Book Title: Jivvicharadiprakaransangrah
Author(s): Jindattsuri Gyanbhandar Surat
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 18
________________ प्र०-- मुहूर्त किसे कहते हैं? उ०-दो घड़ी अर्थात् अड़तालीस मिनिटोंका मुहूर्त होता है. विशेष—प्रत्येकवनस्पतिकाय नियमसे बादर है, पाँच स्थावर, सूक्ष्म और बादर दो तरहके हैं, सबको मिलाकर | ग्यारह भेद हुये; ये ग्यारह पर्याप्त और अपर्याप्तरूपसे दो तरहके हैं, इस तरह स्थावरजीवके बाईस भेद हुये. प्र-पर्याप्त-जीव किसे कहते हैं ?. उ०—जो जीव अपनी पर्याप्तियाँ पूरी कर चुका हो, उसे. प्र०-अपर्याप्त-जीव किसे कहते हैं ? उ-जो जीव अपनी पर्याप्तियाँ पूरी न कर चुका हो, उसे. -पर्याप्ति किसे कहते हैं ? उ-जीवकी उस शक्तिको-जिसके द्वारा जीव, आहारको ग्रहण कर रस, शरीर और इन्द्रियोंको बनाता है तथा योग्य पुगलोंको ग्रहण कर श्वासोच्छास, भाषा और मनको बनाता है. संख-कवड्डय-गंडुल, जलोय-चंदणग-अलस-लहगाई। मेहरि-किमि-पूयरगा, वेइंदिय माइवाहाई ॥१५॥ (संख) शङ्ख-दक्षिणावर्त आदि, (कबड्डय) कपर्दक-कौड़ी, (गंडुल) गण्डोल पेटमें जो मोटे कृमि गंदोला पैदा होते है है, (जलोय) जलौका-जोंक, (चंदणग) चन्दनक-अक्ष-जिसके निर्जीव शारीरको साधु लोग स्थापनाचार्यने रखते है, (अलस) भूनाग अलसीया जो वर्षा ऋतुमें साँप सरीखे लंचे लाल रंगके जीव पैदा होते हैं, (लहगाई ) लहक-लाली यक-जो बासी रोटी आदि अन्नमें पैदा होते हैं, (मेहरि ) काष्ठके कीड़ेल, (किमि) कृमि-पेटमें, फोड़ेमें तथा बवासीर आदिमें पैदा होते हैं, (पूअरगा) पूतरक-पानीके कीड़े, जिनका मुँह काला और रंग लाल वा श्वेत-प्राय होता है, है

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