
___ कमललाभ, मागु., गद्य, मूपू., (पहिलउ देव) ३१५४५) आदिजिन स्तवन, ऋ. रतनचन्द, मागु., गा.९, वि. १८८२, पद्य, (२) आदिजिन स्तवन-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीविजयति) जै., (आदिजिन अरज) ६०५२-५
। ४२६६+#, ७६७०/+8 आदिजिन स्तवन, मु. राम, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज भले | (२) आदिजिन स्तवन-विज्ञप्तिविचारगर्भित-टबार्थ, मागु., गद्य, दिन) ६०८६-३०
मूपू., (प्रथम देव) ४६८४(4) आदिजिन स्तवन, मु. राम, प्राहि., गा.६, पद्य, मूपू.. (प्रभु तुंह) (२) आदिजिन स्तवन-विज्ञप्तिविचारगर्भित-टबार्थ, मागु., गद्य, ५४७-९
मूपू., (श्रीविजयति) २७५९-२(45) आदिजिन स्तवन, वा. लक्ष्मीविजय, मागु., गा. ६८, पद्य, मूपू., । आदिजिन स्तवन-राणकपुर, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. (सरसति लही) ४४१५-२
७. वि. १६७६, पद्य, मूपू.. (राणपुरे रल) ५८९९-५७, २०९१आदिजिन स्तवन, मु. लालचन्द, मागु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, जै.. (ऋषभ जिणेसर) ९८०-३, १५८५-४, ६०८६-२७
आदिजिन स्तवन-वर्षीतप पारणा, उपा. यशोविजयजी गणि, आदिजिन स्तवन, मु. विवेकविजय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., ___मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पसारी करली) ९१६५-१०) (सरसती सामण) ६०७५-५
आदिजिन स्तवन-शत्रुञ्जयतीर्थ, मु. उदयरत्न, मागु., गा. १३, आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदि
वि. १७५६, पद्य, मूपू., (आदि जिणेसर) ५८९९-१८ जिनेसर) ६०६७-६०
आदिजिन स्तवन-शत्रुञ्जयतीर्थमण्डन, मु. मोहनविजय, मागु.. आदिजिन स्तवन, मु. श्रीविजय, मागु., पद्य, मूपू., (प्रभु अनडप) गा.७, पद्य, मूपू., (बालपणे आपण) १४९२-२), ६०८६-३ ६०३५-२१
आदिजिन स्तवन-शत्रुञ्जयमण्डन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ५, आदिजिन स्तवन, पाठक सहजकीर्ति, मागु., गा. १७, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू.. (जईई शेत्र) ५८९९-४१ (विमलगिरि) ६७०९-२२
आदिजिन स्तवन-शत्रुञ्जयमण्डन, मु. रत्नचन्द्र, मागु., गा. २५, आदिजिन स्तवन, मु. सिंहकुशल, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., (तु | पद्य, मूपू., (श्रीविमलाच) ७५५५-२२
२)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ आदिजिन स्तवन-शत्रुञ्जयमण्डन, उपा. रत्ननिधान, मागु., ढाल | ६७६७-१५ ३, पद्य, मूपू., (श्रीजुगादी) १७९७-३
आध्यात्मिक पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सासरे आज) २६७५आदिजिन स्तुति, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जयजय त्रिभ)
२९ ५८२७-९५
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, राज., गा. ३, पद्य, मूपू., आदिजिन स्तुति, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., गा. ४, पद्य, (छोरानै क्य) ६७२९-१२
मूपू.. (प्रह उठी) १७९२-१३, ६०८८-४, २३३६-१८, ६०४१- (२) आध्यात्मिक पद-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ऊपजतौ उपसम) ३३६), २८४५-११
६७२९-१२) आदिजिन स्तुति, मु. कान्तिविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, राज., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुधर्म देव) ६०८८-९, २३३६-१४
(निसदीन जोउ) ६२३०-४२, ६०३९-१४६ आदिजिन स्तुति, आ. जिनसुरि, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रणमुं | आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, राज., गा. ५, पद्य, मूपू., पर) २६२६-४१(4)
(बालुडी अबल) ६२३०-७ आदिजिन स्तुति, मु. भावसागर, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, राज., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुदल (उन्नतपुर) ७५४१-९
थोडो) ६२३०-१० आदिजिन स्तुति, मु. सौभाग्य, मागु., गा. १, पद्य, मूपू.,
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, राज.. गा. ३, पद्य, मूपू., (वारी (पुण्डरीगिर) ६०४१-३०७, २८४५-१६)
हुं) ६२३०-२९ आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मागु.. | आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु.. गा. ४, पद्य, मूपू., (अवधू
गा. ४, पद्य, मूपू., (गजकुंभे बे) १४९२-८, २३३६-१९, __ क्या) ६२३०-१४ ६०३९-२२७, २८४५-८
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., गा.४, पद्य, मूपू.. (अवधू आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमण्डन, मु. देवकुशल, मागु., गा. ४, ___ नाम) ६२३०-४९, ६०३९-९७ पद्य, मूपू., (विसलपुर वा) २३३६-५३, ६०४१-२५७०
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अवधू आदिजिन स्तुति-शत्रुञ्जयमण्डण, पं. सिंहविजय, मागु., गा. ४, राम) ६२३०-१३ पद्य, मूपू., (सेत्रुञ्जो) ६५१२-११(६)
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ३, पद्य, भूपू., आदिजिन स्तुति-शत्रुञ्जय मण्डल, मु. तत्त्वहंस, मागु., गा. ४, (आतम अनुभव) ६२३०-५१ पद्य, मूपू., (पहिला पूजो) ६०८८-१२
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., आदिजिन होरी, मु. जिनचन्द्र, प्राहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (होरी (आस्या औरन) ७५५५-६१, ६२३०-१२, ६०३९-११६) खेलिय) २७९२-२५)
आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., गा.६, पद्य, मूपू., (एसो आदित्यवार कथा, मागु., गा. १५७, पद्य, जै., (रिसहणाह) ३५७४ ज्ञान) ६२३०-५७ आध्यात्मिक जकडी, मागु., गा. ४, पद्य, जै., (बे कर जोडी) आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., गा. २, पद्य, मूपू., (क्यारे ६०५२-४१
मने) ६२३०-१८ आध्यात्मिक जकडी, मु. कवियण, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (क्यारे (काहेकुं की) ५८७३-११
मने) ६२३०-१९ आध्यात्मिक जकडी, मु. कवियण, प्राहि., गा. ८, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नट (जिनसुं राख) ५८७३-१०७)
नागर सु) ६२३०-३३ आध्यात्मिक जकडी, मु. कवियण, प्राहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (बहु | आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (परम बोलणा) ५८७३-४७)
नरममति) ६२३०-२५ आध्यात्मिक जकडी, साहा मेहा, मागु., गा. ५, पद्य, जै., आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पिया (सद्दहणा धर) ५८७३-७६)
विनु) ६७२९-५० आध्यात्मिक पद, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (उठ रे आतम) (२) आध्यात्मिक पद-टबार्थ, प्राहि., गद्य, मूपू., (सुमतिनौ वा) २६७५-३१
६७२९-५1) आध्यात्मिक पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (ता योगी चि) १४९२- | आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरा
माझि) ६२३०-४० आध्यात्मिक पद, प्राहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (पवन को करे) आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.,
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५१७ (हठीली आख्य) ६२३०-३०
(चेतन ममता) ६७६७-३०, ९१६५-३५६) आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अनन्त अरूप) ६२३०-३२
(छबीले लालन) ६७२९-११) आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा.३, पद्य, मूपू., (२) आध्यात्मिक पद-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (इण पद मैं) (अनुभव तूं) ६२३०-५२
६७२९-११(4) आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (अनुभव प्री) ६७२९-६, ६२३०-५
(ठगोरी भगोर) ६२३०-२६ (२) आध्यात्मिक पद-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (आत्मानै पु) आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तेरी ६७२९-६
हु) ६२३०-२७ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. २, पद्य, मूपू.. (अनुभव हमतो) ६२३०-५३
(दरसन प्राण) ६२३०-३४ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (देखो (अवधु सोजोग) २३४२-२१, ६७६७-१०
आली) ६२३०-४५ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नाथ (अवधू अनुभव) ६२३०-४८
निहारो) ६७२९-१, ५१०१, ६२३०-५४ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (२) आध्यात्मिक पद सङ्ग्रह-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (अवधू नट ना) ६२३०-१५, ६०३९-८(5
(श्रद्धानो) ५१०१ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (२) आध्यात्मिक पद-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (श्रद्धानो) ६७२९
(आतम अनुभव) ६७२९-२१, ६२३०-५५ (२) आध्यात्मिक पद-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (आनन्दघन कह) आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ६७२९-२)
(निसाणी कहा) ६२३०-४३ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. १, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (नीस (आतम अनुभव) ६२३०-२१
दिस सो) ६२३०-३१ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (पिया (आतम अनुभव) ६२३०-१६ ।
तुम) ६७२९-४), ६२३०-३५ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (औy (२) आध्यात्मिक पद-टबार्थ, प्राहिं., गद्य, मूपू., (सुमति श्रद) क्या) ६२३०-११, ६०३९-१०
६७२९-४(4) आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कन्त आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (पीया चतुर) ६७२९-१३)
विना) ६२३०-२४ (२) आध्यात्मिक पद-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (चतुर भर्ता) आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं.. गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रीत ६७२९-१३
की) ६२३०-४६ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (भोले (कुबुद्धि) ६२३०-२०
लोगा) ६२३०-४१ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कैरे । आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ज्यार) ६२३०-४७
(माला पूछीय) ६७२९-१०) आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहि., गा.४, पद्य, मपू., (कोउ (२) आध्यात्मिक पद-टबार्थ, प्राहिं., गद्य, मूपू., (सुमतिनौ वा)
राम कह) ६२३०-९ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कोट आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा.४, पद्य, मूपू., कलप ना) ६०३९-१३)
(माहरओ बालू) ६२३०-१७ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरी (चेतन चतुर) ६२३०-२३
तु) ६२३०-२८ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेला
६७२९-१०५)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ पीआनि) ६२३०-३९
मे मे) ३१२९-३६६) आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मोकुं । | आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहि., गा. ५, पद्य, मूपू., कोउ) ६२३०-३६
(मुनीवरजी) ३१२९-२०१६) आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मोर आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मोटो बताय) ६२३०-२२
विष) ३१२९-३५ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (रीसानी आप) ६२३०-३८
(समकित की) ३१२९-३४) आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (रे। आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्ध
घरियारी) १३४२-१३१), ७५५५-४५६, ६२३०-२, ९१५६-१८) स्वर) २३४२-११६, ३१२९-२८७ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुक्रत (विचार कहा) ६२३०-४४
विण) ३१२९-३१६ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (सलौणे साहि) ६७२९-९१)
(तुं आतम गु) १३४२-१), ७५५५-४८+8) (२) आध्यात्मिक पद-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (भाई विवेक) आध्यात्मिक पद, उपा. मानविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., ६७२९-९
(अलख अगोचर) ६७६७-६८ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (साधु | आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा.६, पद्य, भाई) ६७६७-१३
मूपू., (जब लगे आवे) ६७६७-५१, ९१६५-५६ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (साधु | आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहि., गा. १२, पद्य, सङ्गत) ६७२९-८), ६२३०-८
मुपू., (जब लगे समत) ६७६७-१९ (२) आध्यात्मिक पद-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (आनन्दघन मु) आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ३, पद्य, ६७२९-८)
मूपू., (तो विना ओर) ६७६७-२० आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहि., गा. ८, पद्य, (साधो भाई) ६२३०-५०, ६०३९-१२)
मूपू.. (सबल या छाक) ६७६७-५३, ९१६५-५८६) आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, श्रा. रुपचन्द, प्राहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (लख (सुहागणि जा) ७५५५-४७), ६२३०-४
लहो रे) १३४२-२०) आध्यात्मिक पद, कबीर, प्राहिं., गा. ५, पद्य, वै., (ऐसी होरी) आध्यात्मिक पद, मु. रूपचन्द, प्राहि.,राज., गा. ५, पद्य, मूपू., २३४२-१३७
(है इस सहिर) २३४२-१५० आध्यात्मिक पद, कबीर, प्राहि., गा.४, पद्य, वै., (तेरी काया) आध्यात्मिक पद, मु. वसन्त, प्राहि., गा.७, पद्य, मूपू.. (निज २३४२-१६४
आतम घट) २७९२-२७६) आध्यात्मिक पद, मु. चिदानन्द, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सन्तो | आध्यात्मिक पद, मु. विनय, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (किसके अचरज) २३४२-१६६
बे) १७९५-२२, ६७६७-२५, ६००४-१३७, ९१६५-३०६) । आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू.. (चाल | आध्यात्मिक पद, सूरदास, प्राहिं., गा. ३, पद्य, वै., (हमारो अवर) एहि थे) ३१२९-३०
२३४२-१५६,२३४२-१६७ आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (ज्ञान । आध्यात्मिक पद-काया, मु. जिनराज, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., नही) ३१२९-३३७)
(सुणि बहिनी) ७५६२-१५ आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (झझुटि | आध्यात्मिक पद-जकडी, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ६, पद्य, उपरव) ३१२९-२९
मूपू.. (राशि शशि) ६७२९-३, ६२३०-३७ आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (तन । (२) आध्यात्मिक पद-टबार्थ, प्राहि., गद्य, मूपू., (एनौ अर्थास) वस्त्र) २३४२-३८,३१२९-३२
६७२९-३) आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (पर आध्यात्मिक पद- धर्मशरण, मु. राम, प्राहिं., गा. ६, पद्य, जै., भव में) ३१२९-३७)
(धन भी छोडु) ३१२९-३६) आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (परभव | आध्यात्मिक पद-निद्रात्या, मु. दानविजय, मागु., गा. ५, पद्य,
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५१९ मूपू.. (रे जीव निद) १३४२-२२+)
__ वि. १६८४, पद्य, मूपू., (वर्द्धमान) २३८८-२१), ४४६१, ६००७, आध्यात्मिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मागु., गा. ८, पद्य, ८४३७-१, १९५५, ५९९५७, १११९%), १५४६(5) जै., (निन्दरडी) ५६७९-७६, ७५५२-१४६)
आनन्दादि दशश्रावक सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., गा. १८, आध्यात्मिक पद-फकीरी, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., वि. १८२९, पद्य, जै., (आणन्द ने) ३१३०-३७) (तेनें एसी) २३४२-१६२
आयुष्य विचार*, मागु., गद्य, मूपू., (१२० हाथीनो) १९८८-३), आध्यात्मिक सज्झाय, प्राहि., गा. १५, पद्य, जै., (-) ६०९५-१) ३५७२-४, ७०७३-२ आध्यात्मिक सज्झाय, प्राहिं., गा. ८, पद्य, जै., (मूरख के भा) आराधना, राज., गद्य, जै., (-) ४०५६-१७) ६०६४-५१७
आराधना, मागु., ग्रं.२२७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहन) ५९२७ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., आराधना, मु. हंस, मागु., गा. ९६, पद्य, मूपू., (पहिलउ नमस) (पीउडा जिनच) २८५-२७+8)
१५४४ आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ८, आरामनन्दन प्रबन्ध, मु. भक्तिकुशल, मागु., गा. ३७०, वि. १६८१,
पद्य, मूपू., (चेतन जो तु) ६७६७-३, ६०३९-६७, ९१६५-५७) पद्य, मूपू., (सुख अनन्त) ९१६८ आध्यात्मिक सज्झाय, आ. विनयप्रभसूरि, मागु., गा. ८, पद्य, आर्द्रकुमार सज्झाय, मु. माणिक, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., (रे मूपू., (सासरीये इम) ६०७३-१६
साजनीया) ५८९९-१६ आध्यात्मिक सवैया, मागु., गा. १, पद्य, जै., (नही काम नह) आलोयणा, मागु., गद्य, मूपू., (७ सातलाख) ७७८०-८ ५४७-१२
आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ३६, वि. आध्यात्मिक सवैया, प्राहि., गा. ३, पद्य, (आबोइतसामनक)
१६९८, पद्य, मूपू., (पाप आलोयु) ९८०-१८ २३४२-३४
आलोयणा विचार, मागु., गद्य, मूपू., (१ सूत्रार) १४९०-८ आध्यात्मिक सवैया सड़ग्रह, पं. रूपविजय, हिन्दी, गा.५५, पद्य, । आलोयणा विचार, ऋ. चन्द्रभाण, मागु., पद्य, जै., (सिद्ध श्री) मूपू., (ॐ हे अवि) १८०७
५९७४ आध्यात्मिक स्तुति, मागु., गा. ४, पद्य, जै., (सवारे उठी) ७५५५- आलोयणा विधि, मागु., गद्य, जै., (अतीत काल) ३२०५१, २२८१ ६९)
आलोयणा विधि, मागु., गद्य, जै., (णमो अरिहन) २४३-१ आध्यात्मिक होरी, राज., गा. ८, पद्य, जै., (होरी खेलण) ६०४९- आलोयणा विधि, मु. वालचन्द, मागु., गद्य, जै., (प्रथम नोका)
१८५६ आध्यात्मिक होरी, प्राहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (मनुषा देही) आलोयणा सज्झाय, मु. मानसागर, मागु., गा. २५, पद्य, मूपू., ६०४९-८-)
(सुणे कविजन) ६०८७-१३%) आध्यात्मिक होरी, मु. ज्ञानसार, प्राहि., गा. ३, पद्य, मूपू., आशामारण मार्ग, मागु., गद्य, जै., (आसा मारवान) ५९४२-४ (परघर खेलत) २६७५-४२
आषाढपूनम विचार, मागु., गद्य, (आषाढी पुनम) ७८४०-३ आध्यात्मिक होरी, मु. भूधर, प्राहि., गा. ५, पद्य, जै., (घर आये आषाढाभूति चरित्र, वा. कनकसोम, मागु., गा. ६७, वि. १६३८, चिद) २६७५-४३
__ पद्य, मूपू., (श्रीजिनवदन) ७५५५-७५६६), ६०२९-११) आध्यात्मिक होरी, ऋ. रतनचन्द, प्राहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (एसै | आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., ढाल १६, गा. २१८, भव जिण) ६०६४-४७)
ग्रं.३५१, वि. १७२४, पद्य, मूपू.. (सकल ऋद्धि) २८५-५५६), आध्यात्मिक होरी, मु. सुमति, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (चेतन ३८१, ४४६०, ९१२५-१, ४४६९-२, ३३८९, ९०१९६) खेले) २७९२-२८७
आषाढाभूति पंचढालिया, मागु., ढाल ५, पद्य, जै., (दरसण आनन्दघन गीतबहोत्तरी, मु. आनन्दघन, प्राहि., ७८ पद, पद्य, परीसो) ७६९-३८ मूपू., (क्या सोवेउ) २६००
आषाढाभूति पंचढालिया, ऋ. रायचन्द, मागु., ढाल ५, वि. आनन्दघन पदसङ्ग्रह, मु. आनन्दघन, प्राहिं., १०८ पद, पद्य, १८३६, पद्य, मूपू., (दरसण परिसो) ४४९७-४ मूपू., (क्या सोवे) ५१६४, ६२३०-१, ५०८८६)
आषाढाभूति प्रबन्ध-मायापिण्डग्रहणे, मु. कीर्तिमुनि, प्राहि., गा. आनन्दश्रावक गौतमस्वामी चर्चा स्तवन, ऋ. चौथमल, मागु., गा. १९०, वि. १६२४, पद्य, मूपू., (सुखनिधान) १७६१-१ १३, वि. १८२४, पद्य, जै., (हाथ जोडी) २३४१-३६
आषाढाभूति रास, मु. धर्मरुचि-शिष्य, मागु., गा. ५७, पद्य, मूपू., आनन्दश्रावक रास, मागु., पद्य, जै., (-) १८५९
(श्रीसन्ति) ७६५३-३ आनन्दश्रावक सन्धि, पाठक श्रीसार, मागु., ढाल १५, गा. २५२, | आषाढाभूति रास, ऋ. रतनचन्द, मागु., ढाल ९, वि. १८८३,
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५२०
पद्य, जै., ( गणधर गौतम) ७६९-२९, ४४९७-३
आषाढाभूति सज्झाय, मु. भावरत्नसूरि मागु ढाल ५. पद्य, भूपू
(श्रीश्रुतद) ७५६५-३*
आषाढाभूति सज्झाय, मु. राजविजय, मागु, ढाल ५, पद्य, मृपू.. ( दरसन परिसह) ६००१-६२
इक्षुकारराजा ढाल, मागु., ढाल ७, पद्य, जै., (देव हुंता) ७६९-३५ इक्षुकुमार कलावती षड्ढालिया, मु. माल, मागु., ढाल ६, वि. १८५५, पद्य, स्था., (चोवीसे जिन ) १४५९
इरियावहि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मागु, गा. १६, प.. (सकल कुशलदा) ७५५५
(+$)
इरियावही मिच्छामि दुक्कडं सङ्ख्या स्तवन, गणि लक्ष्मीवल्लभ, मागु., ढाल ४, गा. १५, पद्य, मूपू., (पद पङ्कज) ६२१७-१ इरियावही सज्झाय, मु. मेघचन्द्र-शिष्य मागु, गा. ६ पथ, मृपू.. (नारी मे दी ) १७९५-१६
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"
.
3
इरियावही सज्झाय, उपा. विनयविजय, मागु., ढाल २, गा. २५, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवीन ) ६००१-४१, ६०३७-५ इरियावही सज्झाय, पं. वीरविजय, मागु, गा. १४, पद्य, मूपू.,
"
(गुरु सन्मु) ६०७३-१५
इलाचीकुमार चौढालिया, मागु., ढाल ४, पद्य, जै., ( प्रथम गुणध) ७६९-४९
इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु, दाल १६ गा. १८७, २९९. वि. १७१९ पद्य भूपू (सकलसिद्धदा) १९७८-१, २६९७, ८७९७-१, ८८५७, ९१४८, ७९२५, ४३१६ (७), ५०८९ (5),
($)
६२३९
इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., गा. १५, पद्य, मूपु. ( नाम एला पु) ६०५३-९) २८५-४०/० ७५६२-१६,
"
($)
3
($) १०९८-१० ६०६४-३४ ७५५२-१ २४३२-२ उत्तमकुमार कथा, मागु., ग्रं. ५२५, गद्य, मुपू., ( अरथ जेणे)
(+)
४७४८
उत्तमकुमार चरित्र, मु. विजयशील, मागु., गा. ६३८, वि. १६४१, पा, भूपू. (सकल सुख रान) २२४
उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्त्वहंस, मागु., ढाल ५१, ग्रं. १६३६, वि. १७३१, पद्य, ग्रुपु. ( सरसति सामण) ५३६९, ८३०७
($)
3
उदयस्वामित्व यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी) १४३० १४४११ १४०३-१ (+$) उदायीराजा चौढालिया, मागु., ढाल ४, पद्य, मूप्पू., (चम्पानगरी) ७६९-५०
उपदेशछत्तीसी, पं. वीरविजय, मागु, गा. ३७, पद्य, मूपू., (साम्भलज्यो) ६०९१-३५
उपदेशछत्रीसी, . रतनचन्द, मागु, गा. ३६, पद्य, जे. (सबद करी सत) ६०५२-३३. ३१३०-२४
उपदेशपच्चीसी, प्राहिं, गा. २७, पद्य, जै.. (ध्यान धरो) ३०४१-४
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
उपदेशपच्चीसी, प्राहिं., गा. २६, वि. १७४१, पद्य, जै., ( वीतराग के) ६०८७-३९क
उपदेशपच्चीसी, ऋ. चन्द्रभाण, राज., गा. २५, वि. १८६०, पद्य, जै.. (चौरासी मे ) ६०९५-१४
उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचन्द, राज., गा. २७, वि. १८७८, पद्य, जै., (निठ निठ नर) ६०५२-६३
उपदेशपच्चीसी, मु. रामदास, मागु., गा. २५, पद्य, मूपू., (लख चौरासी) ६७०४-३
उपदेश पद प्राहि, गा. १०, पद्य, जै., (वाला जोवन) २३४२-२६ उपदेशवत्तीसी मु. राज, प्राहि, गा. ३०, पद्य, भूपू (आतमराम
"
(+S)
"
सया) ७५५५-६७*
उपदेशसत्तरि कथा, मु. रामचन्द, मागु., ढाल ३, वि. १९४८, पद्य, मुपू., ( उपदेश शतरी) ७५५९-६
($)
(+#)
($)
"
उपधानतप स्तवन, मु. उत्तमचन्द, मागु., ढाल ५, वि. १७११, पद्य, मृपू. (समरी सरसति) २३४६ ९०००-३ उपधानतप स्तवन, पण्डित प्रेमविजय, मागु., ढाल ३, गा. ३६, वि. १७८५, पद्य, मुपू., (प्रणमी वीर) ५८९९-१० उपशम सज्झाय, मु. हेमविजय, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., ( जबलग उपशम) ६७६७-१८
उपशमादिभावना प्रभेद, मागु., कोष्टक, मूपू., ( उपसम भावना) ३२६१-२१
उपसम सज्झाय, मु. विजयभद्र, मागु., गा. १२, पद्य, मूप्पू., (भयभञ्जण रञ) ७७८१-७
उपाध्यायपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ३, पद्य, मृपू. (पाठक गुण) ६५९३-१०
उपाध्यायपद चैत्यवन्दन, पाठक हीरधर्म, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( धन धन श्री ) ६१३२-४, २१२८-१२
($)
उपाध्यायपद स्तवन, मु. कुशल, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हुने
($)
हुयन) २१२८-१३*
उपाध्यायपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मुपू., (हम तुमरी ) ६५९३-११
उपाध्यायपद स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., ( अङ्ग इग्या) २१२८-१४(S)
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उपाध्यायपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मुपू., (सहु पाप पण ) ६१३२-१३, ६५९३-१२ ऋषभदत्तदेवानन्दा सज्झाय, मागु., ढाल ७, पद्य, मूप्पू., ( तिण काले) ६८९५-१
(S)
ऋषिदत्तासती कथा, मागु., गद्य, मूपू., ( इण मगधदेशि ) ६०५८-२ ऋषिदत्तासती चौपाई, ऋ. चोथमल, मागु., ढाल ५७, वि. १८६४, पद्य, जै., (सासण नायक) ३६२, ९२३६ (HS) ऋषिदत्तासती चौपा- शीलव्रतविषये, मु. देवकलश, मागु., गा. ३०१, वि. १५६९, पद्य, ग्रुपु. ( श्रीसरसति) ६८७४/- ५६७०
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५२१ ८८१२, ७१३६(६)
औपदेशिक गीत, मु. भाणचन्द, प्राहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (हां ऋषिदत्तासती रास, आ. जयवन्तसूरि, मागु., ढाल ४१, गा. ५६२, | इक तुं) ९०३९-३, ९००१-३
ग्रं.८५०, वि. १६४३, पद्य, मूपू., (उदय अधिक) ८८०७+5), औपदेशिक गीत, मु. लालचन्द, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., (दया ३९२८, ९२५९
बिन कर) ६०४९-३७) ऋषिबत्रीसी, मु. यशहर्ष, मागु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (अष्टापद) औपदेशिक गीत, मु. विनय, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (थिर ७५४९-६
नांहि) ९१६५-२३ एकमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.... | औपदेशिक गीत, मु. विनय, प्राहि., गा. २, पद्य, मूपू., (दुरमति (एक मिथ्यात) ७५४१-११
___डार) ९१६५-१५ एकादशीतिथि चैत्यवन्दन, मु. खिमाविजय, मागु., गा. ९, पद्य, औपदेशिक गीत, मु. विनय, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (पिउजी
मूपू., (शासननायक) १११७-७, ६६३१-१५, ५६९९-८-) ___ मोहि) ९१६५-१७ एकादशीतिथि नमस्कार, गणि खिमाविजय, मागु., गा. १२, पद्य, | औपदेशिक गीत, मु. विनय, प्राहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्यारे मूपू., (नेमि जिणेस) ६०६६-२
___ काह) ९१६५-१६६ एकादशीतिथि पुराण, मु. भूषणदास, मागु., ढाल २, पद्य, मूपू., । औपदेशिक गीत, मु. विनय, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन न (मिथ्यात्वी) ६०५३-३)
काहु) ९१६५-२४७ एकादशीतिथि सज्झाय, वा. उदयरतन, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., | औपदेशिक चाबखा, श्रा. छगन, मागु., गा.३, पद्य, जै., (धाखना (आज एकादसी) १७९५-६, ६००४-५७
धन) ६०८२-६ एकादशीतिथि स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मागु., गा. ४, पद्य, औपदेशिक चाबखा, श्रा. छगन, मागु., गा. ३, पद्य, जै., (भई मूपू., (प्रह उठी) २३४२-९८
तुमे दे) ६०८२-९ एषणाशतक भाषा, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गा. १०१, पद्य, औपदेशिक चाबखा, श्रा. छगन, मागु., गा.३, पद्य, जै., (भई मूपू., (श्रीजिनशास) ४२६५
तुमे दे) ६०८२-१० ओलीपारणा स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., औपदेशिक चाबखो-परनारीपरिहार, छगन, मागु., गा. ३, पद्य, (नित प्रति) ६१३२-१९
जै., (देखोने दुन) ६०८२-७ ओसियामाता छंद, मु. हेम, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देवी सेवी) औपदेशिक छन्द, पण्डित लक्ष्मीकल्लोल, मागु., गा. १६, पद्य, ६०५५-२६)
मुपू., (भगवती भारत) १३४१-१४+६), ७७८१-८, १८०२-८, औपदेशिक कथा सङ्ग्रह, मागु., पद्य, जै., (कुमारनन्दे) १८३७७ १७८७-१७, ७५६५-९६ औपदेशिक कवित्त, प्राहिं., गा. १, पद्य, जै., (रावण राज) औपदेशिक छन्द-त्रोटकनामा, कवि दीपविजय, मागु., गा. ९, ६०१७-१५
पद्य, मूपू., (वरदायक माय) ७०८८-२(5) औपदेशिक कवित्त, ऋ. देवीदासजी, प्राहिं., गा. ८, पद्य, जै., औपदेशिक जकडी-जीवकाया, मु. विनय, प्राहिं., गा. ५, पद्य, (कुमत तै जस) ६०८०-८(5)
मूपू., (काया कामनी) ६७६७-२३, ९१६५-२८७) । औपदेशिक गीत, मागु., गा.४, पद्य, मूपू., (एकेन्द्री) ५८७३-९१) औपदेशिक ढाल, मागु., गा. ६५, पद्य, जै., (ए संसार अस) औपदेशिक गीत, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एसे सेर बि) ९१५६
३९४८-१
औपदेशिक ढाल पैसा, मु. जेतसी, राज., गा. ९, पद्य, जै., औपदेशिक गीत, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू.. (चिहुं गतिम) २३४१- (श्रीजिनवर) १८००-१८६)
औपदेशिक दूहा, राज., गा. ४४, पद्य, (आयो आस करे) ५४७-१ औपदेशिक गीत, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (बाला रूपशा) औपदेशिक दूहा, राज., गा. ३, पद्य, (मांचे मोटी) १४८९-१२
औपदेशिक दूहा, मागु., गा. १, पद्य, जै., (सजन फल जिम) औपदेशिक गीत, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै.. (अरे देवाधि) ९१५६- ७५४१-२८
औपदेशिक दूहा, प्राहि., पद्य, (सोरठ गढथी) ३६५-५, ५८१७औपदेशिक गीत, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (माइ मेरीया) ९१५६- २, ६४२३-५१, २८५-२८+5), १८०२-६, २६७-२७), ६०६७-९०
औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, राज., ढाल ३, गा. ७+११+१४, पद्य, औपदेशिक गीत, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., (माल मुलक) ६०४९- (कागद को लख) ६०६७-१८
औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, मागु., पद्य, जै., (लगे भुख) ५०२०
२७
२२
९१६५-५५
१४/-)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
२/७
औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, मागु., गा. ३, पद्य, (साढडियां) ७६७२
।
औपदेशिक पद, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (अरज करू कर)
६०१७-२५ औपदेशिक पद, मागु., गा. १, पद्य, मूपू.. (गया दान सन)
१४८९-१७ औपदेशिक पद, मागु., गा. ३, पद्य, जै., (चलं चितं) १८२२-२ औपदेशिक पद, मागु., पद्य, जै., (जीय माह मो) ६०१७-३३६ औपदेशिक पद, मागु., पद्य, (भ्रूहन की) ५५५६-४७ औपदेशिक पद, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मानव भव ला)
२३४१-३२ औपदेशिक पद, मागु., गा. १३, पद्य, जै., (विषिया लाल)
६०६४-८(5) औपदेशिक पद, प्राहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (अरे मन सोच)
२३४२-६६ औपदेशिक पद, प्राहि., गा. ५, पद्य, जै., (अव तेरो दा) २६७५
२४
।
औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, मागु., पद्य, मूपू., (सिद्ध श्री) ४२४८ औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, प्राहि.,राज., गा. ३०, पद्य, (मोपन
साचुं) २३४२-१४३ औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, मु. नवल, प्राहिं., पद्य, मूपू., (देवमे
अरिह) ६०६४-१६(६) औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, ऋ. रूपचन्द, प्राहिं., गा. ४४, पद्य,
जै., (अपनौ पद न) ६०६५-२६) औपदेशिक दोहा, कवि तुलसी, हिन्दी, गा. १, पद्य, (ग्यान
गरिब) २-२ औपदेशिक दोहा सङ्ग्रह, प्राहिं., गा. १३, पद्य, (एक समे जब)
३३१७-२ औपदेशिक दोहा सङ्ग्रह, प्राहि., गा. ४६, पद्य, (चोपड खेले)
२३४२-३५ औपदेशिक ध्रुव पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ४,
पद्य, मूपू., (ए परम ब्रह) ६७६७-१४ औपदेशिक ध्रुव पद, मु. विनय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (साधो
भाई) ६७६७-१२ औपदेशिक निसाणी, मु. विजयसिंह, मागु., गा. २०, पद्य, मूपू.,
(सवर माता) ६५१२-४+) औपदेशिक निसाणी, कवि सिंह, मागु., गा. ३१, पद्य, (राम ।
विना) ६५१२-५६) औपदेशिक पखवाडो, मु. डूङ्गरसी, राज., गा. १६, पद्य, जै.,
(एकम जीव इक) ६२०३-१(5) औपदेशिक पद, राज., गा. ४, पद्य, जै., (अरे तें वा) २३४२-१०५ औपदेशिक पद, राज., गा. ३, पद्य, मूपू., (इन नैन की) २३४२
७७ औपदेशिक पद, राज., गा. १०, पद्य, मूपू., (कुड कपट कर)
६०५७-२३ औपदेशिक पद, राज., गा. १०, पद्य, जै., (धर ध्यान) ६०९५
औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आगे मिल गए)
२६७६-७) औपदेशिक पद, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऐसी समज के)
२६७५-६ औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. २०, पद्य, वै., (कहती त्रिय) १३३९
औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (जसै काग ऊड)
६०६४-३९ औपदेशिक पद, प्राहि., गा. १९२, पद्य, जै., (जीवन की चा)
३१२३-१ औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ८, पद्य, (जुलम करना) ३१२९-२३६) औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, (जुल्म कर) ३१२९-२२१) औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ७, पद्य, जै., (देखत हुँ) ५८७३-३६) औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (देखो होनी) २३४२-९४ औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (नव नय के) २७९२
२४)
औपदेशिक पद, राज., गा. ७, पद्य, जै., (धोयलारी धो) ६०९५
औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (पापी कहा) ६४३
२, ४३०४-२ औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (पीया विन) २६७५-३० औपदेशिक पद, प्राहि., गा. ४, पद्य, (बाग नही वे) १७९७-७ औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ८, पद्य, जै., (ब्रह्मग्या) २३४२-१०४ औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., (यार खुद गर) ३१२९
१५)
४८)
औपदेशिक पद, राज., गा. ३, पद्य, जै., (नगन रूप दो) २३४२
५२ औपदेशिक पद, राज., पद्य, जै.. (पेट पोयणरो) ६०१७-२६७ औपदेशिक पद, राज., गा. ८, पद्य, जै., (प्रबल प्रत) ३१२९-६६ औपदेशिक पद, राज., गा.४, पद्य, जै., (माने निर) ६०६४-४०) औपदेशिक पद, राज.,प्राहिं., पद्य, जै., (मन्दिर च्य) २३४२-१ औपदेशिक पद, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (-) ७५५३-३६)
| औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ६, पद्य, (रहम जो करत) ३१२९
२१(8)
औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (राम रता सो) १४९२
३)
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६०
४७
५२
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५२३ औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., (वटाउडा गुज) २३४२- | औपदेशिक पद, कबीर, प्राहिं., गा. ५, पद्य, वै., (राग विनज) १५९, १८००-१००
२३४२-१११ औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, वै., (वा वा गुजर) ६०५२- | औपदेशिक पद, मु. केशवदास, प्राहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य,
__ पू., (जा घरि तेल) ५८७१-४ औपदेशिक पद, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (शान्त कोइ) ३१२९- । औपदेशिक पद, मु. केशवदास, प्राहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य,
मूपू., (मालव देश) ५८७१-३ औपदेशिक पद, प्राहि., गा.६, पद्य, जै., (सदा तुम कर) ३१२९- औपदेशिक पद, मु. खेम, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धरम करि
धर) ७५५५-६५६) औपदेशिक पद, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (समज के शीर) औपदेशिक पद, मु. गुणविलास, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरे २३४१-६
हृदय) २७९२-२६६ औपदेशिक पद , प्राहि., गा. ७, पद्य, जै., (साधो भाइ) २६७६- औपदेशिक पद, गुलाब, राज., गा. ५, पद्य, जै., (वनडो भलो)
२३४२-२ औपदेशिक पद, प्राहि., गा. ३, पद्य, जै., (सुयो तु वो) २६७५-४१ औपदेशिक पद, चरणदास, प्राहि., गा. ८, पद्य, वै., (पिले रे औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (होरी खेलो) २३४२- ___ अब) ३१२९-२६० १३६, ६०८०-१२)
औपदेशिक पद, चान्दमल, राज., गा. ५, पद्य, जै., (मुतलब की) औपदेशिक पद, प्राहि., गा. ३, पद्य, जै., (होरी भाई) २६७५-३८
३१२९-४१ औपदेशिक पद, प्राहिं.,राज., गा. ३, पद्य, जै.. (दुखसु काहि) औपदेशिक पद, मु. जयराम, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (असरण २३४२-६५
सरण) २७९२-५६ औपदेशिक पद, प्राहि.,राज., गा. ४, पद्य, जै., (पुन साकरे) औपदेशिक पद, मु. जिनदास, राज., गा. ५, पद्य, मूपू., (सन्तो २३४२-१८
भाइ) ३१२९-१९) औपदेशिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ३, पद्य, पू., (तुम (अवसर बेर) १७५४-३
जिनन्द) २३४१-३० औपदेशिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू.. (जिया औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (तुम जानै) ७५५५-४६+६, ६२३०-३, ९१५६-१९६)
___ तजौ जग) २३४१-१८, १८००-२१, ६०९५-२६) औपदेशिक पद, आनन्दराम, प्राहिं., गा.४, पद्य, वै., (छीटीसी औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तेने ग्य) ६०५२-५३
केसी) २३४२-१६१ औपदेशिक पद, कबीर, राज., गा. ३, पद्य, (जन्म सारौ) २३४२- औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मना
तोने) ३१२९-५१७) औपदेशिक पद, कबीर, राज., गा. ३, पद्य, वै., (तु तो राम) औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेतो ३१२९-१३
नर्क) २३४२-१२८ औपदेशिक पद, कबीर, प्राहिं., गा. ४, पद्य, वै., (जोबन धन पा) औपदेशिक पद, मु. जिनराज, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कबहूं २३४२-२७
___ में) ७५५५-५० औपदेशिक पद, कबीर, प्राहि., गा. २, पद्य, वै., (भेष को देख) औपदेशिक पद, मु. जिनराज, प्राहिं., गा. ३. पद्य, मूपू., (कहा रे ६०६४-२९६
अग) ७५५५-४३६, २३४२-११७, ६२३०-५६ औपदेशिक पद, कबीर, प्राहिं., गा. ३, पद्य, वै., (मछा मालली) औपदेशिक पद, मु. जिनहर्ष, मागु., गद्य, मूपू., (भगवत भारथ) ६०१७-२७
६०८७-३५ औपदेशिक पद, कबीर, प्राहि., गा. ३, पद्य, वै., (मना तुं एस) औपदेशिक पद, जेष्ठ, प्राहिं.,राज., गा. ६, पद्य, जै., (चेतन तुं) २३४२-३२
२३४२-१४२ औपदेशिक पद, कबीर, प्राहिं., गा. ४, पद्य, वै., (ममता वीन) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसागर, प्राहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मत ३१२९-८
डारो पी) ६०६८-४ औपदेशिक पद, कबीर, प्राहि., गा. ७, पद्य, वै., (मेरी पीया) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, प्राहि., गा. ४, पद्य, जै., (भोर
भयो भो) २६७५-१४
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५२४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ औपदेशिक पद, मु. दिलहर्ष, मागु., गा. ९, वि. १८३२, पद्य, जै., | दसणि) ५९२१-३ (मनधर सारद) ६८११-३(48)
औपदेशिक पद, मु. मोजी, राज., गा. ५, पद्य, मूपू., (तोरी रे औपदेशिक पद, मु. देवचन्द्र, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कर्म भइ) ६०४९-१८(8-) शत्रु) ६०५२-५४
औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ६, पद्य, औपदेशिक पद, ऋ. देवीदासजी, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै.,
मूपू., (कन्त विण) ६७६७-२, ९१६५-२ (दुरमति दूर) ६०५७-२५
औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, पद्य, औपदेशिक पद, मु. धनदास, राज., गा.७, पद्य, जै., (बीति
मपू., (सजन राख तर) ६७६७-५ राति) ६०५७-१४
औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ५, पद्य, औपदेशिक पद, मु. धनदास, राज., गा.७, पद्य, जै., (वीतराग मूपू., (अजब गति चि) ७७२३-११), ६७६७-६, ९१६५-६६ पद) ६०५७-१५
औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहि., गा. ४, पद्य, औपदेशिक पद, नग, राज., गा.८, पद्य, (थोडे दिन) २३४१-४१ । पू., (अजब बनी है) ६७६७-३६, ९१६५-४१(5) औपदेशिक पद, मु. नवल, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (पुदगल का) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहि., गा.६, पद्य, २३४२-४५
मूपू., (चेतन अब मो) ६७६७-४, ९१६५-५९ औपदेशिक पद, मु. नाथ, प्राहिं., गा. १, पद्य, जै., (कुल
औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. १६, पद्य, कलङ्क) ८९३१-४
___ मूपू., (चेतन मोह) ६७६७-९ औपदेशिक पद, मु. नेमिचन्द, प्राहिं., गा. १३, वि. १९७४, पद्य, | औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. १०, पद्य, __ जै., (अरे टेडि) ३१२९-३८)
मूपू., (परम गुरु) ६७६७-६२, ९१६५-३६ औपदेशिक पद, नेमिदास, प्राहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (ना भमियो) औपदेशिक पद , उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ६, पद्य, ८९२२-२
मूपू.. (परम प्रभु) ६७६७-२२, ६०३९-७, ९१६५-४६) औपदेशिक पद, मु. पेम, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (ममत मत औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहि., गा. ५, पद्य, कीज) २३४१-३१
मूपू., (प्रभु तेरे) ६७६७-२८, ९१६५-३३(६) औपदेशिक पद, बनारसीदास, प्राहिं., गा. ८, पद्य, जै., (या औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ३, पद्य, चेतन की) ७५५५-५९(+)
मूपू., (मन की तहु) ६७६७-७२, ९१६५-६०) औपदेशिक पद, कवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. ७, पद्य, दि., औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहि., गा. ३, पद्य, (समझ रे नर) ६०६४-३७)
मूपू.. (या गति कोन) ६७६७-३१, ९१६५-३६ औपदेशिक पद, मु. बालचन्द, प्राहि., गा. ५, पद्य, जै., (जरा दुर | औपदेशिक पद, मु. रतनचन्द, राज., गा. ६, पद्य, जै., जब) ५८७१-५
(जोबनीयारी) १८००-५७) औपदेशिक पद, मु. ब्रह्म, मागु., गा. ९, पद्य, जै., (प्रथम गुरा) औपदेशिक पद, मु. रतनचन्द, राज., गा. ५, पद्य, जै., (तेरी २६७६-९)
फूलसी) १८००-१६(६) औपदेशिक पद, मु. भागचन्द, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., (जीव तु औपदेशिक पद, ऋ. रतनचन्द, प्राहिं., गा. ८, पद्य, जै., (तन भ्र) २३४२-२४
धन जोबन) ६०५२-६२ औपदेशिक पद, मु. भूधर, राज., गा. ४, पद्य, जै., (अरे अग्यान) औपदेशिक पद, राज, मागु., गा.३, पद्य, (आज प्रीउ) ७५५५
६०९५-१९ औपदेशिक पद, मु. भूधर, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै.. (ते मेरा दर) | औपदेशिक पद, मु. राजसमुद्र, प्राहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कउण २३४२-१५८
धरम कौ) ७५५५-५१६) औपदेशिक पद, मु. भूधर, प्राहि., गा. ५, पद्य, जै., (पाप धतुरा) औपदेशिक पद, मु. राजसमुद्र, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (निकै ६०६४-३०
नाथनै) २६७५-२८ औपदेशिक पद, महमद, मागु., गा. १०, पद्य, (कुम्भ काचो) औपदेशिक पद, रामचन्द्र, प्राहि., गा. ११, पद्य, वै., (अबगत ६०६७-१६०
मुरात) ६०५२-४८ औपदेशिक पद, मीराबाई, राज., गा. ५, पद्य, वै., (सुकृत करले) | | औपदेशिक पद, रामदास, राज., गा. ७, पद्य, जै.. (भजन करी ६०५२-४५
रे) २३४२-७३ औपदेशिक पद, वा. मेघ, मागु., गा. २, पद्य, मूपू., (जादव | औपदेशिक पद, ऋ. रूपचन्द, राज., गा. १०, वि. १८३६, पद्य,
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
मृपू. (-) १८००-८
औपदेशिक पद, मु. रूपचन्द, प्राहिं, गा. ५, पद्य, जै.. (मानो सीख) ६०१७-२
($)
औपदेशिक पद, मु. रूपचन्द, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (मोय कैसे ) २३४१-२८
औपदेशिक पद, लाल मरहटी, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., ( तुम सुनो) २६७६-६(+)
औपदेशिक पद, मु. विनय, प्राहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (अज हुं कहा) ९१६५-२१
औपदेशिक पद, मु. विनय, प्राहिं, गा. ५, पद्य, मूपू., ( कहा करू मन) ६०६७-२४ ९१६५-२९
औपदेशिक पद, मु. विनय, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., (घोरा जूठा ) ६७६७-२६. ९१६५-३१०
औपदेशिक पद, मु. विनय, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., (जोगी
एसा ) ६७६७-११
औपदेशिक पद, मु. विनय, प्राहिं, गा. ५. पद्य, मृपू. ( सांइ सलुणा) १९६५-२२
($)
औपदेशिक पद, मु. विनयचन्द, राज, गा. ५, पद्य, जै., (रे चेतन पो) १८००-६
औपदेशिक पद, मु. विनयचन्द, मागु., गा. १७, वि. १८६५, पद्य,
जै.. (बाहिर साग) २३४१-४७
औपदेशिक पद, मु. विनयचन्द, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( मन
मेला नर) २३४१-३३
औपदेशिक पद, मु. विनयचन्द, प्राहिं., गा. १०, पद्य, जै.,
(सुकरत करले) २३४१-३७
औपदेशिक पद, मु. विनयचन्द्र, मागु., गा. १२, पद्य, मुपू., ( धन
ब्राह्म) ६०५२-१७
औपदेशिक पद, मु. विनयविवेक, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू.,
( मगन भयो मा ) ६७६७-५४
औपदेशिक पद, कवि व्यास, प्राहिं, गा. १, पद्य, (कलियुग के )
५५५६-३
औपदेशिक पद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( एक मनसुद्ध) ६७६७-५६
औपदेशिक पद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ३, पद्य, मृपू.. (करम अचेतन) ७५५५-४९
औपदेशिक पद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ४, पद्य, मृपू.. (जागि भाई) ७५५५-६०
औपदेशिक पद, उपा. समयसुन्दर गणि, प्राहिं., गा. १, पद्य,
मूपू., (मन चेला पद ) ६७६७-५५
औपदेशिक पद, मु. सुखसागर, राज, गा. ४, पद्य, ग्रुप्पू, (चेतन
अपनो) २३४२-६८
औपदेशिक पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं. गा. ७, पद्य, ग्रुप्पु. ( साधो
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भाई) २६७६-४०
औपदेशिक पद, हेमराज, प्राहिं., गा. ८, पद्य, मुपू., ( दुपटा मेरा ) ६०९५-२२०
"
औपदेशिक पद- ४ वर्ण प्राहि. गा. ५. पद्य, दि., (जो निहचे) रसखा
औपदेशिक पद- कठोरवचनफल, प्राहिं., गा. २, पद्य, जै., (जो सर लगो) १४८९ - १६
औपदेशिक पद-कर्कशानारी, सूरज, राज, गा. ८, पद्य, जै.. (मगरी उपर) ३१३१-९
औपदेशिक पद- कावाअनित्यता, राज, गा. ७, पद्य, मृपू., (सुण बहीनी) ११६४-२
औपदेशिक पद-कायाअनित्यता, प्राहिं., गा. ७, पद्य, जै., (आव चल संग) २३४२-१९
औपदेशिक पद-काया अनित्यता, मु. जिनदास, राज., गा. २, पद्य, जै.. (अरी काया) २३४२-११५
औपदेशिक पद- काया अनित्यता, मु. जिनहर्ष, हिन्दी, गा. १, पद्य, मृ.. (काहे काया) २२२३-२
औपदेशिक पद- कायाउपवेश, मु. भूधर, प्राहिं. गा. ५. पद्य, जै, ( चरखा भया) २३४२-१२ औपदेशिक पद-कायामाजन, कबीर, मागु., गा. ४, पद्य, वै., (भया रे काय ) ६०५२-५९
(S)
औपदेशिक पद-क्रोधोपरि, मागु., पद्य, जै., (हृदय न राख) ३१२९-५३* औपदेशिक पद-क्रोधोपरि, मु. नवल, राज., गा. ४, पद्य, जै., (भूलि हु) २३४२-६४
औपदेशिक पद-जगत अस्थिरता, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जाय छे जगत) ३१२९-२५
औपदेशिक पद-जगत अस्थिरता, मु. गोपाल, प्राहिं., गा. २५,
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पद्य, मूपू., ( एह परमादी) २३४२-४४
औपदेशिक पद - जीवकाया, मु. विनय, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुनि सुहाग ) ९१६५ साली
($)
औपदेशिक पद जूठीप्रीत, मु. जिनतुलसी, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै.. (देसजो विरा) ६०६४
पदेशिक पद-ज्ञानदृष्टि उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं, गा. ६. पद्य, मृपू. (चेतन ज्ञान) ६७६७-१ ९१६५-१ औपदेशिक पद- धर्मकरणी, प्राहिं, गा. २, पद्य, जै.. (अब आछो दाव) २३४२-१०३
औपदेशिक पद- धीरज, उदेराज, राज., गा. १, पद्य, जै., ( हीमत राख) १४८९-१९
औपदेशिक पद प्रभुभजन, प्राहिं. गा. ४, पद्य, जै.. ( मगन रहो रे) २३४२-७२
औपदेशिक पद-बुढ़ापा, दुर्लभ, मागु, गा. ६, पद्य, मृपू., (घडपण
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५२६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
__ म्हार) ३१२९-१४
(सुगुरु की) ११७६-१० औपदेशिक पद-बुढ़ापा, मु. भुधर, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (आयो | औपदेशिक लावणी, ऋ. रामकिसन, प्राहिं., गा. १९, वि. १८६८, रे बुढ) २३४२-४८,६०४९-१७७)
पद्य, जै., (चेत चतुर) ११७६-२०, ७३९०-९५७-) औपदेशिक पद-मनुष्यभवदुर्लभता, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रभु औपदेशिक लावणी-कायाउपदेश, मु. देवचन्द, प्राहि., गा. ७, का) ३१२९-३९)
पद्य, मूपू., (काया रे कह) ११७६-६ औपदेशिक पद-मनुष्यभवदुर्लभता, ऋ. रतनचन्द, राज., गा. ७, औपदेशिक लावणी-पौद्गलिकसुख, मु. जिनदास, मागु., गा. ६, पद्य, जै., (मानवरो भव) ३१२९-२७७)
___ पद्य, मूपू.. (सूकृत की) ६०५२-४ औपदेशिक पद-मूर्खमन, राज., गा. ४, पद्य, जै., (अरे मन मूर) औपदेशिक व्याख्यान, मागु., गद्य, जै., (णमो अरिहन) ४७४६-१ २३४२-२३
औपदेशिक सज्झाय, राज., गा. २४, पद्य, जै., (-) ६०९५-८६) औपदेशिक पद-मोहमाया, प्राहि., गा. ४, पद्य, जै., (कोइ मत औपदेशिक सज्झाय, राज., गा. १६, पद्य, जै., (खबर कर दैण) करज) २३४२-४०
१३४१-१३ औपदेशिक पद-योवन, मु. उदयरत्न', मागु., गा. ५, पद्य, जै., । औपदेशिक सज्झाय, राज., गा. ९, पद्य, जै., (चली जा चली) (योवनीयानी) १३४२-८)
६०९५-२१ औपदेशिक पद-यौवन, राज., पद्य, जै., (जोवन मे जो) ३१२९- औपदेशिक सज्झाय, राज., गा.६, पद्य, मूप.. (धर्म पावे) २३४१
१७ औपदेशिक पद-वैराग्य पद, प्राहिं., पद्य, मूपू., (धरम को ढोल) औपदेशिक सज्झाय, राज., गा. ३, पद्य, जै., (मन रे तुं) २३४२२६७६-१५)
१२२ औपदेशिक पद सङ्ग्रह, मु. ज्ञानसार, प्राहिं., पद्य, मूपू., (कहा औपदेशिक सज्झाय, राज., गा. २७, पद्य, मूपू., (वोपार विध) भरोसा) ५२२६, ५३५४
६००८-२३ औपदेशिक बारहमासा, मागु., गा. २८, पद्य, मूपू., (अनन्त चौवी) | औपदेशिक सज्झाय, राज., गा. ६, पद्य, मूपू., (समज ले जीव) ६०२५-३
६०९५-२५७ औपदेशिक लावणी, मु. अखमल, प्राहिं., गा. ११, पद्य, जै., औपदेशिक सज्झाय, राज., गा.६, पद्य, जै., (सोहबत थोडी) (खबर नही आ) ११७६-४, ६०५७-२२
६०६४-३६) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा.७, पद्य, मपू., (-) २१२४-१५ (करमदल मलकु) २३४१-१४
औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा.६, पद्य, जै., (अवगुण अङ्ग) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै.,
७५४९-७ (ग्यान ध्या) ११७६-९
औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा. २३, पद्य, मूपू., (आद अनादरो) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य,
६०५२-३९ (चल चेतन अब) २३४१-१३
औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा. १३, पद्य, जै., (ए भव रतन) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (तुम ६०६४-२७ तजीय) ११७६-११
औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा. १९, पद्य, जै., (केवल जन रा) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम ११७६-५० भजो जि) ११७६-७
औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चेतन चेतो) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू.,
११७६-३५ (बल जावो रे) २३४१-१५, ६२०३-१३।६)
औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, जै., (च्यार पहर) ३१३०-४६३) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (मैं । औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिवडो तो) तो नित) ११७६-८, ६००८-९, ६०५७-१८
६०५२-२२ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा. २८, पद्य, मूपू., (पुहे महीने) (लाभ नहि लि) ६२०३-१२()
६०६४-८४ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रभु तणा) (सुकृत की) २३४१-१७, ६२०३-९)
११७६-३७ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., | औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मारग वहि)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
(S)
६४७८-३
औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा. ७, पद्य, मुपू., ( राग तणा रस ) ६०६४-२८
(S)
औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा. १३, पद्य, मुपू., (विषीया लीण) ५६७९-६'
($)
औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा. २८, पद्य, मृपू., (श्रीगुरु ) ६०२५
१
औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा. १४, पद्य, जै., (श्रीजिनसास) १७८७-२०
(S)
औपदेशिक सज्झाय, मागु, गा. ८, पद्य, मृपू. (साधु कहे) ३१३०-२१/१
औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा. ११, पद्य, जै., (सुन्दर सुभ) १७९७-६
औपदेशिक सज्झाय, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( अब मन मेरे )
६०५२-२५
औपदेशिक सज्झाय, प्राहि. गा. १०, पद्य, जै.. (एह संसार) ६०६४-१
($)
औपदेशिक सज्झाय, प्राहिं, गा. २४, पद्य, मुपू., ( कडवा बोल्य)
२३४१-३४
औपदेशिक सज्झाय, प्राहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., ( कमर कुं मो )
६०५७-१२
औपदेशिक सज्झाय, प्राहिं., पद्य, मुपू., ( गइ सो गइ) १७८१-७) औपदेशिक सज्झाय, प्राहिं., गा. १५, पद्य, जै., (रे जीव को) ($) ६०६४-४९
औपदेशिक सज्झाय, मु. अखेराज, राज., गा. १३, पद्य, जै., (यो भव रतन ) ३१३०-२५
औपदेशिक सज्झाय, अमरचन्द्र, प्राहिं., गा. ६, पद्य, जै., (क्या करि) १३४१-२०१
औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयभाण, प्राहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (हारे प्राण) १९७६-१८
औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरतन, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूप्पू., (यामें वास ) १४८९ - २३, १७९५-३२
औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मागु, गा. ५, पद्य, (चतुर तु) २८५-३१/०
औपदेशिक सज्झाय, मु. कर्मसिंह, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., (वली वली नर) ७५६२-१९
औपदेशिक सज्झाय, मु. कवियण, हिन्दी, गा. १०, पद्य, भूपू., (वेतन केम) ११०६-५३
>($)
औपदेशिक सज्झाय, कवीजन, मागु., गा. १०, पद्य, जै., ( चेतन जीव) ७५६१-९३ औपदेशिक सज्झाय, मु. कुंअर, प्राहिं., गा. १४, पद्य, मूप्पू., (पर्णे प्री) २८५-१
(+$)
मूपू..
