Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 2
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 443
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२ प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-६३, (२६.५४११.५, १४-१६x४७-४९). नर्मदासुन्दरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः प्रभुचरणाम्बुजरजतणी; अंति: मोहन वचन विलास जी. ९३०७.” उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८०१, श्रेष्ठ, पृ. १७०, जैदेना., ले.स्थल. पाल्हणपुर, ले.- मु. मयाचन्द्र, प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-३६अध्ययन; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २०६४. टीका-परिमाण अज्ञात प्र.पु.-टीका-ग्रं. ९२४३., (२६४११, ६-१७४४२-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-सुगमार्थ टीका, वा. अभयकुशल, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य परया भक्त्या; अंतिः सुधर्मा जम्बूं प्रति. ९३०८. सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रुतस्कंध-१ तक है., (२६४१२, ४४३७-४१). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:९३०९. सुरसुन्दरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. नगर, ले.- ऋ. गुलाबचन्द्र, प्र.वि. अध्याय-४, (२६४१२, १६x४२-४८). सुरसुन्दरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मागु., पद्य, वि. १७३६, आदिः सासण जेहनउ सलहियइ; अंतिः आनंद लील उमंगेजी. ९३१०. हंसराजवच्छराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., ले.स्थल. बालाभा, ले.- ऋ. माण्डण (गुरु ऋ. वन्तजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. खण्ड-४, (२६.५४१२, १३४३४-३६). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदिसर आदे; अंतिः हंस अनै वच्छराज. ९३११. श्रीपालनरेन्द्र कथा सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१३४२ प्र.पु.-मूल-ग्रं. १५५०. प्र.पु.-अवचूर्णि-ग्रं. ३०२२., (२७ १२.५, ५४४०-४१)... सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः अरिहाइ नवपयाइं; अंति: वाइज्जन्ता कहा एसा. सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरी, मु. हेमचन्द्र, सं., गद्य, आदिः अर्हदादि नवपदानि; अंतिः नंदतु समृद्धि लभताम्. ९३१२. श्रेणिक रास, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-४, गा.५०४, (२६४१२.५, १६x४४-४९). श्रेणिकराजा चौपाई, ऋ. नारायण, मागु., पद्य, वि. १६८४, आदि:-; अंतिः भावि भणज्यो शुभ मति. ९३१३. श्रीपाल रास खण्ड १,२,३, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-गा.८४५., (२६.५४१३, १३४३०-३१). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंति:९३१४. प्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५४११.५, ३-१२४३६-४०). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः णमो अरहंताणं०; अंति:श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारूटीका का बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः हवे पञ्चपरमेष्ठी; अंति: || इति श्री कैलासश्रुतसागरे हस्तप्रतविभागे जैनसाहित्ये द्वितीयः खंडः || For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610