________________
( १२ )
सब जगह करना चाहिये । पीछे केशर मिश्रित चन्दनसे क्रमशः दाहिना बांयां अंगूठा, दाहिना बांया गोंडा, दाहिना बांया हाथ, दाहिना बांया कंधा, मस्तक, कपाल, कंठ, उर और उदर इन नव अंगों की पूजा करनी चाहिये । पश्चात विशेष अंगी रचनी हो तो सोने चांदी के वर्क, बादला और पुष्प चढ़ाना चाहिये एवं उस पर विशेष तिलक करना चाहिये ।
(१८) पुष्प चढ़ाने के समय एक पुष्प मस्तक पर अवश्य ही चढ़ाना चाहिये और हो सके तो सम्पूर्ण सुन्दर माला चढ़ानी चाहिये। बाकी के पुष्प शोभा दें वैसे ही चढ़ाये जाने चाहिये. मगर पुष्पों को कभी भी मरोड़ना नहीं चाहिए । सुई से सिये हुए पुष्पों का हार वगैरह कभी भूलकर भी नहीं चढ़ाना चाहिए। ऐसे हारादि चढ़ाने से प्रभुकी आज्ञाका भंग होता है । पुष्प प्र'थीम् अर्थात गुंथे हुए, वेढीम अर्थात बींटे हुए, पुरिम अर्थात पोये संघातिम
हुए,
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org