Book Title: Jindutta Charit Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal Publisher: Gendilal Shah Jaipur View full book textPage 7
________________ थे ' । पाटल उनका गोत्र था । कवि के पिता का नाम 'पचऊलीया प्रमइ' था जो एक स्थान पर 'आते' भी कहा गया है । किन्तु 'सस्ते संभवतः अमि प्रभई से पाठ-प्रमाद के बारा हुआ है । इनकी माता का नाम 'सिरीया' था । इनके पिता का संभवतः वचपन में ही स्वर्गवास होगया था और लालन पालन माह में है कि नाति होंने माता के प्रति अपना मक्तिमाव प्रदर्शित करते हुये लिखा है कि सिरिया माता ने इनफा बड़े ही करूणा भाष से पालन किया तथा दश मास तक उदर में रखा जिसकी कृतज्ञता से उऋण होना संभव नहीं था । इनकी माता धार्मिक विचारों वाली थी । कवि का नाम रल्ह था लेकिन उसके कितने ही छन्दों में 'राजसिंह' अथवा राइसिंह भी नाम पाए हैं संभवतः कवि का नाम राजसिह था लेकिन उनका लघु नाम, जिससे वे जन-साधारण में सम्बोधित किये जाते रहे होंगे 'रल्ह' रहा होगा । इसलिये कवि ने अपनी इस कृति में दोनों ही नामों का उल्लेख किया है। पैसे उस युग में छोटे नामों का अधिक प्रयोग होता था । वल्ह, पल्ह, बुचा, दोहन, पूनो प्रादि नाम बड़े नामों के ही विकृत नाम हैं जिन्हें कवि ही नहीं किन्तु जन-साधारण भी प्रयोग में लाते थे । प्रथ प्रशस्तियों में ऐसे सैकहों नाम पढ़ने को मिलते हैं । इसलिये यह निश्चित है कि 'रल्ह मोर 'राजसिंह कवि के ही दो नाम थे। १. जइसबाल कुलि उत्तम जाति, घाईसइ पाउल उत्तपाति । ___पंऊसीया पाते फउ पूतु, कधइ राहु जिरणदत्त चरितु ॥२६॥ जो जिणवत्त कउ सुरण्इ पुगणु, तिसको होइ गाए निव्याण । अजर अमर गउ लहइ निस्त, चवइ रह प्रभई कउ पुत्त ॥५५१।। २. माता पाइ नमउ जं जोगु, देखालियउ बेहि मत लोग । उचरि माश दश रहिउ धराइ, धम्म झुधि हुइ सिरीया माइ ॥२७॥ पुरण पुरण पणवउ माता पाइ, जेइ हउ पालिउ करुणा भाइ । म उवचारणा हुइराउ उरण, हा हा माइ मझ जिण सरणु ॥२८।। सीनPage Navigation
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