Book Title: Jinraj Bhakti Adarsh
Author(s): Danmal Shankardan Nahta
Publisher: Danmal Shankardan Nahta

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Page 103
________________ ( १४ ) जहां तक बन सके प्रभुजी से दूर ही रह कर करनी चाहिए तथा अगरबत्ती यदि सुलगाई होवे तो उसे हाथमें नहीं रखकर धूपदान में रखकर धूप करना चाहिए। दीपक भी इसी तरह से दूर रखना चाहिए। दीपक अनावरित ( उघाड़ा) कभी भी नहीं छूट जाय इसका ध्यान रखना चाहिए तथा धूप का धूम्र (धूंचा) प्रभुजी तक न चला जाय इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए । ( २० ) अक्षत, फल नैवेद्य को यथाशक्ति बढ़ाते रहना चाहिए । अतसे नंदावर्त्त करना अथवा अष्ट- मांगलिक मांडना चाहिए । फल में एक श्रीफल जरूर चढ़ाना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रत्येक ऋतु में मिलने वाले हरे फल भी जरूर चढ़ाने चाहिए । प्रभुजी के समीप एकबार रखे हुए फलका भो स्वयं उपभोग नहीं करना चाहिए। नैवेद्य में मिश्री मोठे चणे अथवा पतासा चढ़ाकर सन्तुष्ट नहीं हो जाना For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International

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