Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 2
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 475
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४५५ ८३५३(७), ३१८३(5), ११२(७), ६२३२(5) ६४६०-६, ६६२२-२, ७५४१-२, ८९५१-२, २३३६-५, ६०४१-४, (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ६०५१-३(७). ६४७८-६६.७९००-१६), २८४५-४) ग्रं.३८००, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (नत्वा श्री) ४१८५९), (२) ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीनेमीना) २५६०५०, १४२, ४८२६, ९१९४, ९२२०, २७९० ६०९४-१(45) (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-बीजक, मागु., गद्य, मूपू., (--) ११४(48) ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., ३२अष्टक, श्लोक २७३, (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार) ____ पद्य, मूपू., (ऐन्द्रश्री) १८२(+), ३५२७+), ८६०८(45) ३९५०), ४८७४(45). ८८२५(५६), २१६४+६), २०४९(+६), (२) ज्ञानसार-बीजक, सं., गद्य, मूपू., (-) ८६०८(5) २७४८(5), ७४३३(5), ११२(), ६२३२(5) (२) ज्ञानसार-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., ग्रं.१०४१०, गद्य, मूपू., गद्य, मूपू., (ऐन्द्रवृन) ३५२७+7 (प्रणम्य) ९२७८ ज्ञान सुखडी, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, मूपू., (प्रणम्य) ३९४६ (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., ज्ञानार्णव, आ. शुभचन्द्र, सं., सर्ग ४२, श्लोक २०७७, पद्य, दि., ग्रं.८५००, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ९०), १०९), ११०). (ज्ञानलक्ष) १५७+5) १११(+), १०१०(+), ९८५), ५८०६(45), ६५७, ४००८, ६५१६), ज्ञानीदसलक्षण श्लोक, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (अक्रोधवैरा) ८४९), ३८६९६), ८३५३(5) __१४८४-१३(5) (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, गणि प्रेमजी, मागु., वि. १६९९, ज्योतिष कुण्डली, प्रा.,मागु., कुंडली, (--) ५५१७-२+7 गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ९९+), ४५८९(+) ज्योतिष बन्धिचक्र, सं.,मागु., पद्य, (मुखाद्यङ्ग) ३६३१-२(+) (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-हिस्सा*, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., श्लोक २९४, पद्य, मूपू., (-)-<प्रतहीन.> (श्रीअर्हन) ४६२६(+), २००५-१६), ९०९२), २२९८(+4), (३) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-ज्ञातोपनय, प्रा., पद्य, मूपू., २०१३(+#), ३०२४(45), ७१८२(45), २८५७+5), ४५७, ४९५७, (उखित्तणाए) ९१४४ ५४६४, ५६६७, ५६९०, ५८८५, ९०९४, १२५७, ८२८६, ४३९२, (४) ज्ञातानामुद्धार-टीका, सं., गद्य, मूपू., (उक्षिप्त) ९१४४ १३३३, ६७५४-१, ५३११, ८३०१-२(45), १६२४७), ५१९०७), (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-प्रश्नशतक, मागु., गा. १०१, पद्य, ६४२७(5), ७४६९(5), ८१२६(5), ८२७३(5), ८३१४(६), २००१(६), मूपू., (ज्ञाताधर्म) २२६४-१(+) ७८७८) (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-भास, मु. प्रीतिविजय, मागु., अध्याय (२) ज्योतिषसार-यन्त्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचन्द्रसूरि, सं., १९ भास, २७ ढाल, गा. ६७२, वि. १७२१, पद्य, मूपू., गद्य, मूपू., (सरस्वतीं) ४६२६(+), २००५-१(+), २२९८(+#). (श्रीश्रुतद) ९१) ५४६४, ५६६७, ९०९४, ६७५४-१, ५३११, २९६०, ७८७८६६) (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-भास, ऋ. मेघराज, मागु., ढाल १९, (२) ज्योतिषसार-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (पडवा सठइग) ग्रं.५२५, पद्य, मूपू., (-) ५८९४(६) १२५७ ज्ञानदर्शनचारित्र स्थ, प्रा.,मागु., गा. १, प+ग, मूपू., (जेनाणं | (२) ज्योतिषसार-टबार्थ, मागु., गद्य, मपू.. (माहरो श्री) ३०२४), चिय) ७५३९-२० ८२७३(७) ज्ञानपंचमीतपउच्चरावण विधि, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, जै., (तिहां । (२) ज्योतिषसार-टबार्थ, मागु., गद्य, स्पू., (श्रीअरिहन) ४५७, प्रथ) ५०३३ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (पञ्चानन्तक) (२) ज्योतिषसार-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहन) ८३०१ २६२६-८(+), १४८५-२१(+), १७९४-३(१), २९९७-५+5), १७९९२(45), १७८९-६, ५४९०-४, ५८२७-३, ६०११-२७, १७९१-४६), (२) ज्योतिषसार-लघुनारचन्द्र ज्योतिष, सं.,मागु., प+ग, मूपू., १४८७-१४६६), ५४८९-२३(७), ६०९०-७(5, ७५४४-११(5) (अर्हन्तं) ६४३६(५), २७५१-१(4) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (समुद्रभुपा) (२) ज्योतिषसार-जन्मपत्री विचार, सं., गद्य, जै.. (-) ३६१८(5) ६०४१-३(5) ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अध्याय ३, श्लोक ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः) ३३७, ग्रं.५००, पद्य, मूपू., (तं नमामि) ७८४०-२, ५६५०-१(६), १७९२-४(+), २४७४-२(+), ६०९१-६(+), ६०९४-१(45), ६०८८-१८, ८३१४() ५६८२(5) For Private And Personal Use Only

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