Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 2
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 441
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२ www.kobatirth.org: ६ कांड, (२८.५x१०.५, १२-१३४५०-५३). अभिधानचिन्तामणि नाममाला आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः अंतिः रोषोक्तायु नती 7 नमः. ९२८९.” जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ५२., दशा वि. विवर्णपानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, फफुंदग्रस्त, ( २६११, ११४३९-४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण- बालावबोध *, मागु., गद्य, आदिः भुवनत्रिभुवनतणु दीव; अंतिः माहिथी उद्धरिउ. (+) ९२९०. प्रीयमेलक चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना, प्र. वि. दाल ११ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६११, १३४५०-५४१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रियमेलक चीपाई दानाधिकारे उपा. समयसुन्दर गणि मागु, पद्य वि. १६७२ आदि प्रणमुं सद्गुरु पाय अंतिः पुण्य अधिक परमोद. · ४२१ ९२९१.” कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका व टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३८, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., ( २६४११, ६४३३-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: कल्पसूत्र - कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति:कल्पसूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते काल चउथा आरारूप; अंतिः कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उवदंसे त्ति बेमि कल्पसूत्र - अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: अत्राध्ययने त्र्यं; अंतिः स्याष्टमध्ययनं . ९२९२. तेजसारकुमार रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७२, जैदेना., ले.- ऋ. हीराचन्द (गुरु ऋ. वृद्धिरामजी), प्र.ले.पु. मध्यम. प्र. वि. ढाल १०९. प्र. ले. श्लो. (१४१) यादर्श पुस्तकं कृत्वा, ( २६४११, १३४४०-४२). तेजसारकुमार रास. मु. रामचन्द, मागु पद्य वि. १८०८ आदिः स्वस्ति श्रीचन्दगुरु अतिः सिद्धि वञ्छित वरे ९२९३. कल्पसूत्र सह अवचूर्णि संपूर्ण वि. १६२९. श्रेष्ठ, पृ. ८०, जैवेना. ले. स्थल. सारंगपुर, प्र. वि. मूल ९ व्याख्यान.. पंचपाठ, ( २६११, ९x३३-३५) . ९२९४. भगवतीसूत्र पूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३७५, जैवेना. प्र. वि. ४१शतक, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. मूल ग्रन्थ संपूर्ण है परंतु मूल संबंधी परिमाणगाथा वाला पत्र नहीं है., ( २६.५X११.५, १-८x४०-५२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः भावेमाणे विहरति ९२९५.' जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १७३४, श्रेष्ठ, पृ. ३७५-६ ( १३, २६० से २६४ ) + १ (१४८) = ३७०, जैदेना., ले. स्थल. कोटडी, गच्छा. आ. सिङ्घराजजीआचार्य प्र. वि. मूल-७ वक्षस्कार ग्रं. ४१४६, पदच्छेद सुचक लकीरें प्रारंभिक , पत्र, संशोधित, त्रिपाठ, ( २६४११, १३४४३-४६) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६३९, आदि: जीयात् तेजस्त्रिभुवन; अंतिः समुल्लासविस्मयमानपदं. ९२९६. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. ६०, जैदेना., ले. स्थल. गौडल, ले. ऋ. रवजी (गुरु ऋ. खीमचन्दजी), पठ. - ऋ. जेठा (गुरु ऋ. रवजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. खंड-३, ( २६.५×११.५, ९×३२-३३). रत्नपालरत्नावती रास- दानाधिकारे, मु. सुरविजय, मागु पद्य वि. १७३२ आदि रीषभाविक जिनवर नमुं अंतिः वयों जयजयकार रे. For Private And Personal Use Only ९२९७. करावन्ना चौपाई, संपूर्ण वि. १८०९, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना. ले. स्थल, धोराजी ले ऋ भुधर (गुरु ऋ. जसराजजी), " "

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