Book Title: Jinagam Ke Anmol Ratna
Author(s): Rajkumar Jain, Mukesh Shastri
Publisher: Kundkund Sahtiya Prakashan Samiti
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जिनागम के अनमोल रत्न ]
जो समयपाहुडमिणं पढिदूणं अत्थतच्चदो णादुं । अत्थे ठाही चेदा सो होही उत्तमं सोक्खं ॥ यह समयप्राभृत पठन करके जान अर्थ रू तत्व से । ठहरे अरथ में जीव जो वो, सौख्य उत्तम परिणमे । 415 ॥ 47 शक्तियाँ (आ. अमृतचन्द्र स्वामी )
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1. जीवत्वशक्ति, 2. चितिशक्ति, 3. दृशिशक्ति, 4. ज्ञानशक्ति, 5. सुखशक्ति, 6. वीर्यशक्ति, 7. प्रभुत्वशक्ति, 8. विभुत्वशक्ति, 9. सर्वदर्शित्व शक्ति, 10. सर्वज्ञत्वशक्ति, 11. स्वच्छत्वशक्ति, 12. प्रकाशशक्ति, 13. असंकुचित विकाशत्वशक्ति, 14. अकार्यकारणत्वशक्ति, 15. परिणम्यपरिणामकत्व शक्ति, 16. त्यागोपादानशून्यत्व शक्ति, 17. अगुरू लघुत्वशक्ति,18. उत्पादव्यय ध्रुवत्व शक्ति, 19. परिणामशक्ति, 20. अमूर्तत्वशक्ति, 21. अकर्तृत्वशक्ति, 22. अभोक्तृत्व शक्ति, 23. निष्क्रियत्वशक्ति, 24. नियतप्रदेशत्व शक्ति, 25. स्वधर्म व्यापकत्व शक्ति, 26. साधारण - असाधारण - साधारणासाधारण धर्मत्व शक्ति, 27. अनन्त धर्मत्व शक्ति, 28. विरूद्धधर्मत्व शक्ति 29 तत्वशक्ति, 30. अतत्वशक्ति, 31. एकत्वशक्ति, 32. अनेकत्वशक्ति, 33. भावशक्ति, 34. अभावशक्ति, 35. भावाभावशक्ति, 36. अभावभावशक्ति, 37. भावभावशक्ति, 38. अभावाभाव शक्ति, 39. भावशक्ति 40. क्रियाशक्ति, 41. कर्मशक्ति, 42. कर्तृत्वशक्ति, 43. करणशक्ति 44. सम्प्रदानशक्ति, 45. अपादानशक्ति, 46. अधिकरणशक्ति, 47. सम्बन्धशक्ति ।
( 34 ) समयसार (कलश)
नमः समयसाराय स्वानुभूत्या चकासते । चित्स्वभावाय भावाय सर्वभावान्तरच्छिदे ।।1।। अतः शुद्धनयायत्तं प्रत्यग्ज्योतिश्चकास्ति तत् । नवतत्त्वगतत्वेपि यदेकत्वं न मुंचति ॥ 7 ॥ ।। तत्पश्चात् शुद्धनय के आधीन जो भिन्न आत्मज्योति है वह प्रगट होती है कि जो नवतत्वों में प्राप्त होने पर भी अपने एकत्व को नहीं छोड़ती।
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