Book Title: Jinduttasuri Charitram Purvarddha Author(s): Chhaganmalji Seth Publisher: Chhaganmalji Seth View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ रखीथी, तिसके अन्दरसें १ विद्यान्नाय पुस्तक श्रीसिद्धसेनदिवाकरनें ग्रहणकरी थी, तिस महाकालमंदिरस्तंभगत विद्याम्नाय पुस्तककों विद्याबलसें आकर्षणकर ग्रहण करनेवाले, और अनेक देव एकसो आठ जातिके भैरव, ५२ प्रकार के क्षेत्रपाल विमलेश्वर पूर्णभद्र माणिभद्र कपिल पिंगल कुमुद अंजन वामन पुष्पदंत जय विजय जयन्त अपराजित तुंबरू खट्टांग अर्चिमालि कुसुम अग्निकुमार मेघकुमार गोमुखादि २४ यक्ष सेलयपर्वतवासी क्षेत्रपाल, सिंधुगतपंचनदी अधिष्ठायक पंचपीरादिदेवगणसें सेवित होने. बाले, चक्रेश्वरी आदि २४ यक्षणी, धृतिलक्ष्मी आदि २४ महादेवी, १६ रोहिणीआदि विद्यादेवी, सरस्वती, श्री लक्ष्मी धृति कीर्ति बुद्धि ही ६ देवी पद्मा जया विजया अपराजिता वैरोट्या नया विजया जयन्ती अपराजिता जंभा स्तंभा मोहा अंधा गंगा रंभा चोसहयोगिणी आदि देव देवगणसें सेवित होनेवाले, अनेक विद्या ही विद्या परमेष्ठीविद्या आचामंत्रविद्या वर्धमानविद्या परकायाप्रवेशविद्या सकुनिविद्या दृशविद्या अदृशविद्या रूपपरावर्त्तिनीविद्या आकर्षणी, मोचनी, स्तंभिनी, तालोद्वाटिनी, संजीविनी, खेचरी, सरसवस्वर्णसिद्धि आकाशगामिनी, वैक्रियादि विद्याओंसें अणिमादि अष्टसिद्धिओंसें सेवित होनेवाले, अतिवृष्टि अनावृष्टि आदि ७ ईतियाँ स्वचक्र परचक्रादि ७ भयसें प्राणिगणको मुक्तकरनेवाले, स्वसिद्धान्त पर सिद्धान्त पारंगामी कंठविराजित सरसती दादा जगमे श्री जिनदत्तसूरींद विघ्नहरण मंगलकरण, संपतकरण, करो पुण्य आणंद एसे महाप्रभाविक पुन्यपवित्र चारुगात्र अतिशुद्ध मोक्षमार्गके आराधन करनेसें और पूर्वभवोपार्जित अतिशुद्ध युगप्रधान• For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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