Book Title: Jinraj Bhakti Adarsh Author(s): Danmal Shankardan Nahta Publisher: Danmal Shankardan NahtaPage 23
________________ ( १४ ) भक्ति का उद्देश्य यह नहीं है कि उनसे कोई वस्तु मांगनी हो लेकिन उनके दर्शनका उद्देश्य तो यह है कि उनके गुणोंको स्मरण करना, उनके समान ही अपनी आत्मा है, इसलिये आत्माके शुद्ध परमात्म स्वरूप का ध्यान करना या याद करके मैं परमात्म स्वरूप होते हए भी ऐसी परिस्थितीमें क्यों हूँ? आत्मोन्नति का मार्ग है इसको विचारना और भक्तिका उद्देश्य है गु . अनुराग द्वारा गुणों के अनुराग को वृद्धि क ' इन ऊपर की बातोंका सारांश यह है कि अपनी आत्माको परमात्मा रुप बनाने के लिये मूर्ति पूजा पुष्ट अवलंबन या कारण हैं। आत्माके परमात्म रूप बनने में उपादान कारण तो आत्मा ही है यह कभी भी न भूलना चाहिये, क्योंकि यदि अपन पाप वाशनाओंमें लिप्त रहेगे तो मात्र दर्शन वंदनसे प्रभु तार नहीं सकते हैं। दूसरा उद्देश्य है उपकारी के उपकार को Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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