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प्रकाशकीय
जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के द्वितीय व तृतीय खंडों को परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के दीक्षा स्वर्णजयंती महोत्सव के प्रसंग पर चतुर्विध संघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है.
विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं की रक्षा करते हुए ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, वह भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है.
हमारे लिए यह अत्यंत सौभाग्य एवं गौरव का विषय है कि पूज्य गुरुदेवश्री की प्रेरणा से भारतभर के अनेक श्रीसंघों, संस्थाओं एवं महानुभावों ने इस संस्था पर अटूट विश्वास रखकर अपने पास सैकड़ों वर्षों से संगृहित अपनी प्राण-प्रिय विरासत को सुरक्षित करने व उसके श्रेष्ठतम उपयोग हेतु हमें सौंपा है. हमारा यह पूरा व भरसक प्रयास रहा है कि अनेक कठिन अवरोधों के बावजूद समाज द्वारा हम पर किए गए विश्वास को सार्थक व मूर्तिमंत करें.
ग्रन्थराशि के एक-एक ग्रंथ, एक-एक पन्ने तथा इनके टुकड़े भी हमारी अमूल्य धरोहर हैं. उसका जतन करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. इस के लिए पर्याप्त प्रयास किए जा रहे हैं एवं आगे भी जारी रहेंगे.
इस प्रकाशन कार्य में कम्प्यूटर आधारित तथा संस्था में ही विकसित किये गये विशेष प्रोग्राम के अंदर प्रविष्ट हस्तप्रतों की विस्तृत सूचनाओं के आधार पर चुनी हुई सूचनाओं को ही यहाँ पर प्रकाशित किया जा रहा है. समग्र सूची और भी अधिक विस्तार से ज्ञानतीर्थ के कम्प्यूटरों पर उपलब्ध है, जिनका आप कभी भी उपयोग कर सकते हैं.
हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रखरखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के सभी शिष्यों-प्रशिष्यों का विशेष योगदान रहा है. इन साधु-भगवंतों के परिश्रम एवं सूझबूझ के बिना यह कार्य अतिदुष्कर था, ऐसा कहने में संकोच नहीं होता. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों की प्रथम कच्ची सूची एवं बाद में पक्की सूची हेतु एक लाख से ज्यादा फॉर्म भरने का अहर्निश (अक्सर दिन में १८ से ज्यादा घंटे) वर्षों तक भगीरथ परिश्रम किया है. इतना ही नहीं प्रतों को प्रथम व्यवस्थित कर उन पर आवरण लगवाना, उनके पन्ने गिनना आदि कार्यों से लगाकर हर तरह के कार्य किए हैं. मुनिश्री का यह योगदान हस्तप्रत संरक्षण एवं सूचीकरण के क्षेत्र में एक मिसालरूप है. सूचीकरण हेतु कम्प्यूटर आधारित सूचना पद्धति विकसित करने में व अन्य जरूरी मार्गदर्शन हेतु मुनिराज श्री अजयसागरजी ने अपनी साधु जीवन की मर्यादा में रहते हुए अनमोल समय दिया है. पू. पंन्यासप्रवर श्री देवेन्द्रसागरजी का अपना योगदान है. विशेष तौर पर पू. मुनिराज श्री नयपद्मसागरजी का पूज्य आचार्यश्री के साथ रह कर हस्तप्रतों की संप्राप्ति आदि पूर्व प्रक्रियाओं में सहयोगी बनने रूप एवं ज्ञानमंदिर के उद्घाटन के समय अशक्य लगने वाले कार्यों को अदम्य खंत से शक्य कर दिखाने रूप अनेक तरह से उल्लेखनीय योगदान रहा है.. पू. पंन्यासप्रवर श्री अमृतसागरजी, पंन्यासप्रवर श्री अरूणोदयसागरजी, पंन्यासप्रवर श्री विनयसागरजी, गणिवर्य श्री अरविंदसागरजी, मुनिराज श्री महेन्द्रसागरजी तथा मुनिराज श्री प्रशान्तसागरजी ने भी अपना अवसरोचित योगदान दिया है. साथ ही पूज्य श्री के शिष्य-प्रशिष्य स्व. उपाध्याय श्री धरणेन्द्रसागरजी, आचार्यप्रवर श्री वर्धमानसागरसूरिजी गणिवर्य श्री विवेकसागरजी मुनिराज श्री विमलसागरजी, पद्मरत्नसागरजी, अमरपद्मसागरजी, रविपद्मसागरजी आदि सभी पूज्यवरों का अपनी-अपनी तरह से सहयोग रहा है. गणिवर्य श्री ज्ञानसागरजी के शिष्य मुनिप्रवर श्री हेमचन्द्रसागरजी का भी अपना सहयोग रहा है. श्रीसंघ एवं श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र द्वारा पूज्यवरों का यह उपकार कभी नहीं भुलाया जा सकेगा. एतदर्थ किसी भी प्रकार से कृतज्ञता प्रदर्शित करने के अतिरिक्त गुरुदक्षिणा देना हमारे लिए संभव नहीं है. आप सभी पूज्यों की अमीदृष्टि हमेशा इसी प्रकार इस तीर्थ हेतु बनी रहे यही करबद्ध प्रार्थना
है.
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