Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 3
________________ प्रकाशकीय हिन्दी पद संग्रह के प्रकाशन के कुछ मास पश्चात् ही जिणदत चरित' को पायकों के हाथों में देते हुए अतीन प्रमन्नता है । 'जिएदत्त चरित' हिन्दी साहित्य की प्रादिकालिक कृति है और इसके प्रकाशन से हिन्दी साहित्य के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ सकेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। इसके पूर्व साहित्य पोध विभाग को अोर से 'प्रद्य म्न चरित' का प्रकाशन किया जा चुका है। इस प्रकार हिन्दी के दो प्रादिकालिक एवं अज्ञात काव्यों की खोज पर प्रकाशन करके साहित्य शोध विभाग ने राष्ट्र भाषा हिन्दी की महनी सेवा की है। दोनों ही कृतियां प्रबन्ध काव्य हैं और हिन्दी के मादिकाल की महत्वपूर्ण कृतियां हैं। प्रद्य म्न चरित का जब प्रवाशन हुआ था नो उराका सभी प्रोर मे स्वागत हुअा था तथा स्त्र ० महापंडित राहुल सांकृत्यायन, डा. नारीप्रसाद द्विवेदी, डा. वासुदेवशरण अग्रवाल एवं डा० गत्येन्द्र जैसे प्रभृत्ति विद्वानों ने उसकी अत्यधिक सराहना की थी। उसी समय पंरित राहल सांकृत्यायन ने तो हमें जिरणदत्त चरित' को भी शीघ्र ही प्रकाशित करने की प्रेरणा दी थी लेकिन इसकी एकगात्र प्रति डा. कनूर नंद कामचीवाल को जयपुर के पाटोदी के मंदिर के हस्तलिखित ग्रंथों की सूची बनाते समय उपलब्ध हुई थी इसलिए दूसरी प्रति को प्रावश्यता थी। इसके पश्चात् इमकी दूसरी प्रति की तलाश करने का भी काफी प्रयाग किया गया लेकिन उसमें अभी तक कोई मफलता नहीं मिली। अत: एक ही हस्तलिखिन प्रति के प्राचार पर ही इमका प्रकाशन किया जा रहा है । जिरादत्त चरित के सम्पादन में हिन्दी के मुर्धन्य विद्वान डा माताप्रसाद जी गुप्त अध्यक्ष हिन्दी विद्यापीठ, आगरा विश्वविद्यालय, प्रागरा ने जो सहयोग दिया है उसके लिये हम प्रामारी हैं। डा गुप्त जी की हमारे साहित्य शोध दिमाग पर सदैव कृपा रही है। उन्होंने पहिले भी प्रद्य म्न परित पर प्राक्कथन लिखने का कष्ट किया था ।

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