Book Title: Jinraj Bhakti Adarsh
Author(s): Danmal Shankardan Nahta
Publisher: Danmal Shankardan Nahta

Previous | Next

Page 100
________________ ( ६१ ) तमाम केशरं को दूर करनी चाहिये, अपने हाथ से सहज ही में दूर नहीं सके, ऐसी चिपकी हुई केशर को हटाने के लिए ही सिर्फ ढीले हाथसे बालकुंची का प्रयोग करना चाहिये । इसके बाद फिर शुद्ध जलसे अभिषेक करवा कर पट्टलहण विवेक पूर्वक करना चाहिये । उस पहलुहण का प्रभुजी से स्पर्श नहीं होना चाहिये । तथा विशाल एवं उज्वल अंग लुह से दोनों हाथोंसे प्रभुजीका शरीर निर्जल करना चाहिए। अंगलुहणा फटा हुआ व मैला जरा भी नहीं होना चाहिये । अंगलुहणे तान करने चाहिये ताकि किसी भी प्रकार से जलांश नहीं रहने पावे । क्योंकि जहां जलांश रह जाता है वहां लोल बैठ जातो है और कचरा भी तुरंत चिपक जाता है । 1 (१७) अंगलुहण करने के पीछे प्रभुजीके शरोर पर बरास ( घनसार) का विलेपन करना चाहिए और जो केवल मुखाकृति को छोड़ कर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138