५२७
औपदेशिक सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., वि. १८५७, पद्य, जै., (-) ७५४२-१९
औपदेशिक सज्झाय, ऋ. चोथमल, प्राहिं., गा. १२, पद्य, जै.,
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(साधु कहे ) ११७६-२२
अपदेशिक राज्झाय, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ३. पच, भूपू.. (कुंहन कुंह) ११७६-१७
औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चेतन तेरी) ११७६-१६
औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ११, पद्य, जै., (तु जाप जपन) ११७६-२४
औपदेशिक सज्झाय, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ६, पद्य, जै.,
( ब्रह्मपद) ११७६-२५
आपदेशिक सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु, गा. ५. पद्य, मुपु. (जुग मे जीव) १४८९-२२
औपदेशिक सज्झाय, श्रा. जीवा ब्रह्मचारी, मागु., गा. ६, पद्य, जै.. (जीवा चेतो) ६०२२-८ (+#) औपदेशिक सज्झाय, ऋ. जैमल, मागु., गा. १४, पद्य, जै., (तु ले
जिनव) ६०५२-५०
औपदेशिक राज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि मागु गा. ५. पद्य,
भूपू. (नरभव नयर) ६०६७-२३१
औपदेशिक सज्झाय, ऋ. दलीचन्द, मागु., गा. १३, पद्य, जै., (मनवा समज) ३१२९-४५
($)
औपदेशिक सज्झाय, कवि देवचन्द्र, मागु., गा. ४, पद्य, मृपू., (परम अध्यात) ७६७४-२
अपदेशिक राज्झाय, कवि धर्मसिंह, प्राहिं. गा. ११, पत्र, मु.. (करयों मती) २८५-७१३, ७५६२-१०, ६०८७-२३१ (+), औपदेशिक सज्झाय, मु. परमानन्द, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., (आया हकीम) ६०९५-१२
(S)
औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रीतविजय, राज., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुर्ख नर) ३१३०-३२
"
($)
अपदेशिक सज्झाय, अ. बुधरदास, प्राहि. गा. १२, पद्य, जै.. ( अहो जगत गु) ६०५९-२९ औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चतुर विहार) ११७६-४१
औपदेशिक राज्झाय गणि मणीचन्द, मागु गा. ६, पद्य, मृपू.. (कोइ कीनहीक) ६७६७-७४
(#$)
(S)
औपदेशिक सज्झाय, महमद, मागु, गा. ११, पद्य, जै., (भूलो ज्ञान) १७९५-३४, ७५६२-४१, ७५४३-८ ६००४-५७० ७५५२-६), २४३२-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. मान, प्राहिं., गा. ३२, पद्य, मूपू., (कीजीये श्र) ३०४१-२
औपदेशिक सज्झाय, मु. मानसागर, मागु., गा. १६, पद्य, मूपू.,
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१४)
५२८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ (-) १७९८-७
पद्य, जै., (श्रीजिनवरन) २३४१-१०, ६०५२-२९ औपदेशिक सज्झाय, कवि मानसागर, मागु., ढाल २, गा. ११, औपदेशिक सज्झाय, मु. वीरविजय, मागु.. गा. ६, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (मानव भव पा) १७९८-२०१६), ६००४-३८६)
(रात दिवस) ११७६-५२ औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू.,
औपदेशिक सज्झाय, ऋ. शिवलाल, राज., गा. ७, पद्य, जै., (रातदिवस का) २८५-३६
(जग मे कुण) ६०५२-४७ औपदेशिक सज्झाय, मीठा, मागु., गा.६, पद्य, (प्रथम चरण) औपदेशिक सज्झाय, मु. शीलरतन, प्राहिं., गा. २५, पद्य, मूपू., ११७६-३२
(अतीत काल) ६००८-२१ औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ६. औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ६, पद्य, पद्य, मूपू., (चिदानन्द) ६७६७-७०, ९१६५-६१)
मूपू., (गुण छे पुर) १७९८-१६७, ६००४-४१(६) औपदेशिक सज्झाय, मु. रङ्गदास, मागु., गा. १०, पद्य, जै., औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा.६, पद्य, (जगत जीत) ४१४१-२
मूपू., (धोबीडा तुं) १४९१-१४ औपदेशिक सज्झाय , मु. रतनचन्द, राज., गा. १३, पद्य, जै., औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. १२, (इण कालरो) ६००८-१८, १७८१-५७, १८००-२३०, ३१३०- ___पद्य, मूपू., (विणजारा रे) ६००४-५२६)
औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुन्दर, मागु.. गा. ६, पद्य, मूपू.. औपदेशिक सज्झाय, ऋ. रतनचन्द, प्राहि., गा. ८, पद्य, जै., (हां | (काया पुर) ६००४-५८) रे ए) ६००८-११, ६०५७-२०, ६०६४-३५
औपदेशिक सज्झाय, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचन्द, प्राहि., गा.७, पद्य, जै., (हां (आरिज देस) १४९१-३ रे कर) ६००८-१०, ६०६४-६३७
औपदेशिक सज्झाय-कपटोपरि, ऋ. रायचन्द, राज., गा. २४, वि. औपदेशिक सज्झाय, वा. रत्नचन्द्र, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू.. (ओ १८३३, पद्य, जै., (कपटी माणसर) ६०५२-१४ छे जनम) ६०५२-५६
औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. पदमतिलक, मागु., गा. ११, पद्य, औपदेशिक सज्झाय, मु. रिख, मागु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (रतन मुपू., (वनमाली धणी) १७६१-३, १७९५-१,३१३१-६, ६००४चिन्ता) ११७६-२
१७) औपदेशिक सज्झाय, कवि रूपचन्द, मागु., गा. २१, पद्य, मूपू., । औपदेशिक सज्झाय-कायाजीवशिखामण, मु. जयसोम, मागु., गा. (जिणवर इम) ६५३२, ६०८७-१८)
११, पद्य, मूपू., (कामनी कहे) २८५-१८(5) औपदेशिक सज्झाय, ऋ. लालचन्द, राज., गा. १२, पद्य, स्था., औपदेशिक सज्झाय-कुमार्गत्याग, उपा. यशोविजयजी गणि, (हां रे भाई) ११७६-५४, ३१३०-१५
प्राहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (चेतन राह) ६७६७-२९, ९१६५औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मागु., गा. २७, पद्य, मूपू., (भजि भजि भग) २८५-८६+६)
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ६, पद्य, औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., मूपू., (कडवां फळ) ३१२९-४०६, ७५६१-७६) (आदित्य जोइ) २८५-२६+5
औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, मु. भावसागर, मागु., गा. ९, पद्य, औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., मूपू., (क्रोध न कर) १३४१-७+5, १७९८-२१(8) (सुधो धर्म) १३४१-१६ , ७५५५-७२+5, ११७६-१, १७९५-२९, औपदेशिक सज्झाय-क्षमाविषये, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., (खिमा ६००४-२२
धर्म) ३१३०-१८) औपदेशिक सज्झाय, मु. वालभ, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (-) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पाठक श्रीसार, मागु., गा. ७२, ६०९५-६
पद्य, मूपू., (उत्पति जोज) २३८८-३, ४०४२), १४२६-३, औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मागु., गा. २५, पद्य, मूपू., ७६७३, ६०६४-२(७, ६०९५-११, ६६०६-६(5) (मङ्गल करण) ८३३९-२, ७७८१-४
औपदेशिक सज्झाय-जीव, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू.. (आरम्भ औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, प्राहिं., गा. ५, पद्य, म्पू., (पांचे करता) ७५६१-५ घोरो) ६७६७-२७, ९१६५-३२७
औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु. कुशल, मागु., गा. ८, पद्य, औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयचन्द, राज., गा. ९, पद्य, जै., मूपू., (सदगुरु भाख) ६०५२-४३ (प्रभुजी रो) २३४१-४३
औपदेशिक सज्झाय-जुगारत्याग, मु. आणन्द, मागु., गा. ११, औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयचन्द्र, मागु., गा. २५, वि. १८७४, | पद्य, जै., (दीहो साम्भ) १७९५-३१
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५२९
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-तीतरतीतरी, वसतीराम, प्राहिं., गा. ४, पद्य, | १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण कन) ६०९१-१३, ६०८७-८(5) जै., (एक समो भई) ४५१४-३
औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. शान्तिविजय, मागु., गा. औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दया ५, पद्य, मूपू., (जीव वारु) १७९८-२३६, ६००४-४०) नर सङ) ६०५२-२१
औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. सुमतिविजय, मागु., औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. कृष्ण, प्राहि., गा.४, पद्य, गा. ५, पद्य, मूपू., (हुं तो वार) ६०२८-१४ मूपू., (--) ३१३३-३७
औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, मु. प्रीतिविजय, मागु., गा.६, औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. घासीलाल, प्राहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (पुण्य कर) ६०८१-२ पद्य, स्था., (दया की बात) ३१३३-३२+9)
औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, ऋ. चौथमल, प्राहि., गा. ७, गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड) १४२७-३, ६०२८-८ पद्य, स्था., (दया के बिन) ३१३३-२९(45)
औपदेशिक सज्झाय-ममतात्याग, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ११, औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. चौथमल, प्राहि., गा. ५, पद्य, पद्य, मूपू., (चतुर सनेही) ११७६-५७ जै., (दया को धार) ३१३३-३१(
औपदेशिक सज्झाय-माङ्कण, मु. माणिक, मागु., गा. ८, पद्य, औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. नवीदास, प्राहि., गा. ५, पद्य, पू., (माङ्कणनो) २८५-३०+5) जै., (तु मत मारे) ३१३३-३४+5)
औपदेशिक सज्झाय-लोभे, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धन्धो करी) औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. नवीदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, ११७६-३८ जै., (तु मत मारे) ३१३३-३३(5)
औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पण्डित भावसागर, मागु., गा.७, औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, ऋ. हीरालाल, राज., गा. १३, __ पद्य, पू., (लोभ न करीय) १३४१-१०+६), १७९५-९, ६००४
वि. १९४४, पद्य, स्था., (मारी दयामा) ३१३३-३५५६) औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, हुसनबेग, हिन्दी, गा. ४, पद्य, औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, मु. वनितसागर, मागु.. गा. ७, स्था., (दया पोषा) ३१३३-२७+8)
पद्य, मूपू., (लोभ न करीय) ६०६७-३२ औपदेशिक सज्झाय-धर्मकरणी, मागु., गा. १७, पद्य, मपू., (अहो । औपदेशिक सज्झाय-वाणोतरशेठ, मु. नयविजय, मागु., गा. १५, अहो दु) ६०६४-६१
पद्य, मूपू., (सेठ भणे सा) ११७६-३९ औपदेशिक सज्झाय-धर्मोपदेश, मागु., गा. १९, वि. १८९४, पद्य, औपदेशिक सज्झाय-विषयपरिहार, मु. सिद्धविजय, मागु., गा. मूपू., (मनुष्य जात) २३४१-३
१३, पद्य, मूपू., (रे जीव विष) २८५-२१(5) औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मागु., गा. ९, वि. १८७९, पद्य, औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, ऋ. जैमल, मागु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (नवघाटी माह) २७३१-३
स्था., (मोह मिथ्या) ६०५२-३५, ७६७५ औपदेशिक सज्झाय-नारी, मागु., गा. ११, पद्य, जै., (नारि नहिं) औपदेशिक सज्झाय-शीयलेस्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मागु., ६०६४-६६६
गा. १०, पद्य, मूपू.. (एक अनोपम) ६०९१-१४१), २८५-३३(5) औपदेशिक सज्झाय-नारी, प्राहि., गा. १६, पद्य, जै., (मुरख के औपदेशिक सज्झाय-संसार अनित्यता, मागु., गा. ७, पद्य, जै., मन) ६०५२-४९
(रे जीव जगत) ६०६४-१९७) औपदेशिक सज्झाय-निन्दक, ऋ. रायचन्द, मागु., गा. २७, वि. औपदेशिक सज्झाया-घृत विषये, मु. लालविजय, मागु., गा. १९,
१८३५, पद्य, जै., (नवरो माणस) ६०५२-१३, ३१३०-१०) पद्य, मूपू., (भवियण भाव) १७९५-३०, ६००४-२३ औपदेशिक सज्झाय-निन्दात्याग, मागु., गा. ९, पद्य, जै., औपदेशिक सज्झाया-बुढ़ापा, राज., गा. २७, पद्य, मूपू., (कुणे (जीवडा दलहु) ५८७३-६६)
बुढाप) ३१३०-२० औपदेशिक सज्झाय-निन्दात्याग, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., औपदेशिक सज्झाया-बुढ़ापा, मागु., गा. १९, पद्य, जै., (बुढो गा. ५, पद्य, मूपू., (निन्दा म) ६०९१-१२, ६०७३-१४,
हलवे) ३१३०-१९ १७९८-१५७, ६०६४-१४७
औपदेशिक सवैया, प्राहिं., गा.६, पद्य, जै., (नक विन नकट) औपदेशिक सज्झाय-परदेशीजीव, मु. राजसमुद्र, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक काया दु) १७९५-३५
औपदेशिक सवैया, मु. उदैराज, प्राहिं., गा. १, पद्य, जै.. (जिस औपदेशिक सज्झाय-परनारी, शङ्कर, मागु., गा. १२, पद्य, जै., | दिन पा) ३६५-२(+) (सुण चतुर) ७५६१-२(5)
औपदेशिक सवैया, कवि गद्द, प्राहिं., गा. २, पद्य, जै., औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, गणि कुमुदचन्द्र, मागु., गा. | (अस्त्रीचरि) ३६५-४६)
६०६२-३)
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३६
५३०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ औपदेशिक सवैया, कवि गोविन्दलाल, प्राहिं., गा. ४, पद्य, वै.,
५३६७-१(45) (राजन की नी) २३४२-६३
| कयवन्ना चौपाई, ऋ. फतेचन्द, मागु., ढाल ४, वि. १८८१, पद्य, औपदेशिक सवैया, उपा. धर्मसी, मागु., गा. ३६, पद्य, मूपू., जै., (पुरहथणापति) ७१६५६ (श्रीसद्गुर) ३१३०-४१(8)
कयवन्ना चौपाई, आ. साधुरत्नसूरि, मागु., गा. ११८, ग्रं.१८७, औपदेशिक सवैया, मु. मोहन, प्राहिं., गा. १, पद्य, जै., (जइइ तो पद्य, मूपू., (वन्दी वीर) ३७८ लजी) ३६५-३
करकण्डुऋषि-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., औपदेशिक सवैया , प्राहिं., गा. १, पद्य, (देह अचेतन) ३१२२- गा. ५, पद्य, मूपू., (चम्पानगरी) ३१३३-७६), ७६९-३, १७९५
३६, ६७०९-२८, ७५६२-२१ औपदेशिक सवैया-धर्मोपदेश, मार्कण्ड, मागु., गा. १, पद्य, (तज | कर्मग्रन्थ पदार्थ, मागु., गद्य, जै., (-) ३३४३+5) रे मन) १४८९-५
कर्मग्रन्थ विचार सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (अधुना बन्ध) ८२७० औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.. कर्मचेतन सङ्ग्रामभाव रास, कवि नर, मागु., ढाल १६, पद्य, (उठी सवेरे) १८०३-१
जै., (अनन्त चोवी) ३४१३६, २४०३ औपदेशिक होरी, राज., गा. ४, पद्य, मूपू., (गेहरीया हो) ४९४६- | कर्मछत्रीसी, मागु., गा. ३७, पद्य, जै., (परम निरञ्ज) ६०८७
३८६) औपेदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, राज., गा. ६, पद्य, मूपू., कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा.३६, वि. १६६८, (मतता कहो) १८००-१९
पद्य, मूपू., (कर्म थकी) २८५-९६, ७६६०-३६, ७६६१-२) औषध सङ्ग्रह', मागु., गद्य, (-) ७४१-२", ६४२३-३, ८३३४- कर्मबन्ध विचार, मागु., गद्य, मूपू., (जिम सूकी) ६३३२-२ २), ७३४१-१(+), ८२२१-२), १७५४-२, १८३६-३, ४४७५-२, कर्मयुद्ध सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ५, पद्य, ५८८०-८, ७७३५-३, ७७३६-५, ७७८४-२, ८७१७-२, ७८२१-३, मूपू., (धर्म के वि) २८५-६९+5), ६७६७-३७, ९१६५-४२६) ३८७६-२, ६८२८-१६, ६९२०-१(६)
कर्मरेखा लावणी, मूलचन्द, प्राहि., गा. १, पद्य, मूपू.. (मूलचन्द) कंसकृष्ण विवरण लावणी, ऋ. विनयचन्द, प्राहिं., ढाल २७, गा. ५७५१-६(७-)
४३, पद्य, जै., (गाफल मत रह) ६००८-५, ७१२८-२(5) कर्मविचार गीत, मु. नेम, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मुरति कठीआरा दृष्टान्त सज्झाय, मु. गुणविजय, मागु., गा. १४, पद्य, | मोहन) ५८९९-६५ मूपू., (वीर जिनवर) २८५-२९(5)
कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मागु., गा. १८, पद्य, मूपू., कणहटिया सज्झाय, मागु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गोतमस्वामी) (देव दाणव) २८५-५४, ५६७९-५० ११७६-४०
कर्म सज्झाय, मु. दान, मागु.. गा. ८, पद्य, मूपू., (सुखदुःख सर) कथा सङ्ग्रह, मागु., २३ कथा, पद्य, जै.. (कोडी सएह) ४७०४-१ १७९८-८, ६००४-३१) कनककेतुपद्मावती सज्झाय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू.,
कर्मस्थिति, मागु., गद्य, जै., (ज्ञानावर्ण) ७३९१-२६) (कनककेतु पद) ८९४३-३
कलावती चौढालिया, ऋ. करमसी शिष्य, मागु., ढाल ५, वि. कनिराम चरित्र, मु. रेखराज, मागु., ढाल १६, पद्य, जै., (सासण १८३५, पद्य, जै., (मालवदेश मन) २५०५-२+5 नायक) ६१७७-१
कलावती रास-शीलव्रतविषये, मु. गुणसागर, मागु., ढाल ५, पद्य, कमलावती कथा, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीनाटदेश) ६०५८-३
मूपू.. (कलावती राण) २९३८-१ कमलावती सज्झाय, ऋ. जैमल, मागु., गा. २९, पद्य, जै., कलावती सज्झाय, मु. भक्तिविजय, मागु., गा. २३, पद्य, मूपू., (महिला में) ६०६४-१७, ३१३०-११)
(शीले लच्छी) २८५-६५६) कयवन्ना कथा, मागु., गद्य, मूपू., (जम्बुद्वीप) ४३८७-२
कलावतीसती कथा, मागु., गद्य, मूपू., (इणइं जम्बू) ६०५८-४ कयवन्ना चौपाई, मागु., ढाल २९, वि. १९२१, पद्य, मूपू.. (पूरण कलावतीसती रास, कवि विजयभद्र, मागु., गा. ८४, पद्य, मूपू., वञ्छि) ४२५१
(भरतक्षेत्र) ७०५१ कयवन्ना चौपाई, गङ्गाराम, मागु., ढाल २९, वि. १९२१, पद्य, कलावतीसती सज्झाय, मु. हीरविजय, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., जै.. (पुर्णवञ्छत) ३२५०-११)
(नयरी कोसम) ३०१-२ कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., ढाल ३१, गा. ५५५, वि. कलियुग निसाणी, राज., गा. २८, पद्य, मूपू., (वीतरागउ नम)
१७२१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति) ३१५१, १९८८-१*), २४७९-१, ६००८-२२ ४४४३, ४६५०, ५१५९, ५३२१, ५३७०, ९२९७, ३०५०, ४५८६, ।। | कलियुगपच्चीसी, राज., गा. २५, पद्य, जै., (तीन भुवन) ३१३०
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४५७
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५३१
कालोदास सज्झाय-ज्ञानगवेषणा, उपा. मानविजय, मागु., गा. ७, कलियुग सज्झाय, प्राहिं., गा. ११, पद्य, मूपू.. (ऐसा कलजुग) पद्य, मूपू., (ज्ञान गवेष) ६०३९-२३७ २११२-२
कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, राज., ढाल ७, पद्य, जै., (राय दसरथ) कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मागु., गा. १२, पद्य, मूपू.,
७६९-२८ (सरसति सांम) २८५-१५६)
कीर्तिध्वज राजा सज्झाय, मु. खिमा, मागु., ढाल २, गा. २८, कलियुगसाधु पद, कवि धीर, मागु., गा. २, पद्य, जै., (मुनिवर पद्य, जै., (नगर अजोध्य) ६०५२-९ । ___ होय) १४८९-११
कीर्तिध्वज राजा सज्झाय, मु. खेम, मागु., गा. ३६, पद्य, मूपू., कलियुग सेनानी, प्राहिं., गा. ७६, वि. १८२८, पद्य, मूप.. (नगर (कीरतधज राज) ६००८-२ देख्या) ३०४१-१
कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मागु., गा. २५, पद्य, मूपू., (जिनवर कवित्त, राज., गा.३, पद्य, (मारू म्हां) १४९२-९५१
प्रण) ८६९८-२ कवित्त, मागु., गा. १, पद्य, (आज हीङ्ग) २३४१-३५
कुगुरुबत्रीसी, भीमा, राज., गा. ३१, पद्य, जै., (भांति भांत) कवित्त, मागु., पद्य, (परख एक छइ) ५८७३-१४
६००८-६ कवित्त, मागु., गा. ३, पद्य, जै., (संवत्सत्तर) ६४२३-६(+) कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. २८, पद्य, कवित्त, कवि हेम, प्राहिं., गा. ९०, पद्य, जै.. (सुनय पोषहत) ____ मूपू., (शुद्ध संवे) ६००१-४९ २१२७
कुन्थुजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., कवित्त सङ्ग्रह, ज्ञानसुन्दर, मागु., गा. ११, पद्य, जै., (फुनज (कुन्थुजिन) ६०८६-२१ फुल्य) ७५४०-१७
कुन्थुजिन स्तवन, पं. पद्मविजय, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू.. (रात कषायत्याग पद, मु. मोहन, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (जाके कर्म) | दिवस) ६०७९-७ २३४२-१४६
कुन्थुजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., काजलनिर्माण विधि, मागु., गद्य, (काजल धोलो) ६४२३-९१) (कुन्थुजिणे) ७७८२-४ काजलमेघा चौढालिया, मु. नेमविजय, मागु., ढाल १५, वि. कुब्जानार पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, वै., (कुब्जाने) २३४२-२९ १८१७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं नि) ३५९०-१, ६००१-४२
कुमारपाल रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., ग्रं.५८००, वि. कान्हडकठियारा प्रबन्ध-शीलविषये, मु. रामचन्द्र, मागु., ढाल ८, ___ १६७०, पद्य, मूपू., (सकल सिद्ध) ७८०५, ३२४२६, ५०१४) _ वि. १९००, पद्य, मूपू., (अरहत सिद्ध) ७५५९-७०
कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल १२९, गा. २८७६, कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मागु., ढाल ९, वि. १७४६, ग्रं.४१६०, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति) ३३७१),
पद्य, मूपू., (पारसनाथ) ७६९-४०, १९५७, ९२३३, ६८०४॥ २८६९", ३४८२(+) कामदेव चौढालिया, ऋ. रायचन्द, मागु., ढाल ४, वि. १८२७, कुरगडुमुनि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू.. पद्य, जै., (वेहरमान वी) ७६९-२२
(कुअरगडू मु) २१००-२(#S) कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, मागु., गद्य, मूपू., (जीव १ गई) कुलकोटि विचार, मागु., गद्य, मूपू., (नारकीनी २५) ४५०७-३ १८२९
कुलधरसेठ दृष्टान्त काव्य-उधारोपरी, मागु., पद्य, मूपू., (गोयम कायस्थिति बोल, मागु., गद्य, मूपू., (जीव गइ इन) १२८१,
गणहर) ७२९४-२ ४४३५६
कुव्यसनत्याग सज्झाय, प्राहि., गा. ८, पद्य, जै., (छांड रे छा) कार्तिकशेठ सज्झाय, पानाचन्द, मागु., गा. १२, वि. १८८८, पद्य, ६०४९-११जै., (धन कार्तक) ७५६१-८(5)
कुसङ्गनिवारण चाबखा, श्रा. छगन, मागु., गा. ३, पद्य, जै., कार्तिकसेठ पञ्चढालिया, ऋ. जैमल, मागु., ढाल ५, पद्य, जै., । (देखो भगतो) ६०८२-८ (अरिहन्त सि) ७६९-४२, ७३९०-४७)
कुसाधु पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, (नाम धरायो) २३४२-४१ कालगणित भाङ्गा, प्राहि., गद्य, जै., (आठ सरसव कर) ४०८८- कृष्ण गीत, मागु., गा. ६, पद्य, वै., (सासू पूछे) ६०१७-१४)
कृष्ण गीत, हीरालाल, प्राहिं., गा. १६, पद्य, वै., (जल जमना कालज्ञान श्लोक सङ्ग्रह, मागु., गा. ३, पद्य, (रोगि मुखे) ७८८- ___ तट) ३१३३-२०१६)
कृष्ण नागण संवाद गीत, कवि गिरधर, राज., गा. ९, पद्य, वै., कालिकाचार्य कथा, मागु., गद्य, मूपू., (अहंत भगव) ११०५
(जल छोड जमु) ३१३३-२१+5 कालिकाचार्य व्याख्यान, मागु., गद्य, मूपू., (हिवे थिराव) ७५९४ | कृष्ण पद, प्राहि., गा. ७, वि. १८८२, पद्य, वै., (-) ३१३३-१९(45)
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कृष्णबलराम सज्झाय, मागु., गा. २०, पद्य, मुपू., ( एसु आज अवो) ४४६९-३, ६०६४-४
कृष्णभक्ति पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, (वा रे काना) ५८३६-६ (+) कृष्ण रुक्मणी गेलि, राजा पृथ्वीराज राठोड, मागु गा. ३०४, वि. १६३७, पद्य, (परमेसर प्र) ५५५ ७९८१ ७६०६ (२) कृष्णरुक्मणी वेलि-टवार्थ, मु. शिवनिधान, मागु, वि. १६३८. गद्य, मुपू., (श्रीहर्षसा) ५५५ (+), ७९८१, ७६०६ कृष्णरुक्मणी सज्झाय, मु. धनदास, राज., गा. १२, पद्य, जै., ( रुकमण घर) ६०५७-१७
कृष्ण सज्झाय, मागु, पद्य, मृपू.. ( मुनिवर नगर) ३१३३-२४/ केशीगणधर परदेशीराजा चौपाई. मु. ज्ञानचन्द, मागु, ढाल ४१, गा. ५९४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्र) ५२९८, ८४३७-२ कोकसार, आ. नर्बुदाचार्य, मागु., १०प्रकाश, गा. १४९२, वि. १६५६, पद्य, मूपू., (मातङ्गी मत) ४६९
कोणिकराजा रास, मागु ढाल १४, पद्य, मुपू.. (सुखे राज)
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1
७६९-१२, ४३५६
क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव) ६०९१-२, ७६६०-२० २८०९-२ क्षमासूरि स्तुति, मागु, गा. १, पद्य, भूपू., (जय जय गणधा)
(+$)
६४६०-२०
क्षुल्लककुमार रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ढाल ४, गा. ५४, वि. १६९४, पद्य, मूप्पू., (पारसनाथ) १५७२-१ क्षेत्रसमास विचार, मागु., गद्य, मुपू., (हवे कांइएक) २१८६ (+#),
(#$)
(अरिहन्तजीन) १७९५-१७, २८९०-२
खामणा स्तवन, पं. दीपविजय, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू.,
१८४२
क्षेत्रोपपत्ति, मागु, गद्य, जै. (खेताणुवारण) २४०४-२० खन्धकमुनि चौढालिया, मागु, ढाल ४, पद्य, भूपू (महावीर को ) २६७५-२
"
"
खन्धकमुनि चौकालिया, ऋ. जैमल राज ढाल ४ वि. १८११, पद्य, जै. ( नमुं वीर) ७६९-३३. ६०५२-१, १९५२१६७३५१ खन्धकमुनि चौपाई, गणि दुर्गदास, मागु, गा. ६६. वि. १६३५. पद्य, मूपू., ( मुनिसुव्रत) ६०२५-५
खन्धकमुनि ढाल, राज., ढाल ८, पद्य, जै., (वध परिसो) ७६९
४७
खन्धकमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मागु., गा. ३४, पद्य, मूपू., ( सीमन्धर पा ) ३१३०-२९
($)
खन्धकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मागु, ढाल २. गा.
८+१२, पद्य, भूपू. ( नमो नमो खन) ६००४-६३१ खरतरगच्छ सम्बन्धी धर्मसागरीय ३० प्रश्नों के उत्तर, मागु., वि. १६२७, गद्य, मुपू., ( श्रीखरतरगछ) ७६५१
($)
खामणा सज्झाय, जैनकवि समरो, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू.,
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
(खांमणला खा ) ८६३१-३
खीमऋषि सज्झाय, मागु., गा. १८, पद्य, जै., (सरसति सामण)
६०२८-१३
खीरघृत लोकदृष्टान्त, मागु, गद्य, जै., (सासु जमनी) ६२७१-२ गजसिधकुमार रास, मु. सुन्दरराज, मागु खण्ड ४, गा. ४३४. वि. १५५६, पत्र, भूपू., ( पास जिलेसर) २५२२, ३१७८ गजसुकुमाल चौपाई, मागु., ढाल १४, पद्य, जै., (-) ७०३७ ३ गजसुकुमाल चौपाई, मागु, ढाल १८, पद्य, मृपु. ( भदलपुर नाम ) ४०२४०० ४४२४-१
($) ($)
"
गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., ढाल ३०, गा. ५००, वि. १६९९, पद्य, मुपू. ( नेमिसर जिन) २९४५१० ceracles
"
गजसुकुमाल चौपाई, मु. भुवनकीर्ति, मागु., ढाल ३४, पद्य, मृपू.. (त्रिभुवनपत) ४५९५ (+), ९१७३
गजसुकुमाल चौपाई, मु. माधव, मागु., ढाल १५, पद्य, मूप्पू., (रिनेमि ना ) ६०२६-१ १६५३, ७२२८-२ ($)
गजसुकुमाल रास, मागु., ढाल १८, पद्य, जै., (तिन काले) ६१५७(+), १४७५
"
(S)
गजसुकुमाल रास, मु. शुभवर्द्धन-शिष्य, मागु., गा. ९१, पद्य, मृपू. (देस सोरठ) ३३१४, ४३७३, ४६४८, ५३२५. ६४४६. १९७४ गजसुकुमाल सज्झाय, राज., गा. १५, पद्य, जै., (दुजै दिन) ६०६४-५६
(S)
गजसुकुमाल सज्झाय, राज., गा. ३६, पद्य, मूपू., ( सुवरणमइ है) ८५१३-१, ६०९५-७
गजसुकुमाल सज्झाय, मु. खेमकुशल, प्राहिं. गा. ७, पद्य, मू.. (द्वारापुरी) ६०६४-३१
(S)
गजसुकुमाल सज्झाय, ऋ. चौथमल, मागु., गा. २३, वि. १८५८, पद्य, जै., ( गजसुखमाल) ७५५८-७०)
गजसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनदास, राज., गा. ५, पद्य, मूप्पू., ( कमलानो फुल ) ३१२९-१८
(+$)
गजसुकुमाल सज्झाय, मु. दानविजय, मागु., गा. १७, पद्य, मूप्पू., (श्रीगेमिसर) २८५-०/गजसुकुमाल सज्झाय, गणि देवचन्द्र, मागु., ढाल ३, गा. ३८, पद्य, मुपू., ( द्वारिका) १४८८-७, ३९१७-२
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गजसुकुमाल सज्झाय, मु. भावसागर, मागु., गा. १२, पद्य, पू., (द्वारिका) ७५६२-२६
गजसुकुमाल सज्झाय, मु. विनयचन्द्र, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मुपू., (कैसे कहूं) ६०५२-१६
गजसुकुमाल सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मागु, गा. ११, पद्य, मृपू (हरि प्रर्ति) ७५४६
गजसुकुमाल सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ६,
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२६)
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५३३ पद्य, मूपू., (नयरी द्वार) ६०४७-१०), १७९५-२६, ६००४- | गुरुगुण सज्झाय, मु. भूधर, प्राहिं., गा. १३, पद्य, मूपू.. (ते गुरु
मे) ६०६०-४६) गजसुकुमाल सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मागु., गा. ५०, पद्य, गुरुसङ्गति पद, राज., गा. १८, पद्य, जै., (पुन जोगे) ३१३०___ मूपू.. (सोरठदेश मझ) ६००८-१, ७५४८-९ गणधर स्तवन, ऋ. रायचन्द, राज., गा. १५, पद्य, जै.,
गुरूगुण गहुंली, मु. पद्मविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आगम (इन्द्रभुती) ६०५२-१९
वयण सु) ७५५४-४ गम्मा यन्त्र, मागु., कोष्टक, जै.. (-) १४२९(5)
गृहस्थधर्म स्वरूप, मागु., गद्य, मूपू., (सम्यक्त्वम) १८०५-२६) गर्भधारण औषध, मागु., गद्य, (मोरसीखा १) ४६९१-१०+) गोचरी ४२ दोष वर्जन सज्झाय, मागु., ढाल २, गा. ३१, पद्य, गर्भवेलि, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. ११४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (तिजि सुमति) १४५१-२ मूपू., (ब्रह्माणी) ६९०२-१७)
गोचरी ४२ दोष वर्जन सज्झाय, मु. रुघनाथ, मागु., गा. ३६, वि. गिरनार-शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ७, __ १८७८, पद्य, जै., (शासनपति चौ) ६७०९-१८,७५६२-४ पद्य, मूपू., (सारो सोरठ) ४०१६-२), ६०३५-७६)
गोमट्टसार भाषा, हिन्दी, गद्य, दि.. (-) ३००१) गीतचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु.. २४ गीत, पद्य, गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मागु., गा. ९१७, वि. १६४७, मुपू., (अजितदेव मु) ९१६५-६५६)
पद्य, मूपू., (सुख सम्पत) ३६५९, ५२८६, ५४४१, २१६५६ गुणकरण्डकगुणावलि चौपाई, ऋ. दीपमुनि, मागु., ढाल २७, गा. गोराबादल रास, गणि लब्धिउदय, मागु., खण्ड ३/ ढाल ३९, गा. १६०३, वि. १७५४, पद्य, जै., (सम्पति सुख) ५२३४),
८१६, ग्रं.११५७, वि. १७०७, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर) ३०५०), १३०९)
३५६३६, १५३४७, ७७७९६, १२३०७ गुणकरण्डक गुणावलि चौपाई-बुद्धिविषये, मु. ज्ञानमेरु, मागु., गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. १२४, वि.
ढाल १६, गा. १८१, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (समरु चउवीस) १५४५, पद्य, मूपू.. (सकल मनोरथ) २३९४१), ४१०९), ६१००-२(+)
४१३७, ८५३४, ३२०२, ६७७०, २९०६७, ४६०९", १८५२) गुणकरण्डकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल गौतमपृच्छा सज्झाय, मागु., गा. २०, पद्य, जै., (गोतमस्वामी)
२६, गा. ४९३, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहन) ४३९३, ६०६४-५०७ ८००४
गौतमपृच्छा सन्धि, मु. नयरङ्ग, मागु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीर गुणमाला रास, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल ७, वि. १८८५, पद्य, ___ जिणन्द) १७६१-२ मुपू.. (सरस्वती मा) ४७७७
गौतमस्वामी गहुंली, मु. खेमाविजय, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (-- गुणरत्नाकर छन्द, मु. सहजसुन्दर, मागु., अध्याय ४, वि. १५७२, ) ७५५४-१७ पद्य, मूपू., (शशिकरनिकर) ८८४३
गौतमस्वामी गहुंली, मु. विजयलक्ष्मी, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., गुणावलि चौपाई, गणि गजकुशल, मागु., ढाल २९, वि. १७१४, | (गुणनिधि है) ७५५४-५5)
पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ) ८८०२, ९३०४, ९१८१७) गौतमस्वामी गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ३, वि. गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मागु., ढाल १६, वि. १६७६, पद्य, १७वी, पद्य, मूपू.. (गौतम नाम) १३४२-३३", ६०४७-२१) मूपू., (प्रणमुं चउ) ५०७५, ४४६९-१, ७२९४-१)
गौतमस्वामी छन्द, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ९, पद्य, गुरुआशातनापरिहार स्तवन, मागु., पद्य, मूपू., (गोयम गणहर) मूपू., (मात पृथ्वी) ६०९१-९(१) ५८८२-५+)
गौतमस्वामी छन्द, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., गुरु उपदेश लावणी, मु. धनदास, प्राहि., गा. ५, वि. १९१७, (वीर जिणेसर) १७८६-५, ६४६०-२, १५७३-३, ६०५९-१७७, पद्य, जै., (तु सुणि सत) ६०५७-८, ६०९५-२६७)
६०६४-२६७, ७५४२-१६७, ६०१८-५७, १४८४-१४, ६०३४गुरुगुण गहुंली, मु. उत्तम, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू.. (तुमे शुभ) ७५५४-१३)
गौतमस्वामी पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ४, पद्य, गुरुगुण गहुंली, ऋ. जगन्नाथ, मागु., गा. ८, पद्य, जै., (-)
पू., (गौतम गणधर) ६७६७-३९, ९१६५-४४) ७५६५-१
गौतमस्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., गुरुगुण गहुंली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू.,
(जगगुरु जिन) ७५५४-९१) (जिनवयणे अन) ७५५४-१२
गौतमस्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., गुरुगुण पद, मागु., गा. ८, पद्य, जै., (अमृतभीनी) ३१२९-४९६ (साहिबा गुर) ७५५४-१०७)
१
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५३४
गौतमस्वामी भास, आ. जिनेन्द्रसूरि, मागु., गा. ७, पद्य, भूपू., (सजनी सदगुर ) ७५५४-१४वी
गौतमस्वामी रास, मागु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर)
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१२१८-२
गौतमस्वामी रास, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ६७, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर) १५६७-३ १७८५-१
गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि मागु गा. ६६, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर) २९१६(+), १३९४ (+), २७६, १३२७, १५६६, २९१७, ५०४४,९२१०, ११६४ १, २६७-१९
गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मागु, गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर) ५३२०-१, ७४९२-१, ७५४९-४, ६०१९-६० ५५-३१
गीतमस्वामी विलाप गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुगति समउ ) ६०४७-१९ + गौतमस्वामी सज्झाय, मागु., गा. ६, पद्य, मुपू., (लबध पाटक)
($+) d
६००८-१७
गौतमस्वामी सज्झाय, वा मानविजय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम) १७८२ - १३
गौतमस्वामी सज्झाय, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मे नही जाण) ९१५६-१५गी
गौतमस्वामी स्तवन, ऋ. चन्द्रभाण, प्राहिं., गा. १२, वि. १८५५, पद्य, जै., (अरे लाला) ६०४९-४/-)
गौतमस्वामी स्तवन, मु. जयसागर, मागु., गा. १२, पद्य, मुपू., ( गोयमस्वामि) ६०८७-४ (5)
#
गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मागु., गा. ८, पद्य, मृपू.,
(प्रभाते गो) १३४२-६५ ६०४७-२०-११, १४२७-५, ६०५९-३० गौतमस्वामी स्तवन, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ७, पद्य, जै., (में ही नवी) ७३९० ($-)
गीतमस्वामी स्तुति, मागु, गा. ४, पद्य, ग्रुपु. ( सकललब्धिपद) ४६३३-२(+), २३३८-६, २८४५-९
ग्रन्थसूचि मागु, गद्य, भूपू. (४ पाना लि) ५१८६-२०
चक्रेश्वरीदेवी छन्द-शत्रुञ्जयतीर्थअधिष्ठात, मागु., गा. ११, पद्य, जै.. (मा चकेश्वर) ६६०६-९
(S)
चतुःशरण सन्धि, मु. चारित्रसिंह, मागु., गा. ९१, वि. १६३१, पद्य, मूपू., (पय पणमवि) ६४९८-१ (+)
चतुराई दृष्टान्त, मागु., गद्य, जै., (एकदा समयान ) ३१३१-८ चतुर्थीतिथि स्तुति, मु. नय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सर्वार्थसि )
१८०३-१०
चतुर्थी संवत्सरी विचार, मागु., गद्य, मृपू., (श्रीपर्युष) ५६६३-८(+) चतुर्थी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सर्वारथ सि) ७५४१-१४ चतुर्दशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि मागु, गा. ४, पद्य,
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
मूपू., ( वासुपूज्य) ७५४१-२४
चतुर्दशीतिथि स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मृपू., (करुणासागर) २३४२-१९
चतुर्मासिकव्याख्यान, मागु... ( - ) - <प्रतहीन >
(#)
(२) आवक १२४ अतिचार वर्णन, राज, गद्य, मृपू.. (-) १८४८ चन्दनबाला चौढालिया, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल ४, वि.
