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१२.
( २६ ) १०. विचिकित्सा और निर्विचिकित्सा के उदाहरण । अपने मित्र गगनमित्र नरेश के
मरण पर गगनचन्द्र नरेश ने बहुत शोक किया व मित्र के पुत्रों को विषान्न
श्रेष्ठ भोजन) कराने का रसोइये को प्रादेश दिया। उन्हें बसा ही उत्तम भोजन कराया गया। किन्तु ज्येष्ठ भ्राता को सन्देह होने से उसे विकार उत्पन्न हुअा व मार्तध्यान सहित उसकी मृत्यु हुई। निश्शंक भाव से जीवित रहकर लघुभ्राता सर्वार्थसिद्धि को गया। विद्याधर श्रावक ने दक्षिण मथुरा जाकर मुनि-वन्दना की । लौटते समय मुनि ने रेवती को आशीर्वाद कहा, जिससे उसे बड़ा विस्मय हुआ। विस्मय का कारण यह था कि उत्तर मथुरा में भवसेन नामक ज्ञानी और दुर्धर संयमी को प्राशीर्वाद न कहकर एक श्राविका को क्यों आशीर्वाद भेजा । संभवतः मुनियों के भी राग-द्वेष होता हो, विद्याधर ने इसकी परीक्षा के लिये विक्रिया की और ब्रह्मा आदि देवों का रूप धारण किया। लोगों ने भक्ति दिखाई । दूसरे दिन अरहंत का वेष बनाया। भवसेन संघ सहित
वन्दना को पाया। किन्तु रेवती ने उसकी माया समझ ली; अतः वह नहीं पाई। १५. तब वह रोगग्रस्त साधु बनकर रेवती के घर के समीप मूछित हो पड़ रहा ।
रेवती ने उसकी सेवा की, खूब भोजन कराया व उसका वमन भी अपने
हाथों में भेला। १६. रेवती का शुद्धभाव देखकर विद्याधर अपने रूप में प्रकट हुमा। फिर वह भवसेन
मुनि की परीक्षा के लिये वटु बनकर उसके पास गया । ___ उसने भवसेन मुनि की शौचक्रिया के संबंध में परीक्षा की । मुनि ने हरित
ग्रंकुरों पर गमन किया।
जल के प्रभाव से अशौच अवस्था में मुनि का मौन-भंग । १६. अप्राशुक मृत्तिका व नदी के जल से मुनि का अशोच-निवारण । विद्याधर का
कांचीपुर जाकर मुनिगुप्त से परीक्षा का निवेदन । २०. विद्याधर का तथा रेवती श्राविका का दीक्षा-धारण ।
संधि-३ कडवक १. उपगूहन मादि सम्यक्त्व के चार गुण । उपगूहन का दृष्टान्त । पुष्पपुर के
राजकुमार विशाख के विवाहानन्तर मुनि का आगमन । २. मुनि के साथ जाकर राजकुमार का गुरु से दीक्षा ग्रहण । पत्नी का रोष व
विष खाकर मरण । राक्षस योनि में उत्पत्ति । ३. राक्षसी का जातिस्मरण व विशाखमुनि के लिंग-विकार द्वारा पाहार का
अन्तराय, दौर्बल्य व एक दिन राजगृह में आहारनिमित्त प्रवेश । ४. महारानी चेलना द्वारा पडगाहना । मुनि का लिंग-विकार । रानी द्वारा
पटाच्छादन व आहारदान । मुनि का वन-प्रवेश । शुक्लध्यान व अन्तराय के
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