________________
( ३१ )
१६. बलि ने यथावसर वर मांगने की अनुज्ञा प्राप्त की । श्रकम्पनादि मुनियों का वहां आगमन | यह जानकर उन मंत्रियों को चिंता हुई ।
२०. बलि ने पद्म राजा से सात दिन का राज्य मांग लिया और पशु-यज्ञ के मिष मुनियों का उपसर्ग प्रारंभ किया ।
२१. पशु-यज्ञ की विकरालता ।
२२. महापद्म मुनि को मिथिला में उक्त मुनि-उपसर्ग का ज्ञान हुआ । उन्होंने आर्य पुष्पदन्त को सब वृत्तान्त कहा व विष्णु मुनि द्वारा उपसर्ग निवारण का उपाय भी बतलाया । विष्णु मुनि ने अपनी विक्रिया ऋद्धि की परीक्षा की और फिर वे गुरु के पास श्राये ।
२३. गुरु का श्रादेश पाकर विष्णु मुनि का गजप्रद आगमन व ज्येष्ठ भ्राता पद्म से उपसर्ग - निवारण का श्राग्रह | पद्म द्वारा वरदान की बात कहकर अपनी लाचारी का निवेदन ।
२४. विष्णु ने वामन वेष धारण किया व बलि से मठिका ( मढिया ) के लिये तीन पद भूमि की याचना की । वर पाकर विष्णु ने विक्रिया ऋद्धि द्वारा अपना शरीर त्रिभुवन प्रमाण विशाल बना लिया ।
२५. विष्णु ने अपना एक पैर सुमेरु पर्वत पर तथा दूसरा मानुषोत्तर पर स्थापित किया । तृतीय पद को आकाश में रखा जिससे देवों में क्षोभ हुना | उन्होंने कर यज्ञ की समाप्ति की और मुनि की स्तुति । विष्णु श्रकंपन मुनि के पास श्राये । राजा व मंत्रियों का वैराग्य । विष्णुकुमार अपने गुरु के पास बापिस श्राये ।
संधि - ४
२६.
कडवक
१.
प्रभावना विषयक वज्रकुमार की कथा । भरत क्षेत्र कुरुजांगल जनपद, हस्तिनापुर के राजा महावल, रानी बालश्री, पुरोहित रुद्रदत्त, ब्राह्मणी सोमिल्ला, पुत्र सोमदत्त | अहिच्छत्रपुर के राजा दुर्मुख, रानी दुर्मुखा, पुरोहित सुभूति, ब्राह्मणी काश्यपी, पुत्र सोमभूति, पुत्री यज्ञदत्ता । सौमदत्त का अपने मामा सुभूति के पास आगमन व राजा से भेंट करने की इच्छा । मामा की उदासीनता से स्वयं घर से बाहर जा बहुरुपिया बनकर शिवमंदिर में प्रदर्शन ।
एक बार राजा से उसकी भेंट व राजा को उसका श्राशीर्वाद ।
२.
३.
सौमदत्त की बुद्धिमत्ता देखकर राजा का प्राश्चर्य व परिचय संबंधी प्रश्न । ४. सौमदत्त का प्रात्म- परिचय |
५. परिचय से राजा की प्रसन्नता ।
६. सौमदत्त को राजा ने अपना मंत्री बनाया व मामा ने उसे अपनी पुत्री विवाह दी । पत्नी का दोहला डाल के पके आम खाने की इच्छा ।
सेवकों द्वारा आम्रफल प्राप्त न होने पर सोमदत्त का स्वयं ससैन्य खोज में जाना व वन में एक मुनि के प्रभाव से फले आम्रवृक्ष को देखकर चकित होना ।
७.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
३०
३१
३१
३२
३३
३३
३३
३४
पृष्ठ
३६
३६
३७
३७
३८
३८
३६
www.jainelibrary.org