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( १०३ ) केवल स्त्रियां ही बोल सकती हैं। जिन स्तवनोंमें द्रव्य-पूजाका समावेश है व जो स्तवन साधुवर्ग के कहने के नहीं है उन्हें केवल श्रावकवर्ग ही बोल सकता है अर्थात उन्हें साधु साध्वी कभी नहीं बोल सकते । स्तवन परमात्मा की स्तुति के, प्रार्थना के, गुणानुवाद के, आत्मनिन्दाके एवं परमात्माके बहुमानके होने चाहिये। और पूर्व पुरुषोंके रचे हुए महान गम्भीर अर्थवाले होने चाहिये। तुच्छ शब्दोंवाले एवं निःसार उक्तिवाले एवं अल्प भावार्थवाले ऐसे आधुनिक बने हुए स्तवन कहने योग्य नहीं है। चैत्यबदन स्तवनादि मधुर स्वर से खूब शान्ति के साथ कहने चाहिये, पर व्यर्थ उतावलसे जिसमें पूरा शब्दाच्चारण भी नहीं हो पाता है, कभी नहीं कहना चाहिये।
(२६) द्रव्य-पूजा भाव-पूजाकी कारण भूत होनेसे भाव-बृद्धि के ही निमित्त की जाती है इसलिये शनैः शनैः इस साधन से भाव-वृद्धि कर भाव-पूजामें विशेष कालक्षेप करने की
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