Book Title: Jivvicharadi Prakaran Chatushtyam
Author(s): Hemprabhvijay
Publisher: Divyadarshan Trust
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जीवविचार
| देवप्रणतिपूर्विकामभिधेयादिसूचिकामादिमां गाथामाह -
भुवणपईवं वीरं नमिऊण भणामि अबुहबोहत्थं ।
जीवसरूवं किंचिवि जहभणियं पुव्वसूरीहिं ॥१॥ भुवणेति-अत्र भणामीति क्रियाभिसंबन्धादहमिति कर्तृपदमध्याहार्यं । ततश्चायमन्वयः-अहं वीरं श्रीवर्द्धमानजिनं नत्वा किंचिदल्पं जीवस्वरूपं सिद्धसांसारिकादिभेदभिन्नं भणामि ब्रवीमि । कीदृशं वीरं? भुवनप्रदीपं भुवने विश्वे प्रदीप इव भुवनप्रदीपः जीवाजीवादिसकलपदार्थसार्थप्रकाशकः तं । किमर्थम् ? अबुधबोधार्थ-अबुधा अज्ञातजीवाजीवाद्यर्थाः
तेषां बोधार्थं तद्विज्ञापनायेत्यर्थः । कथं भणामीत्याह - यथा पूर्वसूरिभिः गौतमसुधर्मादिभिः पूर्वाचार्यैर्भणितं तथा जीवविचारादि
ब-8 भणामि न तु स्वमनीषिकयेत्यर्थः ॥१॥ अथ तावज्जीवभेदानाह - चतुष्टयम्
जीवा मुत्ता संसारिणो य तस थावरा य संसारी । पुढविजलजलणवाऊवणस्सई थावरा नेया ॥२॥
60-60-6060660606006d6a
606060606d6d6d6d6d6a
प्रकरण
॥२॥

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