Book Title: Jinduttasuri Charitram Purvarddha
Author(s): Chhaganmalji Seth
Publisher: Chhaganmalji Seth

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achan श्रीसुधर्मात् तेंतालीसमेपाटे मुख्यशाखामे नवांगवृत्तिकर्ता श्रीजिनाभयदेव सूरिसुशिष्यः श्रीमजिनवल्लभसूरिजीके पट्टको अलंकृतकरतेथे, इसतरे सर्वायु गुणयासी (७९) वर्षकापालके १२११ आषाढ सुद ११ गुरु सौधर्ममेगये इत्यादि विशेष अधिकार तो गणधरसार्ध शतकादिकसे जाणना, तथाचोक्तं युगप्रधानपदभृत्, श्रीजिनवल्लभसूरयः सूरिः श्री. जिनदत्ताहः । तेषां पट्टे दिदीपिरे ॥१॥ युगप्रधानपदभृत् , सूरिः श्रीमजिनदत्ताहः। श्रीवीराचतुश्चत्वारिंशत्तमे पट्टे च समभवत् ॥२॥ इति सूरिसत्तासमयः । श्रीवीरात्सुधांच, वेदाग्नि ४३ वेदधर्म ४४ तमपट्टे, युक्ते समभवन्पूज्याः श्रीजिनदत्तसूरयः ॥ १ ॥ श्रीसद्गुरुके शोभननामाक्षरोंको धारन करनेवाले श्रीवीरशासनप्रभावक श्रीगुरुमहाराजके नामाक्षरोंको सत्यार्थ शोभित करनेवाले श्रीवीरशासनमें यथार्थसिद्धान्तरहस्यार्थ जाणनेवाले, शुद्धनरूपक, शुद्धश्रद्धानयुक्त भिन्न भिन्नगच्छोंमे अनेकाचार्य हूवेहैं, आगे इस पंचम आरेमें श्रीसुगुरुके नामाक्षरोंको यथार्थ सत्यशोभितकरनेवाले, आचार्य महाराज निसंदेह होनेवाले हैं और श्री सद्गुरुका नाम हि ऐसा प्रभावशाली है, इस लिये श्री गुरुके नामकाहि निरन्तर स्मरण ध्यान भव्योंको कल्याणकारि है इसमें अहो सजनो सादर भक्तिभावपूर्वक निरंतर तुम एक श्रीगुरुमहाराजके नामका स्मरण करो इस भवमें योगक्षेम परभवमें स्वर्ग अपवर्गादि सर्व संपदाको प्राप्त होवोगे इत्यलं विस्तरेण श्रीमान् चरित्रनायक पूज्यपादका पट्टक्रम न्यास इसतरे है, तथाहि For Private And Personal Use Only

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