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कथाकोश के कर्ता अपभ्रंश कथाकोश के कर्ता ने अपना नामोल्लेख ग्रंथ के प्रावि में तथा प्रत्येक संधि के अन्त में किया है। प्रारम्भ में उन्होंने कहा है-पणवेप्पिणु जिणु सुविसुद्धमइ। चितइ मणि मुणि सिरिचंदु कइ ( १,१,३ ) तथा प्रत्येक संधि के अन्त की पद्यात्मक पुष्पिका में कहा गया है'मुणि-सिरिचंदपउत्तो' इससे स्पष्ट है कि ग्रंथकर्ता का नाम श्रीचन्द्र था, वे मुनि थे और ग्रंथ-रचना के समय वे कवि की उपाधि से भी अलंकृत थे। उन्होंने अपना कुछ और अधिक परिचय ग्रंथ के अन्त की प्रशस्ति में दिया है और वहां उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा निम्न प्रकार बतलाई है :
कुन्दकुन्दान्वय
श्रीकीति
श्रुतकीर्ति
सहस्त्रकीति
वीरचन्द्र
श्रीचन्द्र इसी प्रशस्ति में उन्होंने अपने ग्रन्थ की रचना हेतु श्रावक प्रेरकों का भी वंश-परिचय कुछ विस्तार से दिया है जो संक्षेप में इस प्रकार है- सौराष्ट्र देश के प्रणहिल्लपुर (पाटन) नामक नगर में प्राग्वाटवंशीय सज्जन नाम के एक सज्जन हुए जो मूलराज नरेश के धर्म-स्थान के गोष्ठीकार अर्थात् धार्मिक कथा-वार्ता सुनाने वाले थे। उनके पुत्र हुए कृष्ण, जिनकी भगिनी का नाम जयंती और पत्नी का नाम राणू था। उनके तीन पुत्र हुए बीजा, साहनपाल और साढदेव तथा चार कन्याएं, श्री, शृंगारदेवी, सुंदू और सोखू । इनमें सुन्दू था सुन्दुका विशेषरूप से जैनधर्म के उद्धार और प्रचार में रुचि रखती थीं। कृष्ण की इस सन्तान ने अपने कर्मक्षय के हेतु कथाकोश की व्याख्या कराई । आगे चलकर यह भी कहा गया है कि कर्ता ने भव्यों की प्रार्थना से पूर्व प्राचार्य की कृति को जानकर इस सुन्दर कथाकोश की रचना की। इस पर से अनुमान होता है कि इस विषय पर कोई पूर्वाचार्य की रचना श्रीचन्द्रमुनि के सम्मुख थी। प्रथम उन्होंने उसी पूर्व रचना का व्याख्यान श्रावकों को सुनाया होगा जो उन्हें बहुत रोचक प्रतीत हुआ। इसी से उन्होंने उनसे प्रार्थना की कि आप स्वतंत्र रूप से कथाकोश की रचना कीजिये । फलस्वरूप प्रस्तुत ग्रंथ का निर्माण हुमा । प्रशस्ति में ग्रंथकार के व्याख्यातृत्व और कवित्वादि गुणों का विशेष रूप से निर्देश भी किया गया है । यह पूर्वाचार्यकृत कृति कौनसी थी, इसका विचार मागे किया जायगा।
यह रचना कहां पर की गई, इसका प्रशस्ति में स्पष्ट उल्लेख है। सूरस्थ (सौराष्ट्र) देश में अणहिल्लपुर (पाटन) में ही कृष्ण श्रावक और उनको सन्तान का निवास था, अतः वहीं पर उन्होंने धार्मिक कथा का व्याख्यान व इस कथाकोश की रचना की होगी।
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