Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 5
________________ भूमिका "जिणदप्तचरित" की उपलब्धि डा० कासलीवाल को राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों को प्रक सूची बनाते समय हुई थी। इसको एक मात्र पाण्डलिपि जयपुर के दि. जै मन्दिर पाटोही के शास्त्र भण्डार के एक गुटके में संग्रहीत है । गटके का प्राकार ६"x=" है । इसमें ३४ पत्र है। प्रथम १३ पत्रों में 'जिगादत्त चरित' लिखा हृया है । शेष २१ पत्रों में अन्य छोटो १३ रचनाओं का संग्रह है । ये कृतियां संवत् १७४३ मंगसिर बुदी ७ से लेकर मंदत् ११७२ तक लिपिबद्ध हुई हैं । जिगदत्त चरित' का 'लेखन काल सं. १७५२ कार्तिक मुदी ५. शुक्रबार ' है । यह प्रति पालम निवासी पुष्करमल के पुत्र महानंद द्वारा लिखी गई थी जो पञ्चमीव्रत के उद्यापन के निमित्त व्रतकर्ता की ओर से साहित्य- जगत् को भेंट दी गयी थी । प्रति कागज पर लिखी हुई है । लिपि सामान्यत: स्पष्ट है । प्रत्येक पृष्ठ पर मामान्यत. ३२ पक्तियाँ तथा प्रति पंक्ति में इतने ही अक्षर हैं। लेकिन प्रारम्भ के ३ पत्र मोटी लिपि में लिखे हुवे हैं । इसी तरह अन्तिम पत्रों में लिपि किचित् पतली हो गयी है । गुटके के पत्रों का एक छोर टेहा कटा हुआ है, जिससे कुछ अमर कट भी गये १. सं. १७५२ वर्षे कातिक मुदि ५ शुक्रवामरे लिखितं महानंद पालवं निवासी पुष्करमलात्मज । यादृशं पुस्तकं दृष्टत्रा, तादृशं निखितं मया । यदि शुद्धमशुद्ध वा, मम दोपो न दीयते ।। शुभं भवेत् लेखकाध्यापकयोः ।श्रीरमत। पंचमीव्रतोपमानिमित्त ।शुभं ।

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