Book Title: Jinraj Bhakti Adarsh
Author(s): Danmal Shankardan Nahta
Publisher: Danmal Shankardan Nahta

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Page 110
________________ ठीक २ उच्चारण भी नहीं कर सकते हैं क्योंकि शुद्धोच्चारण का आधार अर्थ की समझ पर अधिक है। कभी २ तो अर्थ नहीं समझे हुए लोग चैत्यवंदन करनेवाले पाठ अशुद्ध बोलकर स्तुति के बदले निन्दा कर बैठते हैं। यद्यपि उनका अध्यवसाय निन्दा करनेका नहीं है, इसलिए मानसिक बन्ध तो नहीं पड़ता है, मगर बचन सम्बन्धी तो अशुभ बन्ध पड़ ही जाता है। चैत्यबंदन, स्तवन और स्तुति जो गुजराती व देशो भाषामें होती है, उनके अर्थको समझने की बहुत से आदमी आवश्यकता ही नहीं समझते और जैसा याद रहा हुवा होता है वैसा ही बोल देते हैं कि जिसको सुनने से अर्थ समझनेवालोंको उनपर बड़ा खेद होता है। (२८) चैत्यबंदन, स्तवन व स्तुति कहाँ २ कहनी चाहिये ? कौनसा चैत्यवंदन कौनसा स्तवन और कौनसी स्तुति कहां कहने योग्य है ? इनको भी समझना बड़ा जरुरी है। कितने ही Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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