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तमाम केशरं को दूर करनी चाहिये, अपने हाथ से सहज ही में दूर नहीं सके, ऐसी चिपकी हुई केशर को हटाने के लिए ही सिर्फ ढीले हाथसे बालकुंची का प्रयोग करना चाहिये । इसके बाद फिर शुद्ध जलसे अभिषेक करवा कर पट्टलहण विवेक पूर्वक करना चाहिये । उस पहलुहण का प्रभुजी से स्पर्श नहीं होना चाहिये । तथा विशाल एवं उज्वल अंग लुह से दोनों हाथोंसे प्रभुजीका शरीर निर्जल करना चाहिए। अंगलुहणा फटा हुआ व मैला जरा भी नहीं होना चाहिये । अंगलुहणे तान करने चाहिये ताकि किसी भी प्रकार से जलांश नहीं रहने पावे । क्योंकि जहां जलांश रह जाता है वहां लोल बैठ जातो है और कचरा भी तुरंत चिपक जाता है ।
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(१७) अंगलुहण करने के पीछे प्रभुजीके शरोर पर बरास ( घनसार) का विलेपन करना चाहिए और जो केवल मुखाकृति को छोड़ कर
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