Book Title: Jinagam Ke Anmol Ratna
Author(s): Rajkumar Jain, Mukesh Shastri
Publisher: Kundkund Sahtiya Prakashan Samiti

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Page 216
________________ जिनागम के अनमोल रत्न] [215 (अनुभव का वर्णन) वस्तु विचारत ध्यावतै, मन पावै विश्राम। रस स्वादत सुख ऊपजै, अनुभौ याकौ नाम ।।17।। (अनुभव की महिमा) अनुभव चिंतामनि रतन, अनुभव है रसकूप। अनुभव मारग मोखकौ, अनुभव मोख सरूप।18।। (सवैया मनहर) अनुभौके रसकौं रसायन कहत जग , अनुभौ अभ्यास यह तीरथकी ठौर है। अनुभौकी जो रसा कहावै सोई पोरसा सु , __ अनुभौ अधोरसासौं ऊरधकी दौर है।। अनुभौकी केलि यहै कामधेनु चित्रावेलि , " .. अनुभौको स्वाद पंच अमृतकौ कौर है। अनुभौ करम तोरै परमसौं प्रीती जोरै , अनुभौ समान न धरमकोऊ और है ।।1।। 1. जीवद्वार : चिदानन्द भगवान की स्तुति शोभित निज अनुभूति जुत चिदानंद भगवान । सार पदारथ आतमा, सकल पदारथ जान ।।1।। (शुद्ध निश्चय नय से जीव का स्वरूप) एक देखिये जानिये, · रमि रहिये इक ठौर। समल विमल न विचारिये, यहै सिद्धि नहिं और ।।20।

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