Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 2
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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२२)
६००२-५५)
४९०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२ जै., (नवकारअक्खर) ८९८१-१(+)
(२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. श्रुतज्ञानतप कथा, सं., श्लोक ७७, पद्य, दि., (नत्वा जैनं) ६००२- देवेन्द्रसूरि, सं., ग्रं.२८००, गद्य, मूपू., (यद्भाषितार) ९०५४
४(+), ४७४४-१(45) श्रुतदेवी स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (कमलदल विपु) | (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., (-) ___७४४४-२(+), १७९१-२५५), ७५४४-२(5)
९१८६-३(5) श्रुतबोध, कालिदास, सं., श्लोक ४१, पद्य, (छन्दसां लक) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नमनि० ६१६८+), ९१४-१, ७३९५६)
तत्र) २३३३-४ (२) श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., | (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., (श्रीमत्सार) ६१६८५), ९१४-१, १७००७), ७३९५(६)
___ ग्रं.३१००, वि. १४५९, गद्य, मूपू.. (नव्यषडशीति) ८७५७-१(45) श्रुतस्कन्धतप कथा, सं., श्लोक ४८, पद्य, दि., (सन्मतिं ना) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, गणि शान्तिविजय,
मागु., गद्य, मूपू., (जिनप्रति) ९१७०-४ श्रुतस्कन्धतप विधान, सं., श्लोक ५६, पद्य, दि., (जिनेन्द्रग) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., ६००२-११(4)
(वीतरागदेव) ६५१९-२(+), ५३९३-४, ५९१७-४, ६५३०-४, श्रुतस्कन्धतप विधान, सं., गद्य, दि., (षट्कर्मोपद) ६००२-१७+) ७०९८-४(5) श्रृङ्गार श्लोक, सं., श्लोक २, पद्य, (हे कान्ति) ३१२२-२४) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मागु., श्रेयांसजिन प्रथमभव कथा, सं., श्लोक १४, पद्य, जै.. (अथ गद्य, मूपू., (प्रविगध्या) ८४२३-४(+) श्रेयां) ७२८५-३(5)
(२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., श्लोक सङ्ग्रह-, प्रा., पद्य, (-) ८१८६६)
गद्य, मूपू., (प्रणम्य शि) ९२६८-४(4). ३४९०-४ श्लोक सङ्ग्रह-, मागु.,सं., गा. ३, पद्य, (प्यार पाया) ८९४६-३(+) । (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (हवइं श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक, सं., श्लोक ३, पद्य, जै., (देहे निर्म) चउथा) २४८०-४(+), २९६९-४(+), ४८६२-४(+), ५२५०-४(+),
२५५-२(+), ६९२-२(+), ४४३०-२(+), ७५५१-२५(+), १८०८-२), ५२७३-४(१), १८२१(+), ५७१-२(45), ६५१८-४(45), १७५, ४६१, १८३०-२(+), १९६४-२+#), ७५९-३, ३५१०-२, ६०६१-२, ८८११- ४१२१, ८४११-४, ८४१५-४ २, १४८६-१, २०९२-२(१), ७२६०(#5), ३७८५-२६), ६०१८-६६), (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, उपा. जयसोम, मागु., गद्य, ३५५५-३(5)
मुपू., (नमिनिं जिन) ८४२३-४(+) षट्त्रिंशज्जल्पविचार सङ्ग्रह, मु. भावविजय, सं., वि. १६७९, | (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मागु.. गद्य, गद्य, मूपू., (ॐ नमः श्र) ७३९
मूपू., (वान्दीनइ) ३७३७-४(+), ५४३०-४+६), १५८१-४(+8), षट्पञ्चाशिका, आ. पृथुयशा, सं., अध्याय ७, श्लोक ५६, पद्य, ८६३२-४ (प्रणिपत्य) २१७८-१(+), ५५५२-२
(२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बासठमार्गणा सज्झाय, आ. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. ८६, पद्य, मूपू., अजितदेवसुरि, मागु., गा. ७३, वि. १६७४, पद्य, मूपू., (पय
(नमिय जिणं) २४६९-४(+), २४८०-४(+), २९६९-४(+). ३७३७- पङ्कज) ६०३२-५(445) ४(+), ४१२९-४(+), ४८६२-४(+), ५२५०-४(+), ५२७३-४(+). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ७अधिकार, श्लोक ८७, ५८४७-४(+). ५९०२-४५), ८४२३-४(+), ९२६८-४), १८२१(१), पद्य, मूपू., (सद्दर्शनं) ७७४(+), १५६ ।। ६५१९-२), ५७१-२(45), ५९११-५(45), ६५०६-४(+5). ८१३५- (२) षड्दर्शन समुच्चय-तर्करहस्यदीपिका टीका, आ. ४(+8), ५४३०-४(45), १५८१-४(45), ४७४४-१(48), ७३४४-४(+६), गुणरत्नसूरि, सं., ७ अधिकार, ग्रं.५७७३, गद्य, मूपू., (जयति ७८२७-३(45), ९०९९-४(45), ५९३९-४(45), ६५१८-४(45), १७५, विजित) ७७४(+), १५६ ४६१, २३३३-४, ३४९०-४, ४१२१, ४३०८-१, ४५६०, ५३९३-४, षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., गा. १६१, ७७७७-४, ७८७०-४, ८४११-४, ८४१५-४, ८६३२-४, ९१०३-४, पद्य, मूपू., (अरिहं देवो) २८१७+), ४१४०५), ४३०५), ९१७०-४, १६९३-४, ६५३०-४, ७८९१-४, ८४९६, १६१-४, ५०८०+), ५१३२(१), ५५४८(+), ८५५७, १०२४, ५२३९ १६४५-४(६), ७३७९-४(६), २८८४(६), ५००५-१(६), ७०९८-४(5), (२) षष्टिशतक प्रकरण-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू.. (सर्वज्ञदेव)
९१८६-३(5)
५०८०)
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