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स्थान पर ण कर दिया। किन्तु मुझे प्रतीत हुमा कि इस प्रति में न और ण का प्रयोग अनियमित नहीं, कुछ व्यवस्था को लिये हुए हैं । सूक्ष्मता से जाँच पड़ताल करने पर मैं इस निर्णय पर पहुंचा कि यहां न और ण दोनों ही अपने-अपने स्थान पर प्रायः हेमचन्द्र कृत प्राकृत-व्याकरण के नियमा. नुसार पाये हैं । इस सम्बन्ध में मैंने अपने सहयोगी विद्वान् मित्रों डा० उपाध्ये और डा० वैद्य से भी परामर्श किया । उनको सम्मति भी मुझे यही मिली कि प्रस्तुत संस्करण में जहाँ तक प्रति साथ देती है 'न' और 'ण' दोनों का यथास्थान प्रयोग करना उचित है। 'न' और 'ण' के प्रयोग के सम्बन्ध में विशेष विवेचन मागे किया गया है।
प्रस्तुत कथाकोश की एक मात्र प्रादर्श प्रति का विशेष परिचय निम्न प्रकार है--
पत्रों की लम्बाई १४३ इंच, चौड़ाई ६ इंच, ऊपर हांसिया ३ इंच, नीचे हांसिया ३ इंच, दोनों बाजुओं में हाशिया १ इंच, पत्र संख्या १७३, पंक्तियाँ प्रति पृष्ठ १५, प्रति पंक्ति में औसत अक्षर ५७ ।
लिपिकार को प्रशस्ति
संवत् १७८३ वर्ष भाद्रवा सुदि ५ शुक्रे। श्रीरस्तु । श्री सुरति-बंदिरे वासुपूज्य-चैत्यालये लिखापितमिदं पुस्तकं । श्री मूल-संघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्रीकुन्दकुन्दान्वये मलयखेडसिंहासनाधीश्वर-कार्यरंजकपुरवासि-भट्टारक श्री धर्मचन्द्रदेवास्तत्पट्टे भट्टारक श्रीदेवेन्द्र कीर्तयस्तैलिखापितम् प्रायिका-श्रीपासमतिपरोक्षवत्तवित्तेन ॥
इस पावर्श प्रति की लिपि प्रावि सम्बन्धी अन्य विशेषताएँ प्रदर्शित करने के लिये प्रति के प्रथम पृष्ठ का यांत्रिक प्रतिबिम्ब भी प्रकाशित किया जा रहा है ।
कथाकोश में कडवकों की संख्या संधि, कडवक संख्या
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س
१-२१ १५-१४ २९-१४
४३-२६ २-२० १६-२८ ३०-२१
४४-२० १७-२५ ३१-१०
४५-२२ १८-१५ ३२- २६
४६-२६ १९-२२
३३-१६ २०-२४ ३४-१६
४८-२२ २१-१६ ३५-२१
४९-२३ ३६-१४
५०-१९ ९-१७
-~-२१
३७-१३ ३८-१५
५२-१३ ११-२३ २५-२१ ३९-१६
५३-१४ १२-२५
४०-२२
१०२५ १३-१८ २७-१३
४१--३२ १४-१६ २८-१४
४२-२३ इस प्रकार कथाकोश में कुल कडवकों की संख्या १०२५ है । सबसे कम कडवक इकतीसवीं संधि में १० हैं, और सबसे अधिक इकतालीसवीं संधि में ३२.
لسل
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