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। २८ ) १६. वह पांच दिन समाधि की साधना कर स्वर्गवाशी अवधिज्ञानी देव हुआ। २०. स्थाणु निधि लाभ का लौकिक दृष्टान्त-अंधा विष्णुदत्त पत्नी की भर्त्सना से
आत्मघात का विचार कर घर से निकल पड़ा और एक गिरे हुए वृक्ष से टकरा गया। भाल में से रक्त प्रवाह निकला जिससे उसे दृष्टि प्राप्त हो गई और वहीं उसे एक धन की निधि मिल गई। यह पुण्य का आकस्मिक फल है। इसे देख दूसरे अंधों ने भी वैसे ही धन-प्राप्त करना चाहा, किन्तु केबल क्लेश ही हाथ लगा।
कथाकोश
संधि-२
कडवक
१. सम्यवत्व के अतिचार शंकादिक के उदाहरण । सेठ को आकाश मार्ग से
तीर्थवन्दना को जाते देख उनके पुरोहित सोमदत्त ने नभोगामिनी विद्या सीखने की इच्छा प्रगट की। सेठ ने मंत्र-साधन की विधि बतलाई-वृक्ष के नीचे उर्ध्वमुख शस्त्र रखकर ऊपर सीके में बैठकर मंत्रोच्चारण सहित सीके के तनों को काट डाली। नीचे गिरने से पूर्व मंत्र सिद्ध हो जायगा। ब्राह्मण ने व्यवस्था तो वैसी ही की। किन्तु संशय वश वह वृक्ष पर चढ़ता और उतरता। कार्य की प्रसिद्धि । उसी समय एक चोर वहां से निकला। उसने विधि पाकर निःशंक भाव से सींके में बैठकर तनों को काट डाला और
नभोगामिनी विद्या सिद्ध कर ली। ४. विद्या देवी ने उसे सब तीर्थों की वन्दना कराकर सेठ के समीप पहुंचा दिया। ५. सेठ की प्रदक्षिणा के पश्चात् उनके पूछने पर उसका आत्म-परिचय। अपने
दुष्ट स्वभाव के कारण घर से निर्वासित होकर चोरी करने लगा व अपनी प्रेयसी की संतुष्टि के लिये रानी का हार चुरा कर भागा। रक्षकों ने हार की
चमक देखकर उसे घेर लिया। ६. तब वह हार छोड़कर अदृश्य हो गया । श्मशान में पहुंचने पर उस ब्राह्मण को
वृक्षपर चढ़ते उतरते देख कारण पूछा। ७. ब्राह्मण ने अपना पूर्वोक्त वृत्तान्त सुनाया। ८. पांढुक वन आदि तीर्थों की वन्दना करके पाने का सेठ को गुरु मानने का संवाद
और फिर मुनि-दीक्षा । संशयवश भट्ट कहीं का न रहा। ६. कांक्षा और निष्कांक्षा के उदाहरण-दो राजपुत्र अपने गोकुल को गये । गौप ने
स्वीर का भोजन कराया। छोटा राजपुत्र विश्वंभर अधिक खा गया और विषूचिका से मरण को प्राप्त हुप्रा । बड़ा राजपुत्र यशोधर राजा हुमा और फिर उसने प्रवज्या धारण की।
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