Book Title: Jinraj Bhakti Adarsh Author(s): Danmal Shankardan Nahta Publisher: Danmal Shankardan NahtaPage 40
________________ ( ३१ ) नहीं कर सकता। उन गुणोंके स्थान (निवास) रुप इस नाभि कमलका में पूजा करता हूं। (इस प्रकार अनेक सद भावना सह आत्मोन्नति के मार्गरुप पूजा करने से महान फलकी प्राप्ति होती है। नव अंग पूजाको भावना पर विवेचन देखो :-धार्मिक गय पद्य संग्रह पृ: १२७ से १३२ तक। प्रभु दर्शनके समय की भावना । ६ प्रभुका दर्शन कर उनके गुणोंका स्मरण अवश्य करना चाहिये। अनुकूलता के अनुसार प्रभके जीवन चरित्रका स्मरण करना चाहिये कि अहो! प्रभुके १ आश्रवमार्ग का त्याग २ परिषह सहनमें वीरता ३ समभाव ४ उग्रतप ५ उदार भाबना ६ हृढ़ता ७ उनके उपदेश ८ उनके किये अनुकरणीय कार्यवा गुण ६ प्रभुके उपकार आदिका स्मरण और चिन्त बन करना चाहिये। प्रभुके गुणोकी ओर अभिरुचि प्रतिदिन बढ़ाते रहना चाहिये । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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