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पठन । श्रुतदेवी का ग्वालिनी के वेष में तक बेचने आना व साधु द्वारा तक
बेचने के अनुचित समय का निर्देश करने पर श्रुतदेवी द्वारा मुनि का संबोधन । १८. वीरभद्र द्वारा अकाल शास्त्राभ्यास का सकेत पाकर प्रायश्चित-ग्रहण । १६. अकाल-शास्त्र-पठन के दुष्परिणाम का दूसरा उदाहरण । शिवनन्दन नामक
श्रमण सर्वकाल स्वाध्याय के पाप से मरकर गंगा के कुंड में पाढीन हुए। वहाँ तट पर मुनि को शास्त्र पाठ करते सुनकर जाति-स्मरण व प्रायश्चित्त ।
संधि-६ गुडवक १. श्रुत-विनय का आख्यान । वत्स जनपद, कौशाम्बीपुरी, धनसेन नरेन्द्र, धनश्री
रानी। रानी जिनधर्मी और राजा भागवत जिनके गुरु भागवत । जल-स्तम्भन मंत्रवादी । इसी प्रकार विजया की दक्षिण श्रेणी के रथनूपुर नगर के विद्याधर राजा विद्युत्प्रभ सम्यग्दृष्टि श्रावक और उसकी पत्नी विद्युत्प्रभा विष्णुभक्त । वन्दना हेतु भ्रमण करते हुए उनका जमुना के जल पर जाप करते हुए भागवत का दर्शन।
विद्याघरी द्वारा उसके ध्यानयोग की प्रशंसा । विद्याधर द्वारा अश्रद्धा-प्रदर्शन । ३. परीक्षार्थं उनका मातंग-मातंगी वेष धारण व जमुना के ऊपर की ओर मांस
प्रक्षालन । भागवत का उनके ऊपर की ओर गमन व मातंगो का पुनः उसके भी ऊपर गमन । अनेक बार ऐसा करने पर भागवत का रोष व स्नान-त्याग ।
मातंगों द्वारा सुन्दर माया-उद्यान का निर्माण । भागवत का विस्मय । ४. भागवत को उनकी इस विद्या की प्राप्ति का लोभ । भातंग का कथन । गुरु-विनव
के बिना मंत्र-सिद्धि संभव नहीं। भागवत द्वारा उनकी विनय स्वीकृत व चिन्तामणि विद्या की प्राप्ति । राजा को सूचना । ब्रह्मा-विष्णु-महेश्वरादि देवों द्वारा उसे यह विद्या-प्राप्ति । धनसेन
की अश्रद्धा। ६. भागवत द्वारा अपनी विद्या के प्रदर्ननार्थ कुटी पर राजा का निमंत्रण व मायापुरी
का निर्माण । राजा का प्रातिथ्थ । राजा का विस्मय। उन मातंगों का आगमन । भागवत द्वारा निरादर । विद्या का नाश । राजा के पछने पर भागवत की स्वीकृति कि मातंग गुरु को नमस्कार न करने का यह परिणाम हुअा। राजा द्वारा मातंग का विनय व चिन्तामणि विद्या की प्राप्ति । राजसभा में भी मातंग के पहुंचने पर राजा की गुरु-विनय । मांतंग का स्वरूप-दर्शन व सबकी श्रावक-धर्म-स्वीकृति । उपधान कथा । अहिच्छत्रपुर राजा वसुपाल रानी वसुमती। राजा द्वारा सहस्त्रकूट जिनालय का निर्माण । यथोचित अवग्रह के अभाव में पार्श्व प्रतिमा के घटन में विघ्न । यथोचित पूजा अर्चा किये जाने पर कार्य सिद्धि ।
है.
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