१८२५, पद्य, मृपू., ( अविन्यासी) ६०५२-५५
चन्दनबाला चौपाई, मु. ब्रह्म, प्राहिं., गा. १६०, पद्य, जै., (मोह पिसाच ) ४१९५
चन्दनबाला चौपाई, मु. रतनचन्द, मागु., ढाल १४, पद्य, मूपू., (फणीमणीमण्ड) ४४९७-२ ६१५८-५, ७५५६-६
($)
चन्दनबाला लावणी, मागु., पद्य, मुपू., ( या चम्पानग) ३१३३-८ (+) चन्दनबाला सज्झाय, ऋ. नथमल, मागु., गा. ३८, वि. १८१९, पद्य, जै., (--) ७३९०-१(8)
चन्दनबाला सज्झाय, मु. नित्यलाभ, मागु., ढाल ३, वि. १७८२, पद्म, मृपू. (श्रीसरसतिन) २५०५-१/
चन्दनबाला सज्झाय, ऋ. रतनचन्द, मागु., गा. २१, पद्य, जै., (-) ३१३०
चन्दनबाला सज्झाय, ऋ रायचन्द, मागु., गा. १०, पद्य, जै.. (दीक्षा लइन) ११७६-२७
चन्दनबाला सज्झाय, मु. विनय, मागु., गा. ११, पद्य, जै., (महावीर अभि) ८३८१-४
चन्दनबाला सज्झाय, मु. सिंहविमल, मागु., गा. ६, पद्य, मूप्पू., (आज हमारे ) ६००४-१९१३
चन्दनमलयगिरी रास, पं. क्षेमहर्ष, मागु., ढाल १३, वि. १७०४, पद्य, मूपू. (जिनवर चउवी) ८८३०
चन्दनमलयागिरि कथा, मागु., गद्य, मुपू. (विजय सेठे) १४८२-१ चन्दनमलयागिरि चौपाई, कवि केसर, मागु., ढाल ११, गा. २६५, वि. १७७६, पद्य, मुपू., ( प्रथम जिने ) ३६७१ चन्दनमलयागिरि ढाल, ऋ. रतनचन्द, मागु., ढाल १५, पद्य, जै.,
(सासणनायक) ७६९-४३
"
चन्दनमलयागिरि रास, प्राहि., पद्य, मुपू. (-) ७२६५ (S) चन्दनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, प्राहिं., अध्याय ५, गा. १९९, पद्य, भूपु (स्वस्ति) १२०० ८७१५७०६४ चन्दनमलयागिरि सज्झाय, मु. चन्द्रविजय, मागु., गा. १०, पद्य, मृपू.. (विजय कहे) १४८२-२
चन्द्रकुमार वार्ता, कवि हंस, मागु., गा. २२७, पद्य, जै., (सकलदेव सार) ७८९३
चन्द्रगुणावलिका पत्र, मु. दीपविजय, मागु., ढाल २, गा. ७५, पद्य, मूपू., (स्वस्ती) ४२९३
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चन्द्रगुप्त चौडालिया, मु. गुणचन्द, मागु., ढाल ४, वि. १८५०, पद्य, जै.. (विमल बोध) २६७५-१, ६७०९-२७
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३९२९
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५३५ चन्द्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, ऋ. जैमल, मागु., गा. ४०, (ॐ नमिऊण) ५९०५) पद्य, स्था., (पाडलीपुर) ७५४२-३(७)
चन्द्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मागु., ढाल २९, गा. ६२४, वि. चन्द्रप्रज्ञप्तिगाथा कल्प, मागु., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं) ६२७९-९+7 १७२८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवत) ३६४८, ३८७१, ४०३२, चन्द्रप्रभजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., ६४५२, ६४८७, ९२३७, ९२५६, १९६८), ७४१२७) (महासेन मोट) ७५४०-११
चन्द्रसेनराजा सज्झाय, मु. नन्दलालशिष्य, राज., गा. ८, पद्य, चन्द्रप्रभजिन स्तवन, जैत, प्राहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीचन्दा) जै., (कनकपुरी नग) ३१३३-९+5) २७९२-३
चन्द्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मागु., गा. २१, पद्य, चन्द्रप्रभजिन स्तवन, मु. देवकुशल, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू.. मूपू., (जीन मुख सो) ७७८१-५ (चन्द्रप्रभ) १३४२-१५(4)
चम्पकमाला रास, मागु., गा. ९२, पद्य, जै., (नमिय निरंज) चन्द्रप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनरुचि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चन्दाप्रभु) ६०८६-६७
चम्पक श्रेष्ठि चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ढाल २९, गा. चन्द्रप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., ५०७, वि. १६९५, पद्य, मूपू., (जालोर मांह) १९८७, १२५९(श्रीशङ्कर) ६०८६-६
१), २८९५) चन्द्रप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, चम्पकवेष्ठि रास, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गा. ५७५, वि. पद्य, मूपू.. (चन्द्रप्रभ) ७५६५-५७)
१६२२, पद्य, मूपू., (श्रीवीरं) ५६६४१ चन्द्रप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, चर्चा सङ्ग्रह-स्थानकवासीमतमण्डन, हिन्दी, गद्य, स्था., (अगर पद्य, मूपू., (श्रीचन्द्र) ६७६७-६७
कितनेक) ४७४७ चन्द्रप्रभजिन स्तवन, ऋ. रायचन्द, मागु., गा. १७, वि. १८२६, चर्चा समाधान-दिगम्बरधार्मिक, भूधर, प्राहिं., वि. १३वी, पद्य, पद्य, जै., (चन्द्रपुरी) ३१३०-२)
दि., (जयो वीर जि) ७४१-१(+) चन्द्रप्रभजिन स्तवन, मु. विवेकविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., चातुर्मासिक व्याख्यान, राज., गद्य, मूपू., (अष्ट महाप) ८४९१ (श्रीसरसति) ६०७५-३
चातुर्मासिक व्याख्यान*, राज., गद्य, म्पू., (पंचापी परम) ६७चन्द्रबाहुजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, राज., गा. ८, पद्य, मूपू., १), ६०७०-१), २५३९-१, ५७८२, ५७२८, ६६५६-१७) (चन्द्रबाहु) २८५-७६(45)
चारित्र आराधना, मागु., गद्य, मूपू., (चारित्रना) ७३९४० चन्द्रमा सज्झाय, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (चान्दो ते) ७५६१-६० चारित्रछत्तीसी, प्राहिं., गा. ३६, पद्य, मूपू.. (ज्ञान धरौ) ५८५०चन्द्रराजा १० भव वर्णन, मागु., गद्य, मूपू., (चन्दराजा) २२०८- ३), ५९४२-२
चारित्रपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, प्राहिं., गा. ३, पद्य, चन्द्रराजा चौपाई, मागु., पद्य, मूपू., (-) ६९५५
मूपू., (चारित दुग) ६५९३-२२ चन्द्रराजा चौपाई, उपा. विजयमुनि-शिष्य, मागु., गा. ९९९, चारित्रपद चैत्यवन्दन, पाठक हीरधर्म, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ग्रं.१२००?, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (श्रीसुखदाय) ५४०७
(जस्स पसाये) ६१३२-८ चन्द्रराजा चौपाई, गणि विजयशेखर, मागु., पद्य, मूपू.. (-) चारित्रपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, प्राहिं., गा.३, पद्य, मूपू.,
(दुविध चारि) ६५९३-२३ चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., ढाल १०८, ४ उल्लास, चारित्रपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.,
गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराध) ७५८), (सिद्धचक्र) ६१३२-१७, ६५९३-२४ २५३५, २९७२), ५३५८), ६४९६५), ७५८१), २९३), चित्रसम्भूति चौढालिया, मागु., ढाल ५, पद्य, जै., (प्रणमुं गण) २२०८-१२, ७०१३, ७४८७, ६९९८, ७६१, २६३५, ७६९-५१ ३२९४, ३६५३, ७८७२, ८४३४, ९०१८, ९०२४, २६७८, ३०२३, | | चित्रसम्भूति चौपाई, मागु., पद्य, मूपू., (प्रणमु सरस) ६०६०-९७) ३७४१, ३४९४, ८६८, ७०७१, ७४८४६, १६६२, १६७४, | चित्रसम्भूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., ढाल ३९, ग्रं.११००,
३१६४७, ३८३९, ७३६७, ८७२६७, ७००८६, ७९५१ ___वि. १७३१, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं) ३७९१), ८८१०+) चन्द्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मागु., ६/१०३ढाल, गा. २५०५, चित्रसम्भूति रास, मागु., ढाल ७, गा. १३८, पद्य, मूपू., ग्रं.३०५५, वि. १७१७, पद्य, मूपू.. (श्रीजिननाय) ३३६६),
(चितसम्भूति) ४४१२), ४२७६-१, ४४१८-२ ३६९, ८१०), ८९१९७, ६८४०६)
चित्रसम्भूति सज्झाय, मु. कवियण, मागु., गा. १९, पद्य, मूपू., चन्द्रलेखा चरित्र, ऋ. चोथमल, प्राहिं., गा. १६६, पद्य, स्था., (चित्त कहे) २८५-४०), ११७६-४२, २७३१-१६, ७३९०-२(5-)
२
)
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५३६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ चित्रसम्भूति सज्झाय, मु. राजहर्ष, मागु., गा. २०, पद्य, मूपू., चौथमाता कथा, राज., गद्य, वै., (एक दिन पाण) २५८६-१) (बान्धव बोल) ७५६२-३६, ६०६४-१०७।
चौमासी देववन्दन सविधि, पं. वीरविजय, मागु., गा. ४२५, पद्य, चित्रसम्भूति सन्धि, मु. नयप्रमोद, मागु., गा. ३८, वि. १७१९, मूपू., (प्रथम ईरिय) ८६२७), ४२८९ पद्य, मूपू., (श्रीवीतराग) ६८११-२+5)
चौमासीपर्व देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, मूपू., चित्रसेन चरित्र*, मागु., पद्य, मूपू., (-) ८२२२(१)
(विमलकेवलज) ३७३८, ४०६३, ४९५०, ५७३६, ८४०४, ८६४२, चित्रसेनपद्मावती चौपाई, उपा. रामविजय, मागु., गा. ४९१, वि. ४८१७, ८५५२, ४४०९७, ६०४३६) १८१४, पद्य, मूपू., (रिसहेसर पा) ९२१७(+)
छट्ठतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., चित्रसेनपद्मावती चौपाई, आ. सोमकलशसूरि, मागु., गा. ६२९, (श्रीनेमि) ७५४१-१६ ग्रं.८५०, वि. १६१०, पद्य, मूपू., (पहिलू प्र) ५९५३
छेलामारु गीत, मागु., पद्य, (झरमर हो छे) २८५-९१+5) चित्रसेनविचित्रसेन कुमार चतुष्पदी, मु. राजसिंह, मागु., ढाल जन्मदरीद्री ब्राह्मण कथा-प्रमादोपरि, मु. रामचन्द, मागु., गा. १५, २६, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पर) ८८७७
पद्य, मूपू., (श्रावकना) ७५५९-४६) चिदानन्दबहोत्तरी, मु. चिदानन्द, मागु., अध्याय ७२, पद्य, मूपू., जन्मप्रकाशिका, मु. कीर्तिवर्द्धन, मागु., पद्य, मूपू., (वन्दित सुर) (पिया परघर) ४९२८, ५०३४
७८८९७ चेतन चरित्र, मु. भावसिङ्घ, प्राहिं., ढाल १४, गा. २५०, पद्य, जम्बूपृच्छा, मु. वीरजी, मागु., ढाल १३, वि. १७२८, पद्य, मूपू., मूपू., (प्रथम जपत) ४४५६
(सकल पदारथ) २३५२, ४९५६, ३३९८ चेतनबत्रीसी, मु. राज, मागु., गा. ३२, वि. १७३९, पद्य, मूपू., जम्बूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मागु., पद्य, मूपू., (पहिली ढाल) (चेतन चेत) ७५५५-७६)
__ १२४१-१, १६३९(8) चेतन वृतान्त, श्रा. भगवतीदास, प्राहिं., गा. २९८, वि. १७३२, जम्बूस्वामी कथा, मागु., गद्य, मूपू.. (प्रथम भवि) ३८९७ पद्य, मूपू., (जिनचरण प्र) ४४८९, ६०८१-४, ८३६२
जम्बूस्वामी कथा, मागु., गद्य, जै., (सप्रभावं) ३५८), १०४७ चेतन सज्झाय, मु. धनदास, प्राहि., गा.८, पद्य, जै., (चेतन जम्बूस्वामी गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, मूपू., (नगर चेतत) ६०५७-७
राजगृह) ६०४७-२९(+8 चेतनसुमतिमिलन सज्झाय, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ६, पद्य, जै., | जम्बूस्वामी चरित्र, श्रा. आणन्द जेठमल, गुज., ढाल ३५, वि. (अवीनासीनी) ३१०२-२
१९२०, पद्य, मूपू.. (शासनपति वर) १४३९, ४३२०), चेलणासती चौढालिया, ऋ. रायचन्द, मागु., ढाल ४, वि. १८३३, १५३५६) पद्य, जै., (ओसर जे नर) ७६९-४८
जम्बूस्वामी चरित्र, मु. मल्लिदास, मागु.. ढाल ३५, गा. ४८८, वि. चेलणासती सज्झाय, मु. नन्दलालशिष्य, मागु., गा. ७, पद्य, जै., १६४९, पद्य, मूपू., (सरसति सरस) १९६४-१ (कोणिकराजान) ३१३३-६(5)
जम्बूस्वामी चरित्र कथा सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (-) २९११ चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ७, पद्य, जम्बूस्वामी चौपाई, मु. पद्मचन्द्र, मागु., गा. १४७७, वि. १७१४,
मूपू., (वीरे वखाणी) ३१३३-५, १४९१-२, ७५६२-१२, ___ पद्य, मूपू., (-) १४४६(45) ७५४३-१०), ७५५२-९६), ६०६७-१५
जम्बूस्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., चैत्रशुक्लपक्ष फलकथन, मागु., गा. १, पद्य, (पञ्चम रोहि) (स्वामी सुध) ७५५४-८६) १४८९-१८
जम्बूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., ढाल ३५, गा. ६०८, चैत्रीपूर्णिमा देववन्दन विधि, आ. विजयराजसूरि, मागु., पद्य, ग्रं.१०३५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास) ४१४१-१, मूपू., (नाभिनरेश्व) २७७४
४४१९, ४९०४, ९०५०, २६६६, ७६२७, ८७५९, ८७७६ चैत्रीपूर्णिमापर्व देववन्दन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, जम्बूस्वामी रास, श्रा. देपाल भोजक, मागु., गा. १८५, वि. मूपू., (प्रथम प्रत) २२०४, ६१८२-१
१५२२, पद्य, मुपू., (गोयम गणहर) ४३७७ चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, जम्बूस्वामी रास, मु. राजपाल, मागु., गा. ५२५, वि. १६२२, पद्य, मूपू., (सेत्रुञ्जग) ५८२७-२८
मूपू., (सकल जिनवर) ५९२३ चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तुति, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ४, पद्य, जम्बूस्वामी लावणी, ऋ. चोथमल, राज., गा.३१, वि. १८५८, मूपू., (श्रीशेत्रु) १४८७-२०१६), ७५४४-२३(5)
पद्य, जै., (सेठ रिषभदत) ११७६-१९ चैत्रीपूर्णिमा व्याख्यान, राज., गद्य, मूपू., (तीर्थराजं) ६०७०-१०) जम्बूस्वामी सज्झाय, राज., गा. २०, पद्य, मूपू., (राजगृही नग) चोरस्थानक परीक्षा, मागु., गा. १, पद्य, (मेष वृषि) ३०९३-२4) १७८१-६()
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
जम्बूस्वामी सज्झाय, मु. ऋषभ, प्राहिं., गा. १४, पद्य, जै.,
(तोर रे) १४६८-२म
(स्वामी सुध) ६०५७-१६
जिनगुण पद, जिनवालम, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (करिए अरिहन) ६०६४-६
जम्बूस्वामी सज्झाय, मु. कवियण, मागु., गा. १८, पद्य, सूपू.,
( श्रेणीक नर) १७९५-४०
जिनगुण पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं. गा. ५. पद्य, भूपू. ( अब तो मोय) ३१२९-४६
(S)
जम्बूस्वामी सज्झाय, ऋ. खुशालचन्द्र, मागु., गा. १४, वि. १८१७, पद्य, मुपू., (मगध देश रा) ६०५७-२४, ७५५८-३ (8) जम्बूस्वामी सज्झाय, देवीलाल, राज., गा. ५, पद्य, जै., (बोल बोल सा) ३१३३ - १३" 2(+5) जम्बूस्वामी सज्झाय, मु. नन्द, मागु., गा. ११, पद्य, जै., (-) ३१३३-५२०१
जम्बूस्वामी सज्झाय, मु. महिमासागर, मागु, गा. ७, पद्य, मृपू.. (जी हो श्री) १४९१-२१
जम्बूस्वामी सज्झाय, ऋ. रतनचन्द, मागु., गा. ७, पद्य, भूपू., ( रिषभ जैनन) ७५५०-८
($)
जम्बूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मागु, गा. १४, पद्य, मृपू.. (राजग्रही) १५७६-५६ ६०१७जम्बूस्वामी सज्झाय- पञ्चभववर्णन, मु. रामजी, मागु., गा. ३३, पद्य, जै., (श्रीजिन) ६०४९-२१ (-)
जयघोषविजयघोष रास ऋ. आसकर्ण, मागु.. ढाल ७, वि. १८३०, पद्य, जै, (वारणसी नगर ) ७६९-१८
जयसेन चौपाई रात्रिभोजन विषये वा. धर्मसमुद्र, मागु.. गा. २५५, पद्य, मूप्पू., ( पणमिसु गोय) ५६५३, ६३७७ जयानन्दकेवली रास, पं. पद्मविजय, मागु., खण्ड ९ / ढाल
२०२, गा. ५८९७. वि. १८५८, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रथ) ८६३३ जहाबिसंकुट्ठ कथा, मागु, गद्य, मृपू., (जडाविसं कु ) ६८०६-३ जावडभावडसेठ रास, आ. देपाल भोजक, मागु., गा. १९४, वि. १६ वी, पद्य, जै. (पणमवि मरुद ) ५९३६
($)
जिनकल्याणक स्तवन, मु. दानविजय, मागु., वि. १७६२, पद्य, भूपू.. (निज गुरु ) ९०००-२१ जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनचन्द्रसूरि मागु, ढाल ८. वि. १८५३, पद्य, मुपू. (स्मृत्वा) ५७२०-१ जिनकुशलसूरि स्तवन, उपा. अभयसोम, मागु., गा. ३१, पद्य, भूपू. (समके माता) ७५४३/ जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. जिनचन्द, मागु, गा. ३, पद्य, मृपू., (श्रीजिनकुश) ७५४३-२
(#S)
जिनकुशलसूरि स्तवन, गणि राजसमुद्र, मागु गा. ९. पहा. मृपू.. (जी हो धन ६७०९-१२ जिनकुशलसूरि स्तवन, गणि समयहर्ष, मागु गा. १८, पद्य, मृपू., (जी हो श्री) ६७०९-१३ जिनगीतचीवीसी, मु. जिनराज, मागु. २४ गीत, पद्य, भूपू..
"
(आज सकल मङ) १३९७ जिनगुण गीत, आ. विजयदेवसूरि, मागु, गा. २. पच, गु..
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"
जिनगुण विरदावलीवत्रीसी, मागु गा. ३२, पद्य, जे. (जय संसार) ५६०८-२ जिनचन्द्रसूरिआलजा गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ११. पद्य, मूपू. (आसू मास वल) ७७८०-५ जिनचन्द्रसूरिनिर्वाण रास, मु. समयप्रमोद, मागु गा. ७०, पद्य, मृपू. ( गुणनिधान) ७७८०-४
जिनचन्द्रसूरि पद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सगुरु जिणच ) ६७०९-१४ जिनतिथिवारनक्षत्रादिज्ञान, मागु., गद्य, जै., (तिथि चीन्त) २९४६-२५
(S)
जिनदत्तराजा रास, मु. रत्नसुन्दरसूरि मागु, खण्ड ४. गा. १०८०, वि. १६०७, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर) ५६६५ () जिनदत्तसूरि चरित्र, मागु., पद्य, मूपू., (पञ्च परमेष) ७५५७-६ जिनदत्तसूरि छन्द, पाठक रुघपति, मागु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (वरदायक हंस) ६७०९-१
जिनदत्तसूरि दूहा, मागु., गा. १, पद्य, मुपू., ( आ गादी तपज) ३७५३-२
जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचन्द, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (दादा चिरञ) ६७०९-११, ७५४३-३" जिनदत्तसूरि पद, मु. राजहर्ष, मागु., गा. ९. पद्य, भूपू (अरे लाला ) ६७०९-९, ५६०३-३
"
($)
जिनदत्तसूरि पद, पाठक रुघपति, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीजिणदत) ६७०९-१०
जिननरकगमन विचार, मागु., गद्य, जै., (ऋषभ भीमबलन)
७६७२-५
जिनपरिवार सज्झाय, मु. आनन्दघन, मागु, गा. २५, पद्य, मूपू., (राजाराणीरो) २७३१-५वी
(S#)
५३७
जिनपूजा, मागु, पद्य, ग्रुप. (-) ३११५-१
"
जिनपूजाफल दृष्टान्त, मागु., गद्य, भूपू., ( एक दरिद्र) ३०६०-२ (+) जिनपूजाफल स्तवन, आ. अपमदास, मागु गा. १३, पद्य, मृपू. (सरसति सामण) ७५९१-१
"
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जिनपूजाविधि छन्द, मु. प्रीतविमल, मागु, गा. १३, पद्य, मूपू., (सुविधिनाथन) २८२-१०
जिनप्रतिमा चर्चा - मूर्तिपूजकमतमान्य, राज., गद्य, मूपू., ( सर्व भाई) ३२६७
जिनप्रतिमा चर्चा- मूर्तिपूजकमतमण्डन, मागु . १५९, गद्य, मृपू.. (श्रीजिनप्र) २१२६. १०६१
(S)
"
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५३८
जिनप्रतिमापूजा सिद्धि, मागु गद्य, मृपू. (पुष्पादि ) ४६८७
८०६७ M
जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मागु., ढाल २, गा. २१, पद्य, मृपू.. (जिन जिन ) ४५०३-२
जिनप्रतिमास्थापन चर्चा, प्राहिं., गद्य, मुपु. ( भ्रमामती) ७५९१-२ जिनप्रतिमास्थापना प्रबन्ध, मु. ब्रह्म, मागु, १३ अधिकार, गा. ६७१, ग्रं. १६००, वि. १६७७, पद्य, मुपू., (श्रीजिणवर) ५६६० (+),
८२७
जिनप्रतिमाहुण्डि रास, मु. जिनहर्ष, मागु गा. ६७, वि. १७२५, पद्य, ग्रुप्पु (सुयदेवी ही) ८९८४-२
"
जिनप्रभसूरि कवित, मागु, गा. १, पद्य, मृपू. (गयण थकी जि)
६७०९-२
जिनबल विचार, मागु., पद्य, जै., (सुणो वीर्य) ६०७३-५ जिनबिम्बस्थापन स्तवन, श्रा. लधो, मागु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनप्र) ६७०९-१६
(+#S)
जिनभवन ८४ आशातनापरिहार स्तवन, मागु., गा. २५, पद्य, मृपू. (सकल सुरासु) ५८८२-१ जिनरक्षितजिनपाल कथा, मागु., गा. १११, पद्य, जै., (चारित्र
ले) ३३२७
जिनरक्षितजिनपाल चौडालिया, मागु, ढाल ४, पद्य, जे., (अनन्त चोवी ) ७६९ - १३, २६७५-४, ६०५२-१०
जिनरक्षितजिनपाल सज्झाय, मु. अमर, मागु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हा रे लाल) ११७६-६२ जिनरक्षितजिनपाल सन्धि, मु. शील, मागु, गा. ९८, वि. १६३२, प+ग, मूपू., (-) ७२१४(+)
जिनरत्नप्रभसूरि कवित्त, मागु, गा. १, पद्य, मूपु. ( वर्धमान जि )
६७०९-३
जिनवन्दन विधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थङ) ७७८१-३
($)
जिनवरसीदान स्तवन, मु. लब्धिअमर, मागु., गा. २८, पद्य, भूपू., (श्रीवरदाईन) ६२१८-२ जिनवाणी पद, राज., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनन्दा था) २७९२
($)
५७
जिनवाणी पद, प्राहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (जिन मुख वा ) २६७५
२१
जिनवाणी पद, मु. जिनदास, राज, गा. ६, पद्य, मृपू.. (प्रभु थारी) २३४२-११४
जिनविजयनिर्वाण प्रशस्ति, मु. उत्तमविजय, मागु., ढाल १६, गा. २२३. ग्रं. २८५, पद्य, मृपू. ( कमलमुखी) ९१६२ जिनशरीरवर्ण विचार माग गद्य, जै.. (२० से २२) १६०६-२ जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जैनकवि बनारसीदास, प्राहि., १० शतक, गा. १०१, वि. १६९०, पद्य, जै., (-) ३०३८, २५०८-२ (क)
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
(S)
जिनस्तवन चौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, २४ स्तवन, पद्य. मूपू. (जगजीवन जगव) ९१०९०१ २८५-६४११८३ जिनस्तवन चौवीशी - १४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., २४ स्तवन, पद्य, मृपू. (ऋषभदेव नित) ४५९७) जिनस्तवनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., २४ स्तवन, पद्य, मृपू. (आदिकरण अरि) २६१०-११ ४०३९, २२१६, २०१२-२ जिनस्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मागु, २४ स्तवन, पद्य, मूपू., (बालपणे आपण ) ५१८२-२ जिनस्तुतिचतुर्विंशतिका, गणि मानसागर मागु २४ स्तुति जोडा, गा. ९७. वि. १७वी, पद्य, भूपू (समरु सरसत) ५८८१ जिनेन्द्रसूरि भास, मागु., पद्य, मृपू., ( सोझितनगर) ७५५४-१५ जीतडमल, मागु., वि. १८६३, पद्य, जै., (प्रथम तीर) ७४०९-२" जीवगति आगति यन्त्र, मागु, यंत्र, मृपू., (-) ३२६१-१(+), ६५९९ >(+$)
(#$)
"
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"
(२) जीवन्धर चरित्र - टबार्थ, श्री. दि. ( जयवन्तो वर) ३९९९ जीवभेद सङ्क्षिप्त विचार, माग,
"
जीवदया पद, मु. सन्तोष, राज., गा. ११, पद्य, जै., (अणछण्या पा) ३१२९-५०
($)
जीवदयाप्रतिबोध गीत, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गा. १६, पद्य,
मूपू., (दुलहे नरभव) ६०५२-३०
"
जीवनधर चरित्र, आ. शुभचन्द्र, पद्य, (-)-प्रतहीन >
(S)
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नथमल विलाला, मागु., गद्य, ४८८६ ($)
गद्य, जे., (जीवना वे) ६009
जीवविचार चौपाई, मागु., गा. २०६, पद्य, मृपू., (--) ७१२१ जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मागु ढाल ९. गा. ८३. वि. १७१२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसती) १५५२, ४९४९-१, ७७३३, ८२६१, १२०७"
जीव सज्झाय, वा. बुधविजय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (समोवसरण सङ) १७९८-९
($)
जीव सज्झाय, मु. लाभ, मागु., गा. १४, पद्य, जै., (सीमरीय सरस) ५७५१-२ (-)
जीव सज्झाय, मु. सुमतिविजय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (समोवसरण सि) ६००४-३२१
जीव हरियाली, मागु., गा. ८, पद्य, जै., (एक पुरुष ) ५८७३-१३(३) जीवहिंसाफल पद, मु. द्यानत, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चेतन मानील) २३४२-८९
(S)
जीवादि पदार्थ सङ्ग्रह, राज., गद्य, जै., ( बेइन्द्री) ३३०८ जीवादि पदार्थ सङ्ग्रह, मागु., गद्य, जै., (नामद्वार) ३३२८ जीवोत्पत्ति रास, मागु., पद्य, जै., (सुणि सुणि) ६९९१ -२ (S) जीवोत्पत्ति सज्झाय, गणि राम, मागु., ढाल ५, पद्य, भूपू..
(प्रणम्) ६००१-२१
जैनधर्ममञ्जरी चौपाई, उपा. समयराज, मागु., गा. २७४, वि.
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५३९ १६६२, पद्य, मूपू., (जिनमुख कमल) ९७०+)
(प्रणमो पंच) ६००१-३२ ज्ञानचिन्तामणी दोहा, मनोहरदास, मागु., गा. १२८, वि. १७२८, ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, वा. शिवदास, मागु., गा. २५, वि. १६७८, पद्य, स्था., (सकल विद्या) ६७०४-२
पद्य, मूपू., (पास जिण नम) ६०२०-५७) ज्ञानपंचमीतपउद्यापन विधि, मागु., गद्य, मूपू., (बिम्ब ५ पु) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमि जिणवर) ६०२१-३
१८०३-४ ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवन्दन, मु. रङ्गविजय, मागु., गा. ९, पद्य, ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., मूपू., (त्रिगडे बे) २३३७-१७+), १११७-५, ६६३१-८)
(निरुपम सुख) २६२६-३५१) ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., ५ चैत्यवंदन, ज्ञानपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., गा. १५, पद्य, मूपू.. (श्रीसौभाग) ६०४२-१२)
(लोकालोक) ६५९३-१९ ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, मूपू., ज्ञानपद चैत्यवन्दन, पाठक हीरधर्म, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू..
(श्रीसौभाग) २४०, ३९९०, ४९२४, ६१८१, ६२०१, ६२१६, (क्षिप्रादि) ६१३२-७ ४५३५, ८४९४, ४०४०), ४०५५७)
ज्ञानपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन विधि, मागु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथ) (मत्यादिपण) ६५९३-२० ८०३२-३, ६०६२-७%, १४२३-४६)
ज्ञानपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पं. रूपविजय, मागु., वि. १८८७, पद्य, मूपू., नर मुन) ६१३२-१६, ६५९३-२१ (सकल कुशल) ३९१८-१, ५१२३, ८१७९
ज्योतिषचक्र विचार, मागु., गद्य, मूपू., (जम्बुद्विप) ८०९२ ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुन्दर गणि, ज्योतिषचक्र विचार, श्रा. हजारीमल लुङ्कड, राज., ७द्वार, वि.
मागु., ढाल ३, गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं) २८५-७३, १९३१, फ+ग, जै., (श्रीगुरुदे) १७४१(+) ९८०-६, ६००१-३५, ६०४६-१, १८०६-३, ९०००-८
ज्योतिष चौपाई, मु. सूरचन्द, मागु., गा. ३६, पद्य, जै., (समरिय ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ५, सामण) ६०४७-४+६)
पद्य, मूपू., (पञ्चमी तप) ३१३३-३९६, ९८०-७, ६००१-३६, झाझरियामुनि चौपाई, मु. रामविजय, मागु., ढाल ७, वि. १६९८, ९०००-९
पद्य, मूपू.. (आदीसर जिनव) ६४५८+) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृतविजय, मागु., गा. ११, पद्य, झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्नसूरि, मागु., ढाल ४, गा. मूपू., (अनन्त सिद) ६०७३-२, ८९६०-३, ७१६८-२*5)
४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (सरसति चरणे) २८५-४+5), ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु., गा. ७, पद्य, १४९१-१, ८९६०-१, ६०३४-३७, ३९१७-१७) मूपू., (सद्गुरू चर) १७९५-१३, ६००४-२१७)
ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. देवविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषिजीने वन) २८५-५०+६), ३१३३-१५६), १४९१-५, ६०२८(सद्गुरुना) १४९१-१९
१०, ६०५७-२१, ७५६२-११, ७५४३-९(48), १७९८-२२६), ६००४ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., ढाल ५, गा. १६, ३९, ७५५२-८६), २४३२-४६, ६०६७-२१
पद्य, मूपू., (श्रीवासुपू) १४८९-२, १४९१-१८, १७९५-४३, ढण्ढणऋषि सज्झाय, मागु., ढाल ३, पद्य, मूपू., (तिण कालेने) ६०८६-६२, ६००४-५३७)
२६७५-५ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मागु., ढाल ६, गा. ४९, ढण्ढणकुमार गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ढाल २, गा. पद्य, मूपू., (प्रणमी पास) २३८८-१, ५०२५, ६००१-३४,
२०, पद्य, मूपू., (नगरी अनोपम) ६०४७-११+8) ७५७६-४६), ९०००-७%), ३२९०-१(8)
ढाईद्वीप विचार, मागु., गद्य, जै., (खण्डा ८ हज) ५१८७-२, ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पं. जिनविजय, मागु., ढाल ६, वि. १७९३,
१५४० पद्य, मूपू.. (सुत सिद्धा) ६००१-३३, ७५२४, ८९५४-१, १८०४- ढालसागर, ऋ. चोथमल, मागु., वि. १८५६, पद्य, स्था., (समरु १,२१७९
ऋषभ) ४४३१) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. दीपविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू... ढुण्ढकचर्चा प्रश्नोत्तर-स्थानकवासीमतनिरसन, राज., गद्य, मूपू., (कार्तिक) ५११०-२
(दुण्ढीयो) ३९७९ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, कवि दीपविजय, मागु., ढाल ४, पद्य, मूपू., | ढुण्ढकपच्चीसी-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., (ज्ञानावरणी) ६००१-३७
गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतद) ६००१-५० ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., ढाल ५, पद्य, स्पू., | ढुण्ढकमत कुण्डलियो-स्थानकवासीमतनिरसन, राज., गा. १,
(S)
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५४०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ पद्य, मूपू., (दुण्ढे बेठ) ६५१२-८(45)
तेजसिंह रास, ऋ. चोथमल, मागु., पद्य, जै., (-) ७१९८५६) दुण्ढकमत चर्चा-स्थानकवासीमतनिरसन, आ. विजयानन्दसूरि, तेतलीपुत्र चौढालिया, ऋ. जेमल, मागु., ढाल ४, वि. १८२५,
प्राहिं., १०० प्रश्नोत्तर, वि. २०वी, गद्य, जै.. (साधमारगी) पद्य, जै., (अरिहन्त सि) ७६९-२ २२७६
तेरापन्थमत निरसन चर्चा, राज., ढाल १, गा. ३१, वि. १८४०, ढुण्ढकमत प्रश्नोत्तर-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. चनणविजय, पद्य, मूपू., (एकेक पाखण) २९३७-१ हिन्दी, वि. १९३५, गद्य, स्पू., (अथ प्रश्नो) २१२३६१
तेरापन्थी भिक्षु ढाल, माईदास मून्ता, राज., वि. १८७७, पद्य, दुण्ढिया सवैया-स्थानकवासीमतनिरसन, मागु., गा. २, पद्य, जै., __तेरा., (--) १०८९-१ (जा कै सब) ६४२३-७
त्रयोदशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, दण्ढकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, प्राहि., ग्रं.२४०, गद्य, मूपू.,
मूपू., (पढम जिनेसर) ७५४१-२३ (दुण्डियो) ६३६६
त्रिभुवनप्रासादजिनबिम्बसङ्ख्या चैत्यपरिपाटी, मागु., गद्य, मूपू., ढोलामारु चौपाई, वा. कुशललाभ, मागु., गा. ७००, वि. १६७७, | (पहिलउं त्र) १७३-१7
पद्य, मूपू., (सकल सुरासु) ८२१४६), ५२१३, ८८५५, ४३४४७) त्रिशलाराणी गर्भचिन्ताविलाप गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, ढोलामारू दोहा, मागु., गा. २३६, पद्य, मूपू., (पूगल पिङ्ग) मागु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमुं जि) ३३०७-२ १५४९+), ६९९७६
त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मागु., गा. १८, पद्य, जै., तत्त्वप्रकाश, श्रा. दलपतराय, प्राहिं., पद्य, दि., (प्रथम शिष) (सदगुरु चरण) ९८०-२३, २६७५-५६, ६७०९-१७ ३३६८
त्रीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., तत्त्वबोध, मागु., पद्य, मूपू., (नमुं देव) ६५९५
(श्रेयांस) ७५४१-१३ तत्त्व सङ्ग्रह*, मागु., गद्य, जै., (एक वर्ण बी) ४७४५, ४६८६(3 त्रैलोक्यसुन्दरी चौपाई, ऋ. कनीरामजी, मागु., ढाल २२, वि. तपपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., १८११, पद्य, जै., (अरिहन्त सि) ४०६२) (सेवो तप भव) ६५९३-२५
त्रैलोक्यसुन्दरी रास, ऋ. सबलदास, मागु., ढाल १२, वि. १८५२, तपपद चैत्यवन्दन, पाठक हीरधर्म, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., पद्य, जै., (विहरमान वी) २३८५, ६७१६ (श्रीऋषभादि) ६१३२-९
थावच्चाकुमार गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ५, पद्य, तपपद सज्झाय, मु. रायचन्द, प्राहि., गा. १४, पद्य, जै., (तप मूपू., (नयरी द्वार) ६०४७-८(45) वडो रे) ३१३३-४१, २३४१-२७
थावच्चाकुमार चौढालिया, पुण्यपाल, मागु., ढाल ४, पद्य, जै., तपपद सज्झाय, ऋ. हीरालाल, राज., गा. १२, पद्य, स्था.,
(महला माहे) ७६९-३७ (सुरायो तप) ३१३३-४०+5
थावच्चाकुमार रास, मु. विमलप्रभसूरि-शिष्य, मागु., गा. २८२, तपपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., ग्रं.५९४, वि. १६५५, पद्य, मूपू., (पढमजिणपमुह) ६२३८ (द्वादश विध) ६५९३-२६
थावच्चामुनि चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., खण्ड २, गा. तपपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., ४३७, ग्रं.६५०, वि. १६९१, पद्य, मूपू., (नेमिनाथना) १२४२
(त्रिकरण भव) ६१३२-१८, ६५९३-२७. तप सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (सोल पचखाणे) ७६७२-८ थोकडा सङ्ग्रह', मागु., कोष्टक, मूपू., (-) ४९६८ तपागच्छीयप्रतिष्ठा स्तवन-कच्छभूजतीर्थ, मु. विवेकहर्ष, मागु., दमदन्तमुनि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. १८, पद्य, गा. ११३, पद्य, मूपू.. (-) ७५४६-१७
मूपू., (विहार करता) २८५-६८(45) तपावली, मागु., गद्य, मूपू., (पुरिमढ्ढ) ६५७५, ४३९५७, ८९३७) दमदन्तराजर्षि ढाल, मु. रामचन्द, मागु., ढाल ३, पद्य, मूपू., (-- तामलीतापस चौपाई, मागु., ढाल ९, पद्य, मूपू., (चोविसमां) ) ७५५९-२ ७६९-९
दमयन्ती चौपाई, उपा. अभयसोम, मागु., वि. १७११, पद्य, मूपू., तारातम्बोलनगरी वर्णन, मागु., गद्य, मूपू., (लाहोरथी गा) ९९०- (पास जिणेसर) ४१२८+) | १)
दमयन्ती चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मागु., गा. २०९, पद्य, जै., तेजसारकुमार रास, वा. कुशललाभ, मागु., गा. ४०६, वि. १६२४, (जिणधरमसुं) १२९१), ४२३८, १३५४६, ६८३१, ६९१९७), पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धा) ९१७९, ३२२९, ५३२४, २३२२
७११७६), ७२२८-१(5) तेजसारकुमार रास, मु. रामचन्द, मागु., ढाल १०९, वि. १८०८, | दमयन्ती रास, उपा. सुमतिहंस, मागु., गा. १२३, वि. १७१३, पद्य, जै., (स्वस्ति) ९२९२
पद्य, मूपू.. (सानिद्ध जस) ४१४८(+)
२{+S)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५४१
दयाछत्रीशी, मु. चिदानन्दजी, मागु., गा. ३६, वि. १९०५, पद्य,
मूपू., (चरण कमल गु) ८९०५) दयापच्चीसी, मु. विवेकचन्द, मागु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल
तीर्थङ) ७७८१-१, १७९८-११७, ६००४-३३७) दया सज्झाय, मु. विसनलाल, हिन्दी, गा. १०, वि. १९६२, पद्य,
स्था., (दया विन कर) ३१३३-३०६ दर्शनपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपु.,
(जैनागम रुच) ६५९३-१६ दर्शनपद चैत्यवन्दन, पाठक हीरधर्म, मागु., गा.३, पद्य, मूपू.,
(हुय पुग्गल) ६१३२-६, २१२८-१८५० दर्शनपद स्तवन, मु. कुशल, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.. (देव
श्रीजि) २१२८-१९५६) दर्शनपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू.,
(सम्यग् दरश) ६५९३-१७ दर्शनपद स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (जिनपन्नत) २१२८
दर्शनपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.,
(अनुपम सिधच) ६१३२-१५, ६५९३-१८ दशमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.,
(अर नेमि जि) ७५४१-२० दशार्णभद्रराजा चौढालिया, मागु., ढाल ४, पद्य, मूपू., (ऋषभ
जिनेसर) २३४१-२ दशार्णभद्रराजा चौढालीयो, मु. धर्मवर्धन, मागु., गा. १०५, वि.
१७५७, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर) ५९८२ दशार्णभद्रराजा चौपाई, ऋ. दौलत, मागु., पद्य, जै., (स्वस्ति)
४५८८७), २५९२६ दशार्णभद्रराजा रास, आ. हीरानन्दसूरि, मागु., गा. ३१, वि.
१५वी, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर) ३५५५-२७ दशार्णभद्रराजा सज्झाय, मु. लालविजय, मागु., गा. ९, पद्य,
मूपू.. (सारद बुधदा) २८५-३६), ७५५५-१८+5), ६००४-५१) दसाणुवाइ, मागु., गद्य, मूपू., (जीव समुचय) ११२८-२", ३९४९
११६७, २८३७), ६०४७-१९६, ९१९, ३६३६, ४१४२-१, ४७९८, ६००१-९, ८०४६, ८३८१-२, ३१५३, ८५४६-१(45),
६०६०-७६), २३७२-२ दानशीलतपभावना सज्झाय, प्राहिं., गा.६, पद्य, जै., (जैनधर्म
सब) ५३३२-२ दानशीलतपभावना सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., गा. ११, वि.
१८५२, पद्य, स्था., (-) ३१३३-२५३) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. जयैतादास, मागु., गा. १३, पद्य,
जै., (दान एक मन) ६०६४-३६) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. दुर्गदास, मागु., गा. ४, पद्य, ___ जै., (साम्भलौजी) ६०६४-१७ दानशीलतपभावना सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., गा. ५, पद्य,
जै., (भव जीव भजी) ६०६४-३३१६) दानशीलतपभाव पद, राज., गा. ४, पद्य, जै., (दवया ले लो)
३१२९-११) दान सज्झाय, मु. दीप्तिविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमी
श्र) १७९५-२३ दामनककुमार चौपाई, ऋ. रतनचन्द, मागु., ढाल ८, वि. १८९१,
पद्य, जै., (वीर नमुं) ७६९-१६, ६१५८-२, ७५५६-२७) दीक्षा के अट्ठारह दोष, मागु., गद्य, मूपू., (आठ वरसना)
५०५३-३ दीप पद, प्राहि., गा. २, पद्य, जै., (दीया दुनी) ७८८५-२ दीप सज्झाय, मागु., गा. १४, पद्य, जै., (दसे धारो) ७५६१-३७ दीपावलीपर्व कल्प, मागु., गद्य, मूपू., (स्वस्ति) ३५५६-१ दीपावलीपर्व चैत्यवन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, मूपू.,
(वीर जिनवर) ५०५१ दीपावलीपर्व व्याख्यान, राज., गद्य, पू., (पणमिय वीरं) ६०७०
३), ६६२०-२६) दीपावलीपर्व व्याख्यान, मागु., गद्य, मूपू., (-) १००४ दीपावलीपर्व स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (जय मानव से)
६०४१-२८ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मागु., गा. १, पद्य, मूपू.,
(जय जय कर) १४८५-४६, १८०३-२, ६०४१-२७, २८४५
१८ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.,
(सासननायक) २३३६-३४, ६०४१-९ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.,
(पर्व पनोता) ६४४८-२ दूमराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा.
७, पद्य, मूपू., (नगर कपीलान) ७६९-४, ६७०९-२९, ७५६२-२२ दृष्टान्त कथानक सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू.. (राजगृही नग)
१६३७
(२) दसाणुवाई-अर्थ, मागु., गद्य, मूपू., (राजग्रही) २४०४-१(4) दानविविधभेद रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, मूपू., (-)
१४७१७ दानशीलतपभावना पद, प्राहि., गा. ३, पद्य, मूपू.. (रे मनमा)
२६७५-४७ दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा.
६, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन) १३४२-२१), ३१३३-२६+६),
७५५५-१०, १७८२-१, १८००-११०, ६०६४-८३७ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ढाल
४, गा. १०१, ग्रं.१३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिने)
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५४२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ दृष्टान्त सङ्ग्रह, मागु., पद्य, मूपू., (इहा कुलवाल) ६११४६)
२२७-१(4) दृष्टान्त सङ्ग्रह, मागु., गद्य, जै., (वित्तेणं०) ४६८८
| द्रष्टान्त कथा सङ्ग्रह', मागु., गद्य, मूपू., (-) ६२१५, दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ३०८३(5) ११, पद्य, मूपू.. (दृष्टि राग) ६७६७-६९
द्रौपदी चौपाई, वा. कनककीर्ति, मागु., ढाल ३९, वि. १६९३, दृष्टि सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, पद्य, ___ पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी) ९०६८-१, २३५७, ४१२६-१२), मूपू., (दर्शन तारा) ६०६७-२०६१
१९४९, ५२२०, ५३६३, ९२५४ देवकी ६ पुत्र रास, मागु., ढाल १९, गा. ३०७, पद्य, मूपू., (नेम द्रौपदी चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ढाल ३४, गा. जिणन्द) ९१३७
६०६, वि. १७००, पद्य, मूपू., (शान्तिनाथ) ६५३११) देवकीचिन्ता सज्झाय, ऋ. अमी, मागु., गा. १६, पद्य, जै., द्रौपदी रास, राज., ढाल ३०, पद्य, जै., (तीर भवन) ५३५७ (देवकी की) ३१३३-२३8)
द्रौपदी रास, मागु., पद्य, मूपू., (कृष्ण नरेस) ८५१३-२ देवकी ढाल, राज., ढाल १३, पद्य, मपू., (बेरागे मन) ७६९-२६ धनमित्र चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., ढाल ३, पद्य, जै., (साधु देवकी सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मागु., ढाल १०, पद्य, मूपू., धन्य) ७६९-८ (रथनेमि नाम) ७८५०-२)
धनसागर रास, मागु., पद्य, जै., (--) ३१७१७ देव गति आगति, मागु., गद्य, मूपू., (च्यार निका) ४६९१-४(१) धन्नाअणगार गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ८, पद्य, देवदत्ता चौपाई, मु. रत्नधर्म, मागु., ढाल ७, वि. १८९१, पद्य, मुपू., (वीर जिणन्द) ६०४७-२२६) __ जै., (एकादसमां) ७६९-३०
धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मागु., गा. १२, पद्य, जै., देवनारक के ५ बोल १६ द्वार विचार, मागु., गद्य, मूपू.. (पहिलो (जिनवचने वय) ६०७३-८, ७५४८-११ नारक) ५१२४, ९०२१
धन्नाऋषिगुण सज्झाय, मु. विनयचन्द, मागु., गा. २०, पद्य, स्था., देवरचना, मु. गुणचन्द, मागु., गा. ७७, पद्य, पू., (सयल
(जिनशासन) ८३८१-३ जगतपति) ८३९८-३
धन्नाकाकन्दी चौढालिया, ऋ. आसकर्ण, मागु., ढाल ७, वि. देवराजवच्छराज रास, मु. लावण्यसमय, मागु., खण्ड ६, ग्रं.६१२, १८५९, पद्य, जै., (पुजजी पधार) ७६९-१ वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सकल जिणवर) ५८६३-१
धन्नाकाकन्दी सज्झाय, राज., गा. ६, पद्य, जै., (मुनिवर धना) देवसेना चौपाई, मु. खुशालचन्द्र, मागु., ढाल ९, वि. १८९८, पद्य, ६००८-१६ मूपू.. (दान शील तप) ४४९७-१
धन्नाकाकन्दी सज्झाय, मागु., गा. १६, पद्य, जै., (सतगुरु वचन) देवाधिदेव रचना, हरजसराय, हिन्दी, गा. ८५, वि. १८६०, पद्य, ६००८-७, ६०५७-३ जै., (सकल जगतपद) २१०५) ।
धन्नाकाकन्दी सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मागु., गा. २२, पद्य, मूपू., देवानन्दा चौढालिया, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल ४, गा. ४१, (जिनवाणी रे) ६०२८-१२, ६०२९-५६ पद्य, जै., (सकल जीव सु) ७६९-२१
धन्नाकाकन्दी सज्झाय, मु. राम, राज., गा. ६, वि. १९३०, पद्य, देवानन्दा सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, प्राहिं., गा. १२, पद्य, जै., (धन्नोजी तो) ३१२९-२१ मूपू., (जिनवर रूप) २८५-२०१६, ११७६-४८
धन्ना चरित्र लावणी, मु. हीरालाल-शिष्य, हिन्दी, पद्य, जै., देवी आरती, प्राहि., गा. ८, पद्य, वै., (मङ्गल की) ७३५५-२, (महावीरप्रभ) ३१३३-४२(45) ५७५१-५(5)
धन्ना चौढालिया, फतेचन्द, मागु., ढाल ४, पद्य, जै., (सकल देवी गरबो, गोडीदास, मागु., पद्य, वै., (प्रथम समरु) ५४७-११ अमर से) ७६९-१४ देशना सज्झाय, मु. लब्धि, मागु., गा. १६, पद्य, मूपू., (आज | धन्नामुनि सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मागु.. गा. १५, पद्य, मूपू., ___ आसाढ्यु) ५४७-४
(काकन्दी वा) ७५४८-४७) दोषावली, मागु., पद्य, (ॐ नमो रक) २८५-१०+5)
धन्ना रास, वा. मतिशेखर, मागु., गा. ३३०, वि. १५१४, पद्य, दोहा, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (आदिनाथ प्र) ८३८४-२
मूपू., (पहिलउं पणम) ५६४७ द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., ढाल १७, धन्नाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मागु., ढाल ८५, गा. २२४२,
गा. ३८४, वि. १७२९, पद्य, मूपू.. (श्रीगुरु) २२७-१, ४४२७ ___ग्रं.२५००, वि. १७९९, पद्य, मूपू.. (ऐन्द्रश्रे) ७६२, ३४५६६), (२) द्रव्यगुणपर्याय रास-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (इहमुचित ९०३६६) पद) ४४२७
धन्नाशालिभद्र सज्झाय, राज., गा. १९, पद्य, जै., (धना चौकी) (२) द्रव्यगुणपर्याय रास-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (द्रव्यानुय) ७५५०-७), ६०४९-२०/
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५४३ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. नेमीसागर, मागु.. गा. ६, पद्य, मूपू., । धर्मरुचि अणगार सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., गा. ९, पद्य, (सालिभद्र) ६०२८-७
मूपू., (सुणी सीख) ७५६१-१० धन्नाशालिभद्र सज्झाय, ऋ. रतन, मागु., गा. १४, पद्य, जै., धर्मरुचि अणगार सज्झाय, ऋ. रतनचन्द, राज., गा. १५, वि. (श्रीवीर वख) ६०५७-२
१८६५, पद्य, स्था., (चम्पानगरनी) १८००-१७६), ७५५८-६(६) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. सहजसुन्दर, मागु., गा. १५, पद्य, धर्मलोचन युद्ध, मु. पद्मविजय, मागु., गा. ४७, पद्य, मूपू.. (आद मूपू.. (दीधो मुनीव) ७५५५-८+5)
युगादह) ६०८७-२१ धन्नाशालीभद्र गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ८, पद्य, धर्मविलास भाषा, मागु., गद्य, जै.. (गुण अनन्त) ३०३९) मूपू.. (धन्नौ सालि) ६०४७-१८५६), ७५५५-१७+8)
धर्मसेन चौपाई, मु. यशोलाभ, मागु., ढाल ३६, वि. १७४०, पद्य, धन्नाशालीभद्र सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मागु., गा. १७, पद्य, मूपू., ___ मूपू., (चरणकमल श्र) ६७८२) (मुनिवर वहि) ७५५२-११
धूरि चूलिका, मागु., गद्य, मूपू., (स्वस्ति) ७७८०-१(६) धन्ना सज्झाय, ऋ. आसकर्ण, मागु., गा.७, वि. १८५९, पद्य, जै., ध्यान पद, कवि मल्ह, मागु., गा. १, पद्य, जै., (सुध ध्यान) (धन्नाजी रि) २७३१-६(5)
८९२२-३ धन्ना सज्झाय, मु. तिलोकसी-शिष्य, मागु., गा. २१, पद्य, जै., ध्यानमाला, कवि नेमिदास रामजी शाह कवि, मागु., ढाल (अमीय समाणी) ७५६२-७
६+कलश, गा. १४३, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवाण) धन्ना सज्झाय, मु. तिलोकसी-शिष्य, मागु., गा. ३६, पद्य, जै., ६३१२-१२), ३०८८ (जम्बुतोदीप) ७५५०-३७
(२) ध्यानमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीजिन चो) ६३१२-११ धन्ना सज्झाय, आ. रत्नसागरसूरि, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., ध्यानस्वरुपनिरुपण प्रबन्ध, मु. भावविजय, मागु., ढाल ९, गा. (मगधदेश महि) ७५०८-२
__ १६३, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर) ९०९६ धन्ना सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (धन नन्दबत्रीसी चौपाई, मु. सिंहकुशल, मागु., गा. १५४, वि. १५६०, धन्नो) ७५६२-१४, ७५५२-५७)
पद्य, मूपू., (आगम वेद पु) ५६२८ धम्मिलकुमार रास, मु. गुणविजय, मागु., खण्ड ४, वि. १८८०, नन्दिषेणमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मागु., गा. २६०, ग्रं.५००, वि. पद्य, मूपू., (-) ८३१०६)
१८०३, पद्य, मूपू., (वर्द्धमान) १४३३, १६४१, ६७३४-१ धम्मोमङ्गल सज्झाय, मु. जेतसी, मागु., गा. १९, पद्य, मूपू., नन्दिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., ढाल १६, ग्रं.४२१, वि. (धम्मो मङ्ग) २३४१-८
१७२५, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धा) ९१२८, ७५९०, २९६१(45) धर्मजिन स्तवन, मागु., पद्य, स्पू., (प्रणमु प्र) ३१४९-२
नन्दिषेणमुनि सज्झाय, कवि चतुरङ्ग, मागु., गा.६, पद्य, मूपू., धर्मजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धरम (मुनिवर महि) ६०२८-४, ७५६२-३२ जिनेश) ६०८६-२०
नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू.. धर्मजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नाथजी | (साधुजी न) १३४१-१९+5), ७५६२-४४ ताहर) ५८९९-३९
नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मागु., ढाल ३, गा. १६, धर्मजिन स्तवन, पण्डित खीमाविजय, प्राहि., गा. ५, पद्य, मूपू., ___ पद्य, मूपू., (राजगृही नय) ६०७४-१, ६००४-२९, १७९८-४६) (इक सुणलौ) २३४२-१३३, ६०८०-१०)
नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हां रे (रहो रहो रह) १७९५-२१, ६००४-१२ ___मार) ६०८६-८, १८०४-४, ६०३५-८(5)
नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., गा. १६, पद्य, धर्मजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., मूपू., (पञ्चसयां) २८५-८/+8) (मूरति मन) ५८२७-३३
नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. लालविजय, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., धर्मदत्तधनवती चौपाई, मु. कुशलहर्ष, मागु., खण्ड २/ ढाल ३२, (वैरागे संय) ६७३४-२, ६०४९-७) _ वि. १७८८, पद्य, जै., (प्रथम नमू) ३४५-१, ७२०५७
नन्दिषेणमुनि सज्झाय, कवि श्रुतरङ्ग, मागु., गा.६, पद्य, जै., धर्मध्यान लक्षण, मागु., गद्य, मूपू., (धम्मेज्झाण) ४६२९५१),
(मुनीवर महि) ५८९९-७ ५८६९(१६), ६२९८
नन्दीश्वरद्वीप पूजा, मु. धर्मचन्द्र, मागु., ढाल १२+ कलश, वि. धर्मपाप परिवार, राज., गद्य, जै., (धर्मरो पित) १९८८-२१) १८९६, पद्य, मूपू.. (प्रणमुं शा) ५१२८-१, ५१६२, ६९०८७) धर्मरुचि अणगार सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., गा. ११, पद्य, नन्दीश्वरद्वीप बावनजिनप्रसाद स्तवन, गणि शिवचन्द्र, मागु., वि. जै., (धर्मरुचि) ११७६-२३
१८७७, पद्य, मूपू., (स्वस्ति) ६०६३-२६)
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५४४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ नन्दीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जिनचन्द, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू.. | मूपू., (जी हो मिथी) २८५-३८६, ७५५५-२१, ६७०९-२६, (नन्दीसर बा) ९८०-१३
७५६२-४३ नमस्कारमन्त्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., नमीराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. (श्रीनवकार) ६०५९-२८७
६, पद्य, मूपू., (नयर सुन्दर) ७६९-५, ६७०९-३०, ७५६२-२३ नमस्कार महामन्त्र छन्द, मागु., गा. १६, पद्य, जै., (सुखकारण नयचक्र सङ्ग्रह, गणि देवचन्द्र, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम पाज) भव) ६०५९-१८
१३५०) नमस्कार महामन्त्र छन्द, वा. कुशललाभ, मागु.. गा. १८, पद्य, नय विचार, राज., गद्य, मूपू., (नैगमनय का) १७४९-११)
मूपू., (वंछित पूरे) ६०९१-७, १४२७-६, १८०२-७, १७८५- नय विचार, मागु., गद्य, जै., (--) ७८४७, १०७१) २), २८२-३७, ७५५३-१४६)
नरकगामी साधुसाध्वी आदि सङ्ख्या विचार, मागु., गद्य, मूपू., नमस्कार महामन्त्र छन्द, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मागु., गा. १४, (सूर साधु) १३७३-२ पद्य, मूपू., (सुख कारण) ७५५३-१५७
नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मागु., ढाल ४, गा. ३१, पद्य, नमस्कारमहामन्त्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मागु., गा. १३छप्पा, मूपू., (आदि जिणन्द) १४७४-२, ४४१८-४
वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतर) ५९००-१६, ६०६२-१८) नरकभवनद्वार वर्णन, मागु., गा. ३४२, पद्य, जै., (-) ५२४४६) नमस्कारमहामन्त्र पद, मु. जिनसमुद्र, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू.. नर्मदासती चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, जै., (सासणनायक) (जप रे जीव) ६०३४-६(७)
१७२८७ नमस्कारमहामन्त्र में चौबीसजिन, मागु., गद्य, जै., (नवकार नर्मदासुन्दरी कथा, मागु., गद्य, मूपू., (एहज जम्बूद) ६०५८-५ मध्य) ६२७९-१३)
नर्मदासुन्दरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मागु., ढाल नमस्कारमहामन्त्र रास, मागु., पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ)
६३, गा. १४५४, ग्रं.१४६६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., ७१०५
(प्रभुचरणाम) ४६०३), ९३०६, ४६१८१६) । नमस्कारमहामन्त्र रास, ऋ. धर्मसी, मागु., गा. १९०, पद्य, मूपू., । नलदमयन्ती रास, आ. ऋषिवर्द्धनसूरि, मागु., गा. ३३१, ग्रं.५००, (पारस पद) २३४४
वि. १५१२, पद्य, मूपू., (सयल सङ्घ) ६३७९, ८४४८) नमस्कारमहामन्त्र सज्झाय, मु. गुणप्रभुसुन्दर, मागु., गा. ७, पद्य, | नलदमयन्ती रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ६ खंड/३९ मूपू., (सुखकारण भव) ६०८७-१७)
ढाल, गा. ९३१, ग्रं.१३५०, वि. १६७३, पद्य, मूपू.. नमस्कार महामन्त्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., ढाल ५, (सीमन्धरस्व) ५३०८, ३०५७, ६३५२३ पद्य, मूपू., (वारीजाउ अर) ७५६२-२८
नवअङ्ग पूजा दुहा, मु. वीरविजय, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., नमस्कारमहामन्त्र स्तवन, कान, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (अष्ट (जल भरि सम) ६०७३-४ लबध) ४३७-४
नवकारवाली सज्झाय, मु. लब्धि, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू.. (बार नमस्कारमहामन्त्र स्तवन, ऋ. रायचन्द, राज., गा. १३, वि. गुण अर) ९०५६-२), १७९५-४२ १९वी, पद्य, जै., (प्रथम श्री) १८००-१३(5)
नवकारवाली स्तवन, मागु., गा. १२, वि. १८३१, पद्य, मूपू., नमस्कार महामन्त्र स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, राज., गा. २६, (अरिहन्त पह) २३४१-४०
पद्य, मूपू., (किं कप्पतर) ६०८३-९, ७५५१-२, ५४९०-७२, नवग्रह स्थापन विधि, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम स्था) ८३७०-३ ५८२७-६४, ६०११-२१
नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मागु., गद्य, जै., (जीव चेतन) ३४६३नमिजिन पद, मु. हर्षचन्द, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.. (-) ७५४३
नवतत्त्व ४ नयनिक्षेपादि, मागु., कोष्टक, मूपू.. (तत्त्व जीव) नमिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, पद्य, १७४९-२) मूपू.. (श्रीनमिजिन) ७७८२-८
नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचन्द्र, मागु., ढाल ९, पद्य, मूपू.. (सकल नमिराजर्षि कथा, मागु., ढाल १०, पद्य, मूपू., (हिवे नमीरा) जिनेसर) ६२२०, ७०८२) ४५०५-१
नवतत्त्व भाषा, मागु., गा. १५, पद्य, जै., (चेतनवन्त) ४२११-२ नमिराजर्षि ढाल, मागु., पद्य, मूपू., (हो राज बेड) ८९२६-३७) (२) नवतत्त्व भाषा-टबार्थ, प्राहिं., गद्य, जै., (अब जीव द्र) ४२११नमिराजर्षि ढाल, ऋ. आसकर्ण, मागु., ढाल ७, वि. १८३९, पद्य, जै., (सासण नायक) १५४१, १५७८
नवतत्त्व यन्त्र सङ्ग्रह, मागु., कोष्टक, जै., (--) ९५७ नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ८, पद्य, | नवतत्त्व विचार, मागु., गद्य, मूपू., (मार्गणा वि) ८३६७-५
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५४५ नवतत्त्व विचार, मु. परमसौभाग्य, मागु., गद्य, जै., (सम्यग्दृष) | नववाडि श्लोक, मागु., गा. १, पद्य, जै., (नव वाडि सी) ६४२३
१८१८-१, ६३११-१ नवतत्त्व स्तवन, मु. विवेकविजय, मागु., वि. १८७२, पद्य, मूपू., । नववाडि सज्झाय, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नववाड सही) (सरस्वतीनें) ४९५५
७५४२-९७ नवतत्त्व स्तुति, पण्डित मानविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., नववाडि सज्झाय, आ. अजितदेवसूरि, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जीवा रे जी) ८११६-१७)
(रमणी पशु) ६०२८-५, ३१३०-३७) नवपदआराधन विधि, मागु., गद्य, मूपू., (आसो सुदि) २१२८-२) नववाडि सज्झाय, मु. अमर, मागु., गा. १४, पद्य, जै., (सदगुरु नवपद उलाळा, गणि देवचन्द्र, मागु., वि. १८वी, पद्य, मूपू.. पाय) ७५४८-३
(तीर्थपति) २०९९-३(१), ६२९०-१, ४९९०(45), १६७५६) नववाडि सज्झाय, वा. उदयरत्न, मागु., ढाल १०, गा. ४३, वि. नवपद चैत्यवदन, पाठक हीरधर्म, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., १७६३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुने) २८५-२, ९३७-२, ६००१-१९, (जयजय श्रीअ) ६१३२-१, २१२८-३६)
६०१७-२८ नवपद चैत्यवन्दन, मु. सुखविजय, मागु., गा. ५, पद्य, जै., नववाडि सज्झाय, मु. शिवकुशल, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरिहन्त बा) ७५४०-१८
(गोतम पुछे) ६०६६-५ नवपदजी स्तवन, मु. दानविजय, मागु., गा. २३, वि. १७६२, नववाडी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल ११, गा. ९७, वि.
