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( १०० ) अधिकार तो चार स्तुतियों से देवसिंक प्रतिक्रमण के प्रारम्भ में एवं रात्रिके प्रतिक्रमण के प्रान्त भागमें, देव वन्दनमें किये जाते हैं, इससे इसके अन्दर भी आ जाता है। तोनों काल मध्यम चैत्यवन्दन तो अवश्य करना चाहिये।
(२७) चैत्यवंदन स्तवन और स्तुति ये तीनों चीजें प्रायः गुजराती भाषामें (हिन्दी, मारवाड़ी आदि में भी) पद्यमय रचना में कहने में आते हैं उनका उच्चारण करना चाहिये तथा भावार्थ पहिले ही से समझ रखना चाहिये ताकि कहते समय अर्थ विचारणा कर सके। साथ २ 'जंकिंचि नमुत्थूणं' वगेरह विधि के सुत्रोंको जो मागधी भाषामें है, शुद्ध कहना चाहिए। साथ ही पर्णोच्चार करते हए कहना तथा उनको अर्थ विचारणा करनेके लिए उनके भावोंको पहिले हो से समझ रखना चाहिये। जो लोग अर्थ समझे बिना चैत्यवंदन करते है वे
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