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( ४२ ) रता देख राजा का वैराग्य । अनन्तवीर और श्रीधर नामक पुत्रों द्वारा राज्य
अस्वीकार, तृतीय पुत्र प्रियचन्द्र को राज्य । २. यशोधर का ता और निर्वाण । अनन्तवीर का स्वर्गवास । श्रीधर का विहार
करते-करते श्रीपर्वत पर आगमन । प्रियचन्द्र राजा की उद्यान में नाटक देखते सर्पदंश से मृत्यु । मंत्री की चिन्ता । प्रियचन्द्र के पिता व भ्राताओं की खोज
में दूत-प्रेषण । ३. दूतों का लौटकर समाचार देना। मंत्री द्वारा श्रीपर्वत पर श्रीधर मुनि के दर्शन
व वृत्तान्त-कथन । मनाकर श्रीधर को घर लाना । ४. श्रीधर का राज्याभिषेक व मुंडव्य नरेश्वर नाम से प्रसिद्धि । श्रीधर की तपस्या
के कारण ही श्रीपर्वत नाम की तथा राजवंश की मुंडिय नाम से प्रसिद्धि । उसी वंश में प्रान्ध्र देश के धान्यकटकपुर के राजा धनसेन परम श्रावक । बौद्ध भिक्ष बद्धश्री का आगमन । राजा का मंत्री संघश्री उसका परम उपासक, पत्नी कमलश्री, पुत्री बुद्धिमती राजा की महाहेवी हुई और श्राविका बन गई । मंत्री का दुर्भाव, कक दिन मुनि का आगमन व राजा द्वारा सम्मान । राजा का मुनि से धर्म संबंधी प्रश्न । चारण मुनियों का माकाश से प्रागमन । मुनि की धर्म कथा से संघश्री भी श्रावक हुआ । दूसरे दिन सभा में संघश्री
द्वारा धर्मश्रद्धान का भाषण करने के लिये राजा का प्रस्ताव । ७. मंत्री द्वारा अपना जैन धर्म के प्रति श्रद्धान प्रकट करने की प्रतिज्ञा । बुद्ध-विहार
में जाकर बुद्धश्री की भर्त्सना । ८. बुद्धश्री द्वारा मंत्री को संबोधन व इन्द्रजाल प्रदर्शन। ६. बुद्धश्री द्वारा कथा वर्णन । वाराणसी पुरी के राजा उग्रसेन का पुरोहित सोम
शर्मा, पत्नी पद्मावती, पुत्री लोमश्री । सोमशर्मा के घर पांच सौ वैष्णवों का नित्य भोजन । सुवर्णखुर नामक युवक वैष्णव का सोमशर्मा के मठाश्रम में प्रागमन । लोमश्री की वैष्णव भक्ति । दोनों में परस्पर प्रेम वृद्धि व पलायन । सोमशर्मा
का शोक व राजा से निवेदन । ११. राजा का तलवर को आदेश कि अपराधी को ढूँढ़कर व बांधकर लाओ। दोनों
का पानयन । धर्माधिकारी से प्रश्न । कन्या-साहस करने वाले को मृत्युदंड का
विधान । तदनुसार दंड । १२. कन्या का शोक । मृतक से मिलन व विलाप । देह के भस्मीभूत किये जाने पर
भी भस्म की पूजा । भस्म के जल-प्रवाह किये जाने पर उस जल का सम्मान ।
उसी प्रकार बौद्धमत को त्यागकर अन्य मत का प्रादर निष्फल । १३. इसी प्रकार निरन्तर उपदेश से मंत्री का पुनः मत-परिवर्तन । प्रात: सभा में पूछे
जाने वाले प्रश्न के उत्तर में मौन रखने का आदेश । १४. प्रातः सभा में चारण मुनियों के आगमन का वृत्तान्त व मंत्री का साक्ष्य । किन्तु
बुलवाने पर मंत्री का न पाना व आँखें दुखने का बहाना करना ।
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