Book Title: Jinraj Bhakti Adarsh
Author(s): Danmal Shankardan Nahta
Publisher: Danmal Shankardan Nahta

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Page 108
________________ देरासर के प्रमाणानुसार ही रखा जा सकता है क्योंकि यदि कहीं पर देरासर ही नब हाथ प्रमाण का नहीं है तो यह जघन्य अवग्रह नौ हाथ का भला कैसे रखा जा सकता है ? अतः यथायोग्य रखना चाहिये। अवग्रह बाहिर निकल पर तीन क्षमासमण देकर आदेश मांग कर चैत्यबंदन करना चाहिये। (२६) चैत्यवन्दन के ३ भेद है। जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । जघन्य तो सामान्य नमस्कारात्मक श्लोकादि बोलने ही से किया जा सकता है। मध्यम चैत्यबन्दन आजकल की प्रवृत्ति अनुसार प्रथम चैत्यवंदन बोलकर नमुत्थुणं कहना, स्तवन कहना, जयवीयराय, अरिहंत चेइयाणं कहकर काउसग्ग करके स्तुति कहनो इसीको कहते हैं। और उत्कृष्ट चैत्यबंदन जिसमें आठ थुई से देववन्दन किया जाता है उसको समझना चाहिये और जिसमें ५ शक्रस्तक किये जाते हैं । वाको ५ दंडक और बारह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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