पद्य, मूपू.. (सकल कुशल) ६००१-७, २१०६-५७, ९०००-१८६) १७२९, पद्य, मुपू., (श्रीनेमीश) ४६१०, ६७४५, ७५६२-४५, नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. २१, पद्य, मूपू... ५०५६-२ (नमोनन्त सन) ९४८-१
नागश्री सज्झाय, मु. विनयचन्द्र, मागु., ढाल २, गा. ४६, पद्य, नवपद पद, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिन नित नम) २६७५-५१ मूपू., (धर्मघोष आच) ६०५२-६ नवपद पद, मु. लालचन्द, मागु., गा. ३, पद्य, जै., (नवपद नागिलसुमति रास, मागु., गा. १०७, पद्य, जै., (वीर जिणेसर) ध्यान) २४८६-३
५६४५ नवपद पूजा, मागु., पद्य, मूपू., (श्रुतधर जस) ४४०८
नागिला रास, ऋ. भीमजी, मागु., गा. १९३, वि. १६३२, पद्य, नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मागु., ढाल ९, वि. १८३०, पद्य, ___जै., (प्रथम ए गौ) ४१४४ । मूपू., (श्रीगोडी) २८९०-१, ७४६१
नाटक सङ्ख्या , मागु., गद्य, जै., (दसारणदेश) ७५५५-२०१६) नवपद पूजा, पं. पद्मविजय, मागु., वि. १८३८, पद्य, मूपू., नारकीदुःख साखी, मागु., गा. २४४, पद्य, जै., (आदिदेव अरू) (श्रुतदायक) ५१२५-१५, ७७०७, ६२२९(5)
३३३१-१ नवपदमहिमा स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., | नारकीदुखवर्णन दूहा, मु. जिनदास, मागु., पद्य, मूपू., (इण परि भवि) १४९२-२४१)
(पांचआश्रव) २५५७-१ नवपद विधि, राज., गद्य, मूपू., (प्रभातरो) ३२५१
नारकी देहमान व वैक्रीय शरीरमान, मागु., गद्य, मूपू., (सातमी नवपद स्तवन, मागु., गा.७, पद्य, मूपू.. (गोतम पुच्छ) ६०६८-१२ नारक) ८३६७-४ नवपद स्तवन, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तीरथनायक) १४८८- नारकीभवनद्वार विचार, मागु., गद्य, म्पू., (नरक ७ ना) ४६३४),
१४, २४८६-२ नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., निद्रा पद, मु. चिदानन्द, राज., गा.४, पद्य, मपू., (बिनजारन (गोयम नाणी) १४९२-२७), ९०००-१७६)
अं) २३४२-२० नवपद स्तवन, मु. कान्तिसागर, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.. (सेवो निरञ्जन पद, रूपचन्द, हिन्दी, गा. ३, पद्य, जै.. (देव निरञ्ज) रे भव) ६०६८-१०
१३४२-२ नवपद स्तवन-प्रभाती, कवि जगमाल, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., । निर्मोही ढाल, ऋ. रतनचन्द, मागु., ढाल ५, वि. १८७४, पद्य, (जपो जपो रे) १३४२-७
जै., (निरमोही गु) ७६९-४१, २३४१-१ नवमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू... | निर्मोही सज्झाय, खूबचन्द, राज., गा. ९, पद्य, मूपू., (वन्दु नाभि) (सुव्रत सुव) ७५४१-१९
६०९५-९६) नवरत्नम्, राज., श्लोक १०, पद्य, (धन्वन्तरी) ३१६९-२६) निह्नव सज्झाय, मागु., गा. २१, पद्य, जै., (डुंगर उपर) ६०५२नववाडि ढाल, मु. कीर्तिवर्द्धन, मागु., ढाल ९, गा.६८, पद्य, मूपू., (आदरि सील) ८३०५-१६
निह्नव सझाय, राज., पद्य, मूपू.. (ठाणाअङ्ग) ८४९०
८३८९
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ नीगइराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. | (जादूबंसी) ६००८-८, ६०४९-१०७
६, पद्य, मूपू.. (पुण्डपुर) ७६९-६, ६७०९-३१, ७५६२-२४ । | नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचन्द, मागु., ढाल ९, गा. ४०, पद्य, नूतन ढालसागर, ऋ. चोथमल, राज., पद्य, स्था., (श्रीमत् शा) । मूपू., (समुद्रविजय) ६०५३-१४), ६००१-४६ ७१२८-१
नेमराजिमती पद, राज., गा. ४, पद्य, जै., (सावरो वरन) २३४२नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मागु., २४ चोक,
वि. १८३९, पद्य, मूपू., (एक दिवस वस) ३२०७, ३५९४, नेमराजिमती पद, राज., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुनरी सईयो)
४४२९-१, ६००१-१०, ८८९७, ३०४४, ६९६६, ३३४७, १९७६- २३४२-१२७ ___१, ६४२१-३७, १३३८-१७
नेमराजिमती पद, राज., गा.३, पद्य, जै., (हमारे घर) २३४२-४९ नेमराजिमति कथा, मागु., गद्य, मूपू.. (श्रीमथुरान) ८६७४) नेमराजिमती पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., (अरियो कांइ) २३४२नेमराजिमति श्लोक, मु. कुशलविजय, मागु., गा. २०, पद्य, मूपू., ४७ (समरु गणपति) ५५५६-२७, ८९२६-१(5)
नेमराजिमती पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., (कोइवि लइयो) नेमराजिमती गीत, मु. उदयरत्न, राज., गा. ५, पद्य, मूपू.,
२३४२-५७ (सखीरी मोहन) ५८९९-२०
नेमराजिमती पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (गिरनारी चढ) नेमराजिमती गीत, मु. कवियण, राज., गा. ७, पद्य, मूपू.,
२३४२-१४४ (समुद्रविजय) ७५५५-२३(5
नेमराजिमती पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., (नेमि मिलने) २३४२नेमराजिमती गीत, गणि जीतसागर, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू.. ९५ (तोरण आया) ६०२९-७
नेमराजिमती पद, प्राहि., गा. २, पद्य, जै., (मे देखुंगी) २३४२नेमराजिमती गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्राहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (रहो रहो रे) १३४२-२३)
नेमराजिमती पद, प्राहि., गा. ५, पद्य, जै., (राजुल पुका) २३४२नेमराजिमती गीत, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेम मले तो) ९१५६-३५
नेमराजिमती पद, प्राहि., गा. ५, पद्य, जै., (विन सजन ने) नेमराजिमती गीत, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मोहल | २३४२-१६५ चदि) ९१५६-२३६
नेमराजिमती पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (समझ क्यों) २३४२नेमराजिमती गीत, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वरष्यो वरष) ९१५६-२२६) ।
नेमराजिमती पद, चन्द्रप्रताप, मागु., गा. ५, पद्य, जै., नेमराजिमती गीत, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (होरी (सांवराजी) २३४१-२१ खलीइं) ९१५६-३४)
नेमराजिमती पद, मु. जगतराम, राज., गा. ९, पद्य, मूपू., नेमराजिमती गीत, मु. रूपचन्द, प्राहिं., गा. ६, पद्य, जै., (आजू (नेमीसर चल) २३४२-७१ मे वार) २८५-७९+5
नेमराजिमती पद, मु. जगतराम, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू.. (चल नेमराजिमती गीत, मु. लालचन्द, प्राहि., गा. ५, पद्य, जै., (छबि | री सखी) २३४२-८१ स्याम) ६०४९-२६
नेमराजिमती पद, मु. जगतराम, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सखी नेमराजिमती गीत, मु. विनय, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू.. (जीउ री मना) २३४२-८२ प्रान) ९१६५-२०
नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, राज., गा. ७, पद्य, मूपू., (थारी नेमराजिमती गीत, मु. विनय, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू.. (प्यारे सांवल) २३४२-३९ प्र) ९१६५-१८६)
नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, राज., गा. ३, पद्य, जै., (म्हारा नेमराजिमती गीत, मु. विनय, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरी वाल) २३४२-३७ गति) ९१६५-१४
नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, राज., गा. ८, पद्य, मूपू., (स्याम नेमराजिमती गीत, मु. विनय, प्राहि., गा. २, पद्य, मूपू., (या गति मिलन) २३४२-४२ छार) ९१६५-१३६)
नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, प्राहि., गा. ६, पद्य, मूपू.. (ओर नेमराजिमती गीत, मु. विवेकविजय, मागु., गा. २२, पद्य, पू., न आवे) २३४२-१३० (सरसती पद) ६०७५-८
नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुनरी नेमराजिमती गीत, ऋ. सुन्दर, मागु., गा. १६, पद्य, जै.,
सईया) २३४१-१९
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
नेमराजिमती पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं, गा. ३, पद्य, मूपू., (देखत हि चि) ६७६७-३३, ९१६५-३८
नेमराजिमती पद, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ६, पद्य, जै., (होली नेम) ६०५२-५२
नेमराजिमती बारमासीहा, मागु गा. ४६२, पद्य, मृपू. ( सारद बुध) ८३५२
नेमराजिमती बारमासो, मु. अमृतविजय, मागु., ढाल १२, पद्य, मूपू., (यदुपति जान ) ४४२९-२
नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मागु., गा. १३, पद्य, मृपू., (सांवण मासे) ६२०३-६
($)
($)
नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. १४, पद्य, भूपू., (बेसाखे वन) ७५५५-३६०३५-१७ ६२०३-४ नेमराजिमती बारमासो, वा देवविजय, मागु, गा. १६, पद्य, मृपू.. (ब्रह्माणी) ५८९९-३
3
नेमराजिमती बारमासो, मु. रद्गरत्न, मागु, गा. १९. वि. १८५४, पद्य, भूपू., (सरसती स्वा) ६०५३-१४)
नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, प्राहिं., गा. २६, पद्य,
जै., (विनवे उग्र ) ६७०४-१
नेमराजिमती बारमासो, मु. वीरविजय, मागु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सखि तोरण) २३४०-१५
नेमराजिमती मजगल विवाहलो, मु. जिनदास, मागु, पद्य, ग्रुपु. (गोयम गणहर) ७४५०
नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मागु., गा. ७०, पद्य, भूपू., ( सारद पय पण ) ३२४०-१
नेमराजिमती लावणी, मागु, गा. ६, पद्य, मृपू. (मेरा पिया)
"
११७६-५८
नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, मागु., गा. १०, पद्य, मृपू., (नेमनाथ मेर ) ११७६-२८
नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मृपू., (कहोरी माई) ६२०३-१४ (5)
"
नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं, गा. ४, पद्य, मृपू.. (फिकर अब लग) १८००-२० २४३२-५०
नेमराजिमती सज्झाय, राज., गा. ३४, पद्य, मुपू., (म्हे धावाल ) o($) नेमराजिमती सज्झाय मागु गा. ८, पद्य, मृपु. ( समुद्रविजय )
६०९५-१०
४४६९-४
नेमराजिमती सज्झाय, प्राहिं., गा. ६, पद्य, मुपू., ( कौन नेमकवा) ६०५७-१
नेमराजिमती सज्झाय, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., (नेमजी से) ६०६४-४८($)
नेमराजिमती सज्झाय, मु. उदय, मागु., गा. ११, पद्य, मुपू., (राजेमति कह) ११७६-३
५४७
नेमराजिमती सज्झाय, मु. कान्ति, मागु., गा. ७, पद्य, मुपू., ( राजन्द वरस ) ५४७-७ नेमराजिमती सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु., गा. ५, पद्य, भूपू., (तोरणथी नेम) ६०५७-८ ६०१७-१९ नेमराजिमती सज्झाय, ऋ. खेमो, मागु., गा. १५, पद्य, जै., ( श्रीनेमिसर) १७९५-१५
($)
नेमराजिमती सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., गा. २३, वि. १८५७, पद्य, जै., (समुद्रविजे) ७५४२-६* नेमराजिमती सज्झाय, गणि जिनहर्ष, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीनवे राजु) ७५५५-५
नेमराजिमती सज्झाय, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पीउजी रे) १४९२-२३
(+)
नेमराजिमती सज्झाय, मु. रङ्गविजय, मागु गा. ११, पद्य, मृपू...
(प्रणमी सदग) ७५५५४
नेमराजिमती सज्झाय, श्री. रुपचन्द, मागु., गा. ११, पद्य, मुपू., ( अणसमजूं जी ) १४९१-१५
नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूप, मागु., गा. ८, पद्य, भूपू., ( काउसग्ग) ६००४-४९
($)
.(S)
नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु, गा. ९. वि. १९वी पद्य, भूपू (गोछे रे वे) ५८९९-४ ६०१७-१८ नेमराजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. २८, पद्य, मृपू.. (वे कर जोडी) ६०६७-११ नेमराजिमती सज्झाय, मु. विनीतसागर, मागु गा. ११, पद्य, भूपू.. (समुद्रविजय) १२४१-२ ७५४८-१०
नेमराजिमती सज्झाय, मु. हेमहर्ष, मागु गा. ५. पद्य, ग्रुपु. (नव भवरी) ९७९-३
नेमराजिमती स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ८, पद्य, भूपू., ( कहिनि सखी) ५८९९-१९
($+)*
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"
नेमराजिमती स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (क्य विसर) ५८९९-२१
नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूप्पू., (यादवजी हो) १४९२-२९ ५८९९-१४ नेमराजिमती स्तवन, मु. हंसरतन, मागु., गा. ७, पद्य, मृपू., (श्रावण स्य) ५८९९-३२
नेमराजिमती स्तवन- १५ तिथिगर्मित, मु. रङ्गविजय, मागु गा. २३. पद्य, मृपू. (जे जिन मुख) ६०५३-१५१ ६२०३-३ नेमराजिमती होरी, बाल, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., (आज चलि गिर) ६०८८-३१
3
5
नेमराजिमती होरी, मु. पतनसुन्दर, मागु, गा. ४, पद्य, मृपू., ( या दिन नेम) ६०८८-३२
नेमराजुल कागल, मु. रूपविजय, मागु., गा. १९, पद्य, भूपू., (स्वस्ति) ६०५३-५०
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५४८
नेमराजुल काव्य, वा. उदय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( जइने रहेजो) ६०९१-२०१
नेमराजुल पद, मु. भानुचन्द, मागु, गा. २, पद्य, जै.. (नयना नीन्द) ९०३९-२, ९००१-२
नेमिजिन गीत, मागु., गा. १९, पद्य, मूपू., (नेमजी स्यु) २८५
(+$)
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८९
नेमिजिन गीत, मु. भावविजय, प्राहिं. गा. ५. परा भूपू (नेमि
"
किउं) ९०३९-६, ९००१-६
नेमिजिन गीत, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ९, पद्य, मृपू.. (हरी नारी) ९१६५-६२
नेमिजिन गीत, मु. रुपचन्द, राज., गा. ५, पद्य, मूपू., (होरी
खेले ) ६००१-६०
नेमिजिन गीत, मु. सोमविमल, राज., गा. ३, पद्य, मूपू., ( मन्त तन्त) ५८६३ - २
नेमिजिन चन्द्राउला, मु. ज्ञानसार, मागु., गा. ७२, वि. १६५२, पद्य, मृघु, (सरसति भगवत) ९१२३
"
नेमिजिन चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु, गा. ३, पद्य, मृपू.. (नेमिनाथ वा ) ६६३१-११
नेमिजिन छन्द, मु. हेमचन्द्र, मागु., ३ अधिकार, गा. १९१, पद्य, मृपू.. ( वन्देहं वि) २८५-६३०
नेमिजिन नमस्कार, कवि ऋषभ, मागु., गा. ३, पद्य, मुपू., (नेम नमुनि) ६०४५-२६ (S)
नेमिजिन नवरसो, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., गा. ७२, वि. १६६७, पद्य, मुपू., ( सरसति सामि) ४२७७ (+)
,
नेमिजिन पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मुपू., (चलो देखे) २७९२-५५* नेमिजिन पद प्राहि, गा. ५. पद्य, मुपू. (छपन कोडि) २३४२-८ नेमिजिन पद प्राहि. गा. २. पद्य, जे., (नेमजी तुम) २३४२-४ नेमिजिन पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (नेमस्वाम) २३४२-१० नेमिजिन पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., (वारी हो बध) २३४२-७५ नेमिजिन पद प्राहि. गा. ३. पद्य, जै., (सिखर गिरना) २०१२
($)
३५
नेमिजिन पद, मु. उदयरतन, मागु., गा. ४, पद्य, मुपू., (स्याने आवे ) ६००१-६१
($)
नेमिजिन पद, मु. चन्द, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., (यादव मन मे ) २३४२-१३४, ६०८०-११ नेमिजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मुपू., (ऐसे
($)
नेम कु) २७९२ - २९
नेमिजिन पद, मु. दोलत, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेमीसर
वान) २३४१ - २६
नेमिजिन पद, मु. भूषण, राज, गा. ४, पद्य, जै., (नेम निरञ्ज)
२३४२-३६, २७९२-२२(3)
नेमिजिन पद, मु. मिहरचन्द, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (परज
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
नेना) २७९२-१५
नेमिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं, गा. २, पद्य, मृपू. (देखो भाई) ६७६७-४९ ९१६५५४
($)
नेमिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. २, पद्य, मूप्पू., (सयन की नयन ) ६७६७-४३, ९१६५-४८ उ
($)
नेमिजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमजी में)
२६७५-१७
नेमिजिन प्रभाति, मु. जिन, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीमन्नेम) ९१५६-११
"
नेमिजिन बलगीत, मु. रूपचन्द, मागु, गा. ९. पा. भूपू.. (समुद्रविजय) २८५-८३
नेमिजिन बारमासो, मागु., गा. १९, पद्य, मूप्पू., (समुद्रविजय) २६७६-२'
नेमिजिन बारमासो, मु. अमृतविजय, मागु, गा. ३५. पद्य, भूपू..
(+)
(समरू माता) ६०३१-३
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नेमिजिन बारमासो, मु. खुस्यालचन्द, मागु., गा. २८, वि. १७९८, पद्य, मृपु. ( समरु सरसत) ५६७९-८
नेमिजिन बारमासो, श्रा. खेतशी शाह, मागु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (सहेल्यो रे ) २६७६-१३(+)
नेमिजिन वारमासो, मु. जिनचन्द्र, मागु, गा. १७, पद्य, मृ. (गोखे बेठी) ६०३५-१६ ($)
नेमिजिन वारमासो, मु. जिनहर्ष, मागु, गा. १३. पद्य, भूपू.
(S)
($)
(S)
(राणी राजुल ) ६०३५-५ ६२०३५ ७५४८-१९ नेमिजिन बारमासो, मु. सोमप्रभ, मागु, गा. २३, पद्य, भूपू..
3
(गगनि सधन ) ५०६७
नेमिजिन बाललीला, मु. गुणसागर, मागु., ढाल ३३, पद्य, मूपू., ( अनीक कयसाद) ७२३५
(S)
($)
नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मागु., गा. २७, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय) २८५-५६ (+), १८०४-२, ६०३९-५ नेमिजिन रास, मागु., ढाल १८, पद्य, जै., (सङ्खराजाने) ७६९२७, ६४७२
($)
नेमिजिन रास, मागु., पद्य, जै., (सरसति सामण) ३१२८ नेमिजिन रास, पं. पद्मविजय, मागु, अध्याय ४ खंड, १६९ ढाल, गा. ५४२५, वि. १८२०, पद्य, मूपू., (उदधि सुता) ९२३ (+$) नेमिजिन रास, मु. लावण्यसमय, मागु., खण्ड २, वि. १५४६, पद्य, ग्रुपू. (स्मृत्वा) ३३३१ ५१९७ नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं, गा. ४, पद्य, मृपू. (मति जावो) २३४१-१२
($)
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नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूप्पू., (हांरे सजन) ६२०३-११ 9 (5)
नेमिजिन विवाह गरबो, गणि वीरविजय, मागु., ढाल २२. वि. १८६०, पद्य, मूपू., (श्रीशङ्खश) २६०२ ), ४२०८
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
कहे ) ६०८६-४३
नेमिजिन विवाहलो, मागु., पद्य, मूपू., ( नगर सोरीपु) ८७३३ (+),
जै...
($)
६८९५-२
नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचन्द, राज., गा. ५, पद्य, (सांवरियो ) १८००-१
($)
नेमिजिन विवाहलो, प्राहिं., गा. १२५, पद्य, मूप्पू., ( प्रथम नमुं ) २६७६-१(+)
नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचन्द, राज., गा. ६, पद्य, जै., (सांवलिया) १८००-लगी
नेमिजिन विवाहलो, मु. ऋषभविजय, मागु.. ढाल १७, वि. १८८६, पद्य, ग्रुप (नेम जिनेसर) ६१९५-१
नेमिजिन विवाहलो, मु. ब्रह्म, मागु., ढाल ४६, पद्य, जै., (सारद सार) २१७७
नेमिजिन विवाहलो. मु. विनयरत्न, मागु, बाल ४५. गा. १६१,
ग्रं. ६००, वि. १६३०, पद्य, मूपू., ( सारद वर दा) ५६६६ नेमिजिन विवाहलो, पं. वीरविजय, मागु., ढाल २२, वि. १८४९, पद्य, मृपू., ( सरसती सरण) ९९६, ३९९१
नेमिजिन सज्झाय, मु. जय, मागु गा. ९, पद्य, जै. ( तोरणाथी मुख) ८००-३
नेमिजिन सज्झाय, मु. दानविजय, मागु., गा. ५, पद्य, भूपू., (ए संसार अस) १४९१-२२
नेमिजिन स्तवन, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय) ६०८६
६८
नेमिजिन स्तवन, मागु., पद्य, मुपू., (सरसिति भगव) ६७९४(+) नेमिजिन स्तवन, मु. अक्षयरत्न, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( नेम प्यारा) २७९२-१३ 3 (5)
नेमिजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ६, पद्य, मुपू., (जै जै देव) ६०४९-५
($-)
नेमिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ६, पद्य, मूप्पू., ( अरथी हुइ) ५८९९-२६
नेमिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ५, पद्य, मुपू., (तोरण आवी) ५८९९-४८
नेमिजिन स्तवन, वा. उदयविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पशु पुकार) ६०३५-१९
($)
"
($)
नेमिजिन स्तवन, मु. कान्ति, मागु, गा. ७, पद्य, ग्रुप्पु, (कालीने पील) ६०३५-१८ नेमिजिन स्तवन, मु. कान्तिसागर, मागु., गा. १०, पद्य, भूपू., (नेमकुमार का ) ६०३५-६
"
"
नेमिजिन स्तवन, गु. दोलत मागु गा. ११, पद्य, ग्रुप्पु (मोह तणा दल) ९७९-४
नेमिजिन स्तवन, मु. नयशेखर, मागु., गा. ४२, पद्य, मृपू.,
($)
(श्रीसहगुरु ) १४२८-५
नेमिजिन स्तवन, श्रा. महमद जैन, मागु., गा. ४, पद्य, जै., ( तासु
($)
कौन) ७५४८-७
(+)
नेमिजिन स्तवन, पण्डित मानविजय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पोपटडा सन ६०५३-६ नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन, मागु, गा. ७, पद्य, मुपू. (राजुल
"
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नेमिजिन स्तवन, मु. राजहंस, मागु., गा. १०, पद्य, मुपू., (अवगुण कोइ) ६०८६-४२
नेमिजिन स्तवन, मु. राम, मागु., गा. ११, वि. १७४६, पद्य, मृपू., (श्रीजगमोहन) ७५४८-२०१
नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु., गा. ३२, पद्य, मुपू., (प्रीउडा था) ५८९९-६
नेमिजिन स्तवन, मु. रुद्धिहर्ष, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पेखी पसु) ६०८६-३१
नेमिजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मागु., गा. ७, पद्य, मूप्पू., (श्रीनेमिजि) ५८९९-२५
नेमिजिन स्तवन, मु. हर्षचन्द, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., ( कांइ हठ मा ) ६०८६-४९
नेमिजिन स्तवन, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (माई री में) ६०६९-४
नेमिजिन स्तवन-दशत्रिगडा, मु. लालचन्द, मागु., ढाल ४, वि. १८३३, पद्य, भूपू (सद्गुरु चर) २६०५-५४ नेमिजिन स्तवन- समवसरणगर्मित, मु. सुजाणविजय, मागु..
अध्याय ६, वि. १८२६, पद्य, मूपू., ( नेमिसर पय ) ९०००-२ नेमिजिन स्तुति, मागु गा. ४, पद्य, मूपू. (सुरअसुरवन) २६२६४२% १४८५-२६%, २९९७-२००० १०९९-१६/० २३४२-१०२,
3
1
५४९
५४९०-३१, ५८२७-२६, ६०११-४३, ६०८८-१, २३३६-२४ १४८७-२३, ६०४१-२१व
नेमिजिन स्तुति, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., गा. ४, पद्य,
मृपू. (श्रावण सुद) १७२२-१५, १२६७-५, ६४६०-२८, ९७९२, २३३६- ६, २८४५-१२)
नेमिजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गिरनार सिंह) २६२६-३१ १४८५-४३ ५४९०-२०, ५८२७
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२३
नेमिजिन स्तुति, मु. प्रीतिविजय, मागु गा. ४, पद्य, मृपू.. (गिरिनारि) ४४९०-३ नेमिवहुतरी स्तवन, मु. मूलचन्द्र मागु गा. ७४. वि. १८३६. पद्य, मूपू., ( प्रथम जिणे ) ६९९२ - २ नौनवकडी ढाल, राज., ढाल २, गा. ५८, वि. १८३३, पद्य, जै.,
"
($)
(दुषमो आरो) २९३७-२
पंचकल्याणक पूजा, पं. रूपविजय, मागु., ढाल ११, गा. १४०, .२१०. वि. १८८९, पद्य, भूपू.. ( अमरनिकर नि) २६२,
२३६८५)
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२)
८७(5)
५५०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ पंचकल्याणक पूजा-२४ जिन, श्रा. वृन्दावन धर्मचन्द अग्रवाल, । कहे गौ) १४९१-११, ६००४-५०७), ४४२४-२६) प्राहिं., पद्य, दि., (वन्दौ पाञ) २७९(+)
पंचमआरा सज्झाय, ऋ. लालचन्द, राज., गा. १३, पद्य, जै., पंचकल्याणक पूजा-पार्श्वजिन, पं. वीरविजय, मागु., वि. १८८९, (श्रीजिनचरण) ६०६४-१२०, ३१३०-३६६ पद्य, मूपू., (सवेश्वर) ९०७५), ४९७९, ६२५३
पंचमआरे आयुमान, मागु., गद्य, मूपू., (मनुष्यनो) ८३६७-६ पंचकल्याणक पूजाविधि, राज., गद्य, मूपू., (प्रथम जो) २८२२- पंचमवाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू.,
(गोतम पुछे) ६००४-४५६) पंचकल्याणक पूजाविधि, राज., गद्य, मूपू., (प्रथम पांच) २८२२- पंचमहाव्रत, मागु., प+ग, जै., (द्रव्य थकी) १८०-३), १९७-३)
पंचमहाव्रत कथा, मागु., गद्य, मूपू., (जम्बुद्वीप) ३२८३ पंचकल्याणक स्तवन, मागु., ५ स्तवन, पद्य, मूपू., (सुरतर पंचमहाव्रत कथा सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (-) ९१५४ पभणइ) ५९४१-२
पंचमहाव्रतभावना सज्झाय, मु. जस, मागु., ५ सज्झाय, गा. ३४, पंचकल्याणक स्तवन, मु. कुशल, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.,
पद्य, मूपू., (महाव्रत पह) २८५-७४(5) (अष्टवरस नग) २१२८-७०
पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मागु., गा. १६, पद्य, मूपू., पंचकल्याणक स्तवन, मु. पुण्यसागर, मागु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सुरतरुनी) २३८८-४१, ७५५५-२(+5). १४९१-४, ६०२९-८६) (नमिय पयकमल) ६०२०-२६)
पंचमीतिथि लघुस्तवन, पं. राजलाभ गणि, मागु., गा. ७, पद्य, पंचजिन चैत्यवन्दन, मु. कमलविजय, मागु., गा.६, पद्य, मूपू., मूपू., (प्रणमी पास) ६०४६-२ (धुर समरूं) ६०४२-६७), ६०४१-४०(5)
पंचमीतिथि स्तवन-वरदत्तगुणमञ्जरी कथा गर्भित, आ. पंचतीर्थ पूजा, मु. उत्तमविजय, मागु., ५ पूजा, पद्य, मूपू.,
ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा.५५, पद्य, मूपू., (प्रणमी प्र) २८५(सुखकर सङ्ख) ४०४८ पंचतीर्थ स्तवन, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., पंचमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आदि हे आदि) ६०४७-६+६), १७८२-३, १८०२-२
(धरम जिणन्द) १८०३-३, ७५४१-१५ पंचतीर्थ स्तुति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आदि आदि जि) पंचमीतिथि स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., २३३६-२
(सिद्धवधु) ६०४१-३२ पंचतीर्थी चैत्यवन्दन, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., गा. ५. | पंचसहेली रास, कवि छहल, प्राहि., गा. ६१, वि. १५७५, पद्य, पद्य, मूपू., (आज देव अरि) २३३७-१६)
(देख्या नगर) ४३७-३(+) पंचपरमेष्ठि आरती, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिली आरती) पंचाख्यान चौपाई, मु. रत्नसुन्दरसूरि, मागु., ५ अधिकार, गा. ३१३०-४४
२६१६, वि. १६२२, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पू) ५४३ पंचपरमेष्ठि गुण, मागु., गद्य, मूपू., (बारगुण अरि) ५०७४ पंचाङ्गगणित विधि, उपा. महिमोदय, मागु., गा. १६४, वि. पंचपरमेष्ठिगुणगर्भितजिन चैत्यवन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु.. १७३३, पद्य, मूपू., (परम जोति) ३६३१-१२, २७९३६),
गा. ३, पद्य, मूपू., (बार गुण अर) २०९५-३, २३४०-१ पंचपरमेष्ठि नमस्कार, मागु., गद्य, मूपू., (आसन छोडी) ४२१८- पञ्चतीर्थी स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर) ७८०३-२
पञ्चदृष्टान्त सङ्ग्रह वन्दनगत पञ्चभेदविषये, मु. रामचन्द्र, पंचपरमेष्ठि सज्झाय, मु. जिनराज, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.,
मागु., ५ कथाएं, वि. १९४९, पद्य, मूपू., (वन्दन चिति) (पञ्चपरमेष) १४९१-२३
७५५९-९७) पंचपरमेष्ठि स्तवन, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनना) पञ्चपाण्डव सज्झाय, मु. कवियण, मागु., गा. २०, पद्य, मूपू., ६०६५-१5)
(हस्तीनापुर) ११७६-६१, ६०५२-१२, ७५४८-१६ पंचमअणुत्तरविमान वर्णन, मागु., गद्य, जै., (पाञ्चमा अन) पञ्चसाधु चौपाई-अभयकुमारसम्बन्धे, उपा. कीर्तिसुन्दर, मागु., ३०७२-२
ढाल १३, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (जग गुरु) ४५४७) पंचमआरा ३० बोल दुढालिया, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल २, पट्टावली, प्राहिं., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानस) ५०९१-5) गा. ३०, पद्य, मूपू., (धर्मकथा हि) ६०५२-१५
(२) पट्टावली-टीका, सं., गद्य, मूपू., (अथ गुरुपरि) ५०९१%) पंचमआरा सज्झाय, राज., गा. १३, पद्य, मूपू., (अरिहन्त सि) पट्टावली*, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ६२५६, ७९६७-१(%) ११७६-६०
पट्टावली खरतरगच्छीय , राज., गद्य, मूपू., (सुधर्मास्व) १९९३ पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर | पट्टावली खरतरगच्छीय, मागु., गद्य, मूपू., (गुबरग्रामव) ३५००
७८४५७
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५५१
३६, पद्य, मूपू., (हवे राणी) ६०९१-४), ६००१-४५, २४३-२, पट्टावली खरतरगच्छीय-स्तवन, आ. गुणविनयसूरि, मागु., गा. २४३२-८६) ३१, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पह) ७५५५-७६+६)
पद्मावतीदेवी स्तोत्र, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पणमवि सवि) पट्टावली तपागच्छीय, मागु., पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ४४९५
१९७८-२ पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, मूपू.. (तिहां गुरु) ७३७७ पद्मावतीसती आख्यान, शामलदास, मागु., वि. १७५४, पद्य, पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ३६९४-२१, (प्रथम समरु) ७५३२, २६१३)
३३३६(18, ३८५, ३९३०, ३९४३, ५०२४, ७६५६, ६५०७, परमार्थअष्टपदी, प्राहि., गा. ८, पद्य, जै., (ऐसै ज्यौं) ६०१७-९६) ৩৪৪২)
पर्याप्ति यन्त्र, मागु., पद्य, मूपू., (-) ५६२७६) पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, मूपू.. (प्रणिपत्य) ३७८१ पर्युषणपर्व गहुंली, मु. कमलविजय, मागु., वि. १९४५, पद्य, मूपू., पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानस) ३९४५ (सजनी मोरी) ६०८२-५ पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवद्ध) ७४९१,७८३४ | पर्युषणपर्व गीत, मु. भानुचन्द, प्राहि., गा. २, पद्य, मूपू., (परव पट्टावली नागोरीलुङ्कागच्छीय, मागु., गद्य, जै., (श्रमण
पजुसण) ९०३९-५, ९००१-५ भगवन) ५३२६
पर्युषणपर्व चैत्यवन्दन, मु. विनितविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., पट्टावली लोकागच्छीय, राज., गद्य, जै., (श्रीमहावीर) ५६९४- (प्रणमु श्र) ६६३१-१७
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पट्टावली लोकागच्छीय, मागु., गद्य, जै., (हिवै अनुक) ४७४६- | पजुसण) २३३६-४४
पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु.. गा. ४, पद्य, मूपू., पट्टावली स्थानकवासी, राज., गद्य, स्था., (समणभगवान)
(वली वली हु) २६२६-४३, १७९४-३५, २९९७-२२, १७३९
५४९०-३३, ५८२७-२५, ६०११-४७ पदार्थ सङ्ग्रह, मागु., गद्य, जै., (जीव गइ इन) ३३४८
पर्युषणपर्व स्तुति, पं. जिनविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., पद्मप्रभजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., | (पुण्यनु) २३३६-४० (पद्मप्रभु) ७५४०-९
पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., पद्मप्रभजिन पद, मु. जिनदास, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू..
