Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 2
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२
४०७
साहिब; अंतिः सो जस लीला पावे., पे.वि. गा.७. पे.-४८. नेमिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण), आदिः सयन की नयन की
वयन; अंतिः समो रङ्ग रमो रतीयां.,पे.वि. गा.२. पे-४९. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः साहिब ध्याया मन;
अंति: ज्योति मिलाया., पे.वि. गा.८. पे.५०. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण), आदिः प्रभु बल देखी; ____ अंतिः हुं न परि हुं भोले., पे.वि. गा.४. पे.-५१. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१४आ, संपूर्ण), आदिः प्रभु धरी पीठ
वैताल; अंतिः तुंही वीर शिव साधे., पे.वि. गा.४. पे.-५२. पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण), आदिः अब मोही
ऐसी; अंतिः सुख जस लील धणी.,पे.वि. गा.६. पे.-५३. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १५अ-१५अ, संपूर्ण), आदि: विमलाचल नित
वन्दीये; अंतिः लहे ते नर चिर नन्दे., पे.वि. गा.५. पे.५४. नेमिजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण), आदिः देखो भाई अजब रूप;
अंति: साहिब नेमजी त्रीभुवन., पे.वि. गा.२. पे:५५. औपदेशिक गीत, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१५आ, संपूर्ण), आदिः बाला रूपशाला गले; अंतिः धारा वज्र दोरीसी.,
पे.वि. गा.१. पे.-५६. आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण), आदि: जब लगे आवे नही __ मन; अंतिः विलासी प्रगटे आतमराम., पे.वि. गा.६. पे.५७. सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ, संपूर्ण), आदिः चतुरनर सामायिक
नयधार; अंतिः ज्ञानवन्त के पासे., पे.वि. गा.८. पे.५८. आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण), आदिः सबल या छाक मोह ___ मदिरा; अंतिः उनकी में बलिहारी., पे.वि. गा.८. पे-५९. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण), आदिः चेतन अब मोहे
दरशन; अंतिः सेवक सुजस वखाणे., पे.वि. गा.५. पे.-६०. औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७अ-१७अ, संपूर्ण), आदिः मनकित हुं न लागे; __ अंतिः सुजस ब्रह्म ते जइ रे..पे.वि. गा.३. पे-६१. औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण), आदिः चिदानन्द
अविनाशि हो; अंतिः ब्रह्म अभ्यासी हो., पे.वि. गा.६.. पे.-६२. नेमिजिन गीत, उपा. यशोविजयजी गणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण), आदिः हरी नारी टोले मिली; ___ अंतिः पाए सुजस कल्याण लाल., पे.वि. गा.९. पे.-६३. पार्श्वजिन स्तवन-अन्तरिक्ष, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण), आदि: जय जय
जय जय पासजिणंद; अंतिः बोले तुम गुनके वृंद.,पे.वि. गा.६. पे.-६४. पार्श्वजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ, संपूर्ण), आदिः वामानन्दन
जगदानन्दन; अंतिः तुम हो मेरे आतमराम., पे.वि. गा.३. पे.६५. गीतचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-२०आ, अपूर्ण), आदिः अजितदेव मुझ वाहला;
अंति:-, पे.वि. २४ गीत अंत के पत्र नहीं है. गीत २ से ९ तक है. ९१६६. नवतत्त्व, जीवविचार व महावीर स्तुति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-६(१ से ६)=९, पे. ३, जैदेना.,
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