Book Title: Jinraj Bhakti Adarsh Author(s): Danmal Shankardan Nahta Publisher: Danmal Shankardan NahtaPage 15
________________ अब जिनोगमों युक्तियों और इतिहास के के द्वारा मूर्ति पूजा सिद्ध करनेका प्रयत्न किया जाता है :_ जैन आगम-ग्रन्थोंमें बहुत जगह “जिनचैत्य” या “अरिहन्त चैत्य" ऐसा शब्द मिलता है। उसका अर्थ मूर्ति को न माननेवाले मन कल्पित करते हैं। परन्तु “नाममाला (टीका सहित) अमर-कोष और अनेकार्थ संग्रह इत्यादिक कोष ग्रन्थोंमें उसका अर्थ "जिनेश्वरका बिम्ब” “जिन मन्दिर" और "जिन सभाका चौतरे बंध वृक्ष" लिखित है। राय पसेणी, जीवाभिगम, भगवती, ठाणांग, जम्बू द्वीपपन्नत्ती और ज्ञाता कल्पादिक सूत्रोंमें "जिन मूर्ति" के पूजन करने का उल्लेख स्पष्ट मिलता है। इन सूत्रोंके अर्थ सहित पाठ देखनेकी इच्छा रखनेवालेको (१) सम्यक्त्व-शल्योद्धार (२) जिन प्रतिमा हुडीरास (३) जिन प्रतिमा सिद्धि (४) मर्ति-मंडन (५) मूर्ति-मंडन-प्रश्नोत्तर (६) सिद्ध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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