(पर्व पजुसण) २३३६-३९ (पद्मप्रभु) ११७६-२६
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. पद्मविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एक पद्मप्रभजिन पद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ३, पद्य, पनोति) २३३६-४२ मूपू., (मेरौ मन मो) ७५५५-४०(45)
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर पद्मप्रभजिन स्तवन, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.. (पद्मप्रभुस)
जिणेसर) १७९२-१२), १८०३-५, २३३६-४१, २८४५-१०) ६०८६-३३
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तरे पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. क्षमाविजय, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., भेद) ६०८८-२८, २३३६-४३ (पद्मचरण जि) ६६३१-२४
पर्युषणपर्व स्तुति, पं. रविविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., जिनेसर) २३३६-४५ (पद्मप्रभु) १४९२-१३१, ६०६७-२७)
पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शान्तिकुशल, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., पद्मप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ५, (परव पजुसण) ६०४१-१५) पद्य, मूपू., (घडी घडी सा) ६७६७-६६
पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मागु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहन) पद्मप्रभजिन स्तवन-सम्प्रतिराजावर्णगर्भित, मु. कनक, मागु., गा. १८३९(
९, पद्य, जै., (धन धन सम्प) ७५५५-७१६, ६०८७-३७, पल्योपममान विचार, राज., गद्य, मूपू., (च्यार कोस) २५५९-३ ६६०६-७०
पल्योपम विचार, मागु., गद्य, मूप., (पल्य ३ भेद) ६०२२-४+" पद्मप्रभजिन स्तुति, मु. प्रीतिविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., पाण्डव चरित्र, आ. जिनरत्नसूरिजी, मागु., खण्ड १८, गा. (जम्बू भरतप) ४४९०-२
२६७०, वि. १६६९, पद्य, मुपू., (जिण चउवीस) ४६६२१) पद्मप्रभवासुपूज्यजिन स्तवन, ऋ. रायचन्द, मागु., गा. १४, पद्य, । पाण्डव चरित्र, आ. रामचन्द्रसूरि, प्राहि., गा. २५३, पद्य, मूपू., जै., (रङ्गभर रात) ६९९२-४
(गर्व मत कर) ७१७२ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ढाल ३, गा. | पाण्डव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., ९ खंड/१५१ ढाल,
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3
५५२
(S)
७१४०
3
(-)
ग्रं. ५७५० वि. १६७६, पद्य, भूपू (श्रीजिन आद) ३१५/० ३४९-१९ ३५२ ३७५% ७५६, ७०४४, ३०३ ६८२२० (S), ७१९६ मा ८५०३ पाण्डव सज्झाय- शत्रुञ्जयतीर्थगर्मित, गणि देवचन्द्र, मागु, गा. १९. पद्म, मु, (जी हो पञ्च) ६०६७ पाण्डुकवनशीला वर्णन, मागु., गद्य, मूपू., ( जेणे वे पं) ३३०७-३ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री कथा, मागु., पद्य, जै., (--) ८७२९ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री रास, वा. उदयरत्न, मागु., ढाल २७, वि. १७६८, पद्य, मृपू., ( श्रीजिन सर) ७३७६ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री रास, मु. लालचन्द, मागु, ढाल ३९. गा. ५३५, वि. १७४२, पद्य, मुपू., ( प्रथम जिणे ) ८८६१, ५८०६६८०९
($)
"
पार्श्वजिन आरती, मु. अमृतविजय, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (आरती करूँ) ६०५७च
"
पार्श्वजिन गीत, मु. आनन्दघन, प्राहिं, गा. ३. पद्य, भूपू. (मेरे एडी) २८५-८२०१, ९१५६-३
($)
पार्श्वजिन गीत, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., ( चिन्तामणि) ७५५५-१६
(+S)
पार्श्वजिन गीत, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ५, पद्य, भूपू., (बे दरवाजे) २८५-८० ९१५६-३३
पार्श्वजिन गीत, मु. विनय, प्राहि. गा. ३, पद्य, मृपू. (सुरत मण्डल) ९१६५-१९ ($)
पार्श्वजिन गीत-गोडीजी, मु. दुर्गदास, मागु., गा. ५, पद्य, जै., ( पारकर देसम) ६०८७-७४
पार्श्वजिन गीत- चिन्तामणि, मु. भानुचन्द, मागु, गा. २, पद्य, भूपू. (प्रभु की ) ९०३९-४, ९००१-४
पार्श्वजिन गीत-मक्षीजी, मु. विवेकविजय, मागु.. गा. ५. पद्य, मूपू., ( तार श्रीमग) ६०७५-२
पार्श्वजिन गीत-मोढेरा, मु. नायसागर- शिष्य, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( सङ्घवी जगा ) ६०६७-३०)
पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, मागु, गा. ३. पद्य, भूपू (जय चिन्ताम ) ६६३१-१२ *
(S)
पार्श्वजिन चैत्यनन्दन, पं. पद्मविजय, मागु, गा. ३. पद्य, भूपु. (आशा पूरे ) ६६३१-१३
($)
पार्श्वजिन चौढालिया, मु. दोलत, प्राहिं., ढाल ४, पद्य, जै.,
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( पारसनाथ सह ) २३४२-४३
पार्श्वजिन चौढालिया, ऋ. लालचन्द, मागु., ढाल ५, वि. १८९४,
पद्य, जे. (श्रीशखेश) ८६३५-१
"
पार्श्वजिन छंद, मागु., गा. १२, पद्य, मृपू., ( सरस वदन सु)
(#)
१७८५-३ पार्श्वजिन छन्द, मु. उदय, मागु., गा. १५, पद्य, मुपू., (--)
६०९१-२०१५)
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
पार्श्वजिन छन्द, मु. दानविजय, प्राहिं., पद्य, मूपू., ( वाणारसी रा) १७८५-४०
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पार्श्वजिन छन्द-१०८ नामगर्भित, मागु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पायो कर पा ) ६०५५न्दगी
पार्श्वजिन छन्द- अंतरीक्ष वा भावविजय, मागु, गा. ५१, पद्य,
मूपू., (सरसत मात) २८५-५९ (+), १३४०-२, ३४५८, ७५४९-१ पार्श्वजिन छन्द-अन्तरीक्ष, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. ५५, वि. १५८५, पद्य, मु. ( सरस वचन दि) २५६५-११) ७५४९-२ पार्श्वजिन छन्द-अमीझरा, मागु., गा. २१, पद्य, मूपू., ( उठत प्रभात) ७०८८-१
"
पार्श्वजिन छन्द-आशापूरण, मागु., गा. १०१, वि. १८१९, पद्य, मूपू., (आसापूरन जग ) ६२२२-२
पार्श्वजिन छन्द-गोडी, मु. रूप, मागु, गा. ११२, पद्य, ग्रुपु. (त्रिभुवन) ८०२३
पार्श्वजिन छन्द-गोडीजी, मागु, गा. ४६, पद्य, मृपू.. (सुवचन आपो) ६०५५-४
पार्श्वजिन छन्द-गोडीजी, वा. कुशललाभ, मागु., गा. २२, पद्य, मूपू., ( सरसति सुमत ) १३४०-१
पार्श्वजिन छन्द-गोडीजी, मु. तिलकविजय- शिष्य, मागु., पद्य, मृपू. (प्रणमिय पथ ) ६०७७-४
पार्श्वजिन छन्द- गोडीजी, मु. वनीतराज, मागु, गा. ९, पद्य, जे. ( सुख सम्पत ) १३४०-७
($)
पार्श्वजिन छन्द-नाकोडा, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठ) ६०६९-२, ६०६४-२१ पार्श्वजिन छन्द-फलौदि, मु. विजयसिंह, राज., गा. २२, पद्य, मृपू.. (तो निरञ्जण) ६५१२-३-१
"
पार्श्वजिन छन्द-भीडभञ्जन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. २५, पद्य, मृपू. (वाफ विश्व) ७०८८-३
पार्श्वजिन छन्द-शङ्खश्वर, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ५, पद्य, भूपू.. ( पास शब्वेश) ५८९९-३५
पार्श्वजिन छन्द-शखेश्वर, मु. उदयरत्न, मागु गा. ७, परा मूपू., (सेवो पास) ६०९१-२२), १३४०-३, १७८६-६, ७८०३-३, १४०९-२१. ६०५९-४
($) *
पार्श्वजिन छन्द-शङ्खश्वर, गणि जिनहर्ष, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सकल सुरासु) २८२-८३ पार्श्वजिन छन्द-शखेश्वर, मु. हस्तिरत्न, मागु, गा. २५, पद्य, मृपू., ( सरसति सार) २८२-२३ पार्श्वजिन दसगणधर सज्झाय, गणि शीलविजय, मागु., गा. ५, पद्य भूपु. ( सरसति माता) ६०४७
($)
(+$)
"
पार्श्वजिन दसभव स्तवन, मु. मयाचन्द, मागु., गा. ३५, पद्य, जै.,
($)
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"
(--) ६९९२-१
पार्श्वजिन नमस्कार, कवि ऋषभ, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वन्दु
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५५३ पासज) ६०४१-३७
(तेवीसमा जि) २३४२-१२३ पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, प्राहि., गा. २७, पद्य, पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल-शिष्य, राज., गा. ६, पद्य, मूपू., मूपू., (सुखसम्पत्त) १५१५-१, ६०८७-३१६, ७५५३-१९६)
(जोडी थांरी) १४८४-१२) पार्श्वजिन पद, राज., गा. ९, पद्य, मूपू., (निरमल पारस) ६५१२- पार्श्वजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (पास २
जिनन्द) २७९२-३९७ पार्श्वजिन पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू.. (पास जिनन्द) २३४२- पार्श्वजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (वामाजी १५४
के) २७९२-७ पार्श्वजिन पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरइ पार्श्वजिन पद-अन्तरीक्षजी, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, एतौ) ७५५५-४४+
मूपू., (अन्तरीक अन) २३४१-१६ पार्श्वजिन पद, मु. उदयरत्न, राज., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्यारो | पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. रूपविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू.. पार) २३४२-१३२
(मुजरो मानि) २७९२-४६६ पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तूं पार्श्वजिन पद-चिन्तामणि, मागु., गा. ७, वि. १८९३, पद्य, मूपू., मेरै) ७५५५-५३(5)
(म्हारो मन) २६७५-१९ पार्श्वजिन पद, पण्डित खीमाविजय, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन पद-चिन्तामणि, मु. भानुचन्द, प्राहि., गा. ३, पद्य, जै., (मधुवन में) २३४२-१३१, ६०८०-९७
(प्रभु को) १३४२-११) पार्श्वजिन पद, मु. चन्द, प्राहिं., गा.३, पद्य, जै., (रूप भलौ जि) | पार्श्वजिन पद-दीवबन्दर, श्रा. रुपचन्द, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मुपू., ७५५५-३७+5
| (सचा सांई) १३४२-१९(२) पार्श्वजिन पद, मु. जिनचन्द्र, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अर्हत पार्श्वजिन पद-लाहोर, मु. भानुचन्द, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., भगवत) ६०३४-५७
(भोर भयौ भो) १३४२-१४(+) पार्श्वजिन पद, मु. जिनचन्द्र, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज पार्श्वजिन प्रभाति, मु. चिदानन्द, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चेतन बधाई) ७५४३-६(45), २७९२-३४६)
ममतां) ९१५६-१२ पार्श्वजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन बारमास, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., (माई रङ्गभर) २७९२-२४१६)
(श्रावण पाव) ५८९९-९ पार्श्वजिन पद, मु. जिनहर्ष, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जागो पार्श्वजिन बाललीला स्तवन, मु. जिनचन्द्र, मागु., गा. ६, पद्य, मेरे) २३४२-१२०
मूपू., (सुरगिरि शि) १३४२-२९, ३१३१-४ पार्श्वजिन पद, मु. द्यानत, राज., गा. ३, पद्य, मूपू., (अब मोय पार्श्वजिन बृहत्स्तवन-गोडीजीदशमतिथि, मु. समयरङ्ग, मागु., तार) २३४२-८६
ढाल ५, गा. २३, पद्य, मूपू., (पास जिनेसर) ९८०-११ पार्श्वजिन पद, धर्मसिंह, मागु., गा. ३, पद्य, जै., (मांनी साहि) पार्श्वजिनमन्त्र सवैया, मु. गुणचन्द, मागु., पद्य, मूपू., (श्रीपार्श) ७५५५-३६+६
८००-२ पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, मागु., गा. ३, पद्य, जै., (नित नमीय) पार्श्वजिन लघुस्तवन-गोडीजी, मागु., गा.६, पद्य, मूपू., (नमे ७५५५-५६
सुरासु) ५४९०-५९ पार्श्वजिन पद, मु. भूधर, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (देखी मुरत) पार्श्वजिन लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, मूपू., (मुगतगढ २६७५-३३
___ जीत) ६२०३-१० पार्श्वजिन पद, मु. महिमराज, मागु., गा. ३, पद्य, जै., (जिन पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, मु. रूपविजय, मागु., गा. १६, पद्य, तेरे) ७५५५-३९(45)
मूपू., (जगत भविक) १५१५-२ पार्श्वजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, पद्य, पार्श्वजिन विवाहलो, मु. रङ्गविजय, मागु., ढाल १८, वि. १८६०, मूपू., (चउ कषाय पा) ६७६७-७१
पद्य, मूपू., (स्वस्ति) २३९५, ६४१४ पार्श्वजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ३, पद्य, पार्श्वजिन श्लोक-शखेश्वर, मु. उदयरत्न, मागु., गा. २३, वि. __ मूपू., (वामानन्दन) ६७६७-६४, ९१६५-६४)
१७५९, पद्य, मूपू., (माता भवनेस) ८६३५-७ पार्श्वजिन पद, मु. रुपचन्द, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (-) पार्श्वजिन श्वासोश्वास प्रमाण, मागु., गद्य, स्पू., (-) ७१५२-३(5) २७९२-१६
पार्श्वजिन सलोको, श्रा. जोरावरमल पञ्चोली, राज., गा. ५६, पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धकुशल, राज.,प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., वि. १८५१, पद्य, जै., (प्रणमुं पर) ४९१८
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५५४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ पार्श्वजिन सलोको, श्रा. जोरावरमल पञ्चोली, राज., गा. ५९, भज) ९१५६-१०६) _ वि. १८५३, पद्य, जै.. (प्रणमूं पर) ५५५६-१
पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचन्द्र, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय पार्श्वजिन स्तवन, मागु., गा. २३, पद्य, मूपू., (धन चाहे तो) बोलो पा) २३४१-५०, ६०८०-१३, २७९२-११ ६०८७-३४६
पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनलाभ, मागु., गा.५, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन स्तवन, मागु., पद्य, मूप., (प्रणमिय पा) १४२८-२
(तेविसमो) ६०८६-४१ पार्श्वजिन स्तवन, मागु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (विमल कमल) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुरत ५८८२-४+45)
मुरत) ६०८६-६० पार्श्वजिन स्तवन, मागु., गा. १२, पद्य, मूपू.. (श्रीसारद) ६०८७- पार्श्वजिन स्तवन, मु. जैतसी, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुगुण
सोभा) ७५५५-१३/६) पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृतधर्म, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पारस पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., प्रभु) ९८०-२४
(पास प्रभु) २७५४-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., गा.७, पद्य, मूपू., (२) पार्श्वजिन स्तवन-टबार्थ, मु. सुखसागर, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणमुं पद) ६०८६-२२
(श्रीपार्श) २७५४-२) पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, प्राहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (घोर | पार्श्वजिन स्तवन, मु. तिलोकचन्द, मागु., गा.६, पद्य, जै., घटा कर) ६०३९-१५
(सुन्दर मूर) ७५५५-१४+5) पार्श्वजिन स्तवन, मु. उत्तमचन्द, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन स्तवन, गणि दानविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भविक जन वन) ६०८६-३७
(वामा रे नन) १७८८-६(45) पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, राज., गा. ५, पद्य, मूपू., (थे छो । पार्श्वजिन स्तवन, कवि धर्मसिंह, प्राहिं., गा.७, पद्य, मूपू.. (ऊगौ म्हा) ५८९९-२७
धन दिन) ९८०-२७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, राज., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुखहूं | पार्श्वजिन स्तवन, मु. नेमविजय, मागु., ढाल १४, वि. १८७७, जोस) ५८९९-२२
पद्य, मूपू., (भावधरी भजन) ७७३५-२, ३०८९ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मुझ पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रेमविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुन्दर सरीखा) ५८९९-४७
___रूप) ६०६०-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुण । पार्श्वजिन स्तवन, मु. माणिक, प्राहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (कागद सखि रे) ६०६७-२१
केसें) १३४२-२७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन स्तवन, मु. मानविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ) ३५९०-२
(प्रभाते) १३४२-२८) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मागु., गा. १५, पद्य, जै.,
पार्श्वजिन स्तवन, मु. मुक्तिविजय, राज., गा. ४, पद्य, मूपू.. (कुण (श्रीसुगरचि) ७५५३-६६
खडा गो) ६०६८-९ पार्श्वजिन स्तवन, मु. केसरविजय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (हां | पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु.. गा. ७, वि. १८वी, पद्य, रे मोर) १३४१-३+8
मूपू., (प्रभु जगजी) १४९२-५) पार्श्वजिन स्तवन, मु. खेम, राज., गा. १६, पद्य, मूपू., (पास पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., जिणेसर) ५८९९-५५
(साहिब आङ्ग) १४९२-२२) पार्श्वजिन स्तवन, मु. खेम, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपास पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ४, पद्य, जि) ७५५५-६३६)
मूपू.. (सुखदाई रे) ६७६७-४०, ९१६५-४५६) पार्श्वजिन स्तवन, मु. खेमकरण, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ५, पद्य, (श्रीसुगुरु) ६०५९-३६
मूपू., (मेरे साहिब) १३४२-१०१, ९१५६-२६, ९१६५-८६) पार्श्वजिन स्तवन, मु. चतुरसागर, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मारो | | पार्श्वजिन स्तवन, मु. रङ्गविजय, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जी मन मो) ६०८६-४८
प्रभु) ६०७९-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मन | पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्ननिधान, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पास मोहनगार) ६०८७-१५६, ७५४८-१५६
जिणन्द) ७५५५-११+5 पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिन, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भजि जिन | पार्श्वजिन स्तवन, यति रूपचन्द, प्राहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (दीजे
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २
मोहे) ६२९०-२
पार्श्वजिन स्तवन, मु. ललितसागर, मागु, गा. १०. वि. १७२७, पद्य, मृपू., ( समरथ साहिब) ६०४७-७/* g (+S)
पार्श्वजिन स्तवन, मु. लाभवर्द्धन, मागु., गा. ४, पद्य, जै.,
P(+), (सुखकारी हो) ७५५५- २६७५-४०
पार्श्वजिन स्तवन, मु. लालविजय, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (आज सखी सह) १३४२-३
पार्श्वजिन स्तवन, मु. वसता, मागु, गा. ७, पद्य, मृपू. (सेवकनी अरद) ६७०९-१९
पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयशील, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मुरत) ६०८७-११
पार्श्वजिन स्तवन, मु. विवेकविजय, मागु., गा. २१, पद्य, भूपू., (सरसती वरसत) ६०७५-९
(S)
पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मुपू., (नीकी मुरति) ६०६४-४४ ६०९५-२९ २७९२-२ पार्श्वजिन स्तवन, पाठक सदानन्द, मागु., गा. ५, पद्य, मृपू.,
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·
( मोरा पास) ९८० -१५, ९८०-२६
पार्श्वजिन स्तवन, मु. हंस, मागु., गा. ८, पद्य, मृपू., ( उचारि उचार) ६०८६-५१
पार्श्वजिन स्तवन, मु. हिम्मत, मागु, गा. १०, पद्य, भूपु (दरसण मोहर) ६०८६-४७
पार्श्वजिन स्तवन- १४ गुणठाणागति, गणि लक्ष्मीवल्लभ, मागु.. ढाल ५. गा. ४३, पद्य, मु. ( नमिय सिरि) ६००१-२३ पार्श्वजिन स्तवन- २४ दण्डकविचारगर्भित पाठक धर्मसिंह,
"
($)
मागु., ढाल ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (पूर मनोरथ) ३४४७२, ६००१-२५, ८३८०-२ ६०२९-४ ६०८७-४२ पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुरगोडीजी प्रतिष्ठा महोत्सव, मु. प्रीतिविमल, मागु., ढाल ५, गा. ५५, पद्य, मूपू., ( वाणी ब्रह)
६०६९-१
($-)
(S)
पार्श्वजिन स्तवन-अन्तरिक्ष, मु. आनन्दवर्द्धन, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( प्रभु पासज) ६०४९ - २३ पार्श्वजिन स्तवन-अन्तरिक्ष, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, गा. ६, पद्य, मूपू., ( जय जय जय ) ९१६५ -६३ * पार्श्वजिन स्तवन-अन्तरिक्ष, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ३. पद्य, मृपू. ( सलुने प्रम) ६७६७-३४, ९१६५-३९ पार्श्वजिन स्तवन- अन्तरीक्ष वा विनयराज, मागु, ढाल ४, गा.
"
२७. वि. १७७२, पद्य, भूपू (पर उपगारी) ६७०९-१५ पार्श्वजिन स्तवन-अमीझरा, मु. महेन्द्र, मागु., गा. ६, वि. १८६२, पद्य, नूपु. ( जगगुरु वाम) १८१०-२ पार्श्वजिन स्तवन-कापरडा, गणि जिनहर्ष, मागु., गा. ७, पद्य, भूपू.. ( अलग सुरछ) ७५५५-१५ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मु. अनोपचन्द, मागु, ढाल ८, वि.
(+S)
१८२५, पद्य, मूपू., (जिन वदन नि ) ४५३४, ८६४७-१७) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी म. उदयरत्न, मागु, गा. ३, पद्य,
मूपू., ( पास गोडि) ५८९९-२८
"
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मु. कान्तिसागर, मागु गा. ११, पद्य, मृपू.. ( आयो सहिअर) ६०३५-१२
($)
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पाठक क्षमाकल्याण, मागु., गां. ५,
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पद्य, मूपू., (श्रीगवडीपु) ६७०९-५
पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जगरूप, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुजस तुमार) ५८९९-५
पार्श्वजिन सावन-गोडीजी, मु. जिनराज, मागु गा. ७, पद्य, मृपू.. (वाल्हेसर) ९८० - १७
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( गुण गिरूऔ) १३४१-४ (+)
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मानसागर, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (निज गुरु) ६०८७-१०९
($)
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मु. रामविजय, मागु, गा. ७, पद्य, मृपू.. (सोनानी आगी) ६०१७-१३०
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मु. रूपविजय, प्राहिं, गा. ७, पद्य, मूपू., (पुरसादाणी) ६७०९-६
पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शान्तिकुशल, मागु., गा. ४१. वि. १६६७, पद्य, पू., ( वदन अनोपम) ६००१-६, ६६०६-८ (5) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मु. शान्तिकुशल, मागु, गा.
·
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I
"
३१+कलश, वि. १६६७, पद्य, मूपू., ( सारद नाम) ५८९९-२ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शिवरत्न, मागु., गा. ९. वि.
"
१८५२, पद्य, भूपु (गोडीजी दीन) ६०५३-१६ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, श्रीचन्द, प्राहिं, गा. ९. वि. १७२२,
पद्य, पू., ( अमल कमल जि) ७५५५-१२ (+), ९८०-९ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. सूरविजय, मागु., गा. २६. वि. १७१३, पद्य, मूपू., ( सरसति देवी) ६००१-८ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी धवलधिङ्ग, मु. भाण, मागु., गा. २५, पद्य, भूपु (सकल मदगलन) २८५-६४
"
पार्श्वजिन स्तवन- चिन्तामणि, मागु., गा. ५, पद्य, मृपू., ( चिन्तामणि ) ८१६१-२
पार्श्वजिन स्तवन- चिन्तामणि, ऋ. रतनचन्द, राज, गा. ९, पद्य, मृपू.. (विन्तामण ) ६०४९-२४-१
पार्श्वजिन स्तवन- चिन्तामणि उपा. समयसुन्दर गणि मागू.. गा. ७, पद्य, मूपू., (आणि मनसुध) ६०६९-३, ६०५९-२२ (S), ६०८७2/81, 0440-818 40349-318
पार्श्वजिन स्तवन- जगवल्लभ, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पण छे पूज) ५८९९-४३
पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला. मु. शिवरतन, मागु, गा. ९, पद्य, जै.. ( पासजी आसा) ६०५३-१९
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ पार्श्वजिन स्तवन-नवपल्लव-कर्मविपाके बन्धयन्त्रकबन्धेन, आ. १४, पद्य, पू., (जय जय गुरु) १५७३-२
अजितदेवसूरि, मागु., गा. ४०, पद्य, मूपू., (श्रीनवपल्ल) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, आ. अजितदेवसूरि, मागु., गा. ४९, ६०३२-२{+#5)
पद्य, मूपू., (-) ६०३२-१(445) पार्श्वजिन स्तवन-नवलखा, मु. जिन, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, आ. जिनभक्तिसूरि, मागु., गा. ७, (श्रीनवलख) ९१५६-९
पद्य, मूपू., (वरकाणापुर) १३४१-२) पार्श्वजिन स्तवन-पञ्चकल्याणक, मु. पुण्यसागर, मागु., ढाल ३, | पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, आ. जिनहर्षसूरि, मागु., गा. ९, पद्य, ___ पद्य, मूपू.. (पणमि पर पर) १७९७-२
मूपू., (कांइ रे जी) ७५४९-३ पार्श्वजिन स्तवन-पञ्चासरा, पं. खुशालविजय, राज., गा. १४, पार्श्वजिन स्तवन-शर्खेश्वर, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ७, पद्य, पद्य, मूपू.. (थारी सुरति) ५८९९-५९
मुपू., (देवमां नगी) ५८९९-२३ पार्श्वजिन स्तवन-पञ्चासरा, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ७, पद्य, पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, वा. उदयविजय, मागु., गा. १३६, मूपू.. (इन्दु किरण) १४९२-३०+)
पद्य, मूपू., (-) ९०९७७) पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रङ्ग, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, वा. उदयविजय, मागु., गा. ३६, (परम पुरुष) ६०७३-३
पद्य, मूपू.. (सकल मङ्गल) ६०१७-३५७) पार्श्वजिन स्तवन-पाटणमण्डण, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ९, पद्य, | पार्श्वजिन स्तवन-शद्धेश्वर, आ. जिनचन्दसूरि, मागु., गा. ५, मूपू., (सेवकनी सुण) ५८९९-२९
पद्य, मूपू., (श्रीशवेश) ९८०-४, ९८०-२८, १४८४-७७) पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानीय, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ७, | पार्श्वजिन स्तवन-शद्धेश्वर, गणि जिनहर्ष, मागु., गा. ५, पद्य, पद्य, मूपू., (पुरसादाणी) १४९२-१२)
मूपू., (अन्तरजामी) ९८०-५, १४८८-९, २३४०-१४, ६०६४पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. जिनहर्ष, मागु.. गा. ७, पद्य, मूपू., (सारद वदन) ६०८६-३८, १३३८-२७
पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, मु. तत्त्वहंस, मागु., गा. ९, पद्य, पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. लाभउदय, मागु., गा. ५, पद्य, भूपू., मूपू., (प्रणमुं) ६०८७-१२ (उठो रे मार) २१८५-२, ७५४२-१४)
पार्श्वजिन स्तवन-शवेश्वर, मु. धीर, प्राहि., गा. ३, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. उत्तम, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजब ज्योत) १३४२-९(+) (वञ्छित फलद) ६०८६-५०
पार्श्वजिन स्तवन-शर्केश्वर, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ६, पद्य, पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. ऋद्धिविजय, मागु., गा. १३, वि. मूपू., (रहिने रहि) १४९२-१११, १४८४-१०६, ६०१७-३०६), १८६१, पद्य, मूपू.. (सेवक पर सु) ६०८६-६५
६०३९-२४) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, गणि गुणवर्द्धन, मागु., गा. ९, पद्य, पार्श्वजिन स्तवन-शोश्वर, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मपू.. (-) १७८८-५45)
___ मूपू., (समय समय सो) १४९२-४(4) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. नगविजय, मागु., गा. १०, पद्य, पार्श्वजिन स्तवन-शर्खेश्वर, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., मूपू.. (सुणो भवि) २६७५-५०, ६०८६-६९
गा. ६, पद्य, मूपू., (अब मोही ऐस) ६७६७-४७, ९१६५-५२) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, पाठक रामविजय, मागु., गा. ७, वि. | पार्श्वजिन स्तवन-शद्धेश्वर पञ्चकल्याणकगर्भित प्रतिष्ठाकल्प, १८२३, पद्य, मूपू., (भलै दीठी) ६७०९-४
मु. रङ्गविजय, मागु., ढाल १९, ग्रं.३७५, वि. १८४९, पद्य, पार्श्वजिन स्तवन फारसी भाषा में, फारसी, गा.५, पद्य, मूपू., मूपू., (स्वस्ति) ४९४२, ८५२९ (गोरी पासजु) ६००१-३१
पार्श्वजिन स्तवन-शामला, मु. उदयरत्न, राज., गा. ५, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ५, पद्य, (प्यारा पास) ५८९९-४४ मूपू.. (पास जिणन्द) ५८९९-४९
पार्श्वजिन स्तवन-शामलीया-सम्मेतशिखर, मु. खुशालचन्द, प्राहि., पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ५, पद्य, गा. ५, पद्य, जै., (तुम तो भले) ९८०-१६ मूपू., (मनमोहन पाव) १४९२-१९(१)
पार्श्वजिन स्तवन-शेरीसा, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. ३०, वि. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ६, पद्य, ___ १५६२, पद्य, मूपू., (स्वामि सुह) ६०५३-४), २८५-६०+5) मूपू., (मनमोहन प्र) ६६३१-२०१७)
पार्श्वजिन स्तवन-सत्तायन्त्रकबन्ध-रावणपार्श्व, आ. अजितदेवसूरि, पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवामण्डन, मु. राजरङ्ग, मागु., गा. ३, पद्य, ___ मागु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जिण ठवणा) ६०३२-३(465) मूपू., (आज हुं जाऊ) ६७०९-७
पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखर, मु. पद्मविजय, मागु., गा. ८, पार्श्वजिन स्तवन-वटपद्रमंडनचिंतामणि, मु. गुणसागर, मागु., गा. | पद्य, मूपू., (समेतशिखर) ६०६८-६
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
पार्श्वजिन स्तवन-सारङ्गपुर, मु. विवेकविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मुपू., (श्रीगुरुचर) ६०७५-१
($)
पार्श्वजिन स्तवन-सूरतमण्डन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु.. गा. १४, पद्य, भूपू. (सुरति मण्ड) ६०३९-१७ पार्श्वजिन स्तवन- स्तम्भन मागु, गा. ९, पद्य, मृपू. (थम्भणपुर) १७८८-७१ ६०८७-२९ ६०२०-१ पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन, मु. सौभाग्यसूरि - शिष्य, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हा रे प्रभ) ६००१-५६
पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भनतीर्थमण्डन, वा. कुशललाभ, मागु., गा. १८, पद्य, मूपू., ( प्रभु प्रण ) ४५१९, ३५९६, १७८८-८ पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि मागु गा. ७, पद्य, ग्रुप्पु (त्रिभुवन) ५८२७-४६
पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मुपू., (अश्वसेन नर) २६२६-२०१, १०९४-१६ ५४९०-२२. ५८२७१५,६०११-३७
($)
पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मागु गा. ४, पत्र, भूपू. (श्रीपास जि) ६०८८-३, २३३६- २८, ६०४१-१८ पार्श्वजिन स्तुति, मु. मोहनविजय, मागु गा. ४, पद्य, मृपू. (मेरु महीधर) २३३६-३१
"
"
पार्श्वजिन स्तुति, मु. विवेकचन्द, मागु., गा. ४, पद्य, भूपु (पदल विहार) २३३६-५२
पार्श्वजिन स्तुति गोडीजी, मु. लब्धिरुचि, मागु, गा. ४, पद्य, मुप.. ( श्रीजिन गो) ६०४१-१२
($)
पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, पं. सिंहविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मृपू.. (भवियणना मन ) ६५१२-१२
पार्श्वजिन स्तुति- पौषदशमी, आ. उदयसमुद्रसूरि मागु, गा. ४. पद्य, मूपू., (जय पास देव) २३३६-२७, ६०४१-२० ) पार्श्वजिन स्तुति-भीनमालमण्डन पुरुषादाणी, उपा. कुशलसागर, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( प्रभु पास) २३३६-३० पार्श्वजिन स्तुति-भीलडीपुर, गु. हेमसौभाग्य, मागु, गा. ४, पद्य, मृपू.. (भीलडी मुख) २८४५-१३१
पार्श्वजिन स्तुति-वरकाणा, पं. कमलविजय, मागु, गा. ४, पद्य, मूपू., (वरकाणइं वर) २३३६-२९
पार्श्वजिन स्तुति- शङ्खेश्वर, उपा. नयविजय, मागु, गा. ४, पद्य, मृपू. ( वन्दो शख) २३३६-२५
पार्श्वजिन स्तुति-शहखेश्वर, मु. महिमारुचि, मागु, गा. ४, पद्य, मूपू., ( शङ्खसर पा) २३३६-२६
पार्श्वजिन स्तोत्र, ऋ. जीणलाल, मागु., गा. १४, पद्य, जै., (पार्श्व जि) ६०५९-२४
($)
पार्श्वजिन स्तोत्र- जीरावला, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जीरावली दे) ६०५९-१९ पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, प्राहिं, गा. ७, पद्य, मूपू., (रङ्ग
($#) *
मच्यो) ६००१-५८, २७९२-२३ (S)
.
पाश्वाजिन स्तवन- अक्षयनिधितप गर्मित पं. पद्मविजय, मागु.. गा. १२, वि. १८४३, पद्य, मूपू., ( तपवर कीजे) ६०७८-३, ८६४३-३
पुण्डरिककण्डरिक चौपाई, मागु., ढाल ५, पद्य, मूपू.,
(पुण्डरीकणी) ७६९-१५
पुण्डरिकस्वामी चैत्यवन्दन, मु. दानविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( आदीश्वर जि) ६६३१-१८ ८(5)
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पुण्डरिकस्वामी स्तवन मागु गा. ५. पद्य भूपू (एकदिन पुण) ६६३१-२२१
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पुण्डरीकस्वामी स्तवन, मु. ज्ञानविशाल, मागु, गा. ५, पद्य, मृपू.. ( एक दिन पुण) ७५४५-८, ८९५४-२ पुण्यछत्रीसी उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, गा. ३६. वि. १६६९, पद्य मृपू. (पुण्यतर्णा) ७६६०-११ ७५६२-३८
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पुण्यपाल चौपाई, मु. केसर, मागु, ढाल १९, पद्य, मृपू.. (आदेसर आदे) ४२१६
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पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय मागु., ढाल ८+कलश, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मृपू (सकल सिद्धि) ७८९८५ २५४३(+#), ७५५५-८३(+), २७८-१, २३४५, ४८०४, ६००१-३, ६२६६, ६२८६, ८४०१, ८९४८, १८८२), १८८४(4), ६०३९२० ८२५३१, ८०९६-२
पुण्याद्यनरेश रास, मु. अमर, मागु, ढाल ५, पद्य, ग्रुपु. ( वन्दिय वास) ५५३६
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५५७
($)
पुद्गल गीता मु. चिदानन्द प्राहिं. गा. १०८, पद्य, मृपू (सन्तो देखि) ४५००, ८३४२
"
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पुद्गल विचार माग गद्य, जं. (पुदगलनों) ६५६२-३ण पुरन्दरकुमार रास, वा. मालदेव, मागु., ढाल १२, गा. ३७६, पद्य, मृपू., (वरदाई श्रु) ५५२५ (+), ४२२५ (+), ५९१५, २३०३ पुलाकपंचभेद वर्णन, मागु., गद्य, मूपू., (पुलाक ते) १०९०-१ पूजा द्रव्यदया भावदया चर्चा, मागु., पद्य, जै., (जे पर जीवन )
८९४२
पूर्णिमातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि मागु गा. ४, पद्य, भूपू.. ( जिनपति सम) ७५४१-२५
"
पृथ्वीचन्द्रगुणसागर सज्झाय, पण्डित जीवविजय, मागु., ढाल ३, गा. ६८, पद्य, मूपू., ( शासन नायक ) ८५४० पौषदशमीपर्व कथा, राज. गद्य, मृपू., ( ध्यात्वा ) ६०७०-४/ पौषदशमीपर्व सज्झाय, मु. दानविजय, मागु, गा. ७, पद्य, मु.. (प्रणमी पास) १७९५-५, ६००४-४) पौषदशमीपर्व स्तुति, मु धीरविजय, मागु गा. ४, पद्य, मृपू.. (श्रीसलेश) १७२२-६ला
"
पौषधदोष विचार, मागु., गद्य, मुपू.. (पोसह ए श्र) ६८०६-६ पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ढाल ५, गा.
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५५८
३८. वि. १६६७, पद्य, मुपू.. ( जेसलमेर नग) ६५०८-२० पौषध सज्झाय, ऋ. कीर्ति, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( श्रावकना)
६०२८-१
प्रतिक्रमणफल सज्झाय, मागु., गा. ६, पद्य, मूप्पू., (करो
पढिक्रमण) १४९१-६
प्रतिमा स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ७, पद्य, भूपू., (श्रीजिनप्र) ७६७७-२
प्रत्याख्यान ४९ भाङ्गा, मागु., गद्य, मूपू., (मनई न करु) ३९९४
२
प्रत्याख्यानफल सज्झाय- शत्रुञ्जयतीर्थ, मु. प्रीति, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( पचखि पचक्ख) २८५-२४+
प्रदक्षिणा दूहा, मागु., गा. ६४, पद्य, मुपू., (अनन्त चोऊव) ६०५३-२(+)
($+)'
प्रदेशीराजा कथा, मागु, गद्य, मृपू. (-) ४६०६
"
प्रदेशीराजा के प्रश्न - राजप्रश्नीयसूत्रे, मागु, ११ प्रश्न, गद्य, भूपू (प्रथम हिये) ५८४८
प्रदेशीराजा चौपाई, ऋ. जेमल, राज, ढाल ३८, गा. ७०० सर् पद्य, जै., (अरिहन्त सि) २६०३ (+)
प्रदेशीराजा रास, मागु., पद्य, मूपू., (देवतणी रिध) ७२९२ प्रदेशीराजा रास ऋ. जयमल्ल, मागु पद्य, जै.. (रायप्रसेणी) ६८१२, ७२५१
"
($)
(#)
प्रदेशीराजा रास, मु. न्यायसागर, मागु., ढाल ३३, ग्रं. ११००, वि. १७३४, पद्य, मुपू. (सकल सिद्ध) ७९०९. ३६६१-१ प्रदेशीराजा रास, मु. सहजसुन्दर, मागु., गा. २६१, ग्रं. ३००, पद्य, मृपू. (त्रिभोवन) ५००४
"
प्रदेशीराजा रास, मागु., पद्य, भूपू (-) ७०९२१ प्रदेसीराजा रास, ऋ. जेमल, मागु., ढाल २१, वि. १८७७, पद्य, जै.. (सुरीयामदेव) ८३५०
प्रबोधचिन्तामणि, मागू., गद्य, मु., ( नमो अरिहन) १०४५ प्रबोधचिन्तामणि ढाल, मु. धर्ममन्दिर, मागु., ढाल ७६, खंड ६, गा. १७१२, वि. १७४१, पद्य, मूपू., ( चिदानन्द) १८०१ (5) प्रबोध पद, मागु, गा. ३. पथ, मु., (जाग रे अब) १३४२-३ प्रभञ्जना सज्झाय, गणि देवचन्द्र, मागु, ढाल ३. गा. ४९, पद्य, भूपू (गिरि वैताड) ६०८१-१, ३९१०-३
"
प्रभाति उपदेश पद, मु. धनदास, प्राहिं., गा. ९, पद्य, जै., (किस विध) ६०५७-१३
प्रभाती कडखो, आ. नन्दसूरि, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( पूरव दिसि ७५५५
प्रमाणस्वरूप, हिन्दी, गद्य, मूपू., (प्रत्यक्ष) १०७७ प्रमाद परिहार सज्झाय, मागु., गा. १०, पद्य, पू., ( पेहलो प्रम ) १४८४-४)
प्रश्नोत्तर, मागु, २१ प्रश्न, गद्य, जे. (प्रश्न २१) ८३८५
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
प्रश्नोत्तर *, मागु., गद्य, मूपू., (-) ८०५१३
प्रश्नोत्तर तिलोकचन्दकृत, श्रा. तिलोकचन्द लुणिया, मागु., गद्य, जै., (तुमे कह्यु) ३२४५, २३९३ *
(#$)
प्रश्नोत्तर रत्नमाला, मागु., गद्य, मूप्पू., ( हवै प्रश्न ) ३४४४ प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, ऋ. रूपचन्द, राज., गद्य, स्था., (-) ३४०२ (+) प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह- तपगच्छ खरतरगच्छ, मागु., गद्य, भूपू., (श्रावक) २१२५
($)
प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, वा. क्षमाकल्याण, मागु., १५१ प्रश्नोत्तर, वि. १८५३, गद्य, ग्रुपु. ( पहिले बोले) १४११), १८८३. ४४१३ (२) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक - बीजक, मागु., गद्य, मूपू., (पहिले बोले)
४१३५ प्रसन्नचन्द्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मागु, गा. ६, पद्य,
(प्रणमुं तु) १७९५-२४६००४-१४
प्रसन्नचन्द्रराजर्षि सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मागु., गा. ११, पद्य,
मूपू..
मृपू.. (मन वसि करव) २८५-५१/
"
प्रसन्नचन्द्रराजर्षि राज्झाय, मु. लक्ष्मीरत्न, मागु, गा. ६, पद्य,
मागु., गा. ५.
मृपू.. (राज छोडी) ३१३३-२०१ प्रसन्नचन्द्रराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, पद्य, मूपू., ( मारगमां मु) ६०४७- १२ 2 (+5) प्राणातिपातविरमणव्रत सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु., गा. ६.
($)
पद्य, नूपू.. (सकल मनोरथ) १७९८-१७, ६००४-३५ प्रास्ताविक कवित्त, राज.. गा. ५. पद्य, (बीबी पहिरण) १७९७-८ प्रास्ताविक कवित्त, कवि सिंह, मागु., गा. ७, पद्य, (--) ६५१२
(+
प्रास्ताविकदोहा] सङ्ग्रह', राज, मागु, पद्य, (बुरी प्रती) १००५. 30
प्रास्ताविक सवैया, मागु., गा. ३. पद्य, जे. (एक ही मातप) ६१२३-२
प्रियकरश्रेष्ठि रास, मु. पद्मसागर, मागु, पद्य, मृपु. ( स्वस्ति) २६५८१
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प्रियमेलक चौपाई दानाधिकारे, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु.. ढाल ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मुपू., (प्रणमुं सद) ९२९०५ ४१५५% ८२९१/- ८२४२/०० ४२०९, ६४९४. ८८६०, २५१४, २८०९-१(5), २२८३ प्रेमलालच्छी रास, मु. दर्शनविजय, मागु., ढाल ५३, वि. १६८९, पद्य, मृपू. ( सुखदायक जि) ९१०२
($)
फाल्गुनचीमासीपर्व कथा, राज.. गद्य, गुपु. ( फाल्गुण शु) ६०५०
"
बनारसी विलास, पण्डित बनारसीदासजी, हिन्दी, (--) <प्रतहीन >
(२) बनारसी विलास विषयसुचनिका जैनकवि बनारसीदास, मागु., गा. ५, पद्य, जे. (प्रथम सहस) २५०८-१०
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५५९ बरडावीर छन्द, आ. जयचन्दसूरि, मागु., गा.६, पद्य, मूपू.,
६०८८-१४, ६४४८-३, ६४६०-५, ७५४१-१, ८४७६-२, १६३०(एगन्ते एकच) ७५४७-८+5
२, २३३६-३, १४८७-२२६, ६०४१-२६, ६०५१-२६, २८४५-३ बलदेव सज्झाय, मु. सकल, मागु., गा. ८, पद्य, जै.,
बुढ़ापा चौपाई, मागु.. वि. १८४५, पद्य, मूपू., (जम्बुद्वीप) ६८३४७) (तुङ्गीआगीर) १७९५-३३, ६००४-१७
बुढ़ापा रास, मु. चन्द, राज., ढाल २२, वि. १८३६, पद्य, मूपू., बलभद्र कृष्ण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. ३१, पद्य, (दयाज माता) ५७९१ मूपू., (द्वारकानगर) ३१३०-९३)
बुढ़ापा रास, श्रा. मोतीचन्द, राज., ढाल २२, वि. १८३६, पद्य, बलभद्रमुनि सज्झाय, मागु., गा. २१, पद्य, जै., (हुं तुझ आग) मूपू., (दया ज माता) ६०२६-४ ३१३३-२२६
बुढ़ापा रास*, राज., पद्य, मूपू., (दया माता) २३९८ बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मागु., गा. ३०, पद्य, मूपू., बुढ़ापा सज्झाय, मु. कवियण, मागु., गा. १८, पद्य, जै., (सुगुण (द्वारिका) २८५-६(48)
बीढा) ६०६४-१५) बलभद्रमुनि सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु.गा. १४, पद्य, जै., बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मागु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं (मासखमणने) ६०५२-२
दे) १३४१-२३६) बहुपुत्रिक सज्झाय, राज., ढाल ६, गा. ७२, पद्य, मूपू., (वहु बोल सङ्ग्रह, राज., गद्य, जै., (उपाध्याय) ३३०१) पुत्री) ४४१८-१
बोल सङ्ग्रह, राज., गद्य, मूपू., (सव्वत्थोवा) १८९१९ बांसुरी पद, मोहन, मागु., गा. ६, पद्य, वै., (सुण वांसडल) बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (पहिलै बोले) ८९६३७) १४९२-२८), २३४१-२५
बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (विखम्भवग्ग) ८४२०-२ बामणवाडजीतीर्थ सवैया, मु. माणिक, मागु., गा. २, पद्य, मूपू., बोल सङ्ग्रह, मु. सुमतिसागर, मागु., वि. १७७२, गद्य, जै., (बम्भणवाड) ६००१-४८
(अनाहारी छै) २९०९ बारसतिथि स्तुति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जे बारसने) १८०३- बोल सङ्ग्रह- जीवाभिगमसूत्रे, मागु., गद्य, जै., (-) २०५४) ११, ७५४१-२२
ब्रह्मचर्य पद, मु. राज, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू.. (याली धनओ) बाराक्षरी पद, चञ्चल, मागु., गा. ३२, पद्य, जै., (नमो अरिहन)
७५५५-५८+5) ३९६०)
ब्रह्मबावनी, मु. निहालचन्द, प्राहिं., गा. ५२, वि. १८०१, पद्य, बालकृष्ण पद, मागु., गा. ४, पद्य, वै., (वीर अपनो) २३४२-३० मूपू., (ॐकार अपार) १८४१, ३१६९-१६) बाहुजिन फाग, मु. न्यायसागर, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (परणे ब्राह्मण लक्षण सवैया, चरणदास, प्राहिं., गा. १, पद्य, जै., रे बा) ९१५६-३२
(ब्राह्मण) ७५५७-३ बाहुजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, पद्य, भक्तिविजयनिर्वाण छन्द, पं. सिंहविजय, मागु., गा. ५२, पद्य, __ मूपू.. (साहिब बाहु) ६०९१-१९", ७५४५-१४
मूपू., (देवी दरसण) ६५१२-१०/+8) बाहुबली सज्झाय, राज., गा. ९, पद्य, जै., (आदिनाथजी) ३१२९- भगवतीयोग विधि, मु. शिवनिधान, मागु., गद्य, मूपू., (सुमुहूर्त)
२४५० बाहुबली सज्झाय, मु. कवियण, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., भरतचक्रवर्ति चौपाई, कवि नन्दलाल, प्राहि., ढाल ३२, वि. (वीराजी मान) ६०१७-११
१८७७, पद्य, जै., (सुमरुं जिण) ५३४९ बाहुबली सज्झाय, मु. माणिक्य, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बेहनड भरतचक्री शलोको, ऋ. लालचन्द, मागु., गा. ३६, पद्य, जै., बोले) १७९५-२, ६००४-२६
(सरसती माता) ८६३५-६ बिच्छूसुकन विचार, राज., गद्य, (पडवा पडि) २२५१-२
भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मागु., गा. १२, पद्य, बीजतिथि चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., गा.७, पद्य, मूपू.. मूपू., (बाहुबल चार) ७५६२-२७, १४२३-३१, ६०६४-८०(5) (दुविध धर्म) १११७-४, २३४०-३, ६६३१-७)
भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ७, बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (राजतणा अति) ७५५५-२४), ६०५२-५१, ७५६२(बीज कहे भव) ६००४-२४६)
१८, ७५४३-१२/६, १८००-१४१, ६००४-२६, ७५५२-१३, बीजतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., ३१३०-४२६, ७५५८-४६, ६०४९-१६ (-) । (बीज जिनधर) ७५४१-१२
भरतबाहुबली सवैया, मु. सभाचन्द, मागु., गा. ३५, पद्य, मूपू., बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन | (परम पुरुष) ८४२८
सकल मन) १७९२-३, १२६७-२, २३४२-९६, ३२६६-१, भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ८,
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५६०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ पद्य, मूपू., (भवदेव भाई) ६०४७-२३(45), ७५५५-२५(45) मदनरेखा चौपाई, मागु., गा. १७९, पद्य, मूपू., (वापै सु आप) भवानी स्तोत्र, प्राहिं., पद्य, वै., (कीरपाली का) ५७५१-१(5-) ४३९९, ४७८९, १५८८ भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, मागु., गा. ३९, पद्य, मूपू., (क्रिया मदनरेखा रास, मागु., गा. १८८, पद्य, मूपू., (जूआ मांस) ४५०९, अशु) ५८५०-१)
४७९१, ६५७८, १५८३०, १२९२६), ६८६८/-) भावना सज्झाय, मु. विनयचन्द्र, मागु., गा. ११, वि. १८७४, पद्य, | मदनरेखा रास, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल ६, वि. १८७०, पद्य, जै., (थेतो दुर्ल) ६०५२-२८
स्था., (आदि धरम धो) ८९३१-१ भाषासमिति सज्झाय, ऋ. रायचन्द, राज., गा. १८, पद्य, जै.. मदनरेखा सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सत्य विवहा) ३१३०-५००
(लघु बन्धव) ६०६७-१४ भासवीसी, मागु., २० स्तवन, पद्य, जै.. (सरसति मझ) ५६७४७) मदनसेन चौपाई, ऋ. सांवतराम, मागु., ढाल ३१, वि. १८९८, भिखणजीस्वामिगुण सज्झाय, श्रा. गिरधरदास, राज., गा. ४९, पद्य, जै., (प्रथम नमी) ८०६०), ५२२१, ७४०८(5) पद्य, तेरा., (पहु उठी) १०८९-२
मदनाष्टक, प्राहि., गा.८, पद्य, जै., (मनसि मननित) २३४२-२५ भीमसेनहरिषेण चरित्र, मु. अमोलकऋषि, मागु., ढाल ८, वि. मधुबिन्दु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मागु., गा. १०, पद्य, १८५६, पद्य, स्था., (जगनायक जिन) ५३१४
मूपू., (सरसति मुझन) १३४१-५७, ७७३६-३, ६००४-४२७, भुवनभानुकेवली चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, मागु., पद्य, (
६०८७-३६६ -)-<प्रतहीन.>
मनकमुनि सज्झाय, मु. लब्धि, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमो रे (२) भुवनभानुकेवली चरित्र-बालावबोध, मु. हरिकलश, मागु.. नमो) ७५६२-३३ गद्य, मूपू., (सिरिवीरं) ५४३५, ५४७१, १९७९
मनभमरा सज्झाय, महम्मद, मागु., गा. १८, पद्य, (भूलो मन भम) भोजनछत्रीसी, आ. गुणसागरसूरि, राज., गा. ३६, पद्य, मूपू., ३१३१-३ (तिसला राणी) ३१३०-३०७
मनभमरा सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., भोजराज चरित्र, मागु., पद्य, मूपू., (समरिय सरसत) ३१८) (भूलो मन भम) १८००-२४६) भोजराज प्रबन्ध, वा. मालदेव, मागु., ४ अधिकार, गा. १७०४, मनुष्यजन्म स्तवन, मागु., पद्य, मूपू.. (वाज्या नगा) ३१३३-३६+६) पद्य, मूपू., (जासु अलक्ष) ४१६८(२)
मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टान्त, मागु., गद्य, जै., (चेतः कैरवक) मंगलकलश गीत, मागु., गा. १६, पद्य, जै.. (सिरि जिणवर) ६३१५-३
मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टान्त सज्झाय, पं. जिनविजय, मागु., मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मागु., गा. १४२, वि. १६४९, ढाल १०, वि. १७९०, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवीर) ४३०६, ५८९९पद्य, मूपू., (सासण देवीय) ७३५०+5)
१५, ३३९७%), ६००४-६२।६) मंगलकलश रास, मु. दीप्तिविजय, मागु., पद्य, मूपू., (प्रणमुं सर) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टान्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, ६५८२), ७८५२(5)
___मागु., ढाल २२, पद्य, मूपू.. (प्रेमे पास) ४९८८६) मंगलानन्द पद, मङ्गलानन्द, प्राहिं., गा. ४, पद्य, (मेरा हीरा) मनोरथ भावना, मु. हुकमचन्द, मागु., प+ग, जै., (समरी ३१२९-१०६)
सरसति) ९००४ मंगलिकमाला विस्तार, मागु., पद्य, मूपू., (अर्हन्तो) ६७८५ मनोरमा चौपाई, मु. रतनचन्द, मागु., ढाल ३१, पद्य, मूपू., (जिण मङ्गलकलश चौपाई, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल २१, वि. १७१४, चौवीसे) ४३९४, ४४१० पद्य, मूपू., (पास जिनेसर) ८५३३, ८७८३
मन्त्र सङ्ग्रह', मागु., गद्य, (-) ६४२३-१०+) मछोदर चौपाई, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल ३३, गा. ९४८, वि. मरुदेवीमाता चौढालिया, ऋ. रायचन्द, मागु., ढाल ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पोहो ऊठी) ५८४१
१८५५, पद्य, जै., (माताजी मरु) ३०१-१, ३५८९ मतप्रबोधछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, प्राहि., गा. ३७, पद्य, मूपू., (तप । मरुदेवीमाता सज्झाय, ऋ. रायचन्द, राज., गा. १३, पद्य, जै., तप तप) ५८५०-४), ५९४२-३
(दीख्यारा) ३१३०-६६ मदनकुमार चरित्र, ऋ. चौथमल, मागु., खण्ड ५, वि. १९८०, मरुधरदेशगुण छन्द, मु. खुशाल, राज., गा. ९, पद्य, जै., पद्य, स्था., (जिन शान्ति) ४६४३
(सरसती माता) ५८९९-५४ मदनयुद्ध, मु. बुधराज, मागु., गा. १५७, वि. १५८९, पद्य, जै., (- | मलयासुन्दरी रास, मु. कान्तिविजय, मागु., खण्ड ४, ढाल-९१, -) १०६५
वि. १७७५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति) ३३४), ३०७, ३२९, ८७१९ मदनरेखा कथा, हिन्दी, गा. २९४, पद्य, मूपू., (शान्तिनाथ) ३६१ | मलयासुन्दरी रास, मु. जिनहर्ष, मागु., खण्ड ४/ ढाल-१४८, गा.
२३०
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
३००६, वि. १७५१, पद्य, मुपू., (श्रीशान्ति) ३१४, ४७०७),
($)
७०२९
मल्लिजिन कङ्कोतरी, छोटालाल, मागु., गा. १६, वि. १९४३, पद्य, सूपु. ( केकु छांटी) ६०८२-११
"
मल्लिजिन चौपाई, मु. जेमल-शिष्य, मागु., ढाल १९. वि. १८२० पद्य, जे. (नमस्कार अर) ७१९४
मल्लिजिन पार्श्वजिन स्तवन, ॠ रायचन्द, राज, गा. १३, वि. १८४२, पद्य, जै., (हरिआने रङ) ६९९२-३ ()
मल्लिजिन रास, ऋ. रायचन्द, मागु., ढाल २०, वि. १८२४, पद्य, जै.. (निमस्कार) ४२०७/- ३१४८(MB)
(+$)
मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मागु., ढाल ५, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (नवपद समरी) ६०५६-२, ६२१७-२
"
मल्लिजिन सावन, मु. मोहनविजय, मागु, गा. ७, पद्य, मृपू.. (विद्युवल्ली) १४९२- पहला
मल्लिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुज मुज री) ७७८२-६
(+#)
मसा औषध, मागु, गद्य, (हीरा कसी) १४४९-२० महाजन सज्झाय, मीठा, मागु, गा. ६, पद्य, जै.. (महाजन महाज) ११७६-३१
महादण्डक, मागू. (अवगाहणा वि) - प्रतहीन >
(२) महादण्डक भाषा, मागु., गद्य, जै., (-) १५९५
($)
महादेव छन्द, मागु., गा. २३, पद्य, वै., (शंकर वसे) ११७६-२१ महाभद्राजिन स्तवन, मु. शान्तिविजय, मागु गा. ८, पद्य, भूपू. (विहरमान अढ ) ६०३५-२० महाविदेहक्षेत्रे बत्रीसविजय नाम, मागु., गद्य, जै., (कछ सुकछ मह) ६०६४-५२
($)
महावीरजिन २७ भव वर्णन, मागु., गद्य, मृपू, (अथ हिवइ)
'
६५२०
महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. जैनेन्द्रसागर, मागु, पहा. मृपू.. (-) १३४१-१०
महावीरजिन २७ भव स्तवन, पं. ज्ञानकुशल, मागु., ढाल ११, गा. ८७. वि. १७३१, पद्य, मृपू.. (पूरण प्रेम ) ६३८१
महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. लालविजय, मागु., ढाल ६, गा. ८१, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (विमलकमलदलल) ४२८७ महावीरजिन २७ भव स्तवन, पं. वीरविजय, मागु., ढाल ५, वि.
१९०१, पद्य, भूपू (श्रीशुभविज) ८९१३
महावीरजिन उपसर्ग, मागु., गद्य, मूपू., (अणुलोमो दी ) ३३०७-१ महावीरजिन उपसर्ग, मागु., गद्य, मुपू., (क्षत्रियकु) ५३२७ महावीरजिन उपसर्ग वर्णन, मु. हर्षरङ्ग, मागु, गद्य, मुपु.]
"
(श्रीमहावीर) २९२१(+)
महावीरजिन ऋद्धिवर्णन स्तवन, पं. दीपविजय, मागु., गा. १३,
पद्य, भूपु (वन्द्र सिद) ८६३१-२
"
५६१
महावीरजिन कल्याणक विचार, मागु., गद्य, मूपू., (आसाढ सुदि)
(#)
३३५६-२"
महावीरजिन के गुणग्राम, मागु, गद्य, भूपू (कुण श्रीवी) ७५६१
($)
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महावीरजिन गहुंली, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मागु., गा. ९, पद्य, मृपू., (श्रीजिनवीर) ७५५४-छाय
महावीर जिन गौतम चौढालिया, ॠ रायचन्द, राज, ढाल ४, वि.
१८३९, पद्य, जै., (मान न कीजै) ७६९-३९ महावीरजिन गौतमसंवाद सज्झाय, वा. वीरविजय गणि, राज., गा. ७, पद्य, भूपु (वीर जिनवर) ३१३०-२३ महावीरजिन चरित्र, मु. लेखराज, मागु., खण्ड ४, वि. १९३०,
"
पद्य, जै., ( प्रथम नमूं) २९० (+)
महावीरजिन चैत्यवन्दन, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वन्दु जगदा)
३१३१-१६
महावीरजिन चैत्यवन्दन पं. पद्मविजय, मागु, गा. ३, पद्य, ($) भूपू (सिद्धारथ) ६६३१-१४ महावीरजिन चौढालिया, ऋ रायचन्द, राज, ढाल ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, जै., (सिद्धार्थक) ४००१ (+), ६१५८-४, ७५५६३७ ($)
($)
महावीरजिन छन्द, ऋ. लालचन्द, राज., गा. ११, वि. १८६२, पद्य, जै.. (श्रीमहावीर) १८००-१५ महावीरजिन जन्मकुण्डली स्तवन, पं. वीरविजय, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सेवधी संचउ ) २३४०-११
महावीरजिन जन्मबधाई, राज, गा. १३. पद्य, ग्रुपु., (जसला दे) ६०९५-३०
महावीरजिन जन्ममहोत्सव स्तवन, मु. मल्लिदास, मागु गा. ५०, पद्य, जै., ( चरम तीर्थङ) २७४३
महावीरजिन जन्म स्तवन, मागु., गा. २९, पद्य, जै., (गरभ
(S)
(S)
अवधि) ६०६४-७२*
महावीरजिन जन्मस्तवन, प्राहिं, गा. १०, पद्य, मृपु. ( प्रभुजी को)
"
($+)®
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३१३३-१७'
($)
($)
महावीरजिन तपस्तवन, मागु., गा. ११, पद्य, मुपू., ( गौतमस्वामी) ६०६४-५५ ७५४८-१३ ६०८७-१ महावीरजिन नमस्कार, कवि ऋषभ, मागु, गा. ३, पद्य, मृपू.. (वन्दु वीर) ६०४१-३८
महावीरजिन निर्वाण महिमा स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मागु., ढाल १०, गा. १२५, पद्य, मुपू., ( श्रमणसङ्घत)
८१३८(+), ५०००, ५१६९, ८५२८, ८९०६, ६४४८-१, ८९६४ (६) महावीरजिन नीसाणी, मु. माणेकमुनि, प्राहि, गा. ३६, पद्य, मृ.. ( माता सरसती) १२८९ (#)
महावीरजिन पञ्चकल्याणक पूजा, आ. माणकसिंहसूरि, मागु.. वि. १९७६, पद्य, मृपू.. ( परमधरम पूर) ५०२४%
(+)
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५६२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ महावीरजिन पञ्चकल्याणक पूजा, मु. हेमकमल, मागु., पद्य, | (२) महावीरजिन प्रश्नोत्तर-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (अथ प्रभु) मूपू., (वीर जिणेसर) ३८१६
२२६३, २२०११) महावीरजिन पञ्चकल्याणक वधावा स्तवन, मु. दीपविजय, मागु.. | महावीरजिन बामणवाडजीतीर्थ नीसाणी, मु. हर्षमाणिक्य, मागु., ढाल ५, पद्य, मूपू., (वन्दी जगजन) ३०७२-१, ६००१-१५
गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीमाता) ६००१-४७ महावीरजिन पद, राज., गा. ४, वि. १८३९, पद्य, मपू., (लागो । महावीरजिन भास, मागु., गा.७, पद्य, मपू.. (जिनउदयो अभ) म्हार) २६७५-१६
६४२१-१(5) महावीरजिन पद, मागु., गा. ८, पद्य, जै., (कुन्डनपुर) ३१२९-४६) | महावीरजिन भास, आ. लक्ष्मीसुरि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., महावीरजिन पद, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुं तो अनन) २३४२- (वीरजी आया) ६६०६-५७) ११
महावीरजिनविनती स्तवन, मु. कनककीर्ति, प्राहिं., गा. १२, पद्य, महावीरजिन पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., (सरन तेरी) २३४२- मूपू., (वन्दु श्री) ६००८-२० ७०,२३४२-७४
महावीरजिनविनती स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. महावीरजिन पद, मु. अक्षयरत्न, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., __ १९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो) ९८०-१, ११७६-४६, १४८८-४, (स्वामी श्र) २७९२-१६७
६०६४-४२६, ६०८७-५, ५१८१-२६) महावीरजिन पद, मु. खेम, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ) | महावीरजिन वृद्धस्तवन-सोवनगिरि, मु. जसवन्त, मागु., गा. १२, ७५५५-४२5)
वि. १७९३, पद्य, जै.. (श्रवणे प्र) ७५५५-३०५६) महावीरजिन पद, जयराम, प्राहि., गा. ४, पद्य, जै., (असरन महावीरजिन सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., गा. १०, पद्य, जै., सरन) २३४२-१५३
(शासननायक) २३४१-४६ महावीरजिन पद, आ. जिनचन्द्रसूरि, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., महावीरजिन स्तवन, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू.. (-) ६०६०-५७) (आखीया मेरे) २६७५-१५
महावीरजिन स्तवन, मागु., गा. ९, पद्य, जै., (-) ६९९२-५७ महावीरजिन पद, मु. फकीरचन्द, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरो | महावीरजिन स्तवन, मागु., गा. ७५, वि. १६७७, पद्य, मूपू., मन ला) २७९२-६०
(त्रिसलानन) ६०२३-१) महावीरजिन पद, मु. भुवनकीर्ति, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मो । महावीरजिन स्तवन, मागु., गा. २३, पद्य, मूपू., (दसमा सुरग)
मन वीर) ७५५५-४१६, २७९२-४२७ महावीरजिन पद, ऋ. रायचन्द, मागु., गा. १४, पद्य, जै., महावीरजिन स्तवन, मागु., गा.६, पद्य, मूपू., (महावीरस्वा) (सिद्धारथ) २३४१-४५
१३४२-३०) महावीरजिन पद, मु. विनयचन्द्र, मागु., गा. १४, पद्य, मूपू., (मत | महावीरजिन स्तवन, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., (साढ सुदी) कर ममता) ६०५२-२७
६०६४-८२ महावीरजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (नाही रे महावीरजिन स्तवन, मागु., पद्य, मूपू., (सारङ्गी सु) १४२८-६६) को) २७९२-५०
महावीरजिन स्तवन, प्राहि., गा. १२, पद्य, मूपू., (तुम प्रभु) महावीरजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (भेट ६०५७-१९ वीर जि) २३४२-५०, २७९२-४९७
महावीरजिन स्तवन, प्राहिं., पद्य, मूपू., (रमक जमक मह) महावीरजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (माई। ३१३३-१८+5 मेरो) २३४२-११२
महावीरजिन स्तवन, मु. अमृत, मागु., गा. ११, पद्य, जै., महावीरजिन पाञ्चकल्याणक चोढालियु, मु. नित्यलाभ, मागु., (त्रिसला दे) ७७३६-१ ढाल ४, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (प्रेमे प्र) ८५४६-२)
महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, राज., गा. ७, पद्य, मूपू., महावीरजिन पारणाविनती स्तवन-जीरणसेठभाव, पं. वीरविजय, (नीजरां रहस) १३४१-२१ , ५८९९-४६, ६०८६-५७, ६०३५मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चोमासी पार) २७८-२
१३६, ६०६४-४५७, ६०९५-३१) महावीरजिन पारणा स्तवन, मु. माल, मागु., गा. ३१, पद्य, मूपू., | महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहन) ८९६०-२, ७५४३-७६), ६०३४-४
(गङ्गा गया) ५८९९-३७ ।। महावीरजिन पालj, मु. अमीयविजय', मागु., गा. १८, पद्य, महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. १२, पद्य, मूपू., मूपू.. (माता त्रिश) ६०९१-१०), ७५६५-७)
(श्रीप्रभुज) ५८९९-३६, ६०८६-४४, २३३८-५ महावीरजिन प्रश्नोत्तर, , गद्य, (-)-<प्रतहीन.>
महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू.,
३१३३-१६(48)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
(वीरजिणेसर) ७५४५-४
महावीरजिन स्तवन, ऋ. कुशलचन्द, राज., गा. ५, पद्य, जै., (महावीर स्व) १८००-३
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"
महावीरजिन स्तवन, पं. खुशालविजय, मागु, गा. ५. पद्य, भूपू (वीर जिणेसर) ५८९९-५८
महावीरजिन स्तवन, मु. जिन, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुमारी
(S)
करू) ९१५६-१३
महावीरजिन स्तवन जैमल मागु गा. १८, पद्य, जै,
(सिद्धारण) ६०२५-४
"
महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु, गा. १३, पद्य, मृपू.. (करुणा कल्य) २७५४-३
"
(२) महावीरजिन स्तवन-टवार्थ, मु. सुखसागर, मागु., गद्य, भूपू (श्रीमहावीर) २७५४-३)
"
महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु गा. ८, पद्य, मृपू.. (वीरजी सुणो) ७५४५-र
महावीरजिन स्तवन, मु. धनदास, मागु., गा. ९, पद्य, जै.,
( प्रभुजीरी) ६०५७-१०
($)
महावीरजिन स्तवन, आ. धर्मसागरसूरि, मागु., गा. ११९, वि. १६१४, पद्य, मुपू., (सरसति सामण) ५६७३ महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मागु., गा. ५, पद्य, जै.. (श्रीसीधार) ६०६४ - २३ महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गिरुआ रे) ६०८६-१४, ७७८२-९ महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ४, पद्य मूपु. ( प्रभु घरी) ६०६७-४६. ९१६५-५१ती महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ४, पद्म, मृपू. (प्रभु बल) ६७६७-४५ ९१६५-५०० महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजी प्या) ६०३९-१६ महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., ढाल ६, पद्य, भूपु (सुखदायक चो) ८९७०-१ महावीर जिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ७,
(#)
"
($)
पद्य, मूपू., (साहिब ध्या) ६७६७-४४, ६७६७-६३, ९१६५-४९($) महावीरजिन स्तवन. मु. रङ्गविजय, मागु, गा. ५. पद्य, मृपू..
(प्रभुजी वी) ६०६८-२
महावीरजिन स्तवन, ऋ. रायचन्द, मागु., गा. १४, पद्य, जै., (सासन नायक) ६०६४-९
(5)
($)
महावीरजिन स्तवन, ऋ रायचन्द, मागु, गा. १२, वि. १८३७, पच, जे. (सिद्धारथ) ६०५९-१३ ६०६४-२२श पद्य, महावीरजिन स्तवन, मु. लक्ष्मण, मागु, गा. ९७, वि. १५२१, पद्य, मृपू.. (पहिलो बुरि) ६३४४ ९१४७, ३२९६ महावीरजिन सावन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु, गा. ६, पद्य, मृपू.
"
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(सासननायक) ६००१-५४ ६०३९-१८
.
महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय मागु., गा. ५, वि. १७. पद्य, भूपू (सिद्धारथना) ७५४५-२, ३१३१-१३
महावीरजिन स्तवन, मु. वीर, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय जिनावर) ७५४५-१५
महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मागु., गा. १०, पद्य, (वीरकुंवरनी) ६१८२-२
महावीरजिन स्तवन, मु. शिवचन्द्रजी, मागु., गा. ७, पद्य, जै.,
(साहिबा वीर) ६०७९-४
महावीरजिन सावन, मु. हर्षचन्द, प्राहिं, गा. ५. प मृ.. ( आज महोछव) २७९२-४)
महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, उपा. विनयविजय, मागु., गा. २७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिण) ६००१२७, ६०७४-३, ६०३९-३ ()
महावीरजिन स्तवन- कोणिकाराजाभक्तिगर्मित, पं. वीरविजय, मागु., ढाल ११, गा. २१२, ग्रं. २७०, वि. १८६४, पद्य, मूपू., ( विमल वचन ) ४२४३
महावीरजिन स्तवन- ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूपनयमत्तगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., ढाल ८ गा. ८१, वि. १८२७, पद्य, मूपू.. (श्री इन्द्र) ३९८३ २६५७
महावीरजिन स्तवन- नालन्दापाडा, ऋ. रायचन्द, मागु., गा. २२, वि. १८३९, पद्य, जे. (मगध देशमा) ६०६४-५४ ६९९२-६ ७५५८-८ महावीरजिन स्तवन- पञ्चकल्याणक मु. रामविजय, मागु., ढाल ३. गा. ५६. वि. १७७३ पद्य मूपू. (शासननायक ) ९३५.
,
(#)
५६३
४२५०, ४८१८, ६००१-१८, ६१८०-२, ७५७६-३
महावीरजिन स्तवन- बन्धस्वामित्वयन्त्रबन्ध, आ. अजितदेवसूरि, मागु., गा. ५४, पद्य, मूपू., (चरम जिणेसर) ६०३२-४(+#$) महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी आ. कमलकलशसूरि, मागु..
गा. ४१, पद्य, मृपू. ( समरवि समस्थ ) ७४९२-२ ६०३५-१५ महावीरजिन सावन-बामणवाडजी आ. सोमविमलसूरि, मागु, गा.
मूपू..
१०३, पद्य, मुपू., ( सरसति शुभ) ८३६९
महावीर जिन स्तवन- राजनगरमण्डन, उपा. यशोविजयजी गणि,
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मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (समरीअ सरसत) ६७६७-२१ महावीरजिन स्तवन षट्पव पं. पद्मविजय, मागु दाल ९. वि. १८३०, पद्य, मूपू., (गुरु पद पङ) ९६८(+), ५१७८, ८५०१,
८५०८
महावीरजिन स्तवन- संयमश्रेणिगर्भित, पं. उत्तमविजय, मागु., ढाल ३, गा. ६१, वि. १७९९, पद्य, मुपू., (केवलज्ञान) ८५२७ महावीरजिन स्तवन-सत्यावीसभवगर्भित मु. हंसराज मागु..
ढाल १२ गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मृपू (सरसति भगवत)
४१९८, ८८९२
"
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित, उपा. | माणिभद्रवीर छन्द, मु. उदयकुशल, मागु., गा. २६, पद्य, पू.,
यशोविजयजी गणि, मागु., ढाल ६, ग्रं.२२८, वि. १७३३, पद्य, | (सरस वचन) १४२७-२, २३०१-३, ७०८८-४६) मूपू.. (प्रणमी श्र) ४०९०-१५, ९०२३), २८६५), ५०२०-१(45), | माणिभद्रवीर छन्द, मु. कुशललक्ष्मी, मागु., गा. १९, पद्य, मूपू., ३३७१-१, ३३७४-१, ३३८७, ४५०३-१, ४५८१, ७४६०-२,
(सरसति भगवत) २३०१-१) ७५९५, ९१७१-१, ३४०८
माणिभद्रवीर छन्द, कवि दीपविजय, मागु., गा. १२, पद्य, मूपू., (२) महावीरजिन स्तवन-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (ए
(सरस वचन दे) २३०१-४१) स्तवनमा) ४०९०-१०, ३३७१-१, ७४६०-२, ७५९५, ३३७४-१, माणिभद्रवीर छन्द, मनो, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू.. (साचो ९१७१-१
मणिभद) २३०१-५७ (२) महावीरजिन स्तवन-बालावबोध, पं. पद्मविजय, मागु., माणिभद्रवीर छन्द, मनोहर, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रथम
ग्रं.३११७, वि. १८४९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ९०२३१), २८६(२) मात) २३०१-२ महावीरजिन स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू.. (जय जय मानव) माणिभद्रवीर छन्द, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ११, २८४५-१५
पद्य, मूपू.. (श्रीमाणिभद) १७८६-७ महावीरजिन स्तुति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बालपणे डाब) माणिभद्रवीर छन्द, मु. शिवकीर्ति, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू.,
२६२६-१४+), १७९४-१०*#), २९९७-१६+5), ५४९०-१०, ५८२७- (श्रीमाणिभद) १३४०-४ ९, ६०११-४१, ५४८९-३३, ७५४४-२५०
माणिभद्रवीर स्तोत्र, वा. उदय, मागु., गा. २२, पद्य, मूपू., (नित महावीरजिन स्तुति, मु. जयतसी, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (दौ समरूं) ६२७९-२१ दौ मृदङ) ५८९९-५६
मातापुत्र सज्झाय, सङ्घो, मागु., गा. १६, पद्य, जै., (जारें मास) महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., ७५६५-४६)
(मुरति मनमो) २६२६-२९), १४८५-४४(१), २९९७-२३/45), मातृभूमि गीत, प्राहिं., गा. ६, पद्य, (सान्ति समर) ३१३३-३८५६) ५४९०-२९, ५८२७-२२, ६०९०-४६)
माधवानल चौपाई, वा. कुशललाभ, मागु., गा. ५५२, वि. १६१६, महावीरजिन स्तुति, उपा. नयविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (देवि सरसति) २४२३, ५९५५, ३३०६, १९०६, (भवियण वन्द) २३३६-३२
३०७४-१ महावीरजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., मानतुङ्गमानवती रास, अनुपचन्द-शिष्य, मागु., ढाल ८, वि. (महावीर मोट) २३३६-३५
१८७०, पद्य, मूपू., (सरी सन्त) ४८०८, १३६७ महावीरजिन स्तुति, मु. लालविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., मानतुङ्गमानवती रास, उपा. अभयसोम, मागु., ढाल १४, वि. (वान्दु वीर) २३३६-३३
१७२७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं मा) ४१५६-१+), ३४५-३, ९२४४६) महावीरजिन स्तुति-विजापुरमण्डन-दीपावलीपर्व, मागु., गा. १, मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. पद्य, मूपू., (विजापुर वस) २३३७-१३(+)
मोहनविजय, मागु., ढाल ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, महावीरजिन हालरडं, मु. दीपविजय, मागु., गा. १७, पद्य, मूपू., मूपू., (ऋषभजिणन्द) ४०३०५), २४५३१), २६४७+#), (माता त्रिश) ६०९१-११), ७५६५-६(5
७०२५ , १९६९, ५०५४, ५४६९, ५७३७, ७४१०, ७६८४, महावीर स्तवन-१४ गुणस्थानगर्भित, उपा. विनयविजय , मागु., २२५१-१, ७५२२-१, १९४५, ३५९५, ४१२५, ६५२६-२७), ढाल ४, गा. ७३, वि. १७उ., पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर)
७१५१, ७१९२६, ७२१८६), ७३२६, ७९८६, ८१८०, ९०००-२०
७२७१, ८१३०१, ५४२ महावीरस्वामी- पारगुं, मु. माल, मागु., गा. ३१, पद्य, मूपू., मानमञ्जरी, नन्ददास, हिन्दी, गा. २८५, पद्य, (तं नमामि) (श्रीअरिहन) ६०८७-३७६)
११५१-१ महाशतकश्रावक चौढालिया, ऋ. जैमल, मागु., ढाल ४, पद्य, मानवभव पद, मु. करनजी, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., (मना तेने) जै., (अरिहन्त दे) ७६९-२०
२३४२-५४ महिपालराजा चरित्र, मागु., पद्य, मूपू., (सासण नायक) ३६१७६) | मान सज्झाय, मागु., गा. ४, पद्य, जै., (म करि मोटा) ५८७३महिपालराजा चौपाई, मु. ऋषिराज, मागु., ४/ १०८ ढाल, वि. १९३३, पद्य, जै., (प्रथम तिर) ४०७७)
मान सज्झाय, पण्डित भावसागर, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., मांसभक्षणफल पद, वासुदेव, प्राहि., गा. ८, पद्य, (देखो कर) (अभिमान न) १३४१-८+5), १७९५-७, ६००४-६६) ३१२९-२४
मान सज्झाय, मु. वीरविजय, मागु., गा. ४१, वि. १८७९, पद्य,
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७०३८
७०५५
७५५३-१७
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५६५ मूपू., (मान न कीजे) ७५५८-२(5) माया पद, मागु., गा. ३, पद्य, जै., (एक राङ्क) ६०६४-८५७० मृगाङ्कलेखा चौपाई, मागु., गा. ३८८, पद्य, मूपू., (गोयम माया पद, कबीर, प्राहिं., गा. ३, पद्य, (माया का गु) २३४२-१६३ गुणहर) ९०८८, ११७९, १९८४, १२९०, ८८५६, १२४०, माया पद, मु. भूधर, राज., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरि जग ठगन) २३४२-५९
(२) मृगाङ्कलेखा कथा, पाठक राजवल्लभ, सं., ग्रं.४४३, वि. माया सज्झाय, मु. भावसागर, मागु., गा.७, पद्य, मूपू., (माया १३२५, पद्य, मूपू.. (राज्यराजीम) २६०९११ मूल) १३४१-९(45), १७९५-८, ६००४-७६)
मृगाङ्कलेखा चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., ढाल ६२, वि. १८३८, मार्गणास्थाने जीवलेश्यादि यन्त्र, मागु., यंत्र, मूत.. (-) २८०१ पद्य, जै., (आदेसर जिन) २७१५, ७४१७७, २९४७६ मार्गणास्थाने बन्धोदयउदीरणासत्ता स्थानक, मागु., कोष्टक, मृगापुत्र गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., मुपू.. (-) २७९७(48)
(सुग्रीवनगर) ६०४७-९(5) मुक्तिमार्ग स्तवन, ऋ. रायचन्द, मागु., गा. ९, पद्य, जै., (तन्त मृगापुत्र चरित्र, मु. विद्यारत्न, मागु., गा. १२६, पद्य, मूपू., ___मारग) ६०५२-२०
(तित्थङ्करे) २३२९ मुनिगुणमाला, मु. मनरूप, मागु., गा. १३, पद्य, जै., (पञ्चमहाव्र) | मृगापुत्र सज्झाय, मागु., गा. १४, पद्य, जै., (सुग्रीवनयर) ३१३३
१४६), १७९५-३९, ६००४-५४० मुनिगुण सज्झाय, पं. दीपविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू.. (ते मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मागु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुगरीपुर) मुनीराज) ८६३१-६
७५६२-२ मुनिपति चरित्र, मागु., पद्य, मूपू.. (-) ४०३४+६)
मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मागु.. गा. २४, पद्य, मूपू.. मुनिपति चरित्र, मागु., गद्य, मूपू., (नमिऊण वद्ध) ७२००६)
(सुग्रीव नय) २८५-५२७, २७३१-२० मुनिपति चरित्र, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य) ३०८
मृगावती चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., खण्ड ३, गा. (२) मुनिपति चरित्र-भाषान्तर, मागु., ग्रं.१२८०, गद्य, मूपू., (आ ७४५, ग्रं.११००, वि. १६६८, पद्य, मूपू.. (समरु सरसति) ___ जंबूद्वी) ३४८१
१९४६), २८८२, १४४८, २९६२६), ६८१८६) मुनिपति चरित्र', मागु., गद्य, मूपू., (-) ७०११६, ७१४५६) मृगावती चौपाई, मागु., पद्य, मूपू., (-) ७१८८७) मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममन्दिर, मागु., ढाल ६५/खंड-४, वि. मृगावती रास, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., गा. ४२१, पद्य, मूपू.,
१७२५, पद्य, मूपू., (शंखेसर सुख) ४३०१, ५३८६, ७०६१ (सिद्धारथ) ४२२३, ४२४१ मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मागु., गा. ६०६, वि. १५५०, पद्य, | मेघकुमार चौढालिया, कवि कनक, मागु., गा. ४७, पद्य, स्पू., मूपू., (गोयम गणहर) ५५१३, ९२१४, १२७५, २५६६७)
(देस मगध मा) ७६५३-२६) मुनिपति चौपाई, पं. हीरकलश, मागु., गा. ७३३, वि. १६०८, मेघकुमार चौढालिया, मु. जिनहर्ष-शिष्य, मागु., ढाल ४, पद्य, पद्य, मूपू., (जिन चउवीसे) ८१६
मूपू., (श्रीजिनवरन) १३२२-२ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, मेघकुमार चौढालीया, राज., पद्य, जै., (रिषभादिक) ६६२९ पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रत) ७७८२-७
मेघकुमार रास, मागु., ढाल ७, पद्य, मूपू., (ऋषभादिक चौ) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू.
७६९-२५, १९६६ (वरसे वरसे) २८५-४४७, ५८९९-१
मेघकुमार सज्झाय, राज., गा.७, पद्य, मूपू., (धारणी समजा) मुहपत्तिपडिलेहण विधिस्तवन, गणि लब्धिवल्लभ, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वर्धमान जि) ७५५५-७९/+8)
मेघकुमार सज्झाय, मागु., ढाल २, गा. १७, पद्य, मूपू., (सरस मूढ शिक्षा अष्टपदी, प्राहिं., गा. ८, पद्य, जै., (ऐसे क्युं) १३४२- वाणी) ७५४८-६ २५
मेघकुमार सज्झाय, प्राहिं., गा. २०, पद्य, मूपू., (दुर्लभ लाध) मूर्ख कवित्त, मागु., गा. १, पद्य, जै., (माथै बान्ध) ६४२३-४१) ११७६-५१,२३४१-४ मूर्ख के १४८ बोल, मागु., गद्य, मूपू., (बालकसु प्र) २२६४-२) मेघकुमार सज्झाय, मु. अमर, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मूर्तिपूजानिरसन चर्चा सज्झाय, ऋ. तिलोक, प्राहि., गा. १३६, मनाव) ६०६७-१०० वि. १९३२, पद्य, स्था., (समगत समगत) ४५०४
मेघकुमार सज्झाय, मु. कमल, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (धारणी मूलमन्त्र-गरूडमन्त्रे, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणवादि) ८०००-३
मनाव) ७५६१-११ मृगलीसंवाद रास, श्रा. जावड, मागु., गा. ३५२, पद्य, मूपू., (--) | मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, मागु., गा. २२, पद्य, जै., (वीर
७५५५-२९(45)
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५६६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ __ जिणन्द) ७५५२-७
६१, १२८८-१, ६११८-१ मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., ढाल ३, वि. (धारणी मनाव) ६००४-४३
१७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिका) ५८९९-१२, ६०८६-६४, ७६८७-२, मेघमुनि सज्झाय, मागु., गा. १२, पद्य, जै., (त्यागि वैर) ७५५०- १८०६-२, ७५७६-२"), ९०००-११(8)
मौनएकादशीपर्व स्तवन, पं. जिनविजय, मागु., गा. ४२, वि. मेघरथराजा सज्झाय, मागु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरण भणी १७९५, पद्य, मूपू., (जगपति नायक) ६३४५-१ पा) ६३१५-५
मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., ढाल ३, गा. मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडानी विनती, मागु., गा. ३४, पद्य, २८, पद्य, मूपू., (प्रणमी पूछ) ६०३१-२ मूपू., (दया बरोबर) ७५५०-२६)
मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मागु., गा. ४२, पद्य, मेघविसाल, मु. मेघ, मागु., पद्य, जै., (चरण युगल) ६९२०-२५%) मूपू., (शान्तिकरण) २६४८, ८६४७-३० मेतारजमुनि गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ७, पद्य, | मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. १३, ___ मूपू., (नगर राजगृह) ६०४७-१६+६)
वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठ) २०८६-२, ९८०मेतारजमुनि चौढालिया, मागु., ढाल ५, पद्य, मूपू., (साकेत
१२, १२८८-२, १४८८-८, ७३८९-१७, ९०००-१२) नगर) ७६९-१७
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमिजिन उप) मेतारजमुनि चौढालिया, ऋ. तिलोक, मागु., ढाल ४, वि. १९३९, १८०३-८, ७५४१-६, २३३६-१० पद्य, जै., (जिन समरु) ५०१३-१
मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., गा. ४, पद्य, मेतारजमुनि भास, मागु., गा. १८, पद्य, जै., (राजगृहपुर) ६३१५- मूपू., (एकादशी अति) १७९२-७, २४५४-२१, १२६७-३,
३२६६-२, ६०८८-२, ६०८८-१९, ६४४८-४, ६४६०-७, ७५४१मेतारजमुनि सज्झाय, मु. कनकविजयजी-शिष्य, मागु., गा. १५, ४, ८४७६-३, २३३६-११, ६०४१-७७), ६०५१-५), २८४५-६-) ___ पद्य, मूपू., (धन धन मेता) ६०६४-६०(5)
मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मेतारजमुनि सज्झाय, गणि जिनहर्ष, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., ___ मूपू., (अरनाथ जिने) २६२६-३६) (श्रेणिक रा) १७९८-१२(१)
मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मागु., गा. १४, पद्य, मूपू., मूपू., (नयरी द्वार) २३३६-१२
(समदम गुणना) ३१३३-१+5), १४९१-९, १७९५-२५, ६००४- मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., १५७, ६०६७-२२
(गौतम बोले) १७९२-८, ६०४१-१०६) मेरुगिरि नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४२, पद्य, मौनएकादशी स्तवन, आ. जिनउदयसूरि, प्राहिं., गा. १३, वि. मूपू., (सिद्ध सकल) ४२०७
१८७५, पद्य, मूपू.. (अविचल व्रत) ९०००-१३ मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, मागु., गद्य, पू.. (प्रणम्य भा) ९०६४ यतिप्रायश्चित विधि, मागु.गद्य, मूपू., (ज्ञानना अत) १४९०-१० मेवाडदेश छन्द, कवि जिनेन्द्र, राज., गा. ८, पद्य, जै., (मन धरी | | यशोधर रास, ऋ. ज्ञानदास, मागु., गा. ५००, वि. १६२३, पद्य, ___ मात) ५८९९-५३, ३१२९-१७)
जै., (श्रीगोईमने) ४१९४(+) मोक्षनगर सज्झाय, कवि सहजसुन्दर, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., यशोधर रास, मु. नयसुन्दर, मागु., अध्याय १-४, ग्रं.७५०, वि. (मोक्षनगर) १४९१-१७
१६७१, पद्य, मूपू., (सुविशदमनो) ५६६१) मोक्षमार्ग प्रकाश, ऋ. रतनचन्द, मागु., वि. १८९८, पद्य, जै., यादव हीड, मागु., गद्य, मूपू., (इहेव जम्बू) १४०२ (चतुर्विंशत) ४१८८)
युगमन्धरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., मोक्षमार्ग वचनिका, मागु., गद्य, दि., (तत्र प्रथम) १६६१5)
(काया रे पा) ६०८६-२५ मोतीकपासीया सम्बन्ध, पाठक श्रीसार, मागु., गा. १०३, वि. युगमन्धरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., १६८९, पद्य, मूपू., (सुन्दर रुप) १३४४
(श्रीयुगमन) ७५४५-१३ मौनएकादशीपर्व देववन्दन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, | युगमन्धरजिन स्तवन, ऋ. रायचन्द, राज., गा. १०, वि. १८४४, मूपू., (सयल सम्पत) ६२८१
पद्य, जै., (जगत गुरु) ६०६४-४१२ मौनएकादशीपर्व पांचकल्याणक, मागु., गद्य, मूपू., (वाणारसी युगसङ्ख्या , मागु., गद्य, (कृतयुग वर) ८६८८-४ नग) ५६२२-३
योगरत्नाकर, वा. नयणशेखर, मागु., ग्रं.९०००, वि. १७३६, पद्य, मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मागु., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं) ६०७०- | मूपू., (सरसति सुखद) ९०७८-१)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५६७ योगी गीत, मागु., गा. १८, पद्य, (आव्यो आव्य) २८५-९२) पद्य, मूपू., (प्रणमी सद) २८५-१३(5) योगोद्वहन विधि, मागु., गद्य, जै., (आवश्यक योग) ८५४१-३ स्थनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, मागु., गा. ११, पद्य, रतनकुमार सज्झाय, मागु., गा. ३८, पद्य, जै., (रतनगुरु गु) मूपू., (प्रणमी सदग) ७५४८-१७) ७५४२-४
स्थनेमि सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (यादव रतिसुन्दरी कथा, मागु., गद्य, मूपू., (साकेतपुर) ६०५८-६
कुलना) २८५-१४/+5 रत्नकुमार रास-दानाधिकारे, मु. वीरजी, मागु., खण्ड ४, वि. रमल शुकनावली, प्राहि., गद्य, (अरे यार वह) ६४८९-२ १८११, पद्य, जै., (आदेसर आदे) ४१९२(२)
राजसागरसूरिनिर्वाण रास, आ. तिलकसागरसूरि, मागु., गा. रत्नचूड चौपाई, मु. अमरसागर, मागु., ढाल ६२, वि. १७४८, २६६, वि. १७२१, पद्य, मूपू., (वर्द्धमान) ८६५६६) पद्य, मूपू., (सरसति मात) ४१९३१), ७९०७६)
राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मागु., ढाल २४, गा. ६०५, रत्नचूड चौपाई, मु. रत्नसिंहसूरि-शिष्य, मागु., गा. ३४५, वि. ___ ग्रं.८८५, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (सारद शुभमत) ३२४+7 १५०९, पद्य, मूपू., (सरसति देवी) ५४८४
राजसिंहरत्नवती सन्धि, गणि हर्षप्रभु, मागु., गा. २८८, वि. रत्नचूड चौपाई, मु. लालचन्द, मागु., ढाल ३८, वि. १७३९, पद्य, १६१९, पद्य, मूपू.. (पणमिय चउवी) २७३५ मूपू.. (प्रथम पणमि) ३२४४)
राजहंस चौपाई, मु. हेम, मागु., ढाल २३, वि. १७४८, पद्य, मूपू., रत्नपालरत्नवती दृष्टान्त-प्रभवजम्बूसंवादे, राज., गद्य, मूपू., (पुत्र (-) ३०४ उपरि) ३२४७
राजिमती गीत, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मनडो आज उम) रत्नपालरत्नावती चौपाई, पं. माणिक्यराज, मागु., ढाल ३५, गा. ६०६७-३०
६६५, ग्रं.९०५, वि. १८१९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति) २७०५ राजिमती पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (होरी खेलन) २३४२रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मागु., खंड४/६६ ढाल,
गा. १३७२, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (सकल श्रेणि) ३६५-१, राजिमती पद, मु. चैनविजय, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (देखो ८०३३, ८७१७-१
__ सहीयो) २६७५-४८ रत्नपालरत्नावती रास, मु. रत्नसुन्दरसूरि, मागु., गा. ४०३, वि. राजिमतीरथनेमि गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. २, १६३५, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धि) ५९१०
___ पद्य, मूपू.. (रूडा रहनेम) ६०४७-२६-5) रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मागु., खण्ड राजिमतीरथनेमि पंचढालिया, ऋ. रायचन्द, राज., ढाल ५, वि.
३/ढाल-३२, गा. ७७४, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (रीषभादिक) १८५४, पद्य, जै., (अरिहन्त सि) १९६७ ३९१३, ९२९६, १७७९(45)
राजिमतीरथनेमि लावणी, ऋ. रामकिसन, मागु., गा. २६, वि. रत्नसागर सज्झाय, मु. सोहमस्वामी, मागु., गा. ७, पद्य, जै., १८६७, पद्य, जै., (बावीसमा) ११७६-५ (नगर रतनपुर) ६०१७-३२)
राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मागु., गा. १३, पद्य, जै., (सञ्जम रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुन्दर, मागु., गा. २९९, वि.
लेईन) ६००८-४ १५८२, पद्य, मूपू., (सरसति हंसग) ५८६४, ६७६९६) राजिमतीरथनेमि सज्झाय, वा. उदयविजय, मागु., गा. १४, पद्य, रथनेमि गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., मूपू., (सोरीयपुरि) ५८९९-८ (काल अनन्ता) ६०४७-२५७
राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मागु., गा. १९, पद्य, स्थनेमि गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., मपू., (देखि मन दे) ६०२८-११ (जदुपति वान) ६०४७-२४+5)
राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मु. जिनराज, मागु., गा. १४, पद्य, रथनेमि चोक, मु. उत्तमविजय, मागु., गा. १४, वि. १८७५, पद्य, मूपू.. (सतगुरु प्र) ६०६४-६४) मूपू., (एक दिवस वस) ६६३५-४०
राजिमतीरथनेमि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ५, स्थनेमिरथनेमि गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ५, पद्य, पद्य, मूपू., (अगनिकुंडमा) ६०७३-९ मूपू., (राजुल चाली) ६०४७-२७+9)
राजिमतीरथनेमि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ५, रथनेमिराजिमति सज्झाय, मु. देवविजय, मागु., गा. १२, पद्य, __पद्य, मूपू., (छेडो नाजी) १७९८-१४६) मूपू., (काउसग व्रत) १४९१-१०
राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मु. सीसविजय?, मागु., गा. ११, पद्य, स्थनेमिराजिमती सज्झाय, ऋ. रामकृष्ण, मागु., गा. १८, पद्य, मूपू., (राजुल देखी) ११७६-६३ जै., (बावीसमा) ७५५८-५७०
राजिमती लैहों, राज., गा. ३७, पद्य, जै., (कांइ भीजै) ६०२२रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. विजयदयासूरि, मागु., गा. ११,
pla)
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राजिमती विनती, कवि कृष्णदास, प्राहि., गा. १४, पद्य, जै.,
(सुण सुण हो) ६००८-३ राजिमती सज्झाय, मु. प्रेम, मागु., गा.७, पद्य, जै., (जिन नेम
मन) ११७६-५९ राजिमती सज्झाय, मु. विवेकविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू.,
(उग्रसेन सु) ६०७५-७ राजिमतीसतीइकवीसी, ऋ. चोथमल, मागु., गा. २१, वि. १८५२,
पद्य, जै., (सासण नायक) ७५५०-१६) रात्रिभोजन चौपाई, उपा. पद्म, मागु., वि. १७२२, पद्य, मूपू., (
) ४५०२) रात्रिभोजन रास, गणि अमृतसागर, मागु., खण्ड ३/ ढाल ४४,
गा. ९२५, वि. १७३०, पद्य, मूपू.. (चिन्तामणि) ९१५२",
३९०३ रात्रिभोजन सज्झाय, मु. वसता, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू.,
(ग्यान भणो) ६०७४-२, ७५६२-४६, ६००४-३०६, १७९८-६(७) राधाकृष्ण पखवाडीयो, मागु., गा. १५, पद्य, वै., (सखी पडवाने)
२६१०-२) रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मागु., अध्याय ४अधिकरा,
दाल६, ग्रं.४८००, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रत) ४४३०
१)
रामयशोरसायन रास, मु. केशराज, मागु., ४ अधिकार/६२ढाल.,
वि. १६८३, पद्य, मूपू., (श्रीमुनिसु) २९२, ४२००१, ५३६८,
७२७२७, ८७६२ रामविनोद, पं. रामचन्द्र गणि, मागु.,७ समुद्देश, गा. १६१७,
ग्रं.३३२५, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सिद्धबुद्ध) १७११-१५), ३३२५, ७७८४-१, २२१२-१), ३८७६-१७, ८०१६), ६९९५७,
२६९४) (२) रामविनोद-हिस्सा नाडीपरीक्षा-नेत्रपरीक्षा, पं. रामचन्द्र गणि,
मागु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुभमति सरस) १७११-२,
२२१२-२ रामसीता रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., खण्ड ९, गा.
२४१२, ग्रं.३७०४, वि. १७उ., पद्य, मूपू., (स्वस्ति ) ११५५१),
३१६, ५२८२, ७३२५६६), ६८६९७, ८६११६, ६९९६६, ६९८६६) रामसीता सज्झाय, ऋ. मोजीराम, मागु., पद्य, जै., (उठ प्रभाते)
७५४२-२) रायसंयती चौढालिया, मागु., ढाल ४, पद्य, मूपू.. (चरम
जिणेसर) ६०५२-३८ रावण कवित्त, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (लङ्कागढ) १८०२-३ रावण पद, ऋ. जवाहर, प्राहि., गा. ५, पद्य, जै., (रावण कुं)
२३४२-११३ रुक्मिणी रास, नन्दलाल, राज., गा. ७९८, पद्य, जै., (वीर
जिनेश) ३९९८)
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ रुक्मिणी विवाह, प्राहिं., पद्य, मूपू., (मेरी भव बा) ७३०७) रुक्मिणी सज्झाय, मु. राजविजय, मागु., गा. १४, पद्य, मूपू.,
(विचरता गाम) २८५-७५(५७, ७५६२-४७ रुक्मिणी सज्झाय, मु. राजविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू.,
(विचरन्ता) १७९५-१८, ६००४-१० रूपसेन रास, मु. महानन्द, मागु., ढाल ७५, गा. २९४५, वि.
१८०९, पद्य, जै., (श्रीऋषभादि) ४९०२, ८४३५ रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. कवियण, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू.,
(सोवन सिङ्घ) २८५-३९, ६०७३-७ रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू.,
(सोवन सिहास) ६०६७-२४॥ रोहिणीतप कथा, राज., गद्य, मूपू.. (उच्छिट्ठम) ६०७०-१२(१) रोहिणीतप सज्झाय, मु. कवियण, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू.,
(वन्दि रोयण) ५८९९-१७ रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मागु., गा. ९, पद्य, ___ मूपू., (श्रीवासुपू) ६००४-४६३) रोहिणीतप स्तवन, कवि दीपविजय, मागु., ढाल ६, वि. १८५९,
पद्य, मूपू., (हा रें मार) ७७८२-१० रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मागु., गा. ३२, वि. १७२०, पद्य,
मूपू., (सासण देवता) ४६०१ रोहिणीतप स्तवन, पाठक श्रीसार, मागु., ढाल ३, गा. २६, वि.
१७००, पद्य, मूपू., (सासणदेवति) ९०००-१४) रोहिणीतप स्तुति, मु. पद्मसागर, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.,
(जयानन्दन) २३३६-३७ रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.,
(जयकारी जिन) २३३६-३६ लक्ष्मीसूरि भास, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (घडीय न विस)
६००१-५५ लग्नसुबोधी एकोत्तरी, मु. रामचन्द, मागु., गा.७१, वि. १९पू.
पद्य, मूपू.. (गुरु सारद) १०४४ लघुदण्डकभेद बोल, मागु., गद्य, मूपू., (शरीर ओगाहण) ३१२०७० ललिताङ्गकुमार कथा, मागु., गद्य, मूपू.. (त्रिवर्गसं) ४५४५-१(+5) ललिताङ्गकुमार रास, मु. पद्मसागर, मागु., खण्ड ४, वि.
१९५४, पद्य, मूपू.. (सुकृतवल्लि ) १९५१ ललिताङ्गकुमार सज्झाय, मु. कुंवरविजय, मागु., गा. ९, पद्य,
मूपू.. (मानवभव पाम) २८५-४३(5) लाभलोभसन्तोष जकडी, मु. विनय, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू.,
(अजब तमासा) ६७६७-६०, ९१६५-२५० लीलापतझणकारा चरित्र, मु. कालू, हिन्दी, गा. ३४, वि. १९६८,
पद्य, जै., (यह शीलतणा) ३४० लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मागु., ढाल २९, गा. ६१९, वि.
१७२८, पद्य, मूपू.. (त्रेवीसमो) १७०९
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५६९ लीलावती रास, मु. लालचन्द, मागु., पद्य, जै.. (-) ७२४९६) जय वसुध) ८९८०-२ लीलावती रास, मु. सुन्दर, मागु., पद्य, मूपू., (चिद्रुपी) ३६६ वसूराज प्रबन्ध, मु. रामचन्द, मागु., पद्य, मूपू., (-) ७५५९-१७ लीलावतीसुमतिविलास रास, वा. उदयरत्न, मागु., ढाल २१, गा. | वस्तुपालतेजपालमन्त्री रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ढाल ___३४८, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष) ७०८७
२, गा. ४०, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (सरसति सामि) १५७२-२ लुकमानहकीम नसीयत, हिन्दी, प+ग, जै., (जहा गणधर) २७८- | वस्तुपालमन्त्री दानधर्म विचार, मागु., पद्य, मूपू., (अढार कोड)
१४८९-१५ लुङ्कारी हुण्डी, मागु., गद्य, जै., (जगरसनरानीच) ८४९२ वाणी पद, ऋ. रतनचन्द, राज., गा.५, पद्य, जै., (हे रसना वि) लुहर स्तुति, सांइ दीन, प्राहि., गा. ५, पद्य, वै., (साय कीजै) ३१२९-७६ ७३५५-३
वायुभूतिगणधर सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ७, वंकचूल कथा, मागु., पद्य, मूपू., (शान्ति जिण) १०७४
पद्य, मूपू., (त्रीजो गणध) २३३८-९ वंकचूल चरित्र, ऋ. हीरालाल, हिन्दी, गा. १०२, वि. २०वी, पद्य, | वासुपूज्यजिन गहुंली, मु. विजयलक्ष्मी, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., स्था., (महावीर जिन) १३३९-१
(चम्पानयरी) ७५५४-६ वंकचूल चौपाई, ऋ. रतनचन्द, मागु., दाल ६, वि. १८९१, पद्य, वासुपूज्यजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., गा. ३, पद्य, जै., (वङ्कचूल भा) ७६९-३२, ७५५६-५७
मूपू., (देवलोकथी) ७५४०-१५ वंकचूल रास, मागु., गा. ९४, पद्य, जै., (आदि जिनवर) ३५५५- । वासुपूज्यजिन धवल, आ. विनयदेवसूरि, मागु., ढाल २३, गा.
१३०, पद्य, मूपू.. (चउवीसइ जिन) ५९६५ वचनलाभहानी श्लोक, मागु., गा. २, पद्य, मूपू., (जीभ सयण वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., सम) ५२०८-२
ढाल ६१, गा. ४५६, पद्य, मूपू.. (ऋषभ अजित) ५२८१ वचनातिशय स्तवन, मागु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वन्दीय वीर) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., ५८८२-३(+#$)
(मुझने लाग) ५८९९-३४ वज्रकुमार गीत, मागु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वर पूरव मह) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., ६३१५-४
(मोहनजी हो) ७७८२-२ वज्रदन्तचक्रवर्ती सज्झाय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बइठे बज्रद) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचन्द, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., ६०५७-९
(वासुपूज्य) ३१३१-१२ वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवीचन्द्र, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विहरमान भग) ६०८६-२९
(प्रभुजीसु) ६०८६-७ वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल १५, वि. १७५९, पद्य, वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, मूपू.. (अरध भरतमा) २८५-६१(8)
पद्य, मूपू., (स्वामी तुम) १४८८-१२, ६०८६-१३ वज्रस्वामी सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., वासुपूज्यजिन स्तवन-विनती, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गणधर दश पू) २८५-५३(5)
(जिननायक पू) ५८८२-२**5) वडीदीक्षा विधि, गुज., गद्य, मूपू., (प्रथम नाणम) ९३३
वासुपूज्यजिन स्तुति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपू) २६२६वढवाणनगरे जिनमहोत्सववर्णन गहुंली, मु. कमलविजय, मागु., गा. १६, पद्य, मूपू., (बेनी मोरी) ६०८२-४
विक्रमचौबोली रास पुण्यफलकथन, वा. अभयसोम, मागु., ढाल वरदत्तगुणमंजरी चौपाई-ज्ञानपञ्चमीफलमाहात्म्ये, मु. ऋषभसागर, १७, ग्रं.३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्त) ३०४६), मागु., ढाल २१, पद्य, मूपू.. (पास जिणेसर) १३६०) ।
४२५२, १९९०), १९५४/45), ७०५४(5), २५८९६) वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, मागु., गद्य, मूपू., (शुक्लकार्त) २३११ | विक्रमराजा चौपई, गणि लक्ष्मीवल्लभ, मागु., ६ खण्ड। ७५ ढाल, वर्तमान २४जिन स्तवन, ऋ. लालचन्द, मागु., गा. ७, पद्य, जै., । गा. ३१६८, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (प्रणमु पास) ३७७, (प्रथम तिर) ८६३५-३
४८८१७) वर्द्धमानतप यन्त्र, मागु., कोष्टक, मूपू., (-) १२०९-२(4) विक्रमराजा चौपाई, मागु., पद्य, जै., (-) १४३६(48) वसुदेव रास, मु. हर्षकुल, मागु., गा. ३५६, वि. १५५७, पद्य, विक्रमराजा चौपाई, मागु., पद्य, जै., (-) ३१०६(45) मूपू., (सकल मनोरथ) ५६६८-१
विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मागु., ढाल ६४, वि. वसुधरा आरती, मु. सौभाग्यचन्द्र, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय | १७२४, पद्य, मूपू., (परम ज्योति) २९९", ८८३६, ३४४,
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५७०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ ८३४७), २४२८), ८२२०१६)
विनयदेवसूरि रास, ऋ. मनजी ऋषि, मागु., वि. १६४६, पद्य, विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मागु., ढाल ५२, गा. मूपू.. (सकल सिद्धि) ७९१५६)
११६२, ग्रं.१६२४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सुखदाता सङ) विनय सज्झाय, आ. विमलसूरि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विनय ८३२३६, ७५३, ९१३, ५४३९(#), ५२६१-१६, ५५२०),
करो) ६०७३-१० ७३३४
विनीतअविनीत अधिकार, राज.,मागु., ढाल ११, पद्य, मूपू., (नमो विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मागु., ढाल २७, गा. ५८५, वीर सा) ८६६१
वि. १७२३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी) ६५८३, ७८१४, ८६८५ विमलजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., विचार सङ्ग्रह', मागु., गद्य, जै., (ठाणाङ्गमाह) ३१५७", (वन्दो वीमल) ७५४०-१६
७२८३(5), ८९९३-१, ३३४४६, ७७३०७, ८१९२७, ९०५६) विमलजिन स्तवन, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विमल जिनेस) (२) विचार सङ्ग्रह-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (वीरं गुरुश) ६०८६-३९ ९०८२
विमलजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू.. विजयदेवसूरि सज्झाय, मु. अमीसुन्दर शीष्य, मागु., गा. ६, पद्य, (दुख दोहग) २६७५-१८, ६०८६-१९ मूपू., (समरीय सरसत) २४१६-२६)
विमलजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भव विजयदेवसूरि स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (जय गौतम हि) मांहि) ५८९९-३० ६४६०-१४
विमलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., विजयदेवसूरि स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (सोवनगढ ऊपर) (विमल जिणन) २३३८-३ ६४६०-१३
विमलजिन स्तवन, मु. लालविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जि विजयप्रभसूरि भास, मु. रामविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., ___ हो वीमल) ७७८२-३ (निजगुरुना) २८५-३४(48)
विमलमन्त्री प्रबन्ध, मु. लावण्यसमय, मागु., खण्ड ९+चूलिका, विजयप्रभसूरि सज्झाय, पं. धर्मकुशल, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., गा. ३८७, ग्रं.१७००, वि. १५६८, पद्य, मूपू., (आदिजिनवर) (सरसति मुझ) ५६२२-२)
५७०१, ८८८२, ६४५७ विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., गा. २२, विमलमन्त्री रास, मागु., पद्य, मूपू., (-) ७०२०१६) वि. १८५८, पद्य, जै., (शीयल तणी) ७५४२-५७
विमलमन्त्री श्लोक, पण्डित विनीतविमल, मागु., गा. १०९, पद्य, विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., गा. २०, ___ मूपू., (सरसति समरू) ६०४७-५+5, ९७९-१ पद्य, जै., (सिल तणी रे) २७३१-४७, २४३२-७६)
विरह गीत, मागु., गा. १९, पद्य, (करती कमसे) ६०८०-१) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, ऋ. रतनचन्द, मागु., गा. ८, विरहव्यथा गीत, राज., गा. ५, पद्य, (उर्छ रे सव) ५४७-८ पद्य, जै., (शुक्ल पक्ष) ३१३०-३३७ ।
विवाह पद्धति, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ३७, पद्य, जै., विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, ऋ. लालचन्द, मागु., गा. १७, । (श्रीसद्गुर) ६७५४-४ __वि. १८६१, पद्य, स्था., (श्रीवीतराग) १७८१-४६
विविध जीवों के आयुप्रमाण, मागु., गद्य, मूपू., (मनुक्ष १२०) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मागु., ढाल ७९६२-४(+)
३, गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रह उठी) १४९१-२४, १७९५-४१, विष्णुकुमार पञ्चढालीयो, मु. रामचन्द, मागु., ढाल ५, वि. ६००४-५५(
१९११, पद्य, जै., (प्रणमी श्र) ६१५८-१, ७५५६-१७) विजयानन्दसूरि विजयदेवसूरिआदि समुदायों के पण्डितों की विहरमान २० जिन चैत्यवन्दन, मु. दीपविजय, मागु., गा. ७, नामावली, मागु., गद्य, मूपू., (१ पं विनयव) ११००-२
पद्य, मूपू., (विहरमान ते) २१०६-४७) विजासण जन्त्र, मागु., गा. १, पद्य, (वञ्छी जै) ८३०५-२७) विहरमान २० जिन नाम, मागु., गद्य, मूपू., (सीमन्धरस्व) ९२२१विद्याविलास चौपाई, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल ३०, वि. १७११, २), ७७८०-३(5) पद्य, मूपू., (सरसति नित) ८३९२, ९२६९, ७२६६७)
विहरमान २० जिन पूजा, मु. नित्यविजय, मागु., २० पूजा, विद्याविलास पवाडउ, आ. हीरानन्दसूरि, मागु.. गा. १९०, ___ग्रं.२७०, वि. १९१९, पद्य, मूपू.. (मनमोहन पास) ४०३७)
ग्रं.४४०, वि. १४८५, पद्य, मूपू.. (पहिलं पणम) ४१४७६), विहरमान २० जिन स्तवन, मु. केशवदास, मागु., गा. ३१, वि. ६३१४
१५२५, पद्य, जै., (सबल देव सम) १४२८-१) विनय चौढालिया, ऋ. तिलोक, मागु., ढाल ४, गा. १११, वि. विहरमान २० जिन स्तवन, गणि खिमाविजय, मागु., गा. ७, पद्य, १९३६, पद्य, जै., (श्रीजिनराज) ५०१३-२
मूपू.. (सीमन्धर यु) ६०६८-१३
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
विहरमान २० जिन स्तवन, ऋ. जैमल, राज., गा. १०, वि.
१८२४, पद्य, स्था., (सीमन्धर यु ) ६००८-१२
विहरमान २० जिन स्तवन, ऋ. जैमल, मागु., गा. ७, पद्य, स्था., (सीमन्धर पे) ७५४२-१३
विहरमान २० जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., २० स्तवन, पद्य, मुपू., ( श्रीसीमन्ध) ९०१२-१, २१११
विहरमान २० जिन स्तवन, मु. दीपविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मृपू.. (विहरमानजिन ) ३६७-३
विहरमान २० जिन स्तवन, पाठक धर्मसिंह, मागु., गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, भूपू (वन्दु मनसु) २६७५-५५. १७८७-३,
"
७५४८-८०
($)
विहरमान २० जिन स्तवन, ऋ. लालचन्द, मागु., गा. ११, पद्य, जै., (श्रीसीमन्ध) ८६३५-५
विहरमान २० जिन स्तवन, मु. विनयचन्द, मागु., गा. ९, पद्य,
जै., ( प्रात समय) २३४१-४२
विहरमान २० जिन स्तुति माग गा. ४ परा, मूपू., (पञ्चविदेह) २६२६-९१ १४८५-३२
(+#)
१० (+8)
१७९४-५ २९९७-६, १०९९५४९०-५, ५८२७-४, ६०११-३४, १७९१-१९, ५४८९२०० ७५४४-३०
विहरमानजिन स्तवनवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि मागु. २० स्तवन, पद्य, मूपू. (पुखलवई बिज) २२७३", ४२८२-१, ७६७७-१, ५७३२, ३१७० (#), ९०००-५(5)
विहरमानजिन साबनवीसी, आ. जिनराजसरि मागु, २० स्तवन, पद्य, भूपू (मुज हीयडी) ६३२३, १४७४-१, ८३९१-२ विहरमानजिन स्तवनवीसी, पं. जिनविजय, मागु., २० स्तवन, वि. १७८९, पद्य, मुपू., (सुगुण सुगु) १४२६-१ विहरमानजिन स्तवनबीसी, गणि देवचन्द्र, मागु. २० स्तवन, पद्य, मूपू., ( श्रीसीमन्ध) १०११-२, १४८८-५, ५१८२-१, ८३३७-२, ८४५८
5
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3
T
"
वीतराग सवैया, प्राहिं., गा. १, पद्य, जै., (चन्द में) ७५५७-१ वीरविद्या, मागु, गद्य, (ॐ नमो गणप) ९०७८-३१
वीरसेनजिन स्तवन उपा. देवचन्द्र, मागु, गा. ८, पद्य, मूपू., (वीरसेन जगद) १४२३-२
बीसा यन्त्र, प्राहि., यंत्र, जे., () ९६०-२
वृद्ध सवैया, मु. जिनदास, प्राहिं, गा. १, पद्य, जै.. ( घटि आङ्ख) ७५५७-४
(S)
वृद्धिचन्द्रजी प्रबन्ध, मु. रामचन्द, मागु., वि. २०वी, पद्य, जै., (आप्त पुरुष) ७५५९-१० वेश्यासङ्गपरिहार सज्झाय, मागु., गा. १३, पद्य, मुपू., ( हसती गज अस ) ६०५२-७ वैतालपञ्चवीसी कथा, मु. देवशील, मागु., गा. ८२१, वि. १६१९, पद्य, मुपु. ( सरसति सांग) २०८७
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वैद्यकशास्त्र के ८ प्रकार, मागु., गद्य, मूप्पू., (कण० कनकरथ) ५२४५-२
"
वैद्य लक्षण, प्राहिं., गा. १९, पद्य, जै., (करमरोग की) ७०१२-३ (8) वैरसिंहकुमार चौपई- जीवदयाशील विषये पं. मोहनविमल, मागु ढाल ३८, गा. ८७६, वि. १७५८, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सा) ८३७९
(+)
वैराग्य निसाणी, मु. धर्मसी, मागु., पद्य, जै., (काया माया)
($)
५७१
६००६-५
वैराग्यपच्चीसी, गोपालदास, प्राहिं, गा. २५, पद्य, वै. इस प्रमादी) ३१३०-१३१
वैराग्यबावनी, मु. लालचन्द, मागु., गा. ५१, वि. १६९५, पद्य, मूपू., ( समज समज रे) ७६६१- १(क)
वैराग्य सज्झाय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जे तरुवर) ७५४६
६
वैराग्य सज्झाय, प्राहिं., गा. १४, पद्य, जै., ( रतन जडता ) ६०६४१३
वैराग्य सज्झाय, मु. अमर, मागु., गा. ९, पद्य, जै., (सुणि सुणि)
१४९१-१३
वैराग्य सज्झाय, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (परषदा आगे ) ६०९१-१५
(+)
वैराग्य सज्झाय, गङ्गादास, मागु., गा. ५, पद्य, जै., ( पलक एक रेन) ६०६४-५३
($)
वैराग्य सज्झाय, मु. भूधर, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., ( एह तन जग) २६०६-१४
वैराग्य सज्झाय, महम्मद काजी, मागु., गा. ५, पद्य, (गाफल वन्दे ) ७५५५-६८ ६०२९-६
(+$)
($)
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वैराग्य सज्झाय, मु. मानसागर, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मानवनो भव ) १४९१-१६
वैराग्य सज्झाय, मु. रतनतिलक, मागु, गा. ८, पद्य, भूपू. (काया रे वा) ६०५२-२६. ७५४३-११
वैराग्य सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज की काल) १४९१-८, ६०५२-४०
वैराग्य सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., गा. २२, वि. १८२२, पद्य, जै., (लख चोरासी) ६०५२-१८
. (+S)
वैराग्य सज्झाय, मु. लब्धि, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जीवडां तुं) २८५-१६ व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ढाल ९, गा. १६१, वि. १६९६, पद्य, मुपू., (शान्तिनाथ) ३९४८-२, ६३०२,
९२४५
व्याख्यानसार सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मुपू., (देव स्तुति) ३४२६(*) शत्रुंजयतीर्थ १०८ खमासमण दूहा मु. कल्याणसागरसूरि - शिष्य, गुज., गा. १०८, पद्य, भूपू (सिद्धाचल) ५४१७-१, ८९९८
"
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५७२
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., ढाल १२, गा. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनचन्दसूरि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू.,
१२०, ग्रं.१७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिव) ४०१६- । (भाव धर धन) २६७५-१० ११, १९९८, २७७६, ५०७३, ६००१-१३, ७५२१, ८३४४, शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, प्राहिं., गा. १०, पद्य, ८६९८-१, ३३१९, ५४७६, ४९७१, ३६२२-१७, ८७९६-१(5), मूपू., (सुण सुण शत) ९८०-८, ६६३१-१९(5) १९५३६), ७००६(5), ७३६८६), ३००४(६
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., शत्रुजयतीर्थ चैत्यवन्दन, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ) | (काली गडो) २६७५-८ ६४६०-२३, ६०४२-८, ६०४२-२२७, ६०९६-३६)
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., शत्रुजयतीर्थ चैत्यवन्दन, मु. कल्याण, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., । (सिद्धाचलमण) ९८०-२२
(जय जय नाभि) २३३७-१४), १११७-१०, ३१३१-१८, ६६३१- | शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., गा. १२, पद्य, मूपू., १०६
(हांजी विमल) ६०८६-५६ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवन्दन, मु. सिद्धिविजय, मागु., गा. ८, पद्य, शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., ___ मूपू.. (धुर समरु) ६०४२-१)
(सिद्धाचल) ६०५३-२०), २७९२-४४६ शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरङ्ग, मागु., ढाल १०, वि. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ७, पद्य,
१८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वा) ४०५१), ८९९०+5), मूपू., (तीरथ बारु) ४६३३-४(+) ३१०१, ३२०३, ६००१-११, ६०६८-५, ८७०८, ३०४७
शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ८, पद्य, शत्रुजयतीर्थ माहात्म्य, मागु., गद्य, मूपू., (एह रीते) ५४१७-२
मूपू., (बापडला रे) ६०७३-१३ शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ढाल ६, गा. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ५, पद्य,
११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेस) १४००१), ४०५९), | पू., (माहरु मन) २८५-७७+६) ४३३०१), ३८९, ५०१७, ५०३५, ६००१-१४, ८१४४, ७८३८१), शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ६, पद्य, ३२४९(१), ५१८१-१६, ६५०८-१६, ७३८६(७), ७५९८(5)
मूपू., (शेत्रुञ्जा) २६७५-३४ शत्रुजयतीर्थ सङ्घस्तवन, पं. वीरविजय, मागु., ढाल ६, पद्य, । शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विमलगिरी) ४३४८+)
पू., (सिद्धगिरि) २३४०-१० शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मागु.. गा. ६, पद्य, मूपू.. (शेजो ) ६०८६- शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. पद्मविजय, मागु., गा. ८, वि. १९वी,
पद्य, पू.. (तुमे तो भल) ६६३१-२१(5) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मागु., पद्य, मूपू., (सुरिवर आगम) ६०१७- | शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मल्लीदास, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पीया
बे चा) १७९७-४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरतन, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मानसागर, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., (डुङ्गर ठण) १३४२-३११), ३६११-२+त), ३१३१-५
(बे करजोडीन) ६०३५-११(६) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरतन, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ते | शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., दिन क्य) १७८२-११
(प्रथम जिने) ६०८६-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ५, (शेत्रुञ्जा) ५८९९-२४
___पद्य, मूपू., (विमलाचल नि) १७८२-४, ६७६७-४८, ९१६५-५३७ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सहीयां मोर) १३४१-२२+5) ।
(विमलाचल सि) ९८०-१४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मागु., गा. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. रामविजय, राज., गा. ७, पद्य, मूपू., १११, पद्य, मूपू., (श्रीआदेश्व) २७७, २१०८, २७१०-१
(मोहनगारा) ५८९९-६१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. विनयविजय-शिष्य, मागु., गा. ५, पद्य, (श्रीरे सिद) १३४२-१८, १७८२-९, ९१५६-२१
मूपू., (आज उञ्जम) १४८४-३%) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. खिमाविजय, मागु., गा. १६, पद्य, मूपू.. | शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे) ६०९१-५(+)
(पय पणमी रे) ६०२०-३६) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचन्द, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., शत्रुजयतीर्थ स्तवन, गणि सौभाग्यविमल, मागु., गा. ११, पद्य, (आज आपे चाल) २६७५-७
मूपू., (चालो चालोन) ७५४५-१६
५९
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५७३ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आगे पूरव)
(सर्वारथसिद) ६६३१-३ २३४२-१०१, ५८८०-७, ६०८८-५, ६०८८-१६, ६०४१-१६, शान्तिजिन छन्द, आ. गुणसागरसूरि, मागु., गा. २१, पद्य, मूपू., १४८७-२५
(सारद माय) १८०२-५, ७५५०-६०, ७५५३-९६) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्रा. ऋषभदास, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., शान्तिजिन जन्माभिषेक कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. (श्रीशत्रुञ) १८०३-१३, ६०८८-१५, २३३६-१७
४६, पद्य, मूपू., (श्रीजयमङ्ग) ४४०२-१) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. कल्याणविजय-शिष्य, मागु.. गा. ४, पद्य, शान्तिजिन पद, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनवर मूरत) मूपू., (शेत्रुञ्ज) २३३६-१५
२७९२-४० शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्राहिं., गा. ४, पद्य, शान्तिजिन पद, मु. जिनलाभ, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आणन्द मूपू., (मरुदेवी के) १७८२-१०
आज) ७५५५-३५६) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. नेमिविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., शान्तिजिन रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., ढाल ६६, गा. १४२८, (आवी रूडी) ५८९९-६४
ग्रं.२२०५, वि. १७२०, पद्य, स्पू., (सकल सुख सम) ८७९२१ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, गणि शुभविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., शान्तिजिनविनती स्तवन, मु. रतन, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाच) २३३६-१६
(सन्त करता) ६०५९-३१) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., शान्तिजिन विवाहलो, मु. आनन्दप्रमोद, मागु., ढाल ६४, ग्रं.५००, __ (पुण्डरीक) ६०८८-२३, ६०४१-३१, २८४५-१७)
वि. १५९१, पद्य, मूपू., (सरसति सामि) ५६१९, ५९२१-१ शत्रुजयतीर्थ स्तुति-शत्रुञ्जयमण्डन, आ. नन्दसूरि, मागु., गा. ४, शान्तिजिन विवाहलो, मु. ब्रह्म, मागु., ढाल ४४, पद्य, मूपू.,
पद्य, मूपू.. (श्रीशत्रुञ) १४८५-३५, २९९७-१४+६), १७९९- (आराधुं भाव) ५०६५ ११, ५८२७-२७, ६०११-३८, १७९१-२००, १४८७-५, शान्तिजिन स्तवन, मागु., गा. १८, पद्य, मूपू., (शान्ति जिण) ५४८९-२०६, ७५४४-२२
६०६४-८१६) शत्रुजयतीर्थोपरि मोतीशाटूक इतिहास, पं. वीरविजय, मागु.. शान्तिजिन स्तवन, मु. अमृत, प्राहिं., गा. १६, पद्य, मूपू., (सन्त ढाल ७, पद्य, मूपू., (उठी प्रभात) ८१२०१६), ८९८७)
मूरत) २७०२-३ शत्रुजयरायणवृक्ष स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ६, पद्य, शान्तिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू.. ___ मूपू., (नीलुडी राय) ६६३१-२३)
(अचिरानन्दन) ५८९९-५२ शत्रुञ्जयगीरनारतीर्थ स्तुति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.,
शान्तिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनमा) ६०८८-२४
(श्रीशान्ति) ५८९९-४० शत्रुञ्जयतीर्थ वेल, मु. उत्तमविजय, मागु., ढाल १३, वि. १८८५, । शान्तिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू.. (पासतणा पदक) ८९८५११)
(सुणो शान्त) ७५४५-६, ६६३१-२७ शनिश्चर छन्द, पण्डित ललितसागर, मागु., गा. ३१, पद्य, मूपू., | शान्तिजिन स्तवन, मु. कमलविजय, मागु., गा. १५+कलश, वि. (सरसती सामि) १८०२-४, २८२-१७)
१९४६, पद्य, मूपू., (सान्ति जिन) ६०८२-२ शरीरद्वार १५ बोल, राज., गद्य, मूपू., (पन्नवणां) ५६८७-१ शान्तिजिन स्तवन, मु. कवियण, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., शाखपुमार कवित, मागु., गा. १, पद्य, जै., (शाख शिसोदि) (भवभञ्जण भग) २८५-७०+5) ८३९८-१
शान्तिजिन स्तवन, पं. कीर्तिविजय , मागु., गा.७, पद्य, मूपू., शान्तिजिन आरती, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (शान्ति तुम)
(सुण दयानिध) ७५४५-५ २८८५-२१), ६०३३-३
शान्तिजिन स्तवन, मु. खेम, मागु., गा. १३, वि. १७४२, पद्य, शान्तिजिन गीत, पं. हितविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारद मूपू., (श्रीशान्ति) ६०२९-९०, ६०५९-२७ सुगुर) २८५-१९
शान्तिजिन स्तवन, आ. गुणसूरि, मागु., गा. २३, पद्य, मूपू., शान्तिजिन चरित्र, मागु., गद्य, मूपू., (एहज भरतक्ष) ५५४४ (शारद मात) ६०६४-६८६) शान्तिजिन चैत्यवन्दन, मु. अमृतविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., | शान्तिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू.. (बे (सोलम जिनवर) ३१३१-१९
कर जोडी) ७५४५-७ शान्तिजिन चैत्यवन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., शान्तिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, राज., गा. ७, पद्य, मूपू., (मनरा (शान्तिजिने) ६६३१-४७
मानीत) ५८९९-६० शान्तिजिन चैत्यवन्दन, पं. वीरविजय, मागु., गा.३, पद्य, मूपू., | शान्तिजिन स्तवन, मु. न्यानसागर, मागु., गा. ५, पद्य, मुपू.,
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५७४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
(शान्तिजिणे) ५८९९-५०
६,२३३६-२२ शान्तिजिन स्तवन, मु. ब्रह्म, मागु., गा.७, पद्य, मूपू., (गगहइ शान्तिजिन स्तुति, श्रा. ऋषभदास, मागु.. गा. ४, पद्य, मूपू., सकल) ६०२३-२)
(शान्ति जिण) १७९२-१४, २३३६-२३ शान्तिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, राज., गा. ९, पद्य, मूपू., शान्तिजिन स्तुति, पण्डित शुभविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (साहिब शान) २८५-८८+5
(मोहन मुरति) २३३६-२१ शान्तिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., शान्तिजिन स्तुति-फलवर्द्धि, मु. देवकुशल, राज., गा. ४, पद्य, (अचिरानन्दन) २३३८-२
मूपू.. (फलवधीरो मण) ६०४१-१९६) । शान्तिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा.६, पद्य, | शान्तिजिन स्तोत्र, ऋ. दुर्गदास, मागु., गा. ५, पद्य, जै.,
मूपू., (हम मगन भए) ४०९०-२, ६७६७-३२, १४८४-६६), (मङ्गलदायक) ६०५९-२३ ९१६५-३७)
शालिभद्र कथा, प्राहिं., पद्य, मूपू., (श्रीगुरु) ७८०७ शान्तिजिन स्तवन, ऋ. रतनचन्द, राज., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुं शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., ढाल २९, गा. ५१०, धन तुं) १८००-२७, ७५४२-११
वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सासननायक) १२०११, १२०२१), शान्तिजिन स्तवन, ऋ. रतनचन्द, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (प्रात २६६०१), २४२६१, ४०७२, ४२४६, ४४६२, ४४६७, ४४९८, उठ) ६०५९-२१
४५५३, ५२०८-१, ६४९५, ८८३५, ८८७१, ९७८, ४४७३, शान्तिजिन स्तवन, ऋ. रुगनाथ, मागु., गा. १५, वि. १८३४,
६५१६, ४४७५-१, ८१५८, १९५८-१), १९८९), ३०९०-१(*, पद्य, जै., (श्रीसन्तना) ७५५०-१०)
४५६२), ५४८३०, ७०९३६), ८६९३६, ११२७), २३५५७), शान्तिजिन स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू.. (हां
७९०१ रेप्र) ६००१-५७
शालिभद्र धन्ना सज्झाय, वा. उदय, मागु.. गा.७, पद्य, मूपू., शान्तिजिन स्तवन, मु. वीरविजय, मागु., गा. १७, पद्य, मूपू., (अजिया मुनि) १८०४-६, ६००४-४७) (त्रिभुवन) ७५२२-२
शालिभद्र रास, मागु., पद्य, जै., (-) ६९२५६) शान्तिजिन स्तवन, मु. श्रीमल्ल-शिष्य, मागु., ढाल ३, वि. १६५६, शालिभद्र शलोको, गणि कनकप्रिय, मागु., गा. १४७, वि. १७८१, ___ पद्य, मूपू., (प्रणमीय पा) १४२८-४६) ।
पद्य, मूपू., (सरसती सामण) ४६१९, १९६५(5) । शान्तिजिन स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ५, पद्य, शालिभद्र सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ५, पद्य, __ मूपू., (मेरइ आङ्गन) ७५५५-३४)
मूपू., (शालिभद्र) ६०४७-१७६, ६००४-१८) । शान्तिजिन स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ६, पद्य, शालिभद्र सज्झाय, मु. सहजसुन्दर, मागु., गा. १७, पद्य, मूपू., मूपू., (सुन्दररूप) ६०२९-१०७
(प्रथम गोवा) १७९५-४४, ७५६२-३५, ३१३०-३९) शान्तिजिन स्तवन, ऋ. सावत, राज., गा. ९, पद्य, जै., (उठ शाश्वतजिन चैत्यवन्दन, मु. भावसागरसूरि-प्रशिष्य, मागु., गा. प्रभात) ६०५९-२०६
११४, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर) ५९६१ शान्तिजिन स्तवन, मु. हर्षचन्द, प्राहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (चित शाश्वतजिनबिम्ब स्तवन, मु. जैनेन्द्रसागर, मागु., ढाल ६, गा. चाहत) ३०७३-३, ६०६४-४३, ६०९५-२८, २७९२-६७
६०, पद्य, मूपू., (सरसति माता) ६०८७-२६६, ६०३५-१६) शान्तिजिन स्तवन, वा. हर्षधर्म, मागु., गा. २३, पद्य, मूपू., शाश्वतजिन स्तवन, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., गा. ६०, पद्य, मूपू., (सूरज ऊगमतइ) ६०२०-४६)
(सरसती माता) ९०००-४६) शान्तिजिन स्तवन, मु. हर्षसागर, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., शाश्वतजिन स्तवन, मु. माणिकविमल, मागु., ढाल ७, गा. ८४, (वंछितपूरण) ६०८६-४०
वि. १७१४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर) ४०९२(+) शान्तिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानकगर्भित, उपा. मानविजय, मागु., | | शिव पद, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शिवपद पामे) २५१०-२ गा. ८५, पद्य, मूपू., (शान्ति जिण) ७४६०-१
शिष्य सज्झाय, मु. जिनभाण, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू.. (चेला शान्तिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी रहे) ६०७३-११
गणि, मागु., ढाल ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (शान्ति | शीतपरिसह सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मागु., गा.६, वि. १७वी, जिण) १५५१), ११९४, ६००१-४
पद्य, मूपू., (राजगृही नय) ७५४६-५७ शान्तिजिन स्तवन-माण्डवगढमण्डन, आ. जिनमहेन्द्रसूरि, मागु., | शीतलजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., गा. ५, वि. १९२०, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं) ५६०३-२७)
(भदलपुर दृढ) ७५४०-१३ शान्तिजिन स्तुति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शान्तिजिन) ५८८०- | शीतलजिन पद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ३, पद्य,
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
मृपू.. (मुख नीको) ७५५५५५१
शीतलजिन स्तवन, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मुपू., (तारिलें मो) २०९२-३४
शीतलजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु, गा. ६, पद्य, मूपू.. (शीतल जिनपत) ६०८६-१८
शीतलजिन स्तवन, मु. उदयरतन, मागु., गा. ७, पद्य, मूप्पू., ( प्रभु सितल ) १८०४-३
शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु, गा. ७, पद्य, भूपू(शीतल जिन) १४९२-२१(+)
"
शीतलजिन सावन, मु. मोहनविजय, मागु गा. ७, पद्य, मृपू (सितलजिननी) ६०८६-३२
($)
शीतलजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ६, पद्म, मृपू. (शीतल जिन) ६७६७-५९ ९१६५-११ शीतलजिन स्तवन, आ. विजयदेवसूरि, भागु, गा. ५. पद्य, मु.. ( सीतल जिन) ६०६७-१९ शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मागु, गा. ६, पद्य, भूपू.. ( सीतलजिन सह ) ६०७९-३, ६०८६-३५
(-)
शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमण्डन, उपा. समयसुन्दर गणि मागु, गा. १५, पद्य, मृपू (मोरा साहेब) २८५-४९० शीतलजिन स्तुति, आ, जिनलाभसूरि मागु, गा. ४, पद्य, भूपू-(त्रिभुवन) ५८२७-३२
शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु, गा. ४, पद्य, मृपू.. ( सुख समिकित ) ६०११-४४
शीयल १८ हजारभाड़ना, मागु, गद्य, भूपु (पृथ्वी काय) ७५३९
१
(S)
शील कुलक, मागु, पद्य, मृपू. (जिणवर हूं) ६९०२-२ शील चुन्दडी सज्झाय, मु. करण, मागु., गा. ११, पद्य, जै., (सियल चुन्द) ७५६२-३९.६०८७
($)
शीलनववाड ढाल, मु. अगरचन्द, मागु., ढाल १०, वि. १८३६,
पद्य, मृ.. (प्रण पत्र) १८८९
शीलनववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल १५, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मुपू., ( श्रीनेमिसर) ३६७-२
शील पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जाकी महिमा) २३४१-७ शील पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मदन मनोरथ) २३४२-५३
शील पद, मु. मेघराज, राज. गा. ३. पद्य, मूप्पू (त्रियान)
"
२३४२-५५
शील पद, मु. हर्षकीर्ति, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मुपू., (चतुर चित्त) २३४२-८७
शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि मागु.. गा. ६८, ०.२५१, पद्य, मूपू., ( पहिलुं प्र) ३२४०-२, ४४०३, ४४८६, १५५०(M), १९७५ मा ६१५१
(#S)
($)
"
3
५७५
शीलबत्तीसी, मु. राजसमुद्र, मागु., गा. ३२, पद्य, मुपू., ( सील रतन यत) ७५५५-२८(+), ७५६२-३७ शीलमहिमा सज्झाय, मु. अमर, मागु., गा. १४, वि. ??७१, पद्य,
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जै., ( सतगुण य नम) ७५६२-४२ शीलवती अजितसेन कथा, मागु, गद्य, ग्रुपु. ( इणइ जम्बुद)
६०५८-७
शीलवती रास, मु. गुणसागर, मागु., पद्य, मुपू., ( शीलवतीना) २९३८-२
शीलश्री चौढालिया, मु. प्रेमचन्द, मागु., ढाल ४. वि. १९२८, पद्य, जै., (कमल नील सद) ७५५७-५
($)
शील सज्झाय, राज., गा. १३, पद्य, जै., (समज पीउ चप ) ३१३०-३४
शील सज्झाय, मागु., गा. ६, पद्य, जै., (ममता को ना ) ६०५२
($)
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५८
शील सज्झाय, मागु., गा. १४, पद्य, जै., (रीस चढी बो) ६०६४
५८
शील सज्झाय, मागु., गा. २३, पद्य, जै., (वीरा ब्राह) ७३९०-६ (-) शील सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु, गा. ८, पद्य, मृपू.. ( सरसती केरा) १७९८-१९(३), ६००४-३७ (5)
शील सज्झाय, सज्यो, मागु गा. ८, पद्य, भूपू (उत्तम कहु सि)
"
११७६-३०
शीलस्थापन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मागु., गा. ११, वि. १७वी, पद्य, ग्रुपु. ( सरसति भगवत) ७५४६-४
($)
"
शुकराज चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., खण्ड ४, ग्रं. १४५९, वि. १७७१, पद्य, मु., (सकल सिद्धि) ३३०२
शुकराज रास, मु. रतनविजय, मागु, ढाल ६५. वि. १८११, पद्य, मृ.. (श्रीरीसहेस) ३९७८)
शुकराज रास, मु. राजपाल, मागु., गा. ५५३, वि. १६४१, पद्य, मूपू., (आदीस पमुह) ५६५७
"
शुभाशुभफल विचार, मागु, गद्य, भूपू आवक २१ गुण नाम, मागु, गद्य, जै. (धर्म रत्ने) ३६६१-२ श्रावक ३ मनोरथ, मागु, पद्य, ग्रुपू. (पहलो मनोर) २३४२-१ श्रावक ३ मनोरथ, मु. भोज, मागु., गा. ७, पद्य, जै., (श्रीठाणाअङ) ४३३६-२(+)
(5)
($)
श्रावक ४ प्रकार पद, श्रा. मोतीचन्द, मागु., गा. ३६, वि. १८३६, पद्य, जे., (वर्धमान शा) ३१२९-१६ श्रावक आलोयणा, मागु., गद्य, मूप्पू., (--) ६८५३
($)
आवक आलोयणा, मागु, गद्य, मृपू. (ज्ञानाचारि) ३२७४-४ श्रावक आलोयणा, मागु., गद्य, मूप्पू., (श्रावकने) ८१७०९ श्रावक आलोयणा विधि, मागु., गद्य, जै., (प्रथम इरिय ) २२३२ श्रावक करणी कवित्त, मागु., गा. १, पद्य, जै., ( प्रथम उठि ) ७५५५-१९*
(+S)
( मन्त्र अक) ८०००-४
"
(#)
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५७६
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
श्रावक करणी पद, राज., गा. १२, पद्य, मूपू., (आभरं परिग) (२) श्रीपाल रास-टबार्थ, पं. गणेशरुचि, मागु., ग्रं.२४००?, गद्य, __३१२९-१५
मूपू., (ते गुणसुन) २८६४ श्रावक करणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. २३, पद्य, मूपू., (२) श्रीपाल रास-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (--) ३४६६(65)
(श्रावक तुं) ७७८१-६, ६०३४-२६, ६०५९-२६६), ६०६४-६५, (२) श्रीपाल रास-टबार्थ', मागु.,राज., गद्य, मूपू., (त्रीजो खण) ७५५३-७०, ७५४२-१७) ।
२८६५.३२७०, ४५११. ८५५९, ७१२७-9, ८७२७६), श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. २१, पद्य, | १६७३, ७७९९, ४५१८, ४८९६, २९९३) मूपू., (कहिए मिलस) ६७०९-२५, ७५६२-४०
श्रीमती चौढालिया, मु. विजयहर्ष, मागु., ढाल ४, पद्य, मूपू., श्रावकप्रायश्चित विधि, मागु., गद्य, मूपू., (खमासमण देइ) __(ईणहीज दक्ष) ४३८७-१, ७५५६-४६) १४९०-९
श्रीमती रास, ऋ. रतनचन्द, मागु., ढाल ६, वि. १८९४, पद्य, श्रावक सज्झाय, मागु., गा. २१, पद्य, मूपू., (भिन भिन जा) ___ जै., (सील धर्म) ७६९-३१ १४५१-३
श्रेणिकराजा चरित्र, मु. वल्लभकुशल, मागु., ढाल ५०, गा. श्रावक सज्झाय, मागु., पद्य, जै., (श्रावक चीत) ३१३३-११(5) १२३६, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (आदिसर आदे) ८३८४-१ श्रावक सज्झाय, पण्डित विनीतचन्द, मागु., गा. १७, पद्य, मूपू., | श्रेणिकराजा चौपाई, ऋ. नारायण, मागु., खण्ड ४, गा. ५०४, वि. (प्रणमी पद) ११७६-३४
१६८४, पद्य, जै., (अज्ञात...) ९३१२ श्रावक हितशिक्षा पद, चान्दमल, राज., गा.८, पद्य, जै., श्रेणिकराजा चौपाई, वा. विमलकीर्ति, मागु., ढाल ३२, गा. ७३१, (श्रावकजी) ३१२९-४२११
वि. १७१९, पद्य, मूपू., (जगनायक चउव) ४३५५ श्रावकाचार प्रश्नोत्तर, श्रा. बुलाकीदास, प्राहिं., २४ अधिकार, श्रेणिकराजा रास, श्रा. देपाल भोजक, मागु., गा. ३६८, वि. पद्य, दि., (सिद्धं सम) ४८२३
१६वी, पद्य, मूपू., (सोहावा श्र) ६२९६१) श्रीपाल चरित्र, मागु., पद्य, मूपू., (-) ८०५८६)
श्रेणिकराजा रास, मु. भीमजी, मागु., खण्ड ३, गा. ७१८, वि. श्रीपाल प्रबन्ध, उपा. धर्मसुन्दर, मागु., गा. ३७४, ग्रं.५५०, वि. १६२१, पद्य, स्था., (गोतिमनइ सि) ७२८४) १५०४, पद्य, मूपू., (स्वामी बम) ६३३१
श्रेणिकराजा रास, आ. सोमविमलसूरि, मागु., खण्ड ४, गा. ६०६, श्रीपाल बृहद्रास, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल ४९, गा. ८६१, वि. _ वि. १६०३, पद्य, मूपू., (सकल ऋद्धि) ९२८७, ३४२
१७४०, पद्य, मूपू., (अरिहन्त अन) १३७०,७६८६, ८४७२ श्रेणिकराजा सज्झाय, चान्दमल, मागु., गा. ५, वि. १९८९, पद्य, श्रीपाल भास, मु. देवमुनि, मागु., खण्ड ४, ग्रं.१८००, वि. १९१७, जै., (एक दिन इन) ३१२९-५०) पद्य, मूपू., (श्रीअरिहन) ३५९७
श्रेयांसजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., गा. ३२३, वि. १५३१, पद्य, (विष्णुराय) ७५४०-१४
मूपू., (करकमल जोडि) ४२५६, ८८५९, ५९१२, ३३३५ श्रेयांसजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., ९१९५७
(श्रीश्रेया) ७७८२-१ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, श्रेयांसजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, पद्य,
मागु., खण्ड ४, ढाळ ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू.. | मूपू., (तुमे बहु) ६६३१-२६) (कल्पवेल कव) ३४६), ३५१), ७६०), २६७४), २८६४१), श्रेयांसजिन स्तवन, मु. विनयलाभ, प्राहि., गा. ७, पद्य, मूपू., ३४३२-१), ८६६५, ९२१५, ९१५, १५७५६), २८६५(१, (मन मान्यौ) १३६६-२ २८७६.३२७६,४५११.८५५९.८५४९. ३४६६+#5), षड्दर्शन विचार, मागु., गद्य, जै., (नांमबौध १) ८९५७ ८१४२+8), ३०३+5), २६५९+8), ७१२७+8), ८०५०/+5), ७८९(+5), षड्दर्शनाष्टक, प्राहि., गा. ८, पद्य, जै.. (शिवमत बोध) २२७-२) ९३१(+5), ८७२७+5), २१८७+5, ३३५, २६२५, ३५३५, ३७५३-१, संयतीसाधु गीत, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ११, पद्य, ३९८५, ४१७७, ५४३३, ५८६६-१, ६१९०, ८३७५, ८७२५,
मुपू., (कम्पिलानगर) ६०४७-१५६) ९०६२, ५३६४, ३४७,३६३, १६७३,४३५९, ४५१८,४६०२, संयम के १७ भेद नाम, मागु., गद्य, मूपू., (पृथिवीकाय) ७५४५७७९९, ९३१३, ४८९६, १९४८, ८९४१, १९८५७, २९९३), १७ ८१४३(45), ५३९५७, ५२६७६), ५४३७६, ६१६६६), ६४१८६), संवर सज्झाय, मागु.,गा.६, पद्य, मूपू.. (वीर जिणेसर) १८००६६२१७, ८०५९७, ८७६६६०, ९१३६७, ६१५४६)
१२) (२) श्रीपाल रास-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (-) १५७५. संवेगद्रुममञ्जरी चौपाई, मु. कुशलसंयम, मागु., गा. १२१, ३५१), ७८९, ५३६४, ३४७, ४३५९, ८७६६)
ग्रं.१७८, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सकल सरूप) ३९०२१),
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
६१४६
संवेगरस चन्द्राणा, मागु., गा. ४९, पद्य, मुपू., (सकल सुरिन) ५६३२ (8)
सकडालमन्त्री चौढालिया, ऋ. जैमल, मागु., ढाल ८, पद्य, जै... (वीर नमुं ) ७६९-१९
सकलजिनविनती स्तवन, पं. दीपविजय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( आबोलो स्या) ८६३१-७
सगपण व्यवहार पच्चीसी, ऋ. लालचन्द, मागु., गा. २९, वि. १८६३, पद्य, जै., ( श्रीअरिहन) २३४१-४९ सचित्तअचित्त सज्झाय, मु. लालविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रण ) ६०२८-२
सतीकुसती सज्झाय, मागु., गा. २०, पद्य, जै., (वात सुणो)
६०६४
सती गुणमाला, मागु गा. ४२, पद्य, मृपु (अरिहन्त सि ) ४४१८
"
"
३
सती गुण सज्झाय, मु. कनककीर्ति, मागु., ढाल १३, गा. १४, पद्य, भूपु. ( सरसति सामण) ३१३०-२८०
सती सज्झाय, प्राहिं., गा. १४, पद्य, जै., (सतीयां दीप) ६०६४७६ (ड), ६०९५-१६ सत्यसौभाग्यउपाध्याय रास, गणि धर्मदासजी, मागु, गा. १५०, पद्य, ग्रुप (जिनवर नित) ८७६४०
सत्सङग पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( सङ्गत साधो) २३४२-५
सत्सङगफल पद, प्राहिं., गा. ६, पद्य, जै., ( सङ्गत साधो ) २३४२-६
सदयवत्स सावलिंगा कथा, मागु., प+ग, मूपू., ( न्यायसूतार) २३०४
सद्गुरु पद, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., (मे अमली जि) २३४२ - १०७ सद्गुरू पद, मु. गङ्गाराम, प्राहिं. गा. ५. पद्य, जै.. (सतगुरु साध) ६०८०-६ (ड)
सनत्कुमारचक्रवर्ति चौपाई, ऋ. गोविन्द, मागु, वि. १८४९, पद्य, जै.. (एक दिवस सु) ३२०४
सनत्कुमार चक्रवर्ति रास, मागु., पद्य, मूप्पू., (पहिलु प्रण) २(क)
६११२
($)
सनत्कुमार चक्रवर्ति रास, आ. पुण्यरत्नसूरि, मागु., गा. २८१, वि. १६३७, पद्य, मुपू., (जय जय जगगु) ६३७८ सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. कुशलमुनि, मागु, गा. १६, पद्य, मृपू.. (सुरपत आप ) ६०९५-१७ सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. खेम, मागु., गा. २०, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (सुरपति प्र) ५६७९-९, ६०६४-७० (S), ६०९५-२० ($), ७५४२-८(S), ३१३०-४० (S), ७५४८-१४(७)
सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. धर्मसी, मागु, गा. १६, पद्य,
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जै., (साचा सुज्ञ ) ६०१७-६ सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जोवा आया) ७५५५-२६* सन्तसङ्गती मरहटी गीत, मु. जिणदास, प्राहिं, गा. ४, पद्य, जै.. ( में नित नम) ६०४९
($-)
($+) 3
सन्थारा विधि, राज., गद्य, मुपू., ( प्रथम नवका) २४३-३ सप्तनय क्रम, मागु., गद्य, मूपू., (--) ६४४९
५७७
सप्तनय रास, मु. मानविजय, मागु., ढाल १५, गा. १८५, पद्य, मृपू., (श्रीगुरुचर) २७१७
सप्तभङ्गी विचार, हिन्दी, गद्य, भूपु. ( जैनमतवालों) १८१९ समकीतसुखडी सज्झाय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चाखो नर सम) २८५-२३/
(+$)
समगति चौपाई, मु. अमृत, मागु, ढाल ९, पद्य, गुपु. ( आणन्द मुमि) ६१००-/
"
समता सज्झाय, मु. रतनचन्द, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मृपू., (समता रस का ) ६०५२-४४
वि.
(#$)
समयक्त्वकौमुदी कथा रास, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल ४२, १८८५, पद्य, मुपू., (विजयमान ) २३८६ समरादित्यकेवली रास, कवि पद्मविजय, मागु., ९ खंड / १९९ ढाल, पद्य, मुपू. (कालादिक जे) २६८३०, ८२८ समवसरण गीत, मु. रत्न, मागु., गा. ७, पद्य, जै., (आज हुं
"
गइत) ५४७-५, २५८६-२)
समवसरण विचार, मागु., गद्य, मूपू., ( सोधर्मो इन) ७५७४-३+ समवसरण स्तवन, कवि रूपचन्द, मागु., गा. २१, वि. १८२१,
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पद्य, मृपू.. ( मोरी वीनतङ) ६०५६-१
"
समवसरण स्तुति, मु. जयत, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मिलि चौविह) ५८२७-३४
समितिगुप्ति विचार, राज., गद्य, मूप्पू., ( प्रथम ईर्य) ५६८७-२ समुद्रवहाण संवाद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., ढाल १७, गा. २८६. वि. १७१७, पद्य, मृपू. श्रीनवखण्ड) ८८४४ सम्बोधसत्तरि दोहरा, मु. वीरचन्द, मागु, गा. ९७, पद्य, मृपू.. (परमपुरुष ) ४९६३
सम्भवजिन चैत्यवन्दन- त्रीजतिथि, मु. रूपविजय, मागु., गा. ३, पद्य, भूपु (सम्भवनाथ) ७५४०-६
"
सम्भवजिन पद, मागु., गा. ४, पद्य, मूप्पू., (वाङ्के गढ) १३४२२४(क), ९१५६-२६
सम्भवजिन पद, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( सार जग श्र) २६७५
१२
सम्भवजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं, गा. ४, पद्य, मूपू., ( सम्भवजिन) ६७६७-६५ सम्भवजिन स्तवन, मु. उदयसागर, मागु., गा. ९, पद्य, मुपू., (दया रे श्र) ६०८६-५२
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ सम्भवजिन स्तवन, आ. उदयसागरसूरि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समकित सी) २८५-७+8) मूपू., (सम्भवजिननी) ६०६८-१४
सम्यक्त्व सडसठबोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., सम्भवजिन स्तवन, मु. कान्ति, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (हां रे प्र) ढाल १२, गा. ६८, पद्य, मूपू., (सुकृतवल्लि ) ८४३, ६१८०-१, ६०१७-२१
८३८०-१, ८६५१, ६३६३७) सम्भवजिन स्तवन, मु. प्रेम, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (सुरपति (२) सम्यक्त्व सडसठबोल सज्झाय-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., जिम) ११७६-४४
(सुकृत पूण) ८४३ सम्भवजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., सम्यक्त्वसार प्रश्नोत्तर, मागु., गद्य, मूपू.. (भस्मग्रह) ४०५३१) (समकित दाता) १४९२-२०१), ६०८६-२३
सम्यग्दर्शन गीत, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू.. (दरसण षट दर) सम्भवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, पद्य, २३४१-२३ मूपू., (सम्भव जिनव) ६०८६-११
सम्यग्दृष्टिलक्षण श्लोक, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (समदृष्टि) सम्भवजिन स्तवन, आ. विद्यासागरसूरि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.. ८४११-५ (बीजुं मने) ११७६-४३
सरस्वतीदेवी अष्टक, आ. दयासूरि, मागु., गा. ९, पद्य, पू., सम्भवजिन स्तवन, मु. विनयचन्द, मागु., गा. ७, पद्य, जै., (आज (बुध विमल) ५७२०-२ मारा सम) २३४१-३९
सरस्वतीदेवी छन्द, राज., पद्य, मूपू., (सरसती सरसत) ५६०३सम्भवजिन स्तुति, आ. जिनहर्षसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मनमोहन मूर) ५८२७-३१
सरस्वतीदेवी छन्द, मु. सहजसुन्दर, मागु., ढाल ३, गा. १४, सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवन्दन, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पूरव पद्य, मूपू., (शशिकर जिनक) ६०८६-१, २८२-९७, ६०५५-३६) दिसे) ३१३१-१७
सरस्वतीदेवी छन्द-अजारी, मु. शान्तिकुशल, मागु., गा. ३५, पद्य, सम्मेतशिखरतीर्थ पद, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (दुर देशसे) मूपू., (सरसति सरस) ६३४५-३, ६०५५-१६) २६७६-१६(4)
सरस्वतीदेवी पद, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कर कमल जोड) सम्मेतशिखरतीर्थ रास, मु. बालचन्द, मागु., वि. १९०७, पद्य,
६१४२-१ मूपू., (वान्दी वीस) ५७८१(4)
सर्वार्थसिद्धविमान वर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मागु., गा. १६, सम्मेतशिखरतीर्थ रास, मु. सत्यरत्न, मागु., वि. १८८०, पद्य, पद्य, मूपू., (जगदानन्दन) २८५-१२+5), ६००४-४८(5) मुपू., (अजितादिक) ४८२१
सवैया, शुकनन्द, मागु., गा. १, पद्य, (कहे कृष्ण) ८२६८-२०) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मागु., गा.६, पद्य, जै., (समेत शिखर) | सहजानन्दी सज्झाय, पं. वीरविजय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., ६७०९-२०
(सहजानन्दी) २३४०-१६ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., गा.६, वि. । सहस्रकूट विचार, मागु., गद्य, मूपू., (५ भरत २४) ७५७४-२१ १७४४, पद्य, मूपू., (अष्टापदे) ६०८६-४५
सागरचन्द्र चौढालिया, ऋ. रतनचन्द, मागु., ढाल ४, वि. १८९८, सम्यक्त्व के ६७ भेद, मागु., गद्य, पू., (तीन सुद्ध) ५६९४-२ पद्य, जै., (सागररायनी) ४५१४-२ सम्यक्त्वछप्पनी, प्राहि., गा. ५६, पद्य, मूपू., (इम समकित) १८०- | सागरचन्द्र रास, ऋ. रतनचन्द, मागु., ढाल ६, वि. १८५१, पद्य, २), १९७-२)
जै., (प्रणमी देव) ७६९-२३ सम्यक्त्व पद, मु. इन्द्र, प्राहि., गा.३, पद्य, जै., (ना जानु चे) | साढीबारन्यात कवित, मागु., गा. १, पद्य, जै., (श्रीश्रीमा) ८३९८
२३४२-१२५ सम्यक्त्व पद, मु. जिनदास, मागु., गा.६, पद्य, मूपू.. (छवि सातमतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., निरखत) २३४२-१३९
(चन्द्रप्रभ) ७५४१-१७ सम्यक्त्व पद, मु. रूपचन्द, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., (जागे सौ साधारणजिन आरती, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आरती श्रीज) __ जि) २७९२-४७०
६०६४-४६) सम्यक्त्व रास, मागु., पद्य, मूपू., (प्रणमी पद) ४६९४६
साधारणजिन आरती, मु. द्यानत, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (२) सम्यक्त्व रास-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) | (इहविध मङ्ग) ६०६४-५६) ४६९४७
साधारणजिन गीत, प्राहिं., गा. १२, पद्य, जै., (साधु सुपात) सम्यक्त्व विचार सङ्ग्रह, मागु., गद्य, जै., (धर्म मै न) ८९१८-२७)
६०४९-१२सम्यक्त्व सज्झाय, मु. चरणकुमार, मागु., गा. २२+३७, पद्य, साधारणजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्राहिं., गा. ५, पद्य,
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मृपू.. (जब जिनराज) २८५-८६१ ९१५६-१९१५६-२० साधारणजिन गीत, मु. मान, मागु., गा. १२, पद्य, मूपू., ( सरसति
देवी) १४२७-४
साधारणजिन गीत, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऐसे देव नि) ९१५६-३० M
($)
साधारणजिन गीत, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ३, पद्य, मृपू., (तु छे सकल) ९१५६-२४श
साधारणजिन गीत, मु. रूपचन्द, मागु, गा. ४, पद्य, भूपू (नेना कामण) ९१५६-२९
साधारणजिन गीत, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( होरी नहि ९१५६-३१
साधारणजिन गीत, मु. रूपचन्द, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., (तु निरंजन ) ९१५६-४($)
साधारणजिन चैत्यवन्दन, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( जय जय तुं)
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($) ६६३१-१६ M
साधारणजिन चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु, गा. ३. पद्य, मूपू., ( श्रीअरिहन ) ६५९३-१
साधारणजिन चैत्यवन्दन, मु. रामचन्द, मागु गा. ३. पद्य, भूपू.. (निज रूपे) २३४०-७
साधारणजिन चैत्यवन्दन, मु. रामचन्द, मागु गा. ३. पच. भूपू.. (परमेश्वर) २३४०-५
साधारणजिन पद, राज., गा. ३, पद्य, जै., (अनी में नि) २३४२
"
१५१
साधारणजिन पद, राज, गा. ३, पद्य, जे. (अब में अरज)
२३४२-९३
साधारणजिन पद, राज., गा. २, पद्य, जै., (मे तो थांक) २३४२६१
साधारणजिन पद, मागु., गा. ६, पद्य, जै., (किहांथी रे) ६६०६
($)
१०
"
साधारण जिन पद मागु गा. ४, पद्य, मृपू. (जग दीठा तु) २७९२-४३
($)
साधारणजिन पद मागु, गा. ५. पद्य, मुपु. ( तीरथ करता)
($)
६०९५-१३ साधारणजिन पद, मागु., गा. ६, पद्य, जै., (नेनोमांही) ६०९५-३ साधारणजिन पद, मागु., गा. ८, पद्य, मूप्पू., (पञ्च वधावो) २६७६-८५)
साधारण जिन पद, मागु., गा. ४, पद्य, मूप्पू., (परमातम पद) २६७५-११
साधारणजिन पद, मागु., गा. २५, पद्य, मुपू., (सुन्दर देस)
२६७६-१८(+) साधारणजिन पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ( अब क्या कह )
२६७५-३७
५७९
साधारणजिन पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मृपू., (अरी मेरी) २६७५
२०
साधारणजिन पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै, (जाग जाग रे )
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९१५६
साधारणजिन पद प्राहिं, गा. ६, पद्य, मृपू. (जिन आपकुं)
६७६७-१७
साधारणजिन पद, प्राहिं., गा. ७, पद्य, जै., (टुक दिलकी) २३४२-६७
साधारण जिन पद प्राहिं, गा. ३. पद्य, मृपू. (दरसण देख)
"
"
($)
६०८०-३
"
साधारणजिन पद प्राहिं, गा. ३, पद्य, मृपु. ( पायो दरसण ) २६७५-४६
साधारणजिन पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (प्यारे आय) २६७५
२६
साधारणजिन पद प्राहि. गा. ५, पद्य, जै.. (प्राप्त भयो) २३४२
७८
साधारणजिन पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (बिन देखे) २३४२-३ साधारणजिन पद, प्राहिं., पद्य, जै., (मेरा चसमो) २३४२-८८ साधारणजिन पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (ये अरजी मो)
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२३४२-१६०
साधारणजिन पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (लगजा श्रीग) २०१२-२०
"
साधारणजिन पद प्राहि. गा. ४, पद्य, मृपु. ( लागी जाउछ) ६०४९-१९
($-)
"
साधारणजिन पद प्राहिं, गा. ३. पद्य, भूपू (होरी मेरो) २६०५३६
साधारणजिन पद, मु. आनन्द, राज., गा. ३, पद्य, मूप्पू., (मनुवा जिनन) २३४२-६९
साधारणजिन पद, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ३, पद्य, मूप्पू., (मेरो निरञ) १४८४-११
साधारणजिन पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं, गा. ३, पद्य, मूपू., ( अब मेरे पत) ६७२९-४१, ६२३०-६
"
(२) साधारणजिन पद-स्वार्थ, मागु गद्य, भूपू (लाभानन्द ) ६७२९
साधारणजिन पद, मु. आनन्दरतन, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( प्रभुजी) २६७५-४९
साधारणजिन पद, कमलापति, राज, गा. ५. पद्य, जै., (मोह भरोसो) २३४२-१६
"
साधारणजिन पद, किसनो, मागु गा. ४, पद्य, भूपु. (जिन देख्या) २६७६-११(+)
साधारणजिन पद, पाठक क्षमाप्रमोद, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू.. ( मान्यो जिन) ७५५५-३८१
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५८०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ साधारणजिन पद, मु. खुशालराय, प्राहिं., गा. २, पद्य, मूपू., साधारणजिन पद, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अखीया मेरी) २६७५-२२
(क्युं जिन) १४९२-२६(4) साधारणजिन पद, गुलाब, प्राहि., गा. ३, पद्य, मूपू.. (येसै साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. १, पद्य, मतवाल) २३४२-१४१
मूपू., (वाला रूपशा) ६७६७-५० साधारणजिन पद, मु. जगतराम, प्राहिं., गा.३, पद्य, मूपू., (आई । | साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ८, पद्य, वसन्त) २७९२-३२
मूपू.. (अब में साच) ६७६७-४२, ९१६५-४७६ साधारणजिन पद, मु. जगतराम, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कैसैं साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ३, पद्य, वस) २७९२-४५
__ मूपू., (जिन तेरे) ६७६७-३५, ९१६५-४०६) साधारणजिन पद, मु. जगतराम, प्राहि., गा.
साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहि., गा. ५, पद्य, नर जिन) २७९२-३८
मूपू., (जीउ लागी) ६७६७-५७, ९१६५-७० साधारणजिन पद, मु. जगतराम, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ४, पद्य, (दरशन कोउ) २३४२-७९
मूपू., (प्रभु तेरो) ६७६७-८ साधारणजिन पद, मु. जगतराम, प्राहि., गा. ५, पद्य, मूपू., साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं.,गा. ४, पद्य, (म्हारी गति) २३४२-१०९
मूपू.. (प्रभु मेरे) ६७६७-७ साधारणजिन पद, मु. जगतराम, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहि., गा. ५, पद्य, (श्रीअरिहन) २३४२-८०
मूपू.. (मेरे प्रभु) ६७६७-५८, ९१६५-९(5) साधारणजिन पद, मु. जगराम, मागु., गा. ४, पद्य, स्था., (पूजो साधारणजिन पद, ऋ. रतनचन्द, प्राहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (ओर चरन) २७९२-३१
देव की) ६०९५-१८ साधारणजिन पद, मु. जिनदास, प्राहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (तुम साधारणजिन पद, मु. रतन-शिष्य, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., चरनन) २३४२-१३८
(अरजी सुनो) २३४२-९ साधारणजिन पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., साधारणजिन पद, मु. रुपचन्द, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज (दरशन दोहिल) २३४२-१२९
__ घरे नाथ) ६००१-५९ साधारणजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., साधारणजिन पद, मु. रुपचन्द, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.. (तुम (होरी के खि) २६७५-४४, २७९२-३३६)
जुग) २७०२-४ साधारणजिन पद, गणि जिनहर्ष, प्राहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (हो साधारणजिन पद, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ४, पद्य, जै., (हुं तो प्रभु) २६७५-३५
तेर) ६०१७-४६) साधारणजिन पद, मु. ज्ञानउदय, मागु., गा.३, पद्य, मूपू., साधारणजिन पद, मु. रूपचन्द, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., (अबतो (प्यारा ते) २६७५-२७
निभाय) २३४२-५८ साधारणजिन पद, मु. ज्ञानसार, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (घर साधारणजिन पद, मु. रूपचन्द, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जल आवो ढोल) २६७५-२५
विन कमल) २३४२-१४ साधारणजिन पद, मु. दोलतराम, मागु., गा. ३, पद्य, जै., (घडी साधारणजिन पद, मु. रूपचन्द, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., घडी पल) ६०८०-४६)
(निरंजन यार) २७९२-२१ साधारणजिन पद, मु. दौलत, प्राहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (सरण साधारणजिन पद, मु. लालचन्द, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., जिनराज) २७९२-३६६
(डोलत जीवडा) २६७५-३२ साधारणजिन पद, मु. द्यानत, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मे तो साधारणजिन पद, मु. विनय, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जागो तेरी) २३४२-१५२, २७९२-५९5)
प्यार) ६७६७-६१, ९१६५-२६७ साधारणजिन पद, मु. नवल, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (एही साधारणजिन पद, मु. विनयचन्द, राज., गा. ७, पद्य, जै., सभाव) २७९२-१७
(रेखता कर) २३४२-१३ साधारणजिन पद, मु. भूधर, प्राहि., गा. ४, पद्य, जै., (जप माला | साधारणजिन पद, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., गा. ८, पद्य, जि) २३४२-११०
मूपू., (सुणि जैन) ६७६७-१६ साधारणजिन पद, मु. भूधर, प्राहि., गा. ४, पद्य, जै., (जिनराज साधारणजिन पद, उपा. समयसुन्दर गणि, प्राहिं., गा. ५, पद्य, ना) २३४२-९०
मूपू.. (रूप वण्यो ) ७५५५-५४+६)
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५८१ साधारणजिन पद, मु. सिवचन्द, प्राहि., गा. ३, पद्य, मूपू.. (तेरी | साधारणजिन स्तवन, मु. सुखसागर, प्राहि., गा. ५, पद्य, मूपू.. सुरत) २६७५-५२
(रागद्वेष) २७९२-५६) साधारणजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (दर्शन | साधारणजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिविजय, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., किया) २३४२-८४
(चितराजा सु) ६०८७-३३० साधारणजिन पद-आत्मनिन्दागर्भित, मागु., गा. ३, पद्य, जै., साधारणजिन स्तवन, मु. हर्षकीर्ति, राज., गा. १३, पद्य, मूपू., (मनमोहन जिन) ४३७-२)
(जिण जपि जि) ६००८-१९ साधारणजिन पद-साचादेव, मु. भागचन्द, प्राहि., गा. ४, पद्य, साधारणजिन स्तवन-जिनवाणी महिमा, कवि कान्त, मागु., गा. जै., (बुधजन पक्ष) २३४२-१०६
५, पद्य, मूपू., (जिणन्दा तो) ६०६८-८ साधारणजिन रेखता, मु. नवल, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (करु साधारणजिन स्तवन-देवनाटक विचार, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., आराधना) २३४२-८३, २७९२-१९
___गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभु आगल) ६०१७-२९(१), ६०३५-९६) साधारणजिन लावणी, मु. जिनदास, राज., गा. ५, पद्य, मूपू.. साधारणजिन स्तुति, मागु., गा. १०, पद्य, जै., (दुखहरण जिण) (मनसुण रे) २३४१-११
६०५९-१४ साधारणजिन विनती स्तवन, पं. भूधर, मागु., गा. १८, पद्य, जै... साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभूवनगु) ६०६०-३६
(चम्पक केतक) १७९२-१६, २६२६-३२, १४८५-४११, साधारणजिन सवैया, मागु., पद्य, म्पू., (आदी को राय) ४९९३- १८०३-६, ५४९०-२१, ६०११-३५, ६४६०-२९, २३३६-३८,
१७९१-२१, ५४८९-२२७, ६०४१-११%, ७५४४-२६) साधारणजिन स्तवन, मागु.. गा. १७, पद्य, मूपू., (जम्बूयद्वी) साधारणजिन स्तोत्र, प्राहिं., गा. १०, पद्य, मूत.. (इन्द्रं नर) ४३११-३
६०५९-८७ साधारणजिन स्तवन, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु तुम) साधारणजिन होरी, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिणन्दसु) ६०८८
२७९२-१४ साधारणजिन स्तवन, प्राहिं., गा. ८, पद्य, जै., (प्रभु मेरी) ६००८- | साधु आचार १०८ बोल, राज., गा. १८०, प+ग, जै., (जति १५
थइनै) ५४१४ साधारणजिन स्तवन, प्राहि., गा. ५, पद्य, मुपू., (मुजे हे चा) साधु कालधर्म विधि, मागु., गद्य, मूपू.. (ज्यारे साध) ८४०८ २७९२-४१
साधु कालधर्म विधि श्वे.मू.पू., मागु., गद्य, मूपू., (सोनावाणी) साधारणजिन स्तवन, मु. उदयरतन, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., ५०६८-२ (पामी प्रभु) ६०४९-९
साधुगुण पद, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., (गहि सुधग्य) ६०५९-९१) साधारणजिन स्तवन, मु. कमलविजय, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., साधुगुण पद, चान्दमल, प्राहि., गा. ७, पद्य, जै., (एसे सन्त) (तार तार जि) ६०८२-३
३१२९-४३७ साधारणजिन स्तवन, मु. जिनचन्द्र, राज., गा. ५, पद्य, मूपू., साधुगुण सज्झाय, आ. आनन्दविमलसूरि, मागु., गा. १६, पद्य, (सुगुण सनेह) ६०८६-४६
मूपू., (श्रीजीनवरन) ७५५२-१०७) साधारणजिन स्तवन, मु. जिनदास, प्राहि., गा.३, पद्य, मूपू., (मे। साधुगुण सज्झाय, ऋ. आशकरण, प्राहिं., गा. १०, वि. १८३८, दास तमा) २३४१-२९
पद्य, जै., (साधुजीने) ६०५७-४ साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, प्राहिं., गा. ६, पद्य, मूपू... साधुगुण सज्झाय, ऋ. चन्द्रभाण, राज., गा. २५, वि. १८६७, (खतरा दूर) २७९२-८)
पद्य, जै., (समताधारी) ७५५८-११) साधारणजिन स्तवन, पं. दीपविजय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., साधुगुण सज्झाय, गणि मान, मागु., गा. १८, पद्य, मूपू., (कईयै (जिमतिम प्र) ८६३१-५
मिलस) ६७०९-२४ साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचन्द, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मागु., गा. १५, पद्य, जै., (यातन काची) ९१५६-२५)
(सकल देव जि) ५८७९-२६) साधारणजिन स्तवन, मु. वलभ, मागु., गा. ७, वि. १८४०, पद्य, साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., मुपू., (चालो सहेली) ६०६८-१७
(पाञ्चे इन) ६०२९-१२) साधारणजिन स्तवन, पं. वीरविजय, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., साधुगुण सज्झाय, पं. सिंहविजय, मागु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (प्रह (मे बी सेवक) ६०६८-१
उठी) ६५१२-९
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१७
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ साधुचारित्रीया १३ नाम, मागु., गद्य, मूपू., (साधू चारित) ७५०९- | साधुसाध्वीआचार ७ बोल विचार, आ. हीरविजयसूरि, मागु., वि.
१६४६, गद्य, मूपू., (सं.१६४६ वर) ५०१५ साधु पद, मागु., गा. ८, पद्य, जै.. (ऐसै मुनिवर) ६०८०-७७) सामायिक के दृष्टान्त, राज., गद्य, मूपू.. (--) ७०८५७० साधुपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., सामायिक सज्झाय , मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमी गोत) (दिग गिरि) ६५९३-१३
६०९५-२३(७) साधुपद चैत्यवन्दन, पाठक हीरधर्म, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., सामायिक सज्झाय , मु. कमलविजय-शिष्य, मागु., गा. १३, पद्य, (दसण नाण) ६१३२-५, २१२८-१५
मूपू., (प्रणमिय) ७५६२-५, ६०८७-२४६) साधुपद स्तवन, मु. कुशल, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (निकषाया सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., जग) २१२८-१६
(सामायिक मन) १७९५-३८, ६०२८-३, ८९२९-३, ३२९०-३६) साधुपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ८, (समतासागर) ६५९३-१४
पद्य, मूपू., (चतुर नर सा) ६७६७-५२, ८९७०-२", ९१६५साधुपद स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू.. (सुमति गुपत) २१२८
साम्ब प्रद्युम्न प्रबन्ध, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., खण्ड २खंड, साधुपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., २२ढाल, गा. ५३५, ग्रं.८००, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (सुरतरु सम) ६१३२-१४, ६५९३-१५।
(श्रीनेमीसर) २३९०+२), ७१०२+5), ४४६३, ७८८५-१, १९७१, साधुबारहप्रतिमा, मागु., गद्य, मूपू.. (पहिलि प्रत) ६०५०-३
९१३३, ७३७२७, ७९३३(), ७२१७(१) साधुमर्यादापट्टक, आ. देवसूरि, मागु., वि. १६७७, गद्य, मूपू., | साम्ब प्रद्युम्न रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., २ खंड/५३ (सं.१६७७ वर) ५०३८
ढाल, गा. ११८०, वि. १६५९, पद्य, मूपू.. (सकल मनोरथ) साधुवन्दना, मागु., गा. २४९, पद्य, मूपू., (वन्दिय गुर) ५९२४१) ७८४३ साधु वन्दना, मु. कल्याण, मागु., ढाल ७, वि. १६९६, पद्य, मूपू., साम्ब प्रद्युम्न रास*, मागु., पद्य, जै., (-) ६९८८१६) (पय प्रणमी) ५६५९
सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुन्दर, मागु., गा. २३७, वि. साधुवन्दना, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., ढाल ७, गा. ८८, पद्य, १५४८, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श) ६४०३, ७०४७ ।।
मूपू.. (रिसहजिण पम) ५९८३-६, २७३, ५९६२, ८४९७, सासुवहु सज्झाय, मागु.. गा. १७, पद्य, मूपू., (सासु कर बह) ९०७२, ८९४३-१, ७५५३-१६०, ६०५१-१२७, ६८९६६)
६०६४-६९) साधुवन्दना, वा. राजसागर, मागु., गा. ३३६, वि. १६८१, पद्य, सासुवहु सीखामण सज्झाय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुणज्यो मूपू., (समरविसहि) ५५४५-१
हे) ६०५२-४६ साधुवन्दना, मु. श्रीदेव, मागु., ढाल १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू., सिंहराजा चौपाई, वा. कवियण, मागु., वि. १६४४, पद्य, मूपू., (पञ्च भरत) ४३१७), ६७१७, १३६२
(श्रीलम्बोद) ७३१९ साधुवन्दना, मु. श्रीधर, मागु., गा. १६३, पद्य, मूपू., (पढम नाह | सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, आ. सिद्धिसूरि, मागु., पद्य, मूपू., (-) सि) ९०६०
९१८४ साधुवन्दना, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., गा. १४४, पद्य, मूपू., सिंहासनबत्रीसी, गणि सङ्घविजय, मागु., गा. १५४७, ग्रं.१६००, (तुं जिनवदन) ३०८६(७)
वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सकल मङ्गल) ३३७५, ८७६१) साधुवन्दना, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ढाल १८, गा. ५१९, सिंहासनबत्रीसी कथा, मागु., ३२कथा, पद्य, जै., (पंचाख्यान) _ वि. १६९७, पद्य, मूपू., (शान्तिनाथ) ४५९६
१९८१ साधुवन्दना चौपाई-चौवीसजिन, ऋ. कुंवरजी, मागु., गा. २४६, सिंहासनबत्रीसी चौपाई, मु. विनयलाभ, मागु., खण्ड ३, ढाल वि. १६२४, पद्य, स्था., (त्रिभुवनमा) २९१९, ५८७९-१(5)
६८, वि. १७४८, पद्य, मूपू.. (आदि जिणेसर) १३६९ साधुवन्दना बडी, ऋ. जेमल, मागु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, सिंहासनबत्रीसी चौपाई-दानाधिकारे, पं. हीरकलश, मागु., गा. जै., (नमुं अनन्त) २११४-१, ६३५४
२४३०, ग्रं.३५००, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (आराहि श्री) साधुवन्दना रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., ढाल १४, गा. ५०२, ४१७३१), १५२०, ५१४० पद्य, मूपू., (शासननायक) ६४८३
सिद्ध के १५ द्वार बोल, मागु., गद्य, मूपू., (अणन्तर सीझ) ३३१६ साधुषट्कायसंयम होरी, मु. विनयचन्द, मागु., गा. १४, वि. सिद्धचक्र चैत्यवन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, १९वी, पद्य, जै., (ऐसै मुनिरा) २३४१-४८
मूपू., (शिव सुखदाय) ९४८-१२
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५८३ सिद्धचक्रपूजन विधि, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम उष्ण) २०९४ (आसो चैत्र) ६०४१-१४ सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मागु., गा. ५, पद्य, | सिद्धपद के आठगुण, मागु., गद्य, मूपू., (नमो सिद्धा) ४६९१-७) मूपू., (नवपद महिमा) ९०००-१६७
सिद्धपद चैत्यवन्दन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., सिद्धचक्र स्तवन, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवपद महिमा)
(ह्रस्वाक्ष) ६५९३-४ २०९५-६
सिद्धपद चैत्यवन्दन, पाठक हीरधर्म, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., सिद्धचक्र स्तवन, मु. आणन्दरुचि, मागु., गा. ११, वि. १७४२, (श्रीशैलेसी) ६१३२-२, २१२८-६० पद्य, मूपू., (सरसति साम) ९०५६-३()
सिद्धपद स्तवन, मागु., गा. १३, पद्य, जै., (जगत भूषण) १९७६सिद्धचक्र स्तवन, पण्डित उत्तमसागर, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., | ३, ६०५९-११ (सकल कुशल) ९०००-१९
सिद्धपद स्तवन, उपा. चारित्रनन्दि, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., सिद्धचक्र स्तवन, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मागु., गा. १०, पद्य, (शुद्ध सरूप) ६५९३-५ मूपू., (नवपद महिमा) ६०६८-११, ६०८६-६१
सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, प्राहिं., गा. १६, पद्य, मूपू., सिद्धचक्र स्तवन, मु. कान्तिसागर, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम) ७५४५-१ (वीर जिणन्द) ९०००-१५
सिद्धपद स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू.. (अष्ट करमकु) २१२८सिद्धचक्र स्तवन, मु. केशरविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी सारद) २३४०-१७
सिद्धपद स्तुति, उपा. चारित्रनन्दि, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., सिद्धचक्र स्तवन, मु. ज्ञानविनोद, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू.,
(निज भाव वि) ६१३२-११, ६५९३-६ (गौतम पूछत) २०९५-७
सिद्धान्तसार सज्झाय, ऋ. जेष्टमल, मागु., ढाल ५, वि. १८७८, सिद्धचक्र स्तवन, वा. भोजसागर, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू.,
पद्य, मूपू., (चरण कमल जि) ८५५८, २१२४-२६) (सिद्धचक्र) १४८९-४, २१०६-२)
सिद्धान्तसारोद्धार, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम जम्ब) १८१५ सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मागु., गा. ११, वि. १४१७, सिद्धान्तसारोद्धार, मागु., गद्य, मूपू., (सात कारणे) ५४२५ पद्य, मूपू., (सकल सुरासु) ६००१-१२, २१०६-१७)
सिद्धान्तसारोद्धार विचार, राज., गद्य, मूपू., (एक बोल रे) सिद्धचक्र स्तवन, कवि हिम्मत, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भवी १८४०+#$-) जिव जप) ६०७९-१
सीतासती कृत आलोयणा, मु. कुशल, मागु., ढाल ६, पद्य, मूपू., सिद्धचक्र स्तुति, मु. उत्तमसागर, मागु.. गा. ४, पद्य, मूपू.,
(सती न सीता) ८३८१-१ (श्रीसिद्धच) १७९२-१०१, २०९५-४, ६०८८-८, २३३६-४६, सीतासती गीत, मु. जिनरङ्ग, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (छोडी ६०४१-१३
___ हो पि) ७५५५-६ सिद्धचक्र स्तुति, गणि कान्तिविजय, मागु., गा. ४, वि. १८उ., सीतासती चरित्र, मु. मयाचन्द, मागु., ७/ २२ ढाल, गा. ५२६८, पद्य, मूपू., (पहिले पद) १८०३-१४, २३३६-५०
ग्रं.६८६१, वि. १८००, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनै) ३७१) सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., सीतासती चौपाई, मागु., गा. ८०६, वि. १६२८, पद्य, जै., (सकल (निरुपम सुख) २९९७-२१, ५४९०-३२, ५८२७-२४, ६०११- मनोरथ) ४६४९, ४६५६१
सीतासती पद, राज., गा. ६, पद्य, (सीताने कोन) २३४२-३१ सिद्धचक्र स्तुति, पं. जिनविजय, मागु.गा. ४, वि. १८वी, पद्य, सीतासती पद, मु. विनयचन्द, प्राहि., गा. ५, पद्य, जै., (राम मूपू., (वीर जिनेसर) ५०४७-२, ६०८८-१०
___अयोध्य) २३४१-४४ सिद्धचक्र स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., सीतासतीशील सज्झाय, गणि जिनहर्ष, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अरिहन्त नम) २०९५-५
(जलजलती मलत) १७९८-२, ६००४-२८६) सिद्धचक्र स्तुति, उपा. नयविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., सीतासती सज्झाय, मु. उदयरतन, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सासननायक) २३३६-५१
(जनकसुता हु) ६०५३-८), २३४०-१८, १७९८-१७, ६००४सिद्धचक्र स्तुति, मु. नेमिविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भाव भगते) २३३६-४७
सीतासती सज्झाय, मु. ब्रह्मदेव, प्राहिं., गा. १७, पद्य, जै., सिद्धचक्र स्तुति, मु. भाणविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.,
(सोमाको दान) २६७६-१७) (वीरजिणेशर) २३३६-४९
सीतासती सज्झाय, मु. भोजसागर, मागु., गा. २१, पद्य, मूपू., सिद्धचक्र स्तुति, मु. माणेकविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दशरथ नरवर) २८५-६६+६), ३१३०-८(8)
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५८४
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२
सीतासती सज्झाय, मु. विनयचन्द, मागु., गा. ११, पद्य, जै., (२) सीमन्धरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा-टबार्थ, उपा. (वेगवतीथी) २३४१-२४
यशोविजयजी गणि, मागु., गद्य, म्पू., (प्रणम्य पा) ३२२३६, सीतासती सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ८, पद्य, ३७३९(48) मूपू.. (छोडी हो पी) ७५४८-५७)
(२) सीमन्धरजिनविनती स्तवन १२५ गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, सीमन्धरजिन गीत, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुज हीयडो) मूपू., (हे श्रीसीम) ४३००, ८४०५, २७०४, ८९८३, ८१२९ ६०५२-३२
सीमन्धरजिन स्तवन, मागु., पद्य, म्पू., (श्रीसीमन्ध) ७५४३-४ सीमन्धरजिन गीत, पण्डित जयवन्त, मागु., गा. ५, पद्य, मुपू., सीमन्धरजिन स्तवन, मागु., पद्य, जै.. (श्रीसीमन्ध) ७५४२-१३६ (सगुण सोभाग) ६०२३-३६)
सीमन्धरजिन स्तवन, मु. उत्तमसागर, मागु., गा. २३, पद्य, स्पू., सीमन्धरजिन चैत्यवन्दन, मु. कान्तिविजयजी, मागु., गा. ५, पद्य, (श्रीसीमन्ध) ६०३५-३६) मूपू., (श्रीसीमन्ध) ५१०२-२
सीमन्धरजिन स्तवन, गणि ऋद्धिविजय, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., सीमन्धरजिन चैत्यवन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ६, पद्य, (चितहुं सन) ६०६७-२९ __ मूपू., (पहिला प्रण) ७५४०-३
सीमन्धरजिन स्तवन, मु. कान, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., सीमन्धरजिन चैत्यवन्दन, मु. हर्षविजय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (महाविदेहक) १७८२-७,६०३५-१०७, ९०००-६०
(पूरव दिशि) २३३७-१११), १११७-९, ६०४१-३४६, ६०४२-४६) सीमन्धरजिन स्तवन, मु. खीमा, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., सीमन्धरजिननुं स्तवन-१, कवि पद्मविजय, मागु., गा. ७, पद्य, (श्रीसीमन्ध) ५९२१-२ मूपू., (सुणो चन्दा) ६०८६-५५, ७५४५-१०, २३४०-९
सीमन्धरजिन स्तवन, मु. जसराय, मागु., गा. ७, पद्य, जै., सीमन्धरजिन पद, मु. भूधर, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू.,
(श्रीश्रीश) १८०४-५ (सीमन्धरस्व) २३४२-८५
सीमन्धरजिन स्तवन, मु. जिनचन्द्र, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., सीमन्धरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी (सुगुण सेनह) ९८०-१०
गणि, मागु., ढाल १७, गा. ३५०, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर) सीमन्धरजिन स्तवन, मु. जिनराज, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., २७२), ४३४९), ६१३६+६), २३७३) ।
(सीमन्धर कर) ११७६-४७ (२) सीमन्धरजिन विज्ञप्तिस्तवन-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, सीमन्धरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.,
मागु., ग्रं.१२०१, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) २७२), ६१३६६), (पूर्वविदेह) ६०९०-२ २३७३)
सीमन्धरजिन स्तवन, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., सीमन्धरजिनविनती स्तवन, मागु., पद्य, मूपू., (-) ३७४०) (सिमन्धरजीन) ६०८६-२६ (२) सीमन्धरजिनविनती स्तवन-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (-) सीमन्धरजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मागु., गा. ३२, वि. १८६५,
पद्य, मूपू., (सकल जगत पर) ८३९८-४ सीमन्धरजिनविनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्राहिं., गा. ५, । सीमन्धरजिन स्तवन, मु. भद्रबाहु, मागु., ढाल ४३, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (सीमन्धर वि) १७८२-६
(श्रीजैनेन) ५९२६ सीमन्धरजिनविनती स्तवन, गणि देवचन्द्र, मागु., गा. ९, पद्य, | सीमन्धरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ७. मूपू., (श्रीसीमन्ध) ६०६७-१२
पद्य, मूपू., (पुष्कलवइ) १७८२-८, ६०८६-२४, ७५४५-११ सीमन्धरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मागु., गा. १९, पद्य, सीमन्धरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ६, मूपू., (सफल संसार) ९८०-२, १७८२-५, १७८८-२), ७५५३- पद्य, मूपू.. (साचो स्वाम) ६०८६-२८
सीमन्धरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., सीमन्धरजिनविनती स्तवन, ऋ. रतनचन्द, मागु., गा. १३, वि. (श्रीसीमन्ध) ७५९१-३ १८५३, पद्य, जै., (पुण्डरीगिण) ६०५२-२३
सीमन्धरजिन स्तवन, ऋ. रायचन्द, राज., गा. १०, वि. १८२५, सीमन्धरजिनविनती स्तवन, ऋ. रतनचन्द, मागु., गा. ९, पद्य, पद्य, जै.. (पुरव माहाव) ६०६४-६७६) जै., (सीमन्धरजिण) ६०५२-२४
सीमन्धरजिन स्तवन, मु. लालचन्द, मागु., गा. ७, पद्य, जै., सीमन्धरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी (श्रीसीमन्ध) १८००-९६) गणि, मागु., ढाल ११, गा. १२५, ग्रं.१८८, पद्य, मूपू., (स्वामी | सीमन्धरजिन स्तवन, मु. विवेकविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., सीम) ३२२३), ३७३९१६), २७०४, ३९६९, ४३००, ४९८७, (श्रीसरसती) ६०७५-६ ६००१-४३, ६५१०, ८९८३, ८९८४-१, ८४०५, ८१२९७) | सीमन्धरजिन स्तवन, मु. सन्तोष, मागु., ढाल ७, गा. ४०, पद्य,
३७४०)
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
५८५ जै., (सुणि सुणि) ३२९०-२६)
(सुनन्दा मो) ३८६२ सीमन्धरजिन स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ९, पद्य, | सुपात्रदान सज्झाय, मागु., गा. १६, पद्य, जै., (सङ्खराजा) मूपू.. (धनधन क्षेत) ७५४५-१२
___७३९०-५सीमन्धरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मागु., ढाल ७, गा. ११५, सुपार्श्वजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., वि. १७१३, पद्य, मूपू.. (अनन्त चोवी) ३५३६, १३०४,
(जगतारण जिन) ७५४०-१० ६००१-१, ६०५१-१०
सुपार्श्वजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., सीमन्धरजिन स्तवन-विज्ञप्ति, कवि कमलविजय, मागु., गा. १०५, (श्रीसुपास) २३४२-१५ वि. १६८२, पद्य, मूपू., (स्वस्ति) ५१३० ।
सुपार्श्वजिन विवाहलो, आ. विनयदेवसूरि, मागु., गा. २५७, सीमन्धरजिन स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (पूर्व विदे) ५८२७- ग्रं.५८१, वि. १६३२, पद्य, मपू., (सुन्दर सुग) ५९४८+5,
७१०९६) सीमन्धरजिन स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (सीमन्धरस्व) सुपार्श्वजिन स्तवन, गणि जिनहर्ष, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., १८०३-१५, ६०८८-२५, ६४६०-१२
(साहिब हो) ७५४८-२६) | सीमन्धरजिन स्तुति, मु. शान्तिकुशल, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., सुपार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, पद्य,
(श्रीसीमन्ध) ६०८८-११, ७५४१-१०, २३३६-४, ६०४१-१७७, __मूपू.. (श्रीसुपास) १४८८-११ ९००५-२७
सुपार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ५, सुकुन विचार, मागु., गा. १५१, पद्य, (-) ७४०९-१(5)
पद्य, मूपू., (ऐसें सामी) ६७६७-७५ सुकृतकरणी पद, मु. विनयचन्द, राज., गा. ८, पद्य, जै.. (सुकृत सुबाहुकुमार चरित्र, ऋ. जैमल, मागु., ढाल ७, पद्य, जै., (नमु करलै) २३४१-३८
वीर सा) ७६९-१० सुकोशलमुनि सज्झाय, पं. देवीचन्द, मागु., गा. ५१, वि. १६०२, सुबाहुकुमार सज्झाय, मागु., गा. १३, वि. १८९५, पद्य, मूपू., (हवे पद्य, मूपू., (जम्बूदीप) ६०२५-२, ३१३०-२२६)
सुबाहु) ७५६१-१२(5) सुगुरुपच्चीशी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. २५, पद्य, मूपू., सुबाहुकुमार सन्धि, उपा. पुण्यसागर, मागु., गा. ८९, ग्रं.१४०, (सुगुरू पिछ) ८६९८-३
वि. १६०४, पद्य, मूपू., (पणमि पास) ४१४२-२, ५५८६, ५६७२ सुदर्शनशेठ चौपाई, ऋ. ब्रह्म, मागु., ढाल ३७, गा. ८३९, पद्य, सुभद्रासती चौढालिया, मागु., ढाल ५, पद्य, मूपू., (सिवसुख जै.. (श्रीजिणचरण) ८४०२
दाय) ७६९-४४, १९८३ सुदर्शनशेठ ढाल, मागु., पद्य, मूपू., (सुदरसण सेठ) ८९२६-२७ सुभद्रासती चौपाई, ऋ. लालचन्द, मागु., ढाल ७, वि. १८५८, सुदर्शनसेठ कवित्त, मु. रुप, मागु., गा. १२१, पद्य, मूपू.. (वान्दु पद्य, स्था., (अरिहन्त सि) ६९३८-१७) श्र) ४३८३, ७३०४, ६९९०
सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मागु., ढाल ४, वि. सुदर्शनसेठ रास, मु. दीपो, राज., गा. १२४, पद्य, मूपू., (वन्दु १७५९, पद्य, मूपू., (सरसति सामण) ६७०६, २३७२-३६) श्री) ७२७४६)
सुभद्रासती सज्झाय, मागु., गा. १३, पद्य, जै., (आज्ञा मागे) सुदर्शनसेठ रास, मु. मुनिसुन्दरसूरि-शिष्य, मागु., गा. २५५, वि. ६०६४-५४ १५०१, पद्य, मूपू., (पहिलउं प्र) ५६२१, ६८४९६
सुभद्रासती सज्झाय, गणि कान्तिविजय, मागु., गा. २०, पद्य, सुदर्शनसेठ रास, मु. विजयशेखर, मागु., गा. २०९, वि. १६८१, मूपू., (बुधीदायक) ११७६-३३ पद्य, मूपू., (प्रणमुं ऋष) ३३९१
सुभद्रासती सज्झाय, मु. परमसागर, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., सुदर्शनसेठ सज्झाय, मु. नन्दलालशिष्य, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (मन समरी रे) १३४१-६(5) (सुदर्शन) ३१३३-१०48)
सुभाषित, मागु., पद्य, जै., (प्रथम कोड) ११४० सुधर्मागणधर भास, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ज्ञानादिक) ७५५४- सुभाषित दोहा पचहत्तरी, प्राहि., श्लोक ७५, पद्य, मूपू., (ज्ञान
___ पदार) ८६४७-२७, २७९२-६१(६) सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. देवचन्द्र, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., सुभाषित पद, राज., गा. ३, पद्य, वै., (अब तो स्या) २३४२-१४० (सासन नायक) ७५५४-३७
सुभाषित पद, मागु., गा. १, पद्य, जै., (हेत महन्त) ३३४०-२ सुधर्मास्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., सुमङ्गलमुनि सज्झाय, मु. महिमासिङ्घ, मागु., गा. १७२, वि. (राजग्रही) ७५५४-११
१६१९, पद्य, मूपू., (प्रणमिय) ४३५७ सुनन्दासती रास, मु. गुणसागर, मागु., ढाल ११५, पद्य, मूपू., | सुमतिकुमति लावणी, जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (हारे
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६४३२-३)
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ तुं) १८००-२२
सुविधिजिन स्तवन, मु. रूपचन्द, प्राहिं., गा. ३, पद्य, जै., सुमतिजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू.. (मुजरा साहि) १३४२-१६, ९१५६-८६) (मेघराय अयो) ७५४०-८
सुसढमुनि कथा, गुज., गद्य, मूपू., (राजग्रही) १९८२ सुमतिजिन पद, मागु., गा. ७, वि. १८९९, पद्य, मूपू., (नग मे । सूतक विचार, मागु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म) ५६५-२ आनन) २६७५-३९
सूरप्रिय कथा लोभविषये, मु. रामचन्द्र, मागु., ढाल ५, वि. सुमतिजिन पद, मु. रूपचन्द, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुजरा १९४९, पद्य, मूपू., (अरह अरि अर) ७५५९-८ ___ साहि) २७९२-९६)
सूर्ययशानृप रास-पर्वाराधनविषये, वा. उदयरत्न, मागु., ढाल १७, सुमतिजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहि., गा.४, पद्य, मूपू., (निरखत गा. २३३, वि. १७८२, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धि) ४०११) बदन) २७९२-५१७
सोहमकुलरत्न पट्टावली रास, पं. दीपविजय, मागु., अध्याय ४/ सुमतिजिन पद, मु. हर्षचन्द, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभुजी उल्लास,६५ ढाल, पद्य, मूपू., (स्वस्ति) ११००-१ जो) २३४२-७६,२६७५-१३
सौभाग्यपञ्चमीपर्व व्याख्यान, मागु., गद्य, मूपू., (भव्यैरासाद) सुमतिजिन स्तवन, मु. जसवन्त-शिष्य, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुमती जिणे) ६०७९-८
स्तवनचौवीसी, मागु., २४ स्तवन, पद्य, मूपू., (-) ७२४६६ सुमतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ७, पद्य, पू., स्तवनचौवीसी, मागु., २४ स्तवन, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनतत) (प्रभुस्युं) ६०७९-६, ६०८६-५
५९४१-१ सुमतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ५, पद्य, | स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु.. २४ स्तवन, वि. १८पू, पद्य, ___ मूपू., (सुमतिनाथ) १४८८-१०, ६०८६-१२
मूपू., (ऋषभ जिनेश) २८११, २७५४-१५), ४९४७), ५१२६"), सुरपति राजा रास-दानधर्मे, मु. दामोदर, मागु., वि. १६६५, पद्य, २२६२, ४६९८७, ११२१, १२३३, १४८८-१, ३१९४, ३४३१, मूपू., (प्रणमुं) ७००२)
५०५०, ७७३५-१, ८७९३, ८७९५, ५०५२, ६६३०, ८५५१), सुरसुन्दरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मागु., अध्याय ४, ढाल ४०, गा. ६२६४६), ५१६०, ८६८६६)
६१९, ग्रं.९००, वि. १७३६, पद्य, मूप., (सासण जेहनउ) (२) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., ग्रं.८२८, ४०३३), ८२९६(48), ९३०९, ६६०३, ४५७२, १०८६६)
गद्य, मूपू., (आनन्दघघनस) २८११), २७५४-१५), ४९४७), सुरसुन्दरी रास, ऋ. दोलतराम, मागु., पद्य, जै., (सान्ति जिन) २२६२**), ४६९८६), ११२१, १२३३, ३१९४, ३४३१, ८७९५, ६९३८-२(5)
५०५२ सुरसुन्दरी रास, मु. नयसुन्दर, मागु., ढाल २१, गा. ५१७, वि. स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मागु., २४ स्तवन, पद्य, मूपू., १६४४, पद्य, मूपू., (आदि धरमने) ५८९७१*), ३४३
(मरुदेवीनो) ९०६७१, ५८९९-५१, ८४५४ सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मागु., गा. १०, पद्य, स्तवनचौवीसी, मु. कमलविजय, मागु., २४ स्तवन, वि. १९४६, मूपू., (धन धन साची) १३४१-११+5)
पद्य, मूपू., (श्रीसखेश) ६०८२-१, ३९२३६) सुविधिजिन चैत्यवन्दन, मु. रूपविजय, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., स्तवनचौवीसी, मु. कवियण, मागु., २४ स्तवन, पद्य, मूपू., (सुविधी भली) ७५४०-१२
(साहिबा वाल) २१८४६) सुविधिजिन पद, राज., गा. ४, पद्य, मूपू., (वांके गढ) २३४२- स्तवनचौवीसी, चेतन, मागु., २४स्तवन, पद्य, जै., (सेवो रे भव) १२४
१४५६-१६) सुविधिजिन स्तवन, मागु., गा. ६, पद्य, म्पू., (आस्य करीने) स्तवनचौवीसी, चेतन, प्राहि., २४ स्तवन, पद्य, जै., (आज ऋषभ ६०१७-१०७)
___ जिन) १४५६-२६) सुविधिजिन स्तवन, मु. मोहनरुचि, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मागु., २४ स्तवन, पद्य, मूपू., (सुविधि जिन) ६०८६-५३
(मनमधुकर मो) १४८८-३, ५९७८, ८३९१-१, ८४५५१) सुविधिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., स्तवनचौवीसी, पं. जिनविजय, मागु., २४ स्तवन, वि. १८वी, पद्य, (अरज सुणो) ५४७-१०
मूपू., (नाभिनरेसर) १४२६-२, ५०४७-१ सुविधिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., गा. ५, स्तवनचौवीसी, पं. जिनविजय, मागु.. २४ स्तवन, ग्रं.२६०, पद्य, पद्य, मूपू., (में कीनो) ६७६७-७३
मूपू., (प्रथम जिणे) ४२४७७ सुविधिजिन स्तवन, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मे । स्तवनचौवीसी, मु. जिनेन्द्रसागर, मागु., २४ स्तवन, पद्य, मूपू., परदेसी) ९१५६-१४
(आदीसर सुखक) २१८३
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देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
स्तवनचौवीसी, मु. ज्ञानसार, मागु., २४ स्तवन, गा. ७६, पद्य, मृपू., (ऋषभ जिणन्द) ८३५५
स्तवनचीवीसी, मु. दानविजय, माग २४ स्तवन, पद्य, भूपू (महगल वेलि) २२१५
स्तवनचीवीसी, गणि देवचन्द्र मागु २४ स्तवन, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणिन) ४२०९(+#), १४८८-२, ८३३७-१, ९०४४, ५४४३, २११३
($)
(२) स्तवनचौवीसी - बालावबोध, मागु., २४स्तवन, गद्य, मुपू.,
(श्रीआदिनाथ) ५४४३
(#$)
"
"
स्तवनचीवीसी, गु. देवीचन्द्र, मागु पद्य, मृपू. (-) ७०६७/ (२) स्तवनबीबीसी - बालाचबोध, मागु, गद्य, मृपु (-) ७०६४ स्तवनचीवीसी, मु. धीरविजय, मागु. २४ स्तवन, पद्य, भूपू( विमलाचल रल) ५१७९
स्तवनचौवीसी, मु. न्यायसागर, मागु, २४ स्तवन, पद्य, मूपू.. (जग उपगारी) २३३८-१
स्तवनचीवीसी, कवि पद्मविजय, मागु. २४ स्तवन, पद्य, ग्रुप.
(ऋषभ जिनेश) २४८१, ८४४५
स्तवनचौवीसी, पं. पद्मविजय, मागु, २४ स्तवन, पद्य, मूपू.. ( जग चिन्ताम ) ३५९३ (क)
स्तवनचौवीसी, गणि मानविजय, मागु., २४ स्तवन, पद्य, भूपू., (-) ६२१८-१
"
($)
स्तवनचीवीसी मु मानविजय, मागु २४ स्तवन, पद्य, मृपू.. (ऋषम जिणन्द) ८३३९-१, २५८७, ६०३१-१, ८३३३-१, ६२९९६०१७-३६७१८६ स्तवनचीवीसी, पं. मुक्तिविमल, मागु, २४स्तवन, वि. १९७०, पद्य, भूपू., (--) ६२६७(S)
२२१४
स्तवनबीबीसी, मु. मोहनविजय, मागु २४ स्तवन, पद्य, मृपू.. (प्रथम तीर) १४९२-१ (+), स्तवनचीवीसी, मु. रामविजय, मागु २४ स्तवन, पद्य, मूपू.. (ओलगडी आदीन) ३१०२-१, ४२२८, २१०२० स्तवनचीबीसी, श्रा. विनयचन्द्र कुमट माग २४स्तवन, वि. १९०६, पद्य, जै, (श्रीआदिग्ध) २३२६, २३८२, २३९९ २११२-१, ६७२१, २४०६, ७०९० (5)
स्तवनचीवीसी, कवि सुन्दरदास, मागु. २४ स्तवन, पद्य, जै.. (आदेसर अवधा) ७५१६
स्तवनवीसी, मु. जसकीर्ति, मागु. २० स्तवन, वि. १७९०, पद्य, भूपू.. (सुजन सुजन) ७२७३
($)
स्तवनबीसी, मु. जीवणविजय, मागु. २० स्तवन, पद्य, मृपृ..
(श्रीसीमन्ध) ३६२५
स्तवनवीसी, गणि रत्नविजय, मागु, २० स्तवन, वि. १८१५, पद्य, भूपू.. (पूरब दिसई) ८३४
स्वपनवीसी अतीत, मु. देवचन्द्र, मागु २१ स्तवन, पद्य, मृ..
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( जिणन्दा ता ) ८४९९
स्तुतिचीबीसी, मु. दानविजय, मागु. २४ स्तुति जोडा, गा. ४०, पद्य मुपू. (श्रीऋषभजिण) ६४००
स्त्री गर्भज्ञान, मागु, गद्य (शुक्लपक्ष) २९४६-३
स्त्री चरित्र पद, कवि गद, मागु गा. १, पद्य, जै.. (त्रिया चरि)
१४८९-९
स्त्री लक्षण सवैया, मागु, परा, जे. टूटो सो छप) ३३३१-२ स्थलिभद्र (-) <प्रतहीन >
(२) स्थूलभद्र-कथा, मागु, गद्य, जै.. (हरिहर बम्भ) ५०४६ स्थूलभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मागु., ढाल ९, पद्य, मूपू., (करी श्रृङ) २८५-४६
स्थूलिभद्र कोशा सज्झाय, मु. दयाकुशल, मागु, गा. ५. पद्य, मृपू.. (कोस्या कहै ) ७८८५४
स्थूलभद्र गीत, मागु., गा. १७, पद्य, मुपू., (एक दिन सार) ५६६८-२
स्थूलभद्र नवरसो, वा. उदयरत्न, मागु., ढाल ९, वि. १७५९, पद्य, मृपू., (सुखसम्पत्त) २८५ -१ (+), ३६७- १, १३९९, ३३५५, ३५४८, ३९७३-१, ६००१-१७, २३५१, २७८३) स्थूलभद्र नवरसो ढाल एवं दोहायुक्त, वा. उदयरत्न, मु.
($+)
५८७
दीपविजय, मागु., ढाल ९ गा. ७४ वि. १७५९, पद्य, मूपू.. (सुखसंपति) ४०६१ (+)
स्थूलभद्र बारमासो, आ. लाभोदयसूरि, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., ( सखी रे साम) ६२०३-८ ($)
"
स्थूलिभद्र रास, मागु, पद्य, मृपू. (आस्विन आवि) ७६५३-४ स्थूलभद्र शीयलवेलि पं. वीरविजय, मागु, दाल १८, वि.
१८६२, पद्य, मूपू., (सयल सुहङ्क) २३८१, ८९६९ (+), ९०१४(+), ३३७६, ६००१-१६
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($)
स्थूलिभद्र सज्झाय, मागु, पद्य, भू.. (पाय प्रणमी ७५४६-८ स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. खुशालविजय, मागु, गा, १५, पद्य, मृपू., (एडवे गुरुन) ४९४९-२
स्थूलभद्र सज्झाय, गणि जिनहर्ष, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्राण प्या) ७५६२-२९
स्थूलिभद्र सज्झाय, गणि जिनहर्ष, मागु, गा. ११, पद्य, ग्रुप.. (भल ऊगो दिव) ७५४८-१६
($)
स्थूलभद्र सज्झाय, मु. ज्ञान, मागु गा. ७, पद्य, जै.. (कहे सखी पि) २६७-३ *
($)
स्थूलभद्र सज्झाय, पण्डित नयसुन्दर, मागु., गा. २२, पद्य, भूपू., (कोस्या काम) २८५-२५
(+$)
स्थूलभद्र सज्झाय, मु. नेमविजय, मागु., गा. १३, पद्य, मुपू., (सहज सलुणी) ११०१-५
स्थूलभद्र सज्झाय, पाठक रुघपत, मागु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सखीरी पाडल) ६७०९-२३
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५८८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., पाणी) १५१७ (चंपा मोर्य) २८५-३२-5)
हरिकेशीमुनि चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., ढाल १०, वि. १८२८, स्थूलिभद्र सज्झाय, गणि लब्धिउदय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., पद्य, जै., (अरिहन्त सि) ४५०५-२ (मुनिवर रहण) ७५६२-९, ९७९-६, ७५५२-४१)
हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मागु., ४ उल्लास ५९ ढाल, स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. शान्ति, मागु., गा. १४, पद्य, जै., (बोली | ग्रं.३७५१, वि. १८१०, पद्य, मूपू., (प्रथम धराध) ३३१०, गयो) ६०६७-४०
५२४८, ४३९०७, ८०५७) स्थूलिभद्र सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा.७, पद्य, हरिबल रास, मागु., पद्य, जै., (--) ६९६१६) मूपू., (प्रीतडली) १७९८-३६)
हरिबल रास, मु. कुशलसंयम, मागु., खण्ड ४, गा. ९२५, स्थूलिभद्र सज्झाय, कवि सहजसुन्दर, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू.. ग्रं.१०५०, वि. १५५५, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्र) ५६१४६ (चन्दलीया) ७८८५-३, १७९८-१३६, ६००४-३४६)
हरिबल रास, मु. जितविजय, मागु., गा. ८४९, पद्य, मूपू., स्नात्र पूजा, मागु., प+ग, मूपू., (पूर्वे बाज) ६९३६६
(सुखदाई समर) ४५४२ स्नात्र पूजा, मु. नगविजय, मागु., पद्य, मूपू., (सध्यानवि) हरिबल रास, मु. भावरतन, मागु., पद्य, मूपू.. (--) ७०४५७ २८९१, ५०९८
हरिभजन पद, प्राहिं., गा. ३, पद्य, वै., (सुनेरी मैन) ३१२९-१२%) स्नात्र पूजा, आ. मङ्गलसूरि, मागु., वि. १३वी, पद्य, मूपू., हरिश्चन्द्रराजा चौपाई, मु. कनकसुन्दर, मागु., ढाल ३९, गा.
(मुक्तालङ्क) ६५१७), २०९९-११), ३०९८, ४१३०, ५१६८ ७८१, वि. १६९७, पद्य, मूपू.. (पास जिणेसर) ७२६८() (२) स्नात्र पूजा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (मोतीनां आभ) ४१३० हरिश्चन्द्र राजा चौपाई, मु. प्रेम, राज., ढाल २३, वि. १८३४, स्नात्र पूजा, श्रा. वच्छ भण्डारी, मागु., गा. ७०, पद्य, मूपू.,
पद्य, जै., (आदेसर आदी) ३४५-२, ४३९७०, १९७७) (पवित्र धोत) २६९-१, २७२१, ५१०२-१
हरिश्चन्द्रराजा चौपाई, मु. विद्याकुशल, मागु., ढाल २४, वि. स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., ढाल ८, गा. ६०, १७६४, पद्य, मूपू., (परम प्रमोद) ३६७५
पद्य, मूपू., (चोतिसे अति) १७५४-१, ६०३३-१, ७७०४-१, हरिश्चन्द्रराजा रास, गणि लालचन्द, मागु., ढाल ३८, गा. ८९४, ८४३६-१, ८६२५-१, २१०७, ८९५०-१७, ७४९८-१)
वि. १६७९, पद्य, मपू., (शुभ मति आप) ७६५८ स्याद्वादमतचर्चा विचार, राज., गद्य, मूपू., (नास्तिकमति) १४७७ । हरिश्चन्द्रराजा सज्झाय, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वचन इसा स्वरोदय शास्त्र, मु. चिदानन्द, मागु., गा. ३८१, वि. १९०७, पद्य, | रा) ६०६४-७८६) मूपू., (नमो आदी अर) ६२६१-१, ६७४४
हरीबल चौपाई, मागु., पद्य, जै., (सन्तिजिणवर) ८७३७) स्वरोदय साधनिका, प्राहि., गा.६०, पद्य, (अथवा प्राण) ६२६१-२ | हितपच्चीसी, प्राहिं., गा. २५, वि. १८३५, पद्य, जै., (--) ६००६स्वार्थपच्चीसी, मागु., गा. २५, वि. १८६७, पद्य, मूपू., (भरत बाहुबल) ६०५२-४२
हितशिक्षाबत्रीसी, वा. क्षमाकल्याण, मागु., गा. ३३, वि. १९वी, स्वार्थ सज्झाय, मु. मानसागर, मागु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सेमुख ___पद्य, मूपू., (सकल विमल) ५४१३-२+) श्री) ६०८७-२२७
हीरविजयसूरि भास, मु. सहजविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., हंसकेशववृतान्त ढाल, मु. रामचन्द, मागु., ढाल ७, वि. १९४४, (आज सकल सिद) २८५-३७+5) पद्य, मूपू., (नमस्कार सम) ७५५९-३
हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मागु., गा. २०, हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., खण्ड ४/ढाल ___ पद्य, मूपू., (बे कर जोडी) ३१३१-७
४८, गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (आदिसर आदे) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मागु., गा. १५, वि. १७वी, ४१७११, ४३७५), ३०६, ३४१४, ३५४९, ६७६६, ७५३६, पद्य, मूपू., (मोहनगारो) ७५४६-३६) ९३१०, २९८३, ५२१२, ६४१०, ७७४५, ७३१३"), ३१६०(45), हीरविजयसूरि सवैया, प्राहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (गागेडेदि) ९४२०, ४६५९७, ५२२७६, ७१९३७, ७२५६७, ७२७९७,
३१३१-१५ ८८५८, ९२५५, ६८२१, ७२१५७
हुके का सवैया, प्राहिं., गा. २, पद्य, (हुक्का हर) ७५५७-२(9) हंसराजवत्सराज चौपाई, मागु., पद्य, जै., (-) ६९८७%) होडाचक्र वर्णमाला, मागु., सूत्र १२, गद्य, (चू चे चो) ६३४५-२, हंसावलि चरित्र, मागु., पद्य, मूपू.. (सरसति भगति) १४६५६) ४२१०-२६) हठिसिंहमन्दिर अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठा स्तवन, पं. वीरविजय, होरी पद, मु. ज्ञानसार, प्राहि., गा.४, पद्य, जै., (ईचरज होरी) मागु., ढाल ५, पद्य, मूपू., (विनय विवेक) ४२४९
२६७५-४५ हरखचन्दजीस्वामी धार्मिकप्रश्नोत्तर, राज., गद्य, स्था., (काचो | होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल ४, पद्य, जै., (प्रथम
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५८९
देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२
पुरु) ६१५८-३, ७५५६-७६) होलिकापर्व व्याख्यान, राज., गद्य, मपू., (लोक होलिका) ६७-२) होलिकापर्व व्याख्यान, राज., गद्य, मूपू., (होलिका फाल) ६५३७
२(6)
होलीपर्व सज्झाय, मु. रतनचन्द, प्राहि., गा. ७, पद्य, जै., (सुध
ग्यानी) ६०६४-४६
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