Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 2
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 449
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३३५४ www.kobatirth.org: संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्याय ३३, नं. १२२. प+ग, मृपू. (ते काले) १६११) ४४५५ण ५९४९१च ६४१५का ६६८४ईना २०५८का १६१० (क) १२१३/०१ ४४९९ (+), १२५४, १३०७, १६०९, ४०६६, ४२९४, ४४४२, ५३५०, ५६०९, २७१४, १०७६, ३०३१, २०४२ (M), ६८४४ (#S), २७४रामा ७१५७ ७१६४८ (२) अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि सं., वि. १२वी गद्य, मृपू. (अथानुतरी) १६११(+), ९२८१-३, ६५९ " 3 (२) अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र- टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथ) ४४५५(+), ५९४९(+), ६४१५(+), ६६८४(+), २०५८) ९२१३ ४०६६ ४२९४ ४४४२, ५३५०. ५६०९. १०७६. २०४२१ ६८४४२७४२७१५७१६४ अनुबन्धफल, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक १०, पद्य, मूपू., (उच्चारणेस) २२३९-२ (+) अनुयोगद्वारसूत्र आ. आर्यरक्षित, प्रा., गा. १६०४, प+ग, मूपू., (नाणं पञ्चव) ४४०६ (+), ४५१२(+), २०८१(+#), २२५५ (+), २०७० ५२४० ५४५०, ७३४३. ००६२५७३४२ (७०३६) 8 (२) अनुयोगद्वारसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, जै., (ना० ज्ञान) ७०६मा ७१७५ (२) अनुयोगद्वारसूत्र - टबार्थ, मु. धर्मसिंह, मागु., गद्य, मृपू., (वन्दितु जि) ४४०६ (२) अनुयोगद्वारसूत्रे- पञ्चभाव विचार, मागु, गद्य, मृपू.. (उदयभाव उपश) ६२१० " अनुयोग विधि, सं., प्रा., मागु, पद्य, भूपू ( वसतिशोधन ) ४७०२ अनुयोग विधि, मागु., प्रा., सं., गद्य, मूपू., (मुहपत्ती) ६०२१-७ अनेकान्तजयपताका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अध्याय ६, ग्रं. ३७५०, गद्य भूपू (जयति विनिर) १७२-१ " अनेकान्तनयचक्र सं श्लोक ७७, परा, जै. (एकमन्त्र पुर) १८६१-२ " " अनेकान्तनयचकसं गद्य जै. (चिदानन्द) १८६१-१ अनेकान्तवादप्रवेश, आ. हरिभद्रसूरि, सं. ७३० प+ग, मृपू.. ( जयति विनिर) १०४८ (+) अनेकार्थध्वनिमञ्जरी, सं., ३ अधिकार, पद्य, मूपू., ( शुद्धवर्णम) १५९र्शन ६४०० का ४०२० ७०९५शि अनेकार्थनाममाला, जैनकवि धनञ्जय, सं., श्लोक ४६, पद्य, दि., ( गम्भीरं रु) ४४७९अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. अध्याय ९२, ४.८९९. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गद्य, मृपू. (तेण कालेन) १२८) १०९५) १२०९-११) १६१३% ५४५२/ २०६३ ११ ९०६५/० ६६८८१) ५१७४९ ५१५० (+), ५३३३ (+), ६८५८(+), ९१२४ (+), १५८९, २१९९, ४१७४, ४१७६, ५४२१, ५६३५, ५७२४, १४३८, २६७७, ५३१९. २६०८ ६९६८ ७०३९ 1 J (२) अन्तकृदशाङ्गसूत्र- टीका आ. अभयदेवसूरि सं. गद्य, मूपू., (अथान्तकृतद) ५४२१, ९२८१-२ ६५९-२ (8) (२) अन्तकृदशाङ्गसूत्र - टिप्पण, मागु, गद्य, मृपु (-) ९१२४३ (२) अन्तकृदशाङ्गसूत्र- दवार्थ माग गद्य, मुपू. ( अन्तगड शब ) १२८) १२०९-११) १६१२१९ ९०६५९ ६६८८का ११७७१ ५३३३ (+), २१९९, ४१७६, ५७२४, १४३८, ५३१९. २६०८(#) (२) अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टवार्थ, मागु, गद्य, भूपू (प्रणम्य ) ४५७४, ५६३५, २६७७ अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक ३२, पद्य, मूपू., (अनन्तविज्ञ ) १५८ (+), ८८२७(+), ७७६(+), ९१०६(+$) (२) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका स्याद्वाद्द्मञ्जरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., शक. १२१४, गद्य, मूपू., (यस्य ज्ञान ) १५८(+), ८८२७(+), ७७६ (+) (+$) ९१०६ अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ६ कांड, ग्रं.१४५२, पद्य, मूपू., ( प्रणिपत्या) ४७३ (+), ४७९(+), ३३६३(+), ५१८५(+), ५१८६-१ (+), ४७० (+), १४८५५४(+), ५६२४(+), १४४०(+), ५७६(+), ४१३१(+), २२४८ (+#), १२६८ला ९२५ ३२३५/म्म २२२६०० २०३९) २७०६(+#$), १११४-१(+$), ४६७ (+), ४७५ (+), की मादुनिया ७४८ (+$) १९३२ (+$), २२८४(+$), ५१७० (+$) ६९९३०६१७४४८६ ९१५८ाला ७४९-१निक १२३१-८२६४/०१ ६२३६ ६३८२ (+), ६४८२ (+), ४७४, ४८०, ३४३३, ३६७३, ७६२५, ९२८८, ९२५८, ७४७, ३८५२-१), १३४३ () १९२२ (क), १६३२ (६), २८९४(s), ३६३२(S), ४३२३ (३), ६५०९(s), ६५५२($), ६९७८ ७३४८१क) ३४९१ाकी ५५०९१मा ६४४०१ (२) अभिधानचिन्तामणि नाममाला - स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२१६, गद्य, मृपू. (धर्मतीर्थक) ४७०) ६९९३-४१ ७४४८ ७४७. ७३४८ ३४९११ . For Private And Personal Use Only " ४२९ (२) अभिधानचिन्तामणि नाममाला - अवचूरि, मु. साधुरत्न, स.. गद्य, मूपू., (सिद्धं प्र ) ५१८५ (+), २७०६) (२) अभिधानचिन्तामणि नाममाला-बीजक, गणि शुभविजय, मागु.. ग्रं. १०५०, गद्य, मृपू., ( प्रणम्य ) ४५४९ (+) (२) अनेकार्य सङ्ग्रह, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं...

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