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जिनागम के अनमोल रत्न ]
जीर्णे वस्त्रे यथात्मानं न जीर्णं मन्यते तथा । जीर्णे स्वदेहेऽप्यात्मानं न जीर्णं मन्यते बुधः । 164 ।। नष्टे वस्त्रे यथाऽऽत्मानं न नष्टं मन्यते तथा । नष्टे स्वदेहेऽप्यात्मानं न नष्टं मन्यते बुधः ।165 ! |
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जिस प्रकार बुद्धिमान पहने हुए वस्त्र के जीर्ण होने पर अपने शरीर को जीर्ण नहीं मानते, उसी प्रकार अन्तरात्मा इस शरीर के जीर्ण होने पर भी इस आत्मा को जीर्ण नहीं मानते ।
जिस प्रकार बुद्धिमान, वस्त्र के नष्ट होने पर अपने शरीर को नष्ट हुआ नहीं मानते, उसी प्रकार अन्तरात्मा अपने देह के नष्ट होने पर भी आत्मा को नष्ट हुआ नहीं मानता है ।
ग्रामोऽरण्यमिति द्वेधा निवासोऽनात्मदर्शिनाम् । दृष्टात्मनां निवासस्तु विविक्तात्मैव निश्चलः । 173॥ जिनको आत्मा का अनुभव नहीं हुआ, ऐसे लोगों को ग्राम अथवा अरण्य ऐसे दो प्रकार के निवास स्थान हैं; किन्तु जिनको आत्मस्वरूप का अनुभव हुआ है उन ज्ञानी पुरूषों को व्याकुलता रहित शुद्धात्मा ही निवासस्थान
है।
देहेऽस्मिन्नात्मभावना ।
देहान्तरगतेर्बीजं बीजं
विदेहनिष्पत्तेरात्मन्येवात्मभावना।।74।।
इस देह में आत्मपने की भावना वह अन्य शरीर ग्रहणरूप भवान्तर प्राप्ति का बीज अर्थात् कारण है, और आत्मा में ही आत्मा की भावना, वह शरीर के सर्वथा त्यागरूप मुक्ति का बीज है।
आत्मन्येवात्मधीरन्यां
शरीरगतिमात्मनः । मन्यते निर्भयं त्यक्त्वा वस्त्रं वस्त्रान्तरग्रहम् ॥ 77 ॥
आत्मा में ही आत्म बुद्धिवाला अन्तरात्मा शरीर के विनाश को आत्मा