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( १२४ ) १८ केशर घिसने की जगह हाथ धोने आदि का जल इकट्ठा हो जाता है, और एसो हालतमें जल अधिक समय वहीं पड़ा रहनेसे मक्खी आदि जन्तु उसमें पड़कर मर जाते हैं। इसलिये उस जल को तुरन्त ही बाहर किसी योग्य स्थानमें गिराने का हरदम उपयोग रखना चाहिये।
१६ कोई स्त्री यदि मन्दिरजीमें ऋतुधर्मको प्राप्त हो गई हो, एवं किसी वालक ने टही वा पिसाब कर दिया हो तो शोघ्र ही उस स्थानको प्रथम जलसे साफकर पश्चात् दूधसे धो डालना चाहिये (इसका खर्च आशातना करनेवालेको देना चाहिये, यदि वह नहीं दे तो अन्नमें मन्दिरजी के खर्च से ही पाशातनाको तो दूर करबानी ही चाहिये) एवं स्वच्छ हो जानेक पश्चात दसांग वगैरह धूप कर देना चाहिये।
॥समाप्त मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतम प्रभु। मंगलं स्थूलिभद्राधा, जैन धर्मोस्तु मंगलम् ।
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