Book Title: Jinagam Ke Anmol Ratna
Author(s): Rajkumar Jain, Mukesh Shastri
Publisher: Kundkund Sahtiya Prakashan Samiti

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Page 224
________________ जिनागम के अनमोल रत्न] [223 ऐते परि मूरख न खोजै परमारथकौं , स्वारथकै हेतु भ्रम भारत ठटतु है । लगौ फिरै लोगनिसौं पग्यौ परै जोगनिसौं, विषैरस भोगनिसौं नेकु न हटतु है ।। 26 ।। (शरीर की अवस्था) देह अचेतन प्रेत-दरी रज, रेत-भरी मल-खेतकी क्यारी । व्याधिकी पोट अराधिकी ओट, उपाधिकी जोट समाधिसौं न्यारी।। रे जिय! देह करै सुख हानि, इते पर तौ तोहि लागत प्यारी। देह तौ तोहि तजेगी निदान पै, तूही तजै किन देहकी यारी।।38।। (संसारी जीवों की दशा कोल्हू के बैल के समान है) पाटी बांधी लोचनिसौं सकुचै दबोचनिसौं , कोचनिके सोचसौं न बेदै खेद तनकौ । धायबो ही धंधा अरू कंधामांहि लग्यौ जोत , ___ बार बार आर सहै कायर है मनको ।। भूख सहै प्यास सहै दुर्जनको त्रास सहै , थिरता न गहै न उसास लहै छनकी। . पराधीन घूमै जैसौ कोल्हूको कमेरौ बैल , तैसौई स्वभाव या जगतवासी जनकी ।।42।। (धन-सम्पत्ति से मोह हटाने का उपदेश) जासौं तू कहत यह संपदा हमारी सो तौ , साधनि अडारी ऐसैं जैसै नाक सिनकी। ताहि तू कहत याहि पुनजोग पाई सो तौ , नरक की साई है बड़ाई डेढ़ दिनकी।

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