Book Title: Jinraj Bhakti Adarsh Author(s): Danmal Shankardan Nahta Publisher: Danmal Shankardan NahtaPage 97
________________ ( ce } शुद्धि एवं वस्त्र-शुद्धिके सम्वन्धमें आगे स्नानके प्रसंग में कहा जा चुका है। स्नान करने की भूमि जैसी निर्जीब होनी चाहिए वैसी ही जिन मन्दिर के अन्दर की भूमि शुद्ध भी होनी चाहिये | कचरा, कूड़ा अच्छी तरह से निकाला हुआ होना चाहिये । त्रसजीवो की विराधना किसी भी स्थानमें नहीं होने पावे इसका ख्याल रखना चाहिए। समस्त उपकरण, ओरशीया ( जिस पर चंदन रगड़ा जाता है) चंदन, रकेबी, कटोरी, पुष्प की छाबड़ी, धूपदान, मंगलदीप, कलश, जल रखनेका बड़ा बर्तन, प्रचालन करने की कुंडी, स्नात्र जल डालनेकी कुंडी, बालकुंची, अंगलुहणा, पाटलुहणा, मोरपंख, पट्टा, चामर, घंट इत्यादि सर्व वस्तुओं को प्रातःकाल ही में अच्छी तरह सावधानी से देखकर तथा प्रमार्जन कर एवं खंखेर कर और धातुके सब पात्रोंको जलसे साफ कर पीछे उपयोग में लाने चाहिए । इसमें दृष्टि से देखते रहने का लक्ष्य हर